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________________ [१०६ ] ( २ ) श्रीजिनकृपाचन्द्रसूरि धर्मशाला व्यवस्था पत्र श्री वृहत्खरतर गच्छीय श्रीकीर्त्तिरत्नसूरि शाखायां उपाध्याय श्री अमृतसुन्दर गणि स्तच्छिष्य वाचक श्री जयकीर्त्तिजी गणिस्तच्छिष्य श्री प्रतापसौभाग्य मुनिस्तच्छिष्य पं० प्र० श्री सुमतिविशाल मुनिस्तच्छिष्म पं० प्र० समुद्रसोम मुनिस्तच्छिष्य पं० प्र० श्री युक्तिअमृत मुनिस्तेषामन्तेवासिना संविग्नपक्षीय क्रियाउद्धार कारकेण जैन भिक्षना पं० प्र० कृपाचन्द्र मुनिना पं० तिलोक चंद्रादि शिष्य प्रशिष्य समन्वितेन इयं नवीन धर्मशाला स्थापिता आत्मीय सत्ता व्यावृत्य संघ सात्कृता संघस्य स्वाधीना कृता श्री जिनकीर्त्तिसूरि विजयराज्ये । इसका अधिकारी संघ है रेख देख संघ रखेगा व्यवस्थापत्र नीचे लिखा हैः द० पं० कृपाचंद्र मुनिका द० तिलोकमुनि सही २ । सं० १६४५ मि० ज्ये० सु० ५ दिने हमने श्री नागपुर में क्रियाउद्धार कर विचरते ४६ साल बीकानेर चतुर्मासा किया तब संभालने के लिए कह दिया था अब इसकी संभाल मर्यादा माफक रखनी होगी विशेष कार्य धर्म सम्बन्धी हमकुं अथवा हमारे शिष्य-प्रशिष्यादि योग्यवर्ग कुं प्रश्नपूर्वक करना होगा । उसके उपदेश माफक कार्य होगा। इसमें उजर कोई नहीं करेगा ज्यादा शुभम् । ५० खुद व्यवस्थापत्र नवी धर्मशाला खरतरगच्छ धर्मशाला सं० १६५७ मित्ती ज्येष्ठ सुदि १० बार बृहस्पतिवार दिन मुकर्रर हुयोड़ा अगर मैं आनाथा सं० १६४५ में कलयत हो गई थी उसकी व्यवस्था धर्मशाला संवेगपक्षी सर्वगच्छीय श्रावक श्राविकण्यां के व्याख्यान पड़िकमणा धर्म करणी करने के वास्ते है सो करेगा तथा सर्वगच्छ का संवेगी साधु तथा साध्वी कंचनकामनी का त्यागी विहारी नवकल्प विहार करनेवाला पंचमहाव्रत पालनेवाला इसमें उतरेगा और शिथिलाचारी नहीं उतरेगा। शुभार्थ आचरण करनेवाली नारियें वो मुनिराज के वास्ते यह स्थान है । तथा श्रावक श्रावणी प्रभात तथा संध्या दोनों वखत धर्मकृत्य नित्य करेगा। दोनों वखत धर्मशाला खुलेगा इसमें हरज होगा नहीं तथा उपासरो १ हनुमानजी वालो इस धर्मशाला तालके है तथा उपासरो एक धर्मशाला के सामने है गुरुजी महाराज सांवतेजीरो इनमें पांती २ धर्मशाला रे ताल है बरसाली तथा छोटी साल दमदमा तथा मालियौ वगैरह दो पांती है सो धर्मशाला री पांतीमें छै अनोपचंद तालुके छै इण उपासरे में कोई कृपाचन्द्रजी महाराज के संघाड़े का वृद्ध तथा ग्लान वगैरह विहार नहीं कर सके जिके हरेक साधु क्रिया करने के वास्ते तथा महाराज श्री संततिवाले नरम गरम के रैणेके बाबत औ उपासरो है । देख-देख धर्मशालारी है । कदास सामलै उपासर में कोई साधु कै रैणे में कोई तरह की असमाधि मालूम हुवे तो हनुमानजीवाले उपासरै में रहसी तथा धर्मशाला में साध्वी पहले उतरी है। पीछे साधु आवै तो साधुवों का कम ठाणे हुवे तो साधुवां रो सामलै उपासरे में अपसवाड़लै उपासरे में निर्वाह होता रहेगा और साधु नहीं धर्मशाला में उतरे कदास साधु कम ठाणे हुवै साध्वी बहुत गण हुवै तो साधु सामलै तथा पसवालै उपासरे में रहेगा, वखाण इधर सालमें आकै वांचेगा । "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009684
Book TitleBikaner Jain Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size22 MB
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