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________________ । ११० ] और गोगे दरवाजे बाहर श्री गौडीजी के सामने मंदिरजी संखेश्वरपार्श्वनाथजी रौछै तैरी देख रेख नवी धर्मशालावाला राखसी और मंदिरजी रे पसवाड़े उगूणी तरफ बगेची छे से में साल १ नारायणजी महाराज री वा कुंडी १ छै और बगीची रा वारणा उतराद सामौ छै तिका बगीची धर्मशाला तालकै रहसी तथा नाल रै दादेजीमें साल खड़ड दरवाजै रे चिपती बड़ता नै जीवण पास बड़ोड़ी साल में पांती २ में दिखणादैकोठे तथा बीचलौ कोठो वगेरह धर्मशाला रा श्रावक देख रेख राखसी तथा कीर्तिरत्नसूरि शाखा वाला का हक धर्मशालावाला श्रीसंघ देखसी निगरानी राखसी तथा इस धर्मशाला में पुस्तक तथा ज्ञान उपगरण तथा साधु लोग उपगरण पासरा डांडा वगैरह तथा औषध वगैरह बहुत चीज धर्मशाला में हाजर है और जो हाजर नहीं है सो एकठा रफते रफते कीवी जावेगी तथा पुस्तक वगैरे के कोठारांकी कुंची ४ आदमी के ऊपर रहेगी कुंची १ सागुमान कुंची १ सावणसुखा पूनमचंद कुंची १ नाहटा माणकचंद कंची १ सेठिया मेघराज तथा ५ आदमी इकट्ठा होनेसे कोठा खुलेगा १ आदमी खोलने पावै नहीं तथा पुस्तक बांचनै वगैरह के वास्ते संवेगी साधु तथा लिखा पढ़ा खातरवाला गुरां नै आधीपै अन्दाज दी जावेगी और को नहीं दी जावेगी आनेसे आगे को दी जावेगी। आखी पड़त नहीं दी जावेगी विशेष कारण के वास्ते देनेमें हरज नहीं तथा ज्ञान उपगरण किसी को नहीं दिया जावेगा तथा पातरा वगैरह उपगरण साधु निरपेक्षी आत्मार्थी त्यागी संवेगी को पातरा नग १ तथा २ दिया जावेगा जिस साधुके भगत श्रावक वगैरह बहुत हुवै वै श्रावक लोग वहरावै साधुको पातरा बहराना आपरी तरफसु चावं तो धर्मशाला सुं पातरा वगैरह उपगरण लेकर साधु नै बहरावेगा उनकी निछरावल धर्मशाला में उपगरण खाते जमा करावेगा उस द्रव्यका उपगरण पातरा वगैरह धर्मशाला रे सिलक में खरीद कर रखा जावेगा और जो श्रावक वहराने वाला नहीं हुवे तो ऊपर लिखे मुजब पातरा साधुको दिया जावेगा। औषध्यां संवेगी साध उपर लिखे मुजब के उपयोग बाबत है सो दी जावेगी तथा श्रावक वगैरह नैकीमत सुं दी जावेगा तथा रकम भावै निगदी वगैरह की देख रेख संघ अच्छी तरह सुं रखेगा। इसमें गलती करेगा नहीं। नगदी जो रुपया है उसमें 1) आठ आना धर्मशाला खाते- छव आना ज्ञान खाते तथा- दो आना मंदिरजी खाते इस रकम को व्याज सूद धर्मशाला तथा ज्ञान तथा मन्दिरजी खाते लागसी ऊपर लिखे हिसाब मुजब लागसी इसमें हरज करेगा नहीं। तथा धर्मशालाके अधिकारी श्रावक वगैरह इसकी देख रेख पूरी-पूरी राखसी मुकर्रर किया भया श्रावक वगैरह में जिसकी गलती मालूम हुवेगा वा विद्यमान नहीं रहेगा उसके ठिकाणे दूसरा मुकर्रर किया जायगा पक्षपात छोड़के धर्म बुद्धिसे इस लोक परलोकके हितके वास्ते परमार्थ को काम समझ के संघके वेयावच्च के माफक धर्मशाला तथा ज्ञानकी वेयावच्च को फल तीर्थंकर नाम कर्मको बन्ध इसीमें समझ के पूरा पूरा उद्योग रखेगा सो कल्याण का भागी होगा तथा बारह मासका पर्व आराधन विधियुक्त विधि करके किया जायगा। चैत्रकी ओली आखातीज, आषाढ़ चौमासा, पजूषण, आसोज की ओली, दीवाली, ज्ञान पंचमी, काती चौमासा, काती पूनम मौन इग्यारस, पोस दशमी, मेरू तेरस, फागुण चौमासा इत्यादि पर्वमें आपणे आपणै पर्वका कत्र्तव्य विधि माफक किया जायगा। "Aho Shrut.Gyanam"
SR No.009684
Book TitleBikaner Jain Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size22 MB
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