SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 155
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ १०२ बीकानेर की चित्रकला भी पर्याप्त समृद्ध और स्फूर्तिदायक रही है। यहां के भित्तिचित्र भी बड़े प्रसिद्ध हैं। राजमहलों में भित्तिचित्रों का प्रचुरता से निर्माण हुमा व जनसाधारण के घरों व मन्दिरों में भी सुन्दर कलाभिव्यक्ति हुई। प्राकृतिक एवं लोक जीवन से सम्बन्धित चित्र तथा मनौती काम करनेवाले चित्रकारों की दो विशिष्ट शाखाएँ थी। जिनमें मुस्लिम उस्ते प्रधान थे। दूसरे चित्रकार थे मथेरण जो लेखन व चित्रकला दोनों काम किया करते थे, आज भी इन्हीं दोनों जातियों का यह पेशा है। कतिपय जैन प्रतियां एवं विज्ञप्रिपत्र तथा भित्तिचित्र मथेरणों के निर्माण किये हुए उपलब्ध है। ये लोग रंग काम के अतिरिक्त विवाहादि में कागजों की सुन्दर बाग बाड़ियां भी निर्माण किया करते हैं। बीकानेर के मन्दिरों तथा उपाश्रयों में चित्र समृद्धि प्रचुरता से उपलब्ध है। उस्तों में भी खानदानी चित्रकारी का पेशा था, इनमें मुरादबरूस बड़ा प्रसिद्ध और कुशल चित्रकार था उसने जैनधर्म से सम्बन्धित चित्रकारी में ही अपना अधिकांश जीवन बिताया। बीकानेर के जैन मन्दिरों में महावीरजी में श्रीपाल चरित्र, पृथ्वीचन्द्र गुणसागर चरित्र, महावीर चरित्र इत्यादि एवं भांडासरजी के सभामण्डप में सुजानगढ़ मन्दिर, स्थूलिभद्र दीक्षा, संभूतिविजय का चातुर्मास-आज्ञा-वितरण, भरत बाहवलि यद्ध, अषभदेव १०० पुत्र प्रतिबोध, दादाबाडी, धन्ना शालिभद्र चरित्र तीन चित्र, विजय सेठ-विजया सेठानी, इलाचीपुत्र, सुदर्शन सेठ चरित्र के दो चित्र तथा समवशरण कुल. १६ विशाल चित्र हैं। इसके नीचे कारनिस में बीकानेर विज्ञप्तिपत्र का संपूर्ण चित्र है। गुंबज के प्रथम आवर्त में बड़े-बड़े चित्रों में नेमिनाथ भगवानका चरित्र है। समुद्रविजयजी, बरात, उग्रसेन का महल, गिरनार, राजुल, सहस्राम्रवन, प्रभु का गिरनार गमन, पशुओं का बाड़ा, रथ फिराना, कृष्ण बलभद्र इत्यादि । गुंबज के आवर्त में दादा साहब के जीवनचरित्र विषयक १६ चित्र हैं जिनमें जिनचंद्रसूरि अकबर मिलन अमावस की पूनम, पंचनदी साधन तथा श्रीजिनदत्तसरि चरित्र सम्बंधी अवशिष्ट चित्र हैं। गंबज के सर्वोपरि कक्ष में तीर्थकर चरित्र के १६ चित्र हैं। इनमें महावीर प्रभु के चण्डकौशिक उपसर्ग, संबल-कंबल, कमठोपसर्ग, नेमि-संखवादन, १४ राजलोक, मेरुपर्वत, केवलज्ञान निर्वाणादि के व प्रवेशद्वार पर जन्माभिषेक चित्र है। बाहरी गुंबज में जैनाचार्यों के चित्र हैं। सभामण्डप व भमती जैन कथा साहित्य के बहुत से चित्र हैं। गौतम स्वामी की अष्टापद यात्रा, आमलकीड़ा, नरकयातना, वीर उपसर्ग, कमठोपसर्ग, चम्बू चरित्र, इलापुत्र, कचूल, रोहणिया चोर, समवशरण, जिनालय, गुवालियेका उपसर्ग, श्रीपाल चरित्र के १० चित्र, चंपापुरी, पावापुरी, समेतशिखर तीर्थ, जम्बूवृक्ष, इन्द्र इन्द्राणी आदि अनेकों चित्र बीकानेरी चित्रकला के गोरवमय चित्र हैं । चूरू और बीकानेरके दूसरे सभी मंदिरों में भी सुन्दर चित्रकाम उपलब्ध है। सचित्र कल्पसूत्रादि को सैकड़ों सचित्र प्रतियों में कतिपय बीकानेरी कला की चित्रमय प्रतियां भी उपलब्ध हैं। सोनेका मनौती काम, कांच व मीने का काम भी दर्शनीय है। यहाँ सीमित स्थान में इन सब का विस्तृत परिचय संभव नहीं ! 'दुर्ग-प्रासाद और भवन निर्माण-कला भी बीकानेर की उन्नत है। बीकानेर का प्राचीन दुर्ग मंत्रीश्वर कर्मचन्द्र के तत्वावधान में निर्मित हुआ था एवं यहां की हवेलियां व पत्थर की कोरणी भी राजस्थान में प्रसिद्ध है। राज्यवर्ती सरदारशहर, रतनगढ़, चूरू इत्यादि नगरों के जैनों के विशाल प्रासाद भी प्रेक्षणीय हैं। अब यहां की सर्व श्रेष्ठ कलापूर्ण जैन सरस्वती मूर्तियों का परिचय कराया जाता है। "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009684
Book TitleBikaner Jain Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy