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महो. रामलालजी का उपासरा क्षेम शाखाके महो० रामलालजी इस जमाने के प्रसिद्ध वैद्यों में थे उन्होंने वैद्यक द्वारा अच्छी सम्पत्ति अर्जन कर यह उपाश्रय बनवाया। अभी इसमें उनके प्रशिष्य बालचन्द्रजी रहते हैं।
श्री सुगनजी का उपासरा यह भी रांघड़ी के चौक के पास है। उपाध्याय श्री क्षमाकल्याणजी उन्नीसवीं शती के बड़े गीतार्थ एवं विद्वान थे, अपने गुरु अमृतधर्मजी के साथ इन्होंने क्रियोद्धार किया था। आपके उपदेश से श्री संघ ने सं० १८५८ में यह पौषधशाला बनवाई, इसमें उन्होंने अपना ज्ञानभण्डार स्थापित किया जिसका लेख इस प्रकार है :
"श्री सिद्धचक्राय नमः श्री पुण्डरीकादि गौतम स्वामी प्रमुख गणधरेभ्यो नमः श्री वृहत्खरतरगणाधीश्वर भट्टारक श्री जिनभक्तिसूरि शिष्य प्रीतिसागर गणि शिष्य वाचनाचार्य संविग्न श्री मदमृतधर्म गणि शिष्योपाध्याय श्री क्षमाकल्याण गणिनामुपदेशात श्री संघन पुण्यार्थं श्री बीकानेर नगरे इयं पौषधशाला कारिता सं० १८५८ इस पौषधशाला मांहें शुद्ध समाचारो धारक संवेगी साधु-साध्वी श्रावक-श्राविका धर्म ध्यान करे और कोई उजर करण पावै नहीं सही सही ॥ लिखितं उपाध्याय श्रीक्षमाकल्याण गणिभिः सं १८६१ मिती मार्गशीर्ष सुदि ३ दिने संघ समक्षम् ।
. उपाध्याय श्री क्षमाकल्याण गणि स्वनिश्रा को पुस्तक भण्डार स्थापन कियो उसकी विगति लिखे है । भण्डार को पुस्तक कोई चोर लेवे अथवा बेचै सो देव गुरु धर्म को विराधक होय भवो भव महा दुखी होय"।
उ० श्री क्षमाकल्याणजी के प्रशिष्य श्री सुगनजी अच्छे कवि हुए हैं जिनके रचित बहुतसी पूजाएं प्रसिद्ध हैं उन्हीं के नामसे यह सुगनजी का उपासरा कहलाता है। पीछे से इससे संलग्न उपाश्रय को एक यति से खरीद कर शामिल कर लिया गया है । उपाश्रय के उपर अजितनाथजी का देहरासर और नीचे क्षमाकल्याण-गुरु-मन्दिर और ज्ञानभण्डार है। इस उपाश्रय का हाल ही में सुन्दर जीर्णोद्धार हुआ है।
बौरों की सेरी का उपासरा रांगडीके चौक के निकटवर्ती बोहरों की सेरीमें होने से यह "बोरों सेरी का उपासरा" कहलाता है। यह उपाश्रय क्षमाकल्याणजी की शिष्याओं एवं श्राविकाओं के धर्मध्यान करनेके लिए बनवाया गया था।
छत्तीबाई का उपासरा यह नाहटों की गुवाड़ में श्री सुपार्श्वनाथजी के मन्दिर से संलग्न है। इसे छत्तीबाई ने बनवाया इससे यह छत्तीबाई का उपासरा कहलाता है। यहाँ कभी कभी सावियों का चौमासा होता है और बाईयां धर्मध्यान करती हैं।
"Aho Shrut Gyanam"