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सं० १६४४ की शत्रुंजय चैत्यपरिपाटी में गुणविनय गणि ने लिखा है कि संघने जेठ सुदि ६ को ओसियां पहुंच कर मेठ सुदि १३ को रोहगाम में श्री जिनदत्तसूरिजी को बन्दन किया फिर जेठ सुदि १५ को भीदासर (वर्तमान भीनासर) में स्वधर्मीवात्सल्यादि कर संघ अपने घर-बीकानेर लौटा। ओसियां से ७ दिन और भीनासर से २ दिन के रास्ते का रोहगाम जिसमें श्री जिनदत्त सूरिजी का स्थान था हमारे खयाल से उपरोक्त उदरामसर के निकटवर्ती दादावाड़ी वाला स्थान ही रोहमाम होना चाहिए ।
देशनोक
यह ग्राम बीकानेर से १६ मील दूरी पर है। बीकानेरसे मेड़ता रोड जानेवाली रेलवे लाइन का यह दूसरा स्टेशन है। यहाँ ओसवालों के ६०० घर हैं । यहाँ राजमान्य करणी माता का प्रसिद्ध स्थान है । यहाँ तीन जैन मन्दिर और एक दादावाड़ी है। परिचय इस प्रकार है। श्री संभवनाथजी का मन्दिर
यह मन्दिर आंचलियों के वासमें है । शिलापट्ट के लेख में इसकी प्रतिष्ठा सं० १८६१ माघ शुक्ला ५ को क्षमाकल्याणजी महाराज ने की लिखा है । वा० श्री कुशलकल्याण गणि के उपदेश से संघ ने इस मन्दिर को बनवाया था। शिलालेख में “पार्श्वनाथ देवगृहकारितं " लिखा है पर इसके मूलनायक सं० १८६ वैशाख शुक्ला ७ को जिनहर्षसूरि प्रतिष्ठित श्री संभवनाथ भगवानकी प्रतिमा है । उ८ श्री क्षमाकल्याणजी कृत स्तवनमें भी संभवनाथजी का नाम है । श्री शांतिनाथजी का मंदिर
यह मन्दिर भूके वास में है। सं० १८६१ माघ सुदि ५ को श्री अभयविशालजी के उपदेश के श्री संघ के शाला बनवाने का उल्लेख है। क्षमाकल्याण जी के स्तवन में देशनोक के सुविधिनाथ मन्दिर की प्रतिष्ठा सं० १८७१ माघ सुदि ५ को होने का उल्लेख है । देशनोक में श्री सुविधिनाथजी का अन्य कोई मंदिर नहीं है अतः संभव है इस मंदिर के मूलनायकजी पीछे से परिवर्तित किये गये हैं ।
श्री केसरियाजी का मंदिर
यह मन्दिर astra के उपाश्रय के पास है । यह मन्दिर थोड़े वर्ष पूर्व प्रतिष्ठित
हुआ है।
दादावाड़ी
यह स्थान स्टेशन के मार्ग में है। इसे सं० १६६५ ज्ये० सुदि १३ को उपाध्याय मोहनलालजीने स्थापित एवंप्रतिष्ठित किया । इसमें श्री अभयदेवसूरिजी, श्री जिनदत्तसूरिजी, मणिधारी श्री जिनचन्द्रसूरिजी एवं श्री जिनकुशलसूरिजी के चरण हैं। दादावाड़ी की शाला मैं सं० १८६४ आषाढसुदि १ को सुगुणप्रमोदजी के पीछे बिनयचंद्र और मनसुख के इसे
"Aho Shrut Gyanam"