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________________ [ १७ ] रूपसे तो लाइणी- पत्रक से तत्कालीन घरोंकी संख्या ज्ञात होती है लाहा - पत्रक के अनुसार घरोंकी संख्या तीन हजारके लगभग है और वस्तीपत्रक जो कि संवत् १६०५ पोष वदि १ को सोजत निवासी सेवक कस्तूरचन्दने लिखाया है उसमें घरोंकी संख्या २७०० लिखी है पर वर्त्त मनमें उसका बहुत कुछ हास होकर अब केवल १५०० के लगभग घर ही रह गये हैं । बीकानेर में रचित जैन साहित्य बीकानेरके वसानेमें ओसवाल -- जैन समाजका बहुत महत्वपूर्ण हाथ रहा है यह बात हम पहले लिख चुके हैं। ओसवालोंके प्रभुत्वके साथ साथ यहां उनके धर्मगुरुओंका अतिशय प्रभाव होना स्वाभाविक ही था, फलतः यहां खरतर गच्छके दो बड़े उपाश्रय (भट्टारक, आचार्योंकी गद्दी ), उपकेश गच्छुका उपाश्रय ( जिनके माननेवाले वैद होनेके कारण प्रधानतः वैदोंका उपाश्रय भी कहलाता है ) एवं कँवला गच्छके नामसे भी इसकी प्रसिद्धि है, पायचन्दगच्छके दो उपाश्रय यहाँ विद्यमान हैं। जिनमें उस गच्छ के श्रीपूज्यों नेताओंकी गद्दी है । अब उनमें से केवल खरतर गच्छके श्रीपूज्य ही विद्यमान हैं अवशेष गद्दियें खाली हैं, ये सब उपाश्रय संघके हैं जिनमें यतिलोग रहते हैं। सिंघीयोंके चौक में सीपानियोंके बनवाया हुआ तपा गच्छका उपाश्रय है पर कई वर्षोंसे इसमें कोई यति नहीं रहता । कहने का तात्पर्य यह है कि यहां इन सभी गच्छों का अच्छा प्रभाव रहा है फिर भी साहित्यिक दृष्टि से यहां के यतियोंमें संख्या और विद्वतामें खरतर गच्छके यति ही विशेष उल्लेखनीय हैं। उनके रचित साहित्य बहुत विशाल है क्योंकि उनका सारा जीवन धर्मप्रचार, परोपकार और साहित्य साधनामें ही व्यतीत होता था, उनके पाण्डित्य की धाक राजदरबारों में भी जमी हुई थी। उन्हीं यतियों और कुछ गोस्वामी आदि ब्राह्मण विद्वानोंके विद्याबल पर ही "आतमध्यानी आगरै, पण्डित बीकानेर” लोकोक्ति प्रसिद्ध हुई थी । यद्यपि यहां जैन यतियोंने बहुत बड़ा साहित्य निर्माण किया है पर हम यह केवल उन्हीं रचनाओं की सूची दे रहें हैं जिनका निर्माण उन रचनाओंमें बीकानेर में होनेका निर्देश है या निश्चतरूप से बीकानेर में रचे जानेका अन्य प्रमाणोंसे सिद्ध है। यह सूची संवतानुक्रमसे दी जा रही है, जिससे शताब्दीबार उनकी साहित्य सेवाका आभास हो जायगा । यद्यपि बीकानेर में रचे हुए ग्रंथ सं० १९७१ से पहले के संवत् नामोल्लेखवाले नहीं मिलते तो भी यहां जैन साधुओंका आवागमन तो बीकानेर बसनेके साथ साथ हो गया था, निश्चित है । अनूप संस्कृत लायब्रेरीमें सप्तपदार्थी वस्तु प्रकाशिनी वृत्ति पत्र १७ की प्रति है जो कि बीकानेर वसने के साथ साथ अर्थात् प्राथमिक दुर्ग निर्माणके भी दो वर्ष पूर्व लिखी गई थी, पुष्पिका लेख इस प्रकार है इति श्री वृहद्गच्छ मण्डन पूज्य वा० श्री श्री विनयसुन्दर शिष्येन वा० मेघरत्नेन लेखि स्व पठनार्थ सप्तपदार्थी वृत्तिः ॥ संवत् १५४३ वर्षे आश्विन वदि ११ दिने श्री विक्रमपुरवरे श्री विक्रमादित्य विजयराज्ये ॥ ग्रंथान सर्व संख्या १८४८ अक्षर ११ । ३ "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009684
Book TitleBikaner Jain Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size22 MB
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