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________________ [ ४५ 3 श्री नेमिनाथजी का मन्दिर यह मन्दिर सेठियों के पास में लुकागच्छ के उपाश्रय में है। मूलनायक सं० १९१० में श्रोजिनसूरिजी द्वारा प्रतिष्ठित हैं। नापासर यह बीकानेर से १७ मील है, दिल्ली जानेवाली रेलवे लाइन का दूसरा स्टेशन है । स्टेशन से लगभग १ मील गांवमें यहाँ मन्दिर है । यहाँ अभी ओसवालों की बस्ती नहीं है । पूजाका प्रबन्ध बीकानेरके श्री चिन्तामणिजी के मन्दिर की पेढीसे होता है। श्री शान्तिनाथजी का मन्दिर यह मन्दिर सेठिया अचलदास ने सं० १७३७ से पूर्व बनवाया था सं० १७३७ मिती चैत बदि १ को प्रतिष्ठित श्रीजिनदत्तसूरिजी, श्रीजिनकुशलसूरिजी और सेठ अचलदास की पादुका इस मन्दिर में विद्यमान है ! कविवर रघुपत्ति के उल्लेखानुसार यहाँ सं० १८०२ में मूलनायक अजितनाथ भगवान थे। सं० १७४० में कवि यशोलाभ ने धर्मसेन चौपाई में अजितनाथ व शांतिनाथ लिखा है। पर अभी सं० १५७५ प्रतिष्ठित श्री शांतिनाथ भगवान की प्रतिमा मूलनायक है। १९५६ में हितवल्लभगणि के उपदेश से बीकानेर के संघकी ओरसे इसका जीणोंद्धार हुआ था। कुछ वर्ष पूर्व इस मन्दिर उपाश्रय और कुण्डका जीर्णोद्धार बीकानेर संघने पुनः करवाया है। डूंगरगढ़ यह उपर्युक्त रेलवे लाइन का छठा स्टेशन है। बीकानेर से ४६ मील है । स्टेशन से १ मील दूर शहर में ओसवालों के ४० घर हैं। मन्दिर का प्रबन्ध स्थानीय पंचायती के हाथमें है। श्री पार्श्वनाथजी का मन्दिर यह मन्दिर ऊँचा बना हुआ है। इसके निर्माणकाल का कोई पता नहीं । मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी की लघु प्रतिमा है। विगा ___ यह भी उपर्यक्त रेलवे लाइन का ७ वां स्टेशन तथा डूंगरगढ़ से ८ मील है। यहाँ ओसवालों के ३ घर हैं। * दायय सुख देहरौनगर सखरै नापासरं । मां है मोटे मंडाण जागती मूरति जिनवर ॥ पासैहिज पौसाल साधतिण बहुसुख पावै। भल श्रावक भावीक दीपता चढ़ते दावै ॥ अचलेश सेठ हुवो अमर, जिणे सुत पंच जनम्मिया। जीतव्व धन्न रघुपति जियां, कलिनामा अविचल किया ॥ १ ॥ "Aho Shrut Gyanam
SR No.009684
Book TitleBikaner Jain Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size22 MB
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