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२४ 1 बीकानेर के जैन मन्दिरों का इतिहास बीकानेर के वसने में जैन श्रावकों का बहुत बड़ा हाथ रहा है। वीरवर बीकाजी के साथ में आए हुए प्रतिष्ठित व्यक्तियों में बोहित्थरा वत्सराज आदि के नाम उल्लेखनीय है, यह बात हम पूर्व लिख चुके हैं। वह समय धार्मिक श्रद्धाका युग था अतः बीकानेर वसने के साथ साथ जैन श्रावकोंका अपने उपास्य जैन तीर्थक्करोंके मन्दिर निर्माण कराना स्वाभाविक ही है ~~ कहा जाता है कि बीकानेर के पुराने किलेकी नींव जिस शुभ मुहूर्त में डाली गई उसी मुहूर्त में श्री आदिनाथ मुख्य चतुर्विशति जिनालय (चउवीसटा) का शिलान्यास किया गया था। इस मन्दिर के लिए मूलनायक प्रतिमा मण्डोवर से सं० १३८० में श्री जिनकुशलसूरिजी प्रतिष्ठित लायी गई थी। सं० १५६१ में मन्दिर बन कर तैयार हो गया, यह बीकानेर का सब से पहला जैन मन्दिर है और बीकाजी के राज्यकाल में ही बन चुका था! लोकप्रवाद के अनुसार श्री भाण्डासर (सुमतिनाथजी ) का मन्दिर पहले बनना प्रारंभ हुआ था पर यह तो स्पष्ट है कि उपर्युक्त मन्दिर श्री चिन्तामणिजी के पीछे प्रसिद्धि में आया है। शिलालेख के अनुसार भांडासाह कारित सुमतिनाथ जी का मन्दिर सं० १५७१ में बन कर तैयार हुआ था यह संभव है कि इतने बड़े विशाल मन्दिर के निर्माण में काफी वर्ष लगे हों पर इसकी पूर्णाहुति तो श्री चिन्तामणि
-चौवीसटाजी के पीछे ही हुई है। इसी समय के बीच बीकानेर से शत्रुजय के लिये एक संघ निकला था जिसमें देवराज-वच्छराज प्रधान थे। उसका वर्णन साधुचंद्र कृत तीर्थराज चैत्य परिपादी में आता है। उसमें बीकानेर के ऋषभदेव ( चौवीसटाजी ) मन्दिर के बाद दूसरा मन्दिर वीर भगवान का लिखा है अतः सुमतिनाथ (भांडासर) मन्दिर की प्रतिष्ठा महावीर जी के मन्दिर के बाद होनी चाहिये। मं० वत्सराज के पुत्र कर्मसिंहने नमिनाथ चैत्य बनवाया जिसकी संस्थापना सं० १५५६ में और पूर्णाहुति सं० १५७० में हुई। लौंकागच्छ पट्टावली के अनुसार श्री महावीरजी (वैदों का) के मन्दिर की नींव सं० १५७८ के विजयादशमीको डाली गई थी पर यह संवत् विचारणीय है। श्री नमिनाथ जिनालय के मूलनायक सं० १५६३ में प्रतिष्ठित हैं। सोलहवीं शती में ये चार मन्दिर ही बन पाए थे। सं० १६१६ में बीकानेर से निकले हुए शत्रुजय यात्रीसंघ की चैत्यपरिपाटी में गुणरंग गणिने बीकानेर के इन चारों मन्दिरों का ही वर्णन किया है :
"मीकनयरह तणइ संघि उच्छव रली, यात्रा सेर्बुजगिरि पंथ कीधी वली ! मृषभ जिण सुमति जिण नमवि नमि सुहकरो, वोर सिद्धत्य वर राय कुल सुन्दरो।"
अतः संवत् १६१६ तक ये चार मन्दिर ही थे यह निश्चित है। इसके पश्चात् सं० १६३३ में तुरसमखानने सीरोही लूटी और लूटमें प्राप्त १०५० धातु-मूर्तिए फतेपुर सीकरी में सम्राट अकबरको भेंट की। ५-६ वर्ष तक वे प्रतिमाएं शाही खजाने में रखी रही व अंत में बीकानेर नरेश रायसिंहजी के साहाय्यसे मंत्रीश्वर कर्मचन्द्रजी सम्राटसे प्राप्त कर उन्हें बीकानेर १-बीकानेरके मन्दिरोंके बननेके पूर्व बोहिथरा देवराजने श्रीशीतलनाथ चतुर्विशति पट्ट बनवा कर सं० १५३४
"Aho Shrut Gyanam"