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________________ । ७१ जैन काव्य संग्रहमें प्रकाशित किये हैं। अप्रकाशित ऐतिहासिक साहित्यमें और भी देवचन्द रास' जिनसिंहसूरि रास आदि अनेक रास, गीत, नगरवर्णनात्मक गजलें हमारे संग्रहमें हैं। जैन तीर्थों के सम्बन्धी ऐतिहासिक साहित्यमें जयकीर्ति कृत सम्मेतशिखर रास और अनेक तीर्थमालाएँ, चैत्य परिपाटियों की प्रेसोपिया हमारे संग्रहित है। इसी प्रकार वंशावलियों में जैसलमेर वंशावली, वच्छावत वंशावलि, राठौड़ोंकी ख्यात एवं बातें, ओसवाल जाति के अनेक गोत्रों की वंशावलिये, इत्यादि महत्त्वपूर्ण विविध ऐतिहासिक साहित्य हमारे संग्रह में अप्रकाशित है। गच्छों के सम्बन्ध में भी बड़गच्छ गुर्वावली", तपागच्छ गुर्वावली, उपकेश गच्छ गुर्वावली, पल्लीवालगच्छ पट्टावली, राजगच्छ कडवागच्छ आदिकी पट्टावलियोंकी नकलें ओसवाल वंशावलियों, विज्ञप्ति-लेख पत्र संग्रहादि विशेष उल्लेखनीय हैं। संस्कृत जैन काव्य (१) पद्मसुन्दर कृत अकबर शाहि शृङ्गार दर्पण अपूर्ण हमारे संग्रह में पूर्ण अनूप-संस्कृत-लाइब्रेरीमें (२) नंदिरत्न शिष्य” सारस्वतोल्लास काव्य (३) विमलकीर्ति " चन्द्रदूत काव्य हमारे संग्रह में (४) मुनीशसूरि " हंसदूत सं०१६०० लिखित " (५) श्रीवल्लभ " विद्वद्प्रबोध १-इसका ऐतिहासिक सार भी सौभाग्यविजय रास सारके साथ जैन सत्यप्रकाश के वर्ष २ अंक १२ में प्रकाशित किया है। २-इस रासका ऐतिहासिक सार जिनराजसूरि रास सारके साथ जैन सत्यप्रकाश वर्ष ३ अंक ४-५ में प्रकाशित हुआ है। ३ राजस्थान में हस्तलिखित हिन्दी ग्रन्थों की खोज ग्रन्थके दूसरे भागमें विवरण प्रकाशित है इनमें कुछ गजलें मुनि कांतिसागरजीने हिन्दी पद्य संग्रह ग्रन्धमें प्रकाशित हो चुकी हैं कुछ भारतीय विद्या जैन विद्यादि पत्रोंमें । कांतिसागरजीका एक लेख भी राष्ट्र-भारती नवम्बर १९५३ में प्रकाशित हुआ है। ४-इसका सार जैन सत्यप्रकाश वर्ष ७ अंक १०-१२ में प्रकाशित किया है। प्रति मोतीचन्दजी खजाशीके संग्रह में हैं। ५-इसे जैन सत्यप्रकाश वर्ष ७ अंक ५ में प्रकाशित की है। ६-इसे श्री. मोहनलाल द. देसाईने भारतीय विद्या वर्ष १ में प्रकाशित की है। ७--यह ग्रन्थ गंगा ओरिण्टियल सीरीज बीकानेर से प्रकाशित हुआ है। इसके रचयिता पद्मसुन्दरजी के सम्बन्धमे “कवि पद्मसुन्दर और उनके ग्रन्थ" अनेकान्त वर्ष ४ अंक ८ में प्रकाशित किया है। ८-इसका कुछ परिचय मैंने “दूत काव्य संबन्धी कुछ ज्ञातव्य बातें" लेखमें जैन सिद्धान्त भास्कर भाग ३ किरण १ में प्रकाशित किया है। अभी उ० श्री सुखसागरजीने इस ग्रन्थको प्रकाशित कर दिया है। ९-इसका परिचय "श्रीवल्लभजीके तीन नवीन ग्रन्थ' शीर्षक लेखमें जैन सत्यप्रकाश वर्ष ५ अंक ७ में प्रकाशित है। यह भी उ० सुखसागरजीके द्वारा चन्द्रदूतके साथ प्रकाशित हो चुका है। "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009684
Book TitleBikaner Jain Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size22 MB
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