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________________ [ १०८ ] तजबीज कराय हमारे प्रशिष्य रतनलाल के लिए कहीं जमा करा देंगे नहीं तो श्री संघ पीछे से इस रु० १०००) की बंदोवस्त करके मकसूदाबाद मोतीचंदजी बनेचंदजी व रायमेघराजजी बहादुर जालिमचंदजीके अठै आधा-आधा जमा कर देवा और ब्याज आवै सो रतनलाल को दिया जावे अठै जमा रहवे जबतक साधर्मीशाला रे गुंभाररी आमदानी वगैरह सुं मास १२ सुं रु० ६०) तक रतनलाल नै दे दिया जाया करै और रु० २००) मकसूदावाद से हमारा आवेगा वो टीपों की बायत है सोइ आणे पर साधारण खाते में जमा किया जावै ज्ञानभंडार री बही में और जब टीप वाला आवै तो यै माय सुं दिया जावै नहीं तो ज्ञानभंडार में रहसी व रु० १००) अन्दाज शुभ खाते जुदा है तिके भी ज्ञानभंडार री बही में शुभ खाते जमा करा दी जावै और आ लिखापढ़ी वसीयत के तरीके पर श्रीसंघ ने हमा होश हुशियारी सुं कर दीनी छै हमारे शिष्य प्रशिष्य वगैरह कोई नै साधर्मीशाला व ज्ञानभंडार व रकम वगैरह बाबत किसी तरै रो तालक व दावी है नहीं हमने पहले से जुदा इणां नै कर दीना था कदास कोई चेला पुस्तक भंडार री देखण चाहै तो ज्ञानभंडार रै कायदे माफक जिस तरह और लोगांने देखणै सारू दी जावै है दे दिया जाया करै कदास कोई हमारे चेले वगैरह किसी तरै रो इये बाबत उजर करसी तो श्रीसंघ रो गुनहगार तथा हमारी आज्ञारों विराधक समज्यो जासी संवत् १६५८ मिती अषाढ़ सुदि ४ वार गुरु ता० १६ जून सन् १६०१ ई० क० केसरीचंद वेगाणी री हितवल्लभ महाराज रै होकम सुं लिखी द० उ० हितवल्लभ गणि रे केयां सुं कर दीना छै उणां रे हाथ सुं लिखीजे नहीं जिके सुं पं० वागमल मुनि री कलम द० पं० वागमलमुनि री ऊपर लिख्यो सो सही क० खुद द० रतनलाल उपर लिखियो सो सही-कलम खुद । साख १ पं० मोहनलाल मुनि री है पू० हितवल्लभजी रे केयां सुं क० खुद " अबीरचंद मुनि री " पं० रामलाल मुनिरी " नथमल मुनि री " पं० पुनमचंद री है कोठारी गिरधरलाल हाकमरा पन्नालाल कोठारी ईसरदास चोपड़ा कोठारी रेवामल सावणसुखा जवानमल नाटा दानमल नाहटा का छै क० संकरदान नाहटा द... सदाराम गोलछा ०. ५ "Aho Shrut.Gyanam"
SR No.009684
Book TitleBikaner Jain Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size22 MB
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