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________________ [ ११ ] बांचे जाने का निर्देश है। सं० १८०१ के मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी को लेख तैयार हुआ व भेजा गया है। उपयुक्त पूरा लेख संस्कृत भाषा में है। इसके बाद दो सवैये और दो दोहे हिंदी में हैं। जिसमें जिनभक्तिसूरिजी का गुण वर्णन करते हुए उनके प्रताप बढ़ने का आशीर्वाद दिया गया है। दूसरे सवैये में उनके नन्दलाल द्वारा कहे जाने का उल्लेख है। विज्ञप्ति लेख टिप्पणाकार है, उसके मुख पृष्ठ पर “वीनती श्रीजिनभक्तिसूरिजी महाराज ने चित्रों समेत" लिखा है। दूसरा विज्ञप्तिपत्र बीकानेर से सं० १८६८ में आजीमगंज-विराजित खरतरगच्छ नायक श्रीजिनसौभाग्यसूरिजी को आमन्त्रणार्थ भेजा गया था। प्रस्तुत विज्ञप्रिपत्र कला और इतिहास की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है और इसकी लम्बाई १७ फुट है और चौड़ाई ११ इच है। दूसरे सभी विज्ञप्तिपत्रों से इसकी लम्बाई अधिक और कला की दृष्टि से चित्रों का सौन्दर्य, रंग की ताजगी, भौगोलिक महत्व भी कम नहीं है। ११३ वर्ष प्राचीन होने पर भी आज का सा बना हुआ है एवं नीचे बढ़िया वनपट चिपका एवं ऊपर लाल वस्त्र लगा कर जन्म-पत्री की तरह गोल लपेटकर उसी समय की बनी सिल्क की थैली में डालकर जिसरूप में भेजा गया था उसी रूपमें विद्यमान है। इस समय यह विज्ञप्तिलेख बीकानेर के बड़े उपाश्रय के शानभण्डार में सुरक्षित है। ___ इस विज्ञप्तिपत्र में अंकित चित्रावली हमें १०० वर्ष पूर्व के बीकानेर की अवस्थिति पर अच्छी जानकारी देती है । बड़े उपाश्रय से लगाकर शीतला दरवाजे तक दिए गए गलियों, रास्तों, मंदिरों, दुकानों आदि के चित्रों से कुछ परिवर्तन हो जाने पर भी इसे आज काफी प्रामाणिक माना जाता है। श्रीपूज्यों के हबंधी आदि के मामलों में कई बार इसके निर्देश स्वीकृत हुए हैं। इस विज्ञप्तिपत्र में शीतला दरवाजे को लक्ष्मी-पोल लिखा है एवं राजमण्डी जहां निर्देश की है वहां जगातमण्डी लगलग ३५ वर्ष पूर्व थी एवं धानमण्डी, साग सब्जी इत्यादि कई स्थानों में भी पर्याप्त परिवर्तन हो गया है। विज्ञप्तिलेख में सम्मेतशिखर यात्रादि के उल्लेख महत्त्वपूर्ण हैं। सहियों में श्रावकों के नाम विशेष नहीं पर फिर भी गोत्रों के नाम खरतर गच्छ की व्यापकता के स्पष्ट उदाहरण हैं। इसकी चित्रकला अत्यन्त सुन्दर और चित्ताकर्षक है। बड़ा उपासरा, भांडासरजी, चिन्तामणिजी आदि के चित्र बड़े रमणीक हुए हैं। आचार्य श्री जिनसौभाग्यसूरिजी का चित्र दो वार आया है जो उनकी विद्यमानता में बना होने से ऐतिहासिक दृष्टि से मूल्यवान है। सर्व प्रथम प्लेट की तरह चौडे गमले के ऊपर दोनों किनारे दो छोटे गमलों पर आमफल और मध्यवर्ती घटाकार गमले से निकली हुई फूलपत्तियां दिखायी हैं एवं इस के चारों और पुष्पलता है। दूसरा चित्र मंगल-कलश का है जिसके उभय पक्ष में पुष्पलता एवं मुख पर पुष्प वृक्ष चित्रित हैं। तीसरे चित्र में एक विशाल चित्र है जिसके ऊपरी भागमें दो पक्षी बैठे हुए हैं एवं नीचे दाहिनी ओर नृत्य व बायें तरफ ढोलक बजाती हुई स्त्रियां खड़ी हैं छत्र के नीचे चामर युगल शोभायमान है। इसी प्रकार के दो चित्र और हैं जिनमें छत्रों के ऊपरी भाग में मयूर एवं "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009684
Book TitleBikaner Jain Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size22 MB
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