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पन्नीबाई का उपासरा
यह आसानियों के चौक के पास गली में हैं। यह उपाश्रय तथा गच्छ की श्राविकाओं के हस्तगत है। इसमें श्री पद्मप्रभुजी का देहरासर भी है।
पायचन्द गच्छ का उपासरा
यह उपासरा आसानियों के चौक में हैं। इसमें नागपुरी तपा गच्छीय श्री पासचन्द्रसूरि जी की गद्दी है । इसके श्रीपूज्य श्री देवचन्द्रसूरिजी का कुछ वर्ष पूर्व स्वर्गवास हो गया, इसका प्रबन्ध उस गच्छ के रामपुरिया आदि श्रावक लोग करते हैं ।
रामपुरियों का उपासरा
यह रामपुरियों की गुवाड़ में हैं। इसमें श्री कुशलचन्द्र गणि पुस्तकालय स्थापित है । स्वर्गीय उदयचन्द्रजी रामपुरिया के प्रयत्न से यहां तीर्थपट्टादि का चित्रकाम बड़ा सुन्दर हुआ है। इस उपाश्रयमें सं० १९८३ में उन्होंने श्री पार्श्वचन्द्रसूरिजी और भातृचन्द्रसूरिजी की पादुकाए स्थापित की हैं।
कँवला गच्छ का उपासरा
यह उपासरा सुराणों की गुवाड़ में है। यहां कँवला गच्छ के श्रीपूज्यों की गद्दी थी । आगे इसमें देहरासर और ज्ञानभण्डार भी था । यति प्रेमसुन्दर ने इस उपाश्रय और इसके समस्त सामान को बेच डाला ! अब इस उपाश्रय को खरीद कर यति मुकनसुन्दर रहते हैं ।
लौंका गच्छ का उपासरा
यह उपासरा कँवलोंके उपासरे के पास सुराणों की गुवाड़ में है। इसमें नागौरी लुंका गच्छके श्रीपूज्यों की गद्दी थी। शिलालेखों के अनुसार इस पौषधशाला को ( इस रूप में ) इस गच्छ के श्री पूज्य लक्ष्मीचन्द्रसूरिजी ने सं० १८८७ और १८६५ में बनवाई। अभी इस उपाश्रय में यति लच्छीराम जी रहते हैं ।
लौंका गच्छका छोटा उपासरा
यह उपर्युक्त उपासरे के पास ही है । लौंका गच्छका शाखा भेद होनेके बा वाले इसमें रहने लगे। इसका निर्माण कब हुआ, कोई उल्लेख नहीं मिलता ।
लौंका गच्छ की पट्टावली में लिखा है कि पूज्य जीवणदासजी के समय दोनों उपासरों पर अन्य लोगोंके कब्जा कर लेनेपर उन्होंने सं० १७७८ में बीकानेर नरेश से अर्जी कर सं० १७७८ प्रथम श्रावण बदि ८ को दोनों उपासरों का परवाना प्राप्त किया ।
सीपानियों का उपासरा
की गद्दी
यह सिंघीयों के चौक में है । इसे ऋद्धिविजय गणि के उपदेश से सीपानी संघ ने सं० १८४६ माघसुदी १५ को बनवाया था ।
"Aho Shrut Gyanam"