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। १२ ] इस ग्रन्थ की प्रस्तावना माननीय डा० वासुदेवशरणजी अग्रवाल ने लिखनेकी कृपा की है इसके लिये हम हृदय से उनके आभारी हैं इस ग्रन्थ के प्रकाशन में श्री मूलचन्दजी नाहटा ने समस्त व्ययभार वहन किया। उनकी उदारता भी स्मरणीय है।
मन्दिरों के फोटो लेने में पहले श्री हीराचन्दजी कोठारी फिर श्री किशनचन्द बोथरा आदि का सहयोग मिला । सुजानगढ़ के फोटो श्री बछराजजी सिंघी से प्राप्त हुए । भांडासर व सरस्वती मूर्तिके कुछ ब्लाक सादूल राजस्थानी रिसर्च इन्स्टीच्यूट से प्राप्त हुए। कुछ अन्य जानकारी भी दूसरे व्यक्तियों से प्राप्त हुई। उन सब सहयोगियों को हम धन्यवाद देते हैं।
बीकानेर राज्य के समस्त दिगम्बर मन्दिरों के भी लेख साथ ही देने का विचार था। पर सब स्थानोंके लेख संग्रह नहीं किये जा सके अतः बीकानेर व रिणी के दिगम्बर मन्दिरके लेख ही दे सके हैं। बीकानेर में एक नशियांजी भी कुछ वर्ष पूर्व निर्मित हुई है एवं राज्यमें चूरू, लालगढ़, सुजानगढ़ एवं दो तीन अन्य स्थानों में दि. जैन मन्दिर हैं, उनके लेख संग्रह करने का प्रयत्न किया गया था पर सफलता नहीं मिली। इसी प्रकार श्वेताम्बर जैन मन्दिर विगा, सेरुणा, ददरेवा आदि के लेखों का संग्रह नहीं किया जा सका। इस कमी को फिर कभी पूरा किया जायगा।
- इस ग्रन्थमें और भी बहुतसे चित्र देनेका विचार था पर कुछ तो लिए हुए चित्र भी अस्तव्यस्त हो गए व कुछ अस्पष्ट आये। अतः उन्हें इच्छा होते हुए भी नहीं दिया जा सका।
___ग्रन्थके परिशिष्ट में लेखों की संवतानुक्रमणिका, गच्छ, आचार्य, जाति, नगर नामादि की सूची दी गयी है। श्रावक श्राविकाओं के नामों की अनुक्रमणिका देने का विचार था पर उसे बहुत ही विस्तृत होते देखकर उस इच्छा को रोकना पड़ा। इसी प्रकार सम्वत् के साथ मिती और वार का भी उल्लेख देना प्रारंभ किया था पर उसे भी इसी कारण छोड़ देना पड़ा। इन सब बातों के निर्देश करने का आशय यही है कि हम इस प्रन्थ को इच्छानुरूप उपस्थित नहीं कर पाये हैं और जो कमी रह गयीं हैं वे हमारे ध्यानमें हैं।
प्रस्तुत ग्रन्थ बहुत ही विलम्ब से प्रकाश में आ रहा है इसके अनेक कारण है। तीन चार प्रेसों में इसकी छपाई करानी पड़ी । अन्य कार्यों में व्यस्त रहना भी विशेष कारण रहा । करीब ७-८ वर्ष पूर्व इसकी पांडुलिपि तैयार की। पहले राजस्थान प्रेस में ही एक फर्मा छपा जो वहीं पड़ा रहा, फिर सर्वोदय प्रेस तथा जनवाणी प्रेसमें काम करवाया। अन्तमें सुराना प्रेस में छपाया गया। इतने वर्षों में बहुतसे फर्मे खराब हो गये, कुछ कागज काले हो गये, परिस्थिति ऐसी ही रही। इसके लिये कोई अन्य चारा नहीं । हमारी विवशताओं की यह संक्षिप्त कहानी है।
हमारे इस ग्रन्थ का जैन एवं भारत के इतिहास निर्माण में यत्किंचित् भी उपयोग हुआ व अन्य प्रदेशों के जैन लेख संग्रह के तैयार करने की प्रेरणा मिली तो हम अपना श्रम सफल समझेगे। ऋषभदेव निर्वाण दिवस )
अगरचन्द नाहटा माघकृष्णा १३
भँवरलाल नाहटा
कलकत्ता
"Aho Shrut Gyanam"