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________________ [ ७० ] बीकानेर के जैन ज्ञानभंडारों में दुर्लभ ग्रंथ ताड़पत्रीय प्रतिये (१) पाशुपताचार्य वामेश्वरध्वज रचित प्रबोद्धसिद्धि' (न्याय ग्रंथ ) हमारे संग्रह में (२) महाकवि मूलक रचित प्रतिज्ञा गांगेय (सदुर्गटीक कातन्त्र द्वाश्रय) सुराणा लाइब्रेरी कागज पर लिखित-ऐतिहासिक ग्रन्थ (३) सिद्धिचन्द्र रचित भानुचन्द्र चरित्र' जयचन्दजी के भण्डारमें (४) जिनपालोपाध्याय खरतरगच्छ गुर्वावली क्षमाकल्याणजी भण्डार वादिदेवसूरि चरित्र (अपूर्ण) ___ हमारे संग्रह में (६) अनेक कवियोंके रचित खरतर,लौका, बड़ गच्छादि की विविध पट्टावलिये " जयतसी रासो' गा० ८७ राजस्थानी रसविलास (अपूर्ण)६ " वच्छावत वंशावली " जिनभद्रसूरि रास " (११) जिनपतिसूरि रास, जिनकुशलसूरि रास, जिनपद्मसूरि रास, जिनराजसूरि रास, जिनरत्नसूरि रास, जिनसागरसूरि रास, विजयसिंहसूरि रास, जिनप्रभसूरिजि नदेवसूरि गीत आदि अनेकों ऐतिहासिक गीत एवं गुर्वावलिए जो कि अन्यत्र अप्राप्य हैं हमने अपने ऐतिहासिक १-परिचयके लिए देखें राजस्थान भारती व २॥ २-इसे हमने श्री. मोहनलाल दलीचंद देसाई को भेजकरसंपादित करवाया जो सिंधी जैन ग्रन्थमाला से प्रकाशित हुआ है। ३-इस अद्वितीय ग्रन्थको भी मुनि जिनविजयजीको भेजकर सिंघी जैन ग्रन्थमालासे मुद्रित करवाया है। इस ग्रन्थके महत्त्वके सम्बन्ध में मेरा लेख “खरतर गच्छ गुर्वावली और उसका महत्त्व" भारतीय विद्या वर्ष १ अंक ४ में देखना चाहिए। ४-इस काव्यका थोड़ा परिचय मैंने “एक नवीन ऐतिहासिक काव्य" लेख में दिया है जो कि जैन सत्य प्रकाश वर्ष ५ अंक ८ में प्रकाशित हुआ है। ५.-इसका विशेष परिचय राजस्थानी वर्ष ३ अंक १ में दिया गया है। यह छपा दिया गया है । ६-इसके सम्बन्धमें प्रजासेवक के ता० ३-१२-४१ के अंक में 'एक अप्रसिद्ध राजस्थानी काव्य' शीर्षक लेख में प्रकाश डाला गया है। ७-इसका परिचय भी राजस्थानी वर्ष ३ अंक ३ में दिया गया है। उस समय प्रारंभके कुछ पद्य अप्राप्त थे वे पीछेसे उपाध्याय विनयसागरजी प्रेषित २ पत्रोंमें प्राप्त हो गये हैं। ८-इसका ऐतिहासिक सार जैन सत्य प्रकाश वर्ष ३ अंक ८ में प्रकाशित किया है। "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009684
Book TitleBikaner Jain Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size22 MB
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