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________________ ८८ प्रमोदमाणिक्य गणि ने संघ के आग्रह से मेड़ता में चातुर्मास बिताकर फलवर्द्धि पार्श्वनाथ को यात्रा करके जयतारण, बीलाड़ा, सूराइता, नारदपुरी, मादड़ी, राणपुर, जीरापल्लि, पार्श्वनाथ, कुंभमेरु प्रमुख नगरों में विचरते हुऐ गोगूदा नगर संघ के आग्रह से मासकल्प किया। फिर निकटवर्ती नवपल्लव, मजावद तीर्थों की यात्रा कर लौटते हुए कुंभमेरु में १५ दिन ठहरे। फिर बहुत से तीर्थों की यात्रा कर नारदपुरी में मासकल्प किया। तदनंतर वरकाणा, नदकूल, गुंदबच, प्रमुख स्थानों की यात्रा कर के पाली होकर जोधपुर आये। वहां मासकल्प कर विहार करते हुए अषाढ शुक्ला ११ के दिन बीकानेर आये! मंत्रिवर्ग आदि सभ्योंके समक्ष प्रातःकाल प्रमोदमाणिक्य गणिने रायप्रसेनी-सूत्र-वृत्ति व पाक्षिक-सूत्रवृत्ति का व्याख्यान, मध्यान्ह में सत्यहंसगणि को कर्मग्रंथ, गुणरंग, दयारंगगणि आदिको प्रवचनसारोद्धार वृहद्वृति, तर्कशास्त्रादि एवं पं० हेमसोम, जयसोम मुनि को छन्द अलंकार पढ़ाते हुए स्वयं समयानुसार संयमाराधना करते हुए चातुर्मास बिताया। पर्वाधिराज पर्युषण में बोहिथरा गोत्रीय सा० जांटा, सा० सहसा, सा. नींवा, सा० धन्ना, सा० कोडा, प्रमुख परिवार सह क्षमाश्रमण पूर्वक कल्पसूत्र अपने घर ले जाकर रात्रिजागरणादि कर उत्सवपूर्वक ला कर दिया । ७ वाचनाएं प्रमोदमाणिक्य गणि ने एक एक वाचना पं० सत्यहंस व पं० गुणरंग गणि ने एवं कथाव्याख्यान पं० दयारंग गणि ने किया। तपागच्छ के उपाश्रय में सं० धनराज मं० अमरा, सा० वरडा, सं० गिरू, सं० पोमदत्त, सा० जीवा आदि संघ के आग्रह से पं० गुणरंग गणि ने ६ वाचनाओं द्वारा कल्पसूत्र सुनाया। पं० सत्यहंस गणि ने गणि-योग तप किया, गुणरंग गणि ने उपधान तप, मृषि सीपाने अठाई पारणे में एकांतरा, मृषि सहसू ने पांच उपवास, साध्वी लाला ने अठाई व इतर साध्वियों ने उपधान किया। सा० साजण ने २१ उपवास, सा० मेघा सा० वीदा ने पक्षक्षमण, श्रे० जिनदास सा० हेमराज, सा० रूदा, प्रमुख ७-८ श्रावकों ने अठाई की। सारूंडा ग्राम से पारख नरबद, मा० रावण, गोलछा हेमराज ने आकर सा० मांडण, सं० धन्ना, आदि श्रावकों ने उपधान किया। श्रा० देवलदे आदि ११ श्राविकाओं ने पक्षक्षमण, श्राविका लाला, चन्द्रावलि आदि ११ श्राविकों ने २१ उपवास, श्रा० लालां आदि ११ श्राविकाओं ने अठाई की एवं तेले, पंचोले बहुसंख्यक हुए। साध्वी रत्नसिद्धि गणिनी, सा० पुण्यलक्ष्मी, सा० लाछां, सा० लाडां आदि की तरफसे वन्दना एवं जैसलमेरस्थ श्रावकों को अत्रस्थित साधुओं की तरफ से धर्मलाभ लिखा है। जैसलमेरी श्रावकों के नाम-प्रेष्ठि सा० श्रीचन्द, सा० सूदा, सा० छुट्टा, सा० रायमल्ल, सं० नरपति, सं० कुशला, स० सृवटा, सं० जइवंत, सं० भइरवदास, सं० वारसी, सा० राजा, सा० सभू, सा० मापु, सा० राजा सा० पंचाइण, मं० लोला, सा० मेला, सा० सादा, धा० डूंगर, भ० सलखा, सा० आसू, मं० हांसा, श्राविका सीतादे आदि। . बीकानेर के मंत्री डूंगरसी, मं० सीपा, मं० राणा, मं० सांगा, मं० पित्था मं० माला, मं० यस्ता,मं० मांडण, मं० नूरा, मं? नरवद, मं० जोधा, मं० सीहा, मं० अमृत, मं० हेमराज, मं० अचला, मं० अर्जन, मं० सीमा, मं० श्रीचन्द, मं० जोगा, मं० खेतसी, मं० रायचन्द, मं० पदमसी, "Aho Shrut.Gyanam
SR No.009684
Book TitleBikaner Jain Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size22 MB
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