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________________ [ ७४ ] बीकानेर के जैन श्रावकों का धर्म-प्रेम मध्यकाल के जैन समाज में श्रद्धा और भक्ति अत्यधिक मात्रा में थी, इसी कारण उन्होंने जैन मन्दिरोंके कलापूर्ण निर्माण में, जैन प्रन्थोंके सुन्दर स्वर्णाक्षरों में सचित्र लेखन में एवं तीर्थयात्रा के विशाल संघ और गुरुभक्ति में असंख्य धन राशि का व्यय कर अपने उत्कट धर्म-प्रेमका परिचय दिया है। बीकानेर के जैन श्रावकोंने यहां के जैन मन्दिरोंके निर्माण में जो महत्त्वपूर्ण भाग लिया है वह तो इस लेख संग्रह से विदित ही हैं। यहां केवल उनके निकाले हुए संघ, अन्य स्थानों में कारित मन्दिर मूर्त्ति तालाव एवं गुरुभक्ति आदि विविध धार्मिक कृत्योंका संक्षेप में निदर्शन कराया जा रहा है। बीकानेर के तीर्थयात्री संघ सं० १५५०-६० के लगभग मंत्रीश्वर वच्छराजने संघ सहित शत्रुंजय तीर्थकी यात्रा की जिसका वर्णन साधुचन्द्र कृत तीर्थराज चैत्य परिपाटी में मिलता है और उसके पश्चात् उनके सुपुत्र कर्मसिंहने शत्रुंजय का कर छुड़ाकर संघसह यात्रा करते हुए रैवताचल, अर्बुद और द्वारिका आदि तीर्थोंकी स्थान स्थान पर लंभनिका देते हुए यात्रा की। उनके पुत्र वरसिंहने चांपानेर में बादशाह मुजफ्फरशाह से ६ महीने का शत्रुंजय यात्रा का फरमान प्राप्त किया और शत्रुंजय, अद, रैवत तीर्थोकी संघ सहित यात्रा की और तीर्थोंको कर से मुक्त कर लंभनिका वितरण की । इसी प्रकार नगराज संग्रामसिंह आदि ने भी तीर्थाधिराज शत्रुंजय की यात्रा की, तीर्थको कर से मुक्त कर इन्द्रमाला ग्रहण की* । सं० १६१६ मिती माघ शुदि १९ को बीकानेर से एक विशाल यात्री संघ शत्रुंजय यात्रा के लिए निकला। जिसने सारुडइमें प्रथम जिन, खीमसर में ३ चैत्य, आसोप के २ मन्दिरोंके दर्शन कर रजलाणी होकर फलौदी पार्श्वनाथ की फाल्गुण वदि ८ को यात्रा की। वहां से वाहलपुरके जिनमन्दिर, पालीके ३, गुंदवच १, खउड़, बीभावइ १, वरकाणा-पार्श्व २, नाडुल २, नाडुलाई में ७, थणडर १ एवं कुंभलमेर फाल्गुण सुदि ५ को १८ मन्दिरोंकी यात्रा की । कहलवाडा १, सादड़ी, राणकपुर में सुदि ६ को आदिनाथ प्रभुकी यात्रा की । फिर मंडाइ १ संडेरइ १, वाकुली १, कोरंटइ ३, वागसेण १, कोलरी १, कोलरइ २ व सीरोहीके ८ चैत्योंकी यात्रा की । आबूके निकटवर्त्ती ३ मन्दिर, हलोद्र में १ मन्दिर के दर्शनकर चैत्र वदि ५ को आबू-तीर्थकी यात्रा की । देवलवाड़े के ५ मन्दिर व अचलगढ़ के २ मन्दिर, तेरवाड़ के ३, राधनपुरके ३, गोसनाद १, लोलाड़इमें संखेश्वर पार्श्वनाथको वंदन किया वहांसे मांडलि, लिगसिर २, चूड़इ २, राणपुर २, लोलियाणा के मन्दिरोंके दर्शन करते हुए क्रमशः पालीताना पहुंचे, चैत्री पूनम के दिन * विशेष जानने के लिए कर्मचन्द्र मंत्रिवंश प्रबन्ध वृत्ति देखना चाहिए। "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009684
Book TitleBikaner Jain Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size22 MB
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