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________________ [ ८ बीकानेर के जैन इतिहास से सम्बन्धित इतनी ज्ञानवधक ठोस भूमिका भी इस ग्रन्थ की दूसरी उल्लेखनीय विशेषता है । यद्यपि इसमें जैन स्थापत्य मूर्तिकला व चित्रकला पर कुछ विस्तार से प्रकाश डालने का विचार था पर भूमिका के बहुत बढ़ जाने व अवकाशाभाव से संक्षेप में ही निपटाना पड़ा है। इस सम्बन्ध में कभी स्वतन्त्र रूप से प्रकाश डालने क विचार है। एक ही स्थान के ही नहीं पर राज्य भर के समस्त लेखों के एकीकरण का प्रयत्न भी इस प्रन्थ की अन्य विशेषता है। अभी तक ऐसा प्रयत्न कुछ अंश में मुनि जयन्तविजयजी ने किया था। आबू के तो उन्होंने समस्त लेख लिये ही पर आबू प्रदेश के ६६ स्थानों के लेखों का संग्रह "अबुदाचलप्रदक्षिणा लेख संग्रह प्रकाशित किया। संभवतः उन स्थानोंके सभी लेख उसमें आ गये हैं यदि कुछ छूट गये हैं तो भी हमें पता नहीं। आपने संखेश्वर आदि अन्य कई स्थानों से सम्बन्धित स्वतन्त्र पुस्तकें निकाली हैं जिनमें वहां के लेखों को भी दे दिया गया है । ____ हमारे इस संग्रह के तैयार हो जाने के बाद मुनिश्री विनयसागरजी को यह प्रेरणा दी थी कि वे जयपुर व कोटा राज्य के समस्त लेखों का संग्रह कर लें उन्होंने उसे प्रारम्भ किया कई स्थानों के लेख लिये भी पर वे उसे पूरा नहीं कर पाये जितने संगृहीत हो सके उन्हें संवता नुक्रम से संकलन कर दो भाग तैयार किये जिसमें से पहला छप चुका है। आचार्य हरिसागरसूरिजी से भी हमने निवेदन किया था कि वे अपने विहार में समस्त स्थानों के समस्त प्रतिमा लेखों का संग्रह कर लें उन्होंने भी पूर्व देश व मारवाड़ आदि के बहुत से स्थानों के लेख लिये थे जो अभी अप्रकाशित अवस्था में हैं। मारवाड़ प्रदेश जैनधर्म का राजस्थान का सबसे बड़ा केन्द्र प्राचीन काल से रहा है इस प्रदेश में पचासों प्राचीन ग्राम नगर है जहां जैन धर्म का बहुत अच्छा प्रभाव रहा वहां अनेकों विशाल एवं कलामय मंदिर थे और सैकड़ों जिन मूर्तियों के प्रतिष्ठित होने का उल्लेख खरतरगच्छ की युगप्रधान गुर्वावली आदि में मिलता है । उनमें से बहुत से मंदिर व मूर्तियां अब नष्ट हो चुकी हैं फिर भी मारवाड़ राज्य बहुत बड़ा है। यदि अवशिष्ट समस्त जैन मंदिर व मूर्तियोंके लेख लिये जाय तो अवश्य ही राजस्थान के जैन इतिहास पर महत्वपूर्ण प्रकाश पड़ेगा। सिरोही के जैन मन्दिरों में भी सैकड़ों प्रतिमायें हैं। वहाँ के लेखोंकी नकल श्री अचलमलजी मोदी ने लेनी प्रारम्भ की थी वह कार्य शीघ्र ही पूरा होकर प्रकाश में आना चाहिये । __मालवा के जैन लेखों का संग्रह अभी तक बहुत कम प्रकाश में आया है । नन्दलालजी लोढ़ा ने माण्डवगढ़ आदि के लेखों की नकलें की थी हमें भेजे हुए रजिस्टर की नकल हमारे संग्रह में भी है वह कार्य भी पूरा होकर प्रकाश में आना चाहिये। इसी प्रकार मेवाड़ में भी बहुतसे जैन मंदिर है उनमें से केसरियानाथजी आदि के कुछ लेख यतिश्री अनूपश्भृषिजी ने लिये थे पर थे बहुत अशुद्ध थे उन्हें शुद्ध रूपमें पूर्ण संग्रह कर प्रकाशित करना बांछनीय है उनके लिये हुए लेखों की नकलें भी हमारे संग्रह में है। "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009684
Book TitleBikaner Jain Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size22 MB
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