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________________ [ ३१ ] श्री महावीर स्वामीका मन्दिर (बैदोंका चौक ) यह मन्दिर बैदों और अचारजोंके चौकके बीचमें हैं। इसके निर्माणके सम्बन्धमें नागौरी लुकागच्छकी पट्टावलीमें इस प्रकार उल्लेख पाया जाता है : - "सं० १५४५ राव बीकैजी बीकानेर वसायौ तठा पछे सं० १५६६ माध सुदि ५ रयणुजी बीकानेर आया रायश्री वीकाजी राज्ये घरांरी जमीन लीवी। पछ बीकानेरमें रयणुजी आधो. चार राख्यो । हिवे सं० १५६२ श्री चउवीसटैजी रो मंदिर वच्छावता तथा सर्व पंचां करायौ। पछै कातो सुदि १५री पूजा करता रयणुजी कह्यौ आज पूजा पहला म्हे करसां तद वच्छावत कह्यौ साहजी म्हारौ करायौ मंदिर छै म्हारी मंडोवर सुं लायोड़ी प्रतिमा छै सो आजरी बड़ी पूजा म्हे करसां. काले थे करजो ! इणतरै माहोमांह बोलाचाली हुई। तद बच्छावतां कह्यौ साहजी इतरो जोर तो नवो देहरो करायनै करो तद रयणुजी देहरैसुं निकलने घरेआया भनमें घणा उदास हुयनै विचायौं नवो देहरो करायां बिना मूछ रहै नहीं। द्रव्य तो लगावनरी म्हारै गिनती छै नहीं पिण उणां रे मेंतफो (?) राखणो नहीं इसो मनमें विचार करने चीइसटजी जावणो छोडदियो पछै धणा ही विख्टाला फिर्या पिण रयणुजी गया नहीं तठा पछै रयणुजी नै कमादेनी प्रति मात काल (!) प्राप्त हुआ। तद वले नागोर भाई सांडेजी सोहिलजी बुलाय लीना तठा पछे एक दिवस भायां आगै वच्छावतां सुं बोलाचाली वार्ता कही तद भायां' र बेटा कह्यौ आपरी मर्जी हुवे जितरा दाम खरचो पिण नवोदेहरो करावो इण तरै भायां, वेटां सलाह करीनै रयणुजी नागोरमें रहे छै इणतरै रहतां रावी लूणकरणजी रा परवाणा रयणुजी आया तिवारै रयणुजी भांडैजी कमैजी नै कबीला समेत लारै लाया नगैजीने पिण सागे लाया रूपचंदजीने कबीले बिना सागै लाया रावी लूणकरणजी सुं मिल्या रु० ५००) नजरकर्या श्री दरबारसं बड़ी दिलासा दीवी और कह्यौ थे बड़ा साहूकार छौ सुथे तथा थारा टावरानै म्हारै शहरमें वसावौ विणज व्यापार करौ थारै अरज हुवै तो किया करो थारौ मुलायजो रहसी इणभांत श्रीदरबार दिलासा देयनै दुसालो दियो पछ घरे आया। इण तरै रहतां आषाढ चौमासो आयो तद रूपचंदजो भोगीभंवर कमोजीनुभाई पौसाक करने देहरै जावणने तैयारी हुवा तद रयणुजी कहो आपार वच्छावतांसु माहोमांहे बोलाचाली हुई सु देहरो नवो करायने बीकानेर में देहरै चालसा । इसो रयणुजी कह्यां थको रूपचंदजी कमोजी बोल्यां कियोड़ी पोसाक तो उतारा नहीं इण ही पौसाक श्री दरबार चालौ देहरैरी जमी लेवा । तिवारै सिरपेच १ रु० ११००) री किमतरो अर रुपैया हजार एक रोक लेइनै श्री दरबार गया। रुपैया र सिरपेच नजरकीनो तद, रावजी श्री लूणकरणजी फरमायो अरज करौ ! तिवारै रयणुजी अरजकरी-महाराज म्हे नवोमंदिर करावसां सो देहरै वास्तै जागांरी परवानगी दिवरावौ तिवारै श्री दरबार फरमायो आछी जागा सो थारी, जावो सैहरमें थारै चहीजे जितरी जमी देहरै वास्तै लेवो म्हारो हुकम छै पछै रयणुजी आपरै वल पढ़ती जमीन लेयनै सं० १५७८ आसोज "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009684
Book TitleBikaner Jain Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size22 MB
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