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मूलनायक श्री शीतलनाथजी सं० १०५८ में प्रतिष्ठित हैं। शासनदेवीकी मूर्त्तिपर सं० २०६५ का लेख है । मन्दिर बहुत सुदृढ़ विशाल, ऊँचे स्थानपर शिखरबद्ध बना हुआ है । बीकानेर राज्य के समस्त मंदिरों में यह प्राचीनतम है। हाल ही में यति पन्नालालजी की देखरेख में इसका जीर्णोद्धार हुआ है ।
दादावाड़ी
यह गांव से करीब १ मील दूर है। यहां दादा श्रीजिनदत्तसूरिजी के चरण सं० १८६८ में प्रतिष्ठित है । यति माणिक्यमूर्त्तिजी के चरण सं० १८२५ और गुणनंदन के पादुके सं० १६१४ में प्रतिष्ठित हैं । सं० १६५२ में प्रतिष्ठित श्रीजिनकुशलसूरि पादुका, सं० १७८० की श्री जिनसुखसूरि पादुका, सं १७०६ की सुखलाभकी और सं० १६७२ हेमधर्मगणिकी पादुकाएं यहीं पर थीं जो अभी शीतलनाथजी के मन्दिर की भ्रमती में रक्खी हुई हैं।
नौहर
यह सार्दूलपुर स्टेशन से हनुमानगढ़ जानेवाली रेलवे लाइनका स्टेशन है। रिणीके बाद प्राचीन जैन मन्दिरोंमें इसकी गणनाकी जाती है। यहां श्रीपार्श्वनाथजीका मन्दिर है जिनके शिलापट्ट पर सं० १०८४का लेख है । श्रीरत्ननिधानकृत स्तवन में सं० १६३२ में युगप्रधान श्री जिन चन्द्रसूरिजी महांकी यात्रा करनेका उल्लेख है ।
भादरा
यह भी नौहरसे २५ मील दूर है। सार्दूलपुर से ४० मील है, यहां ओसवालोंके ३० घर हैं। जैन मन्दिर में पार्श्वनाथ और महावीर स्वामी की प्रतिमाएं विराजमान है । एक उपाश्रय और पुस्तकालय भी है।
रणकरणसर
यह बीकानेर से ४१ मील दूर भटिण्डा जानेवाली रेलवेका स्टेशन है। यहां ओसवालोंके ६० घर है । १ मन्दिर, उपाश्रय और दादावाड़ी है। दादावाड़ीके चरण इस समय मन्दिर में रखे
हुए हैं।
सुपार्श्वनाथजीका मन्दिर
साधुकीर्तिजी के स्तवनानुसार सं० १६२० - २५ के लगभग यहां श्रीआदिनाथजीका मन्दिर था, पर वर्तमान मन्दिरके शिलापट्ट पर लेख में वा दद्याचन्दके सदुपदेशसे सावनसुखा सुजाणमल, बुच्चाठाकुरसी, बाफणा महीसिंह, गोलछा फूसाराम और बोधरा हीरानंदने सं० १९०१ के प्रथम श्रावण बदि १४ को यह मन्दिर करवाया लिखा है। संभव है यह जीर्णोद्धारका लेख हो । सं० १६३६ के श्रीजिनदत्तसूरिजी और श्रीजिनकुशलसूरिजी के चरण व अन्य कई पादुकाऐं
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