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________________ [ ४६ ] श्री शांतिनाथजी का मन्दिर भगवान की मूर्त्ति सेवक के घरमें थी। अभी बीकानेर के संघ अलग मन्दिर बनवा कर इस मूर्त्तिको स्थापित किया है। राजलदेसर कुछ वर्ष पूर्व मूलनायक और स्थानीय चतुर्भुजजी डागाने यह विगा से दूसरा स्टेशन है और यहाँ से २१ मील है। यहां ओसवालों के ४०० घर हैं । स्टेशन से गांव १ मील दूर है। बाजार के मध्य में श्री आदिनाथजी का मन्दिर है । श्री आदिनाथजी का मन्दिर यह सं० १५८४ में प्रतिष्ठित है, सं० १७२१ में वैद मुंहता शेरसिंह ने इसका जीर्णोद्धार कराया था । रतनगढ़ यह दिल्ली लाइन का मुख्य जंक्सन और बीकानेर से ८५ मील है । वहां ओसवालों के २०० घर हैं। बाहर में श्री आदिनाथजी का मन्दिर और बाहर दादाबाड़ी है। मंदिर से संलग्न खरतर गच्छका उपाश्रय है । श्री आदिनाथजी का मन्दिर इसका निर्माण समय अज्ञात है। पट्ट के अनुसार सं० १६५७ के लगभग मन्दिर का निर्माण हुआ मालूम होता है । श्री दादाबाड़ी इसमें श्रीजिनकुशलसूरिजी के चरण सं० १८६६ माघ वदि ५ के प्रतिष्ठित हैं। श्री जिनदत्तसूरिजी के छोटे चरणों पर कोई लेख नहीं है । बीदासर यह रतनगढ़ से सुजानगढ़ जानेवाली रेलवे के छापर स्टेशन से कुछ मील दूर है । इस afa ओसवालों के ४०० घर हैं। खरतर गच्छके उपाश्रय में देहरासर है जिसमें श्री चन्द्रप्रभुजी की मूर्ति विराजमान है। दादासाहब के चरण सं० १९०३ के प्रतिष्ठित हैं । सुजानगढ़ यह इस लाइन में बीकानेर रियासत का अन्तिम स्टेशन है। यहां ओसवालों के ४५० घर हैं । लौका गच्छ और खरतर गच्छके २ उपाश्रय, २ मन्दिर और दादाबाड़ी है। I श्री पार्श्वनाथजी का मंदिर यह सौधशिखरी विशाल जिनालय श्री पनाचंदजी सिंघीके अमर कीर्ति कलाप का परिचायक है । इसकी प्रतिष्ठा सं० १६०१ माघ सुदि १३ को श्रीजिनचारित्रसूरिजी ने की। इस "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009684
Book TitleBikaner Jain Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size22 MB
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