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________________ । ३२ ] सुदि १० श्री महावीरजी रै देहरै री नीवरो पायो भर्यो तठा पर्छ ताकीदसु रूपचंदजी कमोजी नगोजी देहरै रो काम करावै छै रुपया हजार २५ देहरै वास्ते रयणुजी न्यारा राख दीना छै इणतरै देहरै रो काम हुयरेयो छ तिण समाजोगे सोहिलजी रो पुत्र रूपजी रो भाई खेतसीजी रो विवाह नागौर में मंड्यौ तिण ऊपरै रयगुंजी, रूपचंदजी, कमाजी, नागौर गया भांडोजी नगोजी बीकानेर रह्या। रयगुंजी नागौर जांवतां रूपचंदजीरे का सुं देहरै रे कामरीभोलावण नगैजीने संपी रुपैया हजार १५ सौंप्या अर कह्यौ म्हांनै नागोरमें मास १० तथा १२ लागसी सुं देहरैरो काम ताकीद सुं करावजो! इसी भोलावण देनै रयणुजी नागोर गया हिवै नगोजी लारै देहरैरे कमठाणे रो काम करावै छै तिण समाजोगे कोडमदेसर रो वासी वैद सोनो घरमें भूखो जण आयनै नगोजीनै कयौ मनै देहरै रे कमठाणे ऊपर राखो! इसो कह्या ठिकाणेदार जाण नगैजी कमठाणे ऊपर राख्यौ इणतरै राखतां थकां तीन पांती रो देहरो नगौजी सोनै हस्ते करायो तितरै रुपैया हजार १५ रयणुजी संप्या हुंता तिके लाग गया तिवारै सोने नगैजीने कयौ कमठाणैनै वले रुपीया देवो तिवारै नगैजी कह्यौ अबार काम ढोलौ करौ बाबोजी आयां वले कमठाणौ करावसां इण तरै तीन पातीरो देहरो महावीरजी रो करायौ।" ____ संभव है अवशेष काम बैदोंने करवाके पूर्ण किया हो! समयसुन्दरजीके स्तवनमें "कुंयले चैत्य करावियो धज दंड कलश प्रधान" लिखा है अतः इसकी प्रतिष्ठा कंवला ( उपकेश) गच्छके आचार्यने ही कराई है। इस मंन्दिर में ५ देहरियां है जिनमें सहस्रफणा पार्श्वनाथजीकी प्रतिष्ठा सं० १६०५ वैशाख सुदि १५ को खरतर गच्छ नायक श्रीजिनसौभाग्यसूरिजीने की थी। उसके पासकी देहरीमें समस्त वैद्य संघकारित गिरनारतीर्थपट्ट, नेमि पंच-कल्याणकपट्ट आदि की प्रतिष्ठा सं० १६०५ माघ शुक्ला ५ को उपकेश गच्छाचार्य श्री देवगुप्तसरिजीने की है। इस मंदिरके भूमिग्रहमें पहले बहुतसी प्रतिमाएं होनेका कहा जाता है पर अब तो मूल मंदिरसे निकलते बायें ओरकी देहरीमें भगवानके पब्बासनके नीचे ७५ धातु प्रतिमाएं सुरक्षित हैं। जिन्हें सं० २००० में उपधान तपके उपलक्ष्यमें बाहर निकाली गई थीं। कहा जाता है कि यह देहरी श्रीयुक्त मुन्नीलालजी वैद (देवावत ) ने बनवाई थी। यह मंदिर १४ गुवाड़का प्रधान मंदिर है। श्री वासुपूज्यजीका मन्दिर यह मंदिर श्री चिन्तामणिजीके पास जहाँ मत्थेरणोंके घर हैं, अवस्थित है। कहा जाता है कि यह बच्छावतोंका घर देरासर था। सं० १६३६ में सिरोहीकी लूटसे प्राप्त मूर्तियों में से श्री वासुपूज्य मुख्य चर्तविंशति पट्टको मूलनायकके रूपमें स्थापित किया। तभी से यह वासुपूज्यजीके मंदिरके नामसे प्रसिद्ध हुआ। गर्भगृहके दाहिनी और बायीं ओर दो देहरिये हैं। इस मंदिरसे सटा हुआ दिगम्बर जैन मंदिर है। "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009684
Book TitleBikaner Jain Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size22 MB
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