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________________ [ ] मं० सीहा, सं० रत्ता, सं० रामा, सं० हर्षा, सं० वइरा, सं० रावण, को० समरा, को० कउड़ा, को. रूपा, को० हरिचन्द, को० देवसी, को० नाथू, को० अमरसी, सा० चांपा, सा. जाटा, सा० धन्ना मं० नेता, मं० जगमाल, मं० घड़सी, सं० जोधा, सा० जेठा, सं० अमरा, सा० ताल्हा, सा० गुन्ना, सा० पासा, सा० सदारंग, भू० सा० रूपा, सा० अक्खा, सा० देढा, सा० मूला, सा. भांडा, भ० वर्द्धन, सा० रत्ता, ना० रामा, सा० कुंरा, सा० भल्ला, मा० वीसा, चो० नानिग, छा० वस्ता, सा० भुजबल, धा० पांचा, लू० रूपा, ग० सा० ऊदा, सा० भोजा, सा० राणा, सा. पहा, सा० कुंपा, सा० पासा, लू० रतना, को० सूजा, सा० पब्बा, सा० रतना, सा० धन्नू, सा० अमरू, सा० जगू, सा० हेमराज, सा० शिवराज, प० अमीपाल, सा. तेजसी, सा० मोढा, सा० देसल, श्रे० मन्ना, सा० धनराज, से० उदसिंघ, सा० अमीपाल, सा० सहसमल, प० नरबद, सा हर्षा, सा० हर्षा, सं० धन्ना, सं० राजसी, सा. जगमाल, मं० अमीपाल, सा हर्षा, सा० धन्ना, सा. डूंगर, सा० डीडा, सा० श्रीवंत प्रमुख श्रावकों की भक्तिपूर्वक वन्दना लिखी है। विशेषकर मं० देवा, मं० राणा, मं० सांगा, मं० सीपा, मं० अर्जुन, मं० अमृत, मं० अचला, मं० मेहाजल, मं० जोगा, मं० खेतसी, मं० रायचन्द, मं० पदमसी, मं० श्रीचन्द प्रमुख मंत्रि-वर्गों की तरफ से वन्दना अरज की है। वि० प्रमोदमाणिक्य गणि के तरफ से सहर्ष वन्दना लिखते हुए सुख समाचारों के पत्र देने का निवेदन करते हुए अन्त में सं० सारणदास व मं० जोगा की वंदना लिखी है। दूसरी तरफ सा० गुन्ना नीवाणी की वन्दना लिखी है। पत्र में संवत मिती नहीं है। अतः इसका निश्चित समय नहीं कहा जा सकता फिर भी जिनमाणिक्यसूरिजी का स्वर्गवास सं० १६१२ में हुआ था। एवं इस पत्र में मुनि सुमतिधीर (श्री जिनचन्द्रसूरि ) का नाम है जिनकी दीक्षा सं० १६०४ में हो चुकी थी। अतः सं० १६०४ से सं० १६१२ के बीच में लिखा होना चाहिए। इस पत्र में आये हुए कतिपय श्रावकों का परिचय कर्मचन्द्र मंत्रिवंश प्रबंध एवं रास में पाया जाता है। इसके बाद के दो पत्रों का विवरण हम ऊपर दे चुके हैं। दूसरी प्रकार के विज्ञप्तिपत्र सचित्र हुआ करते थे, जो भारतीय चित्रकला में अपना वैशिष्ठय रखते हैं। इस प्रकार के कई विज्ञप्तिपत्रों का परिचय गायकवाड़ ओरिण्टियल सिरीज से श्री हीरानन्द शास्त्री ने 'अनिसीएण्ट विज्ञप्तिपत्राज' में दिया है। इनके अतिरिक्त और भी बहुत से विज्ञप्तिपत्र पाये जाते हैं। बीकानेर में भी कई विज्ञप्तिपत्र हैं जिनमें दो सीरोही के हैं जो बड़े उपाश्रय में है एक उदयपुर का ७२ फुट लंबा हमारे संग्रह में है। बीकानेर के दो सचित्र विज्ञप्तिपत्र हैं, जिनका परिचय यहाँ कराया जाता है। __ प्रथम विज्ञप्ति-लेख ६ फीट ॥ इञ्च लम्बा और ६ इन्च चौड़ा है। ऊपर का ७॥ इश्व का भाग बिलकुल खाली है, जिसमें मङ्गल-सूचक | श्री ।' लिखा हुआ है। अवशिष्ट ६ फुट में से १२ "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009684
Book TitleBikaner Jain Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size22 MB
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