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________________ लिया था, अतः जो इस तरह स्वेच्छा से सती नहीं होती थी उसे हीन दृष्टिसे देखते थे और जबरन सती होनेको बाध्य किया जाता था। यावत् बलपूर्वक शस्त्रादि अनेक प्रयोग द्वारा सहमरण कराया जाने लगा था। एवं स्त्रियां भी यशाकांक्षा से युद्ध में न मरके स्वाभाविक मौतसे मरे हुए पतिके पीछे भी और कई अनिच्छा होते हुए भी लोक लाज वश सतियां होने लगी। ऐसी स्थितिमें सती-दाह होनेका दृश्य बड़ा ही दारुण और नेत्रों से न देख सकने योग्य हुआ करता था। इस दशामें उस प्रथाको बंद करने का प्रयत्न होना स्वाभाविक ही था । मुसलमान सम्राटोंमें सम्राट अकबर स्वभावतः दयालु था। सती प्रथाको रोकनेके लिए उसने पर्याप्त चेष्टाकी पर तत्कालीन वातावरण एवं कई कारण-वश उसे सफलता न मिली। इसके बाद सन् १७६० में ईष्ट इण्डिया कम्पनी के गवर्नर मार्किस कार्नवालिसने सर्व प्रथम इस प्रथाको रोकनेकी ओर ध्यान दिया। इसके बाद सन् १८१३ में गवर्नर लार्ड मिण्टोने सरक्यूलर जारी किया, किन्तु इससे इस प्रथाकी किञ्चित् भी कमी न होकर उस वर्ष केवल दक्षिण बंगाल में ६०० सतियां हुई। राजा राममोहनराय और द्वारकानाथ ठाकुर जैसे देशके नेताओंने भी इस प्रथाको रोकनेका प्रयत्न किया। इसके बाद लार्ड विलियम बैंटिकने इस प्रथाको बन्द करनेके लिए सन् १८२६ में ७ दिसम्बरका कलकत्ता गजट में १७ रेग्यूलेसन ( नियम ) बनाकर प्रकाशित किये। इस तरह बंगाल के बाद सन् १८३० में मद्रास और बम्बई प्रान्तमें भी यह नियम जारी कर दिया गया ! गवर्नर जनरल ऑकलेण्डने सन् १८३६ में उदयपुर राज्य में भी यह नियम बनवा दिया, तत्कालीन गवर्नरोंमें न्यायाधीशों और सभ्य लोगोंसे भी इस कार्यके लिए पर्याप्त सहाय्य लिया । सन् १८०० में कोटेमें भी सती प्रथा बंद करा दी गई किन्तु इस प्रथाको रोकने में बहुत परिश्रम उठाना पड़ा। कई सतियां जबरदस्ती कर, समझा-बुझाकर रोकी गई । सन् १८४६ के २३ अगस्तको जयपुर राज्यने भी यह कानून पास कर दिया। बीकानेर में भी अन्य स्थानोंकी तरह सती-प्रथा और जीवित समाधिका बहुत प्रचार था, यहां भी सन् १९०३ में बन्द करनेकी चेष्टाकी गई। गवर्नरोंके कानून जारी कर देनेपर भी राजालोग इस प्रथाको बन्द करनेमें अपने धर्मकी हानि समझते थे, अतः इस प्रथाको नष्ट करने में वे लोग असमर्थता प्रकट करते रहे। तम अंग्रेजी सरकारके पालिटीकल ऑफिसरोंने उनका विशेषरूपसे ध्यान आकर्षित किया, जिससे बीकानेर नरेश महाराजा सरदारसिंहजीने भी सं० १६११ ( ईस्वी सन् १८५४ ) में निम्नोक्त इश्तिहार जारी किया और सती प्रथा एवं जीवित समाधिको बन्द कर दी। " सती होनेको सरकार अंग्रेजी आत्मघात और हत्याका अपराध समझती है, इसलिए इस प्रथाको बन्द कर देनेके लिए सरकार अंग्रेजीकी बड़ी ताकीद है अस्तु, इसकी रोकके लिए इश्तहार जारी हुआ है किन्तु करनल सर हेनरी लेरेन्सने सती होनेपर उसको न रोकनेवाले व सहायता देने वालेको कठोर दण्ड देनेके लिए खरीसा भेजा है अतः सब उमराव, सरदार, अहलकार, तहसीलदारों, थानेदारों, कोतवालों, भोमियों, साहूकारों, चौधरियों और प्रजाको श्रीजी हजुर आज्ञा देते हैं कि सती होनेवाली स्त्रीको इस तरह समझाया करे कि वह सती न हो सके "Aho Shrut Gyanam
SR No.009684
Book TitleBikaner Jain Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size22 MB
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