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RST
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CELL શ્રેય જીર્ણોદ્ધાર
-: સંયોજક :શ્રી આશાપૂરણ પાર્શ્વનાથ જૈન જ્ઞાનભંડાર શા. વિમળાબેન સરેમલ જવેરચંદજી બેડાવાળા ભવના હીરાજૈન સોસાયટી, સાબરમતી, અમદાવાદ-૩૮૦૦૦૫.
મો. ૯૪૨૬૫ ૮૫૯૦૪ (ઓ.) ૦૭૯-૨૨૧૩૨૫૪૩
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“અહો શ્રુતજ્ઞાનમ” ગ્રંથ જીર્ણોધ્ધાર ૧૧૬
બીકાનેર જૈન લેખ સંગ્રહ
: દ્રવ્ય સહાયક:
પૂજ્ય આ. શ્રી ૐમકારસૂરિજી મ.સા.ના સમુદાયના પૂ. સાધ્વીજી શ્રી કૈવલ્યરત્નાશ્રીજી મ.સા.ની પ્રેરણાથી
શ્રી ૐમકારસૂરિજી આરાધના ભવન
એમ.એમ.જૈન સોસાયટી, સાબરમતી શ્રાવિકા ઉપાશ્રયના જ્ઞાનખાતાની ઉપજમાંથી
: સંયોજક:
શાહ બાબુલાલ સરેમલ બેડાવાળા
શ્રી આશાપૂરણ પાર્શ્વનાથ જૈન જ્ઞાન ભંડાર શા. વીમળાબેન સરેમલ જવેરચંદજી બેડાવાળા ભવન હીરાજૈન સોસાયટી, સાબરમતી, અમદાવાદ-380005
(મો.) 9426585904 (ઓ.) 22132543 સંવત ૨૦૬૭ ઈ.સ. ૨૦૧૧
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"Aho Shrut Gyanam"
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પૃષ્ઠ
238
286
54
007
810
850
322
280
162
302
અહો શ્રુતજ્ઞાનમ ગ્રંથ જીર્ણોદ્ધાર- સંવત ૨૦૬૫ (ઈ. ૨૦૦૯- સેટ નં-૧ ક્રમાંક પુસ્તકનું નામ
કર્તા-ટીકાકાસંપાદક 001 | श्री नंदीसूत्र अवचूरी
पू. विक्रमसूरिजीम.सा. 002 | श्री उत्तराध्ययन सूत्र चूर्णी
पू. जिनदासगणिचूर्णीकार । | 003 श्री अर्हद्रीता-भगवद्गीता
पू. मेघविजयजी गणिम.सा. 004 श्री अर्हच्चूडामणिसारसटीकः
पू. भद्रबाहुस्वामीम.सा. 005 | श्री यूक्ति प्रकाशसूत्रं
| पू. पद्मसागरजी गणिम.सा. 006 | श्री मानतुङ्गशास्त्रम्
| पू. मानतुंगविजयजीम.सा. अपराजितपृच्छा
| श्री बी. भट्टाचार्य 008 शिल्पस्मृति वास्तु विद्यायाम्
| श्री नंदलाल चुनिलालसोमपुरा 009 शिल्परत्नम्भाग-१
| श्रीकुमार के. सभात्सवशास्त्री 010 | शिल्परत्नम्भाग-२
| श्रीकुमार के. सभात्सवशास्त्री 011 प्रासादतिलक
श्री प्रभाशंकर ओघडभाई 012 | काश्यशिल्पम्
श्री विनायक गणेश आपटे 013 प्रासादमञ्जरी
श्री प्रभाशंकर ओघडभाई 014 | राजवल्लभ याने शिल्पशास्त्र
श्री नारायण भारतीगोसाई 015 शिल्पदीपक
| श्री गंगाधरजी प्रणीत | वास्तुसार
श्री प्रभाशंकर ओघडभाई 017 दीपार्णव उत्तरार्ध
| श्री प्रभाशंकर ओघडभाई જિનપ્રાસાદમાર્તડ
શ્રી નંદલાલ ચુનીલાલ સોમપુરા | जैन ग्रंथावली
| श्री जैन श्वेताम्बरकोन्फ्रन्स 020 હીરકલશ જૈનજ્યોતિષ
શ્રી હિમ્મતરામમહાશંકર જાની न्यायप्रवेशः भाग-१
| श्री आनंदशंकर बी.ध्रुव 022 | दीपार्णवपूर्वार्ध
श्री प्रभाशंकर ओघडभाई 023 अनेकान्तजयपताकाख्यं भाग
पू. मुनिचंद्रसूरिजीम.सा. | अनेकान्तजयपताकाख्यं भाग२
| श्री एच. आर. कापडीआ 025 | प्राकृतव्याकरणभाषांतर सह
श्री बेचरदास जीवराजदोशी तत्पोपप्लवसिंहः
| श्री जयराशी भट्ट बी. भट्टाचार्य | 027 शक्तिवादादर्शः
श्री सुदर्शनाचार्यशास्त्री
156
352
120
88
110
018
498
019
502
454
021
226
640
452
024
500
454 188
026
214
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028
414
192
824
288
520
578
278
252
324
302
038
196
190
202
| क्षीरार्णव
| श्री प्रभाशंकर ओघडभाई 029 वेधवास्तुप्रभाकर
श्री प्रभाशंकर ओघडभाई | 030 શિલ્પપત્રીવાર
| श्री नर्मदाशंकरशास्त्री 031. प्रासाद मंडन
पं. भगवानदास जैन 032 | શ્રી સિદ્ધહેમ વૃત્તિ વૃતિ અધ્યાય પૂ. ભવિષ્યમૂરિનમ.સા. 033 श्री सिद्धहेम बृहद्वृत्ति बृहन्न्यास अध्यायर पू. लावण्यसूरिजीम.सा. 034 | શ્રીસિમ વૃત્તિ ચૂક્યાસ અધ્યાય છે પૂ. ભાવસૂરિનીમ.સા. 035 | શ્રસિહમ વૃત્તિ ચૂદાન અધ્યાય (ર) (૩) પૂ. ભવિષ્યમૂરિનીમ.સા. 036 | श्री सिद्धहेम बृहद्वृति बृहन्न्यास अध्याय५ पू. लावण्यसूरिजीम.सा. | 037 વાસ્તુનિઘંટુ
પ્રભાશંકર ઓઘડભાઈ સોમપુરા તિલકમન્નરી ભાગ-૧
પૂ. લાવણ્યસૂરિજી 039 | તિલકમન્નરી ભાગ-૨
પૂ. લાવણ્યસૂરિજી 040 તિલકમઝરી ભાગ-૩
પૂ. લાવણ્યસૂરિજી સપ્તસન્ધાન મહાકાવ્યમ
પૂ. વિજયઅમૃતસૂરિશ્વરજી 042 સપ્તભીમિમાંસા
પૂ. પં. શિવાનન્દવિજયજી ન્યાયાવતાર
સતિષચંદ્ર વિદ્યાભૂષણ વ્યુત્પત્તિવાદ ગુઢાર્થતત્ત્વાલોક
શ્રી ધર્મદત્તસૂરિ (બચ્છા ઝા) 045 | સામાન્ય નિયુક્તિ ગુઢાર્થતત્ત્વાલોક શ્રી ધર્મદત્તસૂરિ (બચ્છા ઝા) 046 | સપ્તભળીનયપ્રદીપ બાલબોધિનીવિવૃત્તિઃ
પૂ. લાવણ્યસૂરિજી 047 વ્યુત્પત્તિવાદ શાસ્ત્રાર્થકલા ટીકા
શ્રીવેણીમાધવ શાસ્ત્રી 048 | નયોપદેશ ભાગ-૧ તરકિણીતરણી પૂ. લાવણ્યસૂરિજી નયોપદેશ ભાગ-૨ તરકિણીતરણી
પૂ. લાવણ્યસૂરિજી 050 ન્યાયસમુચ્ચય
પૂ. લાવણ્યસૂરિજી 051 સ્યાદ્યાર્થપ્રકાશઃ
પૂ. લાવણ્યસૂરિજી દિન શુદ્ધિ પ્રકરણ
પૂ. દર્શનવિજયજી 053 | બૃહદ્ ધારણા યંત્ર
પૂ. દર્શનવિજયજી જ્યોતિર્મહોદય
સં. પૂ. અક્ષયવિજયજી
041.
480
228
043
6o
044
218
190
138
296
2io
049.
274
286
216
052
532
13
112
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અહો શ્રુતજ્ઞાનમ્ ગ્રંથ જીર્ણોદ્ધાર – સંવત ૨૦૬૬ (ઈ. ૨૦૧૦)- સેટ નં-૨ ભાષા કર્તા-ટીકાકાસંપાદક
પુસ્તકનું નામ
सं
सं
ક્રમ
055
श्री सिद्धहेम बृहद्वृत्ति बृहद्न्यास अध्याय - ६ 056 विविध तीर्थ कल्प
057 ભારતીય જૈન શ્રમણ સંસ્કૃતિ અને લેખનકળા
058 | सिद्धान्तलक्षणगूढार्थ तत्त्वलोकः
059 | व्याप्ति पञ्चक विवृत्ति टीका
જૈન સંગીત રાગમાળા
064 | विवेक विलास
065 | पञ्चशती प्रबोध प्रबंध
066 सन्मतितत्त्वसोपानम्
067 ઉપદેશમાલા દોઘટ્ટી ટીકા ગુર્જરાનુવાદ
068 | मोहराजापराजयम्
069 | क्रिया
070 कालिकाचार्यकथासंग्रह
071 सामान्यनिरुक्ति चंद्रकला कलाविलास टीका
060
061 चतुर्विंशतीप्रबन्ध (प्रबंध कोश )
062 व्युत्पत्तिवाद आदर्श व्याख्यया संपूर्ण ६ अध्याय सं
063 | चन्द्रप्रभा मकौमुदी
सं
072 जन्मसमुद्रजातक
073 | मेघमहोदय वर्षप्रबोध
074
075
शुभ.
सं
सं
જૈન સામુદ્રિકનાં પાંચ ગ્રંથો
જૈન ચિત્ર કલ્પદ્રુમ ભાગ-૧
गु.
सं
4.4.9
सं/गु.
सं
सं
पू. लावण्यसूरिजीम. सा.
पू. जिनविजयजी म. सा.
शुभ.
गु४.
पू. पूण्यविजयजी म. सा.
श्री धर्मदत्तसूरि
| श्री धर्मदत्तसूरि
श्री मांगरोळ जैन संगीत मंडळी
श्री रसिकलाल एच. कापडीआ | श्री सुदर्शनाचार्य
पू. मेघविजयजी गणि
श्री दामोदर गोविंदाचार्य
पू. मृगेन्द्रविजयजी म.सा.
पू. लब्धिसूरिजी म.सा.
પૃષ્ઠ
296
160
164
202
48
306
322
668
516
268
456
420
शुभ.
पू. हेमसागरसूरिजी म. सा.
सं पू. चतुरविजयजी म.सा. सं/हिं श्री मोहनलाल बांठिया सं/गु. श्री अंबालाल प्रेमचंद
406
सं.
श्री वामाचरण भट्टाचार्य
308
सं/ हिं
श्री भगवानदास जैन
128
सं/ हं
श्री भगवानदास जैन
532
श्री हिम्मतराम महाशंकर जान 376
श्री साराभाई नवाब
374
638
192
428
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076 | જન વિને
જૈન ચિત્ર કલ્પદ્રુમ ભાગ-૨ 7 સંગીત નાટ્ય રૂપાવલી 7 | ભારતનાં જૈન તીર્થો અને તેનું શિલ્પ સ્થાપત્ય 079 | શિલ્પ ચિતામણિ ભાગ-૧
080 | બૃહદ્ શિલ્પ શાસ્ત્ર ભાગ-૧
114
08 | બૃહદ્ શિલ્પ શાસ્ત્ર ભાગ-૨ 082 બૃહદ્ શિલ્પ શાસ્ત્ર ભાગ-૩ 083 આયુર્વેદના અનુભૂત પ્રયોગો ભાગ-૧ 084 | કલ્યાણ કારક 085 | વિશ્વનયન વોશ 086 | કથા રત્ન કોશ ભાગ-1 087
કથા રત્ન કોશ ભાગ-2 હસ્તસગ્નીવનમાં
| ગુજ. | શ્રી સારામાકું નવાવ
238 | ગુજ. | શ્રી વિદ્યા સરમા નવાવ
194 ગુજ. | શ્રી સારામારૂં નવાવ
192 ગુજ. | શ્રી મનસુહાનાન્ન મુવમન | 254 ગુજ. | શ્રી ગગન્નાથ મંવારીમ
260 ગુજ. | શ્રી નાગનાથ મંવારમ
238 ગુજ. | શ્રી નવીન્નાથ મંવારમ
260 ગુજ. | પૂ. વરાન્તિસાગરની ગુજ. | શ્રી વર્ધમાન પાર્શ્વનાથ શાસ્ત્રી
910 सं./हिं श्री नंदलाल शर्मा
436 ગુજ. | શ્રી લેવલાસ નવરાન કોશી
336 | ગુજ. | શ્રી લેવલાસ નવરાન તોશી |
230 સં. | પૂ. મે વિનયની
પૂ.સવિનયન, પૂ.
पुण्यविजयजी | आचार्य श्री विजयदर्शनसूरिजी 560
088 .
322
114
089 એ%ચતુર્વિશતિકા 090 સમ્મતિ તક મહાર્ણવાવતારિકા
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श्री आशापूरण पार्श्वनाथ जैन ज्ञानभंडार
पृष्ठ
272
92
240
93
254
282
95
118
466
संयोजक-शाह बाबुलाल सरेमल - (मो.) 9426585904 (ओ.) 22132543 - ahoshrut.bs@gmail.com
शाह वीमळाबेन सरेमल जवेरचंदजी बेडावाळा भवन
हीराजैन सोसायटी, रामनगर, साबरमती, अमदावाद-05. अहो श्रुतज्ञानम् ग्रंथ जीर्णोद्धार-संवत २०६७ (ई. 2011) सेट नं.-३ प्रायः अप्राप्य प्राचीन पुस्तकों की स्केन डीवीडी बनाई उसकी सूची।यह पुस्तके वेबसाइट से भी डाउनलोड कर सकते हैं। क्रम पुस्तक नाम
कर्ता/टीकाकार भाषा संपादक/प्रकाशक |91 स्याद्वाद रत्नाकर भाग-१
वादिदेवसूरिजी
मोतीलाल लाघाजी पुना स्यादवाद रत्नाकर भाग-२ वादिदेवसूरिजी
मोतीलाल लाघाजी पुना स्यादवाद रत्नाकर भाग-३ वादिदेवसूरिजी
मोतीलाल लाघाजी पुना स्यावाद रत्नाकर भाग-४
वादिदेवसूरिजी
मोतीलाल लाघाजी पुना स्यावाद रत्नाकर भाग-५
वादिदेवसूरिजी
मोतीलाल लाघाजी पुना 96 पवित्र कल्पसूत्र
पुण्यविजयजी
सं./अं साराभाई नवाब 97 समराङ्गण सूत्रधार भाग-१
| भोजदेवसं . टी. गणपति शास्त्री समराङ्गण सूत्रधार भाग-२ भोजदेव
टी. गणपति शास्त्री 99 . | भुवनदीपक
पद्मप्रभसूरिजी
सं. वेंकटेश प्रेस | 100 | गाथासहस्त्री
समयसुंदरजी
सं. सुखलालजी भारतीय प्राचीन लिपीमाला
गौरीशंकर ओझा हिन्दी मुन्शीराम मनोहरराम 102 शब्दरत्नाकर
साधुसुन्दरजी
हरगोविन्ददास बेचरदास 103 | सुबोधवाणी प्रकाश
न्यायविजयजी
सं./गु हेमचंद्राचार्य जैन सभा 104 लघु प्रबंध संग्रह जयंत पी. ठाकर
ओरीएन्ट इस्टी. बरोडा 105 | जैन स्तोत्र संचय-१-२-३
माणिक्यसागरसूरिजी
आगमोद्धारक सभा 106 | सन्मतितर्क प्रकरण भाग-१,२,३ सिद्धसेन दिवाकर
सुखलाल संघवी सन्मतितर्क प्रकरण भाग-४,५ सिद्धसेन दिवाकर
सुखलाल संघवी 108 | न्यायसार - न्यायतात्पर्यदीपिका सतिषचंद्र विद्याभूषण
एसियाटीक सोसायटी
342
98
362
134
70
101
316
224
612
307
250
514
107
454
354
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109
सं./हि
337
110
सं./हि
354
111
372
112
सं./हि सं./हि सं./हि
142
113
336
364
सं./गु सं./गु
पुरणचंद्र नाहर पुरणचंद्र नाहर पुरणचंद्र नाहर जिनदत्तसूरि ज्ञानभंडार अरविन्द धामणिया यशोविजयजी ग्रंथमाळा | यशोविजयजी ग्रंथमाळा | नाहटा ब्रधर्स | जैन आत्मानंद सभा
जैन आत्मानंद सभा | फार्बस गुजराती सभा
फार्बस गुजराती सभा | फार्बस गुजराती सभा
218
116
656
122
जैन लेख संग्रह भाग-१
पुरणचंद्र नाहर जैन लेख संग्रह भाग-२
पुरणचंद्र नाहर जैन लेख संग्रह भाग-३
पुरणचंद्र नाहर | जैन धातु प्रतिमा लेख भाग-१
कांतिसागरजी जैन प्रतिमा लेख संग्रह
दौलतसिंह लोढा 114 राधनपुर प्रतिमा लेख संदोह
विशालविजयजी प्राचिन लेख संग्रह-१ ।
विजयधर्मसूरिजी बीकानेर जैन लेख संग्रह
अगरचंद नाहटा 117
प्राचीन जैन लेख संग्रह भाग-१ जिनविजयजी 118 | प्राचिन जैन लेख संग्रह भाग-२ जिनविजयजी 119 | गुजरातना ऐतिहासिक लेखो-१ गिरजाशंकर शास्त्री 120 गुजरातना ऐतिहासिक लेखो-२ गिरजाशंकर शास्त्री
गुजरातना ऐतिहासिक लेखो-३ गिरजाशंकर शास्त्री
ऑपरेशन इन सर्च ऑफ संस्कृत मेन्यु. | पी. पीटरसन 122 __ इन मुंबई सर्कल-१
ऑपरेशन इन सर्च ऑफ संस्कृत मेन्यु. | पी. पीटरसन 123 इन मुंबई सर्कल-४
ऑपरेशन इन सर्च ऑफ संस्कृत मेन्यु. पी. पीटरसन । इन मुंबई सर्कल-५
कलेक्शन ऑफ प्राकृत एन्ड संस्कृत पी. पीटरसन
__ इन्स्क्रीप्शन्स | 126 | विजयदेव माहात्म्यम्
जिनविजयजी
764
सं./हि सं./हि सं./हि सं./गु सं./गु सं./गु
404
404
121
540
रॉयल एशियाटीक जर्नल
274
रॉयल एशियाटीक जर्नल
41
124
400
अं.
रॉयल एशियाटीक जर्नल भावनगर आर्चीऑलॉजीकल डिपार्टमेन्ट, भावनगर जैन सत्य संशोधक
125
320
148
Page #10
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________________
श्री अभय जैन ग्रन्थमाला पुष्प १५
बीकानेर जैन लेख संग्रह
[ बीकानेर राज्य के २६१७, जेसलमेर के १७१ अप्रकाशित लेख ; विस्तृत भूमिकादि सहित ]
वीराब्द २४८२ ]
प्राक्कथन
डॉ० वासुदेवशरण अग्रवाल
संग्राहक व संपादक-
अगरचन्द नाहटा, भँवरलाल नाहटा
प्रकाशक
नाहटा ब्रदर्स ४, जगमोहन मल्लिक लेन
कलकत्ता-७
प्रथमावृत्ति १०००
"Aho Shrut Gyanam"
[ मूल्य १०)
Page #11
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________________
प्रकाशक-- नाहटा ब्रदर्स, ४, जगमोहन मल्लिक लेन,
कलकत्ता-७
सुराना प्रिन्टिङ्ग वर्क्स, ४०२, अपर चितपुर रोड,
कलकत्ता-७
"Aho Shrut Gyanam"
Page #12
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________________
समर्पण
जिन्होंने अपना तन-मन-धन और सारा जीवन जैन पुरातत्त्व, साहित्य, संस्कृति और कला के संग्रह, संरक्षण, उन्नयन और प्रकाशन में लगा दिया और जिनके आन्तरिक प्रेम, सहयोग और सौहार्द ने हमें निरन्तर सरस्वती-उपासना की सत्प्रेरणा दी उन्हीं श्रदय स्वनामधन्य स्वगीय बाबू पूरणचन्दजी नाहर की पवित्र स्मृति में सादर समर्पित
अगरचन्द नाहटा भँवरलाल नाहटा
"Aho Shrut Gyanam"
Page #13
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श्री अभय जैन ग्रन्थमाला के बहुमूल्य प्रकाशन १ अभयरत्नसार (पंच प्रतिक्रमण, स्तोत्र, स्तवनादिका बृहत्संग्रह ) अलभ्य २ पूजा संग्रह (१६ पूजाएँ, चौवीसी, स्तवनोंका संग्रह) ३ सती मृगावती ले भंवरलाल नाहटा ४ विधवा कर्तव्य ले० अगरचन्द नाहटा ५ स्नान-पूजादि संग्रह (दादाजी की अष्टप्रकारी, दशत्रिक स्तवन सह)" ६ जिनराज भक्ति आदर्श (जिन मन्दिरकी आसातना निवारणार्थ
विविध लेखों व मूर्तिपूजा सिद्धि लेख सह) * ७ युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरि ले० अगरचन्द भंवरलाल नाहटा
८ ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह सं० अगरचन्द भंवरलाल नाहटा * ६ दादाश्री जिनकुशलसूरि
अलभ्य *१० मणिधारी श्री जिनचन्द्रसूरि
"
अलभ्य *११ युगप्रधान श्रीजिनदत्तसूरि
" १२ संघपति सोमजी शाह ले. श्री ताजमलजी बोथरा. अलभ्य १३ जैन दार्शनिक संस्कृति पर एक विहंगम दृष्टि ले० श्री शुभकरणसिंह । १४ ज्ञानसार ग्रन्थावली सं० अगरचन्द भंवरलाल नाहटा प्रेसमें १५ बीकानेर जैन लेख संग्रह १६ समयसुन्दर कृति कुसुमाजली
प्रेसमें राजस्थानी साहित्य परिषदके प्रकाशन १ राजस्थानी कहावतो भाग १ सजिल्द ले नरोत्तमदास स्वामी, मुरलीधर व्यास ३) २ राजस्थानी कहावतां भाग २ सजिल्द ३ राजस्थानी भाग १ सं. नरोत्तमदास स्वामी ४ राजस्थानी भाग २ ५ बरसगांठ ( राजस्थानी भाषाकी आधुनिक कहानियाँ) ले० मुरलीधर व्यास
श्रीमद् देवचंद्रग्रन्थमाला १ श्रीमद् देवचन्द्र स्तवनावली (चौवीसी, बीसी, संक्षिप्त जीवन चरित्र सह )
प्रस्तुत ग्रन्थ सम्पादकोंके अन्यत्र प्रकाशित ग्रन्थ १-२ राजस्थान में हिन्दीके हस्तलिखित ग्रन्थोंकी खोज भाग २-४ सं० अगरचन्द नाहटा
प्र० राजस्थान विश्वविद्यापीठ, उदयपुर ३ जसवन्त उद्योत "
अनूप संस्कृत लाइब्ररी, बीकानेर ४ क्यामखां रासो अगरचन्द भंवरलाल नाहटा राजस्थान पुरातत्त्व मंदिर, जयपुर ५ राजगृह ले• भंवरलाल नाहटा जैन सभा, कलकत्ता
कई अन्य सम्पादन किये हुए प्रकाशनार्थ तैय्यार है एवं १४० सामयिक पत्रों में प्रकाशित ११६१ लेखोंकी सूची राजस्थान भारती वर्ष ४ अंक २-३ में छप चुकी है।
___ * इनका गूजराती अनुवाद श्री जिनदत्तसरि ज्ञान भंडार ठि० महावीर स्वामीका मंदिर पायधुनी बम्बईसे प्रकाशित हुआ हैं एवं संस्कृत पद्यानुवाद उपाध्याय श्रीलब्धिमुनिजी महाराजने किया है।
"Aho Shrut Gyanam"
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सूचनिका
प्रापन (डा. वासुदेवशरण अग्रवाल) भूमिका: बीकानेर के जैन इतिहास पर एक दृष्टि .. बीकानेर राज्य स्थापन एवं व्यवस्था में
जैनों का हाथ बीकानेर नरेश और जैनाचार्य बीकानेर में प्रोसवाल जाति के गोत्र एवं
घरों की संख्या अथ चिन्तामण जी, खरतर गच्छ की १३
गुवाड़ के नाम अथ महावीर जी, कंबले गच्छ की १४
गुवाड़ के नाम बीकानेर में रचित जैन साहित्य बीकानेर के जैन मन्दिरों का इतिहास श्री चिन्तामणि जी का मन्दिर श्री शान्तिनाथ जी का मन्दिर श्री सुमतिनाथ मंदिर--भांडासरजी श्री सीमंधर स्वामी का मंदिर श्री नमिनाथ जी का मन्दिर श्री महावीर स्वामी का मन्दिर (वैदों का चौक) श्री वासुपूज्य जी का मन्दिर श्री ऋषभदेव जी का मन्दिर श्री पार्श्वनाथ जी का मन्दिर श्री महावीर जी का मन्दिर (डागों का) श्री अजितनाथ जी का मन्दिर श्री विमलनाथ जी का मन्दिर श्री पार्श्वनाथ जी का मन्दिर श्री आदिनाथ जी का मन्दिर श्री शान्तिनाथ जी का देहरासर श्री चन्द्रप्रभु जी का मन्दिर श्री अजितनाथ जी का देहरासर
(सुमन जी का उपासरा)
श्री कुन्थुनाथ जी का मन्दिर श्री महावीर स्वामी का मन्दिर (बोहरों
की सेरी) १ श्री सुपार्श्वनाथ जी का मन्दिर (नाहटों
की गुवाड़) श्री शान्तिनाथ जी का मन्दिर श्री पद्मप्रभु जी का देहरासर श्री महावीर स्वामी का मन्दिर (प्रासानियों
का चौक) श्री संखेश्वर पार्श्वनाथ जी का मन्दिर श्री गौड़ी पार्श्वनाथ जी का मन्दिर
श्री संखेश्वर पार्श्वनाथ (सेढूजी का) मन्दिर .. १५ श्री ज्ञानसार समाधि मन्दिर
कोचरों का गुरु मन्दिर नयी दादावाड़ी महो० रामलालजी का स्मृतिमन्दिर यति हिम्मतविजय की बगीची
श्री पायचंदसूरिजी ३० श्री पार्श्वनाथ मन्दिर (नाहटों की बगीची)
रेलदादाजी शिवबाड़ी-श्री पार्श्वनाथ मन्दिर ऊदासर-श्री सुपार्श्वनाथ मन्दिर गंगाशहर रामनिवास श्री आदिनाथ जी का मन्दिर
भीनासर ३४ श्री पार्श्वनाथ जी का मन्दिर
श्री महावीर सिनोटरियम (उदरामसर धोरा) उदरामसर श्री कुन्थुनाथ जी का मन्दिर श्री जिनदत्तसूरि गुरु मन्दिर
देशनोक ३५ / श्री संभवनाथ जी का मन्दिर
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४२ | चूरू
श्री शान्तिनाथ जी का मन्दिर श्री केशरिया जी का मन्दिर दादावाड़ी
श्री शान्तिनाथ जी का मन्दिर दादावाड़ी राजगढ़---श्री सुपार्श्वनाथ जी का मन्दिर ..
रिणी--तारानगर
नाल श्री जिनकुशलसूरि मन्दिर श्री पद्मप्रभु जी का मन्दिर श्री मुनिसुव्रत जी का मन्दिर श्रीजिनचारित्रसूरि स्मृतिमन्दिर जांगलू श्री पार्श्वनाथ जी का मन्दिर पांच-श्री पार्श्वनाथ जी का मन्दिर .. मोखामंडी--श्री पार्श्वनाथ जी का मन्दिर ..
श्री शीतलनाथ जी का मन्दिर | दादावाड़ी
नौहर
झज्झू
४
श्री नमिनाथ जी का मन्दिर (बेगानियों
का वास) श्री नमिनाथ जी का मन्दिर (सेठियों का वास) .. नापासर-श्री शान्तिनाथ जी का मन्दिर .. डूंगरगढ़--श्री पार्श्वनाथ जी का मन्दिर विगा--श्री शान्तिनाथ जी का मन्दिर .. राजलदेसर-श्री आदिनाथ जी का मन्दिर
रतनगढ़ श्री आदिनाथ जी का मन्दिर श्री दादावाड़ी बीदासर
भादरा लूणकरणसर श्री सुपार्श्वनाथ जी का मन्दिर कालू--श्री चन्द्रप्रभु जी का मन्दिर गारबदेसर महाजन-श्री चन्द्रप्रभुजी का मन्दिर
सूरतगढ़-श्री पार्श्वनाथ जी का मन्दिर ४४ | हनुमानगढ़ (भटनेर)
देसलसर सारूंडा पूगल ददरेवा बीकानर के जैन मन्दिरों को राज्य की ओर
से सहायता जैन उपाश्रयों का इतिहास बड़ा उपासरा साध्वियों का उपासरा खरतराचार्य गच्छ का उपासरा । श्री जैन लक्ष्मी मोहन शाला
श्री जिनकृपाचंद्र सूरि खरतरगच्छ धर्मशाला यति अनोपचंद जी का उपासरा महो० रामलालजी का उपासरा श्री सुगन जी का उपासरा बोहरों की सेरी का उपासरा | छत्तीबाई का उपासरा | पन्नी बाई का उपासरा | पायचंदगच्छ का उपासरा
सुजानगढ़ श्री पार्श्वनाथ जी का मन्दिर श्री आदिनाथ जी का मन्दिर दादावाड़ी नई दादावाड़ी सरदारशहर श्री पार्श्वनाथ जी का मन्दिर श्री पार्श्वनाथ जी का नया मन्दिर दादावाड़ी
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
(लेखाङ्क १ से १११५) ..
१४५ १४६
१४७
१५३
१५४
.
.
..
२०८
१ श्री चिन्तामणि जी का मन्दिर २ श्री शान्तिनाथ जी का मन्दिर ३ श्री सुमतिनाथ-भांडासर जी का मन्दिर ४ श्री सीमंधर स्वामी का मन्दिर ५ श्री नमिनाथ जी का मन्दिर ६ श्री महावीर स्वामी का मन्दिर
श्री वासुपूज्य जी का मन्दिर ८ श्री ऋषभदेव जी का मन्दिर नाहटों में ६ श्री पार्श्वनाथ जी का मन्दिर
श्री महावीर स्वामी का मन्दिर डागों में ११ श्री अजितनाथ जी का मन्दिर कोचरों में १२ श्री विमलनाथ जी का मन्दिर , १३ श्री पार्श्वनाथ जी का मन्दिर , १४ श्री आदिनाथ जी का मन्दिर ,
श्री शान्तिनाथ जी का देहरासर , श्री चन्द्रप्रभु जी का मन्दिर--वेगानियों में--- श्री अजितनाथ देहरासर-सुगन जी का उपासरा श्री कुन्थुनाथ जी का मन्दिर-रांगड़ी चौक
श्री महावीर स्वामी का मन्दिर-बौरों की सेरी २० श्री सुपार्श्वनाथ मन्दिर-नाहटों में
श्री शान्तिनाथ जी का मन्दिर--नाहटों में श्री पद्मप्रभुजी का मन्दिर-पन्नी बाई का उपाश्रय श्री महावीर स्वामी , प्रासानियों का चौक श्री संखेश्वर पाश्वनाथ मन्दिर , श्री गौड़ी पार्श्वनाथ मंदिर गोगा दरवाजा श्री आदिनाथ मंदिर
॥ श्री सम्मेत शिखर जी , गुरु पादुका मन्दिर व कोने में स्थित मधेरणों की छतरी पर
श्री पार्श्वनाथ सेढूजी का मन्दिर २७ श्री ज्ञानसार समाधिमन्दिर २८ गुरु मन्दिर (कोचरों की बगीची) २६ नयी दादावाड़ी (दूगड़ों की बगीची) ३० गुरु मन्दिर (पायचंदसूरि जी के सामने)
(११६५-११७१) (११७२-११६२) (११६३-१२०४) (१२०५-१३८१) .. (१३८२-१३६८) (१३६६-१४८८) (१४८६-१५२७) (१५२८-१५४३) (१५४४-१५६४) (१५६५-१५९१) (१५६२-१६३२) (१६३३-१६३५) (१६३६-१६३०) (१६३६-१६५६) (१६५७-१६७५) (१६७६-१७०३) (१७०४-१७२१) (१७२२-१७६३) (१७६४-१८५६) (१८५७-१८८७) (१८८८-१९०५) (१९०६-१९१७) (१६१८-१९५५) (१९५६-१९६१) (१९६२-१९६४) (१९६५-१९७२) .. (१९७३-१६७४) (१९७५--१९८४) (१९८५-१९८६) (१९६०-१६६७) (१९६७- ) (१९६८-२०००) ..
२१२ २१६ २२२ २२३ २२४ २२६ २२६ २३३ २३७ २४६ २५७
२६१
२६४
२६६ २७१
२७२
२७२ २७३ २७४ २७५ २७६ २७७
२७
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२७६
२७६
25000
ur
(२००१-२००३) .. (२००४-२०३१) .. (२०३२- ) (२०३३-२१३०) .. (२१३१-२१५१) .. (२१५२-२१६४) (२१६५-२१६६) .. (२१७०-२१७५) ..
३१ यति हिम्मतविजय की बगेची ३२ श्री पायचंदसूरिजी (आदिनाथ मंदिर) ३३ श्री पार्श्व जिनालय-नाहटों की बगीची ३४ श्री रेल दादाजी ३५ श्री उपकेश गच्छ की बगीची ३६ श्री गंगा गोल्डन जुबिली म्युजियम ३७ शिववाड़ी पार्श्वनाथ मन्दिर ३८ ऊदासर--सुपार्श्वनाथमन्दिर गंगाशहर ३६ श्री आदिनाथ मंदिर ४० पार्श्वनाथ मन्दिर (रामनिवास)
K
३०२
(२१७६-२१८०) (२१८१-८२)
.. ..
३०३ ३०३
भीनासर
४१ श्री पार्श्वनाथ मन्दिर
(२१८३-२१६४) ..
३०४
उदरामसर ४२ महावीर सेनिटोरियम मन्दिर (धोरों में) ४३ श्री दादाजी का मन्दिर ४४ श्री कुंथुनाथ मन्दिर देशनोक
(२१९५-२१६८) (२१६६-२२०५) (२२०६-२२११)
.. ..
३०७
४५ श्री संभवनाथ मंदिर (आंचलियों का वास) ४६ श्री शांतिनाथ मंदिर (भरों का वास) ४७ श्री केशरियानाथ मंदिर ४८ दादावाड़ी
(२२१२-२२२६) (२२३०-२२४२) (२२४३-२२४६) (२२५०-२२५३) ..
३०८ ३१० ३१२ ३१३
(२२५४-२२५८) ..
(२२५६-२२६२) ..
जांगलू ४६ श्री पार्श्वनाथ मंदिर पांचू ५० श्री पार्श्वनाथ मंदिर
नोखामण्डी ५१ श्री पार्श्वनाथ मन्दिर नाल ५२ श्री पद्मप्रभुजी का मन्दिर ५३ श्री मुनिसुव्रत जिनालय
(२२६३-२२७३) ..
३१५
(२२७४-२२७८) .. (२२७६-२२८३) ..
३१७ ३१५
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रामपुरियों का उपासरा कॅवलागच्छ का उपासरा लौका गच्छ का उपासरा लौंका गच्छ का छोटा उपासरा सीपानियों का उपासरा कोचरों का उपासरा पौषधशाला साधर्मीशाला बीकानेर के जैन ज्ञान भण्डार जैन भण्डारों की प्रचुरता श्वेताम्बर जैन ज्ञान भण्डार दिगम्बर जैन ज्ञान भण्डार प्रकाशित सूचियाँ दिगम्बर संग्रहालयों के सूचीपत्र बीकानेर के जैन ज्ञान भंडार बीकानेर के जैन ज्ञानभंडारों में दुर्लभ ग्रन्थ .. बीकानेर के जैन श्रावकों का धर्म प्रेम .. बीकानेर के तीर्थयात्री संघ बीकानेर के श्रावकों के बनवाये हए मन्दिर ..
५७ । आचार्य पदोत्सवादि
श्रुतभक्ति वच्छावत वंश के विशेष धर्मकृत्य जैनों के बनवाये हए कुंए आदि सार्वजनिक | कार्य
औषधालय विद्यालय बीकानेर के दीक्षित महापुरुष सचित्र विज्ञप्तिपत्र सतीप्रथा और बीकानेर के जैन सती स्मारक सुसाणी माता का मन्दिर मोरखाणा बीकानेर की कला समृद्धि पल्लू की दो जैन सरस्वती मूर्तियां प्रस्तावना परिशिष्ट
वृहत् ज्ञानभंडार व धर्मशाला की वसीहत .. १०७ ७४ | श्री जिन कृपाचंद्र सूरि धर्मशाला व्यवस्था पत्र .. १०६ ७४ | पर्युषणों में कसाईबाड़ा बन्दी के मुचलके
की नकल
100
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३१६ ३२०
५४ श्री जिनकुशलसूरि मन्दिर
चौमुखस्तूप
शालाओं की चरण पादुकानों के लेख ५५ श्रीजिनचारित्रसूरि मंदिर
खरतराचार्य गच्छीय शालानों के लेख
(२२८४-२२८६) .. (२२८७-२२८८) .. (२२८६-२३०७) .. (२३०५-२३०६) .. (२३१०-२३१६) ..
३२३
३२४
(२३१७-२३२२) .. (२३२३-२३२८) ..
३२५
(२३२६-२३३५)
..
३२६
(२३३६-२३५५)
..
३२७
५६ श्री नेमिनाथ जी का मन्दिर (वेगानियों का वास) ५७ श्री नेमिनाथ जी का मन्दिर (सेठियों का पास) नापासर ५८ श्री शान्तिनाथ मन्दिर राजलदेसर ५६ श्री आदिनाथ जी का मन्दिर रतनगढ़ ६० श्री आदिनाथ मंदिर ६१ दादावाड़ी बीदासर ६२ श्री चन्द्रप्रभु देहरासर सुजानगढ़ ६३ श्री पार्श्वनाथ मन्दिर (देवसागर) ६४ दादावाडी सरदारशहर ६५ श्री पार्श्वनाथ मंदिर ६६ गोलछों का मन्दिर ६७ दादावाड़ी
(२३५६-२३५७) .. (२३५८-२३५६) ..
३३० ३३०
(२३६०-२३६३) ..
३३१
(२३६४-२३७७) (२३७८-२३७६)
.. ..
३३५
(२३८०-२३८८) (२३८६-२३६८) .. (२३९६-२४००) ..
३३६
३३७
(२४०१-२४१६) .. (२४१७-२४२७) ..
६८. श्री शान्तिनाथ मन्दिर ६६ दादा साहब की बगीची राजगढ़-शार्दूलपुर ७० श्री सुपार्श्वनाथ मन्दिर रिणी (तारानगर) ७१ श्री शीतलनाथ जिनालय ७२ दादावाड़ी
(२४२८-२४३८) ..
(२४३६-२४६२) .. (२४६३-२४६५) ..
३४२ ३४५
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खरतरगच्छ उपाश्रय ७३ दि० जैन मन्दिर
(२४६६ (२४६७)
..
३४५ ३४६
नौहर
७४ श्रीपार्श्वनाथ मंदिर
(२४६८-२४८६) ..
भादरा ७५ जैन श्वे. मंदिर
(२४६०-६१)
..
लूणकरणसर ७६ श्री आदिनाथ मंदिर
(२४६२-२५०६) ..
३४६
(२५१०-२५१५)
३५१
कालू ७७ श्री चन्द्रप्रभ जिनालय महाजन ७८ श्री चन्द्रप्रभु जी का मन्दिर
(२५१६-१७)
..
३५२२
(२५२०-२५२५) ..
३५३
(२५३६-२५३७)
..
३५४
३५६
सूरतगढ़ , ७६ श्री पार्श्वनाथ मन्दिर हनुमानगढ़
५० श्री शान्तिनाथ जिनालय बीकानेर ८१ वृहत्ज्ञान भंडार (बड़ा उपासरा) ८२ जयचंद जी का ज्ञान भंडार ८३ उपाश्रयों के शिलालेख ८४ धर्मशालाओं के लेख ८५ लोंका गच्छ बगेची ५६ महादेव जी के मन्दिर में ८७ श्री सुसाणी माता मन्दिर (सुराणों की बगीची) ५५ सतीस्मारक लेखाः कोउमदेसर ८६ सती स्मारक मोटावतो ९० सती स्मारक
(२५३८-२५४०) .. (२५४१) (२५४२-२५५५) (२५५६-२५६१) (२५६२-२५६८) ... (२५६६) (२५७०-७१) (२५७२-२५६८)
३६२
३६३ ३६३
(२५६६)
(२६००)
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(२६०१) (२६०२-३)
.. ..
३७० ३७१
३७२
(२६०४-२६०८) (२६०६-२६१४) (२६१५-२६१७)
.. .. ..
३८४
मोरखाणा ११ सती स्मारक १२ श्री सुसाणी माताजी बीकानेर १३ जूझारादि के लेख १४ दिगम्बर जैन मन्दिर (बीकानेर) ६५ ताम्रशासन लेखाः जेसलमेर (अप्रकाशित लेखाः) ६६ श्री पार्श्वनाथ मन्दिर ६७ श्री संभवनाथ मन्दिर १८ श्री शीतलनाथ मन्दिर &E श्री अष्टापद जी का मन्दिर १०० श्री चन्द्रप्रभ जिनालय १०१ श्री शांतिनाथ जिनालय १०२ श्री ऋषभदेव मन्दिर १०३ श्री महावीर स्वामी का मन्दिर १०४ श्री अमृतधर्म स्मृतिशाला १०५ दादावाड़ी (देदानसर तालाब) १०६ दादावाड़ी (गढीसर तालाब) १०७ समयसुन्दर जी का उपाश्रय १०८ खरतर गच्छाचार्य उपाश्रय लौद्रवपुर तीर्थ १०६ श्री पार्श्वनाथ मन्दिर ११० धर्मशाला
३८५
३८७
(२६१८-२६८७) ..
(२६८८-२७०५). ... .. (२७०६-२६११) ..
(२७१२-२७२७) .. (२७२७-२७७५) .. (२७७६-२७६७) .. (२७६८-२८३५) .. (२८३६-२८४०) .. (२८४१-२८४५) .. (२८४६-३८६८) . .. (२८६६-२८७३) .. (२८७४) (२८७५)
. mo००x
. .
४०५
४०६
(२८७६-२८८७)
(२८८८)
.. ..
४०८
परिशिष्ट
(क) संवत् की सूची (ख) स्थानों की सूची (ग) राजाओं की सूची
(घ) श्रावकों की ज्ञाति गोत्रादि की सूची (च) प्राचार्यों के गच्छ और संवत् की सूची
२० २७
२८
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वक्तव्य इतिहास मानव जीवन का एक प्रेरणा सूत्र है जिसके द्वारा मनुष्य को भूतकालीन अनेक तथ्यों की जानकारी मिलने के साथ साथ महान् प्रेरणा भी मिलती है। सत्य की जिज्ञासा मनुष्य की सबसे बड़ी जिज्ञासा है। इतिहास सत्य को प्रकाश में लाने का एक विशिष्ट साधन है। इ-ति-हा-स अर्थात् ऐसा ही था इससे भूतकालीन तथ्यों का निर्णय होता है।
__इतिहास के साधनों में सबसे प्रामाणिक साधन शिलालेख, मूर्तिलेख, ताम्रपत्र, सिक्के, ग्रन्थों की रचना व लेखन प्रशस्तिथे, भ्रमण वृतान्त, चरित्र, वंशावलिये, पट्टावलिये आदि अनेक हैं उनमें शिलालेख से ग्रन्थ प्रशस्तियों तक के साधन अधिक प्रामाणिक माने जाते हैं क्योंकि एक तो वे घटना के समकालीन लिखे होते हैं दूसरे उनमें परिवर्तन करने की गुंजाइश नहीं रहती है और वे बहुत लम्बे समय तक टिकते भी हैं। भारत का प्राचीन इतिहास पुराणों आदि धार्मिक ग्रन्थों के रूप में भले ही लिखा गया हो पर जिस संशोधनात्मक पद्धति से लिखे गये ग्रंथों को विद्वान लोग आज इतिहास मानते हैं वैसे लिखे लिखाये पुराने भारतीय इतिहास नहीं मिलते। ऐतिहासिक साधनों की कमी नहीं है पर ऐतिहासिक दृष्टि से उनमें से तथ्यग्रहण करने की वृत्ति की कमी है। भारत के प्राचीनतम इतिहास के साधन पुरातत्व के रूप में हैं ये खुदाई के द्वारा भूगर्भ से प्राप्त हुए हैं। मोहनजोदाड़ो एवं हडप्पा आदि में प्राप्त वस्तुएँ प्राचीन भारत के सामाजिक एवं सांस्कृतिक पहलुओं पर महत्वपूर्ण प्रकाश डालती हैं। हर वस्तु अपने समय से प्रभावित होने से उस समय की अनेक बातों का प्रतिनिधित्व करती है। साहित्य में भी समकालीन समाज का प्रतिनिधित्व रहता है पर उसमें एक तो अतिरंजना और पीछे से होनेवाले सेलभेल व परिवर्तन की संभावना अधिक रहने से उसकी प्रामाणिकता का नम्बर दूसरा है।
हमारे वेद, पुराण, आगम आदि ग्रन्थ अपने समय का इतिहास प्रकट करते हैं पर उनमें प्रयुक्त रूपकों व अलंकारों से इतिहास दब जाता है जब कि भूगर्भ से प्राप्त साधन बड़े सीधे रूप में तत्कालीन इतिहास को व्यक्त करते हैं यद्यपि उनके काल निर्णय की समस्या अवश्य ही कठिन होती है अतः काल निर्धारण में बड़ी सावधानी की आवश्यकता है अन्यथा एक तथ्य के काल निर्धारण में गड़बड़ी हुई तो उसके आधार से निकाले गये सारे तथ्य भ्रामक एवं गलत हो जायेंगे!
__भूगर्भ से प्राप्त वस्तुओं के बाद ऐतिहासिक साधनों में प्राचीन शिलालेख, मूर्तियें एवं सिक्कों का स्थान है। ताम्रपत्र इतने प्राचीन नहीं मिलते। कुछ मूर्तिये व स्थापत्य अवश्य प्राप्त हैं।
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शिलालेखों के काल निर्धारण में उसकी लिपी और उसमें निर्दिष्ट घटनायें व व्यक्तियाँ के नाम बड़े सहायक होते हैं । अद्यावधि प्राप्त समस्त शिलालेखों में अजमेर म्यूजियममें सुरक्षित "वीरात् ८४ वर्ष बाद" संवतोल्लेखवाला जैनलेख सबसे प्राचीन है। ओझाजी ने उसकी लिपि अशोक के शिलालेखों से भी पुरानी मानी है इसके बाद सम्राट अशोक के धर्म विजय सम्बन्धी अभिलेख भारतके अनेक स्थानों में मिले हैं । जैन लेखों में खारवेल का उदयगिरि खंडगिरिवाला शिलालेख बड़ा ही महत्त्वपूर्ण है इसमें श्री आदिनाथ की एक जैन मूर्ति नंद राजा के ले जाने
और उसे खारवेल द्वारा वापिस लाने का उल्लेख भी पाया जाता है। इससे जैन मूत्तियों की प्राचीनताका पता चलता है । पर अभी तक प्राप्त जैन मूर्तियों में सबसे प्राचीन पटना म्यूजियम वाली मस्तकविहीन जिन मूर्ति शायद सबसे प्राचीन है जो मौर्यकाल की है यद्यपि उसमें कोई लेख नहीं है। पर उसकी चमक उसी समय का है। इसके बाद मथुरा के जैन पुरातत्वका महत्व बहुत ही अधिक है उसमें कुशाणकाल के कुछ शिलालेख भी प्राप्त हुए हैं जिनमें सबसे पुराना प्रथम शताब्दी का है। मथुरा के जैन लेखों में जिन कुल गण आदि के नाम है उनका उल्लेख करूपसूत्र की स्थविरावली में प्राप्त होनेसे वे लेख श्वेताम्बर सम्प्रदायक सिद्ध हैं । कंकाली टीले में प्राप्त अनेक मूर्तियों व शिलालेखों से मथुरा का कई शताब्दियों तक जैन धर्म का केन्द्र रहना सिद्ध है।
गुप्तकाल भारत का स्वर्ण युग है। उस समय साहित्य संस्कृति कलाका चरमोत्कर्ष हुआ। गुप्त सम्राट यद्यपि वैदिक धर्मी थे पर वे सब धर्मों का आदर करनेवाले थे उस समय की एक मूर्ति मध्यप्रदेश के उदयगिरि में गुप्त संवत् के उल्लेख वाली प्राप्त हुई हैं। वैसे उस समय धातु की जैन मूर्तियों का प्रचलन हो गया था और सातवीं शताब्दी व उसके कुछ पूर्ववती जैन धातु प्रतिमायें कोटा ( बड़ौदा) आदि से प्राप्त हुई हैं ! राजस्थान के वसंतगढ़ में प्राप्त सुन्दर धातु मूर्तियां जो अभी पिंडवाड़े के जैन मंदिर में हैं, राजस्थान की सबसे प्राचीन जैन प्रतिमाएँ हैं। आठवीं शताब्दी की इन प्रतिमाओं के लेख मुनि कल्याणविजयजी ने नागरी प्रचारिणी पत्रिका में प्रकाशित किये थे !
दक्षिण भारत में जैन धर्म का प्रचार श्रुतकेवली आचार्य भद्रबाहू से हुआ माना जाता है पर उधर से सातवीं शताब्दी के पहले का कोई जैन लेख प्राप्त नहीं हुआ । दक्षिण के दिगम्बर जैन लेखों का संग्रह डा० हीरालाल जैन संपादित “जैन शिलालेख संग्रह" प्रथम भाग सन् १९२८ ई० में प्रकाशित हुआ।
श्वे. जैन शिलालेखों की कुछ नकलों के पत्र यद्यपि जैन भण्डारों में प्राप्त है पर आधुनिक ढंग से शिलालेखों के संग्रहका काम गत पचास वर्षों में हुआ। सन् १६०८ में पैरिसके डा० ए. गेरीयेनटने जैन लेखा सम्बन्धी Repertoire Depigrephi Jaine नामक ग्रन्थ फ्रान्सीसी भाषामें प्रकाशित किया इसमें ई० पूर्व सन् २४२ से लेकर ईस्वी सन् १८८६ तक के ८५० लेखोंका पृथक्करण किया गया जो कि सन् १९०७ तक प्रकाशित हुए थे उन्होंने उन लेखों का संक्षिप्तसार,
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[३] कौन सा लेख किस विद्वान ने कहाँ प्रकाशित किया - इसका विवरण दिया है। इन लेखों में श्वे० तथा दिगम्बर दोनों सम्प्रदायों के लेख हैं ।
जैन लेख संग्रह भाग २ की भूमिका में स्वर्गीय श्रीपूरणचन्द नाहर ने लिखा था कि सन् १८६४-६५ से मुझे ऐतिहासिक दृष्टि से जैन लेखों के संग्रह करने की इच्छा हुई थी । तबसे इस संग्रहकार्य में तन, मन एवं धन लगाने में त्रुटि नहीं रखी। उनका जैन लेख संग्रह प्राथमिक वक्तव्य के अनुसार सन् १६१५ में तैयार हुआ जैनों द्वारा संगृहीत एवं प्रकाशित मूर्ति लेखों का यह सबसे पहला संग्रह है इसमें एक हजार लेख छपे हैं जो बंगाल, बिहार, उत्तरप्रदेश, राजस्थान, आसाम, काठियावाड़ आदि अनेक स्थानों के हैं। इसके पश्चात् सन् १६१७ में मुनि जिनविजय जी ने सुप्रसिद्ध खारवेल का शिलालेख बड़े महत्व की जानकारी के साथ "प्राचीन जैन लेख संग्रह " के नाम से प्रकाशित किया । इसके अन्त में दिये गये विज्ञापनके अनुसार इसके द्वितीय भाग में मथुराके जैन लेखोंको विस्तृत टीकाके साथ प्रकाशित करने का आयोजन था जो अभीतक प्रकाशित नहीं हुआ और विज्ञापित तीसरे भाग को दूसरे भाग के रूप में सन् १६२१ में प्रकाशित किया गया इसका सम्पादन बड़ा विद्वतापूर्ण और श्रमपूर्वक हुआ है। इसमें शत्रु जय, आबू, गिरनार आदि अनेक स्थानों के ५५७ लेख छपे हैं जिनका अवलोकन ३४४ पृष्ठों में लिखा गया है इसीसे इस ग्रन्थ का महत्व व इसके लिये किये गये परिश्रम की जानकारी मिल जाती है। नाहरजी का जैन लेख संग्रह दूसरा भाग सन् १६२७ में छपा जिसमें नं० १००१ से २१११ तक के लेख हैं। बीकानेर के लेख नं० १३३० से १३६२ तक के हैं जिनमें मोरखाणा, चुरू के लेख भी सम्मिलित है। नाहर जी के इन दोनों लेख संग्रहों में मूल लेख ही प्रकाशित हुए हैं विवेचन कुछ भी नहीं ।
इसी बीच आचार्य बुद्धिसागरसूरिजीने जैन धातु प्रतिमा लेख संग्रह २ भाग प्रकाशित किये जिनमें पहला भाग सन् १९१७ व दूसरा सन् १९२४ में अध्यात्म ज्ञान प्रसारक मण्डल पादराकी ओर से प्रकाशित हुआ । प्रथम भाग में १५२३ लेख और दूसरे में ११५० लेख। उन्होंने नाहरजी की भाँति ऐतिहासिक अनुक्रमणिका देनेके साथ प्रथम भाग की प्रस्तावना विस्तारसे दी । इनके पश्चात् आचार्य विजयधर्मसूरिजी के संगृहीत पांचसौ लेखों का संग्रह संवतानुक्रम से संपादित प्राचीन जैन लेख संग्रह के रूप में सन् १६२६ में प्रकाशित हुआ इसमें संवत् ११२३ से १५४७ तक के लेख हैं । प्रस्तावना में लिखा गया है कि कई हजार लेखों का संग्रह किया गया है उनके पाँचसौ लेखों के कई भाग निकालने की योजना है पर खेद है कि २६ वर्ष हो जानेपर भी वे हजारों लेख अभी तक अप्रकाशित पड़े हैं ।
इस समय (सन् १६२६ ) में नाहरजी का जैन लेख संग्रह तीसरा भाग " जैसलमेर " के महत्वपूर्ण शिलालेखों का निकला जिसमें लेखाङ्क २१११ से २५८० तकके लेख हैं इसकी भूमिका बहुत ज्ञानवर्धक है। फोटो भी बहुत अधिक संख्या में व अच्छे दिये हैं। वास्तव में नाहर ने इस भाग को तैयार करने में बड़ा श्रम किया है ।
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- अभीतक औच लेख संग्रहों की चर्चा की गई है वे सब भिन्न २ स्थानों के लेखों के संग्रह हैं। नाहरजी का तीसरा भाग भी केवल जैसलमेर व उसके निकटवर्ती स्थानों का है। पर उसमें भी वहाँ के समस्त लेख नहीं दिये गये। एक स्थान के समस्त लेखों का पूरा संग्रह करने का कार्य स्वर्गीय मुनि जयन्तविजय जी ने किया उन्होंने आबू के ६६४ लेखों का संग्रह "अर्बुद प्राचीन लेख संदोह" के नाम से संवत् १९६४ में प्रकाशित किया। इसमें आपने उन लेखों का अनुवाद आवश्यक जानकारी व टिप्पणों के साथ दिया जो बड़ा श्रमपूर्ण व महत्त्व का कार्य है.! आपने "अर्बुदाचल प्रदिक्षणा लेख संग्रह" भी इसी ढंगसे संवत् २००५ में प्रकाशित किया है जिसमें आबू प्रदेश के ६६ गांवों के ६४५ लेख हैं । संखेश्वर आदि कई अन्य स्थानों के इतिहास व लेख संग्रह आपने निकाले जो उन उन स्थानों की जानकारी के लिये बड़े काम के हैं। इसी प्रकार श्रीविजयेन्द्रसूरिजी ने “देवकुल पाटक" पुस्तिका में वहां के लेख आवश्यक जानकारी के साथ दिये हैं।
___ आचार्य विजययतीन्द्रसूरिजी ने "यतीन्द्र विहार दिग्दर्शन" के चार भागों में बहुत से स्थानों के विवरण व तीर्थ यात्रा वर्णन देने के साथ कुछ लेख भी दिये हैं उनके संगृहीत ३७४ लेखों का एक संग्रह दौलतसिंह लोढ़ा संपादित श्री यतीन्द्र साहित्य सदन से सन् १६५१ में प्रकाशित हुआ। इसमें लेखों के साथ हिन्दी अनुवाद भी छपा है। इससे एक क्ष पूर्व साहित्यालंकार मुनि कान्तिसागर जी संगृहीत ३६६ लेखों का संवतानुक्रम से संग्रह “जैनधातु प्रतिमा लेख" प्रथम भाग के नाम से जिनदत्तसूरि ज्ञानभण्डार सूरत से छपा ! सं० १०८० से सं० १९५२ तक के इसमें लेख है परिशिष्ट में शत्रुजय तीर्थ सम्बन्धित दैनिन्दनी भी छपी है।
हमारी प्रेरणा से उपाध्याय मुनि विनयसागरजी ने जैन लेखों का संग्रह किया था। वह संवतानुक्रम से १२०० लेखों का संग्रह प्रतिष्ठा लेख संग्रह के नाम से सन् १९५३ ई० में प्रकाशित हुआ जिसकी भूमिका डा. वासुदेवशरणजी अग्रवाल ने लिखी है इसकी प्रधान विशेषता श्राक्क श्राविकाओं के नामों की तालिका की है। जो अभी तक किसी भी लेख संग्रह के साथ नहीं छपी! ..
श्वेताम्बर लेख संग्रह की चर्चा की गई, दिगम्बर समाज के लेख दक्षिण में ही अधिक संख्या में क महत्व के मिलते हैं वहाँके पांचसौ.लेखों का संग्रह बहुत ही सुन्दर रूपमें १६२ पेजकी ज्ञानवर्धक भूमिका के साथ श्री नाथूरामजी प्रेमी ने सन् १६२८ में प्रकाशन व सम्पादन डा० हीरालाल जैनने बड़ा ही महत्वपूर्ण किया। इसका दूसरा भाग सन् १९५२ में २४ वर्ष के बाद छपा इसमें ३०२ लेखों का विवरण है श्री प्रेमीजी के प्रयत्न से पं० विजयमूर्ति ने इसका संग्रह किया। दिगम्बर जैन लेख संग्रह सम्बन्धी ये दो प्रन्थ ही उल्लेखनीय हैं।
छोटे संग्रहों में इतिहास प्रेमी श्री छोटेलालजी जैन ने संवत् १६७६ में जैन प्रतिमा यन्त्र लेख संग्रह के नाम से प्रकाशित किया जिसमें कलकत्ता के लेख हैं। दूसरा संग्रह श्री कामता
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[ ५ ] प्रसाद जैन सम्पादित प्रतिमा लेख संग्रह है जिसमें मैनपुरी के लेख हैं। संवत् १६६४ में जैन सिद्धान्त भवन आरा से यह पुस्तिका निकली ।
इस प्रकार यथाज्ञात प्रकाशित जैन लेख संग्रह ग्रंथों की जानकारी देकर अब प्रस्तुत संग्रह के सम्बन्ध में प्रकाश डाला जा रहा है।
"बीकानेर जैन लेख संग्रह" के तैयार होने का संक्षिप्त इतिहास बतलाते हुए- फिर इसकी विशेषताओं पर प्रकाश डाला जायगा । जैसा कि पहले बतलाया गया है इस संग्रह से पूर्व नाहरजी के जैन लेख संग्रह भाग २ में बीकानेर राज्य के कुल ३२ लेख ही प्रकाशित हुए थे ।
सं० १६८४ के माथ शुक्ला ५ को खरतरगच्छ के आचार्य परमगीतार्थ श्री जिनकपाचन्द्रसूरिजी का बीकानेर पधारना हुआ और हमारे पिताजी व बाबाजी के अनुरोध पर उनका चातुर्मास शिष्य मण्डली सहित हमारी ही कोटड़ी में हुआ। लगभग ३ वर्ष वे बीकानेर बिराजे उनके निकट सम्पर्क से हमें दर्शन, अध्यात्म, साहित्य, इतिहास व कला में आगे बढ़ाने की प्रेरणा मिली। विविध विषय के ज्यों-ज्यों प्रन्थ देखते गये उन विषयों का ज्ञान बढ़ने के साथ उन क्षेत्रों में काम करने की जिज्ञासा भी प्रबल हो उठी। बीकानेर के जैन मन्दिरों के इतिहास लिखने की प्रेरणा भी स्वतः ही जगी और सब मन्दिरों के खास-खास लेखों का संग्रह कर इस सम्बन्ध में एक निबन्ध लिख डाला जो अंबाला से प्रकाशित होनेवाले पत्र "आत्मानन्द" में सन् १६३२ में दानमल शंकरदान नाहटा के नाम से प्रकाशित हुआ । बीकानेर के चिन्तामणिजी के गर्भगृह की मूर्तियाँ उसी समय बाहर निकाली गयी थी उसके बाद श्री हरिसागरसूरिजी के बीकानेर चातुर्मास के समय उन प्रतिमाओं को पुनः निकाला गया तब उन ११०० प्रतिमाओं के लेखों की नकल की गई। सूरिजी के पास उस समय एक पण्डित थे उनको उसकी प्रेस कापी करने के लिए कोपीयें दी गई पर उनकी असावधानी के कारण वे कापीयें व उनकी नकल नहीं मिली इस तरह १५-२० दिन का किया हुआ श्रम व्यर्थ गया। इसी बीच अन्य सब मन्दिरों के शिलालेख व मूत्तियों की नकल ले ली गई थी पर गर्भगृहस्थ उन मूर्तियों के लेखों के बिना वह कार्य अधूरा ही रहता था अतः कई वर्षोंके बाद पुनः प्रेरणा कर उन मूर्त्तियों को बाहर निकलवाया तब उनके लेख संग्रह का काम पूरा हो सका ।
कलकत्ते की राजस्थान रिसर्च सोसाइटी की मुख पत्रिका "राजस्थानी " का सम्पादनकार्य स्वामीजी व हमारे जिम्मे पड़ा तो हमने चिन्तामणिजी के मन्दिर व गर्भगृहस्थ मूर्तियों का इतिहास देते हुए उनमें से चुनी हुई कुछ मूर्त्तियों के संयुक्त फोटोके साथ संगृहीत लेखोंका प्रकाशन प्रारम्भ किया । इसका सम्पादन हम एक वर्ष तक ही कर सके अतः चारों अंकों में मूलनायक प्रतिमा के लेख के साथ गर्भगृहस्थ धातु प्रतिमाओं के सम्वतानुक्रम से सं० १४०० तक के १५६ लेख और अन्य गर्भगृह के २० लेख सन १९३६-४० में प्रकाशित किये गये। उसके बाद राज्य के जिन मन्दिरों के लेख का कार्य बाकी रहा था उसको पूरा किया गया और सबकी प्रेस कापीयें तैयार हुई। बीकानेर के जैन इतिहास और समस्त राज्य के जैन मन्दिरों
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उपाश्रयों, ज्ञानभंडारों आदि की जानकारी देने के लिये बहुत अन्वेषण और श्रम करना पड़ा। मन्दिरों से सम्बन्धित शताधिक स्तवनों आदि की प्रेसकापी की और उन समस्त सामग्री के आधार से बहुत ही ज्ञानवर्धक भूमिका लिखी गई जो इस ग्रन्थ में-प्रन्थ के प्रारम्भ में पाठक पढ़ेंगे। लेख संग्रह बहुत बड़ा हो जाने के कारण उन स्तवनों को प्रेसकापी को इच्छा होते हुए भी इसके साथ प्रकाशित नहीं कर पाये। पर उनके ऐतिहासिक तथ्यों का उपयोग भूमिका में कर लिया गया है। ___संवत् १६६६ में हम जैन ज्ञानभंडारों के अवलोकन व जैन मंदिरों के दर्शन के लिये जैसलमेर गये वहाँ स्व. हरिसागरसूरिजी के विराजने से हमें बड़ी अनुकूलता रही। २०-२५ दिन के प्रवास में हमने खूब डटकर काम किया। प्रातःकाल निपट कर महत्त्वपूर्ण हस्तलिखित प्रतियों की नकल करते फिर स्नान कर किले के जैन मन्दिरों में जाते पूजा करने के साथ-साथ नाहरजी के प्रकाशित जैन लेख संग्रह भा० ३ में प्रकाशित समस्त लेखों का मिलान करते और जो लेख उसमें नहीं छपे उनकी नकलें करते, वहाँ से आते ही भोजन करके ज्ञानभंडारों को खुलवाकर प्रतियों का निरीक्षण कर नोट्स लेते। नकल योग्य सामग्री को छांट कर साथ लाते, आते ही भोजन कर रात में उस लाई हुई सामग्री का नकल व नोट्स करते। इस तरह के व्यस्त कार्यक्रम में जैसलमेर के अप्रकाशित लेखों की भी नकलें की । इस लेख संग्रह में बीकानेर राज्य के समस्त लेख जो छप गये तो विचार हुआ कि जैसलमेर के अप्रकाशित लेख भी इसके साथ ही प्रकाशित कर दें तो वहां का काम भी पूरा हो जाय। प्रारम्भ से ही हमारी यह योजना रही है कि जहां का भी काम हाथ में लिया जाय उसे जहाँ तक हो पूरा करके ही विश्राम लें जिससे हमें फिर कभी उस काम को पूरा करने की चिन्ता न रहे साथ-साथ किसी दूसरे व्यक्ति को भी फिर उस क्षेत्र में काम करने की चिन्ता न करनी पड़े। इसी दृष्टि से बीकानेर के साथ-साथ जैसलमेर का भी काम निपटा दिया गया है। दूसरी बात यह भी थी कि बीकानेर की भांति जैसलमेर भी खरतरगच्छ का केन्द्र रहा है अतः इन दोनों स्थानों के समस्त लेखों के प्रकाशित हो जाने पर खरतरगच्छ के इतिहास लिखने में बड़ी सुविधा हो जावेगी।
इन लेखों के संग्रह में हमें अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है पर उसके फलस्वरूप हमें विविध प्राचीन लिपियों के अभ्यास व मूर्तिकला व जैन इतिहास सम्बन्धी ज्ञान की भी अभिवृद्धि हुई अनेक शिलालेख व मूर्तिलेख ऐसे प्रकाशहीन अंधेरे में हैं जिन्हें पढ़ने में बहुत ही कठिनता हुई ! मोमबत्तियें टॉर्चलाइट, छाप लेने के साधन जुटाने पड़े फिर भी कहीं कहीं पूरी सफलता नहीं मिल सकी इसी प्रकार बहुत सी मूर्तियोंके लेख उन्हें पच्ची करते समय दब गये एवं कई प्रतिमाओं के लेख पृष्ठ भागमें उत्कीर्णित हैं उनको लेने में बहुत ही श्रम उठाना पड़ा और बहुत से लेख तो लिये भी न जा सके क्योंकि एक तो दीवार और मूत्ति के बीच में अन्तर नहीं था दूसरे मूर्तियों की पच्ची इतनी अधिक हो गई कि उनके लेखको
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बिना मूर्तियोंको वहाँसे निकाले पढ़ना संभव नहीं रहा । मूर्तियें हटाई नहीं जा सकी अतः उनको छोड़ देना पड़ा । कई शिलालेखों में पीछे से रंग भरा गया है उसमें असावधानीके कारण बहुत से लेख व अंक अस्पष्ट व गलत हो गये। कई शिलालेखों को बड़ी मेहनत से साफ करना पड़ा गुलाल आदि भरकर अस्पष्ट अक्षरों को पढ़ने का प्रयत्न किया गया कभी कभी एक लेख के लेने में घंटों बीत गये फिर भी सन्तोष न होने से कई बार उन्हें पढ़ने को शुद्ध करने को जाना पड़ा। बहुत से लेख खोदने में ठीक नहीं खुदे या अशुद्ध खुदे हैं। उन संदिग्ध या अस्पष्ट लेखों को यथासंभव ठीक से लेने के लिये बड़ी माथापच्ची की गई। इस प्रकार वर्षों के श्रम से जो बन पड़ा है, पाठकों के सन्मख है। हम केवल ५ कक्षा तक पढ़े हुए हैं-न संस्कृतप्राकृत भाषा का ज्ञान व न पुरानी लिपियों का ज्ञान इन सारी समस्याओं को हमें अपने श्रम व अनुभव से सुलझाने में कितना श्रम उठाना पड़ा है यह भुक्तभोगी ही जान सकता है । कार्य करने की प्रबल जिज्ञासा सच्ची लगन और श्रम से दुसाध्य काम भी सुसाध्य बन जाते हैं इसका थोड़ा परिचय देने के लिये ही यहां कुछ लिखा गया है।
प्रस्तुत लेख संग्रह में है वी, १० वीं शताब्दी से लेकर आज तक के करीब ११ सौ वर्षों के लगभग ३००० लेख हैं। बीकानेर में सबसे प्राचीन मूर्ति श्री चिन्तामणिजी के मंदिर में ध्यानस्थ धातु मूर्ति है जो गुप्तकाल की मालूम देती है। इसके बाद सिरोही से सं० १६३३ में तुरसमखान द्वारा लूटी गई धातू मूर्तियों में जिसको अकबर के खजाने में से सं० १६३६ में मंत्री कर्मचन्दजी बच्छावत को प्रेरणासे लाकर चिन्तामणिजी के भूमिग्रह में रखी गई थी। उनमें से ३-४ धातु मूर्तियाँ ह वी, १० वीं शताब्दी की लगती है जिनमें से दो में लेख भी है पर उनमें संवत् का उल्लेख नहीं लिपि से ही उनका समय निर्णय किया जा सकता है। संवतोल्लेखवाली प्रतिमा ११ वी शताब्दी से मिली है १२ वीं शताब्दी के कुछ श्वेत पाषाण के परिकर व मूर्तियाँ जांगलू आदि से बीकानेर में लाई गई जो चिंतामणिजी व डागों के महावीरजी के मन्दिर में स्थापित है।
बीकानेर राज्य में ११ वीं शताब्दी की प्रतिमाएं रिणी ( तारानगर ) में मिली है एक शिलालेख नौहर में है और झमकी एक धातु प्रतिमा सं० १०२१ की है। १२ वी १३ वीं शताब्दी के बाद की तो पर्याप्त मूर्तियां मिली हैं। १४ वीं से १६ वीं में धातु मूर्तियां बहुत ही अधिक बनी। १५ वीं शती से पाषाण प्रतिमा भी पर्याप्त संख्या में मिलने लगती हैं। .
. इस लेख संग्रहमें एक विशेष महत्त्वकी बात यह है कि इसमें श्मसानोंके लेख भी खूब लिये गये हैं। बीकानेर के दादाजी आदि के सैकड़ों चरणपादुकाओं व मूर्तियों के लेख अनेकों यति मुनि साध्वियों के स्वर्गवास काल की निश्चित सूचना देते हैं। जिनकी जानकारी के लिये अन्य कोई साधन नहीं है इसी प्रकार जैन सतियों के लेख तो अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण है ! संभवतः अभी तक ओसवाल समाज के सती स्मारकों के लेखों के संग्रह का यह पहला और ठोस कदम है। जिसके लिये सारे श्मसान छान डाले गये हैं।
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[ ८ बीकानेर के जैन इतिहास से सम्बन्धित इतनी ज्ञानवधक ठोस भूमिका भी इस ग्रन्थ की दूसरी उल्लेखनीय विशेषता है । यद्यपि इसमें जैन स्थापत्य मूर्तिकला व चित्रकला पर कुछ विस्तार से प्रकाश डालने का विचार था पर भूमिका के बहुत बढ़ जाने व अवकाशाभाव से संक्षेप में ही निपटाना पड़ा है। इस सम्बन्ध में कभी स्वतन्त्र रूप से प्रकाश डालने क विचार है।
एक ही स्थान के ही नहीं पर राज्य भर के समस्त लेखों के एकीकरण का प्रयत्न भी इस प्रन्थ की अन्य विशेषता है। अभी तक ऐसा प्रयत्न कुछ अंश में मुनि जयन्तविजयजी ने किया था। आबू के तो उन्होंने समस्त लेख लिये ही पर आबू प्रदेश के ६६ स्थानों के लेखों का संग्रह "अबुदाचलप्रदक्षिणा लेख संग्रह प्रकाशित किया। संभवतः उन स्थानोंके सभी लेख उसमें
आ गये हैं यदि कुछ छूट गये हैं तो भी हमें पता नहीं। आपने संखेश्वर आदि अन्य कई स्थानों से सम्बन्धित स्वतन्त्र पुस्तकें निकाली हैं जिनमें वहां के लेखों को भी दे दिया गया है ।
____ हमारे इस संग्रह के तैयार हो जाने के बाद मुनिश्री विनयसागरजी को यह प्रेरणा दी थी कि वे जयपुर व कोटा राज्य के समस्त लेखों का संग्रह कर लें उन्होंने उसे प्रारम्भ किया कई स्थानों के लेख लिये भी पर वे उसे पूरा नहीं कर पाये जितने संगृहीत हो सके उन्हें संवता नुक्रम से संकलन कर दो भाग तैयार किये जिसमें से पहला छप चुका है।
आचार्य हरिसागरसूरिजी से भी हमने निवेदन किया था कि वे अपने विहार में समस्त स्थानों के समस्त प्रतिमा लेखों का संग्रह कर लें उन्होंने भी पूर्व देश व मारवाड़ आदि के बहुत से स्थानों के लेख लिये थे जो अभी अप्रकाशित अवस्था में हैं। मारवाड़ प्रदेश जैनधर्म का राजस्थान का सबसे बड़ा केन्द्र प्राचीन काल से रहा है इस प्रदेश में पचासों प्राचीन ग्राम नगर है जहां जैन धर्म का बहुत अच्छा प्रभाव रहा वहां अनेकों विशाल एवं कलामय मंदिर थे और सैकड़ों जिन मूर्तियों के प्रतिष्ठित होने का उल्लेख खरतरगच्छ की युगप्रधान गुर्वावली आदि में मिलता है । उनमें से बहुत से मंदिर व मूर्तियां अब नष्ट हो चुकी हैं फिर भी मारवाड़ राज्य बहुत बड़ा है। यदि अवशिष्ट समस्त जैन मंदिर व मूर्तियोंके लेख लिये जाय तो अवश्य ही राजस्थान के जैन इतिहास पर महत्वपूर्ण प्रकाश पड़ेगा।
सिरोही के जैन मन्दिरों में भी सैकड़ों प्रतिमायें हैं। वहाँ के लेखोंकी नकल श्री अचलमलजी मोदी ने लेनी प्रारम्भ की थी वह कार्य शीघ्र ही पूरा होकर प्रकाश में आना चाहिये ।
__मालवा के जैन लेखों का संग्रह अभी तक बहुत कम प्रकाश में आया है । नन्दलालजी लोढ़ा ने माण्डवगढ़ आदि के लेखों की नकलें की थी हमें भेजे हुए रजिस्टर की नकल हमारे संग्रह में भी है वह कार्य भी पूरा होकर प्रकाश में आना चाहिये। इसी प्रकार मेवाड़ में भी बहुतसे जैन मंदिर है उनमें से केसरियानाथजी आदि के कुछ लेख यतिश्री अनूपश्भृषिजी ने लिये थे पर थे बहुत अशुद्ध थे उन्हें शुद्ध रूपमें पूर्ण संग्रह कर प्रकाशित करना बांछनीय है उनके लिये हुए लेखों की नकलें भी हमारे संग्रह में है।
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[ 81 मारवाड़ के गोढ़वाड़ प्रदेशका राणकपुर तीर्थ बहुत ही कलापूर्ण एवं महत्व का है। वहाँ के समस्त प्रतिमा लेखों की नकलें पं० अंबालाल प्रेमचंदशाह ने की थी, उसकी नकल भी हमारे संग्रह में है। हरिसागरसूरिजी के अधिकांश लेखों की नकलें भी हमारे संग्रह में हैं । इसप्रकार अभी तक हजारों जैन प्रतिमा लेख, हमारे संग्रह में तथा अन्य व्यक्तियों के पास अप्रकाशित पड़े हैं । उन्हें और एपिग्राफिया इंडिका आदि ग्रन्थों में एवं फुटकर रूपसे कई जैन पत्रों में जो लेखछपे हैं उनका भी संग्रह होना चाहिये। आनन्दजी कल्याणजी पेढ़ी ने साराभाई नवाब को समस्त श्वे. जैन तीर्थों में वहां की प्रतिमाओं की नोंध व कलापूर्ण मंदिरों के फोटो व लेखों के संग्रह के लिए भेजा था। साराभाई ने भी बहुत से लेख लिये थे। उनमें से जैसलमेर के ही कुछ लेख प्रकाश में आये हैं, अवशेष सभी अप्रकाशित पड़े हैं।
गुजरात, सौराष्ट्र, कच्छ भी जैन धर्म का बहुत विशिष्ट प्रचार केन्द्र है। वहां हजारों जैन मुनि निरंतर विचरते हैं व हजारों लक्षाधिपति रहते हैं। उनको भी वहां के समस्त प्रतिमा लेखों को प्रकाश में लाने का प्रयत्न करना चाहिये। खेद है, शत्रुञ्जय जैसे तीर्थ और अहमदावाद जैसे जैन नगर, जहां सैकड़ों छोटे बड़े जैन मन्दिर हैं, सैकड़ों साधु रहते हैं, हजारों समृद्ध जैन बसते हैं वहां के मन्दिर व मूर्तियों के लेख भी अभी तक पूरे संगृहित नहीं हो पाये। इसी प्रकार पाटन में भी शताधिक जैन मन्दिर हैं। गिरनार आदि प्राचीन जैन स्थान है उनके लेख भी शीघ्र ही संग्रहीत होकर प्रकाश में लाना चाहिए।
जैसा की पहले कहा गया है स्व०विजयधर्मसूरिजी ने हजारों प्रतिमा लेख लिये थे उनमें से केवल ५०० लेखही छपे हैं, बाकीके समस्त शीघ्र प्रकाशित होने चाहिये, इसी प्रकार एक और मुनि जिनका नाम हमें स्मरण नहीं, सुना है उन्होंने भी हजारों प्रतिमा लेख संग्रह किये हैं वे भी उनको प्रकाश में लावें। आगम-प्रभाकर मुनिराज श्री पुण्यविजयजी, मुनि दर्शनविजयजी त्रिपुटी, साहित्यप्रेमी मुनि कान्तिसागरजी, मुनिश्री जिनविजयजी व नाहरजी आदि के संग्रह में जो अप्रकाशित लेख हों उन्हें प्रकाशित किये जा सकें तो जैन इतिहास के लिये ही नहीं, अपितु भारत के इतिहास के लिये भी बड़ी महत्वपूर्ण बात होगी। इतिहास के इन महत्वपूर्ण साधनों की उपेक्षा राष्ट्र के लिये बड़ी ही अहितकर है।
इन लेखों में इतनी विविध एतिहासिक सामग्री भरी पड़ी है कि उन सब बातों के अध्ययन के लिये सैकड़ा व्यक्तियों की जीवन साधना आवश्यक है। इन लेखोंमें राजाओं, स्थानों गच्छों, आचार्यों, मुनियों, श्रावक-श्राविकाओं, जातियों और राजकीय, धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक इतनी अधिक सामग्री भरी पड़ी है कि जिसका पार पाना कठिन है। इसी प्रकार इन मन्दिर व मूर्तियों से भारत की शिल्प, स्थापत्य, मूर्तिकला व चित्रकला आदि के विकास की जानकारी ही नहीं मिलती पर समय-समय पर लोकमानस में भक्ति का किस प्रकार विकास हुआ, नये-नये देवी देवता प्रकाश में आये, उपासना के केन्द्र बने, किस-किस समय भारत के किन-किन व्यक्तियों ने क्या-क्या महत्व के कार्य किये, उन समस्त गौरवशाली इति
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[१०]
हांस की सूचना इन लेखों में पाई जाती है। प्रस्तुत बीकानेर जैन लेख संग्रह के, कतिपय विविध दृष्टियों से महत्व रखनेवाले लेखों की ओर पाठकों का ध्यान आकर्षित करना भी आवश्यक है । वक्तव्य बहुत लंबा हो रहा है इसलिये अब संक्षेप में ही उसे सीमित किया जा रहा है ।
सबसे महत्व का लेख चिंतामणिजी मन्दिर के मूलनायक मूर्ति के पुनरुद्धार का है। संवत् १३८० में श्री जिनकुशलसूरि द्वारा प्रतिष्ठित, यह चतुर्विशति पट्ट मंडोवर से बीकानेर बसने के समय लाया गया | संवत् १५६१ में बीकानेर पर कामरों के हुए आक्रमण का सामना राव जैतसी ने बड़ी वीरता पूर्वक किया। बीकानेर आक्रमण के समय इस मूर्ति का परिकर भंग कर दिया गया था, जीर्णोद्धार के लेख में इसका स्पष्ट उल्लेख है ।
दूसरे एक लेख में बीकानेर के दो राजाओं - कर्णसिंहजी व अनूपसिंहजी पिता पुत्रों को 'महाराजा' लिखकर दोनों के राज्यकाल का उल्लेख है वह भी एक महत्व की सूचना देता है । तीसरा लेख सती स्मारकों में से दो स्मारक ऐसे मिले हैं जिनसे स्त्रियाँ अपने पति के पीछे ही सती नहीं होती थी पर पुत्रों के साथ माता भी मोहवश अग्नि प्रवेशकर सद्दमरण कर लेती थी इसकी महत्वपूर्ण सूचना मिलती है ।
कई प्रतिमाओं में ऐसे स्थानों का निर्देश है जिनके नामों का अब पता नहीं है, या तो उनके नाम अपभ्रंश होकर परिवर्तित हो गये या वे स्थान ही नष्ट हो गये। परिशिष्ट में दी हुई स्थान सूची द्वारा उन स्थानों पर सविशेष विचार किया जा सकता है । ११ वीं शताब्दी के धातु प्रतिमा लेख में विलपत्य कूप का उल्लेख है । यह किलबू जैसे किसी गाँव के नाम का संस्कृत रूप होना सूचित करता है। इसी प्रकार १२ वीं शताब्दी के परिकर में अजयपुर का नाम आया है । उसी मिती का एक लेख जांगल का भी है । यह अजयपुर संभवतः जांगलू का उपनगर था जहां के कुएँ पर अजयपुर के नामोल्लेखवाला एक घिसा हुआ लेख हमारे देखने में आया था। अजयपुर (लेखक २१) व जांगलू के (ले० १५४३) दोनों लेख सं० १९७६ मि० ०६ के हैं । ये लेख श्रीजिनदत्तसूरिजी के समय के हैं। उनमें "विधि वैत्य" का उल्लेख होने से वे उन्हीं के करकमलों द्वारा प्रतिष्ठित होने का अनुमान है। इस प्रकार ये लेख बीकानेर जांगलू के प्रतिष्ठा लेखों में सबसे प्राचीन ठहरते हैं ।
इस ग्रन्थ में प्रकाशित लेख, विविध उपादानों पर से संग्रहित किये गये हैं। पाषाण व धातु प्रतिमाएँ, चरण, देवली, स्मारक, यंत्र एवं ताम्रपत्रादि पर उत्कीर्णित तो हैं ही पर कतिपय लेख tarai एवं काष्ठ पट्टिकाओंपर काली श्याही से लिखे हुए भी इस ग्रन्थ में दे दिये हैं जो साढ़े पाँच सौ वर्ष जितने प्राचीन हैं। अब तक काली श्याही के अक्षरों का पाषाण पर क्यों त्यों रह जाना आश्चर्य का विषय है। उत्कीर्ण करते समय छूटे हुए वे लेख अद्यावधि विद्यमान रहकर प्राचीन श्याही के टिकाऊपनकी साक्षी देते हैं। ऐसे लेख लेखाङ्क २४६६, २७३७, २७४६, २७६२ में प्रकाशित है।
हमने शय्यापटों के भी कतिपय लेख संग्रह किये थे पर वे इसमें नहीं दिये जा सके। ऐसे लेख उपाश्रयों में उपलब्ध हैं । अभिलेखों की भाषा संस्कृत है पर राजस्थानी व हिन्दी के भी
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पर्याप्त लेख हैं। ताम्रशासनों की भाषा राजस्थानी है। राजस्थानी भाषाके प्रस्तर लेखों में श्री पहावीर स्वामीके मन्दिर का लेख (नं० १३१३ ) सर्व प्राचीन है। वह पद्यानुकारी है पर पाषाणभुरभुरा होने से नष्ट प्रायः हो चुका है। संग्रहीत अभिलेखों का विभिन्न ऐतिहासिक महत्त्व है। लेखांक १५७२-७३ में मन्दिर के लिए भूमि (गजगत सहित) प्रदान करने का उल्लेख है। उपाश्रय लेखों में नाथूसर के उपाश्रय का लेख (नं० २५५५ ) हस्तलिखितपत्र से उद्धृत किया गया है। पुस्तक पढवेष्टन ( कमलो परिकर ) का एक लेख बड़े उपाश्रय में मिला है जो सूचिका द्वारा अंकित किया गया है। वस्त्र पर सूचिका द्वारा कढ़ा हुआ कोई लेख अद्यावधि प्रकाश में नहीं आनेसे नमूने के तौर पर एक लेख यहाँ दिया जा रहा है।
१ श्री गौतम स्वामिने नमः ।। संवत् १७४० वर्ष शाके १६०६ प्रवर्त्तमाने । आश्विन मासे कृष्ण पक्षे दशमी तिथौ वृहस्पतिवारे ॥
२ महाराजाधिराज महाराजा श्री ४ श्री अनूपसिंहजी विजय राज्ये ।। श्री नवहर नगर मध्ये ॥ श्री वृहत् खरतर गच्छे ।। युग प्रधान श्रीश्रीश्री जिनरत्नसूरि सूरीश्वरान् ।।
३ तत्प विजयमान युगप्रधान श्रीश्रीश्रीश्रीश्री जिनचन्द्रसूरीश्वराणां विजयराज्ये ।। श्री नवहर वास्तव्य सर्व श्राद्धन कमली परिकरः ।।
४ वाचनाचार्य श्री सोमहर्ष गणिनां प्रदत्तः स्वपुण्यहेतवे ॥ श्री फत्तेपुर मध्ये कृतोयं कमली परिकरः श्री जिनकुशलसूरि प्रसादात ! दर्जी मानसिंहेन कृतोयम् ।। श्रीरस्तुः ।।
इस लेख संग्रहको इस रूपमें तैयार व प्रकाशित करने में अनेक व्यक्तियोंका सहयोग मिला है। जिनमें से कई तो अपने आत्मीय ही हैं। उनको धन्यवाद देना--- उनके सहयोग के महत्व को कम करना होगा!
स्वपूरणचंद्रजी नाहर जिनके सम्पर्क व प्रेरणासे हमें संग्रह करने और कलापूर्ण वस्तुओं के मूल्यांकन और संग्रहकी महत् प्रेरणा मिली है। उनका पुण्यस्मरण ही इस प्रसंग पर हमें गद्गद् कर देता है । हम जब भी उनके यहाँ जाते वे बड़ी आत्मीयताके साथ हमें अपने संग्रह को दिखाते, लेखों को पढ़ने के लिये देते और कुछ न कुछ कार्य करने की प्रेरणा करते ही रहते । सचमुच में इस लेख संग्रह में उनकी परोक्ष प्रेरणा ही प्रधान रही है। उनके लेख संग्रह को देखकर ही हमारे हृदय में यह कार्य करने की प्रेरणा जगी। इसीलिये हम उनकी पुण्यस्मृति में इस ग्रन्थ को समर्पित कर अपने को कृतकृत्य अनुभव करते हैं।
मन्दिरों के व्यवस्थापकों व पुजारियों आदि का भी इस संग्रहमें सहयोग रहा है। लेखों के लेने में अनेकव्यक्तियों ने यत्किचित भाग लिया है। जैसे चिंतामणि मन्दिर के गर्भगृहस्थ मूर्तियों के लेखोंके लेने में स्व० हरिसागरसूरिजी, उ० कवीन्द्रसागरजी, महो० विनयसागरजी, श्रीताजमलजी बोथरा, रूपचन्दजी सुराना आदि ने साथ दिया है। अन्यथा इतने थोड़े दिनों में इतने लेखों को लेना कठिन होता। सती स्मारकों के लेखों के लेने में हमारे भ्राता मेघराजजी नाहटा का भी सहयोग उल्लेखनीय रहा है। कई दिनों तक बड़ी लगन के साथ श्मसानों को छानने में उन्होंने कोई कमी नहीं रखी। नौहर व भादरा के लेख भी उन्हीके लाये हुए हैं।
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। १२ ] इस ग्रन्थ की प्रस्तावना माननीय डा० वासुदेवशरणजी अग्रवाल ने लिखनेकी कृपा की है इसके लिये हम हृदय से उनके आभारी हैं इस ग्रन्थ के प्रकाशन में श्री मूलचन्दजी नाहटा ने समस्त व्ययभार वहन किया। उनकी उदारता भी स्मरणीय है।
मन्दिरों के फोटो लेने में पहले श्री हीराचन्दजी कोठारी फिर श्री किशनचन्द बोथरा आदि का सहयोग मिला । सुजानगढ़ के फोटो श्री बछराजजी सिंघी से प्राप्त हुए । भांडासर व सरस्वती मूर्तिके कुछ ब्लाक सादूल राजस्थानी रिसर्च इन्स्टीच्यूट से प्राप्त हुए। कुछ अन्य जानकारी भी दूसरे व्यक्तियों से प्राप्त हुई। उन सब सहयोगियों को हम धन्यवाद देते हैं।
बीकानेर राज्य के समस्त दिगम्बर मन्दिरों के भी लेख साथ ही देने का विचार था। पर सब स्थानोंके लेख संग्रह नहीं किये जा सके अतः बीकानेर व रिणी के दिगम्बर मन्दिरके लेख ही दे सके हैं। बीकानेर में एक नशियांजी भी कुछ वर्ष पूर्व निर्मित हुई है एवं राज्यमें चूरू, लालगढ़, सुजानगढ़ एवं दो तीन अन्य स्थानों में दि. जैन मन्दिर हैं, उनके लेख संग्रह करने का प्रयत्न किया गया था पर सफलता नहीं मिली। इसी प्रकार श्वेताम्बर जैन मन्दिर विगा, सेरुणा, ददरेवा आदि के लेखों का संग्रह नहीं किया जा सका। इस कमी को फिर कभी पूरा किया जायगा।
- इस ग्रन्थमें और भी बहुतसे चित्र देनेका विचार था पर कुछ तो लिए हुए चित्र भी अस्तव्यस्त हो गए व कुछ अस्पष्ट आये। अतः उन्हें इच्छा होते हुए भी नहीं दिया जा सका।
___ग्रन्थके परिशिष्ट में लेखों की संवतानुक्रमणिका, गच्छ, आचार्य, जाति, नगर नामादि की सूची दी गयी है। श्रावक श्राविकाओं के नामों की अनुक्रमणिका देने का विचार था पर उसे बहुत ही विस्तृत होते देखकर उस इच्छा को रोकना पड़ा। इसी प्रकार सम्वत् के साथ मिती और वार का भी उल्लेख देना प्रारंभ किया था पर उसे भी इसी कारण छोड़ देना पड़ा। इन सब बातों के निर्देश करने का आशय यही है कि हम इस प्रन्थ को इच्छानुरूप उपस्थित नहीं कर पाये हैं और जो कमी रह गयीं हैं वे हमारे ध्यानमें हैं।
प्रस्तुत ग्रन्थ बहुत ही विलम्ब से प्रकाश में आ रहा है इसके अनेक कारण है। तीन चार प्रेसों में इसकी छपाई करानी पड़ी । अन्य कार्यों में व्यस्त रहना भी विशेष कारण रहा । करीब ७-८ वर्ष पूर्व इसकी पांडुलिपि तैयार की। पहले राजस्थान प्रेस में ही एक फर्मा छपा जो वहीं पड़ा रहा, फिर सर्वोदय प्रेस तथा जनवाणी प्रेसमें काम करवाया। अन्तमें सुराना प्रेस में छपाया गया। इतने वर्षों में बहुतसे फर्मे खराब हो गये, कुछ कागज काले हो गये, परिस्थिति ऐसी ही रही। इसके लिये कोई अन्य चारा नहीं । हमारी विवशताओं की यह संक्षिप्त कहानी है।
हमारे इस ग्रन्थ का जैन एवं भारत के इतिहास निर्माण में यत्किंचित् भी उपयोग हुआ व अन्य प्रदेशों के जैन लेख संग्रह के तैयार करने की प्रेरणा मिली तो हम अपना श्रम सफल समझेगे। ऋषभदेव निर्वाण दिवस )
अगरचन्द नाहटा माघकृष्णा १३
भँवरलाल नाहटा
कलकत्ता
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श्री मूलचन्दजी नाहटा का जीवन परिचय
श्रीमूलचन्दजी नाहटा कलकत्ता के छत्तों के बाजार में एक प्रतिष्ठित व्यापारी होने के साथ-साथ उदार, सरल, धर्मिष्ठ और निश्छल व्यक्ति हैं। साधारण परिवार में जन्म लेकर अपनी योग्यता के बलपर संघर्षमय जीवन यापन करते हुए आप अपने पैरोंपर खड़े होकर उन्नत हुए, यही इनकी उल्लेखनीय विशेषता है । इन्होंने सं० १६५० में बीकानेर में मार्गशीर्ष शुक्ला ९ को श्री सैंसकरणजी नाहटा के घर जन्म लिया, इनकी माता का नाम छोटाबाई था । बाल्यकाल में हिन्दी व लेखा गणितादि की सामान्य शिक्षा प्राप्त करने के बाद सं० १६५८ में बाबाजी हीरालालजी के साथ कलकत्ता आये परसं० १६५६ में पिताजी का स्वर्गवास होनेसे वापस बीकानेर चले गये । पिताजी की आर्थिक स्थिति कमजोर थी, उन्होंने सब कुछ सौदे में स्वाहा कर दिया, यावत जेवर गिरवी व माथे कर्ज छोड़ गए थे। अंधी मां एवं दो दो बहिनें, मामाजी सुगनचंदजी कोचर से आपको सहारा मिला । अजितमलजी कोचर के पास रिणी, सरदारशहर में तीन वर्ष रह कर लिखापढी व काम काज सीखे। सं० १६६४ में कलकत्ता आये, लालचंद प्रतापचंद फर्म में मगनमलजी कोचर से चलानी 'व खाता बही का काम सीखा। पहले वासाखर्च पर रहे फिर १२५५ की साल और सं० १६६८ तक ४०० ) तक वृद्धि हुई । सं० २६६६ में बीकानेर आकर नेमचंदजी सेठिया के साझेदारी में "नेमचंद मूलचंद” नाम से कपड़े की दुकान की। इसी बीच सं० १६६७ में एक बहिन का व्याह हुआ सं० १९७० तक कोचरों के यहाँ थे फिर पूर्णतः स्वावलंबी होनेपर सं० १६७० में अपना विवाह किया व छोटी बहिन छगनमलजी कातेला को व्याही। दुकान चलती थी, प्रतिष्ठा जम गई । सं० १६७२ में युरोपीय महायुद्ध छिड़ने पर दुकान बंदकर आप कलकत्ता आये । पनालाल किशनचंद बांठिया के यहाँ ४५०) की साल में रहे ६ मास बाद ६५०) दूसरे वर्ष १०००) की साल हुई। इस प्रकार उन्नति कर ऋण परिशोध किया। फिर श्री अभयराजजी नाहटा के साझे में एक वर्ष काम किया जिससे १०००) रुपये का लाभ हुआ। गंभीरचंद राठी के साझे में 11 वर्ष में ७००० ) पैदा किये । सं० १९७६ से चार वर्ष तक प्रेमराज हजारीमल के सांझे में काम किया फिर हमीरमल बहादुरमल के साथ काम कर मूलचंद नाहटा के नाम से स्वतंत्र फर्म खोला । १६६० में बाबाजी हीरालालजी के गोद गये । सं० १६६६ में युद्धकालीन परिस्थितिवश बीकानेर जा कर कपड़े की दुकान की ।
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[ २ ] सं० २००२ में बीकानेर की दुकान उठाकर कलकत्ता आये और व्यापार प्रारम्भ किया। सं० २००४ से हमारे नाहटा ब्रदर्स फर्म के साथ व्यापार चालू किया जिससे पर्याप्त लाभ हुआ, आज भी हमारे सीरसाझे में व अपनी स्वतन्त्र दुकान चलाते हुए सुखमय व सन्तोषी जीवन बिता रहे हैं। यों आप निःसंतान है, एक लड़की हुई जो चल बसी पर 'उदार चरिताना तु वसुधैव कुटुम्बकम्' के अनुसार अपने कुटुम्बी जनोंके भरण पोषण का सर्वदा लक्ष्य रखा । भाणजा भाणजी और उनकी संतानादि के विवाह-सादी में आपने हजारों रुपये व्यय किये। आप भृण को बड़ा पाप समझते हैं और कभी ऋण लेकर काम करना पसन्द नहीं करते । अपना व अपने पूर्वजों का ऋण कानूनन अवधि बीत जानेपर भी अदा करके ही सन्तुष्ट हुए। आपमें संग्रह वृत्ति नहीं है, ज्यों पैदा होता जाय खर्च करते जाना, दलाल, गुमास्तों को बांट देना एवं सुकृत कार्योंमें लगाते रहना यही आपका मुख्य उद्देश्य है। अपने विश्वस्त भाणजा पीरदान पुगलिया को बाल्यकालसे काम काज में होशियार कर अपना साझीदार बना लिया व उसी पर सारा व्यापार निर्भर कर संतोषी जीवन यापन कर रहे हैं।
__आपको भृण देना भी पसन्द नहीं, यदि दिया तो सुकृत खाते समझ कर, यदि वापस आया तो जमा कर लिया, नहीं तो तकादा नहीं कर अपनी वर्षगांठपर उसे माफ कर दिया।
श्री मूलचन्दजी नित्त के उदार हैं, उन्हें भाइयों और स्वधर्मियों को उत्तमोत्तम भोजन कराने में आनन्द मिलता है । लोभवृत्तिसे दूर रहकर आयके अनुसार खर्च करते रहते हैं । बीकानेरस्थ नाहटों की बगीची व मन्दिर में ११००० व्यय किये, वहां पानी की प्रपा चालू है । सुकृत कार्यों में महीने में सौ दो सौ का तो व्यय करते ही रहते हैं । बीकानेरमें आदीश्वर मण्डल की स्थापना कर प्रथम २०१०) फिर प्रति वर्ष पांच सात सौ देते रहते हैं। कलकत्ता के जैन भवन को ५००) दिये थे। तीर्थयात्रादि का भी लाभ लेते रहते हैं। प्रस्तुत "बीकानेर जैन लेख संग्रह' के प्रकाशन का अर्थ व्यय बहन कर आपने जैन साहित्य की अपूर्व सेवा की है।
शासनदेव से प्रार्थना है कि आप दीर्घायु होकर चिरकाल तक ज्ञानोपासना एवं शासनोन्नति के नाना कार्यों में योगदान करते रहें।
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प्राक्कथन श्री अगरचन्द नाहटा व भंवरलाल नाहटा राजस्थान के अति श्रेष्ठ कर्मठ साहित्यिक हैं। एक प्रतिष्ठित व्यापारी परिवार में उनका जन्म हुआ। स्कूल कालेजी शिक्षासे प्रायः बचे रहे। किन्तु अपनी सहज प्रतिभा के बल पर उन्होंने साहित्य के वास्तविक क्षेत्रमें प्रवेश किया, और कुशाग्र बुद्धि एवं श्रम दोनों की भरपूर पूंजीसे उन्होंने प्राचीन ग्रन्थों के उद्धार और इतिहास के अध्ययन में अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की। पिछली सहस्राब्दी में जिस भव्य और बहुमुखी जैन धार्मिक संस्कृति का राजस्थान और पश्चिमी भारत में विकास हुआ उसके अनेक सूत्र नाहटाजीके व्यक्तित्वमें मानों बीज रूपसे समाविष्ट हो गए हैं। उन्हींके फलस्वरूप प्राचीन प्रन्थ भण्डार, संघ, आचार्य, मन्दिर, श्रावकों के गोत्र आदि अनेक विषयों के इतिहास में नाहटाजी की सहज रुचि है और उस विविध सामग्री के संकलन, अध्ययन और व्याख्या में लगे हुए वे अपने समय का सदुपयोग कर रहे हैं। लगभग एक सहस्र संख्यक लेख और कितने ही ग्रन्थ* इन विषयों के सम्बन्ध में वे हिन्दी की पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित करा चुके हैं। अभी भी मध्याह्न के सूर्यकी भांति उनके प्रखर ज्ञानकी रश्मियां बराबर फैल रही हैं। जहां पहले कुछ नहीं था, वहां अपने परिश्रम से कण-कण जोड़कर अर्थका सुमेरु संगृहीत कर लेना, यही कुशल व्यापारिक बुद्धिका लक्षण है। इसका प्रमाण श्री अभय जैन पुस्तकालय के रूपमें प्राप्त है। नाहटाजी ने पिछले तीस वर्षों में निरन्तर प्रयत्न करते हुए लगभग पन्द्रह सहस्र हस्तलिखित प्रतियां वहाँ एकत्र की है एवं पांच सौ के लगभग गुटकाकार प्रतियों का संग्रह किया है। यह सामग्री राजस्थान एवं देशके साहित्यिक एवं सांस्कृतिक इतिहास के लिये अतीव मौलिक और उपयोगी है। जिस प्रकार नदी प्रवाह में से बालुका धोकर एक-एक कण के रूपमें पौपीलिक सुवर्ण प्राप्त
* हर्ष है कि भनेक पत्र-पत्रिकाओं में विखरे हुए इन नियन्धों की मुद्रित सूची विद्वानों के उपयोगार्थ नाहटाजी ने प्रकाशित करा दी है।
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[२]
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किया जाता था, कुछ उसी प्रकार का प्रयत्न 'बीकानेर जैन लेख संग्रह' नामक प्रस्तुत ग्रन्थ में नाइटाजी ने किया है । समस्त राजस्थान में फैली हुई देव-प्रतिमाओंके लगभग तीन सहस्र लेख एकत्र करके विद्वान् लेखकों ने भारतीय इतिहास के स्वर्णकणों का सुन्दर चयन किया है। यह देखकर आश्चर्य होता है कि मध्यकालीन परम्परा में विकसित भारतीय नगरों में उस संस्कृति का कितना अधिक उत्तराधिकार अभीतक सुरक्षित रह गया है। उस सामग्री का उचित संग्रह और अध्ययन करनेवाले पारखी कार्यकर्ताओं की आवश्यकता है। अकेले बीकानेर के ज्ञानभण्डारों में लगभग पचास सहस्र हस्तलिखित प्रतियों के संग्रह विद्यमान हैं। यह साहित्य राष्ट्रकी सम्पत्ति है। इसकी नियमित सूची और प्रकाशन की व्यवस्था करना समाज और शासन का कर्तव्य है। बीकानेर के समान ही जोधपुर, जैसलमेर, जयपुर, उदयपुर, कोटा, बूंदी, आदि बड़े नगरों की सांस्कृतिक छानबीन की जाय तो उन स्थानोंसे भी इसी प्रकार की सामग्री मिलने की सम्भावना है। प्रस्तुत संग्रह के लेखोंसे जो ऐतिहासिक और सांस्कृतिक सामग्री प्राप्त होती है, उसका अत्यन्त प्रामाणिक और विस्तृत विवेचन विद्वान लेखकों ने अपनी भूमिका में किया है। उत्तरी राजस्थान और उससे मिला हुआ जांगल प्रदेश प्राचीनकाल में साल्व जनपद के अन्तर्गत था सरस्वती नदी वहां तक उस समय प्रवाहित थी । पुरातत्त्व विभाग द्वारा नदी तटोंपर दूर तक फैले हुए प्राचीन टीलोंके अवशेष पाए गए हैं। किन्तु मध्यकालीन इतिहास का पहला सूत्र संवत् १५४५ से आरम्भ होता है, जब जोधपुर नरेश के पुत्र बीकाजी ने जोधपुर से आकर बीकानेर की नींव डाली। कई लेखों में बीकानेर को बिक्रमपुर कहा गया है, जो उसके अपभ्रंश नामका संस्कृत रूप है। बीकानेर का राजवंश आरंभ से ही कला और साहित्य को प्रोत्साहन देनेवाला हुआ, फिर भी बीकानेर के सांस्कृतिक जीवन की सविशेष उन्नति मन्त्रीश्वर कर्मचन्द ने की। नगर की स्थापना के साथ ही वहाँ वैभवशाली मन्दिरों का निर्माण आरंभ हो गया । सर्व प्रथम आदिनाथ के चतुर्विंशति जिनालय की प्रतिष्ठा संवत् १५६१ में हुई। यह बड़ा देवालय इस समय चिन्तामणि मन्दिर के नाम से प्रसिद्ध है। यह विचित्र है कि इस मन्दिर में स्थापना के लिए मूलनायक की जो प्रतिमा चुनी गई वह लगभग पौने दो सौ वर्ष पूर्व संवत् १३८० में स्थापित मन्डोवर से लाई गई थी। इस मन्दिर की दूसरी विशेषता यहांका भूमिगृह है, जिसमें लगभग एक सहस्र से ऊपर धातुमूर्तियां अभी तक सुरक्षित हैं । ये मूर्तियां सिरोही के देवालयों की लूट में अकबर के किसी सेनानायक प्राप्त कर बादशाह के पास आगरे भेज दी थीं। वहां से मन्त्रीश्वर कर्मचन्दने बीकानेर नरेश द्वारा संवत् १६३६ में सम्राट् अकबर से इन्हें प्राप्त किया और इस मन्दिर में सुरक्षित रख दिया। श्रीनाहटाजीने सं० २००० में इनके लेखों की प्रतिलिपि बनाई थी जो इस संग्रह में पहली
प्रकाशित की गई है ( लेख संख्या ५६-११५४ ।) इनमें सबसे पुराना लेख -- संवत् १०२० का है और उसके बाद प्रायः प्रत्येक दशाब्दी के लिये लेखों का लगातार सिलसिला पाया जाता है। भारतीय धातुमूर्तियों के इतिहास में इस प्रकार की क्रमबद्ध प्रामाणिक सामग्री अन्यत्र दुर्लभ है।
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इन मूर्तियों की सहायता से लगभग पांच शती की कला शैली का साक्षात् परिचय प्राप्त हो सकता है। इस दृष्टिसे इनका पृथक् अध्ययन और सचित्र प्रकाशन आवश्यक है।
विक्रम की सोलहवीं शती में चार बड़े मन्दिर बीकानेर में बने और फिर चार सत्रहवीं शती में। इस प्रकार संवत् १५६१ से संवत् १६७० तक सौ वर्ष के बीच में आठ बड़े देवालयों का निर्माण भक्त श्रेष्ठियों द्वारा इस नगर में किया गया। उस समय तक देश में मन्दिरों का वास्तु-शिल्प जीवित अवस्था में था! जगती, मंडोवर और शिखर के सूक्ष्म भेद और उपभेद शिल्पियों को भलीभांति ज्ञात थे। जनता भी उनसे परिचित रहती थी और उनके वास्तु का रस लेने की क्षमता रखती थी। आज तो जैसे मन्दिरों का अस्तित्व हमारी आँख से एकदम
ओझल हो गया है। उनके वास्तु की जानकारी जैसे हमने बिलकुल खो दी है। भद्र, अनुग, प्रतिरथ, प्रतिकर्ण, कोण, इनमें से प्रत्येक की स्थिति, विस्तार निर्गम और उत्सेध या उदय के किसी समय निश्चित नियम थे। भद्रार्ध और अनुग और कोण के बीच में प्रासाद का स्वरूप
और भी अधिक पल्लवित करने के लिये कोणिकाओं के निर्गम बनाए जाते थे, जिन्हें पल्लविका या नन्दिका कहते थे । इन कई भागों के उठान के अनुसार ही ऊपर चलकर शिखरमें रथिका
और शृङ्ग एवं उरु शृङ्ग बनाते थे, तथा प्रतिकर्ण और कोण के शिखर भागों को सजाने के लिये कितने ही प्रकार के अण्डक, तिलक और कूट बनाए जाते थे ! अण्डकों की संख्या ५ से लेकर ४-४ के क्रम से बढ़ती हुई १०१ तक पहुंचती थी। इनमें पांच अंडकवाला प्रासाद केसरी और अन्तिम १०१ अंडकों का प्रासाद देवालयों का राजा मेरु कहलाता था। एक सहस्र अण्डकों से सुशोभित शिखरवाले प्रासाद भी बनाए जाते थे। इस प्रकार के १५० से अधिक प्रासादों के नाम और लक्षण शिल्प-ग्रन्थों में प्राप्त होते हैं। ऐसे प्रासाद जीवन के वास्तविक तथ्य के अंग थे, शिल्पियों की कल्पना नहीं। अतएव यह देखकर प्रसन्नता होती है कि भांडाशाह द्वारा निर्मित सुमतिनाथ के मन्दिर में संवत् १५७१ विक्रमी के लेख में उसे त्रैलोक्यदीपक प्रासाद कहा गया है, जिसका निर्माण सूत्रधार गोदा ने किया था
१ संवत् १५७१ वर्षे आसो २ सुदि २ रवौ राजाधिराज ३ श्री लूणकरणजी विजय राज्ये ४ साहभांडा प्रासाद नाम त्रैलो५ क्यदीपक करावितं सूत्र० ६ गोदा कारित
शिल्परत्नाकर में त्रैलोक्यतिलक, त्रैलोक्यभूषण और त्रैलोक्यविजय तीन प्रकार के विभिन्न प्रासादों के नाम और लक्षण दिये हुए हैं। इनमें से त्रैलोक्यतिलक प्रासाद में शिस्लर के चारों ओर ४२५ अंडक और सन अंडकों के साथ २४ तिलक बनाए जाते थे। वास्तुशास्त्र की दृष्टि से यह बात छान बीन करने योग्य है कि सूत्रधार गोदा के त्रैलोक्यदीपक प्रासाद के
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वर्तमान लक्षण शिल्प प्रन्थों के किस त्रैलोक्यप्रासाद के साथ ठीक ठीक घटते हैं। भांडासरजी के मंदिर की जगती में बनी हुई वाद्ययन्त्रधारिणी पुत्तलिकाएँ विभिन्न नाट्य मुद्राओं में अति सुन्दर बनी हैं।
बीकानेर अपने सहयोगी नगरों में 'आठ चैत्ये बीकानेरे' इस विरुद से प्रसिद्ध हुआ, मानो नगर की अधिष्ठात्री देवता के लिए इस प्रकार की कीर्ति संपादित करके बीकानेर के श्रीमन्त श्रेष्ठियों ने नगर देवता के प्रति अपने कर्तव्य का उचित पालन किया था। उसके बाद
और भी छोटे मोटे मन्दिर वहाँ बनते रहे, जिनका नाम परिचय प्रस्तुत ग्रन्थमें दिया गया है । यथार्थ में बीकानेर के नागरिकों के कर्तव्य पालन का यह आरम्भ ही है।
जिस दिन हम अपने नगरों के प्रति पर्याप्त रूप में जागरूक होंगे, और उनके सांस्कृतिक उत्तराधिकार के महत्त्व को पहचानेंगे, उस दिन इन देव-प्रसादों के सचित्र वर्णन और वास्तुशैली और कोरणी के सूक्ष्म अध्ययन से संयुक्त परिचय प्रन्थों का निर्माण किया जायगा। पर उस दिन के लिये अभी प्रतीक्षा करनी होगी। प्रासाद-निर्माताओंका स्वर्णयुग तो समाप्त हो गया, पर वास्तु और शिल्प के सच्चे अनुरागी और पारखी उनके उत्तराधिकारियोंने अभी जन्म नहीं लिया। पाश्चात्य शिक्षा की लपटोंने जिनके सांस्कृतिक मानसको झलसा डाला है, ऐसे विद्र प प्राणी हम इस समय बच रहे हैं। कला के अमृत जल से प्रोक्षित होकर हमारे सांस्कृतिक जीवन का नवावतार जिस दिन सत्य सिद्ध होगा, उसी दिन इन प्राचीन देव प्रासादों के मध्य में हम सन्तुलित स्थिति प्राप्त कर सकेंगे।
लेखकों ने बीकानेर नगर के १३ अन्य मन्दिर एवं राज्य के विभिन्न स्थानों में निर्मित लगभग ५० अन्य जैन मन्दिरों का भी उल्लेख किया है। उनके वास्तु-शिल्प का भी विस्तृत अध्ययन उसी प्रकार अपेक्षित है। इनमें सुजानगढ़ में बना हुआ जगवल्लभ पार्श्वनाथका देवसागर प्रासाद उल्लेखनीय है जिसकी प्रतिष्ठा अभी चालीस पचास वर्ष पूर्व सं० १६७१ में हुई थी और जिसका निर्माण साढ़े चार लाख रुपये की लागत से हुआ था। भांडासर के त्रैलोक्यदीपक प्रासाद की भांति यह भी वास्तु प्रासाद का सविशेष उदाहरण है।
मन्दिरों की तरह जैन उपाश्रय भी सांस्कृतिक जीवन के केन्द्र थे। इनमें तपस्वी और ज्ञान-साधक यति एवं प्राचार्य निवास करते थे। आज तो इस संस्था का मेरुदण्ड भुक गया है। बीकानेर का बड़ा उपाश्रय जहां बड़े भट्टारकों की गद्दी है, विशेष ध्यान देने योग्य है, क्योंकि वर्तमान में इसके अन्तर्गत बृहत् ज्ञानभण्डार नामक हस्तलिखित ग्रन्थों का संग्रह है, जिसमें हितवल्लभ नामके एक यतिने अपनी प्रेरणा से नौ यतियोंके हस्तलिखित ग्रन्थोंका ( संवत् १६५८ में ) एकत्र संग्रह करा दिया था। इस संग्रह में १०००० ग्रन्थ हैं, जिनका विशेष विवरण युक्त सूचीपत्र श्री नाहटाजी ने स्वयं तैयार किया है। अवश्य ही वह सूचीप्रन्थ मुद्रित होने योग्य है। इसी प्रसंगमें बीकानेर की अनूप संस्कृत लायब्ररी की ओर भी ध्यान जाता है, जो संघ प्रवेश से पूर्व बीकानेर का राजकीय पुस्तकालय था, किन्तु अब महाराज श्रीके निजी स्वत्त्व में है।
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इस संग्रह में १२००० ग्रंथ एवं ५०० के लगभग गुटके हैं तथा अनेक महत्त्वपूर्ण चित्र हैं। स्वनामधन्य बीकाजी के वर्तमान उत्तराधिकारी से हम इतना निवेदन करना चाहेंगे कि उनके पूर्वजों की यह ग्रन्थराशि भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है। संपूर्ण राष्ट्रको और विशेषतः समस्त राजस्थानी प्रजा को इस निधिमें रुचि है। यह उनके पूर्वजोंका साहित्य और कला भाण्डार है, अतएव उदार दृष्टिकोण से जनताके लिए इसकी सुरक्षा का प्रबन्ध होना चाहिए । इस संबन्धमें भारतीय शासन से भी निवेदन है कि वे वर्तमान उपेक्षावृत्तिको छोड़कर इस ग्रंथ संग्रह की रक्षा के लिये पर्याप्त धन की व्यवस्था करें जिससे ग्रंथोंका प्रकाशन भी आगे हो सके और योग्य पुस्तकपाल की देख-रेख में ग्रन्थों की रक्षा भी हो सके। विद्वान् लेखकोंने जैन ज्ञान-भाण्डारोंका परिचय देते हुए भूमिका रूपमें श्वेताम्बर और दिगम्बर ज्ञानभाण्डारों की उपयोगी सूची दी है। हमारा ध्यान विशेष रूपसे संवत् १५७१ और संवत् १९७८ के बीच में निर्मित हिन्दीके अनेक रास और चौपाई ग्रन्थों की ओर जाता है, जिनकी संख्या ५० के लगभग है। हिन्दी साहित्य की यह सब अप्रकाशित सामग्री है। संवत् १६०२ की मृगावती चौपाई और सीता चौपाई ध्यान देने योग्य हैं।
___ श्री नाहटाजी ने इस सुन्दर ग्रंथ में ऐतिहासिक ज्ञान संवर्द्धनके साथ-साथ अत्यन्त सुरभित सांस्कृतिक वातावरण प्रस्तुत किया है, जिसके आमोदसे सहृदय पाठकका मन कुछ काल के लिये प्रसन्नतासे भर जाता है । सचित्र विज्ञप्तिपत्रोंका उल्लेख करते हुए १८६८ के एक विशिष्ट विज्ञप्ति पत्रका वर्णन किया गया है, जो बीकानेर के जैन संघ की ओर से अजीमगंज बंगाल में विराजित जैनाचार्य की सेवामें भेजने के लिये लिखा गया था। इसकी लम्बाई १७ फुट है, जिसमें ५५ फुट में बीकानेरके मुख्य बाजार और दर्शनीय स्थानोंका वास्तविक और कलापूर्ण चित्रण है । लेखकोंने इन सब स्थानों की पहचान दी है। इसी प्रकार पल्लू से प्राप्त सरस्वती देवी की प्राचीन प्रतिमा का भी बहुत समृद्ध काव्यमय वर्णन लेखकोंने किया है। सरस्वती की यह प्रतिमा राजस्थानीय शिल्पकला की मुकुटमणि है, वह इस समय दिल्लीके राष्ट्रीय संग्रहालय में सुरक्षित है! इस मूर्तिमें जिन आभूषणोंका अंकन है उनका वास्तविक वर्णन सोमेश्वरकृत मानसोल्लास में आया है। सरस्वतीके हाथोंकी अंगुलियों के नख नुकीले और बढ़े हुए हैं, जो उस समय सुन्दरता का लक्षण समझा जाता था। मानसोल्लास में इस लक्षणको 'केतकीनख कहा गया है।३११६२)।
इस पुस्तक में जिस धार्मिक और साहित्यिक संस्कृतिका उल्लेख हुआ है, उसके निर्माण कर्ताओंमें ओसवाल जातिका प्रमुख हाथ था। उन्होंने ही अपने हृदय की श्रद्धा और द्रव्य राशि से इस संस्कृतिका समृद्ध रूप संपादित किया था। यह जाति राजस्थान की बहुत ही धमपरायण और मितव्ययी जाति थी, किन्तु सांस्कृतिक और सार्वजनिक कार्यों में वह अपने धनका सदुपयोग मुक्तहस्त होकर करती थी। बीकानेर में ओसवालों के किसी समय ७८ गोत्र थे, जिनमें ३००० परिवारों की गणना थी। आरम्भ में ये परिवार अपने मन से बस
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________________ गए थे। कहा जाता है कि पीछे मन्त्रीश्वर कर्मचन्द्र ने प्रत्येक जाति और गोत्रों के घरों को एक जगह बसा कर उनकी एक-एक गुवाड़ प्रसिद्ध कर दी। गुवाड़ का अर्थ मुहल्ला है। यह शब्द संस्कृत गोवाट से बना है, जिसका अर्थ था गायोंका बाड़ा। इस शब्दसे संकेत मिलता है कि प्रत्येक मुहल्ले की गाएँ एक-एक बाड़े में रहती थीं। प्रातःकाल ये गाएँ उसी बाड़े से जंगल में चरने के लिए चली जाती और फिर सायंकाल लौटकर वहीं खड़ी हो जाती थीं। गायों के स्वामी दुहने और खिलाने के लिए उन्हें अपने घर पर ले आते थे। पुराने समयमें गायों की संख्या अधिक होती थी और प्रायः उन्हें इसी प्रकार बाड़े में छुट्टा रखते थे। गोवाट, गुवाड़ शब्द की प्राचीनता के विषय में अभी और प्रमाण ढूँढ़ने की आवश्यकता है, किन्तु इस प्रथाके मूलमें वैदिक गोत्र जैसी व्यवस्था का संकेत मिलता है। गोत्रकी निरुक्ति के विषय में भी ऐसा ही मत है कि समान परिवारों की गायों को एक स्थान पर रखने या बांधने की प्रथा से इस शब्द का जन्म हुआ। बीकानेर में ओसवाल समाज की 27 गुवाड़ें थीं। यह जानकर कुतूहल होता है कि नगर में प्रत्येक जाति अपने अपने घरों की संख्या का पूरा लेखा जोखा रखती थी। सं० 1905 के एक बस्तीपत्रक में घरों की संख्या 2700 लिखी है। अपने यहाँ की समाज-व्यवस्था में इस प्रकार से परिवारों की गणना रखना जातिके सार्वजनिक संगठन के लिए आवश्यक था। प्रत्येक परिवारका प्रतिनिधि व्यक्ति वृद्ध या स्थविर कहलाता था, जिसे आजकल 'बड़ा बूढ़ा' कहते हैं / बिरादरी की पंचायत या जाति सभा में अथवा विवाह आदि अवसरों पर वही कुल वृद्ध या 'बड़ा बूढ़ा' उस परिवार का प्रतिनिधि बनकर बैठता था। इस प्रकार कुल या परिवार जाति की न्यूनतम इकाई थी। कुलोंके समूहसे जाति बनती थी / जातिका सामाजिक या राजनैतिक संगठन नितान्त प्रजातन्त्रीय प्रणाली पर आश्रित था! इसे प्राचीन परिभाषा में 'संघप्रणाली' कहा जाता था। पाणिनिने अष्टाध्यायीमें कुलोंकी इस व्यवस्था और उनके कुलवृद्धों के नामकरण की पद्धति का विशद उल्लेख किया है। व्यक्ति के लिये यह बात महत्त्वपूर्ण थी कि परिवार के कई पुरुष-सदस्यों में गोत्र-वृद्ध या 'बड़ा बूढा' यह उपाधि किस व्यक्ति विशेषके साथ लागू होती थी, क्योंकि वही उस कुलका प्रतिनिधि समझा जाता था। प्रति परिवार से एक प्रतिनिधि जातिकी पंचायत में सम्मिलित होता था ! जातिके इस संघ में प्रत्येक कुलवृद्धका पद बराबर था, केवल-कार्य निर्वाहके लिये कोई विशिष्ट व्यक्ति सभापति या श्रेष्ठ चुन लिया जाता था। बौद्ध ग्रंथोंसे ज्ञात होता है कि वैशालीके लिच्छवि क्षत्रियोंकी जातिमें 7707 कुल या परिवार थे। क्योंकि वे राजनीतिक अधिकार से संपन्न थे इस वारते प्रत्येककी उपाधि 'राजा' होती थी। वैश्यों या अन्य जातियों की बिरादरी के संगठनमें राजा की उपाधि तो न थी किन्तु और सब बातोंमें पंचायत या जातीय सभा का ढांचा शुद्ध संघ प्रणाली से संचालित होता था। इस प्रकार के जातीय संगठनमें प्रत्येक जाति आन्तरिक स्वराज्यका अनुभव करती थी और अपने निजी मामलोंको निपटाने में पूर्ण स्वतन्त्र थी। इस प्रकारके स्वायत्त संगठन समाजके अनेक स्तरों पर प्रत्येक जातिमें विद्यमान थे, और जहाँ वे टूट नहीं गए हैं "Aho Shrut Gyanam"
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________________ soj वहां अभी तक किसी न किसी रूपमें जीवित हैं / इस प्रकार की व्यवस्था में परिवारोंकी गिनती लोगोंको कंठ रहती थी। घर-घरसे एक व्यक्ति को निमन्त्रित करने की प्रथा के लिए मेरठ की बोलीमें 'घर पते' यह शब्द अभीतक जीवित रह गया है। श्रीनाहटाजी के उल्लेखसे ज्ञात होता है कि लाहणपत्र के रूपमें भी बिरादरी के घरों की संख्या रखी जाती थी, किन्तु लाहणपत्र* का यथार्थ अभिप्राय हमें स्पष्ट नहीं हुआ। ग्रन्थ में संगृहीत लेखों को पढ़ते हुए पाठक का ध्यान जैन संघ की ओर भी अवश्य जाता है। विशेषतः खरतरगच्छ के साधुओं का अत्यन्त विस्तृत संगठन था। बीकानेर के राजाओं से वे समानता का पद और सम्मान पाते थे। उनके साधु अत्यन्त विद्वान् और साहित्य में निष्ठा रखनेवाले थे / इसी कारण उस समय यह उक्ति प्रसिद्ध हो गई थी कि 'आतम ध्यानी आगरै पण्डित बीकानेर'। इसमें बीकानेर के विद्वान् यतियों का उल्लेख तो ठीक ही है, साथ ही आगरे के 'आध्यातमी संप्रदाय का उल्लेख भी ध्यान देने योग्य है / यह आगरे के * 'लाहण' शब्द संस्कृत लभू धातु से बना, लभ से लाम संज्ञा हुई / लाभ का प्राकृत और अपभ्रंश रूप 'लाह' है। उसके 'ण' प्रत्यय लगने से लाहण' शब्द हो गया। जयपुर, दिल्ली की ओर लाइणा कहते हैं गुजरात आदि में लाहणी शब्द प्रचलित है। महाकवि समयसुन्दर ने अपनी कल्पलता' नामक कल्पसूत्र वृत्ति में 'लाहणी' का संस्कृतरूप 'लमनिका' शब्द लिखा है यतः-“गच्छे लंभनिका कृता प्रतिपुरे रुक्मादिमेक पुनः" / 'लाहण' शब्द की व्युत्पत्ति से फलित हुआ कि लाभ के कार्य में इस शब्द का प्रयोग होना चाहिए अपने नगर, गांव, या समग्र देश में अपने स्वधर्मियों या जाति के घरों में मुहर, रुपया, पैसा मिश्री, गुड़, चीनी, थाली, चुंदड़ी इत्यादि वस्तुओंको बाँटने की प्रथा प्राचीनकाल से चली आ रही है ! यह लेनेवाले को प्रत्यक्ष लाभ तथा देनेवाले को फलप्राप्तिरूप लाभप्रद होने से इसका नाम लाइण सार्थक है। पूर्वकालके धनीमानी प्रभावशाली श्रावकों, संधपतियों के जीवनचरित्र, शिलालेख ग्रंथ-प्रशस्तियों में इसके पर्याप्त उल्लेख पाये जाते हैं। आज भी यह प्रथा सर्वत्र वर्तमान है। बीकानेर में इस प्रथा ने अपना एक विशेष रूप धारण कर लिया है। बीकानेर के ओसवाल समाज में प्रायः प्रत्येक व्यक्ति पूर्वकाल में 'लाहण' करना एक पुण्य कर्तव्य समझकर यथा शक्ति अवश्य किया करता था। मृत्यु के उपरान्त अन्त्येष्टि के हेतु उसी व्यक्ति की श्मशान यात्रा मंडपिका ( मंढी युक्त निकाली जाती थी जिसकी लाहण-लावण हो चुकी हो। लाहण की प्रथा यों है कि जो व्यक्ति अपनी या अपनी पत्नी आदि की 'लादण' करता हो उसे प्रथम अपनी गुवाड़ व सगे सम्बन्धियों में निमंत्रण देना होता है फिर गुवाड़ या घर के दस पाँच सदस्य मिलकर सत्ताइस गुवाड़ में 'टोली' फिरते हैं, तीसरी टोली में रुपयों की कोथली साथ में रहती है। प्रत्येक मुहल्ले की पंचायती में जाकर जितने घरों तथा बगीची, मन्दिर आदि की लाहण लगती हो जोड़कर रुपये चुका दिये जाते हैं। इन रुपयों का उपयोग पंचायती के वासण-बरतन, सामान इत्यादि में किया जाता है। संध्या समय घर के आगे या चौक में सभी आमंत्रित व्यक्तियों की उपस्थिति में चौधरी (जाति-पंच) के आने पर श्रीनामा डालकर लाइणपत्र लिखा जाता है फिर सगे-संबंधियों की पारस्परिक मिलनी होने के बाद 'लाइण उठ जाती है। --सम्पादक "Aho Shrut Gyanam"
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________________ [8] शानियों की मण्डली थी, जिसे शैली कहते थे। 'अध्यातमी' बनारसीदास इसीके प्रमुख सदस्य थे। ज्ञात होता है अकबर की दीन इलाही प्रवृत्ति इसी प्रकार की आध्यात्मिक खोज का परिणाम थी। बनारस में भी अध्यात्मियों की एक शैली या मण्डली थी। किसी समय राजा टोडरमल के पुत्र गोवर्द्धनदास उसके मुखिया थे। बनारस में आज भी यह उक्ति बच गई है- 'सब के गुरू गोबरधनदास'। अवश्य ही अकबर और जहाँगीर के काल में आगरा और बीकानेर जैसी राजधानियों के नागरिकों में निजी विशेषताओं के आधार पर कुछ होड़ रहती होगी। भारत के मध्यकालीन नगर संख्या में अनेक हैं। प्रायः प्रत्येक प्रदेश में अभी तक उनकी परम्परा बची है। सांस्कृतिक दृष्टि से उनकी छानबीन, उनकी संस्थाओं को समझने का प्रयत्न और उनके इतिहास की बिखरी हुई कड़ियों को जोड़कर उनका सचित्र वर्णन करने के प्रयत्न होने चाहिए। वह नगर बड़भागी है, जहां के नागरिकों के मन में इस प्रकार की सांस्कृतिक आराधना का संकल्प उत्पन्न हो। बीकानेर के नाहटा की भांति चौपानेर, माण्डू, सूरत, धोलका, चन्देरी, बीदर, अहमदाबाद, आगरा, दिल्ली, बनारस, लखनऊ आदि कितने ही नगरों को अपने अपने नाहटाओं की आवश्यकता है। प्रस्तुत संग्रह में जो तीन सहस्र के लगभग लेख हैं उनमें से अधिकांश 11 वी से सोलहवीं शती के बीचके हैं। उस समय अपभ्रंश भाषा की परम्परा का साहित्य और जीवन पर अत्यधिक प्रभाव था, इसका प्रमाण इन लेखोंमें आये हुए व्यक्तिवाची नामोंमें पाया जाता है। जैन आचार्यों के नाम प्रायः सब संस्कृत में हैं, किन्तु गृहस्थ स्त्री-पुरुषों के नाम जिन्होंने जिनालय और मूर्तियों को प्रतिष्ठापित कराया, अपभ्रंश भाषा में हैं। ऐसे नामों की संख्या इन लेखोंमें लगभग दस सहस्र होगी। यह अपभ्रंश भाषाके अध्ययन की मूल्यवान् सामग्री है। इन नामोंकी अकारादि क्रमसे सूची बनाकर भाषा शास्त्रकी दृष्टिसे इनकी छान बीन होनी आवश्यक है। उदाहरण के लिये 'साहु पासड़ भार्या पाल्हण दें' में पास अपभ्रंश रूप है। मूल नाम 'पार्श्वदेव' होना चाहिए। उसके उत्तर पद 'देव' का लोप करके उसका सूचक 'ड' प्रत्यय जोड़ दिया गया, और पार्श्वके स्थान में 'पास' आदेश हुआ। इस प्रकार 'पासड' यह नाम का रूप हुआ। 'पाल्हण दे' संस्कृत 'पालन देवी' का रूप है। इसी प्रकार जसा; यह संस्कृत यशदत्त का संक्षिप्त अपभ्रंश रूप था। नामोंको संक्षिप्त करने की प्रवृत्ति अत्यन्त प्राचीन थी। पाणिनि ने भी विस्तार से इसका उल्लेख किया है और उन नियमों का विश्लेषण किया है जिनके अनुसार नामोंको छोटा किया जाता था। इनमें नामके उत्तर पदका लोप सबसे मुख्य बात थी। लुप्त पदको सूचित करने के लिये एक प्रत्यय जोड़ा जाता था, जैसे-'देवदत्त' को छोटा करने के लिये 'दत्त' का लोप करके 'क' प्रत्ययसे 'देवक' रूप बनता था। इस प्रकार के नामोंको अनुकम्पा नाम (दुलारका नाम ) कहा जाता था / नामोंको छोटा करने की प्रथा पाणिनि के पीछे भी बराबर जारी रही, जैसा कि भरहुत और सांचीमें आए "Aho Shrut Gyanam"
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________________ [ 81 हुए नामोंसे ज्ञात होता है। गुमकालमें नामोंके संस्कृत रूप की प्रधानता हुई। उस समय की जो मिट्टी की मुहरें मिली हैं उनपर अधिकांश नाम शुद्ध संस्कृत में और अविकल रूप में मिलते हैं, जैसे-'सत्यविष्णु, चन्द्रमित्र, धृतिशर्मा आदि / गुप्तकाल के बाद जब अपभ्रंश भाषा का प्रभाव बढ़ा तब लगभग 8 वी शतीसे नामोंके स्वरूप ने फिर पलटा खाया। जैसे राष्ट्रकूट नरेश गोविन्द का नाम 'गोइज' मिलता है। 10 वीं शती के बाद तो प्रायः नामों का अपभ्रंश रूप ही देखा जाता है, जैसे नागभट्ट वाग्भट्ट और त्यागभट्ट जैसे सुन्दर नामोंके लिये नाहड़, बाहड़ और चाहड़ ये अपभ्रंश रूप शिलालेखोंमें मिलते हैं। इस प्रकार के मध्य. कालीन नामोंकी मूल्यवान सामग्री के चार स्रोत हैं-शिलालेख, मूर्ति प्रतिष्ठा लेख, पुस्तक प्रशस्तियां और साहित्य / चारों ही प्रकार की पर्याप्त सामग्री प्रकाशित हो चुकी है। मुनि पुण्यविजयजी द्वारा प्रकाशित जैन पुस्तक प्रशस्ति संग्रह में और श्री विनयसागरजी द्वारा प्रकाशित प्रतिष्ठा लेख संग्रह' में अपभ्रंश कालीन नामोंकी बृहत् सूचियां दी हुई हैं। बीकानेर के प्रतिष्ठा लेखोंमें आए हुए नाम भी उसी शृङ्खला की बहुमूल्य कड़ी प्रस्तुत करते हैं। इनकी भी क्रम बदसूची बननी चाहिए। इन नामोंसे यह भी ज्ञात होता है कि कुमारी अवस्था में स्त्रियों का पितृ-नाम भिन्न होता था किन्तु पतिके घरमें आने पर पतिके नाम के अनुसार स्त्री के नाम में परिवर्तन कर लिया जाता था। जैसेसाहु तेजा के नामके साथ भार्या तेजल दे, अथवा साहु चापा के साथ भार्या चापल दे। फिर भी इस प्रथाका अनिवार्य आग्रह न था, और इसमें व्यक्तिगत रुचिके लिये काफी छूट थी। इन नामोंके अध्ययन से न केवल भाषा सम्बन्धी विशेषताएँ ज्ञात हो सकेंगी किन्तु धार्मिक लोक प्रथाओं पर भी प्रकाश पड़ सकता है ! जैसे 'साहु दूला पुत्र छीतर' इस नाममें (लेख संख्या 1616 ) दुर्लभ राजका पहले दुल्लह अपभ्रंश रूप और पुनः देश-भाषामें उसका उच्चारण दूला हुआ। 'छीतर' नामसे ज्ञात होता है कि उसकी माताके पुत्र जीवित न रहते थे। देशी भाषामें 'छीतर' टूटी हुई टोकरी का वाचक था, ऐसा हेमचन्द्र ने लिखा है। जब पुत्रका जन्म हुआ तो माताने उसे छीतरी में रखकर खींचकर घूरे पर डाल दिया, जहाँ उसे घरकी मेहतरानी ने उठा लिया। इस प्रकार मानों पुत्रको मृत्युके लिये अर्पित कर दिया गया। मृत्युका जो भाग बच्चेमें था उसकी पूर्ति कर दी गई। फिर उस बच्चे को माता-पिता निष्क्रय देकर मोल ले लेते थे; वह मानों मृत्युदेव के घरसे लौटकर नया जीवन आरम्भ करता था। इस प्रकार के बच्चों को 'छीतर' नाम दिया जाता था! अपभ्रंश में 'सोल्लू' या सुल्ला' नाम भी उसी प्रकार का था। सुल्, धातु फेंकने के अर्थमें प्रयुक्त होती थी! हिन्दी फिक्कू खचेडू आदि नाम उसी परम्परा या लोक विश्वास के सूचक हैं। मध्यकालीन अपभ्रंश नामों पर स्वतन्त्र अनुसंधान की अत्यन्त आवश्यकता है। उसके लिये नाहटाजी ने इन लेखोंमें मूल्यवान् सामग्री संगृहीत कर दी है। यह भी ज्ञातव्य है कि पुरुष नामोंके साथ श्रेष्ठी, साहु, व्यावहारिक आदि सम्मान सूचक पदोंका विशेष अर्थ था। अब वे संस्थाएँ धुंधली पड़ गई हैं। अतएव "Aho Shrut Gyanam"
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________________ [ 10 इन पदोंके अर्थ भी स्पष्ट नहीं रहे। प्राचीन परम्परा के अनुसार सोने चांदी के वजार में जो सर्राफ के सदस्य होते थे वे ही श्रेष्ठी कहलाते थे। प्रत्येक नगर की सोनहटी या सराफे में उनकी संख्या नियत होती थी और विधिपूर्वक चुनाव के बाद ही वे लोग सर्राफे के सदस्य बनाए जाते थे। इन्हींको उत्तर भारत में महाजन कहने लगे। एक लेख में श्रेष्ठी आना के पुत्र नायक को व्यवहारिक लिखा गया है ( लेख 318) / इसकी संगति यही है कि पिता के बाद पुत्र को श्रेष्ठिपद प्राप्त नहीं हुआ और वह केवल व्यवहारिक अर्थात् रुपये के लेन-देन का काम ही करता रहा। इस प्रकार इन लेखों की सामग्री से कई मध्यकालीन संस्थाओं को नई आँख से देखने में सहायता मिलती है। काशी विश्वविद्यालय ज्येष्ठ शुक्ल 11, सं० 2012 / वासुदेवशरण "Aho Shrut Gyanam"
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________________ भूमिका बीकानेरके जैन इतिहास पर एक दृष्टि राजस्थान प्रान्तमें बीकानेर राज्य ( वर्तमान डिवीजन) का स्थान अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है ।इस राज्यका प्रधान अंश प्राचीन काल में जांगल देशके नामसे प्रसिद्ध रहा है। वीरवर बीकाजी के पूर्व इस राज्य के कई हिस्सों पर सांखले-परमारोंका, कुछ पर मोहिल-चौहानोंका, कुछ पर भाटी-यादवोंका एवं कुछ पर जोहिये व जाटोंका अधिकार था। बीकाजीने अपने पराक्रमसे उन सब पर विजय प्राप्त कर अपना शासन स्थापित किया और अपने नामसे इस बीकानेर राज्यको नोंव डाली। परवर्ती नरेशोंने भी इसे यथाशक्य बढ़ाया, जिसके फलस्वरूप इसका क्षेत्रफल 23317 वर्गमील तक पहुंचा। इसकी लंबाई चौड़ाई लगभग 208 मील है। बीकानेर राज्यके अनेक प्राचीन स्थान ऐतिहासिक दृष्टिसे बड़े महत्त्वपूर्ण हैं। सूरतगढ़ के निकटवर्ती रंगमहलसे कुछ पकी हुई मिट्टीकी मूर्तियां आदि प्राप्त हुई थीं। गतवर्ष सरस्वती और दृषद्वतीको घाटियोंमें खुदाई हुई थी जिससे प्राप्त वस्तुओंका प्रागैतिहासिक हड़प्पा कालीन संस्कृतिसे सिलसिला जोड़ा गया है। यहां अनेक प्रागैतिहासिक स्थान हैं जिनकी परिपूर्ण खुदाई होनेपर भारतीय प्राचीन संस्कृति पर महत्त्वपूर्ण प्रकाश पड़नेकी संभावना है। मध्यकालीन महत्त्वपूर्ण स्थान भी इस राज्यमें अनेक हैं, जिनमें बड़ोपल, पल्लू, भटनेर, नौहर, रिणी, द्रौणपुर, चरलू, रायसीसर, जांगलू, मोरखाणा, भादला, दद्रवा आदि उल्लेखनीय हैं। पलूसे प्राप्त जैन-सरस्वती मूर्तिद्वय अपने कला सौन्दर्यके लिए विश्व-विख्यात हैं। कोलायततीर्थका धार्मिक दृष्टिसे बड़ा माहात्म्य है / कार्तिक पूर्णिमाको यहाँ हिन्दू समाजका बहुत बड़ा मेला भरता है / गोगा मैड़ी आदिके मेले भी प्रसिद्ध हैं / देसनोककी करणी माता भी राजवंश एवं बहुजन मान्य है ! खाद्यान्न उत्पादनको दृष्टिसे बीकानेर डिवीजनका नहरी इलाका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है / स्वर्गीय महाराजा गंगासिंह ने गंगानहर लाकर इस प्रदेशको बड़ा उपजाऊ बना दिया है। जो बीकानेर राज्य खाद्यान्नके लिये परमुखापेक्षी रहता था, आज लाखों मन खाद्यान्न उत्पन्न कर रहा है। इस प्रदेशके खनिज पदार्थ यद्यपि अभी तक विशेष प्रसिद्धि में नहीं आये, फिर भी पलाणकी कोयलेकी खान, दुलमेरोकी लाल पत्थरकी खान, जामसरका मीठा चूना, मुलतानी मिट्टी (मेट ) आदि अच्छी होती है। यहाँकी बालू आदिसे कांचके उद्योग भी विशेष पनप सकते हैं। आर्थिक दृष्टिसे भी यहाँके अधिवासी समन भारतमें ख्याति प्राप्त हैं। इस दृष्टिसे बीकानेर धनाढ्योंका देश माना जाता रहा है और अपनी प्रजाके लिये स्वर्गीय शासक गंगासिंहजीको "Aho Shrut Gyanam"
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________________ बड़ा गौरव था। आसाम, बंगाल आदि देशों के व्यापारकी प्रधान बागडोर यहीके व्यापारियोंके हाथमें है। साहित्यिक दृष्टिसे भी बीकानेर राज्य बड़ा गौरवशाली है। अकेले बीकानेर नगरमें ही 60-70 हजार प्राचीन हस्तलिखित प्रतियां सुरक्षित हैं। इनमें राजकीय अनूप संस्कृत लाइब्रेरी विश्व-विश्रुत है, जहां सैकड़ोंकी संख्यामें अन्यत्र अप्राप्य विविध विषयक ग्रन्थरत्न विद्यमान हैं / बड़ा उपासरा आदिके जैन ज्ञान भण्डारों में भी 20 हजारके लगभग हस्तलिखित प्रतियां हैं। हमारे संग्रह-श्री अभय जैन ग्रन्थालयमें अत्यन्त महत्त्वपूर्ण विविध सामग्री संग्रहीत है ही। राज्यके अन्य स्थानोंमें चूरूकी सुराणा लाइब्रेरी आदि प्रसिद्ध है इन सबका संक्षिप्त परिचय अ'गे दिया जायगा। कलाकी दृष्टिसे भी बीकानेर पश्चातपद नहीं, यहाँकी चित्रकलाकी शैली अपना विशिष्ट स्थान रखती है और बीकानेरी कलम गत तीन शताब्दियोंसे सर्वत्र प्रसिद्ध है। बीकानेर के सचित्र विज्ञप्तिपत्र, फुटकर चित्र एवं भित्तिचित्र इस बातके ज्वलन्त उदाहरण हैं। शिल्पकला की दृष्टिसे यहांका भांडासरजीका मंदिर सर्वत्र प्रसिद्ध है। इस विषयमें "बीकानेर आर्ट एण्ड आचिंटेक्चर" नामक ग्रन्थ द्रष्टव्य है। इस प्रकार विविध दृष्टियोंसे गौरवशाली बीकानेर राज्यके जैन अभिलेखोंका संग्रह प्रस्तुत प्रन्थमें उपस्थित किया जा रहा है इस प्रसंगसे वहाँके जैन इतिहास सम्बन्धी कुछ ज्ञातव्य बातें दे देना आवश्यक समझ आगेके पृष्ठोंमें संक्षिप्त प्रकाश डाला जा रहा है। बीकानेर राज्य-स्थापन एवं व्यवस्थामें जैनोंका हाथ जोधपुर नरेश राव जोधाजीने जब अपने प्रतापी पुत्र श्री बीकाजीको नवीन राज्यकी स्थापना करनेके हेतु जांगल देशमें भेजा तब उनके साथ चाचा कांधल, भाई जोगा, वीदा और नापा सांखलाके अतिरिक्त बोथरा वत्सराज एवं वैद लाखणसी आदि राजनीतिज्ञ ओसवाल भी थे। बीकानेर राज्यकी स्थापनामें इन सभी मेधावी व्यक्तियोंका महत्त्वपूर्ण हाथ रहा है। वच्छावत वंशके मूल पुरुष बच्छराजजी-जो राव बोकाजीके प्रधान मंत्री थे-ने अपने बुद्धि वैभवसे शासन तंत्रको सुसंचालित कर राज्यकी बड़ी उन्नति की। राज्य स्थापनासे लगाकर महाराजा रायसिंह के समय पर्य्यन्त शासन प्रबन्ध वच्छावत वंशका प्रमुख भाग रहा। यहां तक कि सभी राजाओंके प्रधान मंत्री इसी गौरवशाली वंशके ही होनेका उल्लेख "कर्मचन्द्र मंत्रि वंश प्रबन्ध" में पाया जाता है यथा राव बीकाजीके मन्त्री वत्सराज, राव लूणकरणजीके मंत्री कर्मसिंह, राव जयतसीजीके मंत्री वरसिंह और नगराज, राव कल्याणमल्लके मंत्री संग्रामसिंह व कर्मचन्द्र तथा राजा रायसिंहके मंत्रीश्वर कर्मचन्द्र थे। इन बुद्धिशाली मंत्रियोंने साम, दाम, दण्ड और भेद नीति द्वारा समय-समयपर आनेवाली विपत्तियोंसे राज्यकी रक्षा करनेके साथ-साथ उसकी महत्त्व वृद्धि और सीमा विस्तारके लिये पूर्ण "Aho Shrut Gyanam"
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________________ प्रयत्न किया। बीकानेरके दुर्ग-निर्माण एवं गवाड़ों ( मुहल्लों ) को मर्यादित कर वसानेमें उन्होंने बड़ी दूरदर्शितासे काम लिया। इन्होंने संधिविग्राहक और रक्षासचिव व सेनापति आदि पदोंको भी दक्षतासे संभाला। मंत्री कर्मसिंह राव लूणकरणजी के समय नारनौलके युद्ध में काम आये थे। राव जयतसीजीके समय मंत्री नगराजने शेरसाहका आश्रय लेकर खोये हुए बीकानेर राज्यको मालदेव ( जोधपुर नरेश ) से पुनः प्राप्त किया। उन्होंने अपनी दूरदर्शितासे शत्रुकी चढ़ाईके समय राजकुमार कल्याणमल्लको सपरिवार सरसामें रखा और राज्यको पुनः प्राप्तकर बादशाहके हाथसे राव कल्याणमल्लको राजतिलक करवाया। मंत्रीश्वर कर्मचन्द्रने राव कल्याणमल्लजीके दुसाध्य मन्थ -जोधपुरके राजगवाक्षमें बैठकर कमलपूजा (पूर्वजोंको तर्पण) करने-को सम्राट अकबरसे कुछ समयके लिए जोधपुर राज्यको पाकर, पूर्ण किया। राव कल्याणमल्लने सन्तुष्ट होकर मंत्रीश्वरसे मनोवांछित मांगनेकी आज्ञा दी तो धर्मप्रिय मंत्रीश्वरने अपने निजी स्वार्थ के लिए किसी भी वस्तुकी याचना न कर जीवदयाको प्रधानता दी और बरसातके चार महीनों में तेली, कुम्हार और हलवाइयोंका आरंभ वर्जन, "माल" नामक व्यवसायिक कर के छोड़ने एवं भेड़, बकरी आदिका चतुर्थाश कर न लेनेका वचन मांगा। राजाने मंत्रीश्वरकी निष्पृहतासे प्रभावित होकर उपयुक्त मांगको स्वीकार करने के साथ बिना मांगे प्रीतिपूर्वक चार गांवोंका पट्टा दिया और फरमाया कि जबतक तुम्हारी और मेरी संतति विद्यमान रहेगी तब तक ये गाँव तुम्हारे वंशजोंके अधिकृत रहेंगे। मंत्रीश्वर कर्मचन्द्र सन्धि विग्रहादि राजनीतिमें अत्यन्त पटु थे। उन्होंने अपने असाधारण बुद्धि वैभवसे सोजत समियाणाको अधिकृत किया, जालौरके अधिपति को वशवत्ती कर अबुर्दगिरिको अधिकृत कर लिया। महाराजा रायसिंह से निवेदन कर चतुरंगिणी सेनाके साथ हरप्पामें रहे हुए बलोचियों पर आक्रमण कर उन्हें जीता' / वच्छावत वंशावलीमें लिखा है कि मन्त्रीश्वरने शहरको उथल कर जाति व गोत्रोंको अलग अलग मुहल्लों में बसाकर सुव्यस्थित किया। रायसिंहजीके साथ गुजरातके युद्ध में विजय प्राप्त करके सम्राट अकबरसे मिले। जब सम्राटने प्रसन्न होकर मनचाहा मांगनेका कहा तो इन्होंने स्वयं अपने लिए कुछ भी न मांग अपने स्वामी राजा रायसिंहको 52 परगने दिलाए / सं० 1647 के लगभग महाराजा रायसिंहजी की मनोगत अप्रसन्नता जानकर मंत्री कर्मचन्द्र अपने परिवारके साथ मेड़ता चले गए। इसके पश्चात् वैद मुहता लाखणसीजी के वंशज मुहता ठाकुरसीजी दीवान नियुक्त हुए। दक्षिण-विजयमें ये महाराजाके साथ थे, महाराजा ने प्रसन्न होकर इन्हें तलवार दी और भटनेर गांव बख्शीस किया। ____महाराजा सूरसिंहजीने मन्त्रीश्वर कर्मचन्द्रके पुत्र भाग्यचन्द्र लक्ष्मीचन्द्रको बड़े अनुरोधसे बीकानेर लाकर दीवान बनाया, कई वर्ष तक तो वे यहाँ सकुशल रहे पर सं० 1676 के फाल्गुनमें १-कर्मचन्द मंत्रिवंश प्रबन्ध देखिए। २-"ओसवाल जातिका इतिहास" ग्रन्थमें विशेष ज्ञातव्य देखना चाहिए। "Aho Shrut.Gyanam"
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________________ [ 4 ] महाराजाने कुपित होकर 1000 आदमियोंकी सेनाका घेरा इनकी हवेलीके चारों तरफ डाल दिया जिससे इनका सारा परिवार काम आ गया इस सम्बन्धमें विशेष जाननेके लिए हमारी "युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरि” पुस्तक देखनी चाहिए। इसके पश्चात् महाराजा कर्णसिंहजीके समय कोठारी जीवणदास सं० 1701 में पूगल विजयके अनन्तर वहाँके प्रबन्धके लिए रहे थे। महाराजा अनूपसिंहजीका मनसब ( दिल्ली जाकर ) दिलानेका उद्योग कोठारी जीवणदास और वैद राजसीने ही किया था। कोठारी नैणसीके इनके समयमें मंत्री होनेका उल्लेख विज्ञप्तिपत्रमें आता है। सं० 1736 में लाभवर्द्धनने लीलावती गणितकी चौपाई इन्हींके पुत्र जयतसीके अनुरोधमें बनाई थी जिसमें इन्हें राज्याधिकारी लिखा है। महाराजा अनूपसिंहजी की मृत्युके अनन्तर स्वरूपसिंहकी बाल्यावस्थाके कारण राजव्यवस्थाके संचालनमें मान रामपुरिया, कोठारी नयणसी के सहयोग देनेका उल्लेख बीकानेर राज्यके इतिहासमें पाया जाता है / ___ महाराजा सूरतसिंहके समय वैदों और सुराणों का सितारा चमक उठा। सं० 1860 में चूरू पर दीवान अमरचन्दजी सुराणा व खजाची मुलतानमल के नेतृत्वमें सेना भेजी गई / वहां पहुंच कर इन्होंने 21000) रुपये चूरूके स्वामीसे वसूल किये। सं० 1861 में जाब्तार खो भट्टीने, जो कि भटनेर का किलेदार था, सर उठाया तो महाराजा ने अमरचन्दजी के नेतृत्व में 4000 सेना भटनेर भेजी। इन्होंने जाते ही अनूपसागर पर अधिकार कर लिया और पांच महीने तक घेरा डाले रहने से जाब्तारखां को स्वयं किला इन्हें सुपुर्द कर चला जाना पड़ा। इस वीरतापूर्ण कार्यके उपलक्ष में महाराजाने इन्हें पालकी की इज्जत देकर दीवानके पदपर नियुक्त किया। सं० 1865 में जोधपुर नरेश मानसिंह ने दीवान इन्द्रचन्द्र सिंघीके नेतृत्व में 8000 सेनाके साथ बीकानेर पर चढ़ाई की, तब राजनीतिज्ञ अमरचन्दजी सेना लेकर उलटे आक्रमणार्थ जोधपुर गये और बड़ी बुद्धिमानी और वीरतासे जोधपुरी सेनाके माल-असबाब को लेकर बीकानेर लौटे। जोधपुरी सेना 2 महीने तक छोटी-छोटी लड़ाइयां लड़ती हुई गजनेर के पास पड़ी रही। इसके बाद 4000 सेनाको लेकर जोधपुर से लोढा कल्याणमल आया। अमरचन्दजी उसका सामना करने के लिये ससैन्य गजनेर गये। उनका आगमन सुनकर लोढाजी कूच करने लगे पर अमरचन्दजीने उनका पीछा करके युद्धके लिए बाध्य किया और बन्दी बना लिया। सं० 1866 में बागी ठाकुरोंका दमन कर अमरचन्दजी ने उन्हें कठोर दण्ड दिया। एवं सांडवे के विद्रोही ठाकुर जैतसिंह को पकड़ कर 80000) रुपये जुर्मानेका लिया। सं० 1866 में मैणासर के बीदावतों पर आक्रमण कर वहाँके ठाकुर रतनसिंहको रतनगढ़ में पकड़ कर १-रा.ब.पं. गौरीशंकर हीराचन्द ओझा लिखित बीकानेर राज्यका इतिहास / २-यह विज्ञप्तिपत्र सिंघी जैन ग्रन्थमालासे प्रकाशित विज्ञप्ति लेख संग्रहमें छपा है। ३-अनूप संस्कृत लाइब्रेरीमें आपके लिए लिखा हुआ एक गुटका है, जिसमें आपके पुत्रादिकी जन्मपत्रियां व स्वाध्यायार्थ अनेक रचनाओंका संग्रह है। "Aho Shrut Gyanam"
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________________ फांसी दी। इसी प्रकार सीधमुख आदिके विद्रोही ठाकुरों को भी दमन कर मरवा डाला। सं० 1871 में चूरूके ठाकुर के बागी होनेपर अमरचन्दजी ने ससैन्य आक्रमण किया और चूरू पर फतह पाई। इन सब कामोंसे प्रसन्न होकर महाराजा ने इन्हें रावका खिताब, खिलअत और सवारीके लिये हाथी प्रदान किया। इनके पश्चात् इनके पुत्र केशरीचन्द सुराणाने महाराजा रतनसिंह के समय राज्यकी बड़ी सेवाएं की। इन्होंने भी अपने पिताकी तरह राज्यके बागियों का दमन किया, लुटेरों को गिरफ्तार किया। ये राज्यके दीवान भी रहे थे। महाराजा ने इनकी सेवासे प्रसन्न होकर इन्हें समय समय पर आभूषण, ग्राम आदि देकर सम्मानित किया। अमरचन्दजी के ज्येष्ठ पुत्र माणिकचन्दजी ने भी राज्यकी अच्छी सेवा की और सरदारशहर बसाया। माणकचन्दजी के पुत्र फतहचन्दजी भी दीवानपद पर रहे और राज्यकी अच्छी सेवाएं की। वैद परिवार में मुहता अबीरचन्दजी ने डाकुओं को वश करनेमें बुद्धिमानी से काम लिया और बीकानेर राज्यकी ओरसे देहली के कामके लिए वकील नियुक्त हुए। सं० 1884 में डाकुओंके साथ की लड़ाई में लगे घावोंके खुल जानेसे उनका शरीरान्त हो गया। इसके पश्चात् मेहता हिन्दूमल ने राज्यकी वकालत का काम संभाला और बड़ी बुद्धिमानीसे समयसमय पर राज्यकी सेवाएं की। इन्होंने सं० 1888 में महाराजा रतनसिंहजी को बादशाह से 'नरेन्द्र (शिरोमणि )' का खिताब दिलाया, भारत सरकार को सेनाके लिए जो 22000) रुपये प्रति वर्ष दिये जाते थे, उन्हे छुड़वाया, एवं हनुमानगढ़ और बहावलपुर के सरहदी मामलों को बुद्धिमानी से निपटाया। सं० 1867 में महाराजा रतनसिंहजी व महाराणा सरदारसिंहजी ने इनके घरपर दावतमें आकर इनका सम्मान बढ़ाया। स्व. महाराजा श्री गंगासिंहजी ने आपकी सेवाओं की स्मृतिमें 'हिन्दूमल कोट' स्थापित किया है। इनके लघु भ्राता छौगमलजीने सरहदी मामलों को सुलझा कर राज्यकी बड़ी सेवाएं की। वेदों और सुराणोंमें और भी कई व्यक्तियोंने राज्यके भिन्न-भिन्न पदोंपर रहकर बड़ी सेवाएं की। जिनके उपलक्ष में राज्यकी ओरसे उन्हें कई गांवोंकी ताजीमें और पैरों में सोनेके कड़े मिलना, राज्यकी ओरसेविवाहादि का खर्च पाना, मातमपुरसी में महाराजाका स्वयं आना आदि कार्यों द्वारा सम्मानित होना उनके अतुलनीय प्रभावका परिचायक है / हिन्दूमलजीको व उनके पुत्र हरिसिंहजीको भी 'महाराव' का खिताब राज्यकी ओरसे प्रदान किया गया। हरिसिंहजी ने भी राज्यकी ओरसे वकालत आदिका काम किया। इसी वैद परिवारके वंशज राव गोपालसिंहजी कुछ वर्ष पूर्व तक आबूमें बीकानेर की ओरसे वकील रहे हैं। ये हवेलीवाले बैद कहलाते हैं। इस परिवार को ताजीम आदि-गांव मिले हुए हैं। बीकानेर के बैद परिवार में मोतियों के आखावाले' वैदोंका भी राज्यकी सुव्यवस्था में अच्छा हाथ रहा है / इस परिवारके प्रमुख पुरुष राव प्रतापमलजी व उनके पुत्र राव नथमलजी ने महाराजा सूरतसिंहजी व रतनसिंहजी के राज्यकालमें अच्छी सेवायें की। इन पिता-पुत्रको भी "Aho Shrut Gyanam
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________________ महाराजा साहबने 'राव'का खिताब, गांव ताजीम, सिरोपाव आदि प्रदान किये। राव प्रतापमलजीका केवल बीकानेर में ही नहीं किन्तु जोधपुर, जयपुर और जैसलमेर आदिके दरबारमें भी अच्छा सम्मान था। इनको कई खास रुक भी मिले हुए हैं। राव प्रतापमलजी ने प्रताप सागर कुआ, प्रतापेश्वर महादेव, प्रताप बारी आदि बनवाये। महाराजा रतनसिंहजी स्वयं इनके घर पर गोठ अरोगने आते थे। महाराजा ने इनके ललाट पर मोतियों का तिलक किया था, इसीलिये ये 'मोतियों के आखा (चावल) वाले बैद कहलाते हैं। महाराजा सरदारसिंहजी व डूंगरसिंहजी के राज्यकाल में मानमलजी राखेचा, शाहमलजी कोचर, मेहता जसवन्तसिंहजी, महाराव हरिसिंहजी वैद, गुमानजी बरड़िया, साह लक्ष्मीचन्दजी सुराणा, साह लालचन्दजी सुराणा, साह फतेहचन्दजी सुराणा, राव गुमानसिंह वैद, धनसुखदासजी कोठारी आदिने सैनिक, आर्थिक राजनैतिक आदि क्षेत्रोंमें अपूर्व सेवाएँ की तथा इनमें से कई राज्यकी कौंसिलके सदस्य भी रहे। महाराजा गंगासिंहजी के राज्यकाल में मेहता मंगलचन्दजी राखेचाने कौंसिलके सदस्य रहकर राज्यकी सेवायें की। महाराजा डूंगरसिंहजीको महाराजा सरदारसिंहजी के गोद दिलवाने में गुमानजी बरड़िया का प्रमुख हाथ था! इन्हें भी कई खास रुक्के एवं गांव आदि मिले हुए हैं। महाराजा गंगासिंहजी के राज्यकाल में मंगलचन्दजी राखेचा के अलावा सेठ चांदमलजी ढड्ढा सी० आई० ई० रायबहादुर शाह मेहरचन्दजी कोचरने रेवेन्यु कमिश्नर रहकर, शाह नेमचन्दजी कोचर ने बड़े कारखानेमें अफसर रहकर खजानेमें शाह मेघराजजी खजान्ची मेहता लूणकरणजी कोचरने नाजिम रहकर, मेहता उत्तमचन्दजी कोचर एम० ए० एल० एल० बी० डिप्यूटी जज हाईकोर्ट ने राज्यकी सेवा की। बीकानेर राज्यकी सेवा करनेमें विद्यमान उल्लेखनीय व्यक्ति ये हैं-मेहता शिववक्षजी कोचर रिटायर्ड अफसर जकातमंडी, शाह लूणकरणजी कोचर अफसर बड़ा कारखाना, मेहता चम्पालालजी कोचर बी० ए०, एल० एल० बी० नायब अफसर कन्ट्रोलर ऑफप्राइसेज, सरदारमलजी धाडीवाल अफसर खजाना, लहरचंदजी सेठिया एम० एल० ए० बुधसिंहजी बैद रिटायर्ड अफसर देवस्थान कमेटी आदि इनके अतिरिक्त और भी कई ओसवाल सजन तहसीलदार, लेजिरलेटिव एसेम्बलीके सदस्य आदि हैं। बीकानेर नरेश और जैनाचार्य राठौड़ वंशसे खरतर गच्छका सम्पर्क बहुत पुराना है। वे सदासे खरतरगच्छाचार्योंको अपना गुरु मानते आये हैं अतः बीकानेर के राजाओं का खरतर गच्छाचार्यों का भक्त होना स्वाभाविक ही है। साधारणतया राजनीति में हरेक धर्म और धर्माचार्यों के प्रति आदर दर्शाना आवश्यक होता है अतः अन्य गच्छोंके श्रीपूज्यों एवं यतियोंके प्रति भी बीकानेर १राव प्रतापमलजी के वंशजों की बहोमें इसका विस्तृत वर्णन है। 2 अब बीकानेर राज्यका राजस्थान प्रान्तमें विलय हो गया है। इसमें श्रीयुक्त चम्पालालजी कोचर शिखरचन्दजी कोचर, भंवरलालजी वैद आदि विभिन्न पदोंपर राजस्थान की सेवा कर रहे हैं। "Aho Shrut Gyanam"
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________________ नरेशोंका उचित आदर भी सब समय रहा है। अपनी व्यक्तिगत सुविधाओं ए' अन्य कई कारणोंसे भी उन्होंने कई पतियोंको अधिक महत्व दिया है। यहाँ इन सब बातोंका संक्षिप्त विवरण दिया जा रहा है। बीकानेर नरेशोंमें सर्वप्रथम महाराजा रायसिंहजी के युगप्रधान श्री जिनचन्द्रसूरिजीके भक्त होनेका उल्लेख पाया जाता है। सं० 1636 में मन्त्रीश्वर कर्मचन्द्र की प्रार्थनासे सम्राट अकबरके पाससे सीरोहीकी 1050 जैनमूर्तियें आप ही लाए थे। सं० 1641 में युगप्रधान श्री जिनचन्द्रसूरिजीका लाहोरमें मंत्री कर्मचन्द्रजी ने युगप्रधान पदोत्सव आपकी आज्ञा प्राप्त करके किया था इसका उल्लेख आगेके प्रकरणमें किया जायगा! इस उत्सवके समय कुंवर दलपतसिंह के साथ महाराजाने कई ग्रन्थ सूरिजी महाराज को वहरा कर उनके प्रति अपनी आदर्श भक्तिका परिचय दिया था। इनमें से अब भी कई प्रतियो भण्डारों में प्राप्त हैं। कविवर समयसुन्दरजी आचार्यश्री के प्रमुख भक्त नरेशोंमें आपका उल्लेख इस प्रकार करते हैं "रायसिंह राजा भीम राउल सूर नइ सुरतान / बड़-बड़ा भूपति वयण मानै दिये आदर मान / गच्छपतिः।" उनके पट्टधर श्रीजिनसिंहसूरिजी का भी महाराजा से अच्छा सम्बन्ध था। इसके पश्चात् महाराजा करणसिंहजी के दिए हुए बड़े उपासरे आदि के परवाने पाये जाते हैं। विद्याविलासी महाराजा अनूपसिंहजी का तो श्रीजिनचन्द्रसूरिजी एवं कविवर धर्मवर्द्धन आदिसे खासा सम्बन्ध था। कविवर धर्मवर्द्धनजी ने महाराजा के राज्याभिषेक होनेके समय अनूपसिंहजीका राजस्थानी भाषामें गीत बनाया था। श्री जिनचन्द्रसूरिजीने अनूपसिंहजी को कई पत्र दिये थे जिनमें से कुछ पत्रोंकी नकल हमारे संग्रहमें है। महाराजा अनूपसिंहजी के मान्य यतिवर उदयचन्द्रजी का "पाण्डित्य दर्पण" ग्रन्थ उपलब्ध है। महाराजा अनूपसिंहजी के पुत्र राजकुमार आनन्दसिंहजीने बहुत आदरसे खरतर गच्छके यति नयणसीजीसे अनुरोध कर सं० 17.6 विजयादशमोको भर्तृहरिकृत शतकत्रयका हिन्दी गद्य-पद्यानुवाद कराया जिसकी प्रति हमारे संग्रहमें व "अनूप संस्कृत लाइब्रेरी" में विद्यमान है। सं० 1752 में महाराजा अनूपसिंहजी ने सगरगढ़से खरतर गच्छीय संघको श्रीपूज्यजी की भक्ति करने के प्रेरणात्मक निम्नोक्त पत्र दिया : स्वस्ति श्री महाराजाधिराज महाराजा श्री अनूपसिंहजी वचनात् महाजन खरतरा ओस. वाल जोग्य सुप्रसाद पांचजोजी तथा श्री पूज्यजी श्री बीकानेर चौमासे छै सो थे घणी सेवा भगत करजो काण कुरब राखजो सं० 1752 आषाढ़ सुदि 1 मुकाम गढ़ सगर! महाराजा अनूपसिंहजी समय-समय पर श्री जिनचन्द्रसूरिजी को पत्र दिया करते थे जिनमेंसे 2 पत्र हमारे संग्रहमें विद्यमान है जिनकी नकल यहाँ दी जाती है :१-इन पत्रोंकी नकलें हम जैन सिद्धान्त भास्करमें प्रकाशित कर चुके हैं। "Aho Shrut Gyanam"
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________________ [ 8 ] स्वस्ति श्रीमहाराजाधिराज महाराज श्रीमदनूपसिंहप्रभुवर्याणां श्रीमज्जिनदेवभजनावाप्तसकलजिनेन्द्र ज्ञानवैभवेषु तृणीकृतजगत्सु सकल जैनाभिवंदितचरणेषु श्रीपूज्यजिनचन्द्रसूरेषु वंदनाततिनिवेदकमदः पत्रं विशेषस्तु पूर्व सर्वदेव भवदीयः कश्चित् यतिवरः अस्माकं सार्थे स्थितः इदानीमत्र भवदीयः कोपि नास्ति भवद्भिरपि तूष्णी स्थितमस्ति तत्किमिति अतः परं एकः उपाध्यायः पांचाख्यः अथवा जयतसी एतयो मध्ये यः कश्चिदायाति सत्वरं प्रेषणीयः चातुर्मास्यं अनागत्य करोति तथा विधेयं अस्मिन्नर्थे विलंबो न विधेयः किमधिक मिती पोष शु०८ श्री लक्ष्मीनारायणजी स्वस्ति श्री मन्महाराजाधिराज महाराज श्रीमदनूपसिंह प्रभुवर्याणां श्रीमत्सकल कार्य करण निपुणता पराङ्मुख वैराग्यपवमान संदोह वशंवद वशीकार संज्ञ वैराग्य भोग्य कैवल्येषु विषम विषय दोष दर्शन दूपित प्रपंच रचना चुलुकी करण कुम्भ संभव विभवेषु समस्त विद्या विद्योतमान विग्रहेषु श्री मद्भट्टारक जिनचन्द्रसूरिषु वन्दनाप्रणाम सूचकोयं जांबिकः। शमिह श्री रमेश करुणा कटाक्ष सन्दोहैः विशेषस्तु माला श्रीमद्भिः प्रेषिता सा अस्मत्करगता समजनि अन्यदपि यत्समीचीनं वस्तु अस्मद् योग्यं भवति चेदवश्यं प्रेषणीय। अन्यच्च श्रीमतां प्रावरणार्थं वस्त्रं दापितमस्ति तग्राह्य किं च इन्द्रभाण मुद्दिश्य भवद्विषयिकोदताः लिखिताः संति सोप्य स्मत्पत्रानुसारेण श्रीमतां समाधानं करिष्यति / श्रीमतां महत्वं मानोन्नतिं च विधास्यति / तथा च श्रीमदीयः कश्चित्कार्य विशेषो ज्ञाप्यः। श्रा०व०३ महाराजा सुजाणसिंहजी भी श्रीपूज्य श्रीजिनसुखसूरिजी व तत्कालीन विद्वान यतिवयों को बड़ी श्रद्धासे देखते थे। हमारे संग्रहमें आपके श्री जिनसुखसूरिजी को दिये हुए दो पत्र हैं जिनकी नकल नीचे दी जा रही है :---- श्री लक्ष्मीनारायणो जयति श्रीमत्तपः शाल विशाल वाचः सौजन्य धन्य द्युति कीतिभाजः। प्रताप संतापितपो विधाता राजन्ति राजद्यति वृन्द राजाः ॥शा षड्भारती भृजिनसौख्यसूरि नामान अत्यद्भुत शोभमानाः। श्री धर्मसिंहै परितः पुराण मुनीशमुख्यैः प्रसरन्मनीषैः / / 2 / / श्री राजसागरै विद्वद्धंस सेवित सागरैः / अन्यैः सत्कविभिः शास्त्र कला संकुल कोविदः // 3 // त्रिभिर्विशेषकम् / तदुचितं प्रहित छदनमुदा मरु महीश सुजाणनरेश्वरैः / सपरिवार सुमन्त्रि सुतैर्हितत्प्रणति संततयस्त्ववधार्यताम् ||4|| आर्या :-सदा स्वीय सुसेवकानां कार्यों परिष्टात्प्रचुरानुकम्पा / संपालनीया सरसाभृशं मुच्छश्व हृदि स्नेह सुधा प्रपूर्णः / / 5 / / कुशल मत्र सदवहि वर्तते शुभवतां भवता मनुकम्पया। मनसि कामयते भवतां हितं भविक मेव सुसेवक सज्जनः / / 6 / / "Aho Shrut Gyanam"
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[१] अत्रोचितं कार्य वरं सु पत्रेऽबिचाऱ्या चोत्सायं समग्र शंकाम् । विलिख्य संप्रेषणतो स्मदीये स्वान्ते भृशंतोष भृतो भवन्तु ॥७॥ अथान्येषां श्रीमतां सेवकानां प्रीतिपूर्व प्रणति पद्यानि लिख्यन्ते। खवासः सुपद्य न चानन्दरामोऽलिखत् संनति सन्नतः सद्दलेस्मिन् ।
पर प्रेम पूरेण पूरेणुकाद्राक्पुनः पाद शुद्धा सु संपादनीया | अतिशय मृदुभावाच्छोभने प्रीति पत्रे लिखति च वुध पाण्डे प्रेमरामः प्रणामम् । निज हृदि इति कृत्वा सेवकः शोभनस्स्यादयमपि मयि शस्वत्सुप्रसादो विधेयः ॥६॥ नृपमनुगतो जात्या यो सौश्रितः पडिहारतां लिखति च दले लक्ष्मीदासोलसल्ललिताक्षरैः । विमल मनसा प्रही भावो ममाप्यवधार्यतां स्वहदिचमुदाशेयः स्वामिन्सदा निज सेवकः।।१०।।
संवन्नवर्षि स्वर सोम युक्त मासे शुभे हैमन मार्गशीर्षे । दलेऽमले पञ्चमके तिथौ सहिने रवौ विष्णुगिरि विपश्चित् ।।११।। नृपाझया काव्य वरैः पलाशं यतीश योग्यं सविलासमेतत् ।
लिपी चकार क्रमतोत्र पत्रे सवैर्हि तत्संनतयोवधार्याः ॥१॥ युग्मम् । अन्योपियोमत्स्मारको भवेत्तं प्रति प्रणतिर्वक्तव्या। अत्राहर्दिवमस्मदादिभिर्भवदीय स्मरण मनुष्ठीयतेऽलं विदुषां पुरः प्रचुर जल्पनेन । यतिवर नयनसिंहान् प्रति पुनरभिवादये। श्री । श्री:।
श्री।
(२) श्री रामो जयति तराम्म् स्वस्ति श्रीमत्सकल गुण गण गरिष्ठ विशिष्ट परिष्ट विद्या विद्योतितानां षभारती भाना च्छादिताशान तिमिर विभातानां भ्राजमान भूरि भूमीश पाणि पल्लव सपल्लव पादपद्मानां विविधोत्तम मुकुटमणि निकरातप नीराजित चरण कमलानामनेक सेवकलोक वृन्द मौलि स्तवक स्तुतार्चित क्रम युगलानां विविध कीर्ति मूर्ति संमोहित भूमंडलाखण्ड तलानां विमल कला-कलित ललित मतिमत्पुरःसराणां नाना यतिवर निकर निषेवित पूर्वापर पार्श्व भागानां श्री वंदारु यतीश वृन्द वृन्दारकेन्द्राणाम्म्म् श्री श्री श्री श्री श्री जिनसुखसूरीणां पादपद्मोचितपत्रमदः श्री विक्रमपुरतः प्रेषितवंत श्रीमन्महाराजाधिराज महाराज श्रीसुजाणसिंहास्तदनारताहार्दिव प्रणति तयोऽवधार्याः परा प्रीतिः पार्या नवरतानुकम्पा संपालित तरांग संदोहा कार्या। अन्यत्याः समाचाराः श्रीमतां सदा सानुग्रह दृष्ट्या विशिष्ट शुभ युताः श्रीमतास्मदत्र भवतां सर्वदा सुख सेवधि भूता भूतयो भवंत्विति नित्यं मन्यामहे । भवंतः पूज्या स्था स्मदुपरि सर्वदा कृपा रक्षणतोधिका रक्षणीया। अत्रोचितं कार्य जातं पत्रेलिखित्वा प्रेषणीयं । ।श्रीः॥ चौपई । सबगुण ज्ञान विशेष विराजे, कविगण उपरि घन ज्यों गाजै
धर्मसीह धरणीतल मांही, पंडित योग्य प्रणति दल ताही ॥ १॥ दोहा-गुणसागर गणि प्राज्ञ पणि पंडित जोतिष हीर।
अवर कलायुत राज कवि सागर राज गभीर ॥ १॥
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। १० खवास आणंदराम रौ नमस्कार वाचिज्यो अपरं च पांडे पेमराजजी रौ नमस्कार अवधारिजो। गोसाई विष्णुगिरि को वन्दन अवधारिजो कृपा स्नेही रक्षणीयौ। अत्र भवता मत्र भवतामा जिगिमिषेच्छुभिरभिध्यानं विधीयते स्माभिः ।
॥ संवत्सप्तदश शताधिकै कोनाशीति (१७७६ ) तमे माघासित दल दुर्गा तिथाविदं लिपि कृतं पत्रम् । श्री ।
पत्रं महाराजान्तिके त्वरयालिखितं सतोत्रा तंत्रं निरस्य !
इनके पश्चात् महाराजा जोरावरसिंहजी उत्तराधिकारी हुए. वे भी अपने पूर्वजों की भांति खरसराचार्यों के परम भक्त थे। उन्होंने नवहर से निम्नोक्त पत्र बीकानेर में स्थित यति लक्ष्मी चन्द्रजी को दिया:
स्वस्ति श्रीमंत मियत्तयाऽप्रमित महिमानं परमात्मानमानम्य मनसा श्री नवहराज्जोरावर सिंहो विक्रमपुर वास्तव्य यति लक्ष्मीचन्द्र घु पत्रमुपढौकयते स्वकुशलोदंतमुदाहरति तत्रत्यं च कामयतेऽथ भवद्भि विसृष्टंयति प्रकृष्टैरुत्कृष्ट गुण निकर भृद्धि शिष्टैः श्छदन मंतःकरणे मामकीने भवत्संगममिव शर्म समुत्पादय हृद्य सत्पद्यरलंकृतं शस्त शंसि नयन गोचरी कृत्य सत्पद्य योजन कला कुशलान् भवतोऽजी गणम् तद्गत रहस्य च दवीयद्गमनं रूपं कर्ण जाह मानीय चिन्ता पारावारे मन्मनो निमग्नं तथात्र भवतो स्थिति रभि विश्चेत्तहि कर्हि चिदाययो स्संगममप्यभविस्यत् सांप्रतंतु तद् व्यवधानितं दृष्यते परं पत्र प्रत्यर्पणे दवीयसि तिष्टता निरालस्येन भवतायतितव्यं तथोप प्राप्त रूपे ग्रन्थाभ्यासे वासक्त प्रत्यहं भवितव्यं मन्तव्यं मिति च मिति मधु कृष्ण त्रयोदशी कर्मवाट्यां !!
___ इन महाराजाने उपयुक्त यति लक्ष्मीचन्द्रजी के गुरु यति अमरसीजी' की सुख सुविधाके लिए जो आज्ञापत्र भेजा उसकी नकल इस प्रकार है :
छाप॥ महाराजाधिराज महाराजा श्री जोरावरसिंहजी वचनात् राठौड़ भीयासिंहजी कुशलसिंहजी मुंहता रघुनाथ योग्य सुप्रसाद वांचजो तिथा सरसै में जती अमरसीजी छै सु थानै कामकाज कदै सु कर दीज्यो ऊपर......( सरौ) घणौ राखज्यो फागुण सुदि ४ सं० १७६६
इसके पश्चात् महाराजा गजसिंहजी का भी जैन यतियों से सम्बन्ध रहा है। उपाध्याय हीरानन्दजी के महाराजा को दिये हुए पत्र की नकलका अर्द्धभाग हमारे संग्रहमें है। उनके पुत्र महाराजकुमार राजसिंह जो पीछे से सं० १८४४ में बीकानेर की राजगद्दी बैठे थे, उन्होंने सं० १८४० में श्रीपूज्य श्रीजिनचन्द्रसूरिजी को एक पत्र दिया जिसकी नकल इस प्रकार है :
१-ये उदयतिलक जी के शिष्य थे, आपका दीक्षा नाम अमरविजय था। भाप सुकवि थे, आपकी कई रचनाएं उपलब्ध है। इन्हींकी परम्परामें कुछ वर्ष पूर्व स्वर्गवासी हुए उपाध्याय श्री जयचन्द्रजी यति थे।
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[ ११ ]
श्री लक्ष्मीनारायणजी भगत राजराजेश्वर महाराजा शिरोमण | माहाराजाधिराज माहाराज कुंवार श्रीराज सिंहजीस्य मुद्रा !
श्रीरामजी
॥ स्वस्ति श्री जंगम जुगप्रधान भट्टारक श्री जिणचन्दसूरिजी सूरेश्वरान् महाराजाधिराजा म्हाराज म्हाराज कुंवार श्री राजसिंघजी लिखावतुं निमस्कार वाँचजो अठारा समाचार श्री जीरे तेज प्रताप कर भला छै थांहरा सदा भला चाहीजै अप्रंच थे म्हारे पूज्य छौ थां सिवाय और कोई बात न छै सदा म्हांसूं कृपा राखौ छौ जिणसुं विशेष रखाजो और थे चौमासो ऊतरियां सताब बीकानेर आवो म्हानुं धांसुं मिलणरी चाहा है अठारी हकीकत सारी गुरजी तेजमाल नाइटै मनसुख रे कागद सुं जाणजो सं० १८४० रौ मिती काती बद १ मुकाम गांव देणोक ऽ ऽ
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१ जंगेम जुगे प्रध....... जिणचन्दसूरजी सूरेश्वरान् ।
महाराजा सूरतसिंह जैनाचार्यों व साधु-यतियोंके परम भक्त थे। श्रीमद् ज्ञानसारजी को तो आप नारायण - परमात्माका अवतार ही मानते थे । उनको दिये हुए आपके स्वयं लिखित पत्रों में से २० खास रुक्के हमारे संग्रह में हैं, जिनमें श्रीमद् के प्रति महाराजाकी असीम भक्ति पद पद पर लक रही है पाठकोंकी जानकारीके लिए दो एक पत्रोंका अवश्यक अंश यहां उद्धृत किया जाता है
"स्ति सर्व ओपमा विराजमान बाबैजी श्री श्री श्री श्री श्री १०८ श्री नारायण देवजी सुं सेवग सूरतसिंहरी कोड़ एक दण्डोत नमोनारायण वन्दणा मालुम हुवै अप्रंच कृपापत्र आपरौ आ वांचियां सुं बड़ी खुशवखती हुई आपरे पाये लागां दरसण कियां रौ सौ आणंद हुवो आपरी आज्ञा माफक मनसा वाचा कर्मणा कर कही बातमें कसर न पड़सी आपरी इग्या माफ (क) सारी बात से आनंद खुसी छै । नारायण री आग्यामें फेर सन्देह करसी तौ बाबाजी ऊतो नारायण रे घर से चोर हराम हुसी जैरो अठे उठे दोर्या लोकां बुरो हुसी वैनै पछै त्रिलोकीमें ठौर न छै आपरो सेवग जाण सदा कृपा महरवानी फुरमावै छै जैसुं विशेष कुरमावणरो हुकम हुसी दूजी अरज सारी धरमैनुं कही है सु मालुम करसी सं० १८७० मिती मिगसर सुदि १”
"आपरो दरसण करसुं पाए लागसुं ऊ दिन परम आणदरो नारायण करसी"
"आप इतरै पहला कठै पधारसी नहीं आ अरज है। दूजी तरह तौ सारा मालम छ सेनगटावर तो सरम नाराय (ण) नुं वा आपनुं छे हूंतो आपथकां निचित छु"
“आप उबारियां हमें बरसुं"
महाराजा सूरतसिंहजी की भांति उनके पुत्र महाराजा रतनसिंहजी जैनाचार्यों व यतियोंके परम भक्त थे। एक बार ज्ञानसारजी महाराज जेसलमेर के महारावलजीके बार-बार आग्रह करने पर वहां जानेका विचार करते थे तब महाराजाने उन्हें रोकनेके लिए कितना भक्तिभाव
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[ १२ ] प्रदर्शित किया जिसका श्रीमद् स्वयं अपने पत्र में जो कि जेसलमेरमे मुंहता जोरावरमलको दिया गया था-इस प्रकार लिखते हैं
श्री लालचन्दजी साहिबारे कथन सुं करनै म्हारौ पिण मनसोबो हुतो जेसलमेर रो आदेश इणे पिण सर्वतरै सुं करनै जेसलमेर रो ठहिरायो इणां रो कहण सुंम्हें पिण उठेहीज आवणो ठहरायो। राजाधिराज काती बदि १ रे दिन को० भीमराज हस्तू मने इसो फुरमायो. एक हूं तें कनै वस्तु मांगसुं सो जरूर मनै देणी पड़सी ! मैं आ कई मैं कांगै खनै आप कंइ मांगसी पछै काती सुदि १० रे दिन हजूर पधार्या खड़ा रहि गया विराजै नहीं जदमैं अरज कीनी महाराज विराजे क्यु नहीं जद फरमायो हुं मामू सो मनै दै तो वैसुं। जद मैं अरज करी साहिब फुरमावो सो हाजर जद फरमायो तूं अठै सुं विहार रा परणाम करै छै सो सर्वथा प्रकार विहार काई करण देवू नहीं। जद मैं अरज कीनी हूं तो बीकानेर इणहीज कारण आयौ छौ सो मने बीस वरस उपरंत अठै हुय गया सो म्हारी चिट्ठी आज ताई कोई नीकली नहीं जद फरमायो म्हारो इ पुण्य छ । जिण सु म्हारा विहारा रा परणाम हुवा है सो एकबार फलोधी जासु सो मैं आठबार अरज करी परं न मानी उपरंत मैं कह्यौ साहिबारी सीख बिना कोई जावू नहीं जद विराज्या । पर्छ ओर बातां घड़ी ४ ताई बतलाई उठतां खड़ा रहि गया फेर फुरमायौ जो फेर बैठ जाऊं जद मैं अरज कीनी साहिबां री सीख बिना कोई जाऊ नहीं। पछै आप पधार्या । सो माहरौ दाणौ पाणी बलवान छै तो एकबार तो इण वात नै फेर उथेलेसु पछै जिसौ दाणौ पाणी इति तत्त्वम्"
इस पत्रसे स्पष्ट है कि महाराजाके आग्रहसे श्रीमद् बीकानेरमें ही रुक गये थे। इस पत्रके लगभग ८ वर्ष पश्चात् श्रीमद्का स्वर्गवास हुआ था। श्रीजिनहर्षसूरिजीके पट्टधर श्रीजिनसौभाग्यसूरिजीको महाराजा रतनसिंहजीने ही पाट बैठाया था, व जयपुर गादीके श्रीजिनमहेन्द्रसूरिजी से गच्छभेद होने पर आप श्रीजिनसौभाग्यसूरिजीके पक्षमें रहे थे। इन्होंने बड़ी दृढ़ताके साथ अपने पक्षको प्रबल कर श्रीपूज्यजीके मान-महत्त्वको बढ़ाया। महाराजाके एक परवानेकी नकल यहाँ दी जाती है।
छाप
श्री रामजी "श्री दीवाण वचनात् बड़े उपासरै रे श्रीपूजजी श्री श्री १०८ श्री सौभाग्यसूरजीने गुरु पदवी देय दीवी छै सु बड़े उपासरै री पीढी सुं मरजाद रा परवाणा वा छाप रा कागद सीव रा वा सामग्री रा धरणे रा कर दिया छै तिके परवाणा मुजब सही छै और नया मरजाद मों बांध दीवी छै बडै उपासर री साध साधवीमें चूक पड़ जावै उण रो दुसमण मा सु अरज करै ते सुणे नहीं श्रीपूज्यजी उवा ने दण्ड प्रायश्चित देर सुध कर लेसी कदास श्रीपूजजी री इग्या नहीं मानसी आप मुराद वेसता फेर उवा नै परस्पर समझासी समभयां लागसी नहीं तो उव दरबार सुं अरज करासी औ साध साधवी म्हारी इग्या में नहीं चालै छै आप मुराद वेवै छै तारा दरबार सुं वान वठाय सिजा देसी तार वा श्रीपूजजी नै कवासी अम आपरी इग्या ओलंगा नहीं बोलंगा तो जिन इग्या रो लोपी हुवा तारा अरज कर छोडासी और साध साध्वी सहरमें भगवान रो मींदर
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[ १३ ] करासी वा गांवमें करासी तारै श्री दरबार रोहुकम छै फेलं सुंअरज करावण रो काम नहीं मास १ रु०१) चनण केसर धूप दीप रो दीया जासी जिके दिन सु मिंदर कराया जिके दिन सुं लेखो कर दिराय देसी और बड़े उपासरे री सीरणी री मरजाद बांध दीवी छ। सो राज रो दोसवारी वा० लणायत सुं डरनो वा और गुनह वालो मुसदी सहुकार और दी कोई दुजो उपासरै शरणै जाय बेठसी तेने श्री दरबार सुं वा० लगायत न उठासी। उठासी तेनै दरबार सिजा देसी और श्री बीकानेर रौ वसीवात सहकार वा० दुजी पटवां श्रीपूज कीया है ते नै न मानसी जो कोई मानसी तारा श्री दरबार और किसी ने बी मानणौ पूरो साबित हुय जासी तो वानै सिजा दी जांसी इये मरजाद मेटण री कोई चाकर अरज करसी तो परम हरामखोर हुसी इयमें कसर नहीं पड़सी म्हारो वचन छै। द० मुंहतो लीलाधर सं० १८६७ मीती माघ सुद १३ !
महाराजा सूरतसिंहजी और रत्नसिंहजी अनेक वार श्रीमद् ज्ञानसारजी के पास आया करते थे। सं० १८८६ के पत्रमें महाराजा रत्नसिंहजीने श्री पूज्यजीको लिखा है।
"थे म्हांहरा शुभचिंतक छौ। पीढियां सुं लगाय थां सवाय और न छै।"
महाराजा सूरतसिंहजीका जीवराजजीको दिया हुआ खास रुक्का हमारे संग्रहमें है। उन्होंने अमृतसुन्दरजी को उपाश्रय के लिए जमीन और विद्याहेमजी को उपाश्रय बनवाकर दिया था, जिनके शिलालेख यथास्थान छपे हैं। यति वसतचन्दजी को महाराजा के रोगोपशांति के उपलक्षमें प्रतिदिन ।।) आठ आना देनेका ताम्रपत्र बड़े उपाश्रय के ज्ञानभंडार में है। महाराजा दादासाहब के परम भक्त थे। उन्होंने नाल ग्राममें दादासाहब की पूजाके लिए ७५० बीघा जमीन दान की थी जिसका ताम्रशासन बड़े उपाश्रयमें विद्यमान है। महाराजा सरदारसिंहजी गौड़ी पार्श्वनाथजी में नवपद मंडलके दर्शनार्थ स्वयं पधारे और ५०) रुपया प्रति वर्ष देनेका फरमाया जिसका उल्लेख मन्दिरोंके प्रकरणमें किया जायगा। जैन मन्दिरों की पूजाके लिए राजकी ओरसे जो सहायता मिलती है उसका उल्लेख भी आगे किया जायगा।
___ महाराजा सरदारसिंहजीका भी जैनाचार्यों के साथ सम्बन्ध चालू था। उनके दिया हुआ एक पत्र श्रीपूज्यजीके पास है। महाराजा डूंगरसिंहजी ने मुनिराज सुगनजी महाराजके उपदेश' से शिवबाड़ीके जैन मन्दिरका निर्माण करवाया था। महाराजा गंगासिंहजीने जुबिलीके उपलक्ष में श्री चिन्तामणिजी और श्री महावीरजीमें चाँदीके कल्पवृक्ष बनवाकर भेंट किये थे। खरतर गच्छके श्रीपूज्योंको राजकी ओर से समय-समय पर हाथी, घोड़ा, पालकी, वाजिनादि, लवाजमा तथा उदरामसर, नाल, आदि जानेके लिए रथ भेजा जाता है। श्रीपूज्यजीकी गद्दी नशीनीके समय महाराजा स्वयं अपने हाथसे दुशाला भेट करते रहे हैं।
खरतर गच्छकी वृहद् भट्टारक शाखाके श्रीपूज्योंका बीकानेर महाराजाओं से सम्बन्ध पर ऊपर विचार किया गया है। खरतर गच्छकी आचार्य शाखाके श्रीपूज्यों एवं यतियोंकी भी राज्यमें मान मर्यादा और अच्छी प्रतिष्ठा थी पर इस विषयकी सामग्री प्राप्त न होनेके कारण
१-आपके सम्बन्धमें हमारी सम्पादित ज्ञानसार ग्रंथावली" में विशेष देखना चाहिए।
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[ १४ । विशेष प्रकाश नहीं डाला जा सका। कंवला गच्छ और पायचन्द गच्छके श्रीपूज्यादि से राजाओंके सम्बन्धके विषय में भी हमें कोई सामग्री नहीं मिली अतः अब केवल लौका गच्छकी पट्टावली में उनके आचार्यों के साथ राजाओं के सम्बन्ध की जो बातें लिखी है, वे संक्षेप से लिखते हैं :--
नागौरी लुका गच्छके स्थापक आचार्य हीरागररूपजी सं० १५८६ में सर्व प्रथम बीकानेर आये। चोरडिया श्रीचन्दजी की कोटड़ीमें वे ठहरे। इसके पश्चात इस गच्छका यहाँ प्रभाव जमने लगा। आचार्य सदारंगजीसे महाराजा अनूपसिंह मिले थे। औरङ्गाबाद के मार्गवत्ती बोर प्राममें मिलने पर महाराजा को सन्तति विषयक चिन्ता देख कर इन्होंने कहा था कि आपके ५ कुंवर होंगे, उनमें दो बड़े प्रतापी होंगे। महाराजा अनूपसिंहजीने अपने कुंवरोंकी जन्मपत्री के सम्बन्धमें सं० १७५३ में खास रुक्का भेज कर पुछवाया। और महाराजाकी मृत्युके सम्बन्धमें पूछने पर इन्होंने सं० १७५५ के ज्येष्ठ सुदि ६ को देहपात होनेका पहिले से ही कह दिया था। सं० १७५५ में सुजाणसिंहजी को २४ महीने में बीकानेर का राजा होनेका कहा था और वैसा ही होने पर इनका राज्य में प्रभाव बढने लगा। महाराजाने इनके प्रवेशके समय राज : प्रधान मन्दिर लक्ष्मीनारायणजी से संख भेजा था। इनके पट्टधर जीवणदासजीने सं० १७७८ में महाराजा से अपने दोनों उपाश्रयका परवाना प्राप्त किया। सं० १७८४ के आसपास महाराजा सुजाणसिंहजी के रसोली हो गई थी, औषधोपचार से ठीक न होने पर श्रीपूज्यजी भटनेरसे बुलाए गए और उन्होंने मंत्रित भस्म दी जिससे वे रोगमुक्त हो गए। महाराजा रत्नसिंहजीने चांदीकी छड़ी व खास रुक्का भेज कर श्रीपूज्य लक्ष्मीचन्दजी को बीकानेर बुलाया। सं० १७६५-६७ में भी महाराजा श्रीपूज्यजीसे मिले और उन्हें खमासमण ( विशेष आमन्त्रपूर्वक आहार बहराना ) दिया।
बीकानेरमें ओसवाल जातिके गोत्र एवं घरोंकी संख्या बीकानेर बसनेके साथ-साथ ओसवाल समाजकी यहाँ अभिवृद्धि होने लगी। वच्छावतों की ख्यातके अनुसार पहले जहां जिसे अनुकूलता हुई, बस गये और मंत्रीश्वर कर्मचन्द्रके समय के पूर्व यहां की आबादी अच्छे परिमाणमें होगई थी इससे उन्होंने अपनी दूरदर्शिता से शहरको व्यवस्थित रूपमें बसानेका विचार किया फलतः मंत्रीश्वरने नवीन विकास योजनाके अनुसार प्रत्येक जाति और गोत्रोंके घरोंको एक जगह पर बसाकर उनकी एक गुषाड़ प्रसिद्ध कर दी। इस प्रकारको व्यवस्था में ओसवाल समाज २७ गवाड़ोंमें विभक्त हुआ जिनमें से १३ गुवाड़ें खरतर गच्छ एवं प्रधान मन्दिर श्रीचिन्तामणिजी को और १४ गुवाड़ें उपकेश (कंवला) गच्छ और प्रधान मन्दिर श्रीमहावीरजी को मान्य करती थी इन २७ गुवाड़ोंमें पीछेसे गोत्रों आदि का काफी परिवर्तन हुआ और एक-एक गुवाड़में दूसरे भी कई गोत्र बसने लग गये जिनका कुछ आभास लगभग ५०-६० वर्ष पूर्वकी लिखित हमारे संप्रहस्थ १३-१४ गुवाड़के (मामलों की ) बिगत ( वही ) से होता है उसकी नकल यहां दी जा रही है।
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१५ 1
अथ चिन्तामणजी खरतर गच्छ की १३ गुवाड़ के नाम
१- गोलछा, खजानची, गुलगुलिया, मोणोत, रांका, छाजेड़, खटोल एक गुवाड़ छै I
२ - आदु गुवाड़ भमाणी अब नाहटा, भुगड़ी, कोठारी, सुखानी, रांका, गोलछा, खटोल गुवाड़ १
३ - रांगड़ीमें बोथरा, मालू गुवाड़ १
४ - सुखाणी, भदाणी गुवाड़ १
५- पुगलिया, बोथरा, सांढ, मिनीया, छोरिया, मुकीम, सीपाणी, बडेर, साह गुवाड़ १ ६-मरोटी, बुचा, बडेर, सुखलेचा, सेठी, नाडवेद, साह एक गुवाड़ बजे है !
७ - आदु गुवाड़ सिरोहिया, बांठिया, मलावत अब सेठिया, पारख, डागा, सीपानी एक गुवाड़ सेठियां री बजै छै ।
८- कोठारी, कातेला, सावणसुखा, पारख, ढढा एक गुवाड़ कोठास्यारी बजे है ।
६ - वेगाणी, पारख, कावड़िया, कात्रक, मिश्रप गुवाड़ एक बजे वेगाण्यांरी ।
१० - डागा, राजाणी गुवाड़ एक ही है दूसरी जातवी नहीं ।
११ - आदु गुवाड़ वेगड़ा, बाफणा, अब दसाणी, सुखाणी, लालानी, पटवा, मोणोत, लोढा, सोनावत, तातेड़, ढढा गुवाड़ १ जात ६ भेली बसे ।
१२ - डागा पूजांणी प्रोलबाला गुवाड़ १ छै ।
१३ -- वच्छावत, डागा गुवाड़ १ बजे छै । ये तेरह गुवाड़ का नाम जानवा ।
अथ महावीरजी कवलै गच्छकी १४ गुवाड़ों के नामः ।
१ - गवाड़ आदु छाजेड़, छजलानी, अब सुराणा, चोरड़िया, एक गुवाड़ सुराणारी बजे है २--जेठावत, गीडी गुवाड़ एक ही है और इसी भी केवैछेके पेली अठै भी छजलानी
भी रहते थे और अब बजे तो फकत सुराणां की है पिण सब भेले हैं और गुवाड़ दो है । ३- गवाड़ दांती सुराणा की ।
४ - गवाड़ सुनावत, मलावत, आदु अब अचारज विरामण रहते हैं कई सुनावत भी है। ५- गवाड़ अभाणी, दफतरी, बगसी, भुगड़ी गुवाड़ १ अभाण्यांरी ।
६- गवाड़ आंचलियां की आदु अब कावड़िया, वगसी गुवाड़ एक वजैछै वीरामण बहोत है उसमें ।
७- गवाड़ वेद मुंहता की एक ही गुवाड़ है।
८- गवाड़ सैसै बाबै पासै पुगलिया, सीपाणी, आदु अब कंदोई मेसरी ढूँढनी । ६--सीपाणियां री ।
१० - गवाड़ चोधरी आदु अब बांठिया, बरडिया, पुगलिया और मेसरी कोठारी । ११ - गबाड़ आसाणी, भवस्या की ।
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[ १६ ]
१२—गवाड़ आदु धाड़ेवाल, रामपुरिया, राखेचा, मोणोत अभी है और गुवाड़ रामपुरियां राखेचारी बजै छै ।
१३ - गुवाड़ वैद वागचारांरी प्रोल जिण मांयसुं कोचर निकल के जाय गूजरां में बस्या और न्यारो कराय के अपनी गुवाड़ बसाई। इण प्रोलमांहे सुं नीकल्योड़ा है सो जानना ।
१४ - गुवाड़ सींगीयां री चोकरी आदु अब सुराणा, चोरड़िया, सीपाणी इत्यादिक है । ये चव गुवाड़ का नाम जानना
इन सूचियों में ओसवाल सामज के गोत्रोंकी नामावली संक्षेप से उपलब्ध होती है, इनमें से वर्त्तमान में भमाणी, बेगड़ा, आंचलिया, लालाणी, छजलाणी, चौधरी, बागचार के एक भी घर अवशेष नहीं है। शिलालेख आदि अन्य साधनों के अनुसार यहाँ लिगा, रीहड़, फसला आदि गोत्रोंके घर भी थे, पर उनमें से अब एक भी नहीं रहा । सूची यह है :
वर्त्तमान समयके गोत्रोंकी
१ अभाणी
२ भारी
३ आसाणी
४ करणावट
५ कातेला
६ कावड़िया ७ कोचर
८ कोठारी
६ खटोल
१० खजान्ची
११ गिड़ी.या
१२ लड़ा
१३ गुलगुलिया १४ गोलछा १५ गंग
१६ चोपड़ा कोठारी
१७ चोरडिया
१८ छाजेड़ १६ छोरिया २० वरी
२१ झाबक
२२ डागा
२३ ढढ़ा
२४ तातेड़
२५ दफ्तरी
२६ दस्साणी
२७ दूगड़
२८ धाड़ीवाल
२६ नाहटा
३० पटवा
३१ पारख
३२ पुगलिया
३३ फलोधिया
३४ बगसी
३५ बच्छावत
३६ बडेर
३७ बधाणी
३८ बरढ़िया
३६ बहुरा
४० बांठिया
४१ बेगाणी
४२ बैद
४३ बोथरा
४४ बुचा
४५ बोरड़
४६ भणसाली
१७ भांडावत
४८ भुगड़ी
४६ भूरा
५० भोपाणी
५१ मरोटी
५२ मालू
५३ मिन्नी
५४ मुकीम
५५ मुणोत
५६ मुसरफ
५७ शंका
५८ राखेचा
५६ रामपुरिया
६० लसोक
६१ लूणिया
६२ लूणावत
६३ लोढा
६४ श्रीश्रीमाल
६५ सांड
६६ सावणसुखा
६७ सिंघी
६८ सिरोहिया
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६६ सीपाणी
७० सुखलेचा
७१ सुखाणी
७२ सुराणा
७३ सेठी
७४ सेठिया
७५ सोनावत
७६ हीरावत
७७ ललवाणी ७८ दुधेड़िया
घरोंकी संख्या
ओसवालका धर्म प्रेम शीर्षक में दिये हुए पौषध आदि धर्मकृत्य करनेवाले श्रावकों की संख्यासे तत्कालीन जनसंख्या एवं घरोंकी संख्या का कुछ अनुमान किया जा सकता है। निश्चित
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[ १७ ] रूपसे तो लाइणी- पत्रक से तत्कालीन घरोंकी संख्या ज्ञात होती है लाहा - पत्रक के अनुसार घरोंकी संख्या तीन हजारके लगभग है और वस्तीपत्रक जो कि संवत् १६०५ पोष वदि १ को सोजत निवासी सेवक कस्तूरचन्दने लिखाया है उसमें घरोंकी संख्या २७०० लिखी है पर वर्त्त मनमें उसका बहुत कुछ हास होकर अब केवल १५०० के लगभग घर ही रह गये हैं ।
बीकानेर में रचित जैन साहित्य
बीकानेरके वसानेमें ओसवाल -- जैन समाजका बहुत महत्वपूर्ण हाथ रहा है यह बात हम पहले लिख चुके हैं। ओसवालोंके प्रभुत्वके साथ साथ यहां उनके धर्मगुरुओंका अतिशय प्रभाव होना स्वाभाविक ही था, फलतः यहां खरतर गच्छके दो बड़े उपाश्रय (भट्टारक, आचार्योंकी गद्दी ), उपकेश गच्छुका उपाश्रय ( जिनके माननेवाले वैद होनेके कारण प्रधानतः वैदोंका उपाश्रय भी कहलाता है ) एवं कँवला गच्छके नामसे भी इसकी प्रसिद्धि है, पायचन्दगच्छके दो उपाश्रय यहाँ विद्यमान हैं। जिनमें उस गच्छ के श्रीपूज्यों नेताओंकी गद्दी है । अब उनमें से केवल खरतर गच्छके श्रीपूज्य ही विद्यमान हैं अवशेष गद्दियें खाली हैं, ये सब उपाश्रय संघके हैं जिनमें यतिलोग रहते हैं। सिंघीयोंके चौक में सीपानियोंके बनवाया हुआ तपा गच्छका उपाश्रय है पर कई वर्षोंसे इसमें कोई यति नहीं रहता । कहने का तात्पर्य यह है कि यहां इन सभी गच्छों का अच्छा प्रभाव रहा है फिर भी साहित्यिक दृष्टि से यहां के यतियोंमें संख्या और विद्वतामें खरतर गच्छके यति ही विशेष उल्लेखनीय हैं। उनके रचित साहित्य बहुत विशाल है क्योंकि उनका सारा जीवन धर्मप्रचार, परोपकार और साहित्य साधनामें ही व्यतीत होता था, उनके पाण्डित्य की धाक राजदरबारों में भी जमी हुई थी। उन्हीं यतियों और कुछ गोस्वामी आदि ब्राह्मण विद्वानोंके विद्याबल पर ही "आतमध्यानी आगरै, पण्डित बीकानेर” लोकोक्ति प्रसिद्ध हुई थी । यद्यपि यहां जैन यतियोंने बहुत बड़ा साहित्य निर्माण किया है पर हम यह केवल उन्हीं रचनाओं की सूची दे रहें हैं जिनका निर्माण उन रचनाओंमें बीकानेर में होनेका निर्देश है या निश्चतरूप से बीकानेर में रचे जानेका अन्य प्रमाणोंसे सिद्ध है। यह सूची संवतानुक्रमसे दी जा रही है, जिससे शताब्दीबार उनकी साहित्य सेवाका आभास हो जायगा । यद्यपि बीकानेर में रचे हुए ग्रंथ सं० १९७१ से पहले के संवत् नामोल्लेखवाले नहीं मिलते तो भी यहां जैन साधुओंका आवागमन तो बीकानेर बसनेके साथ साथ हो गया था, निश्चित है । अनूप संस्कृत लायब्रेरीमें सप्तपदार्थी वस्तु प्रकाशिनी वृत्ति पत्र १७ की प्रति है जो कि बीकानेर वसने के साथ साथ अर्थात् प्राथमिक दुर्ग निर्माणके भी दो वर्ष पूर्व लिखी गई थी, पुष्पिका लेख इस प्रकार है
इति श्री वृहद्गच्छ मण्डन पूज्य वा० श्री श्री विनयसुन्दर शिष्येन वा० मेघरत्नेन लेखि स्व पठनार्थ सप्तपदार्थी वृत्तिः ॥ संवत् १५४३ वर्षे आश्विन वदि ११ दिने श्री विक्रमपुरवरे श्री विक्रमादित्य विजयराज्ये ॥ ग्रंथान सर्व संख्या १८४८ अक्षर ११ ।
३
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। १८ 1 बीकानेर में लिखी हुई प्रतियोंकी संख्या प्रचुर है, वे हजारोंकी संख्यामें होनेके कारण उनकी सूची देना अशक्य है। रचनाकाल
ग्रंथ नाम
रचयिता सं० १५७१
लघुजातक टीका भक्तिलाभ (ख) सं० १५७२
उत्तमकुमार चरित्र चारुचन्द्र (ख०) स्वयं लिखित प्रति सं० १५८२
आचारांग दीपिका जिनहंससूरि (ख०) सं० १५८३ मार्गशिर आरामशोभा चौपाई
विनयसमुद्र उपकेश ग. सं० १६०२ वै० सु०५ सोम मृगावती चौपाई। विनयसमुद्र , सं० १६०२ फाल्गुन सीता चौपाई ( पद्मचरित्र) विनयसमुद्र " सं० १६०२ लगभग संग्रामसूरि चौपाई विमयसमुद्र , सं० १६०० लगभग निश्चय व्यवहार स्तवन पासचन्दसूरि नागपुरी तपा सं० १६०४
सुख-दुःख विपाक सन्धि धर्ममेरु (ख) सं० १६११ दीवाली सप्तस्मरण बालावबोध साधुकीर्ति' (ख०) सं० १६१८ माघ वदि. मुनिपति चौपाई हीरकलश (ख०) सं० १६२२ चैत्र सुदि १५ ललितांग कथा हर्षकवि (ख०) सं. १६३६ का० सु०५ अमरकुमार चौपाई हेमरत्न पूर्णिमागच्छ सं० १६४०
प्रश्नोत्तर शत्तक वृत्ति, आदिस्त० पुण्यसागर (ख०) सं० १६४३ मार्गसिर जीभदांत सम्वाद
हीरकलश हीयाली सं० १६४३ फा० ब०८ गजभंजन चौपाई मुनिप्रभ सं० १६४३
वच्छराज देवराज चोपाई कल्याणदेव सं० १६४४ नेमिदूत वृत्ति
गुणविनय सं० १६४६ रघुवंश वृत्ति
गुणविनय सं० १६४६
बारह भावना संधि जयसोम सं० १६५१
आरामशोभा चौपाई समयप्रमोद शब्दप्रभेद वृत्ति
ज्ञानविमल सं० १६५४
शीलोंच्छ नाम को० टीका श्रीवल्लभ सं० १६५५
उपकेश शब्द व्युत्पत्ति श्रीवल्लभ सं० १६६९ चैत्र शुकराज चौपाई
सुमतिकल्लोल सं० १६६२ चैत्र सुदि १० धर्ममंजरी चौपाई
समयराज १-बच्छावत मन्त्री संग्रामसिंहके आग्रहसे २-हीरकलशके अनुरोधसे ३-मन्त्री कर्मचन्द्रके आग्रहसे
सं० १६५४
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[ १६ रचनाकाल
ग्रन्थ नाम
रचयिता सं० १६६६ माघ सुदि ४ साधुसमाचारी बालावबोध धर्मकीर्ति (ख०) सं० १६७७ वैशाख सुदि ५ रामकृष्ण चौपाई
लावण्यकीर्ति' , सं० १६७५
सागरसेठ चौपाई
सहजकीर्ति सं० १६७७ लगभग
चन्दनमलयागिरि चौपाई भद्रसेन सं० १६८३ मार्गसिर
श्रावक कुलक
समयसुन्दर अष्टकत्रय
समयसुन्दर
आदिनाथ स्तवन सं० १६८६
पृथ्वीराजकृत कृष्णरुक्मिणीवेलि जयकीर्ति
बालावबोध सं० १६६२ माघ सुदि ५ नेमिनाथ रास
कनककीति सं० १६६६ कार्तिक सुदि ११ ।। रघुवंश टीका
सुमतिविजय मेघदूत टीका पञ्चक्खाण विचार गर्भित क्षेम
पार्श्व स्तवन सं० १७०३ (७१) माध सुदि१३ सोम थापच्चासुकोशल चौपाई सं० १७०५ अमृषिमण्डल वृत्ति
हर्षनन्दन सं० १७०७ दशवकालिक गीत
जयतसी सं. १७११ उत्तराध्ययन वृत्ति
हर्षनन्दन सं० १७२१ कयवन्ना चौपाई
जयतसी सं० १७२६ विजयदशमी अजापुत्र चौपाई
भावप्रमोद सं० १७३६ आषाढ़ बदि ५ लीलावती चौपाई
लाभवर्द्धन सं० १७३८ वै० सु० १० रात्रिभोजन चौपाई लक्ष्मीवल्लभ ,
सं० १७३६ माघ सु०२ सुमति नागिला चौपाई धर्ममन्दिर • सं० १७४२
चित्रसंभूति सझाय
जीवराज सं० १७४८ सुबाहु चौढालिया
बच्छराज (लों) पाण्डित्य-दर्पण
उदयचन्द्र (ख०) सं० १७५३ श्रा० सु०१३ छप्पय बावनी
धर्मवर्द्धन शीलरास
धर्मवर्द्धन
राजहर्ष
१- भणशाली करमघर आग्रहसे रचित २-कोठारी जैतसीके आग्रइसे रचित
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रचनाकाल सं० १७५६ सं० १७६३ पोष बदि १३ सं० १७६५ चैत्र सं० १७८४ चौमास सं० १९८६ विजयदशमी सं० १८०८ फाल्गुण ११ सं. १८१४ भा० ब०३ सं० १८१४ पो० सु. १० सं० १८३४ भा० सु०६
सं० १८४० सुदि १० सं० १८४३ कार्तिक सुदि १५ सं० १८४७ सं० १८५० सं० १८५० श्रा० सु०७ सं० १८५३ वै० ब०१२ सं० १८६० फा० सु० ११ सं० १८६७ सं० १८६६ विजयदशमी
। २० । अन्थका नाम
रचयिता आदिनाथ स्तवन
दयातिलक (ख०) द्रव्यप्रकाश
देवचन्द्र बीकानेर गजल
उदयचन्द्र सीता चौढालिया
दौलतकीर्ति (तपा) भर्तृहरि शतकत्रय हिन्दीपद्य नयणसिंह (ख) चौवीसी
जिनकीर्तिसूरि , चतुर्विशति जिनपंचाशिका रामविजय चित्रसेनपद्मावती चौपाई रामविजय गौतम रास
रायचन्द्र चेलना चौपाई
रायचन्द्र मौनएकादशी कथा
जीवराज धन्ना चौपाई
गुणचन्द्र मौनएकादशी कथा
जीवराज १६ स्वप्न चौढालिया
गुणचन्द्र जीवविचार वृत्ति
क्षमाकल्याण (ख०) प्रश्नोत्तर सार्द्ध शतक क्षमाकल्याण मेस्त्रयोदशी व्याख्यान क्षमाकल्याण जिनपालित जिनरक्षित चौपाई उदयरत्न श्रीपालचरित्र वृत्ति
क्षमाकल्याण प्रतिक्रमण हेतवः
क्षमाकल्याण सुपार्श्वप्रतिष्ठा स्त०
क्षमाकल्याण नवपद पूजा
ज्ञानसार चौवीसी
ज्ञानसार विरहमानवीसी
ज्ञानसार आध्यात्मगीता बालावबोध ज्ञानसार . मालापिंगल
ज्ञानसार निहालबावनी
झानसार राम लक्ष्मण सीता चौ० शिवलाल (लो०) षट्दर्शन समुच्चयबालावबोध कस्तूरचंद्र (ख०)
सं० १८७१ मा० शुदि १ सं० १८७१ भा० वदि १३ सं० १८७५ मार्गसिर सुदि १५ सं० १८७८ कार्तिक शु०१ सं० १८८० आषाढ़ शु०१३ सं० १८७६ फा० ०१ सं० १८८१ मार्ग कृ० १३ सं० १८८२ भा० वदि १ सं० १८६४ कै ०१
१-राजकुमार आनन्दसिंह के आग्रह से
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रचनाकाल
सं० १८६८ फा० शु० ७ सं० १९९३ श्रा० सुदि ५
सं० १६३० आषाढ़ वदि ११
सं० १६३० ज्येष्ठ सुदि १३ सं० १६३६
सं० १६४० श्रा० सु० १२
सं० १६४० आ० सु० १०
सं० १६४०मि० सु० ५
सं० १६४०
सं० १६४० सं० १९४५ लिखित
सं० १६४०
सं० १६५३
सं० १६५३ माघ सुदि १४ सं० १६५३ मिगसर सुदि २
सं० १६५५
सं० १६५८ श्रावण वदि १०
सं० १६६१ माघ वदि ३
सं० १६७८
( १ ) रिणी
रचनाकाल
[२१]
सं० १६३६
सं० १६८५
सं० १६८१
सं० १७२३
सं० १७२५ का० ब० ६
सं० १७४६ माघ व० १३
प्रन्थनाम
मदनसेन चौपई
पंचकल्याणक पूजा
४५ आगम पूजा सिद्धाचल पूजा
बारहव्रत पूजा
अष्टप्रवचनमाता पूजा
पांवज्ञान पूजा
सहस्रकूट पूजा
वीसस्थानक पूजा
आबू पूजा
विविध बोल संग्रह
चौवीस जिन पूजा चौदहराज लोकपूजा पंच परमेष्टि पूजा
दादाजी की पूजा
११ गणधर पूजा जम्बूद्वीप पूजा संघ पूजा
ज्ञान दर्शन पूजा
ग्रंथका नाम
मुनिमालिका
कल्पलता
यति आराधना
रचयिता
सवितराम ( लौं०) बालचंद्र
(ख० )
उत्तराध्यमन दीपिका
धर्म बावनी
पंचकुमार कथा
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रामलालजी
सुमतिमंडन
कपूरचंद
सुमतिमंडण
"
55
39
"5
""
39
35
आत्मारामजी (तपा )
"
11
चारित्रचंद्र धर्मवर्द्धन
सुमतिमंडण (०) बलदेव पाटणी दिगम्बर हर्षचंद्र (पायचंदगच्छीय)
सुमतिमंडन
(ख० )
अब बीकानेर रियासत के भिन्न भिन्न स्थानों में जो साहित्य निर्माण हुआ है, उसकी सूची दी जा रही है :
"
रामलालजी सुमतिमंडन
सुमतिमंडन
19
सुमतिमंडन विजयवल्लभसूरि (त०)
"
"
""
""
रचयिता
चारित्रसिंघ (ख० ) समयसुन्दर,"
"
33
$3
लक्ष्मीवल्लभ "
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[ २२ ]
(२) लूणकरणसर
रचनाकाल
सं० १६८५
(ख०)
ग्रंथका नाम
रचयिता विशेष संग्रह
समयसुंदर संतोष छत्तीसी दुरियर वृत्ति कल्पलता प्रारंभ विसंवाद शतक २८ लब्धिस्तवन ३४ अतिसय स्तवन जयवर्द्धन कुलध्वज चौपाई
विद्यविलास रात्रिभोजन चौपाई कमलहर्ष मानतुंग मानवती रास पुण्यविलास पार्श्वनाथ सलोका, पार्श्व स्तवन दौलत
धर्मवर्द्धन
"
सं० १६८४ सं० १९८४ श्रावण सं० १६८४ सं० १६८५ सं० १७२२ मेरु तेरस सं० १७३२ मिगसर सं० १७४२ सं० १७५० मिगसर सं० १७८० आश्विन सुदि ३ रवि सं. १८४० (३) कालू सं० १८१६ नेमिजन्म दिन (४) घड़सीसर सं० १६८२ भादवा सुदिह सं० १८०६ प्र० भादवा सुदि १५ (2) नोखा सं० १७१० सं० १७१५ (६) भटनेर सं० १४५० अषाढ सुदि १५
रत्नपाल चौपाई
रघुपत्ति
चन्द्रकीर्ति
धर्मबुद्धि पापबुद्धि चौपई श्रीपाल चौपाई
रघुपत्ति
दामन्नक चौपाई श्रावकाराधना
ज्ञानहर्ष राजसोम
वनराजर्षि चौपाई मेघदूत वृत्ति
कुशललाभ लक्ष्मीनिवास "
मूलदेव चापाई
रामचन्द्र
"
(७) नौहर सं० २०११ कार्तिक (८) महाजन सं० १७३७ फा० सु० १० (६) नापासर सं० १७४० जे० सु०१३ सं० १७८७ द्वि० भा०प०१ सं० १७१८ भा० सु०५
ऋषभदत्तरूपवती चौपाई
अभयकुशल
,
धर्मसेन चौपाई रात्रिभोजन चौपाई सुदर्शन चौपाई
यशोलाभ अमरविजय अमरविजय
,
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रघुपत्ति
{ २३ रचनाकाल
ग्रंथका नाम
रचयिता सं० १८०३ माघ सुदि १५ जैनसार बावनी
रघुपत्ति (ख) (१०) गारबदेसर सं० १८०६ विजयादशमी केशी चौपाई
अमरविजय (११) रायसर सं० १७७०
अरहन्ना सज्झाय
अमरविजय सं० १७७५
मुंछ माखण कथा सं० १८०३ धनतेरस
धर्मदत्त चौपाई
अमरविजय (१२) केसरदेसर सं० १८०३ प्रथम दिवस नन्दिषेण चौपाई
रघुपत्ति (१३) तोलियासर सं० १८२५ फाल्गुन
सुभद्रा चौपाई सं० १८२५ ऋषि पंचमी
प्रस्ताविक छप्पय बावनी रघुपत्ति (१४) देशनोक सं० १८६१ माघ सुदि ५ सुविधि प्रतिष्ठा स्तवन क्षमाकल्याण सं० १८८३
खंदक चौढालिया
उदयरत्न (१५) देसलसर सं० १८०८ लगभग
४२ दोषगर्भित स्तवन रघुपत्ति (१६) विगयपुर (विगा) सं० १६७६ प्र० आश्विन सुदि १३ गुणावली चौपाई ज्ञानमेरू (१७) बापड़ाऊ ( बापेऊ) सं० १६५० लगभग
विजयतिलककृत आदि स्त०बालावबोध गुणविनयर, (१८) रतनगढ़ सं० १९६५
तेरापन्थी नाटक यति प्रेमचन्द , (१६) राजलदेसर सं० १६२२ भादव सुदि ५ सोलहस्वप्न सज्झाय गा०२०हर्षप्रभ शिव्हीरकलश, (२०) सेरूणा सं० १६४७
वैराग्यशतक वृत्ति' पत्र २२ गुणविनय सं० १६५७
विचार रत्न संग्रह हुंडिका गुणविनय " (२१) पूगल सं० १७०७
दुर्जन दमन चौपाई झानहर्ष १-प्रोहितोंके राज्यमें दीपचन्दके आग्रह से २-ज्ञाननन्दनके आग्रह से ३ संधके आग्रह से ४ - कविके स्वयं लिखित बीकानेर ज्ञानभण्डारकी प्रतिमें :- सेरुन्नक नाम्निवर नगरे"
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२४ 1 बीकानेर के जैन मन्दिरों का इतिहास बीकानेर के वसने में जैन श्रावकों का बहुत बड़ा हाथ रहा है। वीरवर बीकाजी के साथ में आए हुए प्रतिष्ठित व्यक्तियों में बोहित्थरा वत्सराज आदि के नाम उल्लेखनीय है, यह बात हम पूर्व लिख चुके हैं। वह समय धार्मिक श्रद्धाका युग था अतः बीकानेर वसने के साथ साथ जैन श्रावकोंका अपने उपास्य जैन तीर्थक्करोंके मन्दिर निर्माण कराना स्वाभाविक ही है ~~ कहा जाता है कि बीकानेर के पुराने किलेकी नींव जिस शुभ मुहूर्त में डाली गई उसी मुहूर्त में श्री आदिनाथ मुख्य चतुर्विशति जिनालय (चउवीसटा) का शिलान्यास किया गया था। इस मन्दिर के लिए मूलनायक प्रतिमा मण्डोवर से सं० १३८० में श्री जिनकुशलसूरिजी प्रतिष्ठित लायी गई थी। सं० १५६१ में मन्दिर बन कर तैयार हो गया, यह बीकानेर का सब से पहला जैन मन्दिर है और बीकाजी के राज्यकाल में ही बन चुका था! लोकप्रवाद के अनुसार श्री भाण्डासर (सुमतिनाथजी ) का मन्दिर पहले बनना प्रारंभ हुआ था पर यह तो स्पष्ट है कि उपर्युक्त मन्दिर श्री चिन्तामणिजी के पीछे प्रसिद्धि में आया है। शिलालेख के अनुसार भांडासाह कारित सुमतिनाथ जी का मन्दिर सं० १५७१ में बन कर तैयार हुआ था यह संभव है कि इतने बड़े विशाल मन्दिर के निर्माण में काफी वर्ष लगे हों पर इसकी पूर्णाहुति तो श्री चिन्तामणि
-चौवीसटाजी के पीछे ही हुई है। इसी समय के बीच बीकानेर से शत्रुजय के लिये एक संघ निकला था जिसमें देवराज-वच्छराज प्रधान थे। उसका वर्णन साधुचंद्र कृत तीर्थराज चैत्य परिपादी में आता है। उसमें बीकानेर के ऋषभदेव ( चौवीसटाजी ) मन्दिर के बाद दूसरा मन्दिर वीर भगवान का लिखा है अतः सुमतिनाथ (भांडासर) मन्दिर की प्रतिष्ठा महावीर जी के मन्दिर के बाद होनी चाहिये। मं० वत्सराज के पुत्र कर्मसिंहने नमिनाथ चैत्य बनवाया जिसकी संस्थापना सं० १५५६ में और पूर्णाहुति सं० १५७० में हुई। लौंकागच्छ पट्टावली के अनुसार श्री महावीरजी (वैदों का) के मन्दिर की नींव सं० १५७८ के विजयादशमीको डाली गई थी पर यह संवत् विचारणीय है। श्री नमिनाथ जिनालय के मूलनायक सं० १५६३ में प्रतिष्ठित हैं। सोलहवीं शती में ये चार मन्दिर ही बन पाए थे। सं० १६१६ में बीकानेर से निकले हुए शत्रुजय यात्रीसंघ की चैत्यपरिपाटी में गुणरंग गणिने बीकानेर के इन चारों मन्दिरों का ही वर्णन किया है :
"मीकनयरह तणइ संघि उच्छव रली, यात्रा सेर्बुजगिरि पंथ कीधी वली ! मृषभ जिण सुमति जिण नमवि नमि सुहकरो, वोर सिद्धत्य वर राय कुल सुन्दरो।"
अतः संवत् १६१६ तक ये चार मन्दिर ही थे यह निश्चित है। इसके पश्चात् सं० १६३३ में तुरसमखानने सीरोही लूटी और लूटमें प्राप्त १०५० धातु-मूर्तिए फतेपुर सीकरी में सम्राट अकबरको भेंट की। ५-६ वर्ष तक वे प्रतिमाएं शाही खजाने में रखी रही व अंत में बीकानेर नरेश रायसिंहजी के साहाय्यसे मंत्रीश्वर कर्मचन्द्रजी सम्राटसे प्राप्त कर उन्हें बीकानेर १-बीकानेरके मन्दिरोंके बननेके पूर्व बोहिथरा देवराजने श्रीशीतलनाथ चतुर्विशति पट्ट बनवा कर सं० १५३४
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। २५ । लाये उनमेंसे वासुपूज्य मुख्य चतुर्विशति प्रतिमाको मूलनायक रूपसे अलग मन्दिर में स्थापितकी। इस प्रकार पांचवां मन्दिर श्री वासुपूज्य स्वामीका प्रसिद्ध हुआ। सं० १६४४ में बीकानेर से निकले हुए यात्री संघकी गुणविनयजी कृत चैत्य परिपाटी में इन पांचों मन्दिरोंका उल्लेख इस प्रकार पाया जाता है :
"पढम जिण बंदि बहु भाव पूरिय मणं, सुमति जिण नमवि नमि वासुपूज्यं जिनं । वीर जिण धीर गंभीर गुण सुन्दरं, कुसलकर कुसलगुरु भेटि महिमाधरं ॥२॥"
इससे निश्चित होता है कि सं० १६४४ तक बीकानेर में ये ५ चैत्य थे। इनके बाद सं० १६६२ मिती चैत्र वदि ७ के दिन नाहटों की गवाड़ स्थित विशाल एवं भव्य शत्रुञ्जयावतार ऋषभदेव भगवान्के मन्दिरकी प्रतिष्ठा युगप्रधान श्री जिनचन्द्रसूरिजीके कर कमलोंसे हुई । यद्यपि डागोंकी गवाड़के श्री महावीर जिनालयकी प्रतिष्ठा कब हुई इसका स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता फिर भी युगप्रधान जिनचन्द्रसूरिजीके विहारपत्र में सं० १६६३ में भी बीकानेर में सूरिजीके द्वारा प्रतिष्ठा होनेका उल्लेख होनेसे इस मन्दिरका प्रति ठा संवत् यही प्रतीत होता है। कविवर समयसुन्दरजी विरचित विक्रमपुर चैत्य परिपाटीमें इन सात मन्दिरोंका ही उल्लेख है। हमारे ख्यालसे यह स्तवन सं० १६६४ ७० के मध्य का होगा। इसी समयके लगभग श्री अजितनाथ जिनालयका निर्माण होना संभव है। नागपुरीतपागच्छके कवि विमलचारित्र, कनककीर्ति, धर्मसिंह और लालखुशाला इन चारों के चैत्य-परिपाटी स्तवनोंमें श्री अजितनाथजीके मन्दिरको अन्तिम मन्दिर के रूपमें निर्देश किया है। समयसुन्दरजी अपने तीर्थमाला स्तवनमें इन आठ चैत्योंका ही निर्देश करते हैं--"बीकानेर ज वंदियै चिरनंदियैरे अरिहंत देहरा आठ" इस तीर्थमालाका सर्वत्र अधिकाधिक प्रचार होने के कारण बीकानेरकी इन आठ मन्दिरोंवाले तीर्थके रूपमें बहुत प्रसिद्धि हुई। इसी समय दो गुरु मन्दिरोंका भी निर्माण हुआ जिनमेंसे पार्श्वचंद्रसूरि स्तूप सं० १६६२
और यु० जिनचन्द्रसूरि पादुका-स्तूप सं० १६७३ में प्रतिष्ठित हुए ! उपलब्ध चैत्य परिपाटियोंमें से धर्मसिंह और लालखुशालकी कृतिए सं० १७५६ के लगभगकी हैं एवं सं० १७६५ की बनी हुई बीकानेर गजलमें भी इन आठ मन्दिरोंका ही उल्लेख है। सं० १८०१ में राजनगरमें रचित जयसागर कृत तीर्थमाला स्तवन में "आठ चैत्ये बीकानेरे” उल्लेख है। अतः सं० १८०१ तक ये आठ मन्दिर ही थे इसके अनन्तर कविवर रघुपति रचित श्री शान्तिनाथ स्तवन में है। मन्दिर शान्तिनाथजीका (जो चिन्तामणिजीके गढ में हैं) सं० १८१७ मार्गशीष कृष्णा ५ के दिन पारख जगरूप के द्वारा बनवाकर प्रतिष्ठित होनेका उल्लेख है। अर्थात् लगभग १५० वर्ष तक बीकानेरमें उपर्युक्त ८ चैत्य ही रहे। इसके बाद १६ वीं शतीमें बहुत से मन्दिरोंका निर्माण एवं श्री अजितनाथजी (सं० १८५५) और गौड़ी पार्श्वनाथजी (सं० १८८६) के मन्दिरका जीर्णोद्धार हुआ। में श्री जिनभद्रसूरि पट्टधर श्रीजिनचन्द्रसूरिसे प्रतिष्ठा करवाई संभवतः यह प्रतिमा के बीकानेरमें आते समय साथ लाए और दर्शन पूजन करते थे। श्री महावीरजी (बैदों) के मन्दिरमें एक धातु प्रतिमा सं० १५५५ में विक्रमपुरमें देवगुप्तसूरि प्रतिष्ठित विद्यमान है। बीकानेर में हुई प्रतिष्ठाओंमें यह उल्लेख सर्व प्रथम है।
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[ २६ ] शिलालेखोंके अनुसार नाहटोंकी गुवाड़ में श्री आदिनाथजीके मन्दिरके अन्तर्गत श्री पार्श्वनाथजी सं० १८२६, नाहटोंकी गुवाड़में श्रीसुपार्श्वनाथजीका मन्दिर सं० १८७१, नाहटोंकी बगीची में पार्श्वनाथजीकी गुफा सं० १८७२ से पूर्व कोचरोंकी गुवाड़में पार्श्वनाथजी सं० १८८१, श्री सीमंधर स्वामी ( भांडासरजीके गढमें ) सं० १८८७, गौड़ी पार्श्वनाथजीके अन्तर्गत सम्मेतशिखर मन्दिर सं० १८८६. बेगानियोंकी गुवाड़के श्री चंद्रप्रभुजीका सं० १८६३, कोचरोंकी गुवाड़के श्री आदिनाथजी सं० १८६३, नाहटोंकी गुवाड़के श्री शान्तिनाथजी सं० १८६७ में प्रतिष्ठित हुए। अन्य मन्दिर भी जिनका निर्माणकाल शिलालेखादि प्रमाणोंके अभावमें अनिश्चित है, इसी शताब्दीमें बने हैं। २० वीं शताब्दीमें भी यह क्रम जारी रहा और सं० १९०५ में बैदोंके महावीरजीमें संखेश्वर पार्श्वनाथजीकी देहरी औरइसी संवत्में इसके पासकी देहरीमें पंचकल्याणक, सिद्धचक्र व गिरनारजीके पट्टादि प्रतिष्ठा, सं :६२३ में गौड़ी पार्श्वनाथजीके अन्तर्गत आदिनाथजी, सं० १९२४ में सेटूजी कारित श्री संखेश्वर पार्श्वनाथ मन्दिर, सं० १६३१ में रांगड़ीके चौकमें श्री कुथुनाथजीका मन्दिर, सं० १९६४ में श्री विमलनाथजीका मन्दिर (कोचरोंमें ) प्रतिष्ठित हुआ। सं० १६६३ में दूगड़ोंकी बगीचीका गुरु मन्दिर, सं० १९६७ महो० रामलालजीका गुरुमन्दिर प्रतिष्ठित हुआ। सं० १९८७ में रेलदादाजीका जीर्णोद्धार हुआ।। उपाश्रयादिके अन्य कई मन्दिर भी इसी शताब्दीमें प्रतिष्ठित हुए हैं पर उनके शिलालेखादि न मिलनेसे निश्चित समय नहीं कहा जा सकता। सं० २००१ वै० सुदी ६ को कोचरोंकी बगीची पार्श्वजिनालय और गुरुमन्दिरकी प्रतिष्ठा हुई है। बोरोंकी सेरीमें भी श्री महावीर स्वामी एक नया मन्दिर निर्माण हुआ जिसकी प्रतिष्ठा सं० २००२ मार्गशीर्ष कृष्णा १० को हुई। अब उपर्युक्त मन्दिरोंका पृथक्-पृथक रूपसे संक्षिप्त परिचय नीचे दिया जा रहा है
श्री चिन्तामणिजीका मन्दिर यह मन्दिर बाजारके मध्यमें कन्दोइयोंके दुकानों के पास है। जैसा कि पूर्व कहा जा चुका है, बीकानेर दुर्ग के साथ-साथ इसका शिलान्यास होकर सं० १५६१ के आषाढ़ शुक्ला ६ रविवार को पूर्ण हुआ। शिलालेखसे विदित होता है कि इसे श्री संघने राव श्रीबीकाजीके राज्यमें बनवाया था। मूलनायक श्री आदिनाथ मुख्य चतुर्विशति प्रतिमा सं० १३८० में श्री जिनकुशलसूरि प्रतिष्ठित और नवलखा गोत्रीय सा० नेमिचंद्र कारित, जो कि पहले मंडोवरमें मूलनायक रूपमें थी, यहाँ प्रतिष्ठितको गई। चतुर्विशति प्रतिमा होनेके कारण इस मन्दिरका नाम "चौवीसटाजी" प्रसिद्ध हुआ। सतरहवीं शतीमें इसका नाम श्रीसार एवं एक अन्य कविने “चउवीसटा चिन्तामणि" लिखा है। १८ वीं शताब्दीके चैत्य परिपाटी स्तवनोंमें "चडवीसटाजी" लिखा है किन्तु अब वह नाम विस्मृत होकर श्री चिन्तामणिजीके नामसे ही इस मन्दिरकी प्रसिद्धि है, जब कि "चिन्तामणि" विशेषण साधारणतया श्री पार्श्वनाथ भगवानके सम्बोधन में ही प्रयुक्त होता है।
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[ २७ । सं० १५९१ में राव जयतसीके समयमें हुमायुंके भाई, कामरां ( जो लाहौरका शासक था) ने भटनेर पर अधिकार कर बीकानेर पर प्रबल आक्रमण किया। उसने गढ़ पर अधिकार कर लिया। उस समय उसके सैन्यने इस मन्दिरके मूलनायक चतुर्विशति पट्ट के परिकरको भग्न कर डाला, जिसका उद्धार बोहित्थरा गोत्रीय मंत्रीश्वर वच्छराज (जिनके वंशज वच्छावत कहलाए) के पुत्र मंत्री वरसिंह पुत्र मं० मेघा-पुत्र मं० वयरसिंह और मं० पद्मसिंहने किया। शिलालेखमें उल्लेख है कि महं० वच्छावतोंने इस मन्दिरका परघा बनवाया। मूलनायकजीके परिकरके लेखानुसार संवत् १५६२ में श्री जिनमाणिक्यसूरिजीने पुनः प्रतिष्ठा की। इसके पश्चात सं० १५६३, १५९५ और १६०६ में श्री जिनमाणिक्यसूरिजीने कई प्रतिमाओं एवं चतु. विशति जिन मातृकापट्टकी प्रतिष्ठा की।
इस मन्दिरमें दो भूमिगृह हैं जिनमें से एकमें सं० १६३९. में मंत्रीश्वर कर्मचन्दके लायी हुई १.५० धातु प्रतिमाएँ रखी गईं। सम्भवतः इन प्रतिमाओंकी संख्या अधिक होनेके कारण प्रतिदिन पूजा करनेकी व्यवस्थामें असुविधा देखकर इन्हें भण्डारस्थ कर दी होंगी। इन प्रतिमाओंके यहाँ आनेका ऐतिहासिक वर्णन उ० समयराज और कनकसोम विरचित स्तवनोंमें पाया जाता है, जिसका संक्षिप्त सार यह है :--
सं० १६३३ में तुरसमखानने सिरोही की लूटमें इन १०५० प्रतिमाओंको प्राप्तकर फतहपुर सीक्रीमें सम्राट अकबरको समर्पण की। वह इन प्रतिमाओंको गालकर उनमें से स्वर्णका अंश निकालनेके लिए लाया था। पर अकबरने इन्हें गलानेका निषेधकर आदेश दिया जहाँ तक मेरी दूसरी आज्ञा न हो, इन्हें अच्छी तरह रखा जाय । श्रावकलोगोंको बड़ी उत्कंठा थी कि किसी तरह इन्हें प्राप्तकी जाय पर ५-६ वर्ष बीत गये, कोई सम्राटके पास प्रतिमाओंके लानेका साहस न कर सका अन्तमें बीकानेर नरेश महाराजा रायसिंहको मंत्रीश्वर कर्मचन्द्रने उन प्रतिमाओंको जिस किसी प्रकारसे प्राप्त करनेके लिये निवेदन किया। राजा रायसिंहजी बहुत-सी भेंट लेकर अकबरके पास गये और उसे प्रसन्नकर प्रतिमायें प्राप्त कर लाए। सं० १६३६ आषाढसुदि ११ वृहस्पतिवारके दिन महाराजा, १०५० प्रतिमाओंको अपने डेरेपर लाये, और आते समय उन्हें अपने साथ बीकानेर लाए। जब वे प्रतिमायें बीकानेर आई तो मंत्रीश्वर कर्मचन्दने संघके साथ सामने जाकर बड़े समारोहके साथ प्रवेशोत्सव किया और उनमेंसे श्री वासुपूज्य चतुर्विशति पट्टको अपने देहरासरमें मूरनायक रूपमें स्थापित किया।
ये प्रतिमायें आज भी उसी गर्भगृहमें सुरक्षित है और खास-खास प्रसंगोंमें बाहर निकाल कर अष्टान्हिका महोत्सव, शान्ति-स्नानादिके साथ पूजनकर शुभ मुहूर्तमें वापिस विराजमान कर दी जाती हैं। गत वर्षों में सं० १९८७ में जैनाचार्य श्री जिनकृपाचन्द्रसूरिजीके बीकानेर
१ सं० १५९१ के मिगसर दि ४ को रात्रिके समय राव जयतसीने अपने चुने हुये १०९ वीर राजपूत सरदारों और भारी सेनाके साथ मुगलों की सेना पर आक्रमण किया इससे वे लोग लाहौरकी ओर भाग छूटे और गढ पर राव जैतसी का पुनः अधिकार हो गया।
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[ २८ ] चातुर्मास में का०सु० ३ को बाहर निकाली गई थी और मिती मिगसर बदि ४ को वापिस विराजमन की गई उसके पश्चात् सं० १६६५ में श्री हरिसागरसूरिजी के पधारने पर भादवा वदि १ को निकाली जाकर सुदि १० को रखी और सं० २००० में श्री मणिसागरसूरिजी के शुभागमन में उपधान तप के उपलक्ष्य में बाहर निकाली गई थी। हमने इन प्रतिमाओं के लेख सं० १६६५ में लिए थे पर उनमें से आधे लेखों की नकल खोजाने से पुनः सं० २००० में समस्त लेखोंकी नकल की। मान्यता है कि इन प्रतिमाओं को निकालने से अनावृष्टि महामारी आदि उपद्रव शान्त हो जाते हैं । अभी इन प्रतिमाओं की संख्या ११०१ है । जिसमें जिसमें २ पाषाण की १ स्फटिक की और शेष धातु निर्मित हैं ।
दूसरे भूमिगृह में पाषाण की खंडित प्रतिमायें और चरणपादुकायें रखी हुई हैं जिनके लेख भी इस ग्रन्थ में प्रकाशित किये गये हैं ।
सं० १६८३ में समयसुन्दरजी ने चौवीसटा स्तवन में इस मन्दिर की खास-खास प्रतिमाओं के वर्णन में चतुर्विंशति जिन मातृपट्ट, श्री जिनदत्तसूरि और श्री जिनकुशलसूरि मूर्ति का उल्लेख किया है । सहजकीर्ति ने भी पहले मंडप में वाम पार्श्व में मातृ पट्ट एवं जिनदत्तसूरि और जिनकुशलसूर मूर्तियों का उल्लेख किया है। कनककीर्ति ने पाषाण, पीतल और स्फटिक की प्रतिमायें मरुदेवी माता, जिनदत्तसूरि और जिनकुशलसूरि मूर्ति का उल्लेख किया है। सं० १७५५ में श्री लक्ष्मीवल्लभोपाध्याय ने सं० ३५ औ सं० ३६ की प्राचीनतम मूर्तियाँ, शत्रुंजय, गिरनार, समेतशिखर, विहरमान, सिद्धचक्र व समवसरण का पट्ट; कटकड़े में शांतिनाथ, पार्श्वनाथ, महावीर और विमलनाथजी के बिम्ब, प्रवेश करते दाहिनी ओर गौड़ी पार्श्व (सप्त धातु-मय), संभवनाथजी की श्वेत मूर्ति आदि बाँइ ओर, दोनों तरफ भरत, बाहुबली की काउसग्ग मुद्रा मूर्ति सप्त धातुमय सत्तरिसय यंत्र, २४ जिन मातृ पट्ट, स्फटिक पाषाण व धातु प्रतिमायें एवं दोनों दादा गुरुदेवों की मूर्तिओं का उल्लेख किया है ।
इस मन्दिर के दाहिनी ओर कई देहरियाँ हैं जिनमें श्री जिनहर्षसूरिजी के चरण, श्री जिनदत्तसूरि मूर्ति, मातृपट्ट, नेमिनाथजी की बरात का पट्ट, १४ राजलोक के पट्ट, सप्त पार्श्वनाथजी आदि मूर्तियाँ है । एक परिकरपर सं० १९७६ मि० ब० ६ को अजयपुर में महावीर प्रतिमा को राण समुदाय के द्वारा बनवाने का उल्लेख है । एक देहरी की पाषाणपट्टिका पर सं० १६२४ आषाढ सुदि १० वृहस्पतिवार को लक्ष्मीप्रधानजी के उपदेश से बीकानेर संघ के द्वारा बनवाने का उल्लेख है। मन्दिर के बांयी ओर श्री शांतिनाथजी का मन्दिर है जिसका परिचय इस प्रकार है
श्री शांतिनाथजी का मन्दिर
बीकानेर के मन्दिरों में यह ६ व मन्दिर हैं। इससे पहिले यहाँ आठ मन्दिर ही थे, यह हम आगे लिख चुके हैं। पाठक श्री रघुपत्तिजी के बनाये हुये स्तवन से ज्ञात होता है कि इसे पारख
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[ २६ ] जगरूप के वंश में मुहकम, सुरूप, अभयराज और राजरूप ने बनवा कर सं० १८१७ के मिती मिगसर बदि ५ गुरुवार के दिन प्रतिष्ठा करवाई थी किन्तु इस समय श्री पार्श्वनाथ भगवान को बड़ी धातुमय प्रतिमा विराजमान है जो सं० १५४६ जेष्ठ बदि १ गुरुवार ने दिन श्री जिनसमुद्र सूरिजी द्वारा प्रतिष्ठित है, न मालुम कब और क्यों यह परिवर्तन किया गया ? इस मन्दिर में पाषाण की मूर्तियां बहुत सी हैं पर उनके प्रायः सभी लेख पञ्ची में दबे हुए हैं ।
भांडाशाह कारित सुमतिनाथ मंदिर-भांडासर यह मन्दिर ( भांडासरजी का मन्दिर ) सुप्रसिद्ध राजमान्य श्री लक्ष्मीनारायण मन्दिर के पासमें है। वह मन्दिर ऊँचे स्थान पर तीन मंजिला बना हुआ होनेके कारण २०-२५ मीलकी दूरीसे दृश्यमान इसका शिखर भांडासाह की,अमरकर्ति का परिचय दे रहा है। यह मन्दिर बहुत ही विशाल, भव्य, मनोहर और कलापूर्ण है। मन्दिर में प्रवेश करते ही भक्तिभाव का संचार हो जाता है और भमती के विभिन्न सुन्दर शिल्पको देखकर भांडासाह का कला-प्रेम और विशाल हृदय का सहज परिचय मिलता है। तीसरे मंजिल पर चढ़ने पर सारा बीकानेर नगर और आस-पासके गांवोंका सुरम्य अवलोकन हो जाता है। इस मन्दिर के मूलनायक श्री सुमतिनाथ भगवान होने पर भी इसके निर्माता भांडासाह के नामसे इस की प्रसिद्धि भांडासरजी के मन्दिर रूपमें है। शिलालेखसे ज्ञात होता है कि सं० १५७१ के आश्विन शुक्ला २ को राजाधिराज श्री लूणकरणजी के राज्यकाल में श्रेष्ठी भांडासाह ने इस "त्रैलोक्य-दीपक" नामक प्रासाद को बनवाया और सूत्रधार गोदाने निर्माण किया । ___ संखवाल गोत्रके इतिहास में इन भांडासाह को संखवाल गोत्रीय सा० माना के पुत्र लिखा है । सामाना के ४ पुत्र थे-१ सांडा, २ मांडा, ३ तोड़ा, १ चौंडा। जब ये छोटे थे तो इनके संम्ब धियोंने श्री कीतिरत्नसूरिजी को इन्हें दीक्षित करने की प्रार्थना की, तब उन्होंने फरमाया - ये भाई लाखों रुपये जिनेश्वर के मन्दिर निर्माणादि शुभ कार्यों में व्यय कर शासनकी बड़ी प्रभावना करेंगे! वास्तव में हुआ भी वैसा ही, साहसांडा ने सत्तूकार ( दानशाला ) खोला, भांडाने बीकानेर में यह अनुपम मन्दिर बनवाया, तोड़ेने संघ निकाला और चौंडाने भी दानशाला खोली। साहभांडा के पुत्र पासवीर पुत्र वीरम, धनराज और धर्मसी थे। वीरम के पुत्र श्रीपाल पुत्र श्रीमलने जोधपुर में मन्दिर बनवाया। अब इस मन्दिर के विषय में जो प्रवाद सुनने में आये है वे लिखते हैं।
साहभांडा घीका व्यापार करते थे। चित्रावेलि या रसकुंपिका मिल जानेसे ये अपार धनराशिके स्वामी हुए। उनका इस मन्दिर को सात मंजिला और बावन जिनालय बनवाने का विचार या पर इसी बीच आपका देहावसान हो जानेसे साहसांडा या इनके पुत्रादि ने पूर्ण कराया। इनके धर्म-प्रेमके सम्बन्ध में कहा जाता है कि जब मन्दिर की नींव डाली गई तब एक दिन घो में मक्खीके पड़ जानेसे भांडासाह ने उसे निकाल कर अंगुली के लगे हुए घी को जूती पर
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रगड़ दिया यह देखकर कारीगरों ने सोचा जो इतनेसे घीके लिए विचार करता है, वह क्या मन्दिर बनवायेगा परीक्षार्थ कारीगरों ने सेठजी को कहा-इस मन्दिर के निरुपद्रव और सुदृढ़ होनेके लिए इसकी नींवमें घी, खोपरे डालना आवश्यक है। भांडासाह ने तत्काल सैकड़ों मन घी मंगवा कर नींवमें डालना प्रारंभ किया। कारीगरों ने विस्मित होकर घीको नीवमें डलवाना बंदकर दिया और कहा कि क्षमा कीजिये, हम तो परीक्षा ही लेना चाहते थे कि जो अंगुली के लगे घी को जूतीके रगड़ देते हैं वे मन्दिर कैसे बनवायेंगे ? भांडासाह ने कहा-हम लोग व्यर्थको थोड़ी चीज भी न गंवाकर शुभ कार्य में अपनी विपुल अस्थिरं संपत्ति को लगाने में नहीं हिचकते। और घीको यत्र-तत्र पोंछने, गिराने से जीव विराधना की सम्भावना रहती है अब तो यह घी जिस नींवमें डालने के निमित्त आया है उसी में डाला जायगा। ऐसा कह कर सारा घी नींवमें उंडेल दिया गया। इससे आपकी गहरी मनस्विताका परिचय मिलता है। कहा जाता है कि इस मन्दिरको बनवाने के लिए जल "नाल" गाँवसे और पत्थर जेसलमेर से मंगवाते थे। अतएव इस मन्दिर के निर्माण में लाखों रुपये व्यय हुए थे, इसमें कोई शक नहीं। कई वर्ष पूर्व बीकानेर के संघने जीणोंद्वार, व रंग व सुनहरे वेल पत्तियोंका काम कराके इसकी शोभामें अभिवृद्धि की है।
राजसमुद्रजीकृत स्तवन में इसे त्रिमूमिया और गुणरंग एवं लालचंद ने स्तवन में चौभूमिया और चौमुखी के रूप में उल्लेख किया है।
श्री सीमन्धर स्वामीका मन्दिर यह मन्दिर भांडासरजी के अहाते में सं० १८८७ में बना था। यहां मिती अषाढ़ शुक्ला १० को २५ जिन बिंबोंकी प्रतिष्ठा श्री जिनहर्षसूरिजी द्वारा होनेका उल्लेख उदयरत्न कृत स्तवन में पाया जाता है। शिलालेख में इस मन्दिर का निर्माण उ० क्षमाकल्याणजी गणिके शि० धर्मानंदजी के उपदेश से होनेका उल्लेख है। इस मन्दिर की एक देहरी में क्षमाकल्याणोपाध्यायजी की मूर्ति व आलोंमें कई साध्वियों की चरणपादुकाएँ हैं।
श्री नमिनाथजी का मन्दिर श्री भांडासरजी के मन्दिर के पीछे श्री लक्ष्मीनारायण पार्क में यह मन्दिर अवस्थित है। मंत्रीश्वर वत्सराज के पुत्र मं० कर्मसिंह ने यह मन्दिर सं० १५७० में बनवाया। मूलनायकजी की प्रतिष्ठा सं० १५६३ माघ बदि १ गुरुवार को श्री जिनमाणिक्यसूरिजी ने की, अन्य प्रतिमाओं के लेख पञ्चीमें दबे हुए हैं। यह मन्दिर भो विशाल, सुन्दर और कला-पूर्ण है। इस मन्दिर में जलका कुण्ड बंगाल आसाम के संघके द्रव्य सहाय्यसे चोरड़िया सीपानी चुन्नीलाल ने सं० १९२४ में बनवाया ! इस मन्दिर के अधिष्ठायक भोमियाजी बड़े चमत्कारी हैं और प्रति बुधवार को बहुत से लोग दर्शन करने आते हैं। कहा जाता है कि ये भोमियाजी मन्दिर निर्माता मंत्री कर्मसिंहजी स्वयं हैं।
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[ ३१ ]
श्री महावीर स्वामीका मन्दिर (बैदोंका चौक ) यह मन्दिर बैदों और अचारजोंके चौकके बीचमें हैं। इसके निर्माणके सम्बन्धमें नागौरी लुकागच्छकी पट्टावलीमें इस प्रकार उल्लेख पाया जाता है : -
"सं० १५४५ राव बीकैजी बीकानेर वसायौ तठा पछे सं० १५६६ माध सुदि ५ रयणुजी बीकानेर आया रायश्री वीकाजी राज्ये घरांरी जमीन लीवी। पछ बीकानेरमें रयणुजी आधो. चार राख्यो । हिवे सं० १५६२ श्री चउवीसटैजी रो मंदिर वच्छावता तथा सर्व पंचां करायौ। पछै कातो सुदि १५री पूजा करता रयणुजी कह्यौ आज पूजा पहला म्हे करसां तद वच्छावत कह्यौ साहजी म्हारौ करायौ मंदिर छै म्हारी मंडोवर सुं लायोड़ी प्रतिमा छै सो आजरी बड़ी पूजा म्हे करसां. काले थे करजो ! इणतरै माहोमांह बोलाचाली हुई। तद बच्छावतां कह्यौ साहजी इतरो जोर तो नवो देहरो करायनै करो तद रयणुजी देहरैसुं निकलने घरेआया भनमें घणा उदास हुयनै विचायौं नवो देहरो करायां बिना मूछ रहै नहीं। द्रव्य तो लगावनरी म्हारै गिनती छै नहीं पिण उणां रे मेंतफो (?) राखणो नहीं इसो मनमें विचार करने चीइसटजी जावणो छोडदियो पछै धणा ही विख्टाला फिर्या पिण रयणुजी गया नहीं तठा पछै रयणुजी नै कमादेनी प्रति मात काल (!) प्राप्त हुआ। तद वले नागोर भाई सांडेजी सोहिलजी बुलाय लीना तठा पछे एक दिवस भायां आगै वच्छावतां सुं बोलाचाली वार्ता कही तद भायां' र बेटा कह्यौ आपरी मर्जी हुवे जितरा दाम खरचो पिण नवोदेहरो करावो इण तरै भायां, वेटां सलाह करीनै रयणुजी नागोरमें रहे छै इणतरै रहतां रावी लूणकरणजी रा परवाणा रयणुजी आया तिवारै रयणुजी भांडैजी कमैजी नै कबीला समेत लारै लाया नगैजीने पिण सागे लाया रूपचंदजीने कबीले बिना सागै लाया रावी लूणकरणजी सुं मिल्या रु० ५००) नजरकर्या श्री दरबारसं बड़ी दिलासा दीवी और कह्यौ थे बड़ा साहूकार छौ सुथे तथा थारा टावरानै म्हारै शहरमें वसावौ विणज व्यापार करौ थारै अरज हुवै तो किया करो थारौ मुलायजो रहसी इणभांत श्रीदरबार दिलासा देयनै दुसालो दियो पछ घरे आया। इण तरै रहतां आषाढ चौमासो आयो तद रूपचंदजो भोगीभंवर कमोजीनुभाई पौसाक करने देहरै जावणने तैयारी हुवा तद रयणुजी कहो आपार वच्छावतांसु माहोमांहे बोलाचाली हुई सु देहरो नवो करायने बीकानेर में देहरै चालसा । इसो रयणुजी कह्यां थको रूपचंदजी कमोजी बोल्यां कियोड़ी पोसाक तो उतारा नहीं इण ही पौसाक श्री दरबार चालौ देहरैरी जमी लेवा । तिवारै सिरपेच १ रु० ११००) री किमतरो अर रुपैया हजार एक रोक लेइनै श्री दरबार गया। रुपैया र सिरपेच नजरकीनो तद, रावजी श्री लूणकरणजी फरमायो अरज करौ ! तिवारै रयणुजी अरजकरी-महाराज म्हे नवोमंदिर करावसां सो देहरै वास्तै जागांरी परवानगी दिवरावौ तिवारै श्री दरबार फरमायो आछी जागा सो थारी, जावो सैहरमें थारै चहीजे जितरी जमी देहरै वास्तै लेवो म्हारो हुकम छै पछै रयणुजी आपरै वल पढ़ती जमीन लेयनै सं० १५७८ आसोज
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। ३२ ] सुदि १० श्री महावीरजी रै देहरै री नीवरो पायो भर्यो तठा पर्छ ताकीदसु रूपचंदजी कमोजी नगोजी देहरै रो काम करावै छै रुपया हजार २५ देहरै वास्ते रयणुजी न्यारा राख दीना छै इणतरै देहरै रो काम हुयरेयो छ तिण समाजोगे सोहिलजी रो पुत्र रूपजी रो भाई खेतसीजी रो विवाह नागौर में मंड्यौ तिण ऊपरै रयगुंजी, रूपचंदजी, कमाजी, नागौर गया भांडोजी नगोजी बीकानेर रह्या। रयगुंजी नागौर जांवतां रूपचंदजीरे का सुं देहरै रे कामरीभोलावण नगैजीने संपी रुपैया हजार १५ सौंप्या अर कह्यौ म्हांनै नागोरमें मास १० तथा १२ लागसी सुं देहरैरो काम ताकीद सुं करावजो! इसी भोलावण देनै रयणुजी नागोर गया हिवै नगोजी लारै देहरैरे कमठाणे रो काम करावै छै तिण समाजोगे कोडमदेसर रो वासी वैद सोनो घरमें भूखो जण आयनै नगोजीनै कयौ मनै देहरै रे कमठाणे ऊपर राखो! इसो कह्या ठिकाणेदार जाण नगैजी कमठाणे ऊपर राख्यौ इणतरै राखतां थकां तीन पांती रो देहरो नगौजी सोनै हस्ते करायो तितरै रुपैया हजार १५ रयणुजी संप्या हुंता तिके लाग गया तिवारै सोने नगैजीने कयौ कमठाणैनै वले रुपीया देवो तिवारै नगैजी कह्यौ अबार काम ढोलौ करौ बाबोजी आयां वले कमठाणौ करावसां इण तरै तीन पातीरो देहरो महावीरजी रो करायौ।"
____ संभव है अवशेष काम बैदोंने करवाके पूर्ण किया हो! समयसुन्दरजीके स्तवनमें "कुंयले चैत्य करावियो धज दंड कलश प्रधान" लिखा है अतः इसकी प्रतिष्ठा कंवला ( उपकेश) गच्छके आचार्यने ही कराई है। इस मंन्दिर में ५ देहरियां है जिनमें सहस्रफणा पार्श्वनाथजीकी प्रतिष्ठा सं० १६०५ वैशाख सुदि १५ को खरतर गच्छ नायक श्रीजिनसौभाग्यसूरिजीने की थी। उसके पासकी देहरीमें समस्त वैद्य संघकारित गिरनारतीर्थपट्ट, नेमि पंच-कल्याणकपट्ट आदि की प्रतिष्ठा सं० १६०५ माघ शुक्ला ५ को उपकेश गच्छाचार्य श्री देवगुप्तसरिजीने की है। इस मंदिरके भूमिग्रहमें पहले बहुतसी प्रतिमाएं होनेका कहा जाता है पर अब तो मूल मंदिरसे निकलते बायें ओरकी देहरीमें भगवानके पब्बासनके नीचे ७५ धातु प्रतिमाएं सुरक्षित हैं। जिन्हें सं० २००० में उपधान तपके उपलक्ष्यमें बाहर निकाली गई थीं। कहा जाता है कि यह देहरी श्रीयुक्त मुन्नीलालजी वैद (देवावत ) ने बनवाई थी। यह मंदिर १४ गुवाड़का प्रधान मंदिर है।
श्री वासुपूज्यजीका मन्दिर
यह मंदिर श्री चिन्तामणिजीके पास जहाँ मत्थेरणोंके घर हैं, अवस्थित है। कहा जाता है कि यह बच्छावतोंका घर देरासर था। सं० १६३६ में सिरोहीकी लूटसे प्राप्त मूर्तियों में से श्री वासुपूज्य मुख्य चर्तविंशति पट्टको मूलनायकके रूपमें स्थापित किया। तभी से यह वासुपूज्यजीके मंदिरके नामसे प्रसिद्ध हुआ। गर्भगृहके दाहिनी और बायीं ओर दो देहरिये हैं। इस मंदिरसे सटा हुआ दिगम्बर जैन मंदिर है।
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[ ३३ ]
श्री ऋषभदेवजी का मन्दिर
यह मन्दिर नाहों की गुवाड़ में है। इसकी प्रतिष्ठा सं० २६६२ के चैत्र बदि ७ को युगप्रधान श्रीजिनचंद्रसूरिजीने की थी। इस समय अन्य ४० मूर्तियोंके प्रतिष्ठित होने का उल्लेख सुमति कल्लोल कृतस्तवन में है । मूलनायक श्री ऋषभदेवजी की प्रतिमा बड़ी मनोहर, विशाल ( ६८ अंगुलकी ) और प्रभाव होनेके कारण प्रतिदिन सैकड़ोंकी संख्या में नरनारी दर्शनार्थ आते हैं ! इस मंदिरको सुमतिकल्लोलजीने "शत्रुब्जयावतार" शब्दोंसे संबोधित किया है। सं० १६८६ मिति चैत्र बदि ४ को चोपड़ा जयमा श्राविकाके बनवाई हुई श्री जिनचन्द्रसूरि मूर्त्ति श्री जिनसिंहसूर चरण, महदेवीमाता व भरत चक्रवर्ती (हाथी पर आरूढ़) की मूर्तियों की प्रतिष्ठा श्री जिनराजसुरिजीने की थी उसके बाद सं० १६८७ ज्येष्ठ सुदि १० भौमवारको भरत- बाहुबलीकी प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा और सं० १६६० फागुण वदि ७ के गणधर श्री गौतमस्वामीके बिम्बकी प्रतिष्ठा श्री जिनराजसूरिजी ने की थी । भमतीमें पांच पांडवोंकी देहरी है जिसमें पांच पांडवोंकी मूर्तियां सं० १७१३ आषाढ बदि ६ को स्थापित हुई । कुन्ती और द्रौपदीकी मूर्तियों पर लेख देखने में नहीं आते। इस देहरीके मध्य में श्री आदीश्वरजीके चरण श्राविका जयतादे कारित व सं० १६८६ मार्गशीर्ष महीने में श्री जिनराजसूरिजी द्वारा प्रतिष्ठित है । उ० श्री धनराजके चरण मूलनायकजी की प्रतिष्ठा के समय के व एक अन्य चरण सं० १६८५ के हैं ।
श्री पार्श्वनाथजी का मन्दिर
यह मंदिर श्री ऋषभदेवजीके मन्दिर के अहाते में है। इसकी प्रतिष्ठा सं० १८२६ आषाढ़ सुदि ६ गुरुवार को श्री जिनलाभसूरिजीनेकी । यह मंदिर बेगाणी अमीचंदजीके पुत्र विभारामजी की पत्नी चितरंग देवी ओर मुलतानके भणसाली चौथमलजी की पुत्री वनीने बनवाया था | श्री महावीरजी का मन्दिर ( डागोंका )
यह मन्दिर श्री वासुपूज्यजी के पीछे और पुंजाणी डागोंकी पोलके सामने है । इस मन्दिर की प्रतिष्ठा का कोई निश्चित उल्लेख नहीं मिला पर श्रीजिनचंद्रसूरिजी के विहारपत्र में सं० १६६३ में "तत्र प्रतिष्ठा" लिखा है जिससे संभव है कि यह उल्लेख इसी मन्दिर के प्रतिष्ठा
सूचक है। मूलनायकजीकी पीले पाषाण की प्रतिमा है जिस पर कोई लेख नहीं पाया जाता । मन्दिर के दाहिनी ओर देहरी में सं० १९७६ मिती मिगसर वदि ६ को जांगलकूप ( जांगलू ) के वीर - विधि चैत्यमें स्थापित श्री शांतिनाथ भगवान की प्रतिमा का विशाल परिकर है जिसमें इसे श्रावक तिलक के निर्माण करवाने का उल्लेख है । विधि चैत्यका सम्बन्ध खरतरगच्छ से है, अतः तत्कालीन प्रभावक युगप्रधान श्रीजिनदत्तसूरि प्रतिष्ठित होना विशेष संभव है । लेखका 'गुणरत्न रोहणगिरि' वाक्य श्रीजिनदत्तसूरिजी के गणधर सार्धशतक के “गुण मणि रोहण गिरिणो" आदि पद से साम्य होनेके कारण भी इस सम्भावना की पुष्टि होती है ।
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[.३४ ]
श्री अजितनाथजी का मन्दिर
यह मन्दिर कोचरों की गुवाड़ में सिरोहियों के घरोंके पास है। जैसा कि हम आगे लिख चुके हैं इसका निर्माणकाल सं० १६७० के लगभग का है। मूलनायक श्री अजितनाथजी की मूर्ति सं० १६४१ की प्रतिष्ठित है पर अन्य स्थान से लायी हुई ज्ञात होती है। इसी मंदिर में सं० १६६४ वैशाख शुक्ला ७ को विजय सेनसुरि प्रतिष्ठित हीरविजयसूरि मूर्ति है। बाह्यमण्डप के शिलापट्ट में सं० १८७४ में दीपविजयजी के उपदेश से श्रीसंघके द्वारा प्रतिमंडप करानेका उल्लेख है और एक अन्य लेख में सं० १८५५ में इस मंदिर के जीर्णोद्धार वृद्धिविजय गणि के उपदेश से होनेका उल्लेख है ! उसके पश्चात् सं० १६६६ में इसका जिर्णोद्धार हुआ।
बीकानेर के प्राचीन एवं प्रधान ८ मंदिरों का परिचय उनके अन्तर्गत मंदिरों के साथ दिया जा चुका है। अब शहर के अन्य मंदिरों का परिचय देकर फिर बाहर के मंदिरों का परिचय दिया जायगा ।
श्री विमलनाथजी का मन्दिर
यह मंदिर कोचरोंकी गुवाड़ में अजितनाथजी के मंदिर के पास है। सं० १६६४ माघ शुक्ला १३ शनिवार को कोचर अमीचंद हजारीमल ने इसकी प्रतिष्ठा करवाई | मूलनायक प्रतिमा सं० १६२१ माघ सुदि ७ को राजनगर में खेमाभाई कारित और शांतिसागरसूरि प्रतिष्ठित है। हीरविजयसूरि और सुधर्मास्वामी की चरणपादुका के लेखमें इस मन्दिर के वास्ते सीरोहिया तेजमालजी ने मेहता मानमलजी कोचर के हस्ते २६४ गज और डागा दुलीचंद ने गज ६५ ॥ = डागा पूनमचंद की बहूके द्वारा गज १३८|| - जमीन देनेका उल्लेख मिलता है । श्री पार्श्वनाथजी का मन्दिर
यह जिनालय सं० १८८१ मिती जेठ सुदि १३ को हंसविजयजी के उपदेश से कोचरसिरोहिया संघने उपर्युक्त मन्दिर के पास बनवाया ।
श्री आदिनाथजी का मन्दिर
उपर्युक्त मन्दिर से संलग्न है इसके निर्माण का कोई शिलालेख नहीं है। मूलनायक जी सं० १८६३ माघ सुदी १० प्रतिष्ठित है।
श्री शांतिनाथजी का देहरासर
यह देहरासर उपर्युक्त मन्दिर के पास कोचरों के उपाखरे में है। इसके निर्माण का कोई उल्लेख नहीं मिलता। इसमें सं० १६६४ की प्रतिष्ठित साध्वी चंदनश्री की पादुका मौर सं० १६७२ की प्रतिष्ठित जैनाचार्य श्री विजयानंदसूरिजी की मूर्ति है।
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[ ३५ ]
श्री चन्द्रप्रभुजी का मन्दिर यह मन्दिर बेगाणीयों की पोलके सामने है। शिलापट्ट के लेखमें सं० १८६३ भा० शुक्ला ७ को समस्त बेगाणी संघ द्वारा प्रासादोद्धार करवा कर श्री जिनसौभाग्यसूरिजी से प्रतिष्ठा करवानेका उल्लेख है।
श्री अजितनाथजी का देहरासर यह रांगड़ी के चौकके पास श्री सुगनजी के उपासरे के ऊपर है। इसके निर्माण का कोई उल्लेख नहीं मिलता। मूलनायक प्रतिमा सं० १६०५ वैशाख शुदी १५ को कोठारी गेवरचंद कारित और श्रीजिनसौभाग्यसूरि प्रतिष्ठित है। इसके पासमें गुरु-मंदिर है जिसमें श्री जिनकुशलसूरिजी की मूर्ति सं० १९८८ माघ सुदि १० को नाहटा आसकरणजी कारित और उ० जयचन्द्रजी प्रतिष्ठित है । नीचे की एक देहरी में उ० श्रीक्षमाकल्याणजी को मूर्ति प्रतिष्ठित है।
श्री कुंथुनाथजी का मन्दिर ___ यह मंदिर रांगड़ी के चौकके मध्यमें है। इसकी प्रतिष्ठा सं० १६३१ मिति ज्येष्ठ सुदि १० को श्री जिनहंससूरिजी ने की। मूलनायकजी की प्रतिमा मिती वैशाख वदि ११ प्रतिष्ठित है। यह मंदिर उ० श्री जयचंद्रजी के स्वत्वमें है। इनकी गुरु परम्परा के ६ पादुकाओं की प्रतिष्ठा सं० १९५८ अषाढ़ सुदि ११ गुरुवार को हुई थी।
श्री महावीर स्वामीका मन्दिर रांगड़ी के चौक के निकटवर्ती बौहरों की सेरीमें स्थित खरतर गच्छीय उपाश्रय के समक्ष यह सुन्दर और कलापूर्ण नूतन जिनालय श्रीमान् भैरूँ दानजी हाकिम कोठारी की ओरसे बन कर सं० २००२ मिती मार्गशीर्ष शुक्ला १० के दिन श्रीपूज्य श्री जिनविजयेन्द्रसूरिजी द्वारा प्रतिष्ठित हुआ। बीकानेर में संगमर्मर के शिखरवाला यह एक ही जिनालय है। भगवान महावीर के २७ भव, श्रोपाल चरित्र, पृथ्वीचन्द्र गुणसागर चरित्र, आदि जैन कथानकों के भित्ति-चित्र बड़े सुन्दर निर्माण किये गये हैं मन्दिर में प्रवेश करते ही सामने के आलोंमें गौतम स्वामी और दादा साहब श्री जिनकुशलसूरिजी की प्रतिमाएं विराजमान हैं। पहले यह मंदिर उपाश्रय के ऊपर देहारसर के रूपमें था जहाँ श्रीवासुपूज्य भगवान मूलनायक थे, वे अभी इस मन्दिर के ऊपर तल्लेमें विराजमान हैं।
श्री सुपाश्र्वनाथजी का मन्दिर यह मन्दिर नाहटों की गुवाड़ में छत्तीबाई के उपासरे से संलग्न है। इसकी प्रतिष्ठा सं० १८७१ माघ सुदि ११ को श्री जिनहर्षसूरिजी द्वारा करने का उल्लेख जीतरंग गणिकृत स्तवन में पाया जाता है मन्दिर के शिलालेख में भी सं० १८७१ माघ सुदि ११ को श्रीसंघके कराने और श्री जिनहर्षसूरिजी द्वारा प्रतिष्ठा कराने का उल्लेख है मूलनायक प्रतिमा युगप्रधान श्रीजिनचंद्र
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सूरिजीको प्रतिष्ठित है ! यहाँ सं० १६०४, १६०५, १६१६ में श्रीजिनसौभाग्यसूरिजी प्रतिष्ठित कई प्रतिमाएं हैं। दूसरे तल्लेमें दो देहरियां है जिनमें एकमें चौमुखजी हैं। खरतर गच्छ पट्टावली के अनुसार ऊपर तल्लेका मन्दिर श्रीसंघने सं० १६०४ माघ सुदि १० को बनाया और वहाँ श्री जिनसौभाग्यसूरिजी ने बिम्ब प्रतिष्ठा की। बगल की देहरी व ऊपर की कई प्रतिमाएँ सं० १९०४ ज्येष्ठ कृष्ण ८ शनिवार श्रीजिनसौभाग्यसूरि प्रतिष्ठित है । ये प्रतिमाएं यहीं प्रतिष्ठित हुई जिनका उल्लेख श्रीजिनसौभाग्यसूरि व अभय कृत स्तवनों में पाया जाता है।
श्री शांन्तिनाथजी का मन्दिर यह मंदिर नाहटों की गुवाड़ में खरतराचार्य गच्छके उपाश्रय के सन्मुख है। इसका निर्माण सं० १८६७ वैशाख शुक्ल ६ गुरुवार को श्रीसंघ ने श्रीजिनोदयसूरि के समय में कराया। मूलनायकजी की प्रतिमा गोलछा थानसिंह मोतीलाल कारित और श्री जिनोदयसूरि प्रतिष्ठित है ! बिम्ब प्रतिष्ठा महोत्सव गोलछा माणकचंदजी ने करवाया। इसके दोनों तरफ दो देहरियां हैं। एक अलग देहरी में गौतमस्वामी की मूर्ति व जिनसागरसूरि के चरण स्थापित हैं।
श्री पद्मप्रभुजी का देहरासर यह पन्नीवाई के उपाश्रय में है। इसकी प्रतिष्ठा कब हुई यह अज्ञात है ।
श्री महावीर स्वामीका मन्दिर यह मन्दिर आसानियों के चौकमें संखश्वर पार्श्वनाथजी के मन्दिर के संलग्न है। इसकी प्रतिष्ठा या निर्माणकाल का कोई उल्लेख नहीं मिलता।
श्री संखेश्वर पार्श्वनाथजी का मन्दिर यह मंदिर उपर्युक्त मंदिर और पायचंदगच्छ के उपाश्रय से संलग्न है। यह भी कब बना अज्ञात है।
बीकानेर शहर में परकोटे अन्दर जो मन्दिर हैं उनका परिचय दिया जा चुका है अब परकोटे के बाहर के मन्दिरों का परिचय दिया जा रहा है।
श्री गौड़ी पार्श्वनाथजी का मन्दिर यह मन्दिर गोगादरवाजा के बाहर बगीचे में है। सं० १८८६ माघ शुदि ५ को १२०००) रुपये खर्चकर जैन संघ द्वारा श्रीजिनहर्षसूरिजी के उपदेश से प्रासादोद्धार कराने का उल्लेख शिलालेख में है। मन्दिर के मूलनायकजी सं० १७२३ में आद्यपक्षीय खरतर श्री जिनहर्षसूरिजी द्वारा प्रतिष्ठित है। मन्दिर की दाहिनी ओर श्री समेतशिखरजी का मन्दिर है जिसमें श्री समेतशिखरजी का विशाल पट्ट सं० १८८६ माघ शुक्ला ६ को सेठिया अमीचंद आदिने बनवाया और श्री जिनहर्षसुरिजी के करकमलों से प्रतिष्ठा करवाई। इस मन्दिर में दोनों और दीवाल पर दो चित्र बने हुए हैं, जिनमें एक चित्र मस्तयोगी ज्ञानसारजी और अमीचंदजी
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[ ३७ ] सेठिया का व दूसरा श्री जिनहर्षसूरिजी का है। इस मन्दिर के सन्मुख खरतर गच्छीय मथेन सामीदास की जीवित छतड़ी और उसकी पत्नीकी छतड़ी सं० १७६० की बनी हुई है। इसके आगे गुरु पादुका मन्दिर है। जिसमें दादा श्री जिनकुशलसूरिजी के चरण और खरतर गच्छाचार्योंका पट्टावली पट्टक है जिसमें ७० चरण है, इसकी प्रतिष्ठा सं० १८६६ वैशाख शुक्ला को ३० क्षमाकल्याणजी ने की थी। इस मन्दिर के दाहिनी ओर श्री आदिनाथजी का मन्दिर है जिसे सं० १९२३ फाल्गुन बदि ७ को खरतर गच्छीय दानसागर गणिके उपदेश से सुश्रावक धर्मचन्द्र सुराणा की पत्नी लाभकुंवर बाईने बनवाया। यहां ओलीजीमें नवपद् मंडल की रचना सं० १६१६ से प्रारम्भ हुई, तत्कालीन महाराजा श्री सरदारसिंहजी ने स्वयं समारोह पूर्वक आकर ११) भेंट किये। सं० १६१७ के आश्विन सुदि ७ को पुनः नवपद मंडल रचा गया, महाराजा ने आकर ५०) रु० भेंट किये और प्रति वर्ष पूजाके लिए ५०) देनेका मंत्रीको हुक्म दिया इस मन्दिर के सन्मुख सुन्दर बगीचा लगा हुआ है जिसके कारण मन्दिर की शोभामें अभिवृद्धि हो गई है।
श्री संखेश्वर पार्श्वनाथ (सेढूजीका) मन्दिर यह मन्दिर उपर्यक्त बगीचे में प्रवेश करते दाहिने हाथकी ओर है। इसकी प्रतिष्ठा सं० १९२४ में समुद्रसोमजी (सेढूजी ) ने स्वयं इस मन्दिर को बनवा कर की। यद्यपि यह मन्दिर पार्श्वनाथ भगवान का है पर यतिवर्य सेढूजी के बनवाया हुआ होनेसे उन्हींके नामसे प्रसिद्ध है। मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी की प्रतिमा सं० १९१२ प्रतिष्ठित है। इस मन्दिर के दाहिनी मोर शालामें १ सुमतिविशाल २ सुमतिजय ३ गजविनय और समुद्रसोमजी के चरण प्रतिष्ठित थे जो शालाके भग्न हो जानेसे मन्दिर के पार्श्ववर्ती श्रीमद् ज्ञानसारजी.के समाधिमंदिर में रख दिये गये हैं।
श्री ज्ञानसार समाधिमन्दिर श्रीमद् ज्ञानसारजी १६ वीं शताब्दी के राजमान्य परम योगी, उत्तम कवि और खरतर गच्छके प्रभावशाली मुनिपुङ्गव थे। उन्होंने अपने अंतिम जीवन के बहुत से वर्ष गौड़ी पार्श्वनाथजी के निकटवर्ती ढढोंकी साल आदि में बिताये थे। सं० १८६८ में आपका स्वर्गवास हुआ। उनके अग्निसंस्कार स्थल पर यह मन्दिर बना जिसमें आपके चरण सं० १६०२ में प्रतिष्ठित है ।
कोचरोंका गुरु मन्दिर गौड़ी पार्श्वनाथजीसे स्टेशनकी ओर जाती हुई सड़कपर यह गुरुमंदिर हाल ही में बना है। इसकी प्रतिष्ठा सं० २००१ वैशाख सुदि ६ शुक्रवार को तपागच्छीय आ० श्रीविजयवल्लभसूरिजी ने की है इसमें प्रवेश करते ही सामने कलिकाल सर्वज्ञ श्रोहेमचंद्रसरि, जगद्गुरु श्रोहीरविजयसूरि और जैनाचार्य श्री विजयानंदसूरिजी की मूर्तित्रय स्थापित है। उसके पीछे की ओर श्री पार्श्वनाथ स्वामी का मन्दिर है जिसमें सं० २००० वैशाख सुदि ६ को रायकोट
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[३८]
में प्रतिष्ठित पार्श्वनाथ प्रतिमा है । गुरु मन्दिर के आगे पार्श्वयक्ष व मणिभद्र व पद्मावती देवी की मूर्तियाँ है ।
नयी दादावाड़ी
यह उपर्युक्त मन्दिर के पास मरोठी एवं दूगड़ों की बगीची में है। इसमें श्री जिनेश्वरसूरि, अभयदेवसूरि, श्री जिनकुशलसूरि और श्री जिनचन्द्रसूरि-पांच गुरुदेवों के चरण दूगड़ मंगलचन्द हनुमानमल कारित और सं० १६६३ मिती ज्येष्ट बदि ६ के दिन श्रीपूज्य श्री जिन--- चारित्रसूरिजी द्वारा प्रतिष्ठित है ।
महोपाध्याय रामलालजीका स्मृतिमंदिर
यह स्थान भी उपर्युक्त गंगाशहररोड पर श्री पायचन्दसूरिजी के सामने है। इसमें सं० १६६७ ज्ये०सु० ५ प्रतिष्ठित श्री जिनकुशलसूरि मूर्त्ति व चरण स्थापित है उसके सामने महो० रामलालजी यतिकी मूर्ति स्थापित है। जिसे उनके शिष्य क्षेमचन्द्रजी और प्रशिष्य बालचन्द्रजी यति ने बनवाकर सं० १६६७ मिती ज्येष्ठ सुदि ५ को प्रतिष्ठित की।
यति हिम्मत विजयकी बगीची
यह भी गंगाशहर रोडपर है इसमें श्री गौड़ी पार्श्वनाथजी, सिद्धिविजय ( सं० १६०२ ) और सुमतिविजय (सं० १८५३ प्रतिष्ठित ) के चरण हैं ।
श्रीपायचंद सूरिजी
यह मन्दिर श्री गंगाशहर रोडपर है। नागपुरीय तपागच्छ के श्री पार्श्वचन्द्रसूरिजी की स्मृति में सं० १६६२ पोषवदि १ को महं० नबू के पुत्र महं० पोमा ने श्री पार्श्वचन्द्रसूरिजी का स्तूप बनवा कर चरण स्थापित किये। इसके आसपास विवेकचन्द्रसूरि पादुका, लब्धिचन्द्रसूरि, कनकचन्द्रसूरि, नेमिचन्द्रसूरि आदिकी पादुकाएँ व स्तूप- शालादि हैं। पीछे से यहां श्री आदिनाथ भगवान का भव्य और शिखरबद्ध मन्दिर निर्माण किया गया है। इस मन्दिरमें भातृचन्द्रसूरिजी की मूर्ति सं ० १६६२ की प्रतिष्ठित है ।
श्री पार्श्वनाथ मंदिर ( नाहटोंकी बगेची )
यह मंडळावतों ( हमालों) की बारी के बाहर टेकरी के सामने है । यह स्थान पहले स्थानकवासी यति पन्नालालजी आदिका निवास स्थान था। हनुमान गजलमें जो कि सं० १८७२ में रचित है, इस बगीची के बाहर पार्श्वनाथ गुफा का उल्लेख किया है। मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी हैं, जिस पर कोई लेख नहीं है। अभी यह बगीची नाहटों की कहलाती है श्री मूलचन्दजी नाइटा ने अभी इसका सुन्दर जीर्णोद्धार करवाया है ।
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[ ३६ }
रेलदादाजी यह स्थान बीकानेर से १ मील, गंगाशहर रोड पर है। सं० १६७० में युगप्रधान श्री जिनचन्द्रसूरिजी का बिलाड़े में स्वर्गवास होनेके पश्चात् भक्तिवश बीकानेर के संघ ने गुरुमन्दिर बनवाकर सं० १६७३ को मिती वैशाख सुदि ३ को स्तूपमें चरण पादुकाओं की प्रतिष्ठा करवाई ! उसके पश्चात् सं० १९७४ (मेड़ता) में स्वर्गस्थ श्री जिनसिंहसूरिजी का स्तूप बनवाकर उसमें सं० १६७६ मिती जेठ बदि ११ को चरण स्थापित किए। इसके अनन्तर इसके आसपास यति, श्रीपूज्म, साधु-साध्वियों का अग्निसंस्कार होने लगा और उन स्थानों पर स्तूप, पदुकाएं, चौकियां आदि बनने लगी। अभी यहां १०० के लभभग स्तूप व चरण पादुकाएं विद्यमान हैं। प्रतिदिन और विशेष कर सोमवार को यहां सैकड़ों भक्त लोग दर्शनार्थ आते हैं। सं० १९८६ में श्री मोतीलालजी बांठिया की ओर से इसका जीर्णोद्धार हुआ है और सं० १९८७ ज्येष्ठ सुदी ५ रविवार को जिनदत्तसूरि मूर्ति, श्रीजिनदत्तसुरि, श्रीजिनचन्द्रसुरि, जिनकुशल सूरि और जिनभद्रसूरि के संयुक्त चरण पादुकाओं की प्रतिष्ठा हो कर युगप्रधान श्री जिनचन्द्रसूरिजीके स्तूप से संलग्न सुन्दर छत्रियों में स्थापित किए गए हैं। यहांके लेखों से बहुत से यति साधुओं के स्वर्गवास का समय निश्चित हो जाता है, इसलिए यह स्थान ऐतिहासिक दृष्सेि महत्त्व का है। बीचके खुले चौकमें संगमरमरका एक विशाल चबूतरा बना है जिसमें आदर्श साध्वीजी श्री स्वर्णश्रीजी की चरण पादुकाएं स्थापित हैं। चार दीवारी के बाहर आचार्य श्री जयसागरसूरिजी की छतरी भी हाल ही में बनी है।
शिवबाड़ी यह सुरम्य स्थान बीकानेरसे ३ मील की दूरीपर है। शिवजी (लालेश्वर महादेव) का मन्दिर होनेसे इस स्थान का नाम शिवबाड़ी है यहां के बगीचे में एक सुन्दर तालाव है। श्रावण महीने में तालाव भरजाता है और यहां कई मेले लगते हैं। श्रावण सुदि १० को जैन समाज का मेला लगता है उस दिन वहां पूजा पढाने के पश्चात भगवान की रथयात्रा निकालकर बगीचे में तालाव के तट पर लेजाते हैं और वहां स्नात्रपूजादि कर वापिस मन्दिर में ले आते हैं।
श्री पाश्वनाथजीका मन्दिर-इसे 3० श्री सुमतिमंडनगणि (सुगनजी महाराज) के उपदेश से बीकानेरनरेश श्रीडूंगरसिंहजी के बनवाने का उल्लेख मोतीविजयजी कृत स्तवन में है। दादासाहब के चरणों के लेखके अनुसार इसका निर्माण सं० १९३८ में हुआ था। मूलनायकजी की प्रतिमा सं० १९३१ में श्रीजिनहससूरि द्वारा प्रतिष्ठित है। दादासाहबके चरण व चक्रेश्वरीजी की मूर्ति भी सैंसकरणजी सावणसुखा की ओर से स्थापित है ।
उदासर बीकानेर से ६ मील की दूरी पर यह गांव हैं । यहां पोसवालोंके १०० घर हैं। श्री सुपार्श्वनाथजी का मन्दिर-इस मन्दिर को श्री सदारामजी गोलछा ने बनवाया था
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[ ४० 1
मूलनायक श्री सुपार्श्वनाथजी की प्रतिमा सं० १९३५ में श्री जिनहंससूरिजी द्वारा प्रतिष्ठित और बीकानेर संघ कारित है | यह मन्दिर सं० १६३५ के आसपास निर्मित हुआ ।
गंगाशहर
यह बीकानेर से १|| मील दूर है यहां ओसवालोंके ७५० घर हैं ।
रामनिवास
यह मन्दिर गंगाशहर में प्रवेश करते ही सड़क पर स्थित श्रीरामचन्द्रजी बांठिया की बगीची में है । इसके मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी की प्रतिमा सं० १६०५ वैशाख शु० १५ को श्री जिनसौभाग्यसूरिजी द्वारा प्रतिष्ठित है। इसका प्रबन्ध श्री रामचन्द्रजी के पौत्र श्रीयुक्त फौजराजजी बांठिया करते हैं ।
श्री आदिनाथजी का मन्दिर
यह मन्दिर गंगाशहर में सड़क के ऊपर हैं। श्री सुमतिमण्डन गणि ( सुगनजी महाराज ) कृत स्तवन में प्रभु की प्रतिष्ठा का समय १९०० मि० सु० १५ को होनेका उल्लेख है । पर स्तवन की अशुद्धं प्रति मिलने से संवत् संदिग्ध है। दादासाहब के चरणों पर सं० १९७० ज्येष्ठ बदि ८ को सावणसुखा संसकरणजी ने ऋषभमूर्त्ति, दादासाहब के चरण व चक्रेश्वरी देवी की मूर्ति को इस मन्दिर में पधराने का लिखा है। इसकी देखरेख श्री सुगनजी के उपाश्रय के कार्यकर्ता करते हैं ।
भीनासर
श्री पार्श्वनाथजी का मन्दिर
यह विशाल मन्दिर भीनासर के कुएँ के पास है । इसे सं० १६२६ मिती चैत्र सुदि १ के स्तवन में मंत्रीश्वर कोचर साहमलजी ने बनवाया लिखा है । इसके मूलनायक सं० १९८१ श्री जिनदत्तसूरि प्रतिष्ठित हैं। इसका प्रबन्ध कोचरों के हाथ में १७२ घर हैं । यह स्थान बीकानेर से ३ मील और गंगाशहर से
1 यहाँ ओसवालों के संलग्न है ।
श्री महावीर सिनोटरियम
उदरामसर के धोरों पर वैद्यवर श्री भैरवदत्तजी आसोपाने ये आश्रम स्थापित किया है । हिन्दू मन्दिरों के साथ जैन मन्दिर भी होना आवश्यक समझ कर श्री आसोपाजी ने विदुषी आर्या भी विचक्षणश्रीजी से प्रेरणा की, उनके उपदेश से जैन संघकी ओर से बीकानेर के चिन्तामणिजी के मन्दिरवत्र्त्ती श्री शान्तिनाथ जिनालय से पार्श्वनाथ प्रभु की मूर्ति ले जाकर स्वतन्त्र मन्दिर बनवा कर स्थापित की गई है ।
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[४१]
उदरामसर
श्री कुंथुनाथजी का मन्दिर
यह ग्राम बीकानेर से ७ मील दक्षिण में है । यहाँ ओसवालों के ३० घर हैं । सं० १६८८ में बोथरा हजारीमलजी आदि ने खरतर गच्छीय उपाश्रय के ऊपर इस मन्दिर को बनवा कर माघ सुदि १० उ० जयचन्द्रजी गणि से प्रतिष्ठा करवाई ।
श्री जिनदत्तसूरि गुरु मन्दिर
यह दादावाड़ी गांव से १ मील दूरी पर अवस्थित है इसकी चरण पादुकाओं पर सं १७३५ में बीकानेर के संघ बनवाने का लेख है। इसका जीर्णोद्धार जेसलमेर के सुप्रसिद्ध बाफणा बहादुरमलजी आदि ने श्री जिनहर्षसूरिजी के उपदेश से सं० १६६३ मिति आषाढ़ सुदि १ को करवाया था। इस मन्दिर के बाहर नबचौकिये के पास महो० रघुपतिजी और उनके शिष्य जगमालजी के स्तूप है कविवर रघुपतिजी यहाँ बहुत समय तक रहे थे उन्होंने उदरामसर के सम्बन्ध मैं इस प्रकार लिखा है।
-:
पूजौ ।
ए
प्रथम सुक्ख पोसाल मिष्ट पाणी सुख दूजौ । तीजौ सुख आदेश पादुका चौथे पांचमै सुख पारणौ खीर दधि मुगतौ खावौ । छट्ठे सुख श्री नगर दौड़ता आवो जावो । गुरु ज्ञान ध्यान श्रावक सको नमण करे सिर नामनै । रघुपति अठै सात सुख क्यूं छोड़ी ए गामने ||१|| बूढ़ा पैसुखिया रहाँ उदयरामसर आय । पूर पुण्य प्रमाणतें रघुपत्ति वृद्धि बाण सितक रूपक बास पेले सीपाणी श्रावक सोखव्या हरख आहार पाणी अवल प्रघलि बलि परिपाटी || आदर खाणी मान अपार खूब जसवारां खाटी ॥ पर गच्छ हुता पण प्रेम सुं कथन शुद्ध सेवा करी । इरीत आठ दस वरसमें श्री रघुपति लीला करी ॥
सवाय ||
वरणाया ।
सवाया ॥
यहां प्रति वर्ष भाद्रपद शुक्ला १५ को मेला भरता है जिसमें मोटर गाड़ी, इक्के, ऊँठ, घोड़े
आदि सैकड़ों सवारियों पर यात्री लोग एकत्र होते हैं। दादासाहब की पूजा, गोठे आदि होती हैं यह मेला सर्व प्रथम सं० १८८४ में श्रीमद् ज्ञानसारजी के शिष्य सदासुखजी ने चालू किया था जिसका उल्लेख सेवग हंसजी कृत गीतमें पाया जाता है।
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[ ४२ ]
सं० १६४४ की शत्रुंजय चैत्यपरिपाटी में गुणविनय गणि ने लिखा है कि संघने जेठ सुदि ६ को ओसियां पहुंच कर मेठ सुदि १३ को रोहगाम में श्री जिनदत्तसूरिजी को बन्दन किया फिर जेठ सुदि १५ को भीदासर (वर्तमान भीनासर) में स्वधर्मीवात्सल्यादि कर संघ अपने घर-बीकानेर लौटा। ओसियां से ७ दिन और भीनासर से २ दिन के रास्ते का रोहगाम जिसमें श्री जिनदत्त सूरिजी का स्थान था हमारे खयाल से उपरोक्त उदरामसर के निकटवर्ती दादावाड़ी वाला स्थान ही रोहमाम होना चाहिए ।
देशनोक
यह ग्राम बीकानेर से १६ मील दूरी पर है। बीकानेरसे मेड़ता रोड जानेवाली रेलवे लाइन का यह दूसरा स्टेशन है। यहाँ ओसवालों के ६०० घर हैं । यहाँ राजमान्य करणी माता का प्रसिद्ध स्थान है । यहाँ तीन जैन मन्दिर और एक दादावाड़ी है। परिचय इस प्रकार है। श्री संभवनाथजी का मन्दिर
यह मन्दिर आंचलियों के वासमें है । शिलापट्ट के लेख में इसकी प्रतिष्ठा सं० १८६१ माघ शुक्ला ५ को क्षमाकल्याणजी महाराज ने की लिखा है । वा० श्री कुशलकल्याण गणि के उपदेश से संघ ने इस मन्दिर को बनवाया था। शिलालेख में “पार्श्वनाथ देवगृहकारितं " लिखा है पर इसके मूलनायक सं० १८६ वैशाख शुक्ला ७ को जिनहर्षसूरि प्रतिष्ठित श्री संभवनाथ भगवानकी प्रतिमा है । उ८ श्री क्षमाकल्याणजी कृत स्तवनमें भी संभवनाथजी का नाम है । श्री शांतिनाथजी का मंदिर
यह मन्दिर भूके वास में है। सं० १८६१ माघ सुदि ५ को श्री अभयविशालजी के उपदेश के श्री संघ के शाला बनवाने का उल्लेख है। क्षमाकल्याण जी के स्तवन में देशनोक के सुविधिनाथ मन्दिर की प्रतिष्ठा सं० १८७१ माघ सुदि ५ को होने का उल्लेख है । देशनोक में श्री सुविधिनाथजी का अन्य कोई मंदिर नहीं है अतः संभव है इस मंदिर के मूलनायकजी पीछे से परिवर्तित किये गये हैं ।
श्री केसरियाजी का मंदिर
यह मन्दिर astra के उपाश्रय के पास है । यह मन्दिर थोड़े वर्ष पूर्व प्रतिष्ठित
हुआ है।
दादावाड़ी
यह स्थान स्टेशन के मार्ग में है। इसे सं० १६६५ ज्ये० सुदि १३ को उपाध्याय मोहनलालजीने स्थापित एवंप्रतिष्ठित किया । इसमें श्री अभयदेवसूरिजी, श्री जिनदत्तसूरिजी, मणिधारी श्री जिनचन्द्रसूरिजी एवं श्री जिनकुशलसूरिजी के चरण हैं। दादावाड़ी की शाला मैं सं० १८६४ आषाढसुदि १ को सुगुणप्रमोदजी के पीछे बिनयचंद्र और मनसुख के इसे
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[ ४३ ] कराने का शिलालेख लगा है। इसी समय के प्रतिष्ठित हाथीरामजी के चरण भी स्थापित हैं। इसका प्रबन्ध बीकानेर के उ० श्री जयचन्द्रजी यतिके शिष्य के हस्तगत है।
नाल यह गाँव बीकानेर से ८ मील दूरी पर है। कोलायत रेलवे लाइन का दूसरा स्टेशन है। गांव स्टेशन से लगभग १ मील दूर है, बीकानेर से प्रतिदिन मोटर-बस भी जाती है। पुराने स्तवनों में इसका नाम गढाला लिखा है। यहाँ अभी २३ घर ओसवालों के हैं। यहाँ की जलवायु अच्छी है। यहां दो जैन मन्दिर और श्री जिनकुशलसूरिजी का प्राचीन स्थान है।
श्री जिनकुशलसूरिजी का मन्दिर कर्मचन्द्र मंत्रि वंश प्रबन्ध के अनुसार मंत्री बरसिंहजी देरावर यात्रा के लिए जाते हुये यहाँ ठहरे। उन्हें आगे जाने में असमर्थ देखकर रातके समय गुरुदेव ने स्वप्न में दर्शन देकर यहीं उनकी यात्रा सफल करदी थी। अतः उन्होंने यहां गुरुदेव का स्थान बनवाकर घरण स्थापित किये। ये चरण बड़े चमत्कारी हैं, दूर होने पर भी कई लोग प्रति सोमवार को दर्शन पूजन करने जाते हैं। यहां कार्तिकसुदि १५ को मेला लगता है और फालगुन वदी १५ को भी पूजादि पढ़ाई जाती है। इसका जीर्णोद्धार सं० १६६६ में श्रीयुक्त भरूदानजी हाकिम कोठारी ने बहुत सुन्दर रूप में करवाया है। श्री जिनभक्तिसूरिजी और पुण्यशीलकृत स्तवनों में उल्लेख है कि बीकानेर के महाराजा श्री सुजाणसिंहजी की स्वर्गीय गुरुदेव के शत्रुओं के भय से रक्षा की थी । सं० १८७३ के वैशाखसुदि १ को महाराजा सूरतसिंहजी ने दादासाहब की भक्ति में ७५० बीघा जमीन भेंट की थी जिसका ताम्रशासन बड़े उपाश्रय में विद्यमान है।
दादासाहब के मन्दिर के पास एक चौकी पर चौमुख स्तूप है जिसमें उ. सकलचन्द्रजी और समयसुन्दरजी के चरण प्रतिष्ठित हैं। अन्य शालाओं में बहुत से चरण व कीर्तिरत्नसरि जी के स्तूप आदि हैं। पास ही खरतराचार्य शाखा की कोटड़ी में इस शाखा के श्रीपूज्यादिके चरणादि हैं।
श्री पद्मप्रभुजी का मन्दिर यह जिनालय गुरु मन्दिर के अहाते में है। इसकी प्रतिष्ठा पट्टाबलीमें सं० १६१६ वैशाख बदि ६ को श्री जिनसौभाग्यसूरिजी द्वारा होना लिखा है।
श्री मुनि सुव्रतजी का मन्दिर यह गुरु मंदिर के गढ़ से बाहर है। इसका निर्माण काल अज्ञात है। मूलनायकजी सं०१६०८ में श्री जिनहेमसूरिजी द्वारा प्रतिष्ठित हैं।
श्री जिनचारित्रसूरि स्मृति मन्दिर श्री जिनकुशलसूरिजी के मंदिर के बाहर दाहिनी ओर श्री दीपचंदजी गोलछा ने यह मंदिर बनवा कर श्रीपूज्य श्री जिनचारित्रसूरिजी की मूर्ति प्रतिष्ठित करवायी है।
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[ ४४ 1
.. जांगलू देशनोक से १० मील है, यह गाँव बहुत प्राचीन है। सं० ११७६ का जांगलकूप के उल्लेखवाला परिकर बीकानेर के डागों के श्री महावीरजी के मन्दिर में है। यहां अभी ओसवालों का केवल १ घर है।
__ श्री पार्श्वनाथजी का मंदिर सं० १८६० मिती कार्तिक वदि १३ को बनाये जानेका उल्लेख शिलापट्ट पर है। मूलनायक पार्श्वनाथजी और दादासाहव श्री जिनकूशलसुरिजी के चरण सं० १८८७ मिती आषाढसुदि १० को श्री जिनहर्षसुरिजी द्वारा प्रतिष्ठित हैं। सिद्धचक्रजी के यंत्र पर सं० १८८५ मिती आसोजसुदि ५ को जांगलू के पारख अजयराजजी के पुत्र तिलोकचन्दजी द्वार बनवाकर श्री जिनहर्षसूरिजी से प्रतिष्ठा कराने का उल्लेख है। यह मन्दिर भी पारखों का बनवाया हुआ है।
पांचू
__ ये देशनोक से लगभग २० मील की दूरी पर है, यहाँ श्री पार्श्वनाथजी का मन्दिर है जिसका निर्माण काल अज्ञात है।
नोखा-मंडी यह मंडी बीकानेर से मेड़ता जानेवाली रेलवे का (४० मील दूरी पर ) चौथा स्टेशन है। यहाँ ओसवालों के ७० घर हैं।
__श्री पार्श्वनाथजी का मंदिर इस मन्दिर के मूलनायकजी व गुरुपादुकादि जेसलसर के मन्दिर से लाये गये हैं। सं० १६६ मिती माघसुदि १४ को श्री विजयलक्ष्मणसूरिजी ने इसकी प्रतिष्ठा की।
यह गांव बीकानेर से २७ मील पश्चिम और कोलयत रेलवे स्टेशन से ६ मील है। यहां ओसवालों के २५ घर हैं। यहां दो मन्दिर और दो उपाश्रय हैं ।
श्री नेमिनाथजी का मन्दिर यह बेगानियों के बासमें है, इसके निर्माण कालका कोई उल्लेख नहीं मिलता और न मूलनायकजी पर ही कोई लेख है। इस मन्दिर में सप्तफणापार्श्वनाथजी की धातु मूर्ति पर सं० १०२१ "क्लिपत्यकूप चैत्ये स्नात्र प्रतिमा" का लेख है। श्रीजिनदत्तसूरि और श्रीजिनकुशलसूरिजी के चरण झन्झके श्री संघ कारित, और सुमतिशेखरगणि द्वारा प्रतिष्ठित हैं। पं० सदारंग मुनिके चरण सं० १६०४ के हैं।
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[ ४५ 3
श्री नेमिनाथजी का मन्दिर यह मन्दिर सेठियों के पास में लुकागच्छ के उपाश्रय में है। मूलनायक सं० १९१० में श्रोजिनसूरिजी द्वारा प्रतिष्ठित हैं।
नापासर यह बीकानेर से १७ मील है, दिल्ली जानेवाली रेलवे लाइन का दूसरा स्टेशन है । स्टेशन से लगभग १ मील गांवमें यहाँ मन्दिर है । यहाँ अभी ओसवालों की बस्ती नहीं है । पूजाका प्रबन्ध बीकानेरके श्री चिन्तामणिजी के मन्दिर की पेढीसे होता है।
श्री शान्तिनाथजी का मन्दिर यह मन्दिर सेठिया अचलदास ने सं० १७३७ से पूर्व बनवाया था सं० १७३७ मिती चैत बदि १ को प्रतिष्ठित श्रीजिनदत्तसूरिजी, श्रीजिनकुशलसूरिजी और सेठ अचलदास की पादुका इस मन्दिर में विद्यमान है ! कविवर रघुपत्ति के उल्लेखानुसार यहाँ सं० १८०२ में मूलनायक अजितनाथ भगवान थे। सं० १७४० में कवि यशोलाभ ने धर्मसेन चौपाई में अजितनाथ व शांतिनाथ लिखा है। पर अभी सं० १५७५ प्रतिष्ठित श्री शांतिनाथ भगवान की प्रतिमा मूलनायक है। १९५६ में हितवल्लभगणि के उपदेश से बीकानेर के संघकी ओरसे इसका जीणोंद्धार हुआ था। कुछ वर्ष पूर्व इस मन्दिर उपाश्रय और कुण्डका जीर्णोद्धार बीकानेर संघने पुनः करवाया है।
डूंगरगढ़ यह उपर्युक्त रेलवे लाइन का छठा स्टेशन है। बीकानेर से ४६ मील है । स्टेशन से १ मील दूर शहर में ओसवालों के ४० घर हैं। मन्दिर का प्रबन्ध स्थानीय पंचायती के हाथमें है।
श्री पार्श्वनाथजी का मन्दिर यह मन्दिर ऊँचा बना हुआ है। इसके निर्माणकाल का कोई पता नहीं । मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी की लघु प्रतिमा है।
विगा ___ यह भी उपर्यक्त रेलवे लाइन का ७ वां स्टेशन तथा डूंगरगढ़ से ८ मील है। यहाँ ओसवालों के ३ घर हैं।
* दायय सुख देहरौनगर सखरै नापासरं । मां है मोटे मंडाण जागती मूरति जिनवर ॥ पासैहिज पौसाल साधतिण बहुसुख पावै। भल श्रावक भावीक दीपता चढ़ते दावै ॥ अचलेश सेठ हुवो अमर, जिणे सुत पंच जनम्मिया। जीतव्व धन्न रघुपति जियां, कलिनामा अविचल किया ॥ १ ॥
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[ ४६ ]
श्री शांतिनाथजी का मन्दिर
भगवान की मूर्त्ति सेवक के घरमें थी। अभी बीकानेर के संघ अलग मन्दिर बनवा कर इस मूर्त्तिको स्थापित किया है।
राजलदेसर
कुछ वर्ष पूर्व मूलनायक और स्थानीय चतुर्भुजजी डागाने
यह विगा से दूसरा स्टेशन है और यहाँ से २१ मील है। यहां ओसवालों के ४०० घर हैं । स्टेशन से गांव १ मील दूर है। बाजार के मध्य में श्री आदिनाथजी का मन्दिर है । श्री आदिनाथजी का मन्दिर
यह सं० १५८४ में प्रतिष्ठित है, सं० १७२१ में वैद मुंहता शेरसिंह ने इसका जीर्णोद्धार
कराया था ।
रतनगढ़
यह दिल्ली लाइन का मुख्य जंक्सन और बीकानेर से ८५ मील है । वहां ओसवालों के २०० घर हैं। बाहर में श्री आदिनाथजी का मन्दिर और बाहर दादाबाड़ी है। मंदिर से संलग्न खरतर गच्छका उपाश्रय है ।
श्री आदिनाथजी का मन्दिर
इसका निर्माण समय अज्ञात है। पट्ट के अनुसार सं० १६५७ के लगभग मन्दिर का निर्माण हुआ मालूम होता है ।
श्री दादाबाड़ी
इसमें श्रीजिनकुशलसूरिजी के चरण सं० १८६६ माघ वदि ५ के प्रतिष्ठित हैं। श्री जिनदत्तसूरिजी के छोटे चरणों पर कोई लेख नहीं है ।
बीदासर
यह रतनगढ़ से सुजानगढ़ जानेवाली रेलवे के छापर स्टेशन से कुछ मील दूर है । इस afa ओसवालों के ४०० घर हैं। खरतर गच्छके उपाश्रय में देहरासर है जिसमें श्री चन्द्रप्रभुजी की मूर्ति विराजमान है। दादासाहब के चरण सं० १९०३ के प्रतिष्ठित हैं ।
सुजानगढ़
यह इस लाइन में बीकानेर रियासत का अन्तिम स्टेशन है। यहां ओसवालों के ४५० घर हैं । लौका गच्छ और खरतर गच्छके २ उपाश्रय, २ मन्दिर और दादाबाड़ी है।
I
श्री पार्श्वनाथजी का मंदिर
यह सौधशिखरी विशाल जिनालय श्री पनाचंदजी सिंघीके अमर कीर्ति कलाप का परिचायक है । इसकी प्रतिष्ठा सं० १६०१ माघ सुदि १३ को श्रीजिनचारित्रसूरिजी ने की। इस
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[ ४७ 1
मंदिर की नींव सं० १६६२ में डाली गई थी, इस मन्दिर के बनवाने में "जेसराज गिरधारीलाल " फर्म की ओरसे द्रव्य व्यय हुआ जिसके ३ हिस्सेदार थे १ पनाचंदजी २ इन्द्रचंदजी ३ व बच्छराज जी सिंघी। यह मंदिर ऊँचे स्थान पर दो मंजिला बना हुआ है। दोनों तरफ श्रीजिनदत्तसूरिजी और श्रीजिनकुशलसूरिजी के मन्दिर हैं जिनमें सं० १६३३ माघ शुक्ला ३ को प्रतिष्ठित चरण पादुकाएँ विराजमान हैं। इस मन्दिर के पीछे कई मकानात आदि जायदाद है। श्री आदिनाथजी का मन्दिर
यह खरतर गच्छके उपाश्रय से संलम है। इसकी प्रतिष्ठा सं० १८८४ अषाढ़ सुदि १० बुधवारको होनेका उल्लेख यति दूधेचंदजी के पासकी बही में पाया जाता है।
दादाबाड़ी
यह सिंघीजी के मन्दिरसे कुछ दूरी पर है। दादा साहब श्रीजिनकुशलसूरिजी के चरणोंकी प्रतिष्ठा सं० १८६० मिती वैशाख सुदि १० को हुई थी। इसी मितीकी प्रतिष्ठित भाव विजयजी की पादुका है ।
नई दादाबाड़ी
यह स्टेशन के पास है। इसे पनाचंद सिंघी की पुत्री श्रीमती सूरजबाईने बनवाकर इसमें सं० १६६७ मिती आषाढ़ सुदि १० को गुरुदेव के चरण प्रतिष्ठापित कराए हैं ।
सरदार शहर
रतनगढ जंक्सन से सरदार शहर जाने वाली रेलवेका अंतिम स्टेशन है। ४४ मील है। बीकानेर के बाद ओसवालों के घरोंकी संख्या सबसे ज्यादा ओसवालों के कुल १०३८ घर हैं। यहां २ जैन मंदिर और १ दादाबाड़ी है । श्री पार्श्वनाथजी का मन्दिर
यह रतनगढ़ से यहीं है। यहां
इसे सं० १८६७ मिती फागुण सुदि ५ को सुराणा माणकचंदजीने बनवाकर प्रतिष्ठित करवाया। इसका जीर्णोद्धार सं० १६४७ में बीकानेर के मुँहता मानमलजी कोचर के मारफत हुआ। अभी भी स्थानीय पंचायतीकी ओरसे जीर्णोद्धार चालू है ।
श्री पार्श्वनाथजी का नया मन्दिर
यह मंदिर श्रीमान् वृद्धिचंदजी गधैयाकी हवेली के पास है। इसका निर्माण काल अज्ञात है । यह मंदिर गोलater बनवाया हुआ है ।
दादावाड़ी
इसमें श्रीजिनकुशलसूरिजी और शांतिसमुद्रगणिके चरण सं० १९९१ अषाढ़ वदि ५ के प्रविष्ठित हैं। खरतर गच्छ पट्टावली में जिनकुशलसूरिजी के चरणक मंदिरकी प्रतिष्ठा सं० १६१० वैशाखमें बोथरा गुलाबचंदने श्रीजिनसौभाग्यसूरिजी से करवाई, ऐसा उल्लेख है ।
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[ ४८ 1
चूरू
यह शहर बीकानेर से दिल्ली जानेवाली रेलवे लाइनका मुख्य स्टेशन है और रतनगढ़ से २६ मील है। यहां ओसवालोंके २६० घर हैं । यहाँ खरतरगमका बड़ा उपाश्रम, मंदिर और दादाबाड़ी है। इन सबकी व्यवस्था यतिवर्य श्री ऋद्धिकरणजी के स्टेट संरक्षक ट्रस्टी करते हैं ।
श्री शांतिनाथजी का मन्दिर
यह मंदिर बाजार में खरतरगच्छके उपाश्रयसे संलग्न है । इस मन्दिरका निर्माण समय अज्ञात है। जीर्णोद्धार यति ऋद्धिकरणजी ने बहुत सुन्दर (सं० १९८१ से १६६६ तक ) प्रचुर द्रव्य व्ययसे करवाया है। मूलनायकजी की प्रतिमा सं० १६८७ में विजय देवसुरि प्रतिष्ठित है ।
दादावाड़ी
यह भगवानदास बागलाकी धर्मशाला के पास है। इसमें कुआँ, बगीचा और कई इमारतें बनी हुई हैं। स्थान बड़ा सुन्दर और विशाल है। इसकी कई ईमारतें आदि भी यति ऋद्धिकरणजी ने बनवाई हैं। इस दादावाड़ी में श्रीजिनदत्तसूरिजी के चरण सं० १८५१ और श्री जिनकुशलसूरिजी के चरण सं० १८५०, श्रीजिनचंद्रसूरिजी के सं० १६४० एवं अन्य भी बहुत यतियोंके चरणपादुके स्थापित हैं ।
राजगढ़
यह सार्दूलपुर स्टेशन नामसे प्रसिद्ध है जोकि बुरूसे ३६ मील है । यहां ओसवालों के १५० घर हैं । उपाश्रय से संलग्न श्रीसुपार्श्वनाथजी का मन्दिर है । श्री सुपार्श्वनाथजी का मन्दिर
यह मन्दिर कब प्रतिष्ठित हुआ इसका कोई उल्लेख नहीं है परदादा साहब के चरण सं० १८६७ मिती वैशाख सुदि ३ के दिन प्रतिष्ठित हैं ।
रिणी ( तारानगर )
राजगढ़ से लगभग २२ मील है, प्रतिदिन मोटर-वस जाती है। यह नगर बहुत प्राचीन है। यहां ओसवालोंके १७५ घर हैं । खरतरगच्छका उपाश्रय, जैन मन्दिर और दादावाड़ी है । श्री शीतलनाथजी का मन्दिर
इस मन्दिर के निर्माणका कोई शिलालेख नहीं मिला। बीकानेर के ज्ञान भंडार के १ पत्र में इसके निर्माणके सम्बन्ध में इस प्रकार लिखा है :- सं० ६६६ मिती फागुण वदि १३ बुधवार पालले पुहर श्रीरिणी में जैन से देहरो तिण री नीव दीवी सेठ लखो खेतो लालावत रो करायो बहू गोष्ण बेटी देवै हेमावत री देहरै री सोंप भोजग जैतो देवै रे नुंधी जसै देदावत रो बेटोराज जसवंत डाहलियै रो गणेश नीवावत से राज फोगे देहरै रो वेजारो भीखो लगावह अहमद वरस मा देहरो प्रमाण चढ्यो देहरो श्रीशीतलनाथजी रो तेहनी उत्पत्त जाणवी ।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
गर्भगृहस्थित प्रतिमाएँ शीतलनाथ जिनालय रिणी तारानगर
सिंघीजी का देवसागर प्रासाद, सुजानगढ़
5 अपर
श्री शीतलनाथ जिनालय रिणी-तारानगर
ক্ষুদ্র দেশটির জ
अभिलेख धातुमय पंचतीर्थी झज्झ लेखाङ्क २३१७
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
श्री ज्ञानसार समाधिमंदिर (प० प्र० पृ० ३७)
समाधिमंदिर का भीतरी दृश्य
(प० प्र० पृ० ३७)
श्री अभय जैन ग्रन्थालय बाहरी दृश्य
।
अभय जैन ग्रन्थालय भीतरी दृश्य
अभय जैन ग्रंथालय, ग्रन्थों से भरीपालमारियाँ
बौद्ध चित्रपट (नाहटा कलाभवन)
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[ ४ ]
मूलनायक श्री शीतलनाथजी सं० १०५८ में प्रतिष्ठित हैं। शासनदेवीकी मूर्त्तिपर सं० २०६५ का लेख है । मन्दिर बहुत सुदृढ़ विशाल, ऊँचे स्थानपर शिखरबद्ध बना हुआ है । बीकानेर राज्य के समस्त मंदिरों में यह प्राचीनतम है। हाल ही में यति पन्नालालजी की देखरेख में इसका जीर्णोद्धार हुआ है ।
दादावाड़ी
यह गांव से करीब १ मील दूर है। यहां दादा श्रीजिनदत्तसूरिजी के चरण सं० १८६८ में प्रतिष्ठित है । यति माणिक्यमूर्त्तिजी के चरण सं० १८२५ और गुणनंदन के पादुके सं० १६१४ में प्रतिष्ठित हैं । सं० १६५२ में प्रतिष्ठित श्रीजिनकुशलसूरि पादुका, सं० १७८० की श्री जिनसुखसूरि पादुका, सं १७०६ की सुखलाभकी और सं० १६७२ हेमधर्मगणिकी पादुकाएं यहीं पर थीं जो अभी शीतलनाथजी के मन्दिर की भ्रमती में रक्खी हुई हैं।
नौहर
यह सार्दूलपुर स्टेशन से हनुमानगढ़ जानेवाली रेलवे लाइनका स्टेशन है। रिणीके बाद प्राचीन जैन मन्दिरोंमें इसकी गणनाकी जाती है। यहां श्रीपार्श्वनाथजीका मन्दिर है जिनके शिलापट्ट पर सं० १०८४का लेख है । श्रीरत्ननिधानकृत स्तवन में सं० १६३२ में युगप्रधान श्री जिन चन्द्रसूरिजी महांकी यात्रा करनेका उल्लेख है ।
भादरा
यह भी नौहरसे २५ मील दूर है। सार्दूलपुर से ४० मील है, यहां ओसवालोंके ३० घर हैं। जैन मन्दिर में पार्श्वनाथ और महावीर स्वामी की प्रतिमाएं विराजमान है । एक उपाश्रय और पुस्तकालय भी है।
रणकरणसर
यह बीकानेर से ४१ मील दूर भटिण्डा जानेवाली रेलवेका स्टेशन है। यहां ओसवालोंके ६० घर है । १ मन्दिर, उपाश्रय और दादावाड़ी है। दादावाड़ीके चरण इस समय मन्दिर में रखे
हुए हैं।
सुपार्श्वनाथजीका मन्दिर
साधुकीर्तिजी के स्तवनानुसार सं० १६२० - २५ के लगभग यहां श्रीआदिनाथजीका मन्दिर था, पर वर्तमान मन्दिरके शिलापट्ट पर लेख में वा दद्याचन्दके सदुपदेशसे सावनसुखा सुजाणमल, बुच्चाठाकुरसी, बाफणा महीसिंह, गोलछा फूसाराम और बोधरा हीरानंदने सं० १९०१ के प्रथम श्रावण बदि १४ को यह मन्दिर करवाया लिखा है। संभव है यह जीर्णोद्धारका लेख हो । सं० १६३६ के श्रीजिनदत्तसूरिजी और श्रीजिनकुशलसूरिजी के चरण व अन्य कई पादुकाऐं
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I to ] मन्दिरमें रखी हुई हैं। इस समय यहां मूलनायक श्रीसुपार्श्वनाथजीकी प्रतिमा है, पता नहीं यह परिवर्तन कब हुआ।
कालू यह गांव लूणकरणसरसे १२ मीलकी दूरी पर है बस व ऊठों पर जाया जा सकता है। यहां पर ओसवालोंके ११० घर हैं । जैन मन्दिर और उपाश्रय भी है।
श्रीचन्द्रप्रभुजीका मन्दिर इस मन्दिरका निर्माण काल अज्ञात है श्रीजिनदत्तसूरिजी और श्री जिनकुशलसूरिजीके चरण सं०१८६५ वैशाख बदि ७ को यहां पर श्री जिनहर्षसूरि प्रतिष्ठित हैं। गारबदेसरकी मूर्तियां भी एक चौबीसीको छोड़ कर यहां मंगवाई हुई हैं।
गारबदेसर ये गांव कालूसे कुछ मील है। ओसवालोंके घर अब नहीं है इससे यहांके मन्दिरको मूर्तियां कालूके मन्दिरमें ले आए। एक चतुर्विशति पट्टक प्रतिमाकी पूजा वहाँके श्रीमुरलीधरजीके मन्दिरमें होती है।
महाजन यह भी भटिण्डा लाइन रेलवेका स्टेशन है। बीकानेरसे ७४ मील है गांवमें श्रीचन्द्रप्रभुजी का मन्दिर है। ओसवालोंके घर नहीं है। मन्दिर और उससे संलग्न जैन धर्मशाला है।
श्रीचन्द्रप्रभुजीका मंदिर-शिलापट्टके लेखानुसार उदयरंगजीके उपदेशसे श्री संघने सं० १८८१ मिती फागुन बदि २ शनिवारको बनवाकर इस मंदिरकी प्रतिष्ठा करवाई । मूलनायक जी पर कोई लेख नहीं है। दादा श्री जिनकुशलसूरिजीके चरणों पर १७७२ वैशाख सुदि ७ को महाजन संघके बनवाने और श्रीललितकीर्तिजीके प्रतिष्ठा करनेका उल्लेख है।
सुरतगढ़ यह भी भटिण्डा लाइनको स्टेशन है। और बीकानेर से ११३ मोल है यहां भोसवालोंके २०-२२ घर हैं।
__ श्री पार्श्वनाथजीका मन्दिर मूलनायकजीकी प्रतिमा सं० १६१५ मिती माघ शुक्ला २ को श्रीजिनसौभाग्यसूरिजी द्वारा प्रतिष्ठित है। इस मंदिरको सं० १६१६ वैशाख बदि ७ को अष्टान्हिका महोत्सव पूर्वक श्रीजिनहंससूरिजीने प्रतिष्ठित किया ऐसा खरतरगच्छ पट्टावलीमें लिखा है। मन्दिर में लकड़ीकी पटड़ी पर जो लेख है उसमें वैशाख सुदि तिथि लिखी है जो विशेष ठीक मालूम होती है ।
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[ ५१ ]
हनुमानगढ़ (भटनेर) यह भी उपर्युक्त रेलवेका स्टेशन है। बीकानेरसे सं० १४४ माइल है इसका पुराना नाम भटनेर (भट्टिनगर) है यहां बड़ गच्छकी एक शाखाकी गद्दी थी। यहां किलेके अन्दर एक प्राचीन मन्दिर है। यहांकी कई प्रतिमाएं बीकानेर के गंगा गोल्डन जुबिली म्यूजियममें रखी हुई हैं। कवि उदयहर्षके स्तवनानुसार सं० १७०७ में यहां श्री मुनिसुव्रत स्वामीका मन्दिर था ! इस समय यहां श्री शान्तिनाथजीका मन्दिर है, मूलनायकजीकी सपरिकर प्रतिमा सं० १४८६ मि० मिगसर सुदि ११ को प्रतिष्ठित हैं, मन्दिरके पास ही उपाश्रय भग्न अवस्थामें पड़ा है। यहाँ ओसवालोंके केवल ७ ही घर है।
सतरहवीं शतीके वड़ गच्छीय सुकवि मालदेव के भटनेर आदिनाथादि ६ जिनस्तवन के अनुसार उस समय मूलनायक आदिनाथजी की सपरिकर मूर्ति थी। जिसमें दोनों ओर दो काउसगिया (कार्योत्सर्ग मुद्रा-खड़ी खड़गासन ) मूर्ति थी। अन्य मूर्तियों में अजितनाथ, संभवनाथ, श्रेयांसनाथ, शान्तिनाथ एवं महावीर की थी। बीकानेर म्यूजियम में अजितनाथ, संभवनाथ व महावीर की प्रतिमाएं सं० १५०१ में प्रतिष्ठित हैं । विशेष संभव है कि वे स्तवनोक्त ही हों। आदिनाथ की मूर्ति म्यूजियम में सं० १५०१ की व भटनेर में सं० १५६६ की है। संभवतः शान्तिनाथजी की मूर्ति भटनेर में अभी मूलनायक है वही हो पर श्रेयांसनाथजी की मूर्तिका पता नहीं चलता।। ___ अव यहाँ उन स्थानों का परिचय दिया जा रहा है, जहाँ पूर्वकाल में जैन मन्दिर थे पर वर्तमान में नहीं रहे।
देसलसर यह ग्राम देशनोक से १४ मील है। यहाँ मन्दिर अब भी विद्यमान है पर ओसवालों के घर न होनेसे यहां की प्रतिमाएँ और पादुकायें नौखामंडीके नव्य निर्मित जैन मन्दिर में प्रतिष्ठित की गई है।
सारूँडा यह स्थान नोखामंडी से १०-१२ मील है। सं० १६१६ और १६४४ की शत्रुजय चैत्य परिपाटी में श्री ऋषभदेव भगवान के मन्दिर होनेका उल्लेख पाया जाता है। पर वर्तमान में उसके कुछ भग्नावशेष ही रहे हैं।
पूगल यह बहुत पुराना स्थान है। सं०१६६६ के लगभग कल्याणलाभके शिष्य कमलकीर्ति और सं० १७०७ में ज्ञानहर्ष विरचित स्तवनों से स्पष्ट है कि यहाँ श्री अजितनाथस्वामी का मन्दिर था। पर इस समय यहां कोई मन्दिर नहीं है।
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[ ५२ ]
ददरेवा यह गांव राजगढ़ से रिणी जाते हुये मार्गमें आता है। पाचक श्री गुणविनय कृतस्तवन के अनुसार सतरहवीं शताब्दी में यहाँ श्री शान्तिनाथ भगवान का मन्दिर था। इस समय यहाँ मन्दिर का नामोनिशान भी नहीं है।
बीकानेर के जैनमन्दिरों को राज्यकी ओर से सहायता बीकानेर राज्यकी देवस्थान कमेटी से पूजनादि के लिये निम्नोक्त रकम मासिक सहायता मिलती है।
यह सूची पुरानी है, वर्तमान में सहायता की रकममें वृद्धि हो गयी है। १-नापासर* शान्तिनाथजी १- रतनगढ़ जैनमन्दिर
शा) ३-चूरू शांतिनाथजी
१)
दादाजी
दादाजी
४-राजगढ़ जैनमन्दिर
सा) ५-रिणी शीतलनाथजी २॥
दादाजी ६-सुजानगढ़ ऋषभदेवजी २ ) ७--सरदारशहर पार्श्वनाथजी ) पार्श्वनाथजी नया मन्दिर )
दादाजी १३) ८-उदरामसर दादाजी है-देशनोक मन्दिर १०-लूणकरणसर पार्श्वनाथजी । ११-सूरतगढ़ पार्श्वनाथजी २) १२-ऋषभदेवजी १३- हनुमानगढ़
२ ) १४-नौहर
२१ ) १५-भादरा
श)
रजु दफ्तर
छाप
श्री रामजी * श्री दीवान वचनात् गां० नापासर री जगात रा वा रुखवाली री माछरा हुवालदारां जोग ! तीथा श्री जी रोमन्दिर जैनरो गाँ० नापासरमें छै तैरी सेवा पूजा सेवग खड़गौ करै छै तै नै केसरचनण धूपरा मा०१ रु. २) अखरे रुपया दोय कर दिया है सुजगात रो हुवालदार हुवे सो १) वा रुखवालीरी भाछ रो हुवालदार हुवे सु१) चल दिया जावजो दः अचारज ठाकरसी सं० १९०३ मी० फागण वदि ।
xश्री बीकानेर रा मांडहिया लिखावतुरिणी रा मांडहिया जोग तथा पूज श्री जिनसखसरिजी री छतड़ी पादकारे पूजा नु टका १५॥ अखरे पन्हरै चलु थितीया देजो म्हे थानु मुकाते मा मुजरे भरदेसां सं० १७८३ मगसर सुद ४ हुता चल दे जाई उपासरे मटारकारे देजो।
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५३ ] जैन उपाश्रयों का इतिहास श्रावक समाज के लिए जिस प्रकार देवरूप से जैन तीर्थकर पूज्य हैं उसी प्रकार गुरुरूप जैन साधु भी तद्वत् उपास्य हैं। अतः बीकानेर बसने के साथ जैन श्रावकों की बीकानेर में बस्ती बढ़ती गई तब उनके धार्मिक अनुष्ठानों को सम्पन्न कराने वाले और धर्मोपदेष्टा जैन मुनियों का आना जाना भी प्रचुरता से होने लगा। और उनके ठहरने व श्रावकों को धर्म ध्यान करने के लिए उचित स्थान की आवश्यकता ने ही पौषधशाला या उपाश्रयों को जन्म दिया। इन धर्मस्थानोंका मन्दिरों के निकटवर्ती होनेसे विशेष सुविधा रहती है इसलिये श्री चिन्तामणिजी
और महावीरजी जो कि १३ और १४ गुवाड़ के प्रमुख मन्दिर हैं, उनके पार्श्ववत्ती पौषधशालाएँ बनवाई गई। उस समय जैन साधुओंके आचार विचारों में कुछ शिथिलता प्रविष्ट हो चुकी थी। अतः सं० १६०६ में 3 कनकतिलक, भावहर्ष आदि खरतर गच्छीय मुनियों ने बीकानेरमें क्रियोद्धार किया और धर्मप्रेमी संग्रामसिंहजी वच्छावत की विज्ञप्ति से सं० १६१३ में श्रीजिनचन्द्र सूरिजी बीकानेर पधारे। आपश्री ने यहाँ आनेके अनन्तर क्रियोद्धार कर चारित्र पालन कर सकने वाले मुनियों को ही अपना साथी बनाया अवशेष यति लोग इनसे भिन्न महात्मा के नामसे प्रसिद्ध हो गए। पुराने उपाश्रय में वे लोग रहते थे इसलिए मंत्रीश्वर ने अपनी माताके पुण्य वृद्धिके लिए नवीन बड़ी पौषधशाला निर्माण करवायी जो अभी बड़े उपाश्रय के नामसे प्रसिद्ध है। वह पौषधशाला सुविहित साधुओं के धर्म ध्यान करने के लिए और इसके पास ही संघने साध्वियों के लिए उपाश्रय बनवाया * इसी प्रकार समय-समय पर कंवलागच्छ, पायचंदगच्छ, व लुकागच्छ व तपागच्छ के उपाय बनवाये। १६ वीं शती में फिर यतियों में शिथिलाचार बढ़ गया और विहार की मर्यादा भी शिथिल हो गई जो यति विशेष कर बीकानेर में रहने लगे उन्होंने अपने अपने उपाश्रय भी अलग बनवा लिये क्योंकि खरतर गच्छमें यतियों की संख्या उस समय सैकड़ों पर थी अतः पुराने उपाश्रय में इनकी भीड़ लगी रहती थी, अतः जिन्हें वहां रहने में असुविधा प्रतीत हुई या जिनके पास धन इकट्ठा हो गया अथवा राजदरबार में उनकी मान्यता होनेसे राजकी ओरसे जमीन मिल गई उन्होंने स्वतंत्र उपाश्रय बनवा लिए। उपाश्रयों के लेखोंसे प्रमाणित है कि इस शताब्दी में बहुत से नवीन उपाश्रय बनकर उनकी संख्या में वृद्धि हुई। अब समस्त उपाश्रयों का संक्षिप्त परिचय नीचे दिया जा रहा है ।
बड़ा उपासरा ___ यह उपाश्रय रांगड़ीके चौकमें है। यह स्थान बहुत विशाल बना हुआ है। इसमें सैकड़ों यति साधु चातुर्मास करते थे। इस उपाश्रयके श्रीपूज्यजी वृहद् भट्टारक कहलाते हैं। उनके अनु
* इस समय प्राचीन उपाश्रय भी सुविहित साधुओं के व्यवहार में आता था, क्योंकि समयसुन्दरजी ने सं १६७४ के लगभग जब बादशाह जहांगीर का फरमान श्रीजिनसिंहसूरिजी को बुलाने के लिए आया तब आचार्यश्रीके उसी चिन्तामणिजी के मन्दिर से संलग्न उपाश्रय में विराजमान होनेका उल्लेख किया है।
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यायियों की संख्या बीकानेर और बीकानेर के गांवों में सबसे अधिक थी। बीकानेर रियासतके प्रायः सभी गांवोंमें यहाँकी गद्दीके श्रीपूज्यजी के आज्ञानुयायी यति लोग विचरते रहते थे अर्थात् सब तरहसे यह स्थान अपनी महानता के कारण ही यह बड़ा उपासरा सबसे अधिक देश-देशान्तरों में प्रसिद्धि प्राप्त है। इस उपाश्रय के निर्माण के सम्बन्ध में हम आगे लिख चुके हैं कि यह सं० १६१३ के लगभग मंत्रीश्वर संग्रामसिंह ने अपनी माताके पुण्यार्थ बनवाया था। इस उपाश्रयके सम्बन्धमें सं० १७०५ का परवाना हमारे संग्रहमें है, जिसकी नकल इस प्रकार है :
सही
स्वस्ति श्री महाराजाधिराजा महाराजा श्री करणसिंह जी वचनायते खवास गोपाला जोग सुपरसाद वांचजो तथा उपासरो बड़ो भटारकी महाजना रो छ सु भटारकिया-(नै) दीन छै० सु० खोलह देजो० महाजन भटारकी नु खग-य छै संवत् १७०५ वैसख बद ५ श्री अवरंगाबाद।
इस उपाश्रयमें यतिवर्य हितवल्लभ जी (हिमतू जी ) की प्रेरणासे कई यतियोंके हस्तलिखित ग्रन्थोंके संग्रहरूप वृहद् ज्ञानभंडार स्थापित हुआ। यद्यपि इससे पहिले सतरहवीं शतीमें भी विक्रमपुर ज्ञानकोष का उल्लेख पाया जाता है पर अब वह नहीं है। इस भंडारके अतिरिक्त श्रीपूज्यजी का संग्रह भी महत्वपूर्ण एवं उल्लेखनीय है जिसका परिचय ज्ञानभंडारके प्रकरणमें दिया गया है। इस उपाश्रय में वृहत्खरतर गच्छीय श्रीपूज्यों की गद्दी है वर्तमान में भट्टारक श्रोजिनविजयेन्द्रसूरिजी श्रीपूज्य हैं। इसमें १३ गुवाड़ की पंचायती व कई मन्दिरों की वस्तुएँ भी रहती हैं। श्री पूज्यजी का वर्तमान तख्त व उपाश्रय के सन्मुख का हिस्सा श्रीमद् ज्ञानसार जी के सदुपदेश से जैन-संघ ने बनवाया था।
साध्वियोंका उपासरा यह बड़े उपाश्रय के पास की गली में साध्वियोंके ठहरने व प्राविकाओं के धर्म-ध्यान करने के लिये संघ ने बनवाया था अभी यहाँ कई खण हैं जिनमें भट्टारक और आचार्य खरतर शाखा की जतणियें रहती हैं।
खरतराचार्य गच्छका उपासरा वि० सं० १६८६ में श्रीजिनसिंहसूरिजी के पट्टधर भट्टारक श्री जिनराजसूरि व आचार्य श्रीजिनसागरसूरि किसी कारणवश अलग अलग हो गए। तबसे श्री जिनसागरसूरिजी का समुदाय खरतराचार्य गच्छ कहलाने लगा। यह उपाश्रय बड़े उपाश्रय के ठीक पीछे नाहटों की गुवाड़ में है संभवतः उपर्युक्त गच्छ भेद होनेके कुछ समय बाद ही इसकी स्थापना हुई होगी पर इसमें लगे हुए शिलालेख में यति मलूकचन्द जी के उपदेश से आचार्य गच्छीय संघ द्वारा यह
* पौषधशाला विपुला विनिर्मिता येन भूरि भाग्येन। मातुः पुन्याथं यन्माता मान्या सु धन्यानाम् ।। २५४ ।।
[कर्मचन्द मन्त्रिवंश प्रबन्ध ]
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। ५५ पौषधशाला सं० १८४५ भाद्रवा बदि ८ को बनवाने का लिखा है। जो कि उपाश्रय के वर्तमान रूपमें निर्माण होनेका सूचक होगा। खरतराचार्य शाखाके श्री पूज्य श्री जिनचन्द्रसूरिका देहान्त हो गया है। इस उपाश्रय में भी एक अच्छा ज्ञान भंडार है !
श्री जैनलक्ष्मी मोहनशाला यह भी रांगड़ी के चौक में। सं० १८२२ में यति लक्ष्मीचन्द्र जी ने यह मकान बनवाया होगा। इस में श्री जिनरत्नसूरिजी के पट्टधर श्री जिनचन्द्रसूरिजी के शिष्य उ० उदयतिलकजी की परम्परा के उ० जयचन्द्रजी के शिष्य पालचन्द अभी रहते हैं । इनके प्रगुरु मोहनलाल जी ने सं० १९५१ विजयदशमी को श्री जैन लक्ष्मी मोहन शाला नाम से पुस्तकालय स्थापित किया। इनके ज्ञानभंडार में हस्तलिखित प्रन्थों का अच्छा संग्रह है।
__ श्री जिनकृपाचन्द्रसूरि खरतरगच्छ धर्मशाला यह भी रांगड़ी के चौकमें है। श्रीजिनकृपाचन्द्रसूरिजी कीर्तिरत्नसूरि शाखामें नामाद्वित विद्वान हो गए हैं जिनके शिष्य शिष्याएं अब भी सर्वत्र विचर कर शासन सेवा कर रहे हैं। श्री जिनकृपाचन्द्रसूरिजी के प्रगुरु सुमतिसोम जी के गुरू सुमतिविशाल जी ने सं० १९२४ ज्येष्ठ सुदि ५ को यह उपाश्रय बनवाया। श्री जिनकृपाचन्द्रसूरिजी सं० १६४५ में क्रियोद्धार करके सं० १९५७ में पुनः बीकानेर आए और अपने इस उपाश्रय को मय अन्य दो उपासरों (जिनमेंसे एक इसके संलग्न और दूसरा इसके सामने है ) ज्ञानभंडार, सेटूजी का मन्दिर, नाल की शाला इत्यादि अपनी समस्त जायदाद को "व्यवस्थापत्र" बनवा कर खरतर गच्छ संघ को सौंप दी। सं १९८४ में श्री जिनकृपाचन्द्रसूरिजी के पुनः पधारने पर निकटवर्ती नपाश्रय का नवीन निर्माण और मूल उपाश्रय का जीर्णोद्धार सं० १९८६ में लगभग ६०००) रुपये खरच कर श्री संघने करवाया जिसके सारे कामकी देखरेख हमारे पूज्य स्व० श्री शंकरदान जी नाहटा ने बड़े लगनसे की थी। खेद है कि उपासरे का ज्ञानभंडार सूरिजी के यति-शिष्य तिलोकचन्द जी ने जिन्हें कि बड़े विश्वास के साथ सूरिजी ने व्यवस्थापक बनाया था, बेच डाला इस उपाश्रय से संलग्न एक सेवग के मकान को खरीद कर हमारी ओर से उपाश्रम में दिया गया है। पूज्य श्रीयुत शुभैराज जी नाहटा के सतत् परिश्रमसे एक विशाल व्याख्यान हाल का निर्माण हुआ है उ० श्री सुखसागर जी और साध्वीजी माइमाश्री जी के ग्रन्थों की अलमारियाँ यहाँ मंगवाकर ज्ञानभंडार की पुनस्र्थापना की गयी है।
श्री अनोपचन्द्रजी यति का उपासरा यह उपर्युक्त श्री जिनकृपाचन्द्रसूरि खरतर गच्छ धर्मशाला के सामने है। इसका हिस्सा उपर्युक्त धर्मशाला के तालुके हैं व 3 हिस्सा यति अनोपचन्द्रजी का था जिसमें उनके शिष्य प्यारेलाल यति रहते हैं । इस से संलग्न इसी शाखा के यति रामधनजी का उपासरा है ।
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[ ५६ ]
महो. रामलालजी का उपासरा क्षेम शाखाके महो० रामलालजी इस जमाने के प्रसिद्ध वैद्यों में थे उन्होंने वैद्यक द्वारा अच्छी सम्पत्ति अर्जन कर यह उपाश्रय बनवाया। अभी इसमें उनके प्रशिष्य बालचन्द्रजी रहते हैं।
श्री सुगनजी का उपासरा यह भी रांघड़ी के चौक के पास है। उपाध्याय श्री क्षमाकल्याणजी उन्नीसवीं शती के बड़े गीतार्थ एवं विद्वान थे, अपने गुरु अमृतधर्मजी के साथ इन्होंने क्रियोद्धार किया था। आपके उपदेश से श्री संघ ने सं० १८५८ में यह पौषधशाला बनवाई, इसमें उन्होंने अपना ज्ञानभण्डार स्थापित किया जिसका लेख इस प्रकार है :
"श्री सिद्धचक्राय नमः श्री पुण्डरीकादि गौतम स्वामी प्रमुख गणधरेभ्यो नमः श्री वृहत्खरतरगणाधीश्वर भट्टारक श्री जिनभक्तिसूरि शिष्य प्रीतिसागर गणि शिष्य वाचनाचार्य संविग्न श्री मदमृतधर्म गणि शिष्योपाध्याय श्री क्षमाकल्याण गणिनामुपदेशात श्री संघन पुण्यार्थं श्री बीकानेर नगरे इयं पौषधशाला कारिता सं० १८५८ इस पौषधशाला मांहें शुद्ध समाचारो धारक संवेगी साधु-साध्वी श्रावक-श्राविका धर्म ध्यान करे और कोई उजर करण पावै नहीं सही सही ॥ लिखितं उपाध्याय श्रीक्षमाकल्याण गणिभिः सं १८६१ मिती मार्गशीर्ष सुदि ३ दिने संघ समक्षम् ।
. उपाध्याय श्री क्षमाकल्याण गणि स्वनिश्रा को पुस्तक भण्डार स्थापन कियो उसकी विगति लिखे है । भण्डार को पुस्तक कोई चोर लेवे अथवा बेचै सो देव गुरु धर्म को विराधक होय भवो भव महा दुखी होय"।
उ० श्री क्षमाकल्याणजी के प्रशिष्य श्री सुगनजी अच्छे कवि हुए हैं जिनके रचित बहुतसी पूजाएं प्रसिद्ध हैं उन्हीं के नामसे यह सुगनजी का उपासरा कहलाता है। पीछे से इससे संलग्न उपाश्रय को एक यति से खरीद कर शामिल कर लिया गया है । उपाश्रय के उपर अजितनाथजी का देहरासर और नीचे क्षमाकल्याण-गुरु-मन्दिर और ज्ञानभण्डार है। इस उपाश्रय का हाल ही में सुन्दर जीर्णोद्धार हुआ है।
बौरों की सेरी का उपासरा रांगडीके चौक के निकटवर्ती बोहरों की सेरीमें होने से यह "बोरों सेरी का उपासरा" कहलाता है। यह उपाश्रय क्षमाकल्याणजी की शिष्याओं एवं श्राविकाओं के धर्मध्यान करनेके लिए बनवाया गया था।
छत्तीबाई का उपासरा यह नाहटों की गुवाड़ में श्री सुपार्श्वनाथजी के मन्दिर से संलग्न है। इसे छत्तीबाई ने बनवाया इससे यह छत्तीबाई का उपासरा कहलाता है। यहाँ कभी कभी सावियों का चौमासा होता है और बाईयां धर्मध्यान करती हैं।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
कल्पसूत्रके चित्र-सिद्धार्थ सभा
४६
त्रिशला (कक्षमें ) एवं स्वप्न पाठक
Ho Shri
सिद्धार्थ की राजसभा
देव विमान
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बीकानेर जैन लेख संग्रह ----
विवाहासासंघा
नये मका रणःसना निसान सनलया सवागरा तुझीच
भगवान महावीर का समवशरण (कल्पसत्र से)
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उपाध्याय श्री क्षमाकल्याणजी गणि
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[ ५७ ]
पन्नीबाई का उपासरा
यह आसानियों के चौक के पास गली में हैं। यह उपाश्रय तथा गच्छ की श्राविकाओं के हस्तगत है। इसमें श्री पद्मप्रभुजी का देहरासर भी है।
पायचन्द गच्छ का उपासरा
यह उपासरा आसानियों के चौक में हैं। इसमें नागपुरी तपा गच्छीय श्री पासचन्द्रसूरि जी की गद्दी है । इसके श्रीपूज्य श्री देवचन्द्रसूरिजी का कुछ वर्ष पूर्व स्वर्गवास हो गया, इसका प्रबन्ध उस गच्छ के रामपुरिया आदि श्रावक लोग करते हैं ।
रामपुरियों का उपासरा
यह रामपुरियों की गुवाड़ में हैं। इसमें श्री कुशलचन्द्र गणि पुस्तकालय स्थापित है । स्वर्गीय उदयचन्द्रजी रामपुरिया के प्रयत्न से यहां तीर्थपट्टादि का चित्रकाम बड़ा सुन्दर हुआ है। इस उपाश्रयमें सं० १९८३ में उन्होंने श्री पार्श्वचन्द्रसूरिजी और भातृचन्द्रसूरिजी की पादुकाए स्थापित की हैं।
कँवला गच्छ का उपासरा
यह उपासरा सुराणों की गुवाड़ में है। यहां कँवला गच्छ के श्रीपूज्यों की गद्दी थी । आगे इसमें देहरासर और ज्ञानभण्डार भी था । यति प्रेमसुन्दर ने इस उपाश्रय और इसके समस्त सामान को बेच डाला ! अब इस उपाश्रय को खरीद कर यति मुकनसुन्दर रहते हैं ।
लौंका गच्छ का उपासरा
यह उपासरा कँवलोंके उपासरे के पास सुराणों की गुवाड़ में है। इसमें नागौरी लुंका गच्छके श्रीपूज्यों की गद्दी थी। शिलालेखों के अनुसार इस पौषधशाला को ( इस रूप में ) इस गच्छ के श्री पूज्य लक्ष्मीचन्द्रसूरिजी ने सं० १८८७ और १८६५ में बनवाई। अभी इस उपाश्रय में यति लच्छीराम जी रहते हैं ।
लौंका गच्छका छोटा उपासरा
यह उपर्युक्त उपासरे के पास ही है । लौंका गच्छका शाखा भेद होनेके बा वाले इसमें रहने लगे। इसका निर्माण कब हुआ, कोई उल्लेख नहीं मिलता ।
लौंका गच्छ की पट्टावली में लिखा है कि पूज्य जीवणदासजी के समय दोनों उपासरों पर अन्य लोगोंके कब्जा कर लेनेपर उन्होंने सं० १७७८ में बीकानेर नरेश से अर्जी कर सं० १७७८ प्रथम श्रावण बदि ८ को दोनों उपासरों का परवाना प्राप्त किया ।
सीपानियों का उपासरा
की गद्दी
यह सिंघीयों के चौक में है । इसे ऋद्धिविजय गणि के उपदेश से सीपानी संघ ने सं० १८४६ माघसुदी १५ को बनवाया था ।
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कोचरों का उपासरा कोचरों के मुहल्ले में दो उपाश्रय हैं। जिसमें एकमें श्री शांतिनाथ जी का देहरासर है ।
पौषधशाला
यह रांगड़ी के चौक में है। इसकी व्यवस्था पन्नीबाईके उपाश्रय की बाइयों के आधीन है। तपा गच्छ के मुनिराजों का अधिकांश चातुर्मास यहीं होता है। यह पौषधशाला गुमान मल जी वरढिया ने बनवाई थी।
साधर्मशाला यह स्थान रांगड़ी के चौक में है। सं० १६५८ में उपाध्याय श्री हितवल्लभजी गणिने यति श्रीचन्द्र जी से यह स्थान खरीद कर इसे जैन श्वेताम्बर साधर्मीशाला के नाम से स्थापित की। उ० जयचन्द्रजी की प्रेरणा से कलकत्ता और मुर्शिदाबादके संधने इसके खरीदने में सहायता दी थी। इसकी देखरेख बड़े उपाश्रय के ट्रष्टियों के आधीन है। जैन यात्रियों के ठहरने के लिए यह स्थान है। इसमें उ० श्री हितवल्लभजी के चरण सं० १९८१ प्रतिष्ठित है। सं० १६६१ में सावणसुखा सुगनचन्दजी भैरूंदानजी बंगले वालों ने इसकी तिबारी बनवाई।
बीकानेर शहरके उपाश्रयों व साधर्मीशाला का परिचय संक्षेप से ऊपर दिया गया है अब बीकानेर राज्यवर्ती उपाश्रयों की सूची नीचे दी जा रही है :
(१) गंगाशहर- यहाँ मन्दिरजी के पास की जगहमें हाल बना हुआ है जिसमें साधुसाध्वी ठहरते हैं।
(२) भीनासर--यहाँ मन्दिरजी के पास खरतर गच्छ का उपाश्रम है। उ० श्री सुमेरमलजी के शिष्य यहाँ रहते हैं।
(३) उदरामसर-बोथरों के वास में खरतर गच्छ का उपाश्रय है जिसके उपर श्री कुंथुनाथ जी का देहरासर हैं।
(४) देशनोक-यहाँ तीनों मन्दिरोंसे संलग्न ३ उपाश्रय हैं जिनमें २ खरतर गच्छके और एक लुंके गच्छ का है।
(५) उदासर-यहाँ मन्दिर के पास ही धर्मशाला है । (६) झज्मू-यहाँ एक खरतर गच्छ और दूसरा लुका गच्छका उपाश्रय है। (७) राजलदेसर-यहां कंवला गच्छ का एक उपासरा है।
(८) रतनगढ़-मन्दिर के पास उपाश्रय है, जिसमें तेरापंथी-नाटक के रचयिता यति प्रेमचन्द्रजी बड़े प्रसिद्ध हुए हैं।
(६) बीदासर-यहाँ खरतर गच्छ के उपाश्रय में यतिजी रहते हैं।
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[ ५६ ] (१०) सुजानगढ़-यहाँ खरतर गच्छ और लुंका गच्छ के २ उपाश्रय हैं। खरतर गच्छ के उपाश्रयमें यति दूधेचन्दजी और लंका गच्छके उपाश्रय में वैद्यवर रामलालजी यति रहते हैं।
(११) चाहड़वास-कहा जाता है कि यहां के उपासरे में देहरासर भी है।
(१२) चूरू यहाँ खरतर गच्छीय यति ऋद्धिकरणजी का सुप्रसिद्ध बड़ा उपासरा है। यह उपासरा बड़ा सुन्दर और विशाल है, इसमें यतिजी का ज्ञानभण्डार, लायब्रेरी और औषधालय है। इससे संलग्न श्री शांतिनाथजी का मन्दिर और कुआं है यहां लंका गच्छके यतिजी का भी एक अन्य उपासरा है।
(१३) राजगढ़-यहाँ मंदिरसे संलग्न खरतर गच्छ का उपाश्रय है ।
(१४) रिणी - यहाँ मन्दिर के सामने एक पुराना उपाश्रय है जिसमें खरतरगच्छ के यति पन्नालालजी रहते हैं।
(१५) लूणकरणसर--यहाँ मन्दिरके पास खरतर गच्छ के दो उपाश्रय हैं जिनमें से एक की देखरेख रिणी के यति पन्नालालजीके व दूसरा पंचायती के हस्तगत है।
(१६) कालू-यहाँ भी मन्दिर के पास उपाश्रय है और वैद्यवर किसनलालजी यति यहाँ रहते हैं।
(१) महाजन-यहां मन्दिर से संलग्न उपाश्रय (धर्मशाला ) है। (२) सूरतगढ़--यहां खरतर गच्छीय उपाश्रय है।
( १६ ) हनुमानगढ़--यहां बड़ गच्छ की गद्दी प्राचीनकालसे रही है, दुर्गमें मन्दिरके निकट ही एक जीर्ण शीर्ण उपाश्रय अवस्थित है।
बीकानेर रियासत में खरतर गच्छ का बहुत जबरदस्त प्रभाव रहा है। बड़े उपासरे के आदेशी यति गण रियासत के प्रायः सभीगाँवोंमें, जहां ओसवालों की वस्ती थी, विचरते और चातुर्मास किया करते थे। हमारे संग्रह में ऐसे सैकड़ों आदेशपत्र हैं जिनमें श्रीपूज्यों ने भिन्नभिन्न ग्रामों में यतियों को विचरने का आदेश दिया है। अतः उपर्युक्त स्थानों के अतिरिक्त
और भी बहुतसे स्थानों में पहले उपाश्रय थे जिनमें कई भग्न हो गए और कई अन्य लोगोंके कब्जे में है हमारा सर्वत्र भ्रमण भी नहीं हुआ है अतः जिन उपाश्रयों का परिचय हमें ज्ञात हो सका, लिख दिया है।
हमारे संग्रह के एक हस्तलिखित पत्र में वा० हस्तरत्न गणि के उद्योग से गांव नाथूसर में सं० १८११ मिती मिगसर बदि १० को पौषधशाला कराने की प्रशस्ति की नकल मिली जिसे हमने उपाश्रयोंके लेखों के साथ दे दी है।
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बीकानेर के जैन ज्ञानभंडार
जैन साहित्य में ज्ञान को आत्मा का विशेष गुण बताया है और इसीलिये ज्ञान को जैनागमोंमें अत्यधिक महत्व दिया गया है। नंदी सूत्र आगम ग्रंथ तो ज्ञान के विवेचन रूपमें ही बनाया गया है। स्वाध्याय-अध्ययन को आभ्यन्तर तप माना गया है। उसका फल परम्परा से मोक्ष है। अतः जैन मुनियों को स्वाध्याय करते रहने का दैनिक कर्तव्य बतलाया गया है। जैनागमों में प्रतिपादित ज्ञान के इस अपूर्व महत्व ने मुनियों की मेधा का खासा विकास किया। उन्होंने अपने अमूल्य समयको विशेषतः विविध ग्रंथोंके अध्ययन अध्यापन एवं प्रणयन में लगाया फलतः साहित्य ( वाङ्मय ) का कोई ऐसा अंग बच न सका जिसपर जैन विद्वानों की गौरवशालिनी प्रतिभासम्पन्न लेखनी न चली हो। वीर-निर्वाण के ६८० वर्ष पश्चात् विशेष रूपसे जैन साहित्य पुस्तकारुढ़ हुआ। उससे पूर्व आगम कंठस्थ रहते थे। अत: अध्ययन अध्यापन ही जैन मुनियों का प्रमुख कार्य था। इसके पश्चात लेखन भी आवश्यक कार्यों में सम्मिलित कर लिया गया। और साधारण मुनियों का समय जो कि शास्त्रों का प्रणयन नहीं कर सकते थे लिखने में व्यतीत होता था। इसी कारण जैन मुनियोंके हस्तलिखित लाखों ग्रंथ यत्र तत्र विखरे पड़े है। दूसरों की अपेक्षा जैनों की लिखी पुस्तकें शुद्ध पायी जाती हैं। साहित्य के प्रणयन एवं संरक्षणमें जैन विद्वान विशेषतः श्वेताम्बर विद्वान तो बड़े ही उदार रहे है, फलस्वरुप जैनेतर ग्रंथों पर सैकड़ों जैन टीकाएं उपलब्ध हैं, जैन भण्डारों में जैनेतर साहित्य प्रचुर परिमाण में सुरक्षित है उनमें कई ग्रंथों की प्रतियां तो ऐसी भी हैं जिनकी प्रतियां नेतर संग्रहालयों में भी नहीं पाई जाती हैं । अतः उनको बचाये रखने का श्रेय जैनोंको ही प्राप्त है ।
जिस प्रकार जैन मुनियोंने लेखन एवं ग्रंथ निर्माण में अपने अपूर्व समय एवं बुद्धि का, सदुपयोग किया उसी प्रकार जैन उपासकों (श्रावकों) ने भी लाखों करोड़ों रुपये का सद्व्यय प्रतियां लिखने में, विविध चित्रालेखन में, स्वर्ण व रौप्य की स्याही से लिखाने में किया । आज भी जैन भण्डारों में सुरिक्षत हजारों प्रतियां ऐसी हैं जिन्हें श्रावकों ने लाखों रुपये व्यय करके लिखायी थी। उनमें से कल्पसूत्रादि को कई प्रतियां तो लेखन चित्रकला, एवं नाना विविधताओं के कारण ऐसी अद्भुत है कि अपनी सानी नहीं रखती । अहमदावाद के भण्डार में एक कल्पसूत्र की प्रति ऐसी है जिनका मूल्य लाख रुपयेसे अधिक आंका जाता है कई प्रतियां स्वर्णाक्षरी और कई रौप्याक्षरी लेखनकला में है। इस कला की सुन्दरता एवं विविधता जैसी जैन प्रतियों में है, अन्यत्र दुर्लभ है। त्रिपाठ, पंचपाठ, बीच में स्थान छोड़कर बनाये हुए विविध चित्र प्रदर्शन नामादि लेखन आदि अनेकानेक विविधताएं जैन भण्डोरों की प्रतियों में हैं। लेखक एवं लिखाने वाले की प्रशस्तियां भी जैन प्रतियों में एतिहासिक दृष्टि से विशेष महत्व की है।
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[ ६१ ]
जैन भण्डारों की प्रचुरता जैन मुनियों के लिये एक स्थान पर चार्तमास (आषाढ़ से कार्तिक ) के अतिरिक्त, एक स्थान पर एक माससे अधिक रहना निषिद्ध है। अतः निरंतर भ्रमणशील जैन मुनियोंने भारतके कोने कोने में पहुंच कर जैनधर्मका प्रचार किया। परिणाम स्वरूप भारतके सभी प्रान्तों में जैन ज्ञानभण्डार स्थापित हैं। नीचे प्रांत वार उन प्रमुख स्थानों के नामों की सूची दी जाती है, जहाँ ज्ञानभण्डार हैं।
श्वेताम्बर जैन ज्ञानभण्डार राजपूताना-जैसलमेर, बीकानेर, जोधपुर, पीपाड़, आहोर, फलोधी, सरदारशहर, चूरू, जयपुर, झूझD, फतेपुर, लाडणू, सुजाणगढ, पाली, उज्जैन, कोटा, उदयपुर, इन्दौर, रतलाम, बालोतरा, किसनगढ़, नागौर, मंदसौर, ब्यावर, लोहावट, मेड़ता इत्यादि।
गुजरात -- पाटण, खंभात, बड़ौदा, छाणी, पादरा, बीजापुर, लीबड़ी, अहमदाबाद, सूरत, पालनपुर, राधनपुर, डभोई, मांगरोल, ईडर, सीनोर, साणंद, बीशनगर, कपड़बंज, चाणमा, बीरमगाँव, बीलीमोरा, झीवाड़ा, खेड़ा, बढ़वाण, धौलेरा, पाटड़ी, दशाड़ा, लीवण, पूना, बम्बई, भरॉच ।
काठियावाड़ -पालीताना, भावनगर, राजकोट, जामनगर कच्छ-कच्छ कोडाय, मांडवी, मोरबी, दक्षिण-मालेगांव, मैसूर, मद्रास संयुक्तप्रांत--आगरा, बनारस, लखनऊ बंगाल-कलकत्ता, अजीमगंज, जीयागंज, राजगृह (बिहार)
पंजाब-अम्बाला, जीरा, रोपड़, सामाना, मालेरकोटलु, लुधियाना, होशियारपुर, जालंधर, नकोदर, अमृतसर, पट्टो, जंडियाला, लाहोर, गुजरांवाला, स्यालकोट, रावलपिंडी, जम्मू
दिगम्बर जैन ज्ञानभण्डार यों तो इनके जहां जहाँ मन्दिर हैं वहीं पुस्तक संग्रह हैं। पर प्रमुख स्थानोंके नाम इसप्रकार हैं।
- १ आरा २ झालरापाटण, ३ बम्बई, ४ ब्यावर ५ दिल्ली ६ जयपुर, ७ नागौर, ८ कारंजा, ६ कलकत्ता, १० नागपुर, ११ ललितपुर, १२ बासौदा, १३ भेलसा, १४ ईडर, १५ करमसद १६ सोजित्रा १७ अजमेर १८ कामा १६ ग्वालियर २० लश्कर २१ सोनगिरि २२ सीकर २३ मूडविद्रि २४ जनविद्री २५ इन्दौर २६ हूमसपद्मावती २० प्रतापगढ़ २८ उदयपुर २६ सांगवाड़ा ३० आगरा ३१ लखनऊ ३२ दरियावाद ३३ चंदेरी ३४ सिरोज ३५ कोल्हापुर ३६ श्रवणवेलगोला ३७ कारकल ३८ अहम्बुचा ३६ वारंगा ४० आमेर ४१ कांची ४२ अलवर ४३ सम्मेतशिखर ४४ सागर ४५ शोलापुर ४६ अजमेर इत्यादि ।
इन स्थानों में कई कई स्थानों में तो एक ही नगर में ११० भण्डार तक हैं। भू "आपणी ज्ञान परबो" जैन सत्य प्रकाश वर्ष ४ अंक १०-११ वर्ष ५ अंक १ वर्ष ६ अंक ५ में देखना चाहिए। *विशेष जानने के लिये देखें भारतवर्षीय दिगम्बर जैन डीरेक्टरी आदि प्रन्थ ।
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प्रकाशित सूचियाँ उपर्युक्त भण्डारों में से कुछ भण्डारोंके सूचीपत्र भी प्रकाशित हो चुके हैं। कई भण्डारों के ग्रन्थोंका परिचय रिपोर्टों में प्रकाशित हुआ है। हजारों जैन प्रतिये भारतके बाहर एवं भारत के राजकीय संग्रहालयों में पहुंच चुकी है। जिनका विवरण संग्रहालयोंके सूचीपत्रोंमें प्रकाशित हो चुका है। यहां यथाज्ञात सूचियोंके नाम लिखे जा रहे हैं। जिससे साहित्यप्रेमी विद्वानों को विशेष लाभ हो।
--जैन ग्रन्थावली-प्रकाशित-श्री जैन श्वेताम्वर कान्फरेंस बम्बई, सं० १९६५ । इसमें पाटनके ६, अहमदाबाद के २ जैसलमेर, लीबड़ी, भावनगर, बम्बई, कोड़ाय, खंभात और पूना डेक्कन कालेज एवं वृहत टिप्पणिका ( ५०० वर्ष पूर्व लिखित सूचीपत्र) में आये हुए ग्रन्थों की सूची प्रकाशित है।
२-जैसलमेर भाण्डागारीय ग्रन्थानां सूची प्रकाशित गायकवाड़ ओरिण्टीयल सिरीज बड़ौदा सन् १९२३
३-पत्तनस्थ प्राच्य-जैन-भांडागारीय-ग्रन्थसूची भाग १ ताड़पत्रीय प्र० गायकवाड़ औरिन्टीयल सिरीज, बड़ौदा सन् १९३७
४-लीबड़ी-भण्डार-सूची, सं० मुनि चतुरविजयजी प्र० आगमोदय-समिति बम्बई सं० १६.८५
५- पंजाब के भण्डारों की सूची भा० १ सं० बनारसीदास जैन प्र० पंजाब युनिवर्सिटी लाहौर सन् १९३६
६-खंभात शांतिनाथ प्राचीन ताडपत्रीय जैन भंडार सूचीपत्र प्र० यही भंडार, खंभात सन् १९४२
७-सूरत भण्डार सूची सं० केसरीचन्द जौहरी प्र० जैन साहित्य फंड सूरत० सन् १९३८ ८-मोहनलालजी जैन भण्डार सूची प्र० जवेरचन्द रायचन्द गोपीपुरा (सूरत) सन् १६१८ 8-यति प्रेम विजय भण्डार सूची उज्जैन० प्र० यही भंडार, उज्जैन १०-रल प्रभाकर ज्ञानभण्डार सूची ओसियां प्र० वीर तीर्थ ओसियां वीर सं० २४४६ ११---जैन धर्म प्रसारक सभा संग्रह सूची प्र० जैन धर्म प्रसारक सभा, भावनगर १२-सुराणा लायब्रेरी चूरू, सूची प्रकाशित होने वाली है।
१३-जैन कैटलागस कैटलोग्राम सं० H. D. वेलणकर प्र० भण्डारकर रिसर्च इन्स्टीट्यूट पूना से छप रहा है।
१४-जैन साहित्य नो संक्षिप्त इतिहास सं० मोहनलाल दलीचन्द देसाई प्र. जैन श्वे० कान्फन्स बम्बई ।
१५-१६-१७ जैन गूर्जर कविओ भाग १-२-३ सं०मोहनलाल दलीचन्द देसाई प्र० जैन श्वे. कान्फ्रेंस बम्बई।
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[ ६३ ]
दिगम्बर संग्रहालयों के सूचीपत्र १८-जैन सिद्धान्त भवन, आरा का कैटलांग प्र० जैन सिद्धान्त-भवन, आरा सन् १९१३ १६-प्रशस्ति संग्रह प्र० जैन सिद्धान्त भवन आरा० २०--एलक पन्नालाल जैन दि० सरस्वती भवन बम्बई की प्रकाशित रिपोर्टो में।
२१-दिगम्बर जैन ग्रन्थकर्ता और उनके ग्रंथ० सं० नाथूराम प्रेमी प्र० जैन हितैषी व ट्रैक्ट रुपमें।
२२-देहली, मूडबिद्री, इन्दौर, आंबेर, जयपुर, श्रवणवेलगोला, बम्बई, सोनीपथ नागौर आदि के दिगम्बर भंडारों की सूचियें अनेकान्त वर्ष ४-५ में प्रकाशित हैं । ___२३–कारंजा आदिके दिगम्बर भण्डारों की सूची रा० ब० हीरालाल संपादित मध्य प्रान्त और बरारके सूचीपत्र में सन् १९२६ में प्रकाशित की गई है।
२४--दिगंबर जैन भाषा ग्रंथ नामावली, इसमें हिन्दी के ११० कवियोंकी ३०५ कृतियों की सूची है। प्र० ज्ञानचंद्र जैन, दिगम्बर जैन पुस्तकालय लाहौर सन् १६०१
२५-दिगम्बर जैन ग्रंथ सूची, वीर सेवा मंदिर सरसावा द्वारा तैयार हो रही है ।
रिपोर्टो एवं गवर्नमैण्ट संग्रहालयों की सूचियों --जिनमें जैन ग्रन्थों का विशेष परिचय प्रकाशित है, इस प्रकार हैं :
१-भंडारकर आंरिण्टियल रिसर्च इन्स्टीट्यूट, पूना के जैन ग्रंथों का विवरण ३ भागोंमें प्रकाशित हैं। एवं काव्यादि के कैटलांगों में भी उन उन विषयों के जैन प्रथों का विवरण है। ३ भागों के सपादक हीरालाल रसिकदास कापड़िया हैं। संभवतः और भी कई भाग छपेंगे।
२–कलकत्ता संस्कृत कॉलेज के संग्रह में जैन ग्रंथ हैं उनकी सूची भी ३ भागों में स्वतंत्र रूपसे प्रकाशित है अवशेष भागों भी उन-उन विषयों के जैन ग्रंथों की सूची होगी।
३-रायल एसियाटिक सोसायटी, कलकत्ता के संग्रह के जैन ग्रन्थों की एक छोटी सूची प्रकाशित है। अन्य विषय के जैन ग्रन्थोंकी सूची भी तद्विषयक सूचीपत्रों में है।
४-रॉयल एसियाटिक सोसायटी, बम्बई के कैटलॉग में जैनग्रन्थोंका विवरण प्रकाशित है।
५-ऑरिन्टियल मैन्युस्क्रिप्ट लायब्रेरी, उज्जैनके संग्रह के दो भाग प्रकाशित हैं, जिनमें जैन ग्रन्थ भी बहुत से हैं।
६-इण्डिया आफिस, ७ बलिनके कैटलाग, ८ राजेन्द्र मित्रके कैटलाग, ६ तांजोर १० मद्रास, ११ काश्मीर १२ बनारस आदिके राजकीय संग्रहालयों के सूचीपत्रों में भी जैन-प्रन्थोंका विवरण है। उसी प्रकार पीटर्सन की ६ रिपोर्ट भंडारकर की ६, किल्हान की ३, बुलहर के (, काथवटे की २ रिपोर्टों में अनेक जैन भंडारों की प्रतियों का विवरण प्रकाशित हुआ है।
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बीकानेरके जैन-ज्ञान-भण्डार बीकानेरके जैन भण्डारों का भारतीय जैन ज्ञान भण्डारों में बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान है पर अभी तक विद्वत् समाजका इन महत्त्वपूर्ण भण्डारोंकी ओर विशेष ध्यान नहीं गया इसलिए इनका संक्षिप्त परिचय यहां कराया जा रहा है। यद्यपि बीकानेर की कई प्रतियें पूना आदिके अनेक संग्रहालयोंमें एवं अनेक व्यक्तियोंके पास बाहर जा चुकी हैं और हजारों प्रतियें हमारी उपेक्षा एवं अज्ञानतावश दीमक आदि जन्तुओंका भक्ष्य बन चुकी हैं। बहुतसी प्रतिया वर्षात्की शरदीसे चिपक कर नष्ट हो गई हजारों प्रतियें कूटेके काममें और पुड़िया बान्धनेमें लाई गयी फिर भी यहांके विविध जैन संग्रहालयोंमें ५० हजारके लगभग प्रतियां विद्यमान है। जिनमें से सैकड़ों ग्रंथ दुर्लभ एवं अन्यत्र अप्राप्त हैं। इन संग्रहालयोंमें विविध विषयों एवं संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, अपभ्रंश, गुजराती, राजस्थानी, उर्दू, पारसी, महाराष्ट्री एवं बंगला भाषा के ग्रन्थ भी हैं ! कई प्रतियें चित्र-कलाको दृष्टिसे, कई सुन्दर लेखन, कई प्राचीनता एवं कई पाठ शुद्धिकी दृष्टिसे बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं। स्वर्णाक्षरी, रौप्याक्षरी, सूक्ष्माक्षरी, प्रतियां भी यहांके संग्रहालयों में दर्शनीय हैं। बीकानेर एवं उदयपुरके २ सचित्र विज्ञप्तिलेख एवं अनेकों प्राचीन चित्रादि इन संग्रहालयोंकी शोभामें अभिवृद्धि कर रहे हैं। इन संग्रहालयोंका महत्त्व इनको बारीकीसे अवलोकन करने पर ही प्रकाशित किया जा सकता है जिसके लिए बहुत समय एवं श्रमकी आवश्यकता है। यहां तो विद्वद् समाजका ध्यान आकर्षित करनेके लिए ही अति संक्षिप्त परिचय देना अभीष्ट है।
वृहद् ज्ञान भण्डार-बड़ा उपाश्रय, रांगड़ीका चौकमें यह संग्रहालय अवस्थित है। संवत् १९५८ में यतिवर्य हिमतूजी (हितवल्लभ गणि) के विशेष प्रयत्न एवं प्रेरणासे इसकी स्थापना हुई है। ज्ञानकी असीम भक्ति एवं भावी समयमें होनेवाली दुर्दशाओंका विचार कर इस भण्डार में उन्होंने छोटे बड़े व्यक्तियोंका संग्रह एकत्र कर दिया था। जो दाताओंके नामसे अलग अलग अलमारियोंमें रखा हुआ है।
इन ह भण्डारोंके नाम इस प्रकार हैं :
१ महिमाभक्ति भण्डार-खरतर गच्छके प्रसिद्ध विद्वान क्षमाकल्याणोपाध्यायके प्रशिष्य महिमाभक्तिजीका यह महत्त्वपूर्ण संग्रह है। इसमें बहुतसे दुर्लभ एवं महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ हैं। ८६ बंडलोंमें करीब ३००० प्रतियें इस संग्रहके अन्तर्गत है।
२ दानसागर भण्डार-वृहत ज्ञानभण्डारके संस्थापक हिमतूजीने अपने गुरुश्रीका संग्रह उनके नामसे दिया। इसमें भी बहुतसे महत्वपूर्ण ग्रंथ हैं। ६८ बंडलोंमें करीब ३००० प्रतिये इस संग्रहमें सुरक्षित हैं।
३ वर्द्धमान भण्डार-इसके अन्तर्गत ४३ बंडलोंमें १००० प्रतियां है। ४ अभयसिंह भण्डार-इस भण्डारमें २३ बंडलोंमें ५०० प्रतियां है।
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। ६५ ५ जिनहर्षसूरि भण्डार–२७ बंडलोंमें ३०० प्रतियां है ! ६ अबीरजी भण्डार-१६ बंडलोंमें ५०० प्रतियां हैं। ७ भुवनभक्ति भण्डार-१४ बंडलोंमें ५०० प्रतियां हैं। ८ रामचन्द्र भण्डार-६ बंडलोंमें ३०० प्रतियां हैं। ६ महरचन्द्र भण्डार-८ बंडलोंमें ३०० प्रतियां हैं।
उपर्युक्त प्रतियां सभी पत्राकार हैं । इनके अतिरिक्त पुस्तकाकार गुटकोंकी संख्या भी १०० से अधिक होगी । जिनमें छोटी बड़ी बहुतसी रचनाएँ संग्रहित हैं। सब मिलाकर १०,००० प्रतियां इस वृहद् ज्ञानभण्डारमें सुरक्षित है। इनका पुराना सूचीपत्र प्रन्थ नाम एवं पत्र संख्याका ही परिचायक है हमने करीब २० वर्ष पूर्व ६ महीने तक निरन्तर प्रतियोंका निरीक्षण करके विशेष विवरण युक्त सूचीपत्र तैयार किया था।
इस भण्डारका प्रबन्ध ट्रस्टियोंके हाथ में है। जिनमें १ श्रीपूज्यजी २ प्रेमकरणजी खजाची ३ शंकरदानजी नाहटा । इन तीनोंके यहां अलग अलग चाबियां रहती हैं और सबकी उपस्थितिमें भण्डार खोला जाता है।
२ श्रीपुज्यजीका भण्डार-यह बड़े उपाश्रयमें वृहत्खरतर गच्छीय भट्टारक शाखाके पट्टधर आचार्योका संग्रह है। इसकी सूची नहीं थी व संग्रह अस्तव्यस्त था। श्री जिनचारित्रसूरिजीके समयमें विषय विभागसे भली भांति वर्गीकरण कर इसका सूचीपत्र भी आवश्यक विवरणसहमैंने तैयार किया है। इस भण्डार में श्रीपूज्यजी के परम्परागत संग्रह में ८५ बंडलों में २४०० पत्राकार प्रतियां एवं १०० के लगभग गुटकोंका संग्रह है । दूसरा संग्रह चतुर्भुजजी यत्तिका है जिसमें १४ घंडलोंमें ८०० प्रतियोंका संग्रह है। हस्तलिखित प्रतियोंके अतिरिक्त श्रीपूज्यजी महाराजके संग्रहमें २००० के लगभग मुद्रित ग्रन्थोंका भी उत्तम संग्रह है।
३–श्री जैनलक्ष्मी मोहनशाला ज्ञानभंडार-इसे संवत् १६५१ में उपाध्याय जयचन्दजी के गुरू मोहनलालजीने स्थापित किया था। यह संग्रह बड़े महत्त्वका है। इसकी पुरानी सूची बनी हुई है। मैंने आवश्यक विवरण सहित नई सूची तैयार की है। यह संग्रह भी रांगड़ी के चौकमें है। यहाँ १२१ बंडलों में लगभग २८०० पत्राकार व २०० गुटकाकार पुस्तकें हैं।
४-क्षमाकल्याणजी का ज्ञानभंडार-यह भंडार सुगनजी के उपाश्रय में है। इसकी सूची हरिसागरसूरिजी ने बनाई थी। जिसे प्रतियों का भली-भांति निरीक्षण कर मैने संशोधन कर विशेष ज्ञातव्य नोट कर दिया है। हस्तलिखित प्रतियों की संख्या ७०० के लगभग है जिन में खरतर गच्छ गुर्वावली की प्रति अन्यत्र अप्राप्त एवं महत्त्वपूर्ण है।
-बौहरों की सेरीके उपाश्रय का भण्डार - यह संग्रह भी रांगडीके निकटवर्ती बोहरों की सेरीमें है। क्षमाकल्याणजी की आज्ञानुवत्ती परम्परा की साध्धियां इस उपाश्रय में रहती हैं।
६-छत्तीबाईके उपाश्रय का भंडार-नाहटों की गुवाड़ में अवस्थित छत्तो बाई के उपा
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[ ६६ ] श्रय में यह भंडार है। कई वर्ष पूर्व हमने इसे अवलोकन किया था, सूची नहीं बनी है, प्रतियां लगभग ३०० होंगी।
७- पन्नी बाई के उपाश्रय का भंडार - उपर्युक्त उपाश्रयके पीछे की ओर पनी बाई उपाश्रय में करीब ३०० प्रतियां है। इनकी सूची बनी हुई है। मैंने प्रतियों का अवलोकन कर सूची का आवश्यक संशोधन कर दिया है ।
८ - महोपाध्याय रामलालजी का यति के मकान में उनका निजी संग्रह है। लोकन कर आवश्यक नोट्स लिये थे, प्रतियाँ करीब ५०० है ।
संग्रह -- रांगड़ी के पास ही वैद्यरत्न महो० रामलालजी सूची बनी हुई नहीं है। इसका मैने एक बार अब
६ खरतराचार्य शाखा का भंडार -नाहटों की गुवाड़ में बड़े उपाश्रय के पीछे खरतर गच्छ की लघु आचार्य शाखा का भंडार है । इस भंडार की बहुतसी प्रतियों का अवलोकन हमने किया है। इसकी प्रन्थ- नाममात्र की सूची बनी हुई है लगभग २००० ग्रन्थ होंगे।
१० - हेमचन्द्रसूरि पुस्तकालय - बांठियों की गुवाड़ में पायचन्द गच्छके उपाश्रय में उस गच्छके श्रीपूज्यों का यह संग्रह है, हस्तलिखित ग्रन्थोंकी संख्या १२०० है । इसकी सूची बनी हुई है।
११ - कुशलचन्द्र गणि पुस्तकालय - रामपुरियों की गुवाड़ में अवस्थित इस पुस्तकालय में लगभग ४५० हस्तलिखित प्रतियां और मुद्रित ग्रन्थोंका अच्छा संग्रह है ।
१२ - यति मोहनलालजी का संग्रह - सुराणों की गुवाड़ में लौंका गच्छीय उपाश्रय में यह संग्रह है । पर हम अभी तक इस संग्रह को नहीं देख सके ।
१३ - यति लच्छीरामजी का संग्रह - उपर्युक्त लंका गच्छीय उपाश्रय के पास ही है। जिसमें यति लच्छीराम जी के पास कुछ हस्तलिखित प्रतियां है। सूची बनी हुई नहीं है । हमने इसका एकबार अवलोकन किया था ।
१४ - कोचरों का उपाश्रय -- कोचरोंकी गबाड़में अवस्थित इस उपाश्रय में करीब ३० बंडल हस्तलिखित ग्रन्थ हैं जिनमें अधिकांश त्रुटित है। इनकी साधारण सूची अभी बनी है । हमने भी कुछ प्रतियों का अवलोकन किया है ।
१५ - यति जयकरणजी का संग्रह- आप बड़े उपाश्रय में रहते हैं इनके पास करीब २००-२५० प्रतियां और कुछ गुटके हैं।
खेद है कि श्री जिनकृपाचन्द्रसूरि ज्ञानभंडार जिसमें करीब २००० महत्वपूर्ण हस्तलिखित प्रतियं एवं ८०० मुद्रित ग्रन्थ थे। उनके यति शिष्य तिलोकचन्द्र जी ने बेच डाला। अभी हाल ही में फिरसे ज्ञानभंडार स्थापित किया है जिसमें मुद्रित प्रन्थों का संग्रह है इसीप्रकार यति चुन्नीलालजी का संग्रह भी हाल ही में विक्री हो गया है। कई वर्षो पहले यहाँके कँवला गच्छका बड़ा भंडार एवं अन्य भंडारों में से भी बहुत से ग्रन्थ कौड़ीके मोलमें बिक गये हैं उपर्युक्त सभी
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संग्रहालय जैन उपाश्रयों में हैं। जिनमें से नं० १, ४, ५, ६, ७, ९, १०, ११, १४ जैन श्रावकों की देखरेख में हैं अवशेष संग्रह व्यक्तिगत हैं। जिनके सुरक्षित रहनेका प्रबन्ध अत्यावश्यक है।
उपाश्रयों के अतिरिक्त जैन श्रावकों के निम्नोक्त व्यक्तिगत संग्रह भी उल्लेखनीय हैं :
(१) श्री अभय जैन पुस्तकालय - प्रस्तुत संग्रह पूज्यश्री शंकरदानजी नाहटाने अपने द्वितीय पुत्र स्वर्गीय अभयराजजी नाहटाको स्मृति में स्थापित किया है। यह हमारे २७ वर्षे के निजी प्रयत्न एवं परिश्रम का सुफल है। इस संग्रहालय में अद्यावधि पत्राकार हस्तलिखित लगभग १५००० प्रतियां संग्रहित हो चुकी हैं। ५०० के लगभग गुटकाकार प्रतियों का संग्रह एवं १५००० मुद्रित प्रन्थोंका संचय है। ऐतिहासिक सामग्रीके संग्रहका विशेष प्रयत्न किया गया है। ऐतिहासिक ग्रंथों के अतिरिक्त जैनाचार्यो एवं यतियों के पत्र, राजाओं के पत्र, खासरूक्के, सं० १७०१ से अब तक के प्रायः सभी वर्षों के पंचांग, ओसवालोंकी वंशावली आदि अनेकानेक महत्त्वपूर्ण सामग्री का विरल संग्रह है। ग्रंथ संग्रहालय के साथ साथ “शंकरदान नाहटा कला-भवन" भी सम्बन्धित है जिनमें विविध प्राचीन चित्र, सचित्र विज्ञप्तिपत्र, कपड़े पर आलेखित सचित्र पट, प्राचीन मुद्राएँ, कूटे के पूठ, कलमदान, डब्धियें, हाथी, सिंहासन, ताड़पत्रीय, सचित्र व स्वर्णाक्षरी-रौप्याक्षरी-प्रतियां, हाथी दांत व पीतल की विविध वस्तुओंका संग्रह किया गया है। इनमें से सचित्र विज्ञप्तिपत्र, बौद्ध पट आदि कतिपय कलापूर्ण वस्तुएं तो अनोखी हैं।
इस संग्रहालय में साहित्य संसार में अज्ञात विविध विषय एवं भाषाओं के सैकड़ों महत्त्वपूर्ण ग्रंथ हैं। बहुत से दुर्लभ ग्रंथों की प्रेसकापियां भी तैयार की गई हैं। अनेक सुकवियोंकी लघुकृतियों का संग्रह पाटण, जेसलमेर, कोटा, फलोदी, जयपुर, बीकानेर आदि अनेक ज्ञानभंडारोंकी सूचियें विशेष उल्लेखनीय हैं।
(२) सेठिया लाइब्रेरी श्री अगरचन्दजी भैरू दानजी सेठियाकी परमार्थिक संस्थाओं में यह भी एक है। इसमें १५०० हस्तलिखित प्रतिएं एवं १०००० मुद्रित ग्रंथों का सुन्दर संग्रह है।
(३) गोविन्द पुस्तकालय-इसे श्री गोविन्दरामजी भीखमचंदजी भणसालीने स्थापित किया है। यह पुस्तकालय नाहटों की गुवाड़ में हैं। इसमें लगभग १७०० हस्तलिखित एवं १२०० मुद्रित ग्रंथ हैं।
(४) मोतीचन्दजी खजाउचीका संग्रह-श्रीयुक्त जौहरी प्रेमकरणजी खजाठचीके सुपुत्र बाबू मोतीचन्दजी को कुछ वर्षोंसे हस्तलिखित ग्रंथों एवं चित्रादि के संग्रह करने का शौक लगा है। आपने थोड़े समयमें लगभग ६००० हस्तलिखित ग्रंथों एवं विशिष्ट चित्रादि का सुन्दर संग्रह कर लिया है।
(५) श्री० मानमलजी कोठारी का संग्रह - आपके यहां करीब ३०० हस्तलिखित प्रतिए एवं २००० मुद्रित ग्रंथोंका संग्रह है। हस्तलिखित ग्रंथोंकी सूची अभी तक नहीं बनी। आपके यहाँ कुछ चित्र पत्थर और अस्त्र-शस्त्रादि का भी अच्छा संग्रह है।
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[६८ ] (६) मंगलचन्दजी मालूका संग्रह-आपके यहां भी जैनागमादि ग्रंथोंका संग्रह है पर अभी तक हम अवलोकन नहीं कर पाये।
(७) भंवरलालजी रामपुरिया का संग्रह-आपके संग्रह में भी कुछ हस्तलिखित ग्रंथ हैं। (८) मंगलचन्दजी झाबकका संग्रह-आपके यहां भी कुछ हस्तलिखित ग्रंथोंका संग्रह है।
(8) श्रीराय गोपालसिंहजी बैदका संग्रह--आपके यहां भी हस्तलिखित गुटकों एवं चित्रों का अच्छा संग्रह है।
इन जैन संग्रहालयों के अतिरिक्त बीकानेर महाराजाकी अनूप-संस्कृत-लाइब्रेरी जो कि पुराने किले में अवस्थित है, बहुत ही महत्त्वपूर्ण ग्रन्थागार है। इसमें वेद, वेदान्तादि सभी विषयकी १२००० हस्तलिखित प्रतियें एवं १०० के लगभग गुटके हैं। इन प्रतियों में जैन प्रतियों की संख्या भी १५०० के लगभग होगी। राजस्थानी साहित्य पीठ में स्वामी नरोत्तमदासजी प्रदत्त हस्तलिखित ग्रंथोंमें भी कुछ जैन ग्रंथ हैं।
___ प्रस्तुत लेखमें केवल हस्तलिखित प्रतियोंके ज्ञानभंडारों का ही परिचय देना अभीष्ट होने से मुद्रित ग्रंथोंके पुस्तकालयों-श्रीमहावीर जैन मण्डल, सुराणा लाइब्रेरी, प्रधान वाचनालय आदिका परिचय नहीं दिया गया है। ऊपर लिखे हस्तलिखित ग्रंथालयों में मुद्रित ग्रंथोंका संग्रह भी है, खोज करने पर यति यतिनियां और श्रावकोंके घरों में थोड़ी बहुत हस्तलिखित प्रतियां पाई जा सकती हैं।
उपर्युक्त सभी ज्ञानभण्डार बीकानेर में हैं। अब बीकानेर राज्यवर्ती जैन ज्ञानभण्डारों का संक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है।
१ गंगाशहर - बीकानेर से २ मील पर है। यहां जैन श्वे. तेरापंथी सभामें लगभग ३०० हस्तलिखित ग्रंथ और मुद्रित ग्रंथोंका भी अच्छा संग्रह है।
२ भीनासर-बीकानेर से ३ मील है ! यहां यतिवर्या सुमेरमलजी का अच्छा संग्रह है, जिनमें से कुछ प्रतियों का हमने दर्शन किया है। यहां श्रीयुक्त बहादूरमलजी बांठिया के संग्रह में भी चुनी हुई ७००-८०० अच्छी प्रतियां हैं कई वर्ष पूर्व हमने उनका अवलोकन किया था। श्री चम्पालालजी बैद के यहां भी अच्छा संग्रह सुना जाता है, हमने अभी तक देखा नहीं ।
३ देसनोक-बीकानेरसे १६ मील दूर है। यहां स्वर्गीय तरुतमलजी डोसी एवं लौंकायति जीके संग्रह में कुछ हस्तलिखित ग्रंथोंका संग्रह है।
४ कालू-भटिण्डा रेलवे लाईन के लूणकरणसर स्टेशन से १२ मील पर यह गांव है । यहाँ यति किसनलालजीके संग्रहमें हस्तलिखित प्रतियां है पर हम उनका अवलोकन नहीं कर पाये।
५ नौहर--यहांके श्रावकों के पास यतिजी की कुछ हस्तलिखित प्रतियां हैं।
६ सूरतगढ़-यहां के जैन मन्दिरके पीछेके कमरे में एक पुस्तकालय है जिसमें कुछ हस्तलिखित प्रतियां भी हैं।
७ हनुमानगढ़-यहां ताराचन्दजी तातेड़ के मकान में अच्छा संग्रह है। एवं देवी जी
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के मन्दिर में बड़गच्छ यतिजी का भी अच्छा संग्रह बतलाते हैं। इनमें से पहला संग्रह हमने देखा हैं, दूसरा अभी तक नहीं देख सके ।
(८) राजलदेसर - यहाँ उपकेश गच्छीय यति दौलतसुन्दरजी के पास थोड़ी प्रतियाँ थीं । (१) रतनगढ - वैदों की लाइब्रेरी एवं सोहनलालजी वैद के पास कुछ हस्तलिखित ग्रन्थ हैं । (१०) बीदासर - यति श्री गणेशचन्दजी के पास १५-२० बंडल हस्तलिखित ग्रन्थ हैं । (११) छापर - यहाँ श्री मोहनलालजी दुधेरिया के पास कई चुनी हुई प्रतियाँ एवं प्राचीन चित्रोंका अच्छा संग्रह है ।
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(१२) सुजानगढ़ -- १ यहाँ लोंका गच्छके प्रसिद्ध वैद्यवर रामलालजी यतिके, २ खरतर गच्छीय यति दूधेचन्दजी के, ३ दानचन्दजी चोपड़ा की लाइब्रेरी में, ४ पन्नाचन्द्रजी सिंधी के जैन मन्दिर में हस्तलिखित प्रतियाँ सुरक्षित हैं।
(१३) चूरू - १ यतिवर्य ऋद्धिकरणजी के बड़े उपाश्रय में २००० के लगभग हस्तलिखित प्रतियाँ हैं। उनकी सूची बनी हुई नहीं हैं, हमने अवलोकन किया है । ( २ ) सुराणा लाइनरी -- बीकानेर स्टेट की प्रसिद्ध लाइनरियों में हैं। लाइब्रेरी का भवन अलग बना हुआ है उसमें मुद्रित ग्रन्थोंके साथ करीब २५०० हस्तलिखित ग्रन्थ भी हैं जिनमें कुछ ताड़पत्रीय प्रतियें, चित्रित प्रन्थ, बौद्ध ग्रंथ और चित्रादि विशेष उल्लेखनीय है । सम्मेलनादि अधिवेशनों के प्रसङ्ग पर इस संग्रहकी विशिष्ट वस्तुओंका प्रदर्शन भी कराया जाता है ।
(१४) राजगढ़ – यहाँ के ओसवाल पुस्तकालय में यतिजी के ६ बण्डल हस्तलिखित प्रतियाँ हैं। पर उनमें अधिकांश त्रुटित और फुटकर प्रतियाँ है ।
(१५) रिणी - यति पन्नालालजी के पास थोड़ी प्रतियाँ है । इनके कुछ ग्रंथ लूणकरणसर मैं भी पड़े हैं।
(१६) सरदारशहर - १ यहाँ श्री वृद्धिचन्दजी गधैया के मकान में अच्छा संग्रह है। इनका बहुत वर्षो से संग्रह करनेका प्रयत्न रहा है, तेरापंथी सभामें भी आपके भेंटकी हुई बहुतसी प्रतियाँ हैं । २ तेरापंथी सभामें ७३ बण्डल हस्तलिखित ग्रंथ है जिनमें अच्छी प्रतियाँ है । सरदारशहर के ये दोनों संग्रह चूरू के दो संग्रहालयों की तरह बीकानेर स्टेट के संग्रहालयों में अपना महत्त्व - पूर्ण स्थान रखते हैं। श्री दूलीचन्दजी सेठिया के पास भी कई हस्तलिखित प्रतियाँ हैं जिनमें अधिकांश आधुनिक हैं ।
बीकानेर डिवीजन के अन्य भी कई स्थानोंमें तेरापंथी श्रावकों आदि के पास व्यक्तिगत संमह सुनने में आया है, हमें उनका निश्चित पता न होने से यहां यथाज्ञात संग्रहों का परिचय दिया गया है। बीकानेर एवं डिवीजन के ज्ञानभंडारों में हजारों ग्रंथ अन्यत्र अप्राप्य हैं उनकी एक विशिष्ट सूची यथासमय प्रकाशित करने का विचार हैं, पर अभी थोड़े से दुर्लभ ग्रंथों की सूची दी जा रही है।
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[ ७० ] बीकानेर के जैन ज्ञानभंडारों में दुर्लभ ग्रंथ
ताड़पत्रीय प्रतिये (१) पाशुपताचार्य वामेश्वरध्वज रचित प्रबोद्धसिद्धि' (न्याय ग्रंथ ) हमारे संग्रह में (२) महाकवि मूलक रचित प्रतिज्ञा गांगेय (सदुर्गटीक कातन्त्र द्वाश्रय) सुराणा लाइब्रेरी
कागज पर लिखित-ऐतिहासिक ग्रन्थ (३) सिद्धिचन्द्र रचित भानुचन्द्र चरित्र'
जयचन्दजी के भण्डारमें (४) जिनपालोपाध्याय खरतरगच्छ गुर्वावली क्षमाकल्याणजी भण्डार
वादिदेवसूरि चरित्र (अपूर्ण) ___ हमारे संग्रह में (६) अनेक कवियोंके रचित खरतर,लौका, बड़ गच्छादि की विविध पट्टावलिये "
जयतसी रासो' गा० ८७ राजस्थानी रसविलास (अपूर्ण)६ " वच्छावत वंशावली "
जिनभद्रसूरि रास " (११) जिनपतिसूरि रास, जिनकुशलसूरि रास, जिनपद्मसूरि रास, जिनराजसूरि रास, जिनरत्नसूरि रास, जिनसागरसूरि रास, विजयसिंहसूरि रास, जिनप्रभसूरिजि नदेवसूरि गीत आदि अनेकों ऐतिहासिक गीत एवं गुर्वावलिए जो कि अन्यत्र अप्राप्य हैं हमने अपने ऐतिहासिक
१-परिचयके लिए देखें राजस्थान भारती व २॥
२-इसे हमने श्री. मोहनलाल दलीचंद देसाई को भेजकरसंपादित करवाया जो सिंधी जैन ग्रन्थमाला से प्रकाशित हुआ है।
३-इस अद्वितीय ग्रन्थको भी मुनि जिनविजयजीको भेजकर सिंघी जैन ग्रन्थमालासे मुद्रित करवाया है। इस ग्रन्थके महत्त्वके सम्बन्ध में मेरा लेख “खरतर गच्छ गुर्वावली और उसका महत्त्व" भारतीय विद्या वर्ष १ अंक ४ में देखना चाहिए।
४-इस काव्यका थोड़ा परिचय मैंने “एक नवीन ऐतिहासिक काव्य" लेख में दिया है जो कि जैन सत्य प्रकाश वर्ष ५ अंक ८ में प्रकाशित हुआ है।
५.-इसका विशेष परिचय राजस्थानी वर्ष ३ अंक १ में दिया गया है। यह छपा दिया गया है ।
६-इसके सम्बन्धमें प्रजासेवक के ता० ३-१२-४१ के अंक में 'एक अप्रसिद्ध राजस्थानी काव्य' शीर्षक लेख में प्रकाश डाला गया है।
७-इसका परिचय भी राजस्थानी वर्ष ३ अंक ३ में दिया गया है। उस समय प्रारंभके कुछ पद्य अप्राप्त थे वे पीछेसे उपाध्याय विनयसागरजी प्रेषित २ पत्रोंमें प्राप्त हो गये हैं।
८-इसका ऐतिहासिक सार जैन सत्य प्रकाश वर्ष ३ अंक ८ में प्रकाशित किया है।
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। ७१ जैन काव्य संग्रहमें प्रकाशित किये हैं। अप्रकाशित ऐतिहासिक साहित्यमें और भी देवचन्द रास' जिनसिंहसूरि रास आदि अनेक रास, गीत, नगरवर्णनात्मक गजलें हमारे संग्रहमें हैं।
जैन तीर्थों के सम्बन्धी ऐतिहासिक साहित्यमें जयकीर्ति कृत सम्मेतशिखर रास और अनेक तीर्थमालाएँ, चैत्य परिपाटियों की प्रेसोपिया हमारे संग्रहित है।
इसी प्रकार वंशावलियों में जैसलमेर वंशावली, वच्छावत वंशावलि, राठौड़ोंकी ख्यात एवं बातें, ओसवाल जाति के अनेक गोत्रों की वंशावलिये, इत्यादि महत्त्वपूर्ण विविध ऐतिहासिक साहित्य हमारे संग्रह में अप्रकाशित है।
गच्छों के सम्बन्ध में भी बड़गच्छ गुर्वावली", तपागच्छ गुर्वावली, उपकेश गच्छ गुर्वावली, पल्लीवालगच्छ पट्टावली, राजगच्छ कडवागच्छ आदिकी पट्टावलियोंकी नकलें ओसवाल वंशावलियों, विज्ञप्ति-लेख पत्र संग्रहादि विशेष उल्लेखनीय हैं।
संस्कृत जैन काव्य (१) पद्मसुन्दर कृत अकबर शाहि शृङ्गार दर्पण अपूर्ण हमारे संग्रह में
पूर्ण अनूप-संस्कृत-लाइब्रेरीमें (२) नंदिरत्न शिष्य” सारस्वतोल्लास काव्य (३) विमलकीर्ति " चन्द्रदूत काव्य
हमारे संग्रह में (४) मुनीशसूरि " हंसदूत सं०१६०० लिखित " (५) श्रीवल्लभ " विद्वद्प्रबोध
१-इसका ऐतिहासिक सार भी सौभाग्यविजय रास सारके साथ जैन सत्यप्रकाश के वर्ष २ अंक १२ में प्रकाशित किया है।
२-इस रासका ऐतिहासिक सार जिनराजसूरि रास सारके साथ जैन सत्यप्रकाश वर्ष ३ अंक ४-५ में प्रकाशित हुआ है।
३ राजस्थान में हस्तलिखित हिन्दी ग्रन्थों की खोज ग्रन्थके दूसरे भागमें विवरण प्रकाशित है इनमें कुछ गजलें मुनि कांतिसागरजीने हिन्दी पद्य संग्रह ग्रन्धमें प्रकाशित हो चुकी हैं कुछ भारतीय विद्या जैन विद्यादि पत्रोंमें । कांतिसागरजीका एक लेख भी राष्ट्र-भारती नवम्बर १९५३ में प्रकाशित हुआ है।
४-इसका सार जैन सत्यप्रकाश वर्ष ७ अंक १०-१२ में प्रकाशित किया है। प्रति मोतीचन्दजी खजाशीके संग्रह में हैं।
५-इसे जैन सत्यप्रकाश वर्ष ७ अंक ५ में प्रकाशित की है। ६-इसे श्री. मोहनलाल द. देसाईने भारतीय विद्या वर्ष १ में प्रकाशित की है।
७--यह ग्रन्थ गंगा ओरिण्टियल सीरीज बीकानेर से प्रकाशित हुआ है। इसके रचयिता पद्मसुन्दरजी के सम्बन्धमे “कवि पद्मसुन्दर और उनके ग्रन्थ" अनेकान्त वर्ष ४ अंक ८ में प्रकाशित किया है।
८-इसका कुछ परिचय मैंने “दूत काव्य संबन्धी कुछ ज्ञातव्य बातें" लेखमें जैन सिद्धान्त भास्कर भाग ३ किरण १ में प्रकाशित किया है। अभी उ० श्री सुखसागरजीने इस ग्रन्थको प्रकाशित कर दिया है।
९-इसका परिचय "श्रीवल्लभजीके तीन नवीन ग्रन्थ' शीर्षक लेखमें जैन सत्यप्रकाश वर्ष ५ अंक ७ में प्रकाशित है। यह भी उ० सुखसागरजीके द्वारा चन्द्रदूतके साथ प्रकाशित हो चुका है।
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(६) इन्द्रनन्दिसूरिशिष्यकृत वैराग्य शतक सं० १५६० लिखित हमारे संग्रहमें (७) मुनिसोम कृत रणसिंहचरित्र' सं० १९४० रचित " (८) सुमतिविजय " प्रियविलास
श्रीपूज्यजी के संग्रह में () संरचन्द्रगणि" पंचतीर्थी स्तव
महिमाभक्तिभंडार (१०) देवानंदसूरि ” अजितप्रभु चरित्र' वृहद् ज्ञानभंडार (११) प्रतिष्ठासोम" धर्मदूत (१२) राजवल्लभ " सिंहासनद्वात्रिंशिका
गोविन्द पुस्तकालय (१३) समयसुंदर " जिनसिंह पदोत्सव काव्यादि प्रतिलिपि हमारे संग्रहमें
संस्कृत टीकाएँ (१) हर्षनन्दन उत्तराध्ययन वृत्ति महिमाभक्ति भण्डार (२) अजितदेवसरि कल्पसूत्र वृत्ति जयचन्दजी भण्डार (३) जयदयालजी नन्दीसूत्र वृत्ति-सानुवाद श्रीपूज्यजी संग्रह (४) प्रद्युम्नसूरि कातन्त्रवृत्ति सं० १३६६ लि० वृद्ज्ञानभण्डार (२) समयसुन्दर वाग्भटालंकार वृत्ति
माघ काव्य वृत्ति (तृयीय सर्ग) सुराणा लाइब्रेरी, चूरू (७) गुणविनय नेमिदूत वृत्ति
रामलालजी संग्रह (८) कविचक्रवर्ती श्रीपाल शतार्थी
वैदोंकी लाइब्रेरी, रतनगढ़ (६) श्रीसार
पृथ्वीराजवेलि टीका गोविन्द पुस्तकालय (१०) रूपचन्द्र सिद्धान्तचन्द्रिका वृत्ति वृहज्ञानभण्डार (११) समरथ रसिकप्रियावृत्ति (१२) वीरचन्द्र शि० विहारीशतसयोवृत्ति (१३) गुणरत्न
सारश्वतप्रक्रियावृत्ति (१४) , शशधर टिप्पण
अनूप सं० ला० (१५) विनयरत्न विदग्ध मुखमण्डनवृत्ति हमारे संग्रह में
(६)
"
१-यह ग्रन्थ श्री जिनदत्तसूरि पुस्तकोद्धार फंड, सूरतसे प्रकाशित हो चुका है। २-इसका परिचय 'जेन सिद्धान्त भास्कर में प्रकाशित किया है। ३-इसका परिचय 'अनेकान्त' में प्रकाशित किया है।
४-इस ग्रन्थका कुछ परिचय मैंने अपने “पल्लीवाल गच्छ पट्टावली" लेख में दिया है जो कि आत्मानंद शताब्दी स्मारक ग्रन्थ में प्रकाशित है।
५.-.-उपाध्याय विनयसागरजीने इसे कोटासे प्रकाशित कर दिया है। ६.--इसका उल्लेख मैंने “जैन अनेकार्थ साहित्य" लेखमें जैन-सिद्धान्त-भास्कर वर्ष ८ अंक १ में किया है।
७-८-इनका विवरण "राजस्थान में हिन्दी ग्रन्थोंकी खोज" भाग २ और सम्मेलन-पत्रिका में प्रकाशित है।
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[ ७३ ] (१६) गुणरत्न काव्य प्रकाश वृत्ति
वृहद् ज्ञानभण्डार और भी पचासों जैनतर ग्रन्थों पर जैन टीकायें यहाँके भण्डारों में अन्यत्र अप्राप्य है। जनका विवरण मैंने अपने “जनेतर ग्रन्थों पर जैन टीकायें" (प्र. भारतीय विद्या वर्ष २ अं० ३।४ ) लेखमें दिया है।
हिन्दी ग्रन्थ हमारे संग्रह में व अनूप-संस्कृत-लाइब्रेरी में हिन्दीके सैकड़ों ऐसे ग्रंथ हैं जिनकी दूसरी प्रति अभी तक कहीं भी जानने में नहीं आई। इनमें से कुछ ग्रंथोंका परिचय हमने अपने निम्नोक्त लेखों में प्रकाशित किया है :--
(१) जैनों द्वारा रचित हिन्दी पद्यमें वैद्यक ग्रंथ प्र० हिन्दुस्तानी भो० ११ अं०२ (२) कवि जटमल नाहर और उनके ग्रन्थ प्र० , भा० ८ अं०२ (३) श्रीमद्ज्ञानसारजी और उनका साहित्य प्र० , भा० ६ अं० २ (४) हिन्दी में विविध विषयक जैन साहित्य प्र० सम्मेलन-पत्रिका भा० २८ अं० ११, १२ (५) हमारे संग्रहके कतिपय अप्रसिद्ध हिन्दी ग्रंथ प्र० , , भा० २६ अं० ६, ७ (६) छिताई वाता
प्र. विशालभारत मई, सन् १९४५ (७) रत्नपरीक्षा विषयक हिन्दी साहित्य प्र० राजस्थान-साहित्य वर्ष १ अं० १ (८) विक्रमादित्य संबन्धी हिन्दी ग्रंथ प्र० , , वर्ष १ अं०३ (8) संगीत विषयक हिन्दी ग्रन्थ
प्र० , ५ वर्ष १ अ०२ और भी अनेकों लेख तैयार है एवं विवरण ग्रंथके दो भाग भी तैयार किये हैं जिनमें से एक हिन्दी विद्यापीठ उदयपुरसे प्रकाशित हो चुका हैं दूसरा छप रहा है।
इसी प्रकार राजस्थानी और गुजराती में सैकड़ों ग्रन्थ यहाँके भण्डारों में हैं जिनका विवरण श्री० मोहनलाल द० देसाई संपादित जैन गुर्जर कविओ भा० ३ में दिया गया है। इसकी पूर्ति रूपमें हमने एक ग्रंथ तैयार किया है।
अनूप संस्कृत लाइब्रेरीके संस्कृत ( कुछ विषयोंको छोड़ ) एवं राजस्थानी ग्रन्थोंके केटलग तो प्रकाशित हो चुके हैं जिनमें सैकड़ों अन्यत्र अप्राप्य ग्रन्थोंका पता चलता है। हिन्दी प्रन्थोंकी सूची भी छपी तो पड़ी है अभी प्रकाशित नहीं हुई । इसकी भूमिका एवं सम्मेलन पत्रिका वर्ष ३६ अंक ४ में यहांके अलभ्य हिन्दी ग्रन्थों की सूची हमने प्रकाशित की है।
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[ ७४ ]
बीकानेर के जैन श्रावकों का धर्म-प्रेम
मध्यकाल के जैन समाज में श्रद्धा और भक्ति अत्यधिक मात्रा में थी, इसी कारण उन्होंने जैन मन्दिरोंके कलापूर्ण निर्माण में, जैन प्रन्थोंके सुन्दर स्वर्णाक्षरों में सचित्र लेखन में एवं तीर्थयात्रा के विशाल संघ और गुरुभक्ति में असंख्य धन राशि का व्यय कर अपने उत्कट धर्म-प्रेमका परिचय दिया है। बीकानेर के जैन श्रावकोंने यहां के जैन मन्दिरोंके निर्माण में जो महत्त्वपूर्ण भाग लिया है वह तो इस लेख संग्रह से विदित ही हैं। यहां केवल उनके निकाले हुए संघ, अन्य स्थानों में कारित मन्दिर मूर्त्ति तालाव एवं गुरुभक्ति आदि विविध धार्मिक कृत्योंका संक्षेप में निदर्शन कराया जा रहा है।
बीकानेर के तीर्थयात्री संघ
सं० १५५०-६० के लगभग मंत्रीश्वर वच्छराजने संघ सहित शत्रुंजय तीर्थकी यात्रा की जिसका वर्णन साधुचन्द्र कृत तीर्थराज चैत्य परिपाटी में मिलता है और उसके पश्चात् उनके सुपुत्र कर्मसिंहने शत्रुंजय का कर छुड़ाकर संघसह यात्रा करते हुए रैवताचल, अर्बुद और द्वारिका आदि तीर्थोंकी स्थान स्थान पर लंभनिका देते हुए यात्रा की। उनके पुत्र वरसिंहने चांपानेर में बादशाह मुजफ्फरशाह से ६ महीने का शत्रुंजय यात्रा का फरमान प्राप्त किया और शत्रुंजय, अद, रैवत तीर्थोकी संघ सहित यात्रा की और तीर्थोंको कर से मुक्त कर लंभनिका वितरण की । इसी प्रकार नगराज संग्रामसिंह आदि ने भी तीर्थाधिराज शत्रुंजय की यात्रा की, तीर्थको कर से मुक्त कर इन्द्रमाला ग्रहण की* ।
सं० १६१६ मिती माघ शुदि १९ को बीकानेर से एक विशाल यात्री संघ शत्रुंजय यात्रा के लिए निकला। जिसने सारुडइमें प्रथम जिन, खीमसर में ३ चैत्य, आसोप के २ मन्दिरोंके दर्शन कर रजलाणी होकर फलौदी पार्श्वनाथ की फाल्गुण वदि ८ को यात्रा की। वहां से वाहलपुरके जिनमन्दिर, पालीके ३, गुंदवच १, खउड़, बीभावइ १, वरकाणा-पार्श्व २, नाडुल २, नाडुलाई में ७, थणडर १ एवं कुंभलमेर फाल्गुण सुदि ५ को १८ मन्दिरोंकी यात्रा की । कहलवाडा १, सादड़ी, राणकपुर में सुदि ६ को आदिनाथ प्रभुकी यात्रा की । फिर मंडाइ १ संडेरइ १, वाकुली १, कोरंटइ ३, वागसेण १, कोलरी १, कोलरइ २ व सीरोहीके ८ चैत्योंकी यात्रा की । आबूके निकटवर्त्ती ३ मन्दिर, हलोद्र में १ मन्दिर के दर्शनकर चैत्र वदि ५ को आबू-तीर्थकी यात्रा की । देवलवाड़े के ५ मन्दिर व अचलगढ़ के २ मन्दिर, तेरवाड़ के ३, राधनपुरके ३, गोसनाद १, लोलाड़इमें संखेश्वर पार्श्वनाथको वंदन किया वहांसे मांडलि, लिगसिर २, चूड़इ २, राणपुर २, लोलियाणा के मन्दिरोंके दर्शन करते हुए क्रमशः पालीताना पहुंचे, चैत्री पूनम के दिन
* विशेष जानने के लिए कर्मचन्द्र मंत्रिवंश प्रबन्ध वृत्ति देखना चाहिए।
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[ ७५] तीर्थाधिराज शत्रुजयकी याना की। फिर गिरनार पर श्रीनेमिनाथ प्रभुको यात्रा कर संघ वापस लौटा। वासावाड़, बलदाणइ के २, वड़वाहण १, वड़ली के २ मन्दिरोंके दर्शन कर संघ पाटण पहुंचा। श्रीजिनचन्द्रसूरिजी उस समय पाटण में विराजते थे, गुरु वन्दना कर संघ अहमदावादके मन्दिरोंका दर्शन कर थिरादराके ५, साचोर में महावीर, राङद्रह में २, वीरमपुर, कोटणइ में २, वछही, जोधपुर, तिमरी २, ओसियों में वोर प्रभु एवं बावड़ी ग्राम की चैत्य वन्दना कर वापस बीकानेर लौटा।
सं० १६४४ के माघ वदि १ को बीकानेर से शत्रुजय यात्री संघ निकल कर अहमदाबाद गया जिसका वर्णन गुगविनय गणिने शत्रुजय चैत्य परिपाटी में इस प्रकार है-इस संघके साथ श्रेयांसनाथ कुंथुनाथ और पार्श्वनाथ प्रभु के देहरासर थे। संघने माह वदि ४ को सारुडइ में आदिनाथ जिनालयको वंदन किया फिर बावड़ी १, तिमरी २, जोधपुर में माह वदि ६ को ५ जिनालयों को वन्दन किया। स्वर्णगिरिके ५ मन्दिर, लासा ग्राममें २, गोवल में १, और सोरोही के १० जिनालयों में माघ सुदि ७ को चैत्यवंदनाकी। वहां से मांकरडइ १, नीतोड़ा १, नानवाड़इ १, कथवाइइ १, संघवाइ, खाखरवाड़इ १, कास्तरइ २, अंबथल १, मोड़थल १ रोहइ २, पउड़वायइ १, सौरोतर १, वडगाम १, सिद्धपुर ४, लालपुर १, उन्हइ १, मइसाणइ १०, पनसरि १, कलवलि १, ऊनेऊ १, सेरिसइ लोडणपार्श्व, धवलका ७ चैत्योंके साथ सपरिवार युगप्रधान श्री जिनचन्द्रसूरिको वन्दन किया। वहां संघपति जोगी सोमजीका विशाल संघ अहमदावादसे
आकर ७०० सिजवालों के साथ इस संघमें सम्मिलित हुआ। वहां से धंधका* में जिनालयका वन्दनकर शत्रुजयका दूर से दर्शन किया। पालीताना पहुँचकर १ जिनालय की वन्दना कर चैत्र यदि ५ को गिरिराज शत्रुजय की यात्रा की। चैत्र वदि ८ को संघने १७ भेदी पूजा कराई। बड़े उत्साह व भक्तिके साथ यात्रा कर सघ वापिस लौटा और अहमदावाद आकर
गुणरंग कृत चैत्य परिपाटी स्तवन के आधार से, जो कि परिशिष्ट में छपा है।
* कवि कुशललाभ कृत संघपति सोमजी संघ वर्णन तीर्थमालामें इस यात्राका विशेष वर्णन है उसमें लिखा है कि-धुन्धुकाके पश्चात् खमीधाणा पहुँचने पर आगे चलने पर युद्धसूचक शकुन हुए अतः संघपति सोमजीने २ दिन वहीं ठहरने का निश्चय किया। परन्तु बीकानेरके संघने इस निर्णयको अमान्यकर सीरोही संघके साथ वहां से प्रयाण कर दिया ३ कोश जाने पर मुगलोंने संघको चारों ओर से घेर लिया। संघके लोगोंमें बड़ी खलबली मच गई, नाथा संघवी एवं बीकानेरके अन्यलोग बड़ी वीरताके साथ लड़ने लगे। पर मुगलोंके भय से कई लोग भयभीत होकर दादा साहबको स्मरण करने लगे। संघ पर संकट आया हुआ जानकर युगप्रधान श्रीजिनदत्तसूरिजीने अपने दैवी प्रमावसे संघकी सुरक्षाकी मुगललोग परास्त होकर भाग गए। दादाजी के प्रत्यक्ष चमत्कारको अनुभवकर संघ बड़ा आनन्दित हुआ। शत्रुजय महातीर्थकी यात्रा करने के पश्चात् जब ग्रह संघ गिरनारजी की यात्राके लिए रवाना हुआ तो जूनागढ़के अधिकारी अमीखानने बहुतसी सेनाके साथ आकर संघको विपत्तिमें डाल दिया । परन्तु जैन संघके पुण्यप्रभावसे सारे बिघ्न दूर हो गए। 'इस तीर्थ मालाके अपूर्ण मिलने से आगेका वर्णन अज्ञात है।
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जिनालयों को वन्दन किया। वहां से आसाउलमें २, समापुर १, गोल १ जिनालय के दर्शन कर आबू तीर्थ व अचलगढकी यात्रा की। वहां से प्रयाणकर ज्येष्ठ सुदि ६ को ओसियां में महावीर भगवान, ज्येष्ठ सुदि १३ को रोह ग्राम में श्री जिनदत्तसूरि स्तूपके दर्शन किये एवं ज्येष्ठ सुदि १५ को स्वधर्मीवात्सल्य करके भीदासर होकर संघ बीकानेर पहुँचा ।
___ इसी प्रकार सं० १६५७ में लिग गोत्रीय संघपति सतीदासने संघ निकाला ज्ञात होता है पर उसके संबन्ध में विशेष जानकारी के लिए हमारे पास कोई साधन नहीं हैं। संघपति सती दासने शत्रुजय पर्वत पर मूलमन्दिरकी द्वितीय प्रदिक्षणा में जैन मन्दिर बनवाया था जिसका उल्लेख आध्यात्मज्ञानी श्रीमद् देवचन्द्रजीने अपनी शत्रुञ्जय चैत्य परिपाटीमें इस प्रकार किया है
"दीजै बीजी वार प्रदिक्षणा संघवी चैत्य करो जिन वन्दना । बीकानेरी सतीदास नौ चेइय अति उत्तंग सुवासनौ । आसने त्ये पंच जिनवर मूलनायक सोहणा ।
तेतीस मुद्रा सिद्धजीनी भविक मन पडिबोहणा।" इन सतीदासने गिरिराजकी तलहटी में यात्रियोंके आराम के लिए एक सुन्दर वापी बनवाई जो कि 'सतीवावनामसे प्रसिद्ध है जिसका शिलालेख इस प्रकार है :
"संवत् १६५७ वर्षे। सनि इलाही ४४॥त्रमास पूर्णिमा दिने सूदन सिरकार सोराठपति साहे श्री अकबर दे विजयि राज्ये जागीरदार राष्ट्रकूट कुलकुमुद दिवाकर महाराजाधिराज महाराज श्री श्री श्रीराजसिंहजी नरमणि विजयमान तदधिकारि लदा (१) मुख्य खवास श्री तेजाजी तत्कृत्य धराधरंधरा श्री जलालदीन श्री अकबरशाहि प्रदत्त युगप्रधान पदधारक आषाढाष्टाह्निका सकल सत्त्व निकर मारि निवारक संवत्सरावधि स्तंभ तीर्थीय जलनिधि जलचर जीव जाल मोचकः पंचनदी साधकः श्री बृहत्खरतर गच्छाधीश्वर श्रीजिनमाणिक्यसूरि पट्टप्रभाकर युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरि चरणकमल सेवक विक्रमपुर वास्तव्य ॥ लिग्गोत्रीय सा! खेतसी पुत्ररत्न संघपति सतीदास सुश्रावकेण भ्रातृ लक्ष्मीदास पु० सं० सूरदासादि परिवार सश्रीकेण श्री शत्रुजय तीर्थ तलहट्टिकायां तीर्थ भक्ति निमित्तं यात्रा गतःसकलश्रीसदो (?) पकारायच। सतीवापीत्यभिधान वापीरत्नकारितः ऊपरठाहीमाला सोहल (१)
कविवर समयसुन्दरके शिष्य वादी हमनन्दनकृत शत्रुजय संघयात्रा स्तवन से विदित होता है कि संवत् १६७१ फाल्गुण कृष्णा २ को भी बीकानेर से संघ निकाला था जिसने प्रथम प्रयाण में देसनोक फिर पारवइ, सालुंडइ, खीमसर जाकर वर्द्धमानस्थंभ की यात्रा की। वहाँसे वावड़ी में प्राचीन भृषभमूर्ति को वन्दन कर घंघाणी, जोधपुर, होकर गुढा आया वहाँ
__ शत्रुजय तीर्थ सम्बन्धी ग्रन्थों में इसके निर्माता अहमदावादके सुप्रसिद्ध सेठ शांतिदासको लिखा है पर हमने इस ऐतिहासिक भ्रमका निराकरण अपने “सतीवाव सम्बन्धी गम्भीर भूल" (प्रकाशित जैन वर्ष ३५) लेख में कर दिया है।
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[ ७७ ]
श्रीजिनसिंहसूरिजी को वन्दन किया । यहाँ मेड़ता के संघपति आसकरण के संघके साथ सामिल हो गए। वहाँसे दुगाड़, खांडप, भमराणी, सोवनगिरि, सीणोद्रह, साणइ सोधोड़इ होकर संघ सिरोही पहुंचा फाल्गुन चौमासा कर हणाद्रह होकर आबू, अचलगढ़ तीर्थकी यात्रा की । वहाँसे मिलोइ, दांतीवाड़ा, सिद्धपुर के १० मन्दिर, लालपुर में शान्तिनाथ, महिसाणा, पानसर, कल्लोल, सेरिसा (लोडणपार्श्व ), के जिनालयोंका वन्दन करते हुए अहमदाबाद पहुंचा वहाँ १०१ जिनालयों में चैत्यवंदना कर वहाँके संघके साथ फतैबाग, चावलकर, होकर शत्रुंजय पहुंचा !
सुदि १४ को तलहटी की यात्रा कर चैत्रीपूनम के दिन गिरिराज पर चढ़े । यात्रा के अनन्तर श्रीजिन सिंहसूरिजी ने संघपति आसकरण को 'संघपति' पद देकर माला पहिनाई । वहाँसे संघ बावती में स्थंभन पार्श्वप्रभु की यात्रा कर मेड़ता लौटा।
बीकानेर के श्रावकों के बनवाए हुए मन्दिर
बीकानेर निवासी श्रावकों ने तीर्थों पर भी बहुत से मन्दिर बनवाये थे। मंत्रीश्वर संग्रामसिंह ने श्री शत्रुंजय महातीर्थ पर मन्दिर बनवाया, इसका उल्लेख कर्मचन्द्र - मंत्रि-वंश-प्रबन्ध के २५१ वें श्लोक में है । इसी प्रकार मंत्रीश्वर कर्मचन्द्र द्वारा शत्रुंजय और मथुरा में जीर्णोद्धार करवाने का श्लोक ३१३ में और श्लोक ३१७ में शत्रुंजय, गिरनार पर नये मंदिर बनवाने के लिए द्रव्य भेजने का उल्लेख है । फलौधी में श्रीजिनदत्तसूरिजी और श्रीजिनकुशलसूरिजी स्तूप बनवाने का उल्लेख ३२७ वें श्लोक में आता है। मंत्रीश्वर ने दादासाहब के चरण एवं स्तूप मंदिर कई स्थानों में बनवाए थे जिनमें अमरसर, सांगानेर, सधरनगर, तोसाम, गुरुमुकुट, राणीसरफलौदी में दादासाहब के चरण स्थापित करने का और पाटण में मंत्रीश्वर की प्रेरणा से दादासाहब के चरण स्थापित करने का उल्लेख पाया जाता है। फलौदी, अमरसर, पाटण और सांगानेर के चरणों के लेख इस प्रकार हैं-
"सं० १६४४ वर्षे माघ सुदि ५ दिने सोमवासरे फलवर्द्धिनगर्यां श्रीजिनदत्तसूरीणां पादुका मन्त्री संग्राम पुत्रेण मन्त्री कर्मचन्द्र ेण सपुत्र परिवारेण श्रेयोर्थ कारापितं "
"सं० १६५३ वर्षे वैशाखाद्य ५ दिने श्रीजिनदत्तसूरीश्वराणां चरणपादुके कारिते अमरसर वास्तव्य श्रीसंघेन ज्ञाता । मूल स्थूत प्रारत करता मंत्री कर्मचंद्रः श्री बोम्ल: मेचः पंडि श्रांनियांश्च सोणसानं महद्य चेष्ठितम् युगे अक्षेः" *
“श्वस्ति श्री संवत् १६५३ मार्गशीर्ष सित नवमी दिने शुभवासरे । श्री मन्मंत्रिमुकुटोपमान मंत्र कर्मचन्द्र प्रेरित श्री पत्तन सत्क समस्त श्रीसंघेन कारिता श्रीजिनकुशलसूरीश्वराणां स्तूप प्रतिष्ठितं विजयमान गुरु युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः वंद्यमान पूज्यमान सदा कुशल उदयकारी मयतु श्रीसंघाय || || "
*यह लेख गौरीशङ्करसिंह चन्देल ने चांदके सितम्बर १९३५ के अहमें प्रकाशित किया था । तदनुसार यहाँ उद्धृत किया गया है, लेख बहुत अशुद्ध है ।
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[ ७८ ] "सं० १६५६ वर्षे ज्येष्ठ सुदी द्वादशी दिने शनिवारे श्री संप्रामपुरे श्रीमानिसिंह विजयराज्ये खरतर गच्छे युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरि विजयराज्ये महामंत्रिणा कर्मचन्द्र ण श्रीसंघेनापि श्रीजिनकुशलसूरि पादुका कारितः प्रतिष्ठितं वाचनाचार्य श्रीयशकुशलैश्चसर्व संघस्य कल्याणास भवतु शुभं"
इनके अतिरिक्त शत्रुजय पर बोथरा मन्त्री समरथ ने आदीश्वर बिम्ब बनवा के नेमिनाथ चौंरीके उपर प्रतिष्ठित कराया। उसकी प्रतिष्ठा युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिजी ने की थी। एवं सं० १८८२ फागुन बदि १० को वैद मगनीराम ने श्री आदिनाथ पादुका बनवा कर श्रीजिनहरेसूरिजी द्वारा खरतरवसही में प्रतिष्ठित की*। सं० १६०० में श्री सम्मेतशिखर तीर्थ पर बीकानेर संघ कारित जिन मन्दिर की प्रतिष्ठा श्रीजिनसौभाग्यसूरिजी ने अष्टाह्निका-महोत्सव पूर्वक की, ऐसा खरतरगच्छ पट्टावली में उल्लेख है।
सं० १६:४ में शत्रुजय महातीर्थ पर विमलवसही ( मोटी टुंक ) के बाह्य मण्डपमें दादासाहब श्रीजिनदत्तसूरिजी, श्रीजिनकुशलसूरिजी और श्रीरत्नप्रभसूरिजी की छतरियां बीकानेर के श्रेष्ठिगोत्रीय वैद मुंहता सं० सोना पुत्र मन्ना, जगदास पुत्र ठाकुरसी के पुत्र सं० सांवल ने बनवाई और ज्येष्ठ सुदि ११ रविवार को नं० १-२ खरतर गच्छनायक युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिजी से और नं. ३ उपकेश गच्छाचार्य श्रीसिद्धसूरिजी द्वारा प्रतिष्ठित करवाई। जिनमें से एक लेख हमारे "युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरि" के वक्तव्य पृ० २६ में छपा है।
बीकानेर के जैन-संघ की तपस्वियों की भक्ति, तपाराधना, सूत्र भक्ति एवं पौषधादि धार्मिक अनुष्ठानों में कितना अधिक अनुराग था इसका परिचय तत्कालीन पर्वृषणा समाचार पत्रों से ज्ञात होता है। हमारे संग्रह के ऐसे पत्रों में से उदाहरणार्थ दो पत्रों में से १ की पूरी नकल दूसरेका आवश्यक अंश यहाँ नद्ध,त किया जाता है। पाठकों को सहज ही इससे उस समय की जनसंख्या और उनकी धार्मिकता का अनुमान हो जायगा।
॥श्री:॥ स्वस्ति श्री आदिनाथो धृत चरण रथशशांति देवाधिदेवः। नेमि पार्श्वश्च वीरस्सकल भय हरो नष्दष्ट प्रचारः। एतापंचापि देवान्भविक भयरान्भूरि भावेन नत्त्वा । श्रेयोलेखं खिल सकल समाचार दानाय दक्षं ॥ १॥ श्रीमतो विक्रमपुरात् भट्टारक श्रीजिनचन्द्रसूरिवरा उ० श्री भावप्रमोद गणि उ० श्री विनयप्रमोद गणि वाचनाचार्य रूपहर्षगणि, वाचनाचार्य कल्याणहर्ष गणि पंडित साधुनिधान वाचनाचार्य क्षमालाभ गणि पं० विद्यालाभ पं० विनयलाभ पं० जयचन्द्र पं० कीर्तिसागर पं० उदयसागर पं० भावसागर पं० ज्ञानसागर पं० क्षमासमुद्र पं० भक्तिविमल पं० सुमतिविमल पं० दयासेन पं० मुनिसौभाग्य चिरं पद्मतिलक प्रमुख साधु २५ साध्वी २७ सत्परिकराः श्री नगर थट्टा नगरे श्री राजसभा श्रृंगारक श्री देवगुरु भक्तिकारक
* शत्रुञ्जय के इन दोनों लेखों की नकल हमारे पास है।
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[ 8 ] श्री जिनाज्ञा प्रतिपालक श्रीदीन जनोद्धारक श्री जीवदया प्रतिपालक श्री जीवाजीवादि नवतत्त्व विचारक सम्यक्त्त्वमूल स्थूल द्वादशवत धारक श्री पंच (पर) मेष्टि महामंत्र स्मारक सुश्रावक पुण्य प्रभावक संघ मुख्य स श्री समस्त लघु वृद्ध श्री संघ योग्यं सदा धर्मलाभ पूर्वक समादिशंति श्रेयोत्र धर्मोपदेशोयथा । धन्नाते जिय लोए गुरु वयणं जे करंति पच्चक्खं । धन्नाणविते धन्ना कुणंति देसंतर गयाणं ॥१॥ इत्यादि धम्मोपदेश जाणी चित्त नइ विषे विवेक आणी धर्मोद्यम करतां लाभ छै॥ तथा प्रथम चौमास करी...मध्ये अत्र थी बिहार करता हता परं श्री संघइ अनइ को० श्री जिणदासजो श्री नयणसी जी घणउ आदर करी बीजी चउमास राख्या ॥ हिवइ अत्र सुखइ रहता साधांनइ तप प्रमुख करावतां श्री जिनालय स्नात्र पूजा अनुमोदतां श्री भगवतीसूत्र वृत्ति खणइ वाचर्ता श्री संघनइ धर्म नइ विषइ प्रवर्त्तावतां सर्व पर्व राजाधिराज श्री पर्यषणापर्व आया तत्रोपन्न विवेकातिरेक च्छेक गोलवच्छो साह नयणसी श्री संघ समक्ष क्षमाश्रमण पूर्वक श्री कल्प पुस्तक आपणइ घरे ले जाई रात्रि जागरण करावी प्रभातइ महामहोत्सवइ गजारूढ़ करी अम्हनइ आणी दीधउ। अम्हेपिण नव वाचनायइ स प्रभावनायइ वाच्यउ। तत्र दानाधिकारे आषाढ़ चौमासा ना पोसहता ८५१ नइ को० भगवानदास नालेर दीया श्रावण वदि
४ ना पोसहता २२५ नइ म० उत्तमचंद नालेर दिया। श्रावण सुदि १४ ना पोसहता ३४२ नई फलवधिये रामचन्द नालेर दिया। भाद्रवावदि ८ पोसहता ४२५ नइ पा० कपूरचन्द नालेर दिया। अठाइना उपवासीता ५२५ नइ बो० नयणसी नालेर दिया। कल्पनापोसहता ११५१ नइ सा० रायमल्ल नालेर दिया। पोसहीता उपवासीता १२१३ नइ मा० अमृत नालेर दिया बेलाइता ३२५ नई पांचे श्रावके नालेर दीया तेलाइता २०५ नइ तीने श्रावके नालेर दिया। संवत्सरी ना पोसहता १५५१ नइ पुस्तकमाही गो० नयणसी मोदके भक्ति कीधी। पाखी सर्व चालइ छइ बीजा ही दान पुण्य घणा थया शील पिण घणे पाल्यउ । तपोऽधिकारे साध्वी अमोली छम्मासी तप १ कीधउ। मासक्षमण ७ पक्षक्षमण १५१ अट्ठाइ ४२। छट्ट अट्ठम घणाथया भावना पिण भावी । इत्यादि पर्वाराधन स्वरूपजाणी अनुमोदिज्यो आपणाजणावेज्यो तथा श्री संघ मोटा श्रावक छउ गुरु गच्छना अंतरंग रागी छउ श्री खरतर गच्छनी मर्यादा ना राखणहार छउ जेहवी धर्म सामग्री चलावउ छउ तिण थी विशेष पणइ चलावेज्यो प्रस्तावइ कागल समाचार देज्यो संवत् १७२८ वर्षे मगसिर सुदि १० शुक्रवासरे। श्रीरस्तुः ॥ श्री
उपाध्यायाजी रो धर्मलाभ वाचज्यो श्री भावप्रमोद रो धर्मलाभ जाणेज्यो। तथा भोजिग शिवदास वाराइत छै सखर छह आपणाइत इण सेती घणी राखेज्यो।
इसी प्रकार सं० १७७६ के भाद्रवा सुदि १४ को बीकानेर से श्री जिनसुखसूरिजीने फलौदी के संघ को पत्र दिया इसमें यहो के श्रावकोंके धर्म कृत्यका निम्नोक्त वर्णन है :
"हिवै अत्र ठाणे २१ साधु साध्वी १६ सुखै रहतां श्री संघने धर्मकरणी नै विषै प्रवर्त्तावतां श्रीजिनालये स्नानपूमा अनुमोदता श्री पन्नवणा सटीक प्रभाते वखाणे वाचतां श्रीपर्युषण पर्व आव्यातत्रोत्पन्न विवेकातिरेक च्छेक छाजहड़ साह कपूरचन्दै श्रीसंघ समझे क्षमाश्रमणपूर्वक
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[ ८०] श्रीकल्प पुस्तक आपणै घरे ले जाई रात्रि जागरणादि करी प्रभातै घणे आडम्बर करी अम्हनै आणी दीधौ। अम्हे पिणश्री संघ समक्ष १३ वाचनायै सप्रभावनायें बाच्यौ तत्र दानाधिकारं श्री आषाढ़ चौमासी थी मांडी सर्व पाखी तथा आठमि रा पोसीता उपवासीता १५१९२१५ थायै तिणां सर्व नै नालेर तथा चिणी खांडरी भक्ति कीधी श्री संवत्सरी रा पोसीहता १२५१ थया तिणाने पुस्तकग्राहीयै मोदके भक्ति कीधी। संवत्सरीदान पा० अर्जनजी गो० धर्मसीयै जुआ जूआ नालेर दीधा पडिकमीता मनुष्य ४५१ थया बीजाही दान पुण्य विशेषै भला थया"
ये दोनों पत्र खरतर गच्छीय भट्टारक शाखाके श्रीपूज्यों के हैं अतः इसमें उल्लिखित धर्मानुष्ठान केवल उन्हींके आज्ञानुयायी संघका ही समझना चाहिये इनके अतिरिक्त बीकानेर में जैसा कि ऊपर लिखा जा चुका है खरतर-आचार्यशाखा, उपकेशगच्छ, लौकागच्छ, पायचन्द गच्छ और तपागच्छके संघका धर्मानुष्ठान इससे अतिरिक्त समझना चाहिए। कमसे कम इस सभी गच्छोंका भट्टारक शाखाके समकक्ष मानें तो भी सं० १७२८ में पौषध करनेवालों की संख्या ३००० से ऊपर हो जाती है। इससे सांवत्सरिक प्रतिक्रमणादि करनेवालों की संख्या ५-७ गुनी तो अवश्य ही होगी अतः उससमय यहाँ जैनोंको संख्या बहुत अधिक सिद्ध होती है।
आचार्य पदोत्सवादि बीकानेर के धर्मानुरागी श्रावकोंने अवसर पाकर गुरुभक्ति में भी अपना सद् द्रव्य-व्यय करने में कसर नहीं रखी। उन्होंने आचार्यों के पदोत्सव, चातुर्मास कराने प्रवेशोत्सव आदि विविध प्रकारके गुरुओं की सेवा एवं बहुमानमें लाखों करोड़ों रुपये खर्च किये हैं जिन पर थोड़ी सी उड़ती नजर यहां डाली जा रही है।
कर्मचन्द्र वंश प्रबन्ध में लिखा है कि श्रीजिनसमुद्रसूरिजीके पट्टपर श्रीजिनहंससूरिजीको श्री शान्तिसागरसूरिजीके हाथसे आचार्यपद दिलाया। सं०१५५५ ज्येष्ठ शुक्ला को यह उत्सव मन्त्रीश्वर कर्मसिंहने एक लाख रुपया व्यय करके किया। सं० १६१३ मितो चैत्र वदि ७ को मंत्रीस्वर संग्रामसिंह बच्छावतने युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिजीका क्रियोद्धारोत्सव बड़े समारोहसे प्रचुर द्रव्य व्यय कर किया।
सं० १६४६ में युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिजीका चातुर्मास लाहोरमें सम्राट अकबरके आमन्त्रण से हुआ। सम्राटने सूरिमहाराजको "युगप्रधान" पद और उनके प्रधान शिष्य वा० महिमराजजीको आचार्य पद देकर उनका नाम श्रीजिनिसहसूरि रखनेका निर्देश किया और मन्त्रीश्वरको आज्ञा दी कि जैन विधि के अनुसार इस महोत्सवको बड़े समारोहसे संपन्न करो! सम्राटकी आज्ञा पाकर मन्त्रीश्वर बीकानेर नरेश महाराजा रायसिंहजीसे मिले। उनकी सम्मति और जैन संघकी आज्ञा लेकर महोत्सवकी तैयारियां करने लगे। मिती फाल्गुन वदि १० से अष्टान्हिका महोत्सव मनाया गया। रात्रि जागरणमें धार्मिक गीत गाये गए। मन्त्रीश्वर
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
हवामान
मादाद
श्री जिनेश्वरसूरिजी (द्वितीय) लेखाङ्क १४२-४५ के प्रतिष्ठापक
श्री जिनलाभसूरिजी (प० प्र० पृ०.८५.) am"
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
शानिनवनिरिक्ष
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सं० १६८१ में शाही चित्रकार शालिवाहन चित्रित
श्री जिनराजसूरिजी (श्री नरेन्द्रसिंहजी सिंघी के सौजन्य से)
(परिचय पृ० ८५ प्र०)
श्री जिनभक्तिसूरिजी (परिचय पृ० ८५ प्र०)
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[ ८१ ] ने समस्त साधर्मियोंके घर पुंगीफल, १ सेर मिश्री और सुरंगी चुनड़िये भेजी ! मिति फाल्गुन शुक्ला २ को युगप्रधान पद और आचार्य पदोत्सवके साथ वा० जयसोम और रत्ननिधानको उपाध्यायपद, पं० गुणविनय व समयसुन्दरको वाचनाचार्य पदसे अलंकृत किया गया। इस समय संखवाल गोत्रीय साधुदेव कारित उपाश्रपको ध्वजा, पताका और मोतियोंसे जड़े हुए चन्द्रवे पूठियोंसे सजाया गया। जनताकी अपार भीड़ आनन्दके हिलोरे लेने लगी। इस उत्सवमें मन्त्रीश्वरने अपने द्रव्यका व्यय करने में कोई कसर न रखी। जिसने जो मांगा वही वस्तु देकर प्रसन्न किया गया। इस उत्सव मन्त्रीश्वरके हाथी, ५०० घोड़े माम और सवाकोड़ रुपये का दान देनेका उल्लेख सं० १६५० में रचित कर्मचन्द्र मंत्रिवंश प्रबन्ध, सं० १६५४ में रचित भोजचरित्र चौपाई व जयसोम उपाध्याय कृत प्रश्नोत्तर ग्रन्थ में हैं, विशेष जाननेके लिए हमारी "युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरि" पुस्तक देखना चाहिए।
__ सं० १६२३ मिगसर बदि ५ को श्री जिनसिंहसूरिजी की बीकानेर में दीक्षा हुई उस समय दीक्षा महोत्सव मुं० करमचन्द भांडाणी ने किया। सं० १८६२ मिगसर सुदि गुरुवार को श्री जिनसौभाग्यसूरिजी का पदोत्सव खजाची साह लालचन्द सालिमसिंह ने किया। सं० १९१७ के फागुण बदि ५ को श्रीजिनहंससूरिजी का दीक्षा-महोत्सव चोपड़ा-कोठारी गेवरचन्द ने किया। सं० १६१७ में फागुण बदि ११ को बीकानेर में श्रीजिनहंससूरिजी का पदोत्सव वच्छावत अमरचन्द आदिने किया। इसी प्रकार सं० १९५६ कातो बदि ५ को श्री जिनकीर्तिसुरिजी का और सं० १६६७ माघ कृष्णा ५ को श्रीजिनचारित्रसूरिजी का नंदि-महोत्सव बीकानेर संघने किया था। वर्तमान श्रीपूज्य श्रीजिनविजयेन्द्रसूरिजी का पदोत्सव भी बीकानेर संघने किया
ऊपर केवल खरतरगच्छ की भट्टारक शाखा के पदोत्सवादि का ही उल्लेख किया है। अब क्रमशः खरतराचार्य शाखा, कंवला गच्छ, पायचन्दगच्छ और लौंकागच्छ के कुछ उल्लेखनीय उत्सवोंका वर्णन दिया जा रहा है।
खरतराचार्यशाखा-सं० १६७६ के लगभग श्री जिनसागरसूरिजी के बीकानेर पधारने पर पासाणी ने प्रवेशोत्सव किया। श्री जिनधर्मसूरिजी का भट्टारक पद महोत्सव गोलछा अचलदास ने सं० १७२० में किया। इनके पट्टधर श्री जिनचन्द्रसुरिजी के पदोत्सव के समय बीकानेर संघने लूणकरणसर जाकर लाहण की और उन्हें आग्रहपूर्वक बीकानेर बुलाकर डागा परमानन्द ने प्रवेशोत्सव किया। गोलछा रहिदास ने समस्त खरतरगच्छ में साधर्मीवात्सल्य कर नारियल दिये। कचराणी गोलछाने खांड बांटी। सं० १७६४ में श्री जिनविजयसूरिजी का भट्टारक पदोत्सव पुंजाणी डागा ने किया और फूलांबाई ने प्रभावना की। श्री जिनयुक्तिसूरिजी का पदोत्सव सं० १८१६ में गोलछों ने किया। सं० १८६७ में श्री जिनहेमसूरिजी का भट्टारक पदोत्सव डागा सूरतरामजी ने किया।
कँवलागच्छ-इस गच्छके आचार्य श्री सिद्धसूरिजी का पदोत्सव श्रेष्ठि गोत्रीय मुंहताठाकुरसी ने सं० १६५५ चैत्र सुदि १३ को किया। इनके पट्टधर श्रीककसूरिजी का पदोत्सव भी
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। ८२ 1 मं० ठाकुरसी के पुत्र मं० सांवल ने सं० १६८६ फागुण सुदि ३ को किया। इनके पट्टधर देवगुप्तसूरि का पदोत्सव सं० १७२७ मिगसर सुदि ३ को मं० ईश्वरदास ने किया। श्री सिद्धसूरि का पदोत्सव सं० १७६७ मि. सु० १० को मं० सख्तसिंह ने किया। ककसूरिजी का पदोत्सव सं० १७८३ आषाढ़ बदि १३ मं० दौलतराम ने किया । देवगुप्तसूरिजी का भी उपर्युक्त मं० दौलतरामजी ने सं० १८०७ में किया। सिद्धसूरिजी का पदोत्सव मुं० खुशालचन्द्र ने सं० १८४७ माघ सुदि १० को, ककसूरिजी का मुं० ठाकुरसुत सरदारसिंह ने सं० १८६१ मिति चैत सुदि ८ को किया । एवं श्रीसिद्धसूरिजी का पदोत्सव महाराव हरिसिंहजी ने सं० १९३५ माघ बदि ११ को किया।
पायचन्दगच्छ-इस गच्छ के प्राचार्य मुनिचन्द्रसूरि का पदोत्सव सं० १७४४ में, श्री नेमिचन्द्रसूरि की दीक्षा सं० १७४०, कनकचन्द्रसूरि का आचार्यपद सं० १७६६ माघ सुदि १४ और भट्टारकपद सं० १७६७ आषाढ सुदि २, शिवचन्द्रसूरि का आचार्यपद सं०१८१० माघ बदि ६, भट्टारकपद सं० १८११ माघ सुदि ५, भानुचन्द्रसूरि की दीक्षा सं० १८१५ माघ सुदि ७, हर्षचन्द्रमूरि का आचार्यपद सं० १८८३ काती बदि ७, श्री हेमचन्द्रसूरि का आचार्यपद सं० १६१५ में बीकानेर में हुआ था । पर इन पदोत्सव करने वाले श्रावकों के नाम उसकी पट्टावली में नहीं पाये जाते।
लौकागच्छ–इनके आचार्य कल्याणदासजी की दीक्षा, नेमिदासजी की दीक्षा, और वर्द्धमानजी का प्रवेशोत्सव संवत् १७३० वैशाख सुदि १ को बीकानेर में बड़े धूमधाम से हुआ। संवत् १७६६ में सदारङ्गजी का प्रवेशोत्सव और जीवणदासजी व लक्ष्मीदासजी का प्रवेशोत्सव भी सूराणा और चोरड़ियों ने बड़े समारोहसे किया।
गुरुवंदनार्थगमन-सं० १६४८ में युगप्रधान त्री जिनचन्द्रसूरिजी सम्राट अकबर के आमन्त्रण से लाहौर जाते हुए मार्ग में नागौर पधारे तब वहाँ बीकानेर का संघ आपको वंदन करने को निमित्त ३०० सिजवाले और ४०० प्रवहणों के साथ गया था। वहीं साधर्मीवात्सल्यादि भक्ति करके वापस आनेका उल्लेख जिनचन्द्रसूरि अकबर प्रतिबोध रास में है।
श्रुतभक्ति बीकानेर के आवकों की देव गुरुभक्ति का कुछ निदर्शन उपर किया जा चुका है, अब उनकी श्रुतभक्ति के संबन्ध में दो शब्द लिखे जा रहे हैं। श्रावकों के लिए गुरुओं के पास जाकर आगमादि ग्रन्थोंका श्रवण नित्य आवश्यक कर्तव्य है । सामान्यतया पर्दूषण के दिनों में प्रतिवर्ष कल्पसूत्रकेवाचन का महोत्सव यहां बड़ी भक्ति पूर्वक किया जाता है। बड़े उपाश्रय से गुरुके पास कल्पसूत्रजी को अपने घर लाकर रात्रिजागरण करके दूसरे दिन राज्य की ओरसे आये हुए हाथी पर सूत्रजी को विराजमान कर वाजिन और हाथी, घोड़ा, पालकी आदिके साथ बड़े समारोह से उपाश्रय में लाकर सूत्र श्रवण करते हैं। इस उत्सव के लिए १३ गुवाड़ में क्रमशः प्रत्येक गुवाड़ की वारी निश्चित की हुई है।
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[ ८३ ]
कल्पसूत्र के अतिरिक्त भगवतीसूत्र श्रवण का उत्सव भी जैन समाज में प्रसिद्ध है । मूल जैनागमों में यह सबसे बड़ा और गम्भीर आगम ग्रन्थ है। इसके सफल वाचक और रहस्य अवगाहक श्रोता थोड़े होनेके कारण इसकी वाचना का सुअवसर वर्षोंसे आता है । इस सूत्रको बहुमान के साथ सुना जाता है और इसकी भक्ति में मोतियों का स्वस्तिक, प्रतिदिन रौप्य मुद्रा, मुक्ता आदिकी भेंट व धूप दीपादि किया जाता है । इस सूत्र में ३६००० प्रश्न एवं उनके उत्तर आते हैं । प्रत्येक उत्तर - गोथमा ! नामके सम्बोधन के साथ १-१ मोती चढ़ाते हुए मंत्रीश्वर कर्मचन्द्र ने ३६००० मोतियोंकी भेंट पूर्वक युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिजी से भगवतीसूत्र श्रवण किया था । उन मोतियों में से १६७०० मातियों का चन्द्रवा, ११६०० का पूठिया बनवाया गया अवशेष पूठा, ठत्रणी, साज, वीटांगणा इत्यादि में लगवाए गए पर अब वे पूठिया, चन्द्रवा आदि नहीं रहे।
मुद्रण युगसे पूर्व जैन श्रावकोंने कल्पसूत्रादि ग्रन्थोंको बड़े सुन्दर सुवाच्य अक्षरों में सुवर्णाक्षरी, रौप्याक्षरी एवं कलापूर्ण चित्रों सह लिखाने में प्रचुर द्रव्य व्यय किया है। बीकानेर के श्रावकों ने भी इस भक्ति कार्यमें अपना सद् द्रव्य व्यय किया था जिनमें से मन्त्रीश्वर कर्मचन्द्र के लिखवाये 'हुए अत्यन्त मनोहर बेल बूटे एवं चित्रोंवाले कल्पसूत्र की प्रतिका थोड़े वर्ष पूर्व जयपुर में बिकने का सुना गया है। सुगनजी के उपाश्रय में स्वर्णाक्षरी कल्पसूत्र की प्रति बीकानेर के वैद करणीदान (गिरधर पुत्र ) के धर्मविशालजी के उपदेश से लिखवाई हुई एवं सं० १८६२ में क्षमा कल्याण जी के उपदेश से पारख जीतमल ने माता के साथ लिखवाई सचित्र कल्पसूत्रकी प्रति विद्यमान है । खोज करने पर अन्य भी विशिष्ट प्रतिएँ बीकानेर के श्रावकों के लिखवाई हुई पाई जा सकती हैं ।
वच्छावत वंशके विशेष धर्म-कृत्य
वच्छावत वंश बीकानेर के ओसवालों में धर्म कार्यों में प्रारम्भ से ही सबसे आगे था । इस वंश कतिपय धर्म कार्योंका उल्लेख आगे किया जा चुका है अवशेष कार्योंका कर्मचन्द्र मंत्रि वंश प्रबन्ध के अनुसार संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है :
:
बीकानेर राज्यके स्थापक रावबीकाजी के साथ मंत्री वत्सराज आए थे, उन्होंने देरावर में सपरिवार कुशलसूरिजी के स्तूपकी यात्रा की । योगाके पुत्र पंचानन आदि की ओरसे कर्मचन्द्र वंश प्रबन्ध के निर्माण तक चौवीसटाजी के मन्दिर के ऊपर ध्वजारोपण हुआ करता था । मन्त्री वरसिंह ने दुष्काल के समय दीन और अनाथों के लिए दानशाला खोली । मन्त्री संग्रामसिंह ने याचकों को अन्न, वस्त्र, स्वर्ण इत्यादि देकर कीर्त्ति प्राप्त की। विद्याभिलाषी मुनियोंको न्यायशास्त्र वेत्ता विद्वानों से पढ़ाने में प्रचुर द्रव्य व्यय किया । इन्होंने दुर्भिक्ष के समय दानशाला भी खाली और माताकी पुण्य वृद्धि के लिए २४ वार चांदीके रुपयों की लाहण की। हाजीखा और इसनकुलीखां से सन्धि कर अपने राज्यके जैनमन्दिर व साधर्मियोंके साथ जनसाधारण की रक्षा
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की। आपके पुत्ररत्न मन्त्रीश्वर कर्मचन्द्र अपने वंशमें मुकुटमणि हुए, इन्होंने शर्बुजय, आबू, गिरनार व खंभात तीर्थोकी सपरिवार यात्रा की। इन्होंने महाराजा कल्याणसिंहजी को विज्ञप्ति कर वर्षात के चार महीनों में तेली, कुंभार, हलवाई लोगोंसे आरंभ बंध करवाया। नगर के वैश्यों पर जो माल नामक कर था, छुड़वाया व भेड़, बकरी आदिका चतुर्थाश कर माफ करवाया । मुगल सेनाके आबू पर आक्रमण करने पर इन्होंने सम्राट की आज्ञासे जैन मन्दिरोंकी रक्षा की। बन्दियों को अन्न, वस्त्र आदि देकर जीवितदान दिया और अन्हें अपने घर पहुंचा दिया। समियाने ( सिवाना) के युद्ध में लुटी हुई लोगोंकी औरतों को छुड़ाया, सं० १६३५ के महान् दुकाल में १३ मास पर्यन्त दानशाला व औषधालय खुलवाकर जन साधारण का हितसाधन किया। स्वधर्मी बन्धुओं को उनकी आवश्यकतानुसार वार्षिक व्यय देकर सच्चा स्वधर्मीवात्सल्य किया। इन्होंने ठेठ काबुल तक के प्रत्येक ग्राम नगर में लाहण वितीर्ण की। शास्त्रवेत्ता गुरुओं से ग्यारह अंग श्रवण किये। महीने में ४ पर्वतिथियों में कारू लोगोंसे अगता रखवाया, वर्षात में तेली और कुंभारों से आरंभ छुड़वाया। मरुभूमि में सब वृक्षोंको काटना बंद करवाया। सतलज, डेक, रावी, आदि सिन्धुदेश की नदियों में मछली आदि जलचर जीवोंकी रक्षा की। शत्रुओं के देशसे लाए गए बन्दीजनों को अन्न-वस्त्र देकर अपने-अपने घर पहुंचाया समस्त जैन मन्दिरों में अपनी ओरसे प्रतिदिन स्नात्रपूजा कराने का प्रबन्ध कर दिया। अजमेर में श्रीजिनदत्तसूरिजी के स्तूप की यात्रा की। एक समय द्वारिका के चैत्योंका विनाश सुनकर उन्होंने सम्राट अकबर से जैन तीर्थों की रक्षा की प्रार्थना की। सम्राट ने समस्त तीर्थोको मंत्रीश्वर के आधीन करने का फरमान दे दिया। उन्होंने तुरसमखान के कैद किये हुए बन्दिओंको द्रव्य देकर छुड़वाया।
जैनोंके बनवाये हुए कुएं आदि सार्वजनिक कार्य जैनोंने कुछ ऐसे भी सर्व-जन हितकारी कार्य किए है जिनका उल्लेख यहाँ आवश्यक है। बीकानेर नगर एवं रियासत के गांवों में बहुत से कुएं तालाव आदि बनवाये हैं जिनमें से बीकानेर शहर में व बाहर वैद मुंहता प्रतापमलजी का, रतनगढ़ में सुराणा अमरचंदजी का, सरदारशहर में बोथरा हरखचंदजी का, लूणकरणसर में मूलचंदजी बोथरा का, डूंगरगढ़ में पुगलियों व पारखोंका, फूलदेसर में भैरूंदानजी कोठारी का, भीनासर में चंपालालजी बांठिया का, गंगाशहर में सेठ चांदमलजी ढढाका, जलालसर में हमारे पूर्वजों का, चूरूमें कोठारियों के बनवाए हुए कुएं हमारी जानकारी में है इनके अतिरिक्त जहाँ कहीं भी ओसवालों की बस्ती थी या है, सभी जगह उनके द्वारा कुएं बनवाये गए थे।
औषधालय बीकानेर नगरमें श्री. लक्ष्मीचन्दजी डागाका औषधालय वर्षों तक था। अभी श्री. भैरू दानजी कोठारी व ज्ञानचन्दजी कोचर, मगनमलजी पारख की ओर से दो फ्री औषधालय
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[ ८५] चलते हैं। सरदारशहरमें नथमलजी कोठारी, सुजानगढ़ में दानचन्दजी चोपड़ा, आदिके औषधालय चलते हैं। भीनासर में श्री बहादुरमलजी और चंपालालजी के दो औषधालय हैं।
विद्यालय
शिक्षण कार्य में भी जैनोंका सहयोग उल्लेखनीय है। बीकानेर में श्रीयुक्त बहादुरमल जसकरण रामपुरियाका कालेज व बोर्डिंग हाउस, केशरीचन्दजी डागाकी धर्मपत्नी इन्द्रबाई ट्रष्टसे कन्या पाठशाला, श्री० अगरचन्द भैरूंदान सेठियाकी पाठशाला, संस्कृत पाठशाला, रात्रि कालेज, कन्या पाठशाला, जैन श्वे० संघकी ओरसे जैन श्वे० हाईस्कूल व बोर्डिंग हाउस, श्री गोवि न्दरामजी भणसाली की कन्या पाठशाला और पायचन्द गच्छकी रात्रि धार्मिक स्कूल चलती है । गंगाशहर में श्री० भैदानजी चोपड़ाकी हाई स्कूल, भीनासर में श्रीयुक्त चम्पालालजी बांठिया की कन्या पाठशाला, चूरू में कोठारियों का विद्यालय, श्री श्वे० साधुमार्गी जैन हितकारणी संस्थाकी ओर से नोखामंडी, झ, ऊदासर, साखेड़ा, नोखा में प्रारम्भिक शिक्षण शालाएं चल रही हैं। और भी बीकानेर रियासत के कितने ही स्थानों में ओसवालोंकी स्कूलें व व्यायामशालाएं आदि संघ व व्यक्तिगत रूपसे चल रही हैं ।
बीकानेर के दीक्षित महापुरुष
बीकानेरके श्रावकों एवं श्राविकाओं में से सैकड़ों भव्यात्माओंने सर्वविरति एवं देशविर ति चारित्रको स्वीकार कर अपने जीवनको सफल बनाया उनमें से कई मुनिगण बड़े ही प्रकाण्ड विद्वान, क्रियापात्र, योगी एवं धर्म प्रचारक हुए हैं। श्रीमद् देवचन्द्रजी जैसे अध्यात्म तत्त्वानुभवी, श्रीमद् ज्ञानसारजी जैसे महतयोगी, श्रीमद् क्षमाकल्याणजी जैसे आगम- विशारद श्री जिनराजसूरि जैसे समर्थ आचार्य कवि आदि इसी बीकानेरकी भूमिके उज्वल रत्न थे । यद्यपि बीकानेर के दीक्षित मुनियों में से बहुत ही थोड़े व्यक्तियोंका लल्लेख हमें प्राप्त हुआ है, फिर भी यह तो निश्चित है कि बीकानेर राज्य में उत्पन्न सैकड़ों ही नहीं किन्तु हजारोंकी संख्या में दीक्षित एवं देशविरति धर्माराधक व्यक्ति हुए हैं। हम यहां केवल उन्हीं व्यक्तियोंका निर्देश कर सकेंगे जिनके विषय में हमें निश्चित रूपसे ज्ञात हो सका है ।
!
सतरहवीं शताब्दी के शेषाद्ध के प्रतिभा संपन्न आचार्य श्रीजिनराजसूरिजी प्रथम उल्लेखनीय हैं। आपका जन्म बीकानेरके बोथरा धर्मसिंहकी पत्नी धारलदेवी की कुक्षिसे सं० । ६४७ वैशाख सुदि ७ बुधवार को हुआ था और इन्होंने श्रीजिनसिंहसूरिजी से सं० १६५६ मिगसर सुदि १३ को बीकानेर में दीक्षा ली थी। इनके पट्टधर श्रीजिनरत्नसूरिजी भी बीकानेर राज्य के सेरूणा ग्रामके लूणिया तिलोकसीकी पत्नी तारादेवीके पुत्र थे। आपके पट्टधर श्रीजिनचन्द्रसूरि भी बीकानेर के चोपड़ा सहसमलकी पत्नी सुपियारदेके कुक्षिसे उत्पन्न थे। उनके पट्टधर श्रीजिनसुखसूरिजी फोगपत्तनके और श्रीजिनभक्तिसूरिजी इन्दपालसरके थे ये प्राम भी बीकानेर के ही संभवित हैं। उनके पट्टधर श्रीजिनलाभसूरिजी बीकानेरके बोथरा पंचायण की भार्या पद्मादेवी
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[ ८६ ]
के पुत्र थे, आपका जन्म बापेऊ में सं० १७८४ श्रावण सुदिमें हुआ था। आपके पट्टधर श्री जिनचन्द्रसूरिजी बीकानेर के बच्छावत रूपचन्दजीकी पत्नी केसरदेवी से सं० १८०६ में कल्याणसर में जन्मे थे । खरतरगच्छकी वेगढ़ शाखामें श्रीजिनेश्वरसूरिजी के पट्टधर श्रीजिनचन्द्रसूरिजी बीकानेर के बाफणा रूपजीकी पत्नी रूपादेवीके पुत्र थे ।
इसी प्रकार खरतराचार्य शाखाके स्थापक श्रीजिनसागरसूरि बीकानेरके बोथरा बच्छराज की पत्नी मृगादेवी की कुक्षीसे सं० १६५२ काती सुदि १४ को जन्मे थे। उनके पट्टधर श्रीजिनधर्मसूरिजी बीकानेर के भणशाली रिणमलकी भार्या रत्नादेवी के पुत्र थे, सं० १६६८ पोष सुदि २ को इनका जन्म हुआ था। इस शाखा में श्रीजिनयुक्तिसूरिजीके पट्टधर श्रीजिनचन्द्रसूरिजी भा के रीहड़ भागचंदजीकी पत्नी भक्तादेवीके पुत्र थे । वर्त्तमान श्रीपूज्य श्रीजिनचन्द्रसूरिजी भी बीकानेर रियासत के ही थे ।
पायचन्द्रगच्छके आचार्य जयचन्द्रसूरि बीकानेरके शंका जैतासाहकी पत्नी जयतलदेवी के पुत्र थे, इनकी दीक्षा बीकानेर में सं० १६६१ माघ सुदि ५ को हुई थी । इस गच्छके कनकचन्द्रसूरि बीकानेर -- दहीरवासके मुहणोत माईदासकी पत्नी महिमादेके पुत्र थे । भानुचन्द्रसूरि करमावासके भणसाली प्रेमराजकी पत्नी प्रेमादेवीकी कूक्षी से सं० १८०३ में जन्में थे उनकी दीक्षा सं० १८१५ वैशाख सुदि ७ को बीकानेर में हुई थी। इसी प्रकार लब्धिचन्द्रसूरि भी बीकानेर के छाजेड़ गिरधरकी पत्नी गोरमदेवीके पुत्र थे, इनका जन्म सं० १८३५ श्रावण वदि में हुआ था । अंतिम आचार्यश्री देवचन्द्रसूरि भी बीकानेर राज्यके वैद गोत्रीय थे ।
के
गौरी लंका गच्छ कल्याणदासजी राजलदेसर के सुराणा शिवदासजीकी पत्नी कुशलाजी पुत्र थे और आप बीकानेर में दीक्षित हुए। नेमिदासजी भी बीकानेर के सुराणा रायचन्दजी की पत्नी सजनके पुत्र थे । पूज्य सदारंगजी कालूके सुराणा भागचन्दकी पत्नी यशोदाके और पूज्य जीवणदासजी पड़िहारा के चोरड़िया वीरपालकी पत्नी रतनादेवीके पुत्र थे । पूज्य भोजराजजी राहसरके बोथरा जीवराजकी धर्मपत्नी कुशलाकी कुक्षीसे उत्पन्न हुए थे । पूज्य लक्ष्मीचन्द्रजी नौहर के कोठारी जीवराजकी स्त्री जयरंगदेवी के पुत्र थे ।
कंवलागच्छके कई आचार्य बीकानेर के निवासी थे पर उस गच्छकी पट्टावलीमें उनके जन्म स्थानादिक का पता न होने से यहां उल्लेख नहीं किया जा सका ।
आचाय के अतिरिक्त सैकड़ों यति-मुनियोंकी दीक्षा यहां होनेका श्रीपूज्योंके दफ्तरों आदि से ज्ञात है पर उनके जन्म स्थानादिका निश्चित पता न होनेसे एवं विस्तार भयसे निश्चितरूप से ज्ञात ४|५ प्रमुख महापुरुषोंका ही यहां निर्देश किया जा रहा है ।
युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिजी के प्रथम शिष्य और महोपाध्याय समयसुन्दरजीके गुरु श्री सकलचन्द्रजी गणि बीकानेरके रोहड़ गोत्रीय थे और उनकी दीक्षा भी सं० १६१३ में बीकानेर मैं श्रीजिनचन्द्रसूरिजी क्रियोद्धारके समय हुई थी । इनके गोत्रवालोंके बनवाई हुई आपकी पादुका नाल में विद्यमान है। आत्मार्थी महापुरुष श्रीमद् देवचंद्रजी बीकानेर के निकटवर्ती ग्राम
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1 ८७ के निवासी लूणिया तुलसीदासजीकी पत्नी धनबाई के पुत्र थे, इनका जन्म सं० १७४६ और दीक्षा सं० १७५६ में हुई थी। उपाध्याय श्रीक्षमाकल्याणजी भी बीकानेर रियासतके केसरदेसर ग्राम के माल्हू गोत्रीय थे। इसी प्रकार मस्तयोगी ज्ञानसारजी जैगलेवासके सांड उद्यचन्द्रजीकी पत्नी जीवणदेवीके पुत्र थे। इनका जन्म संवत् १८०१ में हुआ था दीक्षा और स्वर्गवास भी यहीं हुआ था। आज भी बीकानेरके दीक्षित कई साधु एवं साध्वियां विद्यमान हैं जिनमें श्रीविजयलक्ष्मणसूरिजी बीकानेरके पारख गोत्रीय है। ध्यान-योगी श्रीमोतीचन्द्रभी भी लूणकरणसरके थे जिनका कुछ वर्ष पूर्व ही स्वर्गवास हुआ है।
सचित्र विज्ञप्तिपत्र चातुर्मास के निमित्त आचार्यों को आमन्त्रित करने के लिए संघकी ओर से जो वीनतिपत्र जाता वह भी विद्वतापूर्ण व इतिहास, कला, संस्कृति आदि की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होता था। एक तो सांवत्सरिक पत्र होता जिसमें पाराधन के समाचार होते दूसरा विज्ञप्ति-पत्र । प्रथम के निर्माता मुनिगण होते जो उसे संस्कृत व भाषा के नाना काव्यों में गुंफित कर एक खण्ड-काव्य का रूप दे देते और दूसरा चित्र-समृद्धि से परिपूर्ण होता था। बीकानेर से दिये गये ऐसे कई लेख मिलते हैं। चारसौ वर्ष पूर्व श्रीजिनमाणिक्यसूरिजी को दिया हुआ पत्र प्राचीनता और ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। इसके पश्चात् कतिपय पत्र धर्मवर्द्धन, ज्ञानतिलक आदि के काव्य व गद्यमय उपलब्ध हैं जो बीकानेर से भेजे गए थे उनमें बीकानेर नगर और तत्कालीन धर्मकृत्योंका सुन्दर वर्णन है जो श्रोजिनविजयजी ने सिंघी जैन ग्रंथमाला से प्रकाशित किये हैं।
सांवत्सरिक पत्रों में सर्वप्राचीन हमारे संग्रहस्थ श्रीजिनमाणिक्यसूरिजीको दिया हुआ पत्र है जो दयातिलकगणि, प्रमोदमाणिक्यगणि प्रभृति साधु संघने जैसलमेर भेजा था। इसका आदि भाग जिसमें विभिन्न विद्वत्ता पूर्ण छन्दों में चित्र काव्य द्वारा जिनस्तुति, गुरुस्तुति नगर वर्णनादि भाव रहे होंगे-४१ श्लोक सर्वथा नष्ट हो गये हैं। इसका चालीसवां श्लोक विजोरा चित्र एवं ४२ वा स्वस्तिक चित्र सा प्रतीत होता है। इन उभय श्लोकों के कुछ त्रुटित अक्षर अवशेष हैं । इसके पश्चात् गद्य में कादम्बरी की रचना छटा को स्मरण कराने वाली ७ पंक्तियाँ उल्लिखित हैं वे भी प्रायः नष्ट हो चुकी हैं।
इस पत्र से प्रतीत होता है कि उस समय जैसलमेर में श्री जिनमाणिक्यसूरि के साथ विजयराजोपाध्याय वा० अमरगिरि गणि, पं० सुखवर्द्धन गणि, पं० विनयसमुद्र गणि, पं० पद्म मन्दिर गणि, पं० हेमरङ्ग मुनि, पं० कल्याणधीर पं० सुमतिधीर, पं० भुवनधीर मुनि प्रमुख साधुमण्डल था। बीकानेर से दयातिलक गणि, प्रमोदमाणिक्य गणि, पं० वस्ताभृषि, पं० सत्यहंस गणि, पं० गुणरंग गणि, पं० दयारंग गणि, पं० हेमसोम गणि, पं० जयसोम (क्षुल्लक), ऋषि सीपा, भाऊ ऋषि, सहसू प्रमुख साधु संघने विनय संयुक्त वन्दना ज्ञापन करने व कुशल सम्वाद के पश्चात लिखा है कि
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८८ प्रमोदमाणिक्य गणि ने संघ के आग्रह से मेड़ता में चातुर्मास बिताकर फलवर्द्धि पार्श्वनाथ को यात्रा करके जयतारण, बीलाड़ा, सूराइता, नारदपुरी, मादड़ी, राणपुर, जीरापल्लि, पार्श्वनाथ, कुंभमेरु प्रमुख नगरों में विचरते हुऐ गोगूदा नगर संघ के आग्रह से मासकल्प किया। फिर निकटवर्ती नवपल्लव, मजावद तीर्थों की यात्रा कर लौटते हुए कुंभमेरु में १५ दिन ठहरे। फिर बहुत से तीर्थों की यात्रा कर नारदपुरी में मासकल्प किया। तदनंतर वरकाणा, नदकूल, गुंदबच, प्रमुख स्थानों की यात्रा कर के पाली होकर जोधपुर आये। वहां मासकल्प कर विहार करते हुए अषाढ शुक्ला ११ के दिन बीकानेर आये! मंत्रिवर्ग आदि सभ्योंके समक्ष प्रातःकाल प्रमोदमाणिक्य गणिने रायप्रसेनी-सूत्र-वृत्ति व पाक्षिक-सूत्रवृत्ति का व्याख्यान, मध्यान्ह में सत्यहंसगणि को कर्मग्रंथ, गुणरंग, दयारंगगणि आदिको प्रवचनसारोद्धार वृहद्वृति, तर्कशास्त्रादि एवं पं० हेमसोम, जयसोम मुनि को छन्द अलंकार पढ़ाते हुए स्वयं समयानुसार संयमाराधना करते हुए चातुर्मास बिताया। पर्वाधिराज पर्युषण में बोहिथरा गोत्रीय सा० जांटा, सा० सहसा, सा. नींवा, सा० धन्ना, सा० कोडा, प्रमुख परिवार सह क्षमाश्रमण पूर्वक कल्पसूत्र अपने घर ले जाकर रात्रिजागरणादि कर उत्सवपूर्वक ला कर दिया । ७ वाचनाएं प्रमोदमाणिक्य गणि ने एक एक वाचना पं० सत्यहंस व पं० गुणरंग गणि ने एवं कथाव्याख्यान पं० दयारंग गणि ने किया। तपागच्छ के उपाश्रय में सं० धनराज मं० अमरा, सा० वरडा, सं० गिरू, सं० पोमदत्त, सा० जीवा आदि संघ के आग्रह से पं० गुणरंग गणि ने ६ वाचनाओं द्वारा कल्पसूत्र सुनाया। पं० सत्यहंस गणि ने गणि-योग तप किया, गुणरंग गणि ने उपधान तप, मृषि सीपाने अठाई पारणे में एकांतरा, मृषि सहसू ने पांच उपवास, साध्वी लाला ने अठाई व इतर साध्वियों ने उपधान किया। सा० साजण ने २१ उपवास, सा० मेघा सा० वीदा ने पक्षक्षमण, श्रे० जिनदास सा० हेमराज, सा० रूदा, प्रमुख ७-८ श्रावकों ने अठाई की। सारूंडा ग्राम से पारख नरबद, मा० रावण, गोलछा हेमराज ने आकर सा० मांडण, सं० धन्ना, आदि श्रावकों ने उपधान किया। श्रा० देवलदे आदि ११ श्राविकाओं ने पक्षक्षमण, श्राविका लाला, चन्द्रावलि आदि ११ श्राविकों ने २१ उपवास, श्रा० लालां आदि ११ श्राविकाओं ने अठाई की एवं तेले, पंचोले बहुसंख्यक हुए। साध्वी रत्नसिद्धि गणिनी, सा० पुण्यलक्ष्मी, सा० लाछां, सा० लाडां आदि की तरफसे वन्दना एवं जैसलमेरस्थ श्रावकों को अत्रस्थित साधुओं की तरफ से धर्मलाभ लिखा है। जैसलमेरी श्रावकों के नाम-प्रेष्ठि सा० श्रीचन्द, सा० सूदा, सा० छुट्टा, सा० रायमल्ल, सं० नरपति, सं० कुशला, स० सृवटा, सं० जइवंत, सं० भइरवदास, सं० वारसी, सा० राजा, सा० सभू, सा० मापु, सा० राजा सा० पंचाइण, मं० लोला, सा० मेला, सा० सादा, धा० डूंगर, भ० सलखा, सा० आसू, मं० हांसा, श्राविका सीतादे आदि। .
बीकानेर के मंत्री डूंगरसी, मं० सीपा, मं० राणा, मं० सांगा, मं० पित्था मं० माला, मं० यस्ता,मं० मांडण, मं० नूरा, मं? नरवद, मं० जोधा, मं० सीहा, मं० अमृत, मं० हेमराज, मं० अचला, मं० अर्जन, मं० सीमा, मं० श्रीचन्द, मं० जोगा, मं० खेतसी, मं० रायचन्द, मं० पदमसी,
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
आगमों को लिखाते हुए, देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण सं० १६०० बीकानेर में चित्रित कल्पसूत्र से
श्रीमद् ज्ञानसारजी ओर उनके शिष्यगण (परिचय प्र० पृ० ११)
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
बीकानेर संघ द्वारा सं० १८६८ श्री जिनसौभाग्यसूरिजी को अजीमगंज भेजे गये ८ फीट लंबे सचित्र विज्ञप्तिपत्र के दृश्य ( परिचय प्र० पृ० १ )
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[ ] मं० सीहा, सं० रत्ता, सं० रामा, सं० हर्षा, सं० वइरा, सं० रावण, को० समरा, को० कउड़ा, को. रूपा, को० हरिचन्द, को० देवसी, को० नाथू, को० अमरसी, सा० चांपा, सा. जाटा, सा० धन्ना मं० नेता, मं० जगमाल, मं० घड़सी, सं० जोधा, सा० जेठा, सं० अमरा, सा० ताल्हा, सा० गुन्ना, सा० पासा, सा० सदारंग, भू० सा० रूपा, सा० अक्खा, सा० देढा, सा० मूला, सा. भांडा, भ० वर्द्धन, सा० रत्ता, ना० रामा, सा० कुंरा, सा० भल्ला, मा० वीसा, चो० नानिग, छा० वस्ता, सा० भुजबल, धा० पांचा, लू० रूपा, ग० सा० ऊदा, सा० भोजा, सा० राणा, सा. पहा, सा० कुंपा, सा० पासा, लू० रतना, को० सूजा, सा० पब्बा, सा० रतना, सा० धन्नू, सा० अमरू, सा० जगू, सा० हेमराज, सा० शिवराज, प० अमीपाल, सा. तेजसी, सा० मोढा, सा० देसल, श्रे० मन्ना, सा० धनराज, से० उदसिंघ, सा० अमीपाल, सा० सहसमल, प० नरबद, सा हर्षा, सा० हर्षा, सं० धन्ना, सं० राजसी, सा. जगमाल, मं० अमीपाल, सा हर्षा, सा० धन्ना, सा. डूंगर, सा० डीडा, सा० श्रीवंत प्रमुख श्रावकों की भक्तिपूर्वक वन्दना लिखी है। विशेषकर मं० देवा, मं० राणा, मं० सांगा, मं० सीपा, मं० अर्जुन, मं० अमृत, मं० अचला, मं० मेहाजल, मं० जोगा, मं० खेतसी, मं० रायचन्द, मं० पदमसी, मं० श्रीचन्द प्रमुख मंत्रि-वर्गों की तरफ से वन्दना अरज की है। वि० प्रमोदमाणिक्य गणि के तरफ से सहर्ष वन्दना लिखते हुए सुख समाचारों के पत्र देने का निवेदन करते हुए अन्त में सं० सारणदास व मं० जोगा की वंदना लिखी है। दूसरी तरफ सा० गुन्ना नीवाणी की वन्दना लिखी है।
पत्र में संवत मिती नहीं है। अतः इसका निश्चित समय नहीं कहा जा सकता फिर भी जिनमाणिक्यसूरिजी का स्वर्गवास सं० १६१२ में हुआ था। एवं इस पत्र में मुनि सुमतिधीर (श्री जिनचन्द्रसूरि ) का नाम है जिनकी दीक्षा सं० १६०४ में हो चुकी थी। अतः सं० १६०४ से सं० १६१२ के बीच में लिखा होना चाहिए।
इस पत्र में आये हुए कतिपय श्रावकों का परिचय कर्मचन्द्र मंत्रिवंश प्रबंध एवं रास में पाया जाता है।
इसके बाद के दो पत्रों का विवरण हम ऊपर दे चुके हैं। दूसरी प्रकार के विज्ञप्तिपत्र सचित्र हुआ करते थे, जो भारतीय चित्रकला में अपना वैशिष्ठय रखते हैं। इस प्रकार के कई विज्ञप्तिपत्रों का परिचय गायकवाड़ ओरिण्टियल सिरीज से श्री हीरानन्द शास्त्री ने 'अनिसीएण्ट विज्ञप्तिपत्राज' में दिया है। इनके अतिरिक्त और भी बहुत से विज्ञप्तिपत्र पाये जाते हैं। बीकानेर में भी कई विज्ञप्तिपत्र हैं जिनमें दो सीरोही के हैं जो बड़े उपाश्रय में है एक उदयपुर का ७२ फुट लंबा हमारे संग्रह में है। बीकानेर के दो सचित्र विज्ञप्तिपत्र हैं, जिनका परिचय यहाँ कराया जाता है।
__ प्रथम विज्ञप्ति-लेख ६ फीट ॥ इञ्च लम्बा और ६ इन्च चौड़ा है। ऊपर का ७॥ इश्व का भाग बिलकुल खाली है, जिसमें मङ्गल-सूचक | श्री ।' लिखा हुआ है। अवशिष्ट ६ फुट में से
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[ 0 ] ५ फुट में चित्र है और ४ फुट में विज्ञप्ति लेख लिखा हुआ है। प्रथम चित्रों का विवरण देकर फिर लेख का विवरण दिया जा रहा है-
सर्व प्रथम नवफण मंडित पार्श्वनाथ जिनालय का चित्र है। जिसके तीन शिखर है । ये उत्तुंग शिखर लंब गोलाकृति हैं । मध्यवर्ती शिखर ध्वज- दंड मंडित है। परवर्ती दूसरे चित्र में सुख- शय्या में सुषुप्त तीर्थंकर माता और तद्दर्शित चतुर्दश महास्वप्न तथा उपरि भाग में अष्टमांगलिक चित्र बने हुए हैं। तत्पश्चात् महाराजा का चित्र है जो संभवतः बीकानेर नरेश जोरावर सिंहजी होंगे, जिनका वर्णन विज्ञप्तिपत्र में नीचे आता है। महाराज सिंहासन पर बैठे हुए हैं और हाथ में पुष्प धारण किया हुआ है । उनके पृष्ट भाग में अनुचर चंवर बींज रहा है और सन्मुख जाजम पर दो मुसाहिब ढाल लिये बैठे हैं। इसके बाद नगर के चौहटे का संक्षिप्त दृश्य दिखाया गया है । चौरस्ते के चारों ओर चार चार दुकानें हैं जिनमें से तीन रिक्त हैं । अवशेष में पुरानी बीकानेरी पगड़ीधारी व्यापारी बैठे हैं। जिन सबके लम्बी अंगरखी पहनी हुई है। दुकानदारों में लेखधारी, तराजूधारी, व गांधी आदि धन्धेवाले दिखाये गये हैं। इसके बाद का चित्र जिन्हें यह विज्ञप्ति लेख भेजा गया है उन श्रीपूज्य “जिनभक्तिसूरिजी " का है, जो सिंहासन पर विराजमान हैं, पीछे बँवरधारी खड़ा है, श्रीपूज्यजी स्थूलकाय हैं । उनके सामने स्थापनाचार्य तथा हाथ में लिखित पत्र है । वे जरी की बूटियोंवाली चद्दर ओढ़े हुए व्याख्यान देते हुए दिखाये गये हैं । सामने तीन श्रावक दो साध्वियां व दो श्राविकाएँ स्थित हैं। पूठिये पर चित्रकार ने श्रीपूज्यजी का नाम व इस लेख को चित्रित करानेवाले नन्दलालजी का उल्लेख करते हुए अपना नामोल्लेख इन शब्दों में किया है :
'सबी भट्टारकजी री पूज्य श्री श्री जिनभक्तिजी री छै । करावतं वणारसजी श्री श्री नन्दलालजी पठनार्थ । ॥ ८० ॥ मथेन मखैराम जोगीदासोत श्री बीकानेर मध्ये चित्र संजुक्ते ॥ श्री श्री ॥' उपर्युक्त लेख से चित्रकार जोगीदास का पुत्र अखैराम मथेन था और बीकानेर में ही विद्वद्वर्य नन्दलालजी की प्रेरणा से ये चित्र बनाये गये सिद्ध हैं । तदनन्तर लेख प्रारम्भ होता है:प्रारम्भ के संस्कृत श्लोकों में मंगलाचरण के रूप में आदिनाथ, शान्तिनाथ, पार्श्वनाथ, नेमिनाथ और महावीर भगवान की स्तुति एवं वंदना करके १४ श्लोकों में राधनपुर नगर का वर्णन है । फिर ८ श्लोकों में जिनभक्तिसूरिजी का वर्णन करके गद्य में उनके साथ पाठक नयमूर्त्ति पाठक राजसोम, वाचक पूर्णभक्ति, माणिक्यसागर, प्रीतिसागर, लक्ष्मीविलास, मतिविलास, ज्ञानविलास, और खेतसी आदि १८ मुनियों के होने का उल्लेख किया गया है, फिर बीकानेर का वर्णन कर महाराजा जोरावरसिंह का वर्णन गद्यमें करके दो पद्य दिये हैं । फिर नगर वर्णन के दो श्लोक देकर बीकानेर में स्थित नेमिरंगगणि, दानविशाल, हर्षकलश, हेमचन्द्र आदि की वंदना सूचित करते हुए उभय ओर के पर्वाधिराज के समाराधन पूर्व प्रदत्त व प्राप्त समाचार पत्रों का उल्लेख किया है । तदनन्तर विक्रमपुर के समस्त श्रावकों की वंदना निवेदित करते हुए वहां के प्रधान व्याख्यान में पञ्चमांग भगवतीसूत्र वृत्ति सहित व लघु व्याख्यान में शत्रुंजय महात्म्य के
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[ ११ ] बांचे जाने का निर्देश है। सं० १८०१ के मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी को लेख तैयार हुआ व भेजा गया है। उपयुक्त पूरा लेख संस्कृत भाषा में है। इसके बाद दो सवैये और दो दोहे हिंदी में हैं। जिसमें जिनभक्तिसूरिजी का गुण वर्णन करते हुए उनके प्रताप बढ़ने का आशीर्वाद दिया गया है। दूसरे सवैये में उनके नन्दलाल द्वारा कहे जाने का उल्लेख है। विज्ञप्ति लेख टिप्पणाकार है, उसके मुख पृष्ठ पर “वीनती श्रीजिनभक्तिसूरिजी महाराज ने चित्रों समेत" लिखा है।
दूसरा विज्ञप्तिपत्र बीकानेर से सं० १८६८ में आजीमगंज-विराजित खरतरगच्छ नायक श्रीजिनसौभाग्यसूरिजी को आमन्त्रणार्थ भेजा गया था। प्रस्तुत विज्ञप्रिपत्र कला और इतिहास की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है और इसकी लम्बाई १७ फुट है और चौड़ाई ११ इच है। दूसरे सभी विज्ञप्तिपत्रों से इसकी लम्बाई अधिक और कला की दृष्टि से चित्रों का सौन्दर्य, रंग की ताजगी, भौगोलिक महत्व भी कम नहीं है। ११३ वर्ष प्राचीन होने पर भी आज का सा बना हुआ है एवं नीचे बढ़िया वनपट चिपका एवं ऊपर लाल वस्त्र लगा कर जन्म-पत्री की तरह गोल लपेटकर उसी समय की बनी सिल्क की थैली में डालकर जिसरूप में भेजा गया था उसी रूपमें विद्यमान है। इस समय यह विज्ञप्तिलेख बीकानेर के बड़े उपाश्रय के शानभण्डार में सुरक्षित है।
___ इस विज्ञप्तिपत्र में अंकित चित्रावली हमें १०० वर्ष पूर्व के बीकानेर की अवस्थिति पर अच्छी जानकारी देती है । बड़े उपाश्रय से लगाकर शीतला दरवाजे तक दिए गए गलियों, रास्तों, मंदिरों, दुकानों आदि के चित्रों से कुछ परिवर्तन हो जाने पर भी इसे आज काफी प्रामाणिक माना जाता है। श्रीपूज्यों के हबंधी आदि के मामलों में कई बार इसके निर्देश स्वीकृत हुए हैं। इस विज्ञप्तिपत्र में शीतला दरवाजे को लक्ष्मी-पोल लिखा है एवं राजमण्डी जहां निर्देश की है वहां जगातमण्डी लगलग ३५ वर्ष पूर्व थी एवं धानमण्डी, साग सब्जी इत्यादि कई स्थानों में भी पर्याप्त परिवर्तन हो गया है। विज्ञप्तिलेख में सम्मेतशिखर यात्रादि के उल्लेख महत्त्वपूर्ण हैं। सहियों में श्रावकों के नाम विशेष नहीं पर फिर भी गोत्रों के नाम खरतर गच्छ की व्यापकता के स्पष्ट उदाहरण हैं। इसकी चित्रकला अत्यन्त सुन्दर और चित्ताकर्षक है। बड़ा उपासरा, भांडासरजी, चिन्तामणिजी आदि के चित्र बड़े रमणीक हुए हैं। आचार्य श्री जिनसौभाग्यसूरिजी का चित्र दो वार आया है जो उनकी विद्यमानता में बना होने से ऐतिहासिक दृष्टि से मूल्यवान है।
सर्व प्रथम प्लेट की तरह चौडे गमले के ऊपर दोनों किनारे दो छोटे गमलों पर आमफल और मध्यवर्ती घटाकार गमले से निकली हुई फूलपत्तियां दिखायी हैं एवं इस के चारों और पुष्पलता है। दूसरा चित्र मंगल-कलश का है जिसके उभय पक्ष में पुष्पलता एवं मुख पर पुष्प वृक्ष चित्रित हैं। तीसरे चित्र में एक विशाल चित्र है जिसके ऊपरी भागमें दो पक्षी बैठे हुए हैं एवं नीचे दाहिनी ओर नृत्य व बायें तरफ ढोलक बजाती हुई स्त्रियां खड़ी हैं छत्र के नीचे चामर युगल शोभायमान है। इसी प्रकार के दो चित्र और हैं जिनमें छत्रों के ऊपरी भाग में मयूर एवं
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[ २ ] मैनाओं का जोड़ा एवं निम्नभाग में एक-एक डफ-वीणा धारिणी और एक-एक नर्तकी अवस्थित है। तदनन्तर चतुर्दश महास्वप्न प्रारंम होते हैं। सप्तशुण्डधारी श्वेत गजराज, वृषभ, सिंह, गजशुण्डस्थित कलशाभिषिक्त कमलासनविराजित लक्ष्मी देवी, पुष्पमाला, चन्द्र, (हरिणसह) सूर्य, पंचवर्णी सिंह-चिह्नांकित ध्वज, कलश, हंस-कमल-वृक्ष पहाड़ादि एवं मध्य में संगमर्मर की छतरी युक्त सरोवर, सुन्दर घाट वाला क्षीरसमुद्र जिसके मध्य में तैरता हुआ वाहन, आकाश मण्डल में चलता हुआ विमान, रत्न राशि, निर्धूम अग्नि के चित्र हैं। ये चतुर्दश स्वप्न देखती हुई भगवान् महावीरकी माता सुख शय्या सुसुप्त चित्रित हैं जिनके सिरहाने चामरधारिणी, मध्य में पंखा-धारिणी, पैरों के पास कलश-धारिणो परिचारिकात्रय खड़ी हैं। तदनन्तर अलग महल में राजा सिद्धार्थ को अपने छड़ी-धारी सेवक को स्वप्न-फल पाठकों के निमन्त्रण की आज्ञा देते हुए दिखाया है। यहां तक की लम्बाई २० फुट है। इसके पश्चात समवशरण में अशोक वृक्ष के नीचे सिंहासन पर विराजित तीर्थंकर भगवान का चित्र है जिन के उभय पक्षमें तीनगढ़ और तन्मध्यवर्ती द्वादश परिषदायें अत्यन्त सुन्दरता से चित्रित हैं इसके बाद अष्ट मंगलीक के आठ चित्र हैं:-स्वस्तिक, श्रीवत्स, नंद्यावर्त्त, मंगल-कलश, भद्रासन, मत्स्य-युगल, दर्पण। तदनतर हंसवाहिनी सरस्वती का चित्र है जिसके सन्मुख हाथ जोड़े पुरुष खड़ा है। दादासाहब श्री जिनदत्तसूरि और श्री जिनकुशलसूरजी के दो मन्दिरों के चित्र हैं जिन में दादासाहब के चरण-पादुके विराजमान हैं। समवशरण से यहां तक ११॥ फुट लम्बाई है ! इस के पश्चात बीकानेर के चित्र प्रारम्भ होते हैं । उभय पक्ष में बेल पत्तियां की हुई हैं।
पहला चित्र बड़ा उपासरा का है जिसमें कतिपय यति एवं श्रावक श्राविकाएं खड़े हैं। यह आज जिस स्थिति में है सौ वर्ष पूर्व भी इसी अवस्था में था। श्रीमद् ज्ञानसारजी के समय में बना दीवानखाना-बारसाली, छत, चौक तीनों ओर शालाएं स्तंभादि युक्त एवं वस्र चंदोंवे इत्यादि सुशोभित शालाएं तन्मध्यवर्ती सिंहासन भी वही है जो आजकल। ऊपर तल्ले में श्री पूज्यजी वाले कमरे एवं यति श्रावकादि खड़े दिखाए हैं पृष्ठ भागमें दृश्यमान शिखर संभवतः आचार्य शाखाके उपाश्रय या शान्तिनाथ जिनालय का दृश्य होगा। बड़े उपाश्रय के सन्मुख भाग में डुंगराणी बोथरों की प्रोल ( जो सूरिजी के स्वागत में बनी ) दाहिनी ओर “सेवक माधै रो घर" "रंगरेज कमाल री दुकान" बायें तरफ गाडिया लुहार, गोदे री चौकी, डोलर-हीडा, पं प्र० वखतमल जी री उपासरो, सेवक तारै रो घर, दोनों ओर मकानात हैं जिनमें पुरुष स्त्रिये खड़ी हैं तदनन्तर रास्ते के दाहिनी ओर "रताणी बोथरांरी तथा मालुवा री चौकी" है जिसके आगे वंशस्थित नटुए नृत्य दिखाते हैं, फिर कई मकानों की पंक्तियां है फिर श्री चिन्तामणिजी का मन्दिर बड़े ही सुन्दर ढंगसे चित्रित है। उभयपक्ष में हाथी, दीवानखाना, नौबतखाना, इत्यादि बड़ी सादृशता से अंकृत किए हैं। मंदिर के शिखर-गुंबज मूल प्रतिमा इत्यादि एवं शान्तिनाथजी के मन्दिर का भी सुन्दर चित्र है जो इसी मन्दिर के गढ में अवस्थित है। इसके सन्मुख सुरिजीके स्वागतार्थ निर्मित प्रतोलीद्वार, बाये ओर "मथेरण को गली' तंबोली गिरधारीकी
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[ ६३ दुकान, "दौलो तंबोली" की दुकान एवं कन्दोइयों के बाजार की इतर सभी दुकानें चित्रित हैं। परन्तु नामोल्लेख नहीं । दाहिनी ओर "रेवगांरी (ग) ली” फिर दुकानों की पंक्तियां हैं। आगे जाने पर धानमंडी आती है जहां ऊटों पर आमदानी हुए धान्य की छाटियां भरी हुई हैं। ग्राहक-व्यापारी क्रय-विक्रय करते दिखाए हैं। यहाँ भी सुरिजीके स्वागत में निर्मित प्रतोली दिखायी है। उभय पक्ष में दुकान-मकानों की श्रेणी विद्यमान है। आगे चलकर रास्ते के वायी
ओर फल-साग आदि वेचती हुई मालिने, रस्ता पसारी, दाहिने ओर बजाजों का रास्ता लिखा है। वहां भी आगे की तरह स्वागत दरवाजा बनाया है। कुछ दुकानों के बाद बोये तरफ "हमालों का रास्ता" फिर दोनों ओर दुकानें फिर “राजमंढी" आती है जहाँ विशाल मकान में जकात का दफ्तर बना हुआ है जिसमें राज्याधिकारी लोग कार्य व्यस्त बैठे हैं। ऊंटों पर आया हुआ माल पड़ा है, कहीं लदे ऊंट खड़े हैं, कांटे पर वजन हो रहा है, व्यापारी-प्रामीण आदि खड़े हैं। मंढी के पहिले दाहिनी ओर व्यापारियों का रास्ता एवं आगे चल कर बांये हाथ की ओर नाइयों की गली है। कुछ दुकानों के बाद दाहिनी ओर ऊन के कटले का रास्ता बांये ओर सिंघियोंके चौक का रास्ता एवं आगे जाने पर "कुंडियो मोदियों का" दाहिनी ओर एवं थोड़ा आगे बांयी ओर "घाटी का भैरू" आगे चल कर दाहिनी ओर मसालची नायौरी मंडी फिर दरजियों की गली, खैरातियों की दुकानें, दरजियों की गली के पास "नागोर री गाड्या रो अड" बतलाया है। खैरातियों की दुकानों के बाद रास्ता बाई ओर से दाहिनी ओर मुड़ गया है। यहाँ तक दोनों ओर की दुकानें एवं रास्ते में चलते हुये आदमी घुड़सवार आदि चित्रित किये गये हैं। रास्ते के दाहिनी ओर मांडपुरा बांये रास्ते पर भांडासरजी, लक्ष्मीनाथजी का मन्दिर दिखाते हुए सूरिजी के स्वागतार्थ सवारी का प्रारंभ होता है। सवारी में हाथी, घोड़े छडीदार, बंदूकची, नगारा-निसाण, श्रावकवर्ग दिखाते हुए श्री जिनसौभाग्यसूरिजी बहुत से यति एवं श्राविका, साध्वियों के साथ बड़े ठाट से पधारते हुए अंकित किए हैं। इसके पश्चात तम्बू डेरा चित्रित कर सूरिजीके पडाव का विशाल दृश्य दिखाया है इसमें सूरि महाराज सिंहासनोपरि विराजमान हैं। आगे श्रावक, यतिनिए श्राविकाएं पृष्ठ-भाग में यति लोग बैठे हैं, सन्मुख श्राविका गहूली कर रही है। पड़ाव के बाहर सशस्त्र पहरेदार खड़े हैं। इसके बाद लक्ष्मीपोल दरवाजा जहाँ से होकर सूरि महाराज पधारे हैं-दिखाया गया है। आजकल इसे शीतला दरवाजा कहते हैं ! यहाँ तक नगर के चित्र ५५ फुटकी लम्बाई में समाप्त हो गये हैं। इसके पश्चात विज्ञप्ति-लेखका प्रारंभ होता है।
विज्ञप्तिलेख संस्कृत भाषा में हैं प्रारंभ में ५, ११ श्लोक है फिर गद्य लेख है जिसमें सूरिजी के बंगदेशवर्ती मुर्शिदाबाद में विराजनेका उल्लेख करते हुए प्राकृत एवं राजस्थानी भाषामें लम्बी विशेषणावली दी गयी है । नदनन्तर संस्कृत गद्यमें पत्र लिखा गया है।
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[ ६४ ] सती-प्रथा और बीकानेर के जैन सती-स्मारक
सती-दाह की प्रथा भारतवर्षमें बहुत प्राचीन कालसे प्रचलित थी । वेद-पुराण और इतिहासके प्राचीन ग्रन्थों में इस विषयके पर्याप्त प्रमाण मिलते हैं । इसका कारण तो पतिप्रेम और स्त्रियोंका पारलौकिक विश्वास अर्थात् स्वर्गमें अपने पतिसे मिलनेकी आकांक्षा थी। आर्यावर्त ही क्या ? चीन, जापान, सिथियन्स और द्वीपसमूहमें भी यह प्रथा लोकादर प्राप्त और प्रवृत्त थी।
मुसलमानोंके शासनकाल में जबकि विधवाओंका पतिके युद्ध में मर जाने पर उसकी अविद्यमानतामें शील-पालन महान् कठिन हो गया था, भद्र आर्य महिलाएं जबरदस्ती पकड़ कर बादियां बना ली जाती, उनका ब्रह्मचर्य खण्डन कर दिया जाता था, नाना प्रकारसे त्रास पहुंचाये जाते थे, ऐसी स्थितिमें शील रक्षाका साधन चिता-प्रवेश कर जाना आर्य्यमहिलाओंको बहुत ही प्रिय मालूम हुआ।
अपने पतिदेवके साथ सह-गमन, जौहर या अग्नि-प्रवेशको वीराङ्गनाएं महामाङ्गलिक और आवश्यक कर्तव्य समझती थी। वे लेश मात्र भी कायरता, भीरुता और मोह लाए बिना वस्त्राभूषणोंसे सुसज्जित होकर गाजे बाजेके साथ स्मशानको चिता प्रवेशार्थ जुलूसके साथ जाते समय हाथके केसर-कुंकुमके छापे घरके प्रतोली-द्वार या स्तंभादि पर लगा कर जाती थी जिन्हें शिल्पकार द्वारा उत्कीर्ण करवाकर स्मारक बना दिया जाता था। और स्मशानोंमें जहाँ अग्निसंस्कार होता था वहां चौकी, थड़ा देवली छत्री आदि स्थापित एवं प्रतिष्ठितकी जाती थी, जहां उनके गोत्रवाले सेवा-पूजा, जात दिया करते हैं।
मूर्ति बनानेकी पद्धति भिन्न-भिन्न स्थानों में कई प्रकारकी थी। कलकत्ताके म्यूजियममें सती देवलिए अन्य ही तरहकी हैं किन्तु बीकानेर में जितने भी सती-स्मारक प्राप्त हैं, सबमें घुड़सवार पति और उसके समक्ष हाथ जोड़े हुए सती खड़ी है। जिसका पति विदेशमें मरा हो वह अपने हाथ में उसकी पगड़ी या नारियल लेकर सती होती थी। मूर्ति (देवली) के ऊपर साक्षी स्वरूप चन्द्र और सूर्य्यका आकार भी उत्कीर्ण किया जाता था।
ओसवाल जाति वस्तुतः क्षत्रिय कौम है। उसके पूर्व-पुरुषोंने अपनी स्वामी-भक्ति और वीरता द्वारा गत शताब्दियों में राजपूतानाके राजनैतिक क्षेत्रका जिस कुशलताके साथ संचालन
___ * बीकानेरके पुराने किलेमें ऐसे बहुतसे छापे खुदे हुए हैं। पूज्य दानमलजी नाहटा की कोटड़ी में भी ऐसाएक स्मारक स्तंम है जिसके सं० १६८८ और सं० १७१३ के दो लेख, सती लेखोंके साथ इसी प्रन्थमें दिये गये हैं, इन दोनोंकी देवलिए हमें नहीं मिली।
___x सती स्मारकोंमें सबसे बड़ा स्मारक हमने मुँझणुमें देखा है जो बहुत विशाल स्थान पर कुआं, बगीचा, मंदिर व लाखोंकी इमारतें बनी हुई हैं। प्रतिदिन सैकड़ोंकी संख्यामें लोग एकत्र होते हैं और हजारों मील से यात्री लोग आया करते हैं । यह राणी सती अग्रवाल जातिकी है ।
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। ६५ किया है, कभी भुलाया नहीं जा सकता। इतिहासके पृष्ठोंमें इस जातिके ज्योतिर्धरोंके नाम
और उनकी महान सेवाएँ स्वर्णाक्षरों में अङ्कित हैं और रहेगी । उनकी वीर महिलाएं देह-मू.को त्यागकर यदि शील रक्षाके निमित्त जीवन-सर्वस्व पतिदेवके वियोगमें अपनी प्रेम भावनाको चिरस्मरणीय एवं चिरस्थायी रखनेके हेतु धधकते हुए वैश्वानरमें पतिदेहके साथ हँसते-हँसते प्राण निछावर करदें तो आश्चर्य ही क्या है ?
जैनधर्मकी दृष्टिसे तो सती-दाह मोह-प्रथित एवं अज्ञान-जन्य आत्मघात* ही हैं, पर स्वयं क्षत्रिय होनेसे वीरोचित जातीय संस्कार वश, वीर राजपूत जातिके अभिन्न संपर्क एवं घनिष्ट सम्बन्धमें रहनेके कारण यह प्रथा ओसवाल जातिमें भी प्रचलित थी, जिसके प्रमाण स्वरूप यत्र-तत्र अनेक सती देवलिएँ इस जातिकी सतियोंकी पाई जाती हैं।
बीकानेरमें अन्वेषण करने पर हमें २८ ओसवाल सतियोंका पता चला है जिनमें से दोके लेख अस्पष्ट एवं नष्ट हो जानेसे नहीं दिये जा सके। दो स्मारकोंके लेख दिये है जिनकी देवलियां नहीं मिली इस प्रकार २४ देवलियोंके व २ स्मारकोंके कुल २६ लेख प्रकाशित किये हैं। इन लेखों में सर्व प्रथम लेख सं० १५५७ का और सबसे अंतिम लेख सं० १८६६का है जिससे यह पता चलता है कि बीकानेरकी राज्यस्थापनासे प्रारंभ होकर जहां तक सती प्रथा थी, वह अविच्छिन्न रूप से जारी थी। ऐसी सती-देवलिए सैकड़ोंकी संख्यामें रही होगी पर पीछेसे उनकी देखरेख न रहनेसे नष्ट और इतस्ततः हो गई।
ओसवाल जातिकी सती देवलियोंके अतिरिक्त संग्रह करते समय मोदी, माहेश्वरी, अग्रवाल, दरजी, सुनार प्रभृति इतर जातियोंके भी बहुतसे सती-देवल दृष्टिगोचर हुए। ओसवाल जातिके इन लेखोंमें कई-कई लेख बहुत विस्तृत और ऐतिहासिक दृष्टिसे महत्वशाली हैं। कतिपय ओसवाल जातिके गोत्रांका जो अब नहीं रहे, गोत्रोंकी शाखाओं, वंशावलियों, राजाओंके राज्यकाल आदिका पता लगता है।
* युगप्रधान दादासाहब श्री जिनदत्तसूरिजीके समयमें भी सती-प्रथा प्रचलित थी। पट्टावलियों में उल्लेख मिलता है कि जब वे अँझणु पधारे, श्रीमाल जातिकी एक बाल-विधवा सती होनेकी तैयारी में थी जिसे गुरुदेवने उपदेश द्वारा बचा कर जैन साध्वी बनाई थी ! सतरहवीं शताब्दीके सुप्रसिद्ध जैन योगिराज श्रीआनन्दधनजी अपने "श्रीऋषभदेवस्तवन" में लिखते हैं कि
"केई कंत कारण काष्ट भक्षण करें रे, मिलसुं कंत नै धाय । ए मेलो नवि कइयइ संभवै रे, मेलो ठाम न ठाय।"
श्रद्धेय ओझाजी लिखित बीकानेरके इतिहासमें कौड़मदेसरके सं० १५२९ माघ सुदि ५ के एक लेखका जिक्र है जिसमें साह रुदाके पुत्र सा० कपाकी मृत्यु होने और उसके साथ उसकी स्त्रीके सती होनेका उल्लेख है। संभवतः यह सती ओसवाल जातिकी ही होगी। वहां पारखौंकी सतीका स्मारक मंदिर भी है पर अब उस पर लेख नहीं है।
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पतिके पीछे सती होनेकी प्रथा तो प्रसिद्ध ही है पर पाठकोंको यह जानकर आश्चर्य होगा कि पुत्रके पीछे माता भी सती हुआ करती थी और लोक उसे भी वैसे ही आदरसे देखते और पूजा मान्यतादि करते हैं। बीकानेरके दो लेख इस आश्चर्यजनक और महत्वपूर्ण घटना पर अच्छा प्रकाश डालते हैं। जिस प्रकार पतिके पीछे सती होनेमें पति प्रेमकी प्रधानता है उसी प्रकार मातृसती होने में पुत्र-वात्सल्यकी। मजेकी बात तो यह है बीकानेर में प्राप्त सर्व प्रथम और अंतिम दोनों देवलिए माता-सतियोंकी हैं, अर्थात् प्रारंभ और अंत दोनों मातासतियोंसे है। ऐसी माता सती का एक लेख माहेश्वरी जाति का भी देखने में आया है।
बीकानेर की कई सती देवलिए बड़ी चमत्कारी और प्रभावशाली हैं। उनके सम्बन्ध में अनेकों चमत्कारी प्रवाद सुने जाते हैं। कई सतियों के चमत्कार आज भी प्रत्यक्ष हैं।
ओसवाल सतियों की इतर जातिवाले भी श्रद्धापूर्वक मान्यता करते हैं। कई सतियों की जात, मान्यतादि उनके वंशज व गोत्र वाले अब तक करते हैं साधारणतया उनकी व्यवस्था ठीक ही है परन्तु कतिपय देवलियों की अवस्था इतनी सोचनीय है कि लोग उनके चारों तरफ कूड़ा कर्कट
और मेहतर लोग विष्ठा तक डाल देते हैं, देवलियां अकूड़ियों में गड़ गई हैं और पैरों तले रौंदी जाती है। उनके गोत्रजों को इस ओर ध्यान देना चाहिए।
कई सती-देवलियोंके लेख घिस गए, खंडित हो गए, जमीनमें दब गए और जो अशुद्ध एवं अस्पष्ट हैं उन लेखों की नकल कर संग्रह करने में बहुत सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है। किसी किसी लेख को पढ़ने में घण्टों समय लग गया है। मध्याह्न की कड़ी धूप में गड़ी हुई देवलियों के लेखों को खोद कर, धोकर रंगभर कर अविकल नकल करने में जो परिश्रम हुआ है, उसे भुक्तभोगी ही अनुभव कर सकते हैं। सभी देवलियां एक स्थान में तो हैं ही नहीं कि जिससे थोड़े समय में संग्रह-कार्य सम्पन्न हो जाय, अतः इन लेखों को बीकानेर के चारों ओर स्मशानों में, बगीचियों में और ऐसे स्थानों में जहाँ साधारण व्यक्ति जाने का साहस ही नहीं कर सकता, घूम फिर कर संग्रह किये गये हैं। लेखों को खोज कर संग्रह करने में श्रीयुक्त मेघराजजी नाहटा का सहयोग विशेष उल्लेखनीय है, उनके सहयोग के बिना यह कार्य होना अशक्य था।
प्रस्तुत लेखों को संग्रह करते समय दो ओसवाल भोमिया अझारों की देवलियां दृष्टिगोचर हुई जिनके लेख भी इसी संग्रह में दिये गये हैं।
सती-प्रथाका अवसान पूर्वकाल में पतिके रणक्षेत्र में वीरगति प्राप्त कर जाने पर उनकी स्त्रियां पतिकी देह या मस्तक और उसकी अविद्यमानता में उसकी पगड़ी के साथ सच्चे प्रेमसे चिता प्रवेश करती थीं
और पीछेसे विशेष कर यह एक रूढिमात्र रह गई थी। जीते हुए स्वेच्छा से धधकती अग्नि में प्रवेश कर जल मरना साधारण कार्य नहीं है और सती होनेवाले प्रत्येक स्त्रीका हृदय इतना सबल होना संभव नहीं है। पर लोगोंने इसे एक बड़ा महत्त्वपूर्ण आदर्श और आवश्यक कार्य मान
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लिया था, अतः जो इस तरह स्वेच्छा से सती नहीं होती थी उसे हीन दृष्टिसे देखते थे और जबरन सती होनेको बाध्य किया जाता था। यावत् बलपूर्वक शस्त्रादि अनेक प्रयोग द्वारा सहमरण कराया जाने लगा था। एवं स्त्रियां भी यशाकांक्षा से युद्ध में न मरके स्वाभाविक मौतसे मरे हुए पतिके पीछे भी और कई अनिच्छा होते हुए भी लोक लाज वश सतियां होने लगी। ऐसी स्थितिमें सती-दाह होनेका दृश्य बड़ा ही दारुण और नेत्रों से न देख सकने योग्य हुआ करता था। इस दशामें उस प्रथाको बंद करने का प्रयत्न होना स्वाभाविक ही था ।
मुसलमान सम्राटोंमें सम्राट अकबर स्वभावतः दयालु था। सती प्रथाको रोकनेके लिए उसने पर्याप्त चेष्टाकी पर तत्कालीन वातावरण एवं कई कारण-वश उसे सफलता न मिली। इसके बाद सन् १७६० में ईष्ट इण्डिया कम्पनी के गवर्नर मार्किस कार्नवालिसने सर्व प्रथम इस प्रथाको रोकनेकी ओर ध्यान दिया। इसके बाद सन् १८१३ में गवर्नर लार्ड मिण्टोने सरक्यूलर जारी किया, किन्तु इससे इस प्रथाकी किञ्चित् भी कमी न होकर उस वर्ष केवल दक्षिण बंगाल में ६०० सतियां हुई। राजा राममोहनराय और द्वारकानाथ ठाकुर जैसे देशके नेताओंने भी इस प्रथाको रोकनेका प्रयत्न किया। इसके बाद लार्ड विलियम बैंटिकने इस प्रथाको बन्द करनेके लिए सन् १८२६ में ७ दिसम्बरका कलकत्ता गजट में १७ रेग्यूलेसन ( नियम ) बनाकर प्रकाशित किये। इस तरह बंगाल के बाद सन् १८३० में मद्रास और बम्बई प्रान्तमें भी यह नियम जारी कर दिया गया ! गवर्नर जनरल ऑकलेण्डने सन् १८३६ में उदयपुर राज्य में भी यह नियम बनवा दिया, तत्कालीन गवर्नरोंमें न्यायाधीशों और सभ्य लोगोंसे भी इस कार्यके लिए पर्याप्त सहाय्य लिया । सन् १८०० में कोटेमें भी सती प्रथा बंद करा दी गई किन्तु इस प्रथाको रोकने में बहुत परिश्रम उठाना पड़ा। कई सतियां जबरदस्ती कर, समझा-बुझाकर रोकी गई । सन् १८४६ के २३ अगस्तको जयपुर राज्यने भी यह कानून पास कर दिया। बीकानेर में भी अन्य स्थानोंकी तरह सती-प्रथा और जीवित समाधिका बहुत प्रचार था, यहां भी सन् १९०३ में बन्द करनेकी चेष्टाकी गई। गवर्नरोंके कानून जारी कर देनेपर भी राजालोग इस प्रथाको बन्द करनेमें अपने धर्मकी हानि समझते थे, अतः इस प्रथाको नष्ट करने में वे लोग असमर्थता प्रकट करते रहे। तम अंग्रेजी सरकारके पालिटीकल ऑफिसरोंने उनका विशेषरूपसे ध्यान आकर्षित किया, जिससे बीकानेर नरेश महाराजा सरदारसिंहजीने भी सं० १६११ ( ईस्वी सन् १८५४ ) में निम्नोक्त इश्तिहार जारी किया और सती प्रथा एवं जीवित समाधिको बन्द कर दी।
" सती होनेको सरकार अंग्रेजी आत्मघात और हत्याका अपराध समझती है, इसलिए इस प्रथाको बन्द कर देनेके लिए सरकार अंग्रेजीकी बड़ी ताकीद है अस्तु, इसकी रोकके लिए इश्तहार जारी हुआ है किन्तु करनल सर हेनरी लेरेन्सने सती होनेपर उसको न रोकनेवाले व सहायता देने वालेको कठोर दण्ड देनेके लिए खरीसा भेजा है अतः सब उमराव, सरदार, अहलकार, तहसीलदारों, थानेदारों, कोतवालों, भोमियों, साहूकारों, चौधरियों और प्रजाको श्रीजी हजुर आज्ञा देते हैं कि सती होनेवाली स्त्रीको इस तरह समझाया करे कि वह सती न हो सके
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[ १८ 1 और उसके घरवालों व सम्बन्धियों आदिको कहा जाये कि वे इस कार्यमें उसके सहायक न हों। स्वामी आदि जीवित समाधि लेते हैं, उस रश्मको भी बन्दकी जाती है। अब कदाचित सती होने व समाधि लेने वालोंको सरदार, जागीरदार, अहलकार, तहसीलदार, थानेदार, कोतवाल
और राज्यके नौकर मना न करेंगे तो उनको नौकरीसे पृथक् कर जुर्माना किया जायगा, एवं सहायता देने वालोंको अपराधके अनुसार कैदका कठोर दण्ड दिया जायगा।"
___ उपर्युक्त बातोंसे स्पष्ट है कि भारतवर्षमें सती प्रथा इन प्रयत्नोंसे बिलकुल बन्द हो गई। जहां वर्ष में हजारों सतीदाह हुआ करते थे, वहां १०-२० वर्षमें दो चार सती हो भी जांय तो नगण्य है। मारटर पारसचन्दके कथनानुसार तो अब भी भारतवर्षमें १ लाख सती चौरे हैं। यह भारतीय महिलाओंके कठोर पातिव्रत धर्म एवं सतीव्रत पालनका ज्वलन्त उदाहरण है। इन लेखों में बहुतसे जैन जातियोंकी भी होंगे* | उन्हें संग्रह कर प्रकाशित करनेसे जातीय-इतिहास एवं सतीप्रथाके अनुमान आंकनेमें अच्छी सहायता मिल सकती है। हम आगे लिख चुके हैं कि सतियों की देवलिये स्थानभ्रष्ट होकर यत्र तत्र बिखरी हुई भी बहुत-सी पाई जाती हैं। बड़ा ही अच्छा हो यदि इन्हें संग्रहीत कर एक संग्रहालयमें सुरक्षित रखा जाय। यह कार्य इतिहासमें सहायक होनेके साथ साथ भारतकी एक अतीत संस्कृतिका चिरस्थायी स्मारक होगा।
लेखोंका वर्गीकरण
( संवतानुक्रम) नं०संवत् मिती
पतिनाम गोत्र सतीनाम गोत्र पितृनाम लेखाङ्क १ सं० १५२१ मा० सु०५ कपा बहुरा कतिगदे २सं०१५५७ ज्येष्ठ सु०६
माणकदे मातासती ३ सं०१६६४ आ० ब०७ भूणा लूकड़ जेठी वाफणा खीवा २६ ४ सं०१६६६ वै० सु० १४ मं० सचियावदास " सुजाणदे ५ सं० १६८७ आ० प्र० सु० १३ दीपचन्द बहुरा दुरगादे पारख मेहाकुल । ६ सं०१६८८ श्रा० ब०१४ पदमसी ७ सं० १६६६ चै० म०५ देवीदास दाडिमदे - ८ सं० १७०५ ज्ये० ब०७ नारायणदास पुगलिया (राखेचा) नवलादे बुचा रूपसी ७ सं० १७०५ मि० ब०७ उत्तमचन्द बोथरा कान्हा रांका
* सती प्रथा के सम्बन्ध में आपका एक लेख 'माधुरी' जुलाई सन् १९३७ के अंक में प्रकाशित हुआ था। इस विषय में विशेष जानने के इच्छुकों को वह अंक देखना चाहिए।
* श्री नाहरजी के जैन लेख संग्रह लेखांक ७१९ में सादड़ी का एक लेख प्रकाशित है जिसमें मेवाड़ीद्धारक त्यागमूत्ति भामाशाह के भ्राता कावेड़िया ताराचन्द के स्वर्गवासी होनेपर उनकी ४ स्त्रियों के सती होने का उल्लेख है। इसी प्रकार "गुजरात नो पाटनगर, अहमदाबाद" के पृ. ६६८ में सम्राट जहांगीर के आमात्य लोढ़ा कुंअरपाल सोनपाल के पुत्र रूपचन्द्र के पीछे ३ स्त्रियों के सती होने का लेख छपा है जो यहां दूधेश्वर की टांकी के पास कुएं पर विद्यमान है।
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[ 8 ] १० सं० १७०७ चै० सु. १३ मानसिंह चोरवेड़िया महिमादे बोथरा दुर्जनमल ५ ११ सं० १७१३ पासो० ब०४ देवकरण १२ सं०१७२३
__ लखजी बच्छावत लखमादे चोरवेढ्या पदम ३० १३ सं० १७२४ मि० ब०६ पासदत्त नाहटा वीरादेवी राजावल लंदा १४ सं०१७२५ व० ब०१३ सुखमल बोहरा (अभोरा) सोभागदे सुराणा दस्सू १५ सं० १७२७ ज्ये० ब०६ उत्तमचन्द कूकड़चोपड़ा ऊमादे १६ सं० १७३१ आ० सु० ११ पारस बहुरा कोचर पाटमदे संघवी दुर्जनमल। १७ सं०१७३७ फा.ब.६ केसरीचन्द नाहटा केसरदे १८ सं०१७४०० सु०१२। ईसरदास बोथरा अमोलखदे १६ सं० १७४२ फा० सु०६ दुलीचन्द मालू जगीशादे २० सं० १७५१ आ० ब०१२ विजयमल संघवी पीवसुखदे गोलछा २१ सं० १७५२ फा० सु०६ गिरधरदास वैद मृगा बोथरा गोपालदास ३ २२ सं० १७६४ ज्ये० ब० १३ हणूतमल सिंघवी सोभागदे घोड़ावत २३ सं० १७६४ मि० ब०७ आसकरण सिंघवी महिम। २४ सं० १७७७ मा० सु०२ मु. भारमल वैद (१) विमलादे २५ सं० १७८३ आ० सु० १५ मुकनदास भंडारी महासुखदे २६ सं० १८१० श्रा० ब०११ श्रोचन्द राखेचा जगीसादे २७ सं० १८५१ आ० ब०१५ कानजी सुराणा धाई मुहणोत गंगाराम २८ सं० १८५१ चै० ब०१० गिरधारीलाल दसाणी चतरो कावड़त बच्छराज २६ सं० १८६० श्रा० सु०८ सरूपचन्द छाजेड़ गंगा बेगाणी किनीराम २१ ३० सं० १८६६ ज्ये० सु० १५ नैनरूप (पुत्र) सुराणा सबलादेवी
विशेष ज्ञातव्य १-लेखाङ्क २१ में सनी होने के १५ वर्ष बाद सं० १८७५ में छत्री-देवली प्रतिष्ठित हुई। २-लेख नं. १ और नं०२६ में माता सतियों के लेख हैं।
३-लेखाङ्क १३, १४ और २१ की सतियों के पति क्रमशः नारायणा, आउवा और हैदराबाद में स्वर्गस्थ हुए जिनकी पत्नियां यहां सती हुई। अंतिम तीन लेख कोडमदेसर, मोटावतो और मोरखाणाके हैं।
४-इन लेखों में वैदों के ४, बहुरा कोचर १, बहुरा अभोरा १, सुराणा २, चोरड़िया १, पुगलिया राखेचा १, सिंघवी ३, कोठारी १, छाजेड़ १, बोथरा २, राखेचा १, मालू १, नाहटा २, दसाणी १, भंडारी १, बहुरा १, बच्छावत१, लूंकड़ १, जाति के हैं। लेखाङ्क २५, २६ के स्मारक भी चोपड़ा कोठारियों के कहे जाते हैं।
५-लेखाङ्क १८ के पूर्वज पहले मेवाड़ देश के जावर ग्राम निवासी थे।
६-इन लेखों में ३ कर्णसिंहजी (नं० ४, ५, १७), १ कर्णसिंहजी अनूपसिंहजी (नं० २३) और २ सूरतसिंहजी (नं० १०, २१) के राज्यकाल के हैं।
--यहां जिन लेखाकों का निर्देश किया गया है वे इस पंथ के सीरियल नम्बर न होकर केवल सतियों के क्रमिक नम्बर है और उनका स्थान भी वहीं फुटनोट में लिख दिया गया है।
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[ १०० ] श्री सुसाणी माताका मन्दिर, मोरखाणा बीकानेर से लगभग १२ कोश व देशनोक से १२ मील दक्षिण-पूर्वकी ओर मोरखाणा नामक प्राचीन स्थान है। यहाँ सुराणोंकी कुलदेवी सुसाणी माताका मन्दिर पर्याप्त प्रसिद्ध है। यहाँके अभिलेखों से विदित होता है कि विक्रम की बारहवीं शतीमें सुसाणी माताका मन्दिर विद्यमान था और दूर-दूरसे यात्री लोग यहां आकर मान्यता करते थे। सं० १५७३ में संघपति शिवराज द्वारा अपनी सम्यग्दृष्टि गोत्र देवीके उत्तुंग शिखरी देव विमान सदृश मन्दिर बनवाने का उल्लेख मन्दिर में लगे हुए श्याम पाषाण की पट्टिका पर उत्कीणित लेखमें पाया जाता है। किन्तु मन्दिर का दूसरा लेख सं० १२२६ का है जो सेहलाकोट से आई हुई भोईलाहिणी के यावज्जीव सुसाणीदेवीको आराधन करने का उल्लेख है । अतः उपर्युक्त उल्लेख मन्दिरके जीर्णोद्धार या पुनर्निर्माण का होना सम्भव है। इसकी प्रतिष्ठा (धर्मघोष गच्छनायक ) जैनाचार्य श्री पद्मानन्दसूरिके पट्टधर भ० श्री नंदिवर्द्धनसूरिके करकमलों से हुई थी। सन् १९१६ में डा० एल० पी० टैसीटरी साहब ने मोरखाणा स्थान का निरीक्षण किया और वहाँके प्राचीन शिलालेखों की छा संग्रहीत की थी। उन्होंने सन् १९१७ के एसियाटिक सोसाइटी के जर्नल में यहांके कतिपय अभिलेख तथा ससाणी माताकेमन्दिरका परिचय प्रकाशित किया था जिससे तत्सम्बन्धी कई बातोंकी जानकारी प्राप्त होती है । सीटरी साहब की मोरखाणा की फाइल में हमने एक लेख कुटिललिपि का भी देखा था संभवतः वह गोवर्द्धन का लेख होगा। मोरखाणा में मन्दिर व कुएं के आस-पास बीसों सती जूभारादि की देवलिए विद्यमान हैं जिनके लेख सिन्दूरादि की तह जम जानेसे अस्पष्ट हो चुके । यहाँकी एक बच्छावतों की सतीका लेख हमने लेखांक २६०१ में प्रकाशित किया है, जिसके अतिरिक्त सभी देवलिऐं जैनेतर-राजपूत जातिकी होनी चाहिए ।
माताजी का मन्दिर ऊंचा, सुन्दर और जेसलमेरी पत्थर द्वारा निर्मित है। इसके घटपल्लव तथा श्रीधर शैलीके रतंभ एवं प्रवेशद्वारकी कोरणी चूना पुताई होनेसे अवरुद्ध हो गई है। यही हाल मन्दिर की दीवाल पर उत्कीर्णित नर्तकियों और देवी देवताओं की मूर्तियों का है।
सुसाणी माताके सम्बन्ध में एक प्रचलित प्रवाद को डा० टैसीटरी साहब ने भी प्रकाशित किया है कि ससाणी नागौर के सुराणों की लड़की थी जिसके सौन्दर्य से मुग्ध नबाब द्वारा पितासे याचना करने पर वंश व शील रक्षार्थ सुसाणी घरसे निकल भागी और मोरखाणा पहुंचने पर पीछा करते हुए नबाब के सेना सहित बिलकुल निकट पहुंच जाने पर उसने पृथ्वी माताकी शरण ली। हम नहीं कह सकते कि यह बात कहां तक ठीक है, क्योंकि पृथ्वीराज चौहानके समय के तो सुसाणी माताके अभिलेख प्राप्त होते हैं, इससे पूर्व यहां मुसलमानों का राज्य कतई नहीं था। हां! सिन्धमें मुसलमानों का शासन इस समय कहीं-कहीं हो गया था। कहा जाता है कि सुसाणी की सगाई दूगड़ों के यहां हो चुकी थी अतः सुराणा और दूगड़ दोनों गोत्रों वाले सुसाणी माताको साविशेष मानते हैं। सुसाणी माताके चमत्कार प्रत्यक्ष हैं। उनके वंशज गोत्रवाले आसोज
और चैत्रकी नवरात्रि में वहां जाते हैं और मेला सा लग जाता है। बीकानेर शहर के बाहर सुराणों की बगीचीमें भी सुसाणी देवीका मन्दिर है जिसका लेख इसी ग्रन्थमें प्रकाशित है।
लौंका गच्छको पट्टावली से ज्ञात होता है कि धर्मघोषसूरिने धारानगरी के पमारों को प्रतिबोध देकर सूरवंश की स्थापना की थी। उन्हींक वंश
घि देकर सरवंश की स्थापना की थी। उन्हीके वंशज नागौर आकर बसे, जहां उनके वंश का खूब विस्तार हुआ। सं० १२१२ में संघपति सतीदास के यहाँ सुसाणी माता हुई। सं० १२२६ में नागोर से मोरखाणा जाकर अन्तर्हित हो सं० १२३२ में माताजी के रूपमें प्रकट हुई। माताजी ने सूरवंशी मोलाको स्वप्न में दर्शन दिया उसने देवालय का निर्माण करवाया।
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[ १०१ ]
बीकानेर की कला-समृद्धि भारत के शिल्प-स्थापत्य और चित्रकला के उन्नयन में राजस्थान का प्रमुख भाग रहा है। राजस्थान के प्रधान नगरों में बीकानेर का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है और उसके कलाकारों ने राजस्थान की कला-समृद्धि में स्तुत्यप्रयास किया है। शिल्प-स्थापत्य एवं चित्रकला में बीकानेर की अपनी विशेषता है जिसमें जैन समाज भी अग्रगामी रहा है। बीकानेर वसने के पूर्वको भी राज्यवर्ती भिन्न-भिन्न नगरों से प्राप्त सामग्री इस विषय का ज्वलंत उदाहरण है। पल्लू की जैन सरस्वती मूर्तियां कला-सौन्दर्य की दृष्टि से विश्वविश्रुत और अद्वितीय हैं। हनुमानगढ़ (भटनेर ), जांगलू, रिणी, नौहर आदि स्थानों में भी प्राचीन मूर्तियां प्राप्त हुई हैं। मन्दिरों में बीकानेर के अतिरिक्त मोरखाना, रीणी आदि प्राचीन एवं चूरू, सुजानगढ़ व बीकानेर के कई मन्दिर आधुनिक शिल्प एवं चित्रकला के सुन्दर प्रतीक हैं।
___ बीकानेर वसते ही चिन्तामणिजी, भांडासर, नमिनाथजी व महावीर स्वामीके शिखरबद्ध मन्दिर निर्माण हुए। सुदूर जेसलमेरसे पत्थर मंगवाकर निर्माण कार्य संपन्न किया गया। चिन्तामणिजीके मन्दिरके सभामण्डपमें सुन्दर हंस पंक्तियां व मधुछत्र बने हुए हैं। नमिनाथजी का मन्दिर बारीक तक्षणकलाका सुन्दर उदाहरण है, उसके सभामण्डपका प्रवेशद्वार बड़ा ही भव्य, कलापूर्ण है भांडासरजी के मन्दिर का निर्माण ऊँचे स्थान पर हुआ है इसकी ऊँचाई समतल भूमिसे ११२ फुट व मन्दिरके फर्शसे ८१ फुट है परकोटे की दीवाल का ओसार १० फुट एवं कंगुरोंके पास शा फुट चौड़ा है । तिमंजिला विशाल और भरत मुनि के नाट्यशास्त्र से सम्बन्धित वाद्ययंत्रधारी पुत्तलिकाओंसे युक्त जगती वाला है। इनमें कायोत्सर्ग मुद्रास्थित २४ जिनेश्वर, ८ यक्ष एवं विविध भावभंगिमायुक्त नृत्य वाजिनवाली १६ किन्नरियें हैं । मन्दिरके स्तम्भोंकी संख्या ४२ है। इन मन्दिरोंके शिखरगुंबज गर्भगृह के सम्मुख सभा-मण्डप, नाट्य-मण्डप व शृङ्गार-चतुष्किका आदि शैली प्राचीन शिल्पशास्त्रोंके अनुसार है। अत्रस्थ धातु प्रतिमाएं भी बड़ी ही कलापूर्ण प्राचीन और संख्याप्रचुर होते हुए ऐतिहासिक दृष्टिसे भी कम महत्व की नहीं हैं। श्री चिन्तामणिजी के मन्दिर में गुप्तकालीन व तत्परवर्ती धातु प्रतिमाएँ विशेषत: उल्लेखयोग्य हैं। पाषाण प्रतिमाओं में भी प्राचीन भव्य और कलापूर्ण प्रतिमाएं यहांके मन्दिरों में विराजमान हैं । नाइटों की गुवाड़ स्थित शत्रुक्षयावतार श्री कृषभदेव भगवान की प्रतिमा बड़ी ही सप्रभाव, विशाल और मनोहर है। कई मन्दिरों में संगमर्मर का सुन्दर काम हुआ है जिसमें नवनिर्मित श्री महावीर स्वामी का मन्दिर ( बोहरों को सेरी ) महत्त्वपूर्ण हैं इसका शिखर भी संगमर्मर का ही है। स्वर्गीय सेठ भैरूदानजी कोठारी की अमर कलाप्रियता के ये उदाहरण हैं। सुजानगढ़ का जगवल्लभ पाश्वनाथ का देवसागर प्रासाद जिसकी ४० वर्ष पूर्व प्रतिष्ठा हुई थी, साढ़े चार लाख की लागत से जैसराजजी गिरधारीलालजी पन्नाचन्दजी सिंघीने निर्माण करवाया था। यह देवालय बड़ा ही भव्य और विशाल है। इसी प्रकार चूरू के मन्दिर में यति ऋद्धिकरणजी ने लाखों रुपये लगाकर नयनाभिराम कलाभिव्यक्ति की है।
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[ १०२ बीकानेर की चित्रकला भी पर्याप्त समृद्ध और स्फूर्तिदायक रही है। यहां के भित्तिचित्र भी बड़े प्रसिद्ध हैं। राजमहलों में भित्तिचित्रों का प्रचुरता से निर्माण हुमा व जनसाधारण के घरों व मन्दिरों में भी सुन्दर कलाभिव्यक्ति हुई। प्राकृतिक एवं लोक जीवन से सम्बन्धित चित्र तथा मनौती काम करनेवाले चित्रकारों की दो विशिष्ट शाखाएँ थी। जिनमें मुस्लिम उस्ते प्रधान थे। दूसरे चित्रकार थे मथेरण जो लेखन व चित्रकला दोनों काम किया करते थे, आज भी इन्हीं दोनों जातियों का यह पेशा है। कतिपय जैन प्रतियां एवं विज्ञप्रिपत्र तथा भित्तिचित्र मथेरणों के निर्माण किये हुए उपलब्ध है। ये लोग रंग काम के अतिरिक्त विवाहादि में कागजों की सुन्दर बाग बाड़ियां भी निर्माण किया करते हैं। बीकानेर के मन्दिरों तथा उपाश्रयों में चित्र समृद्धि प्रचुरता से उपलब्ध है। उस्तों में भी खानदानी चित्रकारी का पेशा था, इनमें मुरादबरूस बड़ा प्रसिद्ध और कुशल चित्रकार था उसने जैनधर्म से सम्बन्धित चित्रकारी में ही अपना अधिकांश जीवन बिताया। बीकानेर के जैन मन्दिरों में महावीरजी में श्रीपाल चरित्र, पृथ्वीचन्द्र गुणसागर चरित्र, महावीर चरित्र इत्यादि एवं भांडासरजी के सभामण्डप में सुजानगढ़ मन्दिर, स्थूलिभद्र दीक्षा, संभूतिविजय का चातुर्मास-आज्ञा-वितरण, भरत बाहवलि यद्ध, अषभदेव १०० पुत्र प्रतिबोध, दादाबाडी, धन्ना शालिभद्र चरित्र तीन चित्र, विजय सेठ-विजया सेठानी, इलाचीपुत्र, सुदर्शन सेठ चरित्र के दो चित्र तथा समवशरण कुल. १६ विशाल चित्र हैं। इसके नीचे कारनिस में बीकानेर विज्ञप्तिपत्र का संपूर्ण चित्र है। गुंबज के प्रथम आवर्त में बड़े-बड़े चित्रों में नेमिनाथ भगवानका चरित्र है। समुद्रविजयजी, बरात, उग्रसेन का महल, गिरनार, राजुल, सहस्राम्रवन, प्रभु का गिरनार गमन, पशुओं का बाड़ा, रथ फिराना, कृष्ण बलभद्र इत्यादि । गुंबज के आवर्त में दादा साहब के जीवनचरित्र विषयक १६ चित्र हैं जिनमें जिनचंद्रसूरि अकबर मिलन अमावस की पूनम, पंचनदी साधन तथा श्रीजिनदत्तसरि चरित्र सम्बंधी अवशिष्ट चित्र हैं। गंबज के सर्वोपरि कक्ष में तीर्थकर चरित्र के १६ चित्र हैं। इनमें महावीर प्रभु के चण्डकौशिक उपसर्ग, संबल-कंबल, कमठोपसर्ग, नेमि-संखवादन, १४ राजलोक, मेरुपर्वत, केवलज्ञान निर्वाणादि के व प्रवेशद्वार पर जन्माभिषेक चित्र है। बाहरी गुंबज में जैनाचार्यों के चित्र हैं। सभामण्डप व भमती जैन कथा साहित्य के बहुत से चित्र हैं। गौतम स्वामी की अष्टापद यात्रा, आमलकीड़ा, नरकयातना, वीर उपसर्ग, कमठोपसर्ग, चम्बू चरित्र, इलापुत्र, कचूल, रोहणिया चोर, समवशरण, जिनालय, गुवालियेका उपसर्ग, श्रीपाल चरित्र के १० चित्र, चंपापुरी, पावापुरी, समेतशिखर तीर्थ, जम्बूवृक्ष, इन्द्र इन्द्राणी आदि अनेकों चित्र बीकानेरी चित्रकला के गोरवमय चित्र हैं । चूरू और बीकानेरके दूसरे सभी मंदिरों में भी सुन्दर चित्रकाम उपलब्ध है। सचित्र कल्पसूत्रादि को सैकड़ों सचित्र प्रतियों में कतिपय बीकानेरी कला की चित्रमय प्रतियां भी उपलब्ध हैं। सोनेका मनौती काम, कांच व मीने का काम भी दर्शनीय है। यहाँ सीमित स्थान में इन सब का विस्तृत परिचय संभव नहीं !
'दुर्ग-प्रासाद और भवन निर्माण-कला भी बीकानेर की उन्नत है। बीकानेर का प्राचीन दुर्ग मंत्रीश्वर कर्मचन्द्र के तत्वावधान में निर्मित हुआ था एवं यहां की हवेलियां व पत्थर की कोरणी भी राजस्थान में प्रसिद्ध है। राज्यवर्ती सरदारशहर, रतनगढ़, चूरू इत्यादि नगरों के जैनों के विशाल प्रासाद भी प्रेक्षणीय हैं। अब यहां की सर्व श्रेष्ठ कलापूर्ण जैन सरस्वती मूर्तियों का परिचय कराया जाता है।
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। १०३ । पल्लू की दो जैन सरस्वती-मूर्तियां सरस्वती मूर्ति की ऊँचाई ३ फुट ५ इंच और सपरिकर ठीक ४ फुट ८ इंच है। परिकर में उभयपक्ष में दो स्तम्भ, तदुपरि तोरण अवस्थित है। परिकर में स्तम्भोपरि कोण, जो तीन श्रेणियों में विभाजित है, मध्यवर्ती स्तंभ में चार-चार देवियां विराजमान हैं। जिनकी मूर्तियां भी सपरिकर, उभय पक्ष में स्तंभ और ऊपर तोरण दिखाया गया है । इन सब के दो-दो हाथ हैं। मुद्रा लगभग, सबकी एक समान है। वाहन व आयुध भिन्न-भिन्न प्रकार के हैं ! बांयां पैर पृथ्वी पर रखा हुआ, दाहिना पैर बांये पैर की पिण्डुली पर रखे हुए वो अपने-अपने वाहन पर विराजमान है। केशपाश सबके संवारे हुए और जूड़ा बांये तरफ चला गया है। नीचे दाहिने से प्रथम मूर्ति के, सांप बाहन और बांये हाथ में कुछ छबड़ी जैसा पात्र प्रतीत होता है, दाहिने हाथ में सांप सा मालूम होता है। दूसरी के पुरुष का सा वाहन और दाहिने हाथ में अस्पष्ट वाद्य, बायें हाथ में गोल ढाल जैसी वस्तु दिखाई देती है। तीसरी मूर्ति का वाहन वृषभ ? और दाहिने हाथ में गदा, बायें हाथ में पहले जैसा ढक्कनदार पात्र धारण किया हुआ है। चतुर्थ मूर्ति के शायद भैसे जैसा वाहन और हाथ में वन धारण किया है इन चारों सतोरण देवियों की बीच-बीच में बंधनी गोलबंधी हुई है और कनडि में लंबी पत्तियां बनी है इसके उभय पक्ष में नीचे दोनों तरफ कतलिए। ऊपर की खड़ी हुई परिचारिका स्तंभगत मध्यवर्ती दोनों देवियों के उभय पक्ष में है जिनके तूर्णालंकार कटिबंध व कमर में लटकता हुआ कंदोला बना हुआ है। हाथों में कमंडलु, कमलनाल, वन इत्यादि धारण किये हुए हैं। जटाजूट सबके मस्तकोपरि किरीट जैसे शोभायमान है तीसरी देवीके उभय पक्ष में अलंकृत हाथी बने हुए हैं, जिनका आधा आधा शरीर देखने में आता है। गण्डस्थलोपरि एक पैर जमा कर सिंह या ग्रास खड़ा है। दूसरी तरफ के स्तम्भ के ऊपर भी इसी प्रकार की चार बैठी और चार खड़ी हुई मूर्तियां हैं जिनमें बैठी मूर्तियों का वाहन महिष ? मयूर, वेदिका, हाथी व नीचे से अभय मुद्रा, पात्र, गदा पात्र नागपास ? और उसी प्रकार के आयुध हैं उभयपक्ष स्थित देवियां भी नाना ढाल मुद्गरादि आयुध लिये खड़ी हैं।
तोरण के उभय पक्ष में स्तम्भों के ऊपर कायोत्सर्ग ध्यानस्थ अर्हन्तबिंब खड़े हैं जिनके पहनी हुई धोती का चिह्न खूब स्पष्ट है इनके सार्दूलसिंह मुख के पास से निकली हुई कबाणी से सेमीसर्किल में तोरण बना है जिसके मध्य में उभय पक्ष स्थित स्तम्भों वाले पाले में फिर कायोत्सर्ग मुद्रा में अर्हन्त प्रतिमा है। कबाणी के ऊपर दोनों तरफ चार-चार पुरुष एवं एक-एक स्त्री की मूर्ति हैं जिनका एक-एक पैर स्पष्ट दिखाई देता है दूसरा पैर जंघा तक है बाकी कबाणी के पृष्ठ भाग में हैं। पहला पुरुष दाहिने हाथ की दो अंगुली दिखा रहा है, बायें हाथ को ऊँचा किया हुआ है। दूसरा व्यक्ति हाथ की दो अंगुली जमीन से स्पर्श करता है, तीसरे के हाथ में प्याले जैसा पात्र है, चौथी स्त्री है जिसके हाथ में लम्बा दण्ड है, पांचवां पुरुष दोनों
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[ १०४ 1 हाथों में पुष्पमाला धारी हैं, बाकी के हाथ सबके ऊँचे मस्तक के पास हैं। कवाणी के दूसरे Era में अर्थात् बायें ओर भी इसी प्रकार की मूर्तियाँ हैं परन्तु उसका ( नीचे से ) पहिला पुरुष लंबी दाढ़ी धारण किये हुए है। तीथंकरों के आले ( गवाक्ष ) के दूसरी तरफ में जो प्रास हैं वे बाह्य भाग में है और उनके मुख से निकलते हुए दो पुरुष दोनों ओर दिखाये हैं जिनके एक पैर का कुछ अंश मुख के अन्दर है ।
परिकर का परिचय करा देने के पश्चात् अब मध्यवर्ती मूल प्रतिमा का परिचय दिया जाता है। इस सर्वाग सुन्दर सरस्वती मूर्ति के अंगविन्यास को देखकर हृदय नाचने लग जाता है। राजस्थान के जिस वास्तु-शिल्पी ने अपनी यह आदर्श साधना जनता को दी, वह अपना अज्ञात नाम सदा के लिये अमर कर गया। भगवती के लावण्य भरे मुखमण्डल पर गम्भीर, शान्त और स्थिर भाव विराजते हैं नेत्रों की सौम्य दृष्टि बड़ी ही भली मालूम देती है । लगता है कि जैसे नेत्रामृत वृष्टि से समस्त जगत् का अज्ञानान्धकार दूर कर हृदय में ज्ञान ज्योति प्रकट कर रही हो। कानों के ऊपरी भाग में मणि मुक्ता की ४-४ लड़ी विराजित भँवरिया पहना हुआ है, दाहिने कान का यह आभूषण खंडित हो गया है। निम्न भाग में गुड़दे से पहिने हुए हैं जिनकी निर्माणशैली गुड़दे से कुछ भिन्न प्रतीत होती है। पर जटाजूट सा दिखलाकर उस पर सुन्दर किरीट सुशोभित किया गया है। तरफ चली गई है जिसकी सूक्ष्म प्रत्थी वाली डोरी एवं चोटी के ऊपर नीचे, फुन्दे से दिखाये गये हैं। सरस्वती के सुन्दर और तीखे नाक पर कांटे, नाथ या किसी अन्य आभूषण का अभाव हैं जिससे ज्ञात होता है कि प्राचीन काल में आर्यावर्त में इसकी प्रथा नहीं थी । गलेके सल बड़े सुहावने मालूम होते हैं गले में पहनी हुई हँसली और उसके नीचे झालरा या आड़ पहना हुआ है जिसके लम्बे-लम्बे लटकने हँसली के नीचे फिट हैं, दोनों कन्धों तक गया है। इसके बाद पहना हुआ ३ थेगड़ों वाला सांकल का हार सीबीसांकल से मिलता जुलता है जो उभय पुष्ट और उन्नत पयोधरों के ऊपर से होकर उदर तक' आगया है । एक आभूषण न मालूम क्या है जो उभय स्तनों के मध्य से होकर आया है और उसके अन्दर से निकली हुई दो लडें स्तनों के नीचे से होकर पृष्ट भाग में चली गई हैं और तीनलड़ा डिजाइनदार सीबीसकिल तक आकर उसमें से निकला हुआ आभूषण कटिमेखला तक आगया है जो शरीर से १ इंच दूर है और खण्डित न हो, इसलिये मध्यवर्ती प्रस्तर खण्ड को संलग्न रहने दिया गया है। उदर, नाभि सरस्वती के ४ हाथ
और कमर का लचीला और सुन्दर विन्यास बड़ा ही प्रेक्षणीय हुआ है। हैं सामने वाले हाथों की भुजाओं में तिलड़े, मध्य में त्रिकोण भुजबन्ध के नीचे पहिना हुआ आभरण बड़ा सुभग मालूम होता है । गोल बड़े-बड़े मणियों के बीच पिरोये हुए वृत्त और लटकते हुए जेवर आजकल के झालरदार आर्मलेट को स्मरण कराये बिना नहीं रहते। इसके नीचे उभय हाथों में पीछे से आई हुई वैजयन्ती या तूर्णालंकार ठेट गोडों के नीचे तक चला गया है। हाथों में सांकल में लटकता गूघरा दिखाया है। कलाई में पहनी हुई चूड़ आजकल देखा
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केशपाशों को संवार कर मस्तक
चोटी, पीछे बायें
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पल्लू से प्राप्त जैन सरस्वती प्रतिमा, बीकानेर म्यूजियम
(परिचय प्रस्तावना पृ०.१०३)
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बीकानेर जंन लेख संग्रह
इस गजिवश्वश्यसि दियश्साया साये गयरबे नं। ३ ३ ६ सघतिश्रुतीनां यः । चरिमते गिगुणवान मे विसाव यो तीनों मेतः मनुष्य त्रिकंसनिकं ३ दशकम ३कस्मै लगनामक नामक गाडि साता मातयारिकतर चे ३:१ वानरकानश्व दिनावरम समयेादशा सन्तान बिविला बार स१२ वरमसमयम्मि सिद्धिदविवदियान महत नीशा ३४ वा वानर का नुपूर्वी विना चरमसमये हाद त्रायो महावीरपताः प्रती ऋपित्रा सिगितावीरनमता किं विशिष्टवीरेदिदियवेदि श्रीमपि ॥ ॥ वेलदेखि मिनि
संवत् १६१२३ श्री जसलमेरुमगीरामल श्रीनिमालिका सरिपुरंदरा विश्नसमतिधीर पाश दिवारे ॥ श्रीस्तान् ॥ ॥लाबोल ॥ ९ ॥ युगप्रधान श्री जिनचंद्रसूरिजी लिखित कर्मस्तव वृत्ति सं० १६११ ( प्राचार्य पद से पूर्व )
नदियो दो
माष्यम्पामा पनि निविता माताश्रमण संघ पदानि सीमाखासमा उनका
प नियम्मद गुलामासमा जातामिमामारतमा म मदान मंदिमंद किंनामे शुरुमा वैदित्रापावयानमा मागमा साकारणारा वामाश्च महिना शुरू नइरतमाम मलाल ३सरी विद्यानलाउन सिंवपावलीउ इतना मान उसी माखमा समादा Ms यंम टिमदमापादयमिक पाठ्दा कारबाहि मं समवमग्माना पाउ बेलगदिय यह मिंदमकिः नाथरिका सांघायनम्म मरिचक परिव। पवनिनिवारा नादान उमासमदाउनपावसाचावयमटिमका उम्म ग्रां कारभि ।। व माम मदानंद क्रान्नानिभित्र कार मिकाउ म्गाद्याय विनियमननिमिक अनि सामाग्तमा कारण निमिक्रममाप्यदान" म्याम मन पविनियनिभिसमा निषद्य मदिनास मद मर शुरुतिशिवारा परिकलकारान शुरुमा हिण्डयामान्नमनिमिका एनेमीयान उपनामलगावलाप वंदावधि यदादिकन्न परंपरागयमनय का निवारासीमा मामला गंदाsis किस मान्दा उनकी हंनिया गंध कपूर माया दिदा सामादिना कयलमrminas मी मारमा समान नाम हवक (733वास दिवानात जादावियनाभंकार नियनिमिकानिमन्नम्मी सम्मा पपिलिटिकाचं जायनिका करुवाल मावन वदलाउन ल कामादात्री मारुवं वामं दिमाइ वश्कारणमदाबादल दिनांक नियनिमिद्याप समायना गुरू का मामा मामनःशाविका विकाद्यना र बेनिम मदिनाव मातो यानि च तुम्नाया गारी निवास बाकार जहाम त्री० मं वदा का इत्याचार्य नाविविसमा मानव काल प्रियाला वायुरुवंदन कदानं नननादिका माविका ॥ इनिपायर नाव ॥aar विदा भरला घाट दि१४ वाजिनननिर्लिन मि। ०माधुनिक वाचनाय १ साखीनेथतिः।।
शासनप्रभावक श्री जिनभद्र सूरिजी की हस्तलिपि
(सं० १५११ लि० योगविधि )
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[ १०५ ] में पहने जाने वाली चांदी की चूड़ से सर्वथा अभिन्न है। उसके आगे गुजरी और तीखी बंगडी जैसे कंकण पहिने हुए है। हाथों में पहने हुए हथसांकला आजकल की तरह विकसित नहीं पर तत्कालीन प्रथा के प्रतीक अवश्य हैं। हाथ के अंगूठे और सभी अंगुलियोंमें अंगूठियां (मुद्रिकायें ) पहनी हुई हैं। अंगुलियों का विन्यास बौद्धकालीन मुद्राओं में चित्रित लम्बी और तीखी अँगुलियों जैसा है, इन्हें देखने से ज्ञात होता है कि नाखूनों को बढ़ाना भी आगे सुन्दरतामें शुमार किया जाता होगा, क्यों कि इन नखों के कारण आई हुई तीखाई सुकुमारता में अभिनव वृद्धि करने वाली दिखायी है। अंगुलियों के विन्यास में कलाकार ने गजब ढा दिया है। हथेली पर पद्म व सामुद्रिक रेखाएं तक दिखायी गयी हैं। दाहिने हाथमें माला व बांयें हाथमें कमण्डलु धारण किया हुआ है। दोनों का थोड़ा-थोड़ा अंश खण्डित हो गया है। हाथों की मजबूती के लिये पत्थर से संलग्न रखा गया है। दूसरे दोनों हाथ, भुजाओं के पीछे से ऊपर की ओर गये हैं, जिनमें चूड़ के अतिरिक्त दूसरे आभूषण विद्यमान हैं। दाहिने हाथमें बड़ा ही सुन्दर कलामय कमल-नाल धारण किया हुआ है जिस पर सुन्दर षोड़श दल कमल बना है। बायें हाथमें ६ इंच लम्बी सुन्दर ताडपत्रीय पुस्तक धारण की हुई है उभय पक्षमें काष्टफलक लगाकर तीन जगह तीन-तीन लड़ी डोरीसे ग्रन्थको बांधा गया है। कमर में स्थित कटिसूत्र खूब भारी व उसके झालर लटकण व मूघरे कई लड़े पुष्ट व मनोहर हैं जो तत्कालीन आर्थिक स्थितिकी उन्नतावस्था के स्पष्ट प्रतीक हैं ! पहिना हुआ वस्त्र (घाघरा या साड़ी) के सल इत्यादि नहीं है, खूब चुस्त दिखाया है ताकि वस्त्रोंके कारण अङ्गविन्यास में भद्दापन न आ जाय । कमर पर एवं नीचे, वस्त्र चिह्न स्पष्ट है नीचे घाघरे की कामदार मगजी भी है। वस्त्रको मध्यमें एकत्र कर सटा दिया है। पैरोंमें केवल पाजेब पहने हैं जो आजकल भी प्रचलित हैं। इसके अतिरिक्त पैरोंमें कोई आभूषण नहीं, सम्भवतः प्रतिमा के सौन्दर्य को कायम रखने के लिये नूपुर आदिको स्थान न दिया गया हो। पैरोंके अंगूठों में कुछ भी आभरण नहीं है। पैर उन्नत व सुन्दर हैं। अँगुलिए कुछ लम्बी हैं पर हाथोंकी भांति पेरोंके नाखून लम्बे नहीं, प्रत्युत मांसल है, क्योंकि ऐसा होने में ही उनकी सुन्दरता है । इसप्रकार यह सर्वाङ्ग सुन्दर मूर्ति कमलासन पर खड़ी है जिसके नीचे दाहिनी ओर गरुड़ और बांये तरफ वाहन रूपमें हंस अवस्थित है। सरस्वती मूर्तिके पृष्ठ भागमें प्रभामण्डल बड़ा ही सुन्दर बना हुआ है। उसके उपरिभाग में जिनेश्वर भगवान की पद्मासनस्थ प्रतिमा विराजमान है। सरस्वती के स्कन्ध प्रदेश के पास उभयपक्षमें दो पुष्पधारी देव अधरस्थित और अभिवादन करते हुए दिखाये गये हैं। जिनके भी कंकण, हार, भुजबन्द आदि आभूषण पहिने हुए एवं पृष्ठभाग में केशगुच्छ दिखाया गया है।
सरस्वती मूर्तिके उभय पक्ष में वीणाधारिणी देवियर्या अवस्थित है जिनका अंगविन्यास बड़ा सुन्दर, भावपूर्ण और प्रेक्षणीय है। वे भी ऊपरिवर्णित समस्त अलंकार धारण किये हुए हैं। कमर से पैरों तक लहरदार वस्रके चिह्न स्पष्ट हैं।
सरस्वती के पैरोंके पास दाहिनी ओर पुरुष व बांयी ओर स्त्री है जो सम्भवतः मूर्ति
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। १०६ ] निर्मापक जोड़ा होगा। एक गोडा ऊँचा और दूसरा नीचा किये बैठे हैं। पुरुष के दाढ़ी मूछे हैं पुरुष के कानों में गड़दे, हार, बाजू, कंदोला, कंकण एवं पैरों में पाजेब तक विद्यमान है स्त्रीके भी सभी आभरण हैं। घाघरा है, पर ओढणे को कमर के पीछेसे लाकर हाथोंके बीचसे लटकाया है। इसी प्रकार का उत्तरीय वस्त्र पुरुष के भी है ! आश्चर्य है कि कलाकार स्त्री को पाजेब पहिनाना भूल गया इस मूर्तिमें स्थित सभी देवियों के मस्तक पर मुकुट की तरह जटा-जूट, किरीटानकारी किया हुआ है पर इन भक्तोंकी जोड़ीके वैसा नहीं क्योंकि ऐसा करना अविनय होता। इसी तरह आकाश स्थित पुष्पमालाधारियोंके भी। इन भक्त जोडीके केश-विन्यास बड़ी ही सुन्दरता से सजावट युक्त बनाकर पीछेकी ओर जूड़ा बांध दिया है। दोनों सविनय हाथ जोड़े हुए बैठे देवीके वरदानकी प्रतीक्षा में उत्सुक प्रतीत होते हैं।
सरस्वती की दूसरी मूर्ति भी ठीक इससे मिलती जुलती और सुन्दर है। परिकर के बाजू की देवियों में विशेष अन्तर नहीं पर तोरण में खासा फरक है उभयपक्ष व उपरिवर्ती जिनालय में उभयपक्ष में दो दो काउसग्गिए (खगासनस्थित जिन प्रतिमा) एवं मध्यस्थित सभी प्रतिमाएं पद्मासनस्थ हैं। कबाणी में तीन-तीन पुरुष व एक-एक स्त्री ही हैं।
___सरस्वती प्रतिमा के उभय पक्षमें अधरस्थित देव नहीं हैं पर निम्नभागमें दोनों तरफ कमलासन पर बैठी हुई देवियाँ वंशी बजाने का उपक्रम कर रही है।
सरस्वती के वाहन स्वरूप मयूर, कमलासन पर बना हुआ है ! सरस्वती के पैरों पर इसमें वस्त्र चिह्नके सल भी हैं। दोनों कानों में भंवरिये तथा दूसरे सभी आभूषण एक जैसे हैं। मुखाकृति इसकी कुछ पष्ट है एवं गलेमें कालर-कण्ठी पहिनी हुई है, यह विशेषता है। हस्तस्थित कमल द्वादशदल का है खड़े रहने के तरीके व पदविन्यास में किंचित भेद है, कुछ साधारण भेदों के सिवा उभय प्रतिमाएँ राजस्थानी कलाके श्रेष्ठतम नमूने हैं।
उपर्युक्त सरस्वती मूर्तियों के अतिरिक्त कुछ जिन प्रतिमाएँ और गुरू मूर्तियाँ भी कला की दृष्टि से अति सुन्दर हैं। डागों के महावीरजी में जांगलू वाले परिकर में विराजमान प्रतिमा, शान्तिनाथजी की मूलनायक प्रतिमा, भीनासर मंडन पार्श्वनाथ, ऋषभदेव स्वामी, वैदोंके महावीरजी में सहसफणा पार्श्वनाथजी एवं गुरुमूर्तियों में युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरि एवं क्षमाकल्याणजी की मूर्ति आदि उल्लेखनीय हैं। जांगलू व अजयपुर के प्राचीन परिकर एवं श्री चिन्तामणिजी में स्थित दूसरे परिकर भी कला की दृष्टिसे महत्त्वपूर्ण हैं। तीर्थोके पट्ट, नेमिनाथ बरात, चतुर्विशति मातृपट्ट आदि भी तक्षणकला के सुन्दर नमूने हैं। धातु मूर्तियों की विविध कला तो उल्लेखनीय है ही। भित्तिचित्र गौड़ी पार्श्वनाथजी आदिमें कई प्राचीन भी अब तक सुरक्षित हैं। कुछ स्वतन्त्र चित्र भी मन्दिरों एवं अन्य संग्रहालयोंमें है वे बीकानेरी चित्रकला के श्रेष्ठ उदाहरण हैं। गौड़ी पार्श्वनाथजी में श्रीज्ञानसारजी व अमीचन्दजी सेठिया व श्री जिनहर्षसूरिजी के चित्र भी समकालीन होनेसे महत्वपूर्ण हैं।
बीकानेर के कलात्मक उपादानों पर कभी स्वतन्त्र रूपसे प्रकाश डाला जायगा भूमिका के अति विस्तृत होने के कारण हमने बीकानेर के जैन इतिहास, साहित्य और कालाको चर्चा यहाँ बहुत ही संक्षेप में की है। यहाँ की कलाभिव्यक्ति करनेवाले कुछ चित्र इस ग्रन्थमें दिये जा रहे हैं जिससे पाठकों को इसका साक्षात् दशन हो जायगा।
अगरचन्द नाहटा भवरलाल नाहटा
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प्रस्तावना-परिशिष्ट (१) वृहत् ज्ञानभंडार व धर्मशाला की वसीहत श्री जैन श्री संघ श्वेताम्बरी आम्नाय से श्री बड़ा उपासरा भट्टारकगच्छ के आचार्यश्री जिनकीर्तिसूरिजी महाराज के विजय राज्य में उपाध्याय श्री हितवल्लभ गणि अपर नाम हिमतूजी रा धर्मलाभ बंचना तथा श्री बड़े उपासरे में श्री ज्ञानभंडार १ श्री जिनहर्षसरि २ श्री दानशेखरजी ३ महिमाभक्ति ४ दानसागर ५ अभयसिंह ६ भुवनभक्ति नाम सु किया गया है ते में घणौसौक सामान पुस्तकां वा ज्ञान उपगरणम् हारी तरफ सुं भंडार किया गया है तेरी बी दूजो पुस्तकों वगैरा वा चांदी सोने तांबै पीतल री जिनस्यां वा कपड़ो लकड़ी वगैरह री जिनस्यां है तेरी तपसील ज्ञानभंडार री बही में मंडी है वा भंडार में मौजूद है इण तमाम रो मालक श्री संघ है । निगरानी अर्थात् देख रेख म्हारी है और जिस तरह सुं इण रौ बन्दोवस्त करणौ अबै तई ठीक समझ्यो मैं को अब कई दिन सुं म्हारो शरीर बिमार रहवै छै और शरीर रो कइ भरोसौ छै नहीं तैसु मैं नीचे लिखी बातां इयै बाबत वसीहत करू हूं के मने सौ बरस पूग्यां सुं श्री संघ ज्ञानभंडार की देख रेख निगरानी इतरा आदमियां सुं करता रहै
१ पन्नालालजी कोठारी २ गिरधरदास हाकम कोठारी ३ जवानमल नाहटा ४ दानमल नाहटा ५ ईसरदास चोपड़ा कोठारी, ६ सदाराम गोलछा ७ रेवामल सावणसुखा।
इस श्रावका नै भंडार री देखभाल करणी हुसी और जो कायदौ ज्ञानभंडार रो बणाय वही ज्ञानभंडार में पहेला सुं मंडाई हुई है तिके मुजब श्री संघ देख रेख पूरी राखै। और इण सात आदमियां माह सुं कोई श्रावग काम ज्ञानभंडार रे लायक न हुवै तो श्री संघ सलाह कर दूजो साधर्मी श्रावक बेरी जगह मुकर्रर कर देवो और ज्ञानभंडार री कूची वा समान विसू नाई रे तालकै छै सो इयै विस्सू खवास नै पुस्तक वा भंडार री साल संभाल याने चाकरी पर राख्यो जावे वा सुक्खे सेवग सुं भाइयां रे तालुके रो काम लियो जावै। जो रुपिया ज्ञानभंडार मांयजी है मकसुदावाद में तेरी व्याज री उपज सुं मास १ रुपिया ६ वीस्सु ने वा मास १ रु० २) सुक्खे सेवग नै सर्व मास १ रुपया ८) अखरे आठ दरीजता रहणा चहीजे जमा खर्च सरब ज्ञानभंडार री बही में हुवतो रहणौ चईजे बाकी ब्याज वधतो आसी वा दूजी पैदा हुसी तिका भंडार री बही में जमा हुंता रेहसी और इण आदमीयां मांसु मोई काम लायक न हुसी तो श्री संघ नै अलाहदा करने का अख्तियार है। और उपासरो न० १ रांगड़ी में है पं० श्रीचन्दजी खनै आथूणमुखो श्री जैन साधर्मीशाला वास्ते श्री संघ खरीद को तैरी मौखाई रौ कागद सं १६५७ चैत बदी १३ रो हमारे नाम सुं करायो तहसील सदर में है तसदीक करायो है तिको भी श्री संघ रै रहसी तिका सिर्फ साधर्मीशाला बाबत ही काम में लाया जासी जात्री वगेरा आसी तिका इणां में ठहरसी
और इण साधर्मीशाला री निगराणी भी उपरमंड्या श्रावक करता रहसी और इण रे तालकै रो काम खवास विस्तू व सेवग सुखो करतो रहसी। ऊपर लिखी तनखा में ही और रु० १०००) हमारे हस्तू साधर्मीशाला री बही में जमा है जो ए रुपीया हमारो शरीर कायम रहै तरै सो हमे
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[ १०८ ] तजबीज कराय हमारे प्रशिष्य रतनलाल के लिए कहीं जमा करा देंगे नहीं तो श्री संघ पीछे से इस रु० १०००) की बंदोवस्त करके मकसूदाबाद मोतीचंदजी बनेचंदजी व रायमेघराजजी बहादुर जालिमचंदजीके अठै आधा-आधा जमा कर देवा और ब्याज आवै सो रतनलाल को दिया जावे अठै जमा रहवे जबतक साधर्मीशाला रे गुंभाररी आमदानी वगैरह सुं मास १२ सुं रु० ६०) तक रतनलाल नै दे दिया जाया करै और रु० २००) मकसूदावाद से हमारा आवेगा वो टीपों की बायत है सोइ आणे पर साधारण खाते में जमा किया जावै ज्ञानभंडार री बही में और जब टीप वाला आवै तो यै माय सुं दिया जावै नहीं तो ज्ञानभंडार में रहसी व रु० १००) अन्दाज शुभ खाते जुदा है तिके भी ज्ञानभंडार री बही में शुभ खाते जमा करा दी जावै और आ लिखापढ़ी वसीयत के तरीके पर श्रीसंघ ने हमा होश हुशियारी सुं कर दीनी छै हमारे शिष्य प्रशिष्य वगैरह कोई नै साधर्मीशाला व ज्ञानभंडार व रकम वगैरह बाबत किसी तरै रो तालक व दावी है नहीं हमने पहले से जुदा इणां नै कर दीना था कदास कोई चेला पुस्तक भंडार री देखण चाहै तो ज्ञानभंडार रै कायदे माफक जिस तरह और लोगांने देखणै सारू दी जावै है दे दिया जाया करै कदास कोई हमारे चेले वगैरह किसी तरै रो इये बाबत उजर करसी तो श्रीसंघ रो गुनहगार तथा हमारी आज्ञारों विराधक समज्यो जासी संवत् १६५८ मिती अषाढ़ सुदि ४ वार गुरु ता० १६ जून सन् १६०१ ई०
क० केसरीचंद वेगाणी री हितवल्लभ महाराज रै होकम सुं लिखी द० उ० हितवल्लभ गणि रे केयां सुं कर दीना छै उणां रे हाथ सुं लिखीजे नहीं जिके सुं
पं० वागमल मुनि री कलम
द० पं० वागमलमुनि री ऊपर लिख्यो सो सही क० खुद द० रतनलाल उपर लिखियो सो सही-कलम खुद । साख १ पं० मोहनलाल मुनि री है पू० हितवल्लभजी रे केयां सुं क० खुद
" अबीरचंद मुनि री " पं० रामलाल मुनिरी " नथमल मुनि री " पं० पुनमचंद री है
कोठारी गिरधरलाल हाकमरा पन्नालाल कोठारी ईसरदास चोपड़ा कोठारी रेवामल सावणसुखा जवानमल नाटा दानमल नाहटा का छै
क० संकरदान नाहटा द... सदाराम गोलछा
०.
५
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[१०६ ]
( २ ) श्रीजिनकृपाचन्द्रसूरि धर्मशाला व्यवस्था पत्र
श्री वृहत्खरतर गच्छीय श्रीकीर्त्तिरत्नसूरि शाखायां उपाध्याय श्री अमृतसुन्दर गणि स्तच्छिष्य वाचक श्री जयकीर्त्तिजी गणिस्तच्छिष्य श्री प्रतापसौभाग्य मुनिस्तच्छिष्य पं० प्र० श्री सुमतिविशाल मुनिस्तच्छिष्म पं० प्र० समुद्रसोम मुनिस्तच्छिष्य पं० प्र० श्री युक्तिअमृत मुनिस्तेषामन्तेवासिना संविग्नपक्षीय क्रियाउद्धार कारकेण जैन भिक्षना पं० प्र० कृपाचन्द्र मुनिना पं० तिलोक चंद्रादि शिष्य प्रशिष्य समन्वितेन इयं नवीन धर्मशाला स्थापिता आत्मीय सत्ता व्यावृत्य संघ सात्कृता संघस्य स्वाधीना कृता श्री जिनकीर्त्तिसूरि विजयराज्ये ।
इसका अधिकारी संघ है रेख देख संघ रखेगा व्यवस्थापत्र नीचे लिखा हैः
द० पं० कृपाचंद्र मुनिका द० तिलोकमुनि सही २ ।
सं० १६४५ मि० ज्ये० सु० ५ दिने हमने श्री नागपुर में क्रियाउद्धार कर विचरते ४६ साल बीकानेर चतुर्मासा किया तब संभालने के लिए कह दिया था अब इसकी संभाल मर्यादा माफक रखनी होगी विशेष कार्य धर्म सम्बन्धी हमकुं अथवा हमारे शिष्य-प्रशिष्यादि योग्यवर्ग कुं प्रश्नपूर्वक करना होगा । उसके उपदेश माफक कार्य होगा। इसमें उजर कोई नहीं करेगा ज्यादा शुभम् । ५० खुद
व्यवस्थापत्र नवी धर्मशाला खरतरगच्छ धर्मशाला सं० १६५७ मित्ती ज्येष्ठ सुदि १० बार बृहस्पतिवार दिन मुकर्रर हुयोड़ा अगर मैं आनाथा सं० १६४५ में कलयत हो गई थी उसकी व्यवस्था धर्मशाला संवेगपक्षी सर्वगच्छीय श्रावक श्राविकण्यां के व्याख्यान पड़िकमणा धर्म करणी करने के वास्ते है सो करेगा तथा सर्वगच्छ का संवेगी साधु तथा साध्वी कंचनकामनी का त्यागी
विहारी नवकल्प विहार करनेवाला पंचमहाव्रत पालनेवाला इसमें उतरेगा और शिथिलाचारी नहीं उतरेगा। शुभार्थ आचरण करनेवाली नारियें वो मुनिराज के वास्ते यह स्थान है । तथा श्रावक श्रावणी प्रभात तथा संध्या दोनों वखत धर्मकृत्य नित्य करेगा। दोनों वखत धर्मशाला खुलेगा इसमें हरज होगा नहीं तथा उपासरो १ हनुमानजी वालो इस धर्मशाला तालके है तथा उपासरो एक धर्मशाला के सामने है गुरुजी महाराज सांवतेजीरो इनमें पांती २ धर्मशाला रे ताल है बरसाली तथा छोटी साल दमदमा तथा मालियौ वगैरह दो पांती है सो धर्मशाला री पांतीमें छै अनोपचंद तालुके छै इण उपासरे में कोई कृपाचन्द्रजी महाराज के संघाड़े का वृद्ध तथा ग्लान वगैरह विहार नहीं कर सके जिके हरेक साधु क्रिया करने के वास्ते तथा महाराज श्री संततिवाले नरम गरम के रैणेके बाबत औ उपासरो है । देख-देख धर्मशालारी है ।
कदास सामलै उपासर में कोई साधु कै रैणे में कोई तरह की असमाधि मालूम हुवे तो हनुमानजीवाले उपासरै में रहसी तथा धर्मशाला में साध्वी पहले उतरी है। पीछे साधु आवै तो साधुवों का कम ठाणे हुवे तो साधुवां रो सामलै उपासरे में अपसवाड़लै उपासरे में निर्वाह होता रहेगा और साधु नहीं धर्मशाला में उतरे कदास साधु कम ठाणे हुवै साध्वी बहुत गण हुवै तो साधु सामलै तथा पसवालै उपासरे में रहेगा, वखाण इधर सालमें आकै वांचेगा ।
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। ११० ] और गोगे दरवाजे बाहर श्री गौडीजी के सामने मंदिरजी संखेश्वरपार्श्वनाथजी रौछै तैरी देख रेख नवी धर्मशालावाला राखसी और मंदिरजी रे पसवाड़े उगूणी तरफ बगेची छे से में साल १ नारायणजी महाराज री वा कुंडी १ छै और बगीची रा वारणा उतराद सामौ छै तिका बगीची धर्मशाला तालकै रहसी तथा नाल रै दादेजीमें साल खड़ड दरवाजै रे चिपती बड़ता नै जीवण पास बड़ोड़ी साल में पांती २ में दिखणादैकोठे तथा बीचलौ कोठो वगेरह धर्मशाला रा श्रावक देख रेख राखसी तथा कीर्तिरत्नसूरि शाखा वाला का हक धर्मशालावाला श्रीसंघ देखसी निगरानी राखसी तथा इस धर्मशाला में पुस्तक तथा ज्ञान उपगरण तथा साधु लोग उपगरण पासरा डांडा वगैरह तथा औषध वगैरह बहुत चीज धर्मशाला में हाजर है और जो हाजर नहीं है सो एकठा रफते रफते कीवी जावेगी तथा पुस्तक वगैरे के कोठारांकी कुंची ४ आदमी के ऊपर रहेगी कुंची १ सागुमान कुंची १ सावणसुखा पूनमचंद कुंची १ नाहटा माणकचंद कंची १ सेठिया मेघराज तथा ५ आदमी इकट्ठा होनेसे कोठा खुलेगा १ आदमी खोलने पावै नहीं तथा पुस्तक बांचनै वगैरह के वास्ते संवेगी साधु तथा लिखा पढ़ा खातरवाला गुरां नै आधीपै अन्दाज दी जावेगी और को नहीं दी जावेगी आनेसे आगे को दी जावेगी। आखी पड़त नहीं दी जावेगी विशेष कारण के वास्ते देनेमें हरज नहीं तथा ज्ञान उपगरण किसी को नहीं दिया जावेगा तथा पातरा वगैरह उपगरण साधु निरपेक्षी आत्मार्थी त्यागी संवेगी को पातरा नग १ तथा २ दिया जावेगा जिस साधुके भगत श्रावक वगैरह बहुत हुवै वै श्रावक लोग वहरावै साधुको पातरा बहराना आपरी तरफसु चावं तो धर्मशाला सुं पातरा वगैरह उपगरण लेकर साधु नै बहरावेगा उनकी निछरावल धर्मशाला में उपगरण खाते जमा करावेगा उस द्रव्यका उपगरण पातरा वगैरह धर्मशाला रे सिलक में खरीद कर रखा जावेगा और जो श्रावक वहराने वाला नहीं हुवे तो ऊपर लिखे मुजब पातरा साधुको दिया जावेगा। औषध्यां संवेगी साध उपर लिखे मुजब के उपयोग बाबत है सो दी जावेगी तथा श्रावक वगैरह नैकीमत सुं दी जावेगा तथा रकम भावै निगदी वगैरह की देख रेख संघ अच्छी तरह सुं रखेगा। इसमें गलती करेगा नहीं। नगदी जो रुपया है उसमें 1) आठ आना धर्मशाला खाते- छव आना ज्ञान खाते तथा- दो आना मंदिरजी खाते इस रकम को व्याज सूद धर्मशाला तथा ज्ञान तथा मन्दिरजी खाते लागसी ऊपर लिखे हिसाब मुजब लागसी इसमें हरज करेगा नहीं। तथा धर्मशालाके अधिकारी श्रावक वगैरह इसकी देख रेख पूरी-पूरी राखसी मुकर्रर किया भया श्रावक वगैरह में जिसकी गलती मालूम हुवेगा वा विद्यमान नहीं रहेगा उसके ठिकाणे दूसरा मुकर्रर किया जायगा पक्षपात छोड़के धर्म बुद्धिसे इस लोक परलोकके हितके वास्ते परमार्थ को काम समझ के संघके वेयावच्च के माफक धर्मशाला तथा ज्ञानकी वेयावच्च को फल तीर्थंकर नाम कर्मको बन्ध इसीमें समझ के पूरा पूरा उद्योग रखेगा सो कल्याण का भागी होगा तथा बारह मासका पर्व आराधन विधियुक्त विधि करके किया जायगा। चैत्रकी ओली आखातीज, आषाढ़ चौमासा, पजूषण, आसोज की ओली, दीवाली, ज्ञान पंचमी, काती चौमासा, काती पूनम मौन इग्यारस, पोस दशमी, मेरू तेरस, फागुण चौमासा इत्यादि पर्वमें आपणे आपणै पर्वका कत्र्तव्य विधि माफक किया जायगा।
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। १११ ] तथा महाराज श्री कृपाचन्दजी तथा उणाकी संतति में चेला पोता चेलरा वगैरह पुस्तक पाठा पटड़ी वगैरह वांचने के वास्ते दिसावर मंगावेंगे तथा इहाँ वांचने वगैरह के वास्ते लेवेगा जद अखी पड़त तुरंत भेज दिया जावेगा। बारै दिया जावेगा इसमें देरी हुवेगा नहीं औ वांचके तथा लिखाके पीछी भेजेगा जब जमा कर लिया जायगा नित्य कृत्य पर्व आराधन की पुस्तक पासमें रहेगा १ वोह कोई जरूरत पड़ने वगैरह वास्ते चहियेगा वो भी रहेगा और कोई दिसावर श्रावक तथा साधु मंगावेगा तो उसकी खातरी सुं दिया वा भेजा जावेगा।
द० पं० पूनमचंदरा इस धर्मशाला का मुख्य अधिकारी वगैरह का नाम--- द० सावणसुखा पूनमचंद न की रतनचंद सिरगाणी द० सा० गुमानमल द० दानमल नाहटैका क० संकरदान द० माणकचंद क० रेखचंद द० गोलछा चुनीलाल द० मेघराज सेठिया द० सुगनचंद सेठिया घरको कोई रेसी तिका हाजर हुसी द० पं० कृपाचंद्र मुनि ऊपर लिख्यो सो सही कलम खुद ।
(३) पर्यषणों में कसाईवाड़ा बन्धी के मुचलके की नकल
जैन धर्मका प्रधान सन्देश अहिंसा है। प्राणीहिंसा व आरंभवर्जन के सम्बन्ध में वच्छावत वंश द्वारा किये गये कार्यों का उल्लेख पृ० ८४ में किया जा चुका है पर्यषणों के १० दिन कसाईबाड़ा चिरकाल से बंध रहता है। तत्सम्बन्धी कसाइयों के मुचालके की नकल यहाँ दो जा रही है। नकल मुचालकै कसायान सदर बीकानेर
श्रीरामजी मसमुलै मीसल मुकदमै बाबत इन्तजाम अषतैहाय पजोसण कौम आसवालान लंबर RE मरजुऔ १५ अक्टूबर सन् १८६२ ईस्वी मोहर महकमै मुनिसीपल
श्री महकमा म्युनिसीपल कमेटी कमेटी राजश्री बीकानेर
राजश्री बीकानेर सं० १९४७
महाराव सवाईसिंह लिखतु वोपारी हाजी अजीम वासल रो वा अलफु कीमै रो वा खुदाबगस भीखै रो वा बहादर समसै रो वा इलाहीबगस मोबत रो वा मोलाबगस मदैरो वा० कायमदीन अजीम रो वा० जीवण रहीम रो वा० फोजू गोलू रो वा कायमदीन खाजु रो बगेरे समसुतां जोग तथा म्हे लोग पजूसणामें अगता मिती भादवा बदि १२ सु मिती भादवा सुदी ६ ताई कदीमी राखता
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। ११२ ) आवां छां और पेली ओसवालां री तरफ सुं लावण, बीहा में वगेरह में म्हांनै मिलतौ छौ सु अबार इयां बरसां में कम मिलणे लाग गयो जै पर म्हे हरसाल पंचान ओसवालन नै केवंता रहा के हमारा बंदोबस्त कर देणा चाहीजै लेकिन वारी तरफ से बंदोबस्त नहीं हुवा सं हमै मेनुसीपल कमेटी री मारफत मिती भादवा बदि १२ सुं मिती भादवा सुदि ६ ताइरा रु० १००) अखरे रुपया एकसौ म्हे मास १२ रा सालीयाना ले लेसां और मितो भादवा बदि १२ सुं मिती भादवा सुदि ६ ताइ कोई बेपारी जीव होत्या नहीं करसी और श्री रसोवडै री दुकान १ वा अजंट साहय वहादुर री दुकान १ जारी रहसी जै में रसोवडै री दुकान रो रसोवड़े सिवाय दूजे ने नहीं देसी वा० अजंटरी दुकान वालो सवाय हुकाम अंगरेज बहादुर और ने नहीं देसी। केई सालमें भादवा दोरै कारण वा सावण दो रे कारण पजूसण दो होगा तो अगता दोनु पजोसण में बरोबर राखसा रु० १००) सुजादा नहीं मांगसां ईयै में कसर नहीं पडसी अगर इय में म्हे कसर घातां तो सिरकार सुं सजा कैद वा जरीवानै री मरजी आवै सु देबै। औ लिखत म्हे म्हारी राजी खुसी मुंकीयो छै। इयै में म्हे कहीं भाव कसर नहीं घातसां सं० १६४६ मिती आसोज सुदि १ ता० ३० सितम्बर सन् १८६२ ईस्वी।
द० खुदाबगस वलद भीखा वकलम"......"द० पीरबगस द०""वगस
द० इलाहीबगस द० मोलाबगस वल्द मदारी वकलम धायभाई छोगो
खत वा० फोजू वल्द गोलु वा० कायमदीन वल्द खाजु वा० हाजी अजीम वलद वासल बकलम इलाहीबगस। द० रहीम बल्द इलाईबगस वा० मोलाबगस वल्द नूरा वा० समसु वा० कादर वा० अबदुलो वा० कायमदीन वल्द अजीम कलम धायभाई छोगो। __दु० रैमतउल्ला वकलम खाजू । द० करमत उल्ला वकलम खाजू !
द० खाजू बल्द रईम वा० लखा वल्द अजीम वा० इलाईबगस वल्द इमामबगस वकलम इलाईवगस वमुजब केणै च्यारां के द० करीमबगस द० गुलाम रसूल
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
सपरिकर पार्श्वनाथ, श्री चिन्तामणिजी
Leopard bhuid bha
गुप्तकालीन धातुमय कायोत्सर्ग प्रतिमा श्री चिन्तामणिजी
श्री चिन्तामणिजी का मन्दिर, बीकानेर
श्री चिन्तामणिजी का गर्भगृह
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श्री चिन्तामणिजी की जगती का दृश्य
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
श्री चिन्तामणिजी के भूमिगृह की प्राचीन धातु-प्रतिमाएँ
चौदह राजलोक पट्ट, श्री चिन्तामणिजी
मूलनायक-धातुमय चौबीसी
श्री चिन्तामणिजी
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जैन लेख
का संग्रह
बीकानेर
बीकानेर
श्री चिन्तामणिजी (कउवीसटा) का मन्दिर
( कन्दोइयों का बाजार )
शिलालेख-प्रशस्ति १॥ संवत् १५६१ वर्षे आषाढ़ (१ वैसाख) सुदि ६ दिने बार रवि । श्री बीकानेर मध्ये ॥ २ महाराजा राव श्री श्री श्री बीकाजी विजय राज्ये देहरौ करायो श्री संघ ॥ ३ संवत् १३८० वर्षे श्रीजिनकुशलसूरि प्रतिष्ठितम् श्री मंडोवर मूलनायकस्य । ४ श्री श्री आदिनाथ चतुर्विशति पट्टस्यः। नवलक्षक रासल पुत्र नवलक्षक ५ राजपाल पुत्र से नवलक्षक सा० नेमिचंद्र सुश्रावकेण साह० वीरम ६ दुसाऊ देवचंद्र कान्हड़ महं०॥
॥संवत् १५६१ वर्षे श्री श्री ७ श्री चवीसठइजी रो परषो महं बच्छावते भरायो छै॥
धातु प्रतिमाओं के लेख (गर्भगृह )
मूलनायक श्रीआदिनाथादि चतुर्विशति (क) नवलक्षक रासल पुत्र नवलक्षक राजपाल पुत्ररलेन नवलक्षक सा० नेमिचंद्र सुश्रावकेण सा०
वीरम दुसाझ देवचंद्र कान्हड़ महं
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
(ख) १॥६०॥ संवत १५६२ वर्षे श्री बीकानेयर महादुर्गे। पूर्व सं० १३८० वर्षे श्रीजिनकुशल
सूरिभिः प्रतिष्ठितम् २ श्री मंडोवर मूलनायकस्य श्री आदिनाथादि चतुर्विशति पदृस्य । सं० १५६१ वर्षे मुद्रलाधिप
कम्मरां पातसाहि समा३ गमे विनाशित परिकरस्य उद्ग (द) रित श्री आदिनाथ मूलनायकस्य बोहिथहरा गोत्रो में० __ वच्छा पुत्र मं० वरसिंह भार्या ४ श्रा० ठीऊल ( ? वीझल) दे पुत्र मं० मेघा भार्या महिगलदे पुत्र मं० वयरसिंह मं० पद्ममीटा
(सीहा ?) भ्यां पुत्र मं० श्रीचंद मं० महग्गादि ।। ५ सपरिवाराभ्यां ............... ............. खरतरगच्छे श्रीजिनहंससूरीश्वराणां पट्टालंकार
......... श्री जिनमाणिक्यसूरिभिः श्रीजयतसीह विजयराज्ये ॥ श्री॥
श्री शीतलनाधादि चतुर्विशति ॥ ६० ॥ संवत् १५३४ वर्षे आषाढ़ सुदि २ दिने श्रीऊकेशवंशे बोहित्थरागोगेसा० जेसल भार्या सूदी पुत्र मं० देवराज वच्छराज मं० देवराजेन भा० रुयड़ लखमाई पु० दसू सउणा तेजपाल मं० दसू भार्या दूल्हादे पुत्र हीरा प्रमुख परिवार सहितेन स्वभार्या लखमाई पुण्यार्थ श्रीशीतलनाथ चतुर्विशति पट्टः का० प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरि पट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः
श्री अजितनाथादि चौवीसो संवत् १५६६वर्षे फागुण सुदि ३ सोमवारे ऊकेशवंशे बोहित्यरा गोत्रे श्रीविक्रमनगरे मं० वच्छा भार्यों वील्हादे पुत्र मं० रत्नाकेन भार्या रत्नादे हळू युतेन श्रीअजितनाथ बिबं कारितं प्रतिष्ठिर श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनहंससूरिभिः॥ छः॥
____ भी अभिनन्दनादियौवीसी ॥६० ! सं० १५६५ वर्षे जेठ सुदि ३ दिने! बो० गोत्रे मं० वच्छा पुत्र मं० वरसिंह भार्या बीमलदे तत्पुत्र मंत्रि हराकेन भार्या हीरादे पुत्र मं० जोधा पुत्र मं० जिणदास भयरवदासादि युतेन स्वपुण्यार्थ श्रीअभिनंदन बिंब कारितं प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनहंससूरि प० श्रीजिनमाणिक्यसूरिभिः
सपरिकर पार्श्वनाथ सं० १३६१ वर्षे माह बदि ११ शनौ प्राग्वाट ज्ञातीय व्यव० आभन भार्या अमीदे सुत धगसाकेन पितृ श्रेयसे श्री पार्श्वनाथ विबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीसूरिभिः
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
( ७ )
शीतलनाथादि पंचतीर्थी
सं० १४८८ वर्षे ज्येष्ट सुदि १० शुक्र मं० गांगा भा० घरथति (?) तांदेकावाड़ा वास्तव्य श्री वायड़ ज्ञातीय मं० देवा भा० बा० धारू तया आत्मश्रेयसे श्रीशीतलनाथादि पंचतीर्थी श्रीमदागमगच्छेश श्री हेमरत्नसूरि गुरूपदेशेन कारिता प्रतिष्ठिताच विधिना ।
( ८ )
श्री नमिनाथजी
( क ) सं० १ (१६) ५२ वर्षे वै० सु० १४ दिने सीरोही वास्तव्य ऊकेश सा० धास भा० सीतु पु० सेनाकेन भा० जाणी सुत टाइल टालादि कुंटुबेन स्व श्रेयोर्थ का० श्री नमिबिंबं प्रतिष्ठितं त० गच्छे श्री लक्ष्मीसागरसूरिभिः
( ख )
श्री नमिनाथ बिंबं व्य० काजा कारिता
( ६ )
श्री नमि थजी की बड़ी प्रतिमा पर नमिनाथ त्रिं व्य० खेता कारिता ( १० ) धातु के सिद्धचक यंत्र पर
३
संवत् १८३६ आश्विन शुक्ल १५ दिने कौटिकगण चंद्रकुलाधिराज श्रीजिनचंद्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं सिद्धचक्रयंत्रमिदं कारापितम् कोठारी प्रतापसिंहेन स्वश्रेयसे वा० लावण्यकमल गणिनामुपदेशात् ( ११ )
श्री शत्रुंजय आबू, गिरनार, नक्षपद, समशरण, चौवीसी, बीस विहरनानादि यंत्रपट्ट १. पर
॥ स्वस्ति श्री संवत् १५८० वर्षे चैत्र सुदि १३ गुरौ स्तंभतीर्थ वास्तव्य ऊकेश ज्ञातीय सा० देवा भा० देवलदे पु० सा० राजा भा० रमाई पु० सा० हेमा खीमा लाखा भा० गोई पु० जयतपालकेन ॥ भ्रातृ पु०सा० जगमाल जिणपाल महीपाल उदयड़
.. विद्याधर रत्नसी जगसी पदमसी पुत्री लाली भमरघाइ प्रमुख कुटुंब युतेन
स्वश्रेयसे श्री तपगच्छनायक श्री हेमविमलसूरीणामुपदेशेन ॥
# यह लेख पट्ट के चारों ओर लगी हुई ३ चीपों पर खुदा हुआ है एक चीप उतर जाने से लेख त्रुटक रह गया ।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह पाषाण प्रतिमाओं और पादुकाओं के लेख
॥ सभामण्डप ।।
(१२) श्री महावीर स्वामी और दोनों तरफ खड़ी दो मूर्तियों पर संवत् १६१६ फागुण सुदि १३. 'ओसवाल ज्ञातीय चोपड़ा गोत्रे कोठारी जिणदास भार्या सरूपाकेन.श्रीमहावीर विवं कारितं ।। ॥ श्री गौतम स्वामी॥
मूर्ति ब्रह्मचारी सा० तराराज !
श्रीपार्श्वनाथजी सं० १९३१ व । मि । वैशाख सुदि ११ तिथौ श्रीपार्श्व जिन किं । प्र। म० श्रीजिनहंससूरिभिः ॥ कारितं श्रीसंघेन श्रीबीकानेर नगरे ।
(१४) पीलेपाषाण की गुरु मूर्ति पर श्रीजिनकुशलसूर.........
( १५ )
पाषाण के चरणों पर ॥६०॥ संवत् १६४० वर्ष भाद्रवा सुदि १३ दिने श्रीखरतरगच्छे श्रीविक्रमनगरे वा० अमरमाणिक्य (1) ना पादुका ।।
पाषाण के चरणों पर संवत १५६७ वर्षे फागुण सुदि ५ दिने श्रीकमलसंयम महोपाध्याय पादुके भक्त्यार्थ कारिते ।।
॥ भमती की देहरियों के लेख ।।
( १७ )
चरण पादुकानों पर संवत् १६०५ वर्षे शाके १७७० प्रमिते माधव मासे शुक्ल पक्षे पौर्णिमास्यां तिथौ गुरुवार वृहत्खरतर गणाधीश्वर भ । जं । युगप्र। श्री १०८ श्री जिनहर्षसूरिजित्पादुके श्रीसिंधन कारापित प्रतिष्ठितं च भ । जं । यु । प्र| श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः ॥ श्रीविक्रमपुरवरे ।। श्री ।।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
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पोले पाषाण की मात्र पालिका पर १॥ संवत् १६०६ वर्षे फागुण बदि ७ दिने । श्रीबृहत्खरतरगच्छे। श्री जिनमद्रसूरि संताने
श्रीजिनचंद्रसूरि श्रीजिनसमुद्रसूरि पट्ट। २॥ श्रीजिनइंससूरि तत्पट्टालंकार श्रीजिनमाणिवासूरिभिः प्रतिक्षितं श्रीचतुर्विशति जिनमातृणा पट्टिका || कारिता श्रीविक्रमनगर संघेन ॥
(१६)
ध्याम पाषाण के समपणा पार्श्वनाथजी श्रीबीकानेर नगरे । वृहत्खरसर भट्टारक गच्छेश। जं । यु ।। श्रीजिनसौभाग्यसूरिमिः प्रतिष्ठितं च । सुश्रावक । पूग । श्रीलछमणदासजी कारापितं स्वयोर्थ
(२०) संक्त १६ (१४) ७३ वर्षे माघ सुद मूल सींघ भटारिषजी श्रीधरमचंद द्रव साहजी श्री भखरराम पाटणी नीत परणमंत सहा अमरराजे श्री अमायसिंघजी।
( २१ )
'परिकर पर -१ ६० संवतु ११७६ मार्ग- . २ सिर वदि ६ पुगेरी (१) अ३ जयपुरे विधि कारि
४ ते सामुदायिक प्रति५ ष्ठाः॥राण समुदायेन
६ श्री महावीर प्रतिमा का७ रिता ॥ मंगलं भवतु ॥
( २२)
देहरी पर पाषाण पट्टिका संवत १९२४ रा मिती आषाढ सुदि १० वृहस्पतिवार दिने जं। यु० ।। श्री जिनहंससूरिजी विजय राज्ये ६० प्र० विद्याविशाल मुनि तलिशष्य पं० लक्ष्मीप्रधान मुनि उपदेशात् समस्त श्री संघन कारापितं ॥
श्री अजितनाथ जी संवत १४५७ वैसाख सुदि ७ श्रीमुल संसीघे भटारीषली श्रीधरमचंदर दवे साह वेषतरामे पाटणी नीते परणमंते सहर गव गागदुणीरा...........
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
स्तम्भ पर (माय मंडप में ) संवत् १७७८ विर्षे मिती जेठ सुदि ६॥ मथेन भाऊ लिखतं भोलादेव्य लिखतं ।।... ..
भमती में । ६० । संवत् १६८४ वर्षे आषाढ सुदि ५ दिने वार सोम मथेन सदारंग लिखितं ।।
भूमिगृहस्थ खण्डित मूर्तियों व पादुकानों के लेख
संवत् १४५७ वर्षे वैसाख सुदि ७ श्रीमूल संघे भट्टारकजी श्रीधरमचंदर साह वखतराम पाटणी........
( २७ ) ॥६०॥ संवत् १५६३ वर्षे माहवदि १ दिने गुरु पुक्ष (व्य) योगे श्री ऊकेस वंशे श्री बोहि त्थिरा गोत्र मं० बच्छा भार्या वील्हा दे पुत्र मं०कर्मसीहभार्याकउतगदेपुत्र मंराजा भार्या रयणादे अमृतदे पुत्र मं० पेथा मं० काला मं० जयतमाला मं० वीरमदे मं० जगमाल मं० मानसिंघ स्वपितामह ................ श्रेयसे श्री नेमिनाथ बिंब कारितं प्रति० श्रीजिनमाणिक्यसूरिभिः
(२८) ॥ ६०॥ संवत् १५६३ वर्षे माह वदि १ दिने गुरु पुष्य योगे ऊकेशवंशे बोहित्थरा गोत्रे मं० कर्मसी भार्या कउतिगदे पुत्र मं० सूजा भार्या सूरजदेव्या स्वसपन्या सुरताणदेव्या पुण्यार्थ श्रीशीतलनाथ बिंबं का प्रतिष्ठितं च श्री ख० जिनमाणिक्यसूरिभिः
सं० ११५५ जेठ वदि ५ सोम श्री देवसेन संघ देव हमे म अषदात पासनाथ बिंब
कारित..........
संव।१६१४ रा वर्षे मिती आषाढ़ सुदि १० तिथौ बुधवासरे श्रीसुमतिनाथ जिन बिंब प्रति मा श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः वृहत्वरसर गच्छे ।
सं। १६१६ वै० सु. ७ नमिजिन बिंबं म। श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः प्र । बाई चुनी खरतर गच्छे
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star जैन लेख संग्रह
( ३२ )
संवत् १५६३ वर्षे माह वदि १ गुरु पुष्य योगे ऊकेश वंशे मं० राजा पुत्र मं० "श्रीमति जिन चित्रं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनमाणिक्यसूरिभिः ( ३३ )
|| संवत् १५६३ वर्षे मं० केल्हण तत्पुत्र पेथड़ भार्या रिड़ाइ पुत्र समरथ भार्या पाबा पु''
( ३४ )
|| सं० २५६३ वर्षे || सकतादे पुण्यार्थ श्री आदिनाथ बिंबं प्र० श्री जिनमाणिक्यसूरिभिः । ( ३५ )
संवत् १५७६ वर्षे माह वदि १५ दिने श्रा० सामलदे पुण्यार्थं कारित' नाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनहंससूरिभिः
७
( ३६ )
संवत् १५६३ वर्षे माह व० १ दिने बोहित्थरा गोत्रे सा० जाणा भार्या सकता दे पुत्र सा० केल्हण भार्या कपूर दे पुत्र वच्छा नेता जयवंत जगमाल घड़सी जोधादि युतेन स्वस्मापु पुण्यार्थ श्रीधर्मनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनमाणिक्यसूरिभिः
( ३७ )
सं० १५६३ वर्षे माह ब० १ दिने मं० राजा पु० मं० केन स्वभार्या पाटिमदे पुण्यार्थ नाथ बिकारितं प्र० श्रीजिनमाणिक्यसूरिभिः
श्रीसु
( ३८ )
|| संवत् १५६३ च० केल्हण तत्पुत्र पेथड़ भार्या रेडाई पुत्र समरथ भार्या पावां पुन्नू भार्या दालक्खू अमरा वाहड़ सपरिवारेण श्री आदिनाथ बिंबं का प्रतिष्ठितं श्रीजिनमाणिक्य सूरिभिः
( ३६ )
|| संवत् १५६३ वर्षे || सोहगदेव्या स्वपुण्यार्थ श्रीविमलनाथ बिंबं कारितं
( ४० )
|| संवत १ ६३ वर्षे लाणी स्वपुण्याथं श्रीकुंथुनाथ बिंबं कारितं प्र० श्रीजिनमाणिक्यसूरिभिः
..
( ४१ )
संवत् १५६३ वर्षे माह वदि १ दिने मं० डूंगरसी पुत्र नरबद भा० लालमदेव्या स्वपुण्यार्थं कारितं विमलनाथ बिंबं प्रतिष्ठितं श्रीजिनमाणिक्यसूरिभिः
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
(४२) ॥ संवत् १५६३ वर्षे माह यदि १ दिने बोहित्थरा गोत्रे मं० रत्नाकेन स्वभार्या सकसादेध्या पुण्यार्थ श्रीशीतलनाथ विवं कारितं प्रतिष्ठित खरतर गच्छे श्रीजिनहंससूरि पट्टे श्रीजिनमाणिक्यमूरिभिः
(४३ ) ॥संवत् १५६३ वर्षे माह वदि १ श्री भणसाली गोत्रो मं० डामर पुत्र मं० लींबा भार्या वाल्ही पुत्र राजपाल म० रायपालेन कारितं प्र० श्री.........
. (४४ ) ॥ संवत् १५६३ वर्षे साह हर्षा भार्या सुहागदेव्या स्वपुण्यार्थ श्री शान्तिनाथ विधं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनमाणिक्यसूरिभिः।। साउसाख गोत्र श्री
॥ संवत् १५६३ वर्षे सं० लाइण भा० पनादेदेव्या स्वपुण्यार्थ श्रीवासुपूज्य बिंब कारितं प्र। श्रीजिनमाणिक्यसूरिभिः॥
सं० १४५३ ज्येष्ठ सुदि........ गोत्रे सा० कालू हासू वस्तू भोजा श्रावकैः श्री अजितनाथ बिंबं का०प्र० श्रीजिनवाई नसूरिभिः
(४७) प्र० श्री जयसिंह सूरिभिः
(४८ ) ....... धुर्गट गोत्रे सा जसा भा .......'पुण्यार्थ श्री आदिनाथ ।
(४६ ) सं० १६१४ रा वर्षे । मि आषाढ सुदि १० सियो बुधवासरे श्री संभव जिन बिंबं भ। ति । भ । श्री जिनसौभाग्यसूरिभिः वृहत्खरतर गच्छे।
(५०)
श्याम पाषाण की प्रतिमा पर सं० १९३१ ५ । मि ।। सु। ११ । ति ।प्र। भ। श्रीजिनहंससूरिभिः को। गो। सदासुन भार्या अच्छे का
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
....................६
चरण-पादुकाओं के लेख
( ५१ )
....... "स्वरतर गच्छे भट्टारक श्री जिनधर्मसूरि राज्ये साध्वी भावसिद्धि पादुके। शिष्यणी जयसिद्धि कारापितं । श्रेयसे ।।
( ५२ ) संवत् १७४० वर्षे माघ मासे शुक्ल पक्षे ५ तिथौ भृगुवासरे पूर्वभाद्रपद नक्षत्रे पंचांग
...त् शिष्यणी साध्वी चन्दनमाला पादुके कारिते सा० सौभाग्यमाला
शुद्धौ.....
.......
"
॥ एं०॥ १६४० वर्षे भाद्रवा १३ दिने । श्री खरतर गच्छे वा० श्रीदे पादुका श्री विक्रमनगरे।
दो गोल पादुकाओं पर संवत् १७३० वर्षे माह यदि ५ शुक्रवार शुभयोगे श्री खरतर गच्छे भट्टारक श्रीजिनधर्मसूरि राज्ये साध्वी विनयमाला शिष्यणी सव छा ।। १३॥ लनी पुष्पमाला प्रेममाला पादुके कारापिते । ॥ पुष्पमाला पादुके १ ॥
॥ साध्वी प्रेममाला पादुके २ ॥
पोले पाषाण के चरणों पर संवत् १७४६ वर्षे युगप्रधान श्री जिनचन्द्रसूरि संताने श्री समयसुंदरोपाध्याय शिष्य वा० महिमासमुद्र तत्शिष्य पंडित विद्याविजय गणि तत् शिष्य वाचनाचारिज श्री विनयविशाल गणि पादुके ॥ शुभं भवतुः ॥
भूमिगृहस्थ धातु-मूर्तियोंके लेख
( ५६ ) लाटहृद गच्छे पूर्णभद्रण
सं० १२२ ( १ १०२२ ) ६॥ गच्छे श्री नृवितके तते संसाने पारस्वदत्तसूरीणांसिभ पुश्या सरस्वत्याचतुर्विशति पटकं मुक्त्यथ चकारे॥
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१०
बीकानेर जैन लेख संग्रह
( ५८ )
श्री देवचन्द्राचार्य नागेन्द्र गच्छे प्रणदासे सत्वाकात परतीकसा.......( ? )
श्री
( ५६ )
य ( ? ब्रह्माणी ) गच्छे भी वच्छेन कारिता ।
( ६० )
||६|| श्री थारापद्रीयगच्छे वीघं ? श्रेयोर्थ अम्रदेवेन कारिता ।
( ६१ )
६ सं० ८१ श्री थारापद्रगच्छे व्रनोकेन आत्मश्रेयसे कारिता ! ( ६२ )
बड़ी प्राचीन प्रतिमा पर ९ ( ॐ ) सन्ति गणिः ।
( ६३ )
सं० २०२० वर्षे वैशाख सुदि १० शुक्र प्राग्वाट ज्ञातीय श्रे० ल्हणदे पु० कर्मसीह पूना मेहधो पित्रोः श्रेयसे शांतिनाथ बिंबं का० प्र० सनपुरीय श्रीधर्मघोषसूरिभिः ।
( ६४ )
संवत् १०३३ वैशाख वदी ६....... ( ६५ )
६. सं० २०६८ फाल्गु सुदि ३ गच्छे श्रीपार्श्वसूरीणां श्रेयसे डेड्डिकारख्यया चतुर्विंशति पट्टो कारितौ देत्तु ज्यतया ||
( ६६ )
६॥ संवत् १०८० ज्येष्ठ वदि ७ लं श्रावक दुहिता साथीक याय जिनदेवीति गु कयियस० ( ६७ )
संवत् ११ वैशाख ० २। पूना सुता मघी आत्म श्रेयोर्थं प्रतिमा कारितेति
( ६८ )
सं० १९४१
जदिकाय (? आदिनाथ ) प्रतिमा कारिता || ( ६६ )
६॥ थारा० साढा निमित्त' कोचिकेन कारिता सं० ११४३
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
स० ११५७ वैशाख सुदि १० जसदेव सुतेन वाहरेन श्री पारस्यर्श्वनाथ प्रतिमा श्रेयो) कारिता
संवत् ११६३ ज्येष्ठ सुदि १० सोमदेवेन स्वमातृ सलूणिका । प्रतिमा कारितेति
( ७२ ) संवत् ११६६ आषाढ़ वदि , अल्लदेव पन्या वीरिकया कारिता ।।
सं० ११६९ आषाढ़ सुदि २ जाखंदेन आत्म श्रेयोर्थ कारिता।
( ७४ ) ॥ संवत् ११८८ ............. बिबं कारित ...... रिगच्छीय श्री नयचंद्रसूरिभिः
( ७५ ) सं० ११८६ (ES?) वर्षे माध वदि ४ घलि का व राल सा (?) ।
६०॥ संवत् ११६५ वैसा सुदि ३ शुक्र उद्योतन पुत्र पाहर भार्या अभयसिरि महावीर विबं कारिताः॥
संवत् १२१२ वर्षे येष्ट सुदि : गुरौ श्रे-धणदेव तत्पुत्र सुमा आयोथं श्री पार्श्वनाथ विवं कारित प्रतिष्ठितं हरिप्रभसूरिभिः।
धणदेव प्रतिमा संवत् १२०६ जेठ बदि ३
( ७६ ) स० १२०६ वर्षे माह वदि ११ प्रा०वप्र...भा० राजलदे पुत्र रामसीहेन पित्रोः भ्रातृ जयतसींह श्रेयसे श्री ऋषभदेव बिवं श्री शालिभद्रसूरिणा प्र० भरे (१)
( ८० ) सं० १२११ वै० सु०८
. भीजल संबु महिवस्तयाणल
(८१ ) १२१२० (११२१२) माग सु ६ रखौ श्री नाण गच्छे शुभंकर सुत सालिग
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
सं० १२१३ पार्श्व प्रति० कुल पौत्र जिले:
(८३) संवत् १२१७ वैशाख सुदि ५ रखौ ॥ व्याघरपालान्वय भव्य वाला पुत्र वील्हणेन स्वभ्रातृ कुलचन्द्र श्रेयसे जिनचतुर्विंशतिका कारिता।
( ८४ ) ६०॥ संवत् १२२० आषाढ़ सुदि १० श्री बृहद्रच्छे श्रे० जसहड़ पुत्र दूसलेन माता प्रियमति श्रेयोर्थ शांतिनाथ प्रतिमा कारिता प्रतिष्ठिता सूरिभिः
सं० १२२२ आषा० सु० ४ मातृ श्रामा श्रेयोथ शांतिनाथ बिंब कारितं ।।
( ८६ ) सं० १२२२ माघ सुदि १३ आसपालेन कारिता प्रतिष्ठिता श्री मदनचन्द्रसूरिभिः ।।
सं० १२२४ वर्षे श्री ब्रह्माणीय गच्छे श्री प्रद्युम्नसूरि प्रारि डाटवडाभृ (?) केना सुत पेसोरि माता माऊ श्रेयोर्थे महावीर प्रतिमा कारिता ।
{ ८८ ) ६ सं० १२२६ माघ सुदि ४ सालिग पोहिव्व करापित
सं० १२२७ (१) ठ............ बिवं कारितं प्रतिष्ठितं श्री धनेश्वरसरिभिः
(६०) सं० १२२७ वीर प्रतिमा देदा कारिता।
(६१) १ संवतु १२३४ गोला भत सावड़ तत्पुत्र थिरादेवेन सावड़ श्रेयोथं प्रतिमाकारिता वृहद्गच्छीयैः श्री धनेश्वरसूरिभिः प्रतिष्ठिता ।
(६२) सं० १२३७ वैशाख सुदि १३ श्रे० आसग सोति पुच्या पोई श्राविकया बिबं कारितं । प्रतिष्ठित श्री चन्द्रसिंहसूरिभिः
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
(६३) १ संवत १२३४ फागुण सुदि २ सोमे श्रेष्ठि आमदेव स आसधर श्रेयोथं बिंबं कारितं ।
(६४) सं० १२३५ आषाढ़ सुदि
पारस्व पाव)नाथ प्रतिमा कारिता
(६५) । सं० १२३६ फागुण यदि ४ गुरौ श्री वीरप्रभसू रि) पार्श्व बिंबं प्रतिष्ठितं कारितं व्रतो सुत वीरभद्रण प्री देव हमेतेन (?)।
साध
न
.........................प
संवत १२३७ फागुण वदि १ देसल पुत्रिकया पुनिणि श्राविकया दीहुली सहितया श्री महावीर प्रतिमा कारिता ॥
६ सं० १२३७ आषाढ़ सुदि ६ सोमे हयकपुरीयगच्छे...उलिपाम आसचंद्र सुत भावदत्त भार्या सह... भ्यां प्रतिमा कारिता।
(६८) सं० १२३६ द्वि० वैशाख सुदि ५ गुरौ पासणागपुत्रेण ...कीयमा पु० चाहिण्या श्रेयसे श्री पार्श्वनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्री प्रभाणंद सूरिभिः
(६६) सं० १२३६ पोष वदि ३ रखौ लखमण पुत्रेण वीराकेन नेमि प्रतिमा कारिता श्रीपद्मप्रभ ( ? यश ) सूरि प्रतिष्ठिता।
(१००) १ सं० १२३६ वै० सुदि ५ गुरौ श्री नाणक गच्छे से० सुभकर भार्या धणदेवि पुत्र गोसल वाहिर साजण सेगल जिणदेव पूनदेवाद्यः भ्रातृ धणदेव पुण्यार्थ श्री शान्तिसूरि
(१०१) संवत् १२४४ माघ सुदि २ शनौ साहरण पुत्र जसचन्द्र न भातृ.......।।
(१०२) ॥ संवत् १२४८ वैशाख सुदि ५ रवौ महिधा पुत्रिकया ऊदिणि श्राविकया आत्म अयोथं पार्श्वनाथ विंबंकारितं महिधाभार्या सावदेवि श्रीदेवचन्द्रसूरि शिष्ग: श्रीमा..
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१४
बीकानेर जैन लेख संग्रह
( १०३ )
सं० १२५१ वर्षे थारापद्रीय गच्छे नागड़ भार्या प्रियमति श्रेयोधं पुत्र देवजसेन श्री शांतिनाथ प्रतिमा कारिता ।
( १०४ )
सं० १२५८ आषाढ़ सुदि १० बुधे श्रे०. वीरू भार्या माऊ तत्पुत्र सामंत सातकुमार वीरजस देवजस आंबड़ प्रभृतिभिःभग्नी (? भगिनी) धांधी श्रेयसे बिंबं कारिता प्रतिष्ठितं व श्रीपद्मदेवसूरिभिः ( १०५ )
१ सं० १२६० वर्षे आषाढ़ वदि २ सोमे बृहद्वच्छे श्रे० राणिगेन पुत्र पाल्हण देव्हण जाल्हण आल्हण सहितेन भार्या वासलो श्रेयोर्थं श्री पार्श्वनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं हरिभद्रसूरि शिष्यैः श्री धनेश्वरसूरिभिः ||
( १०६ )
संवत् १२६२ माघ सुदि १३ आशपालेन कारिता प्रतिष्ठिता श्री मदनचन्द्रसूरिभिः
( १०७ )
६ सं० १२६२ फागुण वीसल भार्या सुखमिणि पुत्रिका वता] (?) शांता स्वश्रेयसे श्री महावीर प्रतिमा कारिता प्रतिष्ठिता श्री बुद्धिसागरसूरि संताने पं० पद्मप्रभ गणि शिष्येन
( १०८ )
१०|| संवत् १२६६ वैशाख सु० ५ बुधे अउढवीय चाहड़ आसदेवि सुत जसधरेण पुत्र पद्मसीह सहितेन श्री पार्श्वनाथ बिंवं कारायितं प्रतिष्ठितं श्री देववीरसूरिभिः छ
( १०६ )
सं०. १२६८ वैशाख सुद ३ श्री भावदेवाचार्य गच्छ श्रे० पुत्र वत्र सुतेन आमदतेन पु० त्रागर्भढत्या ( ? ) | ३| वीर बिंबं कारितं ॥ प्रति० श्री जिनदेवसूरिभिः
( ११० )
६ सं० १२६६ ज्येष्ठ सुदि २ बुधे श्री नाणकीय गच्छे थे जेसल भार्या यशोमति पुत्र हरिचन्द्रेण भ्रातृ निभिय हरिचन्द्र भार्या नाऊ पुत्र आखू पाहड़ गुणदेव युतेन स्वश्रेयोर्थं बिम्णं ( ? ) कारितं श्री सिद्धसेनाचार्य प्रति ।
( १११ )
सं० १२७२ (१) ज्येष्ठ सुदि १३ ० आसराज सोति पुत्र्या पो आविकया बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्री चन्द्रसिंहसूरिभिः
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
( ११२) संवत १२७२ वर्षे माघ सुदि चतुदश्यां सोमे श्री नाणक गच्छीय श्रे० राणा सुत सामंत भा० धाना श्रेयसे सुत विजयसीहेन श्री शान्तिनाथ बिंब कारापितं प्रतिष्ठितं श्री सिद्धसेनसूरिभिः ।।
(११३) ॥संवत १२७३ वर्षे ज्येष्ट सुदि ११ गुरु दिने माणिक सुत श्री धउणात्म श्रेयो)..... सहितेन श्री पार्श्वनाथ प्रतिमा कारिता ।। प्रतिष्ठिता श्री रत्नप्रभसूरिभिः उवु गामे ।।
(११४) ६ सं० १२७३ ठ ...... ...............थ बिबं कारित प्रतिष्ठितं श्री धनेश्वरसूरिभिः
( ११५) ।। ६० ॥ सं० १२७६ वर्षे... ....... तेजा श्रेयोथं आसधर ........ कारितं प्रतिष्ठितं श्री परमाणंदसूरिभिः .
( ११६ ) , १ सं० १२७६ वैशाख सुदि ३ बुधे श्रे आसधर पुत्र बहुदेव वोडाभ्यां भगिनी भूमिणि सहिताभ्यां स्व श्रेयोभं प्रतिमा कारिता प्रतिठिता श्री हरिभद्रसूरि शिष्यैः श्री धनेश्वरसूरिभिः
( ११७ ) सं० १२८० वर्षे आसाढ वदि ३ बुधे ठ० वींजा तद्भार्या विजयमेत श्रेयोथै ठ० लक्तधर (१) पुत्र मूलदेवेन प्रतिमा कारिता
( ११८ ) संवत् १२८० ज्येष्ट बदि ३ बुधे यशोधरेण जयतां श्रेयोथं प्रतिमा कारिता प्रतिष्ठितं । श्रीश्रीचंद्रसूरभिः
(११६ ) संवत् १२८१ वर्षे वैशाख सुदि नवम्यां शुक्र पु० त्रातसा जालूतया ! न सदसत...."त (?) पितृ मातृ श्रे.... श्री पार्श्वनाथ बिबं कारितं प्रतिष्ठितं श्री शील . (?) सूरिभिः......
(१२० ) सं. १२८२ वर्षे ज्येष्ट सुदि १० शुक्र श्री भावदेवाचार्य गच्छे ताड़कात्रा पत्र्याचाढ जमहेंड आरात देवड़ शालिभिः वीरा श्रेयसे पावं बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्री जि (न ) देवसूरिभिः
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
( १२१ )
सं. १२८२ ज्येष्ट सु० ६ गुरौ नाणक गच्छे वाल्हा सुत लखमण सं० वेताभ्यां पितृ मातृ श्रेयोर्थं कारिता
( १२२ )
६० सं० १२८३ ज्येष्ट सुदि ४ गुरौ मातृ रायवइ श्रेयोर्थ व्यव० मलखण सुत नाहाकेन श्री पार्श्वनाथ बिबं कारितं ॥ छ ॥ प्रतिष्ठता श्री शीलसूरिभिः
( १२३ )
सं० १२८४ वैशाख वदि सोमे श्रीमाल ज्ञातीय भै० जसवीरेण जीवित स्वामी श्री आदिनाथ कारापितं वृहद्गच्छे श्री धर्मसूरि शिष्य श्री धनेश्वरसूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥
( १२४ )
सं० १२८६ वैशाख सुदि ५ शुक्र गोगा पुनदेव सूमदेव वीरीभि मातृ रतनिणि श्रियो श्री महावीर बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्री रत्नप्रभसूरिभिः ।
( १२५ )
सं० १९८८ माह “शुक्र श्री थारापद्रीय गच्छे श्र े० जस संताने ठ० तेसलेन पुत्र यशपाल सहितेन स्वपूर्वज श्र योथं शांतिनाथ वित्रं कारितं । प्रति श्री सर्वदेवसूरिभिः
( १२६ )
९ १२८८ वर्षे आषाढ सुदि १० शुक्र चैत्र गच्छे || आचा त्रयजाकित ( १२७ )
सूरिभिः
संवत् १२८८ ? माघ सुदि ६ सोमे श्र े० धामदेव पुत्र कामदेव भार्या पदमिणि पुत्र साराकेन श्री पार्श्वनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्री देवेन्द्रसूरि संताने श्री नेमिचंद्रसूरिभिः
( १२८ )
सं० १२६० ( १ ) मा० सु० १० ० पुतचंद्र भार्या भल्ह पु० सूरिभिः
( १२६ )
सं० १२६० फागुण सुदि ११ शाके सगँ । वास्तव्य पद्यरवा विse भार्या श्री पार्श्वनाथ बिंबं कारिता प्रतिष्ठितं श्री राशिवसूरिभिः
आत्मज
( १३० )
|| सं० १२६३ माघ बदि १० श्र
श्री पूर्णचंद्रसूरिभिः
प्रतिष्ठितं श्री उद्योतन
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पुत्रिका
प्रतिष्ठितं श्री नयसिंहसूरि शिष्यैः
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
( १३१ )
संवत् १२६३ ज्येष्ठ सुदि ६ गुरौ श्री नाणक गच्छे श्रे० सेहड़ जिसह पु० जसधरेण मातृ जेसिरि श्रेयसे कारिता प्रति० श्री सिद्धसेनसूरिभिः
( १३२ ) सं० १२६३ फाल्गुन सुदि ११ शनौ चंद्र गच्छ 'पालसुत ठकुर श्रेयोर्थ भार्या जयाटा धरलं ? कारापितं प्रतिष्ठितं श्री समुद्रघोषसूरि शिष्य श्री महेन्द्रसूरिभिः
( १३३ )
सं० १२६४ वर्षे वैशाख सुदि ८ शुक्र े मजाहर वास्तव्य थारापद्रीय गछे ० नीमचंद्र पुत्र माल्हा श्रेयोर्थं श्रे० मोहण पुत्र जल्हणेन बिंबं कारापितं
संवत् १२६५ वर्षे चैत्र बदि ६ बिंबं कारितं
( १३४ )
'विजपालेन मातृ
१७
( १३५ )
सं० १२६५ पौष बदि ८ गुरौ ब्रह्माण गच्छे सं० यशोवीर भार्यया स० सलखणदेव्या सोनासिंह श्रेयोर्थ श्री शांतिनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं वादन्द्र श्री देवसूरि प्रतिशिष्य माणिक्यचंद्रसूरिभिः || ( १३६ )
१ सं० १२-७ वर्षे चैत्र सुदि ५ सोमे चूंमण सुखमिनि सुतेन यसवड़ेन मातृ पितृ श्रयर्थं श्री पार्श्वनाथ बिंबं कारापितं प्रतिष्ठितं ।
• श्रेयोर्थं श्री पार्श्वनाथ
( १३७ )
सं० १२६७ आ० सुदि ६ रवौ श्रे० मोहणेन स्व श्रेयोथं फूई रत्नल श्रेयोर्थं च श्री महावीर बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्री धर्मघोषसूरि पट्ट क्रमायात श्री रत्नचंद्रसूरि पट्टस्थ श्री आनंदसूरिभिः
( १३६ )
नोहरी प्रतिमा कारिता श्री बृहद्रच्छीय श्री मानदेवसूरिभिः प्रतिष्ठित ।
( १३८ )
|| ६० || सं० १२६८ वैशाख बदि ३ शनौ पितृ जसणाता (?) मातृ जसवह श्रेयोथं पुत्र धूपा रुपा भोभा बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्री नरचंद्रसूरिभिः ॥ ० ॥
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( १४० )
सं० १३०० (१) ५ नायल गच्छे श्रे० पद्मः पितुः श्रेयोर्थं श्री शांतिनाथ बिंबं कारितं प्र० देवचंद्रसूरिभिः ॥ छः ॥
३
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
(१४१) सं० १३०२...... ..........."साह श्री (१) जीवदेव ... यंता १.........
(१४२ ) सं० १३०५ आषाढ़ सुदि १० श्री जिनपतिसूरि शिष्यैः श्री जिनेश्वरसूरिभिः सुमतिनाथ (१) प्रतिमा प्रतिष्ठिता कारिता सा कलोलू श्रावकेण ।।
सं० १३०५ आषाढ़ सुदि १३ श्री जिनपतिसूरि शिष्य श्री जिनेश्वरसूरिभिः श्री अमरनाथ प्रतिष्ठिता साक० लोलू श्रावकेण कारिता।
(१४४) सं० १३०५ आषाढ़ सु० १० श्री जिनपतिसूरि शिष्यः श्रीजिनेश्वरसूरिभिः प्रतिष्ठिता स्ता० भुवणपाल भार्यया तिहुणपालही श्राविकया कारिता ।
(१४५) सं० १३०५ आषाढ़ सुदि १३ श्री जिनपतिसूरि शिष्य श्री जिनेश्वरसूरिभिः प्रतिष्ठिता स्ता० भुवणपाल भार्यया तिहुणपालही श्राविकया कारिता ।
(१४६) सं० १३०६ (१) वर्षे आषाढ़ सुदि शनी....... गच्छे से तेजाकेन निज पितृ पीथा श्रेयोथ श्री पार्श्वनाथ चिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्री महेश्वरसूरिभिः
(१४७) सं० १३०६ फागुण बदि ५ गुरौ सदा...... ...............'लाडि तस्याः पौत्र आसधर तयोः श्रेयसे साहणपालेन श्री आदिनाथ बिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीविजयसेनसूरिभिः
(१४८) सं० १३११ प्रा० श्रे० पाल्हण भा० चाहिणि पु० हांपउ लूणउ इवारेण पितृ भ्रातृ श्रेयसे श्री आदि बि० का० प्रति० श्री सर्वदेवसूरिभिः॥
(१४६) संवत् १३११ (१) वर्षे ................... 'देव बिंब' ....... .......
.......... सूरिभिः
(१०) १ सं० १३११ श्री नाणकीय गच्छे व्यवहरक न्याल्हण भार्या राहकया आत्म-श्रेयसे बिषं कारितं प्रतिष्ठितं श्री धनेश्वरसूरिभिः॥
सं० १३११ फागुण सुदि १० श्रे० महिपाल श्रीयार्थ वीकमसीह करापितं॥ २०१४२१ कर लेखों में रही लेख संभवित हैं।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
(१५२) १ सं० १३१२ वर्षे वैशाख बदि ४ बुधे श्रीनरसिंह आत्म श्रेयोथं श्रीमहावीर वियं कारित प॥
(१५३) सं० १३१२ माघ बदि ५ बुधे ....... | जसदू पुत्र श्रे राजा अयोथं सुत श्रे आसपालेन श्रो चंद्र...... प्रभ) बियं कारित प्रतिष्ठितं चैत्र गच्छे श्री देवेन्द्रसूरि शिष्य श्री धर्मदेवसूरिभिः
(१५४)
संवत् १३१४ (१) ज्येष्ट सुदि १३ शनौ श्री श्रीमाल ज्ञातीय पितृ खाना मात, भिलदेवि श्रेयसे पुत्र सांडकेन श्री शांतिनाथ बिंबं कारितं श्री हेमतिलकसूरीणामुपदेशेन
(१५५) १सं० १३१६........"बदि "गुरौ श्रे० राणिग भा० राजमति पुत्र सजनेन भा० अन० पु. "सीह सहितेन कुटुंब श्रेयसे श्री पार्श्वनाथ प्र० कारिता प्र० श्री जयदेवसूरि
(१५६) १ सं० १३१६ वर्षे वैशाख बदि ५ शनी श्रे० कट्टरा भार्या पयज पुत्र देवाराये विष कारित प्र० श्री गुणगण सू (भू ?) रिभिः श्री महेन्द्रप्रभसूरिभिः
(१५७) सं० १३२० चैत्र बदि २ श्री.................."सूरि संताने.................... कारितं प्रतिष्ठितं श्री शालिसरिभिः
(१५८) सं० १३२१ २० ज्ये० सु० १५ रवौ से लींबा भा० उदयसिरि पुत्रिकया जामुकया स्व श्रेयसे श्री महावीर बिंब का प्र० श्री जयदेवसूरिभिः॥
(१५६) सं१३२१ वर्षे ज्ये० सुदि १५ रवौ श्रे० आंबिग भा० जयसूदे पु. भाबड़ सहितया पु. ललिमणि स्व श्रेयसे श्री पार्श्वनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्री जयदेवसूरिभिः
(१६०) सं० १३२१ वर्षे फागुन सुदि २ गुरौ आसधर भा० उणकू पु. आसदेव अरसीड निमित्त पणऊ भा० झालही बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्री विजयप्रभसूरिभिः
सं० १३२२ वर्षे साताराड़ान्वये भा० २१ आहेत्रव पुत्री थाम्हिणी प्रणमति नित्य ।।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
२० १३२२ वर्षे वैशाख सु०८ गु० ० बोहाथ भार्या पाश्रेयोर्थ पुत्र राजड़ गायकेन श्री पारस्वनाथ विवं कारित।
। सं० १३२३ माघ सुदि ६ सोमे ० जसधर भार्या पूनिणि पुत्र सं० लक्षणसीहेम पितृ... श्रेयसे विषं कारि प्र० श्री परमानंदसूरिभिः ।
सं० १३२४ वैशाख सुदि . शनी प्राग्वाट ठ० सनामफेन आत्मश्रे योथं आदि विधं कारिर प्रतिष्ठापितंच
( १६५) सं० १३२४ (?) वै० सु. १०..................."ऊदा सुत
तीन काउसम्ग ध्यानस्थ प्रतिमापर सं० १३२४ वैशाख सुदि १३ शुक्र सादौ मूलम पुत्र पद्यमू
सं० १३२५ फा० सुदि ८ सोमे श्रीनाणकीय गच्छे अपना पुत्र धीणा लखा झांझा फूटा लखाकेन भार्या लखमसिरि पुत्र धारसीह सहितेन आत्म श्रेयोथं श्रीशांतिनाथ बिबं कारितं प्रति० श्री धनेश्वरसूरिभिः
(१६८) सं० १३२६..... वदि ३ बुधे श्री श्रीमालझातीय मातृ हेमई श्रेयसे भीला लाखाभ्यो विध कारिता प्रति० चित्र गच्छीय श्री पश्नप्रभसूरभिः
(१६६) सं० १३२७ श्री मदूकेश झातीय सा० लोला सुत सा० हेमा तत्तनयाभ्यां वाहड़ पनदेवाभ्यां स्वपितुः श्रेयसे श्री नमिनाथ बिंब कारितं प्रतिष्ठितं थ (एच) रुद्रपल्लीय श्री श्रीचंद्रसूरिभिः
. (१७०) १सं० १३२७ वर्षे माघ सुदि ५० लाखा भा० तेज पु० गांगाकेन भा० वषजू पु० सालण बिंब कारित प्रति० श्रीविजयप्रभसूरिभिः
____सं० १३२७ माह मुदि ७ श्री ऊएस गच्छे श्री सिद्धसूरि संताने महं० धीणा पु० नायक वीजड़ादिभिः पार्श्व जिन करा० प्रतिष्ठितं श्रीककसूरिभिः
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
( १७२ )
सं० १३२६ वै श्री महावीर बिंबं प्र० श्री रत्नप्रभसूरिभिः
संवत् १३३० (?) प्रतिष्ठितं श्री महेशचंद्रसूरिभिः
ari..
( १७३ )
गच्छे श्रे० रत्नाकेन
हीरा मीरा'
'श्रेयोर्थ भणि
( १७४ )
संवत् १३३० (१) वर्षे माघ सुदि ६ सोमे दोसी मूंजा भार्या मूंजल पुत्र सहजाकेन पिट श्रयसे श्री आदिनाथ बिंबं कारितं श्री गुणचंद्रसूरीणामुपदेशेन ॥ छ ॥
श्रेयसे श्री पार्श्वनाथ बिनं कारितं
( १७५ ) संवत् १३३० वर्षे ज्येष्ठ वदि ५ शनौ श्री छ अरिसीह भा० ळींबा "ताउप अनोम लीलाकेन कारितं श्रयसे प्रतिष्ठि । श्री शांतिसुरीणां । श्री शांतिनाथ बिंबं
( १७७ )
सं० १३३१ माघ सुदि ११ बुधे व्य० सहदा भा" fire करितं प्र० भ० संप (१) चंद्र ज
( १७६ )
संवत् १३३० वर्षे चैत्र वदि ७ शनौ श्रे० वयरा अयोथे सुत जगसोहेन चतुर्विंशति निबं प्रतिष्ठितं भार्या हांसल प्रणमति नित्यं ॥
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आत्म श्रेयसे श्री पार्श्वनाथ
( १७८ )
सं० १३३१ वर्षे चित्रा गच्छे पासडत्यार्थ श्री पार्श्वनाथ करितं से० धिणा कर्मण ( १७६ )
संवत् १३३२ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १३ बुधे ठ० पेथड़ भार्या वडलादेवि पुण्याथ पुत्र बढ़ आजड़ाभ्यां श्री पार्श्व बिंबं कारितं चंद्र गच्छीय श्रीपद्मप्रभसूरि शिष्यैः श्री गुणाकरसूरिभिः ॥
( १८० )
सं० १३३२ बर्षे
"माणदेव भा० मंगल पुत्र ( १८१ )
सं० १३३२ बर्षे येष्ट सुदि १३ बुधे व्य० पूनसीह भार्या पातू पुत्र विजयपालेन भार्या पूनिणि सहितेन पितृव्य व्य० षोडसीह भार्या सोहग श्रयसे श्री शांतिनाथ बिंबं कारायितं श्री परमानंदसूर
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( १८२) सं० १३३२ (?) वैसाख सुदि ११ गुरौ पितृ वयजड माता गोरी श्रेयोथ सुता सोढकया कारितं प्रतिष्ठितं श्री धर्मदेवसूरिभिः
( १८३) ५ संवत् १३३२ माघ वदि ५ बुधे प्राग्वाट भीताब ? श्रे० जसडू पुत्र श्रे० राजा श्रेयोथं सुत श्रे आसपालेन श्रीचतुर्विशतिपट्ट कारितं प्रतिष्ठितं चैत्रगच्छे श्री देवेन्द्रसरि शिष्यैः श्रीधर्मदेवसूरिभिः
( १८४) सं० १३३४ वै० सु०५ गुरौ श्रे० गदा भार्या सुखमिणि सुत पस्ता तेजा भा। विध कारिता प्रति श्री हरिभद्रसूरि शि० श्री परमाणंदसूरिभिः ॥
(१८५) ६० ॥ सं० १३३४ वर्षे वैशाख सुदि १० श्री वृद्गच्छे श्री धर्कट वंशे सा० देवचंद्र भार्या धणसिरी पुत्र सा० वानरेण भार्या लाडी पुत्र खेता तथा देदा पिथिमसोहु चांगदेव प्रभृति कुटुंध सहितेन पूर्वज श्रेयसे श्रीपार्श्वनाथ बिंब कारिता प्रतिष्ठितं च श्रीजयदेवसूरि शिष्यैः श्रीमाणदेव........... (सूरिभिः)
सं० १३३५ फा० सु० ३ बुधे साल सोगण आत्म अयोर्थ श्रीआदिनाथ बिवं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीसूरिभिः
(१८७) ___ सं० १३३६ वैशाख (?) वदि २ बुधे श्री श्रोमाल ज्ञातीय मातृ हेमड़ श्रेयसे भीला लाखाभ्यां विबं कारिता व्रत ........."विद् गच्छीय श्री पद्मप्रभसरिभिः
( १८८) संवत् १३३७ चै० सु० ११ शु० श्री पंडेरक गच्छे श्री यशोभद्रसूरि संताने पीरा भा० गदनश्रिया पु० रसीह महणसीहा पत्य सहितया श्री शांतिनाथ बिवं स्वश्रेयसे कारित प्र. श्रीशालिसूरिभिः
( १८६) सं० १३३७ माह सुदि ७ श्री ऊएश गच्छे श्री सिद्धसूरि संताने महं० धीणा पु० नायक वीजड़ादिभिः पार्श्व बिं० कारितं प्रतिष्ठितं श्री ककसूरिभिः
+ यह लेख नं० १६८ वाला ही प्रतीत होता है। * * यह भी चिहने. १७१ में प्रकाशित मालुम होता है।
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( १६०) सं० १३३८ वर्षे आषाढ यदि ४ श्री षंडेरक गच्छे श्री यशोभद्रसूरि संताने प्रा० वाल्हण भा० साल्लू पु. पुनासाहेन भा०.................... ...."सूरिभिः
(१६१ ) सं० १३३८ ज्येष्ठ सुदि १४ सत महं सोमा पुत्र सद्भार्यया जासल नाम्न्या स्वश्रेयसे श्री शांतिनाथ बिवं कारितं प्रति० वृहद्गच्छीय श्री वरि ? चंद्रसूरि शिष्य श्री परमानंदसूरि
(११२) __ सं० १३३६ फागुण सुदि ८ श्री नाणकीय गच्छे श्रे० पद्मा सुत धीणा भार्या धणसिरि पुत्र समरा तेजाकेन पितुः श्रेयसे बिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्री महेन्द्रसूरिभिः॥ सप्त
(१६३ ) सं० १३३............... "ति६........................'कारितं प्रतिष्ठितं श्रीननसूरिभिह
(१६४) सं० १३४० ऋ० सासधर सुत भउदेवेन.......तो श्रेयसे श्री पार्श्वनाथ बिंबं कारितं प्र० श्री सावदेवसूरि
( १६५) ... १३४१ वर्षे श्रीमाल शातीय श्रे। दादा श्रेयसे श्र० सामंत सुत मूधाक स्वपितामह निमित्त श्री शांतिनाथ बिंबं कारयति प्रतिष्टापयति सूरिभिः ।
( १९६) संवत् १३४१ वर्षे ज्येष्ट सुदि ५ गुरौ आचार्य श्री श्री धरमिद गुरूपदेशेन श्रेधाराल सुत से तहुल्ला हेतष हुवि शांतिनाथ कारापितं प्रतिष्टितं
( १९७) सं० १३४१ वर्षे महा० बुहड़ भा० कपूरदे पु० जगपालेन भा० जाल्हणदे पु० गांगा सहितेन श्री महावीरः काः प्र० श्री परमानंदसूरिभिः ।
( १९८) सं० १३४२ माघ सुदि ८ श्री श्रीमाल ज्ञातीय सा० देल्हा भार्या वसुधरी पु० भाभां श्रेयसे पुत्र हेलाकेन भी आदिनाथ बिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्री पासषदेव शिष्य श्री उदयदेवसूरिभिः
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
( १६६ )
० १३४४ ज्येष्ट दि ४ क े श्री ब्रह्माण गच्छे श्री श्रीमाल ज्ञातीय निज पूर्वजानां श्रेयोर्थ जान श्री पार्श्वनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्टितं श्रीवीरसूरिभिः
( २०० )
सं० १३४५ माह सुदि १२ रवौ सा० आसल भार्या अभयसिरिकया आत्मप्रेयोर्थं श्री पार्श्वनाथ कारितः प्रति० श्री महेश्वरसूरिभिः ॥ श्री पदत्ती गच्छ
( २०१ )
सं० १३४५ वैशाख यदि २ श्री कोरिंटक गच्छे श्रे० सुहणा पु० भीड़ श्री महावीर fii कारितं प्रतिष्टितं
( २०२ )
सं० १३४६ आषाढ वदि १ शुक्र श्री बृहद्गच्छे उपकेश ज्ञातीय श्रे० अल्हण पुत्र गोगा भार्या जिरोत श्रेयसे श्री मुनिसुव्रत बिंबं कारितं प्रतिष्टितं श्री देवेन्द्रसूरिभिः
सूइववे निमित्त
( २०३ )
सं० १३४७ वर्षे ज्येष्ठ वदि ११ शुक्र व्य० साहू सुतं व्य० महण भार्या पदमसिरि तत्पुत्रेण aro सूमणेन पितृ मातृ श्रेयोर्थं श्री पार्श्वनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्टितं ।
( २०४ )
सं० १३४७ वर्षे श्री उपकेश गच्छे श्री ककुदाचार्य संताने सुचिंतित गोत्रे देवचंद्र रेण मातुः कमली श्रेयसे बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्री सिद्ध ( सूरिभिः )
२०५ )
||६०|| संवत् १३ (१२) ४७ वर्षे श्री नाणकीय गच्छे उथवण गोष्टिक श्रे० फुलचंद्र भार्या लीलू पुत्र अंबड पदम 'पाल्हू पुत्र जहड़ बिं० कारितं । प्र० श्री शांतिसूरिभिः
( २०६ )
सं० १३४६ मड्डाहड़ीय श्रे० साजन भा० तोलहणदे पु० आजड़ेन भा० पूगल पु० भाजा युतेन पितुः निमित्त श्री आदिनाथ का
सं० १३४६ (१) वै वदि ६ बिंबं कारितं प्र० श्री धर्मदेवसूरिभिः
( २०७ )
महं० कर्मसीह भार्या गाल पुत्रकेन पुत्र देवधरेण
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( २०८) सं० १३४६ वर्षे .....सुदि १४ बुधे व्य० देवड़ भार्या पदमल श्रेयोथं तिहुणाकेन .............. श्रीमहावीर बिबं कारित।
(२०६) सं० १३४६ चैत्र वदि ६ रवौ पिता साजण माता साजणदे चिवथा भार्या माल्हणदेवि श्रेयोर्थ श्रे० माल्हणेन श्रीशांतिनाथ बिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनेन्द्रप्रभसूरि शिष्य श्रीजिनदत्तसूरिभिः ।।
( २१०) संव १३४६ फागुण सुदि ८ श्री कासहृद गच्छे श्री० आंबड़ पुत्र कर्मणेन मातृ पितृ श्रेयोथं पार्श्वनाथ बिबं कारितं प्र० यणः (१)।
२११) ६०॥ संवत १३४६ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १२ सोम श्री नाणकीय गच्छे श्रे जगधरसुत राहड़ भार्या लाछू पुत्र लाखण महिचंद्राभ्यां जगधर राहड़ श्रेयसे श्रीअजितनाथ बिंबं कारितं प्रति० श्री शांतिसूरिभिः प्र०॥
सं० १३५० वर्षे ज्येष्ठ सुदि ११ शनौ वा० राऊल श्रेयोर्थं ..... "जिन बिंवं कारितं
(२१३) सं० १३५१ माघ सुदि ६ रवौ प्राग्वा० सा० धणपाल भार्या खेतलयो श्रेयो) सुपार्श्वनाथ बिंब कारिता।
. २१४) १३५१ पोष सु१ सोमे श्रे० सधारण भार्या तिहुणदेवि पुत्र तीजड़ वीरपाल वेला कुटंबेन ....... पाल नमि...... ( नाथ? ) विवं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीसूरिभिः
( २१५) सं० १३५३ वैशाख सुदि १० श्रे वीसल लीविणि पुत्र लखमाकेन श्रीआदिनाथ बिंबं कारितं प्र० श्रीपूर्णभद्रसूरिभिः
सं० १३५४ ज्येष्ठ सुदि ६ शनौ श्रीनाणकीय गच्छे धार्निक गोत्रे श्रेशिरकुमार भा० माड़ पु० गयधर भा० भोमसिरि पु० वरपति सहितेन श्रीशांतिनाथ बिंबं कारितं प्रति, श्रीशांति सूरिभिः
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ArAAVAR -MAN
( २१७ ) ६०॥ सं १३५४ माह वदि ४ शुक्र श्री उपकेश गच्छे श्री ककुदाचार्य संताने लिगा गो० मुल देवाणी पेला भार्या माऊ श्रेयोर्थ पासड़ेन श्रीअरिनाथ बिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीसिद्धसूरिभिः ॥
(२१८) सं० १३५६ (१) वर्ष वैसाख सुदि ६ चित्रवा(ल) गच्छे ...... प्रतिष्ठित श्रीरत्नसिंह सूरिभिः
( २१६) सं० १३५६ सा० शु०६ परी० आंबवीर सुत साजण भार्या सोमसिरि तत्पुत्र सा० कुमारपालाभ्यां निज मातृ पितृ श्रेयसे श्रीशांतिनाथ बिंब का०प्र० श्रीजयमंगलसूरि शिष्यैः श्रीअमरचंद्रसूरिभिः
( २२० ) सं० १३५६ फा० सु० २ सा० धांध पितृ पदम लाडी श्रे० श्रीआदिनाथ बिंबं कारिस प्र० माणिक्यसूरि शिष्य श्रीउदयप्रभसूरिभिः
( २२१ ) सं० १३६० ( ?) वैशाख सुदि ह सह कर्मसीह भार्या गोरल पुत्र नेनधरेण बि० कारित प्रः श्रीधर्मदेवसूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥
( २२२ ) सं० १३६० वर्षे ज्येष्ठ वदि ७ रवी मा० सु० वयरसीह सु० ० रामा श्रेयोथं पु० लाखण भहड़ाऊ श्रीआदिनाथ बिंबं श्रीकमलप्रभसूरीणां पट्टे श्रीगुणाकरसूरिणामुपदेशेन प्र० सूरिभिः
( २२३ ) सं० १३६१ वर्षे श्रे० राजा ..... ........... प्र. श्रीकमलाकरसूरिभिः
(२२४) सं० १३६१ वर्षे वैशाख वदि ५ गुरौ भ्रातृ कर्मसिंह श्रेयसे ठ• कुरसीहेन श्रीनेमिनाथ बि कारापित रत्नसागरसूरयः आद्यप'.. .... श्री।
( २२५) ० १३६१ वैशा सुद ६ श्रीमहावीर बिंब श्रीजिनप्रयोधसूरि शिष्य श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं । कारितंच श्रे पद्मसी सुत उधासीह पुत्र सोहड़ सलखण पौत्र सोमपालेन सर्व कुटुंब श्रेयोथं ॥
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( २२६ ) सं) १३६१ वर्षे वैशाख सुदि १० बुधे श्रे माल्हण भार्या जासलि सु० अरसीह पुत्र गारा पुत्र साह............... सा० माल्हण श्रेयसे श्रीऋषभ बिंब कारितं
( २२७ ) संवत् १३६१ वर्षे आषाढ़ (सुदि) ३ पल्लीवाल गच्छे श्रे तेजाकेन भ्रातृ वील्हा श्रेयार्थ श्रीपार्श्वनाथ बिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीमहेश्वरसूरिभिः
(२२८ ) सं० १३६२ वर्षे श्रीमाल ज्ञातीय महं वीरपालेन आत्म पुण्यार्थ श्रीपार्श्वनाथ विवं कारितं प्र० मानतुंगसूरिभिः
( २२६ ) सं० १३६२ श्रे० वाहड़ भार्या आल्ह सुत कूराकेन निज भ्रातृ महिपाल श्रेयसे श्रीशांतिनाथ बिवं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीधर्मचन्द्रसूरिभिः
( २३० ) १ संवत् । १३) ५७ फागुण सुदि ७ गुरौ गूर्जर ज्ञातीय श्रे० पद्मसीह भार्या पद्मश्री श्रेयोर्थ पुत्र जयताकेन श्रीमहावीर बिंब कारित वादि श्रीदेवसूरि संताने श्रीधर्मदेवसूरिभिः ।।
( २३१ ) ॥ सं . १३६३ चैत्र वदि ७ शुक्र श्रेठ अजयसीह तेज पुत्र चयशत भार्या माहिणि पुत्र पद्म सोहेन पितृ श्रेयसे श्रीपार्श्वनाथ बिंब कारितं प्र० श्रीशांतिसूरिभिः ।।
( २३२ ) सं० १३६३ माघ वदि १० बुध प्राग्वाट कर्मसीह भार्या रूपा श्रेयसे. पुत्र सुहड़ेन श्रीपार्श्वनाथ श्रीमेरुप्रभसूरि श्रीजिनसिंहसूरिणां उपदेशेन कारि०
( २३३ ) सं० १३६४ (१) वर्षे ..............
........कवलाकरसूरिभिः
( २३४ ) सं० १३६७ व० श्रीमाल जातीय श्रे सोम सुत तेजाकेन भ्रातृ हरिपाल श्रेयोर्थ श्रीशांतिनाथ बिंब कारितं प्रति० ॥ श्री आमदे ! (व) सूरिभिः ।।
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( २३५ ) सं० १३६६ श्रे० पदमसीह भा० खेतू पुत्र भटारनवोकेन भा० देल्हणदे पुत्र जगसीह बिंब प्र० मडाहड़ीय श्रीआनंदप्रभसूरिभिः
( २३६ ) सं० १३६७ .......श्रीमाल ज्ञातीय श्रे० तेजा सुत आजा भार्या अमीदेवि श्रेयसे श्री शांतिनाथ बिवं कारित
( २३७ ) संवत् १३६७ वर्षे आषाढ़ सुदि ३ रवौ श्रे० सांवतेन भार्या लूदा युतेन श्रीआदिनाथ वि० का० प्र० मडाहड़ीय श्री० आणंदप्रभसरिभिः
सं० १३६७ वर्षे माध वदि , गुरु श्रे० अजयसीह पुत्र वीकम भार्या वालू पुत्र वणपाल भ्रा० हरपाल सहितेन पिता माता ...''टा श्रेयोथं वीर बिंबं कारितं प्रति० श्रीवृहद्गच्छे श्रीयशोभद्रसूरिभिः ।।
( २३६ ) संवत् १३६८ वर्षे चैत्र वदि ७ शुक्र श्रे अजसिंह तत्पुत्र वयजल भार्या मोहणी पुत्र पद्मसीहेन पितृ श्रेयसे श्रीपार्श्वनाथ बिंब का० प्र० श्रीशांतिसूरिभिः
( २४० ) ___ संवत् १३६८ वर्षे चैत्र वदि ८ शुक्र श्रे० अजयसीह भार्या लीबिणी पुत्र खीमाकेन मातृ पित्रोः श्रेयसे श्रीआदिनाथ बिंबं कारितं श्रीललितदेवसरि शिष्य श्रीदेवेन्द्रसूरि उपदेशेन श्रीपूर्णिमा पक्षे चतुर्थ शाखायां
( २४१ ) संवत् १३६८ व ............ धणदास ............ - श्रीपार्श्वनाथ बिबं कारितं य (१ प्र) श्रीमदनसूरि पट्ट श्रीभदेश्वरसूरिभिः ।
__ सं० १३६८ वर्षे ज्येष्ठ वदि ७ भोमे श्रे वयरसीह सु० ० रामा श्रेयोथं पु० लाखण सहसा श्रीआदिनाथ बिंबं श्रीकमलप्रभसूरीणां पट्ट श्रीगुणाकरसूरीणा उपदेशेन प्र० सूरिभिः
( २४३ ) सं० १३६८ वर्षे माघ सुदि । श्रे० पाह्मण सुत धाधल श्रेयोथं श्रीपार्श्वनाथ बिबं कारितं प्र० वादन्द्र श्रीदेवसूरि गच्छे श्रीधम्मदेवसूरिभिः
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( २४४ ) सं० १३६६ वर्षे उपकेश ज्ञातीय श्रे नरपाल सुतया कपूरदेव्या पितुः श्रेयसे श्रीमहावीर बिंद कारितं प्रतिष्ठितं श्री चैत्र गच्छीय आमदेवसूरिभिः ॥२
( २४५ ) संवत् १३६९ वर्षे वैशाख सुदि ११ रवी श्रीमाल ज्ञातीय भां० जसधर जसमल पुत्रेण गजसीहेन पितृ मातृ श्रेयसे श्रीशांतिनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीभदेसुरसूरिभिः ।।
( २४६ ) सं० १३६६ ( ? ) माघ ( ? ) सुदि ६ सोमे डोसी मूंजा भा० मूंजल पुत्र सुहड़ाकेन श्री आदिनाथ बिंब कारितं श्रीगुणचन्द्रसूरीणांमुपदेशेन ॥ छः ।।
(२४७ ) संवत् १३६६ वर्षे फागुण वदि १ सोमे प्राग्वाट ज्ञातीय व्यव० हावीया भार्या सूहवदेवि सुत व्य० श्रे० अरसिंह .......... मातृ सलल श्रेष्टि महा सुत ५ व्य० पितृव्य सोमा भार्या सोमलदेवि समस्त पूर्वजानां श्रेयोर्थ व्यव० अर्जुनेन भार्या नायिकदेवि सहितेन चतुर्विशति पट्ट कारितः मंगलं शुभंभवतु । वृहद्गच्छोय प्रभु श्रीपद्मदेवसूरि शिष्य श्रीवीरदेवसृरिभिः प्रतिष्ठितः चतुर्विशति पट्टः ।।७४॥
( २४८ ) सं० १३७० फागु. सु. २ प्राग्वा० सा. श्रीदेवसीह भार्या मीणलदेव्या आत्म श्रेयसौ श्रीमहावीर बिंबं का० प्रति० श्रीवर्द्धमानसूरि शिष्य श्रीरत्नाकरसूरिभिः ॥ छ ।।
( २४६ ) सं० १३७१ व्य० समरा पु० सातसीहेन भा० लखमादे पु० साडा श्रेयसे श्रीआदिनाथ का० प्र० श्रीआनंदसूरि पट्टे श्रीहेमप्रभसूरिभिः महाहड़ीय ग०
( २५० ) सं० १३७१ वर्षे वैशाख सुदि ६ सोमे साहू बांबड़ भा० चांपल सु० सोढ़ा कर्माभ्यां मातृ पितृ श्रेयसे श्रीअजितनाथ कारि॥ प्र० श्रीसुमतिसूरिभिः संडेर गच्छे ।।
सं० १३७२ माघ वदि ५ सोमे श्री नाणकीय गच्छे जाखड़ पुत्र रामदेव भार्या राणी आत्मा श्रेयोथं श्रीपासनाथ बिंबं का० प्र० श्रीसिद्धसेनसूरिभिः
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( २५२ )
सं० १३७३ चैत्र व० ७ सोमे श्रीमाल ज्ञा० अमीपाल सांगण भा० सूहवदे आदिनाथ बिबं कारि० प्र० श्रीमाणिकसूरिभिः ।
३०
( २५३ )
सं० १३७३ वर्षे वैशाख सुदि ७ सोमे श्री पल्लीवाल ज्ञातीय से नरदेव श्रेयोर्थं सा० पासदचन श्रीशांतिनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीचैत्र गच्छे श्रीपद्मदेवसूरिभिः
( २५४ )
सं० १३७३ ज्येष्ठ सुदि ५ प्रा० ० आमड़ भार्या धोठी पुत्र रूपाकेन आत्म श्रेयसे श्रीॠषभ नाथ बिंबं का प्रतिष्ठितं श्रीविनयचन्द्रसूरिभिः
( २५५ )
सं० १३७३ वर्ष जेष्ठ सुदि १२ श्रीकोरंटकीय गच्छे श्रे० वीसल भा० हीसू पुत्र भामान मातृ पितृ श्रेयसे श्रीआदिनाथ कारिता प्रतिष्ठितं श्रीनन्नसूरिभिः
सं० १३७३ वर्षे वैशाख सुदि ११ भीमा श्रेयो अर्जनेन प्रतिष्ठापितः ॥
( २५६ )
शुक्र श्रीमूलसंघे भट्टा० श्रीपद्मनंदि गुरूपदेशेन तेजासुरे
( २५७ )
|| ६० || संवत् १३७३ वर्षे मार्ग वदि ५ सोमे प्राग्वाट ज्ञातीय श्रे० सिरिधर भार्या पाल पुत्र जयतसी सीहड़ वसड़ सलखाभिधः श्रीजिनसिंहसूरीणामुपदेशेन
श्रेयसे
( २५८ )
सं० १३७३ पौष वदि ५ प्राम्वाद ज्ञातीय श्रे० गाहट भ्रातृव्य नायकु खीमसीह जगसीहाभ्यां स्वश्रेयसे श्री आदिनाथ बिंबं करापितं प्र० श्रीमदनचंद्रसूरिभिः ||
( २५६ )
सं० १३७३ माह वदि ५ सोमे श्रीनाणकीय गच्छे श्रे० धमा भा० सांतिणि पुत्र ललगजस आत्म श्रेयसे श्रीपार्श्वनाथ बिंबं का० प्रति० श्रीसिद्धसेनसूरिभिः
( २६० )
सं० १३७३ वर्षे माह वदि ५ सोमे प्राग्वाट ज्ञातीय ठ० कोचर भार्या आहिणि तयोः श्रेयसे सु० भीमेन श्रीपार्श्वनाथ विषं कारिता प्र० श्रीसूरिभिः
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(२६१) सं० १३७३ माघ वदि ५ श्रेधणपाल भा० पूनम पु० सलखणेन पित्रो श्रेयोथं श्रीआदिनाथ बिबं श्रीसागरचन्द्रसूरीणामुपदेशेन कारिता प्रतिष्ठिता।
(२६२) सं० १३७३ वर्षे माह वदि ५ सोमे प्राग्वाट झातीय पितृ श्रे सोमा मातृ रूपिणि श्रेयसे सुत श्रे० नरसिंहेन श्रीपार्श्वनाथ बिंबं कारितः । प्रति० श्रीसूरिभिः ॥
___ सं० १३७३ फागुन बदि ७ बुध दिने प्राग्वाट ज्ञातीय श्रे यशोधीर भा० यशमई सुत व्य० पद्मसीह भार्या वयजलदेवि सहितेन पिता माता श्रेयोर्थ श्रीपार्श्वनाथ विंबं कारितं प्र० श्रीरनाकरसूरिभिः ।।
( २६४ ) सं० १३७३ वर्षे फागुन सुदि ८ श्रीमाल झातीय पितृ सीहड़ भार्या सापइ श्रेयोथं सुत आसाई तेन श्रीआदिनाथ कारितः प्रतिष्टितं श्रीबालचंद्रसूरिभिः ।।७४ ॥
( २६५) सं० १३७३ ( १ ) वर्ष फागुन सु०६ श्रे० लला भा० सिरादे पु० आल्हाकेन श्रीपार्श्व बिंब कारितं प्रति० श्रीपद्मदेवसूरिभिः ।।
सं० १३७४ वैशाख सुदि ७ शनौ प्राग्वाट ठ० सलखाकेन आत्म श्रेयसे श्रीआदिबिंब कारित प्रतिष्ठापितं च।
(२६७ ) सं० १३७४ ज्येष्ठ (१) सु० १३ शनौ (१) प्राग्वाट ठ० नामि पर सुत रामा भा० गरी श्रीआदिनाथ विंबं कारितं प्रतिष्ठितं ।
(२६८) सं० १३७५ वर्षे श्रीकोरंटक गच्छीय श्रा० मोहण भार्या मोखल पु० माला उदयणलाभ्यां श्रीआदि बिंबं कारिसं प्र० श्रीनन्नसूरिभिः।
(२६६) ॥६०॥ सं० १३७५ वर्षे आषा........३ गुरौ उकेश झा० श्रे० सावड़ सं० वीरांगजेन महणेन पितृव्य भ्रातृणां महादेव अरिसीह वरदेवानां श्रेयसे श्रीपार्श्वनाथ बिंबं का० प्र० श्रीचैः गच्छे श्रीहेमप्रभसूरिभिः ।।
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( २७०) सं० १३७६ माघ २० १२ उपकेश झा नराकेनहे (१) श्रे० रालड़ा भा० लूणदे पु० धरणा धारा धरणा भा) रदनादे पु० मंडलीक युतेन श्रीशांतिनाथ बिंब का० प्र० श्रीसिद्धसेनसूरिभिः ।।
(२७१) __ सं० १३७६ माह वदि १२ बुधे श्रीनाण गच्छे ....... कंदन भा० कुलसिरि पुत्र खेता लीमिर रणसीहैः मातृ-पितृ श्रेयसे पार्श्वनाथ बिंबं का० प्रति० श्रीसिद्धसेनसूरिभिः।।
(२७२)
सं० १३७७ वैशाख सुदि१३ श्रे० आस भा० सोली पुच्या पोई श्राविकया बिंब कारित ! प्रतिष्ठितं ॥ चंद्रसिंहसूरिभिः ।
(२७३) सं० १३७८ (१) ..... ............."बिंबं कारितं नरचंद्रसूरीणा मुपदेशेन ।
(२७४) सं० १३७८ वर्षे श्रीप्रलघल भा० वेउलदे पु० भोजाकेन भ्रात मदन गरड़ सहितेन पितोः श्रेयसे श्रीशांति बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीधर्मदेवसूरि पट्टे श्रीदेवसूरिभिः ।
(२७५)
संवत् १३७८ वर्षे प्राग्वाट ज्ञातीय श्रे बूटा पुत्र महणसीहेन भार्या मयणल सहितेन पित्रोः श्रेयसे श्रीशांतिनाथ बिंब कारितं श्रीः॥
(२७६) संवत् १३७८ वर्षे वैशाख सुदि ६ बुधे । चैत्रवा ल) गच्छे श्रे० भालन पुत्रिका कम्मिणि श्रेयोथ बिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीरत्नसिंहसूरिभिः।
(२७७) संवत् १३७८ वर्षे वैशाख सुदि १३ शुक्र उच्छत्रवाल गोत्रे सा० हिरीया भार्या हीरादे पुत्र सा० नागदेव ताल्हण नीता वल्हा माता-पिता श्रेयसे श्रीमहावीर बिंब का० प्र० श्रीधर्मघोष गच्छे श्रीसावदेवसूरि शिष्यैः श्रीसोमचंद्रसूरिभिः ॥ छः।।
(२७८) सं० १३७८ (१) ज्येष्ठ वदि..... श्री..... (नाण ) कीयगच्छे साह घरटा भार्या गांगी पुत्र ......... हरपाल सहितेन मातृ पितृ श्रेयसे बिंब का० प्र० सिद्धसेनसूरिभिः ।
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(२७६ )
सं० १३७८ व० जेठ व०६ सोम उ० गो
'कारापितं प्रतिष्ठितं श्रीमुनिप्रभसूरि पट्ट े श्रीजयप्रभसूरि उपदेशेन श्री ।
सं० १३७६ वैशाख वदि प्रतिष्ठि० श्रीविनयचंद्रसूरिभिः ।
३३
भा०वसतिणि पु० वाहड़ कालाभ्यां मदन निमित्तं
( २८० )
सं० १३७८ ज्येष्ठ सुदि ६ सोमे पितृ सोमा भार्या मोहिणिदे पुत्र उदयरा श्रीपार्श्वनाथ बि प्र० श्रीधर्मचंद्रसूरिभिः ।।
( २८१ )
सं ९३७ मडाहड़ीय श्रे० साजण भा० तोल्हणदे पु० आजड़ेन भा० पूजल पु० भाना युतेन पितुः निमित्त श्रीआदिनाथ का० प्र०...
( २८२ )
"माकेन पितृ मातृ श्रेयसे श्रीशांति बिंबं का०
( २८३)
'सु०
सं० १३७६ वैशाख "भावड़ार गच्छे उपकेश ज्ञा० पितृ कम्र्मा भा० ललतू भ्रातृ सही......महं० भउणाकेन श्रीपार्श्वनाथ बिंबं का० प्र० श्रीजिनदेवसूरिभिः ॥
( २८४ )
सं० १३८० वर्षे जेष्ठ सुदि १० खौ ० रतन भार्या वीरी पुत्र गोजाकेन पित्रोः श्रेयसे श्री आदिनाथ बिंबं कारापितं ॥
( २८५ )
सं० १३८० (?) वैशाख वदि ११ (१) श्रेष्ठि रतनसी भार्या जयतसिरि पु० खेता । अरसीहाभ्यां स्व श्रेयसे पिष्फलाचार्य प्रतिष्ठितं श्रीधर्मरत्नसूरिभिः
( २८६ )
सं० १३८१ वर्षे वैशाख वदि ३ श्रीनाणकीय गच्छे ऊकेश वंशे श्रे० आसल पु० राजड़ भार्या श्रेयसे श्रीशांतिनाथ बिंबं का० प्र० श्रीसिद्धसेनसूरिभिः
सूमल
( २८७ )
सं० १३८१ वर्षे वैशाख वदि १ सोमे प्राग्वाट ज्ञातीय श्रे० धारा भार्या ललतादे आत्म श्रेयोर्थ श्रीआदिनाथ बिंबं का० श्रीसोमतिलकसूरीणामुपदेशेन | छ
५
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(२८८) ॥ सं० १३८१ वर्षे वैशाख सुदि १५ सोमे उपकेश ज्ञातीय कोल्हण गोत्रे सा० ब्रह्मदेव पुत्र आसा भार्या चिहुली तत्पुत्र जागाकेन पित्रोः श्रेयसे श्रीवीर बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीदेवसूरि गच्छे श्रीपासचंद्रसूरिभिः ।। छः॥
( २८६) सं० १३८२ वर्षे वैशाख सुदि २ शनौ प्राग्वाट श्रे० आदा भार्या जासल पु० आभाकेन पितृ मातृ श्रेयसे श्रीमहाबीर बिंबं कारित प्रतिष्ठितं श्रीसूरिभिः
( २६०) ६० ॥ सं० १३८२ वर्षे वैशाख सुदि २ श० श्रीमदुपकेशीय गच्छे भाद्र गोत्रे लिगा सा० भोला भार्या तिहुणाही पुत्र लाखू मयधूभ्यां निजपितुः श्रेयसे श्रीआदिनाथ विवं कारित प्र० ककुदाचार्य संताने श्रीकक्कसूरिभिः।
( २६१) ___ सं० १३८. वर्षे वैशाख सुदि २ शनौ उ० वे नागड़ भार्या साजणि पु. खीमाकेन भ्रातृ कर्मा भीमा सहितेन श्रीशांति बिंबं का प्रव० श्रीभावदेवसूरिभिः ।
( २६२) सं० १३८२ वर्षे वैशाख सुदि ४ (१२) शनौ श्रे वस्ता भार्या कपूरदे सुत खेताकेन पित्री श्रेयसे श्रीअजितस्वामि बिंबंf ...... शाखायां श्रीसागरचंद्रसूरीणामुपदेशेन कारितं प्र० सूरिभिः ।
( २६३) ॥६०॥ सं० १३८२ वर्षे वैशाख सुदि ५ (?) नाटपेरा ज्ञा० महं० मूलदेव श्रेयसे महं. सामंतेन श्रीआदिनाथ बिंबं का० प्र० श्रीकोरंट गच्छे श्रीनन्नसूरिभिः ।
(२६४) __सं १३८२ ( ? ) ज्ये० सु०६ गुरौ नाणक गच्छे आल्हा सुत लखमण सहिताभ्यां पितृ मात श्रेयो) कारिता॥
सं० १३८२ आषाढ वदि ८ रखो खजूरिया गोत्रे पितृ देदा श्रेयसे तोल्हाकेन पार्श्वनाथ कारित श्रीधर्मदेवसूरिभिः प्रतिष्टितं ।
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(२६६) ॥ सं० १३८३ माधवदि ५ सोमे श्रीनाणकीय गच्छे जाखड़ पु० रामदेव भार्या राणी आत्म श्रेयसे श्रीपार्श्वनाथ विंबं का० प्र० श्रीसिद्धसेनसूरि ।।
( २६७) सं० १३८३ वर्षे माघ वदि ११ बुधे श्रीश्रीमाल ज्ञातीय पितृ श्रे० साजण मातृ कपूरदेवि श्रेयोर्थ सुत झांझणेन श्रीआदिनाथ बिंबं कारितं प्रतिः पिप्पलाचार्य श्रीविबुधप्रभसूरिभिः॥
( २६८) सं० १३८४ ज्येष्ठ वदि ११ सोम दिने श्रीनाणकीय गच्छे श्रे० राध० भा० टहकू पु० सामलेन पितृ श्रेयसे श्रीआदिनाथ बिंब का० प्र० श्रीसिद्धसेनसूरिभिः॥
( २६६)
॥सं० १३८४ माघ सु० ५ श्रीजिनकुशलसूरिभिः श्रीआदिनाथ बिंबं प्रतिष्ठितं कारिसं च सा० सोमण पुत्र सा० लाखण श्रावकेन भावग हरिपाल युतेन ।
(३००) ॥६०॥ सं० १३८४ वर्षे माघ सुदि ५ दिने श्री (उ) पकेश गच्छे श्रीककुदाचार्य संताने लिगा गोत्रीय सा० फमण पुत्र सा० छाजू सउधिलयोः भ्रात लूणा नाथू श्रीपार्श्वनाथ बिंब कारितं प्रतिष्टितं श्रीककसूरिभिः ।। शुभमस्तु ॥छः॥
(३०१) सं० १३८४ माघ सुदि ५ सोमे प्रावा ज्ञा० व्य० जसपाल भार्या संसारदेवि तयो श्रेयोथं सुत लरूमसीहेन श्रीशांतिनाथ विकारितं प्रतिष्ठि सिद्धां० श्रीशुभचंद्रसूरि शिष्य श्रीज्ञानचंद्रसूरिभिः॥छ॥
( ३०२) सं० १३८४ वर्षे माघ सुदि ५ श्रीकोरंटक गच्छे ओसवाल ज्ञातीय श्रावक रतन भार्या रूपादेवि सुत मोहण महणपाद्यः श्रीपार्श्व वियं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीनन्नसूरिभिः ।
सं० १३८५ वर्षे प्राग्वाट श्रे रामा भा० रयणादे पितृ मातृ श्रेयसे पुत्र तिहुणसाहेन महावीर संडेर गच्छ यशोदेवसूरि ।
( ३०४ )
सं० १३८५ फागुण सु० ८ श्रे वयजा भार्या वयजल दे पुत्र कडुआकेन पित्रोः श्रेयसे श्रीमहावीर बि० का० प्र० वृहद्गच्छीय श्रीभद्र श्वरसूरि पट्टे श्रीविजयसेनसूरिभिः ॥ माहरउलि गोष्टिक ।।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
(३०५ )
सं० १३८६ ० ज्येष्ठ वदि ४ सोमे श्रे० केल्हा भार्या नाल्हू पुत्र सहजाकेन पितामह कानू • श्रेयसे श्रीआदिनाथ बिं० का० प्र० बृहद् गच्छे श्रीभद्रेश्वरसूरि पट्टे श्रीविजयसेणसूरिभिः ।
३६
( ३०६ )
सं० १३८६ वर्ष वैशाख वदि १ सोमे प्राग्वाट जातीय श्रे० धारा भार्या ललतादे आत्म श्रेयोर्थं श्री आदिनाथ fii का० श्रीसोमतिलकसूरीणामुपदेशेन ॥ छ ॥
( ३०७ )
सं, १३८|| ( ५ ) वैशाख व० ५ बु० उश ज्ञा० पितृ मं सहजा मातृ भावल श्रेयसे सुत नरसिंहेन श्रीमहावीर बिंबं कारि० प्र० श्रीसिद्धसूरिभिः ।
( ३०८ )
सं० १३८५ ज्येष्ट वदि ४ बुधे श्रीमालीय पितामह पाल्हण भार्या लखमा सिरांपाश्रग केन श्रीसुमतिनाथचतुर्विंशति पट्टक कारितः प्र० श्रीनागेन्द्र गच्छे श्रीवेगाणंदसूरिभिः प्रपौत्र कंकण पौत्री वमोही प्रपौत्री प्रीमा प्रपितामह देपाल प्रपौत्रा तरुपान प्रपौत्र मावट भ्रौणेज कर्मणा भा० तद्रि प्रपौत्री पौत्री ।
( ३०६ )
सं० १३८५ वर्षे फागुण दि ८ श्रीमदूके० श्रीककुदाचार्य संताने सुचितित गोत्रे सा० आड़ भा० चापल पु० कडूया श्रेयोर्थं पुत्र ऊतिमेन पितृव्य राणिग वीकम सहितेन श्रीपार्श्वनाथ बिबं कारितं प्र० श्रीकक्कसूरिभिः ।। छः ।।
( ३१० )
सं० १३८६ वर्षे वैशाख वदि १९ सोमे श्रे० वीजा भार्या पूनळ सुत जोला भार्या नामल सहितेन मातृ पितृ श्रेयसे श्री पार्श्वनाथ बिंबं कारापितं प्रतिष्ठितं श्रीसूरिभिः ॥
( ३११ )
सं० १३८६ ( १ ) वैशाख वदि १२ (१) श्रेष्टि रतनसी भार्या नयतसीह पु० आसोदाभ्यां स्वयसे 'पिप्पलाचार्य प्रतिष्ठितं श्रीधर्मदेवसूरिभिः ।
ला
( ३१२ )
सं० १३८६ वैशाख वदि १९ सोमे श्रे० पूना भार्या सहज पुत्र खेताकेन भ्रातृ तेजा स्वसा आसल निमित्त श्रीआदिनाथ बिंबं कारितं श्रीदेवेन्द्रसूरीणामुपदेशेन ॥
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(३१३) ॥६० ।। सं० १३८६ माघ २०२ श्रीमाल ठ० पाल्हण पुत्र्या वा० सूहड़या स्वभर्तु धरणांगजस्य ठ० भाऊकस्य स्वस्यच श्रेयसे श्रीपार्श्वनाथ बिंब कारिता प्रति० मलधारि गच्छे श्रीश्रीतिलकसूरि शिष्यैः राजशेखरसूरिभिः ।। छः ।।
( ३१४ ) ___ सं० १३८६ माघ सुदि १ सोमे श्रीनाणकीय गच्छ उसभ गोत्रे श्रे० महणा ता० सूहव कालू सोमा मातृ पितृ श्रेयसे बिबं का० प्र० श्रीसिद्धसेनसूरिभिः ।
( ३१५) ___ सं० १३८६ फागुन वदि १ सोम महं जयता भार्या जपतलदे पुट विक्रमेण भा० विजयसिरि सहितेन श्रीआदिनाथ बिंव का० प्रति श्रीनाणगच्छे श्रीसिद्धसेनसूरिभिः ।
(३१६ ) सं० १३८६ उपकेश झातीय श्रे० सिंधण भा० सिंगारदेवि पु० लटाकेन पित्रो श्रेयसे पंचतीर्थी वि० श्रोआदिनाथ प्रति० श्रोसर्वदेवसूरि मडाहड़ीय ।
( ३१७) सं० १३८७ ज्येष्ठ सु० १० शुक्र उपक ..."ट श्रे० कूड़सिल भार्या क्रांकी तयोः श्रेयोथै सुत कडूआकेन श्रीशांतिनाथ बिंब का० प्रति० सैद्धांतिक श्रीसुभचंद्रसूरि शिष्य श्रीज्ञानचंद्रसूरिभिः ।
( ३१८)
संवत् १३८७ वर्षे माघ सुदि ५ रवौ श्रीमूलसंघे भट्ठारक श्रीपद्मनन्दिदेव गुरुपदेशेन हुंबड़ ज्ञातीय श्रे० आना सुत व्य० नायक भार्या सूहवदेवि श्रेयोथं सुत सलखाकेन श्रीआदिनाथ चतुविंशति कारिता!
( ३१६ ) — सं० १३८७ फागुण सुदि ४ सोम कोल्हण गोत्रे सा० मोहण श्रेयोथं सुत मीझाकेन श्रीपाश्दैनाथ बिंबं कारितं प्र० वृहद्गच्छे श्रीमुनिशेखरसूरिभिः ।
(३२०) संवत् १३८७ वर्षे फागुण सुदि ८ बुधे व्य० जगपाल पु० सीहाकेन भा० भावल पु० कमसीह रामादि युतेन पित्रो निमित्त श्रीआदिनाथ प्र० का० प्र० श्रीशालिभद्रसूरि पट्टे श्रीहरिप्रभसूरिभिः ।
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( ३२१) ___सं० १३८७ वर्षे मडाहडीय गच्छे उपकेश ज्ञातीय श्रे० धणसीह भा० पूना पु० वीकम भा ..... पित्रो श्रेयसे श्रीशांति बिंबं का०प्र० श्रीहेमप्रभसूरीणां पट्टे श्रीसर्वदेवसूरिभिः ।
(३२२) सं० १३८८ वै० म०५ संडेरक गच्छे उपकेश ज्ञातीय महं० धीणा भार्या धणसिरि पुत्र गामड़ पौत्र झीफा धांधलाभ्यां पूर्वज श्रेयसे श्रीपार्श्वनाथ बिंबं कारितं प्र० श्रीसुमतिसूरिभिः।
(३२३) सं० १३८८ वैशाख सु० १५............... ज्ञातीय भा० विनयण श्रेयसे भ्रातृ........... श्रीशांतिनाथ बिंब कारितं ॥ प्र० श्रीहेमचन्द्रसूरिभिः ।
सं० १३८८ वर्षे कै० सुदि १५ श्रीम लीय श्रे ऊता भार्या उत्तिमदेवि पुत्र देसल पम्माभ्यां पित्रो श्रेयसे श्री चतुर्विंशतिकः कारितं प्र० सत्यपुरीये श्रीसूरिभिः वाघउड़ा प्रामे ।
सं० १३८८ वैशाख सुदि १५ शनौ व्य० धांधापुत्र श्रे सागर संतानीय श्रे० महणसीह पुत्र महं० वीरपाल पु० महं रूपा भार्या कुंती पुत्र देवसीहेन भा० मुगतासहितैः पित्रो श्रेयसे श्रीपार्श्व बि० कारतं प्र० ब्रह्माणेस श्रीभद्रेश्वरसूरि पट्ट श्रीविजयसेणसूरिभिः वृहद्गच्छीय ।
सं० १३८८ वर्षे मार्ग सुदि ६ शनौ उपकेश ज्ञातीय श्रे० नींबा भार्या मणगी पुत्र कसपाई गसराव पितृ मातृ भ्रातृ श्रेयसे श्रीमहावीर प्रतिमा कारिता प्र० श्री चैत्रगच्छे श्रीमदनसूरि शिष्य श्रीधर्मसिंहसूरिभिः ॥
सं० १३८८ श्रीमाल ज्ञातीय श्रे० सलखा भार्या सलखादेवि पुत्र भामा भ्रातृ सजना पुत्र धा........... अर्जनाभ्यां पितृव्य वीझगण सोमसिंह युते पूर्वज निर्मितं श्रीपार्श्वनाथ: का० प्र० श्रीमहेन्द्रसूरि वचनोत् प्र० श्रीपासदेवसूरि सत्यपुरीयैः ।
( ३२८ ) सं० १३८६ व० चै० सुदि १४ श्रीश्रीमाल झातीय महं० पदम भार्या रयणादेवी मातृ पितृ श्रेयोर्थ सुत म० सुहड़ाकेन श्रीआदिनाथ विंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्री सूरिभिः शंखेसर वासव्य ।। ४ ।।
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( ३२६ ) सं० १३८६ वैशाख वदि ७ बुधे व्य० वसता भा० वउलदे पु० जयतसी रत्नसिंहाभ्यां श्रीपार्श्व बि० का० प्र० श्रीकमलाकरसूरि माल्यवनी ॥
( ३३० ) ___सं० १३८६ वैशाख सुदि ८ श्रीब्रह्माण गच्छे..........."सलीय भ्रातृ ............. केन ..... ....... बिंबं कारिता प्र श्रीवीरसूरिभिः।
(३३१ )
सं० १३८६ ज्येष्ठ वदि ११ सोम दिने श्रीनाणकीय गच्छे श्रे० राघव भा० टहकू पु० सामलेन पितृ श्रेयसे श्रीआदिनाथ बिंबं का० प्र० श्रीसिद्धसेनसूरिभिः ।
(३३२ ) सं० १३८६ वर्षे येष्ट वदि २ सोमे श्रीश्रीमाल ज्ञातीय पितृ वाल्हण मा० सहजल पि० टाघटा ? वीक श्रेयसे त धणपालेन श्रीपार्श्वनाथ बिंब कारितं पिप्पलाचार्य श्रीपद्मचंद्रसूरिभिः प्रति०।
सं० १३८६ जे० सुदि ८ षंडेरका गच्छे श्रे० देहड़ भा० राजलदे पु० पथा पितृ श्रेय श्रीपार्श्वनाथ बिंब का० प्र० श्रीसुमतिसूरिभिः॥
(३३४ ) ____ सं० १३८६ ज्ये० सुदि ६ रवौ व्य० वेरहुल भा० गउरी पु० पद्मन भा० विझल भ्रातृ आका मोषट कडूआ कुटंब युतेन भ्रातृ सुहड़सीह निमित्तं श्रीपार्श्वनाथः कारितः प्र० श्रीशालिभद्रसूरि पट्ट श्रीहरिप्रभसूरिभिः॥ रत्नपुरीयैः ॥ श्रीः ।।
सं० १३८६ वर्षे माघ वदि ५ गुरौ मूलसंघे क० मंडलिक भार्या सूहव श्रेयोथे .............. हरपालेन बिंबं भरापितं ॥
( ३३६ ) सं० १३८६ व० फागुण सु० ८ श्रीकोरण्टकीय गच्छे श्रा० सीहाभा० पोयणि पु० झांझाकेन पि० भीमा निमितं श्रीआदिनाथ बिंब कारितं प्र० श्रीनन्नसूरिभिः।
( ३३७ ) सं० १३८६ फागुन सुदि ८ सो स० ० तेजाभार्या सीती आसघर सोमा मंडल्लिक करड निमितं वीराकेन श्रीशांतिनाथ बिंब कारित प्रतिष्ठितं श्रीदेवभद्रसूरिभिः॥
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४०
बीकानेर जैन लेख संग्रह
( ३३८ )
सं० १३६० श्रीकोरंटकीय गच्छे गो० अरसी भा० आल्हू पु० षोढा पासड़ आत्म पितृमातृ श्रेयोर्थं श्रीशांति बिवं कारापितं प्रतिष्ठितं ननसूरिभिः ।
( ३३६ )
सं० २३६० वर्षे वैशाख
श्रीमालज्ञातीय ४० देदाकेन पितृ ठ० आल्हा पितृव्य वीरा झाला मुंजा काला मंडलिक श्रेयोर्थ श्रीचतुर्विंशति बिंबं पट्ट कारितः प्रतिष्ठितः सूरिभिः ॥ श्र० वीकम श्रेयसे श्रीरत्नसागरसूरीणामुपदेशेन ॥
( ३४० )
सं० १३६० वर्षे वैशाख वदि ११ शनौ श्रीश्रीमाल ज्ञातीय ठकुर करउर राणाकेन भार्या कामलदे भार्या कल्हणदे श्रेयोर्थ श्रीमहावीर बिंबं कारितं प्रति० श्रीवृहद्गच्छे पिप्पलाचार्य श्रीगुणाकरसूरि शिष्य श्रीरत्नप्रभसूरिभिः ||
( ३४१ )
संवत् १३६० मार्गसिर व० ७ उप० सांखला गोत्रे सोम पुत्रेन गयपति भार्या नाथू गादिति श्रेयोर्थ श्रीमहावीर बिंबं प्र० श्रीधर्मसूरि श्रीगुणभद्रसूरि
( ३४२ )
संवत् १३६० मागसिर सु० १ डीडू गोत्रे रउत पुत्र सा० ऊदा लखमण माता लाली श्रेयोर्थ चंद्रबिंबं कारितं प्र० श्रीगणभद्र (?) सूरिभिः ।
( ३४३ )
सं० १३६० फाल्गु वदि १ शुक्र े पूनचंद्र भार्या माल्ही पु० मोहड़ पु० केल्हन प्रतिष्ठित श्रीउद्योतनसूरिभि: 1
( ३४४ )
सं० १३६१ माघ वदि ११ शनौ प्राग्वाट ज्ञातीय कसमरा भा० कामल सुत भूजाके मगा स्वपितृ श्रेयसे श्रीमहावीर बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं सूरिभिः
( ३४५ )
सं० १३६१ माघ सु० ६ वौ श्रे० विजयसिंह भा० मखल पु० पेथड़ेनं पित्रोः श्रेयसे श्रीशांतिनाथ बि० का० प्र उवढवेल्य श्रीमाणिक्यसूरि पट्ट श्रीवयरसेनसूरिभिः ।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
(३४६) सं० १३६१ फा० १० ११ शनी श्रीनाणकीय महं० वयरसीह पुत्र लूणसिंह तिहुणसीहाभ्यां सिरकुमर निमित्त श्रीशांति बिंबं कारितं प्रति० श्रीसिद्धसेनसूरिभिः ।। छ ।
(३४७) सं० १३६१ (१) फा० सुदि..........."पु० तेजा भा० तेजलदे पु० झांझण गोसलेन पित्रोः श्रे श्रीवीर वि० का० प्र० सदान () श्रीसर्वदेवसूरि ...........
(३४८ ) संवत् १३६२ वर्षे उपकेश शा० ० भीम भा० कसमीरदे पु० रणसीह अर्जुन पूनाफेन पितृ श्रेयोथं श्रीआदिनाथ बिंब का० प्र० मडाहड़ीय गच्छे श्रीसर्वदेवसूरिभिः॥
(३४६) सं० १३६२ मा० सु० ४ श्री० ४० ठाडाकेन पित वैरा मात बलदे भ्रा० लख्मसीहस्य सर्य पूर्वजानां श्रेय पचा (१) श्रीपार्श्व बिंब का० प्र० मलधारी गच्छे श्रीराजशेखरसूरिभिः
( ३५० ) सं० १३६२ वर्षे माघ सुदि ५ रवौ रे जगधर भा० मेघी पुत्र पद्मसीहेन पित्रोः श्रेयसे श्रीआदि बिंबं का प्रतिष्ठितं श्रीसमतसूरिभिः
( ३५१) सं० १३६२ माह सु० १५ प्राग्वाट व्य० पूनम भा० देवलदे सुत तिहुणाकेन श्रीमहावीर बिंब श्रीअभयचंद्रसूरीणामुपदेशेन
( ३५२) सं० १३६३ वर्षे वापणा गोत्रे सोमलियान्वये सा० भोजाकेन पित्रो हेमल विमलिकयोः पुत्र चूचकोदयपालयो स्व श्रे० श्रीशांतिनाथ बिंब का० प्र० श्रीवृ० (ग) छीय श्रीमुनिशेखरसूरिभिः
॥६० ॥ संवत् १३६३ वर्षे उपकेश गच्छे श्रीककुदाचार्य संताने आदित्यनाग गोत्रीय श्रे धीना पुत्र था'... "देवेन भार्या विनयश्री सहितेन स्वश्रेयसे श्रीअजितनाथ बिंब का० प्र० श्रीककासूरिभिः
सं० १३६३ वर्षे प्रा० शातीय बाई वीझी आत्म श्रेयसे भीपार्श्व का०प्र० श्रीसूरिभिः
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(३५५) संवत् १३६३.................. भार्या धीरा पुत्र रूपाकेन आत्मश्रेयसे श्रीऋषभनाथ विवं काल प्रतिष्ठितं श्रीविनयचंद्र (सू) रिभिः ।
सं० १३६३ वर्षे ज्येष्ठ वदि १ शुक्र प्राग्वा० श्रे) सिरपाल भार्या सहजलदे पुत्र वीकमेन श्रीशांतिनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीमडाहडीय गच्छे श्रीसोमतिलकसूरिभिः ।
सं० १३६३ माघ सु० १० सोमे प्रा० भ० सलखा भा० सलखणदेवि पु० देल्हाकेन भृ० भा० मुंजा श्रेयोथं श्रीसोमचंद्रसूरीणा मु० श्रीपार्श्वनाथ विंबं का० प्र० श्रीसूरिभिः ।
(३५८ ) ॥६०॥ संवत् १३६३ फा० सु० २ हरसउरा गोत्र महं० लालाकेन पित्रो महं० धारा महड़िकयोः श्रेयसे श्रीपार्श्वनाथ कारि प्र० श्रीमलधारि श्रीराजशेखरसूरिभिः॥
( ३५६ ) __सं० १३६३ वर्षे फागुन सुदि २ सोमे श्रीनाणकीय गच्छे श्रेः कर्मण भा० भीमणी पुत्री देवल आत्म श्रेयसे श्रीपार्श्वनाथ विवं का० प्र० श्रीसिद्धसेनसूरिभिः॥
(३६०) सं० १३६३ फागु० सु० ८ व्य० कुरा भार्या कपूरदे पुत्र पूनाकेन पित्रोः पितृश्य धना श्रेयसे श्रीऋषभदेव बिंवं प्र० श्रीदेवेन्द्रसूरिणा!
सं० १३६३ वर्षे फा० सु०८ ................. भार्या कपूरदे पुत्र पुनपालेन पित्रोः श्रेयसे श्रीपार्श्वनाथ बिंब श्रीनरचंद्रसूरीणामुपदेशेन !
सं० १३६३............. सु० ८ रवी श्रीभावडार गच्छे . . . . . . . . . गोत्रे श्रे...... . . . . . . भा० लखम पुत्र मंडलिकेन पित्रो श्रेयसे श्रीपार्श्वनाथ बिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिणदेवसुरिभिः ।
( ३६३ ) सं० १३६४ चैत्र वदि ६ शनौ प्राग्वाट ज्ञा० मातृ कर्पूरदेवि श्रेयसे रामा सुत मुहुणाफेन श्रीमहावोर घिवं कारितं प्रतिष्ठित सैद्धांतिक श्रीनाणचंद्रसूरिभिः ।।
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alerao जैन लेख संग्रह
( ३६४ )
सं० १३६४ वर्षे वंशाख वदि ६ श्रीउपकेश गच्छे वपणाग गोत्रीय रामतात्मज जे० सा० तारतिमीया | मापल सुतेन मातु पितु श्रेयसे श्रीशांतिनाथ बिंबं कारितं प्रति० पानशालि ( ? ) सूरिभिः ।
( ३६५
सं० १३६४ वर्षे वैशाख वदि ७ प्राग्वाट ज्ञातीय श्रे० सोल्हा भा० सीतू पु० लूणा भा० रयणादे पुत्र रणसह भा० नयणादे पित्रोः श्रेयसे श्रीआदि बिषं कारितं प्र० श्रीसर्वदेवसूरिभिः ।
( ३६६ )
सं० १३६४ वैशाख सुदि १० शुक्र उपकेश ज्ञातीय व्य० मदन भा० धांधलदे पुत्र लालान (?) खमण निमित्त श्रीपार्श्व बिबं का० प्र० श्रोदेवसूरिस श्रीधर्मदेवसूरिशि० श्रीवयरसेणसूरिभिः ।
( ३६७ )
सं० १३६४ वर्षे ज्येष्ठ वदि 'उपकेश ज्ञातीय महं० धांधल भा० राजलदे पु० मं० जयता भा० चांपलदे पुत्र कर्ण श्रेयोर्थं श्रीआदिनाथ बिंबं कारि० प्र० श्रीवयरसेणसूरिभिः ।
सं० - १३६६ ( १ )
}
( ३६८ )
सं० २३६४ वर्षे ज्येष्ठ वदि ५ शुक्र श्रे० अभयसींह अहिवदे पु० कुरसीह भा० माल्हिणि पितुः श्रेयसे श्रीमहावीर बिंबं कारितं प्र० श्रीसूरिभिः ।
( ३६६ )
सं० १३६६ माघ सु० ६ बुधे हुंबड़ ज्ञातीय दो० भांभू भा० चांपल श्रेयसे सुत विजयसीहेन श्रीवासुपूज्य बिंबं कारापितं प्र० श्रीपासडसूरिभिः ।
( ३७० )
कारितं ।
४३
यदि ६'
...तेजपालेन मातृ
"श्रेयोर्थ श्रीपाश्वनाथ बिंबं
( ३७१ )
१३६७ श्रेष्ठि गोत्रे सा० कर्मसीह ऊदाभ्यां श्रीपार्श्वनाथ बिंबं का० प्र० श्रीकक्लूरिभिः ।
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( ३७२
सं० १३६७ वर्षे माहवदि ११ व्य० बड़पाल भा० राजलदे पु० रायसिंह पित्रो भ्रातृ जयतसी reader श्रोशालिभद्रसूरीणामु पदे० ।
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४४
सं० १३६७ वर्षे माघ सुवि बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं सूरिभिः ।
सं० १३६७ वर्षे श्रीसोमसुंदरसूरिभिः ।
बीकानेर जैन लेख संग्रह
( ३७३ )
( ३७४ )
५ दिने प्राम्बाट ज्ञातीय व्य० इछा भार्या :
सं० १३ प्रति० गुणाकरसूरिभिः
( ३७५ )
सं० १३६६ वर्षे माघ वदि ५ गुरौ मूल संघे पिता सारा भ्रातृपुत्रेण सुत अभयसिंहेन संभव बिबं कारापिता ।
सं० श्रीधर्मनाथ बिंबं का० प्र० श्रीसर्वाणंदसूरीणामुपदेशेन
(३७६
संव० १३६ ( ) वैशा०सु० ३ बुषे प्राग्वाट ज्ञातीय महं० ससुपाल श्रेयोर्थ सुत महं० कविराजेन श्रीपार्श्व बिवं कारितं प्रतिष्ठितं राजगच्छीय श्रीमाणिक्यसूरि शिष्य श्रीहेमचन्द्रसूरिभिः । ( ३७७ )
"भा० सखिल पु० चांभा ठाकुरसीहाभ्यां पित्रोः श्रेयसे
( ३७८) -ज्ञातीय
माकेन श्रीअजितनाथ
वर्षे मा
संवत् १३ कारितः प्रतिष्ठितं श्री० श्रीनन्नसूरिभिः ॥
( ३७६ )
विका० प्र०
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श्रेयसे श्रीविमलनाथ बि० का०
संभवनाथ चतुर्विंशति पट्टः
( ३८० )
सं० १३. वर्षे ज्येष्ठ सु० १० श्रीवृहद्गच्छे उपके० ज्ञातीय सा० मदा भार्या चांपल पुत्र सामंत भा० पूनी पु० राघव जता सहितेन माता श्रेयसे श्रीशांतिनाथ बिंबं कारापितं प्रतिष्ठितं अजितभद्रसूरि शिष्यैः श्रीअमरप्रभसूरिभिः ॥ छः ॥
( ३८१ )
सं० १३. फागुण सुबि ८ • श्रीशिवाल ज्ञातीय पितृ ठ० पाता श्रेयोर्थं सुत सेवाकेन श्रीपार्श्वनाथ विं कारितं प्रतिष्ठितं श्री चैत्र गच्छे श्रीमानदेवसूरिभिः
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
___ संवत् १३ () ३ वर्षे वैशाख सुदि ३ शुक्र श्री श्रीमाल ज्ञातीय व्य० खेतसिंह सुत साल्हाकेन श्रीआदिनाथ बिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीसूरिभिः ।।
(३८३) संवत् १३ ()६ वर्षे.............. ......... उदणा भार्या पूनिणि तत्पुत्र कुमारपालेन पित्रौ श्रेयसे श्रीमहावीर विध कारितं श्री श्रीचंद्रसूरीणामुपदेशेन
(३८४)
.......... ...... श्रेयसे श्रीवीर बिंब कारितं श्रीचंद्रसूरिणामुपदेशेन ॥ छ ।।
(३८५) संवत्"
............. दि ४ शुक्र पितृ आसल मातृ तिहुणादेवि तत्तपुत्र रेणात्म श्रेयोथं संभवनाथ प्रतिमा कारिता प्रति० थारापद्रीय गच्छे पूर्णचंद्रसूरिभिः प्रतिष्ठितमिति
( ३८६ ) सं० १४०० वर्षे ज्येष्ठ सु०५ ग्वाट वंशे सा० रतना भा० भरमी सुत धीणाकेन भा० धरमा वीसा भीमादि युतेन मातृ देला भा० देल्हणदे श्रेयोथं श्रीआदिनाथ बिबं कारितं प्रतिष्ठित तपा गच्छे श्री सोमसुंदरसूरिभिः
( ३८७ ) सं०............... मडाह . . . . . . . . . . . . . . . . ' पु० ... पराकेन श्रीआदिनाथ का० प्र० श्रीशांतिसूरिभिः।
( ३८८ )
'खराकेन श्रीअनंतनाथ का० प्र० श्रीशांतिसूरिभिः ।।
( ३८६ ) श्री श्रीअजितसिंहसूरिभिः
.................. तिष्ठिताच श्रीविजयचंद्रसूरिभिः
( ३६१ ) ................ का० प्र० श्री .... पा० श्रीदेषभद्रसूरिभिः
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४६
श्रीसर्वदेवसूरिभिः
सं० १ श्रीमुणिचंद्रसूरिभिः ॥
कारितं । प्रतिष्ठितं श्रीवीरसूरिभिः
श्रीचैत्र
कारितं प्र) देवचंद्रसूरिभिः
श्री"
सं०
सु० १ सोमे
श्रीमतिलकसूरिभिः
atarat जैन लेख संग्रह
( ३६२ )
गोसलेन पित्रो श्रेयसे वीर बिंबं का० प्र० मडा०
विषं कारितं प्र०
( ३६३ )
सिंघाभ्यां श्रीअजितनाथ बिंबं कारितं प्रति० ब्रह्माण गच्छे
( ३६४ )
( ३६५ )
६ प्राग्वाट व्य० नरसीह भार्या
भ्रातृ पातू श्रेयोर्थं श्रा० बील्हणेन बिंबं
( ३७ )
( ३६६ )
नायल गच्छे श० पद्यो० पितुः श्रेयोर्थ श्रीशांतिनाथ बि
५० वैशाख यदि २
ज्ञातीय 'पक्षीय श्रीजयप्रभसूरीणामुपदेशेन ॥ श्री ॥
( ३६८ )
ज्ञातीय गोहिल गोष्टिक थे० आका भा० आल्हणदे पुत्र हवराज
कारितं प्रतिष्ठितं
हानूजी
भार्या व पित्रोः श्रेयसे श्रीमुनिसुप्रतनाथ बिंबं कारितं प्र० श्रीमुनिप्रभसूरिभिः ॥ ( ३६६ )
श्रेयसे
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वैशाख सुदि २ शनौ श्रीकोरण्टक गच्छे श्रा० होसालिकै गा स्व श्रेयोर्थ श्रीशांति बिंबं कारितं प्र० श्रीसर्वदेव सूरिभिः
(800)
॥ संवत् १४०१ बर्षे चइत सुदि ७ बुधे वृहद्गच्छे
"नामनटके उप० टगउग ?
गोत्रे ॥ ममा भा० नाहना पु० खेता भा० खेतळदेन्या अभिनंदन कारितं प्र० श्रीधर्मचंद्रसूरिभिः ||
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बीकानेर जैम लेख संग्रह
( ४०१ )
सुराण
सं० १४०५ वर्षे वैशाख सुदि २ सोमे श्रीश्री० ज्ञातीय श्रे० सातसी भार्या लूणादे श्रेयोर्थं गच्छ बिंबं श्रीपार्श्वनाथ प्र० श्रीमलचंद्रसूरि शि० श्रीधनेश्वरसूरिभिः । ( ४०२ )
णदे पु० धरणिकेन पित्रोः श्रेयसे
सं० १४०५ वर्षे वैशाख
श्रीमहावीर विर्ब का० श्रीमाणिकसूरिभिः ।
( ४०३ )
सं० १४०५ वर्षे वैशाख सु० ३ सोमे श्रीब्रह्माण गच्छे श्रीमाल ज्ञातीय द्वोआ (2) वास्तव्य ० माला भार्या कोमल पुत्र मूंजाकेन पितृ मातृ श्रेयसे श्रीमहावीर बिंबं कारितं ।
४७
(808)
सं० १४०६ व० वैशाख वदि १ शनौ ऊ० ज्ञा० सा० तोला भा० सोंगारदे पु० जाणान भा० कस्मीरदे सहि पित्रोः श्रेय श्रीधर्म्मनाथ बिं० का० प्र० मड्डा० श्रीमुनिप्रभसूरिभिः ।
J
( ४०५ )
संवत् १४०६ वर्षे ज्येष्ठ वदि ६ रवौ उपकेश ज्ञा० दो साह भा० सिंगारदेव्या पुत्र साजणेन पितृ मातृ श्रेयोर्थं श्रीआदिनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीरामचंद्रसूरिभिः वृहद्गच्छीयै ॥ ( ४०६ )
सं० १४०६ वर्षे आषाढ़ सुदि ५ गुरौ प्राग्वाट ज्ञातीय पितृ आल्हा मातृ सूहव भ्रातृ काला श्रेयसे पनोपाकेन श्रीवासुपूज्य बिंबं कारितं ब्रह्माण गच्छे प्रतिष्ठितं श्रीबुद्धिसागरसूरिभिः ॥
(४०७ )
सं> १४०६ फागुन व० ११ गु० गुर्जर ज्ञातीय सा० देवधर पुत्र सा० तिहुणासूरा तिहुणा भार्या तिहुण श्री पु० भावड़ मातृ पितृ श्र० श्रीमहावीर बिंबं का० प्र० श्रीधर्मघोष श्रीज्ञानचंद्रसूरि शिष्यै श्रीसागर चंद्रसूरिभिः ||
( १०८ )
सं० १४०६ वर्ष फागुण ० ८ श्रीकोरंटक गच्छे श्रीनन्नाचार्य संताने श्रीनरसिंह भा० पाल्हणदे पुत्र माहन भार वस्तिणि सहितेन श्रीमहावीर बिंबं का० प्र० श्रीककसूरिभिः ।
( ४०६ )
सं० २४०६ फागु० सु० ११ गुरो स्व पित्रोः श्रेयसे श्रीनमिनाथ विनं कारितं प्रति श्रीकसूरिभिः ।
- गोत्रे सा० हेमा ( ? ) भा० हातू पुत्र तेजपालेन
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
(४१० ) सं० १४०६ फागुण सुदि ११ श्रीऊकेश ज्ञातीय छिपाड़ गोत्रीय सा० गयधर भा० लखुही पु० सा० जेसलेन पुत्र ऊधरादि युतेन स० पितुः श्रे० श्रीआदिनाथ विबं कारितं प्रति० श्रीसिद्धसूरि पट्टे श्रीककसूरिभिः ।।
(४११) सं० १४०८ वर्षे वैशाख सुदि ५ गुरौ श्रीनाणकीय गच्छे अंबिका गोत्रे श्रेष्टि नयणा भा० लीलू पुत्र पाताकेन पितृव्य मूलू निमित्त श्रीवासुपूज्य विबं कारितं प्र० श्रीधनेश्वरसूरिभिः
(४१२)
सं० १४०८ वैशाख सुदि ५ गुरौ उपकेश सा० कडूया का० मेहिणि पु० पेथाकेन पित्रोः श्रेयसे श्रीआदि बिबं का० प्र० श्रीसंघेन ॥छ ।।।
सं० १४०८ वैशाख सुदि ५ गुरौ श्रे अभयसीह भा० गउरदे सुत शाका भा० लाडी भरी श्रेयोथं श्रीपार्श्वनाथ विवं कारितं श्रोसोमदेवसूरीणामुपदेशे०
( ४१४ ) सं० १४०८ वैशाख सुदि ५ गुरौ प्राग्वाट ज्ञातीय श्रे सोभनपाल भार्या वाल्हू सुत आसधरेण भ्रातृ आल्हणसीह श्रेयसे श्रीआदिनाथ बिंब कारितं प्र० पृहद्गच्छीय श्रीसर्वदेवसूरिभिः
(४१५) सं० १४०८ वैशाख सुदि ५ गुरौ ओसवाल व्य० कर्मसीह भार्या नाठी पु० मोढनराभ्यां पितृ पितृव्य भ्रातृ निमित्त श्रीपार्श्वनाथ बिंबं का० प्र० ब्रह्माणीय श्रीविजयसेणसूरि पट्टे श्रीरत्नाकर सूरिभिः
( ४१६ ) सं० १४०८ वर्षे वैशाख सुदि ५ गुरु श्रीमाल जातीय ठ० वरसिंह सूरा चूहथ टाहा भ्रातृ थिरपाल श्रेयो) सु ....... साहणेन पंचतीथीं श्रीवासुपूज्य बियं का० प्र० श्रीनागेन्द्र गच्छे श्री श्रीनागेन्द्रसूरि शिष्य गुणाकरसूरिभिः
(४१७ ) सं० १४०८ वैशाख सुदि ५ उपकेश साधु पैथड़ भार्या वील्हू सुत महं० वाहदेन पूर्वज निमित्त श्रीपार्श्वनाथ बिवं कारितं प्रतिष्ठितं खरतर गच्छे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः ।।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
( ४१८ )
संवत् १४०८ वैशाख सुदि ५ श्रीनाणकीय गच्छे । सल गोत्रे श्रे० भीमा भा० राहू पु० सांगाकेन पु० कर्मसीह महणसीह नि० श्रीआदिनाथ बिंबं का० प्र० श्रीधनेश्वरसूरिभिः
( ४१६ )
सं० १४०८ वैशाख सुदि ५ प्रा० अहरपाल भार्या सीतादे पु० कालाकेन पित्रोः श्रेयसे श्री प्रभु बिवं कारितं प्र० श्रीअभयचंद्रसूरि
( ४२० )
सं० १४०८ ० ज्ये०सु० ५ उपकेश पा । रगहटपाल सुतेन साटाणेन पित्रोः श्रे० श्रीआदिनाथ बिंबं का० प्र०वृ० श्रीधर्मतिलकसूरिभिः
( ४२१ )
१४.६ वैशाख सुदि १० सोमे श्रीनाणकीय गच्छे श्रे० भद्रा भार्या सामिणि स्वपित्रो श्रेयसे श्रीचंद्रप्रभ बिबं का० प्र० श्रीधनेश्वर ( सूरि ) ।
४६
पुत्र
खीमा
( ४२२ )
सं० १४०६ ज्येष्ट सुदि १० सोमे श्रे० नरपाल भा० नामल पुत्र रिणसिंहेन श्रीशांतिनाथ बिंबं कारितं प्र० अत्रवीय (१) श्रीवयरसेणसूरिभिः ॥
( ४२३ )
स० १४०६ बर्षे फागुण वदि ५ सोमे उप० तेलहर गोत्रे सं० रतन भा० रतनादे पु० वीरम भा० हासलदे आत्म श्रे० श्रीविमलनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीशांतिसूरिभिः ज्ञानकीय गच्छे । ( ४२४ )
सं० १४०६ फागु० सु० ११ गुरौ श्रीपल्लिकीय गच्छे उपकेश ज्ञा॰ सा० बीरिम भा० विजयसिरि पु० सामलसिंहाभ्यां पि० श्रे० श्रीआदिनाथ बिंबं का० प्र० श्रीअभयदेवसूरिभिः ॥
( ४२५ )
सं.) १४११ ज्ये० सु० १३ गुरौ व्यवसा श्रेयसे श्रीमहावीर विच का० श्रीमाणिक्यसूरिणामुपदेशेन ।
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'भार्या वइजलदे पुत्र कर्मसीहेन पित्रो
(४२६)
सं० १४११ वर्षे वैशाख सुदि ३ प्राबाट ज्ञातीय श्रे० यूह भा० रामी पुत्र संगाकेन पितृ मातृ श्रेयसे श्रीआदिनाथ बिंबं कारितं प्र० श्रीमणिचंद्रसूरीणामुपदेशेन ॥
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५०
बीकानेर जैन लेख संग्रह
( ४२७ )
सं० १४११ ज्येष्ट सुदि. १२ श्रीकोरंटक ग । मोहण भार्या मोखलदे पुत्र मालाकेन पितृव्य जाहण नयणा सहजा माला भा० चांपल निमित्त श्रीशांति बिंबं कारितं प्रति० श्रीककसूरिभिः || ( ४२८ )
लजा सुत मोखा भार्या बलमलदे श्र०
सं० १४११ वर्षे ज्येष्ट सुदि १२ शनौ सामकेन श्रीसुमतिनाथ बिंबं का० प्र० श्रीसूरिभिः ।
( ४२६ )
सं० १४११ आसा० सु० ३ स० उप० श्रे० गांगा भार्या लींबी पुत्र लूणा ललीबाभ्यां पितृ मातृ श्रेयसे श्रीशांतिनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीमतिलकसूरिभिः ।
सं०. १४१२ वर्षे ज्येष्ट सुदि १३ श्रीपद्मप्रभ का० प्रति० श्रीसूरिभिः ।
( ४३० )
महं० मेहा भा० हीमादेवि पुत्र झड़मलेन पित्रोः श्रेयसे
( ४३१ )
सं० १४१३ वर्षे प्राग्वाद ज्ञा० सा० तेजा भा० देवल पु० साल्हउ भा० लावी पु० सूड़ा भा० साजू पु० निमित्त श्रीमहावीर का० प्र० मडाह० श्रीपासदेवसूरिभिः
( ४३२ )
संवत् १४१३ वर्षे ज्येष्ठ वदि ७ शुक्र श्रीडच्छत्र्यवाल वंशे सा० पाल्हा पौत्र २ सा० हिमपाला त्मजेन व्यro क्षमसिंह पुत्री हेमादे कुक्षि संभवेन से० डूंगरसिंहानुजेन सं डराकेन भ्रातृ जस० हीरा जयसिंह गु (? ) तेन स्वपितृ गगजा पितृ हिमपाल मातृ हेमादे श्रेयोर्थं श्रीशांतिनाथ चतुविंशतिपटा कारि० प्रति श्रीधर्मघोष गच्छे श्रीगुणभद्रसूरि शि० सर्वाणंदसूरिभिः ॥
( ४३३ )
सं० १४१४ वैशाख सुदि १० श्रीकोरंट गच्छे श्रीनन्नाचार्य संताने बाराड़ी ग्राम वास्तव्य श्रा० धारसिंह भा० ताल्ह पु० वीकम भा० मडणी सुतरूपा सहितेन पितृ मातृ श्रेयसे श्रीअजितस्वामि बिंबं का० प्र० श्रीककसूरिभिः ।
( ४३४ )
सं० १४१५ वर्षे ज्येष्ठ वदि १३ रवौ उपकेश ज्ञा० अरसी भा० रूपिणी पु० विरुआकेन पित्रोः श्रेयसे श्रीशांतिबिंबं का० प्र० मडाहड़ीय गच्छे श्री मानदेवसूरिभिः ।।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
सं० १४१५ वर्षे जेठ बदि १३ वाम (?) गोत्रे सा० विल्हा हलाभ्यां पितुर्महिराजस्य श्रेयसे विध का० प्र० मलभारी श्रीराजशेखरसूरिभिः
सं० १४१५ आसा० ब० १३ जाइलवाल गोत्रे सा० सुरा पु० सा० नीहा भार्या माणिक पुत्र राजादि युतेन स्य श्रेयसे चंद्रप्रभ बिंब का० प्र० श्रीधर्मसूरि पट्ट श्रीसर्वाणंदसूरिभिः॥
(४३७) सं० १४१७ भ्येष्ठ सु० ६ शुक्र श्रीसंडेर गच्छे ओसवाल सा............ पु० बस्ताफेन पित्रोः श्रे श्रीवासुपूज्मानां का० प्रतिष्ठितं श्रोईश्वरसूरिभिः ।।
(४३८) सं० १४१७ ज्येष्ठ सु० ६ उसवाल व्य० सोनपाल भा० धरणू पु० सीहड़ वाहड़ सागण पितामह .............श्रीआदिनाथ बिंबं का० प्र० वृहदूगच्छे ब्रह्माणीय श्रीविजयसेनसूरि पट्टे श्रीरत्नाकरसूरिभिः
(४३६) सं० १४१८ वैशाख सु० ३ बुधे श्रीमाल ज्ञा० पाविला वास्तव्य व्य० साहा भा० रालभद सुत सांगा भ्रातृ वला सुत मेहा कान्दा श्रे० व्य० वयजाकेन श्रीशांतिनाथ विंबं का० प्र० श्रीरदयाणंदसूरीणामुपदेशन
सं० १४१८ बैशाख सु० ३ खटेड गो० महं सामंत भा० सीतादे पु० महं भामा तेजाभ्यां भ्रा० मेघा श्रे० श्री आ० प्र० श्रीज्ञानचंद्रसूरि शिष्य श्रीसागरचंद्रसूरिभिः ।। शुभंभवतुः ।।
(४४१ ) ___सं० १४२० वर्षे वैशाख सु० १० शुक्र प्रा० व्य० ममणा भार्या नागल सुत वयरसी निम भा० धरणाकेन श्रीपर्श्वनाथ बिंब कारितं प्र झेरंडीयक श्रीविजयचंद्रसूरिभिः।
(४४२) सं० १४२० वर्षे वैशाख सुदि १० शुक्र प्राग्वाट ज्ञातीय श्रे० कीका भा० कोल्हणदे पु० कर्मसीह पूना मेहायः पित्रोः श्रेयसे श्रीशांतिनाथ बिंब का० प्र० रत्नपुरीय श्रीधर्मघोषसूरिभिः ॥ १
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५
बीकानेर जैन लेख संमह
( ४४३ )
सं० १४२० वैशाख सु० १० श्रीश्रीमाल ज्ञा पितृव्य श्रेष्टि मना श्रेयसे श्रेष्ट फउला माणि काभ्यां श्री आदिनाथ निबं कारितं प्रति० पिप्पलाचार्य श्रीगुणसमुद्रसूरिभिः ||
( ४४४ )
सं० १४२० वर्षे वैशास्त्र सु० १० शुक्र प्रा० व्य० नरपाल भा० वील्हू पु० तिहुणाकेन पितृ श्रेयसे श्रीशांतिनाथ बिर्ब का० प्र० श्रीरत्नप्रभसूरि उप०
( ४४५ )
सं. १३२० वर्षे ज्येष्ठ सुदि १५ शुक्र श्रीउपकेशगच्छे लिगा गोत्रे सा० सोढा सुत सा० कडुयाकेन पितृ श्रेयोर्थं श्रीपार्श्वनाथ बिंबं कारितं प्र० श्रीककुदाचार्य संताने श्रीदेवगुप्तसूरिभिः ।
( ४४६ )
सं० १४२१ वर्षे माघ वदि ११ सोमे प्राग्वाट ज्ञा० व्य० पासचंद भार्या आल्हणदे सु० गांगाकेन मातृ पितृ श्रेयोर्थ श्रीआदिनाथ बिंबं श्रीअभयतिलकसूरीणा उ० प्र० श्रीसूरिभिः ।
( ४४७ )
सं० १४२२ वैशाख सुदि ५ गुरौ श्रीमाल श्रे० सलखा भार्या सलखणदे सुत भीमासोमेकीराणा प्रभृति श्रेयसे सु० जोलाकेन कारि० श्रीसत्यपुरीय वृहद्गच्छे श्रीअमरचंद्रसूरिभिः !!
( ४४८ )
सं० १४२२ वैशाख सु० ११ श्रीकोरंटक 'इलाशाखायां व्य० वीकम भार्या भावल पुत्र छाड़ा भा० लूणादे सहितेन 'श्रियोर्थं श्रीमहाबीर बिंबं का० प्र० वसूरि ( ? ) ( ४४६ )
सं० १४२२ वैशाख सुदि १२ बुधे उप० रोटागण व्यं० कसाधु रूपा भा० रूपादे पुत्र तोलाकेन पित्रोः श्रेयसे श्रीशांतिनाथ बिंबं कारितं प्रति श्रीचैत्रगच्छे श्रीमुनिरत्नसूरिभिः ।
( ४५० )
सं० १४२२ वर्षे वैशाख सुदि १२ बुधे श्रीनाणकीय गच्छे ओस० व्य० नरपाल भ्रातृ नरा भा० नयणादे पुत्र पूना जेसाभ्यां पितुः पितृव्य भ्रातृ सर्व निमित्त श्रीविमलनाथ बिंबं पंच० का० प्र० श्रीधनेश्वरसूरिभिः ।
( ४५१ )
सं० १४२२ वैशाख सुदि १२ भावड़ारगच्छे श्रीमाल ज्ञा० व्य० तेजा भा० तेजलदे पु० पासड़न पित्रोः भ्रातृ सहजपालक्ष्य च श्रेयसे श्रीविमलनाथ बिंबं का० प्र० श्रीजिनदेवसूरिभिः ।
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AmV.
॥ सं० १ (४)२३ व० माह सुदि ८ रवौ उप० नाहर गोत्रे सा० उखमा भा० लखमादे पु० देवा सहिया धामा पितृ मातृ पुण्यार्थ आत्म श्रेयसे श्रीशीतलनाथ विवं कारापितं प्रतिष्ठितं श्रीधर्मघोष गच्छे श्रीमहेन्द्रसूरि पट्टे श्रीशालिभद्रसूरिभिः
(४५३ ) सं० १४२३ वर्षे फागुण सुदि : सोमे प्रा० व्य० वीकम भार्या बील्हणदे भ्रा० मूलउ सीहोका पितृ मातृ पोत्राकेन पूनाकेन कारापितं श्रीशांतिनाथ विबं श्रीदेवेन्द्रसूरीणामुपदेशेन ।
(४५४) सं० १४२३ वर्षे फागुण सु० ८ सोमे प्राग्वाट जातीय व्य० जसा भार्या रमादे पु० आसपालेन पितृ निमित्त बिंब का० प्र० श्रीरत्नप्रभसूरिभिः
(४५५) सं० १४२३ फागुण सु० ६ सोम उ० सो० महण नयणल पु० भीमाकेन मातृ निमित्त श्रीपार्श्व बिंब का० श्री० प्र० नाण० श्रीधनेश्वरसूरिभिः।
(४५६) सं० १४२३ वर्षे फागु० सु० ६ श्रीमाल ज्ञा० पितृ राणा मातृ अपर भ्रातृ काला भा० देल्हणदे युतेन श्रेयोथं ददाकेन श्रीमहावीर पंचतीर्थी का० श्रीदेवचंद्रसूरीणामुपदेशेन ।
सं० १४२३ वर्षे फागुण सुदि८ सोमे सके० झासी० ध्य० विजयड़ भा० वइजलदे पु० थेरा खेता निमित्त सुत जाणाकेन श्रीपार्श्व पंचतीर्थी कारापिता श्रीजिनचंद्रसूरीणामुपदेशेन ॥
(४५८ ) ___ सं० १४२३ फागु० सु०६ प्राग्वाट पितृव्य उला भा० धांधलदे तथा पितृ अभयसी मा० रूपल अमी'' श्रे० सुत हीरायाकेन श्रीशांतिनाथ का० प्र० कूचदे (१) श्रीजिनदेवसूरिभिः॥
सं० १४२३ वर्षे फागुन सुदि सोमे प्रा० शा० श्रे० पाल्हा भा० पालड़े श्रेयोर्थ सुत कडुयाकेन श्रीपार्श्वनाथ बिंबं कारितं पू० श्रीनेमचंद्रसूरि पट्टे श्रीदेवचंद्रसूरीणामुपदेशेन ।
सं० १४२३ फा० सु० ८ सोमे उपकेश ज्ञातीय व्यव० देपाल भा० देल्हणदे पुत्र मेघा तेजा सुतेन कोचरेण पितामह पितृव्य श्रेयसे श्रीशांतिनाथ विषं कारित प्र० देवाचार्यः ॥ श्रीहरिदेवसूरि शिष्यैः श्रीवयरसेनसूरिभिः
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પૂર
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( ४६१ )
• सं० १४२३ ब० फागुण सुदि ६ सो उप० व्यव० वानर पुत्र माजू सकुटुंबेन पितृ महि० पाल मां सोनानां निमित्त श्रीशांतिनाथ बिंबं का० प्र० बोकड़ीवालगच्छे श्रीधर्मदेव सूरिभिः ।
( ४६२ )
संवत् १४२३ फागुण सुदि १ उपकेश ज्ञाति व्य० मूंजाल भार्या माल्हणदे पुत्र पदमेन श्रीषम बिंबं कारितं प्रति० मड्डाहड़ीय गच्छे श्रीउदयप्रभसूरिभिः
( ४६३ )
संवत् १४२४ वर्षे आषाढ़ सुदि ५ गुरौ ऊकेश वंशे श्रे० वीरा भार्या टडळसिरि पुत्र चांदण मांडणाभ्यां मातृ श्रेयोर्थं श्रीपद्मप्रभ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं वृहद्गच्छे श्रीमहेन्द्रसूरिभिः
( ४६४ )
सं० १४२४ आषाढ सु० ६ गुरौ प्रा० ज्ञा० व्य० नरपाल भा० नालदे पुत्र भोजाकेन पु० व्य० रतन निमित्त श्रीपार्श्वनाथ बिंबं कारितं सार्धपूर्णि० श्रीधर्मचंद्रसूरि पट्टे श्रीधर्मतिकलसूरीणा मुपदेशेन ॥
( ४६५ )
०१४ (१५) २४ वर्षे २ दिने क० राखेचा गोत्रे सा० अका सुत ना० गोदा श्राबण श्रीपार्श्व बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनचंद्रसूरिभिः
( ४६६ )
सं० १४२४ आशा सु० ६ गु० प्राग्वाट ज्ञातीय श्रे० सजनसीह भार्या गउरा पुत्र काल्ह वील्ह - भार्याला िपुत्र वा श्रेयसे श्रीवीर बिंबं का० प्र० श्रीविजयभद्रसूरिभिः ॥
( ४६७ )
सं० १४२४ आसा० सुदि ६ उपके० ज्ञा० व्य० सलखण भा० लाखणदे पुत्र मोकल भादाभ्यां पित्रोः श्रेयसे श्रीआदिनाथ बिंबं कारि० प्र० रत्नपुरीय श्रीधर्मघोषसूरिभिः ||
( ४६८ )
सं० १४२४ आषाढ सु० ६ गुरौ ऊकेश वंशे व्यव जगसीह भा० देवलदे पुत्रपाता भार्या atra सकुटुंबेन निज मातृ पुण्यार्थं श्रीपद्मप्रभ बिंबं का० प्र० वृहद्गच्छे श्री महेन्द्रसूरिभिः
( ४६६ )
सं० १४२४ आषा० सु० ६ गु० श्रीश्रीमाल ज्ञा० ० जसकुमार भार्या लाखणड़े पुत्र सामन पित्रोः श्रेयसे श्रीशांति बिंबं का० प्र० नागेन्द्र गच्छे श्रीरत्नाकरसूरिभिः
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
(४७० ) सं० १४२४ आषा० सु० ६ गु० श्रीगूर्जर ज्ञा० पितृ महं छाडा मातृ ताल्हणदे श्रेयसे श्रीधादिनाथ विमं महं० भीमाकेन का० प्रति० श्रीचै० गच्छे श्रीधर्मदेवसूरिभिः
(४७१ ) सं० १४२५ वर्षे वैशाख सुदि १० भोमे श्रीश्रीवलगच्छे श्रीश्रीमाल श्रे नागपाल भा० नलदे श्रे० वानर भार्या संभल सुत नयणा श्रेयसे वे थांगू श्रा० श्रीआदिनाथ पंचतीर्थी कारिता प्र. सूरिभिः॥
सं० १४२५ वर्षे वैशाख सु० उपकेश ज्ञातीय साहु गाटा भार्या चाहिणदेवि पुत्र इलाकेन मातृ-पित्रोरात्मन श्रेयसे श्रीपार्श्वनाथ विंबं का० प्र० छो ( बो ? ) कड़ावाल गच्छे श्रीधर्मदेवसूरिभिः
(४७३ ) सं० १४२५ वर्षे वैशाख सु० ११ शु० श्रीमहावीर बिंब पिता मं० झाझण माता धाधलदे पुण्यार्थ कारिता महं वेराके श्री खरतर गच्छीय श्रीजिनचंद्रसूरि शिष्यैः श्रीजिनेश्वरसूरिभिः प्रतिष्ठितं ।।
(४७४ ) संवत् १४२५ बै० सु० ११ शु० श्रीपल्लीवाल गच्छे उपकेश ज्ञा० सा। कढरा भार्या रूदौ पुत्र भारस हेत्र श्रीआदिनाथ कारितः प्र० श्रीआमदेवसूरिभिः ।।
सं० १४२६ वर्षे वैशाख सुदि १० रवौ श्रीब्रह्माण गच्छे श्रीमाल झातीय पितृव्य रणसी तद् भार्या रणादे श्रेयसे भ्रातृव्य धांगाकेन श्रीपार्श्वनाथ बिंबं का०प्र० श्रीबुद्धिसागरसूरिभिः।
(४७६ ) संवत् १४२६ वर्षे द्वितीय वैशाख सु० सोमे श्रीनाणकीय आल्हा भार्या नागल पुत्र उतमसीहेन पित्रोः श्रे० श्रीपार्श्वनाथ बि० का० प्र० श्रीधनेश्वरसूरिभिः
(४७७ ) ___ सं० १४२६ वर्षे द्वि० वैशाख सुदि हरवौ उसवाल ज्ञा० ऋ० झड़सिल भा० झांसू पुत्र कछुआ भा० तामादे पुत्र हेमाकेन आत्म श्रेयसे श्रीशांतिनाथ बिंब का० प्र० श्रीब्राह्माणीय श्रीविजयसेनहरि शिष्वैः श्रीरनाकरसूरिभिः ।।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
(४७८) सं० १४२६ द्वि० वै० सुदि १० रखो श्रीज्ञानकीय गच्छे व्य० उधरण भा० रतनिणि पुत्र पूनसीहेन भा० कर्मसी मदन जगसी निमित्त श्रीसुविधि बिंबं का० प्र० श्रीधनेश्वरसूरिभिः॥
(४७६) ____ सं० १४२६ वैशाख सुदि १० रवि उसवाल ज्ञातीय व्यव रामसीह सा० खीमा भा० खेतलदे पु० पंचायण सहितेन पित्रोः श्रेयसे श्रीशांतिनाथ बिंबं का० प्रतिष्टितं श्रीसूरिभिः ।
(४८०) सं० १४२६ वर्षे वैशाख सुदि १० (५ १) गुरौ प्रा० व्यव० सुहड़सीह भा० रइणादे पुत्र मइणीपति बीकलम अमरा आ० श्रीशांति बिंबं श्रीपासदेवसूरि ।
(४८१ ) सं० १४२६ वर्षे माघ सुदि श्रीमाल झा० पितृ पितृव्य मून्नं पितृ मोकल पितृव्य सरवण करमण भ्रातृ गजा श्रयसे हापाकेन श्रीशांतिनाथ पंचतीर्थी का० प्र० पिप्पलके श्रीरत्नप्रभसूरि शिष्य श्रीगुणसमुद्र (सुंदर ?) सूरिभिः ।
(४८२) ६० ॥ संवत् १४२७ वर्ष ज्येष्ठ सुदि २१ (१११) सोमवारे श्रीपार्श्वनाथ देव बिंबं श्रे राणदेव पुत्र श्रे...... डउ श्रे० मूलराज सुश्रावकेण कारिता प्रतिष्ठिता श्रीखरतर गच्छे श्रीजिन कुशलसूरि शिष्य श्रीजिनोदयसूरिभिः ।।
(४८३) सं० १४२७ ज्येष्ठ सुदि १५ शुक्र श्रीभावडार गच्छे उपकेश झा० श्रे० रनु पुत्रेण हीराकेन भ्रात कालू सा० कुंरपाल नरपाल श्रीकुन्युनाथ पंचतीर्थी का० प्र० श्रीजिनदेवसूरिभिः
(४८४) सं० १४२७ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १५ शुक्र श्रीउपकेश गच्छे लिगा गोत्रे सा० सोढा सुत कलुआफेन पितुः श्रेयोर्थ श्रीपार्श्वनाथ श्रीककुदाचार्य संताने श्रीदेवगुप्तसूरिभिः ॥
(४८५) सं० १४२८ वैशाख वदि २ सोमे प्रा० शा० व्यव० पूनणल भार्या मटू पुत्र देल्हाकेन पितृ मातृ पितृव्य राजा तेजा श्रेयसे श्रीपार्श्व बिंबं का० साधु पू० श्रीधर्मतिलकसूरीणामुपदेशेन ।
(४८६) __ संवत् १४२८ वर्षे मागसर सुदि १५ स्खू प्राग्बाट झातीय व्य रूपा भार्या नीमलदेनमत् पुत्र गदा भार्वा देवलदे श्रीशांतिनाथ विवं कारिवं प्रतिष्ठितं भटारक श्रीजयाणवसूरिभिः
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
( ४८७ )
सं० १४२८ वैशाख बदि १ सोमे श्रीमाल श्रे० पाल्हू भार्या पदमलदे सु० आसा जसा नरपाल श्रेयोर्थं मंडलकेन श्री चंद्रप्रभ पंचतीर्थी कारितं हर्षातिलक (? देव ) सूरिणा मुपदेशेन ।
५७
( ४८८ )
सं० १४२८ बैशाख सुदि ३ बुधे श्रीश्रीमालट शालिभद्र सुत लखमसी श्रेयसे श्रीचंद्रप्रभ बिं कारितं मोका नरबराण श्रेयसे
( ४८६ )
सं० १४२८ बर्षे ज्ये० वदि १ शुक्रे श्रीनाणकीच गच्छे श्रे० कुंरसी भार्या चत्र पुत्र धणपालेन पित्रोः श्रेयसे श्रीपार्श्व बिंबं का० प्र० श्रीधनेश्वरसूरिभिः ॥ छः ॥
( ४६० )
सं० १४२८ पोष यदि ७ रवौ श्रीकोरंट गच्छे श्रीनन्नाचार्य संताने उपकेश ज्ञा० मं० देवसींह भा० वेल्हणदे पु० पिंचा भा० लखमादे पु० लांपा सहितेन पितृ मातृ श्रेयसे श्रीवासुपूज्य पंचतीर्थी aro प्रo श्रीककसूरिभिः ॥
( ४६१ )
सं० १४२६ माह वदि ७ सोमे श्रीमाल व्यव० मालदेव भा० माधलदे श्रेयसे सु० वेरियान श्री वासुपूज्यः कारितः प्र० त्रिभवि० श्रीधर्म तिलकसूरिभिः
( ४६२ )
सं० १४२६ वर्षे माघ वदि ७ सोमे श्रीश्रीमाल ज्ञातीय पितामह कांऊण भार्या मालू 'जाल्हणदे ' वदे पितृ - श्रेयसे श्रीसुमतिनाथ बिंबं कारितं श्रीपूर्णिमा पक्षे श्रीधर्मतिलकसूरीणामुपदेशेन प्रतिष्ठितं ।
( ४६३ )
सं० १४२६ माह यदि ७ सोमे ओसवाल ज्ञा० व्यव० कलुआ भार्या ठाणी पुत्र कुंवरसी गड़ाभ्यां सुतेन डूंगरेण भा० देल्हणदे युतेन श्रीशांतिनाथ का० प्र० ब्रह्माण श्रीविजयसेनसूरि शि० श्रीरत्नाकरसूरिभिः ॥
( ४६४ )
सं० १४३० वर्षे वैशाख वदि ११ सोमे प्रा० मंत्रि वरसिंह भा० तेजलदे पुत्र मराकेन पितामह सखा पूर्वज निमि, श्रीआदिनाथ का० प्र
श्रीसोमं चंद्रसूरिभिः ।
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धीकानेर जैन लेख संग्रह
( ४६५ )
सं० १४३० वर्षे माह वदि २ सोमे यइजा भार्या वइजलदे पुत्र नींयाकेन भा० मीहीमादेसहितेन श्रीमहावीर बिबं का० प्र० ब्रह्माणीय श्रीरत्नाकरसूरिभिः ।
( ४६६ ) सं० १४३० वर्षे फा० सु० १० नाहर गोत्रे सा० थेहू पुत्र सा० महणसीह पुत्र सा० ईसर सा० भोपति भा० धानिणि मेहिणि शे० पंचतीर्थी कारिता प्रति० श्रीधर्मघोषगच्छे ।। श्रीसागरचंद्रसूरिभिः॥
(४६७) सं० १४३२ वर्षे वैशाख वदि ५ रवौ प्राग्वा० ज्ञा० व्यव० रिणमल पुत्र भा० राजलदे पुत्र गोयन्द भा सुदरी सहितेन श्रीश्रीकुंथुनाथ बिबं कारि० पूर्णिमापक्षे द्विती० कच्छोलीवाल गच्छे भ० श्रीविजयप्रभसुरीणामुपदेशेन ॥ श्री॥
(४६८) सं १४३२ वर्षे द्वि० वैशाख वदि ११ सोमे उएस मं० सोमपाल भा० सुहड़ादेवि पु० जयतसीहेन पित्रोः श्रेयसे पार्श्वनाथ बिंबं का० प्र० ब्रह्माणीय श्रीहेमतिलकसूरिभिः ।
(४६) ___सं० १४३२ वर्षे वैशाख सुदि ६ शनौ प्राग्वाट ज्ञा० व्य० गेहा भार्या देवलदे पुत्र कीताकेन पितृ मातृ श्रेयसे श्रीमहावीर बिंबं कारिता साधुपूर्णिमा प० श्रीधर्मचंद्रसूरि पट्टे श्रीधर्मतिलकसूरीणा मुपदेशेन ।
(५०० ) सं० १४३२ (?) २० माह सु०८ रवौ उप० नाहर गोत्रे सा............ लखमादे पुत्र दवा महिया धामा पितृ मातृ पुण्यार्थ आत्म श्रेयसे श्रीशीतलनाथ बिंबं कारापितं प्रतिष्ठितं श्रीधर्म (घो) षगच्छे श्रीमहेन्द्रसूरि पट्टे श्रीशालिभद्रसूरिभिः ।
(५०१ ) सं० १४३२ वर्षे फागुण सुदि २ श्रीसुचिं ....... ... ... ... ...... सीहेन पितृ पितृव्य सा० झांझण श्रेयसे श्रीशांतिनाथ चतुर्विंशति पट्टः कारितः प्र० श्रीककुदाचार्य संताने श्रीदेवगुप्तसूरिभिः ।।
(५०२) सं० १४३२ फागु० सु० ३ शुक्र उ० डांगी गोने व्य० छांगा भा० वलालदे पु० चहुताकेन पितृम्य पूना श्रेयसे श्रीमहावीर बिंबं कारितं श्रीसिद्धाचार्य संताने प्र० श्रीसिद्धसूरिभिः
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
( ५०३ )
सं० १४३३ चै० > सु० १० सोमे श्रीषंडेरकीय गच्छे श्रीयशोभद्रसूरि संताने सा० पद्म भा० हांसी पु० हापा महणा राइधरकेन पितृ श्रेयसे श्रीधर्मनाथ बिंबं कारितं प्र० श्रीशालिसूरिभिः ||
( ५०४ )
सं० १४३३ वर्षे वैशाख सुदि ६ शनौ प्राग्वा० व्य० वीरा पुत्र सेगा भार्या कसमोरदे पुत्र गड़ा भार्या पूमी सहितेन श्रीपद्मप्रभ बिवं कारा० प्रतिष्ठितं श्रीसूरिभिः
५६
( ५०५ )
सं० १४३३ वर्षे वैशाख सुदि ६ शनौ प्राग्वाट ज्ञा० व्यव । गेहा भार्या देवलदे पुत्र कीसा केन पितृ मातृ श्रेयसे श्रीमहावीर बिंबं कारितं साधु पूर्णिमा प० श्रीधर्मचंद्रसूरि पट्ट श्रीधर्मतिलक सूरिणा मुपदेशेन ||
( ५०६ )
सं० १४३३ वर्षे वैशाख सुदि ६ शनौ प्रा० ज्ञा० मालाकेन मातृल निमित्त श्रीवासुपूज्य बिंबं कारितं पूर्णिमा प० श्रीउदयप्रभसूरिणा मुपदेशेन ॥ ( ५०७ )
संवत् १४३३ वर्षे फागुण दि १० व्य० सिरपाल भा०मार्क पि० ना० श्र० श्रीमहावीर बिंबं प्र० श्रीसोमदेवसूरिभिः
ल्हाराभ्या
पुरसाहा बाहड़ पु०
( ५०८ )
संवत् १४३३ वर्षे फागुण सुदि १३ शनौ प्रा० व्यव० भरणसह भार्या वीकलदे पु० मोपा मा० सुहड़ादे पुत्र राटावरन (?) मातृ पित्रो श्रेयसे श्रीमहावीर चतुर्विंशति जिणालय का० प्र० श्रीकमलाकर सूरिभिः ।
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( ५०
सं० १४३४ व० वैशाख वदि २ बुधे ऊकेश ज्ञा० श्रेष्ठि तिहुणा पु० मामट भा० मुक्ती पु० जाणा सहितेन पित्रो श्रेयसे श्रीसंभव बिं० का प्र० श्रीबृहद्गच्छीय श्रीमहेन्द्रसूरि पट्टे श्रीकमलचंद्रसूरिभिः ॥
( ५१० )
सं० १४३४ व० वैशाख व० २ बुधे प्राग्वाट ज्ञा० दो० झांझा भार्या हीमादे पु० थेराकेन पिए भ्रातृ श्रेयो० श्रीसंभवनाथ पंचती० का० प्र० श्रीबृहद्० श्रीमहेन्द्रसूरि पट्टे श्रीकमलचंद्रसूरिभिः ॥
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
( ५११ )
सं० १४३४ वैशाख व० २ बुध प० ज्ञा० पितृकाज उ मातृ पूजी श्रेयसे सुतपासणेन पित्रोः श्रेयसे श्रीआदिनाथ बिंबं कारितं प्र० हा (गु ? ) दाऊ ग० श्रीसिरचंद्रसूरिभिः ॥
( ५१२ )
सं० १४३४ (१) वर्षे वैशाख वदि ३ (१२) बुधे श्रीनाणकीय गच्छे ठकुर गोत्रे श्रे० ठाला भा० कुंना पु० खेतान मातृ पितृ श्रेयसे श्रीचंद्रप्रभस्वामि बिंबं का० प्र० श्रीधनेश्वरसूरिभिः ||
( ५१३ )
सं० १४३४ व० वै० व० ११ भौमे प्रा० व्य० सोहड़ भा० कइअड़ पु० जाणाकेन स० पू० त० पित्रो श्रे० श्रीपार्श्वनाथ मुख्य पंचतीर्थी क० सा० पू० ग० श्रीधर्मतिलकसुरीणामुपदेशेन ||
( ५१४ )
सं० १४३४ ज्येष्ठ मासे २ दिने श्रीपार्श्व बिंबं उकेशवंशे माल्ह शाखायां सा० गोपाल पुत्र सा० देवराज भार्यया साहु० कीकी श्राविकया स्वस्य पुण्यार्थं कारितं प्रति० श्रीखरतर गच्छे श्रीजिनराजसूरिभिः ।
( ५१५ )
सं० १४३४ (१)
"भ्यां श्रीशांतिनाथ बिं० का ० प्र० श्रीधर्मघोष श्रीसागर चंद्रसूरिभिः ।
"मालविक०
सं० १४३५ माघ वदि १२ सोमे भा० मेघादे भार्या युतेन -सी युतेन
( ५१६ )
सं० १४३५ वर्षे माघ वदि १३ सोमे प्राग्वाट झा० ० रतनसी भा० ऊनादे पितृव्य धारसी श्रेयोर्थं व्य० मेघान श्रीपार्श्वनाथ पंचतीर्थी कारितं श्रीचैत्रगच्छे प्र० श्रीगुणदेवसूरिभिः ।
'ह पुत्र सा०
( ५१७ )
उपकेश ज्ञातीय व्य० रत्नसीह भा० रत्नादे सु० मेघान श्रीऋषभः कारितः प्र० रत्नपुरी० श्रीधर्म्मघोषसूरिभिः ।
( ५१८ )
सं० १४३५ माघ वदि १२ सोमे उच्छत्रवाल ज्ञातीय सा० कुसला पुत्र छीछा भार्यया श्राविका मृल्हीनाम्ना भत्तुः श्रेयोर्थ श्रीवासुपूज्य बिंबं का० प्र० धर्मघोष० श्रीवीरभद्रसूरिभिः ।
( ५१६ )
संवत् १४३५ वर्षे फागुण यदि १२ सोमे उसवाल ज्ञातीय सा० तेजा भार्या तारादे पुत्राभ्यां सा० मोढामोकलाभ्यां पित्रोः पितृव्य श्रेयोधं श्रीविमलनाथ पंचतीर्थी का० प्र० ब्रह्माणीय श्रीम तिलकसूरिभिः ।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
( ५२० ) सं० १४३६ वर्षे प्राग्वाट ज्ञा। पितृ श्रे० साल्हा मात्र सिरिआदे सुत रुदाकेन भार्या सलखणदे सहितेन पित्रोः श्रेयसे श्रीशांतिनाथ कारितः गूदाऊआ श्रीसिरचंद्रसूरिभिः । शुभं०॥
सं० १४३६ वैशाख वदि ११ सो० श्रीनाणकीय गच्छे व्यव० बंचा भार्या रत्नादे आत्मश्रेयसे श्रीसुमतिनाथ बि० का० प्रतिष्ठितं श्रीमहेन्द्रसूरिभिः ।
( ५२२ ) मं० १४३६ वर्ष वैशाख व० ११ भौ० श्रीभावडार गच्छे उपकेश ज्ञा० पितृ देवसी भा० सहज पितृव्य भीमा मलयसीह भ्रा० खेताएतेषां नि० व्य० हेमाकेन श्रीशांतिनाथ पंच० का० प्र० श्रीमावदेवसरिभिः ।
( ५२३ ) सं० १४३६ वर्षे वैशाख वदि ११ भोमे प्राग्वाट झा० पितृ श्र० साल्हा मातृ सिरिणादे सुत रुदाकेन भार्या सलखणदे सहितेन पित्रोः श्रेयसे श्रीशांतिनाथ कारि० प्र० गुदाउआ श्रीसिरचंद्रसृरिभिः : शुभं ।।
(५२४) सं० १४३६ वैशाख बदि ११ वापणाग गोत्रे सं० देवराज भार्या पूनादेव्या आत्म श्रेयसे श्रीआदिनाथ बिबं कारिनं प्रतिष्ठितं श्रीदेवगुप्तसूरिभिः ।। ७४ ।।
( २२५ ) संवत् १४३६ वैशाख यदि १५ आइचनाग गोत्रे सा० हरदा पुत्र करमाकेन भ्रातृ सहणू श्रेयोर श्रीशांतिनाथ पंचतीर्थी कारिता प्रतिष्ठिता श्रीदेवगुप्तसूरिभिः ॥ ७४ ॥
(५२६ ) सं० १४३६ वर्ष वैशाख बदि ११ भौमे प्राग्वाट ज्ञातीय दादू भार्या सास पुत्र गीहनेन पितृ पितृव्य तिहुणा निमित्त श्रीपार्श्वनाथ बिंब कारित प्रतिष्ठिर श्रीरत्नप्रभसूरीणा मुपदेशेन ॥ १
(५२७ ) __ सं० १४३६ ( ? )...........
............" श्रेयसे श्रीशांतिनाथ बि कारितं श्रीदेवप्रभसूरीणा मुपदेशेन ।
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सं० १४३७ व० फा० सुदि ७ शुक्र प्रान्बाट ज्ञा० व्यव० खीम भा० बीझलदे पितृव्य हरिचंद निमित्त रातमकेन श्रीपार्श्वबिंबं का० का० प्र० सू० श्रीभावदेवसूरिभिः !
( ५२६ ) सं० १४३७ वर्षे वैशाख वदि ११ सोमे प्रा० व्यव० हेमा भार्या हीरादे पुत्र देवचंद्रण पित्रोः श्रेयसे श्रीशांतिनाथ बिंब का० प्र० मडाह० श्रीसोमचंद्रसूरिभिः ।
सं० १४३८ वर्षे प्रा० ग० ३० थिरपाल भार्या हीमादे पुत्र तहसकेन भ्रातृम्य सोना सहितेन हमात्त (?) श्रीआदिनाथ बिंबं प्रतिष्ठितं श्रीशालिभद्रसूरीणा मुपदेशेन ।
(५३१) सं० १४३८ वर्षे येष्ठ वदि ४ शनी श्रीभावडार गच्छे उपकेश ज्ञातीय पितृश्य म० वरदेष | भ्रातृव्य म० लखणाकेन श्रीशांतिनाथ बिंबं का० प्र० श्रीभावदेवसूरिभिः ।
( ५३२ ) सं० १४३८ वर्षे ज्येष्ठ वदि ४ शनौ प्राग्वाट ध्य० नरसिंह भार्या नयमादे पु० अमरेम भार्या ललतादे सहितेन पित्रोः श्रे० प्रति० जीरापल्लीय श्रीवीरचंद्र (भद्र १) सूरिभिः
___ सं० १४३८ वर्षे ज्येष्ठ वदि ४ शनौ भाम्ध्र गो० सा० सीहूला पु० सा० द्रो......... मधाकेन लूणावाहड़ युतेन श्रीपार्श्वनाथ पंचतीर्थी पितृव्य अमरा श्रे का० प्र० श्रीधर्मघोष गच्छे श्रीसागरचंद्रसूरिभिः ॥ श्रीः ॥
सं० १४३८ ज्येष्ठ पदि ४ शनो छाजहड़ वंशे पिट महं लाखा मात्र लाखणदे पुण्यार्थ सुत ललताकेन श्रीअभिनंदननाथ बिंबं कारित प्र० श्रीजिनेश्वरसूरि पट्टे श्रीसोमदत्तसूरिभिः ।।
(५३५ ) ॥६०॥ सं० १४३८ वर्षे माप वदि ब० प्रतापसिंह सुत वीरधवल तत्पुत्र सा० लाखा सा० भोजाम्या लखमणादि पुत्र सपरिकराभ्यां पुण्यार्थ श्रीशांतिनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतर गळे श्रीजिनरामसूरिमिः॥
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( ५३६ )
सं० १४३६ वर्षे पौष यदि ६ रवौ ओसवाल ज्ञा० व्य० सलखण भार्या नोडी पुत्र धीराकेन भ्रातृ युतेन स्वपितृ श्रेयसे श्रीशांतिः कारितः प्रतिष्ठितं रत्नपुरीय श्रीहरिप्रभसूरि पट्टे श्रीधर्म्मघोषसूरिभिः ॥ श्रीः ॥
५३७ )
संवत् १४३६ वर्षे माघ वदि ६ रवौ श्रीकोरंट गच्छे उपकेश ज्ञा० महं० जसपाल भार्या देवलदे पुत्र थाहरूकेन पितृ मातृ श्र० श्रीपद्मप्रभ विंबं का० प्र० श्रीसावदेवसूरिभिः ।
६३
५३८
सं० १४४० पौष सुदि १२ बुधे श्रीभावडार गच्छे उपकेश झा० खटिहड़ गोत्रे मं० देदा भा* मील ५० म० नरपालेन भ्रातृ रिणसींह श्रे० श्रीवासुपूज्य पंच० का० प्र० श्रीभावदेवसूरिभिः ।
/ ५३६
संवत् १४४० वर्षे पोष सुदि १२ बुधे श्रीभावडार गच्छे श्रीश्रीमाल ज्ञा० व्य० मलउसींह भा० वाल्हणदे पु० मेघान पित्रोः श्रे० श्रीवासुपूज्य पंच० का० प्र० श्रीभावदेवसूरिभिः ।।
( ५४० )
सं० १४४० वर्षे पौष वदि १२ बु० प्राग्वाट ज्ञा० व्यव० हापा भार्या गुरल पुत्र देवसीह कालु पितृ भ्रातृ श्रेयसे विजसीहेन श्रीसुमतिनाथ पंचतीर्थी का श्रीजयप्रभसूरीणामुप० प्र० श्रीसूरिभिः ।
( ५४१ )
सं० १४४० पो० सु० १२ बुषे प्रा० ० नयणा भा० नयणादे पु० वील्हाकेन भगिनी ही निमित्त श्रीवासुपूज्य बिंबं का० प्र० उ० गच्छे श्रीसिद्धाचार्य संताने श्रीसिद्धसूरिभिः ॥
( ५४२ )
सं० १४४० पोष सुदि १२ बुध प्रा० शा ० व्यव लोला भार्या कोल्हणदेवि पुत्र सामलेन पिता निमित्त श्रीआदिनाथ बिवं कारितं प्रतिष्ठितं गुंदाऊआ श्रीसिरचंद्रसूरिभिः शुभं ॥
( ५४३ )
भौमे श्रीबृहद्गच्छे ऊकेश शा० सा० तिहुण पु० पद्मसी 'केन पितृ पितामह श्रेयोर्थ श्रीशांति
'रत्नना'
संवत् १४४० वर्षे माघ सुदि ४ पूना भा० इरखिणि ५० चापा नाथ for कारितं प्र० श्रीमागचंद्रसूरिभिः ॥
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( ५४४ )
सं० २४४१ वर्षे फागण वदि २ रषौ प्राग्वा० ० आंबड़ पु० ऊदा रूदा स पितृव्य "पितृव्य सा० द्देमा पु० सुम श्रेयोनिमित्त श्रीशांति प्र० का० मडा०
श्रीमुनिप्रभसूरिभिः
सा०
( ५४५ )
सं० १४४१ वर्षे फागुण सुदि १० सोमे श्रीआंच० श्रीऊकेश वंशे बहड़रा साधु कर्मण सुत साधु हरपाल भार्या सा० नाइकदे सुतेन साधु केल्गेन । पितृ मातृ श्रेयोर्थं श्रीआदिनाथ fai कारितं प्रतिष्ठितं श्रीसूरिभिः ॥
४५४६ )
सं० १४४२ वर्षे वैशाख सुदि ३ सोमे ओसवाल ज्ञा० महाजनी मुंजा टाला माधलदे पु० वीका भा० सलखणदे सुतपूर्वजानां श्रेयोर्थं सुत सूराकेन पुत्र पौत्र सहितेन श्रीशांतिनाथ वि कारितं श्रीदेवचंद्रसूरीणामुपदेशेन श्रीसूरिभिः ॥ १
( ५४७ )
सं० १४४२ बर्षे वैशा० सु० १५ उपकेश ज्ञाती० गोष्ठिक पासड़ भा० वयजलदे सुत लींबाकेन पितृ मातृ श्रेयसे श्रीपार्श्वनाथ पंचतीर्थी का० प्रति जीरापलोय गच्छे श्रीवोरभद्रसूरि पट्टे श्रीशालिचंद्रसूरिभिः
( ५४८ )
संवत् १४४५ वर्षे ज्येष्ठ वदि १२ शुक्र उपकेश ज्ञा० श्र० कालू भार्या भोली पुत्र नींवाकेन पितृ मातृ श्रेयोर्थ श्रीशांतिनाथ वित्रं कारित प्रतिष्ठितं वृहद्गच्छे श्रीधर्म्मदेवसूरिभिः
( ५४६ )
'प्राम्बाट ज्ञा० व्यव० सुमण भा० कडू पुत्र बुधाकेन भा० प्र० श्रीमडाहड़ीय गच्छे श्रीसोमप्रभसूरिभिः
( ५५० )
६ गुरौ .. 'गातीरा श्रे० रतन भा० रतनादे पु० सोढा पूर्व नागेन्द्र गच्छे आदौकेश गच्छे सिद्ध
"ककलू ं
सं० १४४५ वर्षे ज्येष्ठ सुदि श्रियादेवि श्रीसंभवनाथ बिंबं का०
संवत् १४४५ वर्षे आषाढ़ सु० भा श्रीयादि श्रेयोर्थं श्रीआदि बिंबं का
('५५१ )
सं० १४४६ वैशाख वदि ३ सोमे प्राग्वाट ज्ञातीय श्रे० भाबठ भार्या पाल्हू श्रेयोर्थं सुत arora श्री आदिनाथ बिंबं कारितं प्रति० उढव गच्छे श्रीकमलचंद्रसूरिभः ॥
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( ५५२ )
।। संवत् १४४७ वर्षे फागुण सुदि ६ सोमे उपकेश ज्ञा० हींगड़ गोत्रे सा० पाहट भा० पाल्हणदे पुत्र गोविंद ऊदाभ्यां मिलित्वा पितृव्य मटकू निमित्त श्रीशांतिनाथ बिंबं का० प्र०वृहद् गच्छे श्रीरत्नशेखरसूरि पट्टे प्रतिष्ठितं श्रीपूर्णचंद्रसूरिभिः ॥
( ५५३ )
सं० १४४७ फागुण सुदि १० सोमे प्रा० उ० मुहणसी भार्या माल्हणदे ठ० नरसिंह ठ० कुरसी ठ० अर्जुन अमीषां श्रेयः श्रीआदिनाथ बिंबं का० प्र० पूर्णिमा पक्षीय श्रीसोमप्रभसूरीणामुपदेशेन ॥
( ५५४ )
सं० १४४६ वर्षे वैशाख सुदि ३ (१६) शुक्र उशवाल ज्ञातीय व्य० झगड़ा भा० जाल्हणदे सुत विजेसी पित्रिः श्रेयोर्थं श्रीसुमतिनाथ बियं कारितं प्रतिष्ठितं गूदाऊ गच्छे श्रीसिस्चंद्र सूरिभिः ॥ श्री ॥
६५.
( ५५५ )
सं० १४४६ वर्षे वैशाख सुदि ६ शुक्र उसवा० ज्ञा० व्यव० छाहड़ भा० चाहिणिदे पुत्र आनु भा० झनू पुत्र बियरसी श्रेयोर्थं श्रीसुमतिनाथ बिंबं का० प्र० श्रीवृह० श्रीअभयदेवसूरिभिः श्री अमरचंद्रसूरि स
1
( ५५६ )
सं० १४४६ वर्षे वैशाख सुदि ६ शुक्र श्रीभावडार गच्छे ओसीबाल ज्ञा० व्य० धरथा भा० राणी पु० भाखर डूंगराभ्यां पित्रोः श्रे० श्रीवासुपूज्य बिं० का० प्र० श्रीभावदेवसूरिभिः ।।
( ५५७ )
सं० १४४६ वैशाख सुदि ६ शुक्र श्रीमाल ज्ञा० पितामह महं० झाटा० पितामही नीतादेवी पितृ भीम मातृ भावलदेवी भ्रातृ गोदा श्रेयसे सुत केल्हाकेन श्रीपद्मप्रभ पंचतीर्थी कारितं कच्छोइया गच्छे प्र० श्रीसूरिभिः ॥
( ५५८ )
॥ सं० १४५० व० माह वदि ६ सोमे श्रीउपकेश ज्ञातौ सा० मोहण भा० यबंधी पु० कुंरा पितृ मातृ श्रियो पंचतीर्थी पद्मप्रभ बिंबं का प्रतिष्ठितं तपा कंनरिस गच्छे श्रीपुण्यप्रभसूरिभिः ।।
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६६
बीकानेर जैन लेख संग्रह
__ संवत् १४५१ फागुण वदि २ रखो श्रीकोरंटक गच्छे श्रीउपकेश ज्ञातीय श्रेष्ठि मूलु भा० माल्हणदे पुत्र मेघाकेन पित्रोः श्रेयसे श्रीवासुपूज्य बिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीनन्नसूरिभिः॥
(५६०) संवत् १४५१ वर्षे फागुण वदि ३ रवौ प्रा० व्य० झांझा भा० तासीह पु० पुसलाकेन पित्रोः श्रेयसे श्रीनमिनाथ वि० का० प्रति० रत्न० श्रीधर्मघोषसूरि प० श्रीसोमदेवसूरिभिः।
सं० १४५३ वैशाख सु० २ शनी उपकेश चोपड़ा केल्हण भार्या कोल्हणदे द्वि० भा० रूपिणि श्रेयोथं सुत धनाकेन श्रीआदिनाथ बिंब कारितं प्रति० खरतर गच्छे श्रीजिनराजसूरिभिः ।।
संवत् १४५३ वर्षे वैशाख सुदि ३ शनौ प्राग्वाट ज्ञातीय श्रे वोड़ा भायो बासल सुत वीराकेन निज पित्रोः श्रेयसे श्रीवासुपूज्य बिबं कारिलं प्रतिष्ठितं ओरथी (१) गच्छे श्रीसूरिभिः।
(५६३ )
सं० १४५३...........ख मासे प्राग्वाट ................"भा० चांपलदे सुत भुवनपालेन निज मातु श्रेयोर्थ श्रीमहावीर विवं कारापितं प्र० श्रीजीरापल्लीय श्रीवीरचंद्रसूरि पट्टे श्रीशालिभद्रसूरिभिः ।
(५६४) संवत् १४५४ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ७ बुधे गोखरू गोत्रे ऊकेश ज्ञातीय सा० कालू भार्या गोराही सुत बेचट भार्या वीरिणि स्व श्रेयसे श्रीमुनिसुव्रत स्वामी विवं कारितं श्रीमरुतुंगसूरीणा मुपदेशेन प्रतिष्ठितं ॥
(५६५) सं० १४५४ वर्षे मा० सुदि ८ शनौ ओस० शा० व्यव बाहड़ भा० बलालदे पुण कडुआकेन पित्रोश्याम श्रे० श्रीमहावीर विषं का० प्र० ब्रह्माणीय ग० श्रीहेमतिलकसूरिभिः।
(५६६) सं० १४५४ वर्षे माह सुदि ८ शनी उपकेश झा० श्रे० का भा० आल्हणदे पुत्र नराकेन भा० सोमलदे स० आत्म श्रेय श्रीचंद्रप्रभ बिंबं का० प्र० वृहद्गच्छीय रामसेनीयाक्टंक श्रीधर्मदेवसूरिभिः॥
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बीकानेर जैम लेख संग्रह
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सं० (१) ४५४ माघ सुदि । शनौ ऊकेश काला पुत्र व्य० चाहड़ सुश्रावकेन श्रीअंचल गच्छेश श्रीमेरुतुंगसूरीन्द्राणामुपदेशेन मातृ पितृ स्व श्रेयसे श्रीमहावीर विंबं कारितं प्रतिष्ठित श्रोसूरिभिः ।
(५६८) सं० १४५४ माघ वदि । शनौ ऊकेश व्य० करता भा० की...............त व्य० थाहरूश्रावकेन श्रीअंचलगच्छ श श्रीमेरुतुंगसूरीणामुपदेशेन मार पित............
(५६९) सं० १४५६ वर्षे वैशाख सु० ३ उपकेश ज्ञातौ । सा० लूण सु० देवसिंह भा० वा. झीफी सु० काजलेन पित्रोः श्रेय श्रीपद्मप्रभु बिंब का० प्रति० कोरंट गच्छे श्रीनन्नसूरिभिः ।। ..
(५७०) सं० १४५६ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ५ शनौ प्रा) ज्ञा० व्य० लाला भा० लाखणदे मुत पालाकेन भा० राजलदे सहितेन पित्रोः श्रे० श्रीकुंथुनाथ बिंब का० प्र० ककसूरि शिष्य भ० प्रा० गच्छे श्रीउदयाणंदसूरिभिः
( ५७१)
संवत् १४५६ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १३ शनौ प्राम्बाट ज्ञातीय व्यव० माला भार्या माणिकि पुत्र चांपाकेन पितृ मातृ श्रेयसे श्रीमुनिसुव्रतस्वामी विंबं कारितं । श्रीमलयचंद्रसूरि पट्ट श्रीशीलचंद्रसूरीणामुपदेशेन ।।
___ सं० १४५६ वर्षे आषाढ सुदि ५ गुरौ प्राग्वाट ज्ञातीय पितृ आल्ह मातृ सूहब भ्रातृ काला श्रेयसे धपनाखाकेन (१) श्रीवासुपूज्य बिंब कारितं ब्रह्माण गच्छे प्रतिष्ठितं श्रीबुद्धिसागरसूरिभिः॥
(५७३) सं० १४५६ माघ सुदि २ शनौ उप० ज्ञा० व्यव० आसपाल पुत्र सामंत तस्य पुत्र रामसी भार्या माऊ पुत्र मुंजा पउड्थ जोलाकन पितृ मातृ श्रे श्रीपद्मप्रभ बिंषं कारापि० श्रीजयप्रभसूरीणा मु० श्रीपूर्णिः
संवत् १४५६ वर्षे माघ सुदि १३ शनौ श्रीश्रीमाल झातीय व्यव० पूर्वा भा० वील्हणदे द्वि० भा० वउलदे सुत माडणेन पितृ मातृ श्रेयसे श्रीपार्श्वनाथ विंबं कारितं प्र० पिप्पल गच्छे श्रीराजशेखरसूरिभिः॥
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
___सं० १४५७ ३० वैशाख सु० ३ शनौ उपके ज्ञा० बलदउठा गोत्रे खहू जइता भा० जइतलदे पुत्र जूठाके भा० सिरियाद सहितेन भ्रातृ खेता निमित्त श्रीचंद्रप्रभ बिंबं का० प्रतिष्ठ रामसेनीय श्रीधर्मदेवसूरिभिः
सं० १४५७ वर्षे वैशाख सुदि ३ शनौ श्रीओसवाल ज्ञातीय सा० मंडलिक पुत्र सा० कर्मसीहेन श्रीअंचल गच्छ ....... श्रीमेरुतुंगसूरीणामुपदेशेन श्रेयसे श्रीसंभवनाथ बिंध कारित .............।
(५७७) सं० १४५७ वैशाख सु०३ शनौ श्रीउपकेश ज्ञातौ मणिभार सुहड़ा भा० सिगारदे पु० धरणीधराभ्यां पित्रोः धणसीह व्यउ श्रे० श्रीधर्म बिंब का० उपकेशग० ककुदाचार्य सं० प्र० श्रीदेवगुप्त सूरिभिः॥
सं० १४५७ वै० वदि ३ शनौ श्रीश्रीमालीय न्य० मंडलिक पु० छाडा भा० मोहिणि पु० जसाकेन पितृ मातृ श्रेयसे श्रीधर्मनाथ बिं० का०प्र० श्रीरनाल ? श्रीरान (? म) देवसूरिभिः॥
५७६) सं० १४५७ वर्षे वैशाख सुदि ३ शनौ नागर ज्ञातीय श्रे० आमा भा० मेघू सुत काल्हाकेन मातृ पितृ निमित्त श्रीआदिनाथ बिचं कारितं प्र० नागर गच्छे श्रीप्रद्युम्नसूरिभिः ।।
(५८०) ॥सं० १४५७ वर्षे आषाढ सुदि ५ गुरौ उपकेश ज्ञातीय सा० धुंधा भा० उमादे पुत्र दूदासूदाभ्यां पित्रोः श्रेयसे श्रीशांतिनाथ बिंध का० प्रत० श्रीमडाहड़ीय गच्छे श्रीमुनिप्रभसूरिभिः॥
(५८१) १ सं० (१४) ५७ फागुण सु ७ गुरौ गूर्जर ज्ञातीय से० पदमसीह भार्या पदमसिरि श्रेयोथ पुत्र जयताकेन श्रीमहावीर बिंबं कारितं वादीदेवसूरि संताने श्रीधर्मदेवसूरिभिः
( ५८२) सं० १४५८ वर्षे वैशाख वदि २ बुधे उपकेश ज्ञा० न्य० पेथा भा० सामलदे पु० वयराकेन भा० वील्हणदे पु० गुणपाल जाणायुतेन श्रीकुंथुनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं रत्नपुरीय श्रीसोमदेवसूरि पट्टे श्रीधणचंद्रसूरिभिः।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
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(५८३) सं० १४५८ व० वैशाख वदि २ बुधे प्राग्वाट ज्ञातीय व्यव० मउसा भार्या कर्मादे पुत्र सीहाकेन पिट मातृ श्रेयसे श्रीआदिनाथ बिंब कारितं प्र० साधुपूर्णिमा श्रीअभयचंद्रसूरिभिः ।।
(५८४) सं० १४५८ वर्षे वैशाख वदि २ बुथे उपकेश ज्ञा० न्य० तेजसी भा० पउमादे पु० देवसीहेन भा० देवलदे पुत्र महिराज सविराज सारंग युतेन आत्म श्रेयसे श्रीविमलनाथ बिंब कारितं प्रतिष्ठित रमपुरीय श्रीधनचंद्रसूरिभिः।
(५८५ ) सं० १४५८ वर्षे फागुण वदि १ शुक्र प्राग्वाट ज्ञातीय सा. रामा भा. वाल्ह पु० पूना वीसलकेन पितृ मातृ श्रेयो) श्रीआदिनाथ बिंब कारितं प्र० श्रीचैत्रगच्छे श्रीवीरचंद्रसूरिभिः ।।
(५८६ ) सं० १४५६ चैत्र बदि १ शनौ प्राग्वाट ज्ञाती० व्यष्टि लूणसीह भार्या भेथू पुत्र खेताकेन श्रीधर्मनाथ विवं कारितं प्र० श्रीभावदेवसूरीणामुपदेशेन प्र० श्रीसूरिभिः ।।
सं० १४५६ चैत्र वदि १५ शनी प्राम्बाट शातीय व्य० झगड़ा भा० उमादे पुत्र झाडणेन पित्रोः श्रेयसे श्रीधर्मनाथ बिबं कारितं प्रतिष्ठितं ब्रह्माणीय श्रीहेमतिलकसूरि पट्टे श्रीउदयाणंदसूरिभिः ।।
(५८८) सं० १४५६ वर्षे चैत्र सुदि १५ शनौ प्रार० व्यव० लखा भार्या सदी पुत्र मेहा भार्या हासलदेव्या भरि वे श्रीआदिनाथ बिं० प्र० मडाहड़ीय श्रीमानदेवसूरि श्रीसोमचंद्रसूरिः ।।
(५८६) __ संवत् १४५६ वर्षे चैत्र सुदि १५ सोमे प्रा० न्य० साजण भार्या देवलदे पुत्र चांपाकेन भ्रा० गरण ( सा १) दानि० श्रीपद्मप्रभ मडाहड़ ग० श्रीसोमचंद्रसूरिभिः
सं० १४५६ वर्षे ज्येष्ठ वदि १० शनौ श्रीश्रीमाल ज्ञातीय व्य० लाला भार्या लखमादे पुत्र तिष्ठुणाकेन पित्रो भै महणा निमित्त श्रीपार्श्वनाथ विंचं का० प्र० ब्रह्माण गच्छे श्रीउदयाणंदसूरिभिः
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
( ५६१ )
सं० १४५६ बर्षे ज्येष्ठ वदि १२ शनौ श्रीउपकेश ज्ञातौ वपणाग गोत्रे साह सीधण भार्या गुणश्री सुतव साह महिपालेन पित्रोः श्रेयसे श्रीचंद्रप्रभस्वामी बिंबं कारितं श्रीउपकेश गच्छे ककुदाचार्य संताने प्रतिष्ठितं श्रीदेवगुप्तसूरिभिः । विरतद् ?
( ५६२
सं० १४५६ वर्षे ज्येष्ठ वदि १२ शनौ उपकेश ज्ञातौ वप्पणागा गोत्रे महं वस्ता भार्या पुमी सुत वीरमन पित्रोः श्रेयसे श्रीअजितनाथ बिंबं कारितं उपकेश गच्छे ककुदाचार्य संताने प्रतिष्ठितं श्री देवगुप्तसूरिभिः ॥
( ५६३ )
॥ सं० १४५६ वर्षे पो० वदि ६ रवौ प्रहा तीजपाल गा० म० पाल्हा सु० पोमा भ्रातृ हादाभिधाने आत्म श्रेयसे श्रीआदिनाथ बिंबं प्रतिष्ठापितं पं० जयमूर्ति गणि उपदेशेन ॥
( ५६४ )
सं० १४५६ वर्षे माघ सुदि १ उपकेश ज्ञातीय व्य० जाणा भा० देवलदे पु० पोलाकेन भा० • हासी सहि० पिट जाणा नि० श्रीपद्मप्रभ पंच० का० प्र० श्रीनाण गच्छे श्रीमहेन्द्रसूरिभिः
( ५६५ )
सं० १४६० वैशाख वदि ४ शुक्र उप० भड़ान श्रीमहावीर पंचतीर्थी कारिता प्र० श्रीसूरिभिः
"वे सुत धर्मसी कर्मसी निमित्तं सुत
( ५६६ )
संवत् १४६० वर्षे ज्येष्ठ वदि ६ शुक्र उसवाल ज्ञातीय व्य० लूणसी भा० भावलदे द्वि० भा० हमीरदे श्रेयसे सुत वाहन श्रीवासुपूज्य बिंबं कारितं प्र० श्रीपासचंद्रसूरीणा मुपदेशेन ॥ प्र०
( ५६७ )
॥ संवत् १४६१ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १० शुक्र ओसवाल ज्ञातीय पितृ रता मातृ रणादे पितृव्य गोसल वीसल श्रेयसे सुत पूनाकेन श्रीपद्मप्रभ मुख्य चतुर्विंशति पट्टः कारितः ॥ श्रीपूर्णिमा पक्षे श्रीदेव चंद्रसूरि पट्टे श्रीपासचंद्रसूरीणा मुपदेशेन प्रति० श्रीसूरिभिः
( ५६८ )
सं० १४६१ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १० शुक्र प्रा० गोसल पु० जयता भा० चत्रु पु० लखमणेन पितृ निमित्तं श्रीशांति बिंबं का० प्र० पिप्प० श्रीवीरप्रभसूरिभिः
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(५६६) ___ संवत् १४६१ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १० शुक्र प्रा० श्रेष्टि सिरपाल भा० रतनादे सुत पधाकेन पित्रोः श्रेयसे श्रीपद्मप्रभ बिंबं का० प्र० श्रीभावदेवसूरिभिः ।
(६००) सं० १४६१ २० ज्येष्ठ सु० १० शुक्र उपकेशज्ञातौ आदित्यनाग गोत्रे सा० लूणा भा० चांपल सुत तेजा भोजाभ्यां पित्रोः श्रेयसे श्रीशांतिनाथ बिबं का० श्रीफकेश गच्छे ककुदाचार्य संसाने प्रति० श्रीदेवगुप्तसूरिभिः॥
सं० १४६१ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १० शुक्र प्रा० श्रे सांगण भा० लखमी पुत्र महीपाके (एले) न पिट श्रेयसे श्रीशांतिनाथ बिंबं कारितं प्र० पूर्णिमा पक्षी श्रीपनाकरसूरिभिः ॥
सं० १४६१ वर्षे माघ सुदि १० सुराणा गोत्रे सा० केल्हण पु० ३ सा० पातु सा० तीडा भार्या सकुमति पुत्र सोमाकेन पितृ मातृ भ्रातृ सोढा श्रे० श्रीआदिनाथ बिंब कारितं श्रीधर्मघोष गच्छे श्रीमलयचंद्रसूरिभिः॥
सं० १४६२ वर्षे वैशाख सुदि ५ शुक्र ककत्र (उकेश ? ) झो० देशा भा० देवलदे सत पुत्राकन पितृ मातृ श्रे० श्रीसंभवनाथ उदल (ऊकेश ) गच्छे औरतनप्रभसूरिभिः
(६०४) सं० १४६२ वर्षे वैशाख सुदि ५ शुक्र उपके० भ० मंजुल सुत हीरराज भार्या जटू पु० सींघाकेन भार्या हीरादे सहितेन पित्रोः पितामह निमित्तं श्रीआदिनाथ बिबं का० प्र० संडेरकीय श्रीसुमतिसूरिभिः॥
(६०५) संवत् १४६२ वर्षे वैशाख सुदि ५ शुक्र उपकेश ज्ञातीय व्य० सोनपाल भार्या सुहड़ादे पुत्र जयतसीहेन पित्रो सा० पूनसी फाफण निमित्तं श्रीचंद्रप्रभ बिंबं का० प्र० ब्रह्माणीय श्रीउदयाणंदसूरि
॥ संवत् १४६३ वर्षे मार्ग सुदि ६ से० डूआ भार्या कर्पू सुत सा० आसाकेन कारितं श्रीपारस्त्रनाथ विंबं श्रीसूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥
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(६०७) सं० १४६४ कै. सुदि ४ शनौ सिद्धपुर० ओसवाल जातीय श्रे क्षीमा भा० रूपी सु० धर्मसीह श्रीआदिनाथ बिंबं आत्म श्रेयसे तपा गच्छे भ० श्री रत्नसागरसूरिभिः।।प्र।।
(६०८) सं० १४६३ (१) फागु० सु० ८ वराषी ? वा० षाटक गोत्रे सा० बाडा सु० रेलटा भा० सहजलदे भ्रातृ करमा गहिदाम नयसीह श्रेयो) श्रीशांतिना० वि० का० प्र० श्रीधर्मपोष ग० श्रीसागर चंद्रसूरिभिः।
(६०६) सं० १४६४ वर्षे ज्येष्ठ वदि ४ शुक्र श्रीज्ञानकीय गच्छे श्रीसांगा भा० भुक्ति पुत्र सूरा साल्हा सोला सायरकेन माता पिता श्रेयोर्थ काराष्ठितं बिंबं श्रीआदिनाथ प्रतिष्ठितं श्रीमहेन्द्रसूरिभिः॥
(६१०) संवत् १४६४ वर्षे पौष वदि ११ शुक्र प्राचा० श्रे० सोहड़ भा० सुहड़ादे पु० निवाकेन भ्रातृव्य सहितेन भ्रातृ कुण निमित्त श्रीपार्श्व बिंबं का० प्र० श्रीवीरप्रभसूरिभिः।
सं १४६४ वर्षे पौष वदि ११ शुक्र उपकेश ज्ञातीय वा० साजण भा० रोमादे पु० नाहड़ेन श्रीमहावार बिंबं का० प्र० पिप्प० श्रीवीरप्रभसूरिभिः
(६१२) ॥ सं० १४६४ वर्षे उसवाल ज्ञातीय व्यव मामट भार्या मुगती सुतनाना भार्या मोहणदे तेन साढा देवादि पुत्रैः सहितेन श्रीमुनिसुव्रत बिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीसूरिभिः
सं० १४६५ वर्षे वैशाख सुदि ३ गुरौ प्रा० पासड़ भा० कील्हणदे पु० डाहा पित्रो भा० देदी श्रेयसे श्रीशांतिनाथ बिंब का० प्र० श्रीसूरिभिः ।
(६१४ ) ___ सं० १४६५ वर्षे वैशाख सु० ३ उपकेश ज्ञातौ सा० लूणा सु० देवसीह भा० बा० झीफी सु० काजलेन पित्रोः श्रे० श्रीपद्मप्रभ बिंब का० प्रति० कोरंट गच्छे श्रीनन्नसूरिभिः ॥ श्रीः ॥
(६१५ ) सं० १४६५ वैशाख सु० ३ गुरौ प्रा० न्य० मेघा भा० मेघादे पु० कवौत्रजा भा० कनौदे पु० भीमा लूटा स० मा० कमो निमित्त श्रीवासुपूज्यनाथ विवं का०प्र० श्रीकमलचंद्रसूरिभिः॥
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( ६१६ )
सं० १४६५ वर्षे वैशाख सुदि ३ गुरु उपकेश ज्ञातीय महं कडुआ भार्या कमलावे सुत रणसी पद्माभ्यां श्रीशांतिनाथ बिंबं का० प्र० नाणकीय गच्छे श्रीमहेन्द्रसूरिभिः
७३
( ६१७ )
संवत् १४६५ व० ० सुदि ३ गुरौ उपकेश ज्ञा० बापणा गोत्रे सा० सोहड़ भा० पदमलदे पुत्र हुगा भा० तारी पुत्र नेमाकेन पितृ पितृव्य भड़ा निमित्तं श्रीवासुपूज्य बिंबं का० प्रति० श्रीदेवगुप्तसूरिभिः
( ६१८ )
सं० १४६५ वर्षे कार्तिक सुदि १३ गुरु प्रा० ज्ञा० खेतसी भा० खेतलदे पु० चहथ भा० चाहिणि पित्रोः श्रेयसे श्रीसंभवनाथ बिंबं गूदाऊ गच्छ श्रीरत्नप्रभसूरिभिः || प्रतिष्ठितं ॥
( ६१६ )
॥ सं० १४६५ माघ वदि १३ ऊकेश वंशे । सा० गांगण पुत्रैः तिहुणा रणसीद्द धणसीहाख्यै मैला खेला खरथादि युतैः स्वपूर्वज श्रेयसे सुविधि बिंबं का० प्र० तपा० श्रीपूर्णचंद्रसूरि पट्ट श्रीमहंससूरिभिः
( ६२० )
संवत् १४६५ वर्षे माघ सुदि ३ शनौ उपकेश ज्ञा० व्य० धीरा भार्या धारलदे पुत्र अकाकेन मातृधारलदे निमित्त श्रीआदिनाथ बिंबं का० प्र० पू० उदयाणंदसूरिभिः
( ६२१ )
सं० १४६५ वर्षे माघ सुदि ३ शनौ प्रा० व्य० हीरा भार्या रूदी स्व श्र० श्रीशांतिनाथ बिंबं कारितं प्र० श्रीदेवसुंदरसूरिभिः ॥
( ६२२ )
सं० १४६५ माघ सु० ३ शनौ उपकेश ज्ञातौ श्रे० मोकल भा० मोहणदे सु० हीरा वादाभ्यां पित्रोः श्रे 'श्रीवासुपूज्य बिंबं का० प्र० ऊकेश गच्छे ककुदाचार्य सं० श्रीदेवगुप्तसूरिभिः ||
( ६२३ )
सं० १४६५ वर्षे माघ सुदि ३ शनौ प्राग्वाट ज्ञातीय श्रेष्ठि जेसल भा० रूपादे पुत्र तिहुणा केन श्रीशांतिनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं पूर्णिमा गच्छीय श्रीहरिभद्रसूरिभिः ||
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(६२४) सं० १४६५ वर्षे फागुण सुदि १ रवौ प्रा० व्य० केल्हा भा० कील्हणदे पुत्र राणाकेन आत्म श्रेयसे श्रीशांतिनाथ बिन का० प्र० श्रीसर्वाणंदसूरिभिः
( ६२५ ) सं० १४६५.......
....."जा भा० रत्ना सहितेन ............... कारित प्रतिष्ठितं श्रीसंडेर गच्छे श्रीसुमतिसूरिभिः ॥
(६२६) सं० १४६६ वर्षे वैशाख सुदि ३ शनि प्राग्वाट ज्ञा० श्रेष्ठि धणसी भा० फनू पु० जेसाकेन मातृ पितृ श्रेयसे श्रीमुनिसुव्रत बिंब का० श्रीउपकेश गच्छे श्रीसिद्धाचार्य संताने प्र० श्रीककसूरिभिः ॥
( ६२७) सं० १४६६ वर्षे वैशाख सुदि ३ सोमे उप० ज्ञा० व्यव० नीबा भार्या नयणादे सुत चुहथाकेन स. पूर्वज निमित्त श्रीमल्लिनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं महौकराचार्य श्रीगुणप्रभसूरिभिः ।।
सं० १४६६ वर्षे वैशाख सुदि ३ सोमे प्राग्वाट व्यव० हरघल भा० पोमादे पुत्र सामंत भा० श्रियादे आत्म श्रेयोथं श्रीआदिनाथ बिंबं प्रतिष्ठितं मूदाऊ० श्रीरत्नप्रभसूरिभिः
सं० १४६६ वर्षे मार्गसिर सुदि १० बुधे श्रीचैत्र गच्छे साहूला भा० धर्मिणि पु० भीमसी पित्रोः श्रेयसे श्रीआदिनाथ विबं प्र० श्रीवीरचंद्रसूरिभिः।। श्री ॥
(६३०) ॥ सं० १४६६ वर्षे माघ २० १२ गुरौ ऊ० सा० लख (म) ण भा० कटी पु० बडुपाल भा० वोल्हणदे पु० जइताकेन भा० जसमादे सहितेन स्व श्रे० श्रीवासुपूज्य बिं० का० प्र० श्रीसुमतिसूरिभिः॥
सं० १४६६ वर्षे माष बदि १२ गुरौ उप० झा० महं० डूगर भा० पदमलदे पुत्र राजू आत्म श्रेयसे श्रीशांतिनाथ विका० प्र० मा. श्रीउदयाणंदसूरिभिः ॥
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(६३२) ॥सं० १४६६ वर्षे प्राग्वाट ज्ञातीय व्य० खेता भार्या जाणी सुत न्य. सुमण छाडाभ्यां भार्या सीतादे कपूरदे सुत मूधा युताभ्यां स्व श्रेयसे श्रीकुंथनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं तपा पक्षीय श्रीदेवसुंदरसूरि गच्छाधिराज
(६३३ ) सं० १४६६ व .............."५ शुक्र उप० व्य० जेसल भार्या रयणादे पु० पूनाकेन श्रीआदि बिषं का० प्र० श्रीतिवदधर (?) सूरिभिः ।
सं० १४६७ (१) वर्षे वै० म०६ प्राग्वाट झातीय उ० मंडलिक भार्या सारु पुत्र व्य० बलावल ? भार्या मेलादे पुत्र कान्हा वा "ल हेमा युतेन स्व श्रेयसे श्रीशांतिनाथ बिषं कारितं प्रतिष्ठितं तपागच्छे श्रीदेवसुंदरसूरिभिः ॥ भद्रम् ॥
(६३५) प्राग्वाट ज्ञातीय चुथ सा० साल्ह भार्यया श्रीसुपार्श्व वि कारितं सं० १४६८ वर्षे प्रतिष्ठित तपा गणेश श्रीदेवसुंदरसूरिभिः ।। भद्रं भवतु ।।
___सं० १४६८ वैशाख वदि ३ उपकेश ज्ञातौ वप्पणाग गोत्रे मं० वस्ता भा० पोमी सु० नरपालेन पित्रोः श्रे० श्रीसुमतिनाथ बिबं का० प्र० ऊकेश गच्छे ककुदाचार्य सं० श्रीदेवगुसूरिभिः ।
सं० १४६८ वर्षे वैशाख वदि ४ शुक्रे प्राग्वाट ज्ञातौ श्रे० पुनसिंह भा० पोमादेवि सु० भरमा लीबाम्यां भा० सारू स० पित्रोः श्रे श्रीविमलनाथ बिंबं का० भ० श्रीपार्श्वचंद्रसूरिणा मुपदेशेन प्र० श्रीसूरिभिः॥
(६३८ ) सं० १४६८ वर्षे वैशाख वदि ४ शुक्रे उप................"जसी भा० सलूण पु० आसलेन भ्रातृ वीरुआ निमित्तं श्रीवासुपूज्य पंचतीर्थी का० प्र० ऊएस गच्छे भ० श्रीदेवगुप्तसूरिभिः।
(६३६) सं० १४६८ वैशाख बदि ४ शुक्रे उप......................."लदे सुत धर्मसी कर्मसी निमित्त सुत भड़ाकेन श्रीमहावीर पंचतीर्थी कारिता प्र० श्रीसूरिभिः।।
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( ६४० ) सं० १४६६ वैशाख सुदि ३ श्रीकाष्टा संघे भट्टारक श्रीगुणकीर्तिदेवा । भार्या शीलश्री शिक्षणी बादपुनि नित्यं प्रणमति ॥
( ६४१ ) सं० १४६६ वर्षे कार्तिक सु० १५ जारउड्या गोत्रे सा० राघव पुत्राभ्यां सहिजा शिवराजाभ्यां श्रीसुमति बिंब कारितं तपा गच्छे श्रीपूर्णचंद्रसूरि प? श्रीहेमहंससूरिभिः
(६४२) सं. १४६६ वर्षे माघ सुदि १ उपकेश ज्ञातीय वा जाणा भा० देवलदे सु० कोलाकेन भा० हांसी सहि० पितृ जाणा नि० श्रीपद्मप्रभ पंच० का० प्र० श्रीनाण गच्छे श्रीमहेन्द्रसूरिभिः
(६४३) सं० १४६६ वर्षे माघ सुदि ६ रवौ प्रा० व्यव० कडुआ भा० कर्मादे पु० पदा भा० निया पु० देवराजेन पितुःश्रेयसे श्रीमहावीर बिंबं का० प्र० पिप्पल गच्छे श्रीवीरप्रभसूरिभिः।
___ सं० १४६६ वर्षे माघ सु०६ रवौ टप गोत्रे सा० लाखण पु० बहपाल भा० वील्हणदे पु० नावा भा० नायिकदे पु० कडूयाकेन पित्रोः निमित्तं आदिनाथ बि० का० प्र० श्रीसुमतिसूरिमिः
॥ सं० १४६६ मा० सु० ६ प्राग्वाट ज्ञातीय श्रे० ताल्हा भा० ताल्हणदे सुतेन श्रे० धणदेवादि युतेन स्व पितृ श्रेयसे श्रीआदिनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीगुणरमसूरिभिः
संवत् १४६६ वर्षे माघ सुदि ६ रवौ ऊकेश ज्ञातीय सा० वस्ता भार्या वसतणी तत्पुत्रेण सा. नीबाके. श्रीअंचल गच्छेश श्रीमेरुतुंगसूरीणामुपदेशेन श्रीवासुपूज्य बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीसूरिभिः
संवत् १४६६ वर्षे माघ सुदि ६ रवौ म० कुमरसिंह सुत मं० अर्जुन पुत्र मं० मांडण श्रावकेन पुत्र जयसिंह ईसर युतेन श्रेयोथं श्रीपार्श्वनाथ बिबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतर गच्छे श्रीजिनवर्द्धन सूरिगुरुभिः।।
(६४८) । सं० १४६६ वर्षे माघ सुदि ६ दिने श्रीऊकेश वंशे सा० डालू पताकेन श्रीशांति बिबं का० प्र० श्रीजिनवर्द्धनसूरिभिः
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( ६४६ )
सं० १४६६ माघ सु० ६ आंकू भार्यां वीरो प्र० ( ६५० )
॥ सं० १४६६ वर्षे माघ सु० ६ श्रीभावडार गच्छे। प्राइमेरुत्य सा० नरदे भा० भरमी पु० जसवीरेण मातृ पित्रो श्रेयसे श्रीमुनिसुव्रत बि० कारितं । प्रतिष्ठितं श्रीविजयसिंघसूरिभिः ॥ श्री ॥
( ६५१ )
सं० १४६६ मा० सु० ६ प्राग्वाट ज्ञातीय श्रे० ताल्हा भा० ताल्हणदे सुतेन श्रे० घनाकेन भा० मोहणदेव्यादि युतेन स्व पितृ श्रेयसे श्रीआदिनाथ बिवं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीगुणरत्नसूरिभिः ||
( ६५२ )
सं० १४६६ वर्षे
'दि ३ साह सहदे पुत्रेण सा० तोल्हान पुत्र श्री पार्श्वनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनवर्द्ध नसूरिभिः ।
(- ६५३ )
सं० १४७० वर्षे वैशाख सुदि १० शुक्रे श्रीश्रीमाल ज्ञातीय पितृव्य ऊधा कलत्रि श्रीमलदे हांसलदे "या धारा वीरा श्रेयसे सु० पासदेन श्रीपार्श्वनाथ पंचतीर्थी कारापिता । प्रतिष्ठिता श्रीसूरिभिः ।
************
( ६५४ )
|| सं० १४७१ वर्षे श्रीश्रीमाल शा० श्रे० पांपस भार्या श्रीमलदेषि सुत श्रे० सूंटा भार्या सोहगदेवि सुत पूना भार्या पुनादेवि आत्म श्रेयसे श्रीसुमतिनाथादि चतुर्विंशति पट्टः कारितः तपागच्छे श्रीसोमसुंदर सूरीणामुपदेशेन प्रतिष्ठितं श्रीसूरिभिः ॥
( ६५५ )
संवत् १४७१... सूरीणामुप० श्रीआदिनाथ बिंबं का०
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श्रीमंचल गच्छे श्रीजयकेसरि
( ६५६ )
सं० १४७१ माह सुदि १३ बुधे श्रीभावडार गच्छे उपकेश ज्ञातीय खांटड़ गोत्रे सा० लीबा भा० पाती पु० सामतेन मातृ पित्रो श्रेयसे आदिनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीविजयसिंहसूरिभिः ॥ श्री||
( ६५७ )
सं० १४७२ ज्येष्ठ बदि १२ सोमे प्रा० व्य० लाखा भार्या सूहवदे पुत्र कडुआकेन भार्या सोमी सुतेन पितृन्य काला सींगा निमित्तं श्रीआदिनाथ बिंबं का० प्र० बायड़ गच्छे श्रीरासिलसूरिभिः ।।
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(६५८) ॥ संव० १४७२ वर्षे फा० वदि १ शुक्रे हुंबड़ ज्ञातीय ऊतरेश्वर गोत्र व्य० वीरम भा० अमल पुत्र हादा भा० सेगु सु० माला भा० हरसू सु० सा० भा० गदा श्रीमूलसंधे बलात्कार गणे सरस्वती गच्छे श्रीपद्मनन्धु पदेशा श्रीनेमिचंद्र शिष्य मुनिसुव्रत बिंब प्रतिमा नित्यं प्रणमति ।।।
(६५६ ) ___ सं० १४७२ वर्षे फागुण सुदि । शुक्ने प्रा० व्य० धारसी भा० याणरू पुत्र मोकल होणा कोहाके (न) पितृ मातृ श्रे० श्रीसुमतिनाथ बिंब का० प्र० कछोली पू० श्रीसर्वाणंदसूरीणामुपदे।
__ सं० १४७२ फा० सु० ६ शु० उ० सा० देपाल पु० नाढा भा० देवल पु० अरसी भा० धरा पु० जगसीहेन श्रेयो) श्रीपार्श्वनाथ बिंब का०प्र० श्रीसंडेर गच्छे श्रीशांतिसूरिभिः।
सं० १४७२ वर्ष फा०६ सु० श्रीकासद्रगच्छे उएस झा० मोटिला गोत्रे श्रेजयता पु० रमा भा० रत्नसिरि पु० धणसीहेन पित्रो श्रेयसे श्रीधर्मनाथ कारितं प्रति० श्रीउजोअणसूरिभिः ।। श्री ।।
( ६६२ ) सं० १४७२ वर्ष फागुण सुदि । शुक्र श्रीबृहद्गच्छे उपकेश वंशे सा० सोढा भा० मोहणदे पु० सा० हाडाकेन पितृ श्रेयो) श्रीपञ्नप्रभ बिंब कारितं प्रति० श्रीगुणसागरसूरिभिः। .
सं० १४७२ वर्षे फागुण सुदि । शुक्रे कोरंटकीय गच्छे व्य० जाणा भा० जाल्हणदे पु० सहजाकेन भ्रातृ सालिग लाखा सहितेन पित्रोः श्रेयसे श्रीसुमतिनाथ का० प्र० श्रीकक्कसूरिभिः।।
(६६४ ) सं० १४७२ वर्षे ........."सुदि ३ बुधे........."माझग पाता श्रीपुभउ .........."निमित श्रीमहावीर बिंबं का० प्र०... ......... "भ० श्रीवीरनभसूरिभिः ।
( ६६५ ) ॥ ६०॥ संवत् १४७३ वर्षे चैत्र सुदि १५........ श्रीऊकेश वंशे लूणिया गोत्रे सा. ठाकुरसी पुत्राभ्यां हेमा देवाभ्यों श्रीमहावीर बिंब कारितं । भ्रातृ जेठा पुण्यार्थ प्रतिष्ठितं खरतर श्रीजिनबर्द्धनसूरिभिः।।
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सं० १४७३ वर्षे ज्येष्ठ यदि ५ श्रीउपकेश गच्छे श्रेष्ठ गोत्रीय सा० ठाकरु भा० सुहागदे पु० साऊण श्रीआदिनाथ बिंबं करा० पिता माता पुण्या । आत्म श्रे। प्रति० श्रीदेवगुप्तसूरिभिः ।
(६६७) सं० १४७३ वर्षे ज्येष्ठ सु० ३ बुधे श्रीज्ञानकीय गच्छे उपकेश ज्ञातौ नाहर गोत्र सा० पूनपाल पु० आघट भा० कीम्हणदे पुत्र सोमा सहसाभ्यां श्रीसंभवनाथ का० प्र० श्रीशांतिसूरिभिः।
(६६८) सं० १४७३ वर्षे ज्येष्ठ सु० ३ बुधे श्रीज्ञानकीयगच्छे उपकेश झातीय तेलहर गोत्रे सा० पूनपाल पुत्र मदन भा० माणिकदे पु० वीढामांडण सहितेन श्रीसुमतिनाथ बि० का० प्र० श्रीशांतिसूरिभिः।।
(६६६) सं० १४७३ वर्षे ज्येष्ठ सु०५ शुक्र प्राग्वाट ज्ञा० व्यव० झांझण भा०............. श्रेयसे श्रीशांतिनाथ बिंब कारितं प्र० पूर्णिमा पक्षीय श्रीजिनभद्रसूरीणामुप०
(६७०) सं० १४७३......दि १३ वदे प्रा० न्य० धीरा भा० तुगा ....... 'वादाकेन महावीर का० प्र० तगें...... (नगेन्द्र ?) सूरिमिः।
सं० १४७३ वर्ष फागुण सुदि ६ सोमे प्रा० जा० श्रे० पाल्हा भा० पद्मलदे श्रेयोथं सुत धाडूआकेन श्रीपार्श्वनाथ बिबं कारित पूर्णिमा प० श्रीनेमिचंद्रसूरि पट्टे श्रीदेवचंद्रसूरीणामुपदेशेन ।
( ६७२ ) ___ सं० १४७४ आषा० सु० ६ गुरौ श्रीनाणकीयगच्छ श्रे० विजया भा० वाल्हू पुत्र खीदा निमित्त श्रीशांतिनाथ बिंब का० प्रतिष्ठितं श्रीधनेश्वरसूरिभिः ।
सं० १४७४ वर्षे मार्ग सुदि ८ सोमवारे प्राग्वाट ज्ञातीय व्यव० राम भा० सेरी पुत्र नरपति पांच मांडणेन आत्म श्रेयसे श्रीशांतिनाथ बिबं कारितं प्रति० श्रीसोमसुंदरसूरि · ..... ......!
सं० १४७४ फा० सु०८ प्रा० ज्ञा० साल केल्हण सुत मोल्हा सा० वणसी धीना भा० धारश्री पुत्र सा० खीघर रतन चांपा भोजा कान्हा खेटा भ्रातृ खीमधर भा० खिमसिरी सु० सा० साल्हाकेन वणसी निमितं श्रीमुनिसुव्रत बिंब का० प्र० श्रीसोमसुंदरसूरिभिः ।
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सं० १४७४ वर्षे फागुण सुदि१० बुधे प्रा० कोला भा० धारलदे पु० पूजा हरियाभ्यां पितृभ्य उल्हा निमित्तं श्रीसंभवनाथ बिबं का० प्र० कच्छोलीवाल श्रीसर्वाणंदसूरीणामुपदेशेन ।
(६७६) सं० १४७५ वर्षे ज्येष्ठ सुदि २ कोरंटगच्छ उप० झातौ सा० लूणा भा० लक्ष्मी प्र० पीछा भा. रुदी पु० बूगर पिस मातृ श्रे० श्रीचंद्रप्रभ विवं कारित प्र० श्रीककसूरिभिः ।
(६७७ ) ___ सं० १४७५ वर्षे ज्येष्ठ सु० ६ शुके उ० झा० सा० नरपाल पु० तिहुणा भा० २ तिहुअणश्री महणश्री पु० सोमाकेन पित्रोः श्रेयसे श्रीशांतिनाथ वि० का० प्र० श्रीषंडेर गच्छे श्रीशांतिसूरिः।
(६७८ ) ___ सं० १४७५ व० ज्ये० सुदि । शु० प्रा० व्य० वयरसी भा० वील्हणदे पु० गरणसंग सपूर्वज अयसे श्रीशांतिनाथ बिंबं का० प्रति स । उ प्र० श्रीधर्मतिलकसूरि प? श्रीहीराणंदसूरीणामुपदेशेन ॥
(६७६) संवत् १४७६ वर्षे वैशाख वदि १ शनौ ऊकेश वंशे व्यव० चाहड़ सुत आसपालसुतकूता सुतम चरड़ा भार्या पाल्हणदे तयोः पुत्रैः मं० कोहा मं० नोडा मं० खीदा नामभिः अंचलगच्छे श्रीजयकीर्तिसूरीणामुपदेशेन मातृ पितृ श्रेयोथं चतुर्विशति जिन पट्ट कारितः।।
सं० १४७६ वर्षे वैशाख वदि १ शनी ऊकेश ज्ञातीय व्य० धारा भा० लक्ष्मी सु० चुहथाकेन भा० रूपादे थीरी पु० बोखा खोखादि कुटुंब सहितेनात्मनः श्रेयसे श्रीचंद्रप्रभ बिबं कारितं प्रतिष्ठितं तपा गच्छाधिप श्रीसोमसुंदरसूरिभिः ।।
(६८१) 'संवत् १४७६ ५० वैशाख सु० १० रखो प्रा० ब० खीदा भार्या हीरादे पु० जि..... सीह निम० सद्भार्यया पूर्णव्या शांतिनाथ वि० कारितं श्रीधर्मतिलकसूरीणा मुपदेशेन प्र० श्रीसूरिभिः
(६८२) संवत् १४७६ वर्षे मार्ग सु० ३ उके० झा० सा० देद पु० काला पु० करमा भा० करणू पु० दूगर देल्हा पद्मा प्रमुखैः पुत्रैः पूर्वज निमित्तं श्रीशांतिनाथ बिंबं का० श्रीसंडेर गच्छे श्रीयशोभद्र सूरि संताने प्र० श्रीशांतिसूरिभिः॥
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( ६८३) सं० १४७६ फागुण सुदि ११ उएश गच्छीय वप्पणाग गोत्रे सा. पद्र पुत्र सा० वामदेव भा० लाछि पुत्र सा० सवदेव सज्जनाभ्यां पितुः श्रेयसे श्रीआदिनाथ बिंबं का० प्र० श्रीसिद्धसूरि शिष्य १ श्रीकक्कसूरिभिः॥
सं० १४७६ वर्षे चैत्र वदि १ शनौ श्रीभावडार गच्छे श्रीमा० भरमा भा० रतनादे पु० रूपाकेन मातृ पितृ श्रेयसे श्रीशांतिनाथ बिंबं का० प्र० श्रीविजयसिंहसूरिभिः
सं० १४७७ वर्षे वैशाख वदि १ शनौ प्रा० व्यव० राणा भा० राणादे पुत्र तेजा भा० तेजलदे पित्रो श्रेयो) श्रीसुविधिनाथ बिंबं प्र० श्रीगूदाऊ गच्छे भ० श्रीरत्नप्रभसूरि
(६८६ ) सं० १४७७ वर्षे चैत्र सु. ५ सोमे प्राग्वाट व्य० ठाकुरसीहेन श्रीमादिनाथ बिंब कारितं प्रतिष्ठितं तपा गच्छे श्रीसोमसुंदरसूरिभिः ।। भद्र' ।
(६८७) ___ सं० १४७७ व० वैशाख सुदि · बुधे ऊ ज्ञा० व्य० अजयसी भा० आल्हणदे पुठ महणकेन पित्रोः श्रेयसे श्रीशांति बिंब कारितं श्रीजयप्र. (भ ? सूरिभिः
( ६८८) सं० १४७७ मार्ग वदि ३ हुं० व्या० हरिया सुत व्या० देपा भार्या देवलदे पुत्र सामंत कर्मसीहेन पुत्र भ्रातृ लला श्रेयोथं श्रीमुनिसुव्रत बिंब कारितं प्र० श्रीसोमसुंदरसूरिभिः॥
सं० १४७७ वर्षे माघ सु० ६ गुरौ उ० सोहिलवाल गोत्रे सा० ऊदा भार्या उदयसिरि पुत्र घेढा भार्या खेतसिरि आत्म श्रेयोथं श्रीचंद्रप्रभ बिबं कारितं प्र० धर्मघोष गच्छे पूर्णचंद्रसूरि पट्टे श्रीमहेन्द्रसूरिभिः।।
। ६६०) सं० १४७७ वर्षे मा० सुदि १० सोमे प्रा० व्यव० जीदा पुत्र कोहा भा० रामादे पु० आंबाकेन भ्रा० सारंग निमि० श्रीशीतलनाथ बिबं कारित प्र०प० कच्छोलीवाल गच्छे श्रीसर्वाणंदसूरिभिः
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सं० १४७८ वर्षे फागुण व० ८ रविदिने उ० ज्ञातीय श्रे० खडहथ भा० कस्मीरदे पु० मेघाकेन श्रीसंभवनाथ बिंबं का० प्रति० श्रीवृ. श्रीनरचंद्रसूरिभिः ।। श्री ॥
(६६२) ___ सं० १४७८ वर्षे फागुण वदि ८ रचौ उप० ज्ञातीय व्य० ऊधरण भार्या खेतलदे पुत्र थाहरू पितृ पितृव्य भ्रातृ पेथा श्रेयसे श्रीमहावीर बिंब कारितं प्र० श्रीमाल गच्छे भ० श्रीवयरसेनसरि पट्ट भ० श्रीरामदेवसूरिभिः॥
(६६३) सं० १४७६ वर्षे वैशाख सुदि ३ शुक्रे उ० ज्ञातीय श्रे० रा ......... द्र पुत्र स्वीमा भा० रूपी श्रेयसे श्रीधर्मनाथ बिंबंकारितं प्रतिष्ठितं श्रीवृहद्गच्छे श्रीश्रीमुनीश्वरसूरिभिः ।। शुभं भवतु
सं० १४७६ वैशाख सुदि ३ जैसवाल साविग सीप-पेथा जगा.... नृ
(६६५) सं० १४७६ वैशाखे सूरा भा० वील्हू सुत हरपालेन स्वश्रेयो) श्रीशांतिनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीसर्वाणंदसूरिभिः तत्प? भ० श्री .................... - (१)
सं० १४७६ वर्षे प्रा० ज्ञा० न्य० रामसि भा० हांसु सुत वीराकेन भ्रातृजाया पूनादे श्रेयो) श्रीशांति बिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीसोमसुंदरसूरिभिः ।
( ६६७) सं० १४८० वर्षे वैशाख सु० ३ उपकेश ज्ञातौ दूगड़ गोत्रे सा० रूपा भा० मोहिलहि पु० वीरधवलेन स्वभार्या वामहि श्रे० श्रीआदिनाथ बिंबं का०प्र० श्रीरुद्रपक्षीय गच्छे श्रीहर्षसुंदर सूरिभिः ।।
सं० १४८० वर्षे फागुण व० १० बुधे उप० ज्ञा० भ० मंडलिक भार्या माल्हणदे पुत्र ऊदा नीबा आका झांझण नींबा भार्या तारादे पुत्र सहसाकेन भार्या कपुरदे पुत्र देदा स० पितृ पितृन्य श्रेयसे श्रीचतुर्वि० का० प्र० खरतर गच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः
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( ६६६) सं० १४८० वर्षे फागुण सुदि १० बुधे श्रोकोरंटक गच्छे श्रीनन्नाचार्य संताने उपकेश ज्ञातीय सा० कुरसी भा० कपूरदे आत्म श्रेयोथं श्रीसुमति बिंब कारितं प्र० श्रीकक्कसूरिभिः
___ संवत् १४८० वर्षे फागुण सुदि १० बुधे उपकेश ज्ञातोय सा० डीडा भार्या पाती पु. नरपाल भा० पूरी पु० देल्ही सहिते. श्रीमुनिसुव्रत विबं का० प्र० मडाहड़ीय श्रीमुनिप्रभसूरिभिः
.( ७०१ ) ___ सं० १४८० वर्षे फागुण सु० १० बुधे उपकेश ज्ञातोय व्यव सहजा भार्या सोनलदे पुत्र कूताकेन भार्या कपूरदे सपरिकरेण निज पुण्यार्थ श्रीआदिनाथ बिंबं कारितं प्र० श्रीवृद्ध गच्छे भीनवाला । भ० श्रीरामदेवसूरिभिः ।।।
सं० १४८० वर्षे प्राग्वाट वंशे सा० करमसी भा० खेदी द्वि० भा० लाढू प्रथम भार्या पुत सखणत जेसा० भ्रातृ नरसो गोयंद जेसा डूंगर सुतेन स्व मातृ पितृ श्रेयोथं श्रीकुंथुनाथ बिकारितं प्रतिष्ठितं तपागच्छाधिप श्रीसोमसुंदरसूरिभिः।
सं० १४८१ वैशाख बदि १२ श्रीभावडार गच्छ हमे गोत्रे सा० भावदे भा० भावलदे पु० खेताकेन मातृ पितृ श्रे० धर्मनाथ बि० का० प्र० श्री विजयसिंहसूरिभिः ।
। ७०४। ___ सं० १४८१ वर्षे वैशाख वदि १२ रचौ प्रारबाट ज्ञा० व्य० भीमसिंह भार्या चूल्ही पुत्र भादा भा० साल्ह पुत्र जेसाकेन पि० नि. श्रीधर्मनाथ विवं का० प्र० पूर्णिमापक्षे भ० श्रीसर्वाणंदसूरिभिः ।।
___ सं० १४८१ वर्षे वैशाख व० १३ अदा उप० चउराधारा भा० सोनी पु० चाभाकेन श्रीधर्मनाथ बिंब कारितं पितृ श्रेयसे प्र० पूर्णिमा पक्षे श्रीजिनभद्रसूरिभिः ।।
॥ संव०. १४८१ वर्षे वैशाख सुदि ३ प्राग्वाट ज्ञातीय व्य० सामल भार्या संपूरि सुत कृपाकेन भार्या लांबी युतेन स्वश्रेयो) श्रीमुनिसुव्रतस्वामि वि कारितं प्रतिष्ठितं श्रीसोमसुंदरसूरिभिः ।। श्री।।
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सं० १४८१ वर्षे वैशाख सुदि १५ बू दिने उ० ज्ञात... . .. ... ... ....... मादे सुत सीहडेन पितृव्य सूरा निमित्तं श्रीपार्श्वनाथ बिंब कारितं प्र. श्रीजीरापल्लीय गच्छे श्रीवीरचंद्रसूरि पट्टे श्रीशालिभद्रसूरिभिः ॥
(७०८) ॥ स्वस्ति श्रीजयोभ्युदयश्च सं० १४८१ वर्षे माघ सुदि ५ बुधे श्रीनागर ज्ञातीय गो० वयरसींह भार्या वोल्हणदे तयोः सुत गो० पाल्हाकेन श्रीश्रेयांस श्रीजीवितस्वामि बिंब कारापित निजश्रेयसे प्रतिष्ठितं ।। वृद्ध तपा गच्छे श्रीरत्नसिंहसूरिभिः ।। श्री।
(७०६) ॥संवत् १४८२ वर्षे वैशाख यदि ८ दिने रोयगण गोत्रे सा० भीमसीह पु० जूठिल भा० महगल पु० तेजाकेन पित्रोः श्रे० श्रीशांतिनाथ बिबं का० प्र० श्रीधर्मघोष गच्छे श्रीपद्मशेखरसूरिभिः ।
। ७१० संवत् १४८२ वर्षे वैशाख वदि ८ दिने अजयमेरा ब्राह्मण गोत्र सं० गांगा भा० गंगादे पु० डूंगर आत्म श्रे श्रीनमिनाथ बिंब कारितं प्रति० श्रीधर्मघोष गच्छे भ० श्रीमलयचंद्रसूरि पट्टे श्रीपद्मशेखरसूरिभिः ॥ छ ।
( ७११ ) सं० १४८२ वर्षे वैशाख सुदि ७ रवी ....... ऊकेश० वृद्ध .. ... .... सन पूतादे पु० लेगा ....... संसारदे स ... ' न० श्री ...... नाथ बिंबं का० प्र० . . . . . गच्छ भ० श्री .. प्रभ सूरिभिः ।
( ७१२) ___ सं० १४८२ वर्षे ज्येष्ठ वदि ४. तुरे उपकेश ज्ञातीय बापणा गोत्रे सा करधण भार्या रामादे पुत्र देवराजेन भार्या जेसलदे सहितेन श्रीपार्श्वनाथ बिंबं कारितं प्र० उपके० गच्छे श्रीसिद्धसूरिभिः ।। लखम पू० वा ३ महिण (?)
( ७१३ ) सं० १४८२ वर्षे माघ वदि ५ उपकेश ज्ञा० करणाड़ गोत्रे सा० वेउल सुत लखमा भा० लाछी पु० मोहण अजिइसिंह तोल्हा ईसरकेन श्रीवासुपूज्य बियं का पूर्व नि. पुण्या० आत्म श्रे० श्रीउपकेश गच्छे ककुदाचार्य सं० प्र० श्रीसिद्धसूरिभिः ।
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( ७१४ ) सं० १४८२ वर्षे माध सुदि ५ सोमे उ० ललता भा० ललतादे सुत अरुजण भा० रांकू सहितेन आत्म श्रेयसे श्रीवासुपूज्य बिंब का० प्र० श्रीजीरापल्लीय गच्छे श्रोशालिभद्रसूरिभिः ।
( ७१५ ) __ सं० १४८२ वर्षे माघ सुदि ५ सोमे प्रा० व्य० ईला भा० लखम पुत्र हापाकेन भा० हांसलदे सहितेन आत्म श्रेयसे श्रीआदिनाथ बिकं का० प्र० मडाहड़ीय श्रीनाणचंद्रसूरिभिः ।।
सं० १४८२ वर्षे माघ सुदि ५ सोमे उ० व्य. ऊदा भा० ऊमादे पु० देपाकेन भा० सहजु सहितेन आत्म श्रेयो) श्रीविमलनाथ बिंबं का० प्र० मडाहड़ीय श्रीनाणचंद्रसूरिभिः ।।
(७१७ ) ॥ सं० १४८२ वर्षे माघ सुदि ५ सोमे प्रा० व्य० धन्ना भा० झणकू पुत्र ऊदाकेन भा० मानु सहितेन आत्म श्रेयोथं श्रीविमलनाथ विबं का० प्र० मडाहड़ीय भ० श्रीनाणचंद्रसूरिभिः ।।
( ७१८) सं० १४८२ वर्षे माघ सुदि ५ सोमे उपकेश ज्ञातीय श्रे० लूणपाल भा० पूजो पु० गांगाकेन पितृ मातृ श्रेयसे श्रीनमिनाथ बि० कारितं श्रीवृहद्गच्छे श्रीनरचंद्रसूरि पट्ट प्र० श्रीवीरचंद्रसूरिभिः!
(७१६) सं० १४८२ वर्षे माघ सुदि ५ सोमे प्रा० इ .............. ............. पु० वेलाक सहितेन आत्म श्रेयसे श्रीविमलनाथ बिंब कारितं प्र० मड्डाहड़ीय गच्छे भ० श्रीनाणचंद्रसूरिभिः ।
संवत् १४८२ वर्षे फागुण सुदि ३ शनौ प्राग्वाट ज्ञातीय श्रे० राणिग भार्या राजलदे सुता बाई कडू स्वश्रेयोथं श्रीमहावीर वि कारितं प्रतिष्ठितं श्रीतपा गच्छे श्रीसोमसुंदरसूरिभिः।
सं० १४८२ वर्षे प्राग्वाट व्य० दूंडा भा० कश्मीरदे सुत० व्य० केल्हाकेन भा० कील्हणदे पुत्र जयता लोला वाहड़ चउहथ भ्रातृ तिससा ऊटप विरम्म आत्म श्रेयसे श्रीधर्मनाथ बिवं कारितं पिप्पलगच्छीय श्रीवीरप्रभसूरिभिः !
! ७२२ ___ सं० १४८३ वर्षे वैशाख सु० ५ गुरौ प्रा० ज्ञातीय महं० तिहुणसी पु० नीबा भा० काऊ पु० घूताकेन सकुटंवेन समस्त पूर्वज तथा आत्म पुण्याथै श्रीमुनिसुव्रत का० प्रति. साधुपूर्णिमा श्रीधर्मतिलकसूरि पट्टे श्रीहीराणंदसूरि उपदेशेन श्रीसूरिभिः ।।
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(७२३) सं० १४८३ वर्ष माघ सु० ५ शुक्र व्य० लोला भा० वीरी पु० मेरा भा० मेयादे पित्रौ श्रेयसे श्रीसुमतिनाथ विंबं का० प्र० गूदा० भ० श्रोसिरचंद्रसूरि पट्ट भ० श्रोरत्नप्रभसूरिभिः ।
( ७२४) सं० १४८३ वर्ष माघ सुदि ५ गुरुवारे उपकेश वंशे बांभ गोत्रे सा० रत्न भा० पन्नादे पु० जिनदेव राहदेवेन पितृ मातृ श्रेयसे आत्म पुण्यार्थ श्रीआदिनाथ बिंब कारित प्र० श्रीकृष्णर्षि गच्छे श्रीप्रसन्नचंद्रसूरि पट्टे श्रीनयचंद्रसूरिभिः ॥
सं० १४८३ व० फा० व० ११ उ० ज्ञातीय गुंगलिया गोने सा० धुंधा पु० अर्जन भा० आसु पु० लींबा वीरम सामयरा देल्हा श्रेयसे श्रोसुमतिनाथ बिंब का० प्र० श्रीसंडेर गच्छे श्रीयशोभद्रसूरि संताने श्रीशांतिसूरिभिः ।
___ सं० १४८३ वर्षे फा०व० ११ गुरौ ऊ० ज्ञा० वढाला गोत्रे सा० पेथा चाहड़ पु० जोलाकेन भ्रातृ हापा निमित्तं श्रीपद्मप्रभ बिंब का० प्र० श्रीसंडेर गच्छ श्रीशांतिसूरिभिः ।।
___ सं० १४८५ वर्षे वैशाख सुदि सोमे श्रीनाणकीय गच्छे शल गोत्रे श्रे० रतन भा० मंदोअरि पुत्र गोसल भोजा मातृ पितृ श्रेयसे श्रीशांतिनाथ विंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीधनेश्वरसूरिभिः ।
(७२८) सं० १४८५ वर्षे ज्येष्ठ वदि ५ रवौ श्रीश्रीमाल ज्ञातीय पितामह सं० आंबड़ पि० सलखणदेवि पितृ सं० वस्ता मातृ सं० वील्हणदे सुत वीरा पत्राभ्यां पित्रोः श्रेयसे श्रीविमलनाथमुख्यश्चतुर्विंशति पट्टः कारितः श्रीपूर्णिमा पक्षे श्रीसाधुरत्नसूरीणामुपदेशेन प्र० श्रीसूरिभिः पूर्व कन्हाड़ा सांप्रतं मांडलि वास्तव्य ।। श्री।।
। ७२६) सं० १४८५ वर्षे .... यदि ५ जारउदिया गोत्रे सा० खीमपाल पुत्रेण पितृ पुण्यार्थ सा० सोनपालेन श्रीआदिनाथ प्र० कारिता प्र० श्रीहेमहंससूरिभिः ।
(७३० सं० १४८६ वै० सु. १० ऊकेश सा० मोकल पुत्र सा० देवा भार्या देल्ह्णदे पुत्र मांडण भार्यया श्रा० आनि नाम्न्या श्रीकुंथुनाथ बिंबं स्व श्रेयसे कारिता प्रतिष्ठितं श्रीतपागच्छे सोमसुंदरसूरिभिः।
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संवत १४८६ वर्षे वैशाख सुदि १३ शनौ उ. ज्ञा० व्य० अमई भा० चांपलदे पुत्र सांगाकेन मूमण निमित्तं श्रीसुमतिनाथ बिंबं का० प्र० श्रीसत्यपुरीय गच्छे भ० श्रीललतप्रभसूरिभिः
( ७३२ ) सं० १४८६ वर्षे ज्येष्ठ वदि ५ शुक्रे श्रीनाइल गच्छे उप० साह तोला पुत्र मूजाकेन पितृ मातृ श्रेयसे श्रीशांतिनाथ बिं० का० प्र० श्रीरत्नसिंहसूरि पट्टे श्रीपद्माणंदसूरिभिः ।। श्री ॥ श्री ।। छ ।
सं० १४८६ ज्येष्ठ व० ६ शनौ श्रीकोरंट गच्छे ऊकेश ज्ञा० धर्कट गोत्रे सा० करमा पु० रामा भा० नाऊ पु० वीसल सांला काल्हा चांपाकैः पित्रोः श्रे० सुमति बिंबं का०प्र० श्रीनन्नसूरि पट्टे श्रीककसूरि .......
सं० १४८६ ज्येष्ठ वदि........ की विडीसीह भार्या भीमिणि पुत्र अर्जुगेन भार्या रयणादे सहितेन पितृव्य भ्रातृ निमित्तं श्रीआदि बिंबं का० प्र० श्रीनरदेवसूरिभिः
सं० १४८६ वष ज्येष्ठ सुदि १३ सोमे केल्हण गोत्रे सा० शिवराज़ भार्या नत्थि पुत्रेण साह आसुकेन स्व पित्रो श्रेयसे श्रीसुमतिजिन बिंबं प्र० वृहद्गच्छे श्रीमुनीश्वरसूरि पट्टे श्रीरत्नप्रभसूरिभिः
सं० १४८७ वर्षे आषाढ सु० ६ सुराणा गोत्रे सा० नाथू भा० नयणादे पु० जानिगेन । आ० श्रीमुनिसुव्रत स्वामि बिंबं का० प्र० श्रीधर्मघोष गच्छे श्रीपद्मशेखरसूरिभिः ।।
( ७३७ ) सं० १४८७ वर्षे माघ वदि ५ शुक्र श्रीज्ञानकीय गच्छे तेलहर गोत्रे सं० जतन भा० रतनादे पुत्र कान्हाकेन श्रीकुंथुनाथ बिंबं कारापितं प्रतिष्ठितं श्रीशांतिसूरिभिः ।
( ७३८) सं० १४८८ वर्षे मार्गसिर सुदि ११ गुरौ माल्हाउत गोत्रे सा. पाल्हा पु० रील्हण पु० चाहड़ पुत्र सेऊ देवराजाभ्यां निज पुण्यार्थं श्रीआदिनाथ विंबं कारितं प्रतिष्ठितं मलधारी गच्छे श्रीविद्यासागरसूरिभिः।
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(७३६) सं० १४८८ फागुण सुदि ६ रवौ उपकेश ज्ञा० सांगण भा० सलखणदे पुत्र सादा भा० लाखू... 'सुदेआ मूलू तया स्वपूर्वज श्रेयसे श्रीशांतिनाथ विबं का० प्र० श्रीसुरीणामुपदेशेन विधिना श्राद्धः
सं० १४८६ वैशाख वदि ७ बुधे व्य० वसता भा० ववुलदे पु० जतासिंह रतनसिंहाभ्यां श्रीपार्श्व बिंबं का० प्र० श्रीकमलाकरसूरि माल्णवनी
( ७४१ ) सं० १४८६ वर्षे ज्येष्ठ वदि “सोमे श्रीश्रीमाल ज्ञातीय पितृ विल्हण मासल ....... धणपालेन श्रीपार्श्वनाथ बिंबं कारितं पिप्पलाचार्य श्रीपद्मचंद्रसूरिभिः प्रति०
(७४२) ___ सं० १४८६ वर्षे पोष सुदि १२ शनौ उ० ज्ञा० सं० मंडलीक पु० झांझण भा० मोहणदे पु. नीसल भा० नायकदे श्रीअंचल गच्छे श्रीजयकीतिसूरि उपदेशेन श्रीश्रेयांसनाथ बिंबं श्रे० का० श्रीसूरिभिः
सं० १४८६ पोष सुदि १२ शनौ उ० बलहउती गोत्रे सा० पूना भा० पूनादे पुत्र भीलाकीता भाडा लौपितदे श्रे० श्रीमुनिसुव्रत बिंबं का० प्र० श्रावृहदके श्रीधर्मदेवसूरि पट्टे श्रीधर्मसिंह सूरिभिः ॥ श्री
(७४४ ) ॥ संव० १४८६ वर्षेत्र माघ वदि ६ रवौ उपकेश ज्ञा० बावही गोत्रे सा० ललू पु. लखसीह भा० खेतलदे कर्मसी धर्मसो चताकैः स्व पु० श्रीआदिनाथ बिंबं कारि० प्र० श्रीकृष्णऋषि गच्छे तपा पक्षे श्रीजयसिंहसूरिभिः शुभं भवतु ॥
सं० १४८६ व० फागुण वदि २ गुरौ श्रीभावडार गच्छे उ० वाठी० चांपा भा० वाहणदे पु० काला भा० गउरदे पु० ऊझल सहे. मातृ पितृ श्रे० श्रीनमिनाथ बि० प्र० श्रीवीरसूरिभिः ।।
सं० १४८६ वर्षे फागुण वदि ५ सोमे उपकेश ज्ञातीय तेलहर गोत्रे सं० रतन भा० रतनादे पु० देपा भा८ देवलदे आत्म श्रेयसे श्रीअनंतनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं ज्ञानकोय गच्छे श्रीशांतिसूरिभिः॥
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( ७४७ )
|| सं० १४८६ व० [फा० सु० २ सोमे उ० ज्ञा० सुचिंतिया गो० सा० साल्हा भा० डीडी पु० माला भा० मोवलदे श्रे० श्रीशांतिनाथ किं० का० प्र० पूर्णिमा पक्षे श्रीजयभद्रसूरिभिः
व्ह
( ७४८ )
सं० १४६० वर्षे वैशाख सुदि ३ सोमे श्रीश्रीमाल ज्ञातीय सं० नरसिंह भा० पोमी भ्रातृ मेलिघाभ्यां सं० वस्ताकेन उभौ भ्रातृ निमित्तं ) श्रीविमलनाथ बिंबं कारापितं श्रीब्रह्माण गच्छे प्रतिष्ठितं श्रीवीरसूरिभिः ।
( ७४६ )
सं. १४६० वर्षे वैशाख सुदि ३ सोमे उपकेश ज्ञातीय जीराउलि गोष्टिक वीरा भा० वामादे पुत्र सीहडेन भार्या सामलदे सहितेन पित्रोः स्वस्य
( ७५० )
॥ सं० १४६० वर्षे वैशाख सु० ३ प्राग्वाट ज्ञाती व्यु० विरूयाकेन सुत-व्यु० भुंभव काला न पुत्र धर्मिणि श्रेयसे श्रीअजितनाथ बिंबं कारापितं प्रतिष्ठितं श्रीसूरि
'शुभम् ॥
(७५१ )
सं० १४६१ प्राग्वाट व्य० कुंपा बालू पुत्र पेथाकेन भा० शंभू पुत्र चापा नापा चउंडा चांचादि तेन श्रीविधि विका० स्व श्रेयसे प्र० श्रीश्रीसूरिभिः ॥ श्री ॥
(७५२)
सं० १४६१ प्रारबाट व्य० तोहा भा० पांची पुत्र व्य० लूणा राणा भा० लूणादे पुत्र मढा सरजणादि कुटुब युजा श्रीपार्श्व बिंबं का० प्र० तपा श्रीसोमसुंदरसूरिभिः ॥
( ७५३ )
सं० १४६१ प्राबाट व्य० धांधु भा० जइतलदे पुत्र सं० खीमा भ्राता व्य० कुंराकेन भा० कपूरदे युतेन आत्म श्रेयसे श्रीमुनिसुव्रत बिंबं कारितं प्र० त० श्रीसोमसुंदरसूरिभिः ॥
( ७५४ )
|| सं० १४६१ वर्षे आषाढ सुदि २ व्य । पुंजा भा० चिरमादेवी तत्पुत्र वीराकेन भा० भरमादे स्व श्रेयसे श्रीश्रेयांसनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं च भट्टारक श्रीसोमसुंदरसूरिभिः चिरंनंदतात् ॥ श्रीः ॥
( ७५५ )
सं० १४६१ वर्षे फागण वदि ३ दिने मन्त्रिदलीय वंशे मडवाड़ाभिधाननात्र सा० रत्नसीह पुत्र सा खेतान श्री आदिनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनसागरसूरिभिः श्रीखरतर गच्छे |
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सं० १४६२ वर्षे चैत्र वदि ५ शुक्रे उपकेश वंशे सा० घिरा भा० वीझलदे पु० नाथू भा० नितादे आत्म श्रेयसे श्रीश्रेयांस बिंबं कारितं उपकेश गच्छे प्रतिष्ठितं श्रीसिद्धसूरिभिः ।।
___ सं० १४६२ वैशाख वदि ११ शुक्र हुंबड़ ज्ञातीय खीरज गोत्रे सा० खेता भा० रूदी पुत्र मेघा भार्या ठांउ भ्रातृ हापा भार्या गांगी पुत्र दे हेर भा० करणु नाल्हा पासा श्रीकाष्टासंघ वागड़ गच्छे भ० श्रीहेमकीत्ति श्रीनरेन्द्रकीर्तिदेवा सा० मेघा प्रा० संभवनाथ कारापितं ।
(७५८ ) सं. १४६२ वर्षे वैशाख सुदि २ बुधे प्रा० देदा भा० नीतादे पु० वस्ताकेन भा० वीझलदे सहितेन आत्म श्रेयसे श्रीविमलनाथ बिंब कारितं मडाहड़ गच्छे प्रतिष्ठितं श्रीनाणचंद्रसूरिभिः॥
(७५६ ) सं० १४६२ वर्षे वैशाख सुदि २ बु. श्रीउपकेश ज्ञातीय सा० साल्हा भा० चांपल पु० सामंत आत्म श्रेयोथं श्रीशीतलनाथ बिंबं का० श्रीवृहद्गच्छे प्र० श्रीगुणसागरसूरिभिः ।। श्री॥
___ सं० १४६२ वर्षे ज्येष्ठ वदि ११ शुक्रे श्रीज्ञानकीय गच्छे ऊगमण गोष्टी सं० हेमा भार्या हमीरदे पु० कर्णा भा० कामलदे पु० गोपा नापा सहितेन श्रीमुनिसुव्रत बिंब का० प्र० श्रीशांतिसूरिभिः ।।
(७६१) सं० १४६२ वर्षे ज्येष्ठ वदि ११ शुक्रे श्रीज्ञानकीय गच्छे उप० व्य० सूदा भा० रुदलदे पुत्र सारंगेन भार्या जइतु सहितेन पितृ मातृ श्रेयसे श्रीसुमतिनाथ का० प्र० श्रीशांतिसूरिभिः ।।
सं० १४६२ वर्षे ज्येष्ठ वदि ११ शुक्र श्रीज्ञानकीय गच्छे उ० ज्ञाती भेऊ गोष्टिक उच्छुम्मा गोत्रे सा० धन्ना भा० धारलदे पु० कान्हा भा० कपूरदे पु० नोल्हा कामण सहितेन भ्रा० मोल्हा निमित्तं श्रीमुनिसुव्रत बिंब का० प्र० श्रीशांतिसूरिभिः॥
( ७६३ ) सं० १४६२ वर्षे ज्येष्ठ व० देकावाड़ा वास्तव्य वायड़ ज्ञातीय मं० जसा भार्या जासू सुत तिहुणाकेन श्रीवासुपूज्य बिंब आगमगच्छ श्रीहेमरत्नसूरि गुरूपदेशेन पितृ मं० जसा श्रेयो) कारित प्रतिष्ठितं च विधिना॥
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॥सं० १४६२ वर्षे मार्ग वदि ५ गुरुवारे ओसवंशे नक्षत्र गोत्रे सा० काला भा० पूरी पु० सा० भाऊ खीमा श्रवणैः भ्रातृ नानिग ताल्हण श्रेयसे श्रीपद्मप्रभ बिंबं का० प्र० श्रीवृहद्गच्छे श्रीसागरचंद्रसूरिभिः।
(७६५) सं० १४६३ वर्षे वैशाख वदि १३ शुक्रे मांडलि वा० श्रीश्रीमाल ज्ञा० व्य० बेला भार्या लूणादे सुत चांपा श्रेयसे भ्रातृ० हापा ठाकुरसी सहदे राजपाल वयरसिंह श्रीसंभवनाथ पंचतीर्थी का० पूर्णिमा० श्रीमुनितिलकसूरीणामु० प्र० सूरिभिः।
( ७६६) ॥ सं० १४६३ वर्षे वैशाख सुदि ५ बुधे श्रीसुराणा गोत्रे सं० शिखर भार्या सिरियादे पु० सं० सिरिपति श्रीपाल सहसवीर सहसराज भारमल्लैः मातृ पितृ श्रेयसे श्रीचंद्रप्रभ बिबं का० प्र० श्रीधर्मघोष गच्छे श्रीपद्मशेखरसूरि पट्टे भ० श्रीविनयचंद्रसूरिभिः ।।
संवत् १४६३ वर्षे वैशाख सुदि ६ धनेला गो० सा. सुमण पु० महिराज भा० रतनादे पु० पीथा नींबाभ्यां पितुः श्रे० श्रीसंभवनाथ विकं का० प्र० श्रीयशोदेवसूरिभिः ।। पली गच्छे ।।
___ सं० १४६३ वर्षे माध वदि २ बुधे ओसवाल ज्ञातीय व्यव० मोकल भार्या बा० हांसलदे पुत्र देपाकेन आत्म श्रेयसे श्रीसंभवनाथ बिबं कारितं प्र० मड्डाहड़ी गच्छे रत्नपुरीय भ० श्रोधर्मचंद्रसूरिभिः ।। श्री।
(७ ) ॥सं. १४६३ वर्षे माघ सुदि ७ रवौ प्राग्वाट ज्ञातीय पितृव्य जयता भा० सारू श्रेयोथ सुत आसाकेन श्रीवासुपूज्य बिवं कारितं प्रतिष्ठितं पू० खीमाण श्रीमेरुतुंगसूरीणामुपदेशेन ।
सं० १४६३ वर्षे माघ सुदि १० भोमे व्यव० वीका भा० वील्हणदे पु० महिपा सहितेन आत्म श्रेयो) श्रीवासुपूज्य बिंब का० प्रति० कच्छोलीवाल गच्छे पूर्णिमा पक्षे भट्टार श्रीसर्वाणंदसूरीणामुपदेशेन ।।
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हर
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( ७७१ )
|| सं० १४६३ वर्षे फा० ब० १ दिने ऊकेश वंशे लूंकड़ गोत्रीय सा० लींबा सुत आंबाकेन शोभा मंडलीक रूपसी वयरसीह महिरावणादि कुटुंब सहितेन निज पितृ पुण्यार्थं श्रीआदिनाथ बिब कारितं प्र० श्रीखरतर गच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः ॥
( ७७२ )
सं० १४६४ प्राग्वाट व्य० झगड़ा भा० मेघादे पुत्र अजाहरिवासी व्य० मांडणेन भा० माणिक पुत्र करण कान्हादि युतेन श्रीसुमतिनाथ समवशरणं चतु रूपं का० प्र० तपा श्रीसोमसुंदरसूरिभिः ।
( ७७३ )
सं० १४६४ वर्षे प्रा० व्य० धरणिग भा० हेमी सुत व्यव वाछाकेन भा० मल्ही सुत लालादि युतेन स्व श्रेय श्रीवर्द्धमान बिंबं कारितं प्र० श्रीतपागच्छाधिराज श्रीसोमसुंदरसूरिभिः ॥ श्री ॥
( ७७४ )
उपकेश ज्ञातीय मंडोरा गोत्रीय सा० सहसमल भा० श्रेयोर्थं श्रीसुविधिनाथ बिंबं कारितं धर्मघोष गच्छे प्र०
॥ संवत् १४६४ वर्षे वैशाख सुदि हीराई पुत्र सा० राजपालेन पितृ मातृ श्रीविजयचंद्रसूरिभिः ॥ श्री ॥
अ
·
( ७७५ )
सं० १४६४ वर्षे ज्येष्ठ सुदि २ सोमे श्रीनाणकीय गच्छे उपकेश ज्ञातीय सा० आल्हा भा० जाला देवा महिरा पितृमातृ श्रेयसे श्रीधर्मनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीशांतिसूरिभिः
( ७७६ )
सं० १४६४ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १० भौमे उ० ज्ञातीय पाल्हाउत गोत्रे भा० जगसीह पु० झांझण भा० झांझी पुत्र धणराज भा० घण्णा पु० नगराज वाच्छा बींजा सहितेन पित्रो श्रे० श्रीनेमिनाथ बिं० का० प्र० रुद्रपल्लीय गच्छे श्रीजिनहंससूरिभिः ॥ १ ॥
( ७७७ )
|| सं० १४६४ वर्षे माघ सुदि ५ गु० श्रीभावडार गच्छे उ० ज्ञा० वांटिया गो० सा० जेसा भा० हिती पु० धन्ना भा० धुरलदे सहितेन पितृ निमित्तं श्रीआदिनाथ बिंबं कारिता प्रतिष्ठितं श्रीसूरिभिः । शुभम् ।
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(७७८) सं० १४६४ वर्षे माघ सुदि ११ गुरु दिने वहुरप गोत्रे र० भीमा पु० साल्हा तत्पुत्र गउल हीरा आत्म श्रेयो) श्रीअ ...... (भिनं ?) दन बिंब कारापितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतर गच्छेश श्रीजिनसागरसूरिभिः॥
(७७) ॥ सं० १४६४ वर्षे माह सुदि ११ गुरौ उ० ज्ञा० लिगा गो० सहजा भा० उमादे पु० मेल्हा गेला ईसर सहिणैः मूलू निमित्तं श्रीआदिनाथ वि० का० प्र० श्रीरुद्रपल्लीय गच्छ जयहंससूरिभिः ॥
( ७८०) ___ सं० १४६४ वर्षे फागुण वदि ११ गुरौ प्रा० व्य० पातलेन भा० पोमादे पु० सामंत सहितेन पितृव्य सादा निमि० श्रीशीतल बिंबं का० प्र० कच्छोली० श्रीसर्वाणंदसूरिभिः ।।
(७८१ ) सं० १४६५ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १३ दिने श्रीकोरंटकीय गच्छे उ० पोसालिया गोत्रे सा० लूणा भा० लखणी पुत्र वामण भाः वामादे आत्म श्रेयसे श्रीआदिनाथ बिबं का० प्र० श्रीसावदेवसूरिभिः॥
सं० १४६५ वर्षे ज्येष्ठ सु० १३ उप० ज्ञा० रांका गोने सा० नरपाल भा० ललति पु० सादुल भा० सुहागदे पु० देल्हा सुहड़ा ईसर मोयंद सहि० श्रीसुमतिनाथ बिं० का० श्रीउपकेश ग० ककुदा० प्र० श्रीसिद्धसूरिभिः श्रेयोथें ।।
( ७८३ ) सं० १४६५ ज्ये० सु० १४ प्राग्वाट व्य० मेहा भा० जमणादे पु० वयराकेन भा० सारू पुत्र कालादि युतेन श्रीसंभव बिंब का० प्र० तपा श्रीसोमसुंदरसूरिभिः।
(७८४ ) सं० १४६५ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १४ बुधे उप० ज्ञा० ऋ० कूपा भा० कुंतादे पु० मांडण मोकलाभ्यां पित्रोः श्रेयसे श्रीसंभवनाथ बिंबं का० प्र० नाणकीय ग० श्रीशांतिसूरिभिः ।।
सं. १४६५ वर्षे..............५ दिने प्राग्वाट ज्ञा० व्य० दूदा भार्या ... . . . . . . . . . 'श्रेयसे श्रीविमलनाथ बिंबं का०प्र० श्रीसोमसुंदरसूरि (?).
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(७८६) सं० १४६६ वर्षे प्रा० व्य० माला भार्या भरमादे सुत सिंघाकेन भा० सिंगारदे सु० साडा वस्ता राजा भोजादि युतेन स्व श्रेयो) श्रीअनन्तनाथ बिवं का० प्रति० तपागच्छ नायक श्रीसोमसुंदरसूरिभिः श्रीः ॥
।। सं० १४६६ वर्षे वै० व० ४ गुरौ ऊकेश ज्ञा० सा० पोपा भा० पाल्हणदे पु० सा० चूणाकेन भा० हांसी सु० जेठा कांगादि कुटुंब युतेन वृद्ध भ्रातृ दूदा श्रेयसे श्रीमल्लिनाथ सिंबं का० प्र० श्रीसूरिभिः॥
( ७८८ ) ॥६०॥ संवत् १४६६ वर्ष वैशाख सु० ६ श्रीउपकेश वंशे साधुशाखीय सा० जेठा पुत्र सा० वेलाकेन पुत्र कम्मा रिणमल भउणा देदा युतेन श्रीश्रेयांस बियं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतर गच्छे श्रीजिनराजसूरि पट्टे श्रीश्रीश्रीजिनभद्रसूरिभिः।
( ७८६) ___ संव० १४६६ वर्षे वैशाख सुदि ११ बुधे प्राग्वाट ज्ञातीय व्यव० ऊदा भार्या आल्हणदे पित्रोः श्रेयसे सुत आसाकेन श्रीश्रीवासुपूज्य मुख्य पंचतीर्थी कारिता । भीमपल्लीय श्री पु० श्रीपासचंद्र सूरि प? श्रीजयचंद्रसूरीणामुपदेशेन प्रतिष्ठितं श्री ।।
( ७६०) सं० १४६६ ज्येष्ठ सुदि ५ शुक्रे उप० ज्ञा० व्य० सगर भा० सुगणादे पु० सोमाकेन भा० जसमादे पु० लखमण सहितेन श्रीआदिनाथ बिंबं का० प्र० पिपल गच्छे श्रीवारप्रभसूरिभिः
७६१) सं० १४६६ वर्ष फागुण वदि १० सोमे श्रीउसवालान्वये खांदड़ गोत्रे सा० डीहा भा० देल्हणदे पु० नराकेन आत्म श्रियोथं श्रीमुनिसुव्रतनाथ बिंबं का० प्र० श्रीधर्मघोष गच्छे भ० श्रीविजयचंद्रसूरिभिः
(१२) १४६७ प्राग्वाट व्य० पूना पुत्र व्य० हाथराज भार्या उरी पुत्र गोसलादि युतेन श्रीकुंथु बिंब कारितं प्र० श्रीसूरिभिः
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(७६३) सं० १४६७ वर्षे ज्येष्ठ सुदि २ सोमे श्रीनाणकीय गच्छे उपकेश ज्ञातीय सा० आल्हा भा० ... . .......... जोला देपा महिरा पितृ मातृ श्रेयसे श्रीधर्मनाथ बिंब कारित प्रतिष्ठितं श्रीशांतिसूरिभिः॥
. ७६४) सं० १४६७ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ३ व्य० पर्वत सुत - .. .व पुरष सामल पु० भादा भा० हांसादे पु० देवसीकेन भा० हीरादे सहितेन स्व श्रेयसे श्रीसंभवनाथ बिंबं का० वृह भ० श्रीअमरचंद्रसूरिभिः
सं० १४६७ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ३ सोमे छाजहड़ गोत्र आसधर पु० नोडा भा० नामलदे पु० गोइन्द भा० सपूरदे पु० मेघा वेला सहितेन आ० श्रेयोथं श्रीकुंथुनाथ बि० का० प्रति० श्रीपल्लीवालीय गच्छे श्रीयशोदेवसूरिभिः।
सं० १४६७ आषाढ व .... मेजा पुत्र व्य० मायराज भार्या हरा पुत्र गोसलादि युतेन श्रीजिन बिंबं कारितं प्र० श्रीसूरिभिः
॥ ६० ॥ सं० १४६७ व० माह सु० ५ शुक्र दूगड़ गोत्रे सा० देल्हा संताने सा० आसा पु० सा० सोमा भा० सोहिणी पु० देवाकेन पितृ श्रेयसे श्रीअनन्तनाथ बिंबं कारितं प्र० रुद्रपल्लीय भ० श्रीदेवसुंदरसूरि पट्टे भ० श्रीसोमसुंदरसूरिभिः ।।
सं० १४६७ वर्षे माह सुदि ५ शु ....... ... नापा भा० चाहिणिदे सु० पीपाकेन पित्रो तथात्म श्रेयसे श्रोसंभवनाथ बिंबं का० प्र० श्रीहेमतिलकसूरि पट्टे श्रीहीराणंदसूरिभिः ।।
( E) सं० १४६७ माह सुदि ८ सोमवारे नाहर गोत्रे सा० नेना भार्या खेतू पु० धर्माकेन पितृ सोपति श्रेयोथं श्रीविमलनाथ बिंबं का० प्र० धर्मघोष गच्छे भ० श्रीविजयचंद्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥
(८००) ॥ सं० १४६८ वर्षे ज्येष्ठ सुदि २ खटवड़ गोत्रे सा० तहुणा भा० तिहु श्री पु० रेडाकेन पित्रोः श्रेयसे श्रीधर्मनाथ बिबं कारितं प्र० मलधारि श्रीगुणसुंदरसूरिभिः ।।
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(८०१) ॥६० ॥ संवत् १४६८ मार्गसिर वदि ३ बुधे उपकेश। नाहटा गोत्रे सा० जयता भार्या जयतलदे पुत्र देपाकेन श्रीमुनिसुव्रत बिबं पुण्याथं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतर गच्छे भ० श्रीजिनभद्रसूरि ।
(८०२) ___ सं० १४६८ वर्षे पोष सुदि १२ शनौ उ० व्य० सं० मंडलीक पु० झांझण भा० मोहणदे पु० निसल भा० नायकदे श्रीअंचल गच्छे श्रीजयकीर्तिसूरि उपदेशेन श्रीश्रेयांसनाथ बिंबं श्रे का० श्रीसूरिभिः॥
( ८०३ ) सं० १४६८ वर्षे माघ सु०५ गुरौ उस० खांटड़ गोत्रे सा० मेघा भा० मेघादे गुणराज सदासहसे हांसादि सहितैः श्रीसुमतिनाथ बिंब पितृव्य सदा निमि० का० प्रति० धर्मघोष गच्छे श्रीविजयचंद्रसूरिभिः ॥
(८०४) सं० १४६८ व० फा० वदि १२ बुधे उप० ज्ञाती० धारसी भा० धारलदे पु० देपाकेन भा० देल्हणदे सहितेन भ्रा० लखा निमित्तं श्रीमहावीर बिंबं का० प्र० मडाह० श्रीनयचंद्रसूरिभिः ।।
(८०५) ॥६० ॥ संवत् १४६८ फा० सुदि ५ दिने उपकेश वंशे नाहटा गोत्रे सा० जयता भा० जयतलदे पु० हापाकेन श्रीनमिनाथ विंबं पुण्यार्थं कारितं प्र० श्रीखरतरगच्छे भ० श्रीजिनभद्रसूरिभिः ।।
( ८०६) ___ सं० १४६८ वर्षे फागुण सुदि १० चंडालिया गोत्रे सा० नरसी पु० सा० माकल भा० माणिकदे नाम्न्या आत्म श्रे आदिनाथ बिंबं का० प्र० श्रीमलधारी श्रीगुणसुंदरसूरिभिः ।।
(८०७) ॥ सं० १४६६ वर्षे ज्येष्ठ पदि ११ रवौ ओसवाल हातीय सा० सीहा पु० साल्हा पु० सामल भा० दूडा (रूपा ) पु० साढा भ्रा० पु० श्रीकुंथुनाथ बिबं का० प्र० पू० ग० श्रीभावदेवसूरिभिः ।
(८०८ ) संव० १४६६ वर्षे माघ वदि ६ गुरु उप० नवहा रेजम (१) भा० शाणी पु० मावनल (१) भार्या करणू पुत्र कर्मा सहितेन आत्म श्रेयसे श्रीपद्मप्रभ बिबं कारितं प्रतिष्ठितं पिप्पलाचार्य श्रीवीरप्रभसूरिभिः ।
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..................... ६७
(208) सं० १४६६ वर्षे माघ सुदि १० श्रीमूल संघ भ० श्रीपशनंदिन्वये भ० श्रीसकलकीति त. भुवनकीत्ति खं० वाल पाटणी सा० भावदे सुत लक्ष्मण सा० धानी सा० रामण भा० रणादे सा० कर्णा रम सा० छाहड़ ॥ श्रीशांतिनाथ प्रणमति ॥
( ८१० ) सं० १४६६ फागुण वदि १३ खटवड़ गोत्रे सा० उदा० भा० उदयश्री पु० खीमा भा० खीवसिरी द्विती० भा० लाछि सहितेन निज पितृ मातृ पुण्यार्थ श्रीचंद्रप्रभ बिंबं का०प्र० श्रीधर्मघोष गच्छ श्रीमहेन्द्रसूरिभिः ।। श्री ॥
(८११) ॥ सं० १४६६ व० फागुण २० २ गुरौ श्रीकोरंट गच्छे नन्नाचा० सं० उ० झा० पोसालिया गोत्रे सा० वीसा भा० माधु पु० मुंज भा० पांच पुत्र हीरा सहितेन श्रीसुमतिनाथ बि० का० प्र० श्रीभावदेवसूरिभिः
( ८१२) - सं० १४६६ ५० फागुण वदि २ गुरौ श्रीमाघडार गच्छे उप० वाठी० चांपा भा० राहणदे पु० काला भा० तुउरदे पु० ऊजल सहे मातृ पितृ श्रे० श्रीनमिनाथ बिबं प्र० श्रीवीरसूरिभिः
॥ सं० १४६६ वर्षे फागु० २ दिन:भ० श्रीसंडेर गच्छे भं० हरीया पु० सोना भा० सोनलदे पु० जेसा खेता फला पाता राउलाभ्या स्व श्रेयसे श्रीशांतिनाथ बिंबं का० प्र० श्रीशांतिसूरिभिः
(८१४ ) संवत् १४६६ वर्षे फागुण वदि ४ सोमे ऊ. खांटड़ गो० सा० मोहण पु० वीजड़ वि० भावलदे पति निमित्तं श्रीअरनाथ । प्र० ध० श्रीविजयचंद्रसूरिभिः॥
(८१५) सं० १४ वर्षे ....सुदि १२ श..............सुत मोपा भार्या ........ सांगणेन श्रीसुमतिनाथ बिं० का० प्र० श्रीसूरिभिः
सं० १४. ज्येष्ठ वदि ......................"भार्या मिणि पुत्र........... सहितेन पितृव्य ..... निमित्तं श्रीआदिनाथ विवं का० प्र० श्रीजित (१ जिन) देवसूरिभिः
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(८१७) संवत् १४ वर्षे प्राग्वाट झा० व्य० महिवड़ भा० कमलदे पुत्र नापाकेन पित्रोः श्रेयसे आन्म श्रेयसे श्रीमहावीर बिवं कारितं प्रति० मडाहड़ीय श्रीमुनिप्रभसूरिभिः ।
(८१८ )
___संवत् १४ ... ... . . . . . . . . . . . . . पु० पलमल श्री भार्या .. कारितं प्रतिष्ठितं श्रीअभयचंद्रसूरिभिः
( ८१६ ) सं० १४.................. सोमे प्राग्वाट ज्ञातीय भ्रातृ जाया नामलदेवी............... ... . . . . . . . . . . . श्रेयोथं मणिपदमेन श्रीशांतिनाथ बिबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजयवल्लभसूरिभिः।
( ८२०) सं० १५०० मि० वैशाख सु० २ श्रीमूल संघे भ० श्रीसकलकीर्ति देवाः मल . . . . . . . . . . . भ. श्रीभुवनकीर्तिदेवा
(८२१ ) संवत् १५०० वर्षे वैशाख सुदि २ रखो श्रीमूलसंघे भ० श्रीसकलकीर्ति देवाः तत्पट्ट भ० श्रीभुवनकीर्ति देवाः हुमटा० अहरा भार्या करमी सुत अर्जुन सा० मातृ भा० पाचा पुरौराजी प्रतिष्ठापियतत् श्रेष्टि ......................... प्रणमसि ।।
सं० १५०० माघ २०६ प्राग्वाट व्य० जयता भा० देवलदे पुत्र मोजा भाजा वाछू भ्रास मरसिंह भरसिंहादि युतेन श्रीशांतिबिंब प्रति० तपागच्छे श्रीसोमसुंदरसूरि शिष्य श्रीजयचंद्रसूरिभिः
( ८२३ ) ..... बिंबं कारितं नरचंद्रसूरीणामुपदेशेन
( ८२४ )
सं० १७८ (१ १४७८) वर्षे पैशाख बदि ५ गुरो भ्रातृ कर्मसीह श्रेयसे ठ० कूर सहितेन श्रीनेमिनाथ बिंब कारापितं आ.....य श्रीरत्नसागरसूरयः
(८२५)
............ते भ० भार्या नयणी पुत्र घुम्मण उद्धरण अभयराय युतेन स्व० पु० श्रीआदिनाथ बिं० का० प्र० रुद्रपल्लीय गुणसुंदरसूरिभिः ।।
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( ८२६) .......... ... सुदि .................. रेण निज पित्रोः पुण्याथं श्रीशांतिनाथ विवं कारितं प्रतिष्मितं श्रीखरतर गच्छे श्रीजिनसागरसूरिभिः॥
(८२७ ) सं............"सु० ११ भौ० प्रा० व्य० कगसा भा० सिरियादे पु० को ....... पित्रोः बीरा म० श्रीमुनिसुव्रत · पंचतीर्थी का० साधु० पू० ग० श्रीधर्मतिलकसूरिणामुपदेशेन ।।
(८२८ ) सं०........... महावीर बिर्ष का० प्र० खंडेर गच्छे श्रीयशोभद्रसूरि संताने श्रीसुमति सूरिभिः
(८२६) सं............ "वर्षे वैशाख सुदि..........: श्रेष्ठि अरिसीह भार्या विणि पु.......... ........... प्रतिष्ठितं........"सूरिभिः
( ८३०) ............. वर्षे देख वा० प्रा० ज्ञा० व्य० खीमा भा० लाछलदे सु० व्य० लोलाकेन भा० पूगी पु० खेता भूणादि कुटुंब युतेन श्रीआदिनाथ विंबं का............
( ८३१ ) ...............व श्रेयसे भार्यया बिबं कारितं प्र० श्रीसिद्ध
सं०........ ............... कारित प्र० श्रीसूरिभिः
( ८३३ ) संवत् ................ वैशाख सुदि ३ शुक्र श्रीश्रीमाल ज्ञातीय व्य० खेता........'नाल्हाकेन
(८३४) ...............त्म श्रेयोर्थ शांतिनाथ कारितं ।
(८३५ ) सं० १......... श्रेयोथं श्रीकुंथनाथ सिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीसूरिभिः
...'प्रभु........
"तृ पित
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(८३६).
....... - भार्या पोइणि पुत्रेण लूणसीकेन पितृ ... पाल भ्रात वि...... ............ . श्रेयसे.....................विंबं प्र०..... . ........"गुप्तसरिभिः (श्रीदेवगुप्तसूरिभिः १)॥
८३७ ) सं० १५०१ वर्षे प्राग्वाट व्य० सांगा भार्या सुल्ही पुत्रीकया श्रा० झबकू नाम्न्या स्व श्रेयसे श्रीनमिनाथ बिंब का० प्र० तपा गच्छे श्रीमुनिसुंदरसूरिभिः ।। श्री।
( ८३८ ) सं० १५०१ वर्षे ओस० न्य. महिपा भार्या मंदोअरि सुत व्य० वाहिडेन भा० कुंती सुत पना खीमा हीरादि कुटुंब युतेन स्वश्रेयोथे श्रीमुनिसुव्रतनाथ बिंब का० प्र० तपा श्रीमुनिसुंदरसूरिभिः॥
( ८३६ ) सं० १५०१ वैशाख सुदि ३ शनौ वाइयाण गोत्रे श्रीभा (१ ना) गर ज्ञाती० श्रे अर्जुन भा० सुल्ही पु० कान्हा गांगा चांगा भा० नामलदे पु० मेघा श्रेजेसा भा० जसुमादे मांकड़ जेसा भा० मेघा श्रेयोथं श्रीशांतिनाथ बिबं कारितं श्रीजयशेखसूरिपट्टे श्रीजिनरत्नसूरिभिः प्रतिष्ठितं ।।।
( ८४० ) सं० १५०१ वर्षे वैशाख सुदि ३ शनी उपकेश शातीय व्यय सा० चांपा भा० तामलदे पुत्र भांडा भा० झांडलदे पुत्र जावड़ युतेन भांडाकेन श्रीसुविधिनाथ बिबं कारितं प्र० मडाहड़ गच्छे श्रीगुणसागरसूरिभिः
सं० १५०१ वर्षे वै० सु. ३ उपकेश गच्छे मकुदाचार्य संताने उप० ज्ञातौ ता० गोत्रे सा० दशरथ । भा० पंजुही पु। सालिगेन पु० रंगू साहण रिणमल सहितेन पित्रोः श्रेयसे श्रीनमिनाथ बिर्व कारितं प्र० श्रीश्रीकक्कसूरिभिः॥ ।
( ८४२ ) ___ सं० १५०१ वर्षे वैशाख सुदि ३ श्रीश्रीमाल ज्ञातीय व्यव० ऊदा भा० ऊमादे पुत्र हेमाकेन स्वपिस मातृ श्रेयसे श्रीअजितनाथ बिंबं कारितं श्रीपूर्णिमापक्षीय श्रीजयचंद्रसूरीणामुपदेशेन प्राविधिना
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।। सं० १५०१ वर्षे वैशाख सुदि ५ सोमे प्रा० ज्ञातीय सा० भादा भा० सोहिणि पु० बीसल भा० नाल्हू सहितेन पित्रोः श्रेयसे श्रीविमलनाथ बिंबं का० प्र० नु० गच्छे श्रीअमरचंद्रसूरिभिः
( ८४४ ।
सं० १५०१ वैशाख सुदि ६ शुक्रे (?) श्रीकाष्टासंघ भट्टारक श्रीमलयकीर्तिदेव वसाथ पति प्रणमति
4. M
( ८४५ )
॥ संवत् १५०१ वर्षे ज्येष्ठ वदि ११ सोमे उप० चिचट गोत्रे सा० बीजा भा० विजयश्री पु० गोइन्द भा० गुणश्री पु० सारंग सहितेन आत्म श्रेयसे श्रीकुंथुनाथ बिंबं कारितं श्री उपके गच्छे ककुदाचार्य संताने प्र० श्रीककसूरिभिः
( ८४६ )
सं० १५०१ वर्षे ज्येष्ठ बदि १२ सोमे उ० आदित्यनाग गोत्रे सा० मीहा पु० हरिराज भा० जरि पु० पालू सोमाभ्यां पितुः श्रे० सुविधिनाथ बिंबं का० उ० श्रीकुकदाचार्य सं० श्रीककसूरिभिः
८४७ )
|| ६० || संवत् १५०१ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ६ शनौ ऊकेश वंशे वीणायग गोत्रे सा० लूणा पुत्र सा० हीरा भार्या राजो तत्पुत्र सा० लूणा सुश्रावकेन पुत्र आसादि परिवार युतेन श्रीशांतिनाथ बिबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतर गच्छे श्रीजिनराजसूरि पट्टे श्रीजिनभद्रसूरिभिः ॥ १
८४८ )
सं० १५०१ वर्षे आषाढ सुदि २ सोमे उपकेश ज्ञातीय व्यब० नीना भार्या नागलदे पुत्र सुहणा भार्या माणकदे सहितेन पितृ पितृव्य भ्रातृ श्रेयोर्थं श्रीसुमतिनाथ बिकारापितं प्रतिष्ठि ब्र० गच्छे श्रीउदयप्रभसूरिभिः ॥
( ८४६ )
स० १५०१ वर्ष माघ व० ६ प्रा० सा० सायर भार्या सुहागदे सुतया भोजीनान्न्या स्व श्रेय श्रीशांतिनाथ बिंबं का० प्र० तपा श्रीसोमसुंदरसूरि शिष्य श्रीमुनिसुंदरसूरिभिः ।
( ८५० )
सं० १५०१ वर्षे माघ व० ६ प्राग्वाट ०
चंद्र पुत्र दड़ान शिवा कुंभा कमसी सहलू पुत्र सा० देल्हण युतेन स्व श्रेयसे विमलनाथ वि० का० प्र० तपा श्रीसोमसुंदरसूरि शिष्य श्रीश्रीश्रीमुनिसुंदरसूरिभिः ।
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( ८५१ )
|| सं० १५०१ वर्षे माघ वदि ६ बुधे खटवड़ गोत्रे सं० घेला संताने सं० भोला पुत्र जाटा सत्पुत्रेण सा । सहसाकेन केसराजादि पुत्र युतेन निज पुण्याथं श्रीसुमतिनाथ बिंबं का० प्र० रुद्रपल्ली गच्छे श्रीजिन राजसूरिभिः ।
( ८५२ )
सं० १५०१ वर्षे माघ नदि ६ बुधे श्रे० काजा भार्या सद ( ? ) पुत्र करण केन भ्रातृ मराter (?) युतेन स्व श्रेयसे श्रीमुनिसुव्रत बिंबं का० प्र० तपा श्रीमुनिसुंदरसूरिभिः
( ८५३ )
।। सं० १५०१ वर्षे माह सुदि ५ बुधे श्रीश्रीमाल ज्ञा० व्य० तिहुणा भा० २ तिभुणदे प्र० भा० ताल्हणदे पु० देवल भा० लागाणदे पु० सायर सगर आत्म श्रे० श्रीचंद्रप्रभस्वामि बिं० का० प्र० श्रीब्रह्माणी गच्छे श्रीउदयप्रभसूरिभिः ॥ ७४ ॥
( ८५४
सं० १५०१ वर्षे फागुण सुदि ७ बुधे उप० ठा० शाणा भा० बूटी पुत्र चांपाकेन भ्रातृ हीदा सहितेन श्रीमहावीर बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं पिप्पल गच्छीय भ० श्रीवीरप्रभसूरिभिः शुभंभूयात् । ( ८५५ )
सं० १५०१ वर्षे फाल्गुन सुदि १२ गुरौ श्रीअंचल गच्छेश श्रीजयकीर्तिसुरीणामुपदेशेन श्रीश्रीमाल श्र० धर्मा भार्या डाही पुत्रेण श्रे० वेला अमीयासूरा भ्रातृ सहितेन श्रे साइयाकेन श्रीसुमतिनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीसंघेन !
( ८५६ )
संवत् १५०१ फागुण दि १२ तिथौ शनिवारे सूराणा गोत्रे सं० सोमसा पु० कीका पुत्र सं० सोनाकेन लखसी निमित्तं पितुः श्रेयसे श्रीअजितनाथ बिंबं कारापितं प्रतिष्ठितं श्रीधर्मघोष गच्छे श्रीविजयचंद्रसूरिभिः ॥
( ८५७ )
॥ सं० १५०१ वर्षे फागुण सुदि १३ तिथौ शनिवारे । श्रीकेश ज्ञांतीय श्रीकूकड़ा गोत्रे साह सादूल भार्या सूहषदे पु० सा० तोला सातलाभ्यां पि० वेला श्रेयसेन श्रीकुंथनाथ बिंबं करापितं प्र० श्रीउस गच्छे। श्रीककसूरिभिः ।
( ८५८ )
संवत् १५०२ वर्षे वैशाख सुदि १ भ० श्रीजिनचंद्र तब लबनित्रेने तार्या ह
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'ष्टि गोत्रे उष्टे जू !
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( ८५६ )
सं० १५०२ वर्षे ज्येष्ठ वदि ६ प्राग्वा० वृद्ध० व्यव० लक्ष्मण भार्या तेजू सुत कीइन भार्या वाल्ही. पुत्र सहितेन स्व श्रेयोथं श्रीमुनिसुव्रतनाथ बिंबं का० प्रतिष्ठितं श्रीउदभ ग० श्रीश्रीवीर चंद्रसूरिभिः ॥
१०३
( ८६० )
सं० १५०२ म० व० ४ प्रा० व्य० महणसी माल्हणदे सुत दादू लघु भ्रातृ सूराकेन स पितृ श्रेयसे श्रीकुथु यिं कारितं प्र० श्रीतपागच्छेश श्रीसोमसुंदरसूरि शिष्य श्रीजयचंद्रसूरिभिः ।
( ८६१ )
|| सं० १५०२ (३१) पोष वदि १० बुधे श्रीश्रीमाली श्रे० सहसाकेन काराप्य वा० श्रीराजमेर राजवलभाभ्यां प्रदत्तं श्रीपूर्णिमा पक्षे श्रीसाधुरत्नसूरिभिः प्रतिष्ठितं । माता पिता ।
( ८६२ )
संवत् १५०२ वर्षे माघ सुदि १३ रवौ उपकेश ज्ञातीय वृति जागा भा० वानू पित्रोः भ्रातृ पद्मा श्रेयसे सुत पीना जसाभ्यां श्रीसंभवनाथ मुख्य पंचतीर्थी कारिता पूर्णिमा पक्षे भीमपल्लीय भ० श्रीपास चंद्रसूरि पट्ट े भट्टारक श्रीश्रीजयचंद्रसूरीणामुपदेशेन प्रतिष्ठितं शुभं भवतु ॥
( ८६३ )
|| ६ || सं० १५०२ वर्षे फाल्गुण वदि २ दिने ऊकेश वंशे पुसला गोत्रे देवचंद्र पु० आका भार्या मचकू पु० सोता सहजा रूवा खाना धनपा भ्रातृ युते सहजाकेन स्व श्रेयसे श्रीआदिनाथ बि० का० प्र० श्रीखरतर गच्छे श्रीजिनसागरसूरिभिः ॥
८६४
सं० १५०३ वर्षे जांगड़ गोत्रे नरदेव पुत्र हेमाकेन सुरा साजा सादा भादा प्रकृतेन कारिता श्रीशांति बिंबं प्रतिष्ठितं श्रीजिनभद्रसूरिभिः श्रीखरतर गच्छे ||
८६५
सं० १५०३ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ११ शुक्रवारे पीपाड़ा गोत्रे मं० सीमा भा । भावलदे पुत्र मं० सारंगेन स्वमातृ पुण्यार्थं श्रीसुमतिनाथ करा० प्रतिष्ठि श्रीतपा श्रीमहंससूरिभिः ॥
( ८६६
सं० १५०३ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ११ श्रीसुराणां गोत्रे सं० नात्र भा० नारिंगदे पु० सा० वेरा थाइकू रामा भीमाकैः सकुटंबेन श्रीअजितनाथ बिंबं का० प्र० श्रीधर्मघोष गच्छे श्रीपद्मशेखरसूरि
भ० श्रीविजयचंद्रसूरिभिः ॥
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( ८६७ ) सं० १५०३ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ११ श्रीउप० श्रीककुदाचार्य सं० अहितणा गोत्रे प्रमत सा तापा महावरि संवरा भा० संवरश्री पु० देहू भायो हर्ष पु० गुणराज भ्रा० माचरत ........ : श्रीअजित बिंब का० प्र० श्रीकक्कसूरिभिः ॥
८६८ ॥ संवत् १५०३ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ११ शुक्र श्रीकोरंट गच्छे श्रीनन्नाचार्य संताने उपकेश ज्ञातीय कांकरिया गोत्रे सा० नवला पु० भोजा भार्या सारू पुत्र सायर गोदा सामंत फोदू प्रभृतिभिः पित्रोः श्रेयसे श्रीपद्मप्रभ बिंब कारितं श्रीकक्कसूरि पदे प्रतिष्ठित श्रीसावदेवसूरिभिः ।।
सं० १५०३ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ११ शुक्रे उप० सत्यक शाखायां पु० सोढा पु० देपा भा० पेढी पु० गेहा भा० गउरदे पु० बाच्छा चांपाकेन पि० मा० निमित्तं श्रीविमलनाथ बि० का० प्र० पूर्णिमा पक्षे श्रीजयभद्रसूरिभिः
____सं० १५०३ वर्षे ज्ये० सु० ११ शुक्र उ० वाघरा गोत्रे सा० गांगा भार्या सुदी पुत्र काजलेन पिट मातृ आत्म श्रेयसे श्रीनमिनाथ बिबं का० उ० श्रीसिद्धाचार्य संताने श्रीककसूरिभिः
. संवत् १५०३ आषाढ सुदि ह गुरौ दिने श्रीउपकेश गच्छे ककुदा० सं० आदित्यनाग गो० सा० जसीपी पु० समरा भा० समरश्री पु० देऊ भा० हर्षमदे पु० गुणराज सहितेन स्व श्रे० श्रीआदिनाथ विध कारा० प्रति० श्रीकक्कसूरिभिः ।।
सं० १५०३ वर्षे मार्ग वदि १० सोमे श्रीनाणकीय गच्छे। ठाकुर गोत्रे साह जगमाल भार्या जसमादे पुत्र सहितेन धर्मनाथ बियं कारितं ॥ श्री ॥
( ८७३) ॥ संवत् १५०३ वर्षे मगसिर सुदि रवौ द्वितीया शृगाल ज्ञातीय सं० जाणा भार्या जयणादे पु० ववषण भा० साल्हू भ्रातृ हादाकेन भ्रातृ नि० बिबं श्रीआदिनाथ कारापितः प्र. श्रीजयप्रभसूरि पट्टे श्रीपूर्णि० श्रीजयभद्रसूरिभिः ।।शुभी
(८७४) संवत् १५०३ वर्षे माह वदि ४ शुक्रे श्रीनाणकीय गच्छे शीथेरा गोष्टिक सा० ऊगा भा० रोहिणि पु० वरसा वीरम पु० सहितेन श्रीचंद्रप्रभ विंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्री.........
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सं० १५०३ मा० ५०४ पीडरवाड़ा वा० प्रा० सा० पोपन भा० पूनी सुत खीमाकेन भा० सहजू सुत नाथू युतेन श्रीआदिनाथ बिंब का० प्र० तपा श्रीसोमसुंदरसूरि शिष्य श्रीश्रीजयचंद्रसूरिभिः॥
( ८७६ ) सं० १५०३ माघ २० ५ प्राग्वाट व्य० लखमण भा० चांपल पुत्र साजणेन भा० वाल्ही पुत्र सिंहादि युतेन श्रीकुथु बिंबं स्वश्रेयसे कारितं प्रति० तपा श्रीसोमसुदरसूरि शिष्य श्रीजयचंद्रसूरिभिः ।
सं० १५०३ मा० सु० २ प्राग्वाट व्य० धागा भा० धांधलदे पुश्या व्य० महिपाल भगिन्या श्रा० होरूनाम्न्या स्व श्रेयसे श्रीचंद्रप्रभ बिंब का०प्र० तपा श्रीसोमसुंदरसूरि शिष्य पूज्य श्रीजयचंद्रसूरिभिः ॥ श्री॥
(८७८) सं० १५०३ वर्षे माघ सु०४ गुरु श्रीश्रीमाल ज्ञातीय श्रे गणपति भा० टीयू सुत सीहाकेन स्व पितृ श्रेयसे श्रीकुंथुनाथ बिंबं आगम गच्छे श्रीहेमरत्नसूरीणामुपदेशेन कारितं प्रतिष्ठितं सोलपाम वास्तव्यः शुभं भवतु ॥ श्री
(८७६) सं० १५०४ वर्षे वै० वदि ६ भौमे प्रा० व्यव० देपा भार्या हासलदे पुत्री वयजू नाम्न्या आत्म श्रेयसे श्रीविमलनाथ बिंबं कारापितं प्रति० श्रीसर्वानंदसूरीणामुपदेशेन ।
(८८०) ॥ सं० १५०४ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ४ दिन उपकेश ज्ञातौ भ................... पद्माकेन भा० माई पुत्र जसधवल युतेन पित्रोः श्रेयसे श्रीचन्द्रप्रम बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रोउपकेश गच्छे ककुदाचार्य संताने श्रीककसूरिभिः ॥
(८८१) संवत् १५०४ वर्षे आषाढ वदि २ सोमे प्राग्वाट वंशे झांझण भार्या कपूरदे पुत्र अजा भार्या सीपू सहितेन श्रीकुथुनाथ विषं कारित प्रतिष्ठितं श्रीखरतर गच्छे श्रीजिनधर्मसूरिभिः ।।
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८८२ )
॥ संवत् १५०४ वर्षे आषाढ सुदि १० बुधे वास० श्रृंगा० ज्ञा० सा० ऊदा भा० चांपलदे पु० नीमल भा० सहजलदे पु० भारमलेन आत्म श्र० श्रीसुविधिनाथ बिं० का० प्र० पूर्णि० श्रीजयभद्रसूरिभिः ।
१०६
( ८८३ )
॥ सं० १५०४ वर्षे मार्गसिर सुदि ५ उ० भूरि गोत्रे सा० धर्मा भार्या सांपई पुत्र नाथू भार्या अमरी नाल्हकेन पितृ मातृ पुण्यार्थं श्रेयांस बिंबं का० प्रति० धर्मघोष गच्छ भ० श्रीपूर्णचंद्रसूरि पट्ट भ० श्रीमहेन्द्रसूरिभिः ॥ शुभम् ॥
८८४
सं० १५०४ वर्षे माह वदि ३ उपकेश ज्ञातीय सा० जयता भा० ताल्हणदे सुत महिपाकेन स्व श्रेयसे भ्रातृ चांपा निमित्तं श्रीअंचलगच्छ श्रीजयकेसरिसूरीणामुपदेशेन श्रीसुमतिनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीसूरिभिः ॥
( ८८५ )
सं० १५०४ वर्षे माघ सु० २ शुक्रे श्रीज्ञानकीय गच्छे उपकेश ज्ञातीय सा० डूंगर भार्या सदलदे पु० डूडाकेन पितृ मातृ श्रेयोर्थं श्रीधर्मनाथ बिंबं कारापितं प्रतिष्ठितं श्रीशांतिसूरिभिः ॥ श्री ॥
( ८८६ :
|| सं० १५०४ वर्षे फा० सुदि ८ गुरौ उप० ज्ञा० पालड़ गो० सा० डूदा पुत्र नयणा भा० वासू पु० जइता सहितेन मा० श्रेयसे श्रीश्रेयांस बिंबं का० प्र० मडा० गच्छ श्रीवीरभद्रसूरि पट्ट श्रीनयचंद्रसूरिभिः ॥
( ८८७)
|| सं० १५०४ वर्षे फागुण सुदि ११ ओसवाल खड (? ट) वड़ गोत्रे सा० राणा भा० रयणसिरि । पु० सा० गोइंदनाम्ना पित्रोः पुण्यार्थं श्रीकुंथुनाथ बिंबं का० प्र० मलधारी श्रीविद्यासागर - सूरि पट्ट े श्रीगुणसुंदरसूरिभिः ।
( ८८८ )
संवत् १५०४ वर्षे फागुण सुदि ११ उपकेश ज्ञा० उच्छित्रवाल गोत्रे सा० पला भा० भानादे पु० भांडा भा० पाल्हणदे युतेन मातृ पितृ नि० श्रीशीतलनाथ बिंबं का० प्र० श्रीवृद्ध० भ० श्रीअमरचरमरिभिः
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(८८६) ॥ सं० १५०५ वर्षे वैशाख सु० ३ सोमे उ० १० गो० सा० जेसल भा० जाल्हणदे पु० सिंघा भा० हर) पु० खेता आत्म पु० श्रीसुमतिनाथ बिंब का० प्र० नागेन्द्र ग० श्रीगुणसमुद्रसूरिभिः
__सं० १५०५ वर्षे वैशाख सुदि ई सोम । श्रीऊकेश ज्ञातीय वरहड़धा गोत्रे सा० खेमु भार्या खीमादे पु० हरिपाल भा० माल्ही पु० रा. गा० वील्ही निज पुण्यु० श्रीचंद्रप्रभ बिंबं का० प्र० श्रीकृष्णर्षि गच्छे ....... श्रीजयसिंहसूरि प० नयशेखरसूरिभिः ।।
( ८६१) संवत् १५०५ वर्षे पौष वदि ७ गुरौ श्रीउपकेश ज्ञातीय सा० अमरा भार्या मदु सुत कसला भार्या जोविणि सुत पोमाकेन श्रीनमिनाथ पंचतोथिका बिबं कारापिता श्रीनागेन्द्र गच्छे प्रतिष्ठितं श्रीगुणसमुद्रसूरिभिः हरीअड़ गोत्रे
(८६२) ___ सं० १५०५ वर्षे पौष सुदि १५ गुरौ प्रा० ज्ञा० व्य० पिचन पु. काजा भा० माल्हणदे पु० सलखाकेन भा० सुहड़ादे सहितेन स्वश्रेयसे श्रीसुमतिनाथ बिबं का. प्र. श्रीपिप्पलाचार्य श्रीवीरप्रभसूरि पट्ट श्रोहीरानंदसूरिभिः ।। श्रीः ।।
( ८६३) संवत् १५०५ वर्षे माघ वदि ७ बंभ गोत्रे सा० सहजपाल पुत्र सहसाकेन पुत्र जेसा पुण्यार्थ पुत्र सहितेन खरतर गच्छे श्रीआदिनाथ बिंब कारिता प्रतिष्ठितं श्रीजिनभद्रसूरिभिः ।।
( ८६४) सं० १५०५ माघ २०६ प्राग्वाट व्य० जयता भा० देवलदे पुत्र भोजा भाजा वाधू भ्रात वरसिंह नरसिंहादि युतेन श्रोशांतिक प्रति तपा गच्छे श्रोसोमसुंदरसूरि शिष्य श्रीजयचंद्रसूरिभिः ।
सं० १५०५ वर्षे फागु० यदि ७ बुध दिने उप० सा० धागा भार्या सुहागदे ध ... भा० सूमलदे पुत्र उलल भा० मूलसिरि सहि० पित्रोः श्रेयसे श्रीवासुपूज्य बिबं का० प्र० श्रीअमरचंद्रसूरिभिः।।
॥सं० १५०५ वर्षे फागुण वदि ह सोमे प्रा० ज्ञा० व्य० मोहण भा० मोहणदे पु० नरा भा० पूनिमाई पुत्र देपाल यशपाल वीघा सहितेन श्रीमुनिसुव्रत बिंब का०प्र० मडाहड़ीय गच्छे श्रीवीरभद्रसूरि । प० नयचंद्रसूरि।
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(८६७) । सं० १५०६ प्राग्वाट प० सारंग भा० मुगन सुत सीहाकेन स्व पितामह व्य० पांचा श्रेयोथं श्रीकुथु बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं तपापक्षे श्रीश्रीश्रीसोमसुंदरसूरि शिष्य श्रीश्रीश्रीरत्रशेखरसूरिभिः ॥ भद्र।
(८६८) ॥ सं० १५०६ वर्षे वै० ५० ५ गुरौ प्रा० सा० समरा भा० षटी पुत्र सा० गोवलेन भा० चापू पु० वाघादि सहितेन पितुः पुण्यार्थ श्रीनेमिनाथ विवं कारितं प्रतिष्ठितं तपागच्छे श्रीरत्रशेखरसूरिभिः ।
(८६६) सं० १५०६ वैशा सु० ८ भूमे २० मंडलेचा गोत्रे सा० दूदा भा० रंगादे पु० जपुता तासर जइसा भा० जिणमादे खे... भा० तारादे पु० अमरा श्रे० सुमतिनाथ वि० का०प्र० वृ० ग० पुण्यप्रभसूरिभिः ।
(६००) संव० १५०६ वर्षे माह वदि ३ गुरु दिने उर० देच्छु गोष्टि० सा० देपा भा० देवलदे पु० तेजा भा० तेजलदे आत्म श्रेयसे श्रीवासुपूज्य बिवं कारितं श्रीचित्रगच्छे प्रति० श्रीमुणितिलफसूरिभिः ।।
६०१)
॥ सं० १५०६ व० मा० बदि ६ उच्छित्तवाल गो० सा० तिहुणसी भा० रूपी पु० जाल्हा भा० जमणादे पु० वींझा माल्हा स्व पु० श्रीवासुपूज्य बि० का० प्र० धर्मघोष गच्छे श्रीमहीतिलकसूरिभिः।
(१०२) ॥ संवत् १५०६ वर्षे माह सुदि ५ रवौ ३० ज्ञातीय नाहर गोत्रे सा० खेता पु० छाजा भा० साहिणि पु० मोल्हाकेन आत्म पुण्यार्थ श्रीसुविधिनाथ विवं का० धर्मघोष गच्छे श्रीविजयचंद्रसूरि पट्टे प्रतिष्ठितं श्रीसाधुरत्नसूरिभिः ॥
(६०३) सं० १५०६ वर्षे माघ सुदि ५ रवौ उसवाल ज्ञातीय नाहर गोत्रे सा० हासा भा) हांसलदे पु० नरपालेन श्रीश्रेयांसनाथ बिंबं का० प्र० धर्मघोष गच्छे श्रीसाधुरत्नसूरिभिः।
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(६०४) संवत् १५०६ वर्षे माह सुदि ५ रवौ श्रीचैत्र गच्छे उप सा० केल्हा भा० कुतादे पु० नरा हीरा कोहा भार्या सहितेन श्री श्रेयांस बिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीमनितिलकसूरिभिः श्रीआचार्य श्रीगुषणाकरसूरि सहितेन ॥ श्री ॥
(६०५) ॥ सं० १५०६ बर्षे फागुण सुदि ३ रवौ ओसवाल झातीय श्रीदूगड़ गोत्रे सा० खेतात्मज सं. सुहड़ा पुत्रेण स० सहजाकेन । सा० खिल्लण पुत्र सा० खिमराज युतेन पितामही माथुरही पुण्यार्थ श्रीचंद्रप्रभ विकं का० प्र० वृ० गच्छे श्रीमहेन्द्रसूरि श्रीरत्नाकरसूरिभिः ।
(१०६) ____ सं० १५०६ फागुण सुदि ६ उ० ज्ञा० धीरा भा० देहि पु० आका भा० आल्हणदे पु० भोजा काजाभ्यां सह भाई कीका निमित्तं चंद्रप्रभ बिंबं का० प्र० ब्रह्माणीय श्रीउदयप्रभसूरिभिः ।
(६०७) __ सं० १५०६ वर्षे फागुण सुदि ६ शुक्रे श्रीषंडेरकीय गच्छे उपकेश ज्ञातीय साह वयरा भार्या विजलदे द्विती० भा० केलू पुत्र साजण खोखा जागात्रिभिः श्रीकुंथुनाथ बिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीशांतिसूरिभिः।
(६०८) सं० १५०६ वर्षे फागुण सुदि । शुक्रे उपकेश ज्ञातीय सा० मेघा भार्या हीरादे पुत्र लेला भार्या पूरी सहितैः भ्रातृ फरमानिमितं श्रीवासुपूज्य बिंबं कारितं प्रति० ब्रह्माणीय गच्छे श्रीउदयप्रभसूरिभिः ।। श्री ॥
(६०६) सं० १५०७ जावालपुरवासि उकेश परी० उदयसी आल्हणदे पुत्र पांचाकेन भार्या छितू पुत्र देवदत्तादि कुटुंब युतेन श्रीश्रेयांस बिंद का० प्र० श्रीसाधु पूर्णिमा श्रीश्रीपुण्यचंद्रसूरिभिः विधिना श्रावकः
(६१०) ॥ सं० १५०७ वर्षे चैत्र वदि ५ शनौ श्रीकोरंट गच्छे उप० कुमरा पु० खेतसीहेन मांडण ऊधरण चापादि निमित्तं श्रीचंद्रप्रभ बिंबं का० प्र० .....
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(६११ ) __ संवत् १५०७ वर्षे वैशाख सु० ३ ऊकेश ज्ञातीय गादहीया गोत्रे सा० भइंसा वंश सा० हीरा सुत महिप भार्या वीरणि सुत वीणा भा० खेतू पुत्र सा० भांडाकेन भार्या भावलदे भ्रा० व्य० डाहा युतेन श्रीपार्श्वनाथ बिंबं का० प्र० सूरिभिः।। सावुर वास्तव्य
(११२) संवत् १५०७ वैशाख सुदि शुक्रे श्रीकाष्टा संघे भट्टारक मलयकीर्ति देवा व० साघपति नित्यं प्रणमति
(६१३ ) ___ सं० १५०७ वर्षे वैशाख सुदि ११ बुधे श्रीश्रीमाल श्रेष्टि साणा सुत हचा भार्या नासिणि पितृ मातृ श्रेयोथै सुत नरबदकेन श्रीश्रीश्रेयांसनाथ बिवं का० पूर्णिमा पक्षीय श्रीराजतिलकसूरीणामुपदेशे० प्रतिष्ठितं ।।
(६१४) ॥संवत् १५०७ वर्षे वैशाख सुदि १२ शुक्र रेवती नक्षत्रे दूगड़ गोत्रे साह जट्टा संताने सा० समरा पुत्र सोहिल भार्या सिंगारदे स्व पितृ श्रेयसे स्व पुण्यहेतवेच श्रीआदिनाथ बिघ कारितं श्रीरुद्रपल्लीय गच्छे भट्टारक श्रीदेवसुंदरसूरि पट्ट श्रोसोमसुंदरसूरिभिः ।।
(६१५ ) ॥६० ॥ संवत् १५०७ वर्षे ज्येष्ठ सुदि २ दिने श्रीफ़केश वंशे घोथिरा गोत्रे सा० जेसल भार्या सूदी पुत्र सा. देवराज सा० वच्छा श्रावकाभ्यां श्रीशांतिनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनराजसूरि पट्टालंकार श्रीजिनभद्रसूरिभिः श्रीखरतर गच्छे । शुभम् ।।
(१६) । सं० १५०७ वर्षे ज्येष्ठ सुदि २ दिने ऊकेश वंशे गणधर गोशे सायर पुत्र शिखरा श्राद्धनदेव दशरथ प्रमुख परिवार युतेन श्रोसुमतिनाथ विबं कारितं प्रतिषितं खरतर गच्छे श्रोजिनराजसूरि पट्टे श्रीश्रीजिनभद्रसूरिभिः
(६१७) ॥ सं० १५०७ वर्षे जेठ सु० १० सोमे उ० ज्ञा० सं० साता भा० माल्हणदे पु० नइणा भा० मेहिणि पु० हांसा नापु स० पितृ श्रे० श्रीमुनिसुत्रत बिं० का० प्र० श्रीवृहद्गच्छे भ० श्रीवीरचंद्रसूरिभिः
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(६१८) ॥ सं० १५०७ वर्षे मा० सु० ५ श्रीसंडेर गच्छे ड० झा० विंदाणा गोो सा० झांझा भा० कपूरदे पु० दूला भा० देवलदे पु० वीका भाखराभ्यां श्रीशांतिनाथ बिंबं का० प्र० श्रीशांतिसूरिभिः ।।
( ६१६ ) ___ सं० १५०७ वर्ष माघ सुदि ५ शुक्रे श्रीमाल ज्ञातीय व्य० गोपा भा० गुरूदे सु० भावड़ेन भा० मेघू सहितेन पितृ मातृ निमित्तं श्रीशीतलनाथ बिं० का० प्र० श्रीपिष्फल गच्छे भ० श्रीसोमचंद्रसूरि पट्टे श्रीउदयदेवसूरिभिः॥
(६२०) सं० १५०७ वर्ष फागुण वदि ३ बुधवारे उस० ज्ञा० श्रेष्टि गोत्रे सं० दूदा भा० झबकू पु० ___ मूंधा गेधाहादा मेघा भा० करू पु० पोमा गोबदिव सहितैः पूर्वज निमित्तं श्रीसुमतिनाथ बिंब कारितं प्र. महाहड़ गच्छे रत्नपुरीय शाखायां श्रीधणचंद्रसूरि पट्टालंकार श्रीधर्मचंद्रसूरिभिः । सा० मेघाकेन काराप
(६२१) ॥ सं० १५०७ वर्षे फा० वदि ३ बुधे ऊकेश० बु० गोत्रे सा० गोविंद भार्या मोहणदे तत्पुत्र सा० पर्बत डूंगर युतेन स्व पुण्यार्थं श्रीआदिनाथ बिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीसूरिभिः ॥
(१२२) ।। संव० १५०७ वर्षे फागुण वदि ३ गुरौ। श्री कोरंट गच्छे । उपकेश ज्ञातीय साह भोजा भा० जइतलदे सुत नेडा रामा सालिग सहितेन पितृव्य थाहरौ निमित्तं। श्रीसुमतिनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं । श्रीसोमदेवसूरिभिः॥
(२३) । संव० १५०८ वर्षे वैशा ... ... ... ... . . . . . . . . . . . . . साजण भार्या मेघी आत्म पुण्यार्थ श्रीसुमतिनाथ बिंबं कारा० प्रति० वृहद्गच्छे भ० श्रीमहेन्द्रसूरिभिः ।
(१२४ ॥ सं० १५०८ वर्षे वैशाख वदि ४ शनौ श्रीसंडेर गच्छे ऊ० ज्ञा० संखवालेचा गोष्टी पालू दाउड़ केअरसी पु० लाखा भा० काकू पु० कीमाकेन स्व श्रेयसे नमिनाथ बि० का० प्र० श्रीशांतिसूरिभिः ।
(१२५) सं० १५०८ वर्षे वै० म०५ सोमे प्रा० कोसुरा भा० धारू पु० सा० देवाकेन भ्रातृ देवा देल्हा चांपा चाचादि कुटंब सहितेन श्रेयसे श्रीशीतलनाथ बि० का० उकेश गच्छे श्रीसिद्धाचार्य संता० प्र० ककसूरिभिः।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
(१२६ ) ॥ सं० १५०८ ज्येष्ठ सु० ७ बुधे सा ओएस वंशे मं० वीदा भार्या मं० संपूरि सुश्राविकया पुत्र मं० मोकल नाल्हा पौत्र मांडण मांजा हर्षा सहितया श्रीअंचल गच्छेश श्रीजयकेसरिसूरिगुरूपदेशेन स्व श्रेयसे श्रीकुंथुनाथ बिबं का० प्र० श्रीसंघ ।। श्री ।।
(१२७ ) ॥ सं० १५०८ वर्षे मार्गसिर वदि २ बुधवारे मृगसिर नक्षत्रे सिद्धि नाम्नियोगे लोढा गोत्रे सा० वुधर संताने सा० हंथो पुत्र सा० भरहूकेन स्व पुण्यार्थे श्रीसुविधिनाथ बिंब कारितं श्रीरुद्रपरलीय गच्छे श्रीदेवसुंदरसूरि पट्टे प्रतिष्ठितं सोमसुंदरसूरिभिः शुभंभूयात् ।।
(६२८ ) सं० १५०६ ३०... वदि ५ म० श्रीजिणचंद्रदेवा प्र.... ....गटणा गोत्र स० रूपा सुत राजा..." ....... प्रणमति ।
(२६) ___सं० १५०६ वर्षे वैशाख मासे श्रीओएसवंशे सा० सिंहा भार्या सूहवदे पुत्र जयताकेन श्रीअंचल गच्छेश श्रीश्रीजयकेसरिसूरि उपदेशात् पितृ श्रेयसे श्रीनमिनाथ बिंब कारितं प्रतिष्ठितं चा श्री॥
(६३०) ॥ संवत १५०६ वर्षे आषाढ व०६ शुक्रे उप० ज्ञा० पा० गोत्रे सा० राउल भा० रामादे पुत्र वेला स० पुत्र वइरा सहसा कुंरा निमित्तं श्रीसुविधिनाथ बिंबं का० प्र० माहड़ीय गच्छे श्रीनयणचंद्रसूरिभिः।
संवत् १५०६ वर्षे आषाढ वदि , गुरौ श्रीउसवंशे सा० देवराज भार्या मनी पु० सा० रेडा भार्या भावलदे आत्म श्रेयो) श्रीअंचलगच्छेश श्रीजयकेसरिसूरीणामुपदेशेन श्रीकुंथुनाथ बिंबं कारापितं प्रतिष्ठितं श्रीसूरिभिः ।
(६३२) सं० १५०६ वर्षे माह सु० प्रा० सा० समरा भा० सलखदे सुस सा० बदरकेन पितृ भा० अर्गु पु० चांपादि पुत्र युतेन स्व श्रेयसे श्रीसंभव कारितः प्रति० तपा श्रीसोमसुंदरसूरि शिष्य श्रीरत्नशेखरसूरिभिः ।। अयोस्तु ।।
(६३३) संवत् १५०६ वर्षे माघ मासे सु० ५ शुक्र श्रीश्रीमाल ज्ञा० व्य० ईला पु० वस्ता भा० कोई पु० चाहदेन पितृ श्रे० विमलनाथ बिंबं श्रीबृहदग। सत्यपुरी श्रीपासचंद्रसूरिभिः ।।
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( ६३४ )
सं० १५०६ वर्षे माघ सुदि ५ शुक्रे प्राग्वाट वंशे सा० मोकल भा० मेलादे पु० मेहाकेन पु० तोला सहितेन श्रीअंचल गच्छ देश श्रीजयकेशरिसूरि उपदेशात् श्रीवासुपूज्य बिंबं स्व श्रेयसे कारितं प्र० श्रीसंघेन ॥
( ६३५ )
सं० १५१० वर्षे मंत्रीदलीय गोत्रे सा० पाल्हा पुत्र गुणा पुत्र घोषा सहितेन आत्म पुण्यार्थ श्रीआदिनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनभद्रसूरिभिः श्रीखरतर गच्छ ॥
११३
( ६३६ )
सं० १५१० वर्षे ज्येष्ठ सुदि ३ गुरौ प्राग्वाट वंशे सं० हरिया भार्या जमणादे पुत्र सं० होलान व पुण्यार्थं श्रीअजितनाथ बिंबं श्रीअंचल गच्छेश जयकेसरिसूरीणामुपदेशेन कारितं प्रतिष्ठितं च
( ६३७ )
सं० १५१० वर्षे ज्येष्ठ सुदि ३ गुरौ उपकेश ज्ञातोय धृति सा० धीरा भा० हांसलदे पितृ मातृ श्रेयसे सुत देताकेन श्रीशीतलनाथ मुख्य पंचतीर्थी बिंबं कारितं श्री भीमपल्लीय श्रीपूर्णिमा पक्ष मुख्य श्रीचंद्रसूरिणामुपदेशेन प्रतिष्ठितं ॥ श्री ॥
( हे३८ )
सं० १५१० वर्षे आषाढ सुदि ६ सोम दिने उप० ज्ञातीय कांकलिया गोत्रे सा० सोढा भार्या धर्मिणि पुत्र हांसा भार्या हांसलदे सहितेन भ्रातृ निमित्तं श्रीआदिनाथ बिंबं कारितं प्र । श्री सावदेसूरिभिः ।
( ६३६ )
सं० १५१० वर्षे कार्तिक वदि ४ रखौ श्रीश्रीमाल ज्ञातीय व्य० वयरा भार्या कल्हणदे सुत चौथ सालिगाभ्यां श्रीधर्मनाथ बिंबं का० प्रति० श्रीपि० श्रीगुणदेवसूरि पट्ट श्रीचंद्रप्रभसूरिभिः हम्मीरकुल वास्तव्य |
( ६४० )
सं० १५१० मार्ग सुदि १० खौ श्रीमूलसंघ भ० श्रीजिनचंद्रदेव
भवसा सा० डूगर भाज्या हकौव तत्पुत्र भोपा सरउण खोवटा हेमा तेजा शुभं भवतु
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• गोत्रे
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
(६४१) ___ सं० १५१० वर्षे फा० सु० ५ लासवासी प्रा० शा० व्य० पिंबाकेन भा० पोमी पुत्र व्य० गोपा गेला पेयादि कुटुंब युतेन श्रीशीतलनाथ बिंबं का०प्र० तपा गच्छाधिराज श्रीरत्नशखरसूरिभिः ।। श्रीरस्तुः ।।
(६४२) सं० १५११ (०) वर्षे वै० सु० ५ प्रा० सा० आका भार्या आल्हणदे पुत्र सा० गोपाकेन भा० करणू पुत्र रेल्हा जावड़ नो जाणाना घडेरारादि कुटुंब युतेन स्व श्रेयसे० श्रीपार्श्व बिंब कारितं प्रति० तपा श्रीरत्नशेखरसूरिभिः॥
(६४३, ___ सं० १५११ वर्षे प्राग्वाट मं० पूजा भार्या करमादे पुत्र नरभमेन भार्या नायकदे वामलदे पुत्र भोजा राजा खीमा गांगादि युतेन श्रीश्रेयांस बिंबं प्र० तपा श्रीसोमसुंदरसूरि शिष्य श्रीरत्नशेखरसूरिभिः॥
(६४४ ) सं० १५११ ज्ये० व० प्रा० कच्छोली वासी व्य० धर्मसीह भा० हिमी सुत व्य० वाछाकेन स्व ज्येष्ठबंधु श्रेयसे श्रीविमल बिबं का०प्र० तपा श्रीरत्नशेखरसूरिभिः ।
(६४५) सं० १५११ वर्षे आसा० वदि ८ शनौ प्राग्वाट ज्ञातीय संघ० गोपा भा० गोमति सलखणदे पु० हेमा बाछा गुणराज देवराज एभिः श्रीअजितनाथ बिंब काराप० पूर्णि० द्वितीय भ० श्रीसर्वागंदसूरि श्रीगुणसागरसूरिभिः। मंगलं। श्री ॥
(६४६ ) सं० १५११ वर्षे आषाढ वदि ८ श्रीज्ञानकीय गच्छे उ० तलहर गोत्रे सा० पापू भा० पौमादे पुत्र भांडा भा० भावलदे आत्म श्रेयोर्थ श्रीवासुपूण्य बिंब का० प्रतिष्ठितं श्रीसिद्धसेनसूरिभिः॥
(६४७) सं० १५११ वर्षे आ० व०६ रवौ प्राग्वाट ज्ञातीय व्य० हापा भा० हमीरदे पु० थाहरूकेन ना० रुअड़ नग० लागादि युतेन स्व श्रेयसे श्रीविमलनाथ बिंब का० प्र० तपा श्रीसोमसुंदरसूरि शिष्य सत्प? श्रीरत्नशेखरसूरिभिः ।।
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(६४८) सं० १५११ पोष वदि ५ श्रीश्रीमाली श्रे० धरमसी साऊ सुत भादाकेन भा. वीनू सरवण गहगा हेमादि कुटंब युतेन भ्रातृ सादा श्रेयो) श्रीसुमतिनाथ बिबं का० प्र० पूर्णिमा पक्षे श्रीजयचंद्रसूरिभिः ।।
(६४६) सं० १५११ वर्षे माघ ५० ५ प्रा० व्य० कूपा भार्या कामलदे सुत व्य० केल्हाकेन भा० कौतिगदे सुत देवसी जयता जोसादि कुटंब युतेन स्व श्रेयसे श्रीधर्मनाथ बिंबं कारितं प्र० श्रीसूरिभिः
(६५० ) सं० १.११ वर्षे माघ सु० १३ प्राग्बाट व्य० मेला भा० नहणी पुत्र ताल्हकेन भा० सारी पुत्र नरसिंह खेता भ्रातृ डूगरादि युतेन श्रीश्रेयांस बिंबं का० प्र० तपा श्रीरत्नशेखरसूरि पट्टे श्रीलक्ष्मीसागरसूरि श्रीसोमदेवसूरिभिः । श्री।
(६५१ ) सं० १५११ वर्षे फागुण वदि २ सोमे उपकेश ज्ञातीय व्य० देव अम् भा० पयजलदे पुत्र पचनाकेन भा० लखमादे युतेन आत्म श्रेयसे श्रोशीतलनाथ बिबं कारित प्र० ब्रह्मीय गच्छे भ० श्रीउदयप्रभसूरिभिः शुभं भवतुः
( ६५२ ) 'संवत् १५११ वर्षे फागुण सुदि १ दिने ऊकेश वंशे माल्हू गोत्रे सा० पेता पुत्र सा० लींबा भा० नयणादे पुत्र सा० खरहत भार्या सहजलदे निज श्रेयोथं श्रीमुनिसुव्रत स्वामी बिबं कारिनं प्र० श्रीखरतर गच्छे श्रीजिनसागरसूरि पट्ट श्रीजिनसुंदरसूरिभिः ।।
(६५३) स्वत् १५१२ वर्षे सा० जेसिंग भार्या सुंदरि सुतेन सा. राजाकेन भा० वाल्ही सुत काला भा० सा० सूरा नींबा सा० पांचादि कुटंब युतेन स्व श्रेयसे श्रीसुमतिनाथ विवं कारितं महा सुदि ५ दिने सोमे प्रतिष्ठितं तपा श्रीरनशेखरसूरिभिः ।
(६५४) ॥संवत् १५१२ व० चैत्र व०८ सोमे श्रीभावडार गच्छे श्रीश्रीमाल ज्ञा० व्य० सजना भा० टहकू पु० सापरसोपा सूपा पोपट सहितेन व पुण्याथें ।। श्रीकुंथुनाथ वि० का० प्र० श्रीकालिकाचार्य सं० ग० श्रीश्रीवीरसूरिभिः ।
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(६५५) संवत् १५१२ वर्षे वैशाख सुदि ३ श्रीश्रीमाली गोत्रे। सा० मोहण पुत्र फामा भार्या भरमादे पु० देगा आत्म श्रेयसे श्रीवासुपूज्य बिबं का० प्र० धर्मघोष गच्छे श्रीपद्मशेखरसूरि प० श्रीपमाणंदसूरिभिः।
॥६०॥ संवत् १५१२ वर्षे वैशाख सुदि ३ बापणा गोत्रे सा० ऊधा भार्या धरमिणि पुत्र रावल भार्या सीता आत्म पुण्यार्थ श्रीशांतिनाथ बिबं कारापितं श्रीधर्मघोष ग० श्रीपानशेखरसूरि पट्टे प्रतिष्ठितं श्रीपद्माणंदसूरिभिः ।।
(६५७) सं० १५१२ वर्षे कार० मासे ओसवंशे वडहरा सा: देडा भा० मुगतादे पुत्र खेता जयता पाना सहसाकैः कुसल सहितैः श्रीअंचल गच्छेश श्रीजयकेसरिसूरिसूरिउपदेशेन पितृव्यादि नागमण श्रेयसे श्रीधर्मनाथ बिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीसंघेन ।। श्री ।।
(६५८) संवत् १५१२ वर्षे माघ ७ बुधे उपकेश ज्ञा० .. ... ... ... ... . ....... झांझण श्रावकेन भार्या सूरिंगदे पुत्र माधु जाटा सहितेन श्रीकुंथुनाथ बिंबं कारतं प्रतिष्ठितं श्रीखरतर गच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः ।। श्री।
(६५६ संवत् १५१२ फागुण सु०८ शनौ ऊकेश ज्ञा० व्य० चच्था भा० रूपी. वीझलदे खोखाकेन भ्रातृ नउला वोखा कोहा भा० राणी नायकदे कुटंब युतेन श्रीआदिनाथ बिंबं कारितं प्र० तपा० श्रीरत्नशेखरसूरिभिः ।। जालहर वास्तव्यः ।। श्री।।
(६६०) सं० १५१२ वर्ष फाग० सु० १२ पलाड़ेचा गोत्रे सा० डोडा भा० पूजी पु० चउथ भा० चाहिणिदे पु. खेतादि स्व पितृ मातृ भ्रातृ पितृव्य श्रेयसे सा चउथाकेन श्रीनमिनाथ बिबं का० प्रति ऊकेश गच्छे श्रीश्रीसिद्धाचार्य संताने भट्टा० श्रीश्रीश्रीककासूरिभिः।।
. (६६१) संवत् १५१३ प्राग्वाट व्य० उधरण भा० सहजलदे पुत्र व्य० खीमाकेन भा० कपूरदे पुत्र ऊदा ऊगा मेरादि कुटुंब युतेन श्रीसुव्रत बिंबं का० प्र० तपा श्रोसोमसुंदरसूरि शिष्य श्रीरत्नशेखर: सूरिभिः।। श्री।।
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________________ बीकानेर जैन लेख संग्रह सं० 1513 वर्षे ओसवाल मं० वेला भा० सुहागदेव्या पु० मं० राजा सींघा शिवा वाघा धना सवरण ब० हीरादे सूहवदे श्रियादे वल्लादे धन्नादे लाडी पौ. सोहा हाथी यु० श्रीकुंथुनाथ बिंबं का० प्र० तपा श्रीसोमसुंदरसूरि शि० श्रीरत्नशेखरसूरि श्रीउदयनंदिसूरिभिः / / इलदेंगे (663 ) // संवत् 1513 वर्षे ऊकेश वंशे कटारिया गोत्रे सा० तेजसी पुत्र तिहुणा भार्या कील्हणदे पुत्र कुलचंदेन भार्या कुतिगदे प्रभृति पुत्र पौत्रादि परिवार युतेन श्रीनेमिनाथ बिंबं का० प्रति. श्रीखरतर गच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः / / (664) सं० 1513 वर्षे ऊकेश वंशे सा० गोसल भा० मंगादे पुत्र पासाकेन भा० अपू पुत्र रत्ना काला गोपादि कुटुंब युतेन श्रीश्नेयांस जिन बिध कारितं प्रतिष्ठितं तपा गच्छेश श्रीरत्नशेखरसूरिभिः (665 संवत् 1513 वर्षे उपकेश वंशे बोथरा गोत्रे सा० नगराज भा० मदू पुत्र सा० महिराजेन स्व पुण्याथं श्रीसुमतिनाथ बिंब का० प्रतिष्ठितं खरतर गच्छे श्रीजिनसुंद (रसूरिभिः) // 60 / / सं० वर्षे वै० ब० 4 दिने ऊकेश ज्ञातीय दरड़ा शाखीय सा० कान्हड़ भार्या कपूरदे सुत सा० भावदेवेन सभा० गिजक्षिजात पुत्र भोला रणधीर प्रमुख कुटुंब सहितेन श्रीविमलनाथ बिंब कारिता प्र० खरतर गच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः / / पित्रोः श्रेयोथं भोलाकेन का० (667) सं० 1513 वै० . 3 दिने प्राग्वाट व्य मेही भा० दूजी पुत्र वीटाकेन भा० हास पुत्र वरणादि कुटुंब युतेन श्रीसंभवनाथ बिंबं का० प्र० तपा गच्छे श्रीसोमसुंदरसूरि पट्टे श्रीमुनिसुदर सूरि श्रीजयचंद्रसूरि तत्प? श्रीरत्रशेखरसूरिभिः मावाल प्रामे (668) सं० 1513 वर्षे ज्येष्ठ सुदि 11 शुक्रे उप० ज्ञातीय व्य० नरपाल पु० कोका भा० कुतगदे पु० 4 मोकल भा० माणिकदे पु० देवराज युतेन आत्म श्रेयसे श्रीमुनिसुव्रत स्वामि बिवं का० प्र० बृह० श्रीन (1 उ) दयप्रभसूरिभिः "Aho Shrut Gyanam"
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________________ बीकानेर जैन लेख संग्रह (666) // सं० 1513 वर्षे आषाढ वदि , गुरौ सुराणा गोत्रे सं० धनराज पु० सं० वोझा भार्या पीझलदे आत्म पुण्यार्थं श्रीचंद्रप्रभ स्वामि बिंबं का० प्र० श्रीधर्मघोष गच्छे श्रीपनाणंदसूरिभिः / (6 ) - // 60 // संवत् 1513 वर्षे आषाढ सुदि 2 दिने उकेश वंशे चोपड़ा गोत्रे सा० अमरा भार्या ललू पुत्र सदूकेन पुत्र ऊदा युतेन शांतिनाथ बिबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतर गच्छोश श्रोजिनभद्रसूरिभिः / / // 60 // 1513 वर्षे आषाढ सु० 2 दिने उकेश वंशे बापणा गोत्रे सा० हरभएम भार्या हसिलदे पुत्र डूगरेण भा० मेलादे पुत्र मेरा देवराज हेमराज युतेन श्रीवासुपूज्य बियं कारितं श्रीजिनभद्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं श्रीखरतर गच्छे / (672) // 60 // संवत् 1513 वर्षे आषाढ सु० 2 दिने ऊकेश वंशे / / कूकड़ा गोत्रे सा० मेहा भार्या भोजी पुत्र सा० गोसलेन भ्रातृ भादा पुत्र हीरा नयणा नरसिंह युतेन / श्रीशांतिनाथ बिंबं का० श्रीजिनभद्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं श्रीखरतर गच्छे / (673 ) सं० 1513 वर्षे मार्गसिर सूदि 10 सोमे श्रीवरलद्ध गोत्रे सा० दोदा पुत्र सा० हेमराजेन पत्रा (1) हेमादे पुत्र बालू धनू सहसू अलणा युतेन श्रोअजितजिन विंबं कारितं प्रतिष्ठितं वृहद्गच्छे श्रीमेरुप्रभसूरि पट्टे श्रीराजरत्नसूरिभिः // (674) ___9 संवत् 1513 वर्षे पौष सुदि 13 रवौ श्रीश्रीमाली श्रे० लाखा भार्या मांकू सुत सहिसा प्रमुख पुत्री तिलूनाम्न्या स्वसुर श्रे० हापा सुत काला भर्ता युतया स्वश्रेयसे श्रीपार्श्व बिंबं कारितं प्रतिष्ठित वृद्ध तपा पक्षे श्रीरत्नसिंहसूरिभिः / / छः।।। (675) ॥सं० 1513 वर्षे माह वदि 5 उ० ज्ञातीय वीराणेघा गोत्रे सा० चउथ भा० चाहिणदे पु० पाल्हाकेन भा० पाल्हणदे पु० मागच्छाज युतेन स्व श्रेयो) श्रीसंभवनाथ बिंबं कारापित प्र० श्रीचित्रावाल श्रीगुणाकरसूरिभिः // छः // "Aho Shrut Gyanam"
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________________ बीकानेर जैन लेख संग्रह 116 (676 ) सं० 1513 वर्षे माघ वदि , गुरुवारे उपकेश ज्ञातीय सा० पांचा भार्या विल्ही सुत खामा मातृ निमित्तं श्रीसंभवनाथ कारितं प्र० श्रीसंडेर गच्छे श्रीशांतिसूरि / (177) संवत् 1513 वर्षे माह वदि ह गुरु उ० व्य० सीहा भा० सुल्ही पुत्र झूठाकेन भा० सहजू सहितेन आत्म श्रेयसे श्रीसुमतिनाथ बिंबं का० प्र० भावडार गच्छे भट्टा० श्रीवीरसूरिभिः / / (678) सं० 1513 वर्षे माह वदि : गुरु उप० व्य० साजण भा० धारू पुत्र भांडाकेन भा० हासू युतेन आत्म श्रेयसे श्रीसुमतिनाथ बिंब का० प्र० भावडार गच्छे भ० श्रीवीरसूरिभिः / / / संवत् 1513 वर्षे भा० वदि 12 बु० सधरो भा० पूजा पुत्र करणाकेन स्व श्रेयसे श्रीअंचल गच्छेश श्रीजयकेसरिसूरीणामुपदेशेन श्रीनेमिनाथ बिंब कारितं प्रतिष्ठितं / (680) सं० 1513 वर्षे फा० वदि 12 श्रीउपकेश गच्छे ककुदाचार्य संताने भाद्र गोत्रे लिगा जडके सं० तेरुपुत्र सं० साहू भा० संदी पु० महणा भा० मेघी पु० सालिग भा० सुहागदे द्विती० भा० सालगदे पु० सहजपालादि आत्मश्रेयसे श्रीकुंथुनाथ विंबं कारापितं प्रतिष्ठितं श्रीककसूरिभिः || कोडीजधना // (181 ) संवत् 1514 वर्षे वै० सु० 10 बुधे श्रीकाष्टा संघे .. पदार्य ( ? ) श्रीकमलकी ....... / विकौसिरि पुत्र अर्जुन रवउरपत खीमधरे सा० लखमाप्रतिष्ठाप्य नित्यं प्रणमति / (982) // सं० 1515 जालउर वासी ऊकेश० मं० चांपा भार्यया सा० धारा भा० धारलदे सुतया सहजूनाम्न्या श्रीकुंथुनाथ बिंबं का० प्र० तपा गच्छे श्रीरत्नशेखरसूरिभिः / / 16833 संवत् 1515 ज्ये० सु० 15 प्रा० सा० धर्मा भा० धारलदे पुत्र सा० महिराकेन भा० मुक्तादे पुत्र अर्जुनादि कुटुंब युतेन स्व श्रेयसे श्री // सुमतिनाथ सिंबं का०प्र० श्रीसूरिभिः / / श्री॥ "Aho Shrut Gyanam"
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________________ 120 बीकानेर जैन लेख संग्रह (684) // संव० 1515 वर्षे आषा० व० 1 ऊकेश वंशे नाहटा गोत्रे सा० पाल्हा भार्या पाल्हणदे सुत सा० देपाकेन भा० देल्हणदे भ्रातृ लखा पुत्र देवा पेथराज नगराजादि युतेन श्रीश्रेयांस बिंबं स्वपुण्यार्थं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतर गच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः / / श्रीरस्तुः / / (985) // सं० 1515 मार्गसिर वदि 11 वृ० उ० ज्ञा० बहुरा वंशे / अरसी भा० आल्हणदे पु० देवाकेन भा० देवलदे पु० शिवराज जगा सह स्व श्रे० संभवनाथ का० प्रति० श्रीचित्रवाल गच्छे श्रीमुनितिलकसूरि पट्टे श्रीगुणाकरसूरिभिः / / 686 / / सं० 1515 वर्ष मार्गसिर सुदि 1 दिने उकेश वंशे डाकुलिया गोत्रे सा० संग्राम पुत्र सा० सहसाकेन भार्या मयणलदे पुत्र साधारण प्रमुख पविार सहितेन श्रीसुमतिनाथ बिबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतर गच्छे श्रीजिनभद्रसूरि प? श्रीजिनचंद्रसूरिभिः / / (687 ) / / सं० 1515 वर्षे मार्ग शुक्ल 1 दिने श्राऊकेश वंशे परि० धन्ना पुत्र परिक्ष लुढा सुश्रावकेन भार्या लूनादे पुत्र सा० वीरम भा० गुणदत्त प्रमुख परिवार युतेन स्वपुण्यार्थं श्रीशांतिनाथ बिबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतर गच्छ श्रीजिनभद्रसूरि प? श्रीजिनचंद्रसूरिभिः / (688) सं० 1515 वर्षे माघ सुदि 14 बुध प्राग्वाट वंशे पंचाणेचा गोत्रे सा० कान्हा भार्या कश्मीरदे पुत्र सा० सांगाकेन भा० चांपलदे पु० सा० रणधीर पर्वतादि सहितेन स्व पुण्यार्थ श्रीधर्मनाथ बिंबं कारितं प्रति० श्रीखरतर गच्छे श्रीजिनसुन्दरसूरिभिः (686 ) // सं० 1515 वर्षे फागुण सुदि 12 बुधे श्रीश्रीवंशे सा० भूपा ( सांडसा ) कुले श्रे० भोला भा० वुटी सा० राजाकेन भा० राजलदे भ्रा० साजण प्रमुख समस्त कुटुंब सहितेन श्रीअंचल गच्छ गुरु श्रीजयकेसरिसूरीणामुपदेशेन स्व श्रेयसे श्रीसुमतिनाथ बिंबं कारितं प्र० श्रीसंघेन // श्री / / (660) ...' सं० 1515 वर्ष शमी वासी श्रीश्रीमाल व्य० नीना भा० पची श्रेयोथं व्य० गडगा भोजा गजा चांपादिभिः श्रोकुंथुनाथ बिंबं का० प्र० श्रीमुनितिलकसूरि पट्टा B लंकार श्रीराजतिलकसूरीणामुप प्र० शुभं / / पूर्णिमा पक्षे + आगे के भाग को घिसकर 'B' लेख लिखा गया है व भिन्नाक्षरों में सं० 1610 लिखा है। "Aho Shrut.Gyanam"
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________________ बीकानेर जैन लेख संग्रह 121 // सं० 1516 वर्षे फलउधि वासी प्राग्वाट व्य. सोहण भा० पूंजी पु० नेलाकेन भा० मेलादे पु० धन्ना बना देवादि कुटुंब युतेन श्रीसुमतिनाथ विंबं कारितं प्र० तपा श्रीमुनिसुदरसूरि पट्टे श्रीरत्नशेखरसूरि प्रवरैः / / // सं० 1516 वर्षे सिरोही वासी श्रे० गेहा भार्या हजी नाम्न्या पु० पदा मदा भा० मंकु गउरी पु० भाखर खेतसी जीवा कुटुंब युतया श्रीअजितनाथ सिंबं कारितं प्रतिष्ठितं तपा गच्छे श्रीसोमसुवरसूरि श्रीमुनिसुंदरसूरि पट्टे श्रीरत्नशेखरसूरिभिः // (663) सं० 1516 चैत्र वदि 4 ऊकेश वंशे सा० श्रे धन्ना भार्या तारू पु० शिवाकेन भ्रा० भापा पु० उदा तारा का 4 भ्रा० सादा पु० सोभा 5 त्रासरवण 2 भ्रा० सूरा पु० दूल्हादिक परिवार युतेन स्व श्रेयो) श्रीकुंथुनाथ बिवं कारितं श्रीखरतर श्रीजिनभद्रसूरि पट्टालंकार श्रीजिनचंद्रसूरिभिः प्रतिष्ठिसं राका भूया। . (664) ___ सं० 1516 वर्षे चैत्र वदि 5 गुरौ श्रीश्रीमाल ज्ञा० पितृ आसा मातृ चांपू श्रेयसे पुत्र झांझण वसता ठाकुर एतैः भ्रातृ गोला निमित्तं श्रीविमलनाथ बिंबं पंचतीर्थ का० प्र० पिप्पलगच्छेश त्रिभु० श्रीधर्मसागरसूरिभिः वावड़ियाः / / (8 ) सं० 1516 वै० 50 1 ऊकेश म० कडूआ पाल्हू पुत्र सं० चांपाकेन भा० चापलदे पुत्र रूपा कुटुंब युतेन श्रीपश्नप्रभ बिंबं का० प्र० गच्छे सूरिमिः तपा श्रीरत्नशेखरसूरिणां उपदेशात् सीरोही नगरे॥ (666) संवत् 1516 व० वैशाख वदि 13 रवौ उसवाल शातौ पाल्हाउत गोत्रे देल्हा पुत्र सांडू गणी नगराज श्रेयसे श्रीमल्लिनाथ बिंब कारापितं श्रीमलधारि गच्छे प्रतिष्ठितं श्रीश्रीमुनिसुदरसूरिभिः // (667) संवत् 1516 वर्षे आषाढ सुदि / शुक्र ऊकेश ज्ञातौ भाभू गोत्रे सा० सूजू पुत्र सिरिआ तस्य भार्यया बलिनाम्न्या श्रीमजितनाथ विधं कारित निज श्रेयसे प्रतिष्ठितं श्रीसर्वसूरिमिः / / "Aho Shrut Gyanam"
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________________ 122 बीकानेर जैन लेख संग्रह (668) . संवत् 1516 वर्षे माः यदि 8 सोमे उपकेश झा०-व्य० सादा भा० रतनू पु. नरभम डूगर सहितेन आत्म श्रेयो श्रीवासुपूज्य वि० का० श्रीसाधुपूर्णिमा पक्षे श्रीहीराणंदसूरि पट्टे श्रीदेवचंद्रसूरीणामुपदेशेन गोल सस्तन्य / / (666) ॥सं० 1517 वर्षे चैत्र वदि 7 ऊकेश वंशे तातहड़ गोत्रे सा० आंबा भा० अहीवदे सुत सा० पूनाकेन भा० पउमदे तथा भ्रात समधरा समरा शिखरा प्रमुख परिवार सहितेन श्रीसंभवनाथ बिंब कारित प्रतिष्ठितं श्रीखरतर श्रीजिनभद्रसूरि पट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः।। (1000) सं० 1517 वर्षे वैशाख सु० 4 गुरौ उपकेश ज्ञातीय सूराणा गोत्रे सा० जिणराज पु० हरिचंद निज मातृ पितृ पुण्यार्थे आत्म भेयोश्रीआदिनाथ बिंबं कारितं प्र० श्रीधर्मघोष गच्छे श्रीपश्नाणदसूरिभिः / / शुभं / (1001 ॥सं० 1517 ज्ये० सु०१४ प्रा० व्य० लखमण भा. लछमादे पुत्र्या व्य० बलदा पुत्र व्य० पाचा भार्यया जसमी नाम्न्या निज श्रेयसे श्रीधर्मनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं तपागच्छे भट्टारक प्रभु श्रीसोमसुंदरसूरि शिष्य श्रीरत्नशेखरसूरि शिष्य श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः / / (1002) // 60 // संवत् 1517 वर्षे माह वदि 8 रविवारे नाहर गोत्रे साह खेता भार्या गांगी पुत्र साह छाजू नाथू सहितेन पितर भ्रातृ गोयंद पुण्यार्थे श्रीआदिनाथ बिंबं कारापितं प्र० धर्मघोष गच्छे भ० श्रीविजयचंद्रसूरि पट्टे साधुरत्नसूरिभिः / / ( 1003) सं० 1517 वर्षे माह वदि 12 गुरु दिने उ० देठू व्य० केसा० नपा भा० नायकदे पु० वेला भा० विमलादे स्व श्रेयसे श्रेयांसनाथ वि० का० प्र० चैत्र गच्छ भ० श्रीगुणाकरसूरिभिः / / / 1004) // संवत 1517 वर्षे माघ सुदि 5 शुक्रे दूगड़ गोत्रे सा० जयसिंघ पुत्र सधारण भार्या महिरानही पुत्र नथाकेन स्व पितृ श्रेयसे श्रीचंद्रप्र० बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीरुद्रपल्लीय गच्छे श्रीदेवसुंदरसूरि प? श्रीसोमसुंदरसूरिभिः॥ "Aho Shrut Gyanam"
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________________ बीकानेर जैन लेख संग्रह ( 1005) / संवतु 1517 वर्षे माघ सुदि 5 दिने श्रीउपकेश गच्छे श्रीकक्कुदाचार्य श्रीउपकेश झा० श्रेष्टि गो० सा० सहदे पु० समधर भा० वामा पु० सारंग भा० सिंगारदे यु० आत्म श्रे० श्रीकुंथु बिंबं कारिता प्रतिष्ठितं श्रीश्रीककसूरिभिः // (1006 ) // सं० 1517 वर्षे माघ सुदि 10 सोमे श्रीओसिवाल अ. भिगा गोत्रे सा० हाला भा० रूपाहि पु० सा० रणमल्ल भा० देल्हाई पुत्र सा० सुदा मेहा पितृ मातृ श्रेयसे श्रीश्रीवासुपुज्य बिंब का० प्रतिष्ठितं / सर्वसूरिभिः // श्री // संवत् 1518 वर्षे फा० सु० 2 प्रा० व्य० राणा भा० सहजू पुत्र व्य० लखमणेन पु० हाजा युतेन निज श्रेयसे श्रीशांतिनाथ बिवं का० प्र० सपा श्रीरत्नशेखरसूरि शि० भट्टारक श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः / / ( 1008 ) ॥संवत् 1518 वर्षे चैत्र वदि 7 दिने ऊकेश वंशे बोथिरा गोत्रे मं० मयर भार्या सिंगारदे पुत्र सा० थिभा भार्या सुंदरी पुत्र सा० मेला जिणदत्त सहितेन श्रीधर्मनाथ बिबं कारितं स्व पुण्यार्थ प्रतिष्ठितं श्रीखरतर गच्छे श्रीजिनभद्रसूरि पट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः / (1006 ) सं० 1518 वै० व०१ गुरौ प्रा० श्रे० सोभा भार्या दूसी पुत्र श्रे० साधाकेन भार्या टमी प्रमुख कुटुंब युतेन निज श्रेयसे श्रीसुमतिनाथ विबं का० प्र० तपा श्रीसोमसुंदरसूरि संताने श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः। ( 1010 ) सं० 1518 वर्षे ज्येष्ठ सुदि 6 बुधे श्रीकोरंट गच्छे उपकेश ज्ञा० मडाहड़ वा० सा० श्रवण भा० राऊ पु० सोमाकेन भा० वयजू पु० सोभा अमरा जावड़ सहितेन स्व पित्रोः श्रेयसे श्रीकुंथुनाथ बिंब का० प्रति० श्रीसावदेवसूरिभिः / / श्री // ( 1011 ) - सं० 1518 वर्षे माघ सु. 5 बुधे नागर ज्ञा० श्रे राम भा० शाणी पु० धर्मण भोटा नगा सालिग हरराजादिभिः स्व कुटुंब सहितः स्व श्रेयसे श्रीशीतलनाथ विंबं का० श्रीअंघल गच्छे श्रीजयकेसरिसूरीणामुपदेशेन / तच्च प्रतिष्ठितं श्रीसंघेन // "Aho Shrut Gyanam"
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________________ 124 श्रीकानेर जैन लेख संग्रह (1012) // सं० 1518 वर्षे माह सुदि 10 उकेश वंशे गोलवच्छा गोत्रे | पुगलिया वास्तव्यम् / सा० डूगर भा० कर्मी पुत्र सा० डामरेण भार्या दाडमदे पुत्र कीहट देवराजादि परिवारेण स्व श्रेयोथं श्रीपनप्रभ बिंबं का० प्र० खरतर श्रीजिनभद्रसूरि पट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं // (1013) सं० 1518 वर्षे फा० बदि 7 शनौ उ० भाद्र गो० लिगा शा० सा० लाखा भा० लाखणदे पु० थाहरूकेन भा० वीरिणी पु० बांबा मांडण सहितेन श्रीशीतलनाथ बिं० प्र० श्रीकक्कुदा० उप० श्रीककसूरिभिः // श्री॥ (1014 ) सं० 1516 वैशाख वदि 11 भृगु रैवत्या मटोडा वासी प्राग्बाट ज्ञातीय श्रे० नोहल भार्या वाल्ही सुत श्रे० वनाकेन भा० हीरू लघु भ्रातृ रामादि बहुकुटुंब युतेन स्व श्रेयो) श्रीसंभवनाथ बिबं कारितं प्र० तपा श्रीरत्नशेखरसूरि पट्टे श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः / / पं० पुण्यनंदिगणिनामुपदेशेन सं० 1519 वर्षे ज्येष्ठ सु० 3 शनौ प्राग्वा० व्यव० लाला भा० आल्हणदे पु० भारमल भार्या भरमादे पु० मोकल सहितेन श्रीसुमतिनाथ बिंबं का० प्र० कच्छोलीवाल गच्छे पूर्णिमा पक्षे भ० श्रीगुणसागरसूरीणामुपदेशेन ! ( 1016) (सं० 1516 वर्षे ज्ये० सु. 6 शुक्रे श्रीश्रीमाली शा० व्य० ऊदा भा० लीलू पु० देवा भा० सुहग पु० जीवा सहितेन निज मात आत्म श्रे० श्रीशीतलनाथ बिंबं का० प्रतिष्ठित भील्ल० गच्छे श्रीवीरदेवसूरि पट्टे श्रीअमरप्रभसूरिभिः / / ( 1017) सं० 1516 वर्षे आषाढ पदि 5 सोमे ऊकेशवंशे सं० शूरा भा० सीतादे पु० हरराजेन भा० अखू पु० देल्हादि सहितेन श्रेयसे अभिनंदन बि० का० प्र० उप० सिद्धाचार्य संताने श्रीदेवगुप्तसूरिभिः / / (1018) सं० 1516 वर्षे माघ वदि 5 सोमे श्रीश्रीमाल गा० साइण पु० गा०संग्रामसी भार्या बुलदे सु० राजा भा० वाछू भ्रातृ गणा पु० सोभा सहितेन मातृ पितृ .... निमित्तं आत्मश्रेयोश्च श्री ... नाथ बिंबं का० प्र०... ... ... 'श्रीजयसिंहसूरि पट्टे श्रीजयप्रभसूरीणामुपदेशेन / पिडवाण वास्तव्यः। "Aho Shrut Gyanam"
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________________ बीकानेर जैन लेख संग्रह 125 (1016) ___ संवत् 1520 वर्षे फागुण सुदि 11 रवि ..... आहिणदे पु० सा० दत्ता सा० जीदा भार्या सहितेन पितृ निमित्तं चतुर्विशतु जिन मूल श्रीशीतलनाथ बिंबं कारितं प्र० श्रीपूर्णिमा० भ० श्रीजयभद्रसूरिणामुपदेशेन // शुभं भवतु // ( 1020) सं० 1521 (1) वैशाख सुदि 3 रवौ ओसवंशे व्यव० झांझण भा० कश्मीरदे पु० लो ? पुण्यार्थ भ्रातृ सूरा मोकलेन श्रीकुंथुनाथ बिषं का० प्र० ज्ञानकीय गच्छे श्रीधनेश्वरसूरिभिः / ___ सं० 1521 वै० सु० 3 माउली प्रामे प्रा० सा० धन्ना भा० बजू नाम्ना पु० टाइल भा० देमती पुत्र नाल्हादि युतया श्रीसंभव बिंबं का० प्र० तपा गच्छे श्रीरत्नशेखरसूरि पट्टे श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः // (1022) संवत् 1521 वर्षे आषाढ सु० 1 गुरौ श्रीवायड़ ज्ञा० मं० जसा भा० जासू सु० तहुणाकेन भा० मबकू युतेन सुत जानू श्रेयसे आगम गच्छे श्रीहेमरत्नसूरीणामुपदेशेन श्रीशीतलनाथा दि पंचतीर्थी कारिता प्रतिष्ठिता वदेकावाड़ा वास्तव्यः / / ( 1023 ) सं० 1521 वर्षे माघ सुदि 13 शुक्रे प्राग्वंश सा० नरसी भा० हमीरदे पु० टाहुल पु० नीसलादि सहितेन श्रीआदिनाथ बिबं का० प्र० पूर्णिमा कच्छोलीवाल गच्छे श्रीविजयप्रभसूरिभिः। (1024) ___ सं० 15:1 वर्षे माघ सुदि 13 गुरु दिने उपकेश झा० व्यव० केल्हा भा० नौड़ी सुत पाता भा० दाखीदा युतेन सुड़ी पुण्यार्थ श्रीसंभवनाथ षिवं का० प्र० ब्रह्माणीय गच्छे भ० श्रीउदयप्रभसूरिभिः / / लोहीआणा मामे (1025) सं० 1521 वर्षे माघ सु० 13 प्राग्वाट व्य० मेला भा० नइणि पुत्र नाल्हाकेन भा० सारि पु० नरसिंह खेता भ्रात डगरादि युतेन श्रीश्रेयांस बिंबं का० प्र० तपा० श्रीरत्रशेखरसूरि पट्टे श्रीलक्ष्मीसागरसूरि श्रीसोमदेवसूरिभिः / "Aho Shrut Gyanam"
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________________ 126........................ बीकानेर जैन लेख संग्रह ( 1026 ) सं० 1521 वर्षे फा० सु०८ प्राम्बाटान्वये व्यव० खेता भा० सापू पु० मोकल भा० वाल्ही सहितेन आत्म श्रेयोथं श्रीमल्लिनाथ बिंबं का० प्र० पूर्णिमा० द्वितीय० कच्छोली० श्रीविजयप्रभसूरिभिः। ( 1027 ) सं० 1521 वर्षे फागुण सुदि 8 शनौ प्राग्वाटान्वये साह ककोड़ भा० सलखू पु० कूपा भा० कामला सहितेन श्रीधर्मनाथ बिंबं का० प्र० पूर्णिमा० द्वितीय० कच्छोली० गच्छे श्रीविजयप्रभसूरि। ( 1028) ___ सं० 1522 वर्षे वैशाख सुदि 3 रवौ ओसवंशे व्यव० झांझण भा० कश्मीरदे पु लो... पुण्यार्थ भ्रातृ सूटा मोकलकेन श्रीकुंथुनाथ बिंब का० प्र० ज्ञानकीय गच्छे श्रीधनेश्वरसूरिभिः / (1026) ____सं० 1523 वर्षे वैशाख वदि 1 सोमे श्रीहारीज गच्छे ओसवाल ज्ञातीय श्रेष्ठि चांपा भार्या सुदी पुत्र गांगा भार्या कुछी मातृ पितृ श्रेयो) श्रीनमिनाथ बिंब कारापितं / प्रतिष्ठित श्रीमहेश्वरसूरिभिः / / दहीसरावास्तव्यः / / ( 1030 ) / सं० 1523 वर्षे बै० सु० 13 शुक्र ऊकेश ज्ञा० श्रेष्टि सलखा पुत्र झामण ....सुत भादाकेन पत्नी भावलदेवसरहो आबा कुंरसिंह युतेन स्व श्रेयसे श्रीसुपार्श्व बिंबं कारितं प्रति० कोरंट गच्छे श्रीसावदेवसूरिभिः / श्रीडोउलद्र प्रामे / ( 1031) // 60 // सं० 1523 वर्षे मार्गसिर सुदि 10 सोमे श्रीवरलद्ध गोत्रे। सा० दोदा पुत्र सा० हेमराजेन पत्रा हेमादे पुत्र वालू धनू सहसू डालण युतेन श्रीअजितजिन विबं कारितं प्रतिष्ठित वृहद्गच्छे श्रीमेरुप्रभसूरि पट्टे श्रीराजरत्नसूरिभिः ! (1032) सं० 1523 माघ 06 प्रा० न्य० पत्रापसी भा० वानु पुत्र व्य० मिचाकेन श्रा० लालू भ्रा० राजा सहसादि कुटुंब युतेन निज श्रेयोर्थ श्रीअभिनंदन बिबं का० प्र० तपा गच्छे श्रीरत्नशेखरसूरि पदे श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः / / "Aho Shrut Gyanam"
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________________ बीकानेर जैन लेख संग्रह (1033) सं० 1523 वर्षे माथ सुदि 6 प्रा० हातय त० उदा भार्या आल्हणदे पुत्र केदाकेन भा० कपूरदे पुत्र नेमादि युतेन श्रीमुनिसुव्रत बिंबं का० प्र० तपागच्छेश श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः सीरोही वा०॥ ( 1034) ___ सं० 1524 वर्षे वैशाख सुदि 2 उपकेशज्ञातीय सोनी सजना भा० हीरादे पुत्र हेमाकेन भा० देऊ पुत्र डूगर सहितेन स्वश्रेयोथे श्रीअजितनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीज्ञानसागरसूरिभिः॥ ( 1035) स० 1524 वैशा० सु० 6 गुरौ ऊकेश झाती मंडवेचा गोत्रे सा० नाल्हा भा० नींबू पु० सहसा भा० संसारदे पु० वीरम सहितेन आ० श्रे० श्रीकुंथुनाथ बिंबं का० प्र० श्रीवृद्गच्छे श्रीजयमंगलसूरि संताने भ० श्रीकमलप्रभसूरिभिः / / सं० 1524 वर्षे मार्ग व० 2 ऊकेश वंशे तातहड़ गोत्रे सा० ठाकुर रयणादे पुत्रैः सा० महिराजाविभिः भ्रातृडपा श्रेयोथं श्रीश्रेयांसनाथः कारितः प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः / / // 60 // सं० 1524 वर्षे मार्गसिर वदि 12 सोमे श्रीनाहर गोत्रे सा० राजा पुत्र सा० पुनपाल भार्या चोखी नाम्न्या पुत्र डालू धणपाल देवसीह युतया श्रीशांतिनाथ बिबं का० प्र० श्रीवृहद्च्छीय श्रीमेरुप्रभसूरिपट्टे श्रीराजरत्नसूरिभिः / / : 1038 ) ॥सं० 1524 वर्षे मार्ग० सु० 10 शुक्र श्री सुराणा गोत्रे सा० छाजू भा० वाल्हदे पु० सा० साहण भा० साहणदे स्वपुण्यार्थ श्रीकुंथुनाथ बिंब करितं प्र० श्रीधर्मघोष गच्छे श्रीपद्माणंदसूरिभिः।। (1036) सिं० 1525 वर्षे वैशाख सुदि 3 दिने सोमे सींदरसीवासि प्रा० सा० सरवण भा० झवकू सुत सा० कर्माकेन भा० खाटू प्र० कुटुंब युतेन स्व श्रेयसे श्रीमुनिसुव्रत बिंबं कारितं प्रथितं तपा श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः / / "Aho Shrut Gyanam"
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________________ 128 बीकानेर जैन लेख संग्रह ( 1040) सं० 1525 ज्येष्ठ वदि 7 शुक्रे काष्टा संघे नंदियड़ गच्छे भ० श्रीमामकीर्तिदेवा प्रतिष्ठित छ हुंबड़ ज्ञातीय पंखोसर गोत्रे सोनापान भार्या सोहग सुत भोटा निमित्तं श्रीचन्द्रप्रमस्वामि बिंब कारा०॥ (1041) __||संवत् 1525 (1) वर्षे पोष वदि श्री माल ज्ञातीय मं० वडूआ भा० रंगाई सुत मं० दभा भार्या पूतलि सु० वोरपाल राडादि कुटुंब युतेत स्व श्रेयसे श्रीवासुपूज्य बिंबं कारितं प्रतिष्ठित श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः / / अहम्मदाबाद नगरे।। ( 1042) सं० 1525 वर्षे माघ वदि 6 प्राग्वाट सं० वाला भार्या वील्दणदे पुत्र सं० मेहाकेन भा० माणिकदे पुत्र मेरा वेला वीरम सोढादि युतेन श्रीवासुपूज्य बिंबं कारितं प्र० तपा ग० श्रीलक्ष्मीसागरसूरिशिष्य श्रीसुधानंदसूरिभिः॥ सं०१५२५ मा० व०६ प्राग्वाट झातीय सा० प्रतापसी भा० सिरियादे पुत्र सा० देवाकेन भा० देवलदे पुत्र विजयादत्तादि कुटुंब युतेन स्व श्रेयसे श्रोसंभवनाथ बिंबं कारितं प्र० तपागच्छे श्रीलक्ष्मीसागरसूरि ... ( 1044 ) ___ सं 1525 वर्षे माघ सुदि 5 बुधे प्रा० ज्ञातौ व्यवः चाहड़ पु० आल्हा भा० महधी पुत्र सहितेन श्रीअभिनन्दन बिंवं का० प्र० पूर्णि० कच्छोलीवाल गच्छे भ० श्रीविजयप्रभसूरिभिः / / ( 1045) __ सं० 1525 वर्षे फागुण सुदी 7 शनौ नागर ज्ञातीय श्रे रामा भा० शणी पुत्र नगाकेन भा० धनी पु० नाथा युतेन श्रीअंचल गच्छे श्रीजयकेसरिसूरीणामुपदेशेन श्रीश्रेयांसनाथ बिंबं का० प्र० श्रीसूरिभिः॥ ( 1046 ) सं० 1526 व० ज्येष्ठ सुदि 13 शु० श्रीसंडेर गच्छे टप गोत्रे. सा० पल्हा पु० सीहा भा० कपूरा प्र) देल्हा भा०२ सारु पुत्र आंबा आसा द्वि० पूरी पु० ऊदा अमराभ्यां पित्रोःश्रेयसे श्रीआदिनाथ बिंब कारापितं श्रीयशोदे (व) सूरि संताने प्र० श्रीशालिसूरिभिः॥ "Aho Shrut Gyanam"
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________________ बीकानेर जैन लेख संग्रह ( 1047 ) ___ संवत् 1526 वर्षे आषा सु० 2 रवौ। श्रीउपकेश ज्ञातौ श्रीसुचिंती गोत्रे सा० शिवदेव भा० खित्रधरही पु० सिंघाकेन भा० पद्मिणि पु० पिन्नण जेल्हा युतेन स्व श्रेयसे श्रीसंभवनाथ बिंब कारित प्रतिष्ठितं श्रीऊकेश गच्छे श्रीककुदाचार्य संताने श्रीककसूरिभिः ।।श्रीभट्टनगरे / / (1048 ) सं. 1526 वर्षे फा० सा. पदमा पु० भोलाकेन श्रीशं................ ( 1046) संवत् 1527 वर्षे श्रीऊकेशवंशे कानइड़ा गोत्रे सा० ताल्हा पुत्र सा० पोमाकेत भा० पोगीदे पुत्र सा० लखमण लोला सहितेन निज पूर्वज निमित्तं श्रीवासुपूज्य वि कारितं श्रीखरतर गच्छे प्रतिष्ठितं श्रोजिनहर्षसूरिभिः / / (1050) सं० 1527 वर्षे ज्येष्ठ मुंडाड़ा वासि प्रा० सा० जाणा भा० जइतलदे पु०. सा० रणमल्लेन भा० खीमणि भ्रातृ चूंडादि कुटुंब युतेन श्रोसुमतिनाथ बिंध का० प्र० तपागच्छनायक श्रोश्रोश्रीलक्ष्मीसागरसू०.....॥ (1051) ॥सं० 1527 वर्षे पौ० ब० 1 सोमे माल्हूराणी वासी प्राग्वाटज्ञातीय व्य० राउल भा० वाद पुत्र व्य० देपाकेन भा० देवलदे पुत्र सोमादि कुटुंब युतेन स्व श्रेयस श्रीविमलनाथ बिंबं का०प्र० श्रीसूरिभिः श्री। ( 1052) ॥सं० 1527 पौष सुदि 12 आंबड़थला वासी प्राग्वाट व्य० पीचा पुत्र सा० चउथाकेन भा० चाहिणदे पुत्र जाणा वधुना कुं० युतेन श्रीनमिनाथ बिंबं का० प्र० तपागच्छे श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः।। ( 1053 ) // सं० 1527 वर्षे माघ वदि 5 शुक्र श्रीनागेन्द्र गच्छे उ० साह मेरा भा० ललतादे पु० देवराज भा० डाही पुत्र नाथा सहितेन आत्म श्रेयसे श्रीसंभवनाथ विंबं का० श्रीविनयप्रभसूरि 10 प्र० श्रीसोमरनसूरिभिः / / "Aho Shrut Gyanam"
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________________ बीकानेर जेन लेख संग्रह ( 1054 ) सं० 1527 वर्ष माह सुदि है बुधे उ० ज्ञा० जोजाउरा गोत्रे सा० सोल्हा भा० यशमो पु० सा० खीमा हमीरी पु० सोना सहितेन हेमा माल्ही निमित्तं श्रीधर्मनाथ बिबं का०प्र० श्रीचैत्र गच्छे श्रीसाधुकीर्तिसूरि आ० श्रीचारुचंद्रसूरिभिः / (1055) सं० 1528 वर्षे वैशाख पदि 1 शुक्र उसवाल झा० सा० नरसा भा० नीणादे पु० सपाकेन भा० संसारी पु० सोभा भा० मा० मानू द्वि० पु. नाभादि युतेन श्रीआदिनाथ बिंब का० प्रतिष्ठितं ऊएस गच्छे श्रीसिद्धाचार्य संताने खरातपा म० श्रीसिद्धसेनसूरिभिः॥ ( 1056 ) !! संव० 1528 व० वैशाख 20 2 गुरौ उप० शा० सुंधा गो० सा० बेहट मा० धाइ पु० सा० पाल्हा भा० पाल्हणदे पु० जिणदत्त श्रेयसे श्रीआदिनाथ बिंबं का० प्र० .श्रीकोरंट गच्छे श्रीनन्नाचार्य संताने कक्कसूरि पट्टे श्रीसावदेवसूरिमिः। सं० 1528 वर्षे वैशाख सुदि 4 बुधे उ० झा० व्यव० देवसी भार्या देवलदे पुत्र पोपा भार्या पाल्हणदे पुत्र कमा मोका थन्ना सहितेन आन्म श्रेयसे श्रीवासुपूज्य बिंब कारितं प्रतिष्टितं श्रीब्रह्माणीय (ग) च्छे भ० श्रीउदयप्रभसूरिभिः / ( 1058 ) संवत् 1528 वर्षे आषाढ सुदि 2 दिने ऊकेश वंशे दुहरागोत्रे सा० पदमा सुत सा० राणा सुश्रावकेण भा० रयणादे पुत्र सा० कर्मण प्रमुख पुत्र पौत्रादि युतेन श्रीसुमतिनाथ बिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतर गच्छे श्रीजिनभद्रसूरिप? श्रीजिनचंद्रसूरिभिः / / सं० 1528 वर्षे माघ वदि 4 बुधे / उपकेश ज्ञा० वपणा गोत्रे सा८ तेजा भा० मेलादे पु० केपा भा० वारू पु० योगा पितृ निमित्सं आ श्रेयोथं श्रीसुविधनाथ बिंब का० प्र० उ० श्रीदेवगुससूरिभिः // (1060) // सं० 1526 वर्षे वैशाख वदि 6 सोम उपकेश वंशे जाखड़िया गोत्रे सं० सहजा पुत्र सं० हिमराज भार्या हर्षमदे पुत्र हीरा हरिचंद रणधीर युतेन श्रीश्रेयांस बिंबं कारितं प्र० श्रीतपागच्छे भ० श्रीहेमहंससूरि पट्टे श्रीहेमसमर (1) सूरिभिः / "Aho Shrut Gyanam"
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________________ बीकानेर जैन लेख संग्रह / / सं० 1526 वर्षे ज्येष्ठ वदि 4 ऊकेश झातीय सा० पूना सुत भीमा सुदा श्रीवंत नामभिः पितृ श्रेयसे श्रीसुविधिनाथ बिंबं कारिस प्रतिष्ठितं श्रीसूरिभिः। सरसा पत्तन वास्तव्यः / / छः / / ( 1062) सं० 1526 वर्षे द्वि ज्येष्ठ सु० 3 रवौ श्रीश्रीमाल ज्ञा० न्य० जूठा भा०.. 'सामल सरवण रुपाधर पितृ मातृ जीवित स्वामि श्रीकुंथुनाथ मुल्य पंचतीर्थी कारापितं श्रीपूर्णिमा पक्षे ( 1063) / सं० 1526 वर्षे माघ 0 ५रवौ उपकेश ज्ञातीय सांखुला गोत्रे सोना भा० सोनलदे पु० सा० धर्मा भा० धोरलदे आत्म श्रेयसे श्रीशीतलनाथ बिंब का०प्र० श्रीधर्मघोष गच्छे / श्रीपभ्रशेखरसूरि प. भ० श्रीपमाणंदसूरिभिः / / (1064) // संव० 1526 वर्षे फागुण वदि 1 श्रीउपकेश गच्छे कुकदा० संता उपकेश ज्ञातौ तातहड़ गोत्रे सा० सीहदे भा० सूहवदे पु० सा० सिधरं सिखा सीधर भा० सारंगदे सिखा भा० लख्मादे आत्म श्रेयसे श्रीकुंथु बिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीदेवगुप्तसूरिभिः॥ (1065 ) // 60 // सं० 1530 वर्षे उपकेश वंशे चोपड़ा गोरे को० सायर भार्या कपूरदे पुत्र सरवण साइणाभ्यां पुत्र जयतसींह हेमादि सपरिकराभ्यां निज पितृ पुण्यार्थ श्रीसुमति बिंबं कारितं प्र० श्रीखरतर गच्छे श्रीजिनभद्रसूरि पट्टालंकार श्रीनिनचंद्रसूरिभिः / सं० 1530 वर्ष फागुण सुदि 2 शुक्र प्राग्वाट ज्ञातीय व्य० ककाड़ भा० सलखु पु. जोला भा० मटी पु. केल्हण फगन गेहा सहितेन श्रीधर्मनाथ बिबं का० प्र० पूर्णिमा पक्षोय कच्छोलीवाल गच्छे श्रीविजयप्रभसूरिभिः / / श्री / / (1067 ) __सं० 1530 वर्षे फा० सु०७ प्रा० वजा भा० गेलू वा० सना भ्रा० वेला सोजादि कुटुंब युतेन स्व श्रेयसे श्रीमहावीर बिंबं का० प्र० तपा श्रीलक्ष्मीसाग भूरिभिः / लासनगरे "Aho Shrut Gyanam"
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________________ 132 बीकानेर जैन लेख संग्रह ( 1068) सं० 1531 माघ 208 सोमे प्राग्वाट ज्ञातीय श्रे समरा भा० मदु सुत जीवाकेन भा० लाछू सुत गला राउल टीकादि कुटुंब युतेन जावड़ श्रेयसे कारितं श्रीधर्मनाथ बिबं प्रतिष्ठितं सपा गच्छेश श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः / / ( 1066) __ संवत् 1531 फागुण सुदि 5 श्रीकाष्टा संधे। भ० गुण भट प्राप सवसे० सवाय नित्यं प्रणमति। ( 1070) सं० 1532 वर्षे फा० सु०८ शनौ ऊकेश ज्ञा० व्य० गो० सा० महिपा भा० मोहणदे पुः जैसाभा० जयतलदे स० पित्रोः श्रे श्रीधर्मनाथ विंबं का० प्र० मडा० ग० श्रीनयचंद्रसूरिभिः ||माहोवाoll ( 1071 ) सं० 1532 व० चैत्र सु० 4 श० ओसवा० सा० महणा भा० माणिकदे पु० वरखाकेन भा० चांपलदे सु० जगा गांगी गोइन्द प्रभृतिः मातृ पितृ स्वश्रेयसे श्रीधर्मनाथ विबं का० प्र० ऊकेश गच्छे श्रीसिद्धाचार्य सं० श्रीसिद्धसुरिभिः |गादहि।। ( 1072) सं० 1532 वर्षे वैशाख यदि 5 रवि दिने उस० झा० गो० उरजण भा० रोऊ सुत चाहड़ मा० चाहिणदे सु० जसवीर रणवोर लूगा परवत पांचा युतेन आ० श्रेयसे धर्मनाथ बुं (1 बिं) कारितं प्र० श्रीजीरापल्ली ग ! भ० श्रीउदयचंद्रसूरि पट्ट श्रोसागरचंद्रसूरिभिः शुभंभवतु ||समीयाणा वास्तव्यः॥ ( 1073) सं० 1532 वर्ष वैशाख वदि 5 रवौ ओस० सा० गोल्हा भार्या कुंरादे पुत्र सोमा भार्या सिंगारदे युतेन पुण्याथ श्रीश्रीकुंथुनाथ बिंबं कारितं प्रति० मडाहड़ी गच्छे श्रीचक्रेश्वरसूरि संताने श्रीकमलप्रभसूरि शिष्येन आसोत् शुभं भवतु श्रेस्यत् / / ( 1074 ) सं० 1532 वर्षे वैशाख वदि 5 रवौ प्राम्वा० ज्ञा० व्यव० रिणमल भा० राजलदे पुत्र गोइन्द भा० गसुदरि सहितेन श्रीकुंथुनाथ बिंब कारि० पूर्णिमा पक्षे द्विती० कच्छोलीवाल गच्छे श्रीविजयप्रभसूरीणामुपदेशेन श्री "Aho Shrut Gyanam"
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________________ बीकानेर जैन लेख संग्रह 133 ( 1075 ) सं० 1532 वर्षे आषाढ़ सुदि 2 सोमे पुनर्वसु नक्षत्रे सुचिती गोत्रे सं० सहसा भा० राणी पुत्र सा० संसारचंद्र कन्हाई पुत्र सं० सुललित शिवदास सहितेन स्वश्रेयसे श्रीसुमतिनाथ बिंब का० प्र० कृष्ण। गच्छे श्रीजयसिंहसूरिभिः / / श्री॥ संवत् 1533 वर्षे शाके 1368 मार्गसिर सुदी 6 शुक्रवारे श्री उस ज्ञातीय भंडारी गोत्रे सा० जाटा तत्पुत्र सा० बीदा स्वमातु जसमादे पुण्यार्थ श्रीधर्मनाथ विंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीसंडेर गच्छे श्री ईसरसूरि पट्टे श्रीशालिभद्रसूरिभिः / / ( 1077 ) सं० 1533 वै० सु० 12 गुरौ प्र० व्य० पना भा० चांदू पुत्र सोभा भा० मानू भ्रातृव्य० रहिआकेन भ्रातृ धरणू युत नायक नरबदादि कुटंब युतेन श्रीविमलनाथ बिंबं का०प्र० श्रीसोम सुंदरसूरि संतामे श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः नांदिया प्रामे / / (1078) सं० 1534 वर्षे च० व०६ शनौ भसुड़ी वासी प्रा. व्य. भटा भार्या मोहिणदे पुत्र व्य० पर्वतेन भा० ढाकू भ्रातृ भोमादि कुटुंब युतेन स्वश्रेयसे श्रीशीतलनाथ बिंब का० प्र० तपा श्रीरत्रशेखर सूरि पट्ट श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः / / (1076) ॥सं० 1534 वर्षे वै० व० 8 प्राग्वा० सा० माला भा० मोहिणि पुत्र आसाकेन भार्या कपूरदे पु० भोजादि कु० स्वश्रेयसे श्रीवासुपूज्य विबं का० प्र० तपागच्छे श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः बेहल्या वासे॥ ( 1080) सं० 1534 वर्षे वैशाख सु० 3 सोमे उ० सोपतवा भा० अगणी पुत्र नापा सादा नापल पणदे सूरमदे षुजसवानाथ तेजा नाल्हा स० श्रीशांतिनाथ बिंबं आत्म श्रेयसे का० प्र० वृहद्गच्छे भ० श्रीकसलचंद्रसूरिभिः॥ (1081 ) सं० 1534 वर्षे ज्येष्ठ सुदि 10 सो० ओस. पूर्व सा० ईसर भा० सुमलदे सुत चाचाकेन भा० हरसु पु० रणमल्ल सहितेन श्री धर्मनाथ बिंबं पूर्वजनिमित्तं प्रति० मडाहड़ गच्छे जाखड़िया धर्मचंद्रसूरि पट्ट श्रीकमलचंद्रसूरिभिः / / "Aho Shrut Gyanam'
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________________ 134 बीकानेर जैन लेख संग्रह (1082) सं० 1534 वर्षे आषाढ़ वदिह लोटीवाड़ा बासी प्रा० मंगांगा भार्या पानु पुत्र चापाकेन भा० सीतू पुत्र नगादि युतेन स्वश्रेयसे श्रीनमिनाथ बिंबं का० प्र० तपा गच्छेश श्रीरमशेखरसूरि पट्ट श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः |श्री।। ( 1083 ) ॥सं० 1534 वर्षे आषाढ़ सुदि 1 वृहस्पतिवारे चंडालिया गोत्रे सा० मेहापुत्र सा० सूरा भार्या भूरमदेव्या पुत्र यस्ता तेजायुत मा० पु० श्रेयसे श्रीअजितनाथ बिंब कारितं प्रतिष्टितं मलधारि गच्छीय श्रीगुणसुंदरसूरि श्रीगुणनिधानसूरिभिः / / ( 1084 ) सवत् 1534 आषाढ़ सुदि 1 गुरौ षटवड़ गोत्रे सा० सारंग संताने सा० नापा भार्यानारिंगदे पुत्रेन पुंजोकेन भ्रातृ लाला युतेन पितृ पुण्यार्थं श्रीशीतलनाथ बिंबं कारितं प्र० श्रीमलधारि गच्छे श्रीगुणसुंदरसूरि पट्टे श्रीगुणनिधानसूरिभिः / / ( 1085 ) ॥संवत् 1534 वर्षे आषाढ़ सुदि 2 दिने उकेश राखेचा गोत्रे सा० जगमाल भा० हिमे पु० सा० थेरू भ्रा० घेरू सुश्राव केण भा० रमाई पु० सा० देवराज सहितेन भ्रातृ रूपाथिरुदसू सा० वच्छा प्रमुख परिवारेण श्रीसंभवनाथ बिंब का० प्रतिष्ठितं श्रीखरतर गच्छे श्रीजिनभद्रसूरि पट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः ॥श्री। (1086 ) // 60 // संवत् 1534 वर्षे आषाढ सुदि 2 दिने उकेश वंशे सेठि गोत्रे से० पदा / भार्या करदे पुत्र नाथू सुश्रावकेण भा० नारंगदे पुत्र ऊदा कर्मसी प्रमुख प्रमुख परिवार युतेन श्रीमुनिसुव्रत स्वामि विंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतर गच्छे श्रीजिनभद्रसूरि पट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः / / (1087 ) // 60 // स्वत् 1534 वर्षे आषाढ सुदि 2 दिने उकेश वंशे लूणिया गोत्रे सा० पूना भार्या पूनादे पुत्र रणधीर सुश्रावकेण भा० नयणादे पु० नालू सा० बालू वील्हा वीरमादि परिवार युतेन श्रीसुविधिनाथ बिवं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतर गच्छे श्रीजिनभद्रसूरि पट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः ॥श्री। "Aho Shrut Gyanam"
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________________ बीकानेर जैन लेख संग्रह 135 ( 1088 ) संवत् 1534 आषाढ सुदि -2 दिने ऊकेश वंशे चोपड़ा गोत्रे सा० आंबा भा० अहवदे तत्पुत्र सा० ऊधरण भ्रातृ सा० सधारणेन भार्या सुगुणादे पुत्र फलकू कीतादि परिवार युतेन श्रीकुंथुनाथ बिंबं का प्रतिष्ठितं खरतर गच्छेश श्रीजिनचंद्रसूरिभिः॥ ( 1086) // सं० 1534 वर्ष माघ सु०६ उ० ज्ञा० रांका गोत्रे साह कोहा भा० कपूरी पु० पासड़ भा० रपु पु० पेथा द्वि० भा० साल्हणदे पु० वोसलनरभ० ताल्हादि युतेन स्वतो श्रेयसे श्रीसंभवनाथ बिंब का० उपकेश (ग) च्छे ककुदाचार्य सं० प्रति० श्रीदेवगुप्त सूरिमिः / / 1060) सं० 1534 वष फागुण वदि 3 शुक्रे प्राग्वाट ज्ञा० को० धर्मा भा० धर्मादे पु० को० पेथा भा० हषू द्वि० प्रेमलदे सकुटुंब युतेन स्व श्रेयसे श्रीसुविधिनाथ विंबं का० प्र० ऊ० श्रीसिद्धाचार्य संताने भ० श्रीसिद्धसूरिभिः॥ ( 1061) सं० 1535 वर्षे आषाढ सुदि 5 गुरौ / ऊ सा० पाल्हा सुत जेसा भा० खेतडदे पु० खीमा भा० हरखू पुत्र मेरा नाल्हा सहितेन श्रीधर्मनाथ बिंबं कारा० प्रति० मडाहड़ी ( य ग ) च्छे झाखडिया भ० श्रीश्रीधर्मचंद्रसूरि पट्टे श्रीकमलचंद्रसूरिभिः / / 74 // ( 1062) सं० 1535 वर्षे मा० सु० 5 गु० डीमा० श्रे० झूठा भार्या अमकू सुत मं० भोजाकेन भार्या मवकू सुत नाथा भ्रा० वड़यादि श्रेयसे श्रीअर बि० का०प्र० तपागच्छे श्रीरत्नशेखरसरि प्र० श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः प्रतिष्ठितं / / (1063) // सं० 1535 व० मा० सु० 5 उ० भंडारी गोने महं० सायर पु० मं० सादुल भा० जयतु पु० सोहा संदा समरादि युतेन स्व श्रेयसे श्रीसुपाश्य बिंबं का० प्र० संडेर ग० श्रीसालसूरिभिः / / ( 1064 ) सं० 1535 वर्षे माघ सुदि दशम्यां प्राग्वाट व्य० वाहड़ भार्या सलखणदे पुत्र्या व्य० धन्ना भार्यया पातु नाम्न्या मिताततोदि कुटुंब युतया श्रीशीतलनाथ बिंब कारितं प्रतिष्ठितं तपा श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः / "Aho Shrut Gyanam"
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________________ 136 बीकानेर जैन लेख संग्रह ( 1065) / / 60 / / सं० 1536 वर्षे ऊकेश वंशे चोपड़ा गोत्रे को० सायर भार्या कपूरदे पुत्र सरवण साहणाभ्यां पुत्र जयसिंह हमादि सपरिकराश्यां निज पितृ पुण्यार्थं श्रीसुमति बिंबं कारितं प्र० श्रीखरतर गच्छे श्रीजिनभद्रसूरि पट्टालंकार श्रीजिनचंद्रसूरिभिः / / ( 1066) संवत् 1536 वर्षे वैशाख सु० 8 भूमे उ० मंडलेचा गोत्रे सा० कूदा भा० रंगादे पु० जइसा ता आर जइता भा० जिस्मादे तास्मा भा० तारादे पु० अमरा आ० अ० सुमतिनाथ बि० का० प्र० पृ० ग० पुण्यप्रभसूरिभिः॥ (1067) ___ सं० 1536 वर्षे मार्गसिर सुदि 5 उ० ज्ञातौ रांका गोत्रे सा• पासड़ भा० पाल्हणदे पु० पेथा श्रीशीतलनाथ बिंब पाल्हदे निमितं श्री उ० गच्छोय ककुदाचार्य संताने श्रीदेवगुप्तसूरिभिः माणवड़ा (1068) संवत् 1536 वर्षे मा० सु० 6 शुक्र ऊकेश ज्ञातीय मं० अर्जुन भा० अड़की पु० दो० देवाभार्या अमरी दो० आसा भा० आसलदे पुत्री मेघू नाम्न्या भ्रा० धरणादि युतया श्रीसुमतिनाथ बिंब का० प्रति० सूरिभिः तिमिरपुरे॥ ( 1066 ) सं० 1536 वर्षे फा० सा० पदमा पु० भोलाकेन श्रीशांतिनाथ बिबं का० प्र० श्रीधनेशर सूरिभिः / / (1100) सं० 1536 वर्षे ऊकेश वंशे पारिखि गोत्रे सा० सालिग भा० पूरी पुत्र सा० देवदत्तेन पुत्र सा० राजा सा० साधारणादि परिवार युतेन श्रीविमल बिंब का० प्र० श्रीखरतर गच्छे श्रीजिनभद्रसूरि पट्ट श्रीजिनचंद्रसूरिभिः फागु० व० 3 श्रीगेसलगेरा (जेसलमेरौ) ( 1101 ) |सं० 1536 फा० सु० 2 प्राग्वाट व्य० मांडण भा० मालणदे पु० सा० लखमणेन भा० सल्ह पुत्र जेसा मोका सिंघादि युतेन श्रीशांतिनाथ बिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीसूरिभिः वृहग्राम वास्तव्यः श्री। // 60ll संवत् 1536 वर्षे फागुण सुदि 3 दिने ऊकेश वंशे चोपड़ा गोत्रे सा० सोना भा० पूजा पु० रता भा० तामाणि पुत्र राघाकेन श्रीकुंथुनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीख०श्रो जिनचंद्रसूरिमिः "Aho Shrut Gyanam"
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________________ बीकानेर जैन लेख संग्रह / संवत् 1536 वर्षे फा० सु० 3 दिन उकेश वंशे तिलहरा गोत्रे सामरा भार्या सहव पु० देवराजेन भा० रूपादे पु० गांगा रतना राज खरमा परिवार युतेन श्रीसंभवनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं खरतर गच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः॥ ( 1104) ॥सं० 1536 फा० सु० 3 उकेश वंशे बंबोड़ी गोत्रे सा० .देपा भा० कपूरदे पुत्र जसा पद्मा जेल्हाद्यः पुण्यार्थं श्रीसुमतिनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं खरतर गच्छे श्रीजिनभद्रसूरि पट्टे श्रीजिनचंद्र सूरिभिः / / ( 1105) सं० 153 ( ) वर्षे ज्येष्ठ सु० 11 शुक्रे ऊ० वाघरा गोत्रे सा० गांगा भार्या रूदी पुत्र काजलेन पितृ मातृ आत्म श्रेयसे श्रीनमिनाथ बिंब का०प्र० श्रीसिद्धाचार्य सन्ताने प्र० श्रीककसरिभिः सं० 1540 वर्षे वैशाख सुदि 10 बुधे श्रीकाष्टा संध नदी तट गच्छे विद्या गणे भट्टा० श्रीसोमकीर्ति प्रतिष्ठितं आचार्य श्रीवीरसेन युक्त हुंबड़ ज्ञातीय पंखीसर गोत्रे सं० राणा भार्या वाछा पुत्र वसा भार्या रुक्मणी पु० श्रीपाल वीरपाल कुरपाल सुपास प्रणमति / ( 1107) संवत् 1542 वर्षे फागुण सुदि 5 दिने उप० कांकरिआ गोत्रे सा० नरदे भा० सांपू पु० धन्नाकेन / सा० धन्ना भा० म्यापुरि पुत्र हीरा सहितेन आत्म पुण्यार्थ श्रीशीतलनाथ बिंब कारितं प्रतिष्ठितं खरतर गच्छे श्रीजिनहर्षसूरिभिः / / (1108) ....... ...... ... ....... "दे युतेन श्रीशांतिनाथ बिंबं कारितं प्र० श्रीखरतर गच्छे श्रीजिनहर्षसूरिभिः॥ (1106) ___ सं० 1543 वर्षे मार्ग सु० 2 सोमे उ० ज्ञातीय भेटोचा गोत्रे सा० तेजा भा० तेजलदे पु० नगा लाखा भोजा भा० तागोदर सकुटुंबेन सीहा पुण्यार्थं श्रीसुविधिनाथ बिंबं का. प्रतिष्ठित श्रीज्ञानकीय गच्छे भट्टारक श्रीश्रीश्रीधनेश्वरसूरिभिः सिंहा निमित्तं बिब बिजापुर वा० / 18 "Aho Shrut Gyanam"
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________________ 13 बीकानेर जैन लेख संग्रह / 1110) सं० 1545 वर्ष ज्येष्ठ ह (? व दि 11 रवौ उ० ज्ञा० पालड़ेवा गो० पाल्हा भार्या रहर पूअ रत्नू पु० जगमाल भार्या ललतादे स० पूर्वलमितं ( ? पूर्वजनिमित्तं श्रीसंभव बिंब का० प्र० श्रीनयचंद्रसूरिभिः म० गच्छे (1111 ) सं० 1545 वर्षे ज्येष्ठ 30 11 रवौ ओ० सा० भ्वेना भार्या जीवणी पु० वीसा पुजा नरसिंह वरसिंह सहिते (न ) पितृ श्रेयसे श्रीचंद्रप्रभ बिंबं कारापितं प्रति० श्रीवृहद्गच्छे सतपुरी। श्रीहेमहंससूरि प० श्रीसोमसुंदरसूरिभिः॥ ( 1112 ) सं० 1547 वर्षे ज्येष्ठ मासे शुक्ल पक्षे 2 भौमे उ० सा० वीसू भा० पोमी सु० लाला महिपा लाला भा० झबकू पहिपा भा० हेमी पितृ मातृ श्रेयो) श्रीधर्मनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठिसं जाखड़िया गच्छ भ० श्रीकमलचंद्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं // शुभं भवतु / / ( 1113 ) सं० 1547 व० ज्ये० सु० 2 सोमे उस० वहेरा गोत्रे सं० राउल भार्या वीरणी पुत्र देपा भार्या जीवादे पुत्र खीमा मंडलिकादि सहितेन स्वपुण्यार्थं श्रीशीतलनाथ बियं का० प्र० श्रीवृहद्गच्छे सत्यपुरो सोमसुंदरसूरि पट्टे श्रीचारुचंद्रसूरिभिः / / सिरोही // (1114) समत 1548 वरष वैशाख सुदि 3 श्रीमूलसंधे भट्टारीखजी श्रीपाषाण प्रतिमा ........... (1115) संवत् 1546 वर्षे ज्येष्ठ वदि 1 दिन ऊकेश वंशे साधु शाखा परीक्ष गोत्रे प० वेला भार्या विमलादे पुत्र नोडाकेन भार्या हीरादे पुत्र वाघा ताल्ही अमरा पांचादि प० युतेन श्रीसुमतिनाथ बिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छ श्रीजिनचंद्रसूरि पट्टे श्रीजिनसमुद्रसूरिभिः / / (1116 ) ___सं० 1550 माह वदि ह व श्रीश्रीमाल ज्ञा० श्रे लुका भा० सुंदरि सुत पासड़ेन पित मातृ श्रेयोर्थ श्रीपद्मप्रभस्वामी बिंब कारितं प्रति० श्रीब्रह्माणीय गच्छे श्रीमुणिचंद्रसूरिभिः / / शुभं॥ "Aho Shrut Gyanam
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
( १११७ )
पं० १५५० वर्षे माघ वदि १२ शनौ उसवाल श्रीआहवणा गोत्रे सा० नत्थू भा० भरहणि पु० साजण भा० चाऊ पु० खेताकेन भा० खेतलदे पु० देवदत्त थेनड़ युतेनात्मपुण्यार्थं श्रीसुविधिनाथ बिं० का० प्र० उपकेश० कक्कु० श्रीदेवगुप्तसूरिभिः ।
( १११८ )
सं० १५५१ वै० सु० झाड़उली ग्रामे प्रा० सा० धन्ना भा० वसु नाम्न्या पु० टाइल भा० देवति पुत्र नाल्हादि युतया श्रीसंभव बिंबं का० प्र० तपागच्छ श्रीरत्नशेखरसूरि पट्टे श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः ।
१३६
( १११६ )
सं० १५५१ वर्षे वैशाख सुदि १३ ऊकेश वंशे बहताला गोत्रे सा० मूल पुत्र साधा भा० पूनी पु० सा० जयसिंहेन भा० जसमादे पु० जयता जोधादि परिवारयुतेन स्वपुण्यार्थ श्रीशांतिare foto प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छ श्रीजिनहर्षसूरिभिः ||
( ११२० )
सं० १५५१ वर्षे जे०सु० ८ खौ प्रा० व्य० देपा भा० देसलदे पु० टाहा व० देवसी पु० थ० लाला भा० डाहा लापादि कुटुंब युतेन स्व श्रेय श्रीशांतिनाथ बिंबं का० प्र० श्रीसूरिभिः ।
(
सं० १५५१ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १३ प्रा० साह घूंडा निमित्तं ॥ श्री ॥ श्री कुंथनाथ बिंबं श्रीविजयराजसूरिभिः ॥ द्वितीय शाखायां ॥
११२१ ) व्यव० आला भार्या गुरी पु० चुडा भार्या सूरम || कारिता प्र० पूर्णिमा कच्छोलीवाल गच्छे भ०
११२२
|| संवत् १५५२ वर्ष माघ सुदि १२ बुध दिने खुबहाड़ा वा० प्राग्वाट ज्ञाती० वुमुचण्ड भा० करणु पु० जेतल भार्या जसमादे श्रीधर्मनाथ बि० ब्रह्माणीय गच्छेभ० गुण सुंदरसूरिभिः || व्य० धागार्थे !
( ११२३ )
|| संवत् १५५४ व० पौष व० २ बुधे सुराणा गोत्रे सा० चीचा भा० कुंती पु० मेघा भा० रंगी पु० सूर्यमल स्वपुण्यार्थं श्रीवासुपूज्य चित्रं कारितं प्र० सूराणा गच्छे श्रीपाद सूरि पट्ट श्रीनंदिवर्द्धनसूरिभिः जालुर वास्तव्यः
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
(११२४) संवत् १५५४ वर्षे माघ वदि २ गतू (१) ओसवाल ज्ञा० धृतीशाखायो सा० लखा भा० लखमादे पु० खेतसीकेन भा० खेतलदे पु० दमा माकादि युतेन स्वश्रेयोथं श्रीचंद्रप्रभस्वामि मुख्य पंचतीर्थी बिंब का श्रीपूर्णिमापक्षे भीमपल्लीय श्रीचारित्रचंद्रसूरि पट्टे श्रीमुनिचंद्रसूरीणामुपदेशेन प्रतिष्ठितं ।। .
(११२५) सं० १५५६ वर्षे वै० सु० ८ ..............वाल ज्ञातीय नाहर गोत्रे सा० खेता भा० पदमादे पु० होला भा० हांसलदे पु० नाल्हा तोला लाखा लोहट .........सोमा आत्म श्रेयसे श्रीशांतिनाथ विंबं प्रतिष्ठितं श्रीधर्मघोष गच्छे श्रीपुण्यवर्द्धनसूरिभिः ।।
॥ संवत् १५५६ वर्षे जेठ सुदि ह रखौउपकेश न्यातीय श्रीनाहर गोत्रे सा० सादा संताने सा० बाला भार्या पाल्ही पुत्र सा० दसरथ भार्या पुत्र सहितेन श्रीशीतलनाथ बिंब कारित प्र० श्रीरुद्रपल्लीय गच्छे भ० श्रीदेवसुंदरसूरिभिः ।। श्री ॥
(११२७ ) ॥ संवत् १५५७ वर्षे पौष सुदि १५ सोमउपकेश..... . . . . . . . . . . . . 'पु० डूंगर भार्या दूलादे पु० जिणा द्वि० भार्या दाडिमदे पु० देवा मंडलिकादि कुटुंब युतेन स्वश्रेयसे ॥ श्रीसुविधिनाथ बिंब कारापितं प्र० सर्वसूरिभिः भ० श्रीजयमंगलसूरिपे । कमलप्रभ सू०
(११२८) ॥ सं० १५५७ वर्षे माह सुदि १० शनौ ऊकेश वंशे श्रेष्ठि गोत्रे सा० सहसा भा० जीऊ पुत्र सा० चाहड़ेन भा० चांपलदे पु० साधाराणा राघव रायमल्ल प्रमुख परिवार युतेन श्रीचंद्रप्रभ बिवं कारितं स्वश्रेयो प्रति० श्रीजिनसमुद्रसूरि पट्टे श्रीजिनहंससूरिभिः।।
( ११२६ ) ॥६०॥ सं० १५५६ वर्षे मार्गशीर्ष वदि ५ गुरौ ऊकेश वंशे भणशाली गोत्रे सं० भोजा भा० कन्हाई तत्पुत्र मं० श्रीतेजसिंहेन भा० लीलादेव्यादि परिवार युतेन श्रीपार्श्वनाथ बिंब का० प्र० खरतर गच्छे श्रीजिनहर्षसूरिभिः ।।
संवत् १५६१ वर्षे वैशाख सुदि ३ दिने प्राग्वाट ज्ञातीय सा० वीसल भा० नारिंगदे पु० भोला भरमा उजत डूंगर पु० सहिजू मांगू नाम्नीभ्यां श्रेयोथं श्रीकुंथुनाथ बिबं का० प्र० तपा गच्छे श्रीहेमविमलसूरिभिः॥
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(११३१ ) सं० १५६३ वर्षे माह सु० १५ गरा ना ववे गोत्रे सा. गेल्हा पु० सा० जयितकेन भा० जसमादे पुत्र नमण नगा पयसल पंचायण यु निज पितृ श्रेयसे श्रीसुमतिनाथ बिंबं का० प्र० श्रीपिप्पल गच्छे भ० श्रीदेवप्रभसूरिभिः ।
( ११३२ ) ॥ सं० १५६७ वर्षे वैशाख सु० १० बु० ऊकेश ज्ञातीय गांधी गोत्रे सं० यस्ता भा० चंपाई पुत्रकेन सं० वीजा लाच्छी पु० अमपाल श्रीवंत रत्नपाल खीमपाल युते श्रेयोर्थ श्रीसंभवनाथ बिंब कारितं प्र० अं० गच्छे श्रीभावसंग (?) सूरि ।
( ११३३ ) सं० १५६८ वर्षे माघ सु० ४ गुरौ प्रा० दो० कर्मा भा० करणू पुत्र अखाकेन भा० हळू भ्रा० दो० अदा भा० अनपमदे पु० दो० सिवा सहसा स० प्र० कु. युतेन श्रीसुमतिनाथ विंबं का० प्र० श्रीहेमविमलसूरिभिः ।।
( ११:४) ॥ संवत् १५६८ वर्षे शाके १४३३ प्रवर्त्तमाने माघ मासे शुक्ल पुष्य ५ शुक्र श्रीविराष्ट्र नगरे श्रीश्रीमाल ज्ञातीय ।। वृद्धि शाखायां सो० साभा भा० तेयु सुत सहिसा विणा ठाकर भा० वहलादे सु० । श्रीराजमांडण प्रतिष्ठितं श्रीधर्मरत्नसूरिभिः श्रीसुपारिस्वनाथ विवं मंगलार्थ ।।
( ११३५ ) सं। १५७१ वर्षे आषाढ़ सुदि २श्रीउपकेश गच्छे । बापणा गोत्रे । सा० राजा पु० वीरम भा. विमलादे पु० महिपाकेन श्रीसुमतिनाथ बिंबं कारितं प्र० श्रीककसूरिभिः ।
सं० १५७२ वर्ष वैशाख सुदि ३ शनौ ठार ( ?) भारद्वाज गोत्रे उ० ज्ञा० सा० भीमा भा० धनी पु० मेरा भा० शीतू श्रीसुमतिनाथ बिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रियोथं श्रीजीरापल्ली गच्छे भ० श्रीदेवरत्नसूरिभिः ।।
(११३७) ॥ सं० १५७२ वर्षे ज्येष्ठ सुदि २ शनौ प्रा० लाबा सा० साधर भा० सूरमदे पु० मोकल हेमा हीरादि स० श्रीआदिनाथ बिबं का० प्र० पूर्णिमा भ० श्रीविद्यासागरसूरीणां शिष्य . श्रीश्रीलक्ष्मीतिलकसूरि मुपदेशेन साधर पुण्यार्थ ।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
( ११३८ )
सं० १५५ वर्षे आ० ० ७ रवौ भा० ज्ञातीय मा० मांडण भा० लखू सुत सा० प्रहा पोपटेन भा० पाल्हणदे सवजने (१) राजा मेहापति युतेन स्वश्रेयोर्थं पद्मप्रभ बिबं का० प्र० तपागच्छ श्री हेमविमलसूरिभिः || थारवलियामे
???
( ११३६ )
सं० १ ७५ वर्ष फा० ब० ४ दिने प्रा० ज्ञा० खतमी भा० साल्हूपुत्र सा० मदाकेन । भा० जाणी पुत्र ठाकुर गोविंद युतेन श्री वासुपूज्य बिंबं का० प्र० तपागच्छ श्रीसूरिभिः ।!
( ११४० )
सं० १५७५ वर्षे फा० व० ४ दिने प्रा० सं० बुड़ा भा० दाडिमदे पुत्र सं० सूरदासेन भा० श्रीमलदे भगिनी वारुकृते श्रीकुंथुनाथ बिबं का प्रतिष्ठितं तपा श्रीजयकल्याणसूरिभिः ।
( ११४१ )
सं० १५७५ वर्षे फागण वदि ४ गुरौ उपकेशवंशे पड़सूत्रीया गोत्रे सा० पउणा महिदाथोमण सं० भूणा भार्या भावलदे भर्मादे पुत्र सा० पहुराधिर सापक्क मेहातेषराखाने भार्या कउडमदे पुत्र भाँडासहितं श्रीमुनिसुव्रत स्वामि बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छ श्वर श्रीजिनहंमसूरिभिः ।
( १९४२ )
|| संवत् १५७६ आषाढ़सुदिह रवौ श्री श्रीमाल ज्ञातीय भाखरिया भीमड़ पुत्र उड़क साँगो स० गोपा भा० तेजू पुत्र नरपाल भा० मल्हाई पु० बाद दसरथधर्म सीसहि० मुनिसुव्रत बिंबं का० प्र० श्रीवृहदपिप्पलगच्छे भ० श्रीपद्मतिलकसूरिभिः । सीरोही नगर वास्तव्यः ॥
( ११४३ )
सं० १५८२ वर्षे वैशाख सुदि ७ गुरुवार ऊकेशवंश श्रेष्टि चंद्र भार्या शीतादेव्या पुत्र साहजीवा हीरा सथ मुख्यादि परिवारपरिव्रतैः स्वपुण्यार्थ श्रीशांतिनाथ बिंबं कारि श्रीजिनमाणिक्यसूरिभिः प्रतिष्ठितं ।
( १९४४ )
सं० १५६० वर्षे वैशाख पुत्र खेता भ्रा दत्ता वला मिरादत्ता भा० जइतलदे पु० समधर सीहा त्रधा जोसी पंचाइण रामा कीकायुतेन श्रीधर्मनाथ बिंबं का० बाल गच्छे श्रीसिद्धसेनसूरि प्रतिष्ठि० प्रसादात् ।
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बकानेर जैन लेख संग्रह
( १९४५ )
सं० १५६४ वर्षे वैशाख सुदि ७ बुधे उप०सा० गोसल भा० सूदी पु० सोनाकेन भा० वाहड़दे सहि० आत्म श्रेयसे श्रीआदिनाथ बि० कां० प्र० मड्डाहड़ीय गच्छ श्रीनाणचंद्रसूरिभिः ||
( ११४६ )
सं० १५६६ फागुण दि १ उ० खटवड़ गोत्रे सा० ऊदा भा० उदय श्री पु० खीमा भा० खीमसिरी द्वि० भा० लाछी सहितेन निज पितृ महा पुण्यार्थं श्रीचंद्रप्रभ बिंबं का० प्र० श्रीधर्मघोष गच्छे श्रीमहेन्द्रसूरिभिः ॥
( ११४७ )
संवत् १५ 'वर्षे मा०व० १३ वौ श्री श्रेयांसनाथ बि का० प्र० तपा श्रीसोमसुंदरसूरि..
( १९४८ )
: व्य० मांडण भा
सूरिभिः ।।
१४३
॥ सं०
"माणिकदे
लखमाई खेमाइ प्रमुख परिवार युतेन श्रीविमलनाथ बिंबं स्व श्रेयोर्थं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतर गच्छे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः ।
( ११४६ )
नाथादि चतुर्विंशति पट्टः कारितः प्रतिष्ठितः श्रीतपा गच्छे श्रीरशेखर
( ११५० )
सं०६६ माह सु० ६ सोमे आमजसेन भ्रातृ सीधू श्रेयोर्थं शांति बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं च श्रीभुवनचंद्रसूरिभिः ।
( ११५१ )
२७ फागुण वदि ३ समतु ८७ आ० सुसठि कुंरसी बिंबं भरावत नाणडर गच्छे सिद्धिसेनसूरि ।
( ११५२ )
॥ सं० १६०२ वर्षे मग० सु० ६ म्यां ना० मंत्रि राणा भार्या लीलादेव्या श्रीशांतिनाथ बिंबं कारितं प्र० श्री खर० श्रीजिनमाणिक्यसूरिभिः ॥
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
( ११५३ )
संवत् १६५२ वर्षे वैशाख सुदि १० बुधवारे । श्रीऊकेश वंशे बोथरा गोत्रे सा० मेहा पुत्र रत्न सा० महिकरणेन मातृ सा० आदित्यादि युतेन श्रीशांति बिंबं का० प्र० श्रीखरतर गच्छे युगप्र० श्रीश्रीश्रीजिनचंद्रसूरिभिः ||
१४४
( ११५४ )
|| सं० २६६४ प्रमिते वैशाख सुदि ७ गुरु पुष्ये राजा श्रीरायसिंह विजयराज्ये श्रीविक्रमनगर वास्तव्य श्री ओसवाल ज्ञातीय गोलवच्छा गोत्रीय खा० रूपा भार्या रूपादे पुत्र मिन्ना भार्या माणिकदे पुत्ररत्न सा० वन्नाकेन भार्या बल्हादे पुत्र नथमल्ल कपूरचंद्र प्रमुख परिवार सश्रीकेन श्रीश्रेयांस बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं च । श्रीवृहत्खरतर गच्छाधिराज श्रीजिनमाणिक्यसूरि पट्टांलंकार (हार) श्रीसाहि प्रतिबोधक || युगप्रधान श्रीजिनचंद्रसूरिभिः ॥ पूज्यमानं चिरं नंदतु ॥ श्रेयः ॥
( ११५५ )
श्रीपार्श्व । प्र । श्रीविजयसेनसूर !
PUBGBY
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बोकानेर जैन लेख संग्रहाल---
भांडासर शिखर से नगर के विहंगम दृश्य
जगतो की कला-समृद्धि (भांडासर)
त्रैलोक्यदीपक प्रासाद, भांडासर के निर्माता
भांडाशाह
BIHAR
जगती को कला-समृद्धि (भांडासर)
"Aho Siश्री भांडासर-सुमतिनाथ जिनालय बीकानेर
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
रंगमण्डप का गुम्बज और उसकी चित्रकला
त्रैलोक्यदीपक प्रासाद, भांडासर
भांडासरजी का गर्भगृह
048
त्रैलोक्यदीपक प्रासाद का जगती स्तंभ
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भांडासर शिखर से नगर के विहंगम दृश्य
त्रैलोक्यदीपक प्रासाद का भीतरी भाग
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श्री चिन्तामणिजी के मन्दिर के अन्तर्गत श्रीशान्तिनाथजी का मन्दिर धातु-प्रतिमाओंके लेख
( ११५६)
मूलनायक श्रीपार्श्वनाथजी १ ॥६० ।। संवत् १५४६ वर्षे ज्येष्ठ वदि १ दिने गुरुवारे उपकेशवंशे वर्द्धमान बोहरा शाखायां __दोसी गौत्री सा० वीधू भार्या कश्मीरदे । २ ॥ पुत्र साह तेजसी भार्या श्रा० हासलदे तत्पुत्र सा० गजानंद भार्या.........पुत्री श्रा० लक्ष्मी
तस्यापुण्याथं सा० सिरा मोकल सा० ३ ॥झांझादि सपरिकर श्रीपार्श्वनाथ बिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छेश श्रीजिनचन्द्रसूरिपट्टे
श्रीजिनसमुद्रसूरिभिः
(११५७)
श्री श्रेयांसनाथादि पंचतीर्थी संवत् १५३३ व वैशाख सुदि ६ शुक्र श्रीमाल ज्ञातीय पितृ हीरा मात्र जीजी सु० बाह भार्या शीतू श्रेयसे मातृ रामत्या श्री श्रेयांसनाथ विबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीसूरिभिः । वीरमगामवास्तव्यः ।। श्री।।
(११५८)
श्रीचन्द्रप्रभादि पंचतीर्थी सं० १५८३ वर्ष ज्येष्ठ सुदि ६ शुक्र। दोसी जावा भा० लीलू पु० ऊगा भा० मकिबदे आबकेन भा० अहकारदे पु० तेजा सहितेन पितृ-निमित्तं श्रीचंद्रप्रभ बिंबं कारितं प्रतिष्टितं श्रीसूरिभिः ।। सीरोही नगरे ।
१६
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१४६ .........
बीकानेर जैन लेख संग्रह
( ११५६ )
श्रीपार्श्वनाथजी सं० १६३६ मिती माह सुदि ५
सिद्धचक यंत्रपर सं० १८७४ मिते कार्तिक वदि ३ दिने लालाणी तिलोकचंदेन श्रीसिद्धचक्र कारि श्रेयोर्थ ।।
(११६१ )
सर्वतोभद्र यंत्रपर सं० १८८६ मिती माह सुदि १ दिने सर्वतोभद्र यंत्रा लिखितं पं० भोजराज मुनि इदं ।।
पाषाण प्रतिमा लेखाः
( ११६२ ) सं० १५४८ वर्षे वैशाख सुदि ३ श्रीमूलसंघभट्टारक....... .......जीवराज पापरीवाल...................नित्यंप्रणमति ।
( ११६३ ) प्रति। जं । यु । भ । श्रीजिन सौभाग्यसूरिभिः..........
सं० १५४८ वर्षे वैशाख सुदि ३ श्रीमूलसंघभटरक सटकवरजी पाथरीबल नत्य प्रणमत ।
श्रीसुमतिनाथजी (भांडासरजी) का मन्दिर
शिलापट्ट पर
(११६५) १ संवत् १५७१ वर्षे आसो २ सुदि २ रवौ राजाधिराज ३ श्रीलूणकरण जी विजय राज्ये ४ साह भांडा प्रासाद नाम त्रैलो५ क्यदीपक करावितं सूत्र ६ गोदा कारित
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
... ........ (१९६६) मूलनायक चौमुखजी के नीचे की मूर्ति पर संवत् १५७६ ॥ प्र......
(११६७ )
दुतले पर चौमुखजी के नीचे के पत्थर पर सं० १६१६ वैसाख वदि १ विस्पतवार
धातु-प्रतिमाओं के लेख
(११६८ )
शीतलनाथादि पंच-तीर्थी ॥ संवत् १५६० ज्येष्ठ वदि ४ दिने। ऊकेशवंशे बोहित्थरा गोः । देवरा भार्या लखमादे पुत्र मं० भऊणाकेन भार्या भरमादे। गौरादे प्रमुख परिवार युतेन । श्रीशीतलनाथ विवं कारितं । प्रति० । श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनसमुद्रसूरि पट्टालंकार श्रीजिनहंससूरिगुरुभिः
(११६९)
श्रीधर्मनाथजी ॥ सं० १६०४ वर्षे प्रथम ज्येष्ठ कृष्ण पक्षे ८ तिथौ श्रीधर्मजिन बिंब प्रति जं। यु। प्र। भ! श्रोजिनसौभाग्यसूरिभिः वृहत्तरतर । कारि। सू । श्रीकेसरीचंदजी स्वश्रेयोथं श्रीबीकानेर नगर व्य०
( ११७०)
नवपद यंत्र पर ___ सं० १८६१ मि। माघ सुदि पंचम्यां ॥ श्रीसिद्धचक्र यंत्र । बाफणा श्रीगौडीदासजी पुत्र टिकणमल्लेन कारिता प्र० च० उ० श्रीक्षमाकल्याण गणिभिः ।
(११७१ )
यंत्र-मूर्ति पर सुमतिनाथ जी सं० १६०४ जेठ वद ८
श्रीखीमंधरस्वामी का मन्दिर (भाडासरजी)
शिलापट्ट प्रशस्ति
( ११७२) १ वर्षे शैल घना घनेभ वसुधा संख्ये शुचावर्त्मने ! पक्षे सोम्य सुवासरेहि दशमी तिथ्यांजिनौ को २ मुदा । श्रीसीमंधर स्वामिनः सुरुचिरं श्रीविक्रमे पत्तने । श्रीसंघेन सुकारित वरतरं जीयाचिरंभू ।
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श्रीकानेर जैन लेख संग्रह ३ तले ॥ १ ॥ श्रीराठौड़ नभोक सन्निभ महान्विख्यात कीर्तिस्फुरन् । श्रीमत्सूरतसिंहकस्य
मभवत्यागे४ न ख्यातौ भुवि । तत्प? जनपालनेक निपुणः प्रोद्यत् प्रतापारुणस्तस्मिन् राज्ञि जयि प्रताप __ महिमः श्री५ रत्नसिंहाभिधः ।।२।। जज्ञ सूरिवरा वृहत्खरतरा श्रीजैनचंद्रावयाः ख्यातास्ते क्षितिमंडले नि६ जगुणैःस्सद्धर्मसंदेशकाः तत्पट्टोत्पल बोधनक किरणैस्सत्साधु संसेवितैः श्रीमतैर्जिनह७ र्षसूरि मुनिपैर्भट्टारकाच्छपैः ।। ३।। कोविदोपासितैद क्षैः कामाकंश जनाई नै प्रतिष्ठमि८ दंचत्यं नंदताद्वसुधातले ॥ ४॥ त्रिभिर्वैशेषिकम् ।। श्रीमत्वृहत्खरतरगच्छीय संविग्नोपा६ ध्याय श्रीक्षमाकल्याण गणीनां शिष्य पं० धर्मानंद मुनरुपदेशात् । श्रीभूयात् सर्वेषां ॥
पापाण प्रतिमादिलेखाः
॥गर्भगृह ।।
मूलनायक श्रीसीमधरस्वामी १ संव्वत् १८८७ वर्षे आषाढ़ शुक्ला १० दिने वारे चांद्रौ श्रीसीमंधरस्वामि जि २ न विबं श्रीसंघेन कारितं श्रीमहत्खरतर च्छे भट्टारक ३ यु । श्रीजिनचंद्रसूरि पट्टे श्रीनिहर्षसूरिभिः
( ११७४ )
श्रीपार्श्वनाथजी १॥ संवत् १८८७ मिते आषाढ़ शुक्ल १० दिने श्रीपार्श्वनाथ नि बिबं वृहत् २ खरतर भट्टारक श्रीसंघेन कारितं च जं । यु । प्र । सार्वभौम भट्टारक श्रीनि ३ चन्द्रसूरि पट्टालंकार भट्टारक श्री निहर्ष सूरिभिः प्रतिष्ठितं च ।। श्री ॥
श्रीशान्तिनाथ जी १॥ संवत् १८८७ मिते आषाढ शुक्ला १० दिने चांद्रौ श्रीशांतिनाथ जि२ न बिंबं श्रीसंघेन कारितं प्रतिष्टितं च वृहत्खरतरगच्छे भट्टारक ३ जं० यु० प्र० सार्वभौम श्रीजिनचंद्रसूरि प... श्रीजिनहर्षसूरिभिः
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
..... १४६ गर्भगृह के दाहिनी ओर देहरी में
( ११७६ )
श्रीपार्श्वनाथजी संवत् १८६ (३) व । शा० १७५८ प्रवर्त्तमाने मासोत्तम माघ मासे शुक्ल पक्षे १० तिथौ बुधवासरे श्रीपाली नगर वास्तव्य समस्त संघ समुदायकेन श्रीपार्श्वनाथ बिंबं का । तपा गच्छे भ० श्रीविजयदेवेन्द्रसूरिभिः प्रतिः ।।
( ११७७ )
श्रीमुनिसुव्रतजी सं० १८८७ व । आषाढ शु० १० श्रीमुनिसुव्रत बिंबं बा। चूनी कारितं प्रतिष्ठितं जं० यु० प्र० श्रीनिहर्षसूरिभिः।
(११७८ ) सं० १८८७ आषाढ शु० १० श्रीधर्मनाथ विंबं बा
गर्भगृह के बायीं ओर की देहरी में
( ११७६
श्रीआदिनाथजी १॥ सं० १८६३ व। माघ सित १० बुधे श्रीपालीनगर वास्तव्य समस्तसंघ समुदायेन श्रीमादि२ नाथ बिंब कारापितं भ। श्रीविजयदेवेन्द्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥ श्रीतपागच्छे ।। श्री शुभं ।।
। ११८०)
श्रीपार्श्वनाथजी ॥ सं० १८८७ रा । मि । आषा । सु! १० श्रीपार्श्वनाथ बिंबं से। रायमल्लेन कारित प्रतिष्ठितं भ० श्रीनिहर्षसूरिभिः ।।
( १९८१ )
श्रापाश्वनाथजी । सं० १८८७ व । मि । आषा । सु १० श्रीपार्श्वनाथ वि
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१५०
बीकानेर जैन लेख संग्रह
क्षमा कल्याणजी की देहरी में
श्री क्षमा कल्याणजी की मूर्ति पर
(
११८२ ।
ध वारे। उपाध्यायजी श्री १०६ श्रीक्षमाकल्याणजित् गणिनां मूर्ति श्रीसंघेन का०
चरणपादुओं के लेख
( ११८३)
आर्या श्रीविनयश्री कस्या पादुके श्रीसंघेन कारिते प्रतिष्ठापिते च । सं० १८६६
। ११८४ )
आर्या श्रीकेसरश्री कस्य पादुके श्रीसंघेन कारिते प्रतिष्ठिते च । सं० १८६६ ( १९८५ )
आर्या श्रीसालश्री कस्य पादुके श्रीसंघन कारिते प्रतिष्ठिते च सं० १८६६
आलों में पादुकाओं पर
( १९८६ ) ३ पादुकाओं पर
सं० १८८७ मि० आषाढ़ सुदि१० दिने बुधवारे संविद्मपक्षीय आर्या विनेश्री । श्रीखुशालश्रीजी सौभाग्यश्रीकस्या पादन्यासाः कारिता प्र । जं । यु० भ० श्रीजिनहर्षसूरिभिः श्रीबृहत्खरतरगच्छे ।
( ११८७ )
पादुका पर
आर्या बोसरश्री कस्य पादुका
( १९८८ )
पादुकाय पर
|| सं० १८६० वर्षे मि ! मार्गशीर्ष कृष्णैकादश्यां । पा । प्रतिष्ठि ||
Tro श्रीअमृतधर्मणि ॥ श्रीगौतमस्वामीगणभृत् ॥ ॐ० श्रीक्षमाकल्याणगणिः ।
( ११८६ ) पादुकात्रय पर
।। सं० १८६० वर्षे । मि । मिगसर वदी ११ । पा । का।
॥ श्रीजिनभक्तिसूरि || श्रीपुंडरीकरणभृत्
|| श्रीप्रीतसागरगणिः ।
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बीकानेर-जैन लेख संग्रह धातु प्रतिमाओं के लेख
( ११६० )
श्रीसंभवनाथादि पंचतीर्थी सं० १५४८ वर्षे प्राग्वाट श्रे० गोगन भा० राणी सुत वरसिंग भा० वीबू नाम्न्या भ्रातृ अमा नरसिंघ लोलादि कुटुंब युतया श्रीसंभव बिंबं का० प्रतिष्ठितं तपागच्छे श्रोइन्द्रनंदिसूरिभिः। पत्तना।
(११६१)
श्रीपदाप्रभादिपंचतीर्थी सं० १५३३ वर्षे मार्ग सुदि ६ उपकेश ज्ञातीयछोहरिया गोत्रे सा० समुधर पुत्रेण। सा० लालुकेन पु० बोझा भाडा बोहित्तादि युतेन ! श्रीपद्मप्रभ बिबं का० प्र० तपा भ० श्रीहेमसमुद्रसूरि पट्टे श्रीहेमरत्नसूरिभिः । छः ॥ श्री।।
( ११६२ )
ताम्र के यंत्र पर सं० १९३५ रा फाल्गुन सित ३ सोमे प्रतिष्ठितम् शुभं धारकस्य ताराचंद स (सुखं)
श्रीनामनाथजी का मन्दिर
( लक्ष्मीनारायण पार्क) पाषाण-प्रतिमाओं के लेख
( ११६३ )
मूलनायकजी १॥६० ॥ संवत् १५६३ वर्षे माह वदि १ दिने गुरौ .... __ भार्या वाल्हादे पुत्र मं० कर्मसी भार्या कउतिगदे २ पुत्र राजा भार्या रयणादे पुत्र मं० पिथा म० - रमदे मं० जगमाल मं० मानसिंह प्रमुख ३ परिवार युतेन मं० पिथाकेन त्वपिताम ... प्रतिष्ठितं च ३० स्व० गच्छे श्रीजिनमाणिक्यसूरिभिः
(११६४) ॥ श्रीगौतमस्वामी पा! श्रीसंथ का।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
( ११६६ ) ।। श्रीजिनदत्तसरि पा । श्रीसंघ का ।
( ११६६)
कुण्ड पर
|| श्री नेमनाथाय नमः।। १॥ श्रीबीकानेर तथा पूर्व बंगाला तथा कामरू देश २ आसाम का श्री संघ के पास प्रेरणा करके रूपी३ या भेला करके कुंड तथा आगोर की नहर बना ४ या सुश्रावक पुण्यप्रभाविक देव गुरुभक्ति ५ कारक गुरुदेव के भक्त चोरड़ीया गोत्रे सीपाणी ६ चुनीलाल रावतमलाणी सिरदारमल का पो७ ता सिंघीयां की गुवाड़ में वसंता मायसिंघ मेघ८ राज कोठारी चोपड़ा मकसुदाबाद अजीम६ गंज वाले का गुमास्ता और कुंड के ऊपर दाट इ१० केला बखतावरचंद सेठी बनाया। सं० १६२४ ११ शाके १७८६ प्रवत्तैमाने मासोत्तम मासे भाद्रव १२ मासे शुक्ल पक्षे पंचम्यां तिथौ भोमवासरे।।
धातु-प्रतिमादि के लेख
( ११६७) सं० १४३६ वैशाख सु० १३ सोमे श्रीनाहर गोन्ने सा० श्रीराजा पुत्रेण सा० भीमसिंहेन सा० .......... ... पार्श्व बिं० का० प्र० वृहद्गच्छे श्रीमुनिशेखरसूरि पट्टे श्रीतिलकसूरि शिष्यैः श्रीभद्रेश्वरसूरिभिः
(११६८) सं० १७०१ व ! मा० मु०६ पत्तन वा० प्रा० वृत झा० वेन जयकरण भा० नानी बहुना श्रीपार्श्व बिं० का० प्र० तपागच्छे श्रीविजयदेवसूरिभिः ।।
( ११६६ ) सं० १६६७ फा० सु०५ दौलताबाद वा० ७० ऊकेश सा० कल्याण ना० श्री नमि बिं० का० प्र० तपाग
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
विश्वविश्रुत मंत्रीश्वर कर्मचन्द्र वच्छावत
परिचय प्र० पृ० ८४
श्री चिन्तामणिजी खेल मंडप का मधु-छत्र
श्री भांडासरजी से नगर का दृश्य
प्रवेशद्वार श्री नमिनाथ जिनालय, बीकानेर
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Page #325
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
श्री नमिनाथ जिनालय (पृष्ठ भाग से)
कलामय शिखर श्री नमिनाथ जिनालय श्री नमिनाथ जिनालय परिचय प्र० पृ० ३०
श्री नमिनाथ जिनालय का बाहरी प्रवेशद्वार
श्री नमिनाथ जिनालय
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श्री नमिनाथजी का शिखर
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
( १२०० ) संवत् १७०७ वर्ष मसजर . .......धनराफुलम ... सरापि .... आगमतण
(१२०१) तेज बाईना श्रीसुविधि बि० का० प्र० च० तपा गच्छे सं०६७
( १२०२ ) सं० १६७१ वर्षे ललवाणी गोत्रे नमू० करसीत० श्रीनमि
(१२०३) सं० १७०१ व रि० सु० ६ श्रा ० दोणीत । भा० श्रीवासुपूज्य बिं० का० प्र० श्रीविजयदेवसूरि तपा गच्छे।
(१२०४ )
1 संवत् १५१० मार्ग सुदि १० रव श्री मू० संघ श्रीजिनचंद्रदेवा सा० कीलू पुत्र बोझा०
माधव० लला० प्रण० B श्रीजिनकुशलसूरीणां पादुका ।
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श्रीमहावीर स्वामी का मन्दिर (बैदों का चौक)
मूलमन्दिर के लेख धातु प्रतिमाओं के लेख
(१२०५)
श्रीसुविधानाथादि चौवीसी संवत् १४८६ वर्षे मार्गशिर वदि ५ उपकेश ज्ञातीय श्रेष्टि गोत्रे सा० देल्हा पुत्र केल्हण भा० सलखण दे पुत्र पोपा भ्रात् त्रिभुवण भार्या ललतादे पुत्र सादूल सामंत । मेहा । मूला ! पूना पूर्वज नि०२० सादूलेन श्री सुविधिजिनादिचतुर्विशति पट्ट का० आत्म श्रेय से श्री उपकेश गच्छे। ककु. प्रतिष्ठितं श्रीसिद्धसूरिभिः ।
(१२०६ ।
___ श्रीपार्श्वनाथ पौवीसी संवत् १३४१ वर्षे ज्येष्ट सुदि ५ गुरौ उ० मोताकेन ठ० अरिसीह श्रेयो) श्रीपार्श्वनाथ प्रतिमा कारापिता वील्हू व । जयता । पाता।
श्रीश्ररनाथजी सं० १५०५ वर्षे पोष सुदि १५ सूराणा गोत्रे सं० शिखर भा० सिरियादे पु. श्रीपालेन भा० सोमलवे पु० देवदत्त श्रीवंतादि सकु (टुं । बेन श्री अरनाथ बि० का० प्र० श्री धर्मघोष । गच्छे श्रीविनयचन्द्रसूरि पट्टे भ० श्री पमाणंदसूरिभिः श्री॥
(१२०८)
__ श्री अभिनन्दनजी पञ्चतीर्थी सं० १५१५ वर्षे वैशाख सुदि १३ रखौ श्रीमाल-झातीय मं० गहिला भार्या धारू पुत्र हापाकेन पितृ मातृ श्रेयसे श्री भभिनन्दन पंचतीर्थी कारितं प्र० पिप्पलगच्छे त्रिभवीया श्री धर्मसुन्दरसूरि पट्टे श्रीधर्मसागरसूरिभिः ।
"Aho Shrut Gyanam"
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start जैन लेख संग्रह
( १२०६ )
श्री सीमंधर स्वामी
संवत् १५३४ वर्षे माह सुदि ५ दिने समाणा वासि ऊकेश ज्ञातीय सा० कर्मा सुत लाहा तत्पुत्र साधारणेन श्री सीमंधर स्वामी विषं कारितं प्रतिष्ठितं श्री सुविहित सूरिभिः ||
( १२१० ) श्रीपार्श्वनाथजी
ई५५
संवत् १४४६ वर्षे वैशाल सुदि ६ शुक्र उपकेश ज्ञातीय पितृ ऊदल मातृ धाधलदेवि श्रेयसुत सा० धर्माकन श्री पार्श्वनाथ पवतीर्थी कारिता श्री देवचन्द्रसूरि पट्टे श्री पासचन्द्र सूरीणामुपदेशेन ।
( १२११ ) श्री सुमतिनाथजी
॥ संवत् १ ७४ वर्षे माघ बदि १३ दिने श्री नाणावाल गच्छे ओसवाल ज्ञातीय राय कोठारी गोत्रे सा० गोगा भार्या नाहली सुत सलखा भा० सलखणदे पुत्र श्रीकर्ण सरवणादि स्व कुटुम्ब युतेन स्व श्रेयोर्थं श्री सुमतिनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठि ( त ) म् श्री शांतिसागरसूरिभिः ॥ श्री ॥ प्रमिलजगीन जा का वेड़ीभा
} ( १ )
( १२१२ )
श्री शान्तिनाथजी सपरिकर
सं० १२८५ ज्येष्ट सुदि ३ रवौ पितृ श्रे० मोढ़ा भ्रातृ मीरा श्रेयोर्थं आत्मपुण्यार्थं श्रेष्ट सोमा केन सभार्येण श्री शांतिनाथ विंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीरत्नप्रभसूरि शिष्येण
( १२१३ )
सं० १५१० वर्षे मिगसर सुदि १० खौ ओसवाल ज्ञातीय खावही गोत्रे सा० कुमरा भा० कुमर श्री पु० सा० कडुआन आत्म पुण्यार्थे श्री संभवनाथ बिनं कारितं प्र० श्री कृष्णर्षीय श्री जयसिंह सूरि अन्वये श्री कमलचन्द्र सूरिभिः ।
( १२१४ )
||६०|| संवत् १३८० माघ सु० ६ सोमे ओसवाल - ज्ञाती ब्रह्म गोत्रीय साह ईशरेण स्व पितृ सा० हड़ तथा मातृ माल्हाही श्रेयार्थं श्रीचन्द्रप्रभ बिवं कारितं प्रतिष्ठितं मलधारी श्री श्री तिलक सूरिभिः ॥
( १२१५ )
सं० १५१६ वर्षे माघ वदि ० ६शनौ श्री एस वंशे गांधी गोत्रे सा० धांधा भा० धांधलदे पु० काँसा सुश्रायकेण भा० हांस लदे तेजी पुत्र पारस देवराज सहितेन श्री अंचल गच्छ श्री जयकेशरसूरीणामुपदेशेन स्व श्रेयसे श्री आदिनाथ बिंबं श्री कारितं प्रतिष्ठितं श्री संघन ॥
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
( १२१६ ) श्री आदिनाथजी
सं० १४७२ वर्षे फागुन सुदि ६ शु० श्री ऊकेश गच्छे श्रेष्ट गोत्रीय सा० देदा भा० दूलहदे पुत्र सा० समधर सीधर पिता माता श्रे० श्रीआदिनाथ बिंबं कारा० प्रति० श्री देवगुप्त सूरिभिः ॥
२५६
( १२१७ ) श्री चंद्रप्रभ स्वामी
सं० २४८६ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ६ नबलखा गोत्रे सा । सोहा पुत्रेण सा । बीजाकेन स्व पितृव्य वील्हा श्रेयोर्थ श्री चन्द्रप्रभ बिंबं कारितं । प्र० श्रीपद्मचन्द्र सूरिभिः ॥
( १२१८ )
सं० १४६२ वर्षे ज्ये०सु० ११ प्राग्वाट सा० धीधा भा० कमी पुत्र सा० बालाकेन भा० देऊ प्रमुख कुटुम्ब युतेन स्व श्रेयसे श्रीशांतिनाथ बिंबं कारितं प्र० तपागच्छनायक श्री सोमसुन्दसूरिभिः ।
( १२१६ )
सं० १५३४ वर्षे आषाढ़ सुदि १ गुरौ उपकेश ज्ञातौ तातहड़ गोत्रे धारा संताने सा० चाहड़ भा० बाणादे पु० सोमा मांजा भा० माणिकदे ५० पोपा जोधा आपादि युतेन पितृ श्रेय श्री सुमतिनाथ बिनं कारितं श्री उपके० ग० श्री कक्कसूरि पट्ट े श्रीदेवगुप्त सूरिभिः ॥
सं० १६६१ व०
( १२२० )
अष्टदल कमल की मध्य प्रतिमा पर प्र- गोपाल ।
( १२२१ )
सं० १५०६ वर्षे का० सुदि १३ गुरौ ऊकेश वंशे डाकुलिया गोत्रे सा० जिणदे सुत सा० देवा भार्या सारू पुत्र सा० केशवेन भार्या रखी रुकमिणि पुत्र जेठा मण्डलिक रणधीरादि पवारेण श्री पार्श्वनाथ विबं कारितं प्रतिष्ठितं श्री खरतर श्री जिनभद्रसूरि युगप्रवरेण ।
( १२२२ )
|| सं० १५०६ वर्षे माघ वदि ५ उसीवाल ज्ञातीय । नाहर गोत्रे सा० जेल्दा पुत्र देपा पुत्र भोजादिभिः आत्म श्रेयसे श्री संभवनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्री धर्मघोष गच्छे भ० श्री पाणंद सूरिभिः ।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
( १२२३ )
सं० १५३२ वर्षे ४ शनिवारे श्री उपकेश ज्ञातौ श्रेष्ठ गोत्रे वैद्य शाखायां मं० मांडा भार्या ऊमादे पु० भारमल्ल मातृ पु० नि० आ० श्रे० श्री सुविधिनाथ बिंबं का० प्र० श्री ऊपकेश गच्छे ककुदाचार्य सं० भ० श्री देवगुप्तसूरिभिः ।
सं० १४८० वर्षे माघ बदि ५ सामंत भा० धारु भरतार श्रेयोऽर्थं
( १२२४ )
गुरु हुंब (ड) ज्ञाती धामी श्रीमलदे भार्या मीमाल श्री आदिनाथ बिं० प्र० श्री सिंघदत्तसूरिः
सं० १५४३ वर्षे वैशाख वदि भार्या सलखू सुत गांगा श्रेयोर्थं श्री श्रीतपा गच्छे ||
सं० १५१० वर्षे माघ सुदि सा० चारा तत्पुत्र सा० रेंडा तेन सूरिभिः श्री खरतर गच्छे ||
( १२२५ )
तिथौ प्राग्वाट ज्ञातीय व्य० छेदा भा० श्रा० मेल्लू सुत जीवा धर्मनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्री सुमतिसाधु सूरिभिः
( १२२६ )
सं० १५२७ वर्षे ज्येष्ठ वदि ४ बुधे उप० ज्ञातीय बंधु गोष्ठिक व्यव मं० मोहण भा० मोहदे पुत्र मं० रूपा भा० रामादे सरूपदे सहितेन आत्म श्रेयोरथ । शीतलनाथ बिंबं का० प्र० श्री चैत्रगच्छ भ० श्री सोमकीर्ति
सूरि
!!
१५७
( १२२७ )
सं० १५१८ वर्षे माघ सु० २ शनौ जाऊड़िया गोत्रे सा । राघव पुत्र सं० सहजा तत्पुत्रेण सा । वैकेन पुत्र वीरदेवादि युतेन श्री विमलनाथ बिंबं कारितं प्र० तपागच्छे श्री हेमहंससूरि पट्टे श्री हेमसमुद्रसूरिभिः
१२
निज
सु० कर्ण
( १२२६ )
श्री धर्मनाथादि चौवीसी
( १२२८ )
शुक्र दिने श्री माल ज्ञातीय टांक गोत्रे सा० अर्जुन पुत्र श्रेयोर्थ श्री शांतिनाथ बिंबं का० प्र० श्री जिनतिलक
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सं० १५७६ वर्षे वैशाख वदि १ तिथौ रविवारे श्री ओसवाल ज्ञातीय वयद गोत्रे मं० त्रिभुणा पु० सामंत भा० सुहड़ादे पु० गोपा देपाय । स्व पूर्वज निमित्तं श्री धर्मनाथ बिंबं का० प्र० श्री अकेश गच्छे कुकदाचार्य संताने भ० सिद्धसूरि पट्ट भ० श्री कक्कसूरिभिः ||१||
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१५८
बीकानेर जैन लेख संग्रह
( १२३०)
अम्बिका की मूत्ति पर सं० १३५१ वर्षे पोष वदि ३ बुधे भीमपल्या श्री ब्रह्माण गच्छे गांधरणि ये तश्चरे पत्र जा श्री .................."बिका कारित ।
( १२३१)
श्री अम्बिका की मूत्ति पर सं० १४६१ माघ सुदि ५ बुध ओसवंशे संखवालेचा गोत्रे सा- बीका पुत्र भोजाकेन गोत्र देवी अम्बिका कारिता प्रति ० श्री जिनसागर सूरिभिः ।
( १२३२ )
श्री अम्बिका प्रतिमा पर सं० १३५५ वैशाख वदि ७ शुक्र प्राल्हण साहेन अम्बिका कारिता प्र० श्री कमलाकरसूरिभिः
( १२३३ )
ताम्र के यंत्र पर मुंधड़ा हीरालालजी रे शरीर रै कुशलं कुरु २ ॐ ह्रो धरणेन्द्र पद्मावती प्रसादेन शुभं भवतु
श्रीसहवफणापार्श्वनाथजी की देहरी (मन्दिर के पीछे उत्तर की ओर )
पाषाण प्रतिमाओं के लेख
( १२३४)
श्री सहस्रफणा पार्श्वनाथजी १॥ प्रतिष्ठितं जं । यु । प्र। भ! श्री जिन सौभाग्य सूरिभिः
२ ॥ श्री विक्रम संवत्सरात १६०५ रा वर्षे शाके १७७० प्रवर्त्तमाने मासोत्तम मासे माधव मासे शुक्ल पक्ष पूर्णिमायाँ १५ तिथौ गुरुवा
३ सरे । मरुधर देशे श्री बीकानेर नगरे राठौड़ वंश उजागर महाराजाधिराज राज राजेश्वर नरेन्द्र शिरोमणि श्री रतन सिंह जी सवाई वि
४ जय राज्ये! महाराज कुंवार श्री सिरदार सिंह जी युवराज्ये 1 श्री सहस्रफणा पार्श्व जिन विंबं कारापितं श्री बीकानेर वास्तव्य ओसवाल ।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
१५६ ५ ज्ञातीय वृद्ध शाखार्या समस्त श्री संघेन श्री महावीर देव पट्टानुपट्टाविच्छिन्नपरंपरायात् श्री उद्योतनसूरि श्री वर्द्धमानसूरि वस
६ तिमार्ग प्रकाशक यावत् देवता प्रदत्त युगप्रधान पद श्री जिनदत्तसूरि श्री जिनचन्द्रसूरि यावत् श्री जिनकुशल सूरि यावत् श्री जिनराज __७ सूरि यावत् श्री जिन माणिक्यसूरि दिल्ली पतिसाहि श्री अकबरप्रतिबोधक तत्प्रदत्त युगप्रधान विरुद धारक सकल देशाष्टाह्रि । ८ का जीवामारिप्रवविक यावत् श्री मद् बृहत्खरतर भट्टारक गच्छेश जं। यु । प्र।
श्री जिनहर्षसूरि पट्टालंकार जं। यु ।प्र। श्री जिन सौभाग्य सूरिभिः है प्रतिष्ठितम् ॥
(१२३५)
श्री नेमिनाथजी १ श्री विक्रम संवत्सरात् १६०५ र वर्षे शाके १७७० प्रवर्त्तमाने मासोचम माधव मासे
शुक्ल पक्षे पूर्णि २ मायां १५ तिथौ बृहस्पतिवासरे श्री मरुधर देशे श्री बीकानेर नगरे। राठोड़वंश उजागर __ महाराजाधिराज राज ३ राजेश्वर नरेन्द्र शिरोमणि श्री रतन सिंह जी सवाई विजय राज्ये महाराज कुमार श्री
सिरदार सिंघजी युवराज्ये ४ श्री नेमनाथ जिन बिचं कारापितं च श्री बीकानेर वास्तव्य ! ओसवाल ज्ञातीय वृद्ध __ शाखायां समस्त श्री संघेन श्री महावीर देव ५ पट्टानुपट्टाविच्छिन्नपरं परायात श्री उद्योतनसूरि श्री वर्द्धमानसूरि वसतिमार्ग प्रकाशक __ यावत् देवता प्रदत्त युगप्रधान पद ६ श्री जिनदत्तसूरि यावत् श्री जिनकुशलसूरियावत् श्री जिनराजसूरियावत् श्री जिन
माणिक्य सूरि दिल्लीपति पतसाहि ........... यावत् श्री बृहत्खरतर भट्टा । जं। यु । प्र। श्री जिनहर्षपूरि. तत्पट्टालंकार जं.। यु०।प्रश्री जिनसौभाग्यसूरिभि० प्रति ।।
( १२३६)
श्री आदिनाथजी १ श्री विक्रम संवत्सरात् १६०५ रा वर्षे शाके १७७० । प्रवर्तमाने मासोत्तस माधव मासे
शुक्ल पक्षे पूर्णिमायां १५ तिथौ बृह २ स्पति वासरे। श्री मरुधर देशे श्री बीकानेर नगरे राठोड़ बंश उजागर महाराजाधिराज
राजराजेश्वर नरेन्द्र शिरोमणि श्री रत ३ नसिंहजी विजयराज्ये विक्रमपुर वास्तव्य ओसवाल ज्ञातीय वृद्ध शाखायों समस्त श्री
संघन आदिनाथ जिन बिंब कारा
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१६०
बीकानेर जैन लेख संग्रह ४ पितं । बीकानेर वास्तव्य ओसवाल ज्ञातीय वृद्ध शालायां समस्त श्री संघेन श्री महावीर
देव पट्टानुपट्टाविच्छिन्न परंपरायात् श्री उद्योतन सू ५ रि श्री वर्द्धमान सूरि वसति मार्ग प्रकाशक यावत् श्री जिनदत्तसूरि श्री जिनकुशलसूरि
श्री जिनराजसूरि श्री जिन माणिका सूरि यावत् ६ श्री जिनलाभ सूरि श्री जिनचंद्रसूरि श्री जिन हर्षसूरि ' बृहत् खरतर भट्टारक गच्छेश जं । यु । प्र । श्री जिनसौभाग्य सूरिभिः प्रतिष्ठितं ।।
(१२३७ )
श्री शीतलनाथजी सं० १६८४ वर्षे माघ सु० १० सोमेब्रह्म चा गोत्रे सं० हर्षा पुत्र सामीदास भार्या साहबदे श्री शीतलनाथ प्रतिष्ठितं तपागच्छे श्री विजय देव सूरिभिः
सं० १६३१ व । मि । वै। सु ११ ति । श्री वासुपूज्य जिन बिंब प्र । वृ । ख । म ! श्री जिन हंस सूरिभिः हाकिम ....
...........-बीकानेरे।।
(१२३६ ) श्री आदिनाथ बिंबं । सं० १५७० वर्षे माघ सुदि...
धातु प्रतिमाओं के लेख
( १२४०)
श्री मुनिसुव्रतनाथादि चौबीसी ॥ संवत् १५०६ वर्ष माघ वदि ५ रवौ ओसिवाल ज्ञातीय नाहर गोत्रे सा० हांसा भार्या हेमादे पु० धुड़सीट घणराज ऊदा अर्जुनकेन निज पितृ पुण्यार्थ श्री मुनिसुव्रतनाथ ! बिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्री धर्मघोष गच्छे भ० श्री पद्माणंद सूरिभिः
संवत् १६८५ वर्षे बैशाख सुदि १५ दिने बहादरपुर बास्तब्य वृद्ध प्राग्वाट ज्ञातीय सा० तुकजी भार्या जावांन मा का० श्री धर्मनाथ बिंब प्र० व० तपा गच्छे भट्टा श्री विजयदेव सू० चि० पं० विजयवर्द्धन परिवृत्तः ॥ छः ।।
(१२४२)
श्री वासुपूज्यजी श्री वासुपूज्य सा० धमा भा० चंपाइ सु० अरजन
(१२४३)
श्री मुनिव्रत स्वामी मुनि सुत्रत श्री विजय सेनसूरि
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
सहस्रफणा पार्श्वनाथ (बैदों का महावीरजी)
पंच कल्याणक पट (बैदों का महावीरजी)
समा
जांगलकूप का शांतिनाथ परिकर महावीर जिनालय (डागोंमें) लेखाङ्क १५४३
सब से बड़ी धातु-प्रतिमा बैदों के महावीरजी की देहरी में
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
लेप्यमय मूलनायक प्रतिमा बैदों का महावीरजी
॥ मादिदे व महावीरः आदि दिसा पीर: देउ पर्मतः बीत दारन साम
जेम
जीजी
शाधिकार वनला वही
कामम कमा
बजे मन लाग माथनकराग..इश्क डाक
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श्री महावीर जिनालय (बैदों का) का शिलालेख (लेखाङ्क १३१३)
श्री गिरनारजी तीर्थपट, बैदों का महावीरजी
शिखर का दृश्य (बैदों का महावीरजी ) परिचय प्र० पृ० ३१ (लेखाङ्क १२०५ से १३८१)
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
( १२४४ )
॥ संवत् १५१७ वर्षे माघ वदि ५ दिने श्री उपकेशगच्छ श्री कुकुदाचार्य संताने उपदेश ज्ञा० चिंचट गोत्रे स० दांदूपु० श्रीमंत पु० सुरजन पु० सोभा भा० सोभ लदे पु० सिंघा भा० मूरमदे युतेन मातृ श्रेयसे श्री आदिनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्री कक्क सूरिभिः
( १२४५ )
।। सं० १५१७ वर्षे बैशास्त्र सुदि ३ सोमे श्रीमाल ज्ञातीय दो० फावि भा० हर्षू सुत सीधर भार्या अमकू आत्म श्रेयोर्थं श्री बासु पूज्य बिंबं कारापितं बृद्ध सपा गच्छे भ० श्री जिनरत्न सूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥ श्री ॥
१६१
( १२४६ ) afones यंत्र पर
संवत् १५३१ वर्षे फागुन सुदि ५ श्री मूल संघ भ० श्री जिनचंद्र श्री सिंहकीर्ति देवा प्रतितिं । आ० आगमसिरि क्षुल्लकी कमी सहित श्री कलिकुण्ड यंत्र कारापितं । श्री कल्याणं भूयात् ।। ( १२४७ ) सर्वतोभद्र यंत्र पर
सं० १६१२ वर्षे मार्गशीर्ष कृष्ण पथ्वम्यां ज्ञवारे सुश्रावक श्रेष्ठ गोत्रे वैद्य मु । धनसुखदासजी तत्पुत्री बाई जड़ाव संज्ञकया करापितं प्र । उपकेश गच्छे भ० श्री देवगुप्तसूरिणा श्री रस्तु || सर्वतोभद्र नामकं यंत्रमिदं ।
(१२४८ ) धातु के यंत्र पर
सं १८२० ना वर्ष शाके १६८६ प्रवर्त्तमाने मासोत्तम मासे बसंत पञ्चमी शुक्ल पक्षे भौम वासरे सुश्राविका गणेश बाई प्रतिष्ठिते उद्यापने ॥
मन्दिर के पीछे दक्षिण की ओर देहरी में
धातु प्रतिमाओं के लेख
( १२४६ ) श्री शांतिनाभजी
||६०|| संवत् १५२८ वर्षे वैसाख वदि ६ सोमबार । नाइलवाल गोगे सं० छाजभ संताने सं० खीमा पुत्र सा० धीरदेव तत्पुत्र सा० देवचन्द्र भार्या हरखू पुत्र रूपचन्द्रेण भार्या गूजरही युतेन स्व पितृ श्रेयसे श्री शांतिनाथ बिंबं का० प्र० श्री तपा गच्छे भ० श्री हेमहंस सूरि पट्टे श्री हेमसमुद्र सूरिभिः ॥
२१
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१६२
terer जैन लेख संग्रह
( १२५० ) श्री धर्मनाथजी
सं० १५२७ ज्ये० ब० ११ अकेश व्य० भांडा भा० लाछू पु० जोजा जाणाभ्यां भा० नामलवे बल्ही पितृन्य अमरा अर्जुन भारमल प्रमुख कुटुम्ब युताभ्यां पितुः श्रेयसे श्री धर्मनाथ विषं कारितं प्रतिष्ठितं श्री सूरिभिः बराहलि प्रामे ||
सं० १५२१ वर्षे आषाढ़ सुदि १० गुरौ श्री उपकेश ज्ञातौ सूराणा गोत्रे सा० शिखर भा० लाछी पुत्र सा० भारमलेन पितुः श्रेयोथं श्री शीतलनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं धर्मघोष गच्छे श्री पद्मसूरिभिः ॥
( १२५१ ) श्री शीतलनाथजी
( १२५२ ) श्री सुमतिनाथजी चौवीसी
|| सं० १५२५ वर्षे फागुण सुदि ७ शनौ उपकेश ज्ञातीय श्री नाहर गोत्रे सा० जाटा माल्हा संताने सा० देवराज पुत्र सा० लाला भार्या...पुत्र सं० सुख्यतेन भार्या सूदी पुत्र संकरमा सहितेन स्व पुण्याथं श्री सुमतिनाथ चतुर्विंशति पट्टः कारितः प्रतिष्ठितं श्री रुद्रपल्लीय गच्छे श्री जिनराज सूरि पट्ट े भ० श्री जिनोदय सूरिभिः ॥ श्री ॥
|| सं० १५५१ वर्षे बै० सु० १३ भा० खेत् भ्रातृ फामा प्रमुख कुटन गच्छ नायक श्री सोमसुन्दरसूरि कलश सूरि युतैः ॥
२
संवत् १५५४ बर्षे माह बाद दे पु० केशाकेन भार्या कल्हणदे पु० हेम विमल सूरिभिः ।
( १२५३ ) श्री पद्मप्रभ स्वामी
गुरौ प्रा० सा० महीया भा० भिमिणि पुत्र सा० तोलाकेन य ( यु ) तेन श्री पद्मप्रभ बिंबं का० प्रतिष्ठितं श्री तपा संताने गच्छ नायक श्री हेमविमल सूरिभिः श्री कमल
( १२५४ ) श्री मुनिसुबत स्वामी
भाटीय ग्राम वासी प्राम्बाट ज्ञातीय व्य० पद्मा भा० राहण जेसा हीरादि युतेन श्री मुनिसुव्रत बिंबं प्र० तपागच्छे श्री
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
(१२५५)
श्री शान्तिनाथ जी सं० वर्षे १५०५ आषाढ़ सुदिह रवौ उपकेश झातो हरियड़ गोत्रे सा० देपा भा० देल्हणदे पु० राजा भा० राजलदे पु० हरपाल युतेन जीवत स्वामि प्रभु श्री श्री शांतिनाथ बिंब कारितं श्री नागेन्द्र गच्छे श्री गुणसागर सूरि पट्ट श्री गुण समुद्र सूरिभिः प्रतिष्ठितं । समीयाणा नगरे।
(१२५६ )
श्री संभवनाथजी सं० १५५५ वर्षे ज्येष्ठ सूदि ५ बुधवारे बहरा गोत्रे उपकेश सातौ सं० रूदा पु० सं० हीरा भा० पाल्हू पु० मोकलेन भा० मोहणदे पु० अजा बिजा ऊदा स० स्वपू. श्री संभव बिंबं का० प्र० श्री उपकेश गच्छे कुकुदा चार्य संताने श्री देवगुप्त सूरिभिः विक्रमपुरे ॥
(१२५७ )
श्री सुविधिनाथजी ___ सं० १५३६ वर्षे वैशाख सुदि २ श्री उकेश वंशे श्री दरड़ा गोत्रे सा० दूल्हा भार्या हस्तू पुत्र सा० मूलाकेन भा० माणिकदे भ्रात मा० रणवीर सा० पीमा पुत्र सा० पोमा सा० कुंभादि परिवार युतेन श्री सुविधिनाथ बिबं कारितं प्र० श्री खरतर गच्छे श्री जिनभद्र सूरि पट्टे श्री जिनचन्द्र सूरिभिः ॥
(१२५८ )
श्री आदिनाथजी सं० १३५४ वर्षे आषाढ़ सुदि २ दिने उकेश वंशे बोहिथिरा गोत्रे मा० तेजा भा० वर्जू पुत्र सा. मांडा सुश्रावकेण भार्या माणिक दे पु० ऊदा भा० उत्तमदे पुत्र सधारणादि परिवार युतेन श्री आदिनाथ बिबं कारितं श्री स्वरतर गच्छे श्री ज़िनभद्रसूरि पट्टालंकार श्री जिनचन्द्र सूरिभिः प्रतिष्ठितः ।।
(१२५६)
अष्टदल कमल पर सं० १६६४ वर्षे फाल्गुन शुक्ल पचमी गुरौ विक्रम नगर वास्तव्य । श्री ओसवाल झातीय फसला । गोत्रीय । सा० हीरा। तत्पुत्र सा० मोकल । तत्पुत्र अजा ! तत्पुत्र दत्तू। तत्पुत्र सा० अमीपाल भार्या अमोलिकदे पुत्र रत्नेन सा० लाखाकेन । भार्या लखमादे। लाछलदे पुत्र सा० चन्द्रसेन । पूनसी सा० पदमसी प्रमुख पुत्र पौत्रादि परिवार सहितेन श्री पाव बिंबं अष्टदल कमल संपुट सहित कारितं प्रतिष्ठितं श्री शत्रुजय महातीर्थे । श्री बृहत् खरतर गणाधीश श्री जिनमणिक्य सूरि पट्टालंकरक। श्री पातिसाहि प्रति बोधक युग प्रधान श्री जिनचन्द्र सूरि ज्यमानं चिरं नंदतु आचन्द्राकं ॥
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
(१५६० ।
अष्टदल कमल मध्यस्थ श्री पार्श्वनाथजा सा० लाखा केन० पार्श्व बिंबं का०
श्री सुविधिनाथजी सं० १७६८ बै० सु० ६ सा० मंगल जी भार्या रही सुविधि विबं कारितं ।।
(१२६२)
श्री शान्तिनाथजी संवत् १ --दि १३ गुरु ओसवाल ... 'गोने सा० परमाणंद तस्य भार्या केसर दे पुत्र सा० करमसी किसनदास केशलसी दयालदास पदारथ श्री शांतिनाथ बिंबं प्रतिष्ठितं भट्टारक श्री नेमिचन्द्र सूरि । महाराजा श्री सरूपसिंह विराज्यत कारापितं .... मध्ये ।।
( १२६३ ) सं० १७५५ ज्येष्ठ सुदि ६ श्री पा० दुरगा दे कराई
( १२६ ) सं० १५८२ रत्नाई कारा.
मूल मन्दिर से पीछे की देहरी में
पापाण प्रतिमादि के लेख
। १२६५ .
पंचकल्याणक पट्टपर ( १ ) संवत् १६०५ वर्षे शाके १७७० माघ शुरु ५ तिथौ हिमांशुषासरे ओएस वंशे वृद्ध शाखायां वैद्य मुहता समस्त श्री संघ समासेन श्री नेमि जिने (२) स्य पंचकल्याणकानां स्वरूपः कारापितः प्रतिष्ठितश्च श्री मदुपकेशगच्छे भट्टारक श्री देवगुप्तसूरिभिः ।।
( १२६६ )
गाधर पादुकाओं पर ( १ ) संवत् १६०५ वर्षे माघ शुक्ल पंचम्यां ५ तिथौ चन्द्रवासरे उएश वंशे वृद्ध शाखायां
श्रेष्ठगोत्र वे
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बीकानेर जैन लेख संग्रह (२) द्य मुंहता समस्ते श्री संघेन श्री पार्श्वनाथस्य गणधराणां पादाब्ना कारापिताः ।
प्रतिष्ठिता: श्रीम (३) दुपकेश गच्छे युगप्रधान भट्टारक श्री देवगुप्त सूरिभिः ।। श्रीरस्तु ।। कल्याणमस्तु । श्री।
( १२६७ )
सिद्रचक्रमंडल शास्वतजिनचरण सह ॥ सं० १६०५ वर्षे माघ शुक्ल ५ पंचम्यां तिथौ चन्द्रवासरे उएश वंशे वृद्ध शाखाया श्रेष्ट गोत्रे वैद्य मुंहता समस्त श्री संघेन श्री सिद्धचक्रस्य मंडल कारापितं । प्रतिष्ठितं श्री मदुपकेश गच्छे युगप्रधान भट्टारक श्री देवगुप्त सूरिभिः
( १२६८)
गणधर पादुकाओं पर सं० १६०५ रा माघ शुक्ल ५ चन्द्रवासरे उएश वंशे वृद्ध शाखाया श्रेष्ट गोत्रे वैध मु। समस्त श्री संघेन श्री आदिनाथ वर्द्धमान जिनेन्द्रयो गणधराणां पादाब्जा कारापिता प्रतिष्ठितं । श्रीमदुपकेश गच्छे भ: श्री देवगुप्त सूरिभिः श्रीरस्तुः ।।
( १२६६ )
श्री गिरनार तीर्थ पट पर ।। संवत् १६०५ वर्षे माघ शुक्ल ५ तिथौ विधुवासरे ऊएश वंशे वृद्ध शाखायां वैद्य मुं। समस्त श्री संघ सहितेन । श्री गिरनार तीरथग्य स्वरूपः कारापितः प्रतिष्ठितश्च श्रीमदुपकेश गच्छे भट्टारक श्री देवगुप्त सूरीश्वरैः॥
(१२७०)
श्री गौतमस्वामी की प्रतिमा पर _ वि।सं० ।। १६४५ मिती मार्गशीर्ष शुक्ला १० भृगुवासरे श्री गौतमस्वामी मूर्ति श्री संघेन कारापितं .
धातु प्रतिमा लखाः ( १२७१)
श्री आदिनाथजी ॥ संवत् १५५१ वर्षे माह वदि २ सोमे उपकेश ज्ञातीय खटवड़ गोत्रे सा० मोल्हा भा० माणिकदे पु० सा० टोहा भार्या वारादे पुत्र गोरा भा० लाछ ..... पा युतेन आन्म पुण्यार्थ आदिनाथ बिवं कारितं प्रतिष्ठितं मलधार गच्छे भ० गुणकीर्ति सूरिभिः
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
( १२७२ )
श्री कुन्थुनाथजी स्वस्ति श्री । संवत् १५६३ वर्षे ज्येष्ठ वदि ४ शुभ दिने भौमे उत्तराषाढा नक्षत्रे शुक्ल नन्नि परे ( १ ) श्री सुराणा गोत्रे सा० सीका....धर्म पत्नी श्रा० नाथी श्रीकुंथुनाथ बिंबं कारापितं प्र० भ० श्री सिद्धिसूरिभिः मूल मन्दिर से निकलते बायें हाथ की ओर देहरी में
धातु प्रतिमाओं के लेख
सं० १४८८ फागुन वदि १ दिने श्रीमाल वंशे वग (2) गोने ठ० नापा भा. वाल्ही तत्पुत्रैः ४० चांपा वीरा पेढ़ पिउपालै श्री नेमि बिबं कारापितं खरतर गच्छे श्री जिनराजसूरि पट्टे श्री जिनभद्रसूरि गणधरैः प्रतिष्ठितं ।।
( १२७४ )
श्री कुन्थनाथजी सपरिकर सं० १४२१ प्राग्वाट ज्ञा० महं० धणपाल भा० सिंगारदे पुत्र गोदा मेघाभ्यां पित्रौ श्रे० श्रीकुंथुनाथ विंबं का० प्रतिष्ठितं रुद्रपक्षीय गच्छे श्री गुणचन्द्र सूरिभिः
( १२७५ ) सं० १३८५ वर्ष फागुन सुदि ८ श्री उपकेश गच्छे श्री कुंकुदाचार्य संताने इचणाग गोत्रे सा० भायपा हरदेवटी पु० सा० देऊ पिता श्रेयसे श्री महावीर बिवं का० प्र० श्री ककसूरिभिः
( १२७६ ) सं० १५०३ वर्षे आषाढ़ सुदि गुरौ दिने ऊकेश न्याति छाजहड़ गोत्रे सं० साज भा० जासू घु० धमा० भा० धामलदे पु० देहा भा० देवलदे । लखमण कुशला स० श्री सम्भवनाथ बिंबं कारा०प्र० पल्ली० श्री यशोदेवसूरिभिः ।।
( १२७७ ) सं० १५२२ वर्षे माह सु० ६ शनौ प्राग्वाट ज्ञातीय मं० वाघा भा० मांकू सु० मनाकेन भा० मचकू सु० बर्द्धमान गंगदास नारद आसधर नरपति लखमण सहितेन आत्म श्रेयोर्थ श्री सुमतिनाथ बिंबं कारितं प्र० श्री तपापक्षे भट्टारक श्री जिनरत्न सूरिभिः सहआला वास्तव्य ।।
(१२७८ ) सं० १४५८ वर्षे ज्येष्ट सुदि १० तिथौ शुक्र बाबेल गोो सा० बाहड़ भा० नाकु पित्रौ श्रेयसे कीनाकेन श्री नमिनाथ बिंबं कारितं प्र. मलधारि श्री मतिसागर सूरिभिः ।।
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( १२७६ ) सं० १५०७ वर्षे का० ब० ३ बुध नवलक्ष शाखा सा० रतना पु० पांचा पु० जिणदत्तेन फामण पु० पार्थ श्री कुंथुनाथ बिंब कारितं श्री जिनसागरसूरिभिः प्रतिष्ठितं ।।
( १२८० ) सं० १५७२ वर्षे सा० राजा० भा० गुरादे पु० सा० भोजराज उदिराज भोश्र वच्छराज श्री खरतरगच्छ श्रीजिनहंससूरि प्रतिष्ठितं श्री पार्श्वनाथ बिंब कारापितं पुण्यार्थ
( १२८१ ) ॥ संवत् १५०८ वैशाख सु०५ उपकेश गच्छे सूरुआ गोत्रे सा० अमरा पुत्री रूअड़ आत्म पुण्यार्थे श्रीमुनिसुव्रत बि० प्रति० श्रीं ककसूरिभिः ।।
(१२८२) सं० १५३२ (१३ ) वर्षे फ० ६ हंसार कोट वासि प्राग्वाट मं० बाधा भा० गांगी पुत्र सं० सधाकेन भा० टमकू० पुत्र समधर कुभा राणादि युतेन श्री कुंथु बिंब का० प्र० श्री रलशेखर सूरि पट्ट तपागच्छेश श्री लक्ष्मीसागर सूरिभिः श्री रस्तु ।।
( १२८३ ) सं० १५२४ वर्ष माग० बदि ५ सोमे प्रा० ज्ञातीय व्यव० सोमा भा० चांपलदे पु० मोल्हा भा० माणिकदे पु० पेथा० धना जेसिंघ धर्मसी युतेन स्वश्रेयसे श्री मल्लिनाथ सिंबं का० प्र० पूर्णिमा पक्षे श्री विजयप्रभ सूरिभिः
(१२८४ ) सं० १५०५ वर्षे कस .. रालाट। गोत्रे सा० कपूरा भार्या वीसल संभवनाथ बिंबं प्रतिष्ठितं .... जिनभद्रसूरिभिः
( १२८५ ) सं० १५२८ मार्गसिर वदि १२ लिगा गोशे सा० सायर पु० सीहा भा० राणी पु० बीझा खेवपालाभ्यां श्री सुमतिनाथ बिंब भ्रातृ पुण्या कारितं प्रतिष्ठितं श्री सूरिभिः
( १२८६ )
१३३६ मू० संधे वारू पीरोहत देव ।
( १२८७ ) सं० १५५१ मूल
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
(१२८८ )
धातु के यंत्र पर २० १८२० रा वर्ष शाके १६८८ ( १५ } प्रवर्त्तमाने मासोत्तम मासे शुक्ल पक्षे माह मास पंचमी तिथौ भोमवासरे सुश्राविका गुलाल बाई प्रतिष्ठितं उद्यापने !
( १२८६ )
दुरितारि विजय यंत्र पर __ सं० ५८७६ मि । चै। सु ! १५ दिने पं० ज्ञानानंद मुनि प्रतिष्ठितं ।। श्री दुरितारि विजय यंत्रोयं अपर नाम सर्वतोभद्र ! वेद मु० हुकमचंदकस्य सदा कल्याण सुखकारको भूयात् श्री इन्दोर नगरे। पं० महिमाभक्ति मुनि लिखितं श्री रस्तु लेखक पूजकयोः ।।
पपाण प्रतिमा केखः
( १२६० )
___ संखेश्वर पार्श्वनाथजी बुधे श्री बीकानेर श्री शंखेवर ... .प्रतिष्ठितं च...... मूल मन्दिर से निकलते दाहिनी और देहरी में
धातु प्रतिमाओं के लेख . (१२६१)
श्री पार्श्वनाथजी (A) ॥ संवत् १५२७ वर्षे बैशाख बदि ११ बुधे श्री मूलसंघे भ० श्री सकल कीर्तिस्तत्प० भ० श्री भुवनकीर्ति उपदेशात ह० बुध गोत्रे व्य० माहव भार्या झबकू सुत आसा भार्या राजू । भ्रातृ सूरा भार्या शिवा गोमतो भ्रातृ भार्या सहिगलदे सुत धरमा कारापित श्री पार्श्वनाथं जिनेन्द्र नित्यं प्रणमति ॥ (B) श्रीमूल संधे भ० श्री भुवनकीर्ति व्यव० आसा सूरा शिवा नित्यं प्रणमति
( १२१२ )
सिंहासन पर ॥१०॥ संवत् १७२७ वर्षे श्रावण मासे शुक्ल पक्षे द्वितीया तिथौ भूगुवारे श्री विजय गच्छे श्री पूज्य श्री कल्याणसागर सूरि तत्प? श्रीपूज्य श्री सुमतिसागर सूरिभिः श्रीउदयपुरवरे महाराजा राणा श्री राजसिंघ विजयराज्ये श्री संघेन सिंघासन कारापितः श्री महावीरस्य ।। लि ! खेत ऋषि जत्यवत् ॥ संघ समस्त श्रेयकारा ॥ श्रीरस्तु ॥ कल्याण मस्तु शुभं भूयात् ॥ होरी गणेश सूत्यकार: कसारा मानजी सुत परताप कृतं पद्मराजा ।
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(१२६३) ॥ सं० १५२१ वर्षे वैशाख सु० १३ सोमे उपकेश ज्ञा० लोढा गोत्रे सा० वील्हा भा० रोहिणी पु० बुहरा भा० लखमश्री पु० सादाकेन भा० श्रृंगार दे पु० उदयकर्ण युतेन मातृ पितृ श्रेयसे श्री आदिनाथ बि० का०प्र० तपा गच्छे श्री हेमसमुद्रसूरिभिः
(१२६४ ) __ संवत् १५४२ वर्षेज्येष्ठ सुदि ८ शनौ भ० श्री जिनचंद्र सभ० श्री ज्ञानभूषण सा० उड्डु भा० रा० नारायण
(१२६५ ) सं० १५०४ वर्षे मार्गशिर सु० ६ सोमे उपकेश झातीय छोहरिया गो० मा० बोहित्व भा० बुही पु० सा० फलहू आत्म पु० श्री शीतलनाथ बिबं का०प्र० श्री वृहद्गच्छे पू० भ० श्री सागरचन्द्र सूरिभिः
(१२६६ ) ॥संवत् १५३६ वर्षे फागुण सुदि ३ दिने श्री ऊकेश वंशे श्रेष्टि गोत्रे अमरा पुत्र श्रे छाडाकन भार्या सिद्धि पुत्र श्रे० झाझण सामल्ल सरजण अरजुनादि परिवार युतेन श्री श्रेयांस बिंब कारिता प्रतिष्ठितं श्री खरतर गच्छे श्री जिनचन्द्र (सूरिभिः)
( १२६७ ) संवत् १५२८ वर्षे आषाढ़ सु० २ गुरौ श्रीमाली वंशे सा० फाफण भा० भीमिणि तत्पुत्र सा० मोकल सुश्रावकेण भा० बहिकू परिवार सहितेन स्वश्रेयार्थ श्री शांतिनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं खरतर गच्छे श्री जिनभद्रसूरि पट्टे श्री जिनचन्द्र सूरिभिः ।।
( १२६८ )
सं० १५३४ वर्षे माह सुदि ६ शनौ उके० मूंदो० गो० साढ़ा भा० नेतू पु. ध आमा महिया भा० कान्ह पु० गंगा भा० लिक्ष्मी पु० चांपा भा० चांपलदे पित्रौ श्रेयसे श्री चन्द्रप्रभ बिबं का० प्रति० श्री वृहद्गच्छे श्री वीरचन्द्रसूरि पट्टे श्रीधनप्रभसूरिभिः ।।
( १२६६ ) सं० १४८६ वैशाख सु० १० कोरंट गच्छे ऊ० ज्ञातौ सा० लाहड़ पु० देवराज भा० लूणी पु० दशरथेन पित्रौ श्रेयसे श्री शीतल बिंब का० प्रति० श्रीनन्नसूरि पट्टे श्री ककसूरिभिः
( १३०० ) सं० १४७६ वर्षे माघ वदि ४ शुक्रे बउड़िया गोत्रे सा० छाहड़ संताने सा० उदा भा० वीरिणी पुत्रेण संघपति साल्हा पु० मोलू श्रेयसे श्री शांतिनाथ विबं कारितं प्रतिष्ठितं श्री मलयारि श्री विद्यासागर सूरिभिः॥
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( १३०१) ॥सं० १५२८ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ३ तीज दिने बुधवारे ॥ श्रीतत्तहड़ गोत्रे सा० बोहित्थात्मज चटू भा० लाडी पुत्र छजू भा० रूपी आत्म श्रेयसे श्री धर्मनाथ विंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्री ककसूरिभिः
(१३०२ ) सं० १५०४ वर्षे मार्गशिर सु० ६ सोमे उपकेश ज्ञातीय छोहरिया गो० सा० बोहित्थ भा० बुहश्री पु० सा• फलहू आत्म पु० श्री शीतलनाथ बिबं का० प्र० श्री वृहद्गच्छे पू० भ० श्री सागरचन्द्र सूरिभिः
( १३०३) ॥ सं० १५२६ वर्षे वैशाख व०६ श्री उपकेश ज्ञातौ काला गोत्रे सा० मूला भा० श्री. भाऊ नरपति पु० नगराज सा० अपमल मातृ पितृ श्रेयसे श्री मुनिसुव्रय स्वामि बिंब कारितं श्री अञ्चल गच्छे प्रतिष्ठितं श्री जयकेशर सूरिभिः गा०७
( १३०४ ) सं० १५११ वर्षे माघ वदि ६ गुरौ उप० बुहरा गोत्रे सा० डुंगा भा० देवलदे पु० सिंघा भा० सूरमदे पुत्र मोल्हा युतेन स्वश्रेयसे श्री सुमतिनाथ बिंब कारितं प्र० पूर्णिमा परायत० श्री जयभद्र सूरिभिः ॥ छः ।।
( १३०५) सं० १५४० व० वैशाख सुदि १० बुधे श्री काष्टा संघे भ० श्री सोमकीर्ति प्र० भट्टउरा ज्ञा० कामिक गोशे सा० ठाकुरसी भा० रूखी पुत्र योधा प्रणमति ।।
(१३०६ ) सं० १७०१ मा० सु० ६ पत्तन वा० सा० मंगल सु० सा० रवजीना० श्री शांति बिं० का० प्र० भ० श्री विजयदेव सूरिभिस्तपा गच्छे ।। ।
(१३०७) संवत् १६२६ व० मो.....'क योमे । श्रीमाली आ० ज....."हीरविजयः सूरि ) प्रतिष्ठित
( १३०८ ) सं० १७६० वै० सु० ६ रवौ श्री विजयदेवसूरि प्र.......
( १३०६ ) सं० १६८३ श्री काष्टा संघे भ० विजयसेन अग्रवाल भीत्भ (मीतल ) गोत्रे रावदास प्रणमति
( १३१०) को । महेश..........."प्र० श्री जिनराज......... " !
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میم
(१३११) १६६१ शीतल........"बीतल दे।
(१३१२)
श्री अम्विकाभूति पर सं० १३८१ वैशाख ब०५ श्री जिनचन्द्रसूरि शिष्यैः श्री जिनकुशल सूरिभि रंबिका प्रतिष्ठिता।
शिलापट्ट पर
(१३१३ ) (1) माहिदेवः महावीरः आदि
(1) गुरेटाट अधिकारः पूतली वणी (2) आदि आप पीरः देहरउ अनूः (8) अपारः अहम कामम इकसाल (3) परूपधम कुकी यतः बीकान (9) पूज मजह लायक हुइतिलव ॥ (1) यर नवराणः वयद वस
(10) माइः गुण नयरन्नावगयः इद्रक (6) जेयं यजाणिः व स्तपाल (७) कसमाय कपूर जी जीवउः (11) उ विमाण जाणि आणकम...ठव्यर
भाण्डागारस्थ धातु प्रतिमाओं के लेख
__ श्री सुमतिनाथादि पंचतीर्थी __सं० १४८५ वर्षे माघ वदि १४ बुधे नवलखा गोत्रे स० लोला सुतेन स. रामाकेन निज भ्रातृ भीखा श्रेयो निमित्तं श्री सुमतिनाथ बिंब कारितं प्र० श्री हेमहंस सूरिभिः
श्री आदिनाथादि पंचतीर्थी ॥सं० १५२५ वर्षे वैशाख सुदि ३ सोमे उपकेश ज्ञा० गोष्ठिक गोशे सा० देदा भा० देऊ पु० धीणा भा० धारलदे पु० केल्हा देवराज शिवराज सीहाकेन समस्त सकुटुंब पुण्यार्थ श्रेयसे श्री आदिनाथ बिबं कारितं प्रतिष्ठितं श्री पूणिमा पक्षीय भ० श्री जयप्रभ सूरि पट्टे भ० श्री जयभद्र सूरिभिः
(१३१६ )
श्री सुमतिनाथादि पंचतीर्थी १४६३ वै० सु०३ प्रा० ताणा वासी व्य० जाणा सुत भीमाकेन भ्रातृ खीमा अजा श्रेयसे सुमति बिंबं का० प्र० श्री सोमसुन्दर सूरिभिः ।।
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(१३१७)
श्री शांतिनाथादि पंचतीर्थी सं० १४८५ वर्षे मागसिर वदि २ श्री उप० वीरोलिया गोत्रे सा० हरपति पू० जयता भा. अजयणी पु० हापाकेन पितृ मातृ श्रेयसे श्री शांतिनाथ विबं का० प्र० श्री पल्लीवाल गच्छे श्री यशोदेव सूरिभिः
( १३१८ )
श्री संभवनाथादि पंचतीर्थी । सं० १५०६ फा० सु० उ० ज्ञा० से विवाडेचा गो० सा० वीरम भा० कर्ण पु० देल्हाकेन भा० माणिकि पु० तोल्हा ऊधरण मेघा स० श्री संभवनाथ बिबं का० प्र० श्री संडेर गच्छे श्री शांति सूरिभिः
(१३१६)
सपरिकर श्री शांतिनाथजी सं० १३६६ (१) फागुण सुदि ६ सोमे श्रे० नयणा भा० नयणादेवि युतेन (?) श्री शांतिनाथ बिबं श्री जिनसिंह सूरिणामुपदेशेन कारिता
(१३२०)
श्री सुविधिनाथादि पंचतीर्थी सं० १५०४ वर्षे येष्ठ वदि ३ सोमे उप झा० वोकड़िया गोत्रो सा० पाल्हा भा० पाल्हणदे पु० भांडा भा० जासल दे पु० पुत्र जातेन आत्मा श्रे० से श्री सुविधिनाथ बिंबं का० प्र० वृहद्गच्छे भ० श्री धर्मचन्द्र सूरि पट्टे भ० श्री मलयचन्द्र सूरिभिः ।। श्री ॥
(१३२१)
श्री वासुपूज्यादि पंचतार्थी ॥६०॥ सं० १५०७ वर्षे ज्येष्ट सु० २ दिने ऊकेश वंशे संखवाल गोत्रे सा० कोचर मूल हीरा पुत्र सा० मिहरा श्राद्धेन पु० सा० लाला देका राउलयुतेन श्री वासुपूज्य बिंबं कारि० प्रति. खरतर गच्छाधीश श्री जिनभद्र सूरि युगप्रधानवरैः
( १३२२)
सपरिकर श्री सुमतिनाथजी सं० १४०८ वैशाख सुदि ५ गुरौ ऊकेश ज्ञा० श्रे० नींबा भा० भागल पुत्रेण साह वीसलेन श्री सुमतिनाथ बिंबं मातृ पितृ श्रे० का० श्री प्रभाकर सूरिणामुदेशेन प्रतिष्ठितं च ॥
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(१३२३)
श्री धर्मनाथादि पंचतीर्थी ॥ सं० १५०८ वर्षे आषाढ़ वदि २ सोमे श्री नाहर गोत्रे सा० कूपा भार्या चिणखू पुत्र डालूकेन श्री धर्मनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्री धर्मघोष गच्छे श्री विजयचंद्र सूरि पट्ट श्री साधुरत्न सूरिभिः
(१३२४)
सपरिकर पार्श्वनाथ जी सं० १२२७ आषाढ़ सुदि १० ठ० आभड़ेन निज भार्या शीत निमित्तं प्रतिमा कारिता (प्र०) हरिभद्र सूरिभिः
(१३२५)
सपरिकर श्री शांतिनाथजी संवत् १४६३ (१) वर्षे शु०...श्रे० पल्हूया भा० वारू सुतया श्रे० देपाल राणी सुत पोपा भार्यया लाख श्रे० पोपासुत सोमा खेनू मुंणादि युतया श्री शांति बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं तपा पक्षे श्री सोमसुन्दर सूरिभिः
(१३२६ )
शांतिनाथादि पंचतीर्थी सं० १५०६ पोष वदि २ बुधे श्री श्रीमाल ज्ञातीय मं० जेसा भार्या जसमादे सु० कडुया भा०२ कोल्हणदे द्वि० करमा देव्या स्वश्रे० श्री शांतिनाथ बिंबं कारितं आगम गच्छे श्री हेमरत्न सूरीणामु प्र० श्री सूरिभिः
(१३२७ )
श्री संभवनाथादि पंचतीर्थी सं० १४६६ बर्ष माह सुदि १० शुक्रे श्री श्रीमाल ज्ञातीय व्य० मऊठा भार्या करणी पितृ श्रयोथं मातृ श्रेयसे सुत लखमणकेन संभवनाथ पंचतीर्थिका श्री नागेन्द्र गच्छे श्री गुणसमुद्र सूरिभिः प्रतिष्ठित
( १३२८ )
श्री शांतिनाथादि पंचतीर्थी सं० १४२७ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १५ शुक्र श्री उपकेश गच्छे श्री ककुदाचार्य संताने श्री सुचिंतित गोत्रीय सा महीपति भा० भीमाही पुत्र हीराकेन मात्म श्रे० श्रीशांतिनाथ बिबं का० प्र० श्री देवगुप्त सूरिभिः ॥ २४
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
( १३२६ )
श्री पार्श्वनाथजी २ काउसग्गियासह केन साव
सं० १९०४ अषाढ़ सु० ६ जिं
( १३३० ) श्री कुंथुनाथादि पंचतीर्थी
सं १५०० वर्षे माव० २ उपकेश ज्ञातौ सुचिंतित गोत्रे सा० सहजा भा० वील्हा पु० साह साधुकेन पित्रोः श्रेयसे श्री कुंथुनाथ बिंबं का० प्रति० श्री उपके० ककुदाचा० श्री ककसूरिभिः
( १३३१ ) सपरिकर श्री पार्श्वनाथ
सं० १३६२ वर्षे फागुण वदि ५ श्री षंडेरकी - गच्छे से० पूरदेव पु० गउरा भा० गहल पार्श्व बिंबं प्रतिष्ठितं श्री सूरिः
( १३३२ ) श्री पार्श्वनाथादि पंचतीर्थी
संवत् १३१६ वर्षे माह वदि ४ खौ लखमणि श्राविकया पु० तीत सहितया स्वश्रेयसे पार्श्व बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं जयदेव सूरिभिः
( १३३३ ) श्री संभवनाथादि पंचतीर्थी
सं० १५६८ वर्षे माह सुदि ५ दिने प्रा० सा० सायर पुत्र सा० कालू भा० आपू पुत्र सा० वीरसेन भा० बील्हणदे पुत्र भोजा भाखर युतेन श्री संभब बिबं कारितं प्र० श्री जयकल्याण सूरिभिः
सं० १४५४ (१) वर्षे माह पित्रो श्रेयसे श्री
( १३३४ ) सपरिकर
'गोत्रे सा० जाल्हा पुत्र सा० धाल्हाकेन बिंबं कारितं प्र० भ० श्री मतिसागर सूरिभिः
( १३३५ ) सपरिकर श्री नेमिनाथजी
॥ सं० १२८८ माघ शु० ६ सोमे निर्वृति गच्छे श्रे० बौहड़ि सुत यसहन देल्हादि पिवर श्रेयसे नेमिनाथ कारितं प्र० श्री शीलचन्द्र सूरिभिः
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
( १३३६ ) श्री पद्मप्रभादि पंचतीर्थी
संडेर गच्छे तेलहरा गो० सा० धास्सी पु० धणसी भा० बापू
सं० १४८३ फा० वा० ११
go खेता पद्मा श्री पद्म बिंबं पूर्वज श्रेयसे का० प्र० श्री शांति सूरिभिः
( १३३७ )
श्री आदिनाथादि पंचतीर्थी
।। सं० १५२८ वर्षे चै० व० ५ सो० उसवाल ज्ञातीय वीराणेचा गोत्रे सा० तोल्हा पुत्रेण सा० सहदेवेन भा० सुहागदे पु० डूंगर जिनदेव युतेन स्वपुण्यार्थं श्री आदिनाथ बिंबं कारितं प्र० श्री वृच्छे श्री मेरु प्रभसूरि भ० श्री राजरत्न सूरिभिः
( १३३८ ) श्री चन्द्रप्रभादि पंचतीर्थी
संवत् १४६५ वर्षे पोष वदि १ शनौ मृगशिर नक्षत्रे श्रीमाल ज्ञातीय प्राडगीया गोत्रे सा० धनपति भार्या रूपिणी पु० वयरान आत्म पुण्यार्थ श्री चन्द्र प्रभ दिवं कारितं श्री धर्म्मघोष गच्छे भ० श्री विजयचन्द्र सूरिभिः
( १३३६ ) श्री संभवनाथादि पंचतीर्थी
१७५
।। सं० १४६४ वर्षे माह सु० ११ गु० श्री संडेर गच्छे ऊ० शा० धारणुद्रा गो० सा० रायसी पु०... गिर पु० वीसल भा० सारू पु० धन्नाकेन भा० हर्षू पु) तोला स० स्व पुण्यार्थ श्री संभवनाथ बिं० का० प्र० श्री शांतिसूरिभिः
( १३४० ) श्री शांतिनाथादि पंचतीर्थी
सं० १४५२ वर्षे सुदि ५ गुरौ ॐ० ज्ञा० समरदा भार्या श्रीमणि पु० हाडाकेन पितृ मातृ श्रेयसे श्री शांतिनाथ बिबं कारितं श्री सिद्धाचार्य संताने प्रतिष्ठितं श्री ककसूरिभिः
( १३४१ )
श्री धर्मनाथादि पंचतीर्थी
||६०|| सं० १४६६ वर्षे काती सुदि १५ गुरौ प्राम्बाट झा० सा० मोढा भा० हमीरदे पु० चरथ भा० चाहिणी दे पु० राऊल स० आत्मश्रेयसे श्री धर्मनाथ बिंबं का० प्र० चित्रका तिलक सूरिभिः
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
nirnamannabrarurrrrrrr
( १३४२)
श्री कुंथुनाथादि पंचतीर्थी सं० १५०६ वर्षे माघ सुदि १० ऊकेश साह गोत्रे सा० कालू भा० सारू श्राविकया पु० सा० तांता रांगा युतया श्री कुथुनाथ० का० प्र० वरत ( १ खरतर ) श्री जिनसागरसूरि(भिः)
(१३४३)
__ श्री शांतिनाथादि पंचतीर्थी सं० १४८८ वर्षे मार्ग सुदि ५ गुरु उपकेशवंशे लोढा गोशे सा० फलहू भा० पाल्हणदे पु० वाछूकेन मातृ पितृ भ्रातृ वालू पुण्यार्थ आत्मश्रेयोथं श्री शांतिनाथ बिंबं का० प्र० श्री कृष्णर्षि गच्छे श्री नयचन्द्र सूरिभिः
(१३४४ )
श्री शांतिनाथादि पंचतीर्थी सं० १५१६ वर्षे ज्येष्ठ सु० ३ शनौ प्रा० व्यव । देदा भा० सीती पुत्र भोजा भीला भा० भावलदे साहि० स्व श्रेयसे श्री शांतिनाथ बि० कारितं प्र० कच्छोलीवाल गच्छ पूर्णिमा प० भ० श्री गुणसागर सूरीणामुपदेशेन ॥
( १३४५)
श्री वासुपूज्यादि पंचतीर्थी सं० १४६५ वैशाख सुदि ३ गुरौ उपकेश ज्ञा० सा० आसाभार्या पूनादे पुत्र पूना भार्या सुहागदे पित्रो श्रेयसे श्री वासुपूज्य वि० कारितं प्र० श्री वृहद्गच्छे श्री धर्मदेवसूरि पट्टे श्री धर्मसिंह सूरिभिः
श्री आदिनाथादि पंचतीर्थी ___ सं० १४७० ज्ये० सु०४ बुधे उपकेश ज्ञा० सा० सहजा भा० सहिजल-देव्या पुत्र सोना साचड़ खोभटाद्यः पितृ मातृ श्रेयसे श्री आदिनाथ बिंबं का० श्री उपकेश गच्छे श्री सिद्धाचार्य संताने प्र० श्री देवगुप्त सूरिभिः ।। श्री० ॥
(१३४७)
श्री आदिनाथादि पंचतीर्थी सं० १४७२ २० फागुण वदि १ सु श्री मूलसंघे बलात्कार गणे सरस्वती गच्छे भट्टारिक श्री पद्मनंदि हुंबड़ ज्ञाती गोत्र रत्रेश्वरा श्र० धणसी भार्या लीलू सुत सहिजा जइता भार्या जइतलदे श्री आदिनाथ
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( १३४८ ) श्री आदिनाथादि पंचतीर्थी
॥ सं० १४६८ वर्षे फागुण कृ० १० बुधे श्री उस वंशे मिवक यामा पहराज पुण्यर्थ सा० पदा पूना पीथाकैः श्री आदिनाथ बिंबं का प्रतिष्ठित ( १३४६ )
श्री पार्श्वनाथजी सपरिकर
वदि ६ शनौ तीपक वावाये० गाजू नाम्ना आत्म श्रेयोर्थं श्री पार्श्व
संवत् १३०२ वर्षे माघ नाथ प्रतिमा कारिताः
( १३५० )
सपरिकर श्री शांतिनाथजी
सं० १४४६ ( ? ) वर्षे माघ वदि ४ शुक्रे उप० सा० मूजाल सा० माल्हण दे पुत्र लाखाकेन पितृ पितृव्य रणसी बीरा निमित्तं श्री शांतिनाथ बिंबं प्र० पूर्णिमा पक्षे श्री जयप्रभ सूरिभिः ( १३५१ ) सपरिकर श्री अनन्तनाथ
सं० १४६५ ज्येष्ट सु० १४ बु० सांखुला गौत्रे मा० छानल पु० मला भा० मेल्हा दे पु० देदाकेन पितृ पुण्यार्थं श्री अनंतनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्री धर्मघोष गच्छे श्री पद्म शेखरसूरि पट्टे भ० श्री विजयचन्द्र सूरिभिः
ورم
( १३५२ ) सपरिकर श्री शांतिनाथजी
॥६०॥ संवत् १३७७ वर्षे ज्येष्ठ वदि ११ गुरौ वैद्य शाखायाँ सा० दूसल पुत्रिकया तिल्ही श्राविकया स्वश्रेयसे श्री शांतिनाथ बिंबं कारितं प्रति० श्री उपकेश गच्छे श्री ककुदाचार्य संताने श्री ककसूरिभिः
२३
१ ) रः सं०
( १३५३ )
श्री सुमतिनाथादि पंचतीर्थी
|| सं० १५१३ वर्षे ज्येष्ठ वदि ११ गुरौ उसवाल ज्ञातीत वाहर गोत्रे स० तेजा ' पु० सं० वच्छराज भ० खिल्हयदे पु० सं० कालू माडण सुर्जन भ्रातृ सुत लोला लाखा जसा मेघाभ्यां श्री सुमतिनाथ बिकारापितं प्रतिष्ठितं धर्म० श्री साघुरत्नसूरिभिः ॥ श्री ॥
सं० १३४३ वर्ष
( १३५४ ) पंचतीर्थी
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'कारितं प्र० श्रीसूरिभिः
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
( १३५५ )
श्री महावीर सपरिकर सं०१५...............
................ श्री महावीर बिबं का० प्रति. श्री धर्मदेव सूरिभिः
(१३५६)
श्री मुनिसुव्रत पंचतीर्थी सं० १५१० वर्षे माघ सुदि ५ शुक्र श्री ब्रह्माण गच्छे श्री श्रीमाल ज्ञातीय पटसूत्रीया महिया भा० सूलेसरि पुत्र मांडण भा० रूपी पुत्र झालाकेन पुत्रो श्रेयसे मुनिसुव्रत स्वामी बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं भ० पजून सूरिभिः
(१३५७ )
श्री पार्श्वनाथ सपरिकर ॥६० सं० १३४६ वैशाख सुदि ७ श्री पार्श्वनाथ बिंबं श्री जिनप्रबोधसूरि शिष्यैः श्री जिनचन्द्र सूरिभिः प्रतिष्ठितं कारित ....... रा. खीदा सुतेन सा० भुवण श्रावकेन स्व श्रेयोर्थ आच्छद्राकं नंदतात्
( १३५८)
सपरिकर धर्मनाथजी ॥ संवत् १४८५ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १३ सोमे उसवाल झातीय खटवड़ गोत्रे सा० अमरा पु० नीबा भा० मेघी पु० जूठिल खांखण जूठिल पु० खेता खाखणाभ्यां श्री धर्मनाथ बिंब कारापितं प्र० श्री धर्मघोष गच्छे श्री पद्मशेखर सूरिभिः ॥ छ ।
(१३५६ ) सं० १४६१ (१) वर्षे फागुण वदि ...............''पु० रामेन भा० सोनल सहितेन पितृ श्रेयसे श्री शांति बिं का० प्र० श्री गुणप्रभ सूरिभिः
(१३६० ) सं० १५०१ ज्येष्ठ वदि १२ सोमे उप० ज्ञा० स० जेसा भा० जसमा दे पु. कान्हा रता रामा कान्हा भा० श्याणी स० पितृ मातृ श्रे० श्री नमिनाथ बि० का०प्र० श्री वृहद्गच्छे श्री नरचन्द्र सूरि पट्टे श्री वीरचन्द्र सूरिभिः ॥ १४॥
॥ सं० १५०६ वर्षे मा० सु० १० ऊकेश ज्ञा० वरणाउद्रा वहुरा गो० सा० राणा भा० रयणादे पु. तेजा भा० तेजलदे पु० तेता स० श्री वासपूज्य वि. का० प्र० श्री संडेर गच्छे श्री शांति सूरिभिः
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
( १३६२ )
|| सं० १५१० व० फागुण सुदि ११ शनौ श्री श्रीमालीय शा०
"वीबा भा० चाहिणदेवि नि० श्र० खीदा चापा चूहध पांचा सहितेन श्री धर्मनाथ पंचतीर्थी कारितं प्र० श्री भावडार गच्छे श्री कालिकाचार्य सं० पू० श्री वीरसूरि पुरन्दरैः मोरीषा वास्तव्यः ||:
( १३६३ ) सपरिकर श्री महावीर स्वामी
सं० १३७१ वैशाख सु० ७ श्र० वेला भार्या नीमल पु० देवसीहेन पितृ मातृ श्रेयोर्थं श्री महाare fi कारितं प्रतिष्ठितं श्रीसूरिभिः ||
( १९३६४ )
सपरिकर श्री अनन्तनाथजी
सं० १४७३ (१) फागुण सुदि १५ सोमे ऊकेश ज्ञा० श्रे० विजपाल भा० नामल पु० खेतसीन पित्रो निमित्तं श्री अनन्तनाथ बिंबं का० प्र० ऊकेश गच्छे सिद्धाचार्य सं० श्री सिद्धसूरिभिः
१७६
( १३६५ ) सपरिकर
१ संवत् १३२३ वर्षे माघ सुदि ७ श्री नाणकीय गच्छे व्य० देपसा पुत्र जगधरेण प्रतिमा कारिता प्रतिष्ठिता श्री धनेश्वरसूरिभिः
( १३६६ ) श्री पार्श्वनाथादि पंचतीर्थी
सं० १९७३ आषाढ़ वदि ४ सोमे चाहिड़ म
( १३६७ )
सं० १३१४ बैशाख सुदि ५ ऊकेश गच्छे श्री सिद्धाचार्य संताने आहड़ भार्या राजीकया स्व श्रेयोर्थ का० प्र० श्रीककसूरिभिः
( १३६८ ) .
|| सं० १५६६ वर्षे वैशाख सुदि ७ वहरा गोत्रे मोहण शाखाय मं० खेमा पु० नयणा भार्या नारिंग पु० मं० उरजा भार्या उत्तिम पु० सिंघा योद्धा सिंघ पु० प्रतापसी युतेन श्री अजितनाथ बिंबं आत्मपुण्यार्थं प्रतिष्ठितं वेत्राबाल गच्छे भ० श्री भुवन कीर्तिसूरिभिः
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१८०
बीकानेर जैन लेख संग्रह
(१३६६) ॥ सं० १५२३ वर्षे । फाल्गुन सुदि १४ भौमे श्रीमूल संघे सेनगणे भ० श्री जयसेन तत्आम्नाये धार्जिका धर्मश्री आत्म कर्म क्षयार्थ चतुर्विशतिका प्रणमति ॥ प्रतिष्ठितं भट्टारक श्री सिंहकीर्तिः देवा ।। श्री ।
(१३७० ) ऊह्रीं श्रीं ऍअहं कलिकुण्ड डंड स्वामिन्
संवत् १३२७ माह सुदि . . ''मा ... 'सुत धेना पकना पदमचंद्र करापितं श्री मूलसंघ नित्यं प्रणमति
( १३७२ ) ॥ संवत् १५५१ वर्षे माघ वदि० २ सोमदिने उपकेश ज्ञातीय वणागिया गोत्रे सं० भोजा भा० भावलदे पु० सं० महिपा भा० माणिकदे सहितेन आत्म पुण्यार्थ श्री वासुपूज्य बिब कारापित श्रीधर्म घोष गच्छे भ० श्री कमलप्रभसूरि तत्प? प्रतिष्ठितं श्री पुण्यवर्द्धन सूरिभिः
( १३७३ )
घोड़श कारण यंत्र सं० १६६३ वर्षे वैशाख वदि २ दिने श्री मूल संघ सरस्वती गच्छे बलात्कार गणे श्री कुदकुंदाचार्यान्वये भट्टारक श्री अभयनंदि देवा तत्पट्टे आचार्य श्री रत्नकीर्ति देवोपदेशात् अप्रोतकान्वये गर्ग गोत्रे साधु श्री हरिपाल भार्या पोमो तयाः पुत्रा चत्वारि प्रथम पुत्र साह श्री लक्ष्मीदास भार्या जसोदा तयोः पुराणा भार्या मोहनदे तयो पुत्रो चिरंजीव समा हरसा नसीही सा० हरिपाल द्वितीय पुत्र सा० श्री अगर ......सत्र अया केसरिदे षोडशकारण यंत्र नित्य प्रणमतिः ।। स्तमा हासना० भगोति कान्हर भा० गगोता।
(१३७४) ॥संवत् १५०८ वैशाख सु० ५ उपकेश गच्छे सूकआ गोत्रे सा० अमरा पुत्री रूअड़ आत्म पुण्यार्थं श्री मुनिसुव्रत बिं० प्रति० श्रीकक्कसूरिभिः
( १३७५ )
__ श्री सुमतिनाथादि पंचतीर्थी संवत् १४६६ वर्षे फागुण वदि २ गुरौ श्रीमगल ज्ञातीय वरहड़िया गोत्रे सा० अमर सुत वेस्ता० नाहटेन भार्या माल्हणदेव्या स्व श्रेयसे श्री सुमतिनाथ बिं० का०प्र० श्री टह० श्रीरत्न प्रभसूरिभिः
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
( १३७६ )
सं० १५२७ ज्ये० ० ११ उपकेश व्य० भाडा भा० लाछू पु० जोजा जाणाभ्यां भा० नामलदे पितृव्य अमरा अर्जुन भारमल प्रमुख कुटुंब युताभ्यां पितुः श्रेयसे श्री धर्मनाथ बिंबं कारित प्रतिष्ठितं श्रीसूरिभिः वराहलि प्रामे ||
( १३७७ )
सं० १५१० वर्षे ज्येष्ठ सुदि ३ गुरु श्री श्रीमाल ज्ञातीय व्यव० लाँपा भा० रूदी निमित्तं सुत पोपट केन श्री संभवनाथ रत्नमय पंचतोर्थी बिंबं कारितं प्र० श्री श्री वीरप्रभसूरि पट्टे श्री कमलप्रभसूरिणामुप० प्रतिष्ठितं ॥
( १३७८ )
श्री सुमतिनाथादि पंचतीर्थी
सं० १५३४ वर्षे आषाढ़ सुदि १ गुरौ वारे वावेल गोत्रे सा० चाचा संताने सा० रूपात्मज सा० सिंघा भार्या जयसंघही पुत्र तेजा पुन पाल...... ..युतेन स्व पुण्यार्थ श्री सुमतिनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं कृष्णर्षि गच्छे श्रीनयन्चंद्रसूरि पट्ट े श्री जइचंद्रसूरि ( १३७६ )
सं० १४२८ वर्षे वैशाख वदि. .. मं० केस सा० कुरपाल भा० लाछी पुत्र गांगकेन पित्रो ० श्री शांतिनाथ बिबं का० प्र० श्री आमदेवसूरिभिः
सं० १४१३ वर्षे जेठ सुदि ६.
सं० १३४६ भू०
( १३८० ) श्रीपार्श्वनाथजी ( ताम्रमय )
संघे.
१८२
( १३८१ )
श्री पार्श्वनाथजी
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श्री वासुपूज्यजी का मन्दिर
पाषाण प्रतिमा के लेख
(गर्भगृह) (१३८२)
श्री पार्श्वनाथजी संवत् ११५५ उ ।। मटद वि ५ संघे श्री देवसैन संज्ञद्वई फामश व दादुसा..."मोगवौन कारितं संघारकट गृहे केवं जिनालयंमि
( १३८३)
श्री पार्श्वनाथजी संवत् ११५५ उ ।। मटद वि ५ संघे श्री देवसेन संज्ञद्वई फामस व दादुसा........ जोगवौन कारितं संघारकट गृहे केवं जिनालयंमि
(१३८४)
चार पादुकाओं पर सं० १८५० मि० ज्येष्ठ सुदि ६ तिथौ श्री वृहत्खरतर गच्छेश श्री जिनचन्द्रसूरि विजय राज्ये श्री बीकानेर वास्तव्य श्री ...........युगप्रधान गुरु पादन्यास कारिता प्रतिष्ठापिताश्च श्री ।। श्री जिनदत्त सूरीणां । श्री जिनकुशल सूरिणां । श्री जिनचन्द्रसूरीणां । श्री जिनसिंह सूरिणा ॥
दाहिनी ओर देहरी में
( १३८५) सं० १९०५ रा वर्षे मि । वैशाख सुदि १५ तिथ गुरुवासरे श्री बीकानेर नगरे श्री वासुपूज्य जिन बिंबं प्रतिष्ठितं च बृहत्खरतर भट्टारक गच्छेश जं० यु० प्र०। श्री जिनहर्षसूरि तत्पट्टालंकार जं। यु । प्र । भ । श्री जिनसौभाग्य सूरिभिः कारा । ह्वा। को० श्री मदनचंदजी सपरिवार युतेन स्वश्रेयसे॥
यी ओर देहरी में
(१३८६)
श्री शीतलनाथजी संवत् १६०४ वर्षे प्रथम ज्येष्ठ कृष्ण पक्षे ८ तिथौ शनिवासरे श्री शीतलजिन बिंबं प्रतिष्ठितं बृहत्खरतर भट्टारक गच्छे जं । यु । प्र। भ । श्री जिनसौभाग्य सूरिभिः समस्त श्री संघेन स्वश्रेयो)
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
१८३
"""""मदारक श्री.....
सं० १५४८ का वैशाख सुदि ३....."
( १३८८ )
श्री चन्द्रप्रभ स्वामी सं० १५४८ वरखे वैसाख सुदि ३ श्री मूल संघे भट्टारक जी श्री..... चन्द्रप्रभ
धातु प्रतिमाओं के लेख
(१३८६ )
मूलनायकजी श्री वासुपूज्यादि चौवीशी सं० १५७३ वर्षे फाल्गुन बदि २ रवौ प्राग्वाट जातीय महं० बाघा भार्या गोगी पुत्र मं० लाधा भार्या माणिक दे पुत्र सं० कर्मसीकेन भार्या रां० कसमीर दे पुत्र अढमल्ल गढमल्लादि कुटुंब युतेन स्वश्रेयोथं श्री वासुपूज्य बिंबं चतुर्विशति पट्ट युतं कारितं प्रतिष्ठितं तप गच्छे श्री सोमसुन्दर सूरि संताने श्री कमल कलश सूरि पट्टे श्री जयकल्याण सूरिभिः श्री रस्तु ।।
(१३६०)
श्री पार्श्वनाथजी सं० १४५६ वर्षे माघ सुदि १३ शनौ उप० छाजहड़ गोत्रे सा धांधा पु० भोजा भा० पद्मसिरि पु० मलयसी भा० सूहब पु० मना भा० देवल पु० रत्ताकेन आत्म श्रेयसे श्री पार्श्वनाथ बिंबं कारितं पल्लीवाल गच्छे प्रतिष्ठितं श्री शांतिसूरिभिः॥
( १३६१)
श्री सुपार्श्वनाथजी सं० १६२२ वर्षे वैशाख सुदि ३ सोमवारे उपकेश वंशे राखेचा गोत्रे साह आपू तत्पुत्र साह भाडाकेन पुत्र सा० नींबा माडू मेखा । हेमराज धनू । श्री सुपार्श्व बिंब कारापितं श्री खरतर गच्छे श्री जिन माणिक्य सूरि पट्टाधिप श्री जिनचन्द्र सूरिभिः प्रतिष्ठितं शुभमस्तु ।
(१३६२)
श्री शान्तिनाथजी सं० १४५७ वैशाख सुदि ३ शनौ उपकेश ज्ञा० भरहट गो० व्य० देसल भा० देसलदे पु० भादा मादा हादाकैः भ्रातृ देदा श्रे० श्री शांति बि० का० उपकेश ग० ककुदाचार्य सं० प्र० श्री देवगुप्त रिभिसू॥
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१८
बीकानेर जैन लेख संग्रह
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AM.nnn...-.ar.
श्री चिन्तामयिा पार्श्वनाथजी सं १६०१ व० ज्येष्ठ सु०८ श्री अञ्चल गच्छे वा० वेलराज ग० शि० उपा० श्री पुण्यलब्धि शि० श्री भानुलब्धि उपाध्यायै स्वपूजन श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथः
(१३६४) सं० १६३४ श्री मूलसंघे ......................।
(१३६५) सं० १५६३ वर्षे आषाढ़ सुदि ३ रवौ श्री सीरोही नगर वास्तव्य हरिणगो उवएस ज्ञातीय सा० घडसी भार्या लीलादे पु० तोला भा० तारादे पु० श्रीवंत सदारंग सं० तोला स्वपुण्यार्थ श्री पद्मप्रभ बिबं प्र० श्री पल्लीवाल गच्छे भ० श्री महेश्वर सूरिभिः॥
( १३६६) सं० १५४६ वर्षे फा० १० १० रवौ प्राग्वाट सं० साका भा० सूरिमदे पु० टापरा सा० तारादि पुत्र सूरादि कु० यु० स्वश्रेयसे श्री आदिनाथ बिंब का० प्र० सपा पक्षे श्री गच्छराज श्री सुमति साधु सूरिभिः॥ श्री॥
(१३६७ }
धातु के यंत्र पर लि ! पं । लालचंद सं० १८४३ व ! मिति आसोज सुदि पञ्चम्यां ।। ह सेठ खेतसी
( १३६८ )
यंत्र पर सं० १८६१ म० आ। सु७
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
श्री चिन्तामणिजी के मूलनायक प्रतिष्ठापक दादा श्री जिनकुशलसूरि मूर्ति (सं० १४८६ मालपुरा)
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
श्री ऋषभदेव जिनालय के शिखर गुम्बज
मूलनायक श्री ऋषभदेवजी (सं० १६६२ श्री जिनचन्द्रसूरि प्रतिष्ठित)
श्री ऋषभदेव जिनालय का शिखर
युगप्रधान श्री जिनचंद्रसूरिजी मूर्ति सं० १६८६ श्री जिनराजसूरिजी प्रतिष्ठित, ऋषभदेव जिनालय Gyanam'
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श्रीश्रदयभदेवजी का मन्दिर ( नाहटों की गुवाड़)
पाषाण प्रतिमाओं के लेख
( १३६६)
मूलनायक श्री ऋषभदेवजी १ ॥ संवत् १६६२ वर्षे चैत्र पदि ७ दिने। श्री विक्रमनगरे । महाराजाधिराज महाराजा श्री
रायसिंह जी विजयराज्ये।। २ श्री विक्रमनगर वास्तव्य खरतर सकल श्री संघेन श्री आदिनाथ विधं कारितं प्रतिष्ठितं श्री
गुरूपदेशादेव यावजीव पाण्मासिक जीवामारि प्रवर्तक सकल जैन ३ सम्मत श्री शत्रुजयादि महातीर्थ कर मोचन स्वदेश परदेश शुल्क जीजियादि कर निवर्तन दिल्लीपति सुरत्राण श्री अकबर साहि प्रदत्त युगप्रधान विरुदाधारैः संतुष्ट साहि दत्ताषाढीया सदमारि स्तंभ४ तीर्थीय समुद्र जलचर जीव जात संरक्षण समुद्भूतप्रभूत यश संभारः वितथ तया साहिराज
समक्षं निराकृत कुमति कृतोत्सूत्रासत्यवचनमय प्रवचनपरीक्षादि शामा व्याख्यान विचारैः विशिष्टः श्वेष्ट मंत्रादि प्रभा५ व प्रसाधित पंनदीपति सोमराजादि यक्ष परिवारैः श्री शासनाधीश्वर षर्द्धमान स्वामी पट्ट प्रभाकर पंचम गणधर श्री सुधर्म स्वामी प्रमुख युगप्रधानाचार्याविच्छिन्न परंपरायात् श्री
चन्द्रकुलाभरण । दुर्लभराज मुखो६ पलब्ध खरतर विरुद श्री जिनेश्वरसूरि श्री जिनचन्द्रसूरि नवांगीकृत्तिकारक स्तंभनक पार्श्वनाथ प्रतिमाविर्भावक श्रीअभयदेवसूरि श्रीजिनवलभसूरि श्रीजिनदत्तसूरि पट्टानुक्रमसमागत सुगृहितनामधेय श्री श्री श्री७ जिन माणिक्यसूरि पट्ट प्रभाकरैः सदुपदेशादादि मएव प्रतिबोधित सलेम साहि प्रदत्त जीवाभय धर्म प्रकरैः। सुविहित चक्रचूड़ामणि युगप्रधान श्री जिनचन्द्रसूरि पुरंदरैः। शिष्य श्री मदाचाय जिनसिंहसूरि ॥ श्री८ समयराजोपाध्याय बा० हंसप्रमोद गणि ॥......सुमतिकल्लोल गणि वा० पुण्यप्रधान गणि... ____ सुमतिसागर प्रमुख सकल साधु संघ सपरिकरैः श्री आदिनाथ बिंब ।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
( १४०० )
श्री अजितनाथजी १ श्री विक्रमनगरे महाराजाधिराज महाराजा श्री रायसिंह जी विजयराज्ये २ श्रा० जयमा का० प्रति० श्री खरतर गच्छे श्री पंचनदी पतिसाधकैः श्री सलेमसाहि प्रतिबो
धफैः श्री ३ जिनमाणिक्यसूरि पट्टप्रभाकर युगप्रधान श्री श्री श्री जिनचन्द्रसूरिभिः शिष्य आचार्य श्री
जिनसिंह ४ सूरि श्री समयराजोपाध्याय वा० पुण्यप्रधान गणि प्रमुख साधु संघ युतैः पूज्यमान
(१४०१)
श्री सुपार्श्वनाथ जी श्री खरतर गच्छे ।। राजाधिराज श्री रायसिंह जी राज्ये। श्रा० रंगादे कारितं प्रतिष्ठितं श्री जिनमाणिक्यसरि पट्ट प्रभाकर युगप्रधान श्री जिनचन्द्रसूरिभिः शिष्य आचार्य श्री जिनसिंहसूरि श्री समपराजोपाध्याय वा० पुण्यप्रधान गणि साधु युतैः चिरनंदतु ॥
श्री अजितनाथजी सं० १६६२ वर्षे चैत्र वदि ७ दिने श्री अमरसर । वास्तव्य श्रीमाल ज्ञातीय वउहरा गोत्रे सा० अचलदास पुत्र सा० थानसिंघ भार्या सुपियारदे नामिकया पुत्र ऋषभदास सहितया अचलदास पुत्री मोतां सहितया च श्री श्री अजित बिंबं कारितं प्रति० श्री गुरूपदेशादेव यावज्जीव षाण्मासिक जीवामारि प्रवर्तकः श्री दिल्लीपति सुरत्राणेन प्र० श्री खरतर गच्छे श्री अकबर साहि दत्त युगप्रधान विरुदैः साहिदत्ताषाढीयाऽष्टान्हिकामारि स्तम्भ तीर्थीय जलचर जीव रक्षण यश प्रकरैः श्री जिनमाणिक्यसूरि पट्टे युगप्रधान श्री जिनचन्द्रसूरिभिः आ० श्री जिनसिंह सूरि श्री समयराजोपाध्याय वा० पुण्यप्रधान प्र० सा० संघ युतैः
(१४०३)
श्री सुपार्श्वनाथी __ सं० १६६२ वर्षे चैत्र वदि ७ दिने श्री विक्रमनगरे राजाधिराज राजा श्री रायसिंह जी राज्ये श्री खरतर गच्छे दिल्लीपति सुरत्राण श्री मदकबर साहि प्रदन्त युगप्रधान विरुद प्रवरैः सन्तुष्ट साहि दत्ताषाढीयाऽष्टान्हिका सत्का सदमारि स्तम्भ तीर्थीय समुद्र जलचर जीव संरक्षण संजात यश प्रकरैः स्वेष्ट मंत्रादि प्रभाव प्रसाधित पंचनदीपति यक्ष निकरैः श्री शत्रुजय कर मोचकैः सदुपदेश प्रतिबोधित श्री सलेम शाहि प्र० श्री जिनमाणिक्यसूरि पट्टे युगप्रधान श्री जिनचन्द्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं कारितं च वा० मन्त्री कान्हा भार्या कुसुम्भदे श्राविकया। श्री सुपार्श्व विबं चिरं नन्दतु ॥
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
(१४०४)
श्री मुनिसुव्रत जी सं० १६६२ वर्षे चैत्र वदि ७ दिने श्री विक्रमनगरे राजाधिराज महाराजा श्री रायसिंहजी राज्ये श्री स्मरतर गच्छे श्री मदकबर साहि प्रदत्त युगप्रधान विरुद प्रवरैः सन्तुष्ट साहिदत्ता षाढीयाऽष्टाह्निका सदमारि स्तंभ तीर्थीय समुद्र जलचर जीव संरक्षण संजात यश प्रकरः श्री शत्रुजयादि समस्त तीर्थकर मोचकैः श्री सलेम साहि प्रतिबोधकैः सदेन युगप्रधान श्री जिनचन्द्र सूरिभिः प्र० का० को० माना भार्या महिमा दे श्राविकया श्री मुनिसुव्रतस्य बिंबं का० पूज्यमानं चिरनन्दतु ॥५॥
(१४०५)
श्री वासुपूज्य जी सं० १६६२ वर्षे चैत्र वदि ७ दिने डा. हेमराज भार्या दाडिम दे नामिकया का० श्री वासुपूज्य विबं प्र० श्री खरतर गच्छे। दिल्लोपति श्रीअकबरशाहि प्रदत्त युगप्रधान पद प्रवरैः श्री शत्रुजयादि महातीर्थ करमोचकैः श्री सलेमशाहि प्रतिबोधकैः ।। श्री जिनमाणिक्यसूरि पट्टे युगप्रधान श्री जिनचंद्रसूरिभिः ।
(१४०६)
श्री शीतलनाथ जी सं० १६६२ वर्षे चैत्र वदि ७ दिने श्रे० पीथाकेन श्रे नेतसी पासदत्त......पोमसी । पहिराज प्र. सहितेन श्री शीतल बिंब का०प्र० श्री खरतर गच्छे श्री जिनमाणिक्यसूरि पट्टे युगप्रधान श्री जिनचंद्रसूरिभिः॥
(१४०७)
श्री महावीर स्वामी ___ सं० १६६२ वर्षे चैत्र वदि . बो० मंत्री अमृत भार्या लाछल दे श्राविका पुत्र भगवानदास सहितया महावीर बिंबं कारितं प्रति० श्री खरतर गच्छे श्री जिनमाणिक्यसूरि पट्टे युगप्रधान श्री जिनचंद्रसूरिभिः
(१४०८)
श्री चंद्रप्रभ स्वामी सं० १६६२ वर्षे चैत्र वदि ७ दिने गणधर गोत्रे सं० कचरा पुत्र सा० अमरसी भार्या अमरादे श्राविकया पुत्र आसकरण अमीपाल कपूर प्रमुख परिवार सहितया श्री चन्द्रप्रभ बिंचं प्रतिष्टितं दिल्लीपति श्री अकबर साहि दत्त युगप्रधान विरुदैः सदाषाढ़ियाऽष्टान्हिकादि षण्मासिक जीवामारि प्रवर्तकः श्री शत्रुजयादि तीर्थ कर मोचकैः पञ्च नदी साधकैः श्री खरतर गच्छे राजा श्री रायसिंह राज्ये । श्री जिनमाणिक्यसूरि पट्टे युगप्रधान श्री जिनचन्द्रसूरिभिः शिष्य आचार्य श्री जिनसिंहसूरि श्री समयराजोपाध्याय वा० पुण्यप्रधान प्र० युतैः वा० हंसप्रमोद नोति । चिरं नंदतु ॥ श्री।।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
( १४०६ ) श्री मुनिसुव्रत स्वामी
सं० १६६२ वर्षे चैत्र वदि ७ दिने लिग्गा गोत्रे मं० सतीदास भार्या सिन्दूर इरस्मदे श्राविका पुत्र रत्न सं० सूरदास सहिताभ्यां मुनिसुव्रत स्वामी बिंबं कारितं प्रतिo Here साहि प्रदत्त युगप्रधान विरुदः सं० सिंदूर दे श्रा० हरखम दे का श्री खरतर गच्छे महाराजाधिराज राजा रायसिंह जी राज्ये श्री जिनमाणिक्यसूरि पट्टे युगप्रधान श्री जिनन्द्र सूरिभिः पूज्यमानं रिनंदतु । बा० पुण्यप्रधानोनोति
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( १९४१० ) श्री विमलनाथ जी
सं० १६६२ वर्षे चैत्र वदि ७ दिने को० कपूर भार्या कपूर दे श्राविकया श्री बिमळनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्टितं श्री खरतर गच्छे दिल्लीपति सुरत्राण श्री अकबर साहि दत्त युगप्रधान विरुव प्रवरैः साहि दत्ताषा० श्री सलेम साहि प्रतिबोधकैः श्री जिनमाणिक्यसूरि पट्टे युगप्रधान श्री जिनचन्द्र सूरिभिः
( १४११ ) श्री सुपार्श्वनाथजी
सं० १६६२ वर्षे चैत्र वदि ७ दिने सा० कमा भार्या करमादे श्राविकया श्री सुपार्श्व बिबं कारितं प्रतिष्ठिलं दिल्लीपति श्री अकबरसाहि दत्त युगप्रधान विरुः श्री शत्रुंजयादि तीर्थकर मोकैः सलेम साहि बो० प्र० श्री खरतर गच्छे श्री जिनमाणिक्यसूरि पट्टे युगप्रधान श्री जिनन्द्रसूरिभिः आर्य श्री जिनसिंहसूरि श्री समयराजोपाध्यायैः वा० पुण्यप्रधान प्र० युतैः
( १४१२ ) श्री नेमिनाथ जी
सं० १६६२ वर्षे चैत्र वदि ७ दिने बो० गोत्रे सिन्धु पुत्र छाडण भार्या लीलमदे कारित नेमि बिंबं प्र० श्री अकबर साहिदत्त युगप्रधान बिरुवै श्री खरतर गच्छे श्री जिनमाणिक्यसूरि पट्टे युगप्रधान श्री जिनचन्द्रसूरिभिः वा० पुण्यप्रभानोति ॥
( १४१३ ) श्री पार्श्वनाथ जी
भे० हरखा भर्या हरखमदे श्राविकया भे० नेतसी जेतश्री प्रतिष्ठितं श्री खरतर गच्छे श्री जिनमाणिक्य सूरि पड़
सं०] १६६२ चैत्र वदि ७ दिने सपरिवार • सहितया श्री पार्श्व बिंबं युगप्रधान श्री जिनन्द्रसूरिभिः
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
( १४१४ ) श्री सुमतिनाथ जी
सं० १६६२ वर्षे चैत्र बदि ७ दिने कूकड़ चो० सुरक्षाण भार्या सुरताणदे भाविकमा पुत्र वर्द्धमान प्रमुख सहितया श्री सुमति बिंबं का० प्रति० श्री खरतर गच्छे श्री साहिदत्त युगप्रधान बिरुः । श्री जिनमाणिक्यसूरि पट्टे युग० श्री जिनचंद्रसूरिभिः
( १४१५ ) श्री पुंडरीक स्वामी
|| सं० १६६४ वर्षे फागुण यदि ७ दिने राखेचा गोत्रीय सा० करमचंद भार्या सजनादेव्या श्री पुण्डरीक बिषं फारितं प्रतिष्ठितं श्री जिनराजसूरिराजैः
१८६
( १४१६ ) श्री आदिनाथ जी
सं० १५४८ वर्षे वैशाख सुदि ३ मूलसंघे भट्टारक श्री श्री श्री जिनचंद्रदेव साह जोबराज पापरीबालप्रणमत सदा श्री संघ....... . राज.........
( १४१७ )
सं० १६६४ फागुण बदि७ सोमे । चोपड़ा गोत्रीय मंत्रि खीमराज पुत्र नेढा ( मेहा १ ) भार्या जीबादेव्या पुत्ररत्न नरहरदास युतया श्री सुविधिनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं युगप्रधान श्री जिनराजसूरिभिः
( १४१८ ) श्री पार्श्वनाथ जी
|| सं० १८८७ वर्षे आषा । सु । १० श्री पार्श्वनाथ बिंबं नाइटा हठीसिंहेन कारितं प्रति० यु० भ० श्री जिनहर्षसूरिभिः
( १४१६ )
नीले रंग की पाषाणाप्रतिमा पर
सं. १६३१ वर्षे ! वै । सु । ११ वि । सोमे । श्री वर्द्धमान जिन बिंबं प्र । भ । श्री जिम हंससुरिभिः । गो । ज्ञानचंद जी गृहे भार्या रूपा कारितं । बीकानेरे ।
( १४२० ) श्री सुपार्श्वनाथ जी
सं० १६६५ वर्षे मार्गशिर बदि ४ गुरुवारे खरतर गच्छे विक्रमपुरे श्रा नाथस्य कायोत्सर्ग सू० प्रतिमा कारिता प्रतिष्ठिता
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या श्री सुपा
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१६०
बीकानेर जेन लेख संग्रह
(१४२१ ) विजय सेठ विजया सेठाणी के पाषाण पादुकाओं पर संवत् १९३१ रा वर्षे मि०। प्रथम आषाढ़ बदि ६ तिथौ सोमवासरे विजय सेठ विजय सेठाणी चरण न्यास प्रति० भ० श्रीजिनहंससूरिभिः वृ० खर। भ० गच्छे । गो। ज्ञानचंद जी कारापितं स्व श्रेयार्थे ।
(१४२२ )
श्री स्थूलिभद्र जी के चरणों पर सं० १९३१ व। मि । वैसु ११ ति० ! श्री स्थूलिभद्र जी ।। बृहत्खरतर गच्छे भ० श्री जिनहंससूरिभिः गो० ज्ञानचंद जी कारितं श्रेयोर्थम् ।। ॥ मूल गर्भगृह के बाहर बाएं तरफ आले में ॥
( १४२३)
__ श्री गौतम स्वामी की मूर्ति पर ॥ सं० १६६० फागुण बदि ७ दिने को० ठाकुरसो भार्या ठकुरादे श्री गौतम गणधृद्बिबं कारितं प्रतिष्ठितं यु० श्री जिनराजसूरिभिः
( १४२४ )
श्री जिनसिंहसूरि के चरणों पर संवत्.... ( १६८६ चैत्र बदि ४ दिने युगप्रधान श्री जिनसिंहसूरिणां पादुके कारिते जयमा श्राविकया भट्टारक युगप्रधान श्री जिनराजसूरिराज ....... ॥ मूल गर्भगृह के बाहर दाहिने तरफ आले में ।
(१४२५)
त्री जिनचन्द्रसूरि मूर्ति पर . सं० १६८६ वर्षे चैन बदि ४ दिने श्री खरतर गच्छाधीश्वर युगप्रधान श्री जिनचंद्रसूरीणां प्रतिमा का० जयमा श्रा० युगप्रधान श्री जिनराजसूरिराजः । - गर्भगृह के बाहर काउसग्ग ध्यानस्थ मूर्तियों पर
(१४२६ )
श्री भरत प्रतिमा ॥ संवत् १६८७ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १० भौमे उत्तराफाल्गुन्यां श्री खरतर गच्छे श्री भरत चक्रभृत महामुनि बिंब कारितं समस्त श्री संघेन प्रतिष्ठितं श्री जिनराजसूरिभिः
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
१६ (१४२७)
श्री बाहुबलि प्रतिमा न ॥ संवत् १६८७ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १० दिने भौमे उत्तराफाल्गुन्या महाराजाधिराज श्रो सूर्यसिह जी विजयि राज्ये श्री खरतर गच्छे श्री बाहूबलि बिंबं कारितं श्री संघेन प्रतिष्ठितं श्री जिनसिंहसूरि पट्टालंकार युगप्रधान श्री जिनराजसूरिभिराचंद्राक्क नंदतु ।।
मूल गुंभारे में प्रभु के सन्मुख हस्तिपर
(१४२८
माता मरुदेवी मूर्ति सं० १६८६ वर्षे । घेवर पृष्टेऽरोहिते श्री मरुदेवी प्रतिमा कारिता चोपड़ा जयमा श्राविकया प्रतिष्टिता.....................'श्री जिनराजसूरि राजैः
। १४२६ ।
भरत प्रतिमा श्री भरत प्रसिमा कारिता जयमा श्रा० प्रति० श्री जिनराजसूरिभिः ।।
धातु प्रतिमाओं के लेख
( १४३०) संवत् १४८७ मार्गसर व० १ उपकेश ज्ञा० लुकड़ गोत्रीय सा० देपा भा० कमलादे पु० पाल्हाकेन भा० पाल्हणदे स्व भ्रातृ साः रामादि कुटुंब युतेन स्व श्रेयसे श्री श्रेयांस बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीसूरिभिः
( १४३१) संवत् १६०६ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १२ दिने बुचा गोत्रीय सा० लखमण बु (? पुत्र सीमा जयता अरजुन सीहा परिवार सहितेन पुण्याथं श्रा कुंथनाथ बिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्री जिनमाणिक्यसूरिभिः खरतर गच्छे।
(१४३२) संवत् १६३८ वर्षे माह सुदि १० दिने श्री उकेश वंसे । छाजहड़ गोत्रे सा० चाचा तत्पुत्र सा० अमरसीकेन कारितं श्री अजितनाथ बिंबं प्रतिष्ठितं खरतर गच्छे श्री जिनचंद्रसूरिभिः
॥सं० १५०३ ज्येष्ठ सुदि ११ जाइलवाल गोत्रे। सं० खीमा पुत्रेण । सं० हमीरदेवेन स्वधर्मपत्नी मेघी पुण्यार्थ श्री विमलनाथ बिबं का० प्र० तपा भट्टारक श्री पूर्णचंद्रसूरि पट्टे श्री हेमहंससूरिभिः ॥ श्री ५दोनों तरफ परिकर में मूर्तियों पर ब्राह्मी-सुन्दरी खुदा है।
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१६२
बीकानेर जैन लेख संग्रह
(१४३४) ॥ सं० १५३४ वर्षे आषाढ़ सुदि १ गुरौ सत्यक शाखायां सा० भोला भा० भावलदे सुत कुंभा भा० कउतिगदे पुत्र डूंगरादि आत्म पुण्यार्थ श्री धर्मनाथ विवं कारिसं प्र० पूर्णिमा पक्षीय भ० श्री जयप्रभसूरि पट्टे श्री जयभद्रसूरिभिः
(१४३५) सं० १५०६ वैशाख सुवि ३ शनौ श्रीमाल झाती सं० दरपाल भा० लीली सुत सं० जणकेन पिनो श्रेयसे श्री श्री नमिनाथ बिवं कारापितं श्री पूर्णिमा पक्षेश प्रतिष्ठितं श्री साधुरनसूरीणा मुपदेशेन चउगामा।
॥सं० १५०७ वर्षे ज्येष्ठ सुदि २ दिने उकेश वंशे संखवालेचा गोत्रे कोचर संताने सोना सांगा पुत्र सा० वीरम श्राद्धेन भार्या करमादे पुत्र पदमा पीथा सहितेन पुण्यार्थं श्री शांतिनाथ विध कारि० प्रति० श्रीखरतर गच्छेश श्री जिनराजसूरि पट्टालंकार श्री जिनभद्रसूरिभिः ।।
(१४३७) १०॥ सं० १४६३ वर्षे फाल्गुन वदि १ बुधे उकेश वंशे श्रेष्ठि गोत्रे रे मम्मण संताने श्रे० नरसिंह भार्या धोरिणिः । तयोः पुत्र भोजा हरिराज सहसकरण सूरा महीपति पौत्र गोधा इत्यादि कुटुंबं ॥ तत्र श्रे० हरिराजेन आत्मनस्तथा भार्या मेधू श्राविकयाः पुत्री कामण काई प्रभृति संतति सहिताया स्व श्रेयसे श्री आदिनाथ बिंबं कारितं खरतर गच्छे श्री जिनभद्रसूरिभिः प्रतिष्ठितम् ।।
(१४३८) ॥ सं० १५७१ वर्षे माहा सुदि १ रखो। राजाधिराज श्री नाभि नरेश्वर माता श्री मरुदेवा सत्पत्र श्री। श्री। श्री ॥ श्री ।। श्री। आदिनाथ वि कारितं सेवक धोरा संघाभिधानेन । फर्म झयार्थ ॥ श्री ।। भी शुभं भवतु ।। नडुलाई वास्तव्य ।।
(१४३६)
चौवीसी सह कुंथुनाथ सं० १५३६ वर्षे फागुन सुदि ३ रविवारे लि० गोत्रे सं० सीहा पुत्र सं० पिमपाल भार्ये खीम श्री भोजाही पुत्र पासदत्तेन पितु पुण्यार्थे श्री कुंथनाथ किंवं कारितं प्रतिष्ठितं रुद्रपल्लीय गच्छे श्री देवसुन्दरसूरिभिः
( १४४०)
पार्श्वनाथ-छोटी प्रतिमा संवत् १५३७ वर्षे बैशाख सुदि १४ रवौ खंडलेवाल स बत नि रा स भ ड वि म क रास लि
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
(१४४१) सं० १५२७ माघ वदि ७ लासवा० प्रग्बाट व्य० मोकल.......'केन भ्रातृ गिहंदु भा० राणी जन प्र० कुटुब युतेन श्री विमलनाथ बिषं कारितं प्र. तपागच्छेश श्री रमशेखरसूरि पट्टे श्री लक्ष्मीसागरसूरि पुरंदरैः।।
(१४४२) सं० १४०६ वर्षे फागुन वदि २........"झातीय महं पदमी .... 'नात्वा० गांग श्रेयसे स० आदिनाथ विंबं कारितं प्र० मलधारि श्री राजशेखरसूरिभिः
(१४४३)
अजितनाथ पंचतीथीं सं० १५०...."वर्षे जा (?) सुदि २ दिने ऊकेश वंश लूणिया गोत्रे सा० ऊधरण भार्या माणिक दे तत्पुत्र सा० दूदा सूदा भा० पुत्र सा० तेजा सा० बीकादि परिवार सहिताभ्यां श्री अजितनाथ बिंध कारितं प्रतिष्ठितं श्री खरतर गच्छ श्री जिनराजसूरि पदे श्री जिनभद्रसूरिभिः
(१४४४ )
नवफणा पार्श्वनाथ २० १४६३ माघ सु० १० तुद (१) दिने भट्टारक श्री देवेन्द्रकीर्ति सा। विझेरो ( ? ) भार्या प्योम्हि पुत्र थित्रभू केन
आदिनाथ प्रतिमा संवत् १७६३ वर्षे कारतग सुदि श्री ऋषभ बिंबं ऋषभ
(१४४६ ) देवजो कमल सी
( १४४७) पार्श्वनाथ प्रतिमा लेखमन भा० भाणा
( १४४८ ) पार्श्वनाथ प्रतिमा आसधर पुत्री पनी
(१४.६ )
पार्श्वनाथ प्रतिमा भ० श्री ३ कनक । २ श्री धर्मकीर्सि ३ मदे........
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१६४
बांकानेर जैन लेख संग्रह
(१४५०)
अष्टदल कमल पर ॥सं १६६२ वर्षे । चैत्र वदि ७ दिने बुधवारे ! श्री विक्रमनगरे राजाधिराज महाराज राज श्री रायसिंह जी राज्ये डागा गोत्रे सं० हमीर भार्या कश्मीर दे पुत्र सं० पारसेन भ्रातृ परवत पुत्र प्रतापसी परमाणद। पृथ्वीमल परिवार युतेन श्री नमिनाथ बिबं श्रयोथं कारितं प्रतिष्ठितं । वृहत् श्री खरतर गच्छे। श्री जिनमाणिक्यसूरि पट्टालंकारैः श्री अकबर शाहि प्रदत्त युगप्रधान विरुदैः युगप्रधान श्री श्री श्री जिनचन्द्रसूरिभिः ।। पूज्यमानं । चिरंनंदतु ।।
(१४५१ ) नमिनाथ मूर्ति ( अष्टदल कमल के मध्य में ) डा० पारस नमि बिबं प्रति० युगप्रधान श्री जिनचन्द्रसू (रि)
(१४५२)
आदिनाथ पंचतीर्थी पर ___A६० ॥ सं० १६२७ वर्षे शाके १४६२ प्रवर्त्तमाने पौष मासे शुक्ल पक्षे तृतीया भृगुवासरे श्री माढ झातीय वृद्ध शाखाया ठकर । रत्नपाल सुत ठकर सिहिसू भार्या बा । दली पुत्र ठ। रिखम दास श्री तपा गच्छे श्री विजयदानसूरि तत्पट्टे श्री श्री ५ हीरविजयसूरिभिः प्रतिष्ठितं श्री आदिनाथ बिकं । शुभं भवतु ॥ श्री। श्री। 13 | वचेलवाल गच्छ मु र त ग छ टा व द न ली ( भिन्नाक्षरी लेख)
(१४५३)
लघु जिन प्रतिमा सं० १७२६ व० हरिवस।
(१४५४)
धातु के सर्वतोभद्र यत्रयर सर्वतोभद्र चक्रमिदं प्रतिष्ठितम् । उ० श्री क्षमाकल्याण गणिभिः सं० १८७१ मिते माघ सुदि पंचम्यां श्री बीकानेर नगरे बाफणा रत्नचन्द्रस्य सपरिकरस्य
(१४५५)
हींकार यंत्र पर (१) श्री धरणेन्द्राय नमः भ० श्री रत्नप्रभसूरयः नाभिः राजा पेरावण (२) गोमुख यक्षः ।। गौतम स्वामी । जिन पादुका ॥ दापि..... दक्षणावर्त (३) पेरावण श्री पद्मावत्यै नमः श्री सर्वानन्द सूरिः ॥ मरुदेवीः ॥ श्री रुद्रपञ्चीय गच्छे उ) श्री आणंदसुन्दर शि० उ० चारित्रराजेन (४) वा० श्री देवरम ॥ चक्रेश्वरी निधान पट्टः क्षेत्रपालः वरुट्या । सं० १५६६ वर्षे श्राव सु०५ दिने प्र० श्री विनयराजसूरिभिः॥
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वीकानेर जैन लेख संग्रह
१६५
अष्टांग सम्यक् दर्शन यंत्र पर सं० १७३२ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ३ श्री मृ० भ० सुरेन्द्रकीर्ति स्तदानाये खंडेलवा० संगही नरहर दासेन प्रतिष्ठा कारिता सम्मेदसिखरे शुभं भवतु ।।
चांदी के चरणों पर दादाजी श्री जिनदससूरि जी
काण्डक देहरी के लेख
( १४५८ ) स्वस्ति श्री मंगलाभ्युदय सं० १७१३ वर्षे आषाढ़ मा षष्टी तिथौ .. १ युधिष्ठिर पांडु प्र०२ श्री भीम पाण्डव मुनि प्रतिमा ३ श्री अर्जुन पाण्डवे मुनि प्रतिमा ॥४ श्री नकुल मुनि प्रतिमा ।। ५ श्री सहदेव मुनि प्रतिमा ।
( १४५६ )
पाषाण के चरणों पर सं० १६६२ चैत्र वदि ७ दिने श्री धनराजोपाध्याय पादुके
(१४६०)
पाषाण के चरण सं० १६८५ प्रमिते माघ वदि ह दिने बुधवारे श्री खरतर गच्छे। गच्छाधीश श्री जिनराजसूरि विजयराज्ये प्रतिष्ठित ..."हरिस ....... ......
(१४६१)
आदीश्वर पादुका सं० १६८६ वर्षे मारगशि शु........''श्री ॥ बृहत्खरतर गच्छे श्री श्री श्री आदीश्वर पादुका प्रतिष्ठित युगप्रधान श्री ...."जिनराजसूरिभिः श्राविका जयता दे कारिते॥
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?
बीकानेर जैन लेख संग्रह
भाण्डागारस्थ खण्डितमूर्ति व वरणों के लेख
पाषाण प्रतिमा लेखाः
( १४६२ ) श्री शांतिनाथ जी
सं० १६६० फाल्गुण दि ७ श्री शांति बिंबं प्र० श्री जिनराजसू०
सं० १६६२ चैत्र वदि ७ डागा गोत्रे सं० पदमसी भार्या प्रतापदे श्राविकया पुत्र श्री पोमसी सहितया संभव बिंबं कारितं प्रति० खरतर गच्छे युगप्रधान श्री जिनचन्द्रसूरिभिः
सं० १६६४ ज्येष्ठ... 'करापितं ।
सं० १९१३ वर्षे वैशाख
( १४६३ ) श्री संभवनाथ जी
सं० १६०४ प्र० ज्येष्ठ बदि
( १४६४ ) "बिंबं भरापिता गच्छे'
( १४६५) श्री चन्द्रप्रभ प्रतिमा
...प्र० भावदेवाचाम्नाये बड़वाला
के ये दे र ( १ ) कल्याण पणि
( १४६६ )
श्री चन्द्रप्रभ प्रतिमा
। चन्द्रबिंबं प्रति । भ । श्री जिनसौभग्यसूरिभिः ||
( १४६७ )
श्री आदिनाथ जी
।
सं० १९३१ व । मि । वै । सु हंससूरिभिः ना ! केवलचन्द जी पु।
११ । ति । श्री आदि बिंबं प्र० । धृ । ख । ग । भ । श्री जिनकेशरीचन्द जी गृहे भार्याभ्यां कारिते ॥ श्री बीकानेर नगरे
दुकाओं के लेख
( १४६८ )
सं० १७१३ वर्षे मिति माह सुदि १ दिने उपाध्याय श्री विनयमेरुणां पादुके ।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
१६७
(१४६६) सं० १७५६ वर्षे श्रावण बदि ५ दिने शुक्रवारे वृहत्खरतर गच्छे भ० श्री जिनचंद्रसूरि जी शिष्य उपाध्याय श्री उदय तिलक जी गणीनां देवंगत पहुंता पालीमध्ये ।
(१४७०) सं० १७५४ वर्षे आषाढ़ मासे कृष्ण पक्षे दशमी तिथौ शुक्रवारे वाचक श्री विजयहर्ष गणीनां पादुके स्थापिते श्री
(१४७१) सं० १७७५ 40 श्री साध्वी राजसिद्धि गणिनी पादुके कारिते श्व षण ( ? ) श्राषिकाभिः श्रा दी क म र मा......... (१)
( १४७२)
श्री सीमंधरस्वामी की मूर्ति पर __ सं० १६८६ वर्षे चैत्र वदि ४ जयमा श्रा० का० श्री सीमंधर स्वामी प्रतिमा प्र० खरतर गच्छे श्री जिनराजसूरि राज.........।
धातुप्र-तिमाओं के लेख
(१४७३ )
श्री संभवनाथ जी सं० १४८७ मार्गशीर्ष वदि १० शुक्र उपकेश झाति । मूरुया गोत्रे सा० पेथड़ भा० सरसो पु० पाल्हा थेल्हा ऊसा तोलाकै पित्रोः श्रे० श्री संभव बिंबं का०प्र० श्री उपकेश गच्छे श्री ककुदाचार्य संताने श्री सिद्धसूरिभिः ।।
(१४७४ )
श्री संभवनाथ जी सं० १५३६ वर्षे फागुण सुदि ५ दिने श्री उकेश वंशे गणधर चोपड़ा गोत्रे सा० शिवा पुत्र सा० लूणा भार्या लुणादे पुत्र ठाकुरकेन भार्या धाती पुत्र कुंभा लूभादि युतेन श्री संभवनाथ बियं का० प्र० श्री खरतर गच्छे श्री जिनभद्रसूरि पट्टे श्री जिनचंद्रसूरिभिः श्री जेसलमेरु
( १४७५)
श्री महावीर स्वामी सं० १४१४ वर्षे चैत्र सुदि ११ शुक्रे प्रश्वाट ज्ञाति वि वीरम भार्या सुहागदे त्रा० वीरपालान (१) जयतल श्रेयोथं सुत नरसिंहेन श्री महावीर बिंब श्री हर्षतिलकसूरीणा मु । पदे ते स कारितं
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बीकानेर जैन लेखग्रह
(१४७६ )
शांतिनाथ जी ६०॥ सं० १४६३ वर्ष फा० २०१३ उपकेश वंशे दरड़ा दाहड़ सुत सा० डामर पुत्र दरड़ा कुसला द० कीहनाभ्यां सपरिवाराभ्यां आत्म श्रेयसे श्री शांतिनाथ बिंब कारापितं प्रतिष्ठितं स्वरतर श्री जिनभद्रसूरिभिः
(१४७७)
पार्श्वनाथ सं० १३६० वर्षे ज्येष्ठ वदि ११ श्री उपकेश गच्छे चिप्पाड़ (१) गोशे सा० महीधर सु० खाखट सुतैः सा० कोल्हा सा० मोल्हा कुलधर मुसादिभिः पितुः श्रेयसे श्री पार्श्वनाथ का० प्रति० श्री ककुदाचार्य संताने । श्री ककसूरिभिः चिरं नंदतात्
(१४७८) सं० ८५ :१) ज्येष्ठ सुदि : श्री भावदेवाचार्य गच्छे जसा पत्न्या सूहवाभिधा व्रतनया श्रेयोथं कारिता
(१४७६)
पार्श्वनाथ जी सं० १३४६ वर्षे आषाढ वदि १ संडेर गच्छे श्री सहदा भार्या सूहब पुत्र मलसी रावण जमातृ सूहव श्रेयसे श्री पार्श्वनाथ बिवं कारितं प्र० श्रीशालिसूरिभिः
( १४८०)
पार्श्वनाथ १२६५ वर्षे पासाभार्या पदमल देव्याभ पाता श्रेयोथं श्री पार्श्वनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं चैत्र० श्री यदमदेवसूरिभिः
(१४८१) सं०..... मार्ग सुदि. श्री मूल भ श्री जिनचंद्र ........."ईगर त पणमति
(१४८२)
आदिनाथ . . . . . . . .''वर्षे ज्येष्ठ सुदि ७ शुक्रे उप० चादू भा० हीरादे पु० सगर सायराभ्यां पितृ पितृष्यक यसे श्री आदि (जि ) न बिंब कारितं प्र० पिपलाचार्यः श्री वीरप्रभसूरिभिः
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
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(१४८३)
पार्श्वनाथ सं० १२२३ फा० वदि भोमे मं० राकलसुतेन आम्रदेवेन स्व श्रेयोथं श्री पार्श्वनाथ बिबं कारितं प्रतिष्ठितं श्री..... देवसूरिभिः
( १४८४)
चांदी की चक्र श्वरी की मूर्ति पर ॥सं० १८६२ मि । फागण वदि ३ । भ । श्री जिनसौभाग्यसूरिभिः प्रति । गो : श्री दौलतराम जी करापितं॥
(१४८५
पापा के नवपद यंत्र पर संवत् १८७८ वर्षे मिती फागुण वदि ५ दिने सूराणा अमरचंद्रेण सिद्धचक्र कारिसं प्रतिष्ठित च भट्टारक श्री जिनहर्षसूरिभिः श्री उदयपुर नगरे
(१४८६ )
चांदी के चरणों पर सं० १८२८ मिती वैशाख सु० ६ श्री जिनकुशलसूरि जी पादुका गुरुवारे
(१४८७) महो श्री दानसागर जी गणीनां पादुका
(१४८८) पार्श्वनाथ जी की धातु प्रतिमा
डॉमिक साप्या
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श्री ऋषभदेव जी के मन्दिर, नाहटों की गुवाड़ के
अन्तर्गत
श्री पार्श्वनाथ जी का मन्दिर
पाषाण प्रतिमाओं के लेख
( १४८६ )
मूलनायक श्री पार्श्वनाथ जी
स० १५४५ वर्षे आषाढ सुदि ५ गुरौ श्री पार्श्व जिन बिंबं प्रतिष्ठि
( १४६० )
मूलनायक जी के नीचे शिलापट्ट पर
सं० १८२६ वर्षे शाके १६६४ प्रवर्त्तमाने आषाढ़ मासे शुक्ल पक्षे ६ गुरुवासरे स्वात araft नक्षत्रे स्थिते चन्द्र ओस वंशे वेगवाणी गोत्रे सा० श्री अमीचंद जी तस्यात्मज साह श्री वीभाराम जी तस्य भार्या चित्ररंग देव्या मूलताण वास्तव्य भणसाली श्रा ताह ( ? ) चोथमल जी तस्य पुत्री बाई वनीकेन करापितं श्री गौड़ी पार्श्वनाथ बिंबं प्रतिष्ठितं खरतर गच्छाधीश्वर भ० श्री जिनलाभसूरिभिः ।। श्री रस्तुः
सं० २५४६ वर्षे वैशाख सुदि ३
( १४६१ )
( १४६२ ) श्री खरतर गच्छे दिल्लीपति अक बर साहि दस युगप्रधान विरुदैः साहि दत्ताषाडीयाष्टान्हिकामारि स्तंभतीर्थीय जलचर रक्षण संजात यशः प्रक...... श्री जिनमाणिक्यसूरि पट्टे युग प्रधान श्री जिनचन्द्रसूरिभिः । वा० पुण्यप्रधानो नोति ॥
( १४६३ )
श्री खरतर गच्छे श्री जिनमाणिक्यसूरि पट्टे युगप्रधान श्री जिनचन्द्रसूरिभिः । सं० १६६२ वर्षे चैत्र aft ७ दिने दरड़ा अचला भार्या अबला श्राविकया पु० केसा
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
२०१
(१४६४) ........... गोत्रे सा० धर्मसी भार्या..... श्री संभव बिंब प्रति० श्री खरतर गच्छे श्री जिनमाणिक्यसूरि पट्टे युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः
(१४६५ ) प्रतिष्ठितं युगप्रधान श्री जिनराजसूरिभिः
( १४६६ ) श्री धर्मनाथ बिंब कारितं प्रतिष्ठितं.....
( १४६७) सं १६६२ को...."भार्या मना श्राविकयाः श्री खरतर गच्छे श्रीजिनमाणिक्यसूरिभिः....
(१४६८) सं० १६६२ व०...............श्री खरतर गच्छे
(१४६६) सं० १८२६ कार्तिक सुदि ६
(१५००) सं० १६६० 4. यदि ऊ गो० तेज.................. "बिवं का०प्र० श्री जिनराज.......
( १५०१)
सं० १९६० मि । आ ।३ श्री जिनकुशलसूरीणां चरणपादुका प्रति० श्री............
धातु प्रतिमाओं के लेख
( १५०२ )
श्री आदिनाथ चौवीसी सं० १४६५ ज्ये० सु० १४ प्राग्वाट सं० कुंरपाल भा० कमलदे पुत्र सं० रमा भ्रातृ सं० धरणाकेन सं० रना भा० रत्नादे पुत्र लाखा सजा सोना सालिग स्वभार्या धारलदे पुत्र जाजा जावड़ प्रमुख कुटुम्ब युतेन श्री आदिनाथ चतुर्विशतिका पट्टः कारितः प्र० तपा श्रीदेवसुन्दरसूरि शिष्य श्रीसोमसुन्दरसूरिभिः ।। श्री श्री श्री श्री ॥
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बीकामेर जैन लेख संग्रह
(१५०३) सं० १५२३ वर्षे माह सुदि ६ रवौ उप० कूकड़ा गोत्रे सा० मूला भार्या माणिक दे पु० आसा भा० हरखू पु० कीहट सा० आसा आत्म पुण्यार्थ श्री आदिनाथ बिंबं कारापितं प्रतिष्ठिसं श्री सपकेश गच्छे सिद्धसूरि पदे श्री ककसूरिभिः ।।
(१५०४) सं० १५६३ वर्षे माघ सुदि १५ दिने ऊकेश वंशे साउसखा गोत्रे सा० सीहा पुत्र सा० चापाकेन भार्या चांपलदे पुत्र सा० बरसिंह सा० जयता पौत्र रायपाल जाठा पोपा लीबा लालिग प्रमुख परिवार युतेन श्रीशीतलनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्री खरतर गच्छेश श्रीजिनहंससूरोसरा ।। श्रीरस्तुः ।।
(१५०६) सं० १५२७ वर्षे पोष बदि ४ गुरौ श्री सिद्ध शास्त्रायां श्रीमाल झा० मंत्रि सूरा भा० राजू सुत महिराज केन भार्या रमादे द्वि० भार्या जीवणि सुत रामा रमा रूपा सहितेन पितृ मा० पि० नूता भ्रात नारद स्व पूर्वज श्रेयोर्थे आत्म श्रेयसे श्री सुविधिनाथ बिंबं का० प्र० श्री पिप्पल गच्छे श्रीरलदेवसूरिभिः
( १५०६ ) से० १५१३ वर्षे माघ मासे ऊकेश सा० गोसल महगलदे पुत्र सा० कुशलाकेन भा० कस्मीरदे पुत्र चाचा चापा पेथा लाखण लोलादि कु० युतेन निज श्रेयसे श्री मुनिसुत्रत विर्ष का० प्र० सपा गच्छाधिराज श्री रमशेखरसूरिभिः लुकड़ गोत्रे
( १५०७ ) सं० १५२८ वैशाख सुदि ३ प्राग्वाट ज्ञा० श्रे० सोमसी भा० लांबी सुत समरा भा० मटी सुत जीवाकेन भा० लाछी सुत कीकादि कुटम्ब युतेन भ्रातृ जावड़ श्रेयसे श्री मुनिसुव्रत स्वाम बिंबं का० प्र० तपा गच्छेश श्री लक्ष्मीसागरसूरिभिः श्रीः ।
(१५०८) ॥६० ।। सं० १५३६ वर्षे फागुण सुदि ३ दिने नाहटा गोत्रे सा० चौपा भार्या चांपल दे तत्पुत्र सा० भोजा सुश्रावकेण भार्या भरत्यारे पुत्र कर्मसी प्रमुख परिवार सहितेन स्वश्रेयसे श्री सुविधिनाथ बिंब कारि । प्रति० खरतर गच्छ श्री जिनभद्रसूरि पट्टे श्री जिनचन्द्रसूरिभिः ।।
( १५०६ ) १५० पश्नचन्द्र श्रेयोर्थ जोरतदेव जयदेवेन प्रतिमा कारिता सं० १२४३ प्रतिष्ठिता ।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
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( १५१०) सं० १५२५ वैशाख सुदि ६ सौमे श्री श्री वंशे लघु स० दो० बोड़ा भा० अमकू सुत दो० नूमा सुश्रावकेण भार्या नागिणी पुत्र राणा । नरबद परबत भ्रातृ कला सहितेन स्व श्रेयसे श्री श्रेयांसनाथ विंबं कारितं प्रति० श्रीसूरिभिः श्री०
( १५११) सं० १५७२ वैशाख (?) सु०५ सोमे प्राग्वाट ज्ञातीय दो० सीधर भार्या श्रा० ममरी पुत्र दो० गमाकेन भा० पूरी द्वितीय भा० राजलदे यु० श्री धर्मनाथ बिंबं कारितं प्रति० तपा श्री जयकल्याणसूरिभिः ।।
( १५१२ ) ॥ सं० १५०३ मार्ग यदि १० लिगा गोत्रे सा० मोल्हा जगमाल देवा सुतैः । सा । शिवराज डुंगर रेडा नाथू रामा बीजाख्यैः स्व पितृ पुण्यार्थं श्री कुंथुप्रतिमा का० प्र० तपा श्रीपूर्णचन्द्रसूरि पट्टे श्री हेमहंससूरिभिः ॥
( १५१३ ) सं० १५१६वर्षे आषाढ सुदि ३ रवौ प्राग्वाट ज्ञातीय सा० माला सुतेन सा० बाघाकेन सा० शिवा धर्मपुत्रेण भार्या वापू पुत्री जोवणि युतेन स्व श्रेयोर्थ श्री श्रेयांसनाथ बिंबं आगम गच्छे श्री देवरत्नसूरिणामुपदेशेन कारितं प्रतिष्ठितं च शुभंभवतु दुरग०॥
१ सं० १२८७ वर्षे फागुण वदि ३ शुक्र मंडलाचार्य श्री ललितकीर्तिण० पट्टा नदि भा पा जा । ल्हरा ऋषि पूवींधियाः पुत्रेण नाव (?)
(१५१५ ) सं० १४६२ मार्ग वदि ४ गुरौ उ० व्य० देल्हा भा० कामल पुत्र वीपा झांझा करझाभ्यां पितृ मात श्रेय श्री धर्मनाथ बिबं कारितं प्र० मडाहड़ीय श्रीमुनिप्रभसूरिभिः
सं० १५३६ वर्ष माघ सु०६ पो। म ऋक्षसावत गोत्रे सा० नाल्हा भा० महकू जीउ पु० सा० ताल्ट भा० पान्ह ।। पु० तेजा पूना भा० लखी कुटुंछ युते ॥ बिंबं श्रे। श्री आदिनाथ बिंब कारितः प्रतिष्ठितं श्री संडेर गच्छे श्री सालिसूरिभिः देपालपुर ।।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
( १५१७ ) सं० १७६४ मीसो माह सुदि १३ माराठ नगरे मूल म पा म ल व सरस्वती भवे पा श्री महड़े का गा घ तद्वरं आ ग त स कौत्ति त दा म त पी प का ल प्र सी गध रंत पुत्र सा० रमा संघ त दत्र दाल त नमः वखतराम सुरतराम
( १५१८ ) सं० १५४६ वर्षे आषाढ़ सुदि २ शनौ श्री आदित्यनाग गोत्रे सा० सहजा भा० सहजलदे पु० साजण सुरजनाभ्यां पितृ श्रेयसे श्री वासुपूज्य विवं कारितं प्रति० श्री उपकेत गच्छे भ० श्रीककसूरि पट्टे श्रीदेवगुप्तसूरिभिः ।। श्री।।
(१५१६ ) सं० १७७४ माघ सित १३ रखौ सा० सुन्दर सवदासेन श्री चन्द्रप्रभ बिंषं कारितं ।
( १५२०) पार्श्वनाथ जी बरी० मेलही
( १५२१ ) सं० १६६१ श्री पार्श्वनाथ बा० भार्या प्रति । श्री विजयाणदसू
( १५२२) १६६१ श्रा० धन बाई
( १५२३) श्री मूल संघे भ० श्रमचन्द्रोपदेशोतर पं० का श्र | भ । सकना देवेना प्रणमति
सं० १७७६ श्री श्रेस
(१५२५) सं० १८२७ । बै० सु०1 १२ गुढा वास्तव्येन सा० झांझा ऋषभ जिन बिवं कारितं प्रतिष्ठितं च श्री खरतर । भ ।। श्री जिनलाभसृरि २
( १५२६ ) सं० १६ भ० श्री जिनचन्द्र..
( १५२७ ) सा० काम दे पा। प्र
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श्री महावीर स्वामी का मन्दिर
( डागों की गुवाड़)
धातु प्रतिमाओं के लेख
( १५२८ )
श्री सुविधिनाथ जी सं० १५६० वर्षे वैशाख सुदि १० श्रीमाल वंशे कुंकुमलोल गोत्रे मं० शवा भा० हळू पुत्र मं० जीवा भार्यया तेजी श्राविकथा श्री सुविधिनाथ विंबं का० स्वपुण्याचं प्रतिष्टितं श्रीखरतर गच्छे श्रीजिनहंससूरिभिः।
( १५२६ )
श्री शान्तिनाथ जी सं० १५६० वर्षे आषाढ सुदि ५ सोम दिने श्रीप्रभु सोमसुन्दरसूरि दि विदं हं भवति श्रीसऑतिनाथ सुप्रतिष्ठितं भवति सतां ।
{ १५३०)
श्री चन्द्रप्रभ जी __ सं० १४८२ वर्षे माघ सुदि ५ सोमे उपकेश ज्ञासीय सा० रूदा भा० रूपा दे पु० ऊधरण सामल सहितेन श्री चंद्रप्रभ स्वामि बि० का० श्रीबृहद्गच्छे प्र० श्रीकमलचन्द्रसूरिभिः ।
( १५३१)
श्री कुथुनाथ जी ___ सं० १६६४ वर्षे वैशाख सुदि ७ गुरुवारे राजा श्रीरायसिंह विजयराज्ये श्रीविक्रमनगर वास्तव्य श्रीओसवाल ज्ञातीय बोहत्थरा गोत्रीय सा० वणवीर भार्या वीरमदे पुत्र हीरा भार्या हीरादे पुत्र पासा भार्या पाटमदे पुत्र तिलोकसी भार्या तारादे पुत्ररम लखमसीकेन अपर मातृ रंगादे पुत्र चोला सपरिवार सनीकेन श्री कुंथुनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं च श्री वृहत्तरतर गच्छाधिराज श्री जिनमाणिक्यसूरि पट्टालंकार युगप्रधान श्रीजिनचंद्रसूरिभिः ॥ पूज्यमान चिरं नंदतु ॥ कल्याणमस्तु ॥
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बांकानेर जैन लेख संग्रह
( १५३२)
श्री कुंथुनाथ जी सं० १५७० वर्षे माह सुदि ३ दिने ऊकेश वंशे बोहिथहरा गोत्रे सा० ठाकुर पुत्र सा० गोपा भा० गलिमदे पुत्र सा० गुणाकेन भा० सुगुणादे पु० सा० पचहथ सा० चापादि युतेन श्री कुंथुनाथ विंबं का० प्रतिष्ठितं श्री खरतर गच्छे श्री जिनसमुद्रसूरि पट्टे श्री जे (१ जि ) नहंससूरिभिः ।। श्रीबीकानगरे। लिखितं सोनी नरसंघ डंगरणी।
( १५३३ ) संवत् १४५० वर्षे माध वदि सोमे प्राग्वाट झा० महं बागण भार्या साजण दे पुत्र खीमाकेन पुत्र महं० साढा पु० देवसी विजेसी रणसी खाखण सूटादि समस्त पूर्वजानां भियो श्री आदिनाथ मुख्यं चतुर्विशत्यायतनं कारितं । साधुपूर्णिमा पक्षीय श्री धर्मचंद्रसूरि पट्टे श्री धर्मतिलकसरीणामुपदेशेन ।
( १५३४ ) संवत् १५७० वर्ष माघ व. ५ रवौ ऊकेश झातीय दगड़ गोत्रे सहसा भा० मेधी सुत सा० केशवकेन भा० मना समरथ दशरथ सुत रावण प्रमुख कुटुंब युतेन श्री आदिनाथ विबं कारित प्रतिष्टितं रुदलिया गच्छ श्री गुणसमुद्रसूरिभिः ।
(१५३५) सं० १५२६ वर्षे माध सुदि ५ रखौ श्री सूराणा गोत्रे सा० लीला भा० ललतादे पुत्र सा. सुहड़ा भार्या सुहड़ श्री मात्र चाचा युतेन श्री शांतिनाथ विबं का० प्र० श्रीधर्मघाप (१ घोष) गच्छे श्री परशेखरसूरि पं० श्री पद्माणंदसूरिभिः ।
(१५३६)
श्री शीतलनाथ जी सं० १५५८ माह यदि १ सोमे प्रा० शा० व्यव० भीमा भा० रल्लू पुत्र माइया भार्या पहपू देवर खेता सुत पदमा सप० श्रीशीतलनाथ बिबं का० प्र० तपा गच्छनायक इन्द्रनंदिसूरिभिः कषरेणवास।
॥ सं० १५५६ वर्षे पो० सुदि १५ सोमवासरे पुष्य नक्षत्रे विषभ योगे उकेशन्यावी (? ती ) य सा० परबत मा० पाल्हणदेदे पु० पाता ऊदा श्रेय) से पलीवाल गच्छे भ० श्री मोइणसूरिभिः श्री शीतलनाथ विबं कारितं प्रतिष्ठितं ।।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
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(१५३८)
श्री पद्मप्रभ जी ( खंडित) सं० १५३७ ज्येष्ठ १०७ शुक्रे प्राग्वाद ज्ञा० व्य० कांकट भा० रहो सुत जाणाकेन भा० मानू भ्रातृ रूपादि कुटुंब युतेन पितृ श्रेयसे श्रीपाप्रभ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं तपा श्रीलक्ष्मीसागर
(१५३६)
श्री अम्बिका मूर्ति पर सं० १३६०वर्ष वैशाख वदि ११ श्री पल्लीवाल ज्ञातीय पितृ अभयसिंह मात लाछि श्रेयसे 30 मेघलेन अंबिका मूर्ति कारिता!
(१५४०)
सर्वतोभद्र यंत्र पर श्री सर्वतोभद्राख्य दुरितारि विजय यंत्रमिदं का० प्र० च सं० १८६१ मिते ज्येष्ठ सुदि ७२० श्री क्षमाकल्याण गणिभिः
( १५४१ )
सर्वतोभद्र यंत्र पर श्री सर्वतोभद्र नामकं यंत्र मिदं कारितम् । सं० १८६५ मिते कार्तिक वदि ६ प्र! | श्री क्षमाकल्याण गणिभिः
(१५४२)
- श्री सर्वतोभद्र यंत्र पर सं० १८८८ वर्षे मिती भाद्रवा वदि २ दिने हाकम कोठारी हीरचन्द्र जो तत्पुत्र गंभीरचंद्र गृहे सर्वसिद्धिं कुरु २॥ पागण प्रतिमाओं के लेख ( दाहिनी ओर की देहरी में )
( १९४३)
परिकर पर ॥ संवत् ११७६ मार्गसिर यदि ६ श्री मजांगल कूप दुर्भा नगरे। श्री वीरचैत्ये विधौ । श्री मच्छाति जिनस्य विब मतुलं भक्त्या परं कारितं । तत्रासीद्वर कीर्ति भाजनमतः श्री नाटकः पावक स्तत्सूनुर्गुण रत्न रोहणगिरि श्री सिल्हको विद्यते।। ११० तेन तच्छुद्ध वित्तेन श्रेयोथं च मनोरमम् । शुक्लाख्याया निजस्वसु रात्मनो मुक्ति मिच्छता ।।२॥छः ।।
पाषाण प्रतिमाएं गर्भगृह में तीन और देहरी में भी तीन हैं जिन पर लेख नहीं है। यह लेख देहरी के मध्यस्थ प्रतिमा के परिकर के नीचे खदा हुआ है।
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श्री अजितनाथजी का मन्दिर
कोचरों का चौक
पाषाण प्रतिमादि लेखाः
( १५४४ )
शिलापह पर
१ संवत् १८५५ वर्षे शाके १७२० प्रवर्त्तमाने मासोत्तम माघ मासे सित प२ क्षेपंचम्या ५ तिथौ सोमवारे: सकल पण्डित शिरोमणि । पं० । श्री १०८ श्री यश३ यंत विजय जी तत्शिष्य । पं० । श्री ऋद्धिविजयजीद्द्वणि उपदेशात् श्री अजित४ नाथ स्वामिनं जीर्णोद्धारं करापितं श्री तपागच्छे सूत्रधार सूर्यमल सागरमलेन५ महाराजा श्री सूरतसिंह जी राज्ये ॥ कृतं जिनालयं । ३ स्यां सीरोया है ॥ जीर्णोद्धार हुऔ संवत् १६६६
( १५४५ ) बाप के शिलापट्ट पर
१ || ६० || संवत् १८७४ प्रमिते बर्षे मासोत्तम मासे माघ मासे हरिणाचा वद २ द्वितीयायां मंदवासरे श्री अजितनाथ जिन कस्य प्रति मंडप करापितं
३ श्रीसंघेना पं० गुलाल विजय ग । ततिशिष्य पं० दीपविजयोपदेशात् श्री
४ तपा गच्छे। श्री महाराजा श्री सूरतसिंह जी राज्ये सूत्रधार जयसेन कृतं श्री
( १५४६ )
मूलनायक श्री अजितनाथ जी
१ संवत् १६४१ वर्षे मार्ग सित ३ बुधे ओसवाल ज्ञातीय..... ... गोत्रे म....... भा० अमृत दे .क....... मेघामित्र म० मांडण मं०
नाम्न्या पुत्र महाज.....पुत्र..
२ उसी प्रमुख समस्त कुटुम्ब युतया निजात्म श्रेयसे श्री अजितनाथ बिनं कारितं प्रतिष्ठितं च तपागच्छे अतुल वैराग्य.. ......द गुणत पातसाहि श्री अकबरेण गुर्जरदे..
.दी रात्र व साखिल मंडललेषु..
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
( १५४७ )
सं० १६७४ ५० मा० ० १ दिने उ०प्रतिमा कारिता प्रतिष्ठितं.... श्री विजयदेवसूरिभिः
( १५४८ )
सं० १६७४ वर्षे माथ बदि १ दिने श्री.
( १५४६ )
सं० १६७४ वर्षे माघ बदि १ दिने श्री कुंथुनाथ वियं कारिसं
।
( १५५० )
सं० १६०५ वर्षे वैशाख मासे शुक्ल पक्षे ३ । ऋषभ जिन बिंबं कारापितं प्रतिष्ठितं वृहत्वरतर गच्छे श्री जिनसौभाग्यसूरिभिः
( १५५१ )
सं० १६३१ व । मि | वे । सु० ११ ति श्रीसंभव जिन.. ( १५५२ ) श्री हीरविजयसूरि सूत्ति
( १५५३ ) श्री आदिनाथ
२०६
१ || सं० १६६४ वर्षे वैशाख सित ७ दिने सप्तमी दिने । अकबर प्रदत्त जगद्गुरु विरुद धारका २ ॥ भट्टारक श्री होरविजयसूरीश्वर मूर्त्तिः रत्नसी भार्या सुपियारदे नाम्मी श्री विजया ३ ॥ कारिता प्रतिष्ठिता च तपा गच्छे भ० श्री विजयसेनसूरिभिः पं० मेरुविजय प्रणमति सदा धातु प्रतिमा लेखा
( १५५४ ) श्री श्रेयांसनाथ
.. श्रीजि नहंससूरिभिः
॥ ६० ॥ सं० १५५५ वर्षे चैत्र सुदि ११ सोमवासरे ओ० ज्ञातीय नाहर गोत्रे सा० राजा भा० रक्षा दे पु० सा० मालाकेनात्म पुण्यार्थ श्रीआदिनाथ विषं कारितं प्र० श्रीधर्मघोष गच्छे भ० श्री नंदिवर्द्धनसूरिभिः ॥
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सं० १५३६ फा०] सुदि ३ ऊकेश वंशे कुकट शा० चोपड़ा गोत्रे सा० तोला भार्या पंजी पुत्र नाल्हा के० पुत्र देवादि परिवार युतेन श्री श्रेयांस बिंबं स्वपुण्यार्थ का० प्र० खरतर गच्छे श्री जिनमद्रसूरि पट्टे श्री जिनचन्द्रसूरिभिः ||
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
( १५५५ )
श्री धर्मनाथ जी सं० १५३६ वर्षे मार्ग० सु० ५ गुरु उप० हथंडीया गोत्रे सा० लाहा भा० लाछलदे पु० डूंगर भा० करणादे पु० वच्छा आपा पदमा आत्म पुण्य श्रे० श्री धर्मनाथ बिवं कारि० प्रति० अंचल गच्छ श्रीजयकेशरसूरिभिः प्रतिष्ठितं ।
... ( १५५६ )
श्री गौतम ग्वामी ___ सं० १५२३ वर्षे वैशाख सुदि १३ गुरु मन्त्रिदलीय झा० मुंडसोड़ गोत्रे सा० रतनसी भा० श्राविका राऊ सत्पुत्र सा० सूदा भा० श्राविका बाई सूहवदे केन स्वपुण्यार्थ श्री गौतमस्वामि बिर्य का० प्र० खरतर गच्छे श्री जिनसागरसूरि पट्टे श्री जिनसुन्दरसूरि पट्टे श्री जिनहर्षसूरिभिः ।। श्री ।।
( १५५७ )
श्री अजितनाथादि पञ्चतीर्थी संवत् १५६५ वर्षे माष सुदि २ दिने ओसवाल झासीय । लुकड़ गोने सा० लूगा पु० हरा भा० हर्षमदे पु० परड़ा चापा शेषा । चरड़ा भा० चांगलदे। पु० शुभा। सेलहथ समस्त श्रेयसे स्वपुण्यार्य श्री अजितनाथ विंबं कारापितं श्री नाणवाल गच्छे प्रतिष्ठितं श्री सिद्धसेनसूरिभिः॥ तमरी वास्तव्यः॥
( १५५८) संवत् १५१८ वर्षे वैशाख सुदि ३ शनौ व्यव० काजल भा० कमलादे पुत्र लाखा भार्या चंगाई श्री मुनिसुव्रत विंबं कारित प्र० श्री ब्रह्माणीया गच्छे श्री सदअप्रभमुरिमिः ॥ शुभं भवतु ।।
( १५५६ ) ___ सं० १५६६ वर्षे फा० ब० २ सोमे श्री काष्टा संघे न० नरसंघपुरा ज्ञातीय नागर गोत्रे म० रखसी भा० लीला दे पु २ मह। राजपाल म० लहूआ म० राजपाल भा० राजलदे पुत्र १ म. धारा लाफू बाइजी नित्य प्रणमति भ० श्री विश्वसेन प्रतिष्ठाः .
(१५६०) संवत् १५७३ वर्षे माघ बदि २ रवौ श्रीश्रीमाल ज्ञातीय व्य० हेमा भार्या शाणी सुत सुरा भा० रजाई सुत श्रीरंग सहितेन स्वपितृ श्रेयसे भातृ बीरा नमित्तं श्री श्री कुंथनाथ बिंबं कारित श्री नागेन्द्र गच्छे भ० श्री हेमसिंहसूरिभिः ॥ प्रतिष्ठित गुरु काकरचा
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
श्री पार्श्वनाथ जी उ० श्री नयसुन्दर
(१५६२),
श्री पार्श्वनाथ जी सं० १६०० आसाढ़ सु० ६ प्रति । भ । श्री जिनसौभाग्यसूरिभिः कारितं नेमचंद स्वयोथ
( १५६३ ) मं० १६८८ वर्षे फागुण सुदि ८ शनिवासरे श्री काष्ठा संघे माथुरान्वये पुष्कर गणे तदाम्याये भ० जशकोति देवाः तत्प? भ० क्षेमकीर्ति देवा तत श्री त्रिभुवनकीर्ति भ- श्री सहस्रकीर्ति तष्य शिष्यणी अर्जिका श्री प्रतापश्री कुरु-जंगल देशे सपीदों नगरे गर्ग गोत्रे चो० चूहरमल तस्य मार्या खल्ही तस्य पुत्र ८ सुख १ मदूर दुरमू३ परंगह४ सरवण ५ पदमा ६ इन्द्रराज ७ लालचंद ८ । चो० इन्द्रराजस्य भा०४ प्र० सुखो भार्या तस्य पुत्री दमोदरी च द्वितीय नाम गुरुमुख श्रीपरतापश्री तस्य शिष्यणी बाई धरमावती पं० राईसिव द्वितोय शिष्य बाई घरमावती गु० भा० पादुका करापितः कर्मक्षय निमित्त शुभं भवतु ।।
(१५६४)
श्री पार्श्वनाथ जी सं० १५४६ भ० गुणभद्र सा० बोदा०
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श्री विमलनाथ जी का मन्दिर
कोचरों का चौक पाषाण प्रतिमादि लेख संग्रह
|| ॐ विमलनाथाय । १ संवत् १६६४ मि० माघ शुक्ला १३ शनौ पंचा२ शुद्धौ सकल पंडित शिरोमणि भट्टार३ क श्री विजयमुनिचन्द्रसूरि तपा गच्छ सु४ श्रावक कोचर समस्त पूज्यकानां बीकाने५ र नगरे पं० पू० मू० विमलनाथस्य प्रतिष्ठा कोर६ र मनरूपसोतात्मज माणकचंद जी तस्या. त्मज मासकरण जी तत्पुत्र अमीचंद ह८ जारीमल कारितं ।।
मूलनायक श्रीविमलनाथ जी १ ॥६० ॥ सं० १९२१ ना वर्षे शाके १७८६ प्रवर्तमाने शुभकारी माघ मासे शुक्ल पक्षे दिने
गुरुवारे श्री राजनगर वास्तव्य । २ ॥ ओसवाल ज्ञाती वृद्ध शाखाया सेठ श्रीखुशालचंद तत्पुत्र सा० वखतचंद तत्पुत्र सा.
हेमाभाई तत्पुत्र सा० खेमाभाई ।। स्वश्रेयोथं ।। श्री विमलनाथ जी जिन विधं कारापितं । श्री तपागच्छ भ। श्री शान्तिसागरसूरि प्रतिष्ठितं ॥ श्रीरस्तुः ।।
सं० १६१२ वर्षे मिगस (र) वदि ५ बुधवार यंत्र मिदं (१) बाई जड़ावकंवर कारा झवरचंद्राभ्यां कारापितं उपकेश गच्छे भ० देवगुप्तसूरीणां प्रतिष्ठितं च तत् चिरं तिष्ठतु श्रीश्रेयांसनाथस्य श्रीबीकानेर में ...
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बीकानेर जैन लेखसंग्रह
(१५६८ ) संवत् १६०५ वर्ष शाके १ ७० प्रवत्तमाने माघ मासे शुक्ल ५ चंद्रवासरे श्रीमदुपकेश गच्छे कृट शाखायो श्रेष्ठ गोत्रे वैद्य मु० समस्त श्रीसंधन श्री धेयांसनाथस्य प्रतिष्ठा कारापितं श्रीकंवला गच्छे भ! श्री देवगुप्तसूरिमिः ॥ श्री।
( १५६६ )
शास्वत जिन पादुका श्री ऋषभानन जी ॥ चन्द्रानन जी ॥ वारिषेण जी ।। बर्द्धमान जी ।। सं० १९६५ मि० माह सुद १० रविवार ने चरणपादुका स्थापित ।। ४ सास्वता जिन ।।
( १५७० )
एकादश गणधर पादुके सं० १६६५ मि० माह सुद १० रविवार ने चरण पादुका स्थापित श्रीषीर गणधर ११
( १५७: )
१६ सती पादुका सं० १६६५ मि० माह सुद १० रविवार ने चरण पादुका स्थापितं षोडश सती नामानि !
श्री हीरविजयमूरि पादुका ॥ सं० १९६५ मा० सु० ५ शनिवासरे जं० जु० प्र० भ० श्रीहीरविजयसूरीश्वरान् परणपादुका स्थापिता ईस मन्दर जावि वास्त जमी गज २६४ सोरोय सेजमालजी ने मेहता मानमत जी कोचर हस्ते दीवी है श्रीरस्तु ।। कल्याणमस्तु ।।
( १५७३ ) सं० १६६५ मा० सु०५ शनिवासरे श्री पंचम गणाधीश्वर सुधर्म स्वामीनां चरणपादुका स्थापिता ईस मन्दर जी वास्त ज० ग० ६५|-डा० दुलीचंद वा० ज० ग १३८11-01 डा० पूनमचंद चंदनमलाणी री बहु ने दीवी है श्रीरस्तु ॥ कल्याणमस्तु ।।
धातु प्रतिमाओं के लेख
(१५७४ )
श्री वासुपूज्यादि चतुर्विशति सं० १४२२ वर्षे माह वदि १२ भोमे। ओसवाल झातीय बहुरा शाखायो म्यव. शिवा भा० श्राविका राणी पु० खेता भा० ललतादेव्या व्यव० खेतां श्रेयसे आत्म पुण्यार्थ च श्रीवासुपूज्य वि कारितं प्रतिष्ठितं श्री संडरगच्छे भ० श्री ईसरमूरि पट्टे भट्टारक श्रीशालिभद्रसूरिभिः ।।
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श्रीकानेर जा लेख संग्रह
श्री मुनिसुव्रतादि चौवीसी संवत् १४८५ वर्षे ज्येष्ठ वदिहरवी भावसार ज्ञातीय भा० खीमड सत सं० सरा भा० मेघू सुत सं० नापाकेन भा० फली सहितेन पितृ मातृ तथा पितृव्य राम श्रेयोथं श्रीमुनिसुव्रत स्वामिश्चतुर्विशति पट्टः कारितः प्र० श्री पूर्णिक श्रोकमलचंद्रसूरि पट्टे श्रीविमलचंद्रसूरीणामुपदेशेन विधिना श्रावकः । शुभं ।।
( १५७६ )
___ श्री शान्तिनाथादि चतुर्विशति सं. १४७६ वर्षे पोष वदि ४ गुरौ श्रोश्रीमाल ज्ञा० पाटरी वास्तव्य पित. सं. सिंघा मातृ सिंगारदेवि सुतेन सं० सलखाकेन स्व श्रेयसे श्री शांतिनाथादि चतुर्दिशति पट्टः कारितः विधिवप्रतिष्ठित: कल्याणमस्तुः ।
संवत् १५६६ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ११ रखो श्रीश्रीक्षेत्र वास्तव्यः श्रीप्राग्वाट जातीय मं. शिवा भार्या चंपाई सुत मंत्रि सुश्रावक मं० सहसाकेन भ्रातृ सूरा तथा स्व भा० नाकू सुत मांका प्रमुख कुटुंब युतेन श्री आदिनाथ बिंबं श्री आगमगच्छे श्रीपूज्य श्री संयमरत्नसूरि आचार्य श्रीविनयमेरुसूरि सदुपदेशेन कारितं प्रतिष्ठितं चिरंनंदतु ।। श्री ॥
(१५७८ ) स्वस्ति श्री जयोभ्युदयश्च संवत् १४८१ वर्षे माघ सुदि ५ बुधे श्री नागर ज्ञातीय गोठी पतयोः सुत वोरादया भार्या राजूकेन श्री चंद्रप्रभ जीवित स्वामि बिंब निज श्रेयसे कारापितं प्रतिष्ठितं श्री वृद्ध तपागच्छे श्रीरत्नसिंहसूरिभिः।।
(१५७६ ) संवत् १६०३ वर्षे शाके १७६८ प्रवर्त्तमाने माघ मासे कृष्ण पक्षे पंचम्यां भृगुवा० श्री अहमदाबाद वास्तव्य दसा श्रीमाली ज्ञातौ सेठ झवेरचंद तत्पुत्र सेठ गरभोवतदास (?) तद्भार्या तथा बाई अचल तत्पुत्री उजमबाई तेन स्वश्रेयोथं श्री सुविधिनाथ बिबं कारापितं श्री तपागच्छे विज्ञपक्षे प्रतिष्ठितं ।। श्री।।
( १५८०) ॥ ६० ॥ सं० १५०६ वर्षे बोथिरा गोत्रे सा० केल्हणेन भार्या कपूरदे पुत्र सा० पवा भार्या नेना । सा० जयवंत स० जगमाल सा० घड़सी कीकादि यु. श्री धर्मनाथ बिंबं कारितं श्री जिनहंससूरिभिः माह वदि ११
सं० १५०२ वर्षे फाल्गुन वदि २ दिने ऊकेश वंशे फसला गोत्रे सा० आजड़ संताने सा० पना भार्या पनादे पुत्र सा० लोलाकेन भार्या लाखणदे पुत्र सा० छाज तोलादि सहितेन स्वपुण्यार्य श्री शांतिनाथ बिंब कारितं प्र० श्री खरतर गच्छे श्रीमत् श्री जिनसागरसूरिभिः ।।शुभम्।।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
( १५८२ )
संवत १५३० वर्षे माघ वदि २ शुक्रे श्रीश्रीमाल० श्रे० करमा भा० टबकू पुत्र झाइया भा० नाकू पुत्र जीवा साचा माला महराज श्रीराज सहितेन आत्म पुण्यार्थं श्रीमुनिसुव्रत बिब का० प्र० आगम गच्छे भ० श्रीअमररत्नसूरीणामुपदेशेन विधिना ॥ छः || लाडुलि वास्तव्यः ।
( १५८३ )
|| ६० || सं० १५४० वर्षे मार्ग सुदि ५ ऊकेश ज्ञातीय बहुर गोत्रे मोहणान्वये मम० खेमा सुन मंत्री अमरा भा० आपडदे पु० रामा सहितेन श्री वासपूज्य बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्री चैत्र गच्छे भ० श्रोसोमकीर्तिरि पर आचार्य श्री चारचंद्रसूरिभिः ॥ श्री रस्तु ॥
( ९५८४ )
सं० १५२२ वर्षे माघ सुदि १३ गुरौ प्राग्वाट ज्ञा० व्य० चांपा भा० मेघू सु० भाखर भा० पद पु० मोकल प्रमुख कुटुंब युतेन श्रीसुमतिनाथ त्रिबं कारितं प्र० तपापक्षे श्रीहेमविमलसूरिभिः । ( १५८५ )
२१५
संवत १५८७ वर्ष श्री अहम्मदाबाद नगरे श्री श्रीमाल ज्ञातीय कु० कान्हा भा० करमादे सु० आणंदकेन श्रेयसे श्री पार्श्व वियं का०
( १५८६ )
सं० १८५४ माघ वदि ५ चंद्रे श्रीमाली ज्ञा० बृद्ध शा० रो हीराराद दाल (?: कचरा भा० ममाणी पृथक यंत्र भरापितं श्री राजनगरे प्रतिष्ठितं ।।
( १५८७ )
सं० १६०३ मा । कृ । प । ५ तिथौ भृगु । श्री राजनगरे श्रीमाली बीसा भाईचंद खेमचंद श्री अजितनाथ बिबं करापितं प्रतिष्ठितं श्री सागरगच्छे भ० श्रीशांतिसागरसूरिभिः । ( १५८८ )
सं० १६०३ वर्षे माघ वदि ५ शुक्रे श्रीवासुपूज्य निबं कारापितं बाई माणक तपागच्छे । ( १५८६ )
- सं० १९०३ माघ वदि ५ भृगौ अमदावादे ओस । वृद्ध। सेठ नगीनदास तद्भार्या वेरकोर श्रीशांतिनाथ बिकारापितं श्रीशांतिसागरसूरिभिः प्रतिष्ठितं सागरगच्छे ।
( १५६० )
सं० १६०३ मा० ० ५ शुक्रे श्रीमालि लघुशाखायां सा० अमीचंद श्रीशांतिनाथ बिवं कारापितं तपागच्छे पं० रूपविजयगणिभिः
( १५६१ )
साहा दमेदर कवल श्री अनंतनाथ बिंबं भरावतं सं० १६२१ मा० सुदि
७
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श्री पार्श्वनाथजी का मन्दिर
कोचरों का चौक
पाषाण प्रतिमादि लेखाः शीला पह पर
( १५६२ )
१
|| ६०|| चंद्रां गज विश्वदे ज्येष्ठ शुक्ला त्रयोदशी । इज्यबारानुराधाया
२ माकारि चैत्यमुत्तमम् ||१|| श्री विक्रमाभिधे पौरे सूर्यवंशसमुद्भवे राज्ये श्री रत्नसिंहस्य । भव्यानां हित काम्यया ||२|| युग्मम् | 5. श्रीमरूपा गगन द्योतक सूर्यरूप विद्या विवेक विनया
३
५ दि गुणै रनूप । देवेन्द्रसूरि पद हीर कुलेषु जात श्री मद्गु ६ लाल जय दीपक विश्वख्यात |३| पादाब्ज हंस विजया न्वि स सिद्ध नाम सङ्काग्विलास रस रंजित मुक्तिकाम तस्योपदेश ८ विधिना कृत मुत्सवं च चिंतामणिर्विमल बिंब निवेशकस्य |४| ६ मा० कोचर सिरोहिया सर्व संघेन दयाराम सूत्रधार ।
● ू
( १५६३ ) श्री पार्श्वनाथ जी
सं० १६३१ वर्षे वैशाख सुदि ११ तिथौ श्री पार्श्व जिन बिंबं प्र० श्रीजिनहं ससूरिभिः कारितं श्री संघेन बीकानेरे ।
( १५६४ )
संवत् १५४८ वर्षे वैशाख सुदि ३ श्रीमूल संघे भट्टारख श्रीमान (जिन ) चंद्र देवा सा० जीवराज पापरीवाल नित्यं पणमति ।
( १५६५ )
श्री गौतम स्वामी
संवत १८६७ रा वर्षे शाके १७६२ प्रवर्त्तमाने शुक्ल पक्षे तिथौ षष्ठयां गुरु वासरे ओसवंशे को । गो० मु० मगनीराम पुत्र बबोरचंद सालमसिंह सेरसिंह पुत्र पुनालाल गंभीरमल रामचंद्र श्री गौतम स्वामी जी री मूरत करापितं बृहत्खरतराचार्य गच्छे भट्टारक श्री जिनोदयसूरिभिः प्रतिष्ठितं रतनसिंह जी विजय राज्ये ॥
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
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धातु प्रतिमाओं के लेख
( १५६६) संवत् १४६८ वर्षे माघ सुदि १० बुधे श्री अंचल गच्छे श्री श्रीमाल झा० महा० सामंत भा० सामल पु० म० दाकेन भार्या म० दूल्हादे युक्त ने श्रीशीतलनाथ बिंब पंचतीर्थी रूपं श्रीमरुतुंगसूरीणामुपदेशेन कारितं प्रतिष्ठितं च श्री संघेन ।
( १५६७) संवत् १५६१ वर्षे दोसी गोत्रे उकेश वंशे स० साल्हा पुत्र आंबा भार्या ऊमादे पु० हीराकेन भार्या हीरादे पुत्र तोल्हा ऊदादि परिवारयुतेन श्री अभिनंदन बिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्री खरसर गच्छे श्रीजिनसमुद्रसूरिभिः पट्टे श्रीजिनहंससूरिभिः श्रेयस्तु || पूजकस्य ॥ ज्येष्ठ चदि ४ दिने प्रतिष्ठितं विंबं॥
( १५६८) सं० १४८५ वर्षे ज्येष्ठ वदि ११ शनौ श्री श्रीमाल ज्ञा० श्रे० उदा भा० जीऊ सु० कर्मण भा० कामलदेव्या स्वभतु स्वश्रेयसे जीवितस्वामि श्री नमिनाथ विध कारित श्रीपूर्णिमा पक्षे श्री साधुरत्नसूरीणामुपदेशेन प्रतिष्ठितं श्रीसूरिभिः ॥ थोहरी वास्तव्य शुभं भवतु ।।
( १५६६) संतत् १५७६ वर्षे श्री खरतर गच्छे लूणीया गोत्रे शाह जगसी भार्या हाँसू पुत्र सीघरेण श्री सुमतिनाथ बिंब कारितं प्रतिष्ठित भ० श्रीजिनहंससूरिभिः श्रीविक्रमनगरे श्रीः !
(१६७०) सं० १५२७ मा० ब०७ प्राम्बाट काचिलवासि सा० समरा भा० मेघू पुत्र रेदाकेन भार्या सहजू पु० रूपा ऊदादि कुटुंब युतेन श्री नमिनाथ बिंब का० प्र० तपा श्रीरत्नशेखरसूरि पट्टे श्री लक्ष्मीसागरसूरि राज्यैः श्रीरस्तु पूजकेभ्यः ।
संवत् १४६३ वर्षे फाल्गुन सुदि ३ शुक्र उपकेश ज्ञातीय पा० मीफा भा० माणिकदे पुत्र देवाकेन । भा० देवलदे पुत्र वाचा युतेन आत्मश्रेयसे श्रोशीतलनाथ विबं कारिसं प्र० श्री साधुपूर्णिमा पक्षीय श्रीरामचंद्रसूरीणामुपदेशेन विधिना श्रादैः॥
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२१८
बीकानेर जैन लेख संग्रह
। १६०२ . संवत् १५३४ वर्षे मगसिर वदि ५ रवौ श्री भावडार गच्छे उपकेश ज्ञातीय प्राह मेचा गोत्रं सं० मदा भा० वाल्हादे पु० सा भारमल्लेन भा० रंगादे पु० सहसमल्ल रूपा ऊदा युतेन स्वश्रेयसे श्रीसुविधिनाथ बिंब कारितं प्र० श्रीभावदेवसूरिभिः ।। श्रीकुंडलनगरे वास्तव्यः ।। छः ।।
( १६०३ ) संवत् १५२१ वर्षे आषाढ सुदि ६ गुरौ ऊकेश ज्ञा० श्रे० पाता भा० राज पुत्र पर क्तेन भा० चांदू पु० रूपा युतेन स्वश्रेयसे श्री विमलनाथ घिबं कारितं प्र० ऊ० श्री सिद्धाचार्य सं० भ० भी देवगुप्तसूरिभिः ।।
(१६०४) सं० १५३४ वर्षे फा० सु०२ प्रा० को० डुगर भार्या पाटू पुत्रव्य उदा भा० वोल्हूनाम्न्या जहेको घेजा जेसादि कुटुंब युतया स्वश्रेयसे श्रीसंभव बिंबं का० तपागच्छे श्री श्री लक्ष्मीसागरसूरिभिः वीरवाटक प्रामे ॥
(१६०५) सं० १५१६ व ! वैशाख वदि ४ दिने प्राग्वाट गा० ठाकुरसी भा० वाल्ही पु० सं० प्रधमाकेन भ्रातृ सा० डाहा भा० काऊ पु० कान्हा भोला पासराज सधादि कुटुंब युतेन श्री श्रेयांस बिबं कारितं प्रतिष्ठितं तपा श्री सोमसुंदरसूरि शिष्य रत्नशेखरसूरिभिः श्रीमंडपदुगे।
(१६०६) संवत् १५६८ माह सुदि ४ गुरौ खटवड़ गोत्रे स० सहसमल्ल भा० स० सूरमदे पु० पीपा भायां प्रेमलदे पु० कान्हाकेन स्वपितृपुण्यार्थ श्रीमुनिसुव्रत स्वामि बिंबं का० प्र. मलधार गच्छे श्री लक्ष्मीसागरसूरिभिः।
(१६०७) संवत् १५०६ वर्षे महा सुदि १० मृगशिर नक्षत्रे दूगड़ गोळे सं० रूपा सेणत० सं० नरपाल पुत्र सोनपाल भार्या ... ती मूली स्वपुण्याथं तत्पुत्रे सिरीर्वद श्रीशांतिनाथ बिंबं कारितं रुद्र० ग० श्रीदेवसुंदरसुरि पट्ट प्रतिष्ठि श्रीलब्धिसुंदरसूरिभिः।
( १६०८ )
देवालय पर ___ सं० १५२२ वर्ष माह सुदि हशनौ श्री प्राग्वाट ज्ञातीय श्रेष्ठि विरूआ भार्या आजी सुत सं० माकड़केन भार्या झाली सुत सं० अर्जनकेन भार्या अहिवदे सहितेन अपरा भार्या रामप्ति नमित्तं
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घाकानर जन लेख संग्रह
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श्री मुनिसुव्रत स्वामि बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीवृहत्तपापक्षे भट्टा० श्रीजयतिलकसूरि तत्पट्टे भट्टा० श्रीजयशेखरसूरि तत्पट्टालंकरण प्रभु० भट्टा० श्रीजिनरत्नसूरिभिः ।। श्रियोरस्तु ॥ .१ श्री सहुमालापास्तव्यः ।।
(१६०६)
श्रा पार्श्वनाथजी संवत् १४६५ मार्गशिर वदि ३ गुरु दिने पारसाण गोत्रे सा० जादास पुत्र सा० गूजर प्रतिमा कारापिता।
सं० १४६४ श्रीमालमा... .... श्रीमाल ज्ञातीय ..... .. वीरधवलेन भार्या बीलहणदे पुत्र सारंगादि युतेन श्री संभव बिबं का० प्र० श्रीसूरिभिः :
( १६११)
सं० १६४१ मार्ग सु० ३ बुधे सं० सोहिहा भार्या सुगणादे सुत मेहाकेन वासुपूज्यस्य विबं कारितं प्रतिष्ठितं तपा ग० श्रीहोरविजयसूरिभिः ।
(१६१२) श्री सुमति जि... ..... तारा । माहक केन । प्र यु.. ... ... ... चन्द्रसूरिभिः ।
( १६१३ ) श्री शांतिनाथ बिंब कारापितं माई कसलेन ।।
सं० १५६७ वैशाख सु० १० श्रीमाल सा० दोदा पु० डालण पु०
(१६१५) सं० १७५२ वर्षे मिग० सु० ५ गुरो वार श्रीवच्छ गोत्रे मु० लालचंद भार्या सरूपदे पुत्र मंः मलकचंदेन ।
( १६१६ ) सं० १३५६ वर्ष वैशाख वदि ११ रवौ केला कारितं प्रतिष्ठितं श्रीअमरप्रभसूरिभिः।
सं० १०८७१) वै० सु०५ गु० सं० जिणराम प्र० नगनू पु०
सवत् १५०१ वर्षे माह वदि ६ उपपेश झातौ श्रष्टि गोत्रे सा० सगिण पुत्र सा० मारणेन स्वभार्या मेलादे श्रेयसे श्रीशांतिनाथ बिंब कारितं श्रीउपकेश गच्छे कुकुदाचार्य संतामे प्र० श्रीककसूरिभिः ।
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२२०
बीकानेर जन लेख संग्रह
(१६१६ सं० १५१३ वर्षे..........."श्री ऊकेश वंशे नाहटा गोत्रे सा० मेघा मा० रोहिणी पु० सा० रणा मल्ल भ्रातृ सा० दूला पु० छोतरादि सहितेन स्वश्रेयो) श्रीसुमतिनाथ बियं का० म० खरतर गच्छे श्री जिनसागरसूरि पट्टे श्रीजिनसुंदरसूरिभिः शुभं भूयात् ॥
( १६० ) सं० १३२० फागुण सु० १२........ 'धर्कट गोत्रीय गोचा पुत्र कान्हड़ भीतड़ाभ्यां पितृ श्रेयसे पार्श्व बिबं कारित प्रति० चैत्रक गच्छे श्रीर विप्रभसूरिभिः ।
(१६२१) ___सं० १४६१ वर्षे माह सुदि ५ बुध दिने उप सा० तोला भा० कडू पु० काआकेन भ्रार्या हीरादे पु० खेतसी चांचा सूरा सहि० श्री मुनिसुव्रत बि० का० प्र० पिप्पल गच्छे श्रावीरप्रभसूरिभिः ।
( १९२२ ) सं० १४५१ वर्षे .................श्रेष्टि धरणा.... . .... ...... - श्रेयसे श्री आदिनाथ बिंब कारित प्र० श्री देवचंद्रसूरिभिः ।
( १६२३ ) सं० १६४४ ५० फा० सु. २ पि० २० भ० गो० वाम० उ० गोरा तपा भीहीरविजय सूरि प्र०
( १६२४ ) संवत् १६६१ वर्षे मार्गशीर्ष मासे प्रथम पक्षे पंचमी वासरे गुरुवारे ऊकेश वंशे बहुरा गोत्रे साह अमरसी साह रामा पुत्र रत्न .............................. रेण श्री सुमतिनाथ विध कारितं प्रतिष्ठितं श्रीह................. ....सार युगप्रधान श्रीश्रीश्रीजिनचंद्रसूरिभिः ।
श्रीचन्द्रप्रभादि चौवीसी सं० १५०८ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ५ रषौ अद्यह स्वर्णगिरौ जाल्योद्धर वास्तव्यः श्री उकेश वंशे श्रावत्सगोत्रीय ५० देवा भा० देवलदे तत्पुत्र सं० बाबाख्य तक्रार्या विल्हणदे भ्रातृ देवसिंह पुत्र जागा भार्या कपूरी ते कुटुंबयुतः श्रीचन्द्रप्रभस्य बिंब सचतुर्विंशति जिन मचीकरत भीसाधु पूर्णिमा पक्षे श्रीरामचंद्रसूरि पट्टे 'परमगुरु भट्टारक श्रीपुण्यश्चंद्रसूरीणामुपदेशेन विधिना भाटेः मंगलं भूयात् श्रमणसंघस्य।
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बीकानेर जन लेख संग्रह
संवत् १५५६ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ५६(? रखो दूगड़ गोत्रे सा० काला भार्या रूपादे सत्पुत्र सा. रावण भार्या रमादे पुत्र राजा पारस कुमरपाल महीपाल युतेन स्वपुण्यार्थ श्री सुमतिनाथ बिंबं कारित श्रीरुद्रपल्लोय गच्छे प्रतिष्ठितं सर्वसूरिभ्यः ।
(१६२७ ) ___ संवत् १६२४ वर्षे आषाढ यदि ८ नामो छाजहड़ गोत्रे स० आसा पु० हरखचंद्रादि पुत्र पौत्र युतेन श्री श्रेयांस विंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्री पल्लि गच्छे भ० श्री आमदेवसूरिभिः ।
मं० १४२४ वर्षे आषाढ़ मुदि ६ गुरौ प० धरणा भार्या साढी पुत्र झीफाकेन पितृ मार श्रेयसे श्रीपार्श्वनाथ विवं कारितं श्रीसाधु पू० गच्छे श्रीअभयचंद्रसूरीणामुपदेशेन प्र० श्रीसूरिभिः ।
( १६२६ ) संवत् १५८३ वर्षे माघ सु० ४ शिवौ सोरोहीवास्तव्यः प्राग्वाट झासीय सं० मोका भार्या सवीरी पुत्र सं० भामाकेन भार्या महथू कृते पुण्याथं श्रोशांतिनाथ बिर्ष कारापितं स्वकुटुंब श्रेयसे प्रतिष्ठितं तपागच्छे श्री हेमविमलसूरिभिः श्रीरस्तुः ।। श्री ।।
संवत १५७५ वर्ष फागण वदि ४ गुरु ऊकेश वंशे रोहलगोत्रे सा० फमण पु० पोपट भा० माल्हणदे पु० शबराज भा० सोनलदे सु० सहसमल्ल सहितेन भीमुनिसुव्रत स्वामि विवं कारितं प्र. श्रीजाखड़िया गच्छे भ० श्रीकमलचंद्रसूरि पट्टे श्रीगुणचंद्रसूरिभिः सीरोही नगर वारतव्य देवराज निमित्तं ।।
(१६३१) सं० १४......दिन २ काष्टासंघे अनोत सा० धीरदेव पुत्र सजू नित्यं प्रणमप्ति ।।
( १६३२) सं० १४५६ वर्ष . . . . ..दि १ शनौ . . . . . . . . गो. सा० मेला भा० मे ....... दे १० . . . . जिन पिरमात .... पार्श्वनाथ विध का... म० श्रीनव." प्रमासूरि ।
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श्री श्रादिनाथजी का मन्दिर
कोच का चौक
धातु प्रतिमा का लेख
( १६३३ )
भूलनायक जी
२ संवत् १८६३ माघ सुदि १० बुध श्री ऋषभ बिबं कारितं श्री
सु
२ मा बदनमल"
३ बेटा छगन
पाषाण प्रतिमाओं के लेख
( १६३४ )
संवत् १९५५ ऊमट ( १ ) यदि ५.
( १६३५ )
संवत् १८६७ वर्षे शाके १७६२ प्रवर्त्तमाने मासोत्तम मासे वैशाख मासे शुक्लपक्षे तिथौ गुरुवारे विक्रमपुर वास्तव्ये कोचर गोत्रीय मु । मगनीराम पुत्र अबीरचंद सालमसिंह सेरसिंघ एतेषां पुत्र अनुक्रमात् ज्ञात
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श्री शान्तिनाथजी का देहरासर
( कोचरों का उपाश्रय )
धातु प्रतिमा का लेख
संवत १५०७ वर्षे फागुण बदि ३ बु० उ० पलाडेचा गोत्रे साः झूठा भा० हामी पुत्र रणसोकेन भार्या लखी सहितेन श्रीसुमति बिंबं का० प्र० पढ़तपागच्छे श्री देवगुप्तसूरिपट्टे श्री ककसूरिभिः
पाषाण प्रतिमादि लेखाः
( १६३७ )
श्री विजयाशंदसूरि मूर्ति सं० १९७२ वष अक्षयतृतीयायां विक्रमपुरस्थ श्री तपागच्छसंघन गुरुभक्याथ श्रीमुनिपुङ्गव श्री लक्ष्मीविजय श्री विजयकमलसूरि मुनीश हंसविजय पन्याष्टा संपतविजय सेविता सप गच्छालंकार श्रीविजयाणंदसूरीश्वराणां मूर्तिरियं कारिताः
। १६३८) सं० १६६४ वर्षे माघ सु० १२ दुति । भृगुवा। संवे० श्रोचंदनश्रीकस्य पादुका बगवश्रीजी उपदेशात् मुं: को। लाभचंदजी करापितं श्रीमत्तपागच्छे । चौप । पं० श्री अनोपविजय जी श्री विक्रमपुरे श्रीगंगासिंहजी राज्ये ।।
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२२५
बीकानेर जैन लेख संग्रह
श्री चन्द्रप्रभुजी का मन्दिर ( बेगागियों की गुवाड़ )
शिलापट्ट पर
( १६३६ )
१ ॥ सं । १८६३ मिते श्राव । सु । ७ तिथौ राज राजेश्वर श्रीरतनसिंहजी विजयराज्ये श्रीं २ द्रप्रभ प्रासादोद्धार बेगवाणी सर्व श्रीसंन कारितः श्रीमद्वृहत्खरतर राच्छाधीश्वर
३
जं 1 यु । भ श्रीजिनसौभाग्य सूरिभिः प्रति ||
पाषाण प्रतिमाओं के लेख
( १६४० )
संवत् १५४६ वर्षे बैशाख सुद ३
( १६४१ )
सं० १८८७ आषाढ़ सु० १० श्री सुपार्श्वनाथ बिंबं वा । सिरदारकुमर्या कारि । प्रभ श्री जिनहर्षसूरिभिः श्री ( १६४२ )
सं० १६३१ वर्षे मिति वैशाख मासे कृष्णतर पक्षे एकादश्यां तिथौ श्रीमहावीर जिन बिबं श्रीबृहत्खरतरगच्छे भ श्रीजिनहंससूरिभिः कारितं श्री बीकानेर ॥
( १६४३ ) सं० १६३१ ब | मि । षै । सु । ११ ति० श्रानेमजिन बिंब प्र श्रीजिनहंससूरिभिः
T
( १६४४ ) श्री चन्द्रप्रभुजी
संवत १५४६ वर्षे वैशाख सुदि ३ श्रीमूलसंघ भट्टारक श्रीजिनचंद्र देव चंदजी पापरीवाल...
पता
संवत् १६ सुराणा गोत्रीय श्रीपूनम चंद्रस्य fia कारापितं प्रतिष्ठापितं च
दो लेख )
( १६४५ )
बारे
दादा साहब की प्रतिमा पर मासे पक्षे तिथौ ओसवाल धर्मपत्नी श्रीमती जतनकुबरेण भट्टारक दादा श्री जिनकुशलसूरिभिः ( १६४६ ) विजय यक्ष
धातु प्रतिमाओं के लेख
( १६४७ ) श्रीवासुपूज्य चतुर्विशति
सं० १४६३ वर्षे वैशाख सु० ५ बुधे सांखुला गोत्रे सा० छोहिल भा० जीवल पु० सा० गेल्हाकेन भा० रयणादे सु० खेता टीलावनेजा युतेन स्वपुण्यार्थं श्रीषासुपूज्य प्रभृति चतुर्विंशति जिनबिंबानि का प्रतिष्ठितानि श्रीधर्मघोष गच्छे श्री मलयचंद्रसूरि शिष्य श्रीपद्मशेखरसूरि पट्टे श्री विजयचंद्रसूरिभिः ॥ श्री ॥ १ ॥
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
(१६४८) ___ सं० १४२६ वर्ष वैशाख सुदि ह रखो श्रीमालवंशे माघलपुरीय गोत्रे सा० बीकम भार्या स० सोनिणि पु० सा तिहुणापुगाजा तिहुणा भा० त्रिपुरादे भा० बीसल मोकल नायकैः मातृपिट श्रे० श्रीचंद्रप्रभ बिं० ० ० श्री ज्ञानचंद्रसूरि शि० श्रीनागरचंद्रसूरिभिः श्रोधर्मघोष ग०
(१६४६) सं० १५३५ माघ सुदि १० प्राग्वाट व्य०हरता भा० हासलदे पु० पीथाकेन भा० पोमादेप्रमुख कुटुंब युतेन स्वश्रेयसे श्रीशीतलनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्टितं तपापक्षे श्री श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः सोरोही महानगरे।।
(१६५०) सं० १४७३ वर्षे चैत्र सुदि १५ सा० जसधवलेन सा० आंबा होरी पुण्यार्थ श्री शांतिनाथ बिब कारितं प्रतिष्ठितं खरतर श्रोजिनवर्द्धनसूरिभिः ।
(१६५१)
श्री चंद्रप्रभ स्वामी सं० १८८७ आसा । सु। १० । श्रीचंद सा० अमीचंद
सं० १५७६ ३० फा० वदि ५ सो।
( १६५३ ) वा. वीराई।
(१६५४ )
श्री पार्श्वनाथ जी चांदी की प्रतिमा सं० १६५६ माह सुदि ५ तिथौ बाई कस्तूरी श्रीपार्श्व बिंबं प्रतिष्ठितं ।
( १६५५ )
चांदीके सिंक पर सं० १७६४ आसाढ़ सुद १३ प्रतिमा तैयार हुई लिखीतं सोनीथाहरु
( १६५६ )
अष्टदल कमल सं० १६५७ वर्षे । माव सुदि । १ दशमी दिने श्री सिरोहीनगरे २ राजाधिराज महाराज राय श्रोसुर ३ त्राणविजयिराज्ये । ऊकेशवंशे । ४ वोहित्थराय गोत्रे विक्रमनगरवास्तव्य मं० दसू पौत्र मं० खेतसो पुत्र मं० दूदाकेनस ६ परिकरेण कमलाकार देवगृह मंडितं पार्श्वनाथ बिंब कारितं प्रतिष्ठितं च ८ श्रीवृहत्खरतरगच्छाधिप श्रीजिनमाणिक्यसूरि पट्टालंकार दिल्लीपति
.........१४ वाचकसाधुसंघ युतैः । पूज्यमानं वं १५ द्यमानं चिरनंदतु लि. उ० समयराजैः ॥ १६ २६
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श्री अजितनाथ जी का देहरासर
( सुगनजी का उपाश्रय )
पाषाण प्रतिमाओं के लेख
श्री अजितनाथ जी
सं० १६०५ वर्षे मि। वैशाख सु १५ गणधर चोपड़ा कोठारी उमेदचंदजी तत्पुत्र माणचंद जी तक्रार्या जड़ावदे वत्युत्र गेवरचंद श्री अजितनाथ बिंबं कारिसं प्रतिष्टितं च श्रीवृहरखरतर गच्छे में। यु । प्रभ । श्री जिनसौभाग्यसूरिभिः ।। श्री ।।
(१६५८)
श्री समतिनाथ जी सं० १९०५ वर्षे । मि । वैशाख सु० १५ सेठिया जीतमलजी तत्पुत्र लालजी ताराचंदेन सपरिवारेण सुमतिनाथ बिंब कारितं प्रतिष्ठितं च श्रः बृहत् खरतरगच्छे । यु । प्र म । श्रीजिम सौभाग्यसूरिभिः ।।
( १६५६ ।
श्री सुपार्श्वनाथ जी 1। सं० १६०५ वर्षे मि। बैशाख सुदि १५ बाफणा जसराजेन श्री सुपार्श्वनाथ विध कारितं । प्रतिष्ठितं च श्री बृहत्खरतर गच्छे जं । यु । प्र। भ श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः ।
(१६६० ।
श्री अजितनाथ जी ॥ सं० १९३१ व । मि ! वै। सु। ११ ति। श्री अजिस जिन बिंब प्र।।ख । भ। श्री जिनहंससूरिभिः लूणी । हीरालाल जी सा। ना । करमचंदजी कारापितं श्रीबीकानेर नगरे।।
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२२७
बीकानेर जन लेख संग्रह
www.mmmmmm ( १६६१)
श्री धर्मनाथ जी सं० १६०५ वैशाख सु० १५ श्रीसंघनकारितं श्री धर्मनाथ जी विषं प्रतिष्ठापितं श्री खरतर गच्छे भ । अं। यु । प्र! श्री जिनसौभाग्यसूरिभिः प्रतिष्ठितं ।।
श्री चन्द्रप्रभ मी १८। सं० १६०५ वर्षे मि । वै। सु १५ गणधर : चापड़ा। उमेदचंदजी पु० माणकचंद तत्पु० गेवरचंदेन कारितं प्रतिष्ठितं च श्री वृहत्खरतर गच्छे । यु । प्राम। श्री जिनसौभाग्य सूरिभिः ।। श्री ॥
श्री कुन्थुनाथ जी सं० १६०१ वर्ष मि। वैशाख शुक्ला ?५ :तिथौ। बाफणा गुमानजी सद्भार्या जेठांदे श्री कुंथुनाथ बियं कारितं प्रतिष्ठितं च म ।। यु ! प्र । मो जिनसौभाग्यसूरिमिः ।
श्री पार्श्वनाथ जी सं० १६०५ वर्षे वैशाख मासे शुक्ल पक्षे पूर्णिमा तिथी श्री पार्श्व जिन बिंब का । प्र! वहन्वरतरगोश जं । यु । प्र । म श्री जिनसौभाग्यसूरिभिः ।।
धातु प्रतिमाओं के लेख
( १६६५ )
श्री शीतलनाथादि चौवीसी संवत १५३७ वर्षे वैशाख बदि २ सोमे डोसावाल ज्ञातीय रावल ालू भार्या करणादे सु० राउल पर्वतेन भा० वारू सुत जीवा कोका राजा आया मादि कुटुंबयुतेन श्रीशीतलनाथ चतुर्विशति पट्टः कारितः प्रतिष्ठतः श्री सपागच्छे श्री लक्ष्मीसागरसूरिभिः वढीयालिः वास्तव्यः ।।
( १६६६ )
श्री पार्श्वनाथ जी . सं० १७०३ ५० चैत्र २० ७ श्रा० आमबाई नाम्स्या श्री पार्श्वनाथ विवं 10 प्र. १० ओविजयदव ( १ देव ) सूरिभिः ।
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२२८
बीकनेर जैन लेख संग्रह
सं० १८८७ आषा। सु । १० श्रीमल्लि बिबं.
....... मोला।।प्र। श्री जिनहर्ष सूरिभिः।
( १६६८ ) श्री शांतिनाथ स. डाइया भा बा फतू सुता का०
( १६६६ ) श्री मूल संघे बलात्कारे
( १६७०) श्री कुंथुनाथ बि श्री त ११ श्राविका शतारित श्री हीरविजयसूरिभिः प्रतिष्ठिः
(१६७१) सं० १६१ । अजित । मटु ।
सं० १६०५ मि । आषाढ़ बह जं। यु । भ । श्री जिनसौभाग्यसूरिभिः प्रतिष्ठितं ।।
( १६७३ )
तान के यंत्र पर सं० १९३५ वैशाख सुदि ३ बार रविवार गैनचंद गोलछा २ नमः।
श्री जिनकुशलसूरि गुरु मन्दिर
दादा साहब का प्रतिमा पर सं० १९८८ माघ सु० दशम्या बुधवासरे ६० यु. प्र. भ. श्री जिनकुशलसूरीश्वराणां मूर्ति बृहत्खरतरगच्छीय . श्रीजिनचारित्रसूरिणामादेशाद् उ० श्रीजयचंद्रगणिना प्रतिष्ठिता वीरपुत्र श्री आनंदसागरोपदेशात नाहटा जसकरण आसकरणयोर्द्रव्य व्ययेनकारापिता ।।
( १६७५ । समाकल्याण जी की मूर्ति
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श्री कुन्थुनाथ जी का मन्दिर
( रांगड़ी का चौक )
पाषाण प्रतिमाओं के लेख
सं० १६३१ मि० । वै। सु । ११ ति ! श्री कुंथु जिन पिं० प्र० ० ख० ग० भ० श्रीजिनहंस सूरिभिः दपतरी सदनमल तत्माता छोटो बाई कारापितं ।।
सं० १६३१ मि० वै. सु० ११ ति। श्री श्रेयांस जिन बि० प्र०व० ख० ग० भ० श्री जिनहंससूरिभिः सुराणा श्रीचंदजी तत्माता ।
(१६७८) सं० १९३१ मि० वै० सु० ११ ति । श्रीमुनिसुव्रत बि० प्र० वृ० ख० । भ० । श्रीजिनहंससूरिभिः श्रीसंघेन कारितं ॥
सं० १६०५ वर्षे मि० वैशाख सुदि १५ गो। अमरचंदजी भार्या मेदादे तत्पुत्र अगरचंदजी सपरिवारेण श्री सुविधिनाथजी बिबं कारापितं । श्रीबृहत्खरतरगच्छे अं । यु । प्र । भ । श्री लिमसौभाग्यसूरिभिः प्रतिष्ठितं च ।। श्री बीकानेर मध्ये ।
(१६८०) सं० १६०५ वर्षे मि० वैशाख सु० १५ वै। मु। रमचंदजी तत्पुत्र गिरिधरचंदजी तद्भार्या कुनणादे तत्पुत्रकरणीदानेन श्रीसंभवनाथ बिबं कारितं प्रतिष्ठितं च वृहत्खरतरगच्छे अं। यु । प्र। भ० । श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः । श्री।
( १६८१ )
श्याम पाषाण प्रतिमा सुपार्श्व बिं । प्र! श्री . ..... जिनहंससूरि सं० १९३१ मि । २० । सु। ११ - ......
( १६८२ )
खण्डित प्रतिमा श्री ऋषभजिन बि० प्र! सं० १९३१ मि । मे। सु । ११
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
" ( १६८३ ।
श्याम पाषाण प्रतिमा सं० १६ ... ... आषा० सुदि...... - श्री जिनसौभाग्यसूरि
श्यामपाषाण प्रतिमा श्री विमल जिन विप्र सं० १९३१ वैसु । ११ ॥
खण्डित प्रतिमा सं० १९१६ वै। सु. ७ चंद्रप्रभ विप्र श्री जिनसौभाग्यसूरि.."ते श्री संधन।
पादुका चक्र पर २४ मा श्री महावीर सं० २४२८ श्री विक्रम संवत् १६५८ मास तिथी आषाढ सुद ११ गुरुवासरे महाराजा श्री गंगासिंहजी बहादुर विजयराज्ये श्री छु। खरतर भट्टारक चंद्र गच्छे ।। श्री बीकानेर नगरे। सर्वगुरुपादुके श्रीसंधेन कारापितं प्रति० ज० यु० प्र० भ० श्रीजिनकीर्तिसूरिभिः । जैनलक्ष्मी मोहनशाला अ: लि. एया पं०! मोहनलाल मु! स्वहस्ते प्र। शिष्य पं० जयचंद्रादिश्रेयोथं ॥ श्री वीरात् ६५ जं० यु०प्र० भ० श्रीजिनचंद्रसूरिजी पा० ६६ महोपा० श्री उदयतिलकजी गणिः ६७ । पु । उ । श्री अमरविजयजी गणिः। ६८ पु० उ० श्रीलाभकुशलजी गणिः ६६ पु० मा० श्रीविनयहेमजी गणि पा० ७० पु० पा० श्रोसुगुणप्रमोदजी गणिः ७१ पु. पा० श्री विद्याविशालजी गणिः ७२ पू० म ! उ लक्ष्मीप्रधानजी गणिः पं० प्र! पा । श्रीमुक्तिकमलजी ग।
तीन चरणों पर सं० १६४३ रा मि । फा । सु। ३ दिने श्री गणधराणांचरणन्यासः श्रीसंघेन कारापितंज। यु ! प्र । म ! श्री जिनचंद्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥
श्री शंब जी १७ श्री पुंडरीक जी १ श्री गौतमस्वामिजी २४
चरणों पर दादाजी श्रीजिनकुशलसूरिजी ॥ सं० १६४. रा मि । मिगसिर बदि ७ श्री जिनचंद्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं॥
(१६८६ ।
चरणों पर श्री जिनभद्रसूरि
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बीकानेर जैन लेस ग्रह
२२
चरणों पर श्री जिनचंद्रसूरि
धात प्रतिमाओं के लेख
( १६६१) ॥ संबत् १५२६ आसाढ़ सु० २ रवौ श्रीऊकेश शासौ श्री सूरोवा गोत्रे सं० धोधू भा० जोल्ही पु० मा० मूला भा० गोरी पुत्र पौत्रादि युतेन श्री सुविधिनाथ चिंबं कारित प्रतिष्ठित श्री ऊकेश गच्छे श्री कुकुदाचार्य संताने श्री ककसूरिभिः भद्रपुरे॥
( १६९२ ) संवत १५१२ वर्षे मार्गशिर सुदि ५ गुरौ श्री श्रीमाल झातीय पितामहषीरा भा० घडलदे . पुत्र नरसिंह भा० राज सु० सांडा गाथा डाहाभ्यः पि० माप भ्रातृ झांझण सर्वपूर्विज श्रे० श्रीकुंथुनाथ बिंब का० प्र० पिष्फलगच्छे श्री उदयदेवसूरिभिः ।
( १६९३) संवत् १५७५ वर्षे फागुण बदि ४ गुरौ प्राग्वाट ज्ञा० लांब । अड़क व्यव धना भा० धारलदे पु. परवत बीदा महि० धारलदे पुण्यार्थ श्री शीतलनाथ बिंबं का० प्रति० श्री पूर्णिमापक्षे द्वितीय शाखायो भट्टारक श्री विद्यासागरसूरिभिः । अ० श्री लक्ष्मीतिलकसूरिभिः सहितेन ॥ श्री ।।
सं० १५६७ वर्षे माध सु० ५. दिने श्रीमाल झासीय धाधीया गोत्रे सा० दोदा भार्या संपूरी पुत्र सा० उदयराज भा० टोलाभ्यां श्री शीतलनाथ विवं कारिसं वृद्ध भ्रातृ सा० डालण पुण्यार्थ प्रतिष्ठितं श्री लघुखरतरगच्छं श्री जिनराजसूरि पट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः । वैशाख सु०१०
( १६६५ ) सं० १५३६ वर्षे फा० सु० ३ दिने ऊकेश वंशे पड़िहार गोत्रे सा० फम्मण भा० कपू मु० सा० सहसाकेन भा० चादू पु० हापादि परिवारयुतेन श्री कुंथुनाथ बिंबं का प्रतिक श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरि पट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः ।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
. सं० १४८५ प्राग्वाट व्य० लीषा भार्या कर्मा दे सुत देल्हाकेन स्वयोर्थ श्री विमलनाथ बि कारित प्रतिष्ठितं तपागच्छे श्री सोमसुंदरसूरिभिः ।। श्री ।।
( १६६७)
श्री पार्श्वनाथ जी सा० नरवद भार्या मानू पुत्र बदा भार्या धन्नाइ पुत्र सोनपाल पुत्र गडरा (2)
( १६६८ ) श्री पार्श्वनाथ जी सं० १५४६ मूल संघ
( १६६६) श्री आगम गच्छे श्री कलवर्द्धनासूर''
( १७००)
श्री पार्श्वनाथ जी दोसीहरजी कारितं । श्री जिनधर्मसूरि
(१७०१ )
श्री संभवनाथ जी संव १६१६ वंशाख सु. १० श्री संभवनाथ श्री वजिदानसूरिभिः वाहली ।
( १७०२) पस। जिणदास भा० रूपाई पू भा ..........का..........१५६६ व
( १७०३)
रजत के चरणोंपर श्रीजिनकुशलसूरिभिः वीर सं० २४४५ वै० सु० २
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श्री महावीर स्वामी का मन्दिर
( बोहरों की सेरी ) पाषाण प्रतिमादि लेखाः
( १७०४ )
मूलनायक श्री महावीर स्वामी ॥ स्वस्ति श्री वि० सं० १६६४ वैशाख सुदि ७ शुक्रे तपागच्छीय श्रे० जिनदास धर्मदास । संस्थया श्रीसंघ श्रेयसे प्र० श्री महावीर स्वामि विंबं प्र० तपागच्छाधिपति भट्टारकाचार्य श्री विजयनेमिसूशेश्वरैः श्री विजयदर्शनसूरि श्री विजयोदयसूरि श्री विजयनंदनसूरि श्रीविजय विज्ञानसूरि सहित श्री कदंबगिरि तीर्थे। अलेखि पन्यास........"विजय ........
( १७०५ )
शिलापट्टिका वि० सं० २००२ मि० शु० १० शुक्र ओसवाल ज्ञा० हा० को० गो० रावतमलस्यात्मज श्रे० भैरूदानजी तस्य भार्या चाँदकुमारी इत्यनेन श्री महावीरस्वामि प्रासाद का० प्र० ज० यु० प्र०वृ० जैनाचार्य सि० म० श्री जिनविजयेन्द्रसूरीश्वरैः विक्रमपुरेः ।
( १७०६ )
श्री सुपार्श्वनाथ जी स्वस्ति श्री वि० सं० १६६४ वै० सु० ७ शुक्र बीकानेर वा० बृहदोसवाल होरावत गोत्रीय श्रे जीवनमल्ल स्व धर्मपल्या श्रीमत्या रत्नकुंवर नाम्न्या स्व श्रेयसे का० श्री सुपार्श्व जिन विवं प्र. शासनसम्राट तपागच्छाधिपति भट्टारकाचार्य श्री विजयनेमिसूरीश्वरैः श्रीविजयदर्शनसूरि श्रीविजयोदयसूरि श्रीविजयनंदनसूरि श्रीविजयविज्ञानसूरि समन्वितैः । श्रीकदम्बगिरि तीर्थे द्व
(१७०७)
श्री वासुपूज्यजी त्वस्ति श्री वि० सं० १६६४ वै०४०७ शुक्र बीकानेर बा० बृहदोसवाल गोलेच्छा गोत्रीय श्रे द्धकरणस्य धर्मपल्ल्या श्रीमत्या प्रेमकुंवर नाम्न्या स्व श्रेयसे का० श्री बासुपूज्यस्वामि बिचं प्र० शासनसम्राट तपागच्छाधिपति भट्टारकाचार्य श्रीविजयनेमिसूरीश्वरैः श्रीविजयदर्शनसूरि श्रीविजयोदयसूरि श्रीविजयनंदनसूरि श्रीविजयविज्ञानसूरि समन्वितैः ॥ श्रीकदम्बगिरि तीर्थे ।
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२२४
बीकानेर जैन लेख संग्रह
( १७०८ )
श्री जिनकुशलसूरि मूति वि० सं० २००२ मार्गशीर्ष शु० १० शुक्रे ओसवाल वंशे हाकिम कोठारी गोत्रीय श्रे० रावतमलजी तस्यात्मजः श्रे० भैरूदानजी तस्य भार्या सुश्राविका दिकुमारी इत्यनेन श्रीदादा गुरुदेव श्रीजिनकुशलसूरि मूर्तिः कारापिता प्र०व० श्री खरतरगच्छाधिपति सिद्धान्तमहोदधि जं० यु० प्र० भ० जैनाचार्य श्रीजिनविजयेन्द्रसूरिभिः विक्रमपुरे ।।
( १७०६ )
श्री गौतमत्वामी वि० सं० २००२ मार्गशीर्ष शुक्ला १० शुक्र ओसवाल हाकिम कोठारी गोत्रीय भे रावतमलस्यात्मज श्रे० भेरूदानजी तस्य भार्या सुश्राविका चांदकुमारी (केन ) गणधर श्री गौतमस्वामी मूर्तिः का० प्र० पृ० खरतरगच्छाधिपति सिद्धान्त-महोदधि जं० यु० प्र० भ० जैनाचार्य श्री जिनविजयेन्द्रसूरिभिः विक्रमनगरे।
(१७१०)
श्री गौतम स्वामी संवत् वर्षे मासे पक्षे तिथौ बारे ओसवाल ज्ञातीय वैद गोत्रीय श्रेष्ठी नेमिचंद्रस्य धर्मपन्नी श्रीमती मगनकुंवरेण श्रीमद्गौतम स्वामी कारापित प्रतिष्ठापितं च
( १७११)
ब्रह्मशान्ति यक्ष विक्रमसं० २०२ मार्गशीर्ष शुक्ला १० शुक्र ओसवाल ज्ञातीय हाकिम कोठारी श्रे रावतमलस्यात्मज श्री भैरूदानजी तस्य भार्या चांदकुमारी इत्यनेन श्री ब्रह्मशांति यक्ष मूर्ति का० प्र० श्री यु० प्र० भ० जैनाचार्य श्री जिनविजयेन्द्रसूरिभिः विक्रमनगरे
(१७१२ )
सिद्रायिका देवी वि० सं० २००२ मा० शु० १० शुक्र ओ० ज्ञा० को० श्रे रावतमलस्यात्मज श्रे भैरूदान तस्य भार्या चांदकुमारी इत्यनेन श्रीसिद्धायिका देवी मूर्ति का०प्र० श्री जं. यु० प्र० भ० जैनाचार्य ( जिन विजयेन्द्रसूरिभिः)
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श्रीकानेर जैन लेख संग्रह
दुसरे तल्ले में श्री वासुपूज्य जिनालय
श्री वासुपूज्य जी सं० १६६२......................................"भार्या सिन्दू .......... श्री खरतरगच्छे श्री जिनमाणिक्यसूरि पट्टे युगप्रधान श्री जिन ...........( चंद्रसूरिभिः)।
( १७१४ )
पधिका पर वि० सं० २००२ मि० सु० १० शुक्र हा० को० रावतमलस्यात्मज भैरूदानस्य भार्या चांदकुमारी इत्यनेन श्रोबासुपूज्य वेदिका प्र० जं० यु: प्र० भ० बृ. जैनाचार्य सि० म० जिनविजयेन्द्रसूरि (भिः ) विक्रमपुरे ॥
श्री महावीर स्वामी स्वस्ति श्री वि० सं० १६६४ वै० शु० ७ शुक्र श्री बीकानेर वा० बृहदोसवाल ढढा गोत्रीय श्रे० गुणचंद्रात्मज श्रे० आणंदमलात्मज श्रे० बहादुरसिंहेन स्वश्रेयसे का० श्रीमहावीर स्वामि बिंवं प्र० शासनसम्राट तपा ( गच्छा ) धिपति भट्टारकाचार्य श्रीविजयनेमिसूरीश्वरैः श्रीविजयदर्शनसूरि श्री विजयोदयसूरि श्रीविजयनंदनसूरि श्रीविजपविज्ञानसूरि समन्वितैः ।। कदंबगिरि तीर्थे ।
( १७१६ )
श्री विमलनाथ जी स्वस्ति श्री वि० सं० १६६४ वै० सु० ७ शुक्र श्री बोकानेर बृहदोसवाल खजानची गोने श्रे चंद्रमाण पुत्र थे मेघकरण पुत्र बुधकरण स्व श्रेयसे का० श्री विमलनाथ बि० का० प्र० शासनसम्राट तपागच्छाधिपति भट्टारकाचार्य श्रीविजयनेमिसूरीश्वश्व श्रीविजयदर्शनसूरि श्रीविजयोदयसूरि श्रीविजयनंदनसूरि श्रीविजयविज्ञानसूरि समन्वितैः ।। श्रीकदंबगिरि तीर्थे ।।
धातु प्रतिमादि लेखाः
(१७१७)
सप्तफणा सपरिकर पार्श्वनाथ जी ___ सं० १४५२ वर्षे । ज्येष्ठ मासि। सा० मूला सुत सा० महणसिंह सुश्रावकेण पुत्र मेधादि युतेन श्रीपार्श्वनाथ विंचं गृहीतं । प्रतिष्ठितं श्रीजिनोदयसूरि पट्टालंकरण श्रीजिनराज सूरिभिः श्री खरतर गच्छे ।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
( १७१८ ) श्री शान्तिनाथ जी
संवत् १५० वर्षे मार्गशीर्ष सुदि ७ दिने ऊकेश वंशे भणसाली गोत्रे सा० काल्हा पुत्र भोजा श्राद्ध ेन भार्या भोजल दे पुत्र तोला चोल्हा केल्हा युतेन श्री शांति बिंबं का० प्रति० श्रीखरतर गच्छे श्री जिनराजसूरि पट्ट े श्री श्री श्रीजिनभद्रसूरिभिः ||
२३६
( १७१८अ ) चांदी की प्रतिमा पर
गेनचंद जी मोतीलाल राखेचा बीकानेर
( १७१६ )
सं० १४२५ वैशाख सुदि १ गुरौ सा० माम्हण" 'वा के
ति पुत्र रा
"गने ॥
સં
श्री पार्श्व बिंबं कारितं प्रति० श्री पद्मदेवसूरिभिः ।
...साबयण पुत्र म
( १७२० )
"फागुण सुदि ६ श्र० लला भा० सिरादे पु० आमल
( १७२१ ) रौप्य चरणों पर
• १८०० वर्षे मिती वैशाख सुदि १३ श्री मूलतान मध्ये श्री जिनसुखसूरि पादुका
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श्री सुफाइवनाथ जी का मन्दिर
( नाहटों की गुवाड़ )
शिलापट्ट लेख
( १७२२) १ संवत् १८७१ रा मिते माघ सुदि ११ तिथौ श्री बीकानेर नगरे श्री बृहत्खरतरगच्छी२ य श्री संघेन श्री सुपार्श्व जिन चैत्यं कारितं प्रतिष्ठापितं च जंगम युगप्रधान
भट्टारक शिरोमणि श्री १०८ श्री जिनचंद्रसूरि प३ दृ प्रभाकर श्री भट्टारक श्री जिनहर्षसूरि धर्मराज्येनति ! श्रेवसेस्तु सर्वेषां। सूत्रधार
दयारामस्य कृतिरियं श्री।। ४ जैसे सिलावटा ॥
पाषाण प्रतिमाओं के लेख
गर्भगृह
( १७२३ ) महाराजा श्री रायसिंह जी राज्ये श्री खरतरगच्छे । जीवादे श्री जिनमाणिक्यमुरि पट्टे युगप्रधान श्री जिनचंद्रसूरिभिः शिष्य आचार्य श्रीजिनसिंहसूरि श्रीसमयराजोपाध्याय बा० पुण्यप्रधानगणि प्र० साधु संघे................ .
(१७२४) ..... ......."० का० प्र० श्री खरतरगच्छे श्री जिनमाणिक्यसूरि पट्टे युगप्रधान श्री जिनचंद्रसूरिभिः....................
(१७२५ ) श्री खरतरगच्छे श्रीजिनमाणिक्यसूरि पट्टे युगप्रधान श्रीजिनचंद्रसूरिभिः बा० पुण्य प्रधानो नौति ।।
(१७२६) सं० १६१६ कै सु० ७ श्री पार्श्व जिन बिब.................
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२३८
बीकानेर जैन लेख संग्रह
( १७२७)
सं० १६०५ वैशाख सु० १५ तिथौ श्री संघेन कारितं
बृ० खरतरगच्छीय
( १७२८ )
सं० १६३१ वर्षे | मि । वै । सु० ११ ति श्री धर्म जिन बिं० प्र । वृ । ख । ग | भ श्री जिनस सूरिभिः
( १७२६ )
सं० १६१६ मि । वै । सु ७ ऋषभ जिन बिंबं । भ ।
( १७३० )
अभिनंदन जिनबिंबं प्रतिष्ठितं च श्री बृहत्खरतर सौभाग्यसूरिभिः श्री बीकानेर
आदनाथ बिंबं प्र० श्री जिनहेम
( १७३१ )
सं० १६१६ मि । वै । शु४ चंद्रप्रभ बिंबं श्री सौभाग्यसूरिभिः प्र | बाई चौथा का० । खरतर गच्छे ।
( १७३२ )
सं० १८८७ मि आषा
नाथजी बिंबं प्रतिष्ठापितं
( १७३३ ) चरणों पर
सं० १८७१ मिती मा०सु० ११ तिथौ श्री गौतम स्वामि चरणन्यास कारितं प्रतिष्ठापितम् ||
दाहिने तरफ की देहरी में
( १७३४ ) श्री पार्श्वनाथ जी
( १७३५ ) श्री पार्श्वनाथ जी
सं० १६१६ मि० ० ० ७ पार्श्व जिन बिंबं
जं । यु । प्र भ ! श्री जिन
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( १७३६ )
सं० १६१६ मि० ० ० ७ श्री ऋषभ जिन बिंबं प्र० जिनसौभाग्यलूरि
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
( १७३७ )
सं०] १६१६ मि । वै । सु । ७ श्री नेमिजिन बिंबं भ ( १७३८ )
सं० १६१६ मि० वै० सु० ७ श्री पार्श्वजिन बिंबं "
बाँयें तरफ की देहरी में
( १७३६ )
सं० १६०४ रा प्रथम ज्येष्ठ मासे कृष्णपक्षे शनिवासरे ८ तिथौ श्री संभवनाथ जिन firi प्रतिष्ठितं जं । सु । प्र । भ । श्री जिनसौभाग्यसूरिभिः ।
मंडप के आल में
( १७४० )
सं० १६१४ रा वर्षे आषाढ़ सुदि १०
( १७४१ )
सं० १६१६ वै० सु० ७ नमि जिन
( १६४२ )
श्री श्रेयांस जिन बिंबं प्रति । भ० श्री जिनसौभाग्यसूरिभि: कारा
उपर तल के लेख
( १७४३ ) श्री ऋषभदेव जी
२३६.
सं० १६०४ रा प्रथम ज्येष्ठमासे शुक्लेतरपक्षे शनिवासरे । ८ तिथौ । श्री रिषभदेव जिन विषं प्रतिष्ठितं भ० । जं । यु । प्र श्री जिनसौभाग्यसूरिभिः बृहत्खरतरगच्छे कारितं श्री बीकानेर वास्तव्य समस्त श्रीसंघेन श्रेयोर्थम् ॥
( २७४४ ) श्री कुंथुनाथ जी
संवत् १६०४ र। वर्षे प्रथम ज्येष्ठमासे कृष्णपक्षे शनिवासरे ८ तिथौ श्री कुंधु जिन बिंबं प्रतिष्ठितं । जं । यु । भ । श्री जिनसौभाग्यसूरिभिः बृहत्खरतरगच्छे कारितं श्री बीकानेर वास्तव्य समस्त श्री संघन
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२४०
बीकानेर जैन लेख संग्रह
(१७४५)
श्री शीतलनाथ जी संवत् १९०४ रा वर्षे प्रथम ज्येष्ठमासे। कृष्णपक्षे शनिवासरे। ८ तिथौ श्री शीतलनाथ जिन बिब प्रतिष्ठितं । जं । यु । प्र । भ०। श्री जिनसौभाग्यसूरिभिः वृहतूखरतर गच्छे श्रीसंभेन, श्रेयोर्थम् ॥
(१७४६) सं० १६०५ मि० वैशाख सुदि १५ दिने को। सास बीरसिंघजी भार्या ......
( १७४७ ) संवत् १६०४ रा वर्षे मासोत्तम प्रथम ज्येष्ठ मासे कृष्णपक्षे शनिबासरे ८ तिथौ श्री शांतिनाथ जिन बिंबं प्रतिष्ठितं जं । यु । प्रभ। श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः बृहत् खरतरगच्छे कारितं श्री बीकानेर वास्तव्य समस्त श्रीसंघेन श्रेयोर्थम् ।।
(१७४८ ) सं० १६०४ रा प्रथम ज्येष्ठमासे कृष्णपक्षे शनिवासरे ८ तिथौ श्री. .. .... नाथ जिन बिंब प्रतिष्ठितं जं। यु ! प्र । भ। श्री जिनसौभाग्यसूरिभिः बृहत्खरतर...
(१७४६ ) सुपार्श्व जिन बिबं प्रतिष्ठितं च श्रीमबृहत्खरतरगच्छे जं० यु० श्री जिनसौभाग्यसूरिभिः कारापितं च को। श्री पांचेलाल जी।
संवत् १६०४ रा प्रथम ज्येष्ठ मासे कृष्णपक्षे शनिवासरे। ८ तिथौ श्री सुपार्श्वनाथ विचं प्रतिष्ठितं भ । जं । यु । प्रा
(१७५१) श्री मल्लिनाथ जिन बिंवं प्रतिष्ठितं च श्री बृहत्खरतर गच्छे ज । यु।प्र। भ । श्री जिनसौभाग्यसूरिभिः श्री बीकानेर ....... .....
(१७५२) श्री श्रेयांस जिन बिंध प्रतिष्ठितं च श्रीम बृहत्वरतरगच्छे । जं । यु । प्र० भ । श्री जिनसौभाग्यसूरिभिः बीकानेर
धातु प्रतिमाओं के लेख
( १७५३ )
श्री श्रेयांसनाथादि चौवीसी ॥ संवत् १५६३ वर्षे माह बदि १ दिने गुरु पुक्षयोगे श्री ऊकेश वंशे चोपड़ा गोत्रे को. सरवण पुत्र को जेसिंघ भार्या जसमादे पुत्र को समराकेन भार्या होरादे पुत्र को० बीदा
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
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को जगमाल को जयतमाल को. सिंघराज प्रमुख परिवार युतेन श्री श्रेयांस बिंबं कारिता प्रतिष्ठितं च श्री बृहत्खरतर गच्छे श्री जिनहंससूरि पट्टे पूर्वाचल रा (१स) हस्रकरावतार श्री जिनमाणिक्यसूरिभिः ॥ शुभं ।
( १७५४ ) ॥६० ॥ संवत् १६२८ वर्षे फाल्गुन सुदि ७ बुधे कुमरगिरि वास्तव्य प्राग्वाट ज्ञातीय वृद्ध शाखायां अंबाई गोत्रे व्य० बोडा भार्या करमादे पुत्र न्य० प वीमाकेन भार्या जीवादे पुत्र व्य० ठाफरसी पेदा होरजी पांचा कामजी युतेन स्वश्रेयोथ ।। श्री नमिनाथ बिंबं कारितं । प्रतिष्ठितं श्री बृहत्तपागच्छे श्री। श्री विजयदानसूरि पट्ट श्रीपूज्य श्री श्री श्री श्री श्री श्री श्री हीरविजयसूरिभिः ।। श्री ॥ माचन्द्रार्कनंद्यात ॥ श्रीरस्तु ॥
॥ संवत् १५१६ वर्षे फा० सुदि १३ सोमे स्तंभतीर्थ बास्तव्य ओसवाल ज्ञातीय सा० बरसिंघ भार्या मनकू सुत साह कालू नाम्ना स्वश्रेयसे श्री चंद्रप्रभ बिंब कारितं प्रतिष्टितं श्री सुविहितसूरिभिः ।।
॥ संवत् १५६३ वर्षे माह सु० १५ दिने श्री ऊकेश वे (व)शे चोपड़ा गोत्रे को० चउहथ भा० चांपलदे पुत्र को० वच्छू भा० वारु तारु वारु पुत्र को० नीबा सुश्रावकेण भा० नवरंगद (१ दे) पु० झांझण बाघा परिवार सहितेन श्री श्रेयांसनाथ विंबं कारितं श्री खरतरगच्छे श्री जिनसमुद्रसूरि पट्ट श्री जिनहंससूरिभिः॥ श्रेयोसु ( १ स्तु) ॥ श्री ॥
( १७५७ ) ॥ संवत् १५५५ वर्षे वैशा सुदि ३ आमलेसर वासि लाडूमा श्रीमाली झाति श्रे० गईया भार्या रेलू नाम्न्या सुत श्रे० शाणा श्रे वाणादि युतया स्वप्रेयसे श्री शांतिनाथ बिबं का० प्र० तपामच्छनायक श्री हेमविमलसूरिभिः ।। श्री ।।
( १७५८ )
सं० १५६८ वर्षे वैशाख सुदि ५ गुरौ ऊकेश झातीय बुहरा गोत्रे सामलहसा भा० सूहवदे पु० जीवा सदा भार्या मुहिलालदे पु० खरहथ तमाउरेथीती कुटुंबेन कारे सूसे (?) श्री कुंथुनाथ बिंब का० प्र० श्री पूर्सिमा ( पूर्णिमा ) गच्छे भ० श्री जिनराजसूरिभिः ।। श्रीः।।
( १७५६) संवत् १५३६ वर्षे कार्तिक सुदि १५ श्रीमाल ज्ञातीय सा० रेडा पुत्र जावड़ादि कुट(ब) युतेन निन श्रेयसे श्री शांतिनाथ बिंब कारितं प्र० श्रीसूरिभिः॥ श्री।।
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( १७६०) संवत् १५८१ वर्षे माघ ब० १० शुक्र राणपुर वास्तव्य मोढ लघुशारण प० नोका भा० रामति मानू सुप्त जीवाभ्यां भा० सोही गोमति पु० साघा श्रीवंत आणंदादि कुटुब युतेन श्री नमिनाथ बिबं श्री निगमप्रभावक परमगुरु श्री आनंदसागरसूरिभिः प्रतिष्ठापितं !
( १७६१)
चांदी की सपरिकर श्री ममिनाथ जी सं० १५१६ वर्षे आंसा० सु०६ शुक्र प्राग्वाद व्य० मंडलिक भा० हापू सु० कर्माकेन भ्रातृ देवा ठाकुर युतेन श्री नमिनाथ बिंब कारितं प्रति० आगमगच्छे श्री देवरमसूरिभिः ।
( १७६२ ) संवत् १५१२ वर्ष फा० सुदि १२ दिने चोः गोत्रे सा० ठाकुरसी पुत्र चो. चतुर पु० सिवेन चा० सादादि परिवार सहितेन श्री श्री अभिनंदन बिंबं कारितं प्रतिष्टितं श्री जिनराजसूरि पट्ट श्रो जिनभद्रसूरिभिः ।
( १७६३) संवत् १५२१ वर्षे वैशाख सुदि १० दिने श्रीमाल ज्ञातोय बहुरा गोत्रे सं० बीदा भायों विकल दे पुत्र सं० सारंग भार्या सं० स्याणी पौत्र रामणयुतेन श्रीपमप्रभ स्व पुण्यार्थ कारित प्रति० श्री खरतर गच्छे श्री जिनभद्रसूरि पट्टे श्री जिनचंद्रसूरिभिः ।
सं० १५०६ वर्षे माघ सु० १० ऊकेश वंशे थुल्ह गोठे सा० सलखा पुत्र सा० कुशलाकेन भा० कुतिगदे पुत्र भोला जोखा देपति हापादि युतेन स्व पुण्यार्थ श्री मुनिसुव्रत बिबं का० खरतर गच्छे श्री जिनचंद्रसूरि पट्टे श्री जिनसागरसूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥ श्रीरस्तुः ॥
__ सं० १५३४ वर्षे फागण सुदि ६ गुरवा० प्राग्वाट ज्ञातीय व्यव सूरा भार्या सलखाणदे पु० माला भा० मुक्तादे आन्मश्रियोथै श्री वासुपूज्य बिंब कारितं प्रतिष्ठितं पूणि पक्षीय द्वितीय शाखायां कच्छोलीवाल गच्छे भ० श्री विजयप्रभसूरिणामुपदेशेन ।।
( १७६६ ) सं० १५१५ वर्षे काचिलमधा वासि ऊकेश व्य जेसिंग भार्या मर्मट सुत मनाकेन मा० भादी सुत मुंजादि कुटुंब युतेन स्वश्रेयसे श्री वासुपूज्य बिबं कारितं प्रतिष्ठित बोकड़ीय गच्छे भ० श्री मलयचंद्रसूरिभिः ।
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॥ ६० ॥ संवत् १३८३ वर्ष फाल्गुन बदि नवमी दिने सोमे श्री जिनचंद्रसूरि शिष्य श्री जिनकुशलसूरिभिः श्री पार्श्वनाथ विवं प्रतिष्ठिवा कारितं दो० राजा पुत्रेण दो० अरसिंहेन स्वमातृ पितृ श्रेयोथं ।।
( १७६८)
अम्बिका मरतकोपरि जिन प्रतिमा संवत् १४७८ वर्षे बुथड़ा गोत्रीय सा० भीमड़ पुत्र सा० समरा श्रावक रा पुत्र दवा दद सहितेन श्री अंबिकामूतिः कारिताः प्रतिष्ठिता श्री खरतरगच्छे श्री जिनराजसूरि पट्टे श्री जिनवर्द्ध नसूरिभिः।
सं० १७६८ वै। सु। १६ दिने चा: अगर श्रीचंद्रप्रभ बिंबं कारितं तपागच्छे पं० कपूरविजयेन प्र०
( १७७०) सं० १.०४ प्र । जे । व । ८ संभव बिच । प्रति । भ। श्री जिनसौभाग्यसूरिभिः श्रखरतर गच्छे का० बीकानेर वास्तव्य समस्त श्रीसंघेन श्रेयोर्थ ।
( १७७०) सं० १६६२ (१ : वर्ष वै० व० ११ शुके उ० शातीय शिवराज सुत पासा भा० साढिक सुत कुंअरसी भा० का ....... ....... दि सपरिवारैः श्री मुनिसुव्रत विंबं का०प्र० श्री वृहत्खरतर गच्छे श्री जिनचंद्र .......
( १७७२ )
श्रीनभवनाथ जी संवत् १७१० वर्षे मागसिर मासे सित पक्षे एकादशी सोमवासरे श्री अंचलगच्छे भ० श्री कल्याणसागरसूरिणामुपदेशेन श्रा० रूपाकया श्री संभव वियं प्रतिष्ठापितम् ।।
(१७७३)
श्री मुनिसुव्रतजी सं० १६३४ व० फा० सुदि ८ सोमे बा• जीवी श्री मुनिसुव्रत श्रीहीरविजयसूरि प्रतिष्ठितम्।।
( १७७४ ) २. १७८५ बर्षे मार्गशीर्ष मासे शुक्लपक्षे पंचमी तिथौ रबै नातरेणी - कानिवादूरी . बाई री पुनि करावते।
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(१७७५) सं० १८८२ क० ज्येष्ठ व० ६ गुरौ ताई दिहे मदिवा पश्मनाभ भाविजिन बिं० प्र० उ० मुक्तिसागर गणि तपागच्छे श्री।
(१७७६) श्री वासुपूज्य बिंबं प्र० तपा श्री विजयसेनसूरिः ।
(१७७७) सं० १६१० वर्षे फागुण वदि २ सोमे सा० तेजो श्रा० सुत जाटाकेन तपागच्छे श्री विजिदानसूरि प्रतिष्ठितः
( १७७८ ) श्री मुनिसुनत दा० शार तेजा० कमलदे
(१७७६) सं० १६३७ वर्षे वै० ब० १८ श्री मूल संघे भ० श्री गुणकीत्युपदेशात ७० अलवा भा० प्रदा सु० कडूवा नाकर ...."ठा...' प्रणमति ।।
(१७८०) सं० १५७७ वर्षे............. ........श्री शांतिनाथ क. प्रसि. नाणावाल गच्छे भ० श्री शांतिसूरिभिः.."पुर
( १७८१ )
श्री पार्श्वनाथ जी सं० १५२६ वर्षे वैशाख सुदि ७ बुधे श्री मूलसंघे भट्टारक श्री सिधकीर्ति देवा गोल ! राल सागरालकु भार्या लखजतिरि पुत्र सांवतु हंस सिंह पहतु कुमद आर्का शोभा पुत्र कहुतु नित्यं प्रणमति ।
( १७८२) सं० १५४५ वैशाख सु०७ काष्टासंघे गुणभद्र अभयभद्र
( १७८३)
चौमुख जी सं.१७६४...........................श्रीमलसंघे...... ........
(१७८४ )
श्री पार्श्वनाथ जी श्री.............'श्री भुवनकी .. ........... देशात् १२३४
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Know
( १७८५)
श्रीपार्श्वनाथ जी श्री मूलसंधे श्री भुवनकीयूपदेशात् १२३४
(१७८६ ) म० वग्गाकेन कारितं प्र० श्री जिनमाणिक्यसूरिभिः॥
( १७८७ ) . ... निवृत्तिगच्छे हुंब बाप.... कन्हढेन श्री शांतिनाथ विंबं कारितं प्र० श्री पार्श्वदत्तसूरिभिः ।
( १७८८ )
श्री पार्श्वनाथ जी सं० १७२६ सा० सहोदर
( १७८६ ) सं० १६६३ माघ वदि ह... ""त र च द
(१७६०)
चाँदी के चरणों पर सं० १८२१ मिती वैशाख सुद २ श्री जिनकुशलसूरिजी
( १७६१)
सर्वतोभद्र यंत्रपर सं० १८७७ मिती मिगसर सुदि ३ का ।प्र। च । । श्री क्षमाकल्याण जी गणिना शिष्येण || श्रीरस्तु ।।
(१७८२)
ह्रींकार पट्ट पर सं० १८५५ आश्विन शुक्ल १५ दिने सिद्धचक्र यंत्र मिदं प्रतिष्ठितं वा । लालचंद्रगणिना। कारितं श्री बीकानेर वास्तव्य खजांची गोत्रे किशोरसिंघ जी तत्पुत्र रुघवायसिंघेन श्रेयोथें । कल्याणमस्तु ।
(१७६३)
यंत्र पर ॥ संवत् १५८१ । ....................... ..... गोत्रे ....... तेजा ... श्री जिनकुशलसूरिणा श्रीकलिकुंश पार्श्वनाथ को बाई सी..........
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श्री शान्तिनाथ जी का मन्दिर
( नाहटों की गुवाड़ )
पाषाण प्रतिमादि के लेख
( १७६४ ) शिलापह पर
१ ॥ श्री एं नमः ॥ संवत् १८६७ वर्षे शाके १७६२ प्रवर्त्तमाने मा२. सोत्तम मासे वैशाख मासे शुक्लपक्षे षष्ठ्यां तिथौ ६ गुरुवारे बृहत् ३ स्वरतराचार्य गच्छीय समस्त श्रीसंषेन श्री शांतिनाथस्य प्रासाद
४ कारितम् । प्रतिष्ठितं च भट्टारक जंगम युगप्रधान भ५ ट्टारक शिरोमणि श्री श्री १००८ श्री जिनोदयसूरिभिः ६ महाराजाधिराज राजराजेश्वर नरेन्द्र शिरोमणि महाराज ७ श्री श्री रतनसिंह जी विजयराज्ये इति प्रशस्ति ॥ छ ॥ ८ ज्यां लग मेरु अडिग है जहां लग सूरज चंद। वहां
६ लग रहज्यो अचल यह जिनमंदिर सुखकंद ॥ १ ॥ श्रीः
१०
॥ श्री संघयुताः सांकारक पूजकानां श्रेयोस्तु सततं श्रीः
गर्भगृह के लेख
( १७६५ )
मूलनायक श्री शांतिनाथ जी
१ संवत् १८६७ रा वर्षे शाके १७६२ प्रवर्त्तमाने मासोत्तममासे वैशाख मासे । शुक्लपक्षे तिथौ षष्ठ्यां गुरुवारे बिक्रमपु
२ र बास्तव्य ओस बंशे गोलछा गोत्रीय साहजी श्री मुलतानबंद जी तद्भार्या तीजां तत्पुत्र माणकचंद तलघु भ्राता मिलाप
३ चंद तयो भार्या अनुक्रमात् मघ मोत इति तयोः पुत्रौः पुत्रौ च थानसिंह मोतीलालेति नामको एभिः श्री शांतिनाथ जिन
―
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starat जैन लेख संग्रह
४ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं च तथा च खरतर वृहदाचार्य गच्छे भट्टारक श्री जिनचंद्रसूरि
पदस्थित श्री जिनउदयसूरिणा
.. बिंबं प्रतिष्ठा महोत्सव साह श्री माणकचंद्रेण कारितं महाराजाधिराज
( १७६६ ) श्री शान्तिनाथ
१ || सं० १८६७ वर्षे शाके १७६२ प्रवर्त्तमाने वैशाख मासे शुक्ल पक्षे षष्ठ्यां तिथौ गुरुवारे २ विक्रमपुर वास्तव्य ओसवंशेगोल्छा गोत्रीय सा० श्रीसुलतानचंद तद्भार्या तीजा तत्पुत्र ३ माणकचंद तद्लघु भ्राता मिळापचंद्रः तयोः भायं अनुक्रमात् मर्घामोत इति प्रसिद्ध तयोः
२४७
४
५ पृष्ठे जिन बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं च तथा च इत् आचार्य गच्छीय खरतर भट्टारक श्री जिमचंद्रसूरि पदस्थित श्री जिनोदयसूरिणा मप्रतः तत्शिष्य दीपचंद्रोप
६ देशात् प्रतिष्ठा महोत्सव साह श्री माणकचंदेन कारितं महाराजाधिराज नरेन्द्रशिरोमणि श्री रतनसिंह जी विजयराज्ये कारक पूजकानां सदावृद्धितरों भूयात् ।
( १७६७ )
१ ।। सं० १ : ६७ वर्षे शाके १७६२ प्रवर्त्तमाने वैशखमासे शुक्ल पक्षे षष्ठ्यौ तिथौ गुरुवारे २ विक्रमपुर वास्तव्ये ओस वंशे गोलेला गोत्रीय सा० श्री जेठमल्ल लद्भार्या अक्खां तत्पु
३
४ (पृष्ठे मोहनलाल तद्भार्या जेठी तत्पुत्रो जालिमचंद्रः । एभिः श्री सहस्रफणा पा
गर्भगृह से दाहिनी ओर देहरी में
( १७६८ ) मुनिसुक्त स्वामी
१ ।। संवत् १८६७ रा वर्षे शाके १७६२ प्रवत्तंमाने मासोत्तम मासे वैशाख मासे शुभे शुक्ल पक्षे तिथौ षष्ठ्यां गुरु
२ वारे विक्रमपुर वास्तव्य ओस वंशे गोल्छा गोत्रीय शाहजी श्री जेठमल भार्या अख तत्पुत्र अखैचंद श्री मुनिसु
३ व्रत जो बिंबं कारितं प्रतिष्टितं च बृहत् स्वरतर आचार्य गच्छीय भट्टारक श्री जिनचंद्रसूरि पदस्थित श्री
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
४ जिनउदयसूरिभिः प्रतिष्ठितं श्रीरतनसिंहजी विजयराज्ये। कारक पूजकानां सदा वृद्धितरं भूयात् ।। श्री॥
(१७६१) १ सं० १८६७ वर्षे शाके १७६२ प्रवर्त्तमाने वैशाख मासे शुक्ल पक्षे षष्ठयां तिथौ गुरुवारे
विक्रमपुर वास्त २ व्ये ओस वंशे गोलछा गोत्रीय सा० श्री मुलतानचंद्र तार्या तीजा इत्याभिधेया तत्पुत्र ३ माणकचंद तद् लघुभ्राता मिलापचंद तयो भार्ये अनुक्रमात् मघां मोतां प्रसिद्ध
५ श्रभ जिन बिंब कारितम् प्रतिष्टितं च बृहदाचार्य गच्छीय खरतर भट्टारक श्री जिनचंद्रसूरि
पदस्थित श्री जिनोदयसूरिणा मप्रत तत्शिष्य दीपचं६ द्रोपदेशात् प्रतिष्ठा महोत्सव साह श्री मिलापचंद्रेण महाराजाधिराज शिरोमणि श्री रतनसिंह
जित विजयराज्ये कारक
( १८०० )
श्री ऋषभदेव जी १ सं० १८६७ बर्षे शाके १७६२ प्रवर्त्तमाने वैशाख मासे शुक्ल पक्षे षष्ट्या तिथौ गुरुवा२ रे विक्रमपुर वास्तव्ये ओस वंशे गोलेला गोत्रीय सा० श्री मुलतानचंद तद्भार्या तीजांतत्वृह ३ त् पुत्र माणकचंदः तदूलघुभ्राता मिलापचंद तयो भार्ये अनुक्रमात् मघां मोतां तयो पु४ त्रो च थानसिंह मोतीलालेति नामकोः ................. ५ जिन बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्री बृहदाचार्य गच्छीय खरतर भट्टारक श्री जिनचंद्रसूरि
पदस्थित श्री जिनोदयसूरिणामग्नतः तशिष्य दीपचं. ६ द्रोपदेशात् तद् बिंबं प्रतिष्ठा महोत्सव साह माणकचंद्रेण कारितं महाराजाधिराज शिरोमणि
श्री रतनसिंहजी विजयराज्ये कारक पू
गर्भगृह से बाँयीं ओर की देहरी में .
(१८०१) ॥ संवत् १८६७ वर्षे शाके १७६२ प्रवर्तमाने मासे वैशाख मासे शुक्ल पक्षे तिथौ षष्ठयां
गुरुवारे विक्रमपु २ र वास्तव्ये ओस वंशे गोलछा गोत्रीय साहजी श्रीमुलतानचंदजी तद्भायां नीजा तत्पुत्र
मिलापचंद्र श्री कुंथुनाथ बि
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३ कारितं च तथा बृहत् खरतर आचार्य गच्छीय भट्टारक श्री जिनचंद्रसूरि पदस्यित ___श्री जिनोदयसूरिभिः प्रतिष्टितं ४ श्री रतनसिंघजी बिजै राज्ये कारक पूजकाना सदा वृद्धि भूयात् ।। श्री ॥
(1) सं० १९४२ का मिति आषाढ वद १३ दिने श्री गोलछा धनाणी गोत्रे श्रावक बाघमल जी ___ भार्या मधी कुमार तस्य पुण्य हेतवे ।।। (13) १ श्री वीर विक्रमादित्य राज्यात् संव्यति १६२० रा शाके १७७४ प्रवर्त्तमाने मासोत्तममासे
शुभे मीगसर कृष्ण २ पक्षे (स ) मम्यां तिथौ चंद्रवासरे श्री बृहत्खरतराचार्य गच्छे का० श्रीसंघकेन कारापिस ___श्रीमदादिजिन बिबं प्रतिष्ठितं - ३ जं. यु० प्रधान भट्टारक श्रीजिनहेमसूरिभिः श्री विक्रमाख्येपुरे श्री सरदारसिंहजी....'
(१८०३ ) १ सं० १६४२ का मिति आषाढ़ बद १३ दिने श्री गोलछाधनाणो गोत्रे श्रा२ वक करणीदानजी भार्या नवलकुषार श्री पार्श्व जिन बिबीस्थापितं त............ ३ ..."ख हेतवे। श्री जिनहेमसूरिणां धर्म राज्ये ।
गुरु मन्दिर के लेख
(१८०४)
श्री गौतम स्वामीकी प्रतिमा मं० १६६७ बैशान वद १० बुधवासरे प्रतिष्ठा कारापिसं गोलछा कचराणी फतचंद सुत सालमचंद पेमराज श्री गौतमस्वामि बियं प्रतिष्ठितं भट्टारक श्री १००८ श्री जिनसिद्धसूरि जी वृहत्खरतराचार्य गच्छे । महाराज गंगासिंहजी विजयराज्ये । बोकानेर मध्ये पोशान्तिजिमालयेः
श्रीजिनसागरसूरि के चरणों पर श्री खरसदाचार्य गच्छे भट्टारक श्री जिनसागरसूरिवराणां पादुके । श्रीरस्तुः
(१८०६) सं० १८६७ वर्षे शाके १७६२ प्र । वैशाख मासे शुक्ल पक्षे षड्या तिथौ गुरुवारे श्रीबृहदाचार्य गच्छीय भ। श्री युक्तसूरि पदस्थित जं। यु । दादाजी श्रीजिनचंद्रसूरि पादुके प्रतिष्ठिते च ज । यु । श्री १०८ श्री जिनोदयसूरिभिः कारिते च ५० दीपचंद्र । चनसुख । हीमसराम । अमीचंद । तत अनुक्रमात् धर्मचंद । हरखचंद । हीरालाल पन्नालाल। चुन्नीलाल तच्छिष्य तनसुखदासेन महाराजाधिराज शिरोमणि श्री १०८ श्री रतनसिंहजी विजयराज्ये श्रीरस्तु ॥ ३२
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बीकनेर जैन लेख संग्रह
श्री गौतम वामी की प्रतिमा पर गणधर श्री गौतमस्वामिनः प्रतिमेयं बीकानेर वास्तव्यैः ओश वंशीय गोलछा कचराणो गोत्रीय श्रेष्ठि वीजराज फौचंद सालमचंद प्रेमराज नेमीचंद जयचंद प्रभृतिः सुश्रावकः स्कुब श्रेयोर्थ कारापिसं वि० संवत् २००१ वर्षे वै० सु० १३ ६० प्र० श्री नेमीचंद्रेण प्रतिष्ठिता।
खण्डित मूर्तियों के लेख
ऊपर की ओरड़ी में
( १८०८ ) सं० १३४६ वै० सु० २ ऊकेश ज्ञा० सा० धनेश्वरस्त .... पार्श्वदेवेन स्वभार्या महिप .डो श्रेयोथं स (१) हि श्री बिबं का० प्रति० स... .. .. श्री चंद्रसूरिभिः ।
( १८६ )
संवत् १५४८ वर्षे वैशाख सुदी ३ मंगलवार त पापरीबाल नाती प्रपा म त भ भुमराज राजा सीसा धरा " भट्टारक जी श्री.......... ''सहज' ...............''
( १८१०) सं० १५४८ वर्षे वैशाख सुदि ३ जीवराज पापरीवाल............... ...
( १८११ सं० १५०६ स अभयचंद्र पु... ... ... .. .......'श्रेयांस बिंवं कारिता
(१८१२ ) (A) श्री गौड़ी पार्श्वनाथ जी ( ;) संवत् १५४८ वर्षे वैशाख सुदी ३ मंगलवार भट्टारक..........
गुम्बज में
) १८१३) .. १५२४ वर्षे मार्गशीर्ष बदि १२....... पत्र सा० धौधा श्रावकेण स्वपितुः पुण्याथं श्री शांतिनाथ बिबं का . .......... ...........प्र. श्री जिनचंद्रसूरिभिः
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Araria जैन लेख संग्रह
( १८१४ )
सं १५२४ बर्षे मार्गसिर बदि १२ दिने श्री ऊकेश वंशे सा. श्री शांतिनाथ बिवं का० श्री खरतर गच्छे श्री जिनभद्रसूरि शिष्य श्री जिनचंद्रसूरिभिः सा० नगराज का० प्रति०
प्रतिमाओं के लेख ( १८१५ )
श्री सुविधिनाथादि चौवीसी
| सं० ॥। १५२३ वर्षे मार्ग सुदि ६ शुक्रे उपकेश सुराणा गोत्रे सा० समधर भार्या सूहबदे पुत्र सं० मूला भार्या माणिकदे पुत्र सा० वीरधवल सुदयवच्छ सिद्धपाल माणिकादि समस्त कुटुंब युतेन श्री सुविधिनाथ बिंबं का० प्र० श्री धर्मघोष गच्छे श्रीपद्मशेखरसूरि पट्ट े भट्टारक श्री पद्मसूरिभिः || श्री ॥
( १=१६ ) श्री शांतिनाथादिचौवीसी
३५१
।। ६० ।। संवत् १५५६ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ८ शुक्रे श्री श्री वंशे में | महिराज भा । लंगी पुत्र मं । नारद श्रावण | पूरी वृद्ध भ्रातृ मं० महीया भा० रंगी पुत्र मं० जिणदास प्रमुख समस्त कुटुंब सहितेन स्वश्रेथोर्थं श्री अंचल गच्छेश श्री सिद्धान्तसागरसूरीणामुपदेशेन श्री शांतिनाथ मूलनायक विंशति पट्टः का० प्र० श्रीसंघेन श्री गोमडल नगरे ||
( १८१७ ) श्री नमिनाथ जी
|| संवत् १५३६ वर्षे फा० सुदि ३ दिने श्री ऊकेश वंशे पारिक्ष गोत्रे । प० महिराज भार्या महिगलदे पु० प० कोचर लींबा । आका । ग्रजा । तेजादि संहितेन श्रेयोर्थं श्री नमिनाथ बिंबं का० प्र० श्री खरतर गच्छे श्री जिनभद्रसूरि पट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः ॥ श्री ॥
( १८१८ )
श्री नमिनाथादि चौबीसी
|| संवत् १५३२ वर्षे वैशास्त्र बदि १० शुक्रे श्री श्रीमाल ज्ञा० गामी जेसा भा० जसमावे सुत सूरा वाधा कर्मसीकेन भार्या कामलदे सुत नागा आत्म श्रेयोर्थं श्री नमिनाथादि चतुर्विंशति पट्ट कारितं प्रतिष्ठितं श्री चैत्र गच्छे धारणपद्रीय भट्टारक श्री सोमदेवसूरिभिः मूजिगपुरे !
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
( १८१६ )
श्री श्रेयांसनाथ जी ॥ सं० १५१६ वर्षे प्राग्वाट सा० महणसी सुत सा० देपल भा० पदमिणि सुत पदमण भार्या कपरात स्वश्रेयसे श्री श्रेयांसनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्री सोमसुंदरसूरि शिष्य श्री श्री रमशेखर सूरि श्री श्री उदयनंदिसूरिभिः मंडप महादुर्गे।।
( १८२०)
श्री श्रेयांसनाथ जी ॥ सं० १५५६ वर्षे आसाढ सुदि १० बुधे ओसवाल झातीय नाग गोत्रे सा० बिजा भा० रूपी पु० नादा भा० लाछलदे स्वकुटुंब पुत्रपौत्रादि युतेन श्री श्रेयांसनाथ विषं कारितं प्रतिष्ठित श्री नाणकीय गच्छे श्री धनेश्वरसूरि पट्टे भ० श्री महेन्द्रसूरिभिः ।। श्री।
( १८२१) संवत १५८७ वर्षे ।। शाके १४५२ प्रवर्त्तमाने पोष बदि ६ रवौ श्रीपद्धतपा पक्षे । भ । श्रीविजयरत्नसूरि भ० श्री श्री श्री धर्मरबसूरीश पट्टालंकरण शिष्य भ० श्रीविद्यामंडनसूरिभिः । स्वगण श्रेयसे । श्रीशांतिनाथ बिबं कारितं ।। प्रतिष्ठितं श्रीपूज्य भ० श्रीदिद्यामंडनसूरिभिः ।। श्रीरस्तु ।।
। १८२२ ) संव १६६६ वर्षे माह सुद ६ दिने रविवारे माल्हा देदू तत्पुत्र लालचंद गुलालचंद नारायणचंद अबीरचंद उत्तमचंद प्रमुख भ्रातृभिः श्री (घ) मनाथ बिंबं का. प्रतिष्ठित श्री वृहत्खरतरगच्छाधीश्वर युगप्रधान श्री जिनराजसूरिभिः शि० ३० श्रीरत्नसोमाभिधानैः
(१८२३) सं० १५०६ वर्षे का० सु० १३ ऊकेश वंशे रीहड़ गोत्रे वकण भा० बारु सुत सा० जेठाकेन भार्या सीतादे पुत्र मालो बग्गा ईसर प्रमुख परिवार युतेन श्री श्रेयांस बिंध का० श्री० खरतरगच्छे श्री जिनराजसूरि पट्ट श्रोजिनभद्रसूरिमिः प्रतिष्ठितं ।।
(१८२४) सं० १५३४ ब० मा० सु०६ श० श्री मा० सा० जूठा भा० बईहली पु० सा० पता सूराके० निजकुटुंब पूर्वज श्रेय० श्री सुमतिनाथ बिवं कारा०प्रति० श्री पू० प्रथम शा० श्री ज्ञानसुदर सूरीणामुपदेशेन ।
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( १८२५ )
सं० १५३३ माघ बदि १० ऊकेश सा० नेसा भा० तेजू पुत्र सा० मांडणेन भा० हीरादे पुत्र रहिआ भ्रातृ सा० ईसर यस्तादि कुटुम्ब युतेन श्री सुमतिनाथ जिनं कारित । प्रतिष्ठितं श्री सूरिभिः वीजापुरे ॥ श्री ॥
11
( १८२६ )
सं० १५३५ वर्षे मा०सु०५ गु० डीसा० श्रे० काला भा० जइतू सु० बाघाकेन भा० रूपाई सु० हासा भ्रा० हीरा माधवादि कुटुम्ब श्रेयसे श्रीसंभव बिंबं का० प्र० तपागच्छी श्री श्री लक्ष्मीसागरसूरिभिः ॥ श्री ॥
१८२७ )
संवत् १६६१ वर्षे माहा सुद ११ खौ श्री बहनपुर वास्तव्य श्री श्रीमाल ज्ञातीय बृद्ध शास्त्रीय सा० रायमल भार्या सोभागदे ना कृपा स्वप्रतिष्ठायां श्री नमिनाथ बिंबं कारापितं प्रतिष्टितं च श्रीमत्तया ( ? पा ) गच्छे भ० श्री होरविजयसूत । भ । श्री बिजयगे (? से) म सू० त० भ० श्री ति ( ? बि ) जयतिलकसू० त० भ० श्री विजयानंदसूरिभिः पंडित श्री मानविजय प शिष्य प श्री भविजयगणि ( १ ) 1
( १८२८ )
सं० १५१८ वर्षे आषाढ सुदि १० बुध दिने प्रा० व्य० हीराभार्या हीमादे पु० हेमा भार्या माल् पु० सोमा सहित (? ते ) न पितृ मातृ श्रेयसे श्री अजितनाथ - बिंबं कारितं श्री साधु पूर्णिमा पक्षीय भटारि श्री देवचंद्रसूरि उपदेशेन ||
( १८२६ )
सं० १४६३ वर्षे पौष बदि १ शनौ सूराणा गोत्रे सं० हेमराज भार्या हेमादे पुत्र सं० सच्चूकेन आत्म पुण्यार्थं श्रीकुंथुनाथ बिंबं का० प्र० श्री धर्मघोष गच्छे भ० श्री पद्मशेखर पट्ट भट्टारक श्री विजयचंद्रसूरिभिः ।
( १८३० )
सं० १८५७ वर्षे आषाढ बदि १० शुक्रे रेवत्वा श्री दूगड़ गोत्रे सं० रूपा पु० सा० सहसू भार्या लूणाही पु० सालिगेन पुत्र अभयराज सहितेन स्वपित्रो पुण्यायं श्री कुंथुनाथ मि कारितं । श्रीबृहद्रच्छे पू० श्री रत्नाकरसूरि पट्ट े श्री मेरुप्रभसूरिभिः प्रतिष्ठितं ।।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
सं० १५०६ वर्षे मार्ग सु० ६.श्री उपकेशगच्छे । सूआ गोत्रे सा० गिरराज पु० दाला भा० हीरादे पु० आमा। सूराभ्यां श्री कुन्थुनाथ का० प्रति० श्री ककसूरिभिः ।।
( १७३२ ) सं० १४४२ वर्षे सास सुदि १० सुराणा गोत्रे साण लूलू भार्या सा० सूलणदे पुत्र सा० बांगणेन स्वपित्रोः श्रे० श्री चन्द्रप्रभ बिंबं का० प्र० श्रीधर्म...... (घोष?) श्रीसागरचंद्रसूरिभिः।।
( १८३३)
खण्डित परिकर की पंचतीर्थी सं० १४६३ मा ।..............
....'लेन श्री शांति बिका०प्र० ऊकेश गच्छे कुकुदाचार्य सं० देवगुप्तसूरिभिः ।।
(१८३४) ____ सं० १५४८ वर्ष वैशाख सुदि ५ लौकड़ गोत्रे। मंत्रि शिवराजन्वये सा। गगम पुत्र तोज पापालेन पुत्र सधाण सहितेन पितृ मातृ पनाथर्थ ( ? पुण्यार्थ) श्री पार्श्वनाथ बिंबं कारित प्रतिष्ठितं नाणावाल गच्छे श्री धनेश्वरसूरिभिः ।। समस्तक (?)
सं० १४८७ वर्षे मार्गशीर्ष सुदि ५ सोमे श्री ऊकेश ज्ञातौ दूगड़ गोत्रे सा । कृत्त। भार्या तोलियाही नानी० गजसिंहेन भ्रातृ ऊदा श्रेयोथं श्री श्रेयांसजिन बिबं कारित प्र० रुद्रपल्लीय श्री हर्षसुंदरसूरि पट्टे श्री देवसुन्दरसूरिभिः ।। श्री॥
सं० १५२४ बैशाख सुदि ६ गुरौ उपकेश झातौ । आदित्यना गोत्रे सा० लापा पु० मेहा भा० माणिकदे पु० सा० चापाकेन भा० चोपलदे रोहिणीयुतेन पित्रोः श्रेयसे नमि बिबं का० प्र० उपकेश ग० ककु श्री कमसूरिभिः ।
संवत् १३६७ फागुण सुदि ३ श्रीमूलसंघ खींडेलवालान्वये स.........णघउ राजा सुत को दुवौ ..... - णम | प्र॥
__ श्री मुनिसुव्रत पंचतीर्थी ॥ सं० १५१६ मार्ग बदि १ रवौ सत्यपुरोय ऊकेश ज्ञातीय सा० नरा मा० डाही पु० सा० नीबाकेन भा० धरण प्रमुख कुटुंब युतेन श्री मुनिसुव्रत विषं का०प्र० श्री तपागच्छे श्री श्री श्रीमुनि सुंदरसूरि प? श्री श्री श्री रबशेखरसूरिराजेद्रैः ।।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
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(१८३६)
श्री शान्तिनाथ चौमुखी जी सं० १६८७ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १ दिने दधीलिया वास्तव्य सा० लाला भा० कपूरां श्रीशांति. नाथ बिबं कारापितं तपा गच्छे भ० श्री विजयदेवसूरि पादे पं० विनयविमलगणिभिः।
(१८४०) संवत् १६०५ वर्षे फागण बदि ३ गुरुपदे श्री सतवास वास्तव्य ओसवाल झातीय सा० अभराज भा० रंगां बिबं कारितं प्रतिष्ठितं तप गच्छे श्री विजयदानसूरिभिः ॥
(१८४१) श्री वासुपूज्य बि० प्र० तपा श्री विजयसेनसूरिभिः आ० अ० वा.
( १८४२ )
श्री शीतलनाथ पंचतीर्थी संवत् १५६५ वरषे महराजा ! रणा देसथना पूना रणमल श्री शीतलनाथ ।
(१८४३ ) ॥ ६०॥ संवत् १५०६ वर्षे मार्गशीर्ष सुदि ६ दिने श्री ऊकेश वंशे साहूसखा गोत्रे सा०सखा भार्या खेडी तत्पुत्र सा० डूंगर श्रावकेण पुत्र सा० धासायरादि परिवार सहितेन निज पुण्याथ श्री आदिनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं च श्री खरतर गच्छे श्रीजिनराजसूरि पट्टे श्री जिनभद्रसूरि राजभिः ॥
(१८४४)
श्री पार्श्वनाम जी सं० १६७६ मूलसंघ भ० रमचंद्रोपदेशात् सीखप्पभामाणिक मा० पापल्ली सुतपदास्थ भार्या दप्तां सुत नोवा हेमा रक्षा प्रणमति ।
श्री पाश्वनाथ जी सं० १६६७ म..................... ..|| ११॥ रायकुबरि ।
सपरिकर पार्श्व प्र . सं० १५८३ वर्षे को० ढोमा भा० रंगादे पु० को चांगा पु० उदकर्णे।
(१८४७)
काउसग्गिया जी संवत् १५४८ वर्षे वैशाख मु०५ श्री मूलसंधे बादलजोत शिष्य जीवा भगोकरापित ।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
( १८४८)
पार्श्वनाथ जी संवत् १८४६
( १८४६ )
पार्श्वनाथ जी संवत् १८०७ चैत्र.........
( १८५०)
शांतिनाथ जी सं १६०६ महिरवाई श्री शांति त.
( १८५१ ) सं० १०१८.............. """"ग मसर..
( १८५२)
श्री पार्श्वनाथजी ....... ........'माय सु० ५...... श्री विजयजने ....... सूरिभिः ।
(१८५३ ) सा० अषइ केन कारितं
( १८५४)
धानुयंत्रस्य प्रतिमा सं १६६६ सिंधुड़ सा० गोपीनान पेमला सुत यणराजेन *० प्र०
( १८५५ ।
यंत्र राथ पर इदं यंत्रराज प्रभावात् गोलछा भानीसंघ रे ऋद्धि वृद्धि पुत्र कला सुख कुरु कुरु शुमंभवतु ।
( १८५६ )
रजत के नवपट्ट यंत्र पर सेठ वखतावरचंदजी कारापित सेवखतावर कारापितं मि० ब० जे० दि १९२३ ।।
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श्री पद्मप्रभु जी का मन्दिर ( पन्नी बाई का उपाश्रय )
पाषाण प्रतिमाओं के लेख
( १८५७) सं०। १८८३ व माघ सु०५ बीझवान समस्त सं । म । वरकाणा नगरे श्री मल्लि विंबं भ । श्री विजयजिनेन्द्रसूरिभिः ।प्र। श्री तपा गच्छे।
(१८५८) सं। १८८३ रा माघ सु ५ गुरौ बोझवो समस्त सं। श्रीऋषभाकान(? नन) श्री श्री विजयजिनेन्द्रसूरिभिः प्रति । श्री वरकाणा नगरे।।
( १८५६ ) २० १६०४ राप्र। ज्येष्ठ कृष्णपक्षे ८ तिथौ श्री धरमजिन बिबं । प्रति ! बृहत्खरतर गच्छे जं। यु । प्र। भ! श्री जिनसौभाग्यसूरिभिः वृहत्ख । का। वो। हिंदूमलजिद्भार्या कनना बाई स्व श्रेयोथं ।
___सं। १९३१ मिते वैशा ! शुश्लैकादश्यां ति । श्री मल्लिनाथ बियं प्रति । वृ। भ। श्री जिनइंससूरिभिः कारितं च गो। कोदूमल भार्या अणंदकुमरिकया श्री बीकानेरे ॥
(१८६१ ) सं० १९१६ मि । वै। सु । ७ श्री ऋषभ जिन बिंबं म । श्री जिनसौभाग्यसूरिभिः प्र! गो। सा। गंभीरचंदेन का। श्री वृहत्खरतर गच्छे ।
(१८६२) सं। १९१६ मि । वैशाख सुदि ७ दिने श्री सुमतिजिन बिंब भ । श्री जिनसौभाग्यसूरिभिः प्रापा। सा । भैरूदानजी करापितं च वृहत्खरतरगच्छे
____ सं० १६०४ मि । प्र! ज्येष्ठ कृष्ण ८ तिथौ श्री....... ....बि । प्रति वृहत्खरतर गच्छे अंयु ।प्र। म । श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः का० ताराचंद जिद्भार्या ............"स्वश्रेयोथ।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
( १८६४) सं। १९१२ शा १७७७ मिगसर मासे कृष्णपक्षे पंचम्यां तिथौ बुद्धवारे विक्रमपुर धास्तम्य मुकीम मोतीलाल श्री शांति जिन बिबं कारापितं वृ । ख । आ। जं श्री हेमसूरिभिः प्रतिष्ठितं ।। श्री सिरदारसिंघ ..... .. ( जी विजयराज्ये ।
सं : १६०५ वर्षे मि। पैशाख सुदि १५ दिने ढढा सा! भैरूदान श्री शांतिनाथ बिब कारापिसं प्रतिष्ठितं च । जं । यु ।....... ...... श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः ।
(१८६६) __ सं० १६१२ शा० १७७७ मिगसर मासे कृष्णपक्षे पंचम्यां तिथौ बुधवारे श्रीविक्रमपुर वास्तव्य मुकीम मोतोलाल श्री वासुपूज्यजी जिन विवं कारापितं वृ । ख । आ । जं। श्रीजिनहेमसूरिभिः प्रतिष्ठितं श्री सिरदारसिंघजी विजयराज्ये ।
सं० १६१६ मि० । वै। सु । ७ श्री अरनाथ जिन बिंबंभ। श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः प्र । बाई मह कुमर कारा० श्री वृहत्खरतर गच्छे ।।
( १८६८ ) ___ सं० १९३१ । मि । वै शुक्ल ११ ति । श्रीमहावीर जिन बिंब प्र० ० ख० भ० श्री जिनहंससूरिभिः नानगा हीरालालजी गृहे भार्या जिड़ाव का० .... ..." बीकानेर।
(१८६६) सं० १८८३ वर्षे मि० माघ सुदि पंचम्या श्रीविजयजिनेन्द्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं श्री ऋषभदेव जिन बिच ॥ श्रीवरकाणा नगरे ॥ श्री॥
(१८७०)
माणिभद्र यक्ष प्रतिमा रवांकारि चंद्र प्रसमे द्वितोये भाद्रे सित षष्टि गुरौ च ये श्री। श्री मत्तपासिचक येन बिंचं प्रतिष्ठित संघगणे समे ।। श्री माणिभद्रस्य
धातु प्रतिमाओं के लेख
( १८७१)
चौबीसी जी सं। १९३१ व । मि । थे। सु । ११ ति । चौवीसीजो ।प्र। छु । ख ! ग ! भ । श्रोजिनहंससूरिभिः कारितं बाई नवली अयोर्थम् ।।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
રપદ
(१८७२)
श्री पार्श्वनाथ जी सं० १४८३ वर्षे मार्ग वदि ७ दिने डीसावाल झातीय व्य. चांपा भार्या संसारदे तत्सुता गांगी नाम्न्यां सुत समधर माधव शिवदास सूरी युतया स्वश्रेयो श्री पार्श्व जिन बिंब कारित प्रतिष्ठितं तपागच्छनायक श्री सोमसुंदरसूरिभिः॥
श्री नमिनाथजी सं० १५०८ ज्येष्ठ सु. ७ बुधे प्राग्वाट वंशे लधु सन्ताने मं० रतनसी भार्या सरसति पु० मं० जोगा सुश्रावकेण भा० राणी पुत्र पथा। पाल्हा ! पौत्र मेघा! कुंदा ! धणपति पूरा सहितेन श्री अंचल गच्छेश श्रीजयकेसरसूरिणामुपदेशेन स्वश्रेयसे श्री नमिनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीसंघेन ।
(१८७४)
श्री आदिनाथ जी सं० १५२८ वर्षे आषाढ सुदि २ दिने उकेश वंशे रांका गोत्रे श्रे० नरसिंह भा० धीरणि पुत्र श्रे० हरिराजेन भा० मघाई पु० श्रे० जीवा श्रे० जिणदास श्रे जगमाल श्रे जयवंत पुत्री सा. माणकाई प्रमुख परिवार युतेन श्री आदिनाथ वि पुण्यार्थ कारयामासे प्रतिष्ठितं श्री खरतरगच्छे भी श्री श्री जिनभद्रसूरिप४ श्री श्री श्री जिनचंद्रसूरिभिः ।।
संवत् १४९२ वर्षे वैशाख बदि १० गुरु श्रीमूलसंधे सरस्वती गच्छे नंदिसंघ० बलात्कार गणे भट्टारक श्रीपद्मनंदिदेवान् तत्पट्टे श्री शुभचंद्रदेवान् । तत्भ्राता श्रीसकलकीर्तिउपदेशात् हुंबड़ न्याति ऊत्रेश्वर गोत्रे ठा० लीबा भा० फह० श्री पार्श्वनाथ नित्यं प्रणमति सं० तेजाः टोईआ ठाकरसी होरादेवा मूडली वास्त० प्रतिष्ठिता ॥
___ सं० १५२५ वर्षे मार्गसिर सुदि ३ शुक्रवासरे गोखरूगोत्रे सा० खिमराज भा० खेत् पु० नार्थं भन्नी नाथो आत्मपुण्यार्थे श्री मुनिसुव्रतस्वामि बिंबं कारापितं शृणस्वि (१ ) तपागच्छे प्रतिष्ठित श्री जयत्यिपसूरिभिः (१)॥
( १८७७ ) ___सं० १५२४ बर्षे वै० सु० ३ सोमे श्री श्रोमा० ज्ञा० व्य० गंधू भा० लाछ सु० भोलाकेन भा० लखाई पु० हरपति पासचंद श्रीपति प्रभृ० कुटुंब युतेन स्वगोत्र श्रेयोथं श्री पार्श्वनाथ विवं श्रा पू० श्रीपुण्यरजसूरीणामुपदेशेन कारितं प्रतिष्ठितं च विधिना स्तंभे ।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
( १८७८ )
सं० १५८१ वर्षे वैशाख सुदि २ सोमे उ० ज्ञातीय सा० नरपाल भा० लखमी पु० जीवा भा० होरादे का० मातृ लखमी नमित्त खश्रेयोर्थ श्री धर्मनाथ बिंबं का० श्वश्रेयसे प्र० श्रीजिनहंससूरिः
१६०
( १८७६ )
सं० १५२० वर्षे षै० ब० ८ शुक्रे ३० ज्ञा० पा० षाडाकेन भा० बील्हणदे द्वि० रंगाई युतेन तथा पु० जोगा पहिराज सहितेन भा० वील्हणदे निमित्तं श्री पार्श्वनाथ बिंबं । श्रीसाघ पू० पक्षे श्रीपुण्यचंद्रसूरि उपदेशेन विधिना श्रीसूरिभिः ॥
( १८८० )
सं० १५२२ का० ब० १ प्राग्वाट श्रे० फाटा भा० राभू पुत्र श्रे० घीणा सा० धनी नाम्या देवर धादि कु० युतेन स्वश्रेयसे श्रीशीतल बिंबं का० प्र० तपा श्रीसोमसुंदरसूरि संताने श्रीलक्ष्मीसागर सूरिभिः || अहमदावाद बास्तव्य ||
( १८८१ )
सं० १४७१व० माघ वदि १३ बुधे प्राग्वाट ज्ञा० व्य० थाहरू भा० हांसी पु० खेता चाहड़ाभ्यः भ्रातृ गला निमित्तं श्रीशांतिनाथ बिंबं का० प्र० कच्छोलोवाल गच्छे श्री सर्वाणंदसूरिणां ॥
( १८८२ )
श्री सप्तकरणा पार्श्वनाथ जी
|| सं० । १६०४ प्र० ज्येष्ट व । ८
( १८८३ )
संवत् १६४६ जेठ सुदि ६ कठरी हरखा भ० बेहरगदे श्रीचंद्रप्रभ सम प्रतलकसिलाखा ( १८८४ )
नं माली बैसाख संतोषचंद ॥
संवत् १८४६ पारवजी जिनं पर्ट
( १८८५ )
सं० १६०४ प्र० ज्येप्ट । व । ८
।
प्रति भ० श्री जिनसौभाग्यसूरिभिः खरतरग
( १८८६ )
नवपद यंत्र पर
सं० १८६४ आषाढ सुद ५ प्रतिष्ठितं । दीपविजयेन श्रीतपागच्छे कारापितं श्रीसंघेन ।
( १८८७ )
ष्टा
संवत् १५१८ वैशा १० गुरौ भट्टारक श्रीकमलकीर्त्तिः अप्रो पं०" का रुप० वीहो भोजा
(त)
प्र
कान्वये गोइल गोत्रे सा० लाधू भा० अडली पु० तेन सम्यक्ता यंत्र प्रतिष्ठापितं ...
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श्री महावीर स्वामी का मन्दिर
( आसाणियों का चौक )
पाषाण प्रतिमा का लेख
( १८८८ )
श्री मुनिसुव्रत स्वामी संवत् १६७४ वर्षे माघ ब०१ दिने श्री......... . . . . भीमुनिसुव्रत स्वामि .......... .
धातु प्रतिमाओं के लेख
(१८८६)
श्री शीतलनाथ जी सं० १५३४ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १० दि० श्रीऊकेश वंश दोसी सा० भादा पुत्र सा० धणदत्त श्रावकेण पुत्र सा० वच्छराज प्रमुख परिवार युतेन श्री शोतल बिवं माह अपू पुण्यार्थ कारित प्र. खरतर श्री जिनचंद्रसूरिभिः ।
( १८६० )
पीतल के सिंहासन पर सं० १३६० आषाढ सु०८ सुराणा गुणधर सुत थिरदेव भार्या द्रेही पुत्र सा. पदाकेन सा० पद्मलदेवि पुत्र सूरा साल्हा .............."स्वश्रेयाथं मल्लिनाथ का० प्रति० श्रीधर्मघोषसूरि पट्टे श्रीअमरप्रभसूरि-शिष्य श्री ज्ञानचंद्रसूरिभिः
(१८६१)
__ श्री पार्श्वनाथजी सं० १६१६ वर्षे श्री पार्श्वनाय बिवं प्रतिष्ठितं श्री जिनचंद्रसूरिभिः
(१८९२)
छोटा प्रतिमा पर भीमूलसंधै भट्टारक शुभचंद्र पच्छिष्या बाई दाही नित्यं प्रणमति ।।
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बीकानेर जंन लेख संग्रह
(१८६३ )
श्री शांतिनाथ जी ॥सं० १४६६ फागुण बदि ६ बुधे उकेश ज्ञातीय मं० जगसी भा० मबकू पुत्र्या श्रा० रोहिणी नाम्न्या क० जिणदेवाख्य स्वभर्तृ निमित्तं श्रीशांतिनाथ बिघं का. प्रतिष्ठितं श्री कोरंट गच्छे श्रीककसूरि पढ़े श्रीसावदेवसूरिः॥
(१८६४)
श्री धर्मनाथ जी संवत् १४६७ वर्षे ज्येष्ठ सुदि २ सोमे प्राग्वा (ट व्यव० जइता भार्या वरजपु० लुठा स.. आत्मयोथं श्रीधर्मनाथ बि कारितं । प्रतिष्ठितं श्री मंडा श्रीमुनिप्रभसूरिभिः॥
( १८६५)
श्री कुन्थुनाथ जी सं०१५० वर्षे मार्ग सुदि ७ ऊकेश वंशे गा (१मा लू शाखायां सा० पूना सुत सा० सहसाकेन पुत्र ईसर महिरावण गिरराज माला पांचा महिया प्रमुख परिवारेण स्वनेयोथं श्रीकुंथुनाथ बिंबं का० श्री खरतर गच्छे श्रीजिनराजसूरि पट्ट श्री जिनभद्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं ।। श्री।।
( १८६६ )
श्री संभवनाथ जी संवत् १५१० वर्षे माघ सुदि ५ दिने श्री ऊपकेशगच्छे! कुकदाचार्यसंताने भाद्र गोत्रे सा. साधा पु० सा० सारंग भा० तल्ही पु० खोमधर भा० जेठी पु० खेता खेडायुतेन आत्मश्रेयसे श्रीसंभवनाथ बि० का प्रति० श्रीककासूरिभिः ।
१८६७ )
श्री आदिनाथ जी सं० १५१८ वर्षे माघ सु०५ बुधे ऊकेश शुभ गोत्रे श्रे० आसधर पुत्र में पूनड़ भार्या फनी पुत्र सो० करमणेन भार्या कर्मादे धर्मपुत्र सो० समरा भार्या सहजलदे सुत तेजादि कुटुंब युतेन श्री प्रथम तीर्थकर बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीसूरिभिः। श्री सिद्धपुर वास्तव्य ॥
(१८६८)
श्री कुथनाथ जी संवत् १५३६ वर्षे फागुण सु० ३ तइट गोत्रे सा० सीधर पुत्र गुरपतिना भा० धारलदे पु० सहसा युतेन भार्या संसारदे पुत्र करमसी पहराज युतेन श्रीकुंथुनाथ बिंबं निज पुण्यार्थ कारित प्र. मोमदाल (१ मोसवाल ) गच्छे श्रीदेवगुणसूरिभिः ।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
( १८६६)
___ श्री पार्श्वनाथ जी ॥ ६० ॥ सं० १५३६ वर्ष वैशाख सुदि ४ शुक्रे उ० ज्ञातीय प्राझचा गोत्रे म्य० चांटा मा० धम्मिणि पु. गांगा भा० स्यापुरि सहितेन श्रीपाश्वनाथ बिबं का० प्र० भावड़गच्छे श्रीभाब देवसूरिभिः ॥ श्री ॥
(१६००) संवत् १५४६ वर्षे शाख सु० ५ बुधे । काष्टासंघे भट्टारक श्री.. .. .. देव सस्याम्नाये सा० भ्रमर भा। सिरि पुत्र विमलनाथ वेमसिरि पुत्र कर्मक्षय निमित्तं प्रतिष्ठाकारितं प्रतिष्ठितं ।
(१६७१) __ श्री विमलनाथ चतुर्विशति प्रतिमा ॥ संवत् १५६१ वर्षे माह सुदि ५ दिने शुक्र हुंबड़ ज्ञातीय श्रे विजपाल भा० होरू सु० अ० पदमाकेन भा० चापू सु० खोना भा० रखी सु० कर्मसी प्रमुख परिवार परिवृतेन स्वश्रेयोथं श्रीविमलमाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं तपागच्छाधिराज श्रीलक्ष्मीसागरसूरि तत्प? श्रीसुमतिसाधुसूरि वत्पट्टे सप्रित विद्यमान परमगुरु श्रीहेमविमलसूरिभिः ।। वीचावेडा वास्तव्य ।।
(१६०२) सं० १५८७ वर्षे बैशाख वदि ७ श्री ओसर्वशे छजलाणी गोत्रे। पीरोजपुर स्थाने ! सा० धनू भार्या ... सुत सा० वीरम भार्या वीरमदे सुत दीपचंद उधरणादि कुटुंब युतेन श्रीसंभवनाथ बिबं कारितं । प्रतिष्ठितं.......
(१६०३) ॥ संवत् १५६६ वर्ष वैशाख सुदि ३ सोमवारे आदित्यनाग गोत्रे चोरवेड्या शाखायां सा. पासा पुत्र ऊदा भार्या उमादे पु० कामा रायमल देवदत्त ऊदा पुण्यार्थ शांतिनाथ विंबं कारापितं उपपल० सिद्धसूरिभिः प्रति०।
( १९०४) संवत् १६२७ वर्षे पोष बदि ३ दिने साह छाजड़ गोत्रे साह चापसी भार्या नारंगदे पु० श्री वासुपूज विंबं कारापत प्रतिष्ठितं श्रीहीरविजयसूरिभिः ।।
(१९०५)
चांदी के नवपद यंत्र पर सं० १६७४ शा० १८३६ नभ मास आश्वन शुभ शुक्लपक्ष २ सरावग बावणचंद
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श्री संखेश्वर पार्श्वनाथ जी का मान्दर
(आसाणियों का चौक)
धातु प्रतिमाओं के लेख
(१९०१)
भी संभवनाथ जी सं० १५३२ वर्षे फागुण सु.................... बिंबं श्रोसंडेरगच्छे भट्टारिक श्रीसावसूरिभिः प्रतिष्ठिसं ।
.......... श्री संभवनाथ
(१९०७)
॥ सं० १५०८ ५० धै० म०५ दिने सोम ओसवाल ज्ञातीय सुचिंती गोत्रे सा० धन्ना भायां अमरी पु० तोलूके० स्वपूर्वज राजा पुण्यार्थ श्रीवासुपूज्य बिबं का० उप० प्र० श्रीकक्कसूरिभिः॥
(१६०८) सं० १५३४ वर्षे मार्ग दि ५ सोमे श्रीउपकेश वाम गोत्रे । सा० वच्छा भा० वीरिणि पु० सा० सच्चू भा० लखमादे मातृ पितृ पु० श्रीकुंथुनाथ बिंब कारापितं श्रीमलधर ग० प्र० श्री गुणनिधानसूरिभिः॥
( १९०६) सं० १५३६ वर्षे फागु सु० २ रवौ ओसवाल धामी गोत्रे सा० पदमा भार्या प्रेमलदे पु. भोला भा० भावलदे पु० देवराजयुतेन स्वपुण्यार्थ श्री विमलनाथ बिंबं कारापितं प्र. ज्ञानकीय गच्छ श्री धनेश्वरसूरिभिः !। सीरोही शुभं ।।
(१९१०) संवत् १५३६ वर्षे फाग सु० ३ दिने उकेश...."रा गोत्रे सा० दूल्हा पुण्यार्थ पुत्र सा० अखयराजन भ्रातृ ली ............................."युतेन श्रीनेमिनाथ बिंब का०प्र० श्री खरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः ॥ श्री
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
(१६११) संव० १६५५ वर्षे चैत्र सु० १३ प्र० सिधसू०
( १९१२ )
श्री पार्श्वनाथ जी संवत् १५६३ श्रीमूलसंघे मंडलाचार्य श्रीधर्मनं आम्न्याये सा० रणमल मागाणी भा० रैणादे नित्यं प्रणमति
( १९१३ ) श्री पार्श्वनाथ जी सं० १८६३
( १९१४)
सिद्धचक्र यंत्र पर सं० १८५३ वर्षे वैशाख मासे शुक्ल पक्षे तिथौ ६ सिद्धचक्र यंत्र प्रतिष्ठितं बा० लालचंद्र गणिना वृहत्खरतरगच्छे कारितं बीकानेर वास्तव्य बांठीया गोत्रे नथमल मोतीचंद्रण श्रेयोर्थ ॥
ताम्र के यंत्र पर सं० १८१६ वर्षे आसन सुदि १५ समेताद्रि उपनटे प्रतिष्ठितं कर्म निर्जरार्थे
( १९१६)
ताम्र के यंत्र पर सं० १८१६ वर्षे आसन सुदि १५ समेताद्रि उपनटे प्रतिष्ठितं कर्म निर्जरार्थे
। १६१७) सं० १५५२ वर्षे फा० सु० ६ शनौ ओस० ज्ञातीय सा० मुज भा० मुजादे पु० सा० परवत भा० अमरादे सा० पर्वत श्रेयोथ भी विमलनाथ बिंबं कारितं प्र० तपागच्छे श्रीहेमविमलसूरि ।
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श्री गौड़ी पार्श्वनाथ जी का मन्दिर
( गोगा दरवाजा )
पार्श्वनाथ-पार्क पाषाण प्रतिमादि लेखाः
( १९१८ )
शिलापट्ट पर १ ॥ सं० १८८६ मिती माघ शुक्ल पंचम्यां श्री २ गौढ़ी पार्श्वनाथ प्रासादोद्धार श्री सं३ घेन द्वादश सहस्र प्रमितेन द्रविणेन का४ रितः महाराजाधिराज श्री श्री रतन५ सिंहजी विजयिराज्ये । श्रीमद्खर ६ तर गच्छाधीश्वराणां जं० यु०प्र० भट्टारक ७ श्री जिनहर्षसूरीश्वराणामुपदेशात् ।।
(१९१६ )
मूलनायक श्री पार्श्वनाथ जी सं० १७२३ वर्षे भ० ताराचंद पार्श्वनाथ विवं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनहर्षसूरिभिः खरतरगच्छे आधपक्षीय ॥
( १९२०) संवत् १६०५ वर्षे मि० वैशाख..................."श्रीकुंथुनाथ जिन वि। का। प्रति । बृहत खरतर गच्छे................."श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः का । सा । श्री............
( १९२१) सं० १९३१ वर्षे मि । वैशा । सु ११ । ति । श्री आदिनाथ जिन..... ...... ष्ठितं श्रीखरतर गच्छे श्रीजिनहंससूरिभिः
...Reenterta
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
२६७
( १९२२) सं० १८८७ मि। आषाढ सुदि १० दिने श्रीजिनहर्षसूरिभिः ..कारितं ॥
( १९२३) सं० १६१६ । मि । वै। सु ७ सुराल जिन विभ० श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः प्र० का । सा.
(१६२४) सं० १६१६ मि० ० ० ७ सुमति जिन बिंबं भ० श्री जिनसौभाग्यसूरिभिः प्र। ...................."भैहदान..................."
(१९२५) सं० १८७१ मिती वैशाख सुदि १० दिने गुरुवारे श्रीसंघन चिन्तामणियक्षमूर्तिः कारिता। प्रतिष्ठितं च ३० श्री क्षमाकल्याण गणिभिः
.................
धातु प्रतिमा लेखाः
( १९२६ ) संवत् १६१६ वर्षे वैशाख वदि ६ दिनौ। ओसवाल झासीय राखेचा गोत्रे म० हीरा भाी हांसू भा० हीरादे पुत्र देवदत्त भा० देवलदे सुत उदयसिंघ रायसिंघ कुटुंब युतेन म० देवदत्तम श्रीवासुपूज्य चतुर्विशति पट्टः कारापितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचंद्रसूरिभिःप्रतिष्ठितं ॥श्री!!
____सं० १६२८वर्षे वैशाख सुदि ११ दिने श्रीपत्तन वास्तव्य श्री श्री प्राग्वाट गनातीय प० परवत भा० बा० पावरी सुतचीरा भा० बा० मंगाई सुत जीवराज ॥ सुत जीवराज भ्रातृ लक्ष्मीपरा भार्या टयू। सुत देऊ लक्खाप्रमुख कुटुंब युतेन श्रीपद्मप्रभ बिंबं कारितः प्रतिष्ठितं च तपागच्छेश श्रीआणंदविमलसूरि तत्प? श्री विजयदानसूरि तत्प? श्रीहरिविजयसूरि शिष्य महोपाण्याय श्री कल्याणविजय गणिभिः
(१६२८ ) सं० १५४८ पैशाख सु०५ मूलसंघे सेणगण पक्कंरगणे भटा सोमसेण सभ्य राजसेण उपदे. खंडेलवालान्वये गगळल गोत्रे सा० उभाला भार्या .....
( १९२६) सं० १५१२ २० फा० सु० १२ बु उप० ज्ञा० सूधर गो० मं० लाखा भा० लाखणदे पु० पंजा प्रा० काजाकेन स्वपितरे नि० श्रीनमि बि० का०प्र० को० ग. श्री सर्वदेवमूरिभिः
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२६८
बीकानेर जैन लेख संग्रह
(१६३०)
संवत् १५१५ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ४ शुभ दिने श्रीमालवंशे भांडिया गोत्रे सा० महणा भा० नानिगी पु० आभा जाटा खेमपाल प्रमुखे मातृश्रेयसे श्रीवासुपूज्य बिंब कारितं प्रतिष्ठित खरतर गच्छे श्री जिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः ।।
सं० १५५६ व० शा० १४२४ प्र० माह बदि ४ सोमे काश्यप गोत्रे वडसखा श्री श्रीमाली ज्ञा० म० भोजा भा० रूपिणि पुत्र कान्ह भा० कामलदे पु० रत्नरसाव कुटुंब सहितेन आत्मपुण्यार्थ श्रीनमिनाथ बिंबं कारापितं प्रति० श्री पूर्णिमापक्षीय श्रीसूरिभिः ।। भाटीयाँ प्राम वास्त
( १९३२) संवत् १५७५ वर्षे आषाढ बदि ७ रवौ प्रा० व्य० सेखा भा० देल्हन पुत्र उदाकेन भार्या अनुपमदे पुत्र कोना गोइंद परिवारयुतेन श्रीवासुपूज्य बिंध कारितं प्र० श्री तपागच्छे गच्छनायक श्री जयकल्याणसूरिभिः
( १६३३ ) सं० १४१५ श्री उकेश ज्ञा. गोत्रे सा० भइया पुत्र लाला भा० माणदेवही पु० सा. काजाकेन आत्मश्रेयसे श्रीचन्द्रप्रभ बिं० का०प्र० श्रीरुद्रपल्लीय गच्छे श्रीगुणचंद्रसूरिभिः
( १९३४ ) संवत् १५२४ वर्षे मार्गसिर बदि १० दिने उकेश वंशे कुकट गोत्रे चोपड़ा सा० ठाकुरसी भार्या ऊमदे पुत्र सा० तुडा भार्या तारादे पुत्र जिणा वीदा वस्ता प्र० पुत्र परिवार सहितेन श्रेयोथं श्रीवासुपूज्य दिबं कारापितं प्रतिष्ठित श्री खरतर गच्छे श्रीजिनभद्रसूरि पट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः ।।
(१६३५) सं० १५१३ १० सु०३ ३० ज्ञा० ओछत्रवाल गोत्रे सा० राजा भार्या रयणादे पुत्र खेताकेन भा० खेतलदे पुत्र परसिंघ ताल्हा वजा यु० श्री शांतिनाथ रि भ्रा० हेल्हानिक प्र० श्री धर्मघोष गच्छे श्री महीतिलकसूरिभिः ॥
( १९३६ ) सं० १४२१ वर्षे माघ १० ११ सोमे वडालवी वास्तव्य श्री श्रीमाल ज्ञातीय पितृ पूना मातृ रणादे श्रेयोथं आगमिक श्री अभयसिंहसूरिणामुपदेशेन श्री आदिनाथ बिंब सुत सामल सोभाभ्यां कारितं प्रतिष्टि श्रीसूरिभिः॥
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
२६६
(१९३७) संव १५०५ वर्षे वैशाख सुदि ६ श्री उपकेश झातौ कुर्कट गोत्रे सा० धेना भार्या पूनी पु० खेमू भार्या सूहन पुत्र नगराज सहितेन मातृ पितृ श्रेयसे श्री धर्मनाथ विबं का० श्री पकेश गच्छे श्रीकुकुदाचार्य संताने प्रतिष्ठितं भ० श्रीककसूरिभिः
। १६३८ ) संवत् १४६६ वर्षे वैशाख सुदि ३ सोमे प्रा. शा० ब्यव गेदा भार्या सूहविदे सुव रत्नेन स्वकीय पूर्वज निमित्तं श्री पार्श्वनाथ बिषं कारापितं प्र० साधुपूर्णिमा पक्षीय म० श्री अभयचंद्रसूरीणा मुपदेशेन
(१९३६) सं० १३७० ब० चैत्र बदि ५ शुक्र पिस पदमसीह तथा भ्रातृ तिहुणा श्रेयसे गयपालेन श्री शांतिनाथ विखं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनदेवसूरिभिः
(१९४०) सं० १८००ब ............... .."सु० १० गुरौ ....."श्रीशांतिनाथ विकारित. श्रीसूरि
( १९४१) १७८५ सा० कुसालेन श्री धर्मनाथ बिंब का०
(१६४२) सं० १६१८ वर्षे मार्गसिर वदि ५ दिने सोमवारे घोपड़ा गोत्रे मं० कुमला आसकरण रणधीर सहसकरण सपरिवारेण श्रीपार्श्वनाथ विंबं कारापितं स्वश्रेयोथं प्रतिष्ठितं श्रोजिनचंद्रसूरिभिः
( १६४३)
अजितनाथ श्रीमूलसंधे खरहथ प्रणमति
( १९४४)
सं० १६७० ब० वै० सु० २ श्री श्रीमा० ज्ञा० सा० हंसराज भा० .... बाई पुत्री भास वाई प्र० कुटुंब यु० पार्श्वनाथ बि० का० प्रत० श्री विजयरेन (१ सेन ).........
( १९४५) सं० १५०३ भ० श्रीजिन र बद्र एवज्ञ साला० मूनेपी यु-भावा कारितं
(१६४६ ) श्री आदिनाथ श्री हीरविजयसूरि प्रतिष्ठितं श्राविका....... .....
(१९४७) सं० १३८६ मार्ग बदि ४ शनौ नादेवा गोत्रे हेमासुत सा० तूहकेन हरिया भ्रात पुत्रादि युतेन स्वपितुर श्रेयसे श्रीचंद्रप्रभव किं का० प्र० श्रीगुणभद्रसूरिभिः
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बीकानेर जैम लेख संग्रह
(१९१८) संवत् १५७० वर्षे माह सुदि ३ दिने श्री ऊकेश वंशे बोहित्विरा गोत्र मं० जेसल पुन मं० देवराज भार्या लखमादे पुत्र मं० दसू भार्या दूल्हादे पुत्र मं० रूपाकेन भार्या वोरा पुत्र मं० जयवंत मं० श्रीवंतादि युतेन श्रीचंद्रप्रभस्वामि बिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिन समुद्रसूरि पढे श्रीजिनहंससूरिगुरुभिः बीकानेर नगरे प्रतिष्ठितं ।। लिखितं सोनी देवा लाहाः ।।
( १६४६ ) संवत् १५७० वर्षे माह सुदि दिने श्रीऊकेश वंशे बोहित्थरा गोत्रे मं० देवराज पुत्र मं० दशरथ भार्या दूलादे पुत्र मं० जोगाकेन श्री बीकानगरे श्री सुविभिनाथ बिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्री खरतर गले श्री जिनसमहसूरि पट्टे श्रीजिनहंससूरिभिः
( १९५०) ___ सं० १५८६ वर्षे मार्गशीर्ष सुद ७ सोमे उकेश वंशे श्री बोहित्थरा गोत्रे मं देवराज पुत्र मं० दशरथ पु० मंत्री जोगा सुश्रावकेण पु० मं० पंचायण युतेन भ्रातृव्य परबत पुण्यार्थ श्रीसुमतिनाथ विवं कारित प्रतिष्ठिवं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनहंससूरि पट्टे श्रीजिनमाणिक्यसूरिभिः
(१९५१)
रजत की आदिनाथ प्रतिमा पर सं० १८६७ वर्षे वैशाख कृष्णेतर .........''दरा (१) गुरुवारे .... - 'ओस वंशे दारगाणी ढढा ज्ञातीय नेणसी टीकमसी तत्पुत्र जीलचंद तत्पुत्र बालचंद्रन श्रीआदिनाथ वि कारित प्रतिष्ठितं ..... ...( ? खरतरा) चायं गच्छीय श्रीजिनोदयसूरिभिः
देवी मूर्ति पर सं० १२७८ वर्षे पौष ब० १ गुरौ गंडलत्थ ग्रामे ठ० बाह्य भा० उ० लक्ष्मी श्रेयोथं ठ० पुत्र मेहणेन समस्त कुटुंब सहितेन रूपरिका कारापितः
(१९५३)
सर्वतं भद्र यंत्र पर सर्वतोभद्र पंत्र मिदं कारिसं प्रतिष्ठितं च ७० श्री श्रमांकल्याण गणिभिः सं० १८७१ मिते ज्येष्ठ बदि २ दिने।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
(१९५४)
सर्वतोभद्र यंत्र पर श्रीसर्वतोभद्र यंत्रमिदं कारितं प्रतिष्ठितं च सं० १८७२ मिते ज्येष्ठ पदि द्वितीया दिने २. श्री क्षमाकल्याण गणिमिः बीकानेर नगरे।।
सं. १८७७ मिती मिगसिर सुद ३१ का ।प्र। च । उ। श्रीक्षमाकल्याण गणिनां शिष्येण श्रीरस्तु।
श्री आदिनाथ जी का मन्दिर (गौड़ी पार्श्वनाथजी के अन्तर्गत )
( १६५६)
शिलापट्ट पर सं० १९२३ रा मिती फाल्गुण बदि ७ सप्तम्या.......... श्रीबृहत्वरतर............. ................."धान श्रीजिनहससूरिजी विजयराज्ये उ । म । श्री देवचंद दानसागर गणीली उपदेशात् सुराणा गोत्रीय सुश्रावक धर्मचंद्र............ .."वी सेठीया गोत्रीय गंगारामस्यांगजा सुभाषिका लाभकंवर बाई श्रीऋषभदेव महाराजस्य जिन बिबं स्थापितम् स्वस्थकल्याणाथ
(१९५७)
मूलनायक श्री आदिनाथजी संवत् १४६१ वै (१) सु० २.
धातु प्रतिमा लेखाः
( १६५८) सं० १५०१ वर्षे माघ बदि ६ बुधे उपकेश ज्ञातीय छाजह... मं० जूवि (ठि) भार्या जयबलदेवी तयो पुत्र मं० जसवीरेण भार्या लखमादेवी सहितेन श्रीअजितनाथ विवं कारितं श्रीखरतर गच्छे श्रीजिनधर्मसूरिभिः प्रतिष्ठितं
" ( १९५६)
सं० १४६५ व० ज्येष्ठ सु० १४ ओस वंशे सा. वहजा भार्या वहजलदे पुत्र सा० वीराकेन स्वश्रेयसे श्रीअंचलगच्छे श्रीजयकीर्तिसूरि उपदेशेन श्रीविमलनाथ वियं कारित ॥
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२७२
बीकानेर जैन लेख संग्रह
(१६६०) सं० १३७१ श्री वृहद्गच्छे से अहहू भा० वसुमति पु० शरतसिंघ सहितेन खेतसिंह भार्या लखमसिरि पुत्र राजड़ युतेन मातुः श्रेयसे आदिनाथ का० प्र० श्रीअमरप्रभसूरिभिः ।
(१९६१) संवत् १५१२ वर्षे फा० सु० १२ दिने श्रेष्टि गोत्रे सा० पाता भार्या पाल्हणदे तत्पुत्र श्रे० सहजपाल श्रे सालिग श्रावकेन भार्या संसारदे तत्पुत्र श्रे० सदादि परिवार युतेन श्री वासुपूज्य बिंब कारितं श्रीखरतर गच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः प्रतिष्ठितम् ।।।
श्री सम्मेतशिखर जी का मन्दिर (श्री गौड़ी पार्श्वनाथ जी के अन्तर्गत )
पाषाण प्रतिमादि लेखाः
( १६६२)
शिलापट्ट पर १ सं० १८८६ वर्षे शा। १७५४ मिते माघ शुक्ल ६ बुधे राजराजेश्वर म२ हाराजशिरोमणि श्रीरत्नसिंह जी विजयराज्ये से । गो। सा। बालचंद्र पु३ अ केशरीचंद्र पुत्र अमीचंद चतुर्भुज रायभाण करमचंद रावत अ४ गरू भ्रातृ युतेन विक्रमपुरे श्रीसम्मेतशिखरस्य विंशति जिनचरण ५ न्यासः प्रासादः कारितः प्र० वृहत्खरतर गच्छेश ज० यु० भ० श्रीजिनहर्षसूरिभिः ।।
(१९६३)
मूलनायक जी सं० १८८७ वर्ष आषाढ..........
... श्री सांवलिया पार्श्वनाथ बिंब बा । सहज....."
(१९६४) सं० १९०५ मि० वैशाख सुद १५ श्री आदिनाथ बिंब से । अमीचंदजी सपरिवारेण कारित
गुरु पादुका मन्दिर के लेख
(१९६५)
पट्टावली पटक (७० पादुका ) ॥ संवत् १८६६ मिते वैशास्त्र सुरि ७ दिने श्री बीकानेर नगरे श्री बृहत्खरतर गच्छाधीश्वर भट्टारक श्रीमत् श्रीजिनचंद्रसूरि पट्टालंकार भ। श्री जिनहर्षसूरि सद्धर्मराज्ये सकल श्रीसंघन सहर्ष श्रीमद् देव गुरुणांचरणन्यासा कारिता प्रतिष्ठितं च उ० श्रीक्षमाकल्याणगणिभिः श्रेयोर्थ ।।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह_9
श्रीमद् ज्ञानसार जी वाचक जयकीत्ति एवं सांवलजी के साथ
श्रीमद् ज्ञानसारजो
श्रीमद् ज्ञानसारजी, अमीचन्दजी सेठिया,
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
43साहर)बाबा श्रीमद
वा नारायरादेवजासामा
# श्रीमद् ज्ञानसारजीके प्रति बीकानेर नरेश सूरतसिंह
का खास रुका
पattite
AAVAN) स्वस्तिश्रा सरबजपमान
उम्मनबाबाजीश्रीश्रीश्रीश्र श्रीश्री5) श्रीनारामूरा देवनारसेवारतस्मिथ नधिोरमीतनमान] याबंदलामालमत्र एचसेवा परनु, फुरसावरण्यासमाचारस रासाइलो मलमाल जोबाइलबल वाईशपरेवराजपुर कुनायव्यहारमा
बस छरजीवरार)
गाऊयाप) दानेनरेशनहरनाराय NERPRरापईतिर पला A पधारतोनहार
॥जगास्नाजिनराया।एदेशीयविकारावलिअविह न्यासी निवपदमलनुपदिलायोरे जगजामतोमि राया तोराबुरनरणामणयारे जगजीएसज्वल गुणगणतनुन्यो सुपमटकेमनमोहरे जगजाय
पत्रवश्विदी जगवकोमयुतिजापर जूगर २नपद्यमयनिहन्त्रधारी अश्नितिकोनित रारजग सवायफानुले कृतिनाका निकंदर जग३अमताधारान्नमवारी मनाई जगजयकारीरजगह छामक्रमवारीमधारीयुद्ध तिकारीडाटागरे जग४अतीतअनागतिग्णातार स्त्रीमानकयविग्णतारेजगतिविमार
प्रचणगावितोरेजपत्रिजगत्राताजगर साता झोनाधिकरणनीतिरिजनधारनौल दधिनाय सुध्यधारकजगारेजगवा नंदनवराई उमनिजरचुरखमवार जगजीर झोनमारकछानिनवेदेतेविरनेदरेजगन ०७ तिथीवाजिमशन लिपीकताना रेसा सूरतिबिंटरमध्ये॥श्रीरका सुस
श्रीमद् ज्ञानसारजी की हस्तलिपि
ameramminesammtasnanaCORDINOSETOMORROR
ᎧᎧ6ᎧᎧᎧᏱᎶᏱᏥᎧᏊᎧᏊᏊᏊᏚ .
KAALLLLLLLLLLLLLLLLLLLLLLL
TELLLLLLLLLLLL
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श्री समेत-शिखर पट ( गौड़ी पार्व-नाथजी)
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
१६६६ )
श्री जिनकुशलसूर के चरणों पर
श्री जिनकुशलसूरि गुरु पादुके कारापिता । शुभं भवतुःः कोने में स्थित पादुकाओं के लेख
"पक्षे सप्तमी दिने सोमबारे शुभयोगे
( १६६७ )
संवत् १६५४ वर्षे मगसिर सुदि २ दिने बुधवार श्रीबृइत्खरतर गच्छे बा० श्रीचारित्र मेरुगणि शिष्य पं० कनकरंग गणि दिवंगत पादुके कारा (पित शुभं भवतु ।
( १६६८ )
संवत् १६५४ वर्षे कयेष्ठ वदी पंचम्यां पं० श्रीपद्ममंदिरगणिना पादुके कारिते श्री ॥
( १६६६ )
संवत् १७०६ वर्षे मिती दु० वैशाख बदी ५ सोमवासरे पं० श्री श्री [श्रीहेमकलश तत्शिष्य पं० श्री श्री श्रीरूपाजी देवलोक प्राप्ताः ॥
सं० १७६० मिती आसाढ श्री बीकानेर मध्ये || श्री ॥ १ ॥ विजयराज्ये श्री शुभं भवतुः
२७३
( १६७० )
|| ६० || संवत् १६८७ वर्षे आसोज विजयदशम्यां दिने शनिसरबारे श्रीबृहत्खरतर गच्छे बा० श्री श्री कनकचंद्रगणि तत्शिष्य पं० श्रीदेवसिंहजी देवांगत || शुभंभवतु ( १६७१ )
"महामंगलप्रदे कातिकमासे कृष्णपक्षे द्वितीया तिथौ
सोमवारे श्रीमत्वृहत् श्रीखरतर गच्छे वा० श्री कनकचंद्र ( १६७२ ) पूज्य श्री मांजी जी मु० जालमबंद जी री देवलोके" मरणों की छतरी पर
( १९७३ )
सुदि ६ दिने मथेण सामीदास ऊसवाला जीवत छतरी करावतं कर्त्तव्यं सूत्रधार रामचंद्र || १ || महाराजा श्री सुजाणसिंघजी
新
( १९७४ )
श्रीरामजी । सं० १७५५ मिती वैशाख सुदिश्मथेण सामोदास ऊसवाला गृहे भार्या देवलोक प्राप्त हुई तेरी छतरी सं० १७६० मिती आषाढ सुदि ६ कराई खरतरगच्छे मथेण भारमल री बेटो
raint देवलोक गतं श्रोबीकानेर मध्ये ॥ १ ॥ कर्त्तव्यं सूत्रधार रामचंद्र ॥ १ ॥ महाराज सुजाणसिंह_विजयराज्ये,
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श्री पार्श्वनाथ जी का - सेटू जी का मन्दिर ( पार्श्वनाथ पार्क, गोगा दरवाजा )
पाषाण प्रतिमादि लेखाः
( १६७५ )
शिलालेख
१ || सं० १६२४ वर्षे शाके १७८६ प्रवर्तमाने
२ मासोत्तममासे शुक्लपक्षे तिथौ अ३ ष्टम्यां श्रीमद्वृहत्खरतर गच्छे अ० यु० प्र० भ० ४ श्री १०८ श्रीजिनहंससूरिजी सूरीश्वराम् । ५ श्री कीर्त्तिरत्नसूरि शाखार्या ३० श्री १०८ अ६ मृतसुंदर गणि तत्शिष्य वा० जयकीर्ति ग
७ णि तत्शिष्य पं० प्र० प्रतापसौभाग्य मुनिस्वद -'
८ तेवासी पं । सुमतिविशाल मुनिस्तदंते
६ वासी पं० समुद्रसौम्य कारिता श्रीपार्श्वनाथ जिनेन्द्रस्य १० मंदिरं प्रतिष्ठितं
दूसरे टुकड़े पर
बीकानेर पुराधीश राजराजेश्वर शिरोमणि श्रीसरदारसिंहारूयो नृपोषिजयतेतराम् । १ ( १६७६ )
मूलनायक श्री पार्श्वनाथ जी
सं० १६१२ सा० १७०७ श्री पार्श्वजिन
( १६७७ )
सं० १६३१ ब । बैशाख सु । ११ श्रीवासुपूज्य जिन बिंबं । प्रवृ । व । ग । म । श्रीजिनहं ससूरिभिः
( १६७= }
सं० १६३१ वर्षे मि । वै । सु । ११ ति
।
"राजजी कारितः
"Aho Shrut Gyanam"
"श्रीजिनहं ससूरिभिः....
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बीकाने जैम लेख संग्रह
२७५
( १६७६ ) 40 १६०४ मध्ये .. ........"प्रति भ० श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः
धात प्रतिमा लेखाः
( १६८०) सं० १५०६ वर्षे मार्ग सुदि ६ दि उकेश वंशे साधु शाखायो ५० जेठा भा० असमादे पु० दूदान पु० पद्मा पौत्र यस्ता युतेन श्रीआदिनाथ विधं :कारितं प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनराजसूरि पाळकार श्रीजिनभद्रसूरिभिः शुभमवतु
(१६८१ ) सं० १५७६ वर्षे आषाढ सुदि १३ चोप गोत्रे सा० घो० तोला पुत्र सा. पो. पासाकेन सा० नरसिंघादियुतेन स्वभार्या श्रा० प्रेमलदे पुण्याचं श्रीआदिनाथ बिबं का० प्र० श्रीखरतर गच्छे श्रीजिनइंससूरिभिः ।।
(१९८२) सं० १५१८ वर्षे जेठ सुदि १० दिने श्राविका बानू निज पुण्यार्थ श्रीमादिनाथ वि० कारितं प्रविधितं श्री स्वरतर गच्छे श्रीजिनभद्रसूरि पट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः
सं० १५२८ वर्षे वैशाख ५० ६ चंद्रपथ गोत्रे ऊश पंश सा८ साल्हा भा० सिंगारदे तत्पुत्र श्रीपालेन स्वयसे श्रोशांतिनाथ:विध कारितं प्र० श्रीमलधारिगच्छे श्रीगुणसुंदरसूरिभिः ।।
( १९८४ ) सं० १८२८ वै० १० १२ गुरौ सा। भाईदासेन शीतल जिन बिंबं कारित प्र! खरतर गले श्रीजिनलाभसूरिभिः सूरत वि० श्रीमद् ज्ञानसार जी का समाधि-मन्दिर
पाषाण पादुका लेखाः
(१९८५) ॥ सं० १६०२ वर्षे मा । सु। ६६ । । ज्ञानसार जी पादु !
(१९८६) ॥सं। १९२६ मि का। । ८ तिथौ गुरुवारे श्री जि (न) कीर्तिरजपूरि शाखायां पं । म । श्रीसुमतिविशाल मुनिना पादु । सरिश । पं । समुद्रसोममुनि का प्र.
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३७१
बीकानेर जैन लेख संग्रह
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॥सं० । १६२६ मि । का।। ८ श्रीजिनकी । पं ।। श्री सुमतिजय मुनिना पाई। तशि। पं। युक्तिअमृतमुनि का ।प्र।
( १९८८) सं० १९२६ रा मिती काती पदि तिथा...गुरुधारे श्रीजिनकीतिरहरि शास्त्रायां पं ।। श्रीसमुद्रसोममुनि स्वहस्तेन जीवितचरणस्थापनाकृताः।।
__ सं० १९२६ का मिती काती बदी ८ तिथौ गुरुवारे श्रीजिनकीचिरत्नसूरि शाखायां पं ।। श्रीगजविनय मुनिना पादु । पं० समुद्रसोम मुनि.कारापिताः प्रतिष्टिता ।।
गुरु मन्दिर ( कोचरों की बगीची)
( १६६०)
श्री पार्श्वनाथ जी अहीयापुर (होशीयारपुर वास्तव्य तेजकोर श्राविकया सं० २००० वैशाख शुक्ल ६ शुक्रवासरे प्रतिष्ठिता श्रोविजयानंदसरीणां ........श्रीवल्लभसूरिभिः रायकोट नगर पंजावदेशाः
(१६६१)
श्री शान्तिनाथजी धातुमूर्ति संवत् १५०१ वर्षे माह बदि ६ उपकेश शातौ श्रेष्ठि गोत्रे सा० सांगण पुत्र सा० मांडण तस्य भार्या मेलादयो (मे) यसे श्रीशांतिनाथ बिबं कारिसं श्री उपकेश गच्छे ककुदाचार्य संताने मो ककसूरिभिः॥
(१९६२)
श्री हेमचंद्राचार्य मूर्ति * अईनमः कलिकाल सर्वच जैनाचार्य श्रीहेमचंद्रसूरीश्वरजी महाराज अखिलमहीमंडलाचारी प्रवर्तक परनारी सहोदर चौलुक्यचिन्तामणि परमाहंतकुमारपाल भूपाळ प्रतिबोधक कलिकाल सर्वज्ञ श्रीहेमचंद्राचार्याणामियंमूत्ति बीकानेर श्रीसंघेनकारिता प्रतिष्ठा च पंजाब देशाद्धारकाणां श्रीविजयानंदसूरि धुंगवानांपदालंकारैः पूज्यपाद श्रीमद्विजयवल्लभसूरीश्वरः विक्रमातू एकोतर सहन वर्षे पै० म० षष्ठ्यो तिथौ शुक्रवासरे।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
(१९६३)
श्री हीरविजयसूरि मूर्ति जगद्गुरु मट्टारफ जैनाचार्य श्रीविजयहोरसूरीश्वर जी महाराज । अखिल भूमंडलसंव्याप्त, सुयशसौरभाणां निखिल नरपति मस्तकमुकुटमणि भूत मुगळसम्राट मकबर सुरत्राण प्रदत्त स्वच्छ तपागच्छ प्राणकल्पाना जगद्गुरु विभूषिताना सकलजनपदेषु पण्मासावधि प्रवत्तितामारिपटहानां जगद्गुरु भट्टारकाणा श्रीहोर विजयसूरीणामियंमूर्तिः विक्रम सं० २००१ बै० म०६ शुक्रवासरे।
(१६६४)
श्री विजयानदसूरि मूर्तिः चतुर्मेखलावेष्टितभूमिमंडलीय मनोज्वलगुणानां परमपुनीत श्रीसिद्धशैलोपान्ते अखिळ भारतीय श्रोसंघेन वितीर्णाचार्यपदाना श्रीमद्विजयानंदसूरीश्वराणामियं भव्यमूत्तिः प्रतिष्ठिता विजयबलमसूरिभिः बीकानेर नगरे विक्रम सं० २००१ बै० म० ६ कुक्रवासरे।
( १६६५)
श्री पद्मावती देवी की मूर्ति पर सं० २००१ पैशाख शुक्ला ६ श्रीपनापती देव्याः मूर्ति स्थापिताः तपागच्छ पात मैनाचार्य मीविजयवल्लभसूरिमिः बीकानेर नगरे। ,
(१६६६)
___ पार्श्वयक्ष की मृत्ति र सं० २००१ वैशाख शुक्ला ६ श्रीपाययक्षस्येयमूर्ति स्थापिता श्रीमत्तपाच्छाधिपति जैनाचार्य भोविजयवल्लभसूरिभिः ॥ बीकानेर नगरे। .
(१६६७)
श्री माणिभद्रयक्ष मूर्तिः सं० २००१ पैशाख शुक्ला ६ शुक्र तपागच्छाधिष्टायक श्रीमाणिभद्रयक्षस्येयं मूर्तिस्थापिता मी तपागच्छाधिपति जैनाचार्य मोविजयवालमसूरिभिः बीकानेर नगरे । नयी दादाबाड़ी (दूगड़ों की बगीची) गंगाशहर रोड .
पंच गुरु-पादुकाओं पर सं० १६६३ ज्येष्ठ पद ८ गुरु दिने श्रीबीकानेर नगरे ओसवाल दूगड़ मंगलबंद हड़मानमन्लेन कारापिसं प्रतिष्ठितं च खरतर गच्छाधोश्वर श्रीजिनचारित्रसूरिमिः
१ श्रीखरतर विरुदप्राप्त १०८० श्रीजिनेश्वरसूरि २ भीमद् अभयदेवसूर ३ दादा साहेव श्रीजिनदचसूरि० १ प्रकटप्रभावी श्री जिनकुशलसूरि ५ युगप्रधान भोजिनचंद्रसूरि
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बीकानेर जैम लेख संग्रह
गुरु मन्दिर (फायदसरिजी के सामने)
गंगाशहर रोड
( १९६८)
श्री जिनकुशलसूरि मूर्ति श्री जंगम युगप्रधान भट्टारक श्रीजिनकुशलसूरीश्वराणां प्रतिमामिमा श्रीजिनचारित्रसूरीश्वराणां विजयराज्ये महोपाध्याय श्री राम भृद्धिसार गणि कारापितं वा सं० १६६७..........
( १९६६ )
श्री जिनकुशलसूरि पादुका सं० १६६0 जे० सु० ५ श्रीजिनकुशलसूरि०
(२०००)
महो० रामलालजी की मूर्ति पर १ ॐ सद्गुरुभ्यो नमः धृहत्खरतरगच्छाधिपति शासन प्रभाषिक अंगम युगप्रधान महारक
व्याख्यानवाचस्पति श्री श्री श्री १०८ श्री श्रीजिनचारित्रसूरीश्वराणां । २ शासने जैनानामुपरि प्रवर्तमाने धृहत्खरतरगच्छाधीश्वरक्षेमकीर्ति शाखायां मुमिषर्य पं० प्र.
श्रीधर्मशीलगणयः तच्छिध्या: पं० प्र० श्रीकुशलनिधान गइणयः सच्छिध्यवर्याणां विद्वद्वर्याणांवैद्यदीपक रनस मुच्चय जैनदिग्विजय पताका सिद्धमूर्तिविक
विलास ओसवंशमुक्तावली श्रावक ४ व्यवहारालंकार शकुनशास्त्र सामुद्रिकशास्त्रं पूजामहोदधि गुरुदेवस्वषनावलि सदुशानचितामणि
असत्याक्षेपनिर्णय गु५ ण विलास बाईससमुदाय पंच प्रतिक्रमणसार्थ प्रभृति मन्थका युक्तिवारिधीनां पादिगक
केसरीणां प्राणाचार्याणा महोपाध्याय श्री ६ भी श्री १०८ श्री श्रीरामऋद्धिसारगणिवराणां रामलालजी इति प्रसिद्ध नामधेयाना मूर्तिरित्र
तच्छिष्यवयः पं० खेमचंद्र मुनिवर्यैः प्रशिष्य पं० बालचंद्र • प्रमुनिवर्यैश्च कारापिता प्रतिष्ठिता छ। विक्रमपुरे श्रीमन्महाराजाधिराज श्री गंगासिंह
नपति विजयराज्ये । संवत् १६६७ वर्षे जेठ सुदि ५ सोमबार ८ शिष्पकार मानगराम हीराकाळ-जयपुर
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
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यति हिम्मतविजय को बगेची ( गंगाशहर रोड)
( २००१)
श्री गौड़ीजी के चरणों पर श्री १०८ भो भी श्री गौडीजीनां पादुका स्थापिता कारापिता ।
( २००२) संवत् १८५३ वर्षे शाके १७१८ प्रवर्तमाने माह मासे शुक्लपक्षे पंचम्या तिथौ शुक्रबारे पं० मीसुंदरविजयजी सत्शिष्य पं० सुमतिविजयजिन्द्रणिनां पादुके सत्शिष्य पं० अमृतविजयेन कारापिताः अर्यपातुका स्थापिता
२००३ ) संवत् १६०२ वष मिती माह सुदि १३ चंद्रवासरे पं० प्रोसिधविजयजीरा पाटुका जवसिंपविजय कारापित प्रतिष्ठा श्रेयम् मंगल ||१||
श्री पायचंदसूरि जी ( गंगाशहर रोड) श्री आदिनाथजी का मन्दिर
पाषाण प्रतिमा लेख
( २००४) सं० १५४८ वर्षे बैशाख सुदि ३ श्रीमूलसंघे भट्टारक जी भी.............
धातु प्रतिमा लेखाः
(२००५) सं० १५७६ वर्षे श्रीखरतरगच्छे चोपड़ा गोत्रे को० सहणा को० हेमा को. माड़ाकेन भार्या भरमादे पुत्र राजसी को० नान्टू प्रमुख यु० श्रीसुमतिनाथ बियं का० प्रतिष्ठितं श्रीजिनइंससूरिभिः॥
( २००६ ) सं० १५८७ वर्षे वैशाख बदि ७ श्री ओसवंशे छजलाणी गोत्रे। पीरोजपुर स्थाने सा० धन भार्या सुत सा० षीरम भार्या वीरमदे सुत सा० दीपचंद ऊधरणादि कुटुंब युतेन भी संभवनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठित
(२००७) ०१६३० वर्षे फागुण १० १० श्रीमूलसंघे भ० गणकीयंपदेशात् सा............ पणमति
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२८०
पकानेर जेन लेख संग्रह
( २००८) सं० १६५३ वर्षे वै० म०४ बुधे श्री आदिनाथ बिंब बोहित्थरा गोत्रे मं० स्वीमसी पुत्र म. श्रीपाल भार्या सरूपदे पुत्र जसवंत सादूल प्रमु० युतेन प्र० श्री तपागच्छे श्रीविजयसेनसूरिभिः पंडिस विनयसुंदरगणि पणमति
स्तूप-पादुकादि लेख संग्रह
(२००६) सं० १६६२ वर्ष पौष बदि १ दिने श्रीपासचंदसूरीश्वराणां पादुका भी बीकानेर मध्ये महं० मबू तत्पुत्र मई पोमह का० शुभंभवतु ॥
(२०१०) संवत् १८६० वर्षे शाके १७२५ प्रवर्त्तमाने मासोचमे पौष मासे कृष्णपक्षे दशम्यां तियों गुरुवासरे भट्टारक श्री १०८ श्रीविवेकचंद्रसूरिजित्काना पादुका प्रतिष्ठिताः
(२०११) संवत् १८६० शाके १७२५ प्रवचेमाने पौष बदि १२ शनौ स्तुप प्रतिष्ठा
(२०१२) संवत् १६०२ शाके १७६७ ५। मासोत्तमे आषाढ मासे कृष्णपक्षे ८ अष्टम्यां तियो शुक्रवासरे श्रीपाश्चंद्रसूरिगच्छाधिराज भट्टारकोत्तम भट्टारक पुरन्दर भट्टारकाणां श्री १०८ श्री श्री श्री लब्धिचंद्रसूरीश्वराणां पादुके प्रतिष्ठापिता तच्छिष्य भट्टारकोत्तम भट्टारक श्रीहर्षचंद्रसूरि जितिः श्रीरस्तुतराम्
(२०१३) संवत् १८१५ वर्षे मासोसम भी फाल्गुनमासे कृष्णपक्षे षष्ठी तिथौ रविवारे श्रीपूज्य श्रीकनकचंद्रसूरीणां पादुका कारापिता प्रतिष्ठिता च मट्टारक श्रोशिषचंद्रसूरीश्वरैः
(२०१४) संवत् १८१८ वर्षे मिती फाल्गुन बदि ६ रवौ भट्टारक श्री १०८ श्रीकनकचंद्रसूरिजी पादुका
शुभ प्रतिष्ठिता
(२०१५) ___ संवत् १६१६ शा। १७८१ प्र! मासोत्तमे वैशाख शुक्ले षष्ठयां तिथौ रविवासरे श्रीपार्श्वचंद्रसूरि गच्छे महर्षि मृ। श्री १०८ श्रीआलमचंद्रजित्कानां पादुकेयं प्रतिष्टापिता । रूपचंद्रेण
(२०१६) भो। संवत १७६८ वर्षे वैशाख सुदि ७ शनिवारे पुष्यनक्षत्रे श्रीपासचंद्रसूरि गच्छे भट्टारक श्रीनेमिचंद्रसूरीमा पादुका श्रीसंघेन कारापिता
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
२८
(२०१७) संवत् १७६८ वर्षे मिती वैशाख सुदि ७ शनिवारे भट्टारक श्रीनेमिचंद्रसूरिजी री धुंभ प्रतिष्ठा श्रीसंघेन कारापिता
( २०१८)
पादुका युग्मपर संवत् १८१५ वर्षे फाल्गुन बदि ६ रवौ वाचक श्री श्री रघुचंद्रजित्कानां पादुका शिष्य ऋषि श्रीपनजीकस्य पादुका।
(२०१६ ) संवत् १८८४ मिती जेठ सुदि ६ शुक्रवारे भट्टारक श्री १०८ श्रीकनकचंद्रसूरिजी संतानीय पं० श्री वक्तचंदजीकानां पादुका तच्छिष्य श्रीसागरचंदजीकानां पादुका प्रतिष्ठिता श्रीबीकानेर नगरे
(२०२०) श्रीलाभचंदजीकानां पादुके श्रीचैनचंद्रजित्कानां पादुके प्रतिष्ठापिते ॥ सं० १६०१ शाके १७६६ प्र । भादवा बदि द्वि ४ तिथौ रविवारे
(२०२१ .. संवत् १८२६ वर्षे शाके १६६१ प्र! मि । चैत्र सुदि १३ भौमवारे पंडित श्री १०८ श्रीविजयचंद्रजीकस्यो पादुका प्रतिष्ठिता शिष्य स्खुशालचंद्रजीनां पादुका शिष्यर्षि मलूकचंदजीनां पादुका
(२०२२ ) संवत् १८१६ वर्षे मिती वैशाख सुदि ... रबौ (१) उपाध्याय श्रीकरमचंद्रजीकस्य म कारापिता।
(२०२३ ) संवत् १८३४ वर्षे ....... . . . . . . . . . . . . . ..... - श्रीपासच दसूरि गच्छे उपा. ......... श्रीरस्तु कल्याणमस्तुः ।।
(२०.४ : संवत् १८६३ बर्षे शाके १७२८ प्रवर्त्तमाने माघ मासे शुक्लपक्षे पंचम्यां तिथौ गुरुवासरे पादुकेयं प्रतिष्ठिता विक्रमपुरे ।। साध्वी राजाकस्य पादुकास्ति साध्वीचैनांकस्यपादुकास्ति
(२०२५ संवत् १६१६ शाके १७८४ प्रवर्त्तमाने मासोत्तमे भाद्रवमासे कृष्णपक्षे १० तिथौ सा। उमेदकस्य पादुकेयं प्रतिष्ठापि।
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२८२
बीकानेर जैन लेख संग्रह
(२०२६ } संवत् १८६६ शाके १७६४ प्रवर्त्तमाने ज्येष्ठमासे शुभे शुक्लपक्षे सप्तम्यां तिथौ बुधवासरे ॥ साध्वी कुद्धीजीकस्य पादुकास्ति साध्वी कस्तूरांकस्य पादुकास्ति ।। पादुकेयं प्रतिष्ठा विक्रमपुरे ।
(२०२७ ) संवत १८६६ शाके १७६४ प्रवर्त्तमाने ज्येष्ठ मासे शुभे शुक्रपक्षे सप्तम्यां ७ तिथौ बुधवारे पादुकेयं प्रतिष्ठिता साध्वी बख्तावराकस्य पादुकास्ति विक्रमपुरे.
( २०२८ ) सं० १६५६ शाके १७८१ प्र । वैशाख शुक्ल २ द्वितीयायां तिथौ बुधे पिसृज्यगुरूणां श्रीजिनचंद्र जिकानां पादुका प्रतिष्ठापिता श्रीकृष्णचंद्रेण ऋ । कृष्णचंद्रस्य पादुफेयं ।
__ ( २०२६ )
गौतम स्वामी की प्रतिमा पर सं० १६४२ मिगसर बदि ३ उपदेशक मुनि जगत्चंद्रजी श्रीगणधर गौतम स्वामीजी की प्रतिमा
(२०३०
___श्री भ्रातृचंद्रसूरि मत्ति पर सं० १६६२ मि। मिगसर बदि ३ आचार्य श्रीभ्रातृचंद्रसूरिजीकी प्रतिमा मुनि श्रीजगत्चंद्रजी महाराज के उपदेश से सेठ उदयचंदजी मोहनलाल रामपुरियाने स्थापन की।
संवत् १६६२ मिगसर बदि ३ आचार्य भट्टारक हेमचंद्रसूरीश्वरजी की चरणपादुका उपदेशक मुनि जगतचंद्रजी स्थापक सेठ उदयचंदजी मोहनलाल रामपुरिया।
श्री पार्श्वनाथ जी का मान्दर (नाहटों की बगीची)
( २०३२)
धातु की पंचतीर्थी पर सं० १५०१ ज्ये० शु० १० प्रा० व्य. वीरम भा० विमलादे पु० इंसाकेन भा० हासलदे पु० रमा पितृ श्रेयसे श्री अभिनंदन बिंब का० प्र० श्रीसूरिभिः
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श्री रेल दादाजी
दादा साहब के मन्दिर में
( २०३३ )
श्री जिनदत्तसूरि मूर्ति
जं
यु० भट्टारक श्री जिनदत्तसूरि मूर्त्ति श्री बीकानेर वास्तव्य समरत श्रीसंघेन का० प्र०
श्री जिन चारित्रसूरिभिः सं० १६८७ का ज्येष्ठ सुदि ५ रविवारे श्रीसंघ श्रेयोर्थम्
( २०३४ ) गुरु पादुकाओं पर
सं० १६८७ का ज्येष्ठ सुदि ५ रविवारे श्रीसंघेन का० प्र० श्रीजिनवारित्रसूरिभिः श्रीसंघश्रेयोर्थम् श्रीजिनदत्तसूरिजी श्रीजिनचंद्रसूरिजी श्रीजिनकुशलसूरिजी श्रीजिनभद्रसूरिजि:
। २०३५ )
युगप्रधान श्रीजिनचंद्रसूरि के चरणों पर
सं० १६७३ वर्ष वैशाख मासे अक्षयतृतीया सोमवारे श्रीखरतरगच्छे श्री जिनमाणिक्यसूरि पालंकार सवाई युगप्रधान श्रोजिनचंद्रसूरीणां पादुके श्रीविक्रमनगर वास्तव्य समस्त श्रीसंघन कारितं शुभं ॥
( २०३६ शिलाह पर
श्री रेल दादाजी का जीर्णोद्धार सं० १६८६ साल में पन्नालालजी हीरालाल मोतीलाल चम्पालाल बांठिया कारापितं मारफत सेठिया करमचंद चलवा नारायण सुथार
गौतम स्वामी की देहरी में
(२०३७) )
श्री गौतमस्वामी की मूर्त्तिपर
सं० १९८१ आषाढ़ कृष्णौ द्वादश्यां तिथौ शुक्र दिने बिबमिदं लूणीया रतनलाल छगनलालाभ्य स्वश्रेयोऽर्थं कारितं प्रतिष्ठितं च खरतरगच्छीय भ० श्रीजिनचारित्रसूरिभिः बीकानेरनगरे
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बीकानेर जैन लेखसंग्रह
(२०३८
आर्याजी श्रीबीजांजो शिष्यणी लालकंवर चढापितं सं० १६५७
चरणपादुका, स्तूप, शाला इत्यादि के लेख
२०३६) उ० श्री सुमतिमंडणगणिनां चरणपादुका श्रीसंघेन कारापिसा सं० १६६८ मिती माघ शुक्ल पंचम्या तिथौ बुधवासरे शाके १८३३ श्रीरस्तु
२०४०) सं० १९२८ मी .. ज्येष्ठ वदी २ पं० प्र० धर्मानंद मुनि घरणन्यास श्रीसंघेन कारापितं प्रतिष्ठापितं श्री पं० सुमतिमंडण .... ...... प्रणमति
(२०४१) सं० १८७४ आषाढ़ शुक्ला षष्ठी उ० श्री १०८ श्रीक्षमाकल्याणजिद्गणीनां पा० श्रीसं० कारिते प्रतिष्ठापितं वा० प्राज्ञ धर्मानंद मुनि प्रणमति
२०४२) सं० १६१८ मिती फागण सुदि ७ स... श्री अमृतवर्द्धनजित्मुनेश्वरणन्यासः कारापितः प्रतिष्ठापितश्च श्री दानसागर मुनिना श्री
( २०४३) सं० १९३१ रा मि० माघ सुदि ६ गुरुवार पं० श्री क्षमासागर मुनिना चरण
(२०४४) सं० १९४३ रा मि० माघ सुदि १३ वार रवि पं० प्र० श्रीअभयसिंह मुनिनां पादुका पं० गुणदत्त मुनिना कारापिता प्रतिष्ठिसं च
( २०४५ सं० १८७२ मिते आसाढ़ सु० १ श्री वृहत्खरतर श्रीसंघन ४० श्री तत्वधर्म निद्णीनां चरणे कमले कारिते प्रतिष्ठा
सं० १८७२ मि० आसाढ़ सुदि १ श्रीवृहद्खरतर श्रीसंघेन वा० राजप्रिय गणिनां चरणकमले कारिते प्रतिष्ठापिते
सं० १८७२ मि० आसाढ सुदि १ श्रीवृहदुःखरतरसंघेन वा०लक्ष्मीप्रभुगणिनां पादुके कारिता
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
२८५
(२०४८)
शाला में शिलापट्ट पर सं. १६५६ शाके १८२४ प्रवर्त्तमाने ज्येष्ठ मासे शुक्लपक्षे चतुर्दशी १४ तिथौ गुरुवासरे अजीमगंज वास्तव्य दुधेड़िया गोत्रीय बाबू बुधसिंहजी रायबहादुर बाबू विजयसिंहेनायं शाला उ० हितवल्लभजिद्गणी तस्योपरि कारापिता
। २०४६ ) सं० १५. शाके १८२४ ज्येष्ठ सुदि १४ तिथौ गुरुवासरे श्रोजिनभद्रसूरि शाखायां म: श्रीदानसागरजिद्गणि तत्शिष्य उ० श्री हितवल्लभजिद्गणिनां पादुका
(२०५०) सं० १६३१ वर्ष माघ सुदि ६ तिथौ गुरुवारे पं० प्र० मु० श्रीदानसागरगणेः चरणन्यासः हितवल्लभ मुनिना कारितं प्रतिष्ठापित
(२०५१) पं० प्र० जयकीर्ति मुनि चरणन्यासः ।
पं० प्र० चित्रसोम मुनि चरणन्यासः
६ २०५३) सं० १७८४ वर्ष वंशाख सुदि अष्टमी सोमवारे महोपाध्याय श्रीहर्षनिधान शिष्य महो. श्रीहर्षसागर पादुके प्रतिष्ठितं च ।।
(२०५४ सं० १७६२ वर्ष श्रावण बदि ........ दिने वाणारसजी कोतिसुंदरगणि तत्शिष्य पं० सामजी पादुका कारापिता
( २०५५) सं० १६२७ मिती काती सुदि ३ गुरुवारे पं० रत्नमन्दिरगणिनां पादुका कारापित पं० हीरसौभाग्येन शुभंभवतः प्रतिष्ठितं भट्टा० श्री जिनहेमसूरि .. ........ आचार्य गच्छे
। २०५६ । सं० १६७६ वर्षे ज्येष्ठ बदि ११ दिने युगप्रधान श्री ६ श्रीजिनसिंहसूरि सूरीश्वराणां पादुके कारिते प्रतिष्ठिते च ।। शुभं भवतु ।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
(२०५७) सं० १७६४ वर्ष मिती फागन वदि ५ रवौ श्रीविक्रमपुरे भट्टारक श्रीजिनचंद्रसूरीणां पादुके कारापितं प्रतिष्ठितं च भ० श्रीजिनविजयसूरिभिः।।
(२०५८) सं० १९२३ वर्षे मिगसर बदि १२ बृ० ख० ग० श्रीजिनकीतिरत्नसूगि शाखायां पं० प्र० वृद्धिशेखर मुनि पादुका प्रतिष्ठितं ।
(२०५६) सं० १६४५ मिती श्रावण सुदि ७ जं. यु० प्र० भ० श्री जिनोदयसूरीणां चत्वरस्य जीर्णोद्वार मकारि
(२०६०) सं० १६४५ मिती श्रावण सुदि ७ जं० यु० प्र० भ० श्रीजिनहेमसूरीणांचस्वरमकार्षीत्
सं० १९१२ वर्ष शाके १७७७ प्र । मिगसर बदि ५ बु । म । उ । भक्तिविलासकेन पादुका उ.) विनयकलशेन कारापितं भ० जिनहेमसूरि प्रतिष्ठितं महाराजा सिरदारसिंहजी विजयराज्ये
(२०६२) सं० १६५३ मि० चैत बदी १२ दिने श्री म ! माणिक्यहर्षगणीनां चत्व मकारि ।
(२०६३) सं० १६६६ रा मिती अषाढ़ बदी ३ के दिने पं० प्र० तनसुखदासजीका चत्वकारि श्रीशुभ
(२०६४) वा० पुण्यधीर मुनि पादुका
(२०६५) ___ सं० १८२१ वर्षे शाके १६८६ प्र । माघ मासे शुक्लपक्षे त्रयोदशी तिथौ १३ रवौ श्रीविक्रमपुरवरे भट्टारक श्रीजिनकीर्तिसूरीणां पादुके कारापिते प्रतिष्ठितं भट्टारक श्रीजिनयुक्तिसूरिभिः श्रीवृहखरतराचा गच्छे
सं० १६३५शाके १८०० प्रमिते माघ मासे कृष्णपकादश्यां शनिवासरे बृहत्खरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिशाखायां जं यु०प्र० भ० श्रीजिनहर्षसूरिभिः तच्छिष्य पं० प्र० श्री १०८ श्रीहंसविलास गणिनां पादुका कारापिता शिष्य कीर्तिनिधानमुनिना शुभंभवतु
(२०६७) सं० १७८६ मि० सु० ४ रवी पा० श्री दयाविन्यपादुः
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
...................... २८७
(२०६८) सं० १८०१ वर्ष मिती मिगसिर सुदि ५ वार स... ......... श्रीजिनचंद्रसूरि विजयराज्ये ...... कास्य पादुका प्रतिष्ठिता करापिता।
(२०६९) सं० १७७१ मिती मिगसर सुदि ६ पं० प्र० श्रीकुशलकमल मुनि पादुका .
(२०७०) सं० १८३७ वर्ष माह सुदि तिथौ भृगुवारे श्रोसागरचंद्रसूरि शाखायां महो० श्रीपनकुशल जिद्गणीनां पादुके कारिते प्रतिष्ठापितेचेति श्रेयः ।
(२०७१) . ___ सं० १६७० मि० वै० सुद २ शुभदिने ........ - पादुका महो० श्री कल्याणनिधान गणिना पं० कुशलमुनि बीकानेर मध्ये।
। २०७२) सं० १६५३ वर्षे शाके १८१८ मि० भाद्रवपद शुक्ल दशम्यां बुधवासरे ५० प्र० धर्मवल्लभ मुनिचरण न्यासः कारापित तरिशष्य वा० नीतिकमल मुनिना श्रीरस्तु शुभंभवतु ।
(२०७३ । ___सं० १६४४ मि० वैशा० कृ० ११ ति० चं वासरे पं० प्र० श्रीमहिमाभक्ति गणीनां पादुका कारापिता प्रतिष्ठितं च पं० महिमाउदय मुनि पं० पद्मोदय मुनिभ्यां
(२०७४) सं० १९३५ शाके १८०० मि । माघ व .......... ... ..... .श्रीजिनभद्रसूरि शाखायां भ० श्रो जिनहर्षेसूरिभिः तत्शिष्य पं० प्र० हंसविलास गणि तत्शिष्य पं० प्र० श्री. कीर्ति घरणन्यासः पं० धर्मवल्लभ मुनि कारापितं ।
( २०७५) सं० १८३५ वर्ष मि० वैशाख शुक्लैकादश्यां तिथौ पं० प्र० श्रीदेवबल्लभजी गणि पादुका कारापिता श्री०
(२०७६ ) शुभ संवत् १९५७ का मिती फाल्गुन कृष्ण पंचम्या शुक्रवासरे श्रीजिनकीर्तिरत्नसूरिशाखायां पं० प्र० श्री हेमको ति मुनि चरणपादुका कारापिता पं० प्र० नयभद्र मुनिना ।
. (२०७७ ) सं० १७६४ वर्षे फाल्गुन बदि ५ रखौ श्री विक्रमपुरनगरमध्ये स्वर्ग प्राप्तानां श्री खरतराचार्य गच्छीय न० श्रीहर्षहंसगुरूणांपादुका कारापिता प्रतिष्ठापितं च प्रशिष्य
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
(२००८) सं० १८०७ वर्षे मि० मार्गशिर सुदि ४ द्वि० ....... चकीतिमहो .........."दासन....
( २०७६) सं० १८८८ हि० वै० सु० ७ जं० यु० प्र० भ० श्री जिनहर्षसूरिभिः प्र० सा० विनयसिद्धमा पादुका कारिता चामृतसिद्धिमाम् ।
(२०८०) ....... ....... ७८ मिती भाषाढ सु०७ वृ० खरतरगच्छे वा० गुणकल्याणगणिः पादुके पं० प्र० युक्तिधर्म क .. ..... .. ....... ..
( २०८१ , सं० १८३६ वर्षे मिती आश्विन शुक्ल विजयदशम्यां वा० श्री लाभकुशलजी गणि पादुका स्थापिता।
(२०८२) सं० १८७७ मि० पो० सु० १५ श्रीजिनचंद्रसूरि शाखायां पं० प्र० मेरुविजय मुनि पा०स्था०प्र०
( २०८३ ) सं० १६७० मार्गशीर्ष कृ. ७ गुरुवासरे स्वर्गप्राप्त उ० मुक्तिकमलगणि 1; सं० १६५२ का द्वि० वै० सु० ५ ज्ञ वारे भ० श्रीजिनभद्रसूरि शाखायां पूज्य महो। श्री लक्ष्मीप्रधानजी गणिवराणां शिष्य श्री मुक्तिकमल जिद्गणीनां चरणपादुका करापिता प्रतिष्ठितं च जयचंद्र रावतमल यतिभ्यां स्वश्रेयो) श्रोरस्तु ।
{ २०१४ सं० १६५८ मि० जे० सु० १० उ० श्रीलक्ष्मीप्रधान जिद्पादुके श्री । स का । प्र । पं । मो।
( २०८५) सं० १९२३ का मिती पोह सुद १५ पूर्णिमास्यां सिथो रविवासरे श्रीजिनचंद्रसूरि शाखायां श्री महिमासेन मुनिनां पादुका तत्शिष्य पं० विनयप्रधान मुनि प्रतिष्ठापित्तं श्रीरस्तु कल्याणमस्तु शुभं भूयात्
। २०८६) - सं० १९१२ रा मिती मिगसर सुदि २ बु. पं० प्र० श्री विद्याविशालजिद्गणीनां पादुका प्रशिष्य पं० लक्ष्मीप्रधानमुनिना प्रतिष्ठापितं श्रीरस्तु ।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
२८६
(२०८७) सं० १९२३ वर्षे मि० ब० १३ दिने वृ० ख० गच्छे श्रीजिनकोतिरत्नसूरि शाखायां पं० प्र० दानशेखर मुनि पादुका प्रतिष्ठितं श्रेयाथ । श्री।
(२०८८) सं० १७६७ वर्षे भाषाढ सुदि ८ दिने उपा० श्रीहर्षनिधान लिद्गणिवराणां पादुके स्थापिते बा० हर्षसागरेण ।
( २०८६) सं० १८६२ का० सु० ५ बा० भीकुशळकल्याणगणिनां पादन्यास कारित प्रतिष्ठापितश्च ।
(२०६०) सं० १६१४ रा मि० अ० सु०५ दिने पं० प्र० लक्ष्मीधर्ममुनिना पादुका स्थापितमस्ति ।
(२०६१) सं० १९१४ रा मि० जे० ९० ५ दिने पं० प्र० प्रीतिकमलमुनिनापादुका स्थापितमस्ति ।
(२०१२) सं० १८४६ वर्षे आषाढ शु.......'प्रवर श्रीविनयहेमगणिनां पादुके प्रतिष्ठा श्रीस्यात् । म० श्री जिनचंद्रसूरि शाखाएँ।।
(२०६३) सं० १९४३ रा मि० फा० सु० प्र० ३ दिने पं० प्र० हितधीरजिमुनीनी पादुका पं० उदयपनमुनिना स्थापितं श्रीरस्तु । -
(२०६४) सं० १६५३ रा मिती ज्येष्ट पदि ५ तिथौ शनिवारे भी जिनभद्रसूरि शाखायां पं० प्र० कपूरचंद्रजी मुनिना पादुका स्थापितं ।
(२०१५) सं० १८५६ वर्षे मिती श्रावण सुदि"शुक्रवार श्री वृ. खरतरगच्छे श्री जिनभद्रसूरिशाखायां १० श्री गुणसुंदरजीगणि तस्शिध्य वा० श्रीकमलसागर (१, गणिनां पादुका
(२०६६) श्रीमत्खरतराचार्यगच्छीय जैनाचार्य श्रीजिनसिद्धसूरीश्वरजी महाराज की चरणपादुका बीकानेर निवासी गोलछा कघराणी गोत्रीय श्रे० बीजराजजी फतचंदजी सालमचंदजी पेमराजजी नेमीचंदजी जयचंदजी की तरफ से बनवाई विक्रम संवत् २००० फा० सु० १५० प्र० यति भी नेमिचंद्रेण प्रतिष्ठितं !
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
( २०६७ )
दादाजी के पास की देहरी में
सं० १६१८ वर्षे शाके १७८३ प्रवर्त्तमाने मि० फाल्गुन शुक्ले ८ अष्टम्यां तिथौ रविवासरे श्री विक्रमपुर वास्तव्य श्रीसंघेन जं० युग० भ० श्री जिनहर्षसूरीश्वर पट्टालंकार युग० भ० श्रीजिनसौभाग्य पादुके कारापिते प्रतिष्ठिते च श्रो जं० यु० भ० श्रजिनहंससूरिभिः श्रीबृहत्वरतर भट्टारक गच्छे समस्त श्रीसंघ सदा प्रणमति ।
२६०
। २०६८
१६७२ शाके १८३७ प्रवर्त्तमाने मि० द्वि० वैशाख शुक्ल तिथौ १० चंद्रवासरे श्रीविक्रमपुर वास्तव्य श्रीसंघेन जं० यु० प्र० भ० श्रीजिनसौभाग्यसुरोश्वर पट्टालंकार जं० यु० प्र० भ० श्रीजिनहंससूरिणा पादुके कारापिते प्रतिष्ठितं च श्री जं० यु० भ० श्रीजिनचारित्रसूरिभिः श्री वृहत्वरतर भट्टारक गच्छे समस्त श्रीसंघ सदा प्रणमति ।
( २०६६
सं० १६७२ शाके १८३७ प्रवर्त्तमाने मि० द्वि० वैशाख शुक्ल १० तिथौ चंद्रवासरे श्री विक्रमपुर वास्तव्य श्रीसंघेन जं० यु० प्र० भ० श्रीजिनहंससूरीश्वर पट्टालंकार जं० यु० प्र० भ० श्रीजिनचंद्रसूरीrt पादुके कापि प्रतिष्ठिते च श्री जं० यु० प्र० भ० श्रीजितचारित्रसूरिभिः श्रीबृहत्स्वार तर भट्टारक गच्छे समस्त श्रीसंघ सदा प्रणमति ।
६ २१००
सं० १६७२ वर्ष शाके १८३७ प्रवर्त्तमाने मि० द्वि० वैशाख शुक्ल १० सोमवासरे श्रीविक्रमपुर वास्तव्य श्रीसंघन जं० यु० प्र० भट्टा० श्रीजिनचंद्रसूरीश्वर पट्टालंकार जं० यु० प्र० भ० श्रीजिनकीर्तिसूरीणां पादुका कारापिते प्रतिष्ठिते च श्री जं० यु० प्र० भ० श्रीजिनचारित्रसूरिभिः वृ० ख० भ० गच्छे समस्त श्रीसंघ सदाप्रणमति ।
शाला नं० १ के लेख ( २१०१
सं० १८७५ वर्ष मिती माह सुदि १३ दिने श्री वा० पद्याप्रियजी गणीनां पादुका स्थापिता पं० रत्ननिधान मुनिना श्री बीकानेरे ।
२१०२ ) सं० १८६१ मिते माघ सुद पंचम्यां श्री बीकानेर विद्याप्रिय कारितः प्रति०
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... ६० श्री जयमाणिक्य
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
२६१
(राज ?)
( २१०३) सं० १८६१ वर्ष चैत्र बदि ६ गुरौ श्री विक्रमपुरे पं० प्र० श्री १०६ श्रीसत्य जी गणिनां पृष्ठे पं० भावविजे पं० ज्ञाननिधानमुनिना पादुका ...
शाला नं० २ के लेख
( २१०४ . . सं० १८५८ वर्षे पो: बदि पंचमी भ! श्री १०८ श्रीजिनहर्षसूरिजी राज्ये श्रीकीतिरबसूरि शाखायां वाचक श्री १०८ श्री जिनजय जो गणि शिष्योपाध्याय श्री १०६ श्रीक्षमामाणिक्यजिगणिना पृष्ठे पुण्यार्थेयं शाला वाचक विद्याहेमेन कारिता श्रोवृहत्खरतरगच्छे।
२५०५ ।
सं० १८५८ रा ................. .. तिथौ श्री ................ ....... .. श्रीजिनहर्षसूरि . ... ..शिष्य वा० विद्याहेम गणिना कारापिता।
(२१०६ ) ___सं० १८७१ वर्षे शाके १७३’ प्रवर्त्तमाने वैशाख सुदि ८ दिने श्रीकीतिरनसुरि ... ... ... श्री विद्याहेमजिद्गणिनां पादुका कारिसा प्रतिष्ठिः च श्रीमयाप्रमोदगणि पं. उदयरत्नगणि श्री बीकानेर नगरे।
। २१०७) ___ सं० १८७८ मिती मिगसर सुदि २ तिथौ श्रीजिनकीतिरत्नसूरि शाखायां वा० मयाप्रमोदजीगणि पादुका प्रतिष्ठिता।
( २१०८) सं० १६०६ मि० आषाढ बदी ८ .... वासरे श्री'कीतिरत्नसूरि शाखायां पं० प्र० श्रीलब्धिविलासमुनीनां पादुका पं० दानशेखरेण प्रतिष्ठा कारिता
कुण्ड के पास छतरी के स्तम्भों पर
(२१०६) सं० १७८४ वर्ष वैशाख बदि १३ दिने महोपाध्याय श्रीधरमसी जी रो छतरी पं० शान्तिसोमेन कारापिता छत्री छःथंभी सदा २७ लागा पाखाण इलाख श्री सिरपाव दीना विजणाने ।
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२६२
बीकानेर जंन लेख संग्रह
( २११०) संवत् १७८४ वर्षे मि० वैशाख बदि १३ दिने महोपाध्याप श्रीपरमपर्डन भी री छतरी कारापिता शिष्य पं० साम ..........
दादाजी से बाहर के लेख
(२१११) सं० ........... चैत्र बद २ दिने भट्टारक भी जिनसागरसूरि पादुके कारापिते ...... नारायण गणि।।
(२११२ । सं० १७३२ बर्षे श्रीकल्याणविजय उपाध्याय पादुकेन
(२०१३) सं० १९२५ रा मिती शाके १७६० मासोचममासे माघमासे शुद्धपक्षे पंचम्या तिथौ चंद्रवासरे उ० मतिमंदिरकस्य शिष्य पं० वृद्धिचंद्रेण पादुका कारापिता म० श्रीजिनहेमसूरिभिः प्रतिष्ठितं।
( २११४)
बिना पादुका के स्तूप पर सं० १८६० शाके १७२५ माघ सुदि १२ चंद्र श्रीकीतिरबसूरि शास्त्रायां प्रतिष्ठिते ष म. श्रीजिनहर्षसूरिभिः
( २११५ सं० १६०६ मि० आषाढ बदि ८ गुरुवासरे श्रीकीसिरबसूरि शाखायो ६० प्र० श्रीउदयरम मुनीनां पादुका पं० लक्ष्मीमंदिरेण प्रतिष्ठा कारितं ।
( २११६ ) सं० १९३३ रा शा० १७६८ प्र० मि० आषाढ सु० ५ दिने महो० श्रीधीरधर्मगणिलिपिन्यासः
(२११७ ) संवत् १९३८ रा वर्षे मिती कार्तिक सुदि ११ दिने पं० प्र० श्रीहितकमलमुनि .......
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
साध्वियों की चरणपादुकाओं के लेख ( २११८ )
२६२
सीजी श्री श्री १००८ मुन श्रीजी महाराज
२११६
सं० १६३३ रा मि० आषा । सुदि ७ संवेगी लक्ष्मी श्री पृष्टे शि० नवलक्षीचरणस्थापना का० ( २१२० )
सं० १६५१ शाके १८१६ मिते माघ शुक्ल पंचम्यां गुरुवारे आर्या नवलभीणां चरणन्यासः शिवणी आर्या यतनश्री प्रतिष्ठापित श्रीरस्तुः
( २१२१ )
सं० १६४८ रा मिती माघ शुद्ध ५ बुधवासरे आर्या श्रीरतनश्री कस्यचरण पादुका कारापित प्रार्याज वनश्रीया शुभं ।
( २१२२ )
श्रीमती गुरुणीजी महाराज विवेकश्रीजी महाराज सं० १९७४ श्रावण वद ( २१२३ )
सं० १६८१ मिती फाल्गुन कृष्णपक्ष तिथौ ११ बार गुरुवार दिने साध्वी श्री जतनभीजी का पादुका कारिता समस्त श्रीसंघेन
बीकानेर "
'श्रीरस्तु शुभं सं० १६७५ साल
तोतरका बार सोमवार (१)
( २१२४ ) सं० १६८१ मिती फाल्गुनमासे कृ० पक्षे तिथौ वार दिने साध्वीजी श्रीजयवंत भोजी का पादुका सा० श्रीमदनचंदजी किशनचंदजी भुगड़ी कारापिता श्री
( २१२५ )
ॐ श्रीमती साध्वीजी उमेदश्रीजी के स्वर्गवास सं० १९८८ का बैशाख बदि ७ बार बृहस्पति को हुआ उसकी चरणपादुका
( २१२६ )
सं० १६७० रा मिसी माह कृ० ३ बार विस्पतबार साध्वीश्रमश्री जी महाराज रा चरण पराया है।
( २१२७
सं० १९७५ ० ० १ गीवायां चमणजी अभुजो कस्तुराजी रामी इयं पातुका ३ अंदर रामी बाहर शुभं ।
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यांकानेर जन लख संग्रह प्रवर्तनी श्रीस्वणश्रीजी के स्तूप पर
( २१२८ सं० १६६० पौष कृ. रविवार दिने धृहत्खरतरगच्छे पूज्य श्रीसुखसागरजी म.के शृंघाटकानुयायिनी प्रवर्तिनी जी सा० श्रीपुण्यश्रीजी म० की पट्टधारिणी प्र० श्रीसुवर्णश्नीजी महाराजके चरण बीकानेर मध्ये श्रीसंघेन कारापितम्। जन्म वि० सं० १९२७ ज्येष्ठ १० ११ अहमदनगर। दीक्षा- सं० १९४६ मिगसर सु० ५ नागौर, स्वर्ग सं० १९८६ माघ ०१ शुक्रवार दिने
( २१२६ ।
फर्श पर यह मार्बल फश श्री बीकानेर निवासी कुशालचंदजी गोलछा के नाम स्मरणार्थ इनके सुपुत्र छगनमलजी अमोलखचंदजी धर्मचंदजी गोलछे ने बनवाई सं० १९६० ।
(२१३०) श्रीजिनसौभाग्यसूरि छतरी [सं०-१६४८ की, लेखाङ्क २०६७ ] पर . बंगली सुश्रावक कूकड़ सा० कोठारी श्री सुजाणमलजी तत्पुत्र बापमल्लजी हजारीमलजी मोतीलालजी ॥ केशरीचंदजी कारापितं ।। शुभंभवतु ।।
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श्री उपकेश ( कंक्ला ) गच्छा की बगीची
जस्सूसर दरवाजा
२१३१ )
॥ संवत् १५६६ वर्षे चैत्र सुदि १ श्रीऊकेश गच्छे ग० श्रीदेवसागर दिवंगतः
|| संवत् १६३६ वर्षे वैशाख सुदि शिष्य वाणrce श्री वस्ता दिवंगतः :
२१३२ )
१५ दिने श्रीउपकेश गच्छे वा । श्रीसोम ( ? ) कलश शुभभूयात् । कल्याणमस्तु ॥
२१३३ ।
संवत् १६६३ वर्षे प्रथम चैत्र सुदि ८ दिने शुक्रवारे श्री उपकेश गच्छे वा । श्रीविनयसमुद्र शिष्य अचलसमुद्र दिबंगतः शुभं भवतु कल्याणमस्तुः
( २१३४ )
|| संवत् १६६३ वर्षे माह वदि ६ दिने सोमवारे श्रीeपकेशगच्छे वा । श्रीवत्ता शिष्य ग० श्री तिहुणा दिवंगतः श्री ॥ शुभं भवतुः ॥
( २१३५ )
॥ संवत् १६६४ वर्षे वैशाख सुदि ११ दिने सोमवारे श्री उपकेशगच्छे ग० श्री तिहुणा शिष्य ग० श्री राणा दिवंगतः शुभं भवतुः ॥
/ २१३६ )
।। संवत १६८ - वर्षे शाके १५५४ प्रवर्त्तमाने भाद्रपदमासे शुक्लपक्षे चतुर्थ्यां तिथौ गुरुवारे श्रीपगच्छे रत्नकलश भट्टारक श्रीदेवगुप्तसूरि तत्पट्टे भट्टारक श्रीसिद्धसूरि दिवंगतः । श्रीरतुः । २१३७ )
सं० ५ वर्षे । चैत्रमासे शुक्लपक्षे त्रयोदशम्यां तिथौ सोमवारे । श्रीविक्रमनगरे। उपकेशगच्छे । वा० श्री श्रीदयाकलशजी । शि० वा० श्रीआणंदकलश
( २१३८ ।
श्री गणेशाय नमः ॥ संवत् १७४० वर्षे चैत्र बदि ८ तिथौ बुधे । वा० श्री भाषमल्लाजी शिष्य बा० भीबीकाजी शिष्य काणारस श्री ६ देवकलशजी देवगतिः प्रातिः ॥ शुभं भवतु ||१|| श्री श्री
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२९६
बीकानेर जैन लेख संग्रह
(२१३६ । ॥ श्री गणेशाय नमः ॥ अथ शुभसंवत्सरे श्रीमन्नृपति विक्रमादित्य राज्यात् संवत् १७६३ वर्ष सावण सुदि १ सोमवारे मघा नक्षत्रे अत्र दिने.... "वगत् समस्त रात्रि प्रथम प्रहर समये श्री मदुपकेश गच्छे पाणारस श्री श्री आणंदकलशजी तच्छिध्य पं०। श्री श्री अमीपालजी तच्छिष्य पं० श्री खेतसीजी दैववशादिवंगतः ।। श्री शुभं भवतुः । उरता ईसाकेन कृतः॥
( २१४०) ॥ श्रीगुरवे नमः ।। संषत् १७८३ आसोज सुदि ११ तिथौ भट्टारक श्री १०८ प्रीसिद्धसूरिजी दिवंगतः॥
( २१४१ : सं० १८०७ वर्षे शा० १६७२ प्र। आषाढ शुटा १५ तिथौ रविवासरे श्रीमदुपकेशगच्छे पूज्य भट्टारक भी १०८ कपासूरयः दिवंगताः ।
(२१४२ ) श्री गणेशाय नमः । संवद्वाणान्तरेक्षेमेन्दु प्रमिते १८०५ म्दे शाके १६७० प्रवर्त्तमाने पौषासित द्वितीय तृतीयां रविवार पूज्य भट्टारक श्रीसिद्धसूरिणामंतेधासी पंडित श्रीक्षमासुन्दराः दिवं मध्य
( २१४३ ) ॥६० ॥ श्री गुरुभ्यो नमः ॥ संवन्नागामिकरिभू १८३८ बर्षे शाके रामान्तरिक्षौब्धि गोने भाद्रपदे नेभे नीले कुतू तिथ्यामक्केवारे! पं० प्र० श्रीक्षमासुंदराणां शिष्य श्रीवाचनाचार्य उदयसुंदराः स्व. जमगु ? (जग्मु)
(२१४४) ॥ सं० १८४६ वर्ष शा १७११ प्रवर्तः चैत्र मासे कृष्णपक्षे तृतीया तिथौ बुधधारे श्रीमदुपकेश गच्छे पूज्य भट्टारक श्री १०८ श्रीदेवगुप्तसूरथः दिवंगताः
( २१४५ ) ॥ सं० १८६० वर्षे शाके १७२५ प्र ।। मासोत्तममासे चैत्रमास कृष्णपक्षे टम्या तिथौ रविवारे मदुपकेशगच्छे पं! प्र । श्रीवखतसुंदरजी दिवंगता !!
( २१४६ ) ॥सं० १८६० वर्षे शा० १७५५ प्र! माघमासे शुक्लपक्षे द्वितोय षष्ठ्यां तिथौ शनिषारे श्रीमदौएसगच्छे पूज्य यु० भ० श्री १०८ श्रीसिद्धसूरयः दिवंगताः॥
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बीकानेर जैम लेख संग्रह
( २१४७ )
श्रीउपकेशगच्छे युगप्रधानभट्टारक श्रीकक्कसूरयस्तच्छिष्य भट्टारक श्रीसिद्धसूरयस्तदन्तेवासिनः श्री क्षमासुन्दर पाठकरतच्छिष्या श्रीजयसुंदरास्तच्छिष्य महोपाध्याय श्रीमतिसुंदराणां चरणह प्रतिष्ठापितम् ॥ श्री ॥
( २१४८ )
स्तूप प्रशस्ति
श्रीसत्यिका
11
चन्द्रा धृति मानेकदे ( १८६१ ) मार्गमासि सिते दले । एकादय गुरौवारे नगरे विक्रमाये | १ | श्रीपार्श्वनाथ जिनचंद्रपरंपराया श्रीरत्नकांति गुरुरित्यभवत्पृथिव्यां | उकेशनानि नगरे किलतेत तेने धर्मोपदेशकरणादुपकेश वंश । । तस्यान्वये कतिपया शुसखावभूयुलोंके - सुरासुरनरैरुपराज्यमानाः । तेवश्रिया प्रवरजंगमक्ल्पवृक्ष श्रीदेवगुप्त इति सूरिवरोवभूव | ३ | तत्पट्टपूर्व धरणीधरमास्थितोभूत् श्रीककसूरि रथसूरिगुणोपपन्नः । तस्याभवन्निखिल सिद्धिधरो विनेयः श्रीसिद्धसूरि रिह तत्पदसत्प्रतिष्ठः । ४ । शिष्यस्तस्य बभूत्र पाठकवरो नाम्ना क्षमासुन्दरः जाड्य क्षेत्र विदारणैक तरणिर्नृणापदार्थाशुषाम् । ख्यात श्याम सरस्वतीत्यमिह श्रीमान्धरित्री तले । तच्छिष्यो जयसुंदरोयतिगुणैर्विख्यातनामाऽभवत् । ५ । तच्छिष्यामतिसुंदरा मतिप्रभा मान्यो महापाठका । ऊकेशाह्वयगच्छनायक कृपाप्राप्तप्रभावोदयाः । विद्यासिद्धिसमुज्ज्वलेर्गुणगणै
(२१४६ )
॥ सं० । १६१५ वर्षे शाके : १७८० प्रवर्त्तमाने गच्छे पं० प्र० । श्री आनंदसुंदरजी दिगताः ।
( २१५० )
गुरुवारे मदुपकेशगच्छे पं० : प्र श्री १०५.
३६
२६७
शुकपक्षे ५ म्यां तिथौ सोमवारे मदुपकेश
( २१५१ )
संवत् १६१८ वर्षे शाके १०८३ प्रवर्त्तमाने ज्येष्ट मा यदि १० म्याँ तिथौ सोमवासरे पं । प्र । श्री १०५ श्री उपाध्यायजी श्री आनंदसुंदरजी तच्छिष्य पं० खूबसुंदरेण गुरुभक्त्यर्थं अस्य शाला
कारापिताः ॥ शुभं भवतु ॥
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मासोत्तममासे कृष्णपक्षे २ तिथौ
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श्री गंगा गोल्डन जुबिली म्युजियम् (बीकानेर)
पाषाण प्रतिमाओं के लेख
२१५२)
श्री महावीर स्वामी (1) ॥ सं० १५०१ अक्षयतृतीयां भ० श्रीमुनीश्वरसूरि पुण्याथ का० देवभद्रगणेन ।। शुभंभवतु ।। (.) १॥६०|| संवत् १५०१ वर्षे वैशाख सुदि अक्षय तृतीयायां श्रीभट्टनगरे श्रीवृद्ध गच्छे देवाचार ___ संताने श्रीजिनरत्नसूरि श्री मुनिशेखरसूरि श्री तिलकसूरि श्री भद्रेश्वरसूरि तत्पट्टो-... २ दयशैलदिनमणि । वादीन्द्रचक्रचूड़ामणि शिष्य जन चिन्तामणि भ० श्री मुनीश्वरसूरि
पुण्यार्थ वा । देवभद्रगणि श्री महावीर बिंब कारितं । प्र० श्रीरत्नप्रभसूरि प ३१ श्री महेन्द्रसूरिभिः चिरंनंद्यात् शुभम्
(२१५३ )
श्री संभवनाथ जा (1) वा. देवभद्रगणिना बिंबं कारितं ॥ ६) १॥६०| स्वस्ति श्री संवत् १५०१ वर्षे वैशाख सुदि ३ तृतीयायां वृहद्गच्छे श्रीदेवाचार्य संताने
श्री मुनीश्वरसूरिवादीन्द्रचक्र चूड़ामणि राजाबलीत कला २ प्रकाश नभोमणि वर शिष्य वाचनाचार्य देवभद्रगणिवरेण श्री संभवनाव चिंच कारिखं प्रतिष्ठितं । श्रोरत्नप्रभसूरिपट्टे श्री महेन्द्रसूरिभिः शुभं भवतु ।।
(२१५४ )
श्री अजितनाथ जी १ संवत् १५०१ वर्षे वैशाख शुक्ल २ सोमे २ रोहिणी नक्षत्रे जंबड़ गोत्रे। सं० गे३. डा संताने सा० सच्चा पुत्र सा० केव्ह४ ण भार्या श्राविका हेमी नाम्न्या स्वप५ ति पुण्यार्थ श्री अजितनाथ बिबं कारि६ तं प्रतिष्ठितं श्री वृहद्गच्छे श्री देवाचार्य सं७ ताने। श्रीरत्नप्रभसूरिपट्टे महेन्द्रसूरिभिः । • . । संहावाले लेख प्रतिमा के सामने व (1B वाले पीछे खुदे हैं।
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बीकान जन लेख संग्रह
२६६
(२१५५ )
श्री महावीर स्वामी ६ संवत् १५२१ वर्षे मार्ग० वदि १२ दिनेऊ० बुथड़ा गोत्रे सा० तोला पुत्र २ स्वपुण्यार्थ श्रीमहावीर बिबं कारितं प्र। श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः ।
( २१५६) १संवत् १५२४ वर्ष...................................."म दे पु......... २... सराज..... ...."
............"शिष्य श्री जिनचंद्रसूरिभिः ( २१५७ )
श्री आदिनाथ जी ५ ॥ संवत् १५०० वर्षे मार्गशिर वदि २ २ शनौ ओसवाल ज्ञातीय श्री नाह३ र गोत्रे सा० मोहिल सुत सं० नयणा ४ तद्भार्या सं० कुंता नाम्न्या स्वभत्तुः पु५ ण्यार्थ श्री आदिनाथ बिंबं कारितं प्र६ तिष्ठितं श्री रत्नप्रभसूरिपट्टे ।। ७ श्री महेन्द्रसूरिभिः श्रेयसे भवतु ।। ८ श्री वृहद्गच्छे ॥ श्री ॥
( २१५८ ) १ संवत् १५७३ वर्षे आषाढ सु० ६ दिने । उसिवालन्यातीय चीचट गोत्रे सा० देवराज
पु० दशरथ २ कवब ? ऊदपिता कारापिता पुण्या श्री....मिनाथ बिबं कारापितं प्रति० श्रीधर्मगोखगच्छे भ० श्री .......... सूरिभिः । सह ।। श्री।
(२१५६) संवत् १५४८ . ... भट्टारक ... ... देव शाहाजी राज .. . ... ' सकसद'
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३००
बीकानेर जैन लेख संग्रह
( २१६० ) श्री संभवनाथ जी
संवत् १६७७ व० अक्षय ३ दि० बा० वाल्हादे नाम्न्या पु० लखमणसुतया श्रीसंभवनाथ बियं का० प्र० । भ । श्री विजयदेवसूरिभि:
( २१६१ )
१ || सं० १५६४ वर्ष काती बदि ६ दिने श्रीऊकेश वंशे वैद्य गोत्रे मं० सहसमल पुत्र
२ सहजा श्रेयोर्य कारित शिवकेन श्रीसुविधिनाथ बिंबं कारितं प्र० श्रीसिद्धसूरिभिः
धातु प्रतिमाओं के लेख
२१६२ )
श्री आदिनाथ जी
सं० ९४२२ वैशाख सुदि ६ श्री आदिनाथ बिंबं सा० गयधरपुत्रेण सा० प्रथमसीन स्वकेन स्वपुण्यार्थं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनोदयसूरिभिः ।
( २१६३ )
श्री चन्द्रप्रभादि पंचतीर्थी
दि १ दिने ऊकेश वंशे सा० हेमाकेन पुत्र हमाधिजामामुपरिवारयुतेन श्रीचन्द्र
प्रभवामि बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः ॥
( २१६४ ) aava is fia पर
६००० बिंब संवत् १९३३ माघ सु १० का । राजा धनपतसिंह बादुरेण प्र० सर्वसूरि
बंगदेशे ।
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शि व बाड़ी श्री पार्श्वनाथ जी का मन्दिर
पाषाण प्रतिमाद लेखाः
(२१६५)
श्री पार्श्वनाथ जी सं० १९३१ व ! वै० सु ११ ति । श्रीपार्श्वजिनबिबं प्र० बृहत्खरतरगच्छे । म । श्रीजिनहंस. सूरिभिः ....... ................ ल गृहे भार्या चुन्नी का।
( २१६६ )
श्री कुन्थुनाथ जी सं० १९३१ व । वै० सु। ११ वि । श्रीकुंथुजिन बि । प्र । म । श्री जिनहंससूरिभिः .... .... भैरूदान...............
( २१६७)
श्री धर्मनाथ जी सं० १९३१ वर्षे मि । धै। सु। ११ ति! श्रीधर्मजिन वि । प्र । पृ । ख ग । म। श्रीजिन इंससूरिभिः। को। ...........
( २१६८ )
दादाजी के चरणों पर श्री सीबाड़ीरे मंदिरजी सं० १९३८ साल में होयो जिण में श्री दादाजी रा पगलिया चक्रेश्वरीजी संसकरणजी सावणमुखा रै अठै सुं पधराया
धातु पश्चतीर्थी का लेख
२१६६ ) संवत् १५०८ वर्षे बै० सु० ३ प्रा० ज्ञातीय मं० गुणपाल भार्या भरमा पुत्र कीकाकेन भाय कील्हणदे सुत सिवा देवादि कुटुंब युतेन स्वश्रेयसे श्रीमुनिसुव्रत स्वामी विध कारिसं प्रतिष्ठित तपागच्छेश श्रीमुनिसुदरसूरि शिष्य श्रीरत्रशेखरसूरिभिः।
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ऊदा स र
श्री सुपार्श्वनाथ जी का मन्दिर
पाषाण प्रतिमाओं के लेख
( २१७० ) मूलनायक श्री सुपार्श्वनाथ जा
संवत् १६३१ वर्षे । शाके १७६६ मि० मासोत्तममासे माधवमासे कृष्णेतर पक्षे एकादश्या तिथौ सोमवासरे । श्रीसुपार्श्वनाथजिनबिंबं प्रतिष्ठितं । श्रीमद्गृहतखरतरगच्छे | अं । यु : भट्टारक श्रीजिनंससूरिभिः श्रीचीकानेर वास्तव्य समस्त श्रीसंघेन कारितं ॥ श्रेयोर्थम् शुभं भवतु || श्रीरस्तु || ( २१७१ )
दाहिनी ओर श्री धर्मनाथजी
श्रीधर्मनाथ जिन बिंदु । प्रतिष्टितं बृहत्खरतरगच्छेश जं । यु । प्र । भ० श्री जिनहर्षसूरि पट्टाकार । जं । यु । प्र । भ श्री जिन
( २१७२ ) बायें तरफ श्री पार्श्वनाथजी
T
सं० १६३१ ब । मि । वैसाख सुदि ५ तिथौ । श्री पार्श्वनाथ जिन बिंबं प्र । श्रीजिनहंससूरिभिः श्रीसंघेन कारितं । बीकानेर
( २१७३ )
दक्षिण के आले में श्री पार नायजा
सं० १९२० शा १७७७ (१) प्र । मा । मिगसरमा से कृष्णपक्षे तिथौ ५ गुरुवारे । श्रीपार्श्वप्रसु बिंबं प्रतिष्ठितं श्रीखरतराचार्यगच्छे जं । यु । प्र । भट्टारक श्रीजिनहे मसूरिभिः ।
( २१७४ ) पादुका पर श्री जिनकुशलसूरि धातुकी पंचतीर्थी पर
{ २१७५ ) श्री अनन्तनाथजी
सं० १५२८ वैशाख बदि ५ दिने ऊकेश वंशे काकरिया गोत्रे सा० पूना भा० होली श्राविकया। लाषा चाचा चउड़ा जनन्या करमा देवराज आसा प्रमुख पौत्रादि परिवारयुतया स्वपुण्यार्थ श्री अनंतनाथ बिंबं का० प्रतिष्ठितं श्रीखरसर गच्छे श्री जिनभद्रसूरि पट्ट े श्रीजिनचंद्रसूरिभिः ॥
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गंगाशहर श्री आदिनाथजी का मन्दिर
पाषाण प्रतिमा लेखाः
( २१७६ ) सं० १६०६ वर्षे माघ कृष्णा .......
(२१७७)
संवत् १६०५ मि । वैशाख सुदि १५ बाफणा हिन्दूमलजी सपरिवारेण श्रेयांसनाथ घिर कारिता प्रतिष्टितंश्च ।
( २१७८ ) सं० १९३१ व । मि । वै। सु ! ११ ति । श्री .. ....
(२१७६ )
दादा साहब के चरणों पर श्री गंगाशहर के मन्दिरजी में श्रीऋषभदेवजी महाराज की प्रतिमाजी व दादाजीरा पगलिया चक्रेश्वरीजी सैंसकरणजी सावणसुखा पधराया सं० १६७० जेठ बदि ८
धातु की पंचतीर्थी का लेख ।
( २१८०) सं० १५७८ वर्ष माघ बदि ८ रवौ डाभिलावासि प्राग्वा० ज्ञा० मं० सोमा भा० हीरू सुत मं० वच्छाकेन भा० वल्हादे सुत लहू आदि कुटुंबयुतेन स्वश्रेयसे श्रीसंभवनाथ बिंबं कारितं प्रतिक तपागच्छे श्रीहेमविमलसूरिभिः ।।
श्री पार्श्वनाथ जी का मन्दिर ( रामनिवास)
( २१८१ )
मूलनायक श्री पार्श्वनाथ जी ___ सं० १९०५ मि ! घशाख सुदि १५ श्रीसंघेन श्रीपार्श्वनाथ बिबं कारि प्रतिष्ठापितं च श्री खरतर गणाधीश्वर जंगम युगप्रधान भट्टारक श्री जिनसौभाग्यसूरिभिः ।
(२१८२) . संभवनाथादि धातुपंचतीर्थी सं० १५२४ वर्षे मार्गे व०५ सोमे कोलर वा० प्राग्वाट ज्ञातीय व्य० सादा भार्या सुहवदे सुत व्य० बीढाकेन भार्या वीरिणि पुत्र केल्हादि कुटुंबयुतेन स्वभेयसे श्रीसंभव बिंब कारित प्र० तपा श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः
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भी ना स र
श्री फार्थनाथ जी का मन्दिर
पाषाण प्रतिमा लेखाः
( २१८३ ) ॥ सं० ११८१ माघ सु०५ गुरो प्राग्वाट ज्ञातोय सं० दीपचंद भार्या दीपादे पुत्र सा० अबीरचंद अमीचंद श्रीसहसफणा पार्श्वनाथ विवं कारितं प्रतिष्ठितं खरतर गणाधीश्वर भी जिनदत्त सूरिभिः।
(२१८४) सं० १६१६ मि । । सु। ७ श्रीमुनिसुव्रत विषं भाजं ।
( २१८५) सं० १६१६ मि । थे। सु। ७ अजित जिन बिंबं
( २१८६ ) ॥ संवत् १८१४ रा । वर्षे । मि । आसाढ सुदि १० तिथौ बुधवासरे श्रीमहावीर जिन विवं प्रतिष्ठित । भ० श्री जिन...... ........
सं० १६१६ मि । वै। सु । ७ श्री शांतिनाथ बिब म ! श्री जिन
॥ संवत् १६१४ रा वर्षे मिति आसाढ सुदि १० तिथौ बुधवासरे श्री मुनिसुव्रत जिन विवं प्रति
(११८६ : सं० १६१६ मि ।। सु! ७ श्रीविमल जिन बिंबं भ
. ( २१६० सं० १९१६ मि । वै! सु । ७ श्री माल जिन विधं म।
( २१६१ ) सं० १६१६ मि । घे। सु! ७ श्रोनेमि जिन बिवं भ।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
धातु प्रतिमाओं के लेख
(२१९२ )
चौवीसी
सं० १५०३ वर्षे माघ बदि ५ श्रीश्रीमाल ज्ञातीय व्य० पद्मा भार्या पोमादे सुत व्य वांसहा के फत्ताकेन भार्या झबकू जइतू आसा सुत व्य० देवराज सहितेन मातृ पित्रौः श्रेयसे श्रीसुविधिनाथ चतुर्विंशतिपट्टः का० श्रीपिप्पलगच्छे श्रीसोमचन्द्रसूरि पट्टे श्रीउदयदेवसूरिभिः प्रतिष्ठिता।
(२१९३ ) सं० १५७६ वर्षे श्री खरतर गच्छे बोहित्थरा गोत्र साह० जाणा भार्या सक्ता दे पुत्र सा. अमराकेन भार्या उछरंगदे सुत कीकादि युतेन श्री आदिनाथ बिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनहंससूरिभिः ॥माह बदि ११ दिने ।
(२१९५)
रौप्य नषपद यंत्र
__मु० सालमचंदजी कोचर श्री महावीर सेनीटोरियम ( राष्ट्रीय सड़क-उदरामसर धोरों में ) श्री श्वेताम्बर जैन मन्दिर
( २१९५)
मूलनायकजी ९० संवत् ११ ( १५ ) ४५ उ । मोटदेदि ॥ ( वदि ५ ) यम अबदादसा श्री भोगावे (?)
( २१९६)
धातु पंचतीर्थी सं०....'च ब १२ सोमे उ० भ० गोत्रे सा० सालिग भा० राजलदे पु० सा० जेसा श्रावण श्री आदिनाथ बिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्री खरतर गच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः
(२१९७)
दादा साहब के चरणों पर ___ सं० २००५ मि । जे । सु १० जं। यु० प्रधान भट्टारक गुरुदेव दत्तसूरि चर्ण पादुका भीखनचन्दजी गिड़िया प्रतिष्ठा कारापितं ।
( २१९८)
चरणों पर सं० २००५ मि । जे । सु १० खरतर गच्छाधिपति परमपूज्य गुरुदेव श्री सुखसागरजी मा० सा० के चर्णपादुका श्री भीखनचन्दजी गिड़ीया प्रतिष्ठा करापितं ।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
उद रा म स र श्री दादाजी का मन्दिर
( २१९९ )
शिलालेख सं० १८९३ मिते । प्र। आषाढ़ सुदि १० तिथौ महाराजाधिराज श्री रतनसिंहजी विजयराज्ये । दा । श्री जिनदत्तसूरीश्वराणां स्तम्भोद्धार श्री वृहत्खरतर गच्छाधीश जं । यु०। प्र। भट्टारक श्री जिनहर्षसूरीश्वराणामुंपदेशात् श्री जेसलमेर वास्तव्य संघ मुख्य बा। बहादरमलजी सवाईरामजी मगनीरामजी जोरावरमलजी प्रतापचन्दजी दानमलजी सपरिवारण कारितः जं । यु । प्र। भ। श्री जिनसौभाग्यसूरीश्वराणां विजयराज्ये श्रेयोभवतु ॥ श्री॥
(२२०० )
श्रीजिनदत्तसूरिजी के चरणों पर संवत् १७३५. . . 'मिगसर सुदि तिथौ बुधवारे श्रीजिनदत्तसूरीणां पादुके ..... (कारा ? ) पितं श्री विक्रमपुर वास्तव्य समस्त श्री खरतर संघेन ।।
(२२०१ )
पादुका की अंगी पर संवत् १९०७ मिते भादवा सुदि १५ दिने भ। श्रीजिनसौभाग्यसूरि विजयराज्ये जं। यु। श्रीजिनदत्तसूरीणां पादन्यासः का। सुश्रावक खजानची बच्छराजजी श्रेयोर्थम् ।।
शालाओं के लेख
(२२०२ ) जं० भ० श्री जिनलाभसूरि प्रपौत्रेण पं । सुखसागरेण श्याला कारिता सं। १८८६ वर्ष बैशाख सुदि ५
( २२०३) सं० १८८६ मि । वै। सु ५ श्रा। सां । दानसिंह अखूरवाइ केन श्याला कारिता ।
(२२०४ ) सं० १८८६ मिती फा० सु० ५ सेठिया श्री केसरीचंदेन इयं शाला कारिता ।
(२२०५)
नीचौकिये पर संवत् १८९३ मिते प्र। आषाढ़ सुदि १० तिथौ शुक्रवारे बाफणा गोत्रीय संघ मुख्य श्री बहादरमल्लजी सपरिवारेण जीर्णोद्धार कारितः।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
श्री कुन्थुनाथजी का मन्दिर
( २२०६ )
दादाजी के चरणों पर शुभ संवत् १९८८ का माघ सुदि १० ज्ञवारे जं० यु० प्र० भ० श्री जिनकुशलसूरि चरणकमल कारित उदरामसर वास्तव्य बोह० हजारीमलादिभिः प्रति। महो० श्री लक्ष्मीप्रधान गणि पौत्र शिष्य उ० जयेन्दुभिः
(२२०७ )
यक्ष बिंब पर संवत् १९८८ श्री गन्धर्व यक्ष मूर्ति माघ सुदि दशम्यां ।
( २२०८)
शासनदेवी की मूर्ति पर संवत् १९८८ का श्री बलादेवी मूर्ति १७ माघ सुदि १० ।
धातुप्रतिमादि लेखाः
( २२०९)
मूलनायक श्री कुन्थुनाथजी सं० १५५६ वर्ष वशाख सुदि ११ शुक्र उ० ज्ञा० सा० काह्रा भा० कील्हू पु० गांगा सांगाकेन भा० बोधी पु० राजा हीरा तथा गांगा भा० मोही पु० मांडण सहितेन भ्रातृ गांगा निमित्तं श्री कुन्थुनाथ बिंबं का० प्र० श्रीसूरिभिः
( २२१० )
श्री कुन्थुनाथजी संवत १६८५ वर्षे 'आ० सहजबाई कारितं श्रीकुन्थुनाथ बिंबं प्रतिष्ठितं श्रीविजयाणंदसूरिभिः ।
धातु के यंत्र पर शुभ सं० १९८४ का० चैत्र सुदि १५ वार रवि पूनमचन्द कोठारी भार्यया कारित प्रतिष्ठितं च उ० जयचन्द्र गणिभिः
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
Arinaruwanrammar
दे श नोक (१) श्री संभवनाथजी का मन्दिर (आंचलियों का वास)
पाषाण प्रतिमादि लेखाः
( २२१२ )
शिलापट्ट पर ॥ श्री सिद्धचक्राय नमः श्री करणीजी महाराज ॥ सं० १८।६१ मिती माघ सुदि पंचम्यां चन्द्रे श्री देशनोक श्रीसंघेन श्री पार्श्वनाथ देवगृह कारितं प्रतिष्ठापितम् महाराजाधिराज श्री सूरतसिंह जी विजयिराज्ये वृहत्खरतर गच्छाधीश्वर । भट्टारक। श्री जिनचन्द्रसूरि पट्टालंकार भ० श्री जिनहर्षसूरि धर्मराज्ये प्रतिष्ठिता च उ० श्री क्षमाकल्याण गणिभिः वा० श्रीकुशलकल्याण गणिनामुपदेशात् चैत्यमिदं समजनि श्रीरस्तुसर्वेषां वा० श्रीलालचन्देन उद्यम कारक ।
( २२१३ )
श्री संभवनाथजी सं० १८६० मिते वैसाख सुदि ७ गुरौ बाफणा गोत्रीय । सा । गौड़ीदास लघुपुत्र परमानंदेन श्री संभव जिन बिंब कारितं प्रतिष्ठितं च भ । श्री जिनहर्षसूरिभिः
( २२१४ ) संवत् १५८२ वर्षे माह सुदि ५ श्री मूल संघ ( ? ) भ' 'अ'च सूरि...ओसवालान्वये भावड़ा गोत्रे सा० लोढा रतना भार्याह .........
( २२१५)
दादा साहब के चरणों पर श्री जिनदत्तसूरि । श्री जिनकुशलसूरि ॥
( २२१६ )
चरणों पर सं० १८६१ मिते माघ सुदि पंचम्यां चन्द्र....... चरण न्यासः कारितं वा । कुशलकल्याण गणिना का ।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
धातु प्रतिमादि लेखाः
( २२१७ ) श्री सुविधिनाथादि चौवीसी
सं० १५०८ वर्षे चैत्र वदि ८ बुधे प्राग्वाट जातीय व्यव० राजा भार्या राजलदे सुत भरमा - केन भार्या श्रीमलदे कर्मा भार्याकेन कामलदे । पूर्वज निमित्तं श्रीसु (वि) धिनाथ चतुर्विंशतिपट्टः कारितं प्रतिष्ठितं मड्डाहड़ीय गच्छे श्रीहीरानन्दसूरि पट्टे गुणसागरसूरिभिः । श्री किरवाड़प्रामे ।
( २२१८ )
३०६
श्री वासुपूज्यादि चौबीसी
॥ संवत् १५९ ( ? ) वर्षे श्रीमाल वंशे नाचण गोत्रे सा० मालदे भार्या सरसति तत्पुत्र सा अभयराजेन स्वमातृ पुण्यार्थं मूलनायक श्री वासुपूज्योपेत चतुर्विंशति पट्ट का० प्र० श्रीजिनभद्रसूरि पट्टे श्री जिनचन्द्रसूरिभिः । खरतर गच्छे
II
( २२१९ )
सं० १९१३ वर्षे वै० ब० २सोमे उसवाल मं० सूरा भा० सपूरी सुत पर्वत अर्जुनभ्यां भा० दसी सुत गांगा हर्षा हरदास बड़आ गणपति प्रमुख कुटुम्ब युवाभ्यां गांगा श्रेयोर्थं श्री पार्श्वनाथ बिंबं का० प्र० तपा श्रीसोमसुन्दरसूरि पट्टे श्रीमुनिसुन्दरसूरि तत्पट्टे श्रीरत्नशेखरसूरिभिः वृद्धनगरे ।
( २२२० )
श्री नमिनाथादि पंचतीर्थी
सं० १५३५ वर्षे मा०सु०५ गु० डीसा० ० जूठा भार्या अमकू सुत मं० भोजाकेन भ्राः : बडूया स्वभार्या मचकू सुत नाथादि कुटुम्ब श्रेयसे श्री नमि० बिं का० प्र० तपागच्छे श्री श्री लक्ष्मीसागरसूरिभिः भ्रा० पानाश्रेयसे ।
( २२२१ )
श्री ऋषभदेवजी आदि पंचतीर्थी
||६०||सं० १५६३ वर्षे माघ सुदि १५ दिने ऊकेश वंशे साहूशाखा गोत्रे सा० सारंग पुत्र सा० धन्ना भार्या धांधलदे पुत्र सा० हर्षा सुश्रावकेण भा सोहागदे पुत्र सा० नानिग सा० राजादि युतेन श्री ऋषभर्विवं कारितं । प्रतिष्ठितं । श्री खरतरगच्छे श्री जिनसमुद्रसूरि पट्टे श्रीजिनहंससूरिभिः ॥ श्री ॥
( २२२२ )
श्री पार्श्वनाथ जी
सं० १६७७ वर्षे फा० सु० ८ सोमे ॐ ज्ञा० सोधनजी केन पारसनाथ बिंबं का० प्र० तपा श्री विजयदेवसूरिभिः ।
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३१०
सं० १६७१
बीकानेर जैन लेख संग्रह
( २२२३ )
वै० ५ सोमे उगरसेनि प्रणमति । सु
( २२२४ )
सं० १६९७ व ।। उ व्य दोने भावदेवी वृ० उक० सी० मीलिकजी नाम्नी श्री वासुपूज्य बिं० का० तपा
( २२२५ )
संवत् १७०६ भ० पद्मकीर्त्यपदेशात्...अभिनंदन बिंबं हरदास नित्य प्रणमति ।
( २२२६ )
श्रीमूल संघे..
सिद्धचक्रजी के यन्त्रों पर
( २२२७ )
सं० १८५२ पौष सुदि ४ दिने वृहस्पतिवासरे । श्री सिद्धचक्र यन्त्र मिदं । प्रतिष्ठितं । सवाई जयनगर मध्ये | वा । लालचन्द्र गणिना । वृहत्खरतर गच्छे। कारितं । बीकानेर वास्तव्य । सारंगाणी गोत्रे | ढड्ढा | धरमसी । तत्पुत्र कपूरचन्द्रेण श्रेयोर्थं ।
'
( २२२८ )
सं० १८६८ मिते वैशाख सुदि १२ दिने श्री बीकानेर वास्तव्य वैद मुंहता सवाईरामेण श्री सिद्ध यन्त्रं कारितं प्रतिष्ठितं च पाठक श्री क्षमाकल्याण गणिभिः ॥ श्रेयोधं ॥
( २२२९ )
संवत् १८७८ मिति काती सुदि
५ दिने श्री बीकानेर वास्तव्य वैद मुहता सवाईरामजी श्री सिद्ध यन्त्र | कारितं प्रतिष्ठितं ।। उ । श्री श्री क्षमाकल्याणजी गणिनां । प्राज्ञ । धर्मानन्द मुनिः ॥ श्रीरस्तुः ॥ कल्याणमस्तु ॥ छः ॥
(२) श्री शान्तिनाथजी का मन्दिर
( भूरों का आथूणा वास )
( २२३० )
शिलालेख
भ। श्री जिनहर्षसूरिजित्विजय राज्ये ॥ सं १८११ मि मा सु । ५ पं० अभयविलास मुनेरुपदेशादेषा शाला श्रीसिंघेन कारिता ।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
( २२३१)
शिलालेख ॥ भ । श्री जिनकीर्तिसूरि महाराज तत् समये महाराज गंगासिंह राजराजेश्वर । सं० १९६५ मि । चै । सु ५ देशनोक अथूणेवास जीर्णोद्धारः चन्द्रसोम मुनिः तच्छिष्य धर्मदत्त मुने रुपदेशात् कारितः सागरचन्द्रसूरि शाखायां छिला ग्राम वास्तव्यः भूरा लक्ष्मीचंद चांदमल उद्यम कारक ताभ्यां कुण्डः कारितः संघ श्रेयोर्थ ॥हीं॥
(२२३२ )
मूलनायकजी श्री शान्तिनाथजी धातु प्रतिमादि लेखाः
(२२३३)
ऋषमदेवजी की बड़ी प्रतिमा पर सं० १९१६ मि । वैशाख सुदि ७ दिने श्री ऋषभ जिन बिंबं । भ । जं । यु । प्र । श्री जिनसौभाग्यसूरिभिः प्र । श्री देशणोक आथमणा वास वास्तव्य श्री संघेन कारापितं च श्री मबृहत्खरतर गच्छे श्री विक्रमपुर मध्ये ॥ श्रीः॥
( २२३४ )
श्री आदिनाथादि चौवीसी ॥६०॥ संवत् १६१५ वर्षे शाके १४८० प्र० माघ मासे । शुक्ल पक्षे । षष्ट्यां तिथौ। शनिवासरे। श्री श्रीमालजातीय । श्रे० कडूआ भा० कामलदे । पु० धरणा ॥ खीमा २ भा० लखमादे। आत्मश्रेयोऽर्थं श्री आदिनाथ बिंबं कारतं । श्री पिप्पल गच्छे। भ० श्रीपद्मतिलकसूरि । तत्पट्टे । श्री धर्मसागरसूरीणामुपदेशेन । प्रतिष्ठितं ।। दसाड़ा वास्तव्य । शुभंभवतु ॥१॥
(२२३५ ) सं० १४८३ प्राग्वाट ज्ञातीय मं० मांडणेन भा० भाऊ पुत्र देवराजादि कुटुम्ब युतेन स्वपुत्री देऊश्रेयसे श्री श्री श्री वासुपूज्य बिंबं का० प्र० श्री तपा गच्छे श्री सोमसुन्दरसूरिभिः ॥ श्री ॥
(२२३६) सं० १५०१ वर्षे वैशाख बदि ५ दिने रवौ प्राग्वाट ज्ञातीय व्य० झगड़ा भार्या मेघादे पुत्र व्यः ऊधरणेन भार्या कामलदे पुत्र झांझण तेल्हादि कुटुम्ब युतेन स्वश्रेयसे श्री कुंथुनाथ बिंबं का० प्र० तपा श्री सोमसुन्दरसूरि शिष्य श्री श्री श्रीमुनिसुन्दरसूरिभिः ।। श्री ॥
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
. (२२३७ ) सं० १५९३ वर्षे आषाढ़ सुदि ४ दिने गुरुवारे आदित्यनाग गोत्रे सा० पासा भा० पासलदे पुत्र सा० उदा भा० ऊमादे पु ३ सा० कर्मसी सा० रायमल्ल सा० देवदत्त । कर्मसी भा० कामलदे पु० सा पहिराज । सा० आसा। कर्मसी आत्मपुण्यार्थ श्री श्री शीतलनाथ विबं कारापितं । श्री उपकेश गच्छे । भ० । श्रीसिद्धसूरिभिः प्रतिष्ठितं । श्री नागपुरे ।
( २२३८) ॥६०॥ सं० १६३६ व । फा० सु. १० गुरौ सीरोही वास्तव्य प्राग्वंशीय वु० रायमल्ल भा. रंगादे पु० वु० मना भा० मकरत दे पु० हांसा हीरा सरताणादि कुटुम्बेन श्री शान्तिनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं तपागच्छाधिराज श्री हीरविजयसूरिभिः ।
(२२३९ ) श्री मू-[लसं ] घे वा सूरा
(२२४०)
सिद्धचक्र यन्त्र पर ॥ संवत् १८५२ पोस सुदि ४ दिने वृहस्पतिवासरे। श्री सिद्धचक्र यन्त्र मिदं । प्रतिष्ठितं । वा लालचन्द्र गणिना । सवाई जयनगर मध्ये कारितं। बीकानेर वास्तव्य । कोठारी सरूपचन्द्रेण श्रेयोर्थ ॥
[ २२४१ ]
दादा साहब के पाषाणमय पादुकाओं पर ॥ संव्व । १८९१ । मिति । आषाढ़ सु। पंचम्यां श्रीजिनदत्तसूरिः श्रीजिनकुशलसूरि पादु। श्री संघे । का । प्र। भ । जं। श्री जिनहर्षसूरिभिः ।
[ २२४२ ]
शय्यापट्ट पर ॥ सं० १८९० मितेः आषाढ़ सुदि १३ वारे शनौ देशणोक बड़े वास वास्तव्य श्री संघेन । वा । आनन्दवल्लभ गणेरुपदेशादसौ पट्टः कारितः श्री वृहत्खरतर गच्छे ॥ (३) श्री केशरियानाथजी का मन्दिर
(लौंका गच्छ उपाश्रय)
( २२४३ ) ॥सं ॥ १६ ॥ ६ ॥ वर्ष माघ कृष्ण ५ रवौ साहू० वाडा वाचा० उइसवाल ज्ञा० श्री० दल्हा उ० आल्हण अ० वाग्देवी नाम्ना सु श्री रिषभदेव ......
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
धातु प्रतिमा लेखाः
( २२४४) संवत् १३४५ वर्षे माघ सुदि १२ गुरौ श्री पल्लीवाल गच्छीय साधु वरदा भार्या पदमिणि पुत्र साधु छाहड़ेन स्वकीय योः मातृपित्रौ श्रेयसे श्रीशांतिनाथः का प्रति० श्री महेश्वरसूरिभिः ।
( २२४५) ॥६॥सं० १५१२ वर्षे आषाढ़ सुदि ७ रविवारे । हस्त नक्षत्रे । लोढागोत्रे सा० वयरसीह भार्या धामो पु० धणसिंहेन । स्वमातु पुण्यार्थ। श्री आदिनाथ बिंबं कारितं । प्र० श्री रुद्र० भ० श्री देवसुन्दरसूरि पट्टे । भ० श्री सोमसुन्दरसूरिभिः ॥
( २२४६ ) ॥संवत् १५१६ वर्षे चैत्र बदि ४ दिने ऊकेश वंशे श्रेष्टि गोत्रे श्रीस्तंभतीर्थ वास्तव्य श्रेष्ठिदेल्हा भार्या देल्हणदे पु० श्रे० नरदवेन भार्या सपूरी पुत्र श्रीमल्ल जगपालादि परिवार युतेन स्वश्रेयसे श्रीमुनिसुव्रत बिंबं कारितं श्रीजिनभद्रसूरि पट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं ।। श्री खरतर गच्छे ।
( २२४७ ) सं० १५७६ वर्षे ... श्री काष्टा संघे ।
(२२४८)
श्री पार्श्वनाथ जी संवत् १६७१ वर्षे ...... १३... .............. प्रणमति.
(२२४९ )
ताम्रयंत्र पर पादुकाएँ श्री जिनदत्तसूरिजी पादुके। श्री जिनकुशलसूरिजी पादुके। श्री जिनचंद्रसूरिजी। श्री जिनसिंहसूरि पादुके।
(४) दादाबाड़ी ( स्टेशन रोड पर)
( २२५० )
पादुका-त्रय पर युगप्रधान दादाजी महाराज !! श्री जिनदत्तसूरिजी॥श्री ॥ श्री अभयदेवसूरिजी ।। श्री ॥ श्रीजिनकुशलसूरिजी ॥ खरतर जैनाचार्य पादुके श्रीसंघेन कारा० श्री वीर सं० २४३५ सं १९६५ मिती जेठ सु । १३ ॥ श्री देशणोक नगरे उ। श्री मोहनलाल गणिः प्रतिष्ठिता स्थापिता च ॥
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
[ २२५१ ] ॥ दादाजी मणिधारक श्री जिनचंद्रसूरिजी। पा। उ। मो।प्र।
[ २२५२ ]
शालाके शिलापट्ट पर ॥जं । यु । प्र।भ। श्री श्री १००८ श्री जिनसौभाग्यसूरि विजै राज्ये सं० १८९४ आषाढ़ सुद १ शशिवासरे श्री जिनभद्रसूरि शाखायां पं । प्र। श्री सुगुणप्रमोद मुनि पृष्ठे इयं शाला पं । विनचंद पं । मनसुख मुनिभ्यां कारापिता ॥ श्रीरस्तुः ॥
[ २२५३ ]
चरणों पर पं । प्रश्रीहाथीरामजी गणि चरण युगलं । सं। १८९४ आषा । सु १
जांग लू
श्री फाइनाथजी का मन्दिर
( २२५४ )
शिलापट्ट पर ॥ सं० १८९० मि । काती व. १३ दिने भ ॥ जं । यु । श्री जिनहर्षसूरिरु । श्री सिं। का।
(२२५५ )
मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी ।।सं। १८८७ मि। आषा। सु१०...."
(२२५६)
दादा साहब के चरणों पर ॥१८८७ मि । आषा । सु १० दि। श्री जिनकुशलसूरीणां पादुके भ । जं० । यु। श्री जिनहर्षसूरिभिः प्र।
धातु प्रतिमा लेखाः
(२२५७ )
श्री सुविधिनाथादि पंचतीर्थी सं १५८१ व० पोस सु० ५ शु० श्री नाणावाल गच्छे भेजएवा ( ? ) उसभ गोत्रे सा० खीमा भा० तारू पु० तेजा वच्छा सोना तेजा भा० तेजलदे पु० मेका कमा रतना नेता कमा सदा सा तेजाकेन पितृ पुण्यार्थ श्री सुविधिनाथ बिंबं का. प्रतिष्ठितं भ० श्रीसिद्धसेणसूरि रिमा दस्या वाम २ (?)
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
( २२५८ )
धातु के यन्त्र पर ॥सं १८८५ मि। आसो सुदि ५ दिने श्री सिद्धचक्रस्य यंत्रं भ। श्री जिनहर्षसूरिभिः प्रतिष्ठितं जांगलू वास्तव्य पा। अजैराजजी तत्पुत्र तिलोकचंदेन कारितं श्रेयो) ।
पांचू श्री फाइवनाथजी का मन्दिर
धात प्रतिमा लेखाः
( २२५९ ) सं० १४९५ वर्षे फागुण बदि ९ रवौ श्री ज्ञान गच्छे काच गोत्रे उपकेश ज्ञातीय साह मोहण भा० मोहिणदे पुत्र वाला भार्या विमलादे आत्म श्रेयोर्थं श्री चंद्रप्रभ स्वामि बिंबं कारितं ! प्रतिष्ठितं श्री शांतिसूरिभिः
(२२६० ) संवत् १५४८ वर्षे ज्येष्ठ बदि ६ शुक्रे जगड़ालवाड़ ज्ञातीय सं० दी झाला० ( दीडाला) राजपुत्र सं० चा कान्हा सं० फत्ता भा० गाल्हा पुत्र अंबिकावी स्वश्रेयोबिंबंकारितं प्रतिष्ठितं श्री ज्ञानभूषण देवैः ।
( २२६१) सं० १३२६ वर्षे माघ वदि १ रखौ श्री श्रीमाल ज्ञातीय मं० बुल्दे श्रीहक पुत्र देदा श्रेयार्थ पित्तलमय श्री पार्श्वनाथ बिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्री परमाणंदसूरिभिः॥
( २२६५ )
गुरु पादुका पर संवत् १९६० श्री जिनदत्तसूरिजी
नो खा मंडी श्री पार्श्वनाथजी का मन्दिर पाषाण प्रतिमा-प्रशस्ति-पादुकादि लेखाः
(२२६३)
शिलालेख ॐ ॥ श्री बीकानेर राज्ये नोखामंडी नगरे वि० सं० १९९७ माघ शुक्ल चतुर्दश्यां चन्द्रवारे शुभलग्ने भगवतुः श्री पार्श्वनाथस्य प्रतिमा तपागच्छाधिराज युगप्रधान कल्प जैनाचार्य श्रीमद् विजयानंदसूरीश्वर पट्टालंकार सूरिचक्र चूडामणि श्री विजयकमलसूरीश्वर पट्ट विभूषकैः सार्वभौम श्री विजयलब्धिसूरीश्वर पट्ट प्रभावकैः विजयलक्ष्मणसूरिवय्यः प्रतिष्ठापिता ।।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
(२२६४ )
मूलनायक श्री पार्श्वनाथ जी __सं० १८३१ फा० सित ७ तिथौ श्री गौड़ीपार्श्वनाथ जिन बिंबं भ० श्री जिनलाभसूरिभिः प्रतिष्ठितं । वा० नयविजय गणि शिष्य पं० सुखरत्न शिष्य दयावर्द्धन कारापितं देशलसर मध्ये।
( २२६५ )
दादा श्री जिनदत्तरि पादुका पर सं० १८३१ फा० सुद ७ श्री जिनदत्तसूरि पादुके
( २२६६ )
श्री जिनकुशलसूरिजी के चरणों पर सं० १८३१ फा० सुद ७ श्री जिनकुशलसूरि जी पादुके
( २२६७ ) पं० नयविजय पादुका
(२२६८ ) पं० सुखरत्न पादुका
(२२६९)
श्री हीरविजयसूरि मूर्ति पर श्री नोखामंडी नगरे वि० सं० १९९८ वैशाख कृष्णा ६ गुरुवासरे मुगल सम्राट अकबर प्रतिबोधक तपा गच्छाधिराज जैनाचार्य ....... 'श्री विजयहीरसूरीश्वराणामियं मूर्तिः श्रीसंघेन कारिता आचार्य श्रीमद् ..........
( २२७०)
श्रीविजयानन्दसूरिजी की मूर्ति पर श्री नोखामंडी नगरे वि० सं० १९९८ वैशाख कृष्णा ६ गुरुवासरे युगप्रधान न्यायाम्भोनिधि जैनाचार्य श्री मद्विजयानन्द ( आत्मारामजी ) सूरीश्वराणामियं मूर्तिः श्रीसंघेन कारिता आचार्य श्री मद्विजयलक्ष्मणसूरिभिः ।
( २२७१ )
पार्चयक्ष मूर्ति पर इयं मूर्ति पार्श्व यक्षस्य नोखामंडी (बीकानेर) श्री संघेन कारिता प्रतिष्ठिता च तपोगच्छाधिपति जैनाचार्य श्री विजयलक्ष्मणसूरीश्वरः सं० १९९७ माघ शुक्ल १४ चन्द्रवासरे।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
(२२७२)
पद्मावती देवी मूर्तिरियं श्री पद्मावती देव्याः नोखामंडी ( बीकानेर ) श्री संघेन कारिता प्रतिष्ठिता च तपो गच्छाधिपति जैनाचार्य श्री विजयलक्ष्मणसूरीश्वरैः संवत् . . . . . .. .. .
( २२७३ )
धातु की पंचतीर्थी पर . सं० १५३५ वर्षे माघ सुदि ५ गुरु ओस तेलहरा गोत्र सा० हीरा भा० गागी पु० विल्हा भार्या वस्ती पुत्र कर्मा युतेन स्व पुण्यार्थ श्रीविमलनाथ बिंबंका० प्रतिष्ठितं ज्ञानकी गच्छे श्रीरूनेश्वर सूरिभिः।
नाल श्री पनाममुजी का मन्दिर पाषाण प्रतिमाओं के लेख
( २२७४ )
मूलनायक श्री पद्मप्रभुजी संवत् १४५७ वर्षे वैशाख सुदि ७ श्री मूलसंधे भटारकजी श्री धरमचन्दर साह बखतराम पाटणी नित्य प्रणमति ......
( २२७५ )
पार्श्वनाथजी संवत् १९१४ रा वर्षे मिती अषाढ़ सुदि १० तिथौ बुधवासरं श्री पारसनाथ जिन ..... श्री जिनसौभाग्यसूरिभिः श्री महत्खरतर गच्छे ॥
धातु प्रतिमादि लेखाः
( २२७६)
शान्तिनाथादि पंचतीर्थी संवत् १४६६ वर्षे माघ सुदि ५ शुक्र दिने प्राग्वाट जातीय व्यव० साहा भार्या करमादेवि पु० हरिया मला वीसल मा० रूद्दीतया स्वभर्तृ श्रेयसे श्रीशान्तिनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठित श्रीसूरिभिः ।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
( २२७७)
श्री सुविधिनाथादि पंचतीर्थी संवत् १५१५ वर्षे वैशाख सुदि १३ प्रा० ज्ञातीय व्य० महीया भा० साधू सुत हादा पोपट भार्या सक्षी आत्मश्रेयोथं श्रीसुविधिनाथ बिंबं का प्रतिष्ठितं तपागच्छे श्रीरत्नशेखरसूरिभिः माहमवाड़ा वास्तव्य ॥
(२२७८ )
सिद्धचक्र के यन्त्र पर ___ संवत १८३८ ना वर्षे वैशाख बदि १२ वार गुरौ पोरवाड़ जातीय श्राविका पुण्य प्रभाविका बाई लैहरखी सिद्धचक्र कारापिता शुभं भूयात् ॥
श्री मुनिसुव्रत स्वामी का मन्दिर
( २२७९ )
मूलनायकजी श्री वीर विक्रमादित्य राज्यात् संवत् १९०८ शाके १७७३ प्रवर्त्तमाने मासोत्तम मासे .. फाल्गुन वदि ५ तिथौ भौमवारे वृहत्खरतराचार्य गच्छेश .......... भट्टारक श्री जिनहेमसूरिभिः प्रतिष्ठितं रा० श्री सरदारसिंह विजयराज्ये ।।
( २२८०) संवत् १५२३ वर्षे वैशाख सुदि ३ प्राग्वाट ज्ञा० दोसी जयता भार्या मानू सुत करणाकेन भा० मचकू सुत जेस्यंगादि कुटुम्ब युतेन स्वमातृ पक्ष वृद्ध पिता वयरसी श्रेयार्थ श्री मुनिसुव्रत स्वामि बिंबंकारितं प्रति० तपा गच्छे श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः बड़गाम वास्तव्यः शुभं भवतुः ।।श्री ।।
( २२८१) सं० १५३४ वर्षे आषाढ़ सुदि १ गुरौवारे श्री वरलच्छ गोत्रे सं० कर्मण संताने सा० वणपालात्मज सा० सिधा भार्या सिंगारदे पुत्र खेता चितहंद पुत्रा युतेन स्वपुण्यार्थं श्रीकुन्थुनाथ बिंब कारितं प्रतिष्ठितं वृहद्गच्छीय श्रीमेलप्रभसूरिपट्टे श्रीराजरत्नसूरिभिः ।
(२२८२)
__ श्री शांतिनाथादि पंचतीर्थी संवत् १५९४ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ५ सोमे उकेश वंशे ब (ष ? ) इराड़ गोत्रे सा० श्रीपति भा० संपूरदे पुत्र सा० श्रीदत्त सा० श्रीराज मध्ये सा० श्रीदत्त पुत्रेण सा० धनराजेन भ्रातृ सा० अखा रामा सहितेन भार्या धारलदे युतेन श्रीशांतिनाथ बिंबं का० प्र० तपागच्छे प्राता भाग्यहर्षसूरि ।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
( २२८३ ) सिद्धचक्र के यन्त्र पर
संवत् १८४३ मिते आश्विन शुकु पूर्णिमास्यां शनौ सिद्धचक्रयन्त्र कारितं || श्रीमद्विक्रमपुरे ॥
३१६
दादा श्री जिनकुशलसूरिजी का मन्दिर
( २२८४ )
जीर्णोद्धार लेख
दधदतुलयशो युगप्रधानः खरतरगच्छ वराच्छ रत्नराशिः । जिनकुशल सुनामधेयः धन्यो व्यतनुत नालपुरेऽत्र भावुकानि ॥ १ ॥ राधे शुक्ले दशम्यां रस नव नव भू वत्सरे विक्रमस्य । कोठारी रावतस्यात्मज इह मतिमानोश वंशावतंशः । श्री भैरू दाननामा सममथ विविधे नान्या जीर्णोद्धरेण तत्पादाम्भोजयुग्मो परिदृषद् मलच्छत् मेतच्चकार || २ || श्री पूज्य जिनचारित्रसूरिवर्योपदेशतः प्रतिष्ठां लभता मेषास्थिरता मचलांचले || ३ || श्री मज्जिन हरिसागरसूरीणां समुर्वरित कीर्तिनां । समागतिः सहशिष्यैर्व्यधादिह विधान साफल्यम् ॥ ४ ॥
( २२८५ ) ॐ अर्हं नमः
श्री दादा गुरुदेव मन्दिर जीर्णोद्धार प्रशस्तिका
ॐ अर्हनमः । जंगम युगप्रधान वृहद् भट्टारक खरतरगच्छाधिराज दादाजी श्री श्री १००८ श्री जिनकुशलसूरीश्वरजी महाराज के चरणारविन्दों पर श्रीपूज्यजी श्रीजिनचारित्रसूरीश्वरजी महाराज के सदुपदेश से नाल ग्राम में संगमर्मर की सुन्दर छत्री अन्य आवश्यक जीर्णोद्धार के साथ बीकानेर निवासी स्व० सेठ श्री रावतमलजी हाकिम कोठारी के सुपुत्र धर्मप्रेमी सेठ भैरोंदानजी महोदय ने भक्तिपूर्वक बनवाने का श्रेय प्राप्त किया मिती बै० शु० १० भृगुवार सं० १९९६ को बड़े समारोह के साथ ध्वजदंड कलशादि का प्रतिष्ठोत्सव सम्पन्न किया। इस सुअवसर में जनाचार्य श्री जिनहरिसागरसूरीश्वरजी महाराज की समुपस्थिति अपने विद्वान शिष्यों के साथ विशेष वर्णनीय थी ।
[ २२८६ ]
स्तम्भ पर जीर्णोद्धार लेख
|| संव्वत् १८८२ मिते कार्त्तिक सु १५ । भ । जं । यु । भ । श्री जिनहर्षसूरिजी विजयराज्ये सद्गुरु स्थानके श्रीसंघेन कारितं ।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
चौमुख स्तूप के लेख
(२२८७ )
पं० सकूलचंद्रजीके चरणों पर ..."वर्षे ...."सुदि ३ दिने शनौसिद्धियोगे श्री जिनचंद्रसूरि शिष्यमुख्य पं० सकल ...... चरण पादुका श्रीखतरगच्छाधीश्वर युगप्रधान प्रभुश्री जिनचंद्रसूरिभिः प्रतिष्ठित ... रीहड़ जययंत लूणाभ्यां कारिते.........
(२२८८ )
महो० समयसुन्दरजी के चरणों पर संवत् १७०५ वर्षे फागुण सुदि ४ सोमे श्री समयसुन्दर महोपाध्याय पादुके कारिते श्री संघेन प्रतिष्ठितं हर्षनंदन.........ट्ठींनमः ज्ञालामा में स्थापित चरणपादुकाओं के लेख
( २२८९) संवत् १९५७ का मिती फाल्गुन शुक्ल तृतीयायां गुरुवारे श्रीकीतिरत्रसूरि शाखायां पं० प्र० श्रीहेमकीर्ति मुनीनां चरणन्यासः कारिता पं० प्र० नयभद्र मुनिना।
(२२९० ) संवत् १९३६ शाके सं० १८०१ शनिवासरे रा मिगसर बद १ श्री जिनभद्रसूरि शाखायां भट्टारक श्री जिनहर्षसूरिभिः तत्शिष्य पं० प्र० श्री हंसविलासजी गणिनां इदं चरणन्यास उ । कल्याणनिधान गणिः पं० प्र० विवेकलब्धि मुनिः पं० प्र० श्री धर्मवल्लभ मुनिः कारापिता प्रतिष्ठिता श्री जिनचंद्रसूरिभिः शुभंभूयात।
(२२९१ ) संवत् १९५७ मिती मि सु० १० श्री बीकानेर मध्ये पु० उ० श्रीलक्ष्मीप्रधानजी गणि पादुका स्था० उ० श्रीमुक्तिकमल गणिः ॥
( २२९२ )
पादुकात्रय पर ॥संवत् १९४३ रा मिती का । शु।प्र। तृतीया दिने श्री गुरूणां चरणन्यासः पं० उदयपद्म मुनिना स्थापितं प्रतिष्ठितंच ॥ पं० प्र० श्री हितधीर जिमुनि। उ० श्री सुमतिशेखरजिद्गणिः । पं० प्र० श्रीचारित्रअमृतजिमुनिः श्रीरस्तु॥
(२२९३ ) संवत् १९३६ । मि । मि० ब १ वा० १० श्री रामचन्द्र जिद्गणिः तच्छिष्य पं०३० १०८ श्रीसुखरामजी मुनि पादुके शि० उ० श्री सुमतिशेखर गणि स्थापितौ ।। शुमंभूयात् ।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
( २२९४) सं०। १९४३ मि । फा। सु । प्र । ३ दि । सा । मानलच्छीनां पादुका सा० कनकलच्छीना स्थापिता
( २२९५)
शिलापट्ट पर ___ सं। १९३५ रा मि । मा । सु। ५ चंद्रवारे वृ। खरतरगच्छीय उ। श्री लक्ष्मीप्रधान गणिना क्रीणित भावेनेयं शाला कारापिता ।
( २२९६ )
पादुका युगल पर ।सं। १९३३ रा मि । मि । व । ३ तिथौ श्री कीर्तिरत्नसूरि शाखायां पं० प्र० श्रीकल्याण सागर जिन्मुनीनां पा । तच्छिपं । हितकमल मुनि का । प्रापं ।प्र। श्रीकल्याणसागर जिन्मुनि:तच्छि । पं । प्र० कीर्तिधर्म मुनीनां चरणन्यासः ॥ श्रीरस्तुः
( २२९७ ) ___ संवत् १८४९ वर्षे मिती वैशाख बदि १४ शुक्र श्रीकीतिरत्नसूरिसंताने उपाध्याय श्री अमर विजय गणयो दिवंगतास्तेषां पादुके कारिते श्री गडालय मध्ये ॥ संवन्निधि जलधि वसु चंद्रप्रमिते
चैत्र कृष्ण द्वादश्यां सूर्यतनय वासरे । जं। यु । प्र। श्री जिनचंद्रसूरि सूरीश्वरैः श्री उ। अमर विजय......मिमे पादुके......
(२२९८) ___ सं० १९०७ वर्षे मि । मि । वा १३ गुरुवारे श्री कीर्तिरत्नसूरि शाखायां पं० प्र० कांतिरत्न मुनीनां पादुके कारापिते प्रतिष्ठितेच श्री ॥
( २२९९ ) ॥सं० । १४६३ मध्ये शंखवाल गोत्रीय डेल्हकस्य दीपाख्येन पित्रा संबन्धः कृतः ततः विवाहार्थ दूलहो गतः तत्र राङद्रह नगर पार्श्वस्थायां स्थल्या एको निज सेवक केनचिद् कारणेन मृतो दृष्टः तत् स्वरूपं दृष्ट्वा तस्य :चित्ते वैराग्य समुत्पन्ना सर्व संसार स्वरूपमनित्यं ज्ञात्वा भ। श्री जिनवर्द्धनसूरि पार्वे चारित्रं ललौ कीर्तिराज नाम प्रदत्तं ततः शास्त्रविशारदो जातः महत्तपः कृत्वा भव्य जीवान् प्रतिबोधयामास ततः भ। श्री जिनभद्रसूरयःस्तं पदस्थ योग्यं ज्ञात्वा दुग सं । १४९७ मि । मा । सु १० ति। सूरि पदवीं च दत्त्वा श्री कीर्तिरत्नसूरिनामानां चक्रुस्तेभ्यः शाखेषा निर्गता ततो महेवा न। सं. १५२५ मि । वै । व ५ ति । २५ दिन यावदनशनं प्रपाल्य स्वर्गे गताः । तेषां पादुके सं० १८७९ मि । आ । व १० ज । यु । भ श्रीजिनहर्षसूरिभिः प्रतिष्ठिते
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बीकानेर जैन लेख संग्रह तदन्वये महो श्री माणिक्यमूर्ति गणिस्तच्छिष्य पं० भावहर्ष गणि तच्छिष्य उ। श्री अमरविमल गणिस्त । उ । श्री अमृतसुन्दर गणिस्त ।वा० महिमहेमस्त । पं० कांतिरत्न गणिना कारितेच ।
(२३०० ) सं ॥ १८७९ मि । आषाढ वदि १० भौमे जं । भ । श्री जिनहर्षसूरिभिः श्री कीर्तिरत्न सूरि शा । उ ! श्री अमृतसुन्दर गणीनां पादुके । तत्पौत्रेण पं० कुशलेन कारिते च !
( २३०१) ॥ संवत् १९७९ मि । माघ शुक्ल ७ पं । प्र । अमृतसार मुनीनां पादुका चिरु प्यारेलाल स्थापिता कीर्तिरत्नसूरि शाखायां शुभं भवतु कल्याणमस्तु ॥ श्री ।।
( २३०२) ॥सं० १९२३ रा वर्षे शाके १७८८ प्रवर्त्तमाने वैशाख मासे शुक्ल पक्षे अष्टमी तिथौ श्री कीर्तिरत्नसूरि शाखायां पं । प्र । श्री दानविशाल जी पादुका प्रतिष्ठिता।
( २३०३ ) . सं। १९२३ वर्षे शाके १७८८ प्रवर्त्तमाने वैशाख मासे शुक्ल पक्षे अष्टमी तिथौ श्री कीर्त्तिरत्नसूरि शाखायां पं । प्र। श्री अभयविलासजी मुनि पादुका प्रतिष्ठितं ।।
( २३०४ ) ॥सं। १८८१ मि । फाल्गुन य । ५ सोमवारे । भ। श्रीजिनहर्षसूरिभिः श्रीकीर्तिरत्न सूरि शा। उ। श्रीअमृतसुन्दरजिद्गणयस्तदंतेवासी वा । श्रीजयकीर्तिजिद्गणीनां पादुका प्रतिष्ठि ।
(२३०५ ) सं। १८७५ मि । शु। । १० जं । भ। श्री जिनहर्षसूरिभिः वा । महिमाहेम गणीनां पादुके प्रतिष्ठिते । तच्छिष्येण पं । कांतिरत्नेन श्री कीर्तिरसूरि शा। कारिते।
( २३०६ )
शिलापट्ट पर ॥श्री॥क्षेमकीर्ति शाखायां । उपाध्याय श्री रामलाल गणिना स्वशालाया जीर्णोद्धार कारापिता सं। १९७७ माघ शुक्ल ५।
मढ़ से बाहरवर्ती शाला में
( २३०७ )
चरणपादुका पर सं १८८८ व । मि । ज्ये। सु । १ बुघे जं । यु । भ। श्री जिनहर्षसूरिभिः वा। हर्षविजय गणीनां पादुके प्र। कारिते च पं। कल्याणसागरेण ।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह श्री जिनचारित्रसूरि मन्दिर
(२३०८ ) बीकानेर निवासी श्रीमान् दानवीर स्वर्गीय सेठ भागचन्द जी कचराणी गोला के सुपुत्र दीपचन्द जी इनकी धर्मपत्नी आभादेवी ने १७ हजार रु० की लागत से बनवा कर नाल ग्राम में आषाढ कृष्णा ११ रविवार सं० २००७ को प्रतिष्ठा करवाई।
(२३०९) ___सं० २००७ आषाढ़ कृ. एकादश्यां रवौ कचराणी गोलछा श्रेष्ठि दीपचन्द्रेण ज० यु० प्र० भ० व्या वा० श्रीजिनचारित्रसूरीश्वर पादुके कारितं जं० यु० प्र० भ० सि० म० व्या० वा० श्री जिनविजयेन्द्रसूरीश्वरैः प्रतिष्ठापिते च।।
खरतराचार्य गछीय स्थानस्थ शालाओं के लेख
संवत् १९०२ शाके १७६७ प्रवर्त्तमाने मासोत्तम मासे ज्येष्ठ मासे शुक्ल पक्षे त्रयोदश्यां तिथौ बुधवासरे पं । लब्धिधीर गणीनां पादुका वा० हर्षरंग गणि कारापितं रत्नसिंह जी विजयराज्ये श्रीरस्तु विक्रमपुर मध्ये । भ० श्री जिनहेमसूरि जिद्भिः प्रतिष्ठितम् ॥
(२३११ ) संवत् १९२४ वर्षे शाके १७८९ प्रवर्त्तमाने मासोत्तम मासे माघ मासे शुभे शुक्ल पक्षे सप्तम्यां भृगुवासरे जं। युगप्रधान महारक श्री जिनहेमसूरिभिः प्रतिष्ठितं सा । ज्ञानमाला पादुका। कारापितं सा । चनणश्री श्रीवृहत्खरतराचार्य गच्छे श्री विक्रमपुर मध्ये श्रीरस्तु कल्याणमस्तु ।।
(२३१२ ) सं० १९३० वर्षे शाके १७९५ प्रवर्त्तमाने मासोत्तम मासे वैशाख मासे कृष्ण पक्षे तिथौ नवम्यां चन्द्रवासरे सा० धेनमाला शिष्यणी गुमानसिरी तशिष्यणी ज्ञानसिरि शिष्यणी चन्दन सिरी स्वहर्षतं स्वपादुका कोरायितं श्री बीकानेर मध्ये श्री बृहत्खरतराचार्य गच्छे यं । युगप्रधान भट्टारक श्री जिनहेमसूरिभिः प्रतिष्ठितं श्रीरस्तु कल्याणमस्तु महाराजाधिराज महाराज नरेन्द्र शिरोमणि बहादुर डूंगरसिंह जी विजयराज्ये ।
( २३१३ ) ॥सं० ११९१२ शाके १७७७ प्रवर्त्तमाने मिगसर वदि पंचम्यां बुधवारे पं। चेतविशाल पादुका शिष्य पं। धर्मचन्द्रेण कारापिते। श्री॥ श्री वृहत्खरतर आचार्य गच्छे। श्री महाराजाधिराज श्री सिरदारसिंहजी विजयराज्ये ॥
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
(२३१४ ) सं० १९६४ वर्षे शाके १८३९ प्रवर्त्तमाने ज्येष्टमासे शुक्लपक्षे पंचम्यां तिथौ मार्तण्डवासरे चंदणश्री पदस्थ सा। नवलश्रीनां पादुका स्वजीवनावस्थायां नवलश्रियौस्य चरणयोस्थापितं कारितं च तया वैकुण्ठवासि-गुरुणी-इधरा-गुरणी-चरणौ विराजमानौ कर्यिता च प्रतिष्ठाकारिता श्री मबृहत्खरतराचार्य गच्छाधीश यं । यु । प्रधानभट्टारक श्री श्री १००८ श्री श्री जिनसिद्धसूरीश्वराणां विजयराज्ये। श्री नालमध्ये महाराजाधिराज श्रीमद् गंगासिंह-राजमान श्रीरस्तुः ॥ श्री ॥
( २३१५ ) संवत् १८९२ रा शाके १७५७ प्र। पौष मासे शुक्ल पक्षे ७ तिथौ भौमवारे यं । यु । भ। श्रीजिनउदयसूरिभिः सा। इन्द्रध्वजमालाया-पादुका प्रतिष्ठिता सा। धेनमाला कारापिता महाराजाधिराज श्रीरतनसिंहजी विजयराज्ये ॥
(२३१६ ) संवत् १९०१ रा शाके १७६६ प्रवर्त्तमाने मासोत्तम मासे माघमासे शुक्लपक्षे दशम्यां तिथौ रविवासरे भट्टारक यंगम युगप्रधान १०८ श्री श्री जिनउदयसूरीश्वराणां पादुका जं । यु। भट्टारक श्री श्री जिनहेमसूरिजिभिः प्रतिष्ठितं खरतर वृहदाचार्य गच्छे श्री विक्रमपुर मध्ये श्री रतनसिंहजी विजयराज्ये शुभंभवतु ॥ श्री॥
झज्झ श्रीनेमिनाथजी का मन्दिर (बेगानियों का कास)
धातु प्रतिमाओं के लेख
(२३१७ )
सप्तफणा सपरिकर पार्श्व प्रतिमा (A.)। संवतु १०२१ क्लिपत्य कूप चैत्ये स्नात्र प्रतिमा .. .... ...
(B.) । पुन प्रतिष्ठितं श्री खरतर गच्छ नायक श्री जिनहंससूरिभिः बो। सा...जल्हा पुत्र रामा खेमा पुण्याला काला भाखर
(२३१८)
श्री वासुपूज्यादि पंचतीथी ॥सं। १७६१ वर्षे व० शु० ७ गुरौ पत्तन वास्तव्य श्री प्राग्याट ज्ञातीय वृद्ध शाखायां दो। लखमीदास सुत दो वलिम भा। राजबाई सुत दो। सुन्दर नाम्ना स्व द्रवेण श्री वासुपूज्य बिंब
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बीकानेर जैन लेख संग्रह कारापितं प्रतिष्ठितं तपा गच्छे भ० श्रीविजयदेवसूरिपट्टे आ० श्री विजयसिंहसूरि भ । श्री विजयप्रभसूरि पट्टे संविज्ञ पक्षीय भ० श्री ज्ञानविमलसूरिभिः ।
(२३१९)
श्री धर्मनाथ जी सं० १६२६ २० फा० सु०८ श्री धरमनाथ बा टीद।
(२३२०)
ताम्र का ह्रींकारयंत्र सारंगाणी उदमल्लजी धारकस्य बंछित प्रदो भव ।
चरण पादुकाओं के लेख ।
(२३२१ )
पादुका युग्म पर ॥६०॥ सं० । १९७२ ( ? ) का मि फाल्गुनसित पक्षे २ द्वितीयायां तिथौ शुक्रवासरे झझू वास्तव्य समस्त श्री संघस्य श्रेयार्थ श्री उ । सुमतिशेखर गणिभिः प्रतिष्ठितं ।। दादाजी श्री जिनदत्तसूरि जी * दादा जी श्री जिनकुशलसूरि जी ।
( २३२२)
चरणों पर ॥ सं० १९०४ मि० फा० सु० २ पं०। प्र० श्री १०८ श्री सदारंग जी मुनिचरण पादुका कारापितम् ।
श्री नेमिनाथ जी का मन्दिर ( सेठियों का कास)
पाषाण प्रतिमाओं के लेख
( २३२३ )
श्री नेमिनाथ जी ॥सं० १९१० मी मिगसर यदि ५ प्रतिष्ठितं गुरुवसर.. भट्टा श्री जिनहेमसूरिभिः श्री वृहत्खरतर आचारज गच्छे नेमिनाथ जिन बिंब ॥
( २३२४ )
श्री चन्द्रप्रभु जी ।सं १५५४ मा० सु० ५ ओ०म० गो० बि० पा० श्री चंद्रप्रभ वि०प्र० श्री धर्मघोष गच्छे भ० श्री पुण्यर्दन (वर्द्धन ? ) सूरिभिः ।।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
(२३२५)
श्यामवर्ण चन्द्रप्रम जी सं० १९३१ मि० मा० । स
धातु प्रतिमा लेखा: ( २३२६ )
पंच तीर्थी संवत् १५८५ ( ? १५९४ ) वर्ष ज्ये० सु० ६ ० सा० कर्मसी भा० कर्मादे पुत्र ऊदा भा० आल्हणदे भाग्न्या श्री वासुपूज्य विवं प्र० कृष्णर्षि गच्छे श्री जयशेखरसूरिभिः ।।
(२३२७ )
ताम्र यंत्र पर उत्कीर्ण । श्री गौतम स्वामी सं० १९६१ द० सोनार नथू ।
(२३२८ ) १६८१ मा । सु. ११ विजयचन्द ना । रंगुदे पुत्र ।। सूरजीता । श्री अजितनाथ बिंब का । प्रभ । श्री विजयानन्दसूरिः।
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श्री शान्तिनाथ जी का मन्दिर
पाषाण प्रतिमा लेख
( २३२९ ) संवत् १५७५ वर्षे फागुण सुदि ४ गुरु-म सा० लुठाऊनप-प्र .." मा " .... श्री ... ... बिंबं कारापितं
चरण पादुका लेखाः
( २३३०)
आदिनाथ स्वामी ___ संवत् १८९३ मि । श्रा। सु। ७ राजराजेश्वर श्री रतनसिंह जी विजयराज्य श्री आदिनाथ पा । श्री संघेन का । । । । । श्रीजिनसामाग्यसूरिमिः।प्र।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
( २३३१) संवत् १७३७ वर्षे चैत्र बदि १ श्रीजिनदत्तसूरि पादुके श्री जिनकुशलसूरि पादुके ।
( २३३२ ) संवत् १७३७ वर्षे चैत्र बदि १ सेठ सा. अचलदास पादुके ।।
धातु प्रतिमा लेखाः
श्री सुविधिनाथादि पंचतीर्थी संवत १५३६ वर्षे वै० गुरौ ९ उस० ममए गोत्रे सा० सीहा भा० सुहागदे पुत्र तेला भा० रूअड़ पु० जीवा २ पूरा प्र० रहा सा० चणकू पु० तेजा स्वपुण्यार्थं श्रीसुविधिनाथ विंबं का० प्र० श्रीपल्लीवाल गच्छे भ० श्रीउजोअणसूरिभिः
( २३३४ )
श्री शीतलनाथ जी संवत् १६१९ वर्षे श्री श्री शीतलनाथ । बा० पूरा दे
(२३३५ )
द्वार पर जीणोद्धार लेख संवत् १९५६ साल का मिती चैत्र सुदि ४ गांव नापासर श्री शांतिनाथ जी के मंदिर का जीर्णोद्धार श्री हितवल्लभजी महाराज गणिके उपदेश से मरामत वा घरमसाला श्री संघ बीकानेर वाला के मदत से वणा है मारफत खवास विसेसर वीजराज मैणा (!) कारीगर चूनगर इलाही बगस थाप्लेदार महमद अली जी।
रा ज ल दे सर श्री आदिनाथ जी का मन्दिर
पाषाण प्रतिमाओं के लेख
(२३३६ )
मूलनायक जी श्री आदिनाथ जी संवत् १४९२ ( ? ) वर्षे वइसाख सुदि ५ गुरुवारे श्री आदीश्वर बिंब
(२३३७ ) संवत् १५५१ वर्षे माघ बदि २ सिंचटगो० देसलान्वये भो० संघराजु पु० सकतूकेन श्री सहिजलदे पु० श्री हंसवा ( ?पा ) लयुतेन श्री चन्द्रप्रभ १० उप० गच्छे श्री देवगुप्तसूरिमिः।
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(२३३८ ) .........श्री....ज्ञातीय .....गोत्रीय श्रा० कपूर कारितं.....श्री हीरविजयसूरि..... पट्टे.....कल्याणविजयगणि।
धातुप्रतिमाओं के लेख
( २३३९ ) संवत् १५२१ वर्षे अषाढ़ सुदि ९ गुरौ ऊकेश ज्ञातीय श्रे० पाता भार्या राजू पुत्र भाखर भार्या नाथी युतेन स्वश्रेयसे श्री सुविधिनाथ बिंब कारितं प्रति० ऊकेश सिद्धाचार्य संताने भ० श्री देवगुप्तसूरिभिः प्रासीना ग्रामे ।
( २३४०) संवत् १६९१ वर्ष भाद्रया सुदि ५ श्री वैद्य गोत्रे महं करमसी पुत्र महं किस्नदास भार्या किसनादे प्रमुख कुटुंब युताभ्यां श्री सुमतिनाथ बिंब कारापितं भट्टारक श्री ककसूरिमिः प्रतिष्ठितं वो डालदे...
(२३४१) ॥६॥ संवत् १५३४ वर्षे मार्गशर बदि १२ दिने उपकेसग ज्ञातौ भाद्रि गोत्रे मं० बोहिथ पुत्र पासा भार्या पासलदे पु० वस्ता भा० श्री उपकेशगच्छे श्री कुकुदाचार्य संताने श्री ककसूरि पट्टे प्रतिष्ठितं श्री देवगुप्तसूरिभिः।।
( २३४२) संवत् १५२८ वर्षे वैशाख स०२ सनि रोहागा उवएस वंश दूगड़ गो० नशहदसंभान...... नगराज सद्गदेवरदात्तमाधमये ( ? ) आदिनाथ कारितं रुद्रपल्लीयगच्छे ख० श्री गुणसुंदरसूरिभिः
(२३४३ ) सं० १५३१ वर्षे ज्ये० सु० २ श० नागर ज्ञातीय वृद्ध सं० पा० सालिग भार्या वाल्ही सुत चेला गेलाभ्यां चेला भा० रूपिणि सुत आसधर अलवा गेला भा० गोगलदे प्रमुख कुटंब युताभ्यां श्री श्रेयांसनाथ बिंबं का० प्र० श्री अंचलगच्छे श्री जयकेसरसूरिभिः श्री वृद्धनगरवास्तव्यः ।।
( २३४४ ) सं० १४८७ वर्ष आषाढ़ बदि ८ रवौ श्री कोरटगच्छे पोसालीया गो० उप० ज्ञा० सा० खेता भा० गुजरदे पु० उसाकेन आत्म श्रे० श्री पद्मप्रभ बिं० का० प्र० श्री कक्कसूरिभिः
(२३४५) सं० १४६४ वर्षे वैशाख बद्रि २ गुरौ प्रा० श्रे० कर्मसी भार्या प्रीमल पुत्र लालाकेन भ्रात मोल्हा निमित्तं श्री शांतिनाथ बिंब का० प्र० पू० श्री पद्माकरसूरिभिः ।
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(२३४६) सं० १४५४ व० आषा० सु० ५ गुरौ उपकेश झा० सा० भाखर भा० आल्हू पु० करमेन पित्रौः श्रेयसे श्री विमलनाथ बिंब का प्रतिष्ठितं महाहड़ीय गच्छे श्री मुनिप्रभ सूरिभिः ।
(२३४७) सं० १४९३ माघ सुदि ८ शनौ उसवाल ज्ञातीय परीक्षि आमा सुतेन परीक्षि दू० माकल मातृ अणपमदेवि श्रेयसे श्री पार्श्वनाथ बिंबंकारितं प्रतिष्ठितं श्री चैत्य गच्छे श्री धणदेवसूरि पट्टे पद्मदेवसूरिभिः।
(२३४८) ॥६॥ सं० १३६ (०१) श्री उपकेश ग० श्रीककुदाचार्य सन्ताने तातहड़ गो० सा० टासर भार्या जउणी जत भा० सिरपति केल्हउ उहड़ प्रभृति स्वमातु श्रेयसे श्री पार्श्वनाथ विंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीदेवगुप्तसूरि श्रीसिद्धसूरिभिः।
( २३४९) ॥संवत् १५३४ वर्षे वैशाख सुदि ४ दिने श्री ऊकेश वंशे छत्रधर गोत्रे सा० हापा भार्या हांसल दे पुत्र सा० पद्माकेन भार्या प्रेमलदे पुत्र सा० गजा सा० नरपाल प्रमुख परिकर युतेन श्री सम्भवनाथ बिंबंकारितं श्री खरतर गच्छे श्रीजिनभद्रसूरिपट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरि पट्टे श्री जिनसमुद्रसूरिभिः प्रतिष्ठिता ॥श्री ॥
(२३५० ) सं० १५१९ वर्षे फा सु०९ नलकछ वासि प्राग्वाट सा० देपाल भा० देल्हणदे पुत्र हापाकेन भा० धर्मिणि पुत्र गोपा महपति झाझणादि कुटम्ब युतेन श्री शान्ति बिम्ब का० प्रति० तपा गच्छे श्री लक्ष्मीसागरसूरिभिः ॥ श्रेयसे॥
(२३५१ ) संवत् १५२९ वर्षे वैशाख बदि ६ दि० श्री उपकेश ज्ञातौ चंडालिया गो० सा० मेहा भा० माणिकदे पुं डूंगर भा० करमादे पु० श्रीवन्त श्रीचन्द आत्म श्रे० पद्मप्रभ विंबंकारितं श्री मलधार गच्छे प्रतिष्ठितं श्री गुणसुन्दरसूरिभिः ।
( २३५२ ) सं० १५२५ वर्षे माघ सुदि ५ बुधे प्रा० ज्ञातौ व्यव सांगा पु० चाहड़ भा० चाहिणदे पु० आहा छाछा जेता तिहुणा भोजा सहितेन श्री धर्मनाथ बिंबं का० प्र० पूर्णिमा० कछोलीवाल गच्छे श्री विजयप्रभसूरिभिः॥
(२३५३ )
खण्डित पश्चतीथी ....... माघ वदि ५ दिने श्री उपकेश ग० श्री कक्कुवाचार्य सन्ताने श्री उपके० आदित्यनाग गोत्रे स्सए वीरम भा० सीतादे ... .. . ... ... "
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(२३५४ ) सं० १५२२ माघ सु० ३ बुध सा० ख भावा संघ भार्या लासधंत्रेल प्रजु (?)
( २३५५ )
श्री शासनदेवीजी की प्रतिमा बनाई सेठ पदमचन्द प्रतिष्ठितं उ० जयचन्द गणि संवत् १९९४ कातिक सुदि ५।
र त न गढ़ श्री आदिनाथजी का मन्दिर
(२३५६)
श्री चन्द्रप्रमजी संवत् १७४८ वर्षे वैशाख सुदि ....
( २३५७ )
श्री ऋषभदेवजी संघत् १५४८ वर्षे .."सुद.......
दा दा बा डी
( २३५८ )
श्री जिनकुशलसूरि __ सं० १८६६ वर्षे शाके १७३१ प्रवर्तमाने माघ मास कृष्ण पक्षे पंचम्यां तिथौ गुरुवार श्री जिनकुशलसूरीणां श्री संघेन पादुका प्रतिष्ठापितं कि० उत्तमचन्द ।
( २३०९) छोटे घरणोपर श्री जिनदत्तसूरि ।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
बी दा स र बचिन्द्रप्रमुस्वामीका देहरासर (खरतरगच्छ उपाश्रय)
मूलनायकजी संवत १५ स ४८ सानासा (?) सुदी ३ श्री......भट्टारकश्वर जी ....
धातुप्रतिमाओं के लेख
( २३६१ ) सं० १८२६ वै० सु० ६ प्रतिष्ठिताः
( २३६२) सं० १५९३ जेठ सुदी ३ श्री मूलसंघे भ० श्री धर्मचन्द्र वालसाका गोत्रे सा० चूहड़ सदुपदेशात् ।
दादासाहब के चरणों पर
( २३६३ ) सं० १९०३ वर्षे शाके १७६८ प्रवर्त्तमाने मासोत्तम मासे फागुण मासे तिथौ ५ श्री। पादुका प्रतिष्ठितं । जं । यु । दादा श्रीजिनदत्तसूरिभिः दादा श्रीजिनकुशलसूरिभिः २ सूरीश्वरान् ।
सु जा न गढ़
श्री पनचंदजी सिंघी कारित श्रीकाश्र्वनाथ जी का मन्दिर पाषाण प्रतिमादि लेखाः
( २३६४ )
मूलनायक जी की अंगी पर कानमल भोपालमल केसरीमल बाधरमल लोढ़ा सुजानगढ़ संवत् १९९२ माघ बदि १३ ।
(२३६५) संघ १५०८ शाके १३७३ वर्षे माधव सु० ३ तिथौ सौम्यवा कांचिन्पुर पत ३ प्रतिष्ठितं ।
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(२३६६) संवत् १९०३ शाके १७६८ प्रवर्त्तमाने माघ व ............. श्री शान्तिसागर सूरि...
[ २३६७ ] सं० १४३३ वर्षे वैशाख सुदि ९...
[ २३६८ ] सं० १५१०.....
[ २३६९ ] सं० १४५२ शा० १३१७ प्रवर्त्तमा० माघ सु०४ तिथौ गुरुवा० मालि पटण जाति प्रतिष्ठितं ।
[ २३७० ] सं० १५०८ शक १३७३ प्रवर्त्तमाने माधव मास शुक्ल पक्षे ३ तिथौ सौम्यवार कांचिन्पुर पत्तने गोतेचा ज्ञातीय माणक ..
[२३७१ ] संवत् १७१० शाके १५७५ प्र० पोष सुदि ७ भिनडा (मा १) ल पत्तने बिंबं प्रतिष्ठितं श्री कल्याणचन्द्रसूरिभिः
धातु प्रतिमा-लेख
[२३७२ ]
श्री शान्तिनाथ पंचतीर्थी संवत् १५८२ वर्षे वैशाख सुदि ७ गुरुवार श्री ऊकेश वंशे बोथिरा गोत्रे परबत पुण्यार्थ मं० दसू पुत्र मं० रूपा जोगा नीबाद्य : श्री शान्तिनाथ बिंबं कारितं श्री खरतर गच्छे श्री जिनमाणिक्यसूरिभिः प्रतिष्ठितं ।
[ २३७३ ]
थाली में घण्टाकर्ण वीर यन्त्र पर वीरात् २४४१ ना पोष वदि ५ वार बुध श्री मन्दिरजी के दोनों ओर दादासाहय की विशाल छतरीयों पर
[२३७४ ]
श्री जिमदत्तसूरिजी के चरण श्री खरतर गच्छ शृङ्गारहार जंगम युगप्रधान चारित्र धूड़ामणि वृहत्भट्टारक गच्छे भट्टारक दादाजी श्री श्रीजिनदत्तसूरीश्वर पादुका प्रतिष्ठितं सं० १९३३ वर्षे मासोत्तम मासे शुभे माघ मासे शुक्ल पक्षे सिथौ ३ तृतीवायां ॥
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[२३७५ ]
श्री जिनकुशलसूरिजी सं० १९३३ वर्षे मसोत्तम मासे शुभे माघ मासे शुक्ल पक्षे तिथौ ३ श्री तृतीयायां । श्री खरतर गच्छ शृङ्गार हार जंगम युगप्रधान चारित्र चूड़ामणिजी वृहत्भट्टारक गच्छे भट्टारक दादाजी श्री जिनकुशलसूरीश्वरजी पादुका प्रतिष्टितं
- [ २३७६ ] सं० १५१३ श्री काष्टा संघे भटेवर ज्ञातीय सा० खेता भा० गांगी पुत्र तिल्हू नित्यं प्रणमति ।
[ २३७७ ]
पंचतीर्थी सं० १४९१ माघ सुदि ५ बुध उक्केश नाणगे गोत्रे सं० जादा भा० जइसलदे पुत्र सावकेन सुविधिनाथ बिंब कारापितं आत्मश्रेयसे श्री उप० कुकुदाचार्य प्रतिष्टितं श्री सिद्धसूरिभिः ।
दादा वा डी चरणपादुकाओं के लेख
[ २३७८ ]
श्री जिनकुशलमूरिजी ॥सं० १८९९ प्र० शा० १७६४ प्र० मिती वैशाख सुदि १० गुरुवारे श्री सूर्योदय लायां वृष लग्न मध्ये दादाजी श्री १०८ श्री जिनकुशलसूरिजी सूरीश्वरान् चरणकमलमिदं प्रतिष्ठितं ।।
[ २३७९ ] ॥सं० १८९९ प्र० शा० १७६४ प्र० मिती वैशाख सुदि १० गुरु दिने श्री वृ० खरतर गच्छे श्री कीर्तिरत्नसूरि शाखायां उ । श्री श्री भावविजय जी गणिकस्य चरण पादुका प्रतिष्ठितं ।
सरदार शहर श्री पार्श्वनाथजी का मन्दिर
पाषाण प्रतिमादि लेखाः
(२३८० )
बाहर दरवाजे पर शिलालेख श्री देरोजी ॥ सं० १८९७ वर्षे मि० फागुण सुदि ५ शुक्रवारे साहजी श्री माणकचन्दजी कारापितं सूराणा लि० पं० प्र० विजेचन्द खरतर गच्छे उसतो बधू अमेद्र कारीगर रेजगारे मुलतान ऊभीये जे रौ काम कीयो। शुभं भवतु ।
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(२३८१ )
शिलालेख श्री राठौड़ वंशान्वय नरेन्द्र श्री सूरतसिंहजी तत्पट्टे महाराजाधिराज श्री रतनसिंहजी विजयराज्ये। सं १८९७ मि० फा० सु० ५ तिथौ शुक्र श्री वृहत्खरतर गणाधीश्वर भ० श्री जिनहर्षसूरि तत्पट्टालंकार । जं० यु० प्र० भ । श्री जिनसौभाग्यसूरि विजयराज्ये श्री सिरदारनगरे । सा० माणकचन्दजी प्र० सर्व संघेन सादरं श्री पार्श्वनाथ प्रासाद कारितः प्रतिष्ठापितश्च सदैव कल्याण ।
(२३८२ )
जीर्णोद्धार लेख सं० १९४७ मि० बै० सु० २ चन्द्र श्री मन्महाराजाधिराज श्री गङ्गासिंहजी विजयराज्ये श्री तपागच्छाधीश्वर श्री विजयराजसूरि विजयराज्ये श्री विक्रमाख्यपुर वास्तव्य मु० को० मानमलजी जीर्णोद्धारकारापितं तिणारी लागत श्री भण्डारजी माहेलु रुपीया इणमुजब लागा है प्रतिष्ठितं पुनरपि बिंब पं० सुमतिसागर पं० धीरपद्मेन श्री सिरदारसहरमध्ये । चै। इदुः । खुदाबगस मुलजोड़ी और सर्व खाती मोती ने काम कियौ ॥ श्रीरस्तुः ।।
(२३८३ ) सं० १५९३ दिने बोहित्थरागोत्रे मं० देवराज पु० म०............ खरतरगच्छे श्री जिनमाणिक्यसूरिभिः।
धातु प्रतिमा लेखाः
( २३८४)
श्री मुनिसुव्रतादि चौबीसी सं० १४९९ वर्षे फागुण बदि २ गुरु दिने । उप० बहुरा मं० मोहण भा० मोहणदे पु० नेमा खेमा सामन्त सहसा हीडू सुपा प्रभृतिभिः म लखमण भा० लखमादे पु० सुरजन राज करणायुतेन श्री मुनिसुव्रत बिबं का० x श्री चैत्र गच्छे श्री जयाणंदसूरि प० श्री मुनितिलकसूरिभिः आ. श्री गुणाकरसूरि युतैः।
(२३८५)
श्री पद्मप्रमादि पश्चतीर्थी ॥६० ॥ संवत् १४९३ वर्ष फा० बदि १ दिने ऊकेश वंशे लूणिया शाखायां जेठा पु० सा. पोमाकेन श्री पद्मप्रभ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्री खरतर गच्छे श्री जिनराजसूरिपट्टे श्री जिनभद्रसूरिभिः । शुभमस्तुः ॥
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
(२३८६ )
श्री शान्तिनाथादि पश्चतीथी सं० १५२७ वर्षे माह सुदि ९ बुधे उपकेश ज्ञातो भद्र गोत्रे। सा० थाहरू पु० सु० पीया भा ऊदी पु० लीलाकेन भा० ललतादे पु० जेसा सोना युतेन व पुण्यार्थ श्री शान्तिनाथबिबं कारितं प्रतिष्ठितं श्री उपकेश गच्छे । कुक्कदाचार्य संताने । श्री कक्कसूरीणामाझया तेषां पट्टस्था।
(२३८७)
श्री सुमतिनाथादि पश्चतीर्थी संवत् १६०८ वर्षे चैत्र सुदि १३ दिने। ऊकेश वंशे साउंसखा गोत्रे सा. कुंपा पुत्र साह वस्ता भार्या श्रा० वाहादे पुत्र सा० जगमाल सा० धनराज प्रमुख परिवार युतेन श्री सुमतिनाथ बिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्री खरतर गच्छे श्री जिनमाणिक्यसूरिभिः ।
( २३८८ )
चांदी के पाटे पर चैनरूप सम्पतराम, सिरदारशहर सं० १९८७
गोलछो का मन्दिर पाषाण प्रतिमा लेखा:
( २३८९ ) संवत् १९२२ का । मि । फा० सु०७ तिथौ श्री अभिनन्दन जिन बिवं प्र० भ० श्री जिनहंससूरिभिः।
(२३९०) संवत १५४८ वर्ष माघ सुदि ३ श्री मूलसंघ भट्टारकजी ....... 'देवसाह जीवराज
धातु प्रतिमाओं के लेख
(२२९१)
श्री सुविधिनाथादि पंचतोयी संवत् १५१९ वर्षे माघ बदि ९ शनौ श्री ऊकेश वंशे वडहिरा गोत्रे श्रे० कर्मसी भा० हांसू पु० तेजा सुश्रावण भार्या सह पुत्रादि सकुटंब श्री अश्वलगच्छेश्वर श्री जयकेसरसूरि सूरीणामुपदेशेन मातृ पितृ श्रेयोर्थ श्री सुविधिनाथ बिंब कारितं प्रति .......
(२३९२)
श्री सुविधिनाथादि पश्चतीर्थी संवत् १५८७ वर्षे वैशाख बदि ७ सोमे ऊकेश वंशे रीहड़ गोत्रे सा० कुरा भा० श्रा० भन्वी पु० सा० धना । मेधा पितृ मातृ पुण्यार्थ श्री सुविधिनाथ बिबं कारापितं श्री खरतर ग० प्रतिष्ठि (तं) श्री जिनमाणिक्यसूरिभिः
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सीकानेर जैन लेख संग्रह
mammnamaina
( २३९३)
श्री धनप्रमजी सं० १६८३ जे० सु० ३ चंद्रप्रभु सउ। जिनसीयरास्य केतु प्रामता सा० तेजागलेन स्व...
(२३९४ )
श्रीशान्तिनाथजी ० १७७३ व० माघ सुदि ६ वेदे श्री राखरबाइ शांतिनाथ बिंबं कारापितं प्र। ननसूरि
(२३९५ ) श्री चन्द्रप्रम जी
संवत् १६०८ सा० नाकू
( २३९६)
श्री नमिनाथ जी सं० १६९७ श्री नमिनाथ क० प्र० खरत ग० श्री जिनसिंह पू.....
( २२९७ ) श्री..."नाथ बिंबं प्रतिष्ठितं श्री जिनचन्द्रसूरिभिः ।
( २३९८ ) बदाहु शान्तिनाथ
दादाबाड़ी
(२३९९)
श्री जिनसलसूस्जिी के चरणों पर सं० १९११ शाके १७७६ प्रवर्त्तमाने मि । आषाढ व ५ तिथौ श्री सिरदार शहर श्रीसंघेन। श्रीजिनकुशलसूरिणां पादुके कारिसे। प्रतिष्ठापिते च ॥ प्रतिष्ठितं च । जं । यु । भ । श्रीजिन सौभाग्यसूरिभिः। श्री बृहत्खरतर मट्टारक गच्छे। श्रेयोर्थ । श्रीरस्तु दिने दिने ।
___ सं० १९११ वर्षे मिती आषाढ कृष्ण पंचम्यां गुरुवारे। वृ । ख। श्रीजिनसुखसूरिशा। छ। श्री १०८ श्री शांतिसमुद्र गणीनां पादुका २ कारिसा । १। जयभक्तिमुनिना सपरिवारेण प्रतिष्ठापिता ॥ श्री॥
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
चूरू श्री शान्तिनाथ जी का मन्दिर
पाषाण प्रतिमाओं के लेख
( २४०१)
मूलनायक जी संवत् १६८७ वैशाख शुक्ला ३... ... .. श्री विजयसेनसूरिपट्टालंकार जहांगीर तपाविरुद धारक भट्टारक विजयदेवसूरिभिः आचार्य श्री विजयसिंहसूरि .....सुपरकारितं ।।
( २४०२) सं० १९०५ वर्षे वैशाख मासे। शुक्ल पक्षे। चंद्रप्रभजिन बिंबं (बी) कानेर वास्तव्य कारापितं । प्रतिष्ठितं वृहत्खरतर गच्छे भ० श्री जिनसौभाग्यसूरिभिः ।
(२४०३ ) सं० १९८५ वर्षे वैशाख मासे पूर्णिमास्यां तिथौ श्री मुनिसुव्रतजिन बिंब कारापितं प्रतिष्ठित वृहत्खरतरगच्छेश जं० यु० प्र० भ० श्री जिनसौभाग्यसूरिभिः ।
... ( २४०४)
आलेमें चरणपादुका संवत् १८१५० मिते वैशाख शुक्ल ३ भृगुवासरे वृहत्स्यरतर गच्छे भ० ज० यु० भ० श्रीजिनकुशलसूरिपादुका चूरू श्रीसंघेन कारिता प्रतिष्ठितं च भ० ज० भ० श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः।
( २४०५ )
आलेमें चरणों पर संवत् १९१० मिते माघ सुदि ५ गुरु दिने श्रीजिनदत्तसूरिजी पादुका का० उदयभक्ति गणिना। प्र० बृहत्खरतर गच्छ जं० यु० भ० श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः ।
(२४०६)
शिलालेख अस्यदेवालयस्य जीर्णोद्धार कारापिता पं० प्र० श्रीमन्तो यतिवरा ऋद्धकरण नामधेया महोदया सन्ति ।। यह धार्मिक महान् कार्य आपके ही प्रयत्न से हुआ है यह जीर्णोद्धार सं० १९८१ से प्रारंभ होकर सं० १९८६ तक समाप्त हुआ है।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
(२४०७ )
चांदी के गर्भगृह द्वार पर बीकानेर निवासी श्रीमान् सेठ शिखरचन्द जी घेवरचन्द जी रामपुरिये ने घेवरचन्द जी के विवाह में चढ़ाये सं० १९८५
धातु प्रतिमाओं के लेख
(२४०८) सं० १५१७ वर्षे माघ सु. ५ शुक्र भावसार लाडा भार्या हेमू सुत भ्रा० परबतेन भा० राजू सुत सहजादि कुटंब युतेन स्वश्रेयसे श्री विमलनाथ विवं श्री आगम गच्छे श्री देवरत्नसूरिणामुपदेशेन कारितं प्रतिष्ठापितंच श्रीक्षेत्रे ।।
(२४०९) ॥सं० १५१० वर्षे आषाढ़ सुदि २ गुरौ श्री सोनी गोत्रे सा० मूग संताने सा० भिखू पुत्र सा० कालू भार्या कमलसिरि पुत्र पूना। सा० कालूकेन आत्म पुण्यार्थं श्री शांतिनाथ बिंबं कारितं श्रीवृहद्गच्छे भ० श्री महेन्द्रसूरिभिः ।।
( २४१०) ॥सं० १५०३ वर्षे फा. सु० ३ रवौ प्राग्वाट ज्ञा० साह करमा भा० कुतिगदे पु० सा. चोला भा० देलू चोला भ्रातृभूणा स० स्वश्रेयसे श्री धर्मनाथ बिंबं का० प्र० पूर्णि० कच्छोलीवाल गच्छे भ० श्री विद्यासागरसूरिणामुपदेशेन ॥
(२४११) ॥सं० १५०७ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १० उस वंश नाहर गोत्र सा. हेमा० विजयचन्द्रसूरि पट्टे भ० श्री पासमूर्तिसूरिभिः ।।।
(२४१२) __ संवत् १५६९ वर्षे फाल्गुन सुदि २ सोमे श्रीश्रीमाल ज्ञातीय मं० मना भा० पांची सुत रत्ना भा० रत्नादे सुत खेता स्वपितृ मातृ श्रेयोथं श्री सुमतिनाथ बिंबं का० नागेन्द्र गच्छे पाटणेचा श्री हेमरत्नसूरिभिः प्रतिष्ठितं लोलीआणा ग्रामे ।
( २४१३ ) ॥सं० १५४५ वर्ष माह सु० २ गुरौ उपकेश ज्ञा० श्रेष्ठि गोत्रे साह आसा भा० ईसरदे पु० जइता भा० जीवादे पुत्र चांदा युतेन पित्रौ श्रेयसे श्री श्रेयांसनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं महाहड़ गच्छे रत्नपुरीय भ० श्रीकमलचन्द्रसूरिभिः जा...
॥ संवत् १७५५ वर्ष आषाढ़ वदि ५ दिने शनिवासरे श्री खरतर गच्छे श्री सागरचन्द्रसूरि संताने वा० श्री हेमहर्ष गणि वदिशष्य पंडित प्रवर अभयमाणिक्य गणिभिः कारापितं ।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
(२४१५ ) सं० १८२६ वै० सु० ६ मूल संघे भ० सुरेन्द्रकीर्ति सं० नन्दलाल म गोत्र कासवारामस्य
भाना..
(२४१६ ) सं० १६५१ माह सुदि १ श्री चंद्र कारित.........णी गोत्रे सा.............
दादा साहब की बगीची पाषाण पादुकाओं के लेख
( २४१७ )
मध्यमण्डप में श्री जिनकुशलरि सं० १८५० मिते माघ शुक्ला ५ श्रीजिनकुशलसूरि पादुके कारिते वा० चारित्रप्रमोद गणिना प्रतिष्ठिते च ॥ श्री वृहत्खरतर गच्छे । भ । जं। यु । भ । श्री जिनचन्द्रसूरिभिः ।
(२४१८)
दक्षिणपाश्वेमंडपमें श्री जिनदत्तसूरि ॥ संवत् १८५१ वर्ष वैशाख सुदि ३ तिथौ शुक्र श्रीमत् श्री जिनदत्तसूरि सुगुरुणां चरणांबुजे सकलसंधेन विन्यसिते प्रतिष्ठिते च । भ] श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः श्री चूरू नगरमध्ये शुभं भवतुतरामिति ॥
(२४१९ )
वाम पार्श्व वाले मंडपमें संवत् १९४० वर्षे शाके १८०५ मिती वैशाख मासे शुक्ल पक्षे ३ तृतीयायां तिथौ बुधवासरे भ। यदादाजी श्रीजिनचन्द्रसूरिजी चरणपादुका भ। श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः प्रतिष्ठितः श्रीसंघेन कारापिता
पश्चिम तरफ की शाला के लेख
(२४२० ) सं० १८९१ मिते माघ शु०५ बृहत्खरतर गच्छे भ। जं। श्रीसागरचन्द्र शाखायां । पं०। प्र.। श्रीचन्द्रविजय मुनि पादु० कारिः पं० गुणप्रमोद मुनि प्रतिष्ठिते च भ । जं । भ । श्रीजिनहर्षसूरिभिः ॥२॥
सं० १८६५ मिते माघ शु० ५ बृहत्खरतर भ। जं। श्री सागरचन्द्र० शाखायां उ। श्री जयराज गणि पादु० कारि० वा। चारित्रप्रमोद गणि प्रतिष्ठिते च । यु। भ । श्रीजिनहर्ष सूरिभिः ॥२॥
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षीकानेर जैन लेख संग्रह
(२४२२ ) सं० १८९१ मिते माघ शु० ५ वृहत्खरतर । भ। जं। श्री सागरचन्द्र० शाखायां वा० श्री चारित्रप्रमोद गणि पादु० कारि० पं० कीर्तिसमुद्र मुनि प्रतिष्ठिते च । भ । जं । भ० श्रीजिन हर्षसूरिभिः ॥२॥
पूर्व की ओर शाला के लेख
( २४२३) श्री सं० १९४० शाके १८०५ मि० ज्ये० शु० १२ गु० यं । प्र! श्री श्री १०८ आणंदसोमजी प्र॥
( २४२४ )
पं० प्रखेममण्डन मुनि। उत्तर की ओर शाला के लेख
( २४२५ ) संवत् १९३३ मि० माघ सुदि ५ ५० प्र० श्रीगुणप्रमोदजी मु। पं० प्र० राजशेखरजी मुनि ।
(२४२६ ) पं० प्र० कीर्तिसमुद्र मुनि। पं० प्र० श्री ज्ञानानन्द जी मुनि ।
(२४२७ ) ___ सं० १९३३ मिति माघ सुदि ५भृगुवासरे श्री वृहत्खरतरगच्छे पं० प्र० श्रीयशराजजी मुनिना पादुके श्री चूरू पं० आणंदसोमेन कारितं प्रतिष्ठितं च । भ । जंभ ! श्रीजिनहंससूरिभिः शुभं ।। रा ज ग ढ़ ( सा र्दू ल पु र ) श्री सुफाईनाथ जी का मन्दिर
पाषाण प्रतिमा लेखाः
२४२८
मूलनायक जी ॐ संवत् ११५५ उस-सा । श्री देवराज दो! देव इमे मअव-दुलारज्ये डाटालकारिता छवाददे थे...
२४२९ ॐ संवत् ११५५ उ। सटदाद ५ सप्तै श्री देवराज संघे जूइणभ अपदादुसा दीने कावतं कारीत संघारवाद सेवा जिता वेरक ।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
Avvvvvvvvvvv
२४३० संवत् ११५५ उ। मट बदि ५ श्री देवसेन संघ देवे इमे मअव दादासा जो भोग वोन कारित संघार सेवा जितावलि ।
२४३१
दादासाहेब के चरणों पर ॥ दादाजी श्रीजिनकुशलसूरि जी री पादुका ॥ संवत् १८६७ श्री राजगढ़ मध्ये मिती वैशाख सुदि ३ बार अदीत।
२४३२ पादुका श्री १०८ श्री पाइचन्द...संवत् १८७१ जेठ सुदि ५
धातु प्रतिमाओं के लेख
(२४३३ ) सं० १७६२ मगसिर सुदि १० दिने वृहत्खरतर गच्छे क्षेम शाखायां सत्यरत्नजी शि० कानजी।
( २४३४ ) सं० १७७३ माघ सुदि ६ चन्द्र सा० नाथाकेन वर कम बिंब का भ० देवरत्नसूरि ।
( २४३५ ) श्री धर्मनाथजी दो बिंब।
( २४३६) सं०.... 'माघ सुदि १२ गुरौ साधु नरघा भार्या हावा सुत उदल प्रण ।
( २४३७ ) श्री मूल संघ .....
(२४३८ ) मन्दिर में भमती से निकलते दीवाल पर लिखित सं १९१९ रा मिती मिगसर सुदि ३ दिने। जं० यु० प्र० भट्टारक बृहत्खरतर गच्छे वर्तमान भ। श्री जिनहंससूरिवराः सपरिकराः श्री बीकानेर सुं विहारी प्रामानुग्राम बंदावी। श्री सरदारशहर बड़ोपल हनुमानगढ़ टीबी खड़ियाला राणिया सरसा नौहर भादरा राजगढ़ श्री जी महाराज पधार्या संवत् १९२० रा मि बैसा० सुद ६ श्री संघहाकमकोचर मुंहता श्री फतेचन्दजी कालूरामजी बड़ेहगांम सुं नगारो नीसाण घोड़ा प्रमुख इसदी आदि देकर सामेलो कीयो श्री साधु साथे विहार में वा० नन्दरामजी गणि पं० प्र० चिमनीरामजी आदेशी पं० प्र० देवराजजी मुनि पं० प्र० आसकरणजी मुनि ५० प्र० रुघजी मुनि राजसुखजी पं० प्र०
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
लछमणजी गणि पं० गोपीजी मुनि पं० हीरोजी पं० प्र० केवलजी मुनि पं० प्र० शिवलाल मुनि पं० प्र० अबीरजी मुनि ५० प्र० गुलाबजी वा० बुधजी ठा० १ पं० हिमतु मुनि पं० गुमान श्री राहसरीयो पं० सोमो पं० रुघलो पं० सुगणानन्द पं० वनोजी चिरं सदासुख चि० वींझो ठाणे ४१ साधु सर्व पं० प्र० कचरमल्ल मुनि महाराज के साथ आदमी प्यादल रथ १ चपरासी हलकारे राजरो पौरो १ छड़ी छड़ीदार सेवग सुगणो चांदी रीछड़ी १ सेवग बारीदार चौथूजी विरधो नाइ २ नवलो मुलतानो दरजी 'तिनतस संवत् १९२० दीक्षा महोच्छव साधु २ योनै मि वै० सुद १० दिन भई वणारस पं०..... नि० बै० सु० १३ राजगढ़ में खमासण ७ मिठाई ४ सीरे री ३ लूदीबास में १ मि० जेठ बदी ३ दिने रिणी नै विहार कर्यो सतरभेदी पूजा हुई मि० जे० ब० २ नव अंगी ७ पं० प्र० चीमनीरामजी पं०... मुजमानी ११ भेट भई बेगार ऊंठ २५ ।
रिणी (ता रा न ग र) श्री शीतलनाथजी का मन्दिर
धातु प्रतिमाओं के लेख
( २४३९ )
मूलनायकजी श्री शीतलनाथजी देव धर्मोयं स्राहक ! वद्धन साजण सुत सम्बत् १०५८ वैशाख सुदि २
(२४४०) ॥ संवत् १५७२ वर्षे फागण बदि ३ बुधे ऊकेश वंशे व्यव० फादर भा० सूब दे सुत भांखर भार्या देवणि सुत जीवा पाल्टा राजा समस्त कुटुम्ब युतेन श्री आदिनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं विवंदणीक गच्छे श्रीसूरिभिः चंडली गामे धास्त । वधूसलखेमाकरा - प्रामे ?
(२४४१ ) सं० १५३० वर्षे फागुण बदि १३ सोमे उ० जा० सा० पमोका भा० माधलदे पु० कुम्भा भा० लाछलदे आत्म पुण्यार्थ धर्मनाथ बि० का० प्र० बभाणीय गच्छे भ० श्री उदयप्रभसूरि पट्टे. राजसुन्दरसूरि ।
( २४४२) सम्बत् १५१७ वर्षे माघ सुदि १२ श्री कोरट गच्छे उपकेस ज्ञा० कालापमार साखायां रामा भा० रमादे पु० राणा भा० रूपादे पु० सुरजनेन स्वश्रेयसे श्री कुंथुनाथ बिबं कारित। प्रतिष्ठितं श्री ककसूरि पट्टे श्री सावदेवसूरिभिः वरीजा नयर वास्तव्य ।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
( २४४३ )
सं० १५५५ वर्षे चैत्र सुदि ११ सोमवासरे श्री नाहर गोत्रे सा धेनड़ पुत्र सं० पदा भार्या पदमसिरि पु० सं० देवा भार्या दूलहदे पु० नमराकेन भार्या सुहागदे पुः सोनपाल नयणा श्रीवन्त प्रमुख युतेन श्री शान्तिनाथ बिंबं मातृ पुण्यार्थं श्री शान्तिनाथ बिंब का० प्र० श्री धर्मघोष गच्छे श्री पद्मानन्दसूरि प० भ० श्री नंदिवर्द्धनसूरिभिः ॥ श्री ॥
३४३
( २४४४ )
सं० १५५० वर्षे आषाढ़ वदि ८ शुक्रे उपकेश ज्ञातौ श्रेष्ठि गोत्रे मं० दशरथ भा० दूलहदे पु० मं० सत्थवाहेण भा० रयणादे पु० मं० शुभकर श्री श्रीमल्ल सागा पौत्र हरिराज सहितेन पित्रो श्रेयसे पार्श्वनाथ त्रिं कारितं प्रतिष्ठितं उपकेश गच्छे ककुदाचार्य सन्ताने देवगुप्तसूरिभिः ।
( २४४५ )
सं० राजा भा० सांगू पु० सं० हीरा भा० रमाई कारयिता विहरमान श्री श्री सूरप्रभ बिंबं कांरितं । श्री श्री श्री
सं० १५४७ वर्षे माघ सु० वौ मंडपे श्री मालज्ञातीय सं० ऊदा भार्या हर्ष पु० सं० खामा भा० पूंजी पु० स० जगसी भा० मांऊं पु० सं० गोह्वा भार्यासामा पु० सं० मेघा पुत्री राणी लघुभ्रातृ स० लालादि कुटंब युतेन निज श्रेयसे बिंबं प्रतिष्ठितं श्री श्री तपा गच्छे सोमसुन्दरसूरि सागरसूरि पट्टे श्री सुमतिसाधुसूरिभिः रनात् ?
( २४४६ ) शान्तिनाथादि चौबीसी
सं० १५५४ वर्षे वृद्ध शाखायां प्राग्वाट ज्ञातीय व्यव० मेरा भा० बूही पु० व्य० हीराकेन भार जसू पुकमा केहा सालिगदे समस्त पुत्र पौत्र कुटुम्ब युतेन स्व पुण्यार्थं जिन मुख्य श्री शान्तिनाथ चतुर्विंशति पट्ट कारितं तपा पक्षे भ० श्री सुमतिसागरसूरि प० भ० श्री हेमविमलसूरिभिः प्रतिष्ठितं ।
( २४४७ )
॥ संवत् १५२४ ज्येष्ठ सुदि ६ ऊकेश वंशे चोपड़ा गोत्रे सा० मलयसी पुत्र सा० फफण सुश्रावकेण भार्या पूरी पुत्र सा० मेहा प्रमुख परिवार युतेन श्री शीतलनाथ बिका० प्र० श्री खरतरजिनचंद्रसूरिभिः ॥
( २४४८ . ) श्री अभिनन्दनादि चतुर्विंशति
संवत् १५१६ वर्षे पौष वदि ४ गुरौ ईडर वास्तव्य हुंबड़ ज्ञातीय दो० सारंग भा० जइतू सु० दो० शवा नाम्ना भा० अमकू सु० जूठादि कुटुम्ब युतेन स्वश्रेयोर्थं श्री अभिनन्दननाथ चतुर्विंशति पट्टकारितः श्री वृहत्तपापक्षे श्री श्रीरत्नसिंहसूरिभिः प्रतिष्ठितः ।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
( २४४९ )
सं० १५३१ वर्ष मार्ग सुदी ५ सोमे श्री श्रीमाली ज्ञातीय व्यः संस भार्या संसारदे सुतव्य० नेमा भा० अमरी सुत जीवादि कुटंब युतेन निजश्रेयसे श्री मुनिसुव्रत स्वामी विका० प्रति० भ० श्री रत्नशेखरसूरि पट्टे श्री लक्ष्मीसागरसूरिभिः अजाहरा वास्तव्येन ।
३४४
( २४५० )
सं० १५०७ ज्येष्ठ सुदी ९ रवौ श्री संडेरगच्छे ऊ० ज्ञातीय गूगलिआ गोत्रे सा० रामा० भा० रुपिणि पु० महिराज जगमालाभ्यां पूर्वज आपकूक: निमित्तं श्री शांति बिंबं का प्र० श्री शांति
सूरिभिः ।
( २४५१ )
सं= १४६६ माघ वदी १२ ऊकेश वंशे नवलखा गोत्रे सा० नीबा पुत्रेण साः 'ताल्हण तिहा भा० महिराजगा... • नाथ विकारित प्र० तपा पक्षे पूर्ण वंद्रसूरि पट्टे श्री श्रीसुन्दरसूरिभिः । ( २४५२ )
......
सं० १४५६ ० माह सु० १३ बलदनु बागादे स्वस० रामह जावड़ भा० कडूं पुत्र घिराचपल भा० चाहिणीदेव्या सहितेन भ्रात जगमाल पुत्र दीना निमित्तं श्री आदिनाथ त्रिबं का०वृ० प० रामसेनीय प्रति श्री धर्मद ( ? दे ) व सूरिभिः ।
पाषाण प्रतिमादि लेखाः
( २४५३ )
सं० १५५२ वर्षे पौष सुदी १ श्रीमाल ज्ञातीय सा० जगसीह चन्द्रप्रभ.....
( २४५४ )
१३ चतुरका.....पुत्रवसु ( २४५५ )
श्रेयांस... सा....वरसिंघ कारितं ।
जस........
( २४५६ )
सं० १५८१ वर्षे वैशाख सुदी २ सोमे उपकेश सं० अंटिलदे पु० ग्यब........
( २४५८ ) पद्मावती की मूर्ति पर
114
( २४५७ )
॥ ६० ॥ संवत् १२०४ वैशाख सुदी १३ श्री माथुर संधे अरात्र श्री अनंतकीर्ति भक्त मेर लोहट वाताकहड़ प्रभृतयः प्रणमति ॥ छः ||
संवतु १०६५ क्या पतक्तद्रनि कारिता ।।
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..पो० जयकदेह
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
चरण पादुकाओं के लेख
( २४५९) संवत् १७८० वर्षे शाके १६४५ प्रवर्त्तमाने ज्येष्ठ मासे कृष्ण पक्षे १० तिथौ शनिवारे भट्टारक श्रीजिनसुखसूरिजी देवलोकं गतः तेषां पादुके श्री रेणी मध्ये भट्टारक श्रीजिनभक्तिसूरिभिः प्रतिष्ठितं शुभंभूयात् । . माह सुदि ६ तिथौ।
( २४६०) संवत् १६५२ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ५ दिने श्री श्री श्री जिनकुशलसूरि पादुके कारितः ।
(२४६१ ) सं० १७७६ वर्ष पौष यदि ६ दिने महोपाध्याय श्री सुखलाभ गणयो दिवं प्राप्तास्तेषां पदन्यास । खरतरे...।
(२४६२ ) संवत् १६७२ वर्ष मगसिर सुदि पाचिम दिने वा गजसार गणि तच्छिष्य पं० हेमधर्म गणि पादुके प्रतिष्ठिते। श्रेयोभवतु। कल्याण श्री ।।
दादा का ही चरण-पादुकाओं के लेख
श्री जिनदत्तसूरि जी
( २४६३ ) सं० १८९८ मि. आषाइ सुदि ५ बुधवारे दादाजी श्रीजिनदत्तसूरीश्वराणां पादन्यासः श्री रिणीनगर वास्तव्य श्रीसंथेन का० प्र० श्री. श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः ।
( २४६४ ) संवत् १८२५ मिती फागण वदि ६ दिने शनिवासरे श्री वृहत्खरतर गच्छे श्री कीर्तिरत्नसूरि संताने महो० माणिक्यमूर्ति जी गणि पादुका श्री रिणी प्र०..........
(२४६५ ) । सं० १९१४ वर्षे मिती ज्येष्ठ शुक्ला ५ शुकरवार वा० श्रीगुणनंदनजी गणिनां पादुका तत्शिष्य पं० मतिशेखर मुनि प्रतिष्ठितं।
खरतर गच्छ उपाश्रय में काष्ठ पट्टिका पर
(२४६६ ) __ सं० १८........अनोपसहर सुं.. ......परम पूज्य परमाराध्य सुगुरु शिरोमणि...श्री गच्छ सिणगारक कलियुग गौतमावतार खरतर गच्छ महा...श्री जिन शासन दिनकरान एकविध
४४
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३४६
बीकानेर जैन लेख संग्रह
शुद्ध समकित का थापक खरतर गच्छ मुकुटमणि जं० यु० प्र० भट्टारक श्री श्री जिनसौभाग्य सूरि जी महाराज रिणी पधार्या...५ दिन चढ्यां श्रावकां बड़े हगाम सुं सामेलो कीयौ । बीकानेर साधु साधे वा श्री " चन्द जी गणि ठा० ५ पं० प्र० श्री भीमजी मुनि ठा० २ पं० प्र० श्री ज्ञानानंदजी मुनि ठा० ४ पं० प्र० श्रीकुशलाजी मुनि ठा० २ पं० प्र० श्री कस्तूरजी मुनि ठा० ३ पं० प्र० श्रीहंसराजजी गणि ठा० ३ ० पं० प्र० श्रीदेवचंदजी मुनि ठा० २ पं० प्र० श्री माण जी मुनि ठा० २ पं० प्र० श्री खेमजी मुनि ठा० १ पं० प्र० श्री .जी मुनि पं०
प्र० श्री
श्री दिगम्बर जैन मन्दिर, रिणी ( तारानगर )
( २४६७ )
श्री वीर सं० २४६९ श्री विक्रम सं० १९९९ जेठ मासे कृष्ण पक्षे तिथौ ७ गुरुवासरे श्री बीकानेर राज्ये तारानगरे ( रिणी ) श्री दिगम्बर जैन धर्मपरायण श्रावक वंशो श्री अग्रवाल श्री रावतमल जी तस्यात्मज श्रीराम जी तस्यात्मज श्री कुन्दनमल जी ब्रजलाल जी प्रतिष्ठितं श्री श्री १००८ पार्श्वनाथ जी भगवान श्री कुन्दकुन्दान्नायानुसारेण ||
नौ हर
श्री पार्श्वनाथ जी का मन्दिर
पाषाण प्रतिमादि लेखाः
( २४६८ ) शिलापट्ट पर
ॐ संवत् १०८४ फाल्गुन सुदि १३ रवौ सयंथ वाहडकेन करापितः । सूत्रधार गोहर - लाइच सुतेन ॥ ९
( २४६९ )
संवद १६९० वैशाख सुदि ५..... वई कुहाड़ बसतराय रे बेटे विठीचंद प्रतिष्ठा कराई नौहर मध्ये |
( २४७० )
सं० १२२० लग ( ? ) वदि २.....।
सं० १५४४...
......
( २४७१ )
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
३४७ (२४७२) सं० १७५२ ............ उपाध्याय श्री कनककुमार गणिना पादुके कृते स्थापित
(२४७३) संवत् १८०८ वर्षे मिती मिगसर सुदि ६ सोमवारे महोपाध्याय श्री ५ श्री श्री गुणसुन्दरगणिनां पादुका श्री नवहर मध्ये देवगताः ।। श्री ॥
(२४७४ ) बनारस अमरचंद जी सं० १८६२ मिती आसोज सुदि ४
( २४७५ ) श्री १०८ सु इंद्रभाण जी संवत् १९०३ का सुदि १३ ।
धातु प्रतिमा लेखा:
(२४७६ ) सं० १५०१ वर्षे फा० ब० ५ दिने प्राग्वाटव्यः दूला भार्या सलखणादे सुत वरसाकेन भार्या नारिंगदे पुत्र गोपादि कुटुंब युतेन निज श्रेयोर्थ श्री शांति बिंबं का० प्र० तपा पक्षे श्री सोमसुन्दरसूरिपट्टे श्री मुनिसुन्दरसूरिभिः ।
(२४७७ ) सं० १५२९ वर्षे माघ सुदि ६ ऊकेश समाणा वासी सा० धना पु० सा० सोहिल पुत्र सा० समधरेण निज श्रेयसे आश्वसेनि जिन बिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्री तप गच्छनायक श्री सोमसुन्दरसूरि पट्टे श्री लक्ष्मीसागरसूरिराजाधिराजे । श्री श्री श्री।
(२४७८ ) सं० १५०६ वर्षे वैशाख सु०६ शुक्र श्री श्रीमाल जातीय श्र० शिवराज भा० घघातिजामा ३। श्रा० जाला भा० श्रीराणीना स्व श्रेयो) श्री सुविधिनाथ बिंबं श्री पूर्णिमा पक्षे श्री गुणसमुद्रसूरिणामुपदेशेन कारितं प्रतिष्ठितं नव विधिना।
(२४७९) सं० १६२४ भवाने ? संभवनाथ विंबं का० प्र० हीरविजयसूरिभिः ।
(२४८०) सं० १५३० वर्षे पोष सुदि १५ सोमे। श्री मूल संघे भ० श्री जवकीर्तिस्त पदमावती पोरवाड़ सहा विजय पाने भा० लोढि सुत भूलणा भाडणा भोछी तारण स श्री पत्र ।
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(२४८१) सं० १४४९ बर्षे वैशाख सुद शुक ३३ विलिक्षाथक छाहड़ भार्या वाहरादि पु० आभू भा० मनु पु रायणजी रमा दे श्रेयोर्थ श्री पार्श्वनाथ बिंबं का प्र. वृह ग श्री अभयदेवसूरि
( २४८२) __ सं० १५०४ वर्षे वै० सु० ३ बु. पोरवाड़ ज्ञातीय व्यः जसा भा० जिसमादे पुत्र सुहड़सल भार्या सुहड़ादे सहितेन आस्म श्रेयसे श्री कुंथुनाथ बिक का०प्र० भीनमाल भ० श्रीवीरदेवसूरि पट्टे भ० श्री अमरप्रभसूरि
(२४८३) संवत् १५९२ वर्षे आषाढ़ ब० ग. सुमतिनाथ बिंबं प्र० मड्डाहरा गच्छे स० श्री दयाहरसूरिभिः
(२४८४) सं० १५१९ वर्षे आसाढ़ ब०१ मंत्रिदलीय काणा गोत्रे ठ. नागरराज सुः ठ० लदुका धर्मिणि सु० सं० श्री अचलदास भार्या वीरसिधि सु. स. वीरसेन श्रावकेण श्री पार्श्वनाथ बिंबं कारितं प्र, श्री खरतर श्री जिनभद्रसूरि पट्टे श्री जिनचंद्रसूरिभिः ।। श्री ॥
( २४८५) ____ संवत् १४९५ वर्षे ज्येष्ठ सु १३ सोमे उसवाल ज्ञातीय सुराणा गोत्रे सा. साजुन मालाठि पु० संसारचंदकेन आत्मश्रेयसे श्री सुमतिनाथ बिंब कारितं प्र. श्री धर्मघोष गच्छे श्री वि ....
(२४८६ ) सं० १५१६ वर्षे वैशाख सु ३ साखुला गोत्रे सा० तिहुणा भा० सीतादे पु भा० गोईद आत्मश्रेयसे श्रीकुंथुनाथ बिंब का० प्र० श्रीधर्मघोष गच्छे श्रीपद्मशेखरसूरि पट्टे भ. श्रीपद्माणंदसूरिभिः
(२४८७ ) सं० १५२८ वर्ष ... ... श्री पार्श्वनाथ बिंब प्रतिष्ठितं श्रीजिनभद्रसूरि पट्ट श्री जिनचंद्रसूरिभिः श्री खरतर गच्छे।
( २४८८) सं० १५५६ वर्ष फागुण सु० २ गुरुवार श्री संडेर गच्छे ड, पालु हासी सुतु दोपणा पु० सा. नरसींह भा. भानु पु. पथ मो भवगाइ पु० हासा भामर मा पु. हर्पसु कुटंबे तस्य पूर्वजान श्री श्रेयांस बिंब का० श्री यशोभद्रसूरि संताने श्री श्री ........
(२४८९) सं० १५५९ माघ सुदि ११ ककमवह माहाराज सु. मु. मोखराज नातम पुण्यार्थ श्री पार्श्वनाथ बिंब का० श्री खरतर गच्छे श्रीजिनराजसूरिभिः
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भादरा श्री जैन इके मन्दिर
( २४९०)
श्री पाश्र्वनाथजी सं० ११३० ज्येष्ठ सुदि ६ तिथौ............
(२४९१ ) सं० १७५७ वर्षे वशाख सुदि...............
लू ण क र ण सर श्री आदिनाथजी का मन्दिर
( २४९२ )
शिलापट्ट पर ॥ संमत् १९०१ विरषे मिति प्रथम श्रावण वदि १४ दिने मन्दिर करापितं सांवसुखा सुजाणमल जी बुचा ठाकुरसी बाफणा महिसिंघ गोलछा फूसाराम बो। हीरानंद गुरां श्रीवा । दयाचंद री चौमास मध्ये करापित उपदेशात् करापित बगसा इमामबगस कृतं अस्ति वारअदीतवार ॥
(२४९३ )
मूलनायक श्री सुपार्श्वनाथजी सं० १५४८ वर्षे .... ...
धातु प्रतिमाओं के लेख
( २४९४ ) सं० १४९९ वर्षे फागुण बदि २ गुरौ श्री बहुरा गोत्रे श्री श्रीमाली जातीय सं० झगड़ा भा० रूपादे सु० णाल्हा भा० सूहवदे सु० कउझमाला धठसी सहणा आत्मश्रेयसे श्रीचंद्रप्रभु बि० का० श्रीकालिकाचार्य संताने प्र० श्रीवीरसूरिभिः श्री ॥
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(२४९५ ) सं० १५१३ वर्षे जेष्ठ वदि ११ गुरौ ओसवाल ज्ञातीय नाहर गोत्रे सं० तेजा पु० सं० वच्छराज भा० वल्हिणदे पु० कालू गांडण सजन भ्रात सुत लोला लाधा जयसिंघाभ्यां श्री नमिनाथ बिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्री धर्मघोष गच्छे श्रीसाधुरत्नसूरिभिः ॥ श्री ॥
( २४९६ ) __ संवत् १४६९ वर्षे माघ सुदि ६ दिने श्रेष्टि ज्ञातीय सा० जाल्हण पुत्र सा० कुनचंद्रेण श्री पार्श्वनाथ बिं० कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनचंद्रसूरिभिः
(२४९७ ) सं० १४६१ वर्षे जेठ सुदि १० शुक्र प्रा० व्य० काला भा० सूची पु० चउंडा झांझा साजण महणाकेन करमादे निमित्तं श्री संभवनाथ बिं० का० प्र० मड्डा० श्री मुनिप्रभसूरिभिः
(२४९८) सं० १५४९ वष ज्ये० सु० ५ सोमे श्री हुँबड़ ज्ञातीय तोलाहर आसा भा० धनादे सु० समधर भा० हांसा युतेन पितृ आसा श्रेयसे श्रीचन्द्रप्रभ स्वामी बिंब कारितं प्र० श्री वृद्धतपा पक्ष श्री उदयसागरसूरिभिः ॥ श्री गिरिपुरौ
(२४९९ ) संयमरत्नसूरि सदुपदेशात् मांक कारितं
(२५०० ) संवत् १५८७ वर्षे वैशाख सुदि ७ दिने रविवारे। ऊकेश वंशे गणधर गोत्र सा. चांपा भार्या चांपल दे पुत्र सा. बीका सा. ऊदा बीदाभ्यां युतेन सुश्रावकेण सपरिवारेण श्री विमलनाथ बिंब कारितं स्वश्रेयोर्थ श्री खरतर गच्छे श्री जिनहंससूरि पट्टे श्रीजिनमाणिक्यसूरिभिः प्रतिष्ठित ॥ शुभंभवतु ॥ छः॥
( २५०१ ) __ संवत् १७६८ वर्षे वैशाख सुदि ५ बुधे श्री शांतिनाथ बिवं सा० लवजीसुत सा० मदनजी कारापितं श्री तपागच्छे प्रतिष्ठितं ।
( २५०२ ) सं० १६१७ वर्षे बा० बादाली कारितं ।
( २५०३) सं० १५६१ वर्षे म० तेजा पूजनार्थं ।
( २५०४) सं० १५७० वर्षे मा० वदि १३ बुधे प्राग्वाट ज्ञातीय लघुसाजानक व्य० राजा भार्या हारू
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सुत विजा भार्या विजलदे सुत रामा भार्या रमादे पौत्र भामा भार्या भरघदे भ्रातृ ताउआ कुटुंब युतेन राज्ये श्रीपार्श्वनाथ बिंबं कारापितं तपागच्छाधिराज श्रीहेमविमलसूरिभिः प्रतिष्ठितं । मोहनपुरे
पाषाण निर्मित पादुकाओं के लेख
(२५८५)
दादा साहब के चरणों पर दादाजी . श्री जं । यु। प्र श्री जिनदत्तसूरिजी, श्री जिनकुशलसूरिजी सूरीश्वराणां चरणन्यासः। संवत् १९३६ रा शाके १८८१ प्र. मिती फाल्गुन शुक्ला तृतीया तिथौ श्री कीर्तिरत्नसूरि शाखायां पं० प्र० सदाकमल मुनि कारापिता प्रति ।
( २५०६ ) ____सं० १७९२ वर्ष मिती भादवा वदि ७ दिने वा० श्रीराजलाभजी गणि तरिष्य वा० श्रीराजसुन्दरजी गणिनां चरणपादुका प्रतिष्ठिता।।
( २५०७ ) संवत् १८६७ वर्ष शाके १७३२ प्रवर्त्तमाने मासोत्तमे आषाढ़ मासे कृष्ण पंचम्यां श्रीकीतिरत्नसूरि शाखायां वा० श्रीमहिमारुचि जीकानां पादुके प्रतिष्ठिते। शुभं भवतु तराम्
( २५०८ ) संवत् १७११ वर्ष ज्येष्ठ सुदि ३ तिथौ गुरुवासरे भ० श्रीजिनराजसूरि शिष्य वा० मानविजय शिष्य वा० कमल........गणिनां पादुके।
( २५०९) संवत् १७१९ वर्ष वैशाख वदि १० बुधे वा० श्रीजयरत्न गणि चरण पादुका प्रतिष्ठिता।
कालू श्री चन्द्रप्रभुजी का मन्दिर
( २५१० ) सं० ११५५ उ॥ उ० द द दिस से श्री देवसेन संघे...........
(२५११)
दादा साहब के चरणों पर सं० १८६५ वैशाख वदि ७ रवौ श्री कालूपुरे भ० श्री जिनहर्षसूरि प्रतिष्ठितौ ? श्रीजिनदत्तसूरि २ भ० श्री जिनकुशलसूरि ।
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धातु प्रतिमाओं के लेख
( २५१२ ) सं० १५६३ वष माह सुदि १५ दिने चोपड़ा गोत्रे सं० तोला भा० वील्हू नाम्ना पुत्र रत्ना पासा वस्ता श्रीवंत सहितेन स्वश्रेयो) श्री शीतलनाथ बिवं कारितं प्रतिष्ठितं श्री खरतर गच्छे श्रीजिनहंससूरिभिः।
( २५१३ ) सं० १४९५ वर्षे फाल्गुन मासे वदि रयो ओसवाल वंशे नाहर गोत्रे सा० हेमा भार्या सुनखत ( ? ) पुत्र सं रूपाकेन श्री शांतिनाथ विवं कारितं प्रति । श्री धर्मघोष गच्छे श्री पद्मशेखरसूरि पट्टे भ० श्रीविजयचंद्रसूरि......।
(२५१४ ) सं० १५१३ वर्षे वैशाख सुदि १० बुध श्रीउपकेश ज्ञातीय श्रेष्ठि दिवड भार्या अधकू सुत मूराकेन भार्या सूहवदे युतेन पितृव्य नाथा निमित्तं स्वश्रेयसे श्रीआदिनाथ बिंबं कारितं प्रति । श्रीसाधुपूर्णिमा पक्षे श्रीपुण्यचंद्रसूरिणामुपदेशेन विधिना श्रावक शुभंभवतुः कल्याणमस्तुः ।
सं० १८२० वर्ष माध सुदि ४ अर्कवासरे भ० श्रीजिनलाभसूरिजी प्र० श्री न० तत्पित ? हीरानंद कारापितम्।
म हा जन
श्री चन्द्रप्रभु जी का मन्दिर
( २५१६ )
शिलापट्ट पर संवत् १८८१ वर्षे फाल्गुन कृष्ण पक्षे द्वितीया तिथौ शनिवारे श्री महाजन ग्रामे श्री खरतर गच्छे जंगम युगप्रधान भट्टारक श्री १०५ श्री जिनचन्द्रसूरि पट्टालंकार श्रीजिनहर्षसूरि विद्यमाने राज श्री ठाकुरां वैरीसालजी कुंवर श्री अमरसिंहजी विजयिराज्ये श्रीसागरचन्द्रसूरि संतानीय वाचनाचार्य श्रीसुमतिधीरजी गणि तशिष्य पं० उदयरंग मुनेः उपदेशात् सकल श्रीसंघेन श्री चन्द्रप्रभ स्वामी चैत्य कारितं प्रतिष्ठितं च । श्री कल्याणमस्तु ।
( २५१७ )
दादाजी के चरणों पर ॥सं० १७०८ वर्ष वैशाख सुदि ७ दिने गुरुवारे श्री जिनकुशल सूरीश्वर पादुकेयं प्रतिष्टितं उपाध्याय श्री ललितकीर्ति गणिभिः कारितं श्री महाजन संघेन।
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सूर त गढ़ श्री फाइनाथ जी का मन्दिर
( २५२० )
मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी सं० १९१५ माघ सुदि। २ शनौ श्री पार्श्व जिन बिंबं भ० श्री जिन सौभाग्यसूरिभिः प्र। ढिघ सा। लालचंदेन का। खरतर गच्छे ।
(२५२१ )
लकड़ी की पटरी पर सं० १९१९ रा वर्षे शाके १७८४ प्रवर्त्तमाने वशाख सुदि सप्तम्यां ७ तिथौ इन्दुवारे तहिने श्री सूरतगढ़ वास्तव्य समस्त श्रीसंघेन श्री पार्श्वनाथ चैत्य करापितं भ । जं । यु । प्र । श्री जिनइससूरिभिः प्रतिष्ठितं पं । प्र। लाभशेखर पं । राजसोम उपदेशात् ॥
( २५२२ )
श्री पद्मप्रभादि पञ्चतीर्थी ॥ संवत् १५४० वर्ष वैशाख सुदि १० बुधे श्री ब्रह्माण गच्छे श्रीमाल झातीय श्रेष्ठि रावा भार्या श्रीयादे सुत सीमाकेन भार्या भावलदे सहितेन सु० जीवा युतेन स्वपूर्वज श्रेयार्थ श्री पद्मप्रभ बिंब कारापितं प्रतिष्ठितं श्रीबुद्धिसागरसूरिभिः बदहद्र वास्तव्यः ॥
( २५२३ ) संवत् १५६६ वर्षे माघ वदि २ रवौ श्री पिप्पल गच्छे पं० वीरचंद्र शिष्य पं० कीर्तिराजेन श्री पार्श्व बिंब कारापितं प्र० श्रीगुणप्रभसूरिभिः ॥
( २५२४)
पाषाण के चरणों पर । सं० १९१७ मि । फा! ब। ८ दिने भ। श्रीजिनकुशलसूरि पादुके सूरतगढ़ वास्तव्य समस्त श्रीसंघेन का । जं । यु । प्र । म । श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः प्र।
( २५२५) ___ सं० १९१७ मि। फागण यदि ८ दिने श्रीवृहत्खरतर गच्छे श्रीकीतिरत्नसूरि शाखायां पं।प्र। लाभशेखर मुनिनां पादुके । भ । जं । यु । प्र: श्रीजिनसौभाग्यसूरिभिः प्र!.
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afterनेर जैन लेख संग्रह
हनुमान गढ़ श्री शान्तिनाथजी का मन्दिर
पाषाण प्रतिमाओं के लेख
( २५२६ )
सपरिकर मूलनायक जी
॥ ६० ॥ सं० १४८९ वर्षे मार्ग० सुदि ११ गुरौ रेवत्यां । श्री तातेहड़ गोत्रे सा० ( भा ? ) पुत्र झार गोसलणीधर. भघा गोसल भक्त घूट्ठ सालिग सारंग संघ ( ? जी ) प्रभृति तत्र श्री शान्तिनाथ वियं कारितं प्रतिष्ठितं वृहद्र (च्छे ) श्री भद्रेश्वरसूरि (?) ( २५२७ )
साधु..
संतति भ ।
संवत् १५६६ वर्षे आश्विन सुदि ४ भौमवासरे श्री वृहद्वच्छे श्री प्रानास- ( श्री मुनिदेवसूरि शिष्य वा० न्यानप्रभ श्री आदिनाथ बिंबं . सा........ पुत्र सा० वरगषण अभ्यथतेन सीयात्रसे रोषेन ? ॥ श्री ॥
धातु प्रतिमाओं के लेख
३५४
( २५२८ )
श्री शान्तिनाथादि चौवीसो
सं० १९०६ वर्षे मा० सुदि १० दिने श्रीमाल सं० जइता भा० पूजी पुत्र भीमा भा० धर्मिणि नाम्या श्री शान्ति बिंबं कारितं प्र० तपा श्रीजयचन्द्रसूरि शिष्य श्री उदयनन्दिसूरिभिः ||छः ॥ ( २५२९ श्री नमिनाथादि चौवीसी
सं० १५०७ ज्ये० ब० ६ गुरौ प्रा० व्य० अभयपाल भा० अहिवदे पुत्र व्य० आका भा० जाटलदे चांपू पुत्र व्य० देल्हा जूठा साता खीमाके भा० देमति भरमादे सोनलदे लीलादे पुत्र वीरपाल लोहट वीरदासादि युतैः श्री नमिनाथ चतुर्विंशति पट्टे का प्रः तपा श्रीसोमसुन्दरसूरि शिष्य गच्छनायक श्रीरत्नशेखरसूरिभिः ||श्रीरस्तु । श्री ।।
( २५३० )
|| ६ || सं० १५३४ वर्षे मार्गसिर वदि ६ सोमे उसवाल ज्ञातीय आयरी गोत्रे लुणुगर संताने सा० घड़सी भा० वीझलदे पु० जयता भा० जेतलदे पु० रणमल्ल सूहड़ युतेन आत्मपुण्यार्थ श्रीकुंथुनाथ बिंबं कारितं । श्रीउसवाल गच्छे कुकदाचार्य संताने श्रीकक्कसूरि पट्टे प्रति श्रीदेवगुप्तसूरिभिः ।।छः।।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
(२५३१ ) सं० १५३३ वर्षे मार्ग सुदि ६ शुक्र ऊकेश शातीय बहुरा गोत्रे सा० साजण भा० घेली पु० सा० जेसा भा० जसमादे पु० सा० फमण पेथा। जेला। सोनादि भ्रातृ युतेन फमणेन भा० पाल्हणदे सहितेन श्री आदिनाथ बिंब का प्र० श्री हर्षसुन्दरसूरिभिः ॥
(२५३२)
- श्री पार्श्वनाथादि पंचतीर्थी सं० १५४९ वर्षे वै० सु० ९ रवौ उसवाल बुहरा गोत्रे सहनण भा० नायकदे पुत्र गया भार्या जीवादे पुत्र नाथादि युतेन व पुण्यार्थ श्री पार्श्वनाथ बिंबं कारापितं प्रति० श्री खरतर गच्छे श्री जिनसमुद्रसूरिभिः धाड़ीवा। ज्येष्ठ वदि १ दिने
(२५३३ )
श्री कुंथुनाधादि पंचतीची सं० १५५९ वर्षे मागसिर वदि ५ सुचिती गोत्रे धमाणी शाखायां सा० तोल्हा भा० तोल्हसिरि पुत्र सा० हांसा भा० हांसलदे पुत्र सांडाकेन भा० सकतादे युतेन स्वपुण्यार्थ श्री कुंथुनाथ बिंब का० प्र० श्री उपकेशगच्छे श्रीदेवगुप्तसूरिभिः। नागपुर वास्तव्य ।
(२५३४)
श्री अजितनाथादि पंचतीर्थी संवत् १५९५ वर्षे माघ वदि २ बु० उस० डांगी गोत्रे सा० रूपा भार्या जीऊ पुत्र भीमा देवा छांछा देवा भार्या हीरू पुत्र आत्म पुण्यार्थ श्री अजितनाथ बिंबं कारापितं कनरसा (?कृष्णर्षि) गच्छे भ० श्रीजेसंघसूरिभिः । प्रतिष्ठिता शुभंभवतु। मादड़ी वास्तव्य ।।
श्री चन्द्रप्रमादि पंचतीर्थी सं० १४७८ वर्षे वैशाख सु० ३ शुक्र उसिवाल ज्ञातीय लोढा गोत्रे सा० डाहा भार्या गेलाही पु० सा० खल्ह भार्या खेताही पु० वीरधवल निमित्तं लघु भात्रि सा० वीरदेवेण श्रीचन्द्रप्रभ स्वामि बिंब कारापितं प्रतिष्ठितं रुद्रपल्लीय गच्छे भट्टारिक श्रीहर्षसुन्दरसूरिभिः।
(२५३६ )
श्री आदिनाथादि पंचतीर्थी सं० १५४२ वैशाख सु० ९ श्री ऊकेश वंशे। झोटि गोत्रे। सा० नानिग भा० वयजी पु० सहजा सावण मेघा स्तिद्र (?)पाल युतेन स्व पुण्यार्थ श्री आदिनाथ बिबं का। प्रतिष्ठितं श्री चैत्र गच्छे। म श्रीसोमकीर्तिसूरिभिः
( २५३७ ) सं० १४९९ ..... सा ...... क ......सातम्रभा ...... श्रेयसे श्री अरिनाथ (१) विंबं कारितं प्र० श्री........ .सूरिभिः
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बी का ने र की बृहत् झानभण्डार (बड़ा उपासर)
( २५३८)
शिलापट्ट पर श्री महोपाध्याय दानसागरादि पुस्तकभण्डार शिलपट्ट सं० १९५९ चै (?) सु । १ (?) १ भण्डार के सब ग्रन्थों का एक बड़ा सूचीपत्र है, जिसको सब कोई देख सकते हैं ॥ २ यदि कोई घर ले जाकर पुस्तक देखना चाहे तो पुस्तक का कुछ ही अंश दिया जावै पुरी पुस्तक किसी को नहीं दी जावेगी और दिये हुए पत्र पीछे आने पर दूसरे दिये जा सकेंगे। ३ भण्डार से पुस्तक परिचित पुरुषों को ही दी जावेगी ले जाने वाला ७ दिन से अधिक अपने पास पुस्तक नहीं रख सकेगा॥४॥ नकल उतारना चाहै तो यहाँ ही उतार सकता है पुस्तक को हिफाजत से रक्खे । ५ यदि ले जाने वाला और लिखने वाला बिगाड़ दे तो कीमत उससे ली जावेगी और ग्रन्थ भी उसको नहीं दिया जावेगा ॥६॥ ग्रन्थ देने के समय वा लेने के समय रजिष्टर में लिखा जायगा ॥७॥ ग्रन्थ देने-लेने का अधिकार संरक्षक को ही होगा। यह ज्ञानभण्डार उ। श्री हितवल्लभगणि स्थापितः ॥
धातु प्रतिमाओं के लेख ॥
(२५३९ )
श्री चन्द्रप्रभादि पश्चतीर्थी ॥ सं० १५७६ वर्ष वैशा० सु० ६ सोमे अहम्मदनगर वास्तव्य श्रीश्रीमाल ज्ञातीय ब० मयगल भा० माइणदे सु० ब० शहदत्तकेन भा० ललतादे सु० लाला लटकण जोधा प्रमु० कुटंब युतेन स्व श्रेयसे श्री चन्द्रप्रभु स्वामि बिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्री वृद्ध तपा पक्षे श्रीलब्धिसागरसूरि पट्टे श्रीधनरत्नसूरि भट्टा० श्रीसौभाग्यसागरसूरिभिः ॥
(२५४०)
श्री आदिनाथादि पंचतीर्थी ||सं० १५२४ वर्षे मा० वा बद २ सोम ऊ० भ० गोत्रे सा० सालिग भा० राजतदे पु० मा० जेसिंघ श्रावकेण श्रीआदिनाथ बिबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतर गच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः ।
उ. श्रीजयचन्द्रजी के ज्ञानभण्डार में
अष्टदलकमलाकार अथ शुभ संवत्सरेऽस्मिन नृपति श्री विक्रमादित्य राज्यात् १८९५ वर्षे मासोत्तम मासे फाल्गुन मासे शुक्ल पक्षे पंचम्यां तिथौ चन्द्रवासरे रेवती नक्षत्रे श्री बृहत् खरतर गच्छाधीश युगप्रधान भट्टारक श्री श्री श्री जिनसौभाग्यसूरिभिः विजयराज्ये श्री मागरचन्द्रसूरि शाखायां पं । प्र। श्री चतुरनिधान जो तशिष्य पं० । प्र.1 श्रीचन्दजी तस्य शिष्य पं० ईश्वरसिंहेन आल्म पुण्यार्थ अष्टदलकमल कारापिते श्री पिंडनगर मध्ये । श्री शुभ । श्री पातसाइजी रणसिंहजीराज्ये। ..
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उपाश्रयों के शिलालेख बड़ा उपाश्रय ( रांगड़ी का चौक )
( २५४२) उदय हुवै विदु भान इल मेरु मही ध्रम धाम । तां लग ध्रमशाला रतन अचल रहौ अभिराम ॥१॥ खरतराचार्य ग० उपाश्रय ( नाहटों की गुवाड़ )
( २५४३ ) स्वस्ति श्री संवत् १८४५ वर्षे शाके १७१० प्रवर्त्तमाने मासोत्तम मासे भाद्रवमासे कृष्ण पक्षे जन्माष्टमी तिथी रविवासरे महाराजाधिराज महाराजा श्री १०८ श्री सूरतसिंहजी विजयराज्ये भट्टारक श्री १०८ श्री जिनचंद्रसूरिजी विजयराज्ये उपाध्यायजी श्री ५ श्रीजसवन्तजी गणि वा० पद्मसोम पं० मल्लूकचन्द्र मुपदेशात् श्री बीकानेरी वृहत्खरतराचार्य गच्छीय समस्त श्रीसंघेन पौषधशाला कारापितं कृत्वा च उस्ता असमान विरामेन । श्रीरस्तुः । सीपानियों का उपाश्रय ( सिंघीयों का चौक )
( २५४४) सं० १८४६ वर्षे मिती माघ सित पूर्णिमा तिथौ २५ पं० श्री १०८ श्रीजसवन्तविजयजी तत सुशिष्य पंडित ऋद्धिविजय गणि उपदेशात् समस्त सीपानी संघेन उपाश्रय कारापितं ठाणे ११ चौमासा रह्या सवाई शुभकरण सूत्रधारेण कृतं ॥ लुका गच्छ का उपाश्रय ( सुराणों की गुवाड़)
( २५४५ ) १ स्वस्ति श्री ऋद्धिवृद्धिर्जयो मांगल्योभ्युदयः चास्तु ॥ सं० १८९५ शाके १७६० प्रवर्त्तमाने मासोत्तममासे फाल्गुन मासे शुक्ल पक्षे अष्टम्यां गुरुवारे स्वाति नक्षत्रे गंड योगे श्री मन्नृपति शिरोमणि महाराजाधिराज श्री १०८ श्री रत्नसिंह जी विजय राज्ये ॥ श्रीमद् वृहद् नागोरी लुका गच्छे पूज्याचार्य शिरोमणि पूज्याचार्य जी श्री १०८ श्रीलक्ष्मीचन्द्रजित्सूरिभिः महर्षि मानमलजी महर्षि भागचन्दजी महर्षि टीकमचन्दजी प्रमुख ठाणे १९ श्रीसंघ सहितेन पौषधशाला कारिता दरकाणा कासवकेन कृतः साचचिरं तिष्टतु । श्रीरस्तुः ।।
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लुका गच्छ का उपाश्रय ( सुराणों की गुवाड़)
( २५४६ ) २ स्वस्ति श्रीऋद्धिवृद्धि जयोमांगल्यमभ्युदयचास्तुः ॥ सं० १८८७ शाके १७५२ प्रवर्त्तमाने मासोत्तम मासे श्रावण मासे शुक्ल पक्षे पूर्णिमायां बुद्धवारे श्रवण नक्षत्रे आयुष्यमान् योगे श्री मन्नृपति शिरोमणि महाराजाधिराज श्री १०८ श्री रतनसिंहजी विजयराज्ये श्री वृहद् नागोरी लका गच्छे पूज्याचार्य शिरोमणि पूज्याचार्यजी श्री १०८ श्रीलक्ष्मीचन्द्रजित्सूरिभिः महर्षि श्री रामधनजी महर्षि श्री उमेदमलजी महर्षि श्रीपरमानन्दजी प्रमुख ठाणे ३१ श्रीसंघ सहितैः पौषधशाला कारिता दरखाण मानूजी सुत कासक्केन कृत साचच्चिरं तिष्टतु। यावन्मेरु महीपीठे यावश्चन्द्र दिवाकरौ । तावन्नदतु शालेयं सश्री कात् दिनं ध्रुवम् ॥ श्रीरस्तुः ।। श्री जिनकृपाचन्द्रसूरि उपाश्रय ( रांगड़ी का चौक )
(२५४७ ) अथ शुभाब्दे १९२४ शाके १७७९ चैतन्मिते ज्येष्ट मासे शुक्ल पक्षे पञ्चमी तिथौ गुरुवासरे। श्री मत्वृहत्खरतर गच्छे । जं यु । म ।प्र। श्री जिनसौभाग्यसूरीश्वराणामाझया श्री। कीर्तिरत्नसूरि शाखायां उ। श्रीअमृतसुन्दर गणि स्तच्छिष्य वा। श्री जयकीर्ति गणि स्तच्छिष्य पं० प्र० प्रतापसौभाग्य मुनि स्तदंतेवासिना पं० प्र० सुमतिविशाल मुनिनाऽयंशुभोपाश्रयः कारितः पं० समुद्रसोमादि हेतवे। बीकानेर पुराधीशः राजेश्वरः शिरोमणिः श्रीसरदारसिंहाख्यो नृपो विजयते तराम् १ यावन्मेरुमही मध्ये चाम्बरे शशि भास्करौ। तावत्साध्वालयश्चेषश्चिरं तिष्टतु शर्मदः २। कारीगर सूत्रधार । भीखाराम । श्री। यति अनोपचन्द्र जी का उपाश्रय ( रांगड़ी का चौक )
( २५४८) ॥सं० १८७९ मि । वै । सु । ३ । महाराजाधिराज महाराज श्रीगजसिंहजी महाराजाधिराज महाराज श्रीसूरतसिंहजी शरीर सुखार्थमियं वसुधा । श्री कीर्तिरत्नसूरि शाखायां उ । श्री अमरविमलजी गणि उ । श्रीअमृतसुन्दरजिभ्यः दत्ता तै कारितः रामपुरियों का उपाश्रय ( रामपुरियों की गुवाड़ )
( २५४९ )
चरण-पादुकाओं पर श्रीमत्वृहत्तपागच्छीय युगप्रधान श्री श्री १००८ श्रीपार्श्वचन्द्रसूरिजी का चरणपादुका । श्री महत्तपागच्छीय भट्टारक श्री श्री १००८ श्रीभातृचन्द्रसूरिजी का यह चरणपादुका । वीर सं० २४५३ वर्षे मिती आषाढ़ शुक्ला ९ दिने प्रतिष्ठापिते इमे चरणपादुके ओसपाल वंशे रामपुरिया गोत्रे मेघराजजी सुत उदयचन्द्रेण स्वद्रव्येण स्वपर कल्याणार्थ हम कै चरण पादुके कारापिते प्रतिष्ठापिते च ॥
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
दानशेखर उपासरा (रांगड़ी का चौक)
( २५५०)
(१) पृथवी तल मांहे प्रगटः बड़ा नगर बीकाण । (२) सुरतसींह महाराजजुः राज कर सुविहाण ॥१॥ ( ३ ) गुणी क्षमामाणिक्य गणिः पाठक पुण्यप्रधान । ( ४ ) वाचक विद्याहेम गणिः सुप्रत सुख संस्थान ॥२॥ (५) सय अठार गुणसट्ठ में महिरवान महाराज । (६) नव्य बनाय उपासरो दियो सदा थित काज ॥१॥
उ. जयचन्द्र जी के उपाश्रय का लेख
( २५५१ )
श्री गणेशाय नमः घर यति लक्ष्मीचन्द जी रो छ । सं० १८२२ आषाढ़ वदि १० दि
( २५५२ )
॥ श्री वीर सं०। २४२१ विक्रम संवत् १९५१ आश्विन शुक्ल पक्षे विजयदशम्यां श्री विक्रमपुरवरे श्री महाराजाधिराज गंगासिंहजी बहादुर विजयराज्ये चतुर्विंशतितम जगदीश्वर जैन दिवाकर पुरुषोत्तम श्री महावीर स्वामी के ६५ पाटे कौटिक गच्छ चन्द्रकुल वज्रशाखा श्री वृहत् खरतर विरुदधारक श्री जैनाचार्य श्रीजिनचन्द्रसूरीश्वरजी के अंतेवासी विद्यानिधान पूज्य पाठक श्री उदय तिलकजी गणि तच्छिष्य पूज्य पा०। श्री अमरविजयजी गणित । पु। श्री लाभकुशल जी गणि त । पु। श्री विनयहेम जी गणि ।ता पू । सुगुण प्रमोद जी गणि त । पू। श्री विद्याविशाल जी गणिः । त।पू। पाठक वर्तमान श्रीलक्ष्मीप्रधानजी गणिः उपदेशात् त । पं० मोहनलाल अपर नाम मुक्तिकमल मुनिना तत्वदीपक मोहन मण्डली सर्व संघस्य ज्ञान वृद्धयर्थ श्री जैन लक्ष्मीमोहनशाला नामकं इदं पुस्तकालयः कारापितं ।। दूहा ॥ जव लग मेरु अडिग है, जब लग शशि अरु सूर। तब लग या शाला सदा रहजो गुण भरपूर ॥१॥ हमारा सर्व मकान भण्डार किया पुस्तकादिक को कोई कालै कुशिष्य बेच सके नहीं।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
महोपाध्याय रामलालजी के उपाश्रय का लेख
( २५५३ )
॥ॐ ह्रीं । श्रीं । नमः ॥ ॥ ब्रह्मा विष्णु शिव शक्ति आदि स्वरूप श्री ऋषभ वीतरागाय नमः दादासाहिब श्री जिनकुशलसूरि संतानीय क्षेमधाड़ शाखायां श्री साधुजी महाराज पं ।प्र। श्रीधर्मशील मुनिः तशिष्य पं । प्र । श्री हेमप्रिय मुनि पं । प्र। कुशलनिधान मुनिः तत्शिष्य पं । प्र। श्री युक्तिवारिध रामलाल ऋद्धिसार मुनिना ओसवाल माहेश्वरी अग्रवाल ब्राह्मणादि समस्त बीकानेर वास्तव्य प्रजा के कुष्ट भगंदरादि अनेक कष्ट मिटाय कर ये विद्याशाला तथा ज्ञानशाला स्थापना करी है, इसमें सर्व मतों के पुस्तक का भण्डार स्थापन करा है, इसमें ऐसा नियम किया गया है कि पुस्तक तथा विद्याशाला कोई लेवेगा या बेचेगा सो सर्व शक्तिमान परमेश्वर से गुनहगार होगा चेला सपूतों की मालकी एक गद्दीधर को रहेगी अगर कपूताई करेगा दीक्षा लजावेगा तदारक पंच तथा कमेटी करेगी सं० १ १९५४ वै । शु। ५
उपकेश गच्छ का उपाश्रय
( २५५४ ) श्री गणाधिपते नमः । संवत १७९५ वर्ष वैशाख सुदी ३ तिथौ गुरुवार श्री मच्छी उपकेश गच्छे भट्टारक श्रीदेवगुप्तसूरिः। शिष्य भामसुन्दरजी तशिष्य पण्डित श्रीकल्याण सुन्दरजी लब्धिसुन्दरेण पौषधशाला कारापितं ।। श्रीरस्तु ।।
नाथूसर उपाश्रय लेख
( २५५५ ) ॥ संवत् १८११ वर्षे मार्गसिर मासे कृष्ण पक्षे १० तिथौ शनिवारे पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्रे ऐन्द्र योगे वणिजकरणे एवं पञ्चांग शुद्धौ वृहत्खरतर गच्छे भट्टारक श्री १०५ श्री श्री जिनलाभसूरि जी विजयराज्ये क्षेमकीर्ति शाखायां महोपाध्याय श्री १०५ श्रीरत्नशेखरजी गणि शिष्य मुख्य पं। प्र । रूपदत्तजी गणि भ्रातृ पंडित प्र० दीपकुअरजी भ्रातृ पं । प्र! महिमामूर्तिजी गणि लघु भ्रातृ पं । प्र । लक्ष्मीसुख तत्प्रशिष्य वा० हसरत्न गणि भ्राह पण्डित ऋद्धिरत्र भ्रातृ पण्डित ज्ञातकल्लोल भ्रातृ पण्डित मुनिकल्लोल तत्प्रशिष्य पण्डित युक्तिसेन भ्रातृ पण्डित महिमाराज सहितेन वा हस्तरत्न गणि कृतोद्यमेन नवीनाशाला कारापिता नाथूसर मध्ये। वारहट्ट खेतसीजी तत् भ्रात नथमल्लजी हिमतसंघजी लालचन्दजी सूर्यमल्लजी दौलतसंघजी सगतदानजी यखतसंघ जी भवानीसंघ सहाज्ये सा......संघ आज्ञाय पं । प्र। महिमामूर्ति गणि पुण्याय.....ल (पौषधशाल ) कारापिता । २०५५ (१) लागा
(हस्तलिखित पत्र से)
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
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धर्मशालाओं के लेख स्वधर्मीशाला ( रांगड़ी का चौक )
शिलापट्ट पर ॥ महोला रांगड़ी ॥श्री जैन श्वेताम्बर साधर्मशालाः ।।
॥श्री जिनवीर सं। २४२८ विक्रम सं। १९५८ मि । आषाढ़ शुक्ल चतुर्थी दिने श्री बीकानेर मध्ये महाराजा श्रीगंगासिंहजी बहादुर विजयराज्ये श्री बृहत्खरतर भट्टारक गच्छे श्री पूज्य महाराज श्रीजिनकीर्तिसूरिजी सूरीश्वराणामुपदेशात् महोपाध्याय श्रीदानसागरजी गणिः तशिष्य उ। श्रीहितवल्लभजी गणिः धर्मवृद्धि के तथा स्वपर कल्याण के अर्थ पं।प्र। श्रीखेतसीजी का शिष्य पंडित श्रीचन्दजी यति के पास से क्रीत भावे यह उपासरा लेकर इसमें सर्व संघ के सन्मुख पूजन उच्छव करके इसका नाम जैन श्वेताम्बरी साधर्मीशाला स्थापित किया इस खाते उ० श्रीमोहनलालजी गणि के शिष्य पं० जयचन्द्रजी मुनिवर की प्रेरणा से कलकत्ता मुर्शिदाबाद वाले श्रीसंघने पण अच्छी मदत दीनी है और श्रीसंघ मदत देते रहेंगे इसकी कुंची कबजा बड़े उपासरे के ज्ञानभंडार में सदेव कायम रहसी इसमें सदैव जैन श्वेताम्बर यात्री आवंगे सो उतरते रहेंगे सही ॥ सु॥ दसकत ॥ वंशी महातमारा ॥
( २५५७) ॥ श्री ॥ श्री गुरुभ्यो नमः ।। श्री वीर सं० २४३१ विक्रम सं०। १९६१ मिति श्रावण, सुद २ शनिवार दिने श्री बीकानेर साधर्मीशाला मध्ये सावणसुखा गोत्रे श्रीहीरचन्दजी तत्पुत्र पनालालजी कालूरामजी तत्पुत्र सुगनचन्दजी भैरूदानजी बंगले वालाने जैन सेतंबरियों के जात्री ठेरसी ये तीवारी बनवा के प्रतिष्ठित करी है। श्रीरस्तु शुभंभूयात् ॥
(२५५८)
चरणपादुकाओं पर ॥ शुभ सं। १९८१ का आ० कृष्ण ११ साधर्मीशाला उपदेशक उ। श्रीहितवल्लभ गणीश्वराणांपादुका कारित ॥ श्रीरस्तु नित्यं ॥
( २५५९ )
कोचरों के मन्दिर के पास ओं यह धर्मशाला रायबहादुर शाह मेहरचन्दजी कोचर की यादगार में पुत्र कृपाचन्द कोचर ने बणाई ॥ इसमें कुंड १ सेठ बहादुरमल जी अभैराज जी कोचर ने बणाया ॥ सम्वत् १९७७ सन् १९२० ईस्वी मारफत सेठ सोहनलाल कोचर सं० १९७७
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
( २५६०)
गोगा दरवाजा के बाहर ___ श्री गणेशायनमः आधरमशाला साधु संतना-रस वा मुसाफिर जा कारे ठार पौ वासतः । मुं। आसकरणजी कोचर आ धर्मशाला बनाई है सं० १९५० मिती आषाढ़ प्रथम सुद २ गुरुवारे ।
(२५६१)
बीदासर की बारी के बाहर केशरीचन्द बुलाकीचन्द ( बाँठिया ) की तरफ से धरमानन्दजी के उपासरे को भेंट।
( २५६२ )
लौका मच्छ की बगेकी ॥ श्री ॥ श्री गणेशाय नमः ॥ संवत् १८७६ शा. १७४१ प्रवर्त्तमाने मासोत्तम मासे माघ मासे शुक्ल पक्षे २ द्वितीयायां सोमवारे घट्यः २५ धनिष्ठाभे घट्यः ५५ सिद्धयोगे घट्यः २० कौलवकरणे एवं पंचांग शुद्धे दिने। श्री वृहन्नागपुरीय लुका गच्छे। पूज्याचार्य श्री १०८ लक्ष्मीचन्द्रजी विजयराज्ये। अमरसोत शाखायां पूज्य महर्षि श्री उदयचंद्रजी तच्छिष्य पूज्य महर्षि श्री राजसीजी तच्छिष्य पूज्य महर्षि श्री वीरचंद्रजितां पादुकाः शिष्यर्षि मोतीचंदजित् परमानन्दजिद्भयां प्रतिष्ठिताः। श्री मन्नृपति पति श्री सूरतसिंहजी विजयराज्ये। छत्रिकेयं दरखाण कासमकेन कृतासाचिरं तिष्ठतु ॥ श्रीरस्तुः ॥ कल्याणमस्तु ॥
॥ श्री ॥ श्री गणेशायनमः संवत् १८७६ शाके १७४१ प्रवर्त्तमाने मासोत्तम मासे माघ मासे शुक्ल पक्षे द्वितीयायां सोमवारे घट्या २५ धनिष्ठाभे घट्यः ५५ सिद्धयोगे घट्यः २० कोलवकरणे एवं पंचांग शुद्धे दिने श्री वृहन्नागपुरीय लुंका गच्छे पूज्य आचार्य श्री १०८ श्री लक्ष्मीचंद्रजी विजयराज्ये अमरसोत शाखायां पूज्य महर्षि श्री स्वामीदासजी तशिष्य पूज्य महर्षि श्री पुण्यसीजी तच्छिष्य पूज्य महर्षि श्री उदयचन्द्रजी तच्छिष्य पूज्य महर्षि श्री राजसीजी कानां पादुकाः पौत्रशिष्यर्षि मोतीचन्द्रजित् परमानन्द जिद्भयां प्रतिष्ठिताः श्री मन्नृपतिपति श्री सूरतसिंहजी विजयराज्ये ।। छत्रिकेयं कासम दरखानकेन कृता साचचिरं तिष्ठतु । श्रीरस्तुः ।।
(२५६४ ) श्री संवत् १८०७ शाके १७४२ प्रवर्त्तमाने मिती माघ शुक्ल ११ सोमवारे मृगशिर्ष नक्षत्रे पूज्य आचार्य श्री १०८ श्री जीवणदास जितां पादुका प्रतिष्ठिता पूज्याचार्य श्री लक्ष्मीचन्द्रजिद्भिः शाले चेयं महर्षि मोतीचंद जित् परमानंद जिदयां कारिता ।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
( २५६५ )
श्री संवत् १८९९ शाके १७६४ मितिमार्ग मासे कृष्ण पक्षे १ प्रतिपदायां अमरसोत शाखायां आर्याजी श्री जसूजितां पादुका पौतृका आर्या उमा प्रतिष्ठिताः ।
( २५६६ )
श्री संवत् १८९९ शाके १७६४ मिती मिर्ग मासे कृष्ण पक्षे १ प्रतिपदायां अमरसोत शाखायां आर्याजी श्री अमरां जितां पादुकां प्रपौत्रिका आर्या उमा प्रतिष्ठिता श्रीरस्तु ।
३६३
( २५६७ )
॥ श्री संवत् १८९९ शाके १७६४ प्रवर्त्तमाने मिती मार्ग मासे कृष्ण प्रतिपदायां अमरसोत शाखायां आर्याजी श्री उमेदाजित पादुका शिष्यणी उमा प्रतिष्ठित ||
( २५६८ )
श्री ॥ संवत् १८९९ शाके १७६४ प्रवर्त्तमाने मासोत्तम मासे मार्ग मासे कृष्ण पक्षे १ प्रतिपदायां शनिवारे श्रीवृहन्नागपुरीय हुंका गच्छे पूज्याचार्य श्री १०८ श्रीलब्धिचंद्रजी विजयराज्ये अमरसोत शाखायां पूज्य ६ महर्षि श्रीपरमानन्दजितः श्री १८९४ मिति वैशाख शुक्ल नवम्यां देवंगतः तेषां अस्मिन् शुभदिने पादुकाः शिष्यर्षि टीकमचंद सुजाणमल्लाभ्यां प्रतिष्ठिताः || श्रीरस्तु ॥
महादेव जी के मन्दिर में
( २५६९ )
श्री ऋषभदेव चरणाभ्योनमः ॥ सं० २८५२ मिती फाल्गुन सुदि १२ सोमवारे मु० श्रीप्रतापमलजी केन प्रतिष्ठा कृता
श्री सुसाशी माता का मन्दिर ( सुरागों का क्मेबी)
( २५७० )
शिलापट्ट पर
स्वस्ति श्री ऋद्धि वृद्धि जयोमांगल्योदयोश्चेतु श्री विक्रमनृपे कृतौ संवत् १९६१ शाके १८२६ प्रवर्त्तमाने मासोत्तम मासे फाल्गुनमासे धवल पक्षे ३ तृतीया दिने घटी २२ ३४ गुरुवासरे रेवती नक्षत्रे घटी १३ ४९ ब्रह्मयोग घटी ४।३४ गणकरण घटी २२।३४ श्री महाराजाधिराज श्री १००८ गंगासिंहजी विजयराज्ये सेसाणी माता रौ इदं मन्दिर सुराणा जुहारमल चुनीलाल
* यह लेख वेद प्रतापमलजी के कुएँ के पास उन्हीं के बनवाये हुए महादेवजी के मन्दिर में श्रीऋषभदेव भगवान के चरणों पर है। कुएँ के गोवर्द्धन पर ४८ पंक्ति का लेख महाराजा सूरतसिंह के समय का है जो घिस गया है।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
फूलचंदाणी तत्पुत्रस्य बादरमलेन स्वहस्ते कारापिता विधिपूर्वक महामहोत्सवे प्रतिष्ठाकारितं माता मूर्ति प्रतिष्टा पश्चात् समस्त सुराणा भाइपानां समर्पितं । देवी पूजनं कुरु । सैसाणी माता राय करज्योमुझ सहाय । बादरउभो वीनवे, द्योदरसण महामाय ||१|| दस्कत मुनिश्री १०८ श्री केसरी चंद्रेण शुभं भवतु कल्याणमस्तु
( २५७१ ) हाकिम सुराणों की बगेची
श्री गणेशाय नमः ॥ संवत् १८६१ वर्षे शाके १७२६ प्रवर्त्तमाने मासोत्तम मासे शुभे फाल्गुन मासे शुक्ल पक्षे तिथौ द्वितीयायां २ रविवासरे घट्य १६४४ उत्तरा भद्र पक्ष नक्षत्रे घट्य २०४९ शुक्ल माना पयोगे घट्य । ४।६ । एवं पंचांग शुद्धौ सुराणा साहजी श्री मलूकचंदजी तत्पुत्रेण श्री कस्तूरचंदजी कस्य छत्रिका पादुका स्थापिता प्रतिष्ठापिता चिरंतिष्ठतु ।
ed स्मारक लेखाः
( २५७२ )
संवत् १५५७ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ९ वृहस्पतिवारे श्री मातासती माणिक दे देवलोके गतः शुभं भवतु कल्याणमस्तु ॥
( २५७३ )
|| ६० || स्वस्ति श्री ऋद्धिवृद्धि हर्षो मंगलाभ्युदयश्च ।। संवत् १६६९ वर्षे वैशाख सुदि १४ शुक्रवारे श्री वैद्यगोत्रे मं । त्रिभुवन पुत्र में सादूल पुत्र मं । लाखण पुत्र मं । साधारण पुत्र मं । बीसा पुत्र मं० थिवरा पुत्र मं० रहा पुत्र मंत्री सिचियावदास भार्या सुजाण सती देवलोकेगतः शुभंभवतु लिखतं मथेन महेसः सूत्रधार माईदास ऊदा कते || कल्याणमस्तु || श्रीरस्तु ॥
( २५७४ )
श्री गणेशाय नमः स्वस्ति श्री ऋद्धि वृद्धिर्जयो मंगलाभ्युदयश्च ॥ संवत् १७५२ वर्षे शाके १६१७ फाल्गुन मासे शुक्ल पक्षे षष्ठी ६ तिथौ भौमवारे श्रीवीकानयरे वैद्य गोत्रे मंत्री श्री ऋषभदासजी तत्पुत्र गिरधरदास सती देवलोके गता बोथरा गोत्रे साह गोपालदास तत्पुत्री मृगासती देवगति प्राप्तिः शुभं भवतु उस्ताकाराइन सार कृत श्री ॥ श्री ॥
3
१. उस्तों की बारी के बाहर सुराणों वैदों इमसानों के बीच २, ३. उस्तों की बारी के बाहर-बैदों के स्मशानों के पास !
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
(२५७५) महाराजाधिराज महाराज श्रीकर्णसिंह जी विजयराज्ये ॥६० ॥ संवत् १६९६ वर्षे शाके १५६१ प्रवर्त्तमाने महामांगलिक चैत्रमासे शुक्ल पक्षे ४ तिथौ 'न वासरे अश्विनी नक्षत्रे धृत....गोत्रे गंगाजल पवित्रे सं। मानसिंघ पुत्र . देवीदास भार्या दाडिमदे देवंगतः श्री शुभं भवतुः ।।
(२५७६ ) ____ महाराजाधिराज महाराज श्रीकर्णसिंह जी राज्ये ॥६०॥ संवत् १७०७ वर्षे चैत्र सुदि १३ दिने चोरवेड़िया गो साह धनराज पुत्र रामसंह तत्पुत्र सा० छुवार पुत्र मानसिंह देवंगतः तस्या भार्या 'सती महिमादे देवलोके गतः श्री बोथरा गोत्रे साह दुर्जनमल पुत्री हाश्री देवंगतः सूत्रधार नाथा कृता ।।५
(२५७७ ) __ श्री गणेशायनमः ।। संवत् १७७७ वर्षे शाके १६४२ प्रवर्त्तमाने मासोत्तम माघ मासे शुक्ल पक्षे बीज तिथौ मुहत्ता श्रीभारमलजी भार्या विमलादेजी देवलोके गतः शुभंभवतु श्री ।।
(२५७८ ) श्री गणेशायनमः ॥ संवत १७०५ वर्षे ज्येष्ठ वदि ७ दिन गुरुवारे श्रीविक्रमनगर मध्ये राखेचा गोत्रे पूगलिया शाखायां साह तेजसीह पुत्र नारायणदास भार्या नवलादे सस्नेह अथ देवगतिः। बुचा गोत्रे रूप पुत्री नाम चीना उभयोकुल श्रेयष्कारिणी महासती जाताः श्रीरस्तु श्री शुभ भवतु।।.
( २५७९) श्री गणेशाय नमः ।। अभिप्सितार्थ सिद्ध्यर्थ पूजितोयः सुरासुरैः। सर्व विघ्नच्छिदे तस्मैः गणाधिपतये नमः.....श्री विक्रमादित्य राज्यात् संवत १७६४ वर्षे श्री शालिवाहन राज्यात् १६२९? प्रवर्त्तमाने महामांगल्यप्रद..... मार्गशीर्ष मासे कृष्णपक्षे सप्तम्यां ७ तिथौ अत्र दिने संघवी मलूकचंद्र जी तत्पुत्र आसकरण स्त्री महिम दिवंगतः पृष्टे सती कारिता ॥ श्री शुभंभूयात् श्री कारीगर जुरादेव कृताः ॥
( २५८०) श्री गणेश कुलदेव्या प्रसादात् अभीप्सितार्थ सिद्ध्यर्थ पूजितोयः सुरासुरैः सर्व विघ्न' छिदे तस्मै गणाधिपतये नमः ॥१॥ अथ शुभ संवत्सरे श्रीमन्नृपति विक्रमादित्य राज्यात् संवत्
४, ५, ७.८, उस्तों की बारी के बाहर-सुराणों के श्मशानों के पास ।
६. उस्तों की बारी के बाहर-सुराणों की बगीची।
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बीके 'नेर जैन लेख संग्रह १८५१ वर्ष शाके १७१६ प्रवर्त्तमाने आश्विन मासे कृष्ण पक्षे तिथि अमा बुधे घटी ७३ उफा नक्षत्रे घटी ६११२ शुक्लयोग घटी ४।११ किंस्तुन्न करणे एवं पंचांग शुद्धौ ओसवंशे ज्ञातौ सूराणा मैहकयोत साह सूरसंच जी पुत्र साहिबसिंघ तत्पुत्र कानजीकेन सह-धर्मपत्न्या महासती धाई नाम्न्यः साह मुणोत गंगाराम पुत्र्या सहगमनं कृतः सूत्रधार शुभकरण कृतः ॥
( २५८१) श्री गणेशायनमः अभिप्सितार्थ सिद्ध्यर्थ पूजितोयः सुरासुरै सर्व विघ्नच्छिदेत तस्मै गणाधिपतये नमः ॥१॥ स्वस्ति श्री राजराजेश्वर शिरोमणि महाराजाधिराज महाराज श्री १०८ श्री सूरतसिंह जी विजयराज्ये अथ शुभ संवत् १८६६ वर्षे शाके १७३१ प्रवर्त्तमाने मासोत्तम मासे ज्येष्ठ मासे शुक्ल पक्षे पूर्णिमायां सोमवासरे घटी १६३२ अनुराधा भेव १६।३० सिद्धयोग घ० ३३ बवकरणे एवं पंचांगशुद्धि हनिकमाणी सूराणा गोत्रे साहमेघराजजी तत्पुत्र साह सबलसिंघजी त बधु सबलादेव्या ज्येष्ठपुत्र चेनरूपस्य पृष्टे अष्ट वासरानन्तर मातृसती जातः तस्याश्च निज पुत्र पौत्रादिभिः छत्रिकेयं कारिता ॥ १०
( २५८२) संवत् १७३१ वर्षे शाके १५९६ प्रवर्त्तमाने महामांगल्यप्रद। आसाढ़ मासे शुक्ल पक्ष एकादशम्यां तिथौ ११ भृगुवासरे। श्री विक्रमनगर मध्ये श्री बहुरा गोत्रे श्री कोचर शाखायां महं श्रीभाखरसीजी पुत्र महं श्रीमानसंघजी पुत्र म० पारस देवगतः तद्भार्या महती पाटमदे महासती जातः संघवी श्रीदुर्जनमल पुत्री हीरा प्रीति सनेह महासती जातः ॥ शुभंभवतु ॥ कल्याणमस्तु ।'
( २५८३ ) सिद्ध श्री गणेशाय नमः ॥ संवत् १७४० वर्ष शाके १६०५ प्रवर्त्तमाने महामांगल्यप्रद वैशाख मासे शुक्ल पक्षे त्रयोदशी तिथौ शनिवारे स्वात नक्षत्रे शुभयोगे ओसवाल ज्ञातीय बोथरा गोत्रे शाह ताराचन्द तत्पुत्र ईश्वरदास भार्या महासती अमोलकदे देवलोक प्राप्ताः शुभं भवतु ॥ १२
( २५८४ ) ॥ सिद्ध श्री गणेशायनमः ।। संवत् १७५१ वर्षे शाके १६१६ प्रवर्त्तमाने महा मांगल्य प्रदायक आषाढ मासे कृष्ण पक्षे द्वादशी तिथौ १२ शनिवासरे कृतिका नक्षत्रे नराइणा मध्ये सिंघवीजी श्रीविजयमलजी देवलोके प्राप्ता तठा पछे अषाढ सु० २ गुरुवारे पुष्पनक्षत्रे श्री ९, १० उस्तों की बारी बाहर-सुराणों के श्मशानों में।
११ स्टेशन से गंगाशहर के मार्ग में यति हिम्मत विजय जी को बगीची। १२ जेल के कुएँ के पीछे
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यौकानेर जैन लेख संग्रह
३६७ बीकानेर खबरि आई तद गोलेछी पतिव्रता पीयसुखदेजी चिताप्रवेश कृता देवलोके प्राप्ता संवत् १७५३ वर्षे शाके १६१८ प्रवर्त्तमाने आसाढ मासे कृष्ण पक्षे त्रयोदशी तिथौ १३ बुधवासरे घटी २० रोहिणी नक्षत्रे पटी २१ गंज नाम जोगे घटी ३२ शुभ वेलायां छत्री प्रतिष्ठा करापिता शुभं भवतु | कल्याणमस्तुः ॥3
( २५८५) श्री गणेशाय नमः ॥ संवत् १७६४ वर्षे शाके १६३० प्रवर्त्तमाने महामांगल्य प्रदायके ज्येष्ठ मासे कृष्ण पक्षे त्रयोदशी १३ तिथौ शुक्रवासरे अश्विनी नक्षत्रे आउवा मध्ये सिंधवीजी श्री हणूतमल जो देवलोक प्राप्ता तठा पछे ज्येष्ठ सुदि ४ चतुर्थी तिथौ बुधवासरे पुनर्वसु नक्षत्रे श्री बीकानेर खबरि आई तद् घोड़ावत पतिव्रता सौभागदेजी चिताप्रवेश कृता । देवलोक प्राप्त । संवत् १७६७ वर्षे शाके १६३२ प्रवर्तमाने आषाढ़ मासे शुक्ल पक्षे चतुर्थी ४ तिथौ सोमवासरे अश्लेषा नक्षत्रे शुभ वेलायां छत्री प्रतिष्ठा कारायितम् ॥१४
श्री रामजी श्री गणेशाय नमः संवत् १८१० वर्ष शाके १६७५ प्रवर्त्तमाने मासोत्तम मासे श्रावण मासे किसन पक्षे एकादशी तिथौ ११ गुरुवारे घटी घटी ६० ₹ धृतनाम योग घटी ६५ रे...राखेचा गोत्रे साह श्री...चन्दजी देवलोक हुवा मासती ज़गीशादे मासती पीहरो सासरो दोयइ.......||१५
॥६॥ श्री गणेशाय नमः ।। संवत् १७२७ वर्षे ज्येष्ठ वदि ९ तिथौ चोपड़ा कूकड़ गोत्रे कोठारी कस्तूरमल पुत्र उत्तमचन्द भार्या उमादे सती देवलोके गतः ।।
( २५८८ ) श्री गणेशायनमः ॥ संवत् १७०५ वर्षे मगसिर वदि ७ दिने शनिवासरे पुष्य नक्षत्रे बोथरा गोत्रे साहकपूर तत्पुत्र उत्तमचन्द देवोगतः तत् भार्या गोत्ररांका जात नाम कान्हा सती देवोगतः।। शुभं भवतु ॥ किणमस्तुः महाराजाधिराज महाराज श्रीकर्णसिंहजी विजयराज्ये श्री बीकानेर नगरे ॥ श्री ॥ श्री ॥ श्री ॥ श्री ॥१७
१३, १४ जेल के कुएँ के पास विशाल छत्रियों में । १५ गंगाशहर रोड, पायचंदसूरिजी के पीछे स्मशानों में। १६ गोगा दरवाजा के बाहर-कोठारियों की बगीचे में । १७ गोगा दरवाजा के बाहर--श्री गौड़ी पार्श्वनाथ जी के बगीचे में।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
( २५८९ ) ॥६० ॥ श्री गणेशाय नमः ॥ संवत् १७२५ वर्षे शाके १५९० प्र० मांगल्यप्रद वैशाख बदि १३ तिथौ भौमवारे अत्र दिने पूरवं मेवाड़ देशे जावर नगरे पश्चात् सांप्रतं उठेउर। ओसवाल बहुरा अभोरा गोत्रे मांडहीया सा॥ श्री वसताजी पु० सा० केशवजी पु० सा० श्रीवीरजी पु० सा० श्री सुखमल देवलोके गतः श्री बीकानेर नगरे तस्य भार्या श्री सोभागदेजी। सूराणा गोत्रे ॥ सा० धरमदास जी पु० सा० दसूजी तत्पुत्री पीहर नाम बाई सदानी भरतार सह महासती जाता ।। राठ सतारखाण ईसा जाति झास ।। शुभंभवतु !! कल्याणमस्तु ।। १८
( २५९०) सिद्धि श्री गणेशाय नमः संवत् १७४२ वर्ष मिति फागुण सुदि ६ दिने मालू गोत्रे साह दूलीचन्द भारजा जगीशादे महगा सती देवलोके प्राप्ताः शुभंभवतु ॥ "
( २५९१ ) ॥६०॥ १६८७ वर्षे आषाढ़ प्रथम सुदि १३ दिने थावरवारे बहुरा गोत्रे ।। साह नगा भार्या नायकदे तप देवा भार्या दाडमदे तत्पुत्र कपूर भा। कपूरदे पुत्र दीपचन्द भा। दुरगादे सती साह मेहाकुल र पारख नी बेटी । २०
(२५९२ )
श्री गणेशाय नमः ॥६० ॥ स्वस्ति श्री गणेशकुलदेव्या प्रसादात् ॥ स्वस्ति श्री राजराजेश्वर शिरोमणि महाराजाधिराज श्री सूरतसिंघजी विजयराज्ये आसीत् शुभ संवत्सरे श्री मन्नृपति विक्रमादित्य राज्यात् ।। संवत् १८६० वर्षे शाके १७२५ प्रवर्त्तमाने महामांगल्यप्रद मासोत्तम श्रावण मासे शुभे पक्षे तिथौ ८ अष्टम्यां बुद्धिवासरे घटी १३ पल ४७ स्वाति नक्षत्र घटी २२ पल ५९ शुभ नाग्नियोग घटी ४२ पल २४ एवं पंचांग शुद्धौ अत्र दिने शुभ बेलायां उश वंशोद्भव छाजेड़ ज्ञातौ साहा जी श्री मल्लूकचन्द जी तत्पुत्र अनोपचन्दजी तस्यात्मज सरूपचन्दजी देवलोके गतः श्री हैदराबाद मध्ये तत्पृष्टे संवत् १८६० मिति आश्विन वदि १४ बुद्धिवार रै दिन मुधर्मपत्नी गंगा नारनिये गांरा। न सहगमन कृत ।। बेगाणी साहजी किनीरामजी की बेटी देवलोके गतः महासती हुयी श्री बीकानेर मध्ये तदुपर संवत् १८७५ वर्षे मिति आषाढ़ सुदि २ द्वितियायां अदितवार पुष्य नक्षत्र शुभ वेलायां छाजेड़ साह जी सूरतरामजी देवली छत्रिका प्रतिष्ठा कारिता तदुत्पन्नेन फलेन
१८ गोगा दरवाजा के बाहर-श्री पार्श्वनाथ जी के मन्दिर के पीछे १९ मोगा दरवाजा के बाहर- ढड्ढों की साल के पास, २० गोगा दरवाजा के बाहा- छाजेड़ों की बगीची में बिना स्थापित संगमरमर की देवली
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बीकानेर जैन लेख संग्रह छाजेड़ साहजी सरूपचन्दजी सगमनयो परिलोके सद्गतरस्तु ॥ यावद्गंगादयो नद्यां यावत् चन्द्रांक तारकः ॥ तावत देवली छत्रिका पृथिव्यामधितिष्टतु ॥१॥ श्रीरस्तुः ॥ कल्याणमस्तुः ॥शुभंभवतु।। सूत्रधार उसता हसनजी पुत्र अमर ॥ वधुसेन ॥ श्री कल्याणमस्तुः ॥२॥
. ( २५९३) श्री गणेशाय नमः ।। संवत् १७३७ वर्षे शाके १६०२ प्रवर्त्तमाने फाल्गुन मासे कृष्ण पक्षे नवमी तिथौ भृगुवारे नाहटा लूणा पुत्र मनहर पुत्र केशरीचन्द...मा सती श्री केशरदे बाई देवगतः शुभं भवतु ॥२१
(२५९४ ) श्री गणेशायनमः स्वस्ति श्री नृपति विक्रमादित्य राज्यात् संवत् १७२४ वर्षे शाके १५९० प्रवर्त्तमाने महामांगल्यप्रद मार्गसिर मासे कृष्ण पक्षे षष्ठी स्तिथौ सोमवासरे ॥ महाराजाधिराज महाराजा श्री श्री ५ कर्णसिंहजी महाराज श्रीअनूपसिंह विजयराज्ये ॥ नाहटा गोत्रे साह देवकर्ण तत्पुत्र पासदत्त सती मह देवलोके गता राजावल गोत्रे हुँदा पुत्री महासती वीरादेवी नाम || शुभं भवतु ॥ श्री श्री ॥२३
(२५९५) श्री गणेशायनमः ॥ अभिप्सितार्थ सिद्ध्यर्थ पूजितोयः सुरासुरैः सर्व विघ्नच्छिदेत्तस्मै श्री गणाधिपतये नमः ॥ १॥ अथ शुभ संवत्सरे श्रीमन्नृपति विक्रमादित्य राज्यात् संवत् १८५१ वर्षे शाके १७१६ प्रवर्त्तमाने मासोत्तम मासे मधु मासे कृष्ण पक्षे तिथौ दशम्यां सोमवासरे घटी ११॥ उत्तराषाढा नक्षत्र घटी ३३ परयतम योग घटी २४ बबकर्ण एवं पंचांग शुद्धौ अत्र दिने सूर्योदयात् घटी २८१७ तत् समये शुभ वेलायां ज्ञातौ दसराणी गोत्रे मुँहत्ताजी श्री गिरधारी लाल जी वैकुण्ठ प्राप्ति सत् गति भाज्या सपतनी सहत कावड़त चत्ररो वच्छराज जी बेटी सत् गति प्राप्ति हुई दसराणी गिरधारीलाल सागे सती नाम श्री चतरो सती वैकुण्ठ गतिः ॥ सैहर महेसने दै सतलोक प्रसहुआ शुभंभवतु ॥ २४
( २५९६) सं० १६८८ वर (थे ) सावण वदि १४ सती पदमसीरी २५
( २५९७ ) सं० १७१३ रा आसोज वदि ४ सती देवकरण री छै २६ २१ गोगा दरवाजा के बाहर-छाजेड़ों की बगेची में छत्री में २२ गोगा दरवाजा के बाहर--नाइटों के स्मशानों में २३. रेलदादाजी में पो के पास थी जो अब नाइटों की बगेची में है।
२४. घड़सीसर व नागणेची देवी के बीच जंगल में। २५, २६ श्री दानमल जी नाहटा की कोटडी में स्तंभ पर ।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
(२५९८ ) ॥ श्री गणेशाय नमः ॥ संवत १५८३ ः शाके १६४८ प्रवर्तमाने महामांगल्य प्रदायक आसाढ़ मासे शुक्ल पक्षे अमावश्यां तिथौ झुक्रवासरे रोहिणी नक्षत्रे श्री बीकानेर मध्ये भंडारी जी श्री मुकनदास जी देवलोक प्राप्ता। पतिव्रता मह,सुखदे जी चिता प्रवेश कृता देवलोक प्राप्ता संपत् १७८४ वर्षे शाके १६४९ प्रवर्त्तमाने ज्येष्ठ मासे शुक्ल पक्षे १३ त्रयोदशी तिथौ रविवासरे हमाति नक्षत्रे शुभवेलायां छत्री प्रतिष्ठा कारावितं ॥ श्री.
( २५९९ )
सतो स्मारक पर ॥स्वस्ति श्री ऋद्धि वृद्धि जयो मंगलाभ्युदयश्चः। संवत् १५२९ वर्षे । शाक १३९४ प्रवर्त्तमान महा मांगल्यप्रद माघ मासे शुक्ल पक्षे। पंचम्यां तिथौ सोमवारे श्री कोडमदेसर मध्ये श्री वहुरा गोत्र। साह रूदा पुत्र साह कपा देवलोके प्राप्ति। पी ( ? ५० प्री ) ति स्नेह अर्थेह सत्य जातः ॥ तद्भार्या नाम कउतिगदे माह सती ।। शुभं भवतुः ॥ श्री ॥ २८
मोटा व तो
( २६००) अमराणे तालाब पर पीले पाषाण की टूटी हुई देवली पर ॥ संवत् १६६४ वर्षे आसाढ मासे कृष्ण पक्षे ७ दिने गुरुवारे लं ( ? लु) कड़ गोत्रे साह भुंणा पुत्र रायसंघ लिखमीदास माता रंगा दे साह षीवा पुत्री जेठी बापणी देवलोके प्रापता शुभं भवतु कल्याणमतुः ( ? स्तुः) ॥
( २६०१)
मोर का मा संवत् १७२३ वर्षे मिली...दि ३ वार सोमः मोरखयाणा गाम-बोथरा गोत्रे वच्छावत स...भाटी। मंत्री नीबाजी पुत्र मंत्रि लखजी देवलोक परापतः त भरजा बहु लखमादः चोरवेढयाः साह पदम पुत्री ममना सती जाता श्री (शु) भं भवतुः कलणमस्तु श्री॥ ३.
२७ जेल के कुँए के पास लाल पत्थर की ८ स्तंभों वाली भग्न छबी में पीले पत्थर की देवली पर डॉ० एल० पी० टेसोटरी की छाप से।
२८. सह लेख डॉ. एल. पी. सीटी साहब के फाइल से प्राप्त हुभा है। २९ यह लेख भी डॉ० टेसीटरी की लीह छाप से उद्धस किया मया है। ३. मोरखाणे गाँव के कुँए के पश्चिम पीली देवली पर ( टेसीटरी साहब की छाप से।)
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
३७१
श्री सुसाणी माताजी का मन्दिर, मोरखोणा
(२६०२)
शिलापट्ट पर १॥॥ श्री सुसाणं कुलदेव्यै नमः ॥ मूलाधार निरोध बुद्ध फणिनी कंदादि मंदानिले (5)
नाक्रम्य ग्रहराज मंड२ लधिया प्राग्पश्चिमांतं गता। तत्राप्युज्वल चंद्रमंडल गलत्पीयूष पानोल्लसत् कैवल्यानुभन्या
सदास्तु जगदानं३ दाय योगेश्वरी ॥१॥ या देवेन्द्र नरेद्र वैदित पदा या भद्रता दायिनी। या देवी किल
कल्पवृक्ष समतां नृणां दधा४ . लौ । या रूपं सुर चित्तहार नितरां देहेस या विभ्रती। सा सूराणा स वंश सौख्य __ जननी भूयात्प्रवृद्धिंक५ री ॥२॥ तंत्रैः किं किल किं सुमंत्र जपनैः किं भेषजैर्वा वरैः। किं देवेन्द्र नरेन्द्र सेवनय
किं साधुभिः किं धनः। ए६ काया भुवि सर्व कारणमयी ज्ञात्वेति भी ईश्वरी। तस्याध्यायत पाद पंकज युगं तद्धथान
लीनाशयाः ॥ ॥ श्री भूरिर्द्धम७ सूरी रसमय समयांभोनिधे पारदृश्वा। विश्वेषां शश्वदाशा सुरतरू सदृश स्त्याजित प्राणि
हिंसां। सम्यग्दृष्टि....... ८ मनणु गुणगणां गोत्रदेवीं गरिष्ठां । कृत्वा सूराण वंशे जिनमत निरतां यां च कारात्म
शक्त्या ॥४॥ तद् यात्रां महता महेन९ विधिवहिलो विधावाखिले निर्गे मार्गण चातक पृणे गुणः सभारटक छटः। जातः क्षेत्र
फले अहिर्मरुधरा धारा१० धरः ख्यातिमान् संघेशः शिवराज इत्ययमहो चित्रं न गर्जिध्वजः ॥५॥
तत्पुत्रः सचरित्रे वचन रचनया भूमिराजः। ११ समाजालंकारः स्फार सारो विहित निजहितो हेमराजो महौजाः। चंग प्रोत्तुंग शृङ्ग
भुवि भवन मिदं देवयानो प१२ मानं। गोत्राधिष्टात देव्याः प्रसृमर किरणं कारयामास भक्त्या ॥६॥ संवत् १५७३ ___ वर्षे ज्येष्ठ मासे सित पक्षे पूर्णिमा - १३ स्यां शुक्रेऽनुराधायां पीमकर्णे श्री सूरणि वैशे सं० गोसल तत्पुत्र सं० शिवराज तत्पुत्र
सं० हेमराज सार्या सं० हेमश्री १४ पुत्र सं० धजा सं० काजा सं० नाहा सं० नरदेव सं० पूजा भार्या प्रतापदे पुन सं०
चाहड़ भा० पाटमदे पुत्र सं० रणधीर । १५ सं० नाथू सं० देवा सं० रणधीर पुत्र देवीदास सं० काजा भार्या कउतिगदे पुत्र सं०
सहमहल सं० रणमले।
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३७२
बीकानेर जैन लेख संग्रह १६ सहसमल पुत्र मांडण । पुत्र घेता पीमा। सं० नाल्हा पुत्र सं० सीहमल्ल पुत्र पीथा सं०
नरदेव पुत्र मोकला१७ दि सहितेन । सं० चाहड़ेन प्रतिष्ठा कारिता सपरिकरण श्री पद्मानन्दसूरि तत्पट्टे भ० श्री नंदिवर्द्धनसूरीश्वरेभ्यः ।
(२६०३ ) ॐ सं० १२२९ श्री. देव्या सुसाणेवि चैत्ये संप्राप्ती सेहलाकोट आगती भोइलाहिणि जावजीव देवि आराहितः ।
जूमारादि के लेख
( २६०४)
नाइटों की बगीची के सामने ॥ ॥ अबीरचंद जी मुकीम श्री भोमिया जी हुवा संवत् १७४७ चोकी पंचायती जणायत बोथरा मुकीमा री श्री बीकानेर ।
( २६०५ )
सुराणों की बगीची में ___संवत् १८०४ वर्षे मिती वैशाख सुदि ११ वार अदीत वैद गोत्रे.....दास जी...जूझार ऊपर देवल...
( २६०६ )
श्री उरजन जी कोचर की चौकी पर ॥श्री ॐ श्री ॥ इस चोतरे की चरणपादुका पूज श्री ५ दादाजी मु। जी श्री उरजन जी कोचर की है। कि जो सं० १६८४ में देवलोक हुए। इस चौतरे का आखिरी जीर्णोद्धार सं० १९९६ मिती दु० श्रावण सुदि ७ वार सोमवार को कोचरा की पंचायती से कराया गया ॥ श्री ॥ ॥ श्री॥
(२६०७ )
उरजन जी के चरणों पर श्री ॥ ॥ श्री ॥ चरणपादुका दादाजी मुं। जी श्रीउरजनजी कोचर ।
(२६०८)
ढढों की साल में मूर्ति पर संवत् १८४० वर्षे मिती कार्तिक सुदी पंचम्यां तिथौ। मंगलवासरे। श्री बीकानेर नगरे। बुहरा -गोत्रे। साह श्रीतिलोकसीजी तद्भार्या शीलालंकारधारिणी। पतिव्रता श्री तनसुखदेजी ब्रह्मदेवलोकमगमत् । तया पृष्टे पुत्र पदमसीजी। धरमसी। अमरसी। टीकमसी। केन इदं शालारत्नं कारापितम् त पृष्टे श्रीसंघ समक्षेन सहिरसारिणी कृता ।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
२७३ श्री दिगम्बर जैन मन्दिर (बीकानेर)
(२६०९) उत्तम क्षांति माद्यन्ते ब्रह्मचर्ज सुलक्षणे स्थापयेद शधी धर्म मुत्तमं जिन भाषितं ॥ १॥ संवत् १५६२ वर्षे फागुण वदि १३ शुक्रवासरे श्री काष्टा संघे माथुरान्वये पुष्कर गणे भ० श्री कुमारसेण देवाः तत्प? भ० श्री हेमचन्द्र देवाः तत्पट्टे भ० श्री पद्मनंदि देवाः तदम्नाये अग्रोतकान्वये मीतन गोत्र नसीरवादिया सा० वील्हा तद्भार्या वील्ही तयो पुत्रौ प्रथम चौ० भीखनुभा
भ्राता चौ० आटू भीखन भायातद्भार्या जडणी द्वितीय चात्र तयाः पुत्रध महणा बभूनूणा पृथ्वीमल्ल आद पुत्र आढा माना तेने इदं दत्रा लाक्षणिक यंत्र ॥
(२६१०) ___ संवत् १६६० वर्षे फागुण वदि ५ गुरुवारे चित्रा नक्षत्रे श्री मूल संघे भ० श्री प्रभाचन्द्र देवा स्त० भ० श्री चन्द्रकीर्तिम्नाय खंडेलवाल गोत्रे पाटणी सा० विजा तस्य पुत्र छज्जू टाहा जीवा छज्जू पुत्र सीहमल्ल हेमा खेमास्तां हेतं ॥
(२६११ ) संवत् १५४८ वर्षे वैशाख सुदि ३ श्री मूल सं० भट्टारक जी श्री भा० ( ? जि ) नु० चन्द्रदेव साह जीवराज पापरीवाल नित्य प्रणमति सहर मड्स श्री राजसी संघ
(२६१२) संवत् १९२६ मिती वैशाख सुदि ६.... माधोपुर भट्टारक श्री सुरेन्द्रकीर्ति घट (१) संघही मदलाल नित्यं प्रणमति
(२६१३ ) संवत् १५४८ वर्षे वैशाख सुदि ३ श्री मूलसंघे भट्टारक श्री मिनचन्द्र देव साह श्री जीवराज पापरीवाल नित्यं प्रणमति...
( २६१४ ) संवत् १५४८ वर्षे वैशाख सुदि ३ मूल संघे भट्टारक श्री जिनचन्द्र देवा साह श्री जीवराज पापरीवाल नित्यं प्रणमति...
ताम्र शासन लेखा
( २६१५ ) १ श्री लक्ष्मीनारायण जी
॥राम सही॥ ॥स्वस्ति श्री राजराजेश्वर महाराजाधिराज महाराजा शिरोमणि महाराजा जी श्री सूरत सिंहजी महाराज कुंवार श्री रतनसिंह जी. वचनान् श्री जी सायं परसन होय गाँव नाल में
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बीकानेर जैन लेख संग्रह दादैजी श्री जिनकुशलसूरि जी री पादुको छै तिणारी पूजा हुवै है सु जमी बीमा ७५० अखरे बीघा साढी सातसै डोरी बीसरी चढाई छै सो तलाव तेजोलाव रै लारली गाँव नाल सुं आधुणवै पासै री सांसण तांबापत्र कर दीबी छै सु दादेजी री पादुकावांरी पूजा दैहल बंदगी करसी सु जमी वाहसी जोड़सी वा मुकाते देसी तेरो हासल लेसी म्हारौ पूत पोतो पालीया जासी सं० १८७३ मिति वैशाख सुदि ९ वार सोमवार श्लोक ॥ स्वदत्तं परदत्ता वा ये हरंति वसुंधरा। ते नरा नरकं यांति यावश्चन्द्र दिवाकरो ॥१॥ स्वदत्त परदत्तं वा य पायंति वसुन्धराः। ते नरा स्वर्ग यांति यावश्चन्द्र दिवाकरो॥॥
(२६१६ )
श्री लक्ष्मीनारायण जी । सही स्वस्ति श्री राजराजेश्वर महाराजाधिराज महाराजा शिरोमणि महाराजा जी श्री श्री १०८ श्री सूरतसिंघ जी महाराज कुंवार श्री रतनसिंघ जी वचनात् श्री जी साहबां रे दुसमणां नै मांदगी आई सु श्री परमेश्वर जी री क्रिपा सुंवणारस बखतचन्द जी नै अस आयौ संपाड़ी कियौ तेरी खुशी उप्र श्री दरवार कृपाकर रोज १९०१) अखरे रुपीयो आधो आकरों श्री मांडही री गोलक में कर दीयौ छै सु औषा इयारो चेलौ पूत पोतो नुं सांसण तांबापत्र कर दीयौ छै सु पासी म्हारो पूत पोती हुसी सु पालीयां जासी कसर न पड़सी तलाक छै सांमत १८६४ मिति फागुण वदि ७ मुकाम पाय तखत श्री बीकानेर कोटे दाखल 55 55'
( २६१७ ) श्री परमेसर जी सत्य छै श्री मुरली मनोहर जी
श्री रामजी सही सिद्ध श्री ठाकुर राज श्री सवाईसिंघ जी कंवर मानसिंह जी लिखतु तथा जायगा १ कैवली गच्छं रा उपासर चढ़ाई पुनारथ दीनी तिणरी विगत पुठवाड़ तो वागरे मैने पेसतो जीवणी बाजू लुंका गच्छ रो उपासरो नै डावी बाजू मु॥ माना री हाट नै निकाल राजपथ तिको जायगा पुनारथ दीनी छै अय दत्तगं परदसग जईलोपते सुन्धरा ते ना मर जावतं यावत चन्द दिवाकराः संवत् १८५६ रा जेठ वदि ८ लिखतं सा मोहनदास गोगदास ।'
१-यह ताम्र शासन १४५७ इश्व के साइज का बीकानेर का बड़े उपाश्रय के भंडार में सुरक्षित है। २-यह १०॥x॥ इस का १४ पंक्ति वाला 'ताम्रशासन बीकानेर के बड़े उपाश्रयस्थ शानमण्डार में
--पराएका तासासम कंबली मच्छ के उपाश्रमेयो।'
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
३५५
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जे स ल मेर श्री पार्श्वनाथ जी का मन्दिर
( २६१८)
देवगृहिकाओं के द्वार पर संवत् १४७३ वर्षे चो० दीता सुतैः कर्मण पाउ ठाकुरसी जेठा शिवराज .. राज पाल्हाश्रापकः कारिता।
( २६१९) संवत् १४७३ वर्षे चो० कीता पुत्र लखा रामदेवाभ्यां कारिता देवप्रहिका ।
(२६२०) संवत् १४९३ वर्षे श्रेष्ठि मम्मणपुत्रेण श्रेष्टि जयसिंहेन स्वपुण्यार्थ कारिता देव (गृहिका)।
( २६२१ ) संवत् १४७३ वर्षे सा० पेथड़ पुत्र सचाकेन कारिता गणधर नयणा सुत सालिगेन चार्दा कारिता देवगृहिका माता राजी पुण्यार्थ ।
(२६२२) संवत् १४७३ वर्षे सं कीहड सं० देवदत्त उषभदत्त धाधा कान्हा जीवं....जगमाल सं० कपूरी माल्हणदे करमी प्रमुख परिवारण स्वपुण्यार्थ देवगृहिका कारिता ।
(२६२३)
(परिकर पर दोनों तरफ) (क) ॥६॥ संवत् १४७९ वर्षे श्री खरतर गच्छे श्रीजिनराजसूरि पट्टालंकार भट्टारक ____ श्री श्रीजिनभद्रसूरि प्रतिष्ठितम् । डागा सा. आल्हा कारित श्री आदिनाथस्य परिकर (ख) श्री जिनभद्रसूरि राजोपदेशात् डा० सा० मोहण पुत्र सा० नाथू सा० देवाभ्यां सा०
कन्ना सुत सा० नग्गा सा० चाल्हा चाचा सा० मंडलिक पुत्र काजा सा० कूड़ा पुत्र सा० वीदा जिणदास भादा प्रभृति श्राद्धैः...।।
( २६२४) संवत् १४७३ म. सा. सीहा पुत्रेण सम सोमा श्रावकेप कारिता ।
(२६२५ )
संवत् १४७३ डागा भोजा सुत मदा श्रावकेण निज भार्या मीणल दे पुण्यार्थ देहरिका
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बकिानेर जैन लख संग्रह
( २६२६)
__ मातृपट्टि का पर संवत् १४७३ वर्षे चैत्र सुदि १५ दिने उकेश वंशे डागा भोजा पुत्रेण सा० मेहाकेन स्वभार्या सनखत पुण्यार्थ श्रीचतुर्विंशति तीर्थकर मातृपट्टिका कारिता प्रतिष्ठिता श्रीखरतर गच्छालंकार श्रीजिनराजसूरि पट्टाभरणैः श्रीजिनवर्द्धनसूरिभिः भाग्यभूरिप्रभावपूरिभिः॥
(२६२७) संवत १४७३ वर्षे सा० तेजसी सुतेन क० देवीसिंहेन पुत्र बच्छराज जसहड़ादि सहितेन कारिता देवगृहिका धयरा...
(२६२८ ) सं० १४७३ वर्षे डागा कुंरपाल पुत्र सादाकेन स्वभार्या सूहवदे पुण्याथं कारिता पौत्र वरसीह ।
(२६२९ )
परिफर पर सं० १५१२ वर्षे श्रावण सुदि ९ भीमांगजेन सं० पारसेन थावर वयरा सहिते परिकरकारितं ।
( २६३०) सं० १४७३ वर्षे डागा महणापुत्रो...केन भायां गंगादे पुण्यार्थ ... ...।
(२६३१) सं० १४७३ वर्ष सा० रउला पुत्रेण सा० आपमल्ल श्रावकेण पुत्र पेथा भीमा जटा सहितेन भार्या कमलादे पुण्यार्थ कारितेयं ॥ श्री॥
(२६३२ ) सं० १४७३ वर्षे सा० धन्ना पुत्र स० अमर मोखसिंह सुश्रावकाभ्यां देवगृहिका कारिता
(२६३३ )
परिकर पर सं० १४७३ वर्षे श्री जिनभद्रसूरि प्रतिष्ठितं श्री संभव परिकरः सा. पारस सुश्रावकेण निज मातृ....दे पुण्यार्थ।
(२६३४) सं० १४७३ वर्ष श्रीकार खेता पुत्र सं० आल्हा सं० नाल्हा सुश्रावकाभ्यां स्वपुण्यार्थ कारिता देवगृहिका। लेखाइ २६३२॥
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
NERA
श्री पार्श्वनाथ जिनालय, (विहंगमदृश्य) जेसलमेर
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बीकानेर जन लेख संग्रह>>
बामहावानि
श्री मद्धति चिम यति मानवसानिरिए मानढNASEAN परिक्ष
LAB मानिस प्रीपिपरा
सचिन श्री प्रतिमा विद्याधरणगोपाल श्रामारिया श्रीमायाकाणावहति श्रीक्रायनरिक्षा
॥
॥
॥
यीयकामासवान प्रशासन श्रायशेमा
श्रीज
बादाम श्रीविदा
श्री दत्तप अपनगर प्रमहन प्रार्यधर्मप्राधगणि
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॥
॥
दयिमानामितविकपतिवाय श्री फलनिन प्राविस प्रासिंह श्रारियमित मिश्रा
BRIEFBE
भासपाताना श्रीयशन पर यात्रा श्रीवनिम्सर मालामा
श्रतिावम२ नाइनमाया पायायाम प्रकमारयम
श्रीको डिपप श्रीनाम श्रीसेन श्री दिलनिवार
Shrut Jane
BRELEB BBBBBEE BBBBBER BEE BEETE
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SUBSEB
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मारिणिति
मणप्राशवचति पालन प्राधिरजाहितदेवाशिम सन B a
रासतमा राप्रविषिराती
भासीहगिरिचती बासुमित
श्रीमान श्रीमान र श्रीदतक
श्रानना श्रीसंघपालिम प्रापर्यन
पट्टावली पट्टक, लौद्रबाजी, जेसलमेर
(श्री विजयसिंहजी नाहर के सौजन्यसे)
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(२६३५ ) सं० १४७३ वर्षे मं० देल्हापुत्र मं• हापू पुत्र मं० पाल्हा मन्त्री चउंडाभ्यां सपरिवाराभ्यां देवगृहिका कारिता।
( २६३६ ) सं० १४७३ वर्षे मं० देल्हा पुत्र मं० हापू पुत्र मं० चउंडा सुश्रावकाभ्यां सपरिकराभ्यां स्वपुण्यार्थ कारिता देवगृहिका।।
(२६३७ )
स्याहो से लिया संवत् १४७३ वर्षे भ० झांझण सुत गुणराज वीकम कालू कम्मा स्वपुण्यार्थ
(२६३८) संवत् १४७३ वर्ष भ लोहट भं. जैसा पासा वटउद ऊदाभ्यां जीवा पुण्यार्थ च कारिता देवगृहिका।
( २६३९ )
स्याही से लिखा संवत् १४७३ वर्ष भ० तीहुणा पुत्र देल्हा कुशला सुश्रावकाभ्यां पु० मांडण सिवराज कलिताभ्यां कारिता।
( २६४०) सं० १४७३ वर्षे भ० मूला पुत्र भ० भीमा सुश्रावकेण स्वपुण्यार्थ देवगृहिका कारिता ।
(२६४१) सं० १४७३ वर्षे भ० मूला (पुत्र) भ० देवराज सुश्रावकेण देवगृहिका कारिता ।
(२६४२)
प्रतिमा पर भ० दूदाकारितं प्रतिष्ठितं श्री जिनभद्रसूरिभिः ।
( २६४३ )
प्रतिमा पर भ० हरा का प्रतिष्ठितं च जिनभद्रसूरिभिः ।
( २६४४)
प्रतिमा पर दूदा कारितं प्रतिष्ठितं च श्री जिनभद्रसूरिभिः ।
( २६४५) संवत् १४७३ वर्षे गो० वाहडपुत्र माम सारंगाभ्यां पुत्र महिराज जटा सीहा साइर जसधवल सुताभ्यां स्वमातृ हीरादे पुण्यार्थ कारिता।
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(२६४६ )
स्याही से लिखा सं० १४७३ वर्षे गो० गुणिया पुत्र धना नउला को (ला) प्रमुख परिवार युतेन पुण्यार्थ देवगृहिका कारिता।
(२६४७ ) संवत् १४७३ वर्षे सा० सुंटासुत रामसिंहेन पुत्र गुणराज वस्ता सहितेन कारिता ।
( २६४८) संवत् १४७३ वर्षे सारंग पुत्र जइता जेसा राणा श्रावकैः निजमातृ पूनादे जइता भार्या जाल्हदे पुण्यर्थ कारिता।
( २६४९) संवत् १४७३ वर्षे सा० पासा पुत्र जयाकेन स्वपुण्यार्थं देवगृहिका कारिता ।
(२६५०) सं० १४७३ वर्षे सा० सूहडा पुत्र....सं० जिणदत्त रत्नपाल कलितेन कारिता देवगृहि ॥
( २६५१) सं० १४७३ साधुशाखीय जेठू नेमा हेमा श्रावकैः नेमा कलत्र नागलदे पुण्यार्थ कारिता ।
(२६५२) सं० १४७३ वर्षे परी० साहल पुत्र सीहाकेन पुत्र समधर वीका नरवद सहितेन मातृपितृ पुण्यार्थ शांतिनाथ देवगृहि कारिता।
(२६५३ ) सं० १४७३ वर्षे ..र पुत्रो मेघ......परिवार सहितैः मि० गूजर मातृ रामी भगिनी भरमी पुण्यार्थ.....।
( २६५४ )
परिकर पर सं० १४७३ वर्ष चैत्र सुदि १५ दिने सा० सोम...स्व पितृव्य....!
(२६५५ ) संवत् १४७३ वर्ष ५० सामल पोला कूपा करणा लाला श्रावकः पितृ सुहडा मातृ सिंगारदे पुण्यार्थ आदिनाथ देवगृहि कारापिता ।
सं० १४७३ वर्षे प० पूना भार्या पूदी श्राविकया निज पुण्यार्थ देवगृहि गृहिता फ० ६००) व्ययेन कारितं।
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(२६५७) सं० १४७३ परी० गूजरपुत्र पदमसिंहेन नरपाल हापा सुरपति सहितेन निज भार्या पदमलदे पुण्यार्थ कारितः ।
( २६५८ )
परिकर पर सं० १४७३ वर्ष चैत्र सुदि १५ दिने साधु शास्त्रीय सा०....सा. जइरा मान रामी पुण्यार्थ.... देव विवं कारितं प्रतिष्ठितं...श्री जिनवर्द्धन ...
( २६५९ ) संवत् १४७३ वर्षे भंडारी चांपा पुत्रेण भ० घडसीकेन स्वमातृ वाल्ही पुण्यार्थ कारिता च देवगृहिका।
( २६६०) ___ सं० १४७३ भण? मूलदेव पुत्र ऊदा सूरा वीसा जेसल मेहाकैः तन्मध्य पौत्र जइता पूनाभ्यां मूलदेव ऊदा सूरा पुण्यार्थं कारिता ।
( २६६१ )
सं० १४७३ वर्ष भंडारी सोनाकेन स्वपितृ हरिया पुण्यार्थं च श्री देवगृहिका कारिता ।
( २६६२ )
स्याही से
संवत् १४७३ वर्ष चइइत्र सुदि १५ दिने वाघचार । सा० वीला सुत गुणियादेहरा पन्यारथ ।
संवत १४७३ चैत्र सुदि १५ रुपा साइर राऊल साधा सहजा पिता ज० हरीया नरिया डागसिंह सुत पुण्यार्थं ।
(२६६४) सं० १४७३ वर्षे चैत्र सुदि १५ सा० सूरा पुत्रसा ( रत) तेन आना पुत्र सजणं अजित मूला पुण्यार्थ।
१४७३ मथूडा गोत्रीय सा० झांझणपुत्र मांगट पुत्री सिरियादे कारिता देवगृहिका।
(२६६६ ) से० जल्हणपुत्र नीमा साधलथू श्रावक ! पुत्र भारहादि सहितैः सं० १४७३ देहरि कारापिता।
(२६६७ ) संवत् १४७३ मीनी नाथू भार्या धर्मिणी श्राविकया पुत्र सारंग सहितया कारिता ७४ श्री अजितनाथ ।
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( २६६८)
परिफर पर संवत १५०६ वर्षे श्री जिनभद्रसूरि सद्गुरुपदेशेन सा० रतना पुत्र सा० साजण सा० मूला संसारचन्द्र श्रावकैः परिकरः कारितः स्थापितश्च वा० रत्नमूर्ति गणिना।
(२६६९) सं० १४७३ वर्षे दरडा हरपाल पुत्र आसाकेन पुत्रपाल्हा मांडणादि पौत्र. . .कारितः ।
( २६७०) सं० १४७३ वर्षे दरडा हरपाल पुत्र कान्हडेन पुत्र भारमल्ला. . .पौत्र भुजवलादि युतेन कारिता ७४ श्री शांतिनाथ...
( २६७१) १४७३ चो० भुणा पुत्र मोखरा पुत्र देवदत्त तेजाभ्यां पुत्र रूपा जिणदास भाडा युतेन का। श्री शान्तिनाथ
सं० १४७३ वर्षे ता० समरापुत्र देया जगसीह सज्जा तोला मेला श्रावकैः पुण्यार्थ देवकुलिका कारिता शुभंभवतु।
( २६७३ ) संवत् १४७३ वर्षे प्राग्वाट ऊदापुत्र साखरेण स्वभार्या जवणादे पुण्यार्थ देवगृहिका कारितः ।
(२६७४)
सभामण्डय बाई और परिकर पर सं० १४९३ वर्ष श्री खरतरगच्छे जिनभद्रसूरि प्रतिष्ठितं श्री नमिनाथ सिंहासनं कारितं चो. सं० सिवराज सा० महिराज सा० लोल सा० लाखणाद्यैः ।
(२६७५)
सभामण्डप में पादु ओं पर ॥६०॥ संवत् १५८७ मार्गशिर वदि दिने श्री खरतरगच्छे श्री जिनसमुद्रसूरि पट्टालंकार श्री श्री जिनहंससूरीश्वराणां पादुके तशिष्यैः श्री जिनमाणिक्यसूरिभिः प्रतिष्ठिते कारितेच चो तेजा भार्या राजू पुत्र श्रीवंत सुश्रावकेण ॥
( २६७६) ...श्रावकः स्वपितृ मातृ श्री जिनवर्द्धनसूरि गुरुभिः ।
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(२६७७ ) संवत् १६१२ वर्षे कार्तिक सुदी ४ दिने शनिवारे ॥ रवि योगे श्री जिनमाणिक्यसूरिणा पादुके कारिते चो० थिराख्येन सपरिकरण प्रतिष्ठिते च श्री जिनचंद्रसूरिभिः शुभमस्तु श्री ।।
(२६७८ )
प्रतिमा पर ...पित मातृ झावा खीमि......वर्द्धनसूरिभिः ।
(२६७९)
पादुकाओं पर सं० १५९५ वर्षे माह"द ६ दिने शुक्रवार श्री जेसलमेरू....चोपड़ा गोत्री सं लाखण पौत्र सं० पूनसी सं० समंताभ्यां पुत्र सं० सिद्धा सं० पादा सं० हेमा सं० सिरा सं० खेमा प्रमुख युताभ्यां श्री आदिनाथ. . .मंडापितं श्री शत्रुजयोपरि।
(२६८०) __ संवत् १५२७ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ८ सोमे श्राविका मूजी श्राविका सपूरी श्रा० फालू श्रा० रतनाई पुण्यार्थ श्री वासुपूज्य चतुर्मुख बिंब कारतं प्र० श्री खरतर गच्छे श्री जिनहर्षसूरिभिः ।
( २६८१ )
धातु पंचतीर्थी सं० १५७५ वर्षे आसोज सुदि ९ दिने उकेश वंशे गोलवछा गोत्रे सा० वीरम भार्या सा० धनी पुत्र सावरा चोला सूजादि पुत्र पौत्रादि परिवृत्तेन श्रेयो) श्री शांतिनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्री जिनहससूरिभिः ।।
( २६८२ )
पीले पाषाण की मूर्ति पर ( चौक में ) संवत् १५१८ वर्षे ज्येष्ठ वदि ४ दिने (म) डा० पुत्र नाथूकेन समातृ वीरमती पुण्यार्थ पार्श्वनाथ बिंब कारितं प्रतिष्ठित श्री जिनचन्द्रसूरिभिः ।
(२६८३ ) मं० गाजड़भार्या खेमाइ भरांवित
(२६८४ ) सं० १५१८ वर्षे ज्येष्ठ वदि ४ दिने संखवाल गोत्रे सा० जेठा पुत्र सं० मेहा गुणदत्त चापादि परिवार स० स्वमातृ जसमादे पुण्यार्थ श्री सुमति विबं कारितं "खरतरगच्छ श्री जिनचं..
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(२६८५) संवत् १५१८ वर्षे ज्येष्ठ बदि ४ दिने ऊकेशवंशे संखवाल गोत्रे सा० केल्हा भार्यया केल्हणदे श्राविकया-त धन्ना पता माल्हादि परिवार सहितया श्री शांतिनाथ बिंबं कारितं प्र० श्री जिनचंद्रसूरिभिः श्री कीतिरत्नसूरि प्रमुख परिवार सहितः
(२६८६ ) संवत् १५१८ ज्येष्ठ वदि ४ दिने संखवाल गोत्रे सा० जेठा पुत्री (सं० महतु) पुण्यार्थं श्री शांतिनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं स्वरतरगच्छे श्री जिनचंद्रसूरिभिः श्री कीर्तिरत्नसूरि प्रमुख परिवार सहितः
(२६८७) सा० केल्हा पुत्र धना भार्या कारितं श्री शीतलनाथ श्री संभवनाथजी का मंदिर
(२६८८ )
मूर्तिपर श्रीसत्यपुरे मं० आसारूपा
(२६८९)
२४जिनपट्टिका सं० १४९७ वर्षे मार्ग वदि ऊकेश वंशे चोपड़ा गोत्रे सापुत्रेण ठाकुरसी भात के .. पासाकाल' ....... पेथादि युतेन
(२६९०) ___ सं० १५१८ वर्षे मिति वैसाखसुदि १० दिने थुल्ल गोत्रे सा० जिण पुत्र सं० सुखराजपुत्र-सहितेन श्री वासपूज बिम्ब कारितं प्र० श्री जिनचंद्रसूरिभिः
( २६९१) श्री खरतर गणे श्री जिनभद्रसूरि प्रतिष्ठितं श्री पार्श्वनाथ बिम्ब परिकरः कारि सहितेन सं० १५०५ वर्ष ज्येष्ठ
(२६९२)
४ संयुक्त स्फटिक प्रतिमा के सिंहासन पर ॥६०॥संवत १४८४ वर्षे वैसाख वदि पंचमी दिने कूकडा गोत्रीय म० पादा पु० साल महीपाल'तत्पु० सा.' 'भा० लीली तदंगज सा वीर-सुश्रावका पुत्र सा० वीरम सा दूल्हा पौत्र कर्मसीहादि परिवार युतेन बिंब चार युतः श्री प्रासाद कारितः प्रतिष्ठितः श्रीखरतर श्री जिनराजसूरि पट्टे श्रीजिनभद्रसूरिभिः ।।
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arrer जैन लेख संग्रह
( २६९३ )
सं० १४९७ वर्षे श्रीजिनभद्रसूरि प्रसा० रिणधी कारितं श्रीपार्श्वनाथ सिंहासन ।
( २६९४ )
संवत् १४९७ वर्ष श्री जिनभद्रसूरि प्रतिष्ठितं. पुत्र सा० रूपा श्रावण ॥
( २६९५ )
संवत् १५०६ वर्षे श्री खरतर गच्छे श्री जिनभद्रसूरि विजयराज्ये श्री नेमिनाथ तोरण कारितं । सा० आपमल्ल पुत्र सा० पेथा तत्पुत्र सा० आसराज तत्पुत्र सार खेता सा० पाताभ्याम् निज मातृ गेली श्राविका पुण्यार्थं ।
( २६९७ ) तोरण पर
३८३
'नथ बिंबस्य परिकरः कारित सा० नेता
( २६९६ )
संवत् १४९७ वर्षे श्रीखरतरगच्छे श्री जिनभद्रसूरि प्रतिष्ठितं श्री शांतिनाथ बिंब परिकरः कारित सा० अजात सं० मेरा भार्यया नारंगी श्राविकया वा० रत्नमूर्त्ति गणिना मुप ।
( २६९८ )
परिकर
संवत् १५१८ वर्षे ज्येष्ठ वदि ४ श्री खरतरगच्छे श्री जिनभद्रसूरिणा प्रसादेन श्री कीर्त्तिरत्नसूरिणां आदेशेन गणधर गोत्रे सा० नाथू भार्या धतृ पुत्र सा० पासड सं० सच्चा सं० पासड भार्या प्रेमलदे पुत्र सं० श्रीचंद श्रावकेण भार्या जीवादे पुत्र सधारण धीरा भगिनी विमलीपूरी परूले प्रमुख परिवार सहितेन बा० कमलराज गणिवराणां सदुपदेशेन श्रीवासुपूज्य बिबं तोरणं कारितं प्रतिष्ठितम् च श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरि पट्टालंकार श्रीजिनचंद्रसूरिभिः ॥ उत्तमलाभ गणि प्रणमति ।
सं० १४९७ वर्षे श्री खरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरि प्रतिष्ठितम् सा० पासड सं 'वासुपूज्यस्य परिकरः कारितः सा० पासडे पुत्र सा० - ( जीचंद्र ) श्रा - पुत्र सधारण सहितेन वा० रत्नमृति गणिना मुपदेशात् शुभंभूयात्
( २६९९ )
सं० १५३६ फाल्गुन सुदि २ दिने श्री खरतर गच्छे
( २५०० ) सपरिकर मूर्ति
सं० १५१८ वर्षे ज्येष्ठ वदि - दिने फोफलया गोत्रे साद पुत्र द दत्त धणदत्त कारिता सला. प्रतिष्ठिता श्री खरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरि पढ़े श्री जिणचंद्रसूरिभिः ।
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(२७०१) संवत् १५१८ वर्ष ज्येष्ठ . . . . 'रंग मंडलीकादि परिवार सहि · 'सहसा श्रावकेण सं० महिराज पुण्यार्थ सूत्रधार सांगण घटितं।
त्रिभूमिया चौमुख पर A. विक्रम संवत् १५१८ वर्षे श्री जेसलमेर महादुर्गे राउल श्री चाचिगदेव विजयि राज्ये ऊकेश वंशे चोपडा गोत्रे सा० हेमा पुत्र पूना तत्पुत्र दौता तत्पुत्रपांचा तत्पुत्र सं० सिवराज सं. महिराज सं० लोला तद बांधवेन सं०.......
___B. सूहवदे सुत्र सं० थिरा सं० महिराज भार्या महिगलदे पुत्र सहसा साजण सं० लोला भार्या लीलादे पुत्र सं० सहजपाल रत्नपाल सं० लाखण भार्या लखमादे पुत्र सिखरा समरा माला मोढा सोढा कउंरा पौत्र ऊधा श्रीवत्स सारंग सद्धा श्रीकरणं ऊगमसी सदारंग भारमल्लसालिग सुरजन मंडलिक पारस प्रमुख परिवार सहितेन वा० कमलराज गणिवराणां सदुपदेशेन मातृ रूपी पुण्यार्थ श्री कल्याण त्रय ।
C. श्रीसुमति बिंबानि कारितानि प्रतिष्ठितानि श्री खरतरगच्छे श्री जिनभद्रसूरि पट्टालंकार श्री जिनचंद्रसूरिभिः। वा० कमलराज गणिवराणां शिष्य वा० उतमलाभ गणि प्रणमति ।
(२७०३ )
पादुका लेखसंवत् १५१८ वर्षे ज्येष्ठ वदि ४ दिने ऊकेश वंशे कूकडा गोत्रे चोपडा शाखाया सा० पांचा पुत्र सं० सिवराज महिराज पुत्र लोला बांधवेन सं० लाखण सुश्रावकेण पुत्र सिखरा समरा माला महणा सहणा कउंरा पोत्र श्रीकरण उदयकरण प्रमुख परिवार सहितेन श्री आदिनाथ पादौकारे वो प्रतिष्ठिता श्री खरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरि पट्टालंकार श्रीजिनचंद्रसूरिभिः ॥
( २७०४ )
प्रतिमा पर सा० सहसा साजण श्रावकाभ्यां महिगल पुण्यार्थ
(२७०५)
पंचतीर्थी सं० १४८५ वर्षे प्राग्वाट व्य० गुणपाल भार्या सती पुत्र व्य० महिंदा गलाभी भार्या श्रीयाद पुत्र चाचादि युताभ्यां पूर्वज श्रेयोथं श्री पार्श्वनाथ बिंबं कारिता प्र० श्रीसूरिभि : भी शीतलनाथ जी का मन्दिर
( २७०६)
गर्भगृह सं० १९२८ मि० माष सुदि १३ प्र. जं. यु० प्र० भ० श्री जिनमुक्तिसरिभिः हत्खातर गच्छे कारापिते श्री जे......... ..................(पाषाण प्रतिमा-पची में दवा)
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
( २७०७)
पंचतीर्थी संवत् १६२५ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १० दिने ऊकेश वंशे वावड़ा गोत्रे मं० चणराज तत्पुत्र साल चांपसी तत्पुत्र सा० सुरताण वर्धमान सा० धारसी भार्या कोडिमदेव्या श्री शान्तिनाथ बिब कारापित......पुण्यार्थ प्रतिष्ठितं श्री खरतर गच्छे श्री जिननम्यूरिभिः
( २७०८ )
समामण्डप में संमत १५१८ वर्ष ज्येष्ठ बदि ४ दिने छाजड़ गोत्रे.
( २७०९ ) संवत् १५१८ वर्षे ज्येष्ठ बदि ४ दिने श्री आदिनाथ ........
(२७१०)
पंचतीर्थी संवत् १५३४ वर्षे चैत्र बदि १० रवौ श्री ओएस वंशे। सा० ठाकुर भा० रणादे पुत्र सा० सहिदे सुश्रावकेण भार्या सूरमदे पुत्र लाखण भ्रातृ सा० जेसा वीक्रम सहितेन स्व श्रेयो श्री सुमतिनाथ बिंब करितं प्रतिष्ठित श्री पूर्णिमापक्षे श्रीसूरिभिः
(२७११)
पंचतीर्थी सं० १५३६ फागुण सु०.३ ऊकेश वंशे परीक्ष गोत्रे सा० मूला भा० अमरीपुत्र सा० मलाकेन भा० हरखू पुत्र मेरा देसला दि परिवार युतेन श्री सुविधिनाथ बिंब का० प्र० खरसर गच्छे श्रीजिनभद्रसूरि पट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः
भी अष्टापद जी का मन्दिर
(२७१२) संवत् १५३६ वर्ष फागुण सुदि ३ दिने श्री उकेश मंशे कूकड़ा भोपड़ा गोवे सा• पाँचा भार्या रु.... पुत्र सं० लाखण.... सिखराफेन सं० समरा सं०.....सुहणा......भार्या सवीर...
(२७१३ ) सं० १५३६ वर्षे फागुण सुदि ३ दिने ऊकेश वंशे संखवाल गोत्रे सं० मेथा भार्या पूमादे पुन आसराज पुण्यार्थ पुत्र सं० खेताकेन...बीदा सा० नो...परिवारयुत...
(२७१४ ) सं १९३६ वर्षे फागुण सुदि ३ दिने श्री ऊकेश वंश श्री संखवाल गोचे सं० आसराज पुत्र संखेता केन...
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
(२७१५) सं० १५३६ फा० सु० ३ उकेश वंशे श्रे० रांका गोत्रे श्रे० रूपा.....पुञ्या.. हिणि...प्र० श्रीजिनचंद्रसूरिभि :
( २७१६) सा० माणिक सिवदत्त श्री शीतलनाथ
सं० १५७८ आषाढ़ सुदि ९ उकेश वंशे परीखि गोत्रे सा० वीदा पुण्यार्थ पुत्र प० राजा पौत्र...जेन कारित। पा० गुणराज कारित शिवराज सहितेन श्री पार्श्वनाथ बिंबं प्रतिष्ठितं श्री जिनसमुद्रसूरि पट्टे श्रीजिनहंसूरिभिः
( २७१८ ) अमरी पुण्यार्थ श्री अजितनाथ
(२७१९) संवत् १९२८ का मि० माघ सुदि १३ गुरौ श्री मुनिसुव्रत बिंबं श्री० ज० यु० प्र० भ० श्री जिनमुक्तिसूरिभिः कारापितं च....
(२७२०) संवत् १५१८ वर्षे ज्येष्ठ बदि ४ दिन सं० माल्हा भार्या माणकदे पुत्र म० नाथू श्रावण पुत्र डूंगर सुरजा प्रमुख परिवार सहितेन मातृ पुण्यार्थ आदिनाथ....प्रतिष्ठितं श्रीजिनचंद्र....
(२७२१) ___ सं० १५३६ वर्ष फागुण सुदि ३ दिने श्री वरहुडिया गोत्रे सा० खीमा पुत्र स० धरमा भार्या......सा० खीमा पु० सा० माडा० देऊ पुत्र गढमल्ल धरमा नाना निजभार्या पुण्यार्थ श्री महावीर बिंब कारितं श्री बृहत्गच्छे श्री रत्नाकरसरि पट्टे श्रीमेरुप्रभसरिभिः
(२७२२) ___ सं० १५८२ वर्षे फागुण बदि ९ दिने सोमवारे श्री सुपार्श्व बिंबं कारितं सं० माल्हा पुत्ररत्न सं० पूनसीकेन पुत्रादि परिवार युतेन प्रति० ।
. (२७२३ ) संवत् १५८० वर्षे फागुण सुदि ३ दिने श्री चतुर्विशति जिन पट्टिका ऊकेश वंशे चोपड़ा गोत्रे संघवी कुंयरपाल भार्या श्राविकया कउतिगदेव्या पुत्र सं० भोजा सं० मयणा सं० नरपति पुत्र पौत्रादि युतया कारिता श्री खरतर गच्छे श्री जिनहंससूरिभिः प्रतिष्ठिता
( २७२४) सं० १५३६ फागुण सुदि ३ सं० लाखण पुत्र सं० समरा भा० मेघाई पुण्यार्थ चतुर्विंशति जिन पट्ट का। प्र! खरतर गच्छे श्री जिनचंद्रसूरिभिः
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बीकानेरे जैन लेख संग्रह
(२७२५) संवत् १५३६ वर्षे फागुण सुदि ३ दिने श्री ऊकेश वंशे कूकड़ चोपड़ा गोत्रे सा० पांचा भा० रूपादे पु० सं० लालम भा० लखमादे पुण्यार्थ पुत्र सं० सिखरा सं० समरा सं० माल्हा सं० सुइणा सं० कुंरपाल सुश्रावकैः द्विपंचाश जिनालये पट्टिका कारिता प्रतिष्ठिता श्री खरतर गच्छे श्रीजिनभद्रसूरि पट्टालंकारैः श्री जिनचंद्रसूरिराजैः तत्शिष्य श्री जिनसमुद्रसूरि सहितैः। श्री जैसलमेरु महादुर्गे। श्री देवकर्ण राज्ये।
(२७२६ ) संवत् १५३६ वर्षे फगुण सुदि ३ दिने श्री उपकेश वंशे श्री संखवाल गोत्रे स० मनगर पु० सा० जयता भार्या किस्तूराई श्राविकया कारि। प्रतिष्ठिता च श्री खरतर गच्छे श्री जिनभद्रसूरि प० श्रीजिनचंद्रसूरिभिः
(२७२७ )
पंचतीर्थी सं० १५३३ वर्षे पौष बदि १० गुरु प्राग्वाट ज्ञा० गांधी हीरा भा० मेहादे पुत्र चहिताकेन भ० लाली पुत्र समरसी भार्या लाडकी प्रमुख कुटुंब युतेन स्वश्रेयोर्थ श्री नमिनाथ बिंब का प्र। तपा गच्छे श्री लक्ष्मीसागरसूरिभिः। वीसलनगर वास्तव्यः श्रीः
श्री चन्द्रमा जिनालय
( २७२८) सं० १५१८ वर्षे ज्येष्ठ बदि ४
(२७२९) संवत् १५४८ वर्षे वैशाख सुदि ३ मूल संघे, भट्टारकजी श्रीजिनचन्द्रदेव साहजी श्री जीवराज पापड़ीवाल नित्य प्रणमत सर माया जा श्री राजा स्योसंघ शहर मुडासा ।
पंचतीर्थी पर ___सं० १५११ वै० व० ५ गुरौ ऊकेश वंशे सा० तोल्हा भा० तोलादे सुत सीहाकेन भार्या गउरी पुत्र दूल्हा देवा भ्रात बाहड़ भ्रातृजाया हिमादे प्रमुख परिवार सहितेन श्री वासुपूज्य बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीसूरिभिः॥ जय भ
(२७३१) संवत् १५३६ वर्षे फा० सु०५ दिने श्री उकेश वंशे लिगा गोत्रे सा० सहसा भा० जीदी पुत्र आभा पु० सारु पुण्यार्थ सहसा....सोभाकेन...श्री खरतर गच्छे श्री जिनभद्रसूरि पट्टे श्री जिनचन्द्रसूरिभिः श्री सम्भवनाथ ।
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बीकानेर मैन लेख संमह
(२७३२ ) बाई गंगादे पुण्यार्थे बाई मेपारे
(२७३३)
तुर्विशति जिन पट्टिका संवत १५७६ वर्षे फागुण बदि ९ दिने श्री ऊकेश बंशे परीक्ष गोत्रे प० डूंगरसी पुत्र गांगा भार्या गंगादे पु० ५० नोडा राजसी आंबा पौत्र मालादि परिवार सहिताया श्राविका गंगादेव्या चतुर्विशति जिनादिका पूज्यत्र स० बीजपाल भार्या वीजलदे पुत्र भ० जगमाल पौत्र साह भ० सहसमलादि परिवार सहितया श्रा० वीजलदेभ्यां पट्टिका कारिता प्रतिष्ठिता खरतर गच्छे श्रीजिनहंससूरिभिः सौभाग्यभूरिभिः ।
(२७३४ )
विहरमान जिन पट्टिका संवत् १५८० वर्षे आषाढ सुदि द्वादशी दिने बुधवारे ५० डूंगरसी ५० गांगा प० नोडा पुत्र राजसी पुत्र आंबा माल्हा श्रा० गंगादे पुण्यार्थ पट्टि कारिता खरतर गच्छ ।
(२७३५ )
सहस्रफणा पार्श्वनाथ सं० १९६४ मिति फागुण बदि २ सं०। पा० चांदमल्ल के० प्र० वृद्धिचंद्र।
(२७३६ )
चतुर्विशति जिन पट्टिका श्रीमाल वंशे तांबी गोत्रे सा० माल्हा संतानी फेरू ऊगर पुत्र धांधण संजई गूजर जाती।
(२७३७ )
चतुर्विशतिजिन मातृ पट्टिका सं० १५७६ वर्षे वैशाख सुदि ३ दिने श्री उकेश वंशे भणसाली गोत्रे श्री चोपड़ा गोत्रे । भ० जाडा भार्या कपू पुत्र भ० जीवट पौत्र भ० नगराजादि परिवार सहितेन अपरंच श्री चोपड़ा गोत्रे भादा भार्या श्रा० भादलदे पुत्र सं० सूटा सं० वरसीहादि परिवार सहितेनश्रा० कपू श्रा० भूदलदेव्या कारित प्रतिष्ठितं श्रीखरतर गच्छे श्रीजिनसमुद्रसूरि पट्टे श्रीजिनहंससूरिभिः सौभाग्यमूरिभिः।
( २७३८ )
चौभूमिये पर तोरण पर सं० १५३६ वर्षे साधण सु.........शुभं भवतु श्री जिनभद्रसूरि पट्टालंकार श्री जिनचन्द्रसूरि विजयराज्ये वा० कमलराज गणि पं० उत्तमलाभ गणि हेमध्वज गणि शिवशेखर गणय देवान् गुरुंश्च वन्दते। सूत्रधार देवदास श्री॥
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
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धातु प्रतिमाओं के लेख
(२७३९ ) सं० १५०१ (१) वर्षे माघ बदि षष्ठी बुधे श्री उपकेश वंशे छाजहड़ गोत्रे मंत्री कालू भा० करमादे पु० मं० रादे छाहड़ नयणा सोना नोडा पितृ मातृ श्रेयसे सुमतिनाथ बिंबं कारापित श्री खरतर गच्छे श्री जिनधर्मसूरिभिः।
( २७४०) सं० १४९१ फाल्गुन शु० १२ गुरौ उपकेश ज्ञातौ छाजहड़ गोत्रे मं० बेगड़ भा० कउतिगदे पु० भुणपालेन भा० हिमादे श्रेयोर्थ श्री अजितनाथ बिंब का ।प्र। खरतर गच्छे श्री जिनधर्मसूरिभिः ॥ शुभं ॥
(२७४१) __ सं० १५०९ वर्षे आषाढ़ सु०२ शने उपकेश ज्ञाति छाजहड़ गोत्रे सं० झूठिल सुत मह० काल मा० कर्माद पु० म० नोडाकेन स्वपु० श्रेयांस बिंबं का० प्र० खरतर गच्छे भ० श्रीजिनशेखरसूरि प० भ० जिन.....
(२७४२) सं० १५३५ वर्षे माघ बदि.९ शनौ प्राग्वाट ककरावासी व्य० वसता भा० वील्हणदे सुत पुजाकेन भा० सोभागिणी पुत्र पर्वत भा० लींबा युतादि कु० स्व श्रे० श्री संभव बिंबं का प्र० तपा श्रीलक्ष्मीसागरसूरिभिः।
(२७४३) सं० १४७७ वर्षे मार्ग व० ४ रवौ वर्द्धमान शाखायां महाजनी पदीया भा० पदमल सु० मोखाकेन भा० मागलदे पु० लींबा धना सहितेन पित्रोः श्रे० श्री सुमतिनाथ बिंबं का०प्र० ऊकेश गच्छे ककुदाचार्य संताने श्री सिद्धसूरिभिः।।
(२७४४) संवत् १५३५ वर्षे मार्ग सु० ६ शुक्रे श्री श्री वंशे श्रे० रामाभार्या रामलदे पुत्र श्रे० नीनाकेन भा० गोमती भ्रातृ श्रे० नगा महिराज सहितेन पितुः पुण्यार्थ श्री अंचलगच्छेश्वर श्रीजयकेशर सूरिणामुपदेशेन श्री श्रेयांसनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीसंघेन।
(२७४५) सं० १५०६ मार्ग बदि ७ बुधे श्री श्रीमाल झातीय व्य० वरपाल भा० वील्हणदे सु० व्य० लाडण भा० मानू सु० व्य० पासाकेन भ्रा० झांझण भा० थिरपालादि सर्व कुटुम्ब सहितेन श्रीविमलनाथादि चतुर्विशतिपट्ट स्वपितृ श्रेयोर्थ श्री पूर्णिमापक्षे श्रीधीरप्रभसूरिणामुपदेशेन कारितः प्रतिष्ठितं च विधिना ॥ श्री॥
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aterer जैन लेख संग्रह
( २७४६ )
संवत् १५१३ वर्षे वैशाख बदि ८ प्राग्वाट ज्ञातीय व्यव० हापा भा० रूपी सुत राणाकेन भा० राजू सुत पेथादि कुटंब युतेन स्वश्रेयोर्थ श्री कुंथुनाथादि चतुर्विंशति पट्ट कारापितः प्रतिष्ठितः । तपा गच्छेश श्री सोमसुन्दरसूरि शिष्य श्री रत्नशेखरसूरिभिः शुभं भवतुः । ( २७४७ )
३६०
संवत् १५२० वर्ष मार्गशिर खुदि ९ दिने नाहर गोत्रे सा० जयता संताने सा० पच्छा भा० लखमिणि पुत्र सा० मेघा आत्मश्रेयसे श्री सुमतिनाथ बिंबं कारापितं प्रतिष्ठितं श्री धर्मघोष गच्छे श्री पद्मशेखरसूरि पट्टे भ० पद्माणंदसूरिभिः ।
( २७४८ )
सं० १५३६ फा० सु० ३ दिने श्री ऊकेश वंशे कूकड़ चोपड़ागोत्रे सं० लाखण भा० लखमादे पु० सं० मयणाकेन भा० मेलादे हि० भा० माणिकदे पु० धन्ना वन्नादि युतेन श्री सुमतिनाथ बिंबं कारि० प्रति० श्री खरतर गच्छे श्री जिनभद्रसूरि पट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभि: श्री जिनसमुद्रसूरिभिश्व ॥ ( २७४९ )
संवत् १४९७ वर्षे मार्गशीर्ष बदि ३ बुधे ऊकेश वंशे चो० दीता पु० पांचा पुत्र लाखण-.. केन सिखरादि सुत युतेन श्री पार्श्वनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं खरतर गच्छे श्रीजिनभद्रसूरिभिः ( २७५० )
सं० १५१६ वर्षे वै० ० ४ ऊकेश वंशे साधु शाखायां सं०नेमा भार्या सारू सुते सा० रहीया सा० मेघा सा० समरा श्रावकैः स्वश्रेयसे सुमति बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्री खरतर गच्छे श्री जिनभद्रसूरि पट्टे श्री जिनचंद्रसूरि सहगुरुभिः ॥
( २७५१ )
सं० १५६० वर्षे वैशाख सुदि ३ बुधवारे उ० ज्ञातीय सा० ईना भार्या रूपिणी पु० धना भा० धांधलदे पितृमातृ श्रेयार्थ श्रीशीतलनाथ बिंबं करितं प्रतिष्ठितं जाखड़ीया भ० श्रीगुणचन्द्रसूरिभिः
( २७५२ )
सं० १५६० वर्षे वैशाख सुदि ३ दिने श्री उपकेश वंशे कूकड़ा चोपड़ा गोत्रे सं० लाखण भा० लखमादे पु० सं० कुंरपाल सुश्रावकेण भा० कोडमदे पु० सा० भोजराजादि परिवार युतेन श्री धर्मनाथ बिंबं कारितं प्र० श्री खरतर गच्छे श्रीजिनभद्रसूरि पट्टे श्री जिनचन्द्रसूरिभिः ( २७५३ )
सं० १५१६ वर्षे वैशा० वदि ४ ऊकेश वंशे रोहड़ गोत्रे मं० घक्कण भा० वारू पु० मं० जेठान भा० सीतादे पु० वागा ईसर प्रमुखपुत्र पौत्रादि युतेन स्वज्येष्ठ पु० मं० माल्हा पुण्यार्थ श्री श्रेयांस बिंबं कारितं श्रीखरतरगच्छे श्रीजिनभद्रसूरि पट्टालंकार श्रीजिनचंद्रसूरिभिः प्रतिष्ठित श्री ।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
(२७५४ ) सं० १५१० वर्ष ज्येष्ठ सुदि ५ शनौ श्री श्रीमाल ज्ञा० मंत्री वानर भा० वीकमदे सुत मेला भा० लाडी सु० धनपाल राजा वडुवा देवसी भा० सहितैः पिता पितामह निमित्तं श्री आदिनाथ पचतीर्थी बिंबं का० श्री पूर्णिमापक्षे श्रीवीरप्रभसूरि पट्टे श्रीकमलप्रभसूरिणां मुपदेशेन प्रतिष्ठितं ॥शा मोरवाड़ा वास्तव्यः १
(२७५५)
खण्डित पंचतीर्थी श्रीचन्द्रप्रभ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्री विजयसेनसूरिभिः तप गच्छे
(२७५६ )
खंडित ..........पितृ मातृ श्रेयोर्थ श्री सुमतिनाथ बिंब का० प्र० श्री नागेन्द्र गच्छे श्री गुणदेवसूरिभिः झझाणी वास्तव्य
(२७५७ )
खंडित .... नाम्न्या स्वश्रेयसे श्री शांतिनाथ बिंब कारितं श्रीरत्नसिंहसूरिभिः प्रतिष्ठितं ।
( २७५८) सं० १४०८ वैशाख सुदि गच्छे.. ककुदाचार्य संताने श्रावक हरपाल भा० रतन सहितेन पितृ श्रेयसे श्री पार्श्व बिंबं का० प्र० श्री कक्कसूरिभिः
(२७५९ ) संवत् ११६२ श्री वायड़ीय गच्छे वीरदेवेन प्र०..........निमत्तं कारित ।
(२७६०) सं० १२०८ ज्येष्ठ बदि गुरौ देदंग पत्नी श्राविकाभ्यां स्वश्रेयसे प्रतिमा कारिता प्रतिष्ठिता च श्रीदेवसूरिभिः
(२७६१) __ सं० १४(०) १८ वर्षे फागुण बदि २ बुद्धै ऊकेश ज्ञातीय आंचल गच्छे व्य० सोमा भा० मागल श्रेयोर्थ भ्रातृ सु० जाणाकेन श्री शान्तिनाथ कारितं प्रतिष्ठितं श्रीसूरिभिः।
(२७६२) सं० १२४६ ३० ज्येष्ठ सुदि १४ श्री शांतिनाथ बियं दुर्घटान्वय सा० हरिचंद पुत्र भूपो खपूर्वज श्रेयसे प्र० श्रीदेवाचार्य सन्तानीयैः श्रीमुनिरत्नसूरिभिः
(२७६३) ___सं० १४९२ वर्षे आषाढ बदि १३ डीसावाल शातीय व्य० चांपाकेन भा० संसारदे पुत्र आसादि यतेन प० राजा श्रेयसे श्रीवासपज्य बिंब का० प्रति० श्रीसरिभिः ।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
(२७६४ ) सं० १५१५ वर्षे मार्ग सु० १ दिने उकेश वंशे प० सूरा पु० भीमा सोनी पोया पुत्रेन ५० पारस श्रावकेण भार्या रोहिणी पुत्र खेता रीखा परिवृतेन श्री चन्द्रप्रभ स्वामी बिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतर गच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः निजपुण्यार्थमिति ।
(२७६५) __ सं० १५२७ कार्तिक सु० १३ भोमे श्री श्रीमाल० ज्ञा० ऋ० केल्हा भा० गङ्गा सु० जसा भा० मेचू सुत गणीया विरीया मेहा सहितेन पि० मा० भ्रातृ श्रयेथं श्री धर्मनाथ बिंबं का०प्र० श्री पिप्पल म० भ० श्री अमरचंद्रसूरिभिः सिरधर प्रामे ।
(२७६६) ॐ श्री नागेन्द्र श्री सिद्धसेन दिवाकराचार्य गच्छे अम्मा छुप्ताभ्यां कारिता सं० १०८६
(२७६७ ) सं०..... वर्ष चै० सु० ७ श्री चैत्र गच्छे श्रीमाल.. कारित प्रति० श्रीधर्मदेवसूरिभिः
(२७६८) सं० १४२७ वर्षे ज्येष्ठ ब० १ शुक्रे ऊकेश ज्ञाती टाल्हण पुण्याय मं० नरदे० भ० श्रीप्रति. खरतर गच्छे श्री जिनचंद्रसूरि पट्टे श्री जिनेश्वरसूरिभिः
(२७६९) सं० १४९३ वर्षे फा० ब० १ श्री ऊकेश वंशे वहरा गोत्रे सोमण सुत धणसा श्रेयोर्थ श्री श्रेयांस बिबंकारितं ।-प्रति श्री खरतर गच्छे श्री जिनभद्रसूरिभिः
(२७७०) संवत् १४५९ वर्षे व्यव० खेतसीह पुत्राभ्यां व्यव० सीहा व्यव० सूदा सुश्रावकाभ्यां श्रीशीतलनाथ बिंबं पितृ पुण्यार्थं का० प्रति० खरतर गच्छे श्रीजिनराजसूरिभिः ।
स० १५१० वर्षे फागुण सुदि ११ शनौ श्रीब्रह्माण गच्छे श्री श्रीमाल ज्ञा० श्रेष्ठि. देपाल भा० देवलदे पुत्र गोगा भा० गंगादे गुरदे भीली पु० ल टमाल नाडा हेमा गजाभिः स्व पितृ मातृ श्रेयसे नि० श्रीश्रेयांसनाथ बिंब कारितं प्र० श्री जजगसूरि पट्टे श्रीपजनसूरिभिः । नरसाणा प्रामे
(२७७२) सं० १४८५ वर्षे वैशाख सुदि ३ बुधे उपकेश ज्ञातौ बप्पणाग गोत्रे सा० कूडा पुत्र साजणेन पित्रोः श्रेयसे श्रीचन्द्रप्रभ बिंबं का० प्र० श्री उपकेश गच्छे श्रीककुदाचार्य सन्ताने श्रीसिद्धसूरिभिः
(२७७३) सं० १५१७ वर्ष फागण वदि.....सोमेउ........श्रेयसे श्री आदिनाथ बिंबं कारापित श्री जयशेखरसूरि।
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बीकानेर जैन लेल संग्रह
(२७७४) सं० १५६८ वर्षे मा० सुदि ४ दिने ऊकेश वंशे कांकरिया गोत्रे सा० सूरा पुत्र सा० मोका भार्या तारादे पुत्र राउल भार्या रंगादे पुत्र हमीरादि परिवार सहितेन श्री नमिनाथ बिंब कारापितं प्र० श्री खरतर गच्छे श्रीजिनहंससूरिभिः ।
(२७७५) सं० १५१२ वर्षे वैशाख सुदि ५ शुक्रे ऊभटा वास्तव्य श्री श्रीमाल ज्ञा० श्रे० पांचा भा० पाल्हणदे पुत्र सहिसाकेन भा० भोली भ्रातृ सांगा भेदायुतेन श्रीकुंथुनाथादि चतुर्विंशति पट्ट मातृपितृ श्रेयसेकारितः आगम गच्छे श्री हेमरत्नसूरिणामुपदेशेन प्रतिष्ठिते ।
श्रीशांतिनाथजी का मन्दिर
पाषाण प्रतिमा लेखाः
(२७७६ ) सं० १५३६ श्री पार्श्वनाथ ... गुणराज
(२७७७ ) परीक्षिक सा० पूजा
(२७७८) संवत् १५७१ वर्षे गणधर गोत्रे सा० गूजरसी भार्या पूजी पुत्र माधलभाक श्री......
( २७७९ ) संवत् १५३६ वर्षे वैशाख सुदि दिने श्री ऊकेश वंशे बहुरा गोत्रे सा०"वमली पुत्र "सहि ..
(२७८०) सं० १५३६ फाल्गुन सु० ३ श्री ऊकेश वंशे कूकड़ चोपड़ा गोत्रे सा० जोगा भा० · पुत्र सा० खोखाकेन भा० लदे पुत्र देवराज' ‘हाज धीरा प्रमुख परिवार सहितेन श्री "वि० भ०... प्रतिश्री खरतर गच्छे श्रीजिनभद्रसूरि पट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः
(२७८१ ) सं० १५३६ वर्षे फागुण सुदि ३ दिने श्री उकेश वंशे इंदा क्षत्रियान्वये श्री थुल्ल गोत्रे मं० कुंदा पुत्र मं० धीधा पुत्र मं० लखमसी मं० लाखण तत्र लखमसी पुत्र मं० पद्मा मं० वीरा तंत्र मं० वीरा पुत्र जींदा मं० धीरा देवराज । डाहा ! वसता । सहजा । तत्र धारा भार्या धांधलदे पु. मं० तेजा मं० वीजा मं० गजा मं० साता। तत्र मं० तेजा भा० हांसलदे पुण्यार्थ पु० म० रूपसी मं० सोमसीभ्यां तत्र रूपसी भा० रांभलदे पु० मं० राजा पुत्री हक्की। रुक्मणी सोमसी। भा० संसारदे पुत्री रोहिणी प्रमुख परिवार सहिताभ्यां श्री सत्तरिसय पट्टिका कारिता-प्रतिष्ठितं श्री
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
खरतर गच्छे श्री जिनराजसूरि पट्टे श्री जिनभद्रसूरि पट्टे श्री जिनचंद्रसूरि गच्छनायकैः शिष्य श्री जिनसमुद्रसूरि श्री गुणरत्नाचार्य प्रमुख परिवार सहितैः ॥ दुर्गाधिप श्री देवकर्ण नृप राज्ये ॥ शुभभूयात् || लिखिता कमलराज मुनिना श्रेयोस्तुः ॥
( २७८२ )
॥ ६० ॥ संवत् १५३६ वर्षे फागुन सुदि ३ दिने श्री ऊकेश वंशे बडहरा गोत्रे सा० सादा भा॰ सूहड़ादे सु० सा० चांपा भार्या डाही सुश्राविकया सुपुण्यार्थं सप्ततिशत जिनवरेन्द्र पट्टिका कारिता प्रतिष्ठिता श्री खरतर गच्छे श्री जिनभद्रसूरि पट्टे पूर्वाचल सहस्रकरावतार श्री जिनचंद्रसूरिभिः ॥ तत्शिष्य श्री जिनसमुद्रसूरि श्री गुणरत्नाचार्य श्री समयभक्तोपाध्याय
( २७८३ )
संवत् १६०३ वर्षे आषाढ़ शुक्ल द्वितीया दिने श्री जेसलमेर 'महाद्राग्गे राउल श्री लूणकर्ण विजयिराज्ये श्री ऊकेश वंशे पारिख गोत्रे प० वीदा भार्या श्रा० वाल्ही सुश्राविकायाः पुत्र प० भोजा प० राजा प० वीक प० गुणराज । सवराज रंगा पासदत्त रूपमल क्रेडा नोडा धरमदास भयरवदास प्रमुख पुत्र पौत्रादि सत् परिवार सहितया स्वपुण्यार्थ श्री चतुर्विंशति जिनवर पट्टिका कारिता प्रतिष्ठिता च श्री वृहत्खरतर गच्छाधीश्वर श्री जिनहंससूरिपद पूर्वाचल सहस्रकरावतार श्री जिनमाणिक्यसूरिभिः लिपिकृता पं० विजयराज मुनिना सूत्र० केल्हाकेन कारिता
( २७८४ ) चरणों पर
A संवत् १५३६ वर्षे फागुण सुदि ३ श्री आदिनाथ पादुका बाई गेली कारिता ।
B || संवत् १५३६ वर्ष फागुण सुदि ५ दिने श्री ऊकेश वंशे संखवाल गोत्रे साव आपमल्ल पुत्र सा० पेथा सं० आसराज भार्या गेलमदे नाम्ना पुत्र सं० खेता पुत्र सं० वीदा नोडादि युतया श्री आदिनाथ पादुकायुग्मं कारयामास प्रतिष्ठितं श्री खरतर गच्छे श्री जिनभद्रसूरि पट्ट श्री जिनचंद्रसूरिभिः
१ सं० १५३६ वर्षे
२ सा० आपमल्ल पुत्र ३ सा० नोडा प्रमुख ४ श्री जिन
( २७८५ ) धातुमय मूलनायक प्रतिमा
***L
न सा० मूल सा० रउला पुत्र सरसती पुत्र सा०वीदा जिनचंद्रसूरिभिः
...
भवतु
सामने—-सं० १५३६ वर्षे फा० सु० ३ दिने श्री शांतिनाथ त जाथ ( ? ) विबं श्री खेताक
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
( २७८६ ) गजारूक श्रावक मूर्ति पर
संवत १५९० वर्षे पौष वदि ३ श्री आदिनाथ प्रतिमा सेवक साः खेता पुत्र सं०......
( २७८७ )
श्वेत पाषाणमय श्राविका की मूर्ति पर
सं० १५९६ वर्षे पौष बदि १० दिने श्री आदिनाथ सेवार्थ -- विमला पाषाण प्रतिमाओं के लेख:
( २७८८ )
सं० १ ३६ फा०सु० ३ दिने श्री ऊकेश वंशे चोपड़ा गोत्र भार्या श्रा० माणिकदेव्या श्री मल्लिनाथ...
( २७८९ )
श्री सुविधिनाथ बिका० सा सोभूमल
( २७९० )
पीले पाषाण के सपरिकर काउसग्गिये
सं० १५१८ वर्षे ज्येष्ठ बदि ४ सं० बीजा भार्यया पूरी " "सपरिकर कारितः
.
( २७९२ )
सं० १५३६ श्री विमलनाथ बिंबं श्री जिनचन्द्रसूरिभिः ।
( २७९१ )
श्री खरतर गच्छे श्रीजिनभद्रसूरि पट्ट श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः प्रतिष्ठितं श्री अजितनाथ बिंबं
( २७९३ )
श्री शांतिनाथ सं० मंना सा० देथू दत्त । ( २७९४ )
सं० १९२८ मि० माह सुदि १२
******
सं० १५३६ वर्षे फागुण सुदि ३....छाजहड़ गोत्रे मं० देवदत्त पुत्र मं० पासदत्त भार्या सोमलदेव्या पुत्र · सुरजणेन पु० सहसू पुत्रादि प० श्री पुण्यार्थं श्री कुंथुनाथ बिंबं का० प्र० श्री जिनचन्द्रसूरिभिः ।
( २७९५ )
३६५
( २७९६ )
श्री पार्श्वनाथ मंदिर में श्वेत सपरिकर प्रतिमा
खरतर गच्छे श्री जिनभद्रसूरि पट्टे श्री जिनचन्द्रसूरिभिः ।
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( २७९७ )
सं० १५८० ( १७ ) वर्षे श्री कुंथुनाथ.... कारितं गणधर गोत्रे सा० ठाकुरसी पुत्र ।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
श्री वामदेव जी का मन्दिर
( २७९८ ) सं० १५३५ वर्षे फागुण सुदि ५ ऊकेश छाजहड़ गोत्रे मं० जसा पुत्र मं० रूदाकेन पुत्र जगमालादि परिवार सहितेन...
(२७९९) श्री सुमतिनाथ का श्रे० हरिराजै मणकाई पुण्यार्थ सं० १५३६...
( २८००) ... .."सं० १५१८...भणशाली
(२८०१)
चौवीसजिन पट्टिका सं० १५३६ फागुण सुदि ५ दिने श्री ऊकेश वंशे गणधर गोत्रे सं० सच्चा भार्या श्रा० सिंगारदे पुत्र सं० देवसिंघेन पुत्र सा० रिणमा सा० भुणा सा० महणा ! सा० महणा पौत्र......मेघराज जीवराजसहितेन भा० श्रा० अमरीपुण्यार्थ पट्टिका कारिता.. खरतरगच्छे श्री जिनचन्द्रसूरिभिःशुभम
( २८०२ ) सा० गोरा भार्या हीरादे पुण्यार्थ श्री नमिनाथ बिंब ।
( २८०३ ) सं० १५३६ वर्षे फागुण सुदि ५ दिने श्री खरतर गच्छे श्रीजिनभद्रसूरि पट्टे श्रीजिनचन्द्र सूरिभिः । प्र०॥
( २८०४ ) सं० १५१८ वर्षे ज्येष्ठ बदि ४ दिने साह कीहड़ कुशला श्रावकाभ्यां....... लीबू पुण्यार्थ श्री संभवनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं...
( २८०५ ) संवत् १५१८ वर्षे जेष्ठ बदि ४ दिने छाजहड़ गोत्रे सा० कीहड़ कुशला.... 'दि युताभ्यां श्री आदिनाथ बिंब कारितं प्रतिष्ठितं श्री खरतर...
( २८०६ ) सं० १५३६ वर्षे फा० सु० दिने श्री ऊकेश वंशे कटारिया गोत्रे सा० कान्ह पु० पदाकेन...
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arraria जैन लेख संग्रह
( २८०७ )
सं० १५३(६) वर्षे फा० सुदि ५ श्री खरतर श्री जिनभद्रसूरि पट्टे श्रीजिनचन्द्रसूरि प्र ॥ श्री संभवनाथ ।
( २८०८ )
सं० १५३६ वर्षे मिति फागुण सुदि ३ दिने ऊकेश वंशे लिगा गोत्रे सा० सहसा पुत्र साह ..मेहा सा सहजपालादि परिवार युतेन भा० भरणी पुण्यार्थ श्री मल्लिनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्री खरतर गच्छे श्री जिनभद्रसूरि पट्टालंकार श्री जिनचन्द्रसूरिभिः श्री जेसलमेरु दुर्गे श्री ।
( २८०९ )
सं० १५३६ वर्षे फागुण सुदि ५ भौमवासरे उसवाल जा० छाजहड़ गोत्रे मं० कालू पुत्र... भा० नामलदे तयोः पुत्रेण म० सिं... सरद पोत समधर परि··· पुण्यार्थं श्री कुंथुनाथ बिंबं कारित प्रतिष्ठितं....
( २८१० )
गर्भगृह में समवशरण पर
सं
॥ ६० ॥ संवत् १५३६ वर्षे फागुण सुदि ५ दिने श्री ऊकेश वंशे श्री गणधर चोपड़ा गोत्रे • नथू पुत्र सा० सच्चा भार्या सिंगारदे पुत्र सं० जिणदन्त सुश्रावकेण भार्या लखाई पुत्र अमरा थावर पौत्र हीरादि युतेन श्री समवशरण कारितं प्रतिष्ठितं श्री खरतर गच्छे श्री जिनेश्वरसूरि संताने श्री जिनकुशलसूरि । श्री जिनपद्मसूरि श्री जिनलब्धिसूरि श्रीजिनराजसूरि श्री जिनभद्रसूरि पट्टे श्रीजिनचंद्रसूरिभिः श्रीजिनसमुद्रसूरि प्रमुख सहितैः श्री देवकर्ण राज्ये ।
( २८११ )
मूलनायक जी
सं० १५३६ वर्षे फागुण सुदि ५ दिने श्री खरतर गच्छे श्रीजिनचन्द्रसूरिभिः ।
( २८१२ )
वी० सं० २४४९ वि० सं० २४७८
३६७
गुरुमूर्ति पर
सोमवासरे जं० यु० प्र० श्रीजिन...
( २८१३ )
चरणों पर
संवत् १९८० ० ० ११ शुक्रे । जं० युः प्र० वृ० ख० गच्छेश दादासा श्रीजिनकुशलसू । पादुका स्था० सा० दुलीचंद भा० रायकुंवर स्वात्म भक्त्यर्थं प्र० पं० प्र० वृद्धिचन्द्र मु । जेसलमेरु दुर्गे
( २८१४ )
संवत् १९८० वै० सु० शुक्रे जं० यु० प्र० वृ० ख० गच्छेश दादासा श्रीजिन अकबर बोधक चन्द्रसू । पादुका स्था० सा० दुलीचन्द्र भा० रायकुंबर स्वात्म भक्त्यार्थ प्र० पं० प्रः वृद्धिचन्द्र मु । जेसलमेर दुर्गे ।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
(२८१५ ) संवत् १४७९ वर्षे माघ सुदि ४ श्री ऊकेश वंशे सा० ताल्हण पुत्र सा० भोजा पुत्र सा० वणरा सहितेन सा० बछाकेन भ्रातृ कर्मा पुत्र हासा धन्ना सहसा परिवृत्तेन स्वपुण्यार्थ श्री नेमिनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्री खरतर गच्छे श्री जिनराजसूरि पट्टे श्री जिनभद्रसूरिभिः ।
(२८१६ ) सं० १५१५ वर्षे माघ सुदि १४ श्री श्रीमाल ज्ञा० व्य० भाखर सुत हीरा भार्या हरखू सुत जगाकेन पित्रोः श्रेयसे श्रीधर्मनाथ बिंब का। पूर्णिमा पक्षे श्रीराजतिलकसूरिणामुपदेशेन प्र० विधिना
( २८१७ ) संवत् १२५७ वर्षे वैशाख बदि ५ शुक्रे स्रद ! नडभार्या नाग-पुत्र कडूतरालिवात्रिः ।
(२८१८ ) सं० १४५६ वर्षे माघ सुदि १३ शनौ उपकेश ज्ञातीय पितामह सीहा पितामही खीमिणी पितृ कमूआ मातृ नाल्ह श्रेयसे पुनपासडेन...श्रेयसे श्रीपद्मप्रभ बिंब कारित प्र० श्रीसूरिभिः शुभं ।
(२८१९ ) सं० १३३२ ज्येष्ठ सुदि ८ बुधे प्राग्वा ज्ञातीय म० पुनपाल सुत म० वयणाकेन पितृ अरिसिंह श्रेयार्थ श्री पार्श्वनाथ बिंबं कारितं ।
(२८२० ) ___ सं० १३७३ फागण सुदि ८ दिसावाल ज्ञा० श्रे० भीमाभार्या वील्हू तयोश्रेयसे वघा भ्रातृ काचरू व्यव० सुहड़ा भा० कामल भ्रातृ जूठिल भार्या सूहबदेवि तेषां श्रेयसे ठ० सहूड़ाकेन पंचतीर्थी कारिता प्रति० सिद्धान्तीक श्री विनोदचंद्रसूरि शिष्य श्री शुभचन्द्रसूरिभिः ।
सं० १५१८ वर्षे आषाढ सुदि ३ गुरौ श्रीश्रीमाल ज्ञातीय व्य० वेला भा० राजू सु० लाडणेन सुत मांडण युतेन पितृव्य हादा श्रेयसे श्री श्रेयांस बिंब पूर्णिमा० श्रीगुणधीरसूरीणामुपदेशेन कारिता प्रतिष्ठितं विधिना !
(२८२२ ) सं० १५२७ फा० सु० ४ रवौ श्री ऊशवंशे बडहरा शाखीय सा० सादा भा० सुहडा पुत्र सा० जीवाकेन भा० जीवादे भातृ सरवण सूरा पांचा चांपा सुत पूना सहितेन भ्रातृ झांझण शोभा श्रेयार्थ श्री अंचल गच्छेश श्रीजयकेशरसूरिणामुपदेशेन श्रीचंद्रप्रभ 'बिंबं कारितं प्रतिष्ठित श्री संघेन कोटड़ा प्रामे
(२८२३) ___सं० १५०९ वर्षे मार्गशीर्ष सुदि ६ दिने उकेश वंशे साधु शाखायां प० जेता भा० जल्हणदे पुत्र सा० सदा श्राद्धेन भा० सहजलदे पुत्र हापा थावर युतेन श्री सुमति बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्री खरतरगच्छे श्री जिनराजसूरि पदे श्री जिनभद्रसूरि युगप्रवरागमे । कल्याणं भवतु ।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
( २८२४ )
सं० १५१३ वर्षे माघ सुदि ३ शुक्रे उपकेश ज्ञातीय छाजहड़ गोत्रे मं० देवदत्त भार्या रयणादे तयोः पुत्र मं० गुणदत्तेन भार्या सोनलदे सहितेन श्री धर्मनाथ बिंबं कारितं प्र० श्री खरतरगच्छे श्री जिनशेखरसूरि पट्टे भ० श्री जिनधर्मसूरिभिः ।
( २८२५ )
संवत् १५९१ वैशाख बदि ६ शुक्रे सांगवाड़ा वास्तव्य प्राग्वाट ज्ञातीय वृद्ध शाखायां मंत्र वीसान | भा० टीबूसुत मं वीरसा लीला देठा चांदा प्रमुख कुटंब युतेन स्व श्रेयसे श्री सुमतिनाथ बिंबं कारितं श्री आनंदविमलसूरिभिः प्रतिष्ठितं ।
( २८२६ )
सं० १५०२ वर्ष कार्त्तिक बदि २ शनौ ऊकेश ज्ञातीय व० गोत्रे सा० लोहड़ सुत सारंग भार्या सुहागदे पुत्र सादा भार्या सुहड़ादि स्व श्रेयार्थं श्री अंचल गच्छेश श्री जयकेशरसूरिणा - मुपदेशेन श्री सुमतिनाथ बिंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीसंघेन श्री ।
( २८२७ )
श्री राठौद गच्छे श्री परस्वोपा गया संताने काबिकया कारिता सं० ११३६ । ( २८२८ )
सं० १५२५ वर्षे व० सु० ७ सा० वणु सु०सा० पार । ( २८२९ )
श्री सौभाग्यसुन्दरसूरि प्रतिष्ठितं ।
( २८३० )
सं० १६२२ व० श्री पार्श्वनाथ सा० धरम सनत ज पास । ( २८३१ )
श्री गौड़ी पार्श्वनाथ प्र० ( २८३२ ) संवत् १७०६ वर्षे वैशादि
( २८३३ ) सं० १५२२. -रानौ
( २८३४ )
७
३६६
श्री महावीर पार्श्वनाथ श्री गौतम स्वामि बिंबानि कारितानि सा० मेघजीकेन प्रतिष्ठितानि तपा श्री विजयदेवसूरिभिः ।
( २८३५ )
१८८३ मिती काती वा० मगनीराम
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बीकानेर जैन लेख संग्रह श्री महावीर स्वामी का मन्दिर
( २८३६ ) संवत १५०७ सीहमल भार्या चुगी प्रणमति ।
(२८३७ ) संवत् १५७६ वर्षे मार्गसिर सु० ५ शुक्र श्री श्रीमाल ।
(२८३८ ) श्री मूलसंघ भ० श्री शुभचंद्र रो पह ... ...
( २८३९ ) सं० १६६४ वर्ष जे०व० ३ रात्रासति ।
( २८४०)
संवत् १२२६ श्री अमृतधर्म स्मृति शाला
(२८४१)
शिलालेख ___ श्री सिद्धचक्राय नमः ॥ श्री वाचनाचार्य पद प्रतिष्ठा गणीश्वरा भूरि गुणैर्वरिष्टा । सत्य प्रतिज्ञाऽमृतधर्म संज्ञा जयन्तु ते सद्गुरवोः गुणज्ञाः ॥१॥ गणाधिप श्री जिनभक्तिसूरि प्रशिष्य संघात सुविश्रुतानां । येषाजजिहि श्री मति वृद्ध शाखे ऊकेश वंशे जनि कच्छ देशे ।।२।। भट्टारक श्री जिनलाभसूरयः श्रीयुत प्रीत्यादिम सागराश्चये आसन सतीर्था किल तद् विनेयताः मवाप्ययैः प्राप्तमनिन्दीतं पदं ॥३॥ शत्रुजयाद्युत्तम तीर्थ यात्रयोः सिद्धान्त योगोद्वहन हारिणाः संवेग रंगा द्रित चेतसा पुनः पवित्रितं यैर्निज जन्म जीवितं ।४। जिनेन्द्र चैत्य प्रकरो मनोरमो वरौ यः हेम्र कलशं विराजितः व्यधायि संघेन च पूर्वमण्डले येषां हितेषा मुपदेशतः स्फुटम् ।। प्रभूतजन्तु प्रतिबोध्ययः पुनः स्वर्ग गता जैसलमेरु सत्पुरे। समाधिना चन्द्र शराष्ट भूमिते संवत्सरे माध सिता. ष्टमी तिथौ ।६। स्थानांग सूत्रोक्त वचानुसारा द्विज्ञायते देवगतिस्तु येषां । यतो मुखादात्म विनिर्गमोभूत् साक्षात् सुविज्ञान भ्रितो विदंति । एवं विधाय श्री गुरवः सुनिर्भरं कृपा पराः सर्व जनेषु साम्प्रतं । क्षमादिणि कल्याण प्रति स्वयं प्रमोदक द्राग ददतु स्वदर्शनम् ।८। इत्यष्टकम् ।। संवत् १८५२ मिते पोष सुदि ५ तिथौ महाराउल श्री मूलराजजी विजयि राज्ये । भ। श्रीजिनचन्द्रसूरिजी धर्मराज्ये श्रेयार्थ निर्मापिता क्षमाकल्याण गणिभिलिखिताक्षर धोरणी उत्कीर्ण शिव दानेन सूत्रधारेण हारिणी ॥१॥प विवेकविजयो नमति श्री गुरूत् ।।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
चरणपादुकाओं के लेख
-- (२८४२) सं० १८५२ मिते पोष सुदि ५ तिथौ श्रीजिनचन्द्रसूरि विजययिराज्ये वाचनाचार्य श्री अमृतधर्म गणिनां पादन्यासः श्री संघेन कारितः प्रतिष्ठितश्च वा० क्षमाकल्याण गणिभिः
(२८४३) सं० १८०४ मिते ज्येष्ठ सुदि ४ तिथौ श्री कच्छ देशे मांडवी बिंदरे स्वर्गगतानां श्रीजिनभक्तिसूरीणां पादन्यासः सं०१८५२ मिते पोष सुदि ५ तिथौ कारितं श्री संघेन प्रतिष्ठितश्च वा० क्षमाकल्याण गणिभिः
(२८४४) ॥सं । १८०८ मिते कार्तिक बदि १३ तिथौ श्री बीकानेर नगरे स्वर्ग गतानां श्री प्रीतिसागर गणिनां पादन्यासः सं० १८५२ मिते पौष सुदि ५ तिथौ श्री संघेन कारितं प्रतिष्ठितश्च वा० क्षमाकल्याण गणिभिः
(२८४५) श्री गौड़ी पार्श्वनाथजी नमः संवत् १७९६ वर्षे मिती माह बद ५ श्री गौड़ी पार्श्वनाथ ...
दादाबाड़ी ( देदानसर तालाव)
( २८४६ ) ॥ संवत् १९३० पोष वदि १ प्रतिपदा तिथौ जं । युरप्राभट्टारक बृहत्खरतर गच्छाधीशः श्री श्री १०८ श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः श्रीजेसलमेरेश रावलजी श्री वैरिशालजी विजयराज्ये श्री जिनभद्रसूरिशाखायां उ। श्री साहिबचन्द्र गणेशचरण न्यास प्रतिष्ठाकृता कारिता च तत् भ्रातृव्य तशिष्यसं अगरचन्द्र मेघराजादिभिः श्रीरस्तुः ।। गजधर हासम
(२८४७ ) ॥सं० १९३९ शाके १८०४ प्र ज्येष्ठ वदि १२ रविवार जं। यु। प्रभ । बृहत्खरतरगच्छाधीशैः श्री श्री १०८ श्री जिनमुक्तिसूरिभिः श्री जेसलेमेरेश म। रावलजी श्रीवैरिशालजी राज्ये श्रीजिनभद्रसूरिशाखायां पं० प्र० अगरचंद्र मुनिचरणन्यास प्रतिष्ठा कृता कारिता च तत्भ्रान्य । तत्सुशिष्य पं। वृद्धिचंद्र जइतचंद्रादिभिः श्रीरस्तु। गजधर आदम ॥
(२८४८) संवत् १९५२ रा मिती माघ शुक्ल पूर्णमासी १५ तिथौ गुरुवारे गुरांजी महाराज श्री सरूपचंद्रजी वर्ग पोहता तस्य धरणपादुका स्थापित। दूज जेठ मदि ३ दिने ।
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४०२
बीकानेर जैन लेख संग्रह
(२८५०)
( २८४९)
स्तूपलेखाः १ श्री संवत् १९०१ वर्षे शाके १७६६ प्रवर्त। मासोत्तममासे आषाढ़ शुक्ल पक्षे सप्तमी भृगुवासरे महाराजाधिराज महारावलजी श्रीगजसिंहजी विजयराज्ये । जं । यु । प्र । भ। श्री जिनचंद्रसूरि तत्शिष्य पं । प्र। जयरत्न गणिः पादुका कारापितं । श्रीसंघेन प्रतिष्ठितं श्री जिनमहेन्द्रसूरिभिः॥
श्री संवत् १९२८ शाके १७९३ प्रवर्त्तमाने वैशाख मासे शुक्ल पक्षे द्वितीया चतुर्थी ४ तिथौ चंद्रवारे महाराजाधिराज महारावल श्री श्री १०८ श्री वैरीशालजी विजयराज्ये जंगमयुगप्रधान भट्टारक श्री जिनचंद्रसूरिवृहत्शिष्य पं० जीतरंग गणि तच्छ्यि पं। राजमंदिर मुनि पादुका कारापितं श्रीसंधेन प्रतिष्ठितं श्रीजिनमुक्तिसूरिभिः ।
(२८५१) __ श्री गणेशायनमः संवत् १९३३ शाके १७९८ प्रवर्त्तमाने फागुन सुदि ५ रविवारे श्री जिनचंद्रसूरिजी तशिष्य जीतरंगजी गणिः तत्शिष्य राजमंदिरजी गणि तशिष्यः भक्तिमाणिक्य गणिः उपरही श्रीसंघेन पादुका करावितं श्री जिनमुक्तिसूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥
(२८५२) महाराजाधिराज श्री १०८ श्री सालिवाहन राज्ये। श्री। संवत् १९४७ मिती चैत बदि १ श्री खरतर गच्छे जं । यु । प्रधान श्रीजिनमुक्तिसूरि राज्ये पं ।। श्री गणेशजीरा चरणछतरी ।। द० पं० विरधीचंद का।
(२८५३) ___ जंगम युगप्रधान भट्टारकेन्द्र प्रभु श्री १०८ श्री श्री श्री श्री श्री जिनचंद्रसूरिणां पादुके प्रतिष्ठितं भट्टारक शिरोमणि जं। यु । श्री जिनोदयसूरिभिः ।
(२८५४)
श्यामसुन्दरजी की शाला में स्तूप पर ॥श्री जिनायनमः ॥ सं० १८८२ रा मिती आषाढ़ सुदि ५ श्री जेसलमेर नगरे राउल श्री गजसिंह जी विजयराज्ये खरतर आचारज गच्छे श्री जिनसागरसूरि शाखायां भ । जं। श्री जिनउदयसूरिजी विजयराज्ये ॥उ। श्री १०८ श्रीसमयसुन्दरजी गणि पादुकामिदं । उ। श्री आणंदचंदजी तत्शिष्य पं । प्र। श्रीचतुरभुजजी तदिशष्य पं०। लालचंद्रेण कारापितमियं थंभ पादुका शाला सही २
पादुकानों पर
( २८५५) 18 श्री १०८ श्री समयसुन्दर गणि पादुका
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
( २८५६ )
। उ । श्री १०८ श्री आनंदचंदजी गणि प्रादुकामिदं ॥
( २८५७ )
॥ पं० । प्र । श्री १०८ श्री चतुरभुज जी गणि पादुका मिदं ।
( २८५८ )
स्तूप पर
॥ श्री जिनायनमः ॥ सं । १९०३ रा मिति आसोज सुदि ७ श्री जेसलमेर नगरे राउल श्री रणजीतसिंहजी त्रिजेराज्ये श्री खरतर आचारज गच्छे श्रीजिनसागरसूरि शाखायां भ । यु । श्रीजिनहेमसूरिजी विजेराज्ये पं । प्र । श्री १०८ श्री लालचंद्रजी गणि पादुका मिर्द शिष्यं पं । हर्ष चंद्रेण गुरो पादुका शुभ कारापितमिदं ॥ सही २ ॥ द । श्रीअमरचंद रा छै ॥ श्री ॥ श्री ॥ श्री ॥
( २८५९ )
| पं० प्र । श्री १०८ ॥ श्री लालचंद्रजी गणि पादुका मिदं ।
सं० १८४० मिते मार्गशीर्ष मासे श्री वृहत्खरतर गच्छीय श्री संघेन भ । श्री जिनचंद्रसूरिभिः ॥ श्रीरस्तु ॥
४०३
( २८६० )
बहुल पक्ष पंचम्यां तिथौ शुक्रवारे श्री जेसलमेरु दंगे श्री जिनलाभसूरीणां पादुके कारिते प्रतिष्ठिते च । भ ।
( २८६१ )
।। स्वस्ति ।। १८२५ मार्गशिरो सित पंचमी ५ सोमवारे भट्टारक श्रीजिनविजयसूरीन्द्राणां शिष्य पंडित जयराज मुनि पादुके कारिते प्रतिष्ठिते भट्टारक श्री जिनचंद्रसूरिभिः ।
( २८६२ )
॥ ६० ॥ संवत् १८२५ वर्षे । मृगशिरो सित पंचमी ५ सोमे । श्री जेसलमेरु महादुर्गे । महाराजाधिराज महारावलजी श्री मूलराजजी विजयराज्ये । कुमार श्री रायसिंघ जी जाग्रय्यौवराज्ये | युगप्रधान भट्टारक श्रीजिनचंद्रसूरि पट्टालंकार श्रीजिनविजयसूरि राजानां स्तूपे पादुका कारिते । प्रतिष्ठिते च श्री जिनयुक्तिसूरि पट्टोदया अर्क युगप्रधान भट्टारक श्रीजिनचंद्रसूरि शिरोमुकुटैः ॥ लिखितं पण्डिताणु भीमराज मुनिना || श्री संघस्य सदैवाभिनव मंगलाय यातामिति ॥ श्री ॥ श्री ॥ बहुमानकारिणां श्रेयसेस्तु ॥ १ ॥
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बीकानेर जैन लेख संग्रह समयसुन्दरजीके सामने की शाला में
( २८६३) ___ श्री गणेशायनमः ।। संवत् १८८१ रा वर्षे शाके १७४६ प्रवर्त्तमाने मासोत्तम मासे मिगसर मासे कृष्ण पक्षे त्रयोदशी तिथौ गुरुवारे महाराजाधिराजा महाराजा जी श्री गजसिंह जी विजयराज्ये वृहत्तरतर आचारज गच्छे जंगम युगप्रधान भट्टारक श्री जिनचंद्रसूरिजी तत् वृहदिशष्य पं।प्र। श्री अभयसोम गणि संवत् १८७८ रा मिति माहसुदि १२ दिने स्वर्ग प्राप्तः तदोपरि पं० । ज्ञानकलशेन इदं शाला कारापिता संवत् १८८१ रा मिति मिगसिर बदि १३ दिने भट्टारक श्रीजिनउदयसूरिजी री आज्ञातः पं०॥ प्र। लब्धिधीरेण प्रतिष्ठिते श्रीसंघेन हर्ष महोत्सवो कृतः सीलावटो गजधर अलीलखानी शाला कृता । यावत् जम्बुद्वीपे यावत् नक्षत्र मण्डितो मेरु यावत् चंद्रादित्यो तावत् शाला स्थिरी भवयु १ लिपिकृता रियं । पं । हर्षरंग मुनिभिः॥ शुभंभवतु ॥ श्रीकल्याणमस्तु ॥ ॥ श्री ॥
( २८६४)
चरणपादुका पर ।सं। १८७९ य । शा। १७४४ प्र। मिति दु आसोज बदि ५ रविवारे भ। जं। श्री जिनचंद्रसूरि सूरि जी तत् शिष्य पं। अभयसोम पादुका स्थापिता ॥
गुरां जी श्री १०८ पं । प्र। चैनसुख जी।
( २८६६) ॥ १९४१ मिति भाद्रव सुदि ३ गुरांजी पं । प्र। श्री १०८ श्रीनिजेचंद खरतरा अचरज गच्छरा।
( २८६७ ) संवत् १६७४ वर्षे मार्गशीर्ष बदि ५ शुक्रवार। श्री जेसलमेरौ । श्री वृहत्खरतर गच्छाधीश सवाई युगप्रधान श्री जिनचंद्रसूरि पादुका प्रति० श्री धर्मनिधानोपाध्यायैः । गणधर गोत्रे । हरष पुत्र सा० तिलोकसीकेन पुत्र राजसी पुनसी भीमसी सहितेन प्रतिष्ठा कारिता ॥ विनेय पंडित धर्मकीर्ति गणि वंदते गुरुपादान् । श्री ५ सुखसागर गणि पं० समयकीर्ति गणि पं० सदारंग मुनि प्रमुखाः वन्दते पं० उदयसंघ लि०।
(२८६८) .......सूरीश्वराणां पादु.... राज श्री जिनराजसूरि ।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
दादा काड़ी (गदी सरता ला )
(२८६९) ॥ श्री सिद्धचक्राय नमः श्री मद् गुरुणां प्रशस्तिः। ये योगीन्द्र सुरेन्द्र सेवित पदाः शान्ता सुधर्मोपमा सद् वाणी निकुरुवरं जिनजनाः श्री मांडवी बिन्दरे। प्राप्तास्सत्रिदशालय युगवराः सद्भूत नामान्वित । स्तस्युः श्री जिनभक्तिसूरि गुरवस्संघस्य कामप्रदाः ॥१॥ तत्शिष्य इह पाठकेन्द्रा स्सकल गुणयुता प्राप्त स्छाधुवादाः श्रीमद् बंगाल देशे सकल पुरवर शस्त राजादिगंजे स्वर्ग प्राप्ता स्सुदेशेष्वति सुभगतर सविहारं विधाय । श्रीमन्तो धी विलास गणि पद सुमता शान्तये स्युर्जनानां ॥२॥ तेषां विनेया स्सुधिया सुपाठका लक्ष्म्यादि सा राजपरागणिश्वराः जग्मु त्रासुत्ते श्रीवर जैसलगढे पुण्याल वंश त्रिदशलयं वरं। तशिष्यं पंडितात...समीयादि गुणन्विताः श्रीधरा सत्यमूल्ख्याः जग्मु रत्रैवसत्पदं । ४ । इति स्तुतिः। सव्वति वाण रस वसु वसुधा १८६५ प्रमिते शाके १७३० प्रवर्त्तमाने ज्येष्ठ शुक्ल पक्षे पंचमी तिथौ चंद्रवारे महाराज राउलजी श्री १०८ श्री श्रीमूलराजजी विजयिराज्ये श्री वृहत्खरतर गच्छे जं । यु। भ श्री १०८ श्रीजिनहर्षसूरिजी धर्मराज्ये विभ्रति च सति मनोहरायां धर्मशालायां श्रीमगुरुणा पादुका कारिताः प्रतिष्ठिताश्च पं० रामचंद्रेणेतिश्रेयः कृताश्चैषा सूत्र धारण खुश्यालेन ॥ श्री॥
(२८७०) सं० १८५२ मिते आषाढ सुदि १० श्रीजिनदत्तसूरीणां पादन्यास श्री संघेन कारितः।
(२८७१) सं० १८६४ रा मिति माघ सुदि ५ तिथौ पं० प्र० श्रीसत्यमूर्तिजी गणीनां चरणन्यास पं० रामचन्द्रेण स्थापिता।
(२८७२) श्री प्रीतिविलासजी गणिनां चरण पादुका मिती माघ सुदि ५ तिथौ सोमवासरे ॥श्री।
( २८७३) सं० १८६४ रा मिती माघ शुक्ला ५ तिथौ उ० श्री लक्ष्मीराजजी गणीनां चरणन्यासः पं० रामचंद्रेण कारापितं ॥ श्री॥ श्री समयसुन्दरजी का उपाश्रय
( २८७४ )
चरणपादुकानों पर संवत् १७०५ वर्षे पोष बदि ३ गुरुवारे श्री समयसुन्दर महोपाध्यायानां पादुका प्रतिष्ठिते वादि श्री हर्षनंदन गणिभिः।
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
खरतराचार्य गच्छ उपाश्रय
( २८७५ )
॥ श्री गणेशाय नमः ।। संवत् १७८१ वर्ष शाके १६४६ प्रवर्त्तमाने मृगसिर मासे शुक्ल पक्षे सप्तमी तिथौ गुरुवासरे श्री जेसलमेर नगर महाराजाधिराज महाराजा रावल श्री श्री अहँसिंह जी विजै राज्ये श्री खरतर आचार्यांया गच्छे श्री जिनचंद्रसूरि विजयराज्ये श्री जिनसागरसूरि शाखायां वा. माधवदासजी गणि शिष्य पं० नेतसी गणि शिष्य उभाण श्रीरावलजी नेतसी ने उपासरो कराय दीधौ संवत् १७८१ रा मिती मिगसर सुदि ७ उपासरी काम झाल्यौ पोष बदि ४ वार सोम पुक्ष नक्षत्र दिने उपासरै री रांग भराई संवत् १८७४ २ वैशाख बदि ७ उपासरे रो काम प्रमाण चढ्यौ उपरठाइ छड़ीदार अखौ मोहणाणी सिलावटो थिरो नथवाणी। यावज्जबूदीवो यावनक्षत्र मण्डितो मेरु । यावच्चन्द्रादित्यो तावत् उपाश्रय स्थिरी भवतुः लिखितं पंडित उदैभाण मुनिभिः शुभंभवतु श्री संघस्य ।
लौ द्र व पु र ती थं श्री पाशवनाथ जी का मन्दिर
( २८७६ ) संवत् १६७५ प्रमिते मार्गशीर्ष सुदि १२ तिथौ गुरुवार भणसाली श्रीमल्ल भार्या सुश्राविका चापलदे पुत्ररत्न सा० थिरराज नाम्ना सुपुत्र हरराज ति० मेघराज युतेन श्री जिनकुशलसूरीश्वराणां मूर्तिः कारिता प्रतिष्ठिताश्च श्री वृहत्खरतर गच्छ राजाधिराज श्री मजिनराजसूरीश्वरैः सकल श्री साधु परिवारैः ।।
(२८७७) सं० १६७५ वर्षे मार्गशीर्ष सुदि १२ तिथौ गुरुवारे उपकेश वंशे ... क साह श्रीमल्ल भार्या चांपलदे सत्पुत्र सा० थिरराज नाना सुपुत्र हरराज सहितेन युगप्रधान श्रीजिनदससूरीन्द्राणां मूर्ति कारिता प्रतिष्ठि.....
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M
(२८७८) संवत् १६७५ मार्गशीर्ष सुदि १२ गुरौ श्री नमिनाथ बिंब का० भ० थाहरू भार्या कनकादे पुत्ररत्न मेघराजेन प्र० श्री जिनराजसूरिभिः। श्री बृहत्खरतर गच्छ ... ... ...
सं० १६७५ मार्गशीर्ष सुदि १२ श्री संभवनाथ बिंबं का० भ० थाहरूकेन प्र० युगप्रधान....
( २८८०) श्री गौड़ी पार्श्व बिंबं प्र० श्री जिनराजसूरिभिः ।
(२८८१ ) ॥६॥ ॐ नमो तित्थस्स ॥ स्वस्ति श्री सुखसिद्धि रिद्धि लतिका, पाथोद पाथोभर यावमंगल भेद संगम मिलटल्लक्ष्मी रमा मंदिरम् । माया बीज निविष्ट मूर्ति महिमा संलीन योगीव्रज । वन्दे लौद्रपुरीश मण्डन मणिं श्री पार्श्वचिन्तामणिः ॥१॥ शुभं भवतु । कल्याणमस्तुः ॥ श्री ॥
(२८८२) ___A ॥६॥ सप्त फणिद सुविशाल सामी चिन्तामण दाई। माया बीजमझारि तामि त च तिनि घरि आई। वंछितपूरणि रेल जाणि चिन्तामणि पूठउ। कलपिवृक्ष सुरधेन सही अमृतरस बूठउ । पहवउ देव लुद्रपुर धणी थिर थापिउ मन भावसुण पुनसी तुझना सदाः परतख सुप्रसन्न पास जिण। B संवत् १६७३ चैत्र सुदि ५ दिने सोमवारे श्रीमाया बीजमध्येः श्रीपार्श्व बिम्ब स्थापितं ।
( २८८३ )
धातुमय प्रतिमा पर सं० १५७५ वर्षे श्री मूलसंघे भ० श्री विजयकीर्ति गुरूपदेशात् गा० जोगा भा० जसदे।
( २८८४)
दादासाहब के चरण ( सिंहासन में ) श्री दादाजी श्री जिनकुशलसूरिजी सं १८१६ आसुज सुद् १० वार अदत ।
(२८८५) ..............गली मोतु तुभ्यां श्री शांति बिंबं का० प्र० श्रीजिनहर्षसूरि ।
(२८८६ ) सं० १५४८ वशाख सुदि ३ श्रीमूलसंघ भट्टारक जी श्री जिनचंद्र.....
( २८८७) संवत १५४८.....श्री जिनचंद्र कनने पणमते सहर मडासा श्री राजा सीसिंह ।
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धर्मशाला
( २८८८ )
कुण्ड पर
॥ सं० || १९७६ शाके १८४१ सन् १९१९ श्रावण सुदि ८ चन्द्रवारे महाराजाधिराज महाराजा श्री १०८ श्री जवाहिर सिंहजी महाराजकुमार श्री गिरधरसिंहजी श्री वृ० खरतर गच्छे उस वंशे बहुफणा हजारीमल मु० बरढिया राजमल श्रीलौद्रवपुर मध्ये जीरणउद्धार धर्मशाला जल रो टांका पाने कुंड करापितं । हस्ताक्षर पं० प्र० वृद्धिचंद्र मुनि कारीगर मेंणू लालूखां ।
४०८
0
*समाप्त*
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बीकानेर जेन लेख संग्रह
दादा श्रीजिनदत्तसूरि श्रीजिनकुशलसूरि मूर्ति (श्री चिन्तामणिजी का मंदिर)
हीरविजयसूरि (अजितजिनालय)
"Ano Shrut
शालिभद्र चरित्र का भित्तिचित्र महावीर जिनालय, वोहरों की
सेरी
नोग्य छिबीमाहाराजाधिराजामाहाराजाश्रीवहिन वयना यत्नपवाय गोपालाजोगसुपरमार वायजा नाच
उपाय वजा जार माह जनर.सुजान चाया दीना. यु. बोल हदजी. महजन ना२खील या यसमावेश्वर५ मा अनवरगावार
बड़े उपाश्रय का परवाना
श्री जिनहर्षसूरिजी व महाराव हरिसिंहजी बैद
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बीकानेर जैन लेख संग्रह ---
अमरसर गाँव में भूमि से निकली हई धातु प्रतिमाएँ
ऊपरकी प्रतिमाओं के पृष्ठभाग के अभिलेख
अमरसर में भूमिसे निकली हुई नेमिनाथ व महावीर प्रतिमाएँ
"Aho Shrut Gyanam"
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
[सं० २०१३ मिती चैत्र शुक्ल ७ को बीकानेर से ७० मील दूरी पर स्थित अमरसर गांव ( खा-सुजानगढ़ रोड पर) में नोजो नामक बृद्धा जाटनी ने टीबों पर रेत सहलाते हुए जिन प्रतिमा विदित होने पर प्राम्य जनों की सहायता से खोदकर १६ प्रतिमाएं निकाली जिन में २ पाषाण व १४ धातुमय है इनमें १२ जिन प्रतिमाएं व दो देवियों की प्रतिमाएं हैं। इनमें १० अभिलेखोंवाली हैं अवशिष्ट १ पाषाणमय नेमिनाथ प्रतिमा व धातु की पांच प्रतिमाओं पर कोई लेख नहीं हैं। इनमें दो पार्श्वनाथ प्रभु की त्रितीर्थी व एक सप्तफणा एकतीर्थी व एक चौमुख समवशरण है एक प्रतिमा देवी या किन्नरी की जो अत्यन्त सुन्दर व कमलासन पर खड़ी है। यहां उत्कीर्ण अभिलेखों की नकलें दी जा रही हैं। ये प्रतिमाएं अभी बीकानेर म्युजियम में रखी गई हैं।]
(२७८६ ) अम्बिका, नवग्रह, यक्षादि युक्त पंचतीर्थी ____ संवत् १०६३ चैत्र सुदि ३ .....तिभद्र पुत्रेण अह्नकेन महा (प्र) त्तमा कारिते। देव धर्माम्नाय सुरुप्सुता महा पिवतु ।
(२७६०)
पाश्वनाथ त्रितीर्थी ६ संवत् ११०४ कान० माल्हुअ सुतेन कारिता
( २७६१ ) त्रितीर्थी ६॥ संवत् ११२७ फाल्गुन सुदि १२ श्रीमदूकेसीय गच्छे उसभ सुतेन आम्रदेवेन कारिता
( २७१२)
चतुविशति पट्टः त् ११३६ जल्लिका श्राविकया कायभू
( २७६३ )
पार्श्वनाथ पंचतीर्थी ऐं। संवत् ११६० वैशाख सुदि १४ रा श्री कूर्वपुरीय गच्छे श्री मनोरथाचार्य सन्ताने उदयच्छा (१) रूपिणा कारिता।
( २०६४ )
अश्वारूढ़देवी मूर्ति पर सं० १११२ ० आषा सुदि ५ साढ सुत छाहरेन करापितं ॥
( २७६५ )
पार्श्वनाथ त्रितीर्थी मांडनियणके दुर्गराज वसतो नित्य स्नात्र प्रतिमा दुर्गराजेन कारिता।
सप्तफणा पाश्वनाथ है दे धर्मोयं स..........'णेवि श्राविकायाः ॥
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बीकानेर जैन लेख संग्रह
( २७६७ ) पंचतीर्थी श्री ककुदाचायींय गच्छे जंसुअ पुत्रेण सत्यदेवेन कारिता जाजिणि निमित्त कारिता ॥
(२७६८ )
श्वेत पाषाणमय महावीर प्रतिमा ६ संवत् १२३२ ज्येष्ठ सुदि ३ श्री खंडिल्ल गच्छे श्री वर्द्धमानाचार्य संताने साधु तेहड़ तत्पुत्र-राधराभ्यां कारिता नव्यामूर्तिशाच ॥६
खरतराचार्य मच्छोफाश्रय देहरासर
पाषाण प्रतिमाओं के लेख
(२७६६ ) ___ सं० १५१३ वर्षे मार्ग वदि २ दिने ऊकेश वंशे काणोड़ा गोत्रे सा० ..... धर्म बिबंकारि......... श्री जिनसमुद्रमूरिभिः खरतर गच्छे ।
( २८००) ___ सं० १५४३ वर्षे मार्ग बदि २ दिने ऊकेश वंशे भणसाली गोत्रे......... ... .."आदियुतेन श्री नमिबिबं"... सूरिपट्ट श्री जिनसमुद्रसूरिभिः।
(२८०१ ) सं० १५२४ मार्गसिर बदि. . . . . . . . . . . साहण पुत्र. . . . . . . . . “डाबरेण स्वपितु श्री जिनचंद्रसूरिभिः सा. न. . . . . ।
(२८०२ ) चरणों पर संवत् १८२० व । शा १६८५ प्र! मिगसिर सुदि ५ शुक्र भ। श्री जिनदत्तसूरिजी पादुके ।।
धातु प्रतिमादि के लेख
( २८०३ ) पंचतीथीं संवत् १४७६ वर्षे माघ वदि ४ शुक्र बाम गोत्रे सा० नरपति संताने सा० कासदेव पुत्राभ्यां गांगा लाखणाभ्यां पितृश्रेयसे श्री धर्मनाथ बिब कारितं प्रतिष्ठितं मलधारि श्री विद्यासागरसूरिभिः।
( २८०४ )
पार्श्वनाथ लघु प्रतिमा सं० १६२६ व० फा० सु० ८ सो० श्री हीरविजयसूरि प्रतिष्ठित कीकी अर बाई ।
(२८०५ )
रजतमय हृींकार यंत्र पर संवत् १८६१ वर्ष शाके १७२६ प्रवर्त्तमाने मधुमासे सितेतर पक्षे त्रयोदश्यां तिथौ गुरुवासरे शतभिषा नक्षत्रे शुभयोगे श्रीविक्रमपुरस्थित सुश्रावक पुण्यप्रभावक मुहणोत श्रीरामदासजी कारापितं प्रतिष्ठितं भट्टारक जंगम युगप्रधान श्रीजिनचंद्रसूरिभिः। धर्मार्थ विहरापितं ।
( २८०६)
रजतमय सिंहासनोपरि पादुकायां सं० १६०६ मि । आ।सु । १५ श्रीजिनकुशलसूरीणां पादुका श्रीजिनहेमसूरिभिः प्रतिष्ठितं ।
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परिशिष्ट-क संवत् की सूची
(विक्रमीय) लेखाङ्क | संवत्
लेखा
संवत् ८१
२१,१५४३
२१८३
१०१८ १०२०
१४७८ | ११८१ १८५१
११८८
११८ (?) २३१७११६५
१२२(?१०२२)
११...
२४५७ २७६०
१०५८ १०६५ १०६८
६४ १२०४ २४३६ | १२०० २४५८ १२०६
| १२०६
१०८०
७७,८१
८२
८४,२४७० ८५,८६ १४८३
६७
१०५४
२४६८ । १२१२ १०५६
२७६६
१२१३ १०८७(?)
१६१७ १२१७ ११०४
१३२६ १२२० १४६५ १२२२
२४६० १२२३ ११३६
२८२७ ११४१
१२२६ ११४३
१२२७
२१९५ १२२६ ११५५ २६,१६३४,२४२८,२४२६,२४३०,२५१० १२३४ ११५७
७० १२३५ ११६२
२७५६ १२३६
१२३७
१२३६ ११६६
१२४३ ११७३
१३६६ १२४४
८८,२८४० ८६,६०,१३२४
२६०३ २१,६३,१७८४,१७८५
१४
६५ ६२,६६,६७ १८,६६,१००
• १५०६ . १०१
ourror
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________________
२
संवत्
१२४६
१२४८
१२५१
१२५७
१२५८
१२६०
१२६२
१२६५
१२६६
१२६५
१२६६
१२७२
१२७३
१२७६
१२७८
१२७६
१२८०
१२८१
१२-२
१२८३
१२८४
१२८५
१२८६
१२८७
१२००
१२६०
१२६३
१२६४
१२६५
१२६७
१२६८
१३०० ( 2 )
१३०२
१३०५
१३०६
१३०१
बीकानेरे जैन लेख संग्रह
लेखा
संवत्
१३११
१०२ १३१२
१०३ १३१४
२८१७ १३१६
१०४ १३१६
१०५
१३२०
१३२१
१४८० १३२२
१०८ १३२३
१०६
१३२४
११० १३२५
१३२६
१३२७
११५
१३२६
१६५२ १३३०
११६ |
२७६२
१०६,१०७
१११.११२
११३,११४
११७,११६
११६
१२०,१२१
१२२
१२३
१३३६
१२१२ १३३७
१२४ १३३८
१५१४
१३३६
१३४०
.१२८,१२१ १३४१ १३४२
१३३ १३४३
१३४४
१३४५
१३४६
१३४७
१३ (१२) ४७ १३४६ १३४६ ( ? )
१३५०
१२५,१२६, १२७,१३३५
१३०,१३१,१३२
१३४, १३५
१३६,१३७
१३८
१४०
१४१, १३४९ | १४२, १४३, १४४, १४५
૪૬
१३३० १३३० (१)
१३३१
१३३२
१३३२ (१)
१३३४
يم
"Aho Shrut Gyanam";
खा
१४८, १४९, १५०,१५१
१५२, १५३ १५४,१३६७
१५५
१५६,१३३२
१५७, १६२०
१५८,१५,१६०
१६१.१६२
१६३,१३२३,१३६५
१६५,१६६
१६७ १६५,२२६१ १६६,१७०,१७१,१३७१
१७२ १७५, १७६,१८६
१७३, १७४ १७८१७८
१७६, १००,१०१, १०३, २०११
१८२ १०४, १०५ १८७
१००१०१ १६०,१११
१६२,१२८६ १९४
१६५,१६६, १६७, १२०६
११६
१३५४
१६६
२००,२०१,२२४४
२०२, १३५७, १४७६, १८०८
२०३,२०४ २०५
२०६,२०८, २०१,१२१०, २११,१३०१
२०७
२१२
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--------------------------------------------------------------------------
________________
परिशिष्ट-क
संवत् १३५१ १३५४ १३५५
लेखाङ्क संवत् २१३,२१४,२१५,१२३० । १३८४
२१६,२१७, १३८५
१२३२, १३८६
१३८७
लेखा २६८,२६६,३००,३०१,३०२
३०३,३०४,३०८,३०६,१२७५ ३०५,३०६,३१०,३११,३१२,३१३,३१४
३१७,३१८,३१६,३२०,३२१ ३२२,३२३,३२४,३२५,३२६,३२७ ३२८,३२६,३३०,३३१,३३२,३३३,
३३४,३३५,३३६,३३७,१९४७ ३३८,३३६३४०,३४१,३४२,३४३
६,३४४,३४५,३४६,३४७ ३४८,३४६,३५०,३५१,१३२१
३५२,३५३,३५४,३५५,३५६, ३५७,३५८,३५६,३६०,३६१,३६२, ३६३,३६४,३६५,३६६,३६७,३६८,
३६६,३७० ३७१,३७२,३७३,३७४
३७५
२२१
३७६
३७८,३७६,३८०,३८१
३८२ ३८३
(१३) ५७
१३८८ १३५६
२१६,२२० १३०९ १३५६ (?)
२१८ १३६०
२२२ १३६० (?) १३६ (०)
२३४८ १३६२ १३६१
२२३,२२४,२२५,२२६,२२७ १३६३ १३६२
२२८,२२६ १३६३
२३१,२३२,१३७३ | १३६४ “१३६४ (?)
२३३ / १३६६ १३६६
२३५ । १३९७ २३४,२३६,२३७,२३८,१८३७ | १३६६ १३६८
२३६,२४०,२४१,२४२,२४३ १३६६
२४४,२४५,२४६,२४७ १३६६ (?)
१३१६ | १३ १३७०
२४८,१६३६ १३ ६ १३७१
२४६,२५०,१३६३,१९६० | १४०० १३७२
२५१ | १४०१ १३७३ २५२,२५३,२५४,२५५,२५६,२५७२५८,
१४०५ २५६,२६०,२६१,२६२,२६३२६४,२६५, १४०६
२८२० १४०८ १३७४
२६६.२६७ १३७५
२६८,२६६ १४०६ १३७६
२७०,२७१ १४११ १३७७
२७२,१३५२ १३७८ २७३,२७४,२७५,२७६,२७७,२७६२८० १३७८ (?)
२७८ १४१५ १३७६
२८१,२८२,२८३ . १४१७ १३००
२८४,२८५,१२१४१४१८
१४२० १३८१ २८६,२८७,२८८,१३१२
१४२१ १३५२ २८६,२६०,२६१,२६२,२६३,२६४,२६५ | १४२२ १३८३
२६६,२६७,१७६७
३८६
४००
४०१,४०२,४०३ ४०४,४०५,४०६,४०७,४०८,४०६४१०
४११,४१२,४१३,४१४,४१५,४१६ ४१७,४१८,४१६,४२०,१३२२,२७५८
४२१,४२२,४२३,४२४,१४४२ ४२५,४२६,४२७,४२५,४२६ ४३०,४३१,४३२,१३८०
- ४३३,१४७५ ...४३४,४३५,४३६,१६३३
२८०
१४१४
४३६,४४०,२७६१ ४४१,४४२,४४३,४४४,४४५
४४६,१२७४,१६३६ ४४७,४४८,४४६,४५०,४५१,१५७४,
२१६२,
"Aho Shrut Gyanam"
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________________
४
संवत्
१ (४) २३
१४२३
१४२४
૨૧
१४२६
१४२७
१४२८
१४३७
१४३८
१४३६
१४४०
१४४१
१४४२
१४४५
१४४६
१४४७
१४२६
१४३०
४६४,४६५, ४६६
१४३२
४६७, ४६८, ४६६,५००,५०१,१०२
१४३३ ५०३, ५०४, ५०४, ५०६, ५०७,५००, २३६७
१४३४
५०२,५१०,५११, ५१२, ५१३, ५१४,५१५
१४३५
५१६,५१७,५१८,५१६
१४३६
१४४६
१४४९ ( ? )
१४५०
૧૫,
१४५२
१४५३
बीकानेर जैन लेख संग्रह
लेखा
संवत्
૩
४५३, ४५४,४५५, ४५६, ४५७, ४५८ ४५१, ४६०,४६१, ४६२ ४६३,४६४,४६६,४६७, ४६८, ४६६, ४७०, १६२८ ४७१,४७२, ४७३, ४७४, १०१६ ४७५, ४७६, ४७७, ४७८, ४७१, ४८०, ४०१, १६४८
१४५४
१४५४ ( ? )
४०२, ४०३, ४०४, १३२८, २७६८ ४८५, ४०६, ४७, ४८८,४८१, ४१०
१३७६
४६१, ४१२,४६३
५२०,५२१,५२२,५२३,५२४,५२५
५२६,५२७,११६७
५२८,५२६
५३०,५३१,५३२, ५३३, ५३४,५३५, ५३६,५३७
५३८, ५३६,५४०, ५४१, ५४२, ५४३
५४४, ५४५
५४६,५४७, १८३२
५४८, ५४६,५५० ५५१
५५२,५५३
५५४,५५५५५६, ५५७, १२१०,२४०१
१३५०
५५८, १५३३
५५६, ५६०, १६२२
१३४०, १७१७,२३६४
५६१,५६२,५६३
५६४,५६५,५६६,२३४६
१२३४
(१) ४५४
१४५६
१४५०
( ) ५७
१४५८
१४५६
१४६०
१४६१
१४६२
१४६३
१४९४
१४६५
१४९६
१४६७ (१)
१४६८
१४६६
१४७०
१४७१
१४७२
१४७३
"Aho Shrut Gyanam";
लावू २५७,४६८
५६६,५७०, ५७१,५७२,५७३,
५७४, २४५२,२८१०
२६, ५७५,५७६, ५७७, ५७८,५७६, ५८०, २२७४, ५८१
५८२,५६३, ५०४, ५८५१२७८ ५६६, ५०७,५००, ५०६, ५०, ५११.
५१२, ५१३, ५६४,१६३२, २७७०
५६१,५१६
५६७, २६८, ५९६,६००,६०१,६०२,
२४६७
६०३, ६०४,६०५
६०६,६००, १०३१
६०७,६०९, ११०,६११, ६१२,२३४५
६१३,६१४,६१५,६१६,६१७, ६१०,६१,६२०,६२१,६२२,६२३,
६२४,६२५,१३४५, १६०६ ६२६,६२७,६२८,६२१,६३०,६३१,
६३२,६३३,२२७६, २४५१
६३४
६३५,६३६,६३७,६३८,६३९,१५९६ ६४०, ६४१,६४२, १४३, ६४४,६४५, ६४६,६४७, ६४८, ६४९, ६५०, ६५१६
६५२,२४१६
६५३, ११४६
६५४,६५५,६५६, १८८१
६५७,६५०, ६५९,६६०,६६१,६६२, ६६३,६६४, १२१६,१३४७ ४६.६६५,६६६,६६७, ६६८, ६६९,६७०,
६७१,१६५०, २६१८,२६१६, २६२१,२६२२,२६२४,२६२५, २६२६, २६२७,६२६२८, २६३०, २६३१, २६३२. २६३३, २६३४, २६३५, २६३६.२६३७, २६३०,२६१६,२६४०, २६४१,
Page #598
--------------------------------------------------------------------------
________________
संवत्
२०
परिशिष्ट-~-के लेखाङ्क संवत्
लेखाङ्क २६४५,२६४६,२६४७,२६४८,२६४६, १४६०
७४८,७४६,७५० २६५०,२६५१,२६५२, १४६१ ७५१,७५२,७५३,७५४,७५५,१२३१, २६५३,२६५४,२६५५,२६५६,२६५७,
१३५६,१६२१,१६५७,२३७७,२७४० २६५८.२६५६,२६६०,२६६१,२६६२, १४६२ ७५६,७५७,७५८,७५६,७६०,७६१, २६६३,२६६४,२६६५,२६६६,२६६७,
७६२,७६३,७६४,१२१८,१५१५, २६६६,२६७०,२६७१,२६७२,२६७३,
१८७५,२३३६,२७६३ १४७३ (?)
१२६४ ॥
७६५,७६६,७६७,७६८,७६६,७७०, १६(? ४)७३
७७१,१३१६,१४४४,१४३७,१४७६, १४७४ ६७२,६७३,६७४,६७५
१६०१,१६४७,१८२६,२३४७,२३८५, १४७५ ६७६,६७७,६७८
२६२०,२६७४,२७६६ १४७६ ६७६,६८०,६८१,६८२,६८३,६८४, १४६३ (?)
१३२५ १४७७ ६८५,६८६,६८७,६८८,६८६,६६०, । १४६४ ७७२,७७३,७७४,७७५,७७६,७७७,
२७४३
७७८,७७६,७८०,१३३६,१६१० १४७८
६६१,६६२,१७६८,२५३५, १४६५ ७८१,७८२,७८३,७८४,७८५,१३३८, १४७८ (?)
८२४
१३५१,१५०२,१६५६,२२५६,२४८५ १४७६ ६६३,६६४,६६५,६९६,१३००,
२५१३ १५७६,२६२३,२८१५ । १४६६ ७९६,७८७,७८८,७८६,७६०,७६१, १४८० ६६७,६६८,६९६,७००,७०१,७०२
१८६३ १२२४ | १४६७ ७६२,७६३,७६४,७६५,७६६,७६७, १४८१ ७०३,७०४,७०५,७०६,७०७,७०८
७६८,७६६,१८६४,२६८६,२६६३, १५७८
२६६४,२६६६,२६६८,२७४६ १४८२ ७०६,७१०,७११,७१२,७१३,७१४, १४६८ ८००,८०१,८०२,८०३,८०४,८०५, ७१५,७१६,७१७,७१८,७१६,७२०
८०६,१३४८ ७२१,१५३० | १४६४८०७,८०८,८०६,८१०,८११,८१२,८१३, १४५३ ७२२,७२३,७२४,७२५,७२६,१३३६,
८१४,१३२७,१३४१,१३७५, १८७२,२२३५
२२८४,२४६४,२५३७ १४८४
२६६२
८१५,८१६,८१७,८१८,८१६, १४८५ ७२७,७२८,७२६,१३१४,१३१७,१३५८, |
८२१,८२२,१३३०,२१५७ १५७५,१६६६,२७०५,
८३७,८३८,८३६,८४०,८४१,८४२, २७७२
८४३,८४४,८४५,८४६,८४७,८४८, १४८६ ७३०,७३१,७३२,७३३,७३४,७३५,
७४६,८५०,८५१,८५२,८५३,८५४, १२०५,१२१७,१२६६
.८५५,८५६,८५७,१३६०,१६१८ १४८७ ७३६,७३७,१४३०,१४७३,१८३५,
२३४४
. १६५८,२०३२,२१५२,२१५३,२१५४,
- ७, ७३८,७३६,१२७३,१३४३
१९६१,२२३६,२४७६,२७३६ १४८८ १४०६ ७४०,७४१,७४२,७४३,७४४,७४५, १५०२
८५८,८५६,८६०,८६१,८६२,८६३, ७४६,७४७,२५२६
१५८१,२८२६
"Aho Shrut.Gyanam"
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संवत्
१५०४
१५०५
१५०६
लेखाङ्क | संवत्
लेखाङ्क ८६४,८६५,८६६,८६७,८६८,८६६, १५१३ १६१,९६२,६६३,६६४,६६५,९६६ ८७०,८७१,८७२,८७३,८७४,८७५,
६६७,६६८,६६६,९७०,९७१,६७२, ८७६,८७७,८७८,१२७६,१४३३, ९७३,६७४,६७५,६७६,६७७,६७८,६७६, १५१२,१६४५,२१६२,२४१०
९८०,१३५३,१५०६,१६१६,१६३५, ८७६,८८०,८८१,८८२,८८३,८८४,
२२१६,२३७६,२४६५,२५१४, ५८५,८८६,८८७,८८८,१२६५,१३०२
२७४६,२८१४ १३२०,२४८२ ८८६,८६०,८६१,८६२,८६३,८६४, १५१४
९८१ ८६५,८६६,१२०७,१२५५,१२८४, १५१५ १८२,६८३,६८४,६८५,६८६,६,८७ १६३७,२६६१
१८५,६८६,६६०,१२०८,१७६६, ५६७,८६८,८६६,६००,६०१,६०२,
१६३०,२२७७,२७६४,२८१६ ६०३,६०४,६०५,६०६,६०७,६०८,
६६१,६६२,६६३,६६४,६६५,६६६, १३१८,१३२६,१६०७,१८११,
६६७,६६८,१५१३,१६०५,१७५५, २४७८,२५२८,२६६८,२६६५,२७४५
१७६१,१८१६,१८३८,२२४६,२४४८, ६०६ ९१०,६११,६१२,६१३,६१४,
२७५०,२७५३, ६१५,६१६,६१७,६१८,६१६,६२० १५१७। ६६६,१०००,१००१,१००२,१००३, ६२१,६२२,१२७६,१३२१,१३३६, |
१००४,१००५,१००६,१२४४,१२४५, १४३६,२४११,२४५०,२५२६,२८३६
२४०८,२४४२,२७७३, ६२३,९२४,६२५,६२६,६२७,६२८ १५१८ १००७,१००८,१००६,१०१०,१०११, १२८१,१३७४,१६२५,१८७३,१९०७
१०१२,१०१३,१२२७,१२८५, २१६६,२३६५,२३७०,२२१७
१५५८,१८२८,१८८७,१८९७, ६२८,६२६,६३०,६३१,६३२,६३३,
१९८२,२६८२,२६८४,२६८५,२६८६, ६३४,१२२१,१२२२,१२४०,१३४२, 1
२६९०,२६६७,२७००,२७०१,२७०२, १३६१,१४३५,१७१८,१७६४,१८२३,
२७०३,२७०८,२७०६,२७२०, १८३१.१८४२,१८६५,१६८०,
२७२८,२७६०,२८००,२८०४, . २७४१,२८२३
२८०५,२८२१ ६३५,६३६,६३७,६३८,६३६,६४०, १५१६ १०१४,१०१५,१०१६,१०१७,१०१८, ६४१,१२०४,१२१३,१२२८,१३५६,
१२१५,१३४४,२३५०,२३६१,२४८४ १३६२,१३७७,१८६६,२३६८, १५२०
१०१६,१८७६,२७४७ २४०६,२७५४,२७७१ | १५२१ १०२०,१०२१,१०२२,१०२३,१०२४ १४२,६४३,६४४,६४५,९४६,६४७,
१०२५,१०२६,१०२७,१२५१,१२६३, ६४८,६४६,६५०,६५१,६५२,
१६०३,१७६३,२१५५,२३३६ १३०४,२७३०
१०२८,१२७७,१५८४,१६०८,१८८०, ६५३,६५४,६५५,६५६,६५७,६५८,
२३५४,२८३३ ६५६,६६०,१६६२,१७६२,१६२६, | १५२३ १०२६,१०३०,१०३१,१०३२,१०३३, १६६१,२२४५,२४८६,२६२६,२७७५
१३६६,१५०३,१५५६,२२८०
१५०६
१५०६
१५१०
१५११
१५१२
"Aho Shrut Gyanam"
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--------------------------------------------------------------------------
________________
संवत्
परिशिष्ट-क
लेखाङ्क | संवत् ४६५,१०३४,१०३५,१०३६,१०३७,
१०३८,१२८३.१८१३,१८१४,१८३६, २५४०,१८७७,१९३४,२१५६,२१८२,२४४७ १५२५ १०३६,१०४०,१०४१,१०४२,१०४३,
१०४४,१०४५,१२५२,१३१५,
१५१०,१८७६, २३५२,२८२८ १५२६
१०४६,१०४७,१०४८,१६९१ १५२७ १०४६,१०५०,१०५१,१०५२,१०५३,
१०५४,१२२६,१२५०,१२६१,१३७६, १४४१,१५०५,१६००,२३८६,
२६८०,२७६५,२८२२ १५३६ १५२८ १०५५,१०५६,१०५७,१०५८,१०५६, १२४६, १२६७,१३०१,१३३७,
१५४० १५०७,१८७४,१९८३, २१७५, १५४२
२३४२,२४८७ १५४३ १५२६ १०६०,१०६१,१०६२,१०६३,१०६४, १५४४ १३०३,१५३५,१७८१,२३५१,२४७७, ! १५४५
१५४६ १५३० १०६५,१०६६,१०६७,१५८२,२४४१, १५४७
२४८० । १५४८ १०६८,१०६६,१२४६,२३४३,२४४६, १५३२ १०७०,१०७१,१०७२,१०७३,१०७४,
१०७५,१२२३,१२८२,१८१८,१९०६ १५३३ १०७६,१०७७,११५७,११६१,१८१५,
१८२५,२५३१,२७२७ | १५४६ १५३४ ३,१०७८,१०७६,१०८०,१०८१,१०८२
१०८३,१०५४,१०८५,१०५६,१०८७ | १५५० १०८८,१०८६,१०६०,१२०६,१२१६, १२५८,१२६८,१३७८,१४३४,१६०२, १६०४,१७६५,१८२४,१८८६,१६०८, | १५५२
२२८१,२३४१,२३४६,२५३०,२७१० । १५५४ १५३५ १०६१,१०६२,१०६३,१०६४,१६४६, १५५५
१८२६,२२२०,२२७३, २७४२,२७४४ १५३६ १०६५,१०६६,१०६७,१०६८,१०६६,
११००,११०१,११०२,११०३,११०४,
१२५७,१२६६,१४३६,१४७४, १५५८
लेखा १५०८,१५१६,१५५४,१५५५,१६६५, १७५६,१८१७,१८६८,१६०६,१६१०,
२३३३,२६६६,२७११,२७१२, २७१३,२७१४,२७१५,२७२१,२७२४, २७२५,२७२६,२७३१,२७३८,२७४८, २७७६,२७७६,२७८०,२७८१,२७८२, २७८३,२७८४,२७८८,२७९२,२७६४, २७९६,२८०१,२८०३,२८०६,२८०७, २८०८,२८०६,२८१०,२८११ १४४०,१५३८,१६६५
१८६६
११०५ ११०६,१३०५,१५८३,२५२२ ११०७,१२६४,२५३६ ११०१,१२२५
२४७१ १११०,११११,१४८६,१७८२,२४१३
१३६६,१५१८
१११२,१११३,२४४५ १११४,११६२,११६४,११६०,१४१६, १५६४,१८०६,१८१०,१८१२,१८३४, १८४७,१६२८,२००४,२१५६,२२६०, २३५७,२३६०,२४६३,२६११,२६१३,
२६१४,२७२६,२८८६,२८८७, १११५,११५६,१४६१,१५६४,१६४०, १६४४,१६६८,१६००,२४६८,२५३२
१११६,१११७,२४४४ १११८,१११६,११२०,११२१,१२५३,
१२७१,१२८७,१३७२,२३३७
८,११२२,१६१७,२४५३ ११२३,११२४,१२५४,२३२४,२४४६
१२५६,१५५३,१७५७,२४४३ ११२५,११२६,१५३७,१६२६,१५१६,
२२०६,२४८८ ११२७,११२८,२५७२
"Aho Shrut Gyanam
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--------------------------------------------------------------------------
________________
बीकानेर जैन लेख संग्रह
संवत्
लेखाङ्क
१५७१
१५. . .
लेखाङ्क संवत् १५५६ ११२६,१८२०,१६३१,२४८६,२५३३ । १५६३ २७,२८,३२,३३,३४,३६,३७,३८,३६ १५६० ११६८,१५२८,१५२६,२७५१,२७५२
४०,४१,४२,४३,४४,४५,११६३,१२७२, १५६१ १,११३०,१५६७,१६०१,२५०३
१३६५,१७५३,१६१२,२२३७,२३६२, १५६२ २६०६
२३८३ १५६३ ११३१,१५०४,१७५६,२२२१,२५१२ / १५६४
११४५,२१६१,२२८२ ४,१३६८,२१३१,२५२३,२५२७ / १५६५ ५,१५५७,१५६५,१८४२,२५३४,२६७६
११३२,१६१४,१६६४ | ()६६ १५६८ ११३३,११३४,१३३३,१६०६,२७७४ १५९६
१५५६,१७०२,१६०३,२७८३ १५६६
१४५५,२४१२ | १५६७ १५७० ११३६,१५३२,१५३४,१६४८,१६४६, ! १५६८
१७५८ २५०४ | १५६६
११४६,१५७७ ११३५,११६५,१४३८,२३७८ १५६ (?)
२२१८
११४७,१३५५ १५७२ ११३६,११३७,१२८०,१५११,२४४० १५७३ १५६०,२१५८,२६०२
१३६३
११५२ १६०२ ११३८,११३६,११४०,११४१,१६३०, १५७५
२७८३ १६६३,१६३२,२३२६,२६८१,२८८३ १६०५
१८४० १५७६ ३५,११४२,१२२६,१५८०,१५९६,
१८,१४३१,२१७६,२२४३ २००५,२१६३,२२४७,२५३६,२७३३,
२३८७,२३६५ २७३७,२८३७ १६०६
१८५० १५७७
१७८० १५७८ २१८०,२७१७ १६१२
२६७७ १५७६ ११६६,१६५२,१९८१
२२३४ १५८० ११,२७२३,२७३४,२७६७
१२,१७०१,१८६१,१९२६ १५८१ १७६०,१७६३,१८७८,२२५७,२४५६
२५०२ १५८२ ११४३,१२६४,२२१४,२३७२,२७२२ १६१८
१९४२ १५८३ ११५८,१६२६,१८४६ १६१६
११६७,२३३४ १५८५
१५६८, १६२२
२८३० १५८५(? १५६४)
२३२६ १६२४
१६२७,२४७६ १५८६
१९५० १६२५
२७०७ १५८७ १५८५,१८२१,१६०२,२००६,२३६२, १६२६
१३०७,२३१६ २५००,२६७५ । १६२७
१४५२,१६०४ ()८७ ११५१ १६२८
१७५४,१६२७ १५६० ११४४,२७८६ १६३४
१३६४,१७७३ १५६१ १,२,२८२५ | १६३६
२१३२,२२३८ १५६२ २,२४८३ । १६३७
१७७६,२००७
"Aho Shrut Gyanam"
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--------------------------------------------------------------------------
________________
परीिशष्ट-के
लेखाङ्क | संवत् १४३२, १६५५
संवत् १६३८ १६४० १६४१
१६४४
१६४६
१५४६,१६११ . १६२३ । १६८७
१८८३
२४१६ । १६८८ ११५३,२४६० | १६८९
२००८ | १६६० १९६७,१९६८
१६५२ १६५३
लेखाङ्क १२४१,१४६०,२२१० १४२४,१४२५,१४२५,१४२६,१४६१,
१४७२ १४२६,१४२७,१८३६,१६७०,२४०१,
२५६१ १५६३,२५६६
२१३६ १४२३,१४६२,१५००,२४६६ १३११,१५२१,१८२७,२३४०
१७८६ १४१५,१४१७
१४२०
२५७५ ११६६,१२०१,१८४५,२२२४,२३६६
१८२२,१८५४ ११६८,१२०३,१३०६
१६५५
१६६४
१६६४ २६१० १६६५
१२२०,१६२४ १६६६ १३६६,१४००,१४०१,१४०२,१४०३, | १६६७. १४०४,१४०५,१४०६,१४०७,१४०८, १६६६ १४०६,१४१०,१४११,१४१२,१४१३, |
१७०१ १४१४,१४५०,१४५१,१४५६,१४६३, | १७०३ १४६२,१४६३,१४६४,१४६७,१४६८, १७०५ १७१३,१७२३,१७२४,१७२५,१७७१, । १७०६
२००६ १७०७
२१३३,२१३४ १७०८ ११५४,१२५६,१४६४,१५३१,१५५२, १७०६ २१३५,२६००,२८३६ १७१०
२५७३ १७११ १९४४
१७१३ १२०२,२२२३,२२४८
२४६२ १७२३
२०३५,२८८२ १७२४ १२१६,१५४७,१५४८,१५४६,१८८८, १७२५
२८६७
१७२६ २८७६,२८७७,२८७८,२८७६ १७२७
१८४४,२०५६ १७३० २१६०,२२२२ १७३१
२३२८ १७३२ १३०६,२३६३ | १७३५ २५,१२३७,२६०६ । १७३७
२२८०,२५७८,२५८८,२८७४
२२२५,२८३२ १२००,२५७६
२५१७
१९६६ १७७२,२३७१
२५०८ १४५८,१४६८,२५६७
२५०६ १९१६,२६०१
२५६४
२५८६ १४५३,१७८८ १२६२,२५८७
१६७१ १६७२ १६७३
१६७४
५४
१६७५ १६७६ १६७७ १६८१ १६८३ १६८४ .
२५५२ १४५६,२११२
२२०० २३३१,२३३२,२५६३
"Aho Shrut.Gyanam"
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--------------------------------------------------------------------------
________________
बीकानेर जैन लेख संग्रह
संवत्
लेखा
१७४० १७४२ १७४७ १७४८ १७४६ १७५१ १७५२
१७५५
१७६४ १७६७ १७६८ १७७१ १७७३ १७७४ १७७५ १७७६ १७७७ १७७८ १७७६ १७८० १७६१ १७८३ १७८४ १७८५ १७५६ १७६० १७६२ १७६४
लेखाङ्क | संवत् ५२,२१३८,२५८३ | १७६५
२५६० १७६६ २६०४ । १७६८ २३५६ १८००
१८०१ २५८४
१८०४ १६१५,२४७२,२५७४ | १८०५
१४७० १८०७ १२६३,१६७४,२४१४
१८०८ १४६६ १८१०
२४६१ | १८११ १६७३,१६७४ | १८१५
२३१८ | १८१६ २०५४,२४३३ | १८१८
१४४५,२१३६ | १८१६ १६५५,२५७६,२५८५ १८२०
२०६८ १८२१ १२६१,१७६६,२५०१ १८२२
२०६६
१८२५ २३६४,२४३४ | १८२६
१५१६ १८२७ १४७१
१८२८ २४६१ १९२६ २५७७
१८३१ १८३४
१८३५ २४५६ १८३६ २८७५
१८३७ २१४०,२५६८ १८३८ २०५३,२१०६,२११० १८३६ १७७४,१६४१ १८४०
२०६७ | १८४३
२५५४
२८४५ २०१६,२०१७ १७२१,१६४०
२०६८ २६०५,२८४३
२१४२ १८४६,२०७८,२१४१ २४७३,२८४४
२५८६
२५५५ २०१३,२०१८
२८५४
२०१४ १६१५,१६१६ १२४८,१२८८,२५१५ १७६०,२०६५
२५५१ २८६१,२८६२,२४६४ १४९६,२०२१,२३६१,२४१५
१५२५ १८६,१९८४
१४६० २२६४,२२६५,२२६६
२०३३ २०७५ २०८१
२०७० २१४३,२२७८
१० २८६०,२६०८ १३६७,२२८३
२५४३ १८४८,२०६२,२१४४,२५४४
१८९४,२२६७
१५२४
१३०८ | १८४५
२५०६ १८४६ १५१७,१७८३,२०५७,२०७७ १८४६
"Aho Shrut Gyanam"
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--------------------------------------------------------------------------
________________
लेखा
परिशिष्ट-क संवत्
लेखाङ्क संवत् १८५०
२४०४,२४१७ १ १८८४ १८५१
२४१८,२५८०,२५६५/ १८८५ १८५२ २२२७,२२४०,२५६६,२८४१,२८४२, १९५६
२८७०
१८८७ १८५३
१९१४,२००२ १८५४
१५८६ १८५५
१५४४,१७९२ १८५६
२०६५,२६१७ དདད १८५७
१८३० १८८६ १८५८
२१०४,२१०५ १८६० १८५६
२५५० १८६१ १८६० २०१०,२०११,२११४,२१४५,२२१३, १८६२
२५६२ । १८६३ १५६१ . ११७०,१५४०,२१०२,२१०३,२२१२,
२२१६
१८६४. १८६२
२०५६,२४७४ १८६५ १८६३
१९१३,२०२४ १८९७ १८६४ १८६६,२६१६,२८७१,२८७३ १८६५
१५४१,२४२१,२५११,२८६६ १८६६
१६६५,२३५८,२३६०,२५८१ १८१८ १८६७
२४३१,२५०७ १८६६ १९६८
२२२८ १८७१ १४५४,१७२२,१७३३,१६२५,१६५३,
२१०६,२४३२, १६०० १८७२
१९५४,२०४५,२०४६,२०४७ १९०१ १८७३
२६१५ १६०२ १८७४
११६०,१५४५,२०४१,२८७५ १८७५
२१०१,२५६२ १८७६
२५६२,२५६३ १९०४ १८७७
१७६१,१६५५,२०८२,२५६४ १८७८
१४८५,२०८०,२१०७,२२२६ १८७६ १२८६,२२६६,२३००,२३०५,२५४८,
२०६४ १८८१ १५६२,२३०४,२५१६,२८६३ । १६०५ १८८२
१७७५,२२८६,२८५४ १९८३
१८५७,१८५८,१३६६,२८३५
२०१६
२२५८ १६१८,२२०२,२२०३,२२०४ ११७२,११७३,११७४,११७५,११७७, ११७८,११८०,११५१,११८६,१४१८, १६४१,१६५१,१६६७,१७३४,१६२२, १९६३,२२५५,२२५६,२५४६ १५४२,२०७६,२३०७
११६१,१६६२ ११८८,११८६,२१४६,२२४२,२२५४ १३६८,२१४८,२२३०,२२४१,२४२२
१४८४,२३१५ ११७६,११७६,१६३३,१६३६,२१६६,
२२०५,२३३० २२५२,२२५३
२५४१,२५४२ १५६५,१६३५,१७६४,१७६५,१७९६, १७६७,१७६८,१७६६,१८००,१८०१, १८०६,१६५१,२३८०,२३८१
२४६३ ११८३,११८४,११८५,२०२६,२०२७, २३७८,२३७९,२५६५,२५६६,२५६७,
२५६८
१५६२ २०२०,२३१६,२४६२,२८४६
१९८५,२००३,२०१२,२३१० १५७६,१५८७,१५८८,१५६०,२३६३,
२३६६,२४७५,२८५८ ११६६,११७१,१४६६,१७३६,१७४३, १७४४,१७४५,१७४७,१७४८,१७४६, १७५०,१७५१,१७५२,१७७०,१७७६, १८५६,१८६३,१८८२,१८८५,१६७६,
२३२२ १७,१२३४,१२३५,१२३६,१२६५, १२६६,१२६८,१२६६,१५५०,१५६८, १६५७,१६५८,१६५६,१६६१,१६६२,
"Aho Shrut.Gyanam"
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________________
लेखा
१६०७ १९०८ १९०६ १६१०
१६१२
१९१४
बीकानेर जैन लेख संग्रह
लेखाङ्क १६६३,१६६४,१६८०,१६७२,१७४६, १८६५,१९२०,१९६४,२१७७,२१८१,
२४७२,२४०३ २२०१,२२६८ १६३३
२२७६ २१०८,२११५ १९३५ २३२३,२४०५
२३६६,२४०० १९३८ १२४७,१५६७,१८६४,१८६६,१६७६, | १९३६
२०६१,२०८६,२३१३ ! १६४० ३०,४६,१७४०,२०६०,२०६१,२१८६, १९४१ २१५८,२२७५,२४६५ १९४२
२१४६१६४३ ३१,१६८५,१७२६,१७२६,१७३१, । १६४४ १७३७,१७३८,१७४१,१८६१,१८६२, ! १६४५ १८६७,१६२३,१९२४,२०१५,२०२२, | १९४७ २०२८,२१८४,२१८५,२१८७,२१८६, १९४८
२१६०,२१६१,२३२३ | १९५०
२५२४,२५२५ १९५() २०४२,२०६७,२१५१ | १६५१ २०२५,२४३८,२५२१ १९५२
२१७३,२४३८ १९५३ १५६६,१५६१ १९५४
२३८६ १९५६ १८५६,१६५६,२०५८,२०८५,२०८७,
१६५७ २३०२,२३०३ १९५८ २२,११६६,१६७५,२३११,२५४७ १६५६
२११३ १६८६,१६८७,१६८८,१६८६,२६१२
२०५५ १९६४ २०४०,२७०६,२७१६,२७६५,२८५० । १६६५
२३१२,२८४६ १३,५०,१२३८,१४१६,१४२१,१४२२, | १९६६ १४६७,१५५१,१५६३,१६४२,१६४३, | १९६७ १६६०,१६७६,१६७७,१६७८,१६८१, | १९६८ १६८२,१६८४,१७२८,१८६०,१८६८, १९७१
१८७१,१६२१,१६७७,१६७८,२०४३, २०५०,२१६५,२१६६,२१६७,२१७०,
२१७२,२१७८,२३२५ २११६,२११९,२१६४,२२६६,२३७४,
२३७५,२४२५,२४२७,२८५१ ११६२,१६७३,२०६६,२०७४,२२६५ ११५६,२२६०,२२६३,२५०५ १६३८,२११७,२१६८
२८४७ १६८८,२४१६,२४२३
२८६६
१८०२,१८०३ १६८७,२०४४,२०६३,२२६२,२२६४
२०७३ १२७०,२०५६,२०६० २३८२,२८५२
२१२१ २५६०
२५२० २१२०,२५५२
२८४८ २०६२,२०७२,२०६४
१६१५
१६१८ १९१६ १९२० १६२१ १९२२ १९२३
१६२४ १९२५ १६२६ १६२७ १६२८ १६३०
२३३५ २०३८,२०७६,२२८६,२२६१
१६८६,२०८४,२५५६ १६५४,२०४८,२०४६,२५३८
१५०१,२२६२ २३२७,२५५७,२५७०,२५७१
१५६५,१६३८,२३१४,२७३५ १५६६,१५७०,१५७१,१५७२,१५७३,
२२३१,२२५०
२०६३ १८०४
२०३६ २०७१,२०८३,२१२६,२१७६
"Aho Shrut.Gyanam"
Page #606
--------------------------------------------------------------------------
________________
परिशिष्ट-क
संवत् १९७२
१६७४
१९६८
१९७६ १९७७ १९७८ १९७६ १९८० १९८१ १९८४ १९८५ १९८६ १९८७ १६८
लेखाङ्क | संवत् १६३७,२०८३,२०६८,२०६६,२१००, १९६६
२३२१ / १६६७ १६०५,२१२२
२१२७
२८८८ १९६६ २३०६,२५५६
२००० २८१२ | २००१
२३०१
२८१३,२८१४ । २००२ २०३७,२१२३,२१२४,२४०६,२५५८
२२११ | २००५
२४०७ २००७ २०३६,२४०६
२०३३,२०३४,२३०८ १६७४,२१२५,२२०६,२२०७,२२०८
२१२८,२१२६ २०२६,२०३०,२०३१,२३६४ । २४४१
१९६७ २४४५ १७०४,१७०६,१७०७,१७१५,१७१६, २४४६
२३५५ / २४५३
लेखा २२८४,२२८५,२६०६ १९६८,१६६६,२०००,२२६३,२२७१,
२२७२ २२६६,२२७०
२४६७
२०६६ १८०७,१६६०,१९६२,१६६३.१६६४,
१९९५,१६६६,१६६७ क. १७०५,१७०८,१७०६,१७११,१७१२.
१७१४ २१६७,२१६८ २३०८,२३०६
वीर संवत्
१६६०
१९६२ १६६३
२३७३ १७०३ २८१२ २५४६
"Aho Shrut Gyanam"
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--------------------------------------------------------------------------
________________
परिशिष्ट-ख स्थानों की सूची
संवत् लेखाङ्क | संवत्
लेखाङ्क प्रजयपुर २१ | कालूपुर
२५११ अजाहरा (ग्राम)
क्लिपत्यकूप
२३१७ अजीमगंज ११६६,२०४८ कुमरगिरि
१७५४ अनोपशहर २४६६ कुंडलनगर
१६०२ अमरसर
१४०२ कोटड़ा ग्राम
२८२२ अहम्मदनगर २५३६ कोडमदेसर
२५६६ अहमदाबाद (अहम्मदावाद, अमदाबाद)
कोडीजधना
६८० १०४१,१५७६,१५८५,१५८६, ! कोलर (गांव)
२१८२ १८८० खडीयाला
२४३८ अहीयापुर
खुबहाड़ा
११२२ आउवा (ग्राम) २५८५ । गंगाशहर
२१७६ अंबड़थला १०५२ गंडलत्थ ग्राम
१९५२ मामलेसर १७५७ गडालय (नाल)
२२६७ इलद्रंग
गागदुणी
२३ ईडर नगर २४४८ गिरनार
१२६६ उगमण ७६० गिरिपुरी
२४६८ उंवुग्राम
गुढा
१५२५ उदयपुर १२६२ गुरूकाकरचा
१५६० उदरामसर
२२०६ गोमडल नगर
१८१६ ऊकेशनगर २१४८,२१४६ | गोल (ग्राम)
९६८ ऊभटा २७७५ चउ (गामा)
१४३५ कच्छोली (ग्राम)
चंडली ग्राम
२४४० कदंबगिरि (तीर्थ) १७०४,१७०६,१७०७,१७१५, | चूरू
२४०४,२४१८,२४२७ १७१६ छिला
२२३१ कन्हाड़ा (ग्राम)
७२८ जांगलकूप दुर्गनगर (जांगलू) १५४३ कपरेणवास १५३६ जांगलू ग्राम
२२५८ कलकत्ता २५५६ जालहर (ग्राम)
६५६ काचिल (ग्राम) १६०० जालुर
११२३ कांचिन्पुर पत्तन २३६५,२३७० / जावर नगर
२५८६
"Aho Shrut Gyanam"
Page #608
--------------------------------------------------------------------------
________________
लेखा
परिशिष्ट-ख संवत
लेखाङ्क | संवत् जेसलमेर (जेसलमेरु, जैसलगढ़)
नादिया (ग्राम)
१०७७ ११००,१४७४,२१६१,२६७६,२८४६,२८५४, ! नापासर
२३३५ २८४१,२८७५,२८६७,२७२५,२७०२,२७८३, | नाल (-पुर, गांव, ग्राम) २८६२,२८६६,२८०८,२८१३,२८१४
२२८४,२२८५,२३०८,२३१४,२६१५ झझाणी
२७५६ | नोखामंडी २२६६,२२७०,२२७१,२२७२,२२६३ झझू (ग्राम)
२३२१ । नौहर
२४३८,२४६६,२४७३ झाड़उली (ग्राम) १०२१,१११८ पत्तन (पाटण)
१६२७,२३१८ ...उलि (ग्राम)
६७ पाविला (ग्राम) टीबी २४३८ ] पाटरी (ग्राम)
१५७६ डाभिला (ग्राम) २१८० - पाली नगर
११७६,११७६ डीउलद्र (ग्राम) १०३० पिडवाण (ग्राम)
१०१८ डीसा (ग्राम) १०६२,१८२६,२२२० पिंडनगर
२५४१ तभरी (ग्राम) १५५७ पोंडरवाड़ा
८७५ तिमिरपुर १०६८ पीरोजपुर
२००६,१६०२ तेजासुर (गांव)
पुगलिया
१०१२ थारवलि (ग्राम) ११३८ प्रासीना (ग्राम)
२३३६ थोहरी (ग्राम) १५९८ फलवधि (ग्राम)
६६१ दढीयालि (ग्राम) १६६५ । बड़ोपल
२४३८ दधीलिया (ग्राम) १८३६ बदहद (ग्राम)
२५२२ दसाडा (ग्राम)
२२३४ बहिनपुर
१८२७ दहीसर (ग्राम) १०२६ । बहादरपुर
१२४० देकाबाड़ा (ग्राम)
७,७६३ बावड़िया (ग्राम) देपालपुर
बीकानेर (विक्रमपुर, विक्रमनगर, विक्रमपत्तन, देशणोक (वड़ावास, आथमणावास)
बीकानेयर, बीकानयर २२३३,२२४२,२२५०
१,२ख,४,१३,१५,१७,१८,१६,५३,११७२, देशलसर
२२६४ ११५४,११६६,११६६,१२३४,१२३५,१२३६, दोमा (ग्राम)
४०३ १२३८,१२५६,१२५६,१२६०,१३१३,१३८५, दौलताबाद
११६६ १३९६,१४१६,१४२०,१४५०,१४५४,१४६७, धाड़ीवा (ग्राम)
२५३२
१५३१,१५३२,१५६७,१५६६,१६४२,१६५६, नडुलाई
१४३८ १५६५,१६६०,१६७६,१६८६,१७१५,१७१६, नरसाणा ग्राम
२७७१
१७१८,१७२२,१७४४,१७४३,१७४७,१७६१, नराइणा
२५८४ १७६२,१७७०,१७६२,१८०४,१८०७,१८६०, नलकछ (ग्राम)
२३५० १८६८,१६३१,१६४८,१६४६,१९६५,१६७४, नवहर (देखो--नौहर)
१६७५,१६७७क,१९६२,१६६४,१९६५,१६६६, नागपुर
२५३३,२२३७ १६६७,२०१६,२०३३,२०३६,२०३७,२०७१, नाथुसर
२५५५ २०७२,२०६६,२०७७,२१०१,२१०२,२१०६,
६६४
"Aho Shrut Gyanam"
Page #609
--------------------------------------------------------------------------
________________
संवत्
लेखा २१२३,२१२८,२१२६, २१३७, २१७०, २२२७, २२२८,२२२६,२२४०, २२८५, २२६२, २३०८, २३१२,२३३५,२४०२, २४०७, २४३८, २५०४, २५४३,२५४७,२५५३,२५५६,२५७४, २५७८, २५८२,२५८४, १५६२,१६३५,१६३६, १७०५, . १७०६,१७०६,१७११,१७१२,१७१४, १७६५, १७६६,१७६७,१७६८, १७६६, १८००, १८०१, १८०२,१८६४,१८६६,२०००, २०२४, २०२६, २०२७,२०५७,२०६७, २०६८ २०६६, २१००, २१०३,२२००,२२३३, २२८३,२३१०, २३११, २३१६,२३८२,२५५२,२५८८, २५८६, २५६२, २५१८,२६०८,२६१६, २८४४
११०६, १८२५
बीजापुर
बेहल्यावास
भट्टनगर
भद्रपुर भसुड़ी (ग्राम)
भादरा
भाटीया ग्राम
भाटीव ग्राम
भीनमाल ( पत्तन )
भीमपल्ली (ग्राम)
भूजिगपुर
भेऊ (ग्राम)
मकसुदाबाद
मजाहर ग्राम
टोडा (ग्राम)
मडवाड़ा (ग्राम) sis (गांव)
मंडोवर
मंडपदुर्ग ( महादुर्ग (मांडवगढ़ )
ffair जैन लेख संग्रह
| संवत् माधोपुर
महाजन (ग्राम)
मांडल (ग्राम)
मांडवी बंदर ( कच्छदेश )
मादड़ी
मारोठ नगर
माल्हूराणी (ग्राम)
मावाल ग्राम
माहमवाड़ा
माहरउलि (ग्राम)
माहोबा
मुड़ासा (शहर)
मुंडाड़ा (ग्राम) मुर्शिदाबाद
मुलताण ( मूलतान )
मूडली ( ग्राम ) मोरखयाणा
मोरवाड़ा (ग्राम)
१०७ १०४७,२१५२ | मोरीवा (ग्राम) १६६१ | मोहनपुर १०७८ रत्नपुरी
२४३८ | राकाभूया ( ? )
१९३१ राजगढ़
१२५४
राजनगर
२३७१,२४८२
१२३०
१८१८
राणपुर
राणिया
रायकोट नगर
रिणी नगर (रेणी, तारानगर )
७६२
११६६
१३३
१०१४ | रोहागा (? ग्राम)
७५५ लाटहृद १०१० लाडुलि (ग्राम) १, २ख लास (लासनगर)
लोटीवाड़ा लोलीआाणा (ग्राम)
१६०५,१८१६,२४४५ २५१६,२५१७ लोहीत्राणा ग्राम
लेखाङ्क
२६१२
१५१७
१०५१
६६७
२२७७
३०४
१०७०
२७२६
१०५०
२५५६
"Aho Shrut Gyanam"
१४६०, १७२१
१८७५
२६०१
२७५४
१३६२
२५०४
३३४
६६३
२४३१,२४३८ १५६६,१५८६,१५८७
१७६०
२४३८
१६६०
२४३८,२४६३,२४६४, २४५६,
२४६६,२४६७ २३४२ ५६
१५८२
६४१, १०६७
१०८२
२४१२
१०२४
७२६ | लौद्रवपुर (लुद्रपुर, लौद्रपुरि ) २६८१,२८८२,२८८८
२८४३ वड़इगाम
२५३४ | बड़गाम (वृहग्राम )
२४३८ ११०१,२२८०
Page #610
--------------------------------------------------------------------------
________________
संवत् वडावली (ग्राम) वदेकावाड़ा
वरकाणा नगर
वरणाउद्रा (ग्राम)
वरापी (ग्राम)
वराहलि ग्राम
वरीजा नगर
बाधउड़ा ग्राम
वाराडी ग्राम
वाहली
विराट्ट नगर
वीचावेड़ा
वीरमगाम
वीरवाटक ग्राम
वीसलनगर
वृद्धनगर
श्री श्रीक्षेत्र (श्री क्षेत्र ) शत्रुंजय (महातीर्थ )
शीथेरा
शंखेश्वर (ग्राम)
सतवास
सत्यपुर
सप्रै
सफीदों नगर
समाणा समीयाणा
परिशिष्ट- ख
लेखा } संवत् १९३६ समेताद्रि
१०२२
१८५७,१८५८, १८८३
१३६१
६०८
१२५०, १३७३
२४४२
३२४
४३२ | सिद्धपुर
१७०१ | सिरधर ग्राम
११३४ सिरोही (सिरोही नगर )
१६०१
११५७
६६५,१०३३, ११४२,१११३, ११५८,१३६५. १६२६.१६३०, १६०६, १६४६, १६५६,२२३८ १६०४ } सींदरसी (ग्राम) १०३६ २७२७ सूरतगढ़ २५२१, २५२४
२१६८
२३६४
२५२१, २५२४
२६०३
१६२५
११,१७५५,२२४६
सरदारशहर
सरसा ( - पत्तन )
सवाई जयनगर
सहूआला (ग्राम)
सावुर (ग्राम)
सांगवाड़ा
२२१९,२३४३ | सीबाड़ी ( शिवबाड़ी ) १५७७,२४०८ सुजानगढ़
१२५६ | सूरतगढ़
८७४ | सेहलाकोट
३२८
२३८१,२३८२,२४३८,२३६१,२३८८
स्वर्णगिरि - जाल्योद्धर स्तंभतीर्थ
१८४०
२६८८ | सोहन ग्राम
१२६ हंसारकोट
हनुमानगढ़
१५६२ १२०६,२४६६ | हम्मीरकुल १०७२,१२५५ | हैदराबाद
"Aho Shrut Gyanam"
१७
लेखाङ्क
१९१५,१६१६
१०६१,२४३८
२२२७,२२४०
१२७७,१६०८
११
२८२५ ६०७,१८६७
२७६५
८,६६२,
८७६
१२-२
२४३८
६३६
२५६२
Page #611
--------------------------------------------------------------------------
________________
लेखाङ्क
१८५२
॥
१७२४
परिशिष्ट-ग
राजाओं की सूची संवत् नाम
लेखाङ्क त् नाम १६६२ अकबर बादशाह १२३४,१२३५ / १५६१ बीकाजी-राव १३६६,१४०२,१४०३,१४०४, १८५६ मानसिंहजी कुंवर
२६१७ १४०५,१४०८,१४०६,१४१०, १८२५ मूलराजजी-महाराउल
२०६२ १४११,१६६३
२८४१ १७८१ अखैसिंह महाराउल २८७६
२०६६ १७२४ अनूपसिंह महाराज
२५६४ १९०३ रणजीतसिंह-राउल
२८६८ १६(१४)७३ अमायसिंह
१८६५ रणसिंह-पातसाह
२५४१ १७०५ कर्णसिंह महाराजाधिराज २५८८
१८६४ रतनसिंह-महाराजकुंवार २६१६ २५७५ १८७३
२६१५ १७०७ ॥
२५७६ १८८६ " महाराजा
१६१८ २५६४ १८८७
११७२,२५४६ १६४७ गंगासिंह महाराजा
२३८२ १८८६
१९६२ २५५२ १८६१
१५६२ १९५८
१६८६ १८६२
२३१५ १६५८
१८९३
२१६६,२३३० २५७० १८६५
२५४५ १९६४
१८९७
१५६५,१७९४,१७६६,१७६६, १६३४
२३१४
१८००,१८०१,१८०६,२३८१ १६६५ २२३१ १६०१
२३१६ १९६७ १८०४ १६०२
२३१० २००० १६०५
१२३४,१२३५,१२३६ १८७६ गजसिंह-महाराजा
१७२७ राजसिंह-राणा
१२६२ १५५१ , जैसलमेर
२८६३ १८२५ रायसिंह-कुमार-युवराज २८६२ १८९२ , राउल
१६६२ रायसिंह-महाराजा १३९६,१४००,१४०१, १९७६ गिरधरसिंह-महाराजकुमार २८८८
१४०२,१४०३,१४५०,१७२३ १५१८ चाचिगदेव राउल २७०२ १६६४ ।
११५४,१५३० १५६१ जयतसिंह २ख १६८३ लूणकरण राउल
२७८३ १९७६ जवाहरसिंह-महाराजा
२८८८ १५७१ लूणकरण-राजाधिराज ११६५ १९३० डूंगरसिंह ,
२३१२ १८८१ वैरीशालजी-ठाकुर
२५१६ १५३६ देवकर्ण-(राउल, नृप, दुर्गाधिप) २८१० १६२८ वैरीशालजी-महारावल २८४६,२८५०
२७८१,२७२५ / १५४८ स्योसंघ राजा (मुडासा) २७२६
१९९७
२५४८
"Aho Shrut Gyanam"
Page #612
--------------------------------------------------------------------------
________________
संवत् नाम
लेखाङ्क
१९०५ सरदारसिंह- महाराजकुंवर १२३४,१२३५
१६०८
राजा
२२७६
१६१२
१९२०
१६२४
27
11
21
77
सरूपसिंह महाराज १६६२ सलेम (बादशाह )
१८५६ सवाईसिंघ
१७५५ सुजाणसिंह - महाराज
"
परिशिष्ट - गं
संवत्
नाम
१८५६ सूरतसिंह - महाराजा
१८६०
१८६४,१८६६,२०६१,२३१३
१७६०
१८४५ सूरतसिंह - महाराजा
१८५५
31
१८६१
१८०२
१८६४
१९७५ १८६६
१२६२
१३६६,१४००, १४०३, १४०४ ११६७६
२६१७ १८७६
१९७४
१८८७
१९७३
२५४३ १५४४
१८७३
१८७४
31
"Aho Shrut Gyanam"
33
31
11
"
32
12
"
23
१८६७
"
१६६७ सूर्य्यसिंह - महाराजा
१६
लेखाङ्क
२५५०
२५६२
२२१२
२६१६
२५८१
२६१५
१५४५
२५६२,२५६३
२५४८
११७२
२.३८१
१४२७
Page #613
--------------------------------------------------------------------------
________________
लेखाङ्क
गर्ग
परिशिष्ट-घ
श्रावकों की ज्ञाति गोत्रादि की सूची जाति गोत्र
लेखाङ्क | ज्ञाति गोत्र अग्रवाल-(अग्रोत)
२४६७ १०२८,१०२६,१०३०,१०५५,१०५७,१०६१, गोत्र
१०७०,१०७१,१०७२,१०७३,१०८०,१०६१,
१३७३,१५६३ १०६८,११११,१११२,११२७,११४३,११४५, मीतन (ल? ) (नसीरवादिया) . २६०६ ११६६,१२०६,१२०६,१२२६,१२३४,१२३५, मीतम (मीतल?)
१३०६ १२३६,१२५०,१२६६,१३२२,१३४०,१३४६,
१३४८,१३५०,१३६०,१३६४,१३७६,१५१५, अजयमेरा ब्राह्मण
७१०
१५२७,१५३०,१५३७,१५४६,१५६६,१५८९,
१५६७,१६०१,१६०३,१७५५,१७६६.१७७१, पोसवाल (ऊकेश, उकेश वंश, उकेश ज्ञाति,
१८२५,१८३६,१८७८,१८७६,१८६३,१६१७, उएस ज्ञाति उसवाल, उपकेश ज्ञाति,
१६३३,१६५६,२२०९,२२१८,२२२४,२३२६, उपकेश वंश)
२३३९,२३४६,२४४०,२४४१,२४५६,२४७७, ८,११,३२,१६६,२०२,२०६,२४४,२६६,२७०, २५१४,२७१०,२७३०,२७५१,२७६१,२७६४, २८३,३१६,३०२,३०७,३२१,३२२,३२६,३४८, २७६८,२८१५,२८१८,२८२३,२८२६,२८७७ ३६५,३६६,३८०,३८२,४०४,४१२,४१४,४१५, ४१७,४२४,४२६,४३८,४५०,४५५,४५७,४६०, अम्बिका ४६१,४६२,४६३,४६७,४६८,४७२,४७४,४७७, अहितणा (प्राइबणा, आइच्चनाग, आहित्यनाग, ४७६,४८३,४६३,४६८,५०६,५१७,५१८,५२२, आदित्यनाग, इच्चणाग) . ५३२,५३६,५३७,५४३,५४८,५५४,५५५,५५६, ८६७,१११७,५२५,३५३,६००,८४६,८७१, ५५८,५५६,५६५,५६६,५६७,५६८,५६६,५७३,
१२७५,१५२८,१८३६,२२३७,२३५३ ५७५,५८०,५८२,५८४,५६४,५६५,५६६,५६७, आदित्यनाग (चोरडिया शाखा) ६०३,६०४,६०५,६०७,६११,६१२,६१४,६१६, . प्रायरी
२५३० ६१६,६२०,६२२,६२७,६३०,६३१,६३३,६३८, / उच्छत्रवाल (उच्छित्रवाल, पोछत्रवाल) ६३६,६४२,६४६,६४८,६६०,६६१,६६२,६७६,
२७७,५१८,४३२,६०१,५८८,१६३५ ६७७,६८०,६८२,६७६,६८७,६६१,६६२,६६३,
उच्छप्ता
७६२ ६६८,६६९,७००,७०१,७०५,७०७,७११,७१४, ७१६,७१८,७२४,७३०,७३१,७३२,७३६,७४२,।
उथवण गोष्ठिक
२०५ ७४५,७५६,७५६,७६८,७७५,७८४,७८७,७६०, उसभ
३१४,२२५७ ७६३,८०२,८०४,८०७,८०८,८३८,८४०,८४१, कटारिया
६६३,२८०६ ८४८,८६२,८८८०,८८४,८८५,८६५,६०४,६०६,
करणाड़ ६०७,९०८,६१०,६१७,६२२,६२६,६३१,६५१, ६५८,९५६,६६२,६६८,६७६,६७७,६७८,६८२,
कलहउती
७४३ ९६३,६६५,६६७,६६८,१०१७,१०२०,१०२४, । कस...रालाट
१२८४
गोत्र
४११
"Aho Shrut Gyanam"
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--------------------------------------------------------------------------
________________
ज्ञाति गोत्र
कांकरिया ( कांकलिया )
काच
कानइड़ा
काला
कावड़त
कालापमार
कुर्केट चोपड़ा ( कूकडा चोपड़ा कोठारी )
केल्हण (कोल्हण )
कोचर
कोठारी
८६८,६३८,११०७, २१७५, २७७४
२२५६
१०४६
१३०३
परिशिष्ट-- घ
२१
लेखाङ्क
लेखाङ्क ज्ञाति गोत्र गोलछा (कछराणी, कचराणी, गोलबच्छा, गोलेछा, धनाणी ११५४, १६७३, १७०७, १७६५, १७६६, १७६७,१७६८, १७६६,१८००, १८०१,२१२६, २४६२,२६८१,१८०२, १८०३, १८०४, २०६६,१०१२,२३०८,२३०६ ५४७,७६०,८७४,१३१५
८५७,८७२, १४१४, १५०३, १५५४, १६३४, २७०३, १६३७,२५८७,२७८०, २७५२,२७१२,
गांधी
मादहीया
गिडीया
२५६५ गोष्ठिक २४४२ | घोड़ावत
चंडालिया
२८८,७३५
१५६५,१५६५,१६३५, २५५६, २५६०, २६०६, २६०७,१५६२,२५८२,२४३८ ( हाकम कोठारी ) १०, १५४२, १७०५, १७०८, १७०६, १७११,१७१२,१७१४, २१३०,२२११,२२४०, २२८४,२२८५, २३८२ १७१६,१७६२
खावही
गणधर ( चोपड़ा कोठारी)
चंद्रपथ
चिचट
२७२६ |चिप्पाड़-गोत्र
चूमण चोपड़ाकोठारी चोपड़ा
खजानची
खजुरिया
२६५
खटबड (खटेड, खांटड, खाटइड़ ) ८००,८१०,
८५१, ८८७, ११४६, १२७२,१३५८, १६०६,४४०, ७६१,८०३,६५७,८१४, ५३८, १०८४,
१२१३
गुंगालिया ( गूगलिया )
दो ०
गोखरू
गोगा
गोतेचा
६१६,२५००,२६६७,
२७७८, २००१, २८६७, १४७४, १६५७,
१६६२,,२८१० छिपाड़ ११३२,१२१५ छोहरिया
११ जंबड़ २१६७,२१६८ जांगड़
७२५, २४५०
५६४, १८७६
चोरडिया-सीपांनी
चोरवेड़िया
छजलाणी
२३७०
( गोष्ठी)
छत्रधर
artes ( छाजेड़, छाजड़
१२४ जाखड़िया
"Aho Shrut Gyanam"
२५८५
८०६, १०८३,२३५१
१६८३
५६१,६७०, १०६५, १०८८, १०६५, ११०२, १४१७, १७५३, १७५६,१७६२, १६४२, १६८१,२००५, २४४७,२५१२, २६१८,२६७१,२६७४,२६७६,२६८६, २७०२,२७२३, २७४८, २७४६, २७८८,
२७३७
११६६
२५७६
१०२, २००६ २३४६ ५३४,७६६, १२७६,
२१५४
८६४
जाइलवाल
४३६
१२६८ जाउडिया ( जारउडया, जारडिया ) १२२७, ६४१,
७२६
१०६० ७४६
८४५,१२४४,२१५८
जोराउलिगोष्ठिक
१४७७
१३६
१२
१३६०,१४३२,१६२७,१६०४,१६५८, २५६२,२७०८,२७३६,२७४०, २७४१, २७६८,२८०५, २८०६, २८२४
४१०
११९१,१३०२,१२६५
Page #615
--------------------------------------------------------------------------
________________
बीकानरे जैन लेख संग्रह
ज्ञाति गोत्र लेखा जाति गोत्र
लेखाङ्क जोजाउरा १०५४ नादेचा
१९४७ झोटि
२५३६ / नाहटा १६७४,१४१६,२५७३,२५६४,८०१, टगउग (?)
४००
८०५,६८४,१६१६ ठक्कुर (ठा०, ठ०)
२२४,८७२,८५४ नाहर । ४६६,५००,६६७,७६६,६०२,१००२, टप
६४४,१०४६
१०३७,११२६,११६७,१२२२,१२४०, डांगी ५०२,२५३४
१२५२,१३२३,१५५३,२१२५, डाकुलिया
९८६,१२२१
२१५७,२४११,२४४३,२४६५,२५१३, डागा १४५०,१४६३,२६२३,२६२५,२६२६,
२७४७ २६२८,२६३० नाग
१८२० ढढा (डारगानी, सारङ्गाणी) १६५१,१७१५, | पड़सूलिया
११४१ १८६५,१८६८,२२२७,२३२० । पड़िहार
१६६५ तवाहर
पद्यरवा
१२६ तातहड़ (तातेहड़) ९९६,१०३६,१०६४,१२१६, पारख (परी०, पा०, परिख, परिख, परीक्ष, पारिक्ष,
१३०१,२३४८,२५२६ परीक्षि, परीख) २१६,९०६,६३०,६८७,११००, तेलहर (तिलहरा) ४२३,६६८,७३७,७४६,
१११५,१८१७,२३४७,२५६१,२६५७, ६४६,११०३,१३३६,२२७३
२७११,२७१७,२७३३,२७८३, थुल्ह (थुल्ल)
१७६४,२६६०,२७८१ पालड़
८८६ दरड़ा ६६६,१२५७,१४७६,२६६६,२६७०
पाल्हाउत दसराणी (मुंहता).
२५६५ पलाड़ेचा
१६०,१६३६, दुधोड़िया
२०४८ पालड़ेवा
१११० दूगड़ (दुर्घट) २७६२,७६७,६०५,६१४,१००४, प्राहमेचा
१६०२,१८६६ १५३४,१६०७, १६२६,१८३०,१८३५, पीपाड़ा
१६६७,२३४२,२६९७, पुसला दोसी
१७४,११५८,१८८६ पूगलिया (पूग०) धर्कट
१६२०,१८५,७३३ पूर्ण धनेला
पोसालिया
७८१,८११,२३४४ धामी १९०६ | फसला
१२५६,१५८१ धुगट
बंबोड़ी
१११४ धानिक २१६ | बंभ (बांभ)
८६३,१६०८ १६३७,११२४ बइताला
१११६ नवलखा (नवलक्षक) १,२ क,१३१४,१२७६, बइराड़
२२८२ २४५१,१२१७,
१२१४ नक्षत्र ७६४ ब्रह्मचा
१२३७ नाइलवाल १२४६ | बरडिया
२८८८. माणग २३७७ / बरड़िया
२८५८
१६
७६७
धृति
ब्रह्म
"Aho Shrut Gyanam"
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--------------------------------------------------------------------------
________________
ज्ञाति गोत्र
. बहुरप
७७८
बहुरा (बहरा)
१५८३, २०६९ बापणा ( बपणाग, बप्पणाग, बापणाग, बापणा, बाफणा, बहुफणा ) _३५२,३६४,५२४,५६१,
बांठिया (वांटिया)
बावड़ा
बाबेल (बावेल बावही
बुघड़ा (बुथडा )
बुचा
बेमाणी
भंडागरिक (भं, भंडारी )
भणसाली
परिशिष्ट-घ
लेखाङ्क | ज्ञाति गोत्र भूरि
५६२,६१७,६३६,६८३,७१२, १५६,
६७१,१०५६, ११३४,११७०, १४५४,
१६५ε,१६६३,२१७०,२२०५, २२१३,२४१२,२७०२.२००६ ७७७,८१२,१६१४,२५६१
मालू
२००७ मुकीम १२७८,१३७८ मुहणोत
७४४ मुहता १७६०, २१५५ मूख्या १४३१,२५७८ रांका २५६२
रासेना
बोकड़िया
१३२०
>)
बोहियरा (बोथरा, मुकीम, बोथिरा, वच्छावत, बो०, राखेचा ( पुगलिया शाखा ०. बोहिहरा) २, ३, ४, ५, २७, २८, ३६,४२, ११५,१६,१००८, ११६८,१२५०,
१५३१,१५३२,१५८०, ११४८, १९४८ १६५०, २००८, २३७२,२३८३,२५७६, २५७८, २५८३,२६०१, ८१३,१०७६,१०६३, २५६८, २६५६,२६६१
भाम्भ्र
भाभू
भारद्वाज
भावड़ा
भेटोचा
भिगा
भुगड़ी
मंडलेचा (मंडलेचा )
मंडोरा
मणियार
मसूड़ा
ममए
महाजनी ( वर्द्धमानशाखा )
माल्हाउत
२१०, १००,१०१३
राजावल
रामपुरिया रायकोठारी
रोहल ललवाणी
४२, ११२१, १४१०,१७१८,२७३७,
लालाजी
२११६,२६००,२८७६,१६२३, २५४० लिगा (मूलदेवाणी)
१३६२
भरहुत
मात्र ( भाद्र, भव लिगा ) १८९६,२३४१,२३८६, सूंड़ (लोक)
११३६
२२१४
रोहड रोटागण ( रोयगण )
५२३ बुनिया
६६७
लोढा
वरडिया
२३
"Aho Shrut Gyanam"
लेखा
८८३
११,१०१६,१०३५
६५२,१८६५,२५६०
१०६४,१०६६
२५८०
२५७७
१४७३
७८२,१०८६, १०६७, १८७४, २७१५ ४६५,१००५, १३९१, १४१५, १७१८, ११२६,२५८६
७७४
५७७
२६६५
२३३३
५४६, २७४३
७३८
२५७८
२५६४
२५४१,२४०७ १२११
२७५३, १८२३,२२८७, २३१२
४४९, ७०६
१६३०
१२०२
११६०
३००, ४४५,७७१, १४०९ १२०५, १४३, १५१२, २००८,२१७
७७१,९६४,१५५७,१५०६
२६००, १८३४
६६५,१०८७, १४३०, १४४३, १५१६, ११३१,२०३७,२३८५.
६२७,१२६३,१३४३,२२४५, २५३५ १३००,
१
११०६ बच्छावत
१००६ वडहरा ( वडहिरा) ५४५,६५७,२३६१,२०२२
२१२४ बढ़ाला
७२६
Page #617
--------------------------------------------------------------------------
________________
बीकानेर जैन लेख संग्रह
लेखा
साह
सुधा
जाति गोत्र
लेखा ज्ञाति गोत्र वणागिया
१३७२ । सांखला (सांखला) ३४१,१०६३,१३५१,१६४७, वरलच्छ (वरलद्ध) वरलब्ध २२८१,६७३,१०२१
२४८६ वरहुडिया
८६०,२७२१ | सारंगाणी (देखो-ढढा) वर्द्धमान बोहरा (दोसी)
११५६ | साक्त वहरा (मोहण,कोचर) १३६८,२५८२,६२१ ।
१३४२ वोहरा (वुहरा,वहेरा,बहुरा, १८५,१०५८,१११३, सिंचट
२३३७ मांडहिया वउहरा,) १२५६,१३०४,१३६१ | सिरोहिया
१५६२ १४१२,१५७४,१६२४ सीपानी
२५४४ १७५८,२३८४,२५३१
१०५६ २५३२,२५८६,२५६१, २५६६,२६०८,२७८२ |
सुचिंतित (सुचिति, सुचितिया, धमाणी-शाखा) वाघरा
८७०,११०५
३०६,५०१,७४७,१०४७,१०७५,१३२८, विवाड़ेचा
१३१८,
१३३०,१६०७,२५३३ विंदामा
सुराणा (हनिकमाणी) ६०२,७३६,७६६,८५६, वीणायग
८४७
८६६,६६६,१०००,१०३८,११२३,१२०७,
१२५१,१२७२,१५३५,१८१५,१८२६,१८३२, वीराणघा (वीराणेचा)
६७५,१३३७
१९५६,२३००,२४८५,२५८०,२५८६,२६०२, वीरोलिया
१३१७
२५७०,२५७१,२६८२ वेगवाणी १४६०,१६३६, | संघट
१६२६ वैद (वैद्य, वयद, मुहता) १२२६,१३५२,१७१०
सूका
१३७४.१२८१ २१६१,२३४०,२५७४,२६०५,१२६५,१६८०,
सूझूमा
१८३१ १२६६,२२२८,२२२६ सूरिया
१६६१ शल ७२७,४१८
१०८६ १८६७ सेठिया
१९६२,१२५८,२२०४ शृगाल
८७३,८८२ सोनी
१०३४,२४०६ श्रीवच्छ (श्रीवत्स
१६१५,१६२५ सोहिलवाल
६८६ श्रेष्ठ (श्रेष्ठि १२६७,१२६६.१२६८,१५६८, ३७१,६६६,६२०,१००५,११२८,१२०५, हथंडिया
१५५५ १२१६,१२२३,१२४७,१२६६,१४३७,१६१८,
३५८ हरसउरा
हरिअड (ह०, हरियड़) ८८६,१२५५,८६१ १६६१,२४६६,१९६१,२२४६,२४१३,२४४४ पाटक
हींगड़
५५२ संखवाल (संखवालेचा) १३२०,२६८५,२७१३, हीरावत
१७०६ २७१४,२७८४,१२३१,१४३६,६२४,२२६६ संघवी (सिंघवी) २५७६,२५८२,२५८४,२५८५ । खण्डेलवाल
१४५६ गगलल
१६२८ सत्यक
८६६,१४३४ पाटनी
२०,२३,२६,८०६,२२७४,२६१० साउंसखा (साउसाख, सावनसुखा, सांबसुखा,
गटणा गोत्र
६२० साधुशाखा, साहुशाखा, साहूसखा) १५०४, २३८७,४४,२१६८,२४६२,१६८०,७८८, | गूर्जर
२३०,४०७,४७०,५८१ २६५१,२६५८,२७५०,२२२१,१८४३,२५५७
सेठि
शुभ
हरिण
गोत्र
"Aho Shrut Gyanam"
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--------------------------------------------------------------------------
________________
परिशिष्ट-घ
६९४
२६३
जाति गोत्र लेखाङ्क | ज्ञाति गोत्र
लखाङ्क गोष्टिक :--
६२६६२८,६३२,६३४,६३६,६३७,६४३,६४५, गोहिल
३९८
६५१,६५७,६५६,६६६,६७०,६७१,६७४,६७५, उर० देच्छु
६०० ६७८,६८१,६८५,६८६,६६०,६६७,७०२,७०४,
७०६,७१५,७१७,७१६,७२०,७२१,७२२,७५०, जगडारवाड़ (दिगंबर)
२२६० ७५१,७५२,७५३,७५८,७६६,७७३,७८०,७८३,
७८५,७८६,७८६,७६२,९१७,८१९,८२२,८२७, जैसवाल
८३०,८३७,६३२,६३४,६३६,८४३,८४६,८५०,
८७५,८७६,८७७,८७६,८८१,६८३,८६२,६४, डोसावाल (दिसावाल) १६६५,१८७२, ८६६,८६७,८६८,६२५,९४१,६४५,९४७,९४६,
२७६३,२८२० ६५०,६६१,९६७,६६१,१००१,१००७,१००६,
१०१४,१०१५,१०२१,१०२३,१०२५,१०२६, नरसिंहपुरा
१०२७,१०३२,१०३३,१०४२,१०४३,१०४४, नागर गोत्र
१५५६ १०५१,१०५०,१०५२,१०६६,१०६७,१०६८,
१०७४,१०७७,१०७८,१०७६,१०८२,१०६०, नागर ५७६,७०८,१०११,१०४५,११५२, १०६४,११०१,१११०,११२०,११२१,११२२,
१५७८,२३४३ ११३०,११३३,११३७,११३६,११४०,१२१८, . नाटपेरा
१२२५,१२४१,१२५३,१२५४,१२७४,१२७७, वाइयाण
८३६ १२८२,१२८३,१३१६,१३३३,१३४१,१३४५,
१३८६,१३९६,१४४१,१४७५,१५०२,१५०७, पापरीवाल १५६४,१८०६,१८१०,
१५११,१५१३,१५३३,१५३६,१५३८,१५७७, २६११,२६१३,२६१४ १५८४,१६००,१६०४,१६०५,१६०८,१६२६,
१६४६,१६६३,१६६६,१७५६,१७६६,१८१६, ..पल्लीवाल
२५३,१५३६
१८२८,१८८०,१८८१,१८६४,१६२७,१६३२, १६३८,२०३२,२१६६,२१८०,२१८२,२१८३,
२२१७,२२३५,२२३६,२२३८,२२७६,२२७७, ६,६३,१६४,१८३,२१३,२३२, प्राग्वाट २४७,२४८,२५४,२५७,२५८,२६०,२६२,२६३,
२२७८,२३४५,२३५०,२३५२,२४१०,२४७६,
२४८२,२४६७,२५२६,२६७३,२७०६,२७४२, २७५,२८७,२८६,३०३,३०६,३४४,३५१,३५४,
२७४६,२८१६ ३५७,३६३,३६५,३७४,३७६,४०६,४१६,४२६, ४३१,४४१,४४२,४५३,४५४,४५६,४६४,४६६,
४१४४ गोत्र-- ४८०,४८५,४८६,४६४,४६७,४६६,५०४,५०५, अंबाई (वृद्ध शाखा)
१७५४ ५०६,५०८,५१०,५११,५१३,५१६,५२०,५२३, ठक्कर (उ० ठकुर) २६०,२६६,२६७,५५३ ५२६,५२८,५२६,५३२,५४०,५४१,५४२,५४४, गांधी
२७२७ ५४६,५५१,५६०,५६२,५६३,५७०,५७१,५७२,
२२८०,२३१८ ५६३,५८५,५८६,५८७,५८८,५८६,५९८,५६६, | पंचाणेचा ६०१,६१०,६१३,६१६,६१८,६२१,६२३,६२४, | लघु साजानक (लघु संताने) १८७३,२५०४
| दोसी
१८८
"Aho Shrut Gyanam"
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--------------------------------------------------------------------------
________________
बीकानेर जैन लेख संग्रह
लेखाङ्क
जाति गोत्र व्यवहारी (व्य०) वृद्ध शाखा
भट्टेउरा (भटेवर)
कामिक गोत्र
लेखाङ्क | जाति मोत्र
नाचण ६५६,२४४६,२८२५ । पारसाण
प्रागड़िया २३७६ भांडिया (भां०) १३०५
माघलपुरीय गोत्र
लघु शाखा ११३८,१५७५,२४०८
बरहडिया
वहुरा (बउहरा) २४८४
वृद्ध शाखा
वैम १५५६
२२१८ १६०६
१३३८ २४५,१६३०
१६४८ १५६०
१३७५ १७६३,१४०२,२४६४ १५८६,१८२७
१२७३
भावसार (भा०)
मंत्रीदलीय
काणा मुण्डतोड़
बृद्ध शाखा
११३४
मथेन
२४२५.११११४ | श्री श्रीमाल (श्री श्रीवंश) १५४,१८७,१६८, मोढ जाति
१६९,२६७,३२८,३३२,३८२,४०१,४७१,५३६,
३४०,४४३,४६६,४८८,४६२,५७४,५७८,५६०, १४५२
६५३,६५४,७२८,७४१,७४८,८४२,८५३,८५५, लघु शाखा
१७६०
८६१,८७८,६१३,६३३,६३६,६८६,९४८,६५४,
६५५,६७४,६६०,६६४,१०१६,१०१८,१०६२, वायड
७,१०२२,१४६२ १११६,१३५६,१३७७,१५६०,१५७६,१५८२,
१५८५,१५९६,१५९८,१६१०,१६३६,२१६२,
२२३४,२२६१,२४१२,२५३६,२७४४,२७४५, व्याघेरपाल
२७५४,२७६५,२७७५,२८१६,२८२१,२८३७ भाखरिया
११४२ बालसाका (दिगंबर)
२३६२ बड़ सखा-काश्यप गोत्र
१६३१ श्रीमाल (श्रीमाली, श्रीमालीय, श्रीवंश,)
वृद्धि शाखा १२३,१६८,१६५,२२८,२३६,२४४,२५२,२६४,
१०६२
समायेचा बहुरा ३०८,३१३,३२४,३२७,३३६,४०३,४१६,४३१,
लाडुमा श्रीमाली ।
१७५७ ४४७,४५१,४७५,४८१,४८७,४६१,५५७,६८४, ६१६,१०४१,११५७,१२४५,१२१७,१३२६, दसा श्रीमाली
१५७६ १३२७,१३६२,१४३५,१५०५,१६८७,१६१०, १६१४,१६६२,१७५६,१८१६,१८१८,१८७७, बड़
३१८,३६६,६५८,१२२४, १६४४,२४४५,२४५३,२४७८,२५२२,२५२८
१८७५,१६०१,२४४८ गोत्र--
गोश-- कुंकुमलोल
खीरज टांक १२२८ तोलाहर
२४६८ . तांबी २७३६ पंखीसर
१०४०,११०६ धांधीया १६९६ रुत्रेश्वरा
१३४७
-
-
"Aho Shrut Gyanam"
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--------------------------------------------------------------------------
________________
परिशिष्ट-च आचार्यों के गच्छ और संवत की सूची
लेखा
9
संवत् नाम
लेखाङ्क | संवत् नाम अंचल गच्छ
१६०१ पुण्यलब्धि उ०
,, भानुलब्धि उ० १४१८ श्रीसूरि
२७६१
वेलराजगणि १४५४ मेरुतुंगसूरि
५६७,५६८ १७१० कल्याणसागरसूरि
१७७२ १४५७ १४६८
१५६६
आगम गच्छ १४६६ ६४६ | १४२१ अभयसिंहसूरि
१६३६ १४७६ जयकीर्तिसूरि
६७६ । १४८८ हेमरत्न सूरि १४८६
७४२ | १४६२ १४६५ १६५६ | | १५०३ ,
८७८ १४६८ ८०२ । १५०६
१३२६ १५०१ ८५५ / १५१२ ,
२७७५ १५०२ जयकेशरसूरि २८२६ १५२१
१०२२ १५०४ ८८४ १५१६ देवरत्नसूरि
१५१३,१७६१ १५०८ ६२६,१८७३
२४०० १५०६ ९२६,६३१,६३४ १५३० अमररत्नसूरि
१५८२ १५१०
१५६६ संयमरंगसूरि
१५७७ १५१२ ६५७ १५६६ विनयमेरुमूरि
१५७७ ६७६ | उढव (अउढवीय, अत्रढंवीय?, श्रोत्रवी) गच्छ १५१५
९८६
१२६६ देववीरसूरि १५१८
१०११ १४०६ वयरसेणसूरि
४२२ १५१६
१२१५,२३६१
१४५३ श्रीसूरि १५२५
१०४५
१४४६ कमलचन्द्रसूरि १५२७
२८२२ १५०२. वीरचन्द्रसूरि
८५६ १५२६
१३०३
उवडवेल्य
२३४३ १५३५.
२७४४
.... माणिक्यसूरि १५५५
१३६१ वयरसेनसूरि १४७१ (?),,
६५५ | उपकेश (उएस, ऊकेश, कंवला) गच्छ १५५६ सिद्धान्तसागरसूरि १८१६ | १३१४ कक्कसूरि । १५६७ भावसंग (?) सूरि ११३२ १ १३२७ "
. १७१
५६२
"Aho Shrut Gyanam"
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--------------------------------------------------------------------------
________________
२८
बीकानेर जैन लेख संग्रह
२६०
संवत् . नाम १३३७ कक्कसूरि १३७७ १३८२ १३८४ १३८५ १३६० १३६३ १३९७ १४०६ १४०८ १४५२
लेखाङ्क | संवत् नाम
लेखाङ्क १८९ १८०७ कक्कसूरि
२१४१ १३५२
२१४७,२१४८ कक्कुदाचार्य (संताने) २०४,२६०,
१०८६,१२२३,१२५६,१३२८, ३००
१३३०,१३४६,१३६२,१४७३, ३०६,१२७५
१४७७,१६१८,१८३३,२३३६, १४७७
२३४८,२७४३ ३५३ | १४२० देवगुप्तसूरि
४४५ ३७१ १४२७
१३२८,४८४ ४१० १४३२
५०१ २७५८१४३६
५२४,५२५ १३४० ।१४५७
५७७,१३६२ ६२६ १४५६
५६१,५६२
१४७६ १५०१
१४६५ १४६८
१५०३ १५०४ १५०५ १५०८
१५१०
१८६६
१५१३ १५१७ १५१८ १५२३ १५२४ १५२६ १५२७ १५२८ १५३ १५३४ १५४६ १५७१ १५७६ १६६१
___८४१,८४५,८४६,८५७,१३३०, १४६३
१८३३ १६१८,१९६१
६१७,६२२ ८६७,८७०,८७१, ८५०
१२१६ १६३७
१४७३ ६२५,१२८१,१३७४,१६०७ १५१६
१०१७ १५२१
१६०३ १५२८
१०५६ १५२६
१०६४ 8८० १५३२
१२२३ १००५,१२४४ १५३४
१०८६,१२१९,२३४१,२५३० १०१३
१०६७,१८६८ १५०३
१५१८ १८३६
१११७,२४४४ १०४७,१६६१
२३३७ २३८६ १५५५ देवगुप्तसूरि
१२५६
२५३३ ११०५
१६८९ १२१६,२५३०,२३४१ १७१५
२५५४ १५१८
२१४४ । १६०५
१२६५,१२६६,१२६७,१२६८, १२२६
१२६६,१६१२,१२४७,१५६७ २३४०
"Aho Shrut Gyanam"
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--------------------------------------------------------------------------
________________
परिशिष्ट-च
२०४
mm 64
संवत् नाम लेखाङ्क | संवत् नाम
लेखा १३६४ पानशालि (?) सूरि
उपकेश गच्छीय यति नाम : १४२० रत्नप्रभसूरि
१६६३ अचलसमुद्र
२१३३ १३४७ सिद्धसूरि
१७६३ अमीपाल
२१३६ १३५४ ,
२१७ १७६३ आणंदकलश
२१३७,२१३६ ३४६ (०) ,
१६१५ आणंदसुन्दर
२१४६ १३८५
१६१८ , .
२१५१ १४३२
१८३८ उदयसुन्दर .
२१४३ १४४०
१७६५ कल्याणसुन्दर
२५५४ ११७३
१३६४ १६१८ खूबसुन्दर
२१५१ १४७६
१६६३ खेतसी
२१३६ १४७७
२७४३ १८६१ जयसुन्दर
२१४७ १४८२
७१२,७१३ १६६३ तिहुणा
२१३४ १४८५
२७७२ १६६४ ॥
२१३५ १४८६
१२०५ दयाकलश
२१३७ १४८७
१४७३
देवसागर १४६१
२३७७ १७९५ भामसुन्दर मुनि
२५५४ १४६२ ७५६ | १९११ मतिसुन्दर
२१४७,२१४८ १४६५
७८२ । १६८९ रत्नकलश १५२३ १५०३ १६६४ राणा
२१३५ १५३२ १०७१ | १७६५ लब्धिसुन्दर
२५५४ १८६० वखतसुन्दर
२१४५ १५७६
१२२९ १६३८ वस्ता
२१३२ १५६३ १२७२,२२३७
२१३४ १५६४
१६६३ विनयसमुद्र १६३६ सोमकलश
२१३२ १६८६
। १८०५ क्षमासुन्दर
२१४२ २१४०
२१४३,२१४७,२१४८ १८०५
२१४२
आदौकेशगच्छ-पूर्व नागेन्द्र गच्छ १८६०
२१४६
| १४४५ कक्कसूरि १७१,१८६,२१४७,२१४८
खरतपा गच्छ--उएश गच्छ ... सिद्धाचार्य सं० ५०२,६२६,८७०,६२५,
१५०७ कक्कसूरि १०५५,१०७१,१०६०, ११०५,१३४०,१३४३,
१५२८ सिद्धसेनसूरि १३६४,१३६७,१६०३, कच्छोलीवाल (कच्छोइया) पूर्णिमापक्ष
२३३६ | १४४६ श्रीमूरि
२१६१
२१३६
१७८३
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--------------------------------------------------------------------------
________________
बीकानेर जैन लेख संग्रह
लेखाङ्क
०८८१ ६५६
१३४५
६७५
॥
१४१४
M
२३४४
संवत् नाम
लेखाङ्क | संवत् नाम १४७१ सर्वाणंदसुरि
कोरंटक (कोरंट, कोरिटक, कोरंटकीय गच्छ) १४७२
२०१ १४७४
१५०७ १४७७
१४०६ कक्कसूरि
४०८,४०६ १४६३
७७० १४११
४२७ १४६४
४३३ १५०३ विद्यासागरसूरि
२४१० १४२८
४६० १५१६ गुणसागरसूरि
१०१५
१४७२ १५२१ विजयप्रभसूरि १०२३,१०२७,१०२६
१४७५ १५२५
१०४४,२३५२
१४८० १५३४
१७६५ १४८६
७३३,१२६६ १५३०
१०६६
१४८७ ४६७,१०७४ १४६६
१८६३ १५५१ विजयराजसूरि
.११२१ कृष्णषि (कनरिस) गच्छ तपापक्ष
१५१७
२४४२ १४५० पुण्यप्रभसूरि ५५८/१५२८
१०५६ १४८३ प्रसन्नचन्द्रसूरि
। १३७३ नन्नसुरि
२५५ १४८३ नयचन्द्रसूरि ७२४ १३७५
२६८ १४८८
१३४३ १३८२ १५३४ १३७८
३०२ १५०५ नयशेखरसूरि
८६० १३८६
३३६ १५१० कमलचन्द्रसूरि
१२१३ १३६० १५३४ जइचंद्रसूरि १५७८
५६६ १४८६ जयसिंहसूरि
१४६५
६१४ १५०५ ८६० १४८६
७३३,१२६६ १५१०
१२१३ १५५१ १५३२
१०७५ नन्नाचार्य
१०५६ १५६५
१४६६ भावदेवसूरि १५८५ जयशेखरसूरि २३२६ १४२२ दवसूरि
४४८ कासहृद (कासन) गच्छ १५१२ सर्वदेवसूरि
१९२६
३६६ १३४६ कासहद गच्छ .
२१० १४३६ सावदेवसूरि
५३७ १४७२ उजोअणसूरि
१४६५
७६१ कालिकाचार्य संताने
१८६३ १४६६ वीरसूरि . २४६४ | १५०३ .
८६८
७२४
१३८४
३३८
७४४
२५३४
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--------------------------------------------------------------------------
________________
परिशिष्ट-च
१४७६
संवत् नाम लेखाङ्क संवत् नाम
लेखाङ्क १५१७ सावदेव सूरि २४४२ १४५६ जिनराजसूरि
२७७० १५१८
१०१० ... , ७८८,८४७,६१५,६१६,१२७३ १०३०
१४३६,१४४३,१७१८,१७६२, १५२८
१०५६
१७६८,१८२३,१८४३,१८६५, १५०७ सोमदेवसूरि
६२२
१९८०,२३८५,२६२३,२६२६,
२६६२,२७८१,२८२३,२८१५ खरतर गच्छ
१४७३ जिनभद्रसूरि २६३३,२६४२,२६४३, १६६५ खरतर गच्छ १४२०
२६४४ १७३५ "२२००
२६२३,२८१५ उद्योतनसूरि १२३४,१२३५,१२३६ १४८० वर्द्धमानसूरि १२३४,१२३५,१२३६ १४८४
२६६२ जिनेश्वरसूरि १३६६ १४८८
१२७३ जिनचन्द्रसूरि (१) १३६६ १४६३
७७१,१४३७,१४७६,२३८५, अभयदेवसूरि १३६६
२६७४,२७६६ जिनवल्लभसूरि १३६६ १४६६
७८८ जिनदत्तसूरि
१४६७
२२६६,२६६३,२६६४,२६६६ ८१ , २१८३
२६६८,२७४६ जिनपतिसूरि १४२,१४३,१४४,१४५
८०१,८०५ १३०५ जिनेश्वरसूरि १४२,१४३,१४४,१४५
८४७ जिनप्रबोधसूरि
२२५,१३५७ जिनचन्द्रसूरि (३) २२५,१३५७ १५०५
८६३,१२८४,२६६१ ... जिनचन्द्रसूरि (३) १३१२,१७६७
२६६८,२६६५ १३८०. जिनकुशलसूरि
१,२ख, १५०७
६१५,६१६.१३२१,१४३६ १३८१ १३१२ | १५०
१४४३ १३८३
| १५०६
१२११,१७१८,१८२३,१८४३, १३८४
२६४
१८६०,१८६५,२८२३ १४,४८२,१७९३ १५१० १४०८ जिनचन्द्रसूरि (४)
४१७ १५१२
६५८,१७६२,१६६१ ४७३,२७६८ १५१३ ६६३,९६६,६७०,६७१,६७२ १४२२ जिनोदयसूरि
२१६२
३,१८,६८४,६८६,६८७,६६३, १४२७
४६२
E६६,१००८,१०१२,१०६६,१०५५ १७१७,२८५३
१०८५,१०८६,१०८७,१०६५, १४३४ जिनराजसूरि (१)
११००,११०३,११०४,१२५७, १४३८
१२५८,१२६७,१४७४,१५०८, १४५२
१७१७
१५५४,१६६५,१७६३,१८१७, १४५३
५६१ ।
१८१४,१८७४,१६१०,१६३०,
१४६८
५१४
५३५
"Aho Shrut.Gyanam"
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--------------------------------------------------------------------------
________________
बीकानेर जैन लेख संग्रह
१५६०
संवत् नाम लेखाङ्क | संवत् नाम
लेखाङ्क १६३४,१९८२,२१६३,२१७५, १५४६ जिनसमुद्रसूरि ११५६,१११५,२५३२ २२१८,२२४६,२३४६,२४८४,
१८,११२८,१५३२,११६८, २४८७,२६६७,२७००,२७०२
१५६७,१७५६,१६४८,१६४६, २७०३,२७११,२७२५,
२२२१,२६७५,२७१७,२७३७ २७२६,२७३८,२७४८,२७५०, | १५५७ जिनहंससुरि
११२८ २७५३,२७६२,२७८०,२७८१,
११६८,१५२८ २७८२,२७५४,२७६१,२७६६, १५६१
१५६७ २८०३,२८०७,२८०८,२०१०
१५०४,१७५६,२२२१,२५१२ १५१५ जिनचन्द्रसूरि (५) ९८६,९८७,१६३०, | १५६६ २७६४ १५६८
२७७४ १५१६ ६ ६३,२२४६,२७५०,२७५३ / १५७०
१५३२,१९४८,१६४६ १५१८ १०१२,१६८२,२६८२,२६८४ । १५७२
१२८० २६८५,२६८६,२६६०,२६६७,
११४१,२६८१ २७००,२७०२,२७०३,२७२०, १५७६
३५,१५८०,१५६६,२००५ २४८४
२१६३,२७३७,२७३३ १५२१ १७६३,२१५५ ] १५७८
२७१७ १५२४ ४६५,१०३६,१८१३,१८१४; १५७६
१९८१ १९३४,२१५६,२४४७,२५४० १५८०
२७२३ १५२८ १०५८,१२६७,१८७४,२१७५, १५८१
१८७९
२ख,५,१८,४२,१६५०,२३१७, १५३०
१०६५
२५००,२७८३,१७५३ १५३४ ३,१०८५,१०८६,१०८७,१००८ , १५८२
१५८२ जिनमाणिक्यसूरि ११४३,२३७२ १२५८,१८८६,२३४६ । १५८७
२३६२,२५००,२६७५ १५३६ १०६५,११००,११०२,११०४, १५८६
१९५० १२५७,१२६६,१४७४,१५०८, १५६१
२ख १५५४,१६६५,१८१७,१६१०, १५६३ २७,२८,३२,३४,३६,३७,३८,४० २७११,२७१५,२७२४,२७२५,
४१,४२,४४,४५,११६३,१७५३ २७२६,२७३१,२७३८,२७४८,
२३८३ २७८०,२७८१,२७८२,२७८४,
१५६५ २७८५,२७६२,२७६४,२७६६, १६०२
११५२ २८०१,२८०३,२८०७,२८०८, १६०३
२७८३ २८१०,२८११ १६०६
१८,१४३१ ... , १८,१११६,११४८,११५६,
२३८७ २१६६,२२१८,२३९७,२७५२
११५४,१२५६,१३६१,१३६६, १५३४ जिनसमुद्रसूरि
२३४६,
१४००,१४०१,१४०२,१४०३, १५३६ २७२५,२७४८,२७८२,२८१०,
१४०५,१४०६,१४०७,१४०८,
२४८७
१६०८
"Aho Shrut.Gyanam"
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--------------------------------------------------------------------------
________________
परिशिष्द
लेखा संक्त नाम १४०६,१४१०,१४११,१४१२, ... जिनचन्द्रसूरि (७)
***R १४१३,१४१४,१४५०,१४६२, ... जिनसुखसूरि २४००,२४५६ १४६३,१४६४,१४६७,१५३१, | १७८० जिनक्तिसूरि
२४५६ १६५६,१७१३,१७२३,१७२४, १८०४
२०४३ १७२५,१७८६,२०३५,२३८७,
२०४१ २६७७ १८११ जिल्लामबूरि
२५५५ १६१२ जिनचन्द्रसूरि (६)
२६७७ १८२०
२५१५ १८६१,१९२६ १८२७
१५२५ १६१८ .
१६४२
| १८२८ १६२२ १३६१ | १०२९
१४९० १६२५ २७०७ १८३१
२२६४ १६३८
१४३२
२२०२,२८४१,२४६० १६५२
११५३ / १८३६ जिनचन्द्रसूरि (८) १६६१ १६२४ १८४०
२०६० १६६२ १३६६,१४००,१४०१,१४०२ | १८४६
२२१७ १४०३,१४०४,१४०५,१४०६, १८५०
१३८४,२४१७,१४०४ १४०७,१४०८,१४०६,१४१०, । १८५१
२४१८ १४११,१४१२,१४१३,१४१४, १८५२
२८४१,२८४२ १४५०,१४६३,१४६३,१७१३,
. ११७२,११७३,११७४, १७७१
११७५,१६३५,१७२२,२२१२, ११५४,१२५६,१५३१
२५१६,२८६४,२८५६ ५५,१७२३,१७२४,१७२५, १८५८ जिनहर्षसूरि २१०४,२१०५ २०३५,२२८७,२८६७ १६६०
२११४,२२१३ १६६२. जिनसिंहसूरि · १३६६,१४००,१४०१, १८६१
२२१२,२२३० १४०२,१४०८ १८६५.
२४२१,२५१९,२८६६ , १४२७,१७२३,२०५६,२३९६ | १८६६
१६६५ १६७५ जिनराजसूरि (२) २८७८ | १८७१
१७२२ १६८५
१४६० १८७६
२२६६,२३००,२३०५ १६८६ १४२४,१४२५,१४६१,१४७२, १८८१
२३०४,२५१६ १६८७ १४२६,१४२७,१४२८,१४२६ १८५२
२२८६ १६६० . . १४२३,१४६२ | १८८५
२२५८ १६६४ १.४१५,१४१७ / १८५६
१६१८ १६६६
१७२२. १८८७ , ११७२,११७३,११७४,११७५, " : १४६५,२५०८,२८६८,
१९७७,११८०,११८६,१४१५ . २८७६,२८८०
१६४१,१६६७,१९२२,२२५६
१६६४.
"
"Aho Shrut Gyanam"
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--------------------------------------------------------------------------
________________
३४
संवत्
नाम
१८८८ जिन सूरि
१८८६
१८१०
१८९१
१६०५
१६०७ १९१०
१११
*E*
१९१५
१९१६
१९१७
37
73
१८६२ जिनसीभाग्यसूरि
१८९३
१८६४.
१८९५
=૨૭
१८६८
१५...
१६००
१६०४
**
#
27
""
29
"1
-29
19
73
37
""
"
"1
"
२०६६, २०७४
२११९,२२६
बीकानेर जैन लेख
लेख | संवत् लेखाङ्क
२०७६,२३०७
१६६२
२२५४
२२४१,२४२०,२४२२
१७, १२३४, १२३५,१३८५,
७१,
२८५
१४८४
१६३६,२१६६,२३३०
२२५२
२५४१
२३८१
२४६३
२४६६
१५६२ ११६९,१३८६,१४६६, १७३६, १७४२,१७४२०४ Day
१७४७, १७
१७५१,१५
१०
१७, १२३४,१२३५,१२३६, १३८५,१५५०. १६६१.१६६२. १६६२,१६५७
१६६४,१... १६८३,१
१९१८ f
१६१६
१६२२
१९२३
१६२४
१९३१
३०,४६,२२७५,२५४७
३१.१६८५,१७२६,१७३०, १७३१, १७३६, १८३७,१०६१, १८६२,१६२३,१६२४,२२३३,
१६३३
"1
२२०१ ११
२४०५ १६
२३१६ १९९३ १९९६
२५२० १९९७
$7
27
२५२४, २५२५ २००७
"
"Aho Shrut Gyanam".
27
१९३६ जिनचन्द्रसूरि (2)
१९४०
१९४३
22
"
"
१९५६ जिनकीर्तिरि
६६५
"
"}
१९७२ जिनचारित्र सूरि
११०१.
ग्यसूरि
"
(२)
77
"1
२०३७ २०३३,२०३४ tor
FEB
२२८५
१११८, २०००
२३०६
२००२ जिनविजयेन्द्रसूरि १७०५,१७०८, १७०६,१७११,१७१२.१७१४
"}
#T
१६५६
२२,११७५
१३,५०,१२३८, १४१६,१४२१, १४२२, १४६७,१५६१.१५१३.
१६४२, १६४३, १६.
७, १६७८, १६
१,१७२८, १०० १,१६७७,१६ ६, २१६७,२१
लेखाङ्क
१६,११६३,२०१७,
२०६८
२०६७
२५२१,२४३८
२१७२
२४२७
.८,२०६६
२२६० १६८५,२४१६
१६८७ २०६६,२१०० २५५६ १६८६
२२३१
- २१००
२०६८,२०११,२१००
२३०१
Page #628
--------------------------------------------------------------------------
________________
परिशिष्ट-च
लेखाङ्क
२४३८
२२३०
१८७१
संवत् नाम
लेखाङ्क | संवत् नाम खरतर यति मुनि नाम १६३६ कल्याणनिधान उ०
२२६०
१९७० कल्याणनिधान महो, २०७१ १९३० अगरचन्द्र मुनि
२८४६
१९३५ कीर्तिनिधान मुनि २०६६ २८४७ कीर्तिसमुद्र मुनि
२४२६ १९१६ अबीरजी मुनि
१७६२ कीर्तिसुन्दर गणि
२०५४ १८६१ अभयविलास
२०६६
(१७७१) कुशलकमल मुनि १९४३ अभयसिंह
२०४४
१८६१ कुशलकल्याण वा० २२१२,२२१६ १८७६ अभयसोम २८६४
२०५६ १६४० अमरमाणिक्य वाचक
१६७० कुशल मुनि
२०७१ १९५१ अमरविजय पाठक
२५५२ १९१६ केवलजी मुनि
२४३८ १५५२ अमृतधर्म वा० २८४१,२८४२
१८५२ क्षमाकल्याण उ० २८४१,२८४२, १६१८ अमृतवर्द्धन मुनि २०४२
२८४३,२८४४ १८६० आणंदवल्लभ गणि २२४२११८६१
११७०,११७२,१५४०,२२१२ १९३३ प्राणंदसोम
२४२७ १८६६ १६४० २४२३ । १८६८
- २२२८ १९८८ पाणंदसागर जी वीरपुत्र १६७४ १८७०
१९५५ १६१६ आसकरण मुनि
१४५४,१६२५,१६५३ १६७४ उदयसंघ २८६७ | १८७२
१६५४ १५१८ उत्तमलाभ गणि २६९७,२७०२
१७६१,२०४१,२२२६ १५३६ २७३८ १९५६ क्षमामाणिक्य उ०
२५५० १९४३ उदयपद्य मुनि २०६३,२२६२ (१९३१) क्षमासागर मुनि
२०४३ १७५६ उदयतिलक गणि उ० १४६६ ... खेममंडन मुनि
२४२४ (१९५१) , २५५२ (१६७२) गजसार गणि
२४६२ १७८१ उदयभाण
२८७५ गुणकल्याण वा०
२०८० १६१६ कचरमल मुनि २४३८ . १९४३ गुणदत्त मुनि
२०४४ (१७५२) कनककुमार गणि उ० २४७२ १९१४ गुणनन्दन गणि
२४६५ (१६८७) कनकचंद्र गणि १९७० (१९३३) गुणप्रमोद मुनि
२४२४ (१६५४) कनकरंग गणि
१९६७ / १५३६ गुणरत्नाचार्य २७८१,२७८२ १६५३ कपूरचन्द्र मुनि २०६४ (१८०८) गुणसुन्दर महो०
२४७३ १५१८ कमलराज गणि २६९७,२७०२ । (१८५६) ,
२०६५ १५३६ ॥ २७३८,२७८१ | १९१६ गुमान मुनि
२४३८ (१५६७) कमलसंयम महो.
१६ / १६१६ गुलाब जी मुनि । २४३८ १८५६ कमलसागर मणि २०६५ १६१६ मोपी मुनि
२४३८ १७११ कमल (हर्ष) वा० २५०८ | १६६१ ज्ञाननिधान मुनि २१०३ १७३२ कल्याणविजय उ० २११२ | १८७६ ज्ञानानन्द मुनि
१२८६ १८९८ कल्याणसागर
२३०७ ...
"Aho Shrut.Gyanam"
Page #629
--------------------------------------------------------------------------
________________
बीकानेर जैन लेख संग्रह
संवत् नाम लेखांक । संवत् नाम
लेखाङ्क (१९०२) ज्ञानसार १९८५ १६३६ धर्मवल्लभ मुनि
२२६० (१९६५) चंद्रसोम मुनि २२३१ (१९५३) ,
२०७२ (१९४३) चारित्रअमृत मुनि २२६२ १६७४ धर्मनिधान उ०
२८६७ १९५० चारित्रप्रमोद वा० २४१७ / १८६१ धर्मानन्द मुनि
११७२ (१६५४) चारित्रमेरुमणि - १९६७ १८७४
२०४१ चित्रसोम मुनि २०५२ १ १८७८ धर्मानन्द मुनि
२२२६ १६१६ चिमनीराम जी मुनि २४३८ । (१९२८) ,
२०४० १९३६ जइतचन्द्र
२८४७ | (१९३३) धीरधर्म गणि महो। २११६ १९५८ जयचन्द्र मुनि १६८६,२५५६ | १६१६ नंदराम गणि
२४३८ १९८४
२२११]
(१८३१) नयविजय गणि २२६४,२२६७ १९८८
१६७४,२२०६
नयसुन्दर १९९४ २३५५ ... नारायण गणि
२१११ .... जयकीर्ति मुनि २०५१ | १६५३ नीतिकमल मुनि
२०७२ १९११ जयभक्ति मनि २४००। (१६५४) पद्ममंदिर गणि
१९६८ १८६१ जयमाणिक्य ३० २१०२ १९४४ पद्मोदय मुनि
२०७३ (१७१६) जयरत्न गणि वा० २५०६ | १६६२ पुण्यप्रधान गणि १३६६,१४००,१४०१ १६०१
२८४६
१४०२,१४०६,१४११,१४१२, १९२८ जीतरंग गणि २८५०
१७२३,१७२५ (१८७२) तत्त्वधर्म गणि
२०४५ (१६१४) प्रीतिकमल मुनि
२०६१ १६०१ दयाचन्द्र वा०
२४६२ १८०८ प्रीतिसागर गणि
२२४३ १८३१ दयावर्द्धन
२२६४ १९१६ बुधजी वा०
२४३८ .(१७८६) दयाविनय मुनि
२०६७ १९३३ भक्तिमाणिक्य गणि
२८५१ १९१८ दानसागर मुनि
२०४२ (१९१२) भक्तिविलास
२०६१ १६२३ , उ०
१८६१ भादविजय
२१०३ , महो० २०४६,२०५०,२५३८ १८२५ भीमराज मुनि
२८६२ २५५६ १८८६ भोजराज मुनि
११६१ १९२३ देवचन्द्र गणि १६५६ १८६४ मनसुख मुनि
२५५२ (१८३५) देववल्लभ गणि २०७५ | १९१४ मतिशेखर मुनि
२४६५ १९१६ देवराज मुनि २४३८ १९४४ महिमाउदय मुनि
२०७३ (१६८७) देवसिंह जी १९७० १८७६ महिमाभक्ति मुनि
१२८६ (१६४०) दे.........वा.
(१९४४) , गणि
२०७३ १६७४ धर्मकीर्ति गणि (१७८४) धर्मवर्द्धन (धरमसी) महो० २१०६,
| (१७११) मानविजय गणि वा० । २५०८ २११० (१९५३) माणिक्यहर्ष उ०
२०६२ १९३५ धमवल्लभ मुनि २०७४ ३ १६५१ मुक्तिकमल मुनि
२५५२
२८६७ (१७४६) म
"Aho Shrut Gyanam"
Page #630
--------------------------------------------------------------------------
________________
पारीशष्ट-च
संवत् . नाम लेखाङ्क । संवत् नाम
लेखाद्ध १६५७ , उ० २२९१ (१९५१) लाभकुशल गणि
२५५२ (१९७०-७२) , २०८३ | (१८३६) लाभकुशल गणि
२०८१ १६३० मेघराज २८४६ | १६१६ लाभशेखर मुनि
२५२१ १६६५ मोहनलाल गणि
२२५० १८५२ लालचंद्र गणि २२२७,२२४० १९५८ , १६८६,२५५६ १८५३
१६१४ (१९३३) यशराज मुनि
२४२७ | १९५५
१७६२ (१८)७८ युक्तिधर्म
२०८०
१८३६ लावण्यकमल १८७५ रत्ननिधान
२१०१ १६०३ विजयराज मुनि
२७८३ (१९२७) रत्नमंदिर गणि
२०५५ (१७५४) विजयर्ष गणि.
१४७० १४६७ रत्नमत्ति वा० २६९६,२६६८
१८६७ विजेचंद
२३८० २६६८ (१८७५) विद्याप्रिय गणि
२१०१ १६६६ रत्नसोम
१८२२
(१७४६) विद्याविजय १८६५ रामचंद्र
२८६६ ... विद्याविशाल
२२,२०८६,२५५२ (१९३६) , गणि
२२६३ १८५६ विद्याहेम वा.
२५५० १८१४ विनेचंद
२२५२ (१८७२) राजप्रिय गणि वा० २०४६
(१७१३) विनयमेरु
१४६८ १९२८ राजमंदिर मुनि
२८५०
(१७४६) विनयविशाल (१७६२) राजलाभ वा० २५०६
२५५२ (१९३३) राजशेखर मुनि
(१९५१) विनयहेम २४२५
१६३६ विवेकलब्धि मुनि (१७६२) राजसुंदर वा०
२२६० १९५२ विवेकविजय
२०४१ १६२०
२४३८ राजसुख मुनि १९७६ वृद्धिचंद मुनि
२८८८ १६१६ राजसोम
२५२१
१९८० १९८१-६ ऋद्विकरणयति २४०६
.२८१३,२०१४ (१६११) शांतिसमुद्र गणि
२४०० १६१६ रूपजी मुनि
१७८४ शांतिसोम (१७०६) रूपाजी पं०
२१०६ १६१६ शिवलाल मुनि
२४३८ १६१६ लछमण गणि
शिवशेखर गणि १८२० लक्ष्मीचंद यति २५५१
२७३८ सकलचंद्र गणि
२२८७ (१९१४) लक्ष्मीधर्म मुनि
१८६४ सत्यमूत्ति गणि १९१२ लक्ष्मीप्रधान मुनि २०८६
२८७१
(१८६१) सत्य... गणि १६२४ २२
२१०३ १६७४ सदारंग मुनि ·
२८६७ २२६५ (१९०४) सदारंग
२३२२ १९५१
२५५२ १५३६ समयभक्तोपाध्याय
२७८२ , २०८३,२०८४,२२०६,२२६१ १६७४ समयकीति गणि
२०६७ (१८७२) लक्ष्मीप्रभ वा०
२०४७
१६५७ समयराजोपाध्याय १५६४ लक्ष्मीराज गणि
" . १३६१,१४००,१४०१, १७०८ ललितकीर्ति उ०
२५१७ ।
१४०२,१४०८,१७२३
vorm
२८६६
"Aho Shrut Gyanam"
Page #631
--------------------------------------------------------------------------
________________
बीकानेर जैन लेख संग्रह
संवत् नाम लेखाङ्क | संवत् नाम
लेखाङ्क (१७०५) समयसुंदर महो। २२८८,२८७४ १६६२ हंसप्रमोद गणि १३९६,१४००,१४०८ (१७४६). "
५५ | १६३५ . हंसविलास २०३६,२०७४ (१८२२) ॥ २८५४ १६३६
२२६० १९५२ सरूपचंद्र
२८४८
साध्वियों की सूची १७६२ सामजी
२०५४ १६३० साहिबचंद्र २८४६ / १८८८ अमृतसिद्धि साध्वी
२०७६ (१८३१) सुख रत्न
१९८८ उमेदश्री
२१२५ (१६३६) सुखराम मुनि
२२६३ १९४३ कनकलच्छी
२२६४ (१७७६) सुखलाभ गप्पि महो. २४६१
(१७४०) चंदनमाला
५२ १६७४ सुखसागर गणि
२८६७
१९४८ जतनश्री आर्या १८८६ ॥
२२०२ १६५१ ,
२१२० .... सुखसागर जी
२१२८,२११८ (१९८१) , साध्वी
२१२३ १८६४ सुगुणप्रमोद २२५२ । १६८१ जयवंत श्री साध्वी
२१२४ (१९५१) , २५५२ | १६३३ नवल श्री ,
२११६ १६६२ सुमतिकल्लोल १३६६,१४०० (१९५१) ,
२१२० १६३६ सुमतिशेखर मुनि २२६३ | (१९६०) पुण्यश्रीजी
२१२८ २२६२,२३२१ (१९७०) प्रेमश्री
२१२६ १९६८ सुमतिमंडन गणि २०३६,२०४० । (१६४३) मानलच्छी
२२६४ १६६६ हरिसागरसूरि २२८४,२२८५ | .... मुनश्री जी
२११८ १७०५ हर्षनंदन गणि वादि २२८८,२०७४ (१९४८) रतनश्री जी
२१२१ (१७६७) हर्षनिधान उ० . २०८८ १७७५ राजसिद्धि साध्वी
१४७१ (१७८४) , महो २०५३ (१८८८) विन्यसिद्धि
२०७६ (१८८८) हर्षविजय गणि
(१९७४) विवेकश्री जी
२१२२ .१७६७ हर्षसागर
(१९३३) लक्ष्मीश्री
२११६ (१७८४) , महो
(१९६०) सुवर्णश्री जी
२१२८ (१८६४) हाथीराम जी गणि
२२५३ १७४० सौभाग्यमाला (१९४३) हितधीर मुनि २०६३,२२६२ खरतर भट्टारक शाखाएँ १६१६ हिमतु मुनि (हितवल्लभ) २४३८
कीतिरत्न सूरिशाखा १६३१ हितवल्लभ मुनि
२०५० १९२३ अभयविलास
२३०३ १६५६ , .
२३३५ १८४६ अमरविजय उ०
२२६७ १६५८ , उपा०
२५५६
१८७६ अमरविमल उ० २५४८,२२६६ , २०४८,२०४६,२५३८,२५५८ १९७६ अमृतसार मुनि
२३०१ १९१६ हीरोजी मुनि
२४३८ १७०६ हेमकलश
अमृतसुन्दर उ०
२५४८ १५३६ हेमध्वज गणि
२७३८ | १८८१ (१६७२) हेमधर्म गणि २४६२ / (१६२४) ,
१६७५,२५४७
० KA ०
५२
१९६६
२३०४
"Aho Shrut.Gyanam"
Page #632
--------------------------------------------------------------------------
________________
परिशिष्ट--च
E E
लेखाङ्क
१९८७ १९७५,२५४७
१९८६ २२६६
२११७ २०७६,२२८६
.
.
२२६८
संवत् नाम
लेखाङ्क ! संवत् नाम १८७१ उदयरल गणि
२१०६ । १९२६ सुमतिजय मुनि (१९०६)
२११५ / १९२४ सुमतिविशाल कीतिरत्नसूरि २२६६,२६८५, १९२६
२६८६,२६६७ कीतिराज
१६३३ हितकमल मुनि
'२२६६ ३३ कल्याणसागर
१६३८
२२६६ १८७६ कांतिरत्न गणि
१९५७ हेमकीत्ति मुनि
२२६६,२३०५ (१९०५) ,
सागरचन्द्र सूरि शाखा १९३३ कीत्तिधर्म मुनि
२२९६
१७५५ अभयमाणिक्य गणि १८५८ क्षमामाणिक्य उ०
२१८४
१८६५ ईश्वरसिंह १९२६ गजविनय मुनि
१९८१
१५५१ उदयरंग मुनि १८८१ जयकीत्ति गणि
२३०४
१८६१ कीर्ति समुद्र मुनि (१६२४) ,
१८६१ गुणप्रमोद मुनि
१६७५,२५४७ १८५८ जिनजय वा०
२१०४
१८६१ चंद्रविजय १९२३ दानविशाल
| १९६५ चंद्रसोम १६०६ दानशेखर
२१०३
१८६५ चतुरनिधान
१८६५ चारित्रप्रमोद
२०८७ १९५७ नयभद्र मुनि
(१८९१) चारित्रप्रमोद गणि
२२८६,२०७६ १६२४ प्रतापसौभाग्य मुनि
१८६५ जयराज गणि
१६७५,२५४७ १८६६ भावविजय उ०
धर्मदत्त
२३७६ १८७६ भावहर्ष गणि
२२६६
१८३७ पद्मकुशल १८७१ मयाप्रमोद
२१०६ । १८८१ सुमंतिधीर गणि (१८७८) , वा.
२१०७
१८९५ श्रीचंद १८६७ महिमारुचि
२५०७
१७५५ हेमहर्ष गणि १८७६ महिमहेम
२२६६ क्षेमकीतिशाखा १८२५
माणिक्यमूर्ति महो० २२६६,२४६४ | १७६२ कानजी १६२६ युक्तिअमृत .
१९८७ १९५४ कुशलनिधान १९०६ लब्धिविलास मुनि
२१०८ । (१६६७) , १९०६ लक्ष्मीमंदिर
२११५ | १९६७ खेमचंद १९१७ लाभशेखर .
२५२५ १८११ 'ज्ञातकल्लोल १६२३ वृद्धिशेखर मुनि
२०५८ १८११ दीपकुंजर १८५८ विद्याहेम वा० २१०४,२१०५ (१९६७) धर्मशील गणि १८७१
२१०६ । १९५४ १६३६ सदाकमल मुनि
२५०६ / १६६७ बालचंद मुनि १९२४ समुद्रसोम मुनि
१९७५ | १८११ महिमाराज १९२६ ,
१६८६,१६८८,१९८६ १८११ . महिमामूर्ति गणि
२४१४ २५४१ २५१६ २४२२ २४२० २४२० २२३१ २५४१ २४२१ २४२२ २४२१ २२३१ २०७० २५१६ २५४१ २४१४
२४३३ २५५३ २०००
२५५५ २५५५ २००० २५५३ २००० २५५५ २५५५
1
"Aho Shrut Gyanam"
Page #633
--------------------------------------------------------------------------
________________
बीकानेरे जैन लेख संग्रह
संवत्
१५१५
.
c
१२२८
नाम लेखाङ्क | संवत् नाम
लेखाङ्क १८११ मुनिकल्लोल
२५५५ । १४६१ जिनसागरसूरि १२३१,७५५ १८११ युक्तिसेन
| १४६४ १८११ रत्नशखर महो। २५५५ । १५०२
१५८१,८६३ १६५४. ऋद्धिसार (रामलालजी) मुनि २५५३ / १५०७
१२७६ १९७७ रामलाल गणि उ.
२३०६ । १५०६
१३४२,१७६४ १६६७ रामऋद्धिसार गणि १९६८,२०००
८२६,६५२,१५५६,१६१६ १८११ ऋद्धिरत्न
२५५५ जिनसुंदरसूरि
६५२ ८११ रूपदत्त गणि
१५१३
६६५,१६२० १८११ लक्ष्मीसुख २५५५
१८८ १७६२ सत्यरत्न
२४३३ १८११ हस्तरत्न गणि
२५५५ जिनहर्षसूरि
१५५६ १६५४ हेमप्रिय मुनि
२५५३ १५२७
१०४६,२६८० लघुखरतर (जिनप्रभसूरि परंपरा) १५४२
११०७ १४६६ जिनचंद्रसूरि
२४६६ १५५१ १५१० जिनतिलकसूरि
१५५६
११५६ १५५६ जिनराजसुरि
२४८४ १६६४
आद्यपक्षीय-खरतर शाखा १५६७ जिनचंद्रसूरि १६६४ | १७१३ जिनहर्षसूरि
१९१६ बेगड़-खरतर शाखा
लघु खरतराचार्य शाखा १४२५ जिनेश्वर मूरि
जिनसागरसूरि १८०५,२१११ १४२७
२७६८
जिनधर्मसूरि १४३८
५१,१७०० जिनशेखरसूरि २७४१,२८२४ १७८१ जिनचंद्रसूरि
२८७६ १५०६ जिनधर्मसूरि २७४१
२०५७ १५१३
२८२४
१७६४ जिनविजयसूरि १४६१ २७४०
२८६१,२८६२ १५०१
१६५८,२७३६ जिनकीतिसूरि
२०६५ १५०४
जिनयुक्तिमूरि
२०६५ पिपलक खरतर शाखा
२८६२ १४६३ जिनवर्द्धनसूरि
२२६६ १८२५ जिनकी
जिनचंद्रसूरि २०६१,२८६२ १४६६
६४७,६४८,६५२ १८४५
२५४३ १४७३ , ४६,६६५,१६५०,२६२६,२६५८
१७६५,१७६६,१७६८,१७९६, १४७८
१७६८
१८००,१८०१,२०६८,२८६३ २६७६ / १८८१ जिनोदयसूरि
२८६३ जिनचंद्रसूरि १७६४ । १८८२ ॥
२८५४
१७
"Aho Shrut.Gyanam"
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--------------------------------------------------------------------------
________________
परिशिष्ट-च
४१
संवत्
२३१०
१८०४
नाम लेखाङ्क | संवत् नाम
लेखा १८६२ जिनउदयसूरि २३१५ | १८८१ हर्षरंग
२०६३ १८९७ , १५६५,१७६४,१७९५,१७९६ | १६०२
१७६७,१७६८,१७६६,१८००, जिनचंद्रसूरि शाखा १८०१,१८०६,१६५१
महिमासेन मुनि
२०८५ २०५९,२३१६ मेरुविजय मुनि
२०८२ १९०१ जिनहेमसूरि
२३१६ १६२३ विनयप्रधान
२०६५ १६०३
२८५८ विनयम गणि
२०६२ १६०८
२२७६
यतिनी
२३२३ १६१२
१८६४,१८६६
(१८६२) इन्द्रध्वजमाला १९२०
१८०२,१८०३,२१७३ (१९३०) ज्ञानश्री
२३१२ १६२४
२३१०,२३११,२३१२ (१६२४) ज्ञानमाला
२३११ १६२५ २११३ (१९३०) गुमानधी
२३१२ १९२७ २०५५ १९२४ चनण श्री
२३११ २०६० . . . . जयसिद्धि १९६४ जिनसिद्धिसूरि
२३१४ १८६२ धेनमाला
२३१५ (१९३०) धेनमाला
२३१२ २०६६
(१९६४) नवलश्री
(१७३०) पुष्पमाला यति-मुनि गण :--
(१७३०) प्रेममाला १८८१ अभयसोम गणि
२८६३
....... भावसिद्धि ज्ञानकलश
२८६३
(१७३०) विनयमाला चेतविशाल
२३१३
मण्डोवरा-खरतर (जयपुर) शाखा १८४५ जसवंत गणि उ०
२५४३ धर्मचंद्र
१६०१ जिनमहेन्द्रसूरि १९१२
२८४६ २३१३
१६२८ जिनमुक्तिसूरि २००० नेमिचंद्र यति
२७०६,२७१६,२८५०
२०६६ १८४५ पद्मसोम
२८४६ २५४३ १६३३
२८५१ (१९२५) मतिमंदिर २११३
२८४७ १८४५ मलूकचंद्र
२५४३ १७८१ माधवदास गणि २८७५
२८५२
खीमाण गच्छ १८८१ लब्धिधीर गणि
२८६३ २३१० १४६३ मेरुतुंगसूरि
७६६ १९२५ वृद्धिचंद्र
२११३ गूदाऊ गच्छ (उदउ, गूदाऊआ) १९४१ विजेचंद
२८६६ / १४३४ सिरचंदसूरि (१९१२) विनयकलश उ. २०६१ | १४३६
५२०,५२३ १७६४ हर्षहंस गुरू
२०७७ | १४४०
५४२
"Aho Shrut Gyanam"
Page #635
--------------------------------------------------------------------------
________________
४२
संवत्
१४४६
१४६२
१४६५
१४६६
१४७७
१४८३
१२६३
नाम
सिरचंदसूरि
१३१२
१३३२
रत्नप्रभसूरि
१४२४
१४६३
१३८८
१२६५
१३७३
१४६३
१३२६
5
32
77
"3
१२८८
१३३१
१३६६ श्रमदेवसूरि
१५४०
चारचंद्रसूरि
१५२७
चारुचंद्रसूरि
१४६६
गुणाकरसूरि
१५०६
१५१३
१५१५
१५१७
१४३५
समुद्रसूरि
१३२
पद्मप्रभसूरि
१७६
१३३२
गुणाकरसूरि
१७६
चैत्रवाल (चैत्र, चित्रा, चैत्र, चित्रावाल )
१२६
१७८
२४४
१५८३
१०५४
२३८४
६०४
22
"
चन्द्र गच्छ
27
गुणदेवसूर
जाणंदसूर
देवेन्द्रसूरि
धर्मदेवसूरि
23
J
धणदेवसूरि
धर्मसिंहसूर
पद्मदेवसूरि
31
बीकानेर जैन लेख संग्रह
लेखाङ्क | संवत्
५५४
}}
पद्मप्रभसूरि
१५३६
१३८८
१३...
६१८ १४६६
७२३
६०३
६२८ १५०६
१५१५
६८५
१४२२
७२३
६७५
६८५
१००३
५१६
२३८४
१५३,१८३
१४३८
१४४२
१४५३
१५३ १४८१
१८३
२७६७
१५३२
४७० १५७२
२३४७
३२६
१४८०
२५३
२३४७
१६८
१३५६
१३७८
१३२०
१४५८
१४६६
१५२७
१५२७
१५४०
१५४२
१५३२
१३७५ हेमप्रभसू
१४२०
नाम
भुवनकीति सूरि
मदनसूरि
१२८८
मानदेवसूरि
मुनितिलकसूरि
"Aho Shrut Gyanam"
"
मुनिरत्नसूरि
रत्नसिंहरि
22
रविप्रभसूरि
वीरचंद्रसूरि
साधुकीतिरि
सोमकीर्ति सूरि
23
सोमदेवसूरि
वीरचंद्रसूरि
२६६
३६५
"
जाखड़िया गच्छ (देखो - मडाहड़ीय ग० )
जीरापल्लीय गच्छ
वीरभद्रसूरि
शालिचंद्र (भद्र ) सूरि
शालिभद्रसूरि
37
उदयचंद्रसूरि सागरचंद्रसूरि
देवरत्नसूरि
झेरंडियक गच्छ
विजयचंद्रसूरि
धारापद्रीय गच्छ
लेखाङ्क
१३६८
३२६
३८१
पूर्ण चंद्रसूरि सर्वदेवसूरि
१३४१,२३८४
६००,६०४
६८५
४४६
२१८
२७६
१६२०
५८५
६२६
१०५४
१२२६
१५८३
२५३६
१८१८
५३२
५६३,७०७
५४७
૫૪૭
५६३
७०७,७१४
१०७२
१०७२
११३६
४४१
६०,६१,६६,१०३,१३३
३८५
१२५
Page #636
--------------------------------------------------------------------------
________________
परिशिष्ट--च
संवत्
नाम पुण्यवर्द्धनसूरि महेन्द्रसूरि
लेखाङ्क २१२५
१२४६
१४६५
लेखाङ्क | संवत् देवाचार्य संतानीय
१५५६ मुनिरत्नसूरि
२७६२
१४६६
१४३२ धर्मघोष गच्छ
१४७७ २४८५
१५६६ २१५८
१४२३ कमलप्रभसूरि
१४६१ गुणभद्रसूरि
१४८२ ज्ञानचंद्रसूरि
१६४८ धर्मसूरि
१४६३
१५०६ नंदिवर्द्धनसूरि
१५५६,२४४३
१५१३ पद्मशेखरसूरि
७०६,७१०
१४६३ १३५८
६८६ ११४६ ४५२ ६०२
मलयचंद्र सूरि
१५५१ १४१३ १४२६ १४१५ १५५५
४३२
१६४७ ६०१
महीतिलकसुरि
१४८२
विजयचंद्रसूरि
१४८५ १४८७ १४६३
१४६४ १४६५
१८२६,१६४७
७.७४ १३३८,२५१३
७६६ ७६१
८०३
१५०३ १५१२ १५२० १५२६
० or
०
XNX
I wm Xo ory
urf
०
पद्माणंदसूरि
१५०५ १५०६ १५१२
१३२३ १००२
७६६ १२०७
७६७.१६४७,१८२६
१४६७ १४६६
१४६८ ६५५,६५६,२४८६
२७४७ १०६३,१५३५
१८१५ १२०७
१५१७ १२२२,१२४०
१४६३ विनयचंद्रसूरि ६५५,६५६,२४८६
१५०५ , ९६६
१४३५ वीरभद्रसूरि
१(४)२३ शालिभद्रसूरि २७४७
१४३२
१४१३ सर्वाणंदमूरि १०६३,१५३५
१४२६ सागरचंद्रमूरि १८१५
१४३४ २४४३ ६८६ १४४२ ८८३ १३७२ | १५०६ साधुरत्नसूरि २३२४ | १५०८ ,
४५२ ५००
१५१७ १५२० १५२१ १५२४ १५२६ १५३३ १५५५ १४७७ १५०४ १५५१ १५५४
१२५१
१६४८ ४६६
५१५
पूर्णचंद्रसूरि
१८३२
पुण्यवर्द्धनसूरि
६०२,६०३
"Aho Shrut Gyanam"
Page #637
--------------------------------------------------------------------------
________________
४४
बीकानेर जैन लख संग्रह
लेखाङ्क
नाम धनेश्वरसूरि
४११,४१८
२७७
४२१
४५०
४५५ ४७६,४७८
४०६
१४०
.
५१२
.
.
संवत् नाम
लेखाङ्क संवत् १५१३ साधुरत्नसूरि १३५३,२४६५ | १३२५ १५१७
१००२ १४०८ सावदेवसूरि
१४०६ १३७८ सोमचंद्रसूरि
२७७ । १४२२ नाइल (नायल) गच्छ
१४२३
१४२६ १३०० देवचंद्रसूरि
१४२८
१४३४ रत्नसिंहसूरि
७३२
१४७४ १४८६ पद्माणंदसूरि
७३२
१४८५ नागर गच्छ
१५२१ १४५७ प्रद्युम्नसूरि
५७६ | १५२२ नागेन्द्र गच्छ
देवचंद्राचार्य १३८५ वेगाणंदसूरि
१५४८ नागेन्द्रसूरि
१५५६ गुणाकरसूरि
४१६ गुणदेवसूरि
२७५६
१४३६ गुणसागरसूरि
१२५५
१४५६ १४६६ गुणसमुद्रसूरि
१३२७
१४६४ १५०५
८८६,८६१,१२५५
१४६५ १४२४ रत्नाकरसूरि
१४६६ १५२७ विनयप्रभसूरि
१०५३
१५५६ सोमरलसूरि
१०५३
१५७४ १५६६ हेमरत्नसूरि (पाटणेचा) २४१२
१३४७ १५७३ हेमसिंहसूरि
१३४६ नाणकीय (नाणक, नाणग, नाण, नाणउर,
१३५४ ज्ञानकोय, नाणावाल) गच्छ
१४०६ नाण गच्छ
१४७३
८१,१०० १३८२ नाणक गच्छ
२६४
१४८७ १२८३
१२१ नाणकीय गच्छ
८७२,८७४
१४६२
१४६४ १३११ धनेश्वरसूरि
१४६५ १३२३
१४६७
६७२
७२७ १०२० १०२८ २२७३ १६०६ ११०६ १८३४ १८२० १६२ ५२१ ५६४ ६०६
.
महेन्द्रसूरि
.
.
४६०
शांतिसागरसूरि शांतिसूरि
६४२ १८२० १२११ २०५ २११
२१६
४२३
७३७
१४८६
७६०,७६१,७६२
७७५ २२५६,७८४
७६३
"Aho Shrut Gyanam"
Page #638
--------------------------------------------------------------------------
________________
संवत्
१५०४
१५७७
२७
१२६६
१२७२
१२६३
१३७२
१३७३
१३७६
१३७८
१३८१
१३८३
१३८४
१३८६
१३८६
१३६१
१३९३
१५११
१५८१
१५६०
१५६५
१५८१
१२८८
१६१६
१८१५
१८१८
१-१६
नाम
शांतिमूरि
""
सिद्धसेनसूरि सिद्धसेनाचार्य
सिद्धसेनसूरि
37
;
12
""
"3
"
12
"
}}
>>
17
"
37
12
17
37
निगम प्रभावक आणंदसागरसूरि
निर्वृति गच्छ
(वृहन्नागपुरीयतपा)
ग्रामचंद्र महर्षि कनकचंद्रसूरि
पार्श्वदत्तसूरि शीलचन्द्रसूरि
पार्श्वचन्द्रसूरि पायचंद गच्छ
23
"
करमचंद्र उ०
परिशिष्ट- च
लेखाङ्क | संवत्
८८५ १६१६
१८२६
१७६६
११० १९६२
११२
१६१६
१३१ १७६८
२५१
१८१५
२५ε १६६२ १९८३
२७८ १८२६
२८६ १८१५
२६६ १६०२
२६८ १७६६
१७८०
११५१
२७०,२७१
१७६०
५७ १७८७
१३३५
लाभचंद्र
३१४,३१५ १८८४ वक्तचंद
३३१ १८२६
विजयचंद्र
३४६ १८६० विवेकचंद्र
३५६
१८१५
शिवचंद्रसूरि
६४६
१८८४
सागरचंद्र
२२५७
१६०२
हर्ष चंद्रसूरि
११४४
यतिनी
१५५७
नाम
कृष्णचंद्र ऋ०
१६४१
१६६७
१७६८
खुशालचन्द्र
चैनचंद्र
२०१६ १६०३
२०१३ ૨૬૪
२०१४ १८५३
२०१६
१५६१
२०२२ | (१६२८)
२०२०
जगत्चंद्र मुनि २०२६, २०३०, २०३१ जिनचन्द्र
२०२८
नेमिचंद्रसूरि
२०१६,२०१७
पनजी ऋषि
२०१८
२००६
२५४६
२०२१
२०१८
२०१२
२०२०
पासचंदसूरि
भ्रातृचंद्रसूरि
मलूकचंद्र ऋषि
रघुचंद्र वाचक लब्धिचन्द्रसूरि
(१८६६ ) कस्तूरा साध्वी
२०२६
(१८६६ ) कुद्धिजी
२०२६
२०२४
२०२४
(१८६३) चैनां (१८६३) राजां (१८९६) वस्तावरां (१९१९) उमेद तपागच्छ, (वृहत्तपा, सत्यपुरीय, सागर गच्छ )
२०२७
२०२५
१५४६ ११६६,२२२४ २५०१
१५७६,१५८८
"Aho Shrut Gyanam"
27
"}
}}
73
12
६५
लेखाङ्क
२०२५
२०२१
12
अनोपविजय
अमृतविजय
आणंदविमलसूरि
२०१६
२०२१
२०१०
२०१३
२०१६
२०१२
१६३८
२००२
२५२५
१९२७
Page #639
--------------------------------------------------------------------------
________________
बीकानेर जैन लेख संग्रह
नाम पुण्यनंदि गणि पूर्णचंद्रसूरि
लेखाङ्क १०१४
संवत् नाम १५४८ इन्द्रनन्दिसूरि १५५८ १५१३ उदयाणंदसूरि
उदयनंदिसूरि १५४६ उदयसागरसूरि
ऋद्धिविजयगणि १७६८ कपूरविजय १५५१ कमलकलशसूरि १५७३ १६२८ __ कल्याणविजय गणि
लेखाङ्क । संवत् ११६० | १५१६ १५३६ / १४६५
६६२ | १४६६ १८१६ १४६६ २४६८
२४५१
१७७० १२५३ १३८६ १६२७
१६९१ १८८२ १५०१
१५०८
गुलालविजय
१८७४ १८६१ १५७२
१४३६,१५१२ भाग्यहर्षसूरि
२२८२ मानविजय
१८२७ मुक्तिसागर गणि
१७७५ मुनिमुन्दरसूरि ८३७,८३८,८४६,८५०
८५२,२२३६,२४७६
२१६६
६६७,२२१६
९६१,६६२,६६६,१८३८ मेरुविजय
१५५२ यशवंतविजय
१५४४ रत्नशेखरसूरि
११४६ ८१७,८१८
२५२६ २१६६
१५४५ १५६२ १५११
१३८६ ११४०,१९३२
जयकल्याणसूरि
१५१६ १६६४ १८५५ ....
१५७५ १५०० १५०३
जयचंद्रसूरि
८२२
१५०६
८७५,८७६,८७७
८६४
१५०७ १५०८ १५०६
६३२
१६०८
१५१३ १५२२
जयतिलकसरि १५२५ १८४६ जसवंतविजय १६०२ जसविजय १५१७ जिनरत्नसूरि १५२२ १८६४ दीपविजय
१८७४
१४२,६४३,६४४,६४७,६५०
६५३,६५६ ६६१,६६२,६६४,६६७, १५०६,२२१६,२७४६
६८२,२२७७ , ६६१,६६२,६६५,१६०५,१८३८
१८१६ १००१ १००७
१०१४ १०२१,१०२५
१०३२ १४४१,१६००
२४४६
१२८२ १०७८,१०८२
देवसुन्दरसूरि
१८७६
१५१२ २५४४
१५१३ २००३
१२४५ १२७७,१६०८
१८८६ १५४५ १५१७
१५१८ ६३४
१५१६
१५२१ १५०२
१५२३ १५६२
१५२७ २५३६
१५३१ १८२१
१५३२ २३८२ | १५३४
१४६६ १४६७ १४६८ १४६५ १८६१ १५७६
६३२
देवेन्द्रसूरि धनरत्नसूरि धर्मरत्नसूरि धीरपन
१५८७
१९४७
"Aho Shrut Gyanam"
Page #640
--------------------------------------------------------------------------
________________
परिशिष्ट-च
فاني
नाम
संवत् १५३५ १५५१ १४६४
१४८१
१५१३ १५१६ १५७६ १६०३ १९७२
१५१७ १५१८ १५१६ १५२१
१०१४
१५२३ १५२४ १५२५ १५२७
लेखाङ्क | संवत् नाम
लेखाङ्क रत्नशेखरमूरि १०६२ | १८८३ विजयजिनेन्द्रसूरि
१८५७ १११८
१८६६ रत्नसागरसूरि
विजयतिलकसूरि
१८२७ रत्नसिंहसूरि
७०८,१५७८ १९६४ विजयदर्शनसूरि १७०४,१७०६,१७०७, ६७८
१७१५,१७१६ २४४८ १६०५ विजयदानसूरि
१८४० २५३६ १६१०
१७७७ रूपविजय गणि १५६०
१७०१ लक्ष्मीविजय १६३७ १६२७
१४५२ लक्ष्मीसागरसूरि
१६२८
१७५४,१६२७ १००१ १६७४ विजयदेवसूरि
१५४७ १००७,१००६
२१६०,२२२२ १६८४
१२३७ १०२१,१०२५
१२४१ १८८० १६८७
१८३६,२४०१ १०३२,१०३३,२२८० । १७०१
११६८,१२०३,१३०६ २१८२ १७०३
१६६६ १०३६,१०४१,१०४२,१०४३ |
२३१८ १०५०,१०५२,१४४१,१६००
१३०८ १५०७
२८३४ १८६३ विजयदेवेन्द्रसूरि १०६७ १९६४ विजयनन्दनसूरि १७०४,१७०६,
१७०७,१७११,१७१६ १०६८,२४४६
१६६४ विजयनेमिसूरि १७०४,१७०६, १२८२
१७०७,१७१५,१७१६ १०७७,२७२७ १७६१ विजयप्रभसूरि
२४१८ १०७८,१०७६,१०८२,१६०४ १६६४ विजयमुनिचन्द्रसूरि
१५६५ १०६२,१०६४,१६४६ १५८७ विजयरत्नसूरि
१५२१ १८२६,२२२०,२७४२ १९४७ विजयराजसूरि
२३५२ १५३८,१६६५ विजयलब्धिसूरि
२२६३ .२३५० विजयलक्ष्मणसूरि
२२६३ २४४५ १९६८
२२७०,२२७१,२२७२, १११८ विजयवर्द्धन
१२४१ २००० विजयवल्लभसूरि १९०१ २००१ ॥ १६६२,१६६४,१६६५,१६६६, १८२७ ।
१७६०
२४७७
१५२६ १५३० १५३१ १५३२
१५३४
१५४७ १५५१ १५५२
१५६१
"Aho Shrut Gyanam"
Page #641
--------------------------------------------------------------------------
________________
बीकानेर जैन लेख संग्रह
नाम
६६६
१४८५
. ii folosit -
संवत् नाम लेखा संवत्
लेखाङ्क १६६४ विजयविज्ञानसूरि १७०४,१७०६, १४७१ सोमसुन्दरसूरि १७०७,१७१५,१७१६ १४७४
६७३,६७४ विजयसेनसूरि १८४१,२७५५ १४७६
६८० १६५३
२००८ १४७७
६८६,६८८ १६६४
१५५२
१४७६ १६७०
१६४४ १४८०
७०२ १६८७
२४०१
१४८१ १६६१
१८२७ १४८२
७२० १६८७ विजयसिंहसुरि
२४०१ १४८३
७३०,१८७२,२२३५ १७६१
२३१८ १६८१ विजयाणंदमूरि
२३२८ १४६१
७५२,७५३,७५४ २२१० १४६२
१२१८ १६६१ १५२१,१८२७ - १४६३
१३१६,१३२५ २०००
१६१० १४६४
७७२,७७३ १६६४ विजयोदयमूरि १७०४,१७०६, १४६५
७८३,७८५,१५०२ १७०७.१७१५,१७१६
१४६६ १५८७ विद्यामंड नसूरि १८२१
३८६,४२२ १६८७ विनयविमलगणि
१८३६ १५०१
८४६,८५०,२२३६,२४७६ १६५३ विनयसुन्दरगणि
२००८ १५०३
८७५,८७६,८७७ १६०३ शांतिसागरसूरि १५८७,२३६६
१५०५ १६२१
८६७ श्रीसुन्दरसूरि
२४५१ १५०७
२५२६ श्रीसूरि १५०६
९३२ १६७२ संपतविजयपन्यास १६३७
६४३,६४७ १६०२ सिंघविजय
२००३ १५१३
६६१,६६२,६६७,२२१६, १८५३ सुन्दरविजय २००२
२७४६ १५२५ सुधानंदसूरि १०४२
६६२,१६०५,१८१६ १८५३ सुमतिविजय गणि २००२ १५१७
१००१ १९४७ सुमतिसागर २३८२ १५१८
१००६ १५५४ सुमतिसागरसूरि २४४६ १५२२
१८८० १५४३ सुमतिसाधुसूरि १२२५ १५२६
२४७७ १३६६ १५४७
२४४५ १५४७ २४४५ १५६०
१५२६ १९०१ १५७३
१३८४ १५११ सोमदेवसूरि ६५० १५...
११४७ १५२१ १०२५ | १५७६ सौभाग्यसागरसूरि
२५३६
०
"Aho Shrut Gyanam"
Page #642
--------------------------------------------------------------------------
________________
संवत्
१८६१
१६७२
१६२४
१६२६
१६२७
१६२८
१६३४
१६३६
१६४१
१६४४
१५५४
१५३३
१५२२
१५५१
१५५२
१५५४
१५५४
१५६१
१५६८
१५७०
१५७५
१५७८
१५८०
१५८३
१५१८
१५२१
१५२८
१५३३
१४६५
१४६६
१५०३
१५१८
१५२८
नाम
हंसविजय मुनि
हीरविजयसूरि
13
27
37
17
1:
हेमतिलकसूरि
हेमरत्नसूरि
विमलसूरि
7
1:
"
"
17
31
21
हेमसमुद्रसूरि
31
27
हेमहंससूरि
"1
21
परिशिष्ट-च
लेखा | संवत् लेखाङ्क
१५६२
१६३७
१६७०, १६४६,
२३३८
२४७६
१३०७
१४५२,११०४
१७५४, १६२७
१७७३
१२५४
१७५७
११३०, १२०१
१५२६
१७६१
१४६५
१३४५
१३६१
१४०६
१४२५
२२३८ १४५६ शांतिपूरि
१६११
१४८५
यशोदेवसूरि
१६२३
१४१३
१८२७
१४६७
२४४६
१५०३
११६१
१५३६
उजोचणसूरि जोहणमूरि
१५८४ १५५६
१२५३ १५६३ महेश्वरसूरि
१९१७
१६२४ ग्रामदेवरि
८६५, १४३३,१५१२
नाम
महंससूर
"2
११ १२६०
१६२६
१४२०
१२२७ १४२६ १२६३ १५६६
१२४९ १५१०
११६१ १५६३
६१६ १३८० ६४१ १३८६ १५१५ १२२७ १६१५ १२४६
१५१६
७२६,१३१४
पल्लीवाल ( पल्ली, पल्लिकीय) गच्छ
महेश्वरसूरि
२००,२२४४
12
"Aho Shrut Gyanam";
अभयदेवसूरि ग्रामदेवसूरि
")
#7
१५२७
११३३ १५०३
२५०४ १५१२
११३८ १५६६ कोविराज
२१८०
37
१५१० गुणदेवमूरि
गुणाकरसूरि
गुणसमुद्रसूरि
पिप्पल गच्छ ( सिद्धवावा, विभवीया)
पमरचन्द्रसूरि
उदयदेवमूरि
गुणप्रभसूरि
चन्द्रप्रभरि
देवप्रभसूरि
धर्म रत्न सूरि
४६
धर्मदेवमूरि धर्मसागरसूरि
लेखा
Ji
१०६०
=
२२७
४२४
૪૭૪
१३६०
१३१७
७६०
७६५
१२७६
२३३३
१५३७
१३३५
१६२७
२०६५
२११२
१६२२
२५२३
६३६
३४.
४४३
४८१
२५२३
*
११३१
२८५
३११
१२०८
२२३४
૨૪
Page #643
--------------------------------------------------------------------------
________________
५.
संवत्
१५१५
१५७६
१६१५
१३८६
१४८६
१५२६
१५२७
१३६०
१४५६
१३८३
१५६६
१४६१
१४६४
१४६६
१४८२
१४६६
१४६६
१५०१
१५०५
नाम
धर्मसुन्दर
पद्मतिलकसूरि
पद्मतिलकसूरि
पद्मचन्द्रसूरि
27
रत्नप्रभसूरि
रत्नदेवसूरि
रत्नप्रभसूरि
राजशेखरसूरि
विबुधप्रभमूरि
वीरचन्द्र पं०
वीरप्रभसूर
37
१५११
१५३४
१५५४
"
"
"
31
"J
37
( १४५६ ) कक्कसूरि
१४५६
77
सोमचन्द्रसूरि हीरानन्दसूरि
प्रा० ( प्राग्वाट ? ) गच्छ
बीकानेर जैन लेख संग्रह
लेखाङ्क | संवत्
१२०८
१४६६
११४२ १५०१
२२३४
१५०२
३३२ १५११
७४१
४८ १
उदयानंदपूरि
१४६५
उदर
१४३३
उदयप्रभसूरि
१४८५
कमलचंद्रसूरि
१५१० कमलप्रभसूर
१५१८ गुणधीररि
१५७६ गुणसमुद्रसूरि
गुणसागरसूरि
ज्ञानसुन्दर सुरि वारिचन्द्रसूरि
१५०
३४०
५७४
२६७
२५२३
६८
६११
६४३
७२१
७६०
५७०
५७०
पूर्णिमापक्ष (भीमपल्लीय द्वितीय शाखा)
८०५
८५४
८६२
१४८२
२१६२
८६२
१५०३
१५२५
१४४६
१५३४
१४८६
१५०३
१५०४
१५११
१५२०
१५२५
१५३४
१४७३
१४८१
१५६८
१३६८
१४७३
१४२६
१४३४
१४६१
१४६१
६२०
१४६६
५०६
१५०२
१५७५ १५२४
२७५४ १४६६
२८२१ १५५४
२४७५
६४५ १५०७
१८२४ १५१५
११२४ । १५२६
"Aho Shrut Gyanam"
नाम
जयचन्द्रसूरि
"
जयप्रभसूर
71
11
"
जयभद्रसूरि
37
31
21
77
55
"
जिनभद्रसूरि
13
जिनराज सूरि
देवेन्द्रसूरि देवचन्द्रसूरि
11
धर्मतिलकसूरि नेमिचन्द्रसूरि
पद्माकरसूरि
पास चंद्रसूरि
"
पुण्यरत्नसूरि
भावदेवसूरि
मुणिचन्द्रसूरि
मुनितिलकसूरि राजतिलकसूरि
"
"
लेखाङ्क
७८६
६४२
१४६६
૪૬
८७३
१३१५
१३५०
१४३४
७४७
८६६, ८७३
८८२
१३०४
१०१६
१३१५
१४३४
६६६
७०५
१७५८
२४०
५६७
६७१
४६१, ४६२
६७१
२३४५
६०१
५६७
७८६
८६२
१८७७
८०७
११२४
६६०
६.१३
६६०,२८१६
१०६२
Page #644
--------------------------------------------------------------------------
________________
परिशिष्ट-च
५१
संवत्
नाम
लेखाङ्क
४७०
लेखाङ्क | संवत्
नाम १५७२ लक्ष्मीतिलकसरि
११३७
उदयाणंदसूरि १५७५
६३१ १३६८ ललितदेवसुरि २४० १५५२ गुणसुन्दरभूरि
११२२ १५२४ विजयप्रभसूरि १२८३ १५१० जज्जगमूरि
२७७१ १५७२ विद्यासागरसूरि
११३७ पजनसुरि
१३५६,२७७१ १५७५ १६६३ १४०६ बुद्धिसागरसूरि
४०६ १४८५ विमलचन्द्रसूरि १५७५ १४२६
४७५ १४६४ वीरप्रभसुरि
१४५६
५७२ १५०६ २७४५ १५४०
२५२२ २७५४
१२६५ माणिक्यचन्द्ररि १४८१ सर्वाणंदसुरि ७०४ १५५० मुणिचन्द्रसूरि
१११६ १५११
६४५
मुणिचन्द्रसूरि १४८५ साधुरत्नसुरि
७२८,१५६८ १४०८ रत्नाकरसूरि
४१५ ८६१ १४१७
४३८ १५०६
१४३५
१४२६ १४४७ सोमप्रभसूरि
१४२६
४६३ १५१० श्रीचंद्रसूरि
१४३० १५३४ श्रीसूरि २७१० १५३० राजसुन्दरसुरि
२४४१ १५५६
१६३१ | (१२६५) वादीन्द्रदेवमूरि १४६५ हरिभद्रसूरि
विजयसेनसूरि ४१५,४३६,४७७,४६३ १३४४ बीरसूरि
१६६ बुद्धिसागरसूरि संताने
१३८६ १२६२ पद्मप्रभ गणि शि०
१४६०
७४८ ब्रह्माण (ब्रह्माणीय, बभाणिय) गच्छ
१४३२ हेमतिलकसरि
४६८
१४३५ १३५१
१२३०
१४५४ १४०५
१४५६
५५७ ५६.८७
बोकड़ीय (बोकड़ीवाल) बच्छ १५०१ उदयप्रभसूरि
८४८,८५३
१४२३ धर्मदेवसुरि १५०६
१०६,६०८ १४२५
४७२ १५११ १५१८
१७६६ १५१५ १५५८
मलयचन्द्रसूरि १५२१
१०२४
भावदेवाचार्य (आम्नाय) गच्छ १५२८ १०५७ / १२६८ जिनदेवसूरि
१०६ २४४१ / १२८२
१२० १४५६ उदयाणंदसूरि ५८७,५९० / १६६४ ॥
१४६४
३३०
५१६
४६१
"Aho Shrut Gyanam"
Page #645
--------------------------------------------------------------------------
________________
५२
संवत्
१४२२
१४२७
१३७६
१३६३
१४३६
१४३८
१४४०
१४४६
१५३४
१५३६
૨૪૬૨
१४७१
१४७६
१४८१
१४८६
१४६४
१४६६
१५१०
१५१२
१५१३
नाम
कालिकाचार्यio
जिनदेवमूरि
33
भावदेवसूरि
"
"
23
22
भावडार गच्छ
विजयसिंहसूरि
"
37
77
वीरसूरि
27
"
"
बीकानेर जैन लेख संग्रह
लेख | संवत् १५३५
१५४५
१५४७
६५४,१३६२
४५१
४८३
२८३
३६२
५२२
५.३१
५३८,५३६
५५६
१६०२
१८६६
६५०
६५६
६८४
७०३
७४५
७७७
८१२
१३६२
६५४
१७७,७८
भीनमाल गच्छ ( भील्ल ० )
वीरदेवसूरि अमरप्रभरि
१०१६,२४५२
१५०४
२४८२
१५१६
१०१६
माहड़ीय (मडाड़, जाखड़िया रत्नपुरीय) गच्छ
१३७६
२८१
१५०५ अमरचन्द्रसूरि
८६५
१३६६ पादप्रभरि
२३५
१३६७
२३७
१३७१ पाणंदरि
२४६
१४२३
उदयप्रभसूरि
४६२
१५३४ कमलचन्द्रमूरि
१०८१
....
१५३२
१५६०
१५७५
१५०१
१५०८
१५३२
१५६२
१५०७
१४६२
१४५४
{ks
१४६१
१४८०
१४१२
१४१७
१४..
नाम
कमलचन्द्रसूरि
"Aho Shrut Gyanam";
37
23
कमलप्रभसूरि
गुणचन्द्रसूरि
गुणसागरसूरि
23
चत्रेश्वरमूरि
दयाहरसूरि
धण चन्दसूरि धर्मचन्द्रसूरि
17
१४९८
१५०४
१५०५
१५३२
१५४५
१५०६
१४८२
१४६२
१५६४
१४१३
पासदेवसूरि
१४१५ मानदेवसूरि
१४५६
१४०६
मुनिप्रभसूरि
23
नवचन्द्रसूरि
21
"
नयणचन्द्रसूरि
27
31
"}
31
23
??
ܕܕ
लेखाङ्क
१०११
२४१३
१११२
१६३०
१०७३
२७५१
१६३०
८४०
२२१७
१०७३
२४८२
१२०
१२०
७६८
१००१,१६१
८००४
८६
८६६
१०७०
१११०
६३०
७१५,७१६,७१७,७१९
७५८
११४५
४३१
४३४
५८८
४०४
५४४
२३४६
५८०
२४६७
७००
१५१५
१८९४
८१७
Page #646
--------------------------------------------------------------------------
________________
परिशिष्ट-च
संवत्
लेखाङ्क
नाम वीरभद्रसुरि
संवत्
लेखाङ्क
१५०४ १५०५
८६६ ३८७,३८८
नाम
रत्नपुरीय गच्छ घणचन्द्रसूरि धर्मघोषसुरि
शान्तिसूरि सर्वदेवसूरि
५८२,५८४
४४२
१३८६ १३८७ १३६२
१४५८ १४२० १४२४ १४३५ १४३६
4W
99ur .
.
.
MA
1 WWWM
..
१४५८
३
१४३७ मोमचन्द्रसूरि १४४५
ललितप्रभसूरि
१४५१ मोमदेवमूरि १४५६
५८८,५८६ १३६३ सोमतिलकसूरि
३५६ १३७१ हेमप्रभसूरि
२४६
हरिप्रभसूरि १३८७
३२१
राठोर गच्छ १५०८
२२१७ / ११३६ परस्वो पागया संताने २८२७ मलधारि गच्छ
__ राज गच्छ गुणकीर्तिसूरि १२७१ माणिक्यसूरि
३७६ १५३४ गुणनिधानसूरि १०९३,१०८४,१६०८ EE हेमचंद्र सूरि १४९८ गुणसुन्दरसूरि
८००,८०६
रामसेनीय (देखो वृहद गच्छ) १५०४
८८७ १५२८
१६८३
रुद्रपल्लीय (रुदलिया) १५२६ २३५१ १५६६ आणंदराज उ०
१४५५ १०८३,१०८४ १४१५ गुणचन्द्रसूरि
१९१३ १४५८ मतिसागरसूरि १२७८
१२७४ १३८६ राजेश्वरसूरि
१५७० गुणसमुद्रसूरि
१५३४ १३६२
३४६ गुणसुन्दरसूरि
२३४२ १३६३ ३५८
५२५ १४०६
१४४२ १५६६ चारित्रराज उ०
१४५५ १४१५
जिनराजसूरि
८५१ १५६८ लक्ष्मीसागरसूरि १६०६
१२५२ १४७६ विद्यासागरमूरि
१३०० १५२५ जिनोदयसरि
१२५२ १४८८
१४६४ जयहंसमूरि १५०४
जिनहंससूरि १३८० श्रीतिलकसूरि
१२१४
१५६६ देवराज वाचनाचार्य १४५५ १३८६
१४८७ __ देवसुन्दरसूरि
१८३५ महौकर गच्छ
७९७,६१४,६२७,१००४ १४६६ गुणप्रभसुरि
६२७/
११२६,१४३६,२२४५,१६०७
१४२१
३१३
४३५
१५०१
الله
الله
"Aho Shrut Gyanam"
Page #647
--------------------------------------------------------------------------
________________
५५
संवत्
१५०६
१५६१
१३२७
१५५६
૨૪૨૩
१५०७
१५०८
१५१२
१५१७
१४७८
१४.०
नाम
लब्धिसुन्दरसूरि
विजयराजसूर श्रीचन्द्रसूरि
सरि
मोमसुन्दरसूरि
12
97
हर्षसुन्दरमूरि
17
१८७६ उदयचन्द्र महर्षि
१८८७
उमेदमन महाय
१८७७
जीवणदास प्राचार्य
१८६५ टीकमचन्द महवि
वृहन्नानपुरीयलंका (अमरसोतज्ञाखा)
"
"
3:
१८७६
१८७७
१८८७
१८१५
१८६६ सचिन्द्र चाचार्य
१८७६ दीरचन्द्र महर्षि
१८७६
स्वामीदास
१८६६
१८६६
बीकानेर जैन लेख संग्रह
लेखा संवत्
१६०७ १८११
१४५५ १८१६
१६१ १८६९
१६२६
७६७
73
६२७
२२४५
१००४
१३..
२५४६ १३७१
२५६४ ૧૪૪૨
२५४५ १४६७
१८१९
२५६८ १५०४
१८७६ परमानन्द महर्षि
२५६२,२५६३
१५१३
१८७७
१८८७
१८६४
२५६४ १४३४ २५४६ १४८२ २५६८ १५२४ भागचन्द्र महर्षि २५४५ १५३४ १८७६ मोतीचन्द महाय २५६२,२५६३,२५६४ १४७२ १८७६ २५६२,२५६३ १४६२
१८६५
राजसी महर्षि
१८८७
रामधन महर्षि
२५४६ १३३४
लक्ष्मीचन्द्रसूरि
सुजाण मल्ल
अमरा आर्या
२५३५.
६६७
१८३५
२५६२,२५६३
१७२७
१७२७
१२२०
१४४६
नाम
उमा आर्या
उमेदा प्राय
जनूजि पार्या
१५०१
कल्याणसागरसूरि
खेतऋषि
सुमतिसागर सुरि
विजय गच्छ
वृहद् गच्छ
(रामसेनीय, ब्रह्माणीय, सत्यपुरी)
अभयदेवसूरि
श्रजितभद्रसूरि
अमरप्रभरि
"Aho Shrut Gyanam".
ग्रमरचन्द्रसूरि
33
71
उदयप्रभसूर कमलचन्द्रसूरि
कमलप्रभसूरि
कसल चन्द्रसूरि गुणसागरसूरि
२५६२.२५६३
२५६४
२५४६ १४३६
२५४५
78
२५६=
देवभद्रगणि
२६५२
देवाचार्य
२५६३ १३४६
देवेन्द्रसूरि
२५६८ १५३४ धनप्रभसूरि
२५६६ १२२७
धनेश्वरसूरि
1:
जयदेवसूरि
जयमंगलमूरि
जिनरत्नमूरि
तिलकसूरि
लेखा
२५६५,२५६६,२५६७
२५६७
२५६५
१२९२
१२१२
१२६२
८४
५५५,२४६१
३८०
३८०
११६०
५५५
७६४
८८८
६६८
५०६, ५१०
१५३०
१०२५
१०८०
६६२
ise
१८५
१०३५
२१५२
११६७
२१५२
२१५२,२१५३
२१५२.२१५३,२१५४
२०२
=
८६
Page #648
--------------------------------------------------------------------------
________________
पारीशष्ट-चं लेखाङ्क | संवत्
नाम
नाम धनेश्वरसूरि
संवत् १२३४ १२६० १२७३ १२७६ १२८४ १४०१
लेखाङ्क
६२३ २४०६ १३६
१०५
११४
१५१०
मानदेवसूरि १३३४ १५६६ मुनिदेवसूरि
मुनिशेखरसूरि १३८७ (१४३६) ,
२५२७
धर्मचन्द्रसूरि
१४०८ धर्मतिलकसूरि १४४५ धर्मदेवसूरि १४५४ १४५६ १४५७
१३२० ४२० ५४८ ५६६ २४५२
२१५२ २१५२,२१५३
मुनीश्वरसूरि
.
१४७६
५७५
मेरुप्रभसूरि
१३४५
७४३ १३४५
धर्मसिंहमूरि
१८५७
९७३,१०३१,१०३७, १३३७.२२८१,२७२१
१८३० २३८
७४३
यशोभद्रसूरि रत्नाकरसूरि
१४६५ १४०६ १२८४ १४७८ १४८२ १५०१
धर्मसूरि नरचन्द्रसुरि
१२३
६६१
१५०६
१०५ २७२१ १९३०
१८५७
१४८६
रत्नप्रभसूरि
न्यानप्रभ वा० पद्मदेवसूरि परमान्दसूरि पुण्यप्रभसूरि
१३६० २५२७ २४७ १६१ ८६६
२१५२,२१५३,२१५४,
२१५७ ५५२
१३३८
१४४७ रत्नशेखरसूरि १५१३ राजरत्नसूरि
पूर्णचन्द्रसूरि भद्रेश्वरसूरि
॥
१४३६ १४८६ १५०१ १५०४ १४२४
"
५५२
१५२४ ३०४,३०५.३२५
१५२८ ११६७
१५३४ २५२६
१४०६ २१५२
१४८० १३२०
१३८५
| १३८६ ५०६,५१० २१५२,२१५३,२१५४
१३३८ ६०५ । १४८२
१०३७ १३३७ २२८१ ४०५ ७०१ ३०४
रामचन्द्रसूरि रामदेवसूरि विजयसेनसूरि
मलयचन्द्र सूरि महेन्द्रसूरि
३०५
३२५
"
२१५७ .
१५०१ १५०६
वीरचन्द्रसूरि
,
१६१ ७१८
"Aho Shrut Gyanam
Page #649
--------------------------------------------------------------------------
________________
बीकानेर जैन लेख संग्रह
नाम
लेखांक
१८८
६८२
४१४
२४८८ ८२८
१०४६
"
६०२ ७२५,७२६,१३३६
१३३६
३२७
mi
३२७
६०७,१३१८ ६१८,२४५०
६२४
१५०८
संवत
लेखाङ्क संवत् नाम १५०१
१३६० १३३७ यशोभद्रसूरि १५०७
६१७१४७६ १५३४
१२६८ १४८३ १३६६ वीरदेवसूरि
२४७ १४०८ सर्वदेवसूरि १४४० सागरचन्द्रसूरि
५४३ १३८५ यशोदेवसूरि १४६२
७६४ १५२६ १५०४
१२६५,१३०२
१४७२ शांतिसूरि १२६० हरिभद्रसूरि
१०५
१४७५ सत्यपुरीय
१४७६ १४२२ अमरचन्द्रसूरि १५४७ चारुचन्द्रसूरि
१११३ / १४६४ १३८८ पासदेवसूरि
१४६६ १५०६ पासचन्द्रसूरि १३८८ महेन्द्रसुरि
१५०७ १३८८ श्रीरि
३२४ १५४५ सोमसुन्दरसूरि
१५०६ हेमहंससूरि
११११ १५१३ वादिदेवसूरि संताने (देवसुरिगच्छ) ।
१४२२
___ शालिभद्रसूरि १३६८ धर्मदेवसूरि
१३३७ शालिमूरि १३८१ पासचन्द्रसूरि
२८८
१३३८ (१४) ५७ धर्मदेवसूरि
१३४६ वायडीय (वायड़) गच्छ
१४३३ ११६२ वीरदेव
२७५६ १५२६ १४७२ रासिल्लसूरि
१५३५ विवन्दणीक गच्छ
१५३६ १५७२ श्रीसूरि
१३६२ श्रीसूरि श्रीमालगच्छ (श्रीश्रीवल ?)
संयमरत्नसूरि
१५३२ सावसूरि १४२५ ॥
४७१
१३७१ सुमतिसूरि १४७८ वयरसेनसूरि
६६२
१३८८ संडेर (पंडेर, खंडेरक, षंडेरकीय) गच्छ | १३८६ १४१७ ईश्वरसूरि
४३७१४६२ १४२२
१५७४ | १४६५ १०७६ । ....
२४३
५८१
१५७४ १०७६ १८८ १६० १४७६
५०३ १०४६
१५१६
२४६६ १६०६ २५० ३२२ ३३०
६०४
६२५
"Aho Shrut Gyanam"
Page #650
--------------------------------------------------------------------------
________________
:: परिशिष्ट-च
लेखाङ्क
२५१४
१४००
८१८
४१६
४८५
१४२१
संवत् नाम
लेखाङ्क ! संवत् नाम साधु पुणिमा गच्छ
हयकपुरीय गच्छ १४२४ अभयचन्द्रसूरि
१६२८
१२३७ ॥ १४५८
५८३
हारीज गच्छ
१९३८ | १५२३ महेश्वरसूरि . १०२६ गुणचन्द्रसूरि १५१६
जिनमें गच्छों के नाम नहीं हैं देवचन्द्रसूरि
९६८ १५१८ १८२८ .... अजितसिंहसरि
३८६ धर्मचन्द्रसूरि ४६४,४६६,५०५,१५३३ १३९२ __ अभयचंद्रसुरि
३५१ १४२४ धर्मतिलकसूरि
४६४ १४३२
४६६ १४०८ १४२८
अभयतिलकसूरि १४३३ ५०५ १३५६ अमरचंद्रसूरि
२१६ १४५०
१५०१
८४३ १४३४ धर्मतिलकसरि
५१३, १३५६ अमरप्रभसूरि
७२२,८२७, १३९० पुण्यचन्द्रसूरि ६०६ १२६७ प्रानंदसूरि
१३७ १५०५
१६२५ / १३६७ आमदेवसूरि १५२०
१८७६ १४२८
१३७६ १४६३ रामचन्द्रसूरि
१६०१ ! १३४२ उदयदेवसूरि १६२५ १५०६ उदयनन्दिमुरि
२५२८ १४८३ श्रीसूरि
१३५६ उदयप्रभमूरि
२२० १४८३ हीराणंदमूरि ७२२ १४१८ उदयाणंदमूरि
४३६ १५१६
१२६० उद्योतनसूरि सिद्धसेन दिवाकराचार्य (नागेन्द्र) गच्छ
१४६५ कमलचंद्रसूरि २७६६ १३६० कमलप्रभसूरि
२२२ १३६८ सुराणा गच्छ १५१०
१३७७ १५५४ नन्दिवर्द्धनसूरि
११२७ सैद्धान्तिक गच्छ १३५५ कमलाकरसूरि
१२३२ १३८४ ज्ञानचन्द्रसूरि
२२३ १३८७ ज्ञानचन्द्रसूरि
३१७ १३६४ १३९४ नाणचंदसूरि
१३८६
३२६ (१३७३) विनोदचन्द्रसूरि
२८२० १४३३ १३७३ शुभचन्द्रसूरि २८२० । १४८६
७४० ३०१,३१७ १ १७१० कल्याणचंद्रसूरि
२३७१
२३४
W७
२४२
२३३
"Aho Shrut Gyanam"
Page #651
--------------------------------------------------------------------------
________________
५८
संवत्
नाम
१६६१ केसरीचंद मुनि
१३१६
गुणगणसूरि
१३३०
गुणचंद्रसूरि
१३६६
१३८६
१३६०
१४६१
१४६६
१३. .
१३६०
१३६८
१३६०
१४०६
१४१८
१५२४
१३-६
१२३७
१२७२
१३७७
१५६८
१५०६
१३१६
१३१६
१३२१
१३७८
१४४०
१४५६
१४७७
१५१६
१३५६
१५५७
१४५६
१४..
१५०१
१५१७
37
गुणभद्रसूरि
21
गुणप्रभसूरि
गुणरत्नसूरि गुणाकरसूरि
73
ज्ञानचंद्र सूरि
1
ज्ञानसागरसूरि
चन्द्रसूरि
चन्द्रसिंह सूरि
27
जयकल्याणसूरि
जयचंद्रसूरि
जयदेवसूरि
31
"
जयप्रभसूरि
27
जयमंगलमूरि
19
जयमूर्ति गणि
जयवल्लभसूरि
जयशेखरसूरि
در
बीकानेर जैन लेख संग्रह
लेखाङ्क
संवत्
२५७१
१५६ १५१६
१७४
१४२८
जयानंदसूरि
२४६ १४२३
जिनचंद्रसूरि
१६४७
१३४६
जिनदत्तसूरि
३४१, ३४२
१३७० जिनदेवसूरि
१३५६
१४.. ( ११ ),,
६४५, ६५१
१४२३
३७८
१५०१
२२२
१३६३
२४२
१३६६
१८६०
१३७३
४०७ १३४६
४४० १४२३
१०३४
१४४२
३८३,३८४
१४५१
६३
१४३६
१५०१
१११ २७२ १३८६
१३३३
२५२८ १७७३
१५५ १२६६
१४६५
१२२३
(१३) ५७
१३७८
१३६४
१३३२
१५८, १५६
३६७
२७६
૪૦
५७३ १२८८
५८७
१३८६
१०१८ १३६३
२१६ १४२३
११२७
१४०५
५६३ १५३६
८ १६
१३६२
८३६ १३७८
२७७३
१०२०
नाम
जयसिंहसूर
"Aho Shrut Gyanam"
77
जिनरलसूरि
जनसिंहसूर
37
37
जिनेन्द्रप्रभसूर देवचंद्रसूरि
"
77
देवप्रभसूरि देवभद्र गणि देवभद्रसूरि
"}
देवरत्नसूरि
देववीरसूरि
देवसुंदररि
देवसूरि
}}
リ
"
देवेन्द्र सूरि
"
22
39
धनेश्वरसूरि
"
धर्मचंद्रसूरि
धर्मघोषसूरि
लेखाङ्क
૪૭
१०१८
४८६
४५७
२०६
१६३६
८१६
४५८
८३६
२३२
१३१६
२५७
२०६
४५६, ४५६
५४६
१६२२
५२७
२१५२,२१५३
३३७
३६१
२४३४
१०८
६२१
१४८३
२३०
२७४
३६६
१२७
३१२
३६०
४५३
४०१
१०६६
२२६
२८०
६३
Page #652
--------------------------------------------------------------------------
________________
परिशष्ट-च
संवत्
नाम
लेखाङ्क
नाम परमानंद सुरि
१२९७ धर्मघोषसूरि १४७५ धर्मतिलकसूरि १४७६ १६६५ धर्मदत्तमुनि १३३२ धर्मदेवसूरि १३४६ (१३)५७
लेखा। संवत् १३७ - १३२३ ६७८
१२७६
१३२६ २२३१
१३३२ १३३४ १३४१ १२२
२२६१ १८१ १८४
१८२ २०७
१९७
२३०
२२१
१४:
६३७
२७४
१३७८ १३८२
१०६८ १४६०
३६६
१३५५ ११३४
१५६८ १३९०
३४१
धर्मरत्नसूरि धर्मसूरि नन्दिवर्द्धनसूरि नन्नसूरि
१५०७ १३४२ १२६३
पारस्वदत्त पावचंद्रसूरि पार्श्वसूरि पासचंदसूरि पासड़सूरि पासदेवसूरि पासमूत्तिमूरि पासवदेव मुनि पूर्णचंद्रसरि पूर्णभद्र पूर्णभद्रसूरि प्रद्युम्नसूरि प्रभाकरसूरि प्रभाणंदसूरि बालचंद्रसूरि भदेसुरमूरि भावदेवसूरि
२४११ १९८ १३०
२६०२
१३-- १३३११८८
WG8.००
१६३
१३५३
१२२४
१२९३ नाति
नयचंद्रसूरि नयसिंहसूरि मरचंद्रसूरि
१३० १३८
१३२२
१४०८ १२३६ १३७३
२७३
२६४ २४५
१२९८ १३७८ १३६३ १५०० १४८६ १४२३ १२८८
नरदेवमूरि नेमचंद्रसूरि
Norture
१२७
८२३
१३८२
१४३७ ४५६ १४५६
१४६१ १२६२ | ..६६ १५०६ | १४५४ १२१७ १२२२ १७२०
१३७३
११५०
भुवनचंद्रसूरि मतिसागरसूरि मदनचंद्रसूरि
१२४३
पद्मचंद्र १४६६ पद्मचंद्र सूरि
पद्मदेवसूरि १२५८ १३७३ पादेवसूरि १२३६ पद्मप्रभ (?) सूरि १२६२ पद्मप्रभ गणि १३३६ , सूरि १५७३ पपानंदसूरि
१०६ २५८ ૨૪૨
.२६५
मदनसूरि मलयचंद्रसूरि
४०१
१४५६
१८७ २६०२
महेन्द्रप्रभसूरि महेन्द्रसूरि
१५६ १३२
१२६३
"Aho Shrut Gyanam"
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--------------------------------------------------------------------------
________________
६०
संवत्
१३३०
१३०६
१३६८
१३७३
१४०५
१३५६
१४११
१३६२
१४११
१३७८
१५०१
१४५४
१३६३
१२६७
१२७३
१२८५
१२८६
१३२६
१४२३
१४३६
१४६६ १५६६
१३६१
१३६०
१ ( ) ७८
१३७०
१३७३
१४५७
१३९४
१४२३
१३७०
१४६६
१५०७
नाम
महेशचंद्रसूरि
महेश्वरसूरि
#1
माणिकसूरि
31
माणिक्यसूरि
माणिक्यसूरि
मानतुंगसूरि
मुणिचंद्रसूरि
मुनिप्रभरि
71
मुनीश्वरसूरि
मेरुतुंगसूरि
प्रसूरि
रत्नचंद्रसूरि
रत्नप्रभसूरि
73
17
"
71
21
15
रत्नसागरसूरि
"}
33
रत्नसिंहरि
रत्नाकर सूरि
रामदेवसूरि
वयरमेणसुरि
35
वर्धमानसूरि विजयचंद्रि
27
बीकानेर जैन लेख संग्रह
लेखाङ्क संवत्
१७३ १३२१
१४६ १३२७
२४१
१४२४
२५२
४०२ १३०६
२२० १३७३
४२५
१३७६
२२८
१३६३
४२६ १४७२
३६८ १५१०
२७६
२१५२,२१५३
५६४
२३२
१३७
११३
१११२
१२३६
१३३०
१३६३
१३६८
१२०६
१३८७
१२४ १३८६
१७२
१३६७
४५४ १४३८
५२६ १३२०
१३७५ १२९०
१४५५ १४५६
२२४ १२८१
३३६ । १२८३
८२४
१२८०
२७५७
१३४६
૨૪
१४६६
२६३ १२०८
५७८ १३३५
१३४३
१३५१*
१३७१
१३७३
३६६,३६७
४६०
२४८
1.
३६०
८१४ १३८२
१३८६
२४१०
"Aho Shrut Gyanam"
लेखाङ्क
१६०
१७०
४६६
विजयभद्रसूरि विजयसेनसूरि १२४२, १७७८, ११५५
१४७
नाम
विजयप्रभसूरि
17
23
विनयचंद्रसूरि
27
"
वीरप्रभसूरि
27
वीरसूरि
शांतिसूरि
17
31
77
शालिभद्रसूरि
17
33
37
शालिसूरि
शिवसूर
शीलचंद्रसूरि
शीलसूरि
71
श्रीचंद्रसूरि
"
श्रीतिवदधर ( ? ) सूरि
श्रीदेवसूरि
श्रीसूरि
32
71
}}
27
23
31
२५४
२८२
३५५
६६४
१३७७
३६४
१००
१७५
२३१
२६ε
७९
३२०
३३४
३७२
५३०
१५७
१२६
५७१
११६
१२२
११८
१८०८
६३३
२७६०
१८६
१३५४
२१४
१३६३
२६०,२६२ २८६,३२८
३१०
Page #654
--------------------------------------------------------------------------
________________
संवत्
१३६१
१३६३
१४११
१४१२
१४२१
१४३३
१४४१
१४६३
१४६४
१४६५
१४६६
नाम
श्रीसूरि
37
21
1J
17
22
23
2)
"
37
13
१४६८
१४८५
१४१०
१४६१
१४६२
*
१४६६
१४६७
१५०१
१५०७
१५११
१५१५
१५१८
१५२५
१५२७
१५२६
१५३३
१५३६
१५३६
१५३७
१५५१
१५५६
१५८३
१३६२ समतसूरि
संतिगणि
"
"
73
17
23
#7
"1
श्रीसूरि
27
"
71
27
33
17
33
परिशिष्टच
लेख | संब
६ १३११
१३९१
१३९४
१५१६
३५४
४२८
४३०
४४६, १९३६
१९३३
५०४
१२१७
५४५
१४१५
६०३ १४६५
६१२ १४७६
६१३
१५०४
२२७६
६३६
२७०५
१३०३
१३८२
७५० १४०६
७५१ १४१०
२७६३ १५१०
१६१० १३४०
७८७ १४८०
१४६६
**
१५१६
१५३४
७१२,७१६
२०३२
१२१
१४९
६८ ३
१८१७, १२०५
१३९३
***
१५१० १३८१
नाम
सर्वदेवसूर
सर्वदेवसूरि
"
सर्वमूरि
सर्वानंद सूरि
71
71
37
मागरचंद्रसूरि
37
सावदेवसूरि
सिषदत्तसूरि
सुमतिमूरि
"3
सुविहितसूरि
17
सोमचंद्रसूरि
31
सोमतिलकसूरि
१२५०,१५५१
१०६१ १४३० १८२५, ११५७ Proc
११०१ १४३३
१७५६ १३१७
१३७६
११२८ १४२३ २२०६ १३८७
११५० ***
३५० १२२७ हरिभद्रसूरि
६२
१२७६
"Aho Shrut Gyanam";
,
मोमदत्तसूरि
सोमदेवसूरि
73
सोमसुंदररि
सौभाग्यसुंदररि
हरिदेवसूरि
हरिप्रभसूरि
६१
लेखा
१४५
३४७
३६५
૨૨૭
२१६४
१००६
४३६
६२४
६६५
८७६
३७७
२६१
२१२
४०७
४४०
३८
१९४
१२२४
६३०
६४४
१७५५
१२०६
३५०७
*
२८७
३०६
५३४
***
५०७
૨૫૪
२८२६
४६०
३२०
३३४
१३२४
११६
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________________
बीकानरे जैन लेख संग्रह
४८७ ]
m
K
संवत् नाम लेखाङ्क संवत् नाम
लेखाङ्क १३३४ १८४ | १५६२ हेमचन्द्र देवा
२६०६ १४१४ हर्षतिलकसूरि १४७५ १६८८ क्षेमकीत्ति भ.
१५६३ १४२८
| १६८८ त्रिभुवनकोत्ति हर्ष सुंदरसूरि
२५३१
काष्ठा संघ--बागड़ गच्छ १४७५ हीराणंदमूरि
१४६२ नरेन्द्रकीत्तिदेवा १४६७
१४६२ हेमकीति १३१४ हेमतिलकसरि
४२६ । मूल संघ सेनगण, नंदि संघ, सरस्वती १४६७
७६८
गच्छ, बलात्कार गण दिगम्बर संघ---काष्ठा संघ
१३२७
१३७१ १५१३
१३३६
१२८६ १५३१
१३६७
१८३७ १५४६
१३८६
३३५ १५४५ अभयभद्र
१३६६ १५१४ कमलकीत्ति
१७६४
१७८३ १४६६ गुणकीत्तिदेव
१६३७ गुणकीति
२००७ १५४५ गुणभद्र
१६६० चंद्रकीत्ति
२६१० १५४६
१५३० जयकोत्ति
२४८० १५०१ मलयकोत्ति
१५२३ जयसेन
१३६६ १५०७
१५०२ जिनचंद्र भ०
८५८ १६८३ विजयसेन भ०
१५०६
६२८ १५६६ विश्वसेन
१५१०
६४०,१२०४ १५४०.. सोमकीत्ति १३०५ १५३१
१२४६ काष्ठासंघ---नंदीतट (नंदियड़) गच्छ
१५४२
१२६४ १५४८
११६२,११६४,१४१६,१५६४, विद्यागण
२६११,२६१३,२६१४,२७२६, १५१५ मामकीत्ति १०४०
२८८६,२८८७ १५४० वीरसेन प्राचार्य
१५४६ सोमकीत्ति १७३२ देवेन्द्रकीत्ति
१४५६ काष्ठासंघ माथुरान्वय पुष्कर गण १५६३ धर्मचंद्र देव
२३६२ १२०४ अनंतकीति २४५७ १४५७
२३,२६,२२७४ १५६२ कुमारसेण देवा
१४७३ १६८८ जशकीत्तिदेवा
१५६३ १५६३ धर्मनंदि मंडलाचार्य १६१२ १५६२ पद्मनंदि देवा
२६०६ १४७२ नेमिचंद्र १६८८ सहस्रकीर्ति १५६३ । १४७२ पद्मनंदि
६५८,१३४७
"Aho Shrut Gyanam"
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--------------------------------------------------------------------------
________________
परिशिष्ट--च
संवत्
१४७३ पद्मनंदि १३८७ १४६२
प्रभाचंद्र देवा १२३४ भुवनकीति १४६६ १५०० १५२७
रत्नकोत्ति देवा १६७६ रत्नचंद्र १५४८ वादलजोत १५७५ विजयकीति १४६२ शुभचंद्र देवा
लेखाङ्क संवत् नाम
लेखाबू २५६ | १४६२ सकलकीत्ति देव
१८७५ ३१६ १५२७
१२६१ १८७५ १२२६ सिधकौत्ति देवा
१७८१ २६१० १५२३ सिंहकीत्ति देवा
१३६६ १७८५ १५३१
१२४६ ८०६ १८२६ सुरेन्द्रकीत्ति
२४१५ ८२०,८२१ | १९२६
२६१२ १२६१ - १५४८ सोमसेण भ.
१६२८ १३७३
जिनमें गच्छ-गण-संघ नाम नहीं है १८४४ ११५५ देवसेन १८४७ । १२८७ ललितकीत्ति २८५३ | १३४१ धरमिद गुरू १८७५ । १४९३ देवेन्द्र कीत्ति
१४४४ १८६२,२८३८ | १५४८ ज्ञानभूषण देव
२२६०
२९
"Aho Shrut Gyanam"
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________________
"Aho Shrut Gyanam"
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--------------------------------------------------------------------------
________________ શ્રી જિનશાસના જય હો !!! II શ્રી ગૌતમસ્વામીન નમઃ | | શ્રી સુધમસ્વિામીને નમ: || જિનશાસનના અણગાર, કલિકાલના શણગારા પૂજ્ય ભગવંતો અને જ્ઞાની પંડિતોએ શ્રુતભક્તિથી પ્રેરાઈને વિવિધ હરતલિખિત ગ્રંથો પરથી સંશોધન-સંપાદન કરીને અપૂર્વજહેમતથી ઘણા ગ્રંથોનું વર્ષો પૂર્વેસર્જનકરેલછે અને પોતાની શક્તિ, સમય અને દ્રવ્યનો સવ્યય કરીને પુણ્યાનુબંધી પુણ્ય ઉપાર્જન કરેલ છે. કાળના પ્રભાવે જીણ અને લુપ્ત થઈ રહેલા અને અલભ્ય બની જતા મુદ્રિત ગ્રંથો પૈકી પૂજ્ય ગુરુદેવોની પ્રેરણા અને આશીર્વાદિથી સ.૨૦૦૫માં 54 ગ્રંથોનો સેટ નં-૧ તથા .૨૦૦૬માં 36 ગ્રંથોનો સેટ ની 2 સ્કેન કરાવીને મર્યાદિત નકલ પ્રીન્ટ કરાવી હતી. જેથી આપણો શ્રુતવારસો બીજા અનેક વર્ષો સુધી ટકી રહે અને અભ્યાસુ મહાત્માઓને ઉપયોગી ગ્રંથો સરળતાથી ઉપલબ્ધ થાય, પૂજ્યા સાધુ-સાધ્વીજી ભગવંતોની પ્રેરણાથી જ્ઞાનખાતાની ઉપજમાંથી તૈયાર કરવામાં આવેલ પુસ્તકોનો સેટ ભિન્ન-ભિન્ન શહેરોમાં આવેલા વિશિષ્ટ ઉત્તમ જ્ઞાનભંડારોની ભેટ મોકલવામાં આવ્યા હતા. આ બધાજપુસ્તકો પૂજ્ય ગુરુભગવંતોને વિશિષ્ટ અભ્યાસ-સંશોધના માટે ખુબજરુરી છે અને પ્રાયઃ અપ્રાપ્ય છે. અભ્યાસ-સંશોધના જરૂરી પુસ્તકો સહેલાઈથી ઉપલળળની તીમજ પ્રાચીન મુદ્રિત પુસ્તકોનો શ્રુત વારસો જળવાઈ રહે તો શુભ આશયથી આ થોનો જીર્ણોદ્ધાર કરેલ છે. જુદા જુદા વિષયોના વિશિષ્ટ કક્ષાના પુસ્તકોનો જીર્ણોદ્ધાર પૂજ્ય ગુરૂભગવતીની પ્રેરણા અને આશીર્વાદિથી અમો કરી રહ્યા છીએ. લો અભાઈ તથા સંશોધના માટે વધુમાં વઘુઉપયોગ કરીને શ્રુતભક્તિના કાર્યની પ્રોત્સાહન આપશી. લી.શાહ બાબુલાલ સરેમા જોડાવાળાની વંદના મંદિરો જીર્ણ થતાં આજકાલના સોમપુરા દ્વારા પણ ઊભા કરી શકાશે...! = પણ એકાદ ગ્રંથ નષ્ટ થતા બીજા કલિકાલસર્વજ્ઞ કે મહોપાધ્યાય શ્રી યશોવિજયજી ક્યાંથી લાવીશું...???