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________________ । ५५ पौषधशाला सं० १८४५ भाद्रवा बदि ८ को बनवाने का लिखा है। जो कि उपाश्रय के वर्तमान रूपमें निर्माण होनेका सूचक होगा। खरतराचार्य शाखाके श्री पूज्य श्री जिनचन्द्रसूरिका देहान्त हो गया है। इस उपाश्रय में भी एक अच्छा ज्ञान भंडार है ! श्री जैनलक्ष्मी मोहनशाला यह भी रांगड़ी के चौक में। सं० १८२२ में यति लक्ष्मीचन्द्र जी ने यह मकान बनवाया होगा। इस में श्री जिनरत्नसूरिजी के पट्टधर श्री जिनचन्द्रसूरिजी के शिष्य उ० उदयतिलकजी की परम्परा के उ० जयचन्द्रजी के शिष्य पालचन्द अभी रहते हैं । इनके प्रगुरु मोहनलाल जी ने सं० १९५१ विजयदशमी को श्री जैन लक्ष्मी मोहन शाला नाम से पुस्तकालय स्थापित किया। इनके ज्ञानभंडार में हस्तलिखित प्रन्थों का अच्छा संग्रह है। __ श्री जिनकृपाचन्द्रसूरि खरतरगच्छ धर्मशाला यह भी रांगड़ी के चौकमें है। श्रीजिनकृपाचन्द्रसूरिजी कीर्तिरत्नसूरि शाखामें नामाद्वित विद्वान हो गए हैं जिनके शिष्य शिष्याएं अब भी सर्वत्र विचर कर शासन सेवा कर रहे हैं। श्री जिनकृपाचन्द्रसूरिजी के प्रगुरु सुमतिसोम जी के गुरू सुमतिविशाल जी ने सं० १९२४ ज्येष्ठ सुदि ५ को यह उपाश्रय बनवाया। श्री जिनकृपाचन्द्रसूरिजी सं० १६४५ में क्रियोद्धार करके सं० १९५७ में पुनः बीकानेर आए और अपने इस उपाश्रय को मय अन्य दो उपासरों (जिनमेंसे एक इसके संलग्न और दूसरा इसके सामने है ) ज्ञानभंडार, सेटूजी का मन्दिर, नाल की शाला इत्यादि अपनी समस्त जायदाद को "व्यवस्थापत्र" बनवा कर खरतर गच्छ संघ को सौंप दी। सं १९८४ में श्री जिनकृपाचन्द्रसूरिजी के पुनः पधारने पर निकटवर्ती नपाश्रय का नवीन निर्माण और मूल उपाश्रय का जीर्णोद्धार सं० १९८६ में लगभग ६०००) रुपये खरच कर श्री संघने करवाया जिसके सारे कामकी देखरेख हमारे पूज्य स्व० श्री शंकरदान जी नाहटा ने बड़े लगनसे की थी। खेद है कि उपासरे का ज्ञानभंडार सूरिजी के यति-शिष्य तिलोकचन्द जी ने जिन्हें कि बड़े विश्वास के साथ सूरिजी ने व्यवस्थापक बनाया था, बेच डाला इस उपाश्रय से संलग्न एक सेवग के मकान को खरीद कर हमारी ओर से उपाश्रम में दिया गया है। पूज्य श्रीयुत शुभैराज जी नाहटा के सतत् परिश्रमसे एक विशाल व्याख्यान हाल का निर्माण हुआ है उ० श्री सुखसागर जी और साध्वीजी माइमाश्री जी के ग्रन्थों की अलमारियाँ यहाँ मंगवाकर ज्ञानभंडार की पुनस्र्थापना की गयी है। श्री अनोपचन्द्रजी यति का उपासरा यह उपर्युक्त श्री जिनकृपाचन्द्रसूरि खरतर गच्छ धर्मशाला के सामने है। इसका हिस्सा उपर्युक्त धर्मशाला के तालुके हैं व 3 हिस्सा यति अनोपचन्द्रजी का था जिसमें उनके शिष्य प्यारेलाल यति रहते हैं । इस से संलग्न इसी शाखा के यति रामधनजी का उपासरा है । "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009684
Book TitleBikaner Jain Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size22 MB
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