SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ 10 इन पदोंके अर्थ भी स्पष्ट नहीं रहे। प्राचीन परम्परा के अनुसार सोने चांदी के वजार में जो सर्राफ के सदस्य होते थे वे ही श्रेष्ठी कहलाते थे। प्रत्येक नगर की सोनहटी या सराफे में उनकी संख्या नियत होती थी और विधिपूर्वक चुनाव के बाद ही वे लोग सर्राफे के सदस्य बनाए जाते थे। इन्हींको उत्तर भारत में महाजन कहने लगे। एक लेख में श्रेष्ठी आना के पुत्र नायक को व्यवहारिक लिखा गया है ( लेख 318) / इसकी संगति यही है कि पिता के बाद पुत्र को श्रेष्ठिपद प्राप्त नहीं हुआ और वह केवल व्यवहारिक अर्थात् रुपये के लेन-देन का काम ही करता रहा। इस प्रकार इन लेखों की सामग्री से कई मध्यकालीन संस्थाओं को नई आँख से देखने में सहायता मिलती है। काशी विश्वविद्यालय ज्येष्ठ शुक्ल 11, सं० 2012 / वासुदेवशरण "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009684
Book TitleBikaner Jain Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy