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[ ७३ ] (१६) गुणरत्न काव्य प्रकाश वृत्ति
वृहद् ज्ञानभण्डार और भी पचासों जैनतर ग्रन्थों पर जैन टीकायें यहाँके भण्डारों में अन्यत्र अप्राप्य है। जनका विवरण मैंने अपने “जनेतर ग्रन्थों पर जैन टीकायें" (प्र. भारतीय विद्या वर्ष २ अं० ३।४ ) लेखमें दिया है।
हिन्दी ग्रन्थ हमारे संग्रह में व अनूप-संस्कृत-लाइब्रेरी में हिन्दीके सैकड़ों ऐसे ग्रंथ हैं जिनकी दूसरी प्रति अभी तक कहीं भी जानने में नहीं आई। इनमें से कुछ ग्रंथोंका परिचय हमने अपने निम्नोक्त लेखों में प्रकाशित किया है :--
(१) जैनों द्वारा रचित हिन्दी पद्यमें वैद्यक ग्रंथ प्र० हिन्दुस्तानी भो० ११ अं०२ (२) कवि जटमल नाहर और उनके ग्रन्थ प्र० , भा० ८ अं०२ (३) श्रीमद्ज्ञानसारजी और उनका साहित्य प्र० , भा० ६ अं० २ (४) हिन्दी में विविध विषयक जैन साहित्य प्र० सम्मेलन-पत्रिका भा० २८ अं० ११, १२ (५) हमारे संग्रहके कतिपय अप्रसिद्ध हिन्दी ग्रंथ प्र० , , भा० २६ अं० ६, ७ (६) छिताई वाता
प्र. विशालभारत मई, सन् १९४५ (७) रत्नपरीक्षा विषयक हिन्दी साहित्य प्र० राजस्थान-साहित्य वर्ष १ अं० १ (८) विक्रमादित्य संबन्धी हिन्दी ग्रंथ प्र० , , वर्ष १ अं०३ (8) संगीत विषयक हिन्दी ग्रन्थ
प्र० , ५ वर्ष १ अ०२ और भी अनेकों लेख तैयार है एवं विवरण ग्रंथके दो भाग भी तैयार किये हैं जिनमें से एक हिन्दी विद्यापीठ उदयपुरसे प्रकाशित हो चुका हैं दूसरा छप रहा है।
इसी प्रकार राजस्थानी और गुजराती में सैकड़ों ग्रन्थ यहाँके भण्डारों में हैं जिनका विवरण श्री० मोहनलाल द० देसाई संपादित जैन गुर्जर कविओ भा० ३ में दिया गया है। इसकी पूर्ति रूपमें हमने एक ग्रंथ तैयार किया है।
अनूप संस्कृत लाइब्रेरीके संस्कृत ( कुछ विषयोंको छोड़ ) एवं राजस्थानी ग्रन्थोंके केटलग तो प्रकाशित हो चुके हैं जिनमें सैकड़ों अन्यत्र अप्राप्य ग्रन्थोंका पता चलता है। हिन्दी प्रन्थोंकी सूची भी छपी तो पड़ी है अभी प्रकाशित नहीं हुई । इसकी भूमिका एवं सम्मेलन पत्रिका वर्ष ३६ अंक ४ में यहांके अलभ्य हिन्दी ग्रन्थों की सूची हमने प्रकाशित की है।
"Aho Shrut Gyanam"