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________________ [ २८ ] चातुर्मास में का०सु० ३ को बाहर निकाली गई थी और मिती मिगसर बदि ४ को वापिस विराजमन की गई उसके पश्चात् सं० १६६५ में श्री हरिसागरसूरिजी के पधारने पर भादवा वदि १ को निकाली जाकर सुदि १० को रखी और सं० २००० में श्री मणिसागरसूरिजी के शुभागमन में उपधान तप के उपलक्ष्य में बाहर निकाली गई थी। हमने इन प्रतिमाओं के लेख सं० १६६५ में लिए थे पर उनमें से आधे लेखों की नकल खोजाने से पुनः सं० २००० में समस्त लेखोंकी नकल की। मान्यता है कि इन प्रतिमाओं को निकालने से अनावृष्टि महामारी आदि उपद्रव शान्त हो जाते हैं । अभी इन प्रतिमाओं की संख्या ११०१ है । जिसमें जिसमें २ पाषाण की १ स्फटिक की और शेष धातु निर्मित हैं । दूसरे भूमिगृह में पाषाण की खंडित प्रतिमायें और चरणपादुकायें रखी हुई हैं जिनके लेख भी इस ग्रन्थ में प्रकाशित किये गये हैं । सं० १६८३ में समयसुन्दरजी ने चौवीसटा स्तवन में इस मन्दिर की खास-खास प्रतिमाओं के वर्णन में चतुर्विंशति जिन मातृपट्ट, श्री जिनदत्तसूरि और श्री जिनकुशलसूरि मूर्ति का उल्लेख किया है । सहजकीर्ति ने भी पहले मंडप में वाम पार्श्व में मातृ पट्ट एवं जिनदत्तसूरि और जिनकुशलसूर मूर्तियों का उल्लेख किया है। कनककीर्ति ने पाषाण, पीतल और स्फटिक की प्रतिमायें मरुदेवी माता, जिनदत्तसूरि और जिनकुशलसूरि मूर्ति का उल्लेख किया है। सं० १७५५ में श्री लक्ष्मीवल्लभोपाध्याय ने सं० ३५ औ सं० ३६ की प्राचीनतम मूर्तियाँ, शत्रुंजय, गिरनार, समेतशिखर, विहरमान, सिद्धचक्र व समवसरण का पट्ट; कटकड़े में शांतिनाथ, पार्श्वनाथ, महावीर और विमलनाथजी के बिम्ब, प्रवेश करते दाहिनी ओर गौड़ी पार्श्व (सप्त धातु-मय), संभवनाथजी की श्वेत मूर्ति आदि बाँइ ओर, दोनों तरफ भरत, बाहुबली की काउसग्ग मुद्रा मूर्ति सप्त धातुमय सत्तरिसय यंत्र, २४ जिन मातृ पट्ट, स्फटिक पाषाण व धातु प्रतिमायें एवं दोनों दादा गुरुदेवों की मूर्तिओं का उल्लेख किया है । इस मन्दिर के दाहिनी ओर कई देहरियाँ हैं जिनमें श्री जिनहर्षसूरिजी के चरण, श्री जिनदत्तसूरि मूर्ति, मातृपट्ट, नेमिनाथजी की बरात का पट्ट, १४ राजलोक के पट्ट, सप्त पार्श्वनाथजी आदि मूर्तियाँ है । एक परिकरपर सं० १९७६ मि० ब० ६ को अजयपुर में महावीर प्रतिमा को राण समुदाय के द्वारा बनवाने का उल्लेख है । एक देहरी की पाषाणपट्टिका पर सं० १६२४ आषाढ सुदि १० वृहस्पतिवार को लक्ष्मीप्रधानजी के उपदेश से बीकानेर संघ के द्वारा बनवाने का उल्लेख है। मन्दिर के बांयी ओर श्री शांतिनाथजी का मन्दिर है जिसका परिचय इस प्रकार है श्री शांतिनाथजी का मन्दिर बीकानेर के मन्दिरों में यह ६ व मन्दिर हैं। इससे पहिले यहाँ आठ मन्दिर ही थे, यह हम आगे लिख चुके हैं। पाठक श्री रघुपत्तिजी के बनाये हुये स्तवन से ज्ञात होता है कि इसे पारख "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009684
Book TitleBikaner Jain Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size22 MB
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