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________________ [ ७५] तीर्थाधिराज शत्रुजयकी याना की। फिर गिरनार पर श्रीनेमिनाथ प्रभुको यात्रा कर संघ वापस लौटा। वासावाड़, बलदाणइ के २, वड़वाहण १, वड़ली के २ मन्दिरोंके दर्शन कर संघ पाटण पहुंचा। श्रीजिनचन्द्रसूरिजी उस समय पाटण में विराजते थे, गुरु वन्दना कर संघ अहमदावादके मन्दिरोंका दर्शन कर थिरादराके ५, साचोर में महावीर, राङद्रह में २, वीरमपुर, कोटणइ में २, वछही, जोधपुर, तिमरी २, ओसियों में वोर प्रभु एवं बावड़ी ग्राम की चैत्य वन्दना कर वापस बीकानेर लौटा। सं० १६४४ के माघ वदि १ को बीकानेर से शत्रुजय यात्री संघ निकल कर अहमदाबाद गया जिसका वर्णन गुगविनय गणिने शत्रुजय चैत्य परिपाटी में इस प्रकार है-इस संघके साथ श्रेयांसनाथ कुंथुनाथ और पार्श्वनाथ प्रभु के देहरासर थे। संघने माह वदि ४ को सारुडइ में आदिनाथ जिनालयको वंदन किया फिर बावड़ी १, तिमरी २, जोधपुर में माह वदि ६ को ५ जिनालयों को वन्दन किया। स्वर्णगिरिके ५ मन्दिर, लासा ग्राममें २, गोवल में १, और सोरोही के १० जिनालयों में माघ सुदि ७ को चैत्यवंदनाकी। वहां से मांकरडइ १, नीतोड़ा १, नानवाड़इ १, कथवाइइ १, संघवाइ, खाखरवाड़इ १, कास्तरइ २, अंबथल १, मोड़थल १ रोहइ २, पउड़वायइ १, सौरोतर १, वडगाम १, सिद्धपुर ४, लालपुर १, उन्हइ १, मइसाणइ १०, पनसरि १, कलवलि १, ऊनेऊ १, सेरिसइ लोडणपार्श्व, धवलका ७ चैत्योंके साथ सपरिवार युगप्रधान श्री जिनचन्द्रसूरिको वन्दन किया। वहां संघपति जोगी सोमजीका विशाल संघ अहमदावादसे आकर ७०० सिजवालों के साथ इस संघमें सम्मिलित हुआ। वहां से धंधका* में जिनालयका वन्दनकर शत्रुजयका दूर से दर्शन किया। पालीताना पहुँचकर १ जिनालय की वन्दना कर चैत्र यदि ५ को गिरिराज शत्रुजय की यात्रा की। चैत्र वदि ८ को संघने १७ भेदी पूजा कराई। बड़े उत्साह व भक्तिके साथ यात्रा कर सघ वापिस लौटा और अहमदावाद आकर गुणरंग कृत चैत्य परिपाटी स्तवन के आधार से, जो कि परिशिष्ट में छपा है। * कवि कुशललाभ कृत संघपति सोमजी संघ वर्णन तीर्थमालामें इस यात्राका विशेष वर्णन है उसमें लिखा है कि-धुन्धुकाके पश्चात् खमीधाणा पहुँचने पर आगे चलने पर युद्धसूचक शकुन हुए अतः संघपति सोमजीने २ दिन वहीं ठहरने का निश्चय किया। परन्तु बीकानेरके संघने इस निर्णयको अमान्यकर सीरोही संघके साथ वहां से प्रयाण कर दिया ३ कोश जाने पर मुगलोंने संघको चारों ओर से घेर लिया। संघके लोगोंमें बड़ी खलबली मच गई, नाथा संघवी एवं बीकानेरके अन्यलोग बड़ी वीरताके साथ लड़ने लगे। पर मुगलोंके भय से कई लोग भयभीत होकर दादा साहबको स्मरण करने लगे। संघ पर संकट आया हुआ जानकर युगप्रधान श्रीजिनदत्तसूरिजीने अपने दैवी प्रमावसे संघकी सुरक्षाकी मुगललोग परास्त होकर भाग गए। दादाजी के प्रत्यक्ष चमत्कारको अनुभवकर संघ बड़ा आनन्दित हुआ। शत्रुजय महातीर्थकी यात्रा करने के पश्चात् जब ग्रह संघ गिरनारजी की यात्राके लिए रवाना हुआ तो जूनागढ़के अधिकारी अमीखानने बहुतसी सेनाके साथ आकर संघको विपत्तिमें डाल दिया । परन्तु जैन संघके पुण्यप्रभावसे सारे बिघ्न दूर हो गए। 'इस तीर्थ मालाके अपूर्ण मिलने से आगेका वर्णन अज्ञात है। "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009684
Book TitleBikaner Jain Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size22 MB
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