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________________ [ ८३ ] कल्पसूत्र के अतिरिक्त भगवतीसूत्र श्रवण का उत्सव भी जैन समाज में प्रसिद्ध है । मूल जैनागमों में यह सबसे बड़ा और गम्भीर आगम ग्रन्थ है। इसके सफल वाचक और रहस्य अवगाहक श्रोता थोड़े होनेके कारण इसकी वाचना का सुअवसर वर्षोंसे आता है । इस सूत्रको बहुमान के साथ सुना जाता है और इसकी भक्ति में मोतियों का स्वस्तिक, प्रतिदिन रौप्य मुद्रा, मुक्ता आदिकी भेंट व धूप दीपादि किया जाता है । इस सूत्र में ३६००० प्रश्न एवं उनके उत्तर आते हैं । प्रत्येक उत्तर - गोथमा ! नामके सम्बोधन के साथ १-१ मोती चढ़ाते हुए मंत्रीश्वर कर्मचन्द्र ने ३६००० मोतियोंकी भेंट पूर्वक युगप्रधान श्रीजिनचन्द्रसूरिजी से भगवतीसूत्र श्रवण किया था । उन मोतियों में से १६७०० मातियों का चन्द्रवा, ११६०० का पूठिया बनवाया गया अवशेष पूठा, ठत्रणी, साज, वीटांगणा इत्यादि में लगवाए गए पर अब वे पूठिया, चन्द्रवा आदि नहीं रहे। मुद्रण युगसे पूर्व जैन श्रावकोंने कल्पसूत्रादि ग्रन्थोंको बड़े सुन्दर सुवाच्य अक्षरों में सुवर्णाक्षरी, रौप्याक्षरी एवं कलापूर्ण चित्रों सह लिखाने में प्रचुर द्रव्य व्यय किया है। बीकानेर के श्रावकों ने भी इस भक्ति कार्यमें अपना सद् द्रव्य व्यय किया था जिनमें से मन्त्रीश्वर कर्मचन्द्र के लिखवाये 'हुए अत्यन्त मनोहर बेल बूटे एवं चित्रोंवाले कल्पसूत्र की प्रतिका थोड़े वर्ष पूर्व जयपुर में बिकने का सुना गया है। सुगनजी के उपाश्रय में स्वर्णाक्षरी कल्पसूत्र की प्रति बीकानेर के वैद करणीदान (गिरधर पुत्र ) के धर्मविशालजी के उपदेश से लिखवाई हुई एवं सं० १८६२ में क्षमा कल्याण जी के उपदेश से पारख जीतमल ने माता के साथ लिखवाई सचित्र कल्पसूत्रकी प्रति विद्यमान है । खोज करने पर अन्य भी विशिष्ट प्रतिएँ बीकानेर के श्रावकों के लिखवाई हुई पाई जा सकती हैं । वच्छावत वंशके विशेष धर्म-कृत्य वच्छावत वंश बीकानेर के ओसवालों में धर्म कार्यों में प्रारम्भ से ही सबसे आगे था । इस वंश कतिपय धर्म कार्योंका उल्लेख आगे किया जा चुका है अवशेष कार्योंका कर्मचन्द्र मंत्रि वंश प्रबन्ध के अनुसार संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है : : बीकानेर राज्यके स्थापक रावबीकाजी के साथ मंत्री वत्सराज आए थे, उन्होंने देरावर में सपरिवार कुशलसूरिजी के स्तूपकी यात्रा की । योगाके पुत्र पंचानन आदि की ओरसे कर्मचन्द्र वंश प्रबन्ध के निर्माण तक चौवीसटाजी के मन्दिर के ऊपर ध्वजारोपण हुआ करता था । मन्त्री वरसिंह ने दुष्काल के समय दीन और अनाथों के लिए दानशाला खोली । मन्त्री संग्रामसिंह ने याचकों को अन्न, वस्त्र, स्वर्ण इत्यादि देकर कीर्त्ति प्राप्त की। विद्याभिलाषी मुनियोंको न्यायशास्त्र वेत्ता विद्वानों से पढ़ाने में प्रचुर द्रव्य व्यय किया । इन्होंने दुर्भिक्ष के समय दानशाला भी खाली और माताकी पुण्य वृद्धि के लिए २४ वार चांदीके रुपयों की लाहण की। हाजीखा और इसनकुलीखां से सन्धि कर अपने राज्यके जैनमन्दिर व साधर्मियोंके साथ जनसाधारण की रक्षा "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009684
Book TitleBikaner Jain Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size22 MB
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