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[ ५६ ] (१०) सुजानगढ़-यहाँ खरतर गच्छ और लुंका गच्छ के २ उपाश्रय हैं। खरतर गच्छ के उपाश्रयमें यति दूधेचन्दजी और लंका गच्छके उपाश्रय में वैद्यवर रामलालजी यति रहते हैं।
(११) चाहड़वास-कहा जाता है कि यहां के उपासरे में देहरासर भी है।
(१२) चूरू यहाँ खरतर गच्छीय यति ऋद्धिकरणजी का सुप्रसिद्ध बड़ा उपासरा है। यह उपासरा बड़ा सुन्दर और विशाल है, इसमें यतिजी का ज्ञानभण्डार, लायब्रेरी और औषधालय है। इससे संलग्न श्री शांतिनाथजी का मन्दिर और कुआं है यहां लंका गच्छके यतिजी का भी एक अन्य उपासरा है।
(१३) राजगढ़-यहाँ मंदिरसे संलग्न खरतर गच्छ का उपाश्रय है ।
(१४) रिणी - यहाँ मन्दिर के सामने एक पुराना उपाश्रय है जिसमें खरतरगच्छ के यति पन्नालालजी रहते हैं।
(१५) लूणकरणसर--यहाँ मन्दिरके पास खरतर गच्छ के दो उपाश्रय हैं जिनमें से एक की देखरेख रिणी के यति पन्नालालजीके व दूसरा पंचायती के हस्तगत है।
(१६) कालू-यहाँ भी मन्दिर के पास उपाश्रय है और वैद्यवर किसनलालजी यति यहाँ रहते हैं।
(१) महाजन-यहां मन्दिर से संलग्न उपाश्रय (धर्मशाला ) है। (२) सूरतगढ़--यहां खरतर गच्छीय उपाश्रय है।
( १६ ) हनुमानगढ़--यहां बड़ गच्छ की गद्दी प्राचीनकालसे रही है, दुर्गमें मन्दिरके निकट ही एक जीर्ण शीर्ण उपाश्रय अवस्थित है।
बीकानेर रियासत में खरतर गच्छ का बहुत जबरदस्त प्रभाव रहा है। बड़े उपासरे के आदेशी यति गण रियासत के प्रायः सभीगाँवोंमें, जहां ओसवालों की वस्ती थी, विचरते और चातुर्मास किया करते थे। हमारे संग्रह में ऐसे सैकड़ों आदेशपत्र हैं जिनमें श्रीपूज्यों ने भिन्नभिन्न ग्रामों में यतियों को विचरने का आदेश दिया है। अतः उपर्युक्त स्थानों के अतिरिक्त
और भी बहुतसे स्थानों में पहले उपाश्रय थे जिनमें कई भग्न हो गए और कई अन्य लोगोंके कब्जे में है हमारा सर्वत्र भ्रमण भी नहीं हुआ है अतः जिन उपाश्रयों का परिचय हमें ज्ञात हो सका, लिख दिया है।
हमारे संग्रह के एक हस्तलिखित पत्र में वा० हस्तरत्न गणि के उद्योग से गांव नाथूसर में सं० १८११ मिती मिगसर बदि १० को पौषधशाला कराने की प्रशस्ति की नकल मिली जिसे हमने उपाश्रयोंके लेखों के साथ दे दी है।
"Aho Shrut Gyanam"