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________________ बीकानेरके जैन-ज्ञान-भण्डार बीकानेरके जैन भण्डारों का भारतीय जैन ज्ञान भण्डारों में बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान है पर अभी तक विद्वत् समाजका इन महत्त्वपूर्ण भण्डारोंकी ओर विशेष ध्यान नहीं गया इसलिए इनका संक्षिप्त परिचय यहां कराया जा रहा है। यद्यपि बीकानेर की कई प्रतियें पूना आदिके अनेक संग्रहालयोंमें एवं अनेक व्यक्तियोंके पास बाहर जा चुकी हैं और हजारों प्रतियें हमारी उपेक्षा एवं अज्ञानतावश दीमक आदि जन्तुओंका भक्ष्य बन चुकी हैं। बहुतसी प्रतिया वर्षात्की शरदीसे चिपक कर नष्ट हो गई हजारों प्रतियें कूटेके काममें और पुड़िया बान्धनेमें लाई गयी फिर भी यहांके विविध जैन संग्रहालयोंमें ५० हजारके लगभग प्रतियां विद्यमान है। जिनमें से सैकड़ों ग्रंथ दुर्लभ एवं अन्यत्र अप्राप्त हैं। इन संग्रहालयोंमें विविध विषयों एवं संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी, अपभ्रंश, गुजराती, राजस्थानी, उर्दू, पारसी, महाराष्ट्री एवं बंगला भाषा के ग्रन्थ भी हैं ! कई प्रतियें चित्र-कलाको दृष्टिसे, कई सुन्दर लेखन, कई प्राचीनता एवं कई पाठ शुद्धिकी दृष्टिसे बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं। स्वर्णाक्षरी, रौप्याक्षरी, सूक्ष्माक्षरी, प्रतियां भी यहांके संग्रहालयों में दर्शनीय हैं। बीकानेर एवं उदयपुरके २ सचित्र विज्ञप्तिलेख एवं अनेकों प्राचीन चित्रादि इन संग्रहालयोंकी शोभामें अभिवृद्धि कर रहे हैं। इन संग्रहालयोंका महत्त्व इनको बारीकीसे अवलोकन करने पर ही प्रकाशित किया जा सकता है जिसके लिए बहुत समय एवं श्रमकी आवश्यकता है। यहां तो विद्वद् समाजका ध्यान आकर्षित करनेके लिए ही अति संक्षिप्त परिचय देना अभीष्ट है। वृहद् ज्ञान भण्डार-बड़ा उपाश्रय, रांगड़ीका चौकमें यह संग्रहालय अवस्थित है। संवत् १९५८ में यतिवर्य हिमतूजी (हितवल्लभ गणि) के विशेष प्रयत्न एवं प्रेरणासे इसकी स्थापना हुई है। ज्ञानकी असीम भक्ति एवं भावी समयमें होनेवाली दुर्दशाओंका विचार कर इस भण्डार में उन्होंने छोटे बड़े व्यक्तियोंका संग्रह एकत्र कर दिया था। जो दाताओंके नामसे अलग अलग अलमारियोंमें रखा हुआ है। इन ह भण्डारोंके नाम इस प्रकार हैं : १ महिमाभक्ति भण्डार-खरतर गच्छके प्रसिद्ध विद्वान क्षमाकल्याणोपाध्यायके प्रशिष्य महिमाभक्तिजीका यह महत्त्वपूर्ण संग्रह है। इसमें बहुतसे दुर्लभ एवं महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ हैं। ८६ बंडलोंमें करीब ३००० प्रतियें इस संग्रहके अन्तर्गत है। २ दानसागर भण्डार-वृहत ज्ञानभण्डारके संस्थापक हिमतूजीने अपने गुरुश्रीका संग्रह उनके नामसे दिया। इसमें भी बहुतसे महत्वपूर्ण ग्रंथ हैं। ६८ बंडलोंमें करीब ३००० प्रतिये इस संग्रहमें सुरक्षित हैं। ३ वर्द्धमान भण्डार-इसके अन्तर्गत ४३ बंडलोंमें १००० प्रतियां है। ४ अभयसिंह भण्डार-इस भण्डारमें २३ बंडलोंमें ५०० प्रतियां है। "Aho Shrut Gyanam
SR No.009684
Book TitleBikaner Jain Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size22 MB
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