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________________ [ 4 ] महाराजाने कुपित होकर 1000 आदमियोंकी सेनाका घेरा इनकी हवेलीके चारों तरफ डाल दिया जिससे इनका सारा परिवार काम आ गया इस सम्बन्धमें विशेष जाननेके लिए हमारी "युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरि” पुस्तक देखनी चाहिए। इसके पश्चात् महाराजा कर्णसिंहजीके समय कोठारी जीवणदास सं० 1701 में पूगल विजयके अनन्तर वहाँके प्रबन्धके लिए रहे थे। महाराजा अनूपसिंहजीका मनसब ( दिल्ली जाकर ) दिलानेका उद्योग कोठारी जीवणदास और वैद राजसीने ही किया था। कोठारी नैणसीके इनके समयमें मंत्री होनेका उल्लेख विज्ञप्तिपत्रमें आता है। सं० 1736 में लाभवर्द्धनने लीलावती गणितकी चौपाई इन्हींके पुत्र जयतसीके अनुरोधमें बनाई थी जिसमें इन्हें राज्याधिकारी लिखा है। महाराजा अनूपसिंहजी की मृत्युके अनन्तर स्वरूपसिंहकी बाल्यावस्थाके कारण राजव्यवस्थाके संचालनमें मान रामपुरिया, कोठारी नयणसी के सहयोग देनेका उल्लेख बीकानेर राज्यके इतिहासमें पाया जाता है / ___ महाराजा सूरतसिंहके समय वैदों और सुराणों का सितारा चमक उठा। सं० 1860 में चूरू पर दीवान अमरचन्दजी सुराणा व खजाची मुलतानमल के नेतृत्वमें सेना भेजी गई / वहां पहुंच कर इन्होंने 21000) रुपये चूरूके स्वामीसे वसूल किये। सं० 1861 में जाब्तार खो भट्टीने, जो कि भटनेर का किलेदार था, सर उठाया तो महाराजा ने अमरचन्दजी के नेतृत्व में 4000 सेना भटनेर भेजी। इन्होंने जाते ही अनूपसागर पर अधिकार कर लिया और पांच महीने तक घेरा डाले रहने से जाब्तारखां को स्वयं किला इन्हें सुपुर्द कर चला जाना पड़ा। इस वीरतापूर्ण कार्यके उपलक्ष में महाराजाने इन्हें पालकी की इज्जत देकर दीवानके पदपर नियुक्त किया। सं० 1865 में जोधपुर नरेश मानसिंह ने दीवान इन्द्रचन्द्र सिंघीके नेतृत्व में 8000 सेनाके साथ बीकानेर पर चढ़ाई की, तब राजनीतिज्ञ अमरचन्दजी सेना लेकर उलटे आक्रमणार्थ जोधपुर गये और बड़ी बुद्धिमानी और वीरतासे जोधपुरी सेनाके माल-असबाब को लेकर बीकानेर लौटे। जोधपुरी सेना 2 महीने तक छोटी-छोटी लड़ाइयां लड़ती हुई गजनेर के पास पड़ी रही। इसके बाद 4000 सेनाको लेकर जोधपुर से लोढा कल्याणमल आया। अमरचन्दजी उसका सामना करने के लिये ससैन्य गजनेर गये। उनका आगमन सुनकर लोढाजी कूच करने लगे पर अमरचन्दजीने उनका पीछा करके युद्धके लिए बाध्य किया और बन्दी बना लिया। सं० 1866 में बागी ठाकुरोंका दमन कर अमरचन्दजी ने उन्हें कठोर दण्ड दिया। एवं सांडवे के विद्रोही ठाकुर जैतसिंह को पकड़ कर 80000) रुपये जुर्मानेका लिया। सं० 1866 में मैणासर के बीदावतों पर आक्रमण कर वहाँके ठाकुर रतनसिंहको रतनगढ़ में पकड़ कर १-रा.ब.पं. गौरीशंकर हीराचन्द ओझा लिखित बीकानेर राज्यका इतिहास / २-यह विज्ञप्तिपत्र सिंघी जैन ग्रन्थमालासे प्रकाशित विज्ञप्ति लेख संग्रहमें छपा है। ३-अनूप संस्कृत लाइब्रेरीमें आपके लिए लिखा हुआ एक गुटका है, जिसमें आपके पुत्रादिकी जन्मपत्रियां व स्वाध्यायार्थ अनेक रचनाओंका संग्रह है। "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009684
Book TitleBikaner Jain Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size22 MB
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