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कोचरों का उपासरा कोचरों के मुहल्ले में दो उपाश्रय हैं। जिसमें एकमें श्री शांतिनाथ जी का देहरासर है ।
पौषधशाला
यह रांगड़ी के चौक में है। इसकी व्यवस्था पन्नीबाईके उपाश्रय की बाइयों के आधीन है। तपा गच्छ के मुनिराजों का अधिकांश चातुर्मास यहीं होता है। यह पौषधशाला गुमान मल जी वरढिया ने बनवाई थी।
साधर्मशाला यह स्थान रांगड़ी के चौक में है। सं० १६५८ में उपाध्याय श्री हितवल्लभजी गणिने यति श्रीचन्द्र जी से यह स्थान खरीद कर इसे जैन श्वेताम्बर साधर्मीशाला के नाम से स्थापित की। उ० जयचन्द्रजी की प्रेरणा से कलकत्ता और मुर्शिदाबादके संधने इसके खरीदने में सहायता दी थी। इसकी देखरेख बड़े उपाश्रय के ट्रष्टियों के आधीन है। जैन यात्रियों के ठहरने के लिए यह स्थान है। इसमें उ० श्री हितवल्लभजी के चरण सं० १९८१ प्रतिष्ठित है। सं० १६६१ में सावणसुखा सुगनचन्दजी भैरूंदानजी बंगले वालों ने इसकी तिबारी बनवाई।
बीकानेर शहरके उपाश्रयों व साधर्मीशाला का परिचय संक्षेप से ऊपर दिया गया है अब बीकानेर राज्यवर्ती उपाश्रयों की सूची नीचे दी जा रही है :
(१) गंगाशहर- यहाँ मन्दिरजी के पास की जगहमें हाल बना हुआ है जिसमें साधुसाध्वी ठहरते हैं।
(२) भीनासर--यहाँ मन्दिरजी के पास खरतर गच्छ का उपाश्रम है। उ० श्री सुमेरमलजी के शिष्य यहाँ रहते हैं।
(३) उदरामसर-बोथरों के वास में खरतर गच्छ का उपाश्रय है जिसके उपर श्री कुंथुनाथ जी का देहरासर हैं।
(४) देशनोक-यहाँ तीनों मन्दिरोंसे संलग्न ३ उपाश्रय हैं जिनमें २ खरतर गच्छके और एक लुंके गच्छ का है।
(५) उदासर-यहाँ मन्दिर के पास ही धर्मशाला है । (६) झज्मू-यहाँ एक खरतर गच्छ और दूसरा लुका गच्छका उपाश्रय है। (७) राजलदेसर-यहां कंवला गच्छ का एक उपासरा है।
(८) रतनगढ़-मन्दिर के पास उपाश्रय है, जिसमें तेरापंथी-नाटक के रचयिता यति प्रेमचन्द्रजी बड़े प्रसिद्ध हुए हैं।
(६) बीदासर-यहाँ खरतर गच्छ के उपाश्रय में यतिजी रहते हैं।
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