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________________ [ ७८ ] "सं० १६५६ वर्षे ज्येष्ठ सुदी द्वादशी दिने शनिवारे श्री संप्रामपुरे श्रीमानिसिंह विजयराज्ये खरतर गच्छे युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरि विजयराज्ये महामंत्रिणा कर्मचन्द्र ण श्रीसंघेनापि श्रीजिनकुशलसूरि पादुका कारितः प्रतिष्ठितं वाचनाचार्य श्रीयशकुशलैश्चसर्व संघस्य कल्याणास भवतु शुभं" इनके अतिरिक्त शत्रुजय पर बोथरा मन्त्री समरथ ने आदीश्वर बिम्ब बनवा के नेमिनाथ चौंरीके उपर प्रतिष्ठित कराया। उसकी प्रतिष्ठा युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिजी ने की थी। एवं सं० १८८२ फागुन बदि १० को वैद मगनीराम ने श्री आदिनाथ पादुका बनवा कर श्रीजिनहरेसूरिजी द्वारा खरतरवसही में प्रतिष्ठित की*। सं० १६०० में श्री सम्मेतशिखर तीर्थ पर बीकानेर संघ कारित जिन मन्दिर की प्रतिष्ठा श्रीजिनसौभाग्यसूरिजी ने अष्टाह्निका-महोत्सव पूर्वक की, ऐसा खरतरगच्छ पट्टावली में उल्लेख है। सं० १६:४ में शत्रुजय महातीर्थ पर विमलवसही ( मोटी टुंक ) के बाह्य मण्डपमें दादासाहब श्रीजिनदत्तसूरिजी, श्रीजिनकुशलसूरिजी और श्रीरत्नप्रभसूरिजी की छतरियां बीकानेर के श्रेष्ठिगोत्रीय वैद मुंहता सं० सोना पुत्र मन्ना, जगदास पुत्र ठाकुरसी के पुत्र सं० सांवल ने बनवाई और ज्येष्ठ सुदि ११ रविवार को नं० १-२ खरतर गच्छनायक युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिजी से और नं. ३ उपकेश गच्छाचार्य श्रीसिद्धसूरिजी द्वारा प्रतिष्ठित करवाई। जिनमें से एक लेख हमारे "युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरि" के वक्तव्य पृ० २६ में छपा है। बीकानेर के जैन-संघ की तपस्वियों की भक्ति, तपाराधना, सूत्र भक्ति एवं पौषधादि धार्मिक अनुष्ठानों में कितना अधिक अनुराग था इसका परिचय तत्कालीन पर्वृषणा समाचार पत्रों से ज्ञात होता है। हमारे संग्रह के ऐसे पत्रों में से उदाहरणार्थ दो पत्रों में से १ की पूरी नकल दूसरेका आवश्यक अंश यहाँ नद्ध,त किया जाता है। पाठकों को सहज ही इससे उस समय की जनसंख्या और उनकी धार्मिकता का अनुमान हो जायगा। ॥श्री:॥ स्वस्ति श्री आदिनाथो धृत चरण रथशशांति देवाधिदेवः। नेमि पार्श्वश्च वीरस्सकल भय हरो नष्दष्ट प्रचारः। एतापंचापि देवान्भविक भयरान्भूरि भावेन नत्त्वा । श्रेयोलेखं खिल सकल समाचार दानाय दक्षं ॥ १॥ श्रीमतो विक्रमपुरात् भट्टारक श्रीजिनचन्द्रसूरिवरा उ० श्री भावप्रमोद गणि उ० श्री विनयप्रमोद गणि वाचनाचार्य रूपहर्षगणि, वाचनाचार्य कल्याणहर्ष गणि पंडित साधुनिधान वाचनाचार्य क्षमालाभ गणि पं० विद्यालाभ पं० विनयलाभ पं० जयचन्द्र पं० कीर्तिसागर पं० उदयसागर पं० भावसागर पं० ज्ञानसागर पं० क्षमासमुद्र पं० भक्तिविमल पं० सुमतिविमल पं० दयासेन पं० मुनिसौभाग्य चिरं पद्मतिलक प्रमुख साधु २५ साध्वी २७ सत्परिकराः श्री नगर थट्टा नगरे श्री राजसभा श्रृंगारक श्री देवगुरु भक्तिकारक * शत्रुञ्जय के इन दोनों लेखों की नकल हमारे पास है। "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009684
Book TitleBikaner Jain Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size22 MB
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