SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 26
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ ५ ] प्रसाद जैन सम्पादित प्रतिमा लेख संग्रह है जिसमें मैनपुरी के लेख हैं। संवत् १६६४ में जैन सिद्धान्त भवन आरा से यह पुस्तिका निकली । इस प्रकार यथाज्ञात प्रकाशित जैन लेख संग्रह ग्रंथों की जानकारी देकर अब प्रस्तुत संग्रह के सम्बन्ध में प्रकाश डाला जा रहा है। "बीकानेर जैन लेख संग्रह" के तैयार होने का संक्षिप्त इतिहास बतलाते हुए- फिर इसकी विशेषताओं पर प्रकाश डाला जायगा । जैसा कि पहले बतलाया गया है इस संग्रह से पूर्व नाहरजी के जैन लेख संग्रह भाग २ में बीकानेर राज्य के कुल ३२ लेख ही प्रकाशित हुए थे । सं० १६८४ के माथ शुक्ला ५ को खरतरगच्छ के आचार्य परमगीतार्थ श्री जिनकपाचन्द्रसूरिजी का बीकानेर पधारना हुआ और हमारे पिताजी व बाबाजी के अनुरोध पर उनका चातुर्मास शिष्य मण्डली सहित हमारी ही कोटड़ी में हुआ। लगभग ३ वर्ष वे बीकानेर बिराजे उनके निकट सम्पर्क से हमें दर्शन, अध्यात्म, साहित्य, इतिहास व कला में आगे बढ़ाने की प्रेरणा मिली। विविध विषय के ज्यों-ज्यों प्रन्थ देखते गये उन विषयों का ज्ञान बढ़ने के साथ उन क्षेत्रों में काम करने की जिज्ञासा भी प्रबल हो उठी। बीकानेर के जैन मन्दिरों के इतिहास लिखने की प्रेरणा भी स्वतः ही जगी और सब मन्दिरों के खास-खास लेखों का संग्रह कर इस सम्बन्ध में एक निबन्ध लिख डाला जो अंबाला से प्रकाशित होनेवाले पत्र "आत्मानन्द" में सन् १६३२ में दानमल शंकरदान नाहटा के नाम से प्रकाशित हुआ । बीकानेर के चिन्तामणिजी के गर्भगृह की मूर्तियाँ उसी समय बाहर निकाली गयी थी उसके बाद श्री हरिसागरसूरिजी के बीकानेर चातुर्मास के समय उन प्रतिमाओं को पुनः निकाला गया तब उन ११०० प्रतिमाओं के लेखों की नकल की गई। सूरिजी के पास उस समय एक पण्डित थे उनको उसकी प्रेस कापी करने के लिए कोपीयें दी गई पर उनकी असावधानी के कारण वे कापीयें व उनकी नकल नहीं मिली इस तरह १५-२० दिन का किया हुआ श्रम व्यर्थ गया। इसी बीच अन्य सब मन्दिरों के शिलालेख व मूत्तियों की नकल ले ली गई थी पर गर्भगृहस्थ उन मूर्तियों के लेखों के बिना वह कार्य अधूरा ही रहता था अतः कई वर्षोंके बाद पुनः प्रेरणा कर उन मूर्त्तियों को बाहर निकलवाया तब उनके लेख संग्रह का काम पूरा हो सका । कलकत्ते की राजस्थान रिसर्च सोसाइटी की मुख पत्रिका "राजस्थानी " का सम्पादनकार्य स्वामीजी व हमारे जिम्मे पड़ा तो हमने चिन्तामणिजी के मन्दिर व गर्भगृहस्थ मूर्तियों का इतिहास देते हुए उनमें से चुनी हुई कुछ मूर्त्तियों के संयुक्त फोटोके साथ संगृहीत लेखोंका प्रकाशन प्रारम्भ किया । इसका सम्पादन हम एक वर्ष तक ही कर सके अतः चारों अंकों में मूलनायक प्रतिमा के लेख के साथ गर्भगृहस्थ धातु प्रतिमाओं के सम्वतानुक्रम से सं० १४०० तक के १५६ लेख और अन्य गर्भगृह के २० लेख सन १९३६-४० में प्रकाशित किये गये। उसके बाद राज्य के जिन मन्दिरों के लेख का कार्य बाकी रहा था उसको पूरा किया गया और सबकी प्रेस कापीयें तैयार हुई। बीकानेर के जैन इतिहास और समस्त राज्य के जैन मन्दिरों "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009684
Book TitleBikaner Jain Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy