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________________ [३] कौन सा लेख किस विद्वान ने कहाँ प्रकाशित किया - इसका विवरण दिया है। इन लेखों में श्वे० तथा दिगम्बर दोनों सम्प्रदायों के लेख हैं । जैन लेख संग्रह भाग २ की भूमिका में स्वर्गीय श्रीपूरणचन्द नाहर ने लिखा था कि सन् १८६४-६५ से मुझे ऐतिहासिक दृष्टि से जैन लेखों के संग्रह करने की इच्छा हुई थी । तबसे इस संग्रहकार्य में तन, मन एवं धन लगाने में त्रुटि नहीं रखी। उनका जैन लेख संग्रह प्राथमिक वक्तव्य के अनुसार सन् १६१५ में तैयार हुआ जैनों द्वारा संगृहीत एवं प्रकाशित मूर्ति लेखों का यह सबसे पहला संग्रह है इसमें एक हजार लेख छपे हैं जो बंगाल, बिहार, उत्तरप्रदेश, राजस्थान, आसाम, काठियावाड़ आदि अनेक स्थानों के हैं। इसके पश्चात् सन् १६१७ में मुनि जिनविजय जी ने सुप्रसिद्ध खारवेल का शिलालेख बड़े महत्व की जानकारी के साथ "प्राचीन जैन लेख संग्रह " के नाम से प्रकाशित किया । इसके अन्त में दिये गये विज्ञापनके अनुसार इसके द्वितीय भाग में मथुराके जैन लेखोंको विस्तृत टीकाके साथ प्रकाशित करने का आयोजन था जो अभीतक प्रकाशित नहीं हुआ और विज्ञापित तीसरे भाग को दूसरे भाग के रूप में सन् १६२१ में प्रकाशित किया गया इसका सम्पादन बड़ा विद्वतापूर्ण और श्रमपूर्वक हुआ है। इसमें शत्रु जय, आबू, गिरनार आदि अनेक स्थानों के ५५७ लेख छपे हैं जिनका अवलोकन ३४४ पृष्ठों में लिखा गया है इसीसे इस ग्रन्थ का महत्व व इसके लिये किये गये परिश्रम की जानकारी मिल जाती है। नाहरजी का जैन लेख संग्रह दूसरा भाग सन् १६२७ में छपा जिसमें नं० १००१ से २१११ तक के लेख हैं। बीकानेर के लेख नं० १३३० से १३६२ तक के हैं जिनमें मोरखाणा, चुरू के लेख भी सम्मिलित है। नाहर जी के इन दोनों लेख संग्रहों में मूल लेख ही प्रकाशित हुए हैं विवेचन कुछ भी नहीं । इसी बीच आचार्य बुद्धिसागरसूरिजीने जैन धातु प्रतिमा लेख संग्रह २ भाग प्रकाशित किये जिनमें पहला भाग सन् १९१७ व दूसरा सन् १९२४ में अध्यात्म ज्ञान प्रसारक मण्डल पादराकी ओर से प्रकाशित हुआ । प्रथम भाग में १५२३ लेख और दूसरे में ११५० लेख। उन्होंने नाहरजी की भाँति ऐतिहासिक अनुक्रमणिका देनेके साथ प्रथम भाग की प्रस्तावना विस्तारसे दी । इनके पश्चात् आचार्य विजयधर्मसूरिजी के संगृहीत पांचसौ लेखों का संग्रह संवतानुक्रम से संपादित प्राचीन जैन लेख संग्रह के रूप में सन् १६२६ में प्रकाशित हुआ इसमें संवत् ११२३ से १५४७ तक के लेख हैं । प्रस्तावना में लिखा गया है कि कई हजार लेखों का संग्रह किया गया है उनके पाँचसौ लेखों के कई भाग निकालने की योजना है पर खेद है कि २६ वर्ष हो जानेपर भी वे हजारों लेख अभी तक अप्रकाशित पड़े हैं । इस समय (सन् १६२६ ) में नाहरजी का जैन लेख संग्रह तीसरा भाग " जैसलमेर " के महत्वपूर्ण शिलालेखों का निकला जिसमें लेखाङ्क २१११ से २५८० तकके लेख हैं इसकी भूमिका बहुत ज्ञानवर्धक है। फोटो भी बहुत अधिक संख्या में व अच्छे दिये हैं। वास्तव में नाहर ने इस भाग को तैयार करने में बड़ा श्रम किया है । "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009684
Book TitleBikaner Jain Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size22 MB
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