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________________ जिनालयों को वन्दन किया। वहां से आसाउलमें २, समापुर १, गोल १ जिनालय के दर्शन कर आबू तीर्थ व अचलगढकी यात्रा की। वहां से प्रयाणकर ज्येष्ठ सुदि ६ को ओसियां में महावीर भगवान, ज्येष्ठ सुदि १३ को रोह ग्राम में श्री जिनदत्तसूरि स्तूपके दर्शन किये एवं ज्येष्ठ सुदि १५ को स्वधर्मीवात्सल्य करके भीदासर होकर संघ बीकानेर पहुँचा । ___ इसी प्रकार सं० १६५७ में लिग गोत्रीय संघपति सतीदासने संघ निकाला ज्ञात होता है पर उसके संबन्ध में विशेष जानकारी के लिए हमारे पास कोई साधन नहीं हैं। संघपति सती दासने शत्रुजय पर्वत पर मूलमन्दिरकी द्वितीय प्रदिक्षणा में जैन मन्दिर बनवाया था जिसका उल्लेख आध्यात्मज्ञानी श्रीमद् देवचन्द्रजीने अपनी शत्रुञ्जय चैत्य परिपाटीमें इस प्रकार किया है "दीजै बीजी वार प्रदिक्षणा संघवी चैत्य करो जिन वन्दना । बीकानेरी सतीदास नौ चेइय अति उत्तंग सुवासनौ । आसने त्ये पंच जिनवर मूलनायक सोहणा । तेतीस मुद्रा सिद्धजीनी भविक मन पडिबोहणा।" इन सतीदासने गिरिराजकी तलहटी में यात्रियोंके आराम के लिए एक सुन्दर वापी बनवाई जो कि 'सतीवावनामसे प्रसिद्ध है जिसका शिलालेख इस प्रकार है : "संवत् १६५७ वर्षे। सनि इलाही ४४॥त्रमास पूर्णिमा दिने सूदन सिरकार सोराठपति साहे श्री अकबर दे विजयि राज्ये जागीरदार राष्ट्रकूट कुलकुमुद दिवाकर महाराजाधिराज महाराज श्री श्री श्रीराजसिंहजी नरमणि विजयमान तदधिकारि लदा (१) मुख्य खवास श्री तेजाजी तत्कृत्य धराधरंधरा श्री जलालदीन श्री अकबरशाहि प्रदत्त युगप्रधान पदधारक आषाढाष्टाह्निका सकल सत्त्व निकर मारि निवारक संवत्सरावधि स्तंभ तीर्थीय जलनिधि जलचर जीव जाल मोचकः पंचनदी साधकः श्री बृहत्खरतर गच्छाधीश्वर श्रीजिनमाणिक्यसूरि पट्टप्रभाकर युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरि चरणकमल सेवक विक्रमपुर वास्तव्य ॥ लिग्गोत्रीय सा! खेतसी पुत्ररत्न संघपति सतीदास सुश्रावकेण भ्रातृ लक्ष्मीदास पु० सं० सूरदासादि परिवार सश्रीकेण श्री शत्रुजय तीर्थ तलहट्टिकायां तीर्थ भक्ति निमित्तं यात्रा गतःसकलश्रीसदो (?) पकारायच। सतीवापीत्यभिधान वापीरत्नकारितः ऊपरठाहीमाला सोहल (१) कविवर समयसुन्दरके शिष्य वादी हमनन्दनकृत शत्रुजय संघयात्रा स्तवन से विदित होता है कि संवत् १६७१ फाल्गुण कृष्णा २ को भी बीकानेर से संघ निकाला था जिसने प्रथम प्रयाण में देसनोक फिर पारवइ, सालुंडइ, खीमसर जाकर वर्द्धमानस्थंभ की यात्रा की। वहाँसे वावड़ी में प्राचीन भृषभमूर्ति को वन्दन कर घंघाणी, जोधपुर, होकर गुढा आया वहाँ __ शत्रुजय तीर्थ सम्बन्धी ग्रन्थों में इसके निर्माता अहमदावादके सुप्रसिद्ध सेठ शांतिदासको लिखा है पर हमने इस ऐतिहासिक भ्रमका निराकरण अपने “सतीवाव सम्बन्धी गम्भीर भूल" (प्रकाशित जैन वर्ष ३५) लेख में कर दिया है। "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009684
Book TitleBikaner Jain Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size22 MB
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