SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 75
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रगड़ दिया यह देखकर कारीगरों ने सोचा जो इतनेसे घीके लिए विचार करता है, वह क्या मन्दिर बनवायेगा परीक्षार्थ कारीगरों ने सेठजी को कहा-इस मन्दिर के निरुपद्रव और सुदृढ़ होनेके लिए इसकी नींवमें घी, खोपरे डालना आवश्यक है। भांडासाह ने तत्काल सैकड़ों मन घी मंगवा कर नींवमें डालना प्रारंभ किया। कारीगरों ने विस्मित होकर घीको नीवमें डलवाना बंदकर दिया और कहा कि क्षमा कीजिये, हम तो परीक्षा ही लेना चाहते थे कि जो अंगुली के लगे घी को जूतीके रगड़ देते हैं वे मन्दिर कैसे बनवायेंगे ? भांडासाह ने कहा-हम लोग व्यर्थको थोड़ी चीज भी न गंवाकर शुभ कार्य में अपनी विपुल अस्थिरं संपत्ति को लगाने में नहीं हिचकते। और घीको यत्र-तत्र पोंछने, गिराने से जीव विराधना की सम्भावना रहती है अब तो यह घी जिस नींवमें डालने के निमित्त आया है उसी में डाला जायगा। ऐसा कह कर सारा घी नींवमें उंडेल दिया गया। इससे आपकी गहरी मनस्विताका परिचय मिलता है। कहा जाता है कि इस मन्दिरको बनवाने के लिए जल "नाल" गाँवसे और पत्थर जेसलमेर से मंगवाते थे। अतएव इस मन्दिर के निर्माण में लाखों रुपये व्यय हुए थे, इसमें कोई शक नहीं। कई वर्ष पूर्व बीकानेर के संघने जीणोंद्वार, व रंग व सुनहरे वेल पत्तियोंका काम कराके इसकी शोभामें अभिवृद्धि की है। राजसमुद्रजीकृत स्तवन में इसे त्रिमूमिया और गुणरंग एवं लालचंद ने स्तवन में चौभूमिया और चौमुखी के रूप में उल्लेख किया है। श्री सीमन्धर स्वामीका मन्दिर यह मन्दिर भांडासरजी के अहाते में सं० १८८७ में बना था। यहां मिती अषाढ़ शुक्ला १० को २५ जिन बिंबोंकी प्रतिष्ठा श्री जिनहर्षसूरिजी द्वारा होनेका उल्लेख उदयरत्न कृत स्तवन में पाया जाता है। शिलालेख में इस मन्दिर का निर्माण उ० क्षमाकल्याणजी गणिके शि० धर्मानंदजी के उपदेश से होनेका उल्लेख है। इस मन्दिर की एक देहरी में क्षमाकल्याणोपाध्यायजी की मूर्ति व आलोंमें कई साध्वियों की चरणपादुकाएँ हैं। श्री नमिनाथजी का मन्दिर श्री भांडासरजी के मन्दिर के पीछे श्री लक्ष्मीनारायण पार्क में यह मन्दिर अवस्थित है। मंत्रीश्वर वत्सराज के पुत्र मं० कर्मसिंह ने यह मन्दिर सं० १५७० में बनवाया। मूलनायकजी की प्रतिष्ठा सं० १५६३ माघ बदि १ गुरुवार को श्री जिनमाणिक्यसूरिजी ने की, अन्य प्रतिमाओं के लेख पञ्चीमें दबे हुए हैं। यह मन्दिर भो विशाल, सुन्दर और कला-पूर्ण है। इस मन्दिर में जलका कुण्ड बंगाल आसाम के संघके द्रव्य सहाय्यसे चोरड़िया सीपानी चुन्नीलाल ने सं० १९२४ में बनवाया ! इस मन्दिर के अधिष्ठायक भोमियाजी बड़े चमत्कारी हैं और प्रति बुधवार को बहुत से लोग दर्शन करने आते हैं। कहा जाता है कि ये भोमियाजी मन्दिर निर्माता मंत्री कर्मसिंहजी स्वयं हैं। "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009684
Book TitleBikaner Jain Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy