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________________ प्रस्तावना-परिशिष्ट (१) वृहत् ज्ञानभंडार व धर्मशाला की वसीहत श्री जैन श्री संघ श्वेताम्बरी आम्नाय से श्री बड़ा उपासरा भट्टारकगच्छ के आचार्यश्री जिनकीर्तिसूरिजी महाराज के विजय राज्य में उपाध्याय श्री हितवल्लभ गणि अपर नाम हिमतूजी रा धर्मलाभ बंचना तथा श्री बड़े उपासरे में श्री ज्ञानभंडार १ श्री जिनहर्षसरि २ श्री दानशेखरजी ३ महिमाभक्ति ४ दानसागर ५ अभयसिंह ६ भुवनभक्ति नाम सु किया गया है ते में घणौसौक सामान पुस्तकां वा ज्ञान उपगरणम् हारी तरफ सुं भंडार किया गया है तेरी बी दूजो पुस्तकों वगैरा वा चांदी सोने तांबै पीतल री जिनस्यां वा कपड़ो लकड़ी वगैरह री जिनस्यां है तेरी तपसील ज्ञानभंडार री बही में मंडी है वा भंडार में मौजूद है इण तमाम रो मालक श्री संघ है । निगरानी अर्थात् देख रेख म्हारी है और जिस तरह सुं इण रौ बन्दोवस्त करणौ अबै तई ठीक समझ्यो मैं को अब कई दिन सुं म्हारो शरीर बिमार रहवै छै और शरीर रो कइ भरोसौ छै नहीं तैसु मैं नीचे लिखी बातां इयै बाबत वसीहत करू हूं के मने सौ बरस पूग्यां सुं श्री संघ ज्ञानभंडार की देख रेख निगरानी इतरा आदमियां सुं करता रहै १ पन्नालालजी कोठारी २ गिरधरदास हाकम कोठारी ३ जवानमल नाहटा ४ दानमल नाहटा ५ ईसरदास चोपड़ा कोठारी, ६ सदाराम गोलछा ७ रेवामल सावणसुखा। इस श्रावका नै भंडार री देखभाल करणी हुसी और जो कायदौ ज्ञानभंडार रो बणाय वही ज्ञानभंडार में पहेला सुं मंडाई हुई है तिके मुजब श्री संघ देख रेख पूरी राखै। और इण सात आदमियां माह सुं कोई श्रावग काम ज्ञानभंडार रे लायक न हुवै तो श्री संघ सलाह कर दूजो साधर्मी श्रावक बेरी जगह मुकर्रर कर देवो और ज्ञानभंडार री कूची वा समान विसू नाई रे तालकै छै सो इयै विस्सू खवास नै पुस्तक वा भंडार री साल संभाल याने चाकरी पर राख्यो जावे वा सुक्खे सेवग सुं भाइयां रे तालुके रो काम लियो जावै। जो रुपिया ज्ञानभंडार मांयजी है मकसुदावाद में तेरी व्याज री उपज सुं मास १ रुपिया ६ वीस्सु ने वा मास १ रु० २) सुक्खे सेवग नै सर्व मास १ रुपया ८) अखरे आठ दरीजता रहणा चहीजे जमा खर्च सरब ज्ञानभंडार री बही में हुवतो रहणौ चईजे बाकी ब्याज वधतो आसी वा दूजी पैदा हुसी तिका भंडार री बही में जमा हुंता रेहसी और इण आदमीयां मांसु मोई काम लायक न हुसी तो श्री संघ नै अलाहदा करने का अख्तियार है। और उपासरो न० १ रांगड़ी में है पं० श्रीचन्दजी खनै आथूणमुखो श्री जैन साधर्मीशाला वास्ते श्री संघ खरीद को तैरी मौखाई रौ कागद सं १६५७ चैत बदी १३ रो हमारे नाम सुं करायो तहसील सदर में है तसदीक करायो है तिको भी श्री संघ रै रहसी तिका सिर्फ साधर्मीशाला बाबत ही काम में लाया जासी जात्री वगेरा आसी तिका इणां में ठहरसी और इण साधर्मीशाला री निगराणी भी उपरमंड्या श्रावक करता रहसी और इण रे तालकै रो काम खवास विस्तू व सेवग सुखो करतो रहसी। ऊपर लिखी तनखा में ही और रु० १०००) हमारे हस्तू साधर्मीशाला री बही में जमा है जो ए रुपीया हमारो शरीर कायम रहै तरै सो हमे "Aho Shrut.Gyanam"
SR No.009684
Book TitleBikaner Jain Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size22 MB
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