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________________ प्रयत्न किया। बीकानेरके दुर्ग-निर्माण एवं गवाड़ों ( मुहल्लों ) को मर्यादित कर वसानेमें उन्होंने बड़ी दूरदर्शितासे काम लिया। इन्होंने संधिविग्राहक और रक्षासचिव व सेनापति आदि पदोंको भी दक्षतासे संभाला। मंत्री कर्मसिंह राव लूणकरणजी के समय नारनौलके युद्ध में काम आये थे। राव जयतसीजीके समय मंत्री नगराजने शेरसाहका आश्रय लेकर खोये हुए बीकानेर राज्यको मालदेव ( जोधपुर नरेश ) से पुनः प्राप्त किया। उन्होंने अपनी दूरदर्शितासे शत्रुकी चढ़ाईके समय राजकुमार कल्याणमल्लको सपरिवार सरसामें रखा और राज्यको पुनः प्राप्तकर बादशाहके हाथसे राव कल्याणमल्लको राजतिलक करवाया। मंत्रीश्वर कर्मचन्द्रने राव कल्याणमल्लजीके दुसाध्य मन्थ -जोधपुरके राजगवाक्षमें बैठकर कमलपूजा (पूर्वजोंको तर्पण) करने-को सम्राट अकबरसे कुछ समयके लिए जोधपुर राज्यको पाकर, पूर्ण किया। राव कल्याणमल्लने सन्तुष्ट होकर मंत्रीश्वरसे मनोवांछित मांगनेकी आज्ञा दी तो धर्मप्रिय मंत्रीश्वरने अपने निजी स्वार्थ के लिए किसी भी वस्तुकी याचना न कर जीवदयाको प्रधानता दी और बरसातके चार महीनों में तेली, कुम्हार और हलवाइयोंका आरंभ वर्जन, "माल" नामक व्यवसायिक कर के छोड़ने एवं भेड़, बकरी आदिका चतुर्थाश कर न लेनेका वचन मांगा। राजाने मंत्रीश्वरकी निष्पृहतासे प्रभावित होकर उपयुक्त मांगको स्वीकार करने के साथ बिना मांगे प्रीतिपूर्वक चार गांवोंका पट्टा दिया और फरमाया कि जबतक तुम्हारी और मेरी संतति विद्यमान रहेगी तब तक ये गाँव तुम्हारे वंशजोंके अधिकृत रहेंगे। मंत्रीश्वर कर्मचन्द्र सन्धि विग्रहादि राजनीतिमें अत्यन्त पटु थे। उन्होंने अपने असाधारण बुद्धि वैभवसे सोजत समियाणाको अधिकृत किया, जालौरके अधिपति को वशवत्ती कर अबुर्दगिरिको अधिकृत कर लिया। महाराजा रायसिंह से निवेदन कर चतुरंगिणी सेनाके साथ हरप्पामें रहे हुए बलोचियों पर आक्रमण कर उन्हें जीता' / वच्छावत वंशावलीमें लिखा है कि मन्त्रीश्वरने शहरको उथल कर जाति व गोत्रोंको अलग अलग मुहल्लों में बसाकर सुव्यस्थित किया। रायसिंहजीके साथ गुजरातके युद्ध में विजय प्राप्त करके सम्राट अकबरसे मिले। जब सम्राटने प्रसन्न होकर मनचाहा मांगनेका कहा तो इन्होंने स्वयं अपने लिए कुछ भी न मांग अपने स्वामी राजा रायसिंहको 52 परगने दिलाए / सं० 1647 के लगभग महाराजा रायसिंहजी की मनोगत अप्रसन्नता जानकर मंत्री कर्मचन्द्र अपने परिवारके साथ मेड़ता चले गए। इसके पश्चात् वैद मुहता लाखणसीजी के वंशज मुहता ठाकुरसीजी दीवान नियुक्त हुए। दक्षिण-विजयमें ये महाराजाके साथ थे, महाराजा ने प्रसन्न होकर इन्हें तलवार दी और भटनेर गांव बख्शीस किया। ____महाराजा सूरसिंहजीने मन्त्रीश्वर कर्मचन्द्रके पुत्र भाग्यचन्द्र लक्ष्मीचन्द्रको बड़े अनुरोधसे बीकानेर लाकर दीवान बनाया, कई वर्ष तक तो वे यहाँ सकुशल रहे पर सं० 1676 के फाल्गुनमें १-कर्मचन्द मंत्रिवंश प्रबन्ध देखिए। २-"ओसवाल जातिका इतिहास" ग्रन्थमें विशेष ज्ञातव्य देखना चाहिए। "Aho Shrut.Gyanam"
SR No.009684
Book TitleBikaner Jain Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size22 MB
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