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________________ [ १८ 1 और उसके घरवालों व सम्बन्धियों आदिको कहा जाये कि वे इस कार्यमें उसके सहायक न हों। स्वामी आदि जीवित समाधि लेते हैं, उस रश्मको भी बन्दकी जाती है। अब कदाचित सती होने व समाधि लेने वालोंको सरदार, जागीरदार, अहलकार, तहसीलदार, थानेदार, कोतवाल और राज्यके नौकर मना न करेंगे तो उनको नौकरीसे पृथक् कर जुर्माना किया जायगा, एवं सहायता देने वालोंको अपराधके अनुसार कैदका कठोर दण्ड दिया जायगा।" ___ उपर्युक्त बातोंसे स्पष्ट है कि भारतवर्षमें सती प्रथा इन प्रयत्नोंसे बिलकुल बन्द हो गई। जहां वर्ष में हजारों सतीदाह हुआ करते थे, वहां १०-२० वर्षमें दो चार सती हो भी जांय तो नगण्य है। मारटर पारसचन्दके कथनानुसार तो अब भी भारतवर्षमें १ लाख सती चौरे हैं। यह भारतीय महिलाओंके कठोर पातिव्रत धर्म एवं सतीव्रत पालनका ज्वलन्त उदाहरण है। इन लेखों में बहुतसे जैन जातियोंकी भी होंगे* | उन्हें संग्रह कर प्रकाशित करनेसे जातीय-इतिहास एवं सतीप्रथाके अनुमान आंकनेमें अच्छी सहायता मिल सकती है। हम आगे लिख चुके हैं कि सतियों की देवलिये स्थानभ्रष्ट होकर यत्र तत्र बिखरी हुई भी बहुत-सी पाई जाती हैं। बड़ा ही अच्छा हो यदि इन्हें संग्रहीत कर एक संग्रहालयमें सुरक्षित रखा जाय। यह कार्य इतिहासमें सहायक होनेके साथ साथ भारतकी एक अतीत संस्कृतिका चिरस्थायी स्मारक होगा। लेखोंका वर्गीकरण ( संवतानुक्रम) नं०संवत् मिती पतिनाम गोत्र सतीनाम गोत्र पितृनाम लेखाङ्क १ सं० १५२१ मा० सु०५ कपा बहुरा कतिगदे २सं०१५५७ ज्येष्ठ सु०६ माणकदे मातासती ३ सं०१६६४ आ० ब०७ भूणा लूकड़ जेठी वाफणा खीवा २६ ४ सं०१६६६ वै० सु० १४ मं० सचियावदास " सुजाणदे ५ सं० १६८७ आ० प्र० सु० १३ दीपचन्द बहुरा दुरगादे पारख मेहाकुल । ६ सं०१६८८ श्रा० ब०१४ पदमसी ७ सं० १६६६ चै० म०५ देवीदास दाडिमदे - ८ सं० १७०५ ज्ये० ब०७ नारायणदास पुगलिया (राखेचा) नवलादे बुचा रूपसी ७ सं० १७०५ मि० ब०७ उत्तमचन्द बोथरा कान्हा रांका * सती प्रथा के सम्बन्ध में आपका एक लेख 'माधुरी' जुलाई सन् १९३७ के अंक में प्रकाशित हुआ था। इस विषय में विशेष जानने के इच्छुकों को वह अंक देखना चाहिए। * श्री नाहरजी के जैन लेख संग्रह लेखांक ७१९ में सादड़ी का एक लेख प्रकाशित है जिसमें मेवाड़ीद्धारक त्यागमूत्ति भामाशाह के भ्राता कावेड़िया ताराचन्द के स्वर्गवासी होनेपर उनकी ४ स्त्रियों के सती होने का उल्लेख है। इसी प्रकार "गुजरात नो पाटनगर, अहमदाबाद" के पृ. ६६८ में सम्राट जहांगीर के आमात्य लोढ़ा कुंअरपाल सोनपाल के पुत्र रूपचन्द्र के पीछे ३ स्त्रियों के सती होने का लेख छपा है जो यहां दूधेश्वर की टांकी के पास कुएं पर विद्यमान है। "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009684
Book TitleBikaner Jain Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size22 MB
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