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________________ [ २६ ] शिलालेखोंके अनुसार नाहटोंकी गुवाड़ में श्री आदिनाथजीके मन्दिरके अन्तर्गत श्री पार्श्वनाथजी सं० १८२६, नाहटोंकी गुवाड़में श्रीसुपार्श्वनाथजीका मन्दिर सं० १८७१, नाहटोंकी बगीची में पार्श्वनाथजीकी गुफा सं० १८७२ से पूर्व कोचरोंकी गुवाड़में पार्श्वनाथजी सं० १८८१, श्री सीमंधर स्वामी ( भांडासरजीके गढमें ) सं० १८८७, गौड़ी पार्श्वनाथजीके अन्तर्गत सम्मेतशिखर मन्दिर सं० १८८६. बेगानियोंकी गुवाड़के श्री चंद्रप्रभुजीका सं० १८६३, कोचरोंकी गुवाड़के श्री आदिनाथजी सं० १८६३, नाहटोंकी गुवाड़के श्री शान्तिनाथजी सं० १८६७ में प्रतिष्ठित हुए। अन्य मन्दिर भी जिनका निर्माणकाल शिलालेखादि प्रमाणोंके अभावमें अनिश्चित है, इसी शताब्दीमें बने हैं। २० वीं शताब्दीमें भी यह क्रम जारी रहा और सं० १९०५ में बैदोंके महावीरजीमें संखेश्वर पार्श्वनाथजीकी देहरी औरइसी संवत्में इसके पासकी देहरीमें पंचकल्याणक, सिद्धचक्र व गिरनारजीके पट्टादि प्रतिष्ठा, सं :६२३ में गौड़ी पार्श्वनाथजीके अन्तर्गत आदिनाथजी, सं० १९२४ में सेटूजी कारित श्री संखेश्वर पार्श्वनाथ मन्दिर, सं० १६३१ में रांगड़ीके चौकमें श्री कुथुनाथजीका मन्दिर, सं० १९६४ में श्री विमलनाथजीका मन्दिर (कोचरोंमें ) प्रतिष्ठित हुआ। सं० १६६३ में दूगड़ोंकी बगीचीका गुरु मन्दिर, सं० १९६७ महो० रामलालजीका गुरुमन्दिर प्रतिष्ठित हुआ। सं० १९८७ में रेलदादाजीका जीर्णोद्धार हुआ।। उपाश्रयादिके अन्य कई मन्दिर भी इसी शताब्दीमें प्रतिष्ठित हुए हैं पर उनके शिलालेखादि न मिलनेसे निश्चित समय नहीं कहा जा सकता। सं० २००१ वै० सुदी ६ को कोचरोंकी बगीची पार्श्वजिनालय और गुरुमन्दिरकी प्रतिष्ठा हुई है। बोरोंकी सेरीमें भी श्री महावीर स्वामी एक नया मन्दिर निर्माण हुआ जिसकी प्रतिष्ठा सं० २००२ मार्गशीर्ष कृष्णा १० को हुई। अब उपर्युक्त मन्दिरोंका पृथक्-पृथक रूपसे संक्षिप्त परिचय नीचे दिया जा रहा है श्री चिन्तामणिजीका मन्दिर यह मन्दिर बाजारके मध्यमें कन्दोइयोंके दुकानों के पास है। जैसा कि पूर्व कहा जा चुका है, बीकानेर दुर्ग के साथ-साथ इसका शिलान्यास होकर सं० १५६१ के आषाढ़ शुक्ला ६ रविवार को पूर्ण हुआ। शिलालेखसे विदित होता है कि इसे श्री संघने राव श्रीबीकाजीके राज्यमें बनवाया था। मूलनायक श्री आदिनाथ मुख्य चतुर्विशति प्रतिमा सं० १३८० में श्री जिनकुशलसूरि प्रतिष्ठित और नवलखा गोत्रीय सा० नेमिचंद्र कारित, जो कि पहले मंडोवरमें मूलनायक रूपमें थी, यहाँ प्रतिष्ठितको गई। चतुर्विशति प्रतिमा होनेके कारण इस मन्दिरका नाम "चौवीसटाजी" प्रसिद्ध हुआ। सतरहवीं शतीमें इसका नाम श्रीसार एवं एक अन्य कविने “चउवीसटा चिन्तामणि" लिखा है। १८ वीं शताब्दीके चैत्य परिपाटी स्तवनोंमें "चडवीसटाजी" लिखा है किन्तु अब वह नाम विस्मृत होकर श्री चिन्तामणिजीके नामसे ही इस मन्दिरकी प्रसिद्धि है, जब कि "चिन्तामणि" विशेषण साधारणतया श्री पार्श्वनाथ भगवानके सम्बोधन में ही प्रयुक्त होता है। "Aho Shrut.Gyanam
SR No.009684
Book TitleBikaner Jain Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size22 MB
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