________________ 110 श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम् न कचि / 2 / 4 / 105 // यादीदूतः कचि परे ‘ह्रस्वो न' स्यात् / बहुकुमारीकः, बहुकीलालपाकः, बहुलक्ष्मीकः, बहुब्रह्मबन्धूकः // 105 // नवाऽऽपः / 2 / 4 / 106 // . [ // 106 // आपः कचि परे ‘ह्रस्वो वा' स्यात् / प्रियखट्वकः, प्रियखट्वाकः . इचाऽपुंसोनिक्याप्परे / 2 / 4 / 107 // आबेव परो यस्मान्न विभक्तिस्तस्मिन्ननितः प्रत्ययस्यावयवे के परेऽपुल्लिङ्गाद्विहितस्याऽऽपस्स्थाने 'इ-ह्रस्वौ वा' स्याताम् / खट्विका, खट्वका, खट्वाका / अपुंस इति किम् ? सर्विका / अनिदिति किम् ? दुर्गका | आप्पर इति किम् ? प्रियखट्वाको ना, अतिप्रियखट्वाका स्त्री / आप आप्पर मातृका // 10 // अनाऽधातुत्यय की ताभ्यां का शिका, स्व-ज्ञा-5ज-भस्त्राऽधातुत्ययकात् / 2 / 4 / 108 // स्व-ज्ञा-ऽज-भस्त्रेभ्यो धातु-त्यवर्जस्य यौ य-कौ ताभ्यां च परस्या-ऽऽपः स्थानेऽनित्क्याप्परे परत 'इकारो वा' स्यात् / स्विका, स्वका; शिका, ज्ञका; अजिका, अजका; अभस्त्रिका, अभस्त्रका; इभ्यिका, इभ्यका; चटकिका, चटकका / धातुत्यवर्जनं किम् ? सुनयिका, सुपाकिका, इहत्यिका / आप इत्येव- काम्पील्यिका // 10 // ज्येष-सूत-पुत्र-वृन्दारकस्य / 2 / 4 / 109 // एषामन्तस्यानित्क्याप्परे 'इर्वा' स्यात् / द्विके, द्वके; एषिका; एषका; सूतिका, सूतका; पुत्रिका; पुत्रका; वृन्दारिका, वृन्दारका // 109 / / वौ वर्तिका / 2 / 4 / 110 // शकुनावर्थे 'वर्तिका' इति 'इत्वं वा' स्यात् / वर्तिका, वर्तका / वाविति किम् ? वर्तिका भागुरिः // 110 //