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________________ [ ४३ ] कराने का शिलालेख लगा है। इसी समय के प्रतिष्ठित हाथीरामजी के चरण भी स्थापित हैं। इसका प्रबन्ध बीकानेर के उ० श्री जयचन्द्रजी यतिके शिष्य के हस्तगत है। नाल यह गाँव बीकानेर से ८ मील दूरी पर है। कोलायत रेलवे लाइन का दूसरा स्टेशन है। गांव स्टेशन से लगभग १ मील दूर है, बीकानेर से प्रतिदिन मोटर-बस भी जाती है। पुराने स्तवनों में इसका नाम गढाला लिखा है। यहाँ अभी २३ घर ओसवालों के हैं। यहाँ की जलवायु अच्छी है। यहां दो जैन मन्दिर और श्री जिनकुशलसूरिजी का प्राचीन स्थान है। श्री जिनकुशलसूरिजी का मन्दिर कर्मचन्द्र मंत्रि वंश प्रबन्ध के अनुसार मंत्री बरसिंहजी देरावर यात्रा के लिए जाते हुये यहाँ ठहरे। उन्हें आगे जाने में असमर्थ देखकर रातके समय गुरुदेव ने स्वप्न में दर्शन देकर यहीं उनकी यात्रा सफल करदी थी। अतः उन्होंने यहां गुरुदेव का स्थान बनवाकर घरण स्थापित किये। ये चरण बड़े चमत्कारी हैं, दूर होने पर भी कई लोग प्रति सोमवार को दर्शन पूजन करने जाते हैं। यहां कार्तिकसुदि १५ को मेला लगता है और फालगुन वदी १५ को भी पूजादि पढ़ाई जाती है। इसका जीर्णोद्धार सं० १६६६ में श्रीयुक्त भरूदानजी हाकिम कोठारी ने बहुत सुन्दर रूप में करवाया है। श्री जिनभक्तिसूरिजी और पुण्यशीलकृत स्तवनों में उल्लेख है कि बीकानेर के महाराजा श्री सुजाणसिंहजी की स्वर्गीय गुरुदेव के शत्रुओं के भय से रक्षा की थी । सं० १८७३ के वैशाखसुदि १ को महाराजा सूरतसिंहजी ने दादासाहब की भक्ति में ७५० बीघा जमीन भेंट की थी जिसका ताम्रशासन बड़े उपाश्रय में विद्यमान है। दादासाहब के मन्दिर के पास एक चौकी पर चौमुख स्तूप है जिसमें उ. सकलचन्द्रजी और समयसुन्दरजी के चरण प्रतिष्ठित हैं। अन्य शालाओं में बहुत से चरण व कीर्तिरत्नसरि जी के स्तूप आदि हैं। पास ही खरतराचार्य शाखा की कोटड़ी में इस शाखा के श्रीपूज्यादिके चरणादि हैं। श्री पद्मप्रभुजी का मन्दिर यह जिनालय गुरु मन्दिर के अहाते में है। इसकी प्रतिष्ठा पट्टाबलीमें सं० १६१६ वैशाख बदि ६ को श्री जिनसौभाग्यसूरिजी द्वारा होना लिखा है। श्री मुनि सुव्रतजी का मन्दिर यह गुरु मंदिर के गढ़ से बाहर है। इसका निर्माण काल अज्ञात है। मूलनायकजी सं०१६०८ में श्री जिनहेमसूरिजी द्वारा प्रतिष्ठित हैं। श्री जिनचारित्रसूरि स्मृति मन्दिर श्री जिनकुशलसूरिजी के मंदिर के बाहर दाहिनी ओर श्री दीपचंदजी गोलछा ने यह मंदिर बनवा कर श्रीपूज्य श्री जिनचारित्रसूरिजी की मूर्ति प्रतिष्ठित करवायी है। "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009684
Book TitleBikaner Jain Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size22 MB
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