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________________ [ २ ] मैनाओं का जोड़ा एवं निम्नभाग में एक-एक डफ-वीणा धारिणी और एक-एक नर्तकी अवस्थित है। तदनन्तर चतुर्दश महास्वप्न प्रारंम होते हैं। सप्तशुण्डधारी श्वेत गजराज, वृषभ, सिंह, गजशुण्डस्थित कलशाभिषिक्त कमलासनविराजित लक्ष्मी देवी, पुष्पमाला, चन्द्र, (हरिणसह) सूर्य, पंचवर्णी सिंह-चिह्नांकित ध्वज, कलश, हंस-कमल-वृक्ष पहाड़ादि एवं मध्य में संगमर्मर की छतरी युक्त सरोवर, सुन्दर घाट वाला क्षीरसमुद्र जिसके मध्य में तैरता हुआ वाहन, आकाश मण्डल में चलता हुआ विमान, रत्न राशि, निर्धूम अग्नि के चित्र हैं। ये चतुर्दश स्वप्न देखती हुई भगवान् महावीरकी माता सुख शय्या सुसुप्त चित्रित हैं जिनके सिरहाने चामरधारिणी, मध्य में पंखा-धारिणी, पैरों के पास कलश-धारिणो परिचारिकात्रय खड़ी हैं। तदनन्तर अलग महल में राजा सिद्धार्थ को अपने छड़ी-धारी सेवक को स्वप्न-फल पाठकों के निमन्त्रण की आज्ञा देते हुए दिखाया है। यहां तक की लम्बाई २० फुट है। इसके पश्चात समवशरण में अशोक वृक्ष के नीचे सिंहासन पर विराजित तीर्थंकर भगवान का चित्र है जिन के उभय पक्षमें तीनगढ़ और तन्मध्यवर्ती द्वादश परिषदायें अत्यन्त सुन्दरता से चित्रित हैं इसके बाद अष्ट मंगलीक के आठ चित्र हैं:-स्वस्तिक, श्रीवत्स, नंद्यावर्त्त, मंगल-कलश, भद्रासन, मत्स्य-युगल, दर्पण। तदनतर हंसवाहिनी सरस्वती का चित्र है जिसके सन्मुख हाथ जोड़े पुरुष खड़ा है। दादासाहब श्री जिनदत्तसूरि और श्री जिनकुशलसूरजी के दो मन्दिरों के चित्र हैं जिन में दादासाहब के चरण-पादुके विराजमान हैं। समवशरण से यहां तक ११॥ फुट लम्बाई है ! इस के पश्चात बीकानेर के चित्र प्रारम्भ होते हैं । उभय पक्ष में बेल पत्तियां की हुई हैं। पहला चित्र बड़ा उपासरा का है जिसमें कतिपय यति एवं श्रावक श्राविकाएं खड़े हैं। यह आज जिस स्थिति में है सौ वर्ष पूर्व भी इसी अवस्था में था। श्रीमद् ज्ञानसारजी के समय में बना दीवानखाना-बारसाली, छत, चौक तीनों ओर शालाएं स्तंभादि युक्त एवं वस्र चंदोंवे इत्यादि सुशोभित शालाएं तन्मध्यवर्ती सिंहासन भी वही है जो आजकल। ऊपर तल्ले में श्री पूज्यजी वाले कमरे एवं यति श्रावकादि खड़े दिखाए हैं पृष्ठ भागमें दृश्यमान शिखर संभवतः आचार्य शाखाके उपाश्रय या शान्तिनाथ जिनालय का दृश्य होगा। बड़े उपाश्रय के सन्मुख भाग में डुंगराणी बोथरों की प्रोल ( जो सूरिजी के स्वागत में बनी ) दाहिनी ओर “सेवक माधै रो घर" "रंगरेज कमाल री दुकान" बायें तरफ गाडिया लुहार, गोदे री चौकी, डोलर-हीडा, पं प्र० वखतमल जी री उपासरो, सेवक तारै रो घर, दोनों ओर मकानात हैं जिनमें पुरुष स्त्रिये खड़ी हैं तदनन्तर रास्ते के दाहिनी ओर "रताणी बोथरांरी तथा मालुवा री चौकी" है जिसके आगे वंशस्थित नटुए नृत्य दिखाते हैं, फिर कई मकानों की पंक्तियां है फिर श्री चिन्तामणिजी का मन्दिर बड़े ही सुन्दर ढंगसे चित्रित है। उभयपक्ष में हाथी, दीवानखाना, नौबतखाना, इत्यादि बड़ी सादृशता से अंकृत किए हैं। मंदिर के शिखर-गुंबज मूल प्रतिमा इत्यादि एवं शान्तिनाथजी के मन्दिर का भी सुन्दर चित्र है जो इसी मन्दिर के गढ में अवस्थित है। इसके सन्मुख सुरिजीके स्वागतार्थ निर्मित प्रतोलीद्वार, बाये ओर "मथेरण को गली' तंबोली गिरधारीकी "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009684
Book TitleBikaner Jain Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size22 MB
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