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________________ - अभीतक औच लेख संग्रहों की चर्चा की गई है वे सब भिन्न २ स्थानों के लेखों के संग्रह हैं। नाहरजी का तीसरा भाग भी केवल जैसलमेर व उसके निकटवर्ती स्थानों का है। पर उसमें भी वहाँ के समस्त लेख नहीं दिये गये। एक स्थान के समस्त लेखों का पूरा संग्रह करने का कार्य स्वर्गीय मुनि जयन्तविजय जी ने किया उन्होंने आबू के ६६४ लेखों का संग्रह "अर्बुद प्राचीन लेख संदोह" के नाम से संवत् १९६४ में प्रकाशित किया। इसमें आपने उन लेखों का अनुवाद आवश्यक जानकारी व टिप्पणों के साथ दिया जो बड़ा श्रमपूर्ण व महत्त्व का कार्य है.! आपने "अर्बुदाचल प्रदिक्षणा लेख संग्रह" भी इसी ढंगसे संवत् २००५ में प्रकाशित किया है जिसमें आबू प्रदेश के ६६ गांवों के ६४५ लेख हैं । संखेश्वर आदि कई अन्य स्थानों के इतिहास व लेख संग्रह आपने निकाले जो उन उन स्थानों की जानकारी के लिये बड़े काम के हैं। इसी प्रकार श्रीविजयेन्द्रसूरिजी ने “देवकुल पाटक" पुस्तिका में वहां के लेख आवश्यक जानकारी के साथ दिये हैं। ___ आचार्य विजययतीन्द्रसूरिजी ने "यतीन्द्र विहार दिग्दर्शन" के चार भागों में बहुत से स्थानों के विवरण व तीर्थ यात्रा वर्णन देने के साथ कुछ लेख भी दिये हैं उनके संगृहीत ३७४ लेखों का एक संग्रह दौलतसिंह लोढ़ा संपादित श्री यतीन्द्र साहित्य सदन से सन् १६५१ में प्रकाशित हुआ। इसमें लेखों के साथ हिन्दी अनुवाद भी छपा है। इससे एक क्ष पूर्व साहित्यालंकार मुनि कान्तिसागर जी संगृहीत ३६६ लेखों का संवतानुक्रम से संग्रह “जैनधातु प्रतिमा लेख" प्रथम भाग के नाम से जिनदत्तसूरि ज्ञानभण्डार सूरत से छपा ! सं० १०८० से सं० १९५२ तक के इसमें लेख है परिशिष्ट में शत्रुजय तीर्थ सम्बन्धित दैनिन्दनी भी छपी है। हमारी प्रेरणा से उपाध्याय मुनि विनयसागरजी ने जैन लेखों का संग्रह किया था। वह संवतानुक्रम से १२०० लेखों का संग्रह प्रतिष्ठा लेख संग्रह के नाम से सन् १९५३ ई० में प्रकाशित हुआ जिसकी भूमिका डा. वासुदेवशरणजी अग्रवाल ने लिखी है इसकी प्रधान विशेषता श्राक्क श्राविकाओं के नामों की तालिका की है। जो अभी तक किसी भी लेख संग्रह के साथ नहीं छपी! .. श्वेताम्बर लेख संग्रह की चर्चा की गई, दिगम्बर समाज के लेख दक्षिण में ही अधिक संख्या में क महत्व के मिलते हैं वहाँके पांचसौ.लेखों का संग्रह बहुत ही सुन्दर रूपमें १६२ पेजकी ज्ञानवर्धक भूमिका के साथ श्री नाथूरामजी प्रेमी ने सन् १६२८ में प्रकाशन व सम्पादन डा० हीरालाल जैनने बड़ा ही महत्वपूर्ण किया। इसका दूसरा भाग सन् १९५२ में २४ वर्ष के बाद छपा इसमें ३०२ लेखों का विवरण है श्री प्रेमीजी के प्रयत्न से पं० विजयमूर्ति ने इसका संग्रह किया। दिगम्बर जैन लेख संग्रह सम्बन्धी ये दो प्रन्थ ही उल्लेखनीय हैं। छोटे संग्रहों में इतिहास प्रेमी श्री छोटेलालजी जैन ने संवत् १६७६ में जैन प्रतिमा यन्त्र लेख संग्रह के नाम से प्रकाशित किया जिसमें कलकत्ता के लेख हैं। दूसरा संग्रह श्री कामता "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009684
Book TitleBikaner Jain Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size22 MB
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