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________________ [ २६ ] जगरूप के वंश में मुहकम, सुरूप, अभयराज और राजरूप ने बनवा कर सं० १८१७ के मिती मिगसर बदि ५ गुरुवार के दिन प्रतिष्ठा करवाई थी किन्तु इस समय श्री पार्श्वनाथ भगवान को बड़ी धातुमय प्रतिमा विराजमान है जो सं० १५४६ जेष्ठ बदि १ गुरुवार ने दिन श्री जिनसमुद्र सूरिजी द्वारा प्रतिष्ठित है, न मालुम कब और क्यों यह परिवर्तन किया गया ? इस मन्दिर में पाषाण की मूर्तियां बहुत सी हैं पर उनके प्रायः सभी लेख पञ्ची में दबे हुए हैं । भांडाशाह कारित सुमतिनाथ मंदिर-भांडासर यह मन्दिर ( भांडासरजी का मन्दिर ) सुप्रसिद्ध राजमान्य श्री लक्ष्मीनारायण मन्दिर के पासमें है। वह मन्दिर ऊँचे स्थान पर तीन मंजिला बना हुआ होनेके कारण २०-२५ मीलकी दूरीसे दृश्यमान इसका शिखर भांडासाह की,अमरकर्ति का परिचय दे रहा है। यह मन्दिर बहुत ही विशाल, भव्य, मनोहर और कलापूर्ण है। मन्दिर में प्रवेश करते ही भक्तिभाव का संचार हो जाता है और भमती के विभिन्न सुन्दर शिल्पको देखकर भांडासाह का कला-प्रेम और विशाल हृदय का सहज परिचय मिलता है। तीसरे मंजिल पर चढ़ने पर सारा बीकानेर नगर और आस-पासके गांवोंका सुरम्य अवलोकन हो जाता है। इस मन्दिर के मूलनायक श्री सुमतिनाथ भगवान होने पर भी इसके निर्माता भांडासाह के नामसे इस की प्रसिद्धि भांडासरजी के मन्दिर रूपमें है। शिलालेखसे ज्ञात होता है कि सं० १५७१ के आश्विन शुक्ला २ को राजाधिराज श्री लूणकरणजी के राज्यकाल में श्रेष्ठी भांडासाह ने इस "त्रैलोक्य-दीपक" नामक प्रासाद को बनवाया और सूत्रधार गोदाने निर्माण किया । ___ संखवाल गोत्रके इतिहास में इन भांडासाह को संखवाल गोत्रीय सा० माना के पुत्र लिखा है । सामाना के ४ पुत्र थे-१ सांडा, २ मांडा, ३ तोड़ा, १ चौंडा। जब ये छोटे थे तो इनके संम्ब धियोंने श्री कीतिरत्नसूरिजी को इन्हें दीक्षित करने की प्रार्थना की, तब उन्होंने फरमाया - ये भाई लाखों रुपये जिनेश्वर के मन्दिर निर्माणादि शुभ कार्यों में व्यय कर शासनकी बड़ी प्रभावना करेंगे! वास्तव में हुआ भी वैसा ही, साहसांडा ने सत्तूकार ( दानशाला ) खोला, भांडाने बीकानेर में यह अनुपम मन्दिर बनवाया, तोड़ेने संघ निकाला और चौंडाने भी दानशाला खोली। साहभांडा के पुत्र पासवीर पुत्र वीरम, धनराज और धर्मसी थे। वीरम के पुत्र श्रीपाल पुत्र श्रीमलने जोधपुर में मन्दिर बनवाया। अब इस मन्दिर के विषय में जो प्रवाद सुनने में आये है वे लिखते हैं। साहभांडा घीका व्यापार करते थे। चित्रावेलि या रसकुंपिका मिल जानेसे ये अपार धनराशिके स्वामी हुए। उनका इस मन्दिर को सात मंजिला और बावन जिनालय बनवाने का विचार या पर इसी बीच आपका देहावसान हो जानेसे साहसांडा या इनके पुत्रादि ने पूर्ण कराया। इनके धर्म-प्रेमके सम्बन्ध में कहा जाता है कि जब मन्दिर की नींव डाली गई तब एक दिन घो में मक्खीके पड़ जानेसे भांडासाह ने उसे निकाल कर अंगुली के लगे हुए घी को जूती पर "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009684
Book TitleBikaner Jain Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size22 MB
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