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________________ । ६५ ५ जिनहर्षसूरि भण्डार–२७ बंडलोंमें ३०० प्रतियां है ! ६ अबीरजी भण्डार-१६ बंडलोंमें ५०० प्रतियां हैं। ७ भुवनभक्ति भण्डार-१४ बंडलोंमें ५०० प्रतियां हैं। ८ रामचन्द्र भण्डार-६ बंडलोंमें ३०० प्रतियां हैं। ६ महरचन्द्र भण्डार-८ बंडलोंमें ३०० प्रतियां हैं। उपर्युक्त प्रतियां सभी पत्राकार हैं । इनके अतिरिक्त पुस्तकाकार गुटकोंकी संख्या भी १०० से अधिक होगी । जिनमें छोटी बड़ी बहुतसी रचनाएँ संग्रहित हैं। सब मिलाकर १०,००० प्रतियां इस वृहद् ज्ञानभण्डारमें सुरक्षित है। इनका पुराना सूचीपत्र प्रन्थ नाम एवं पत्र संख्याका ही परिचायक है हमने करीब २० वर्ष पूर्व ६ महीने तक निरन्तर प्रतियोंका निरीक्षण करके विशेष विवरण युक्त सूचीपत्र तैयार किया था। इस भण्डारका प्रबन्ध ट्रस्टियोंके हाथ में है। जिनमें १ श्रीपूज्यजी २ प्रेमकरणजी खजाची ३ शंकरदानजी नाहटा । इन तीनोंके यहां अलग अलग चाबियां रहती हैं और सबकी उपस्थितिमें भण्डार खोला जाता है। २ श्रीपुज्यजीका भण्डार-यह बड़े उपाश्रयमें वृहत्खरतर गच्छीय भट्टारक शाखाके पट्टधर आचार्योका संग्रह है। इसकी सूची नहीं थी व संग्रह अस्तव्यस्त था। श्री जिनचारित्रसूरिजीके समयमें विषय विभागसे भली भांति वर्गीकरण कर इसका सूचीपत्र भी आवश्यक विवरणसहमैंने तैयार किया है। इस भण्डार में श्रीपूज्यजी के परम्परागत संग्रह में ८५ बंडलों में २४०० पत्राकार प्रतियां एवं १०० के लगभग गुटकोंका संग्रह है । दूसरा संग्रह चतुर्भुजजी यत्तिका है जिसमें १४ घंडलोंमें ८०० प्रतियोंका संग्रह है। हस्तलिखित प्रतियोंके अतिरिक्त श्रीपूज्यजी महाराजके संग्रहमें २००० के लगभग मुद्रित ग्रन्थोंका भी उत्तम संग्रह है। ३–श्री जैनलक्ष्मी मोहनशाला ज्ञानभंडार-इसे संवत् १६५१ में उपाध्याय जयचन्दजी के गुरू मोहनलालजीने स्थापित किया था। यह संग्रह बड़े महत्त्वका है। इसकी पुरानी सूची बनी हुई है। मैंने आवश्यक विवरण सहित नई सूची तैयार की है। यह संग्रह भी रांगड़ी के चौकमें है। यहाँ १२१ बंडलों में लगभग २८०० पत्राकार व २०० गुटकाकार पुस्तकें हैं। ४-क्षमाकल्याणजी का ज्ञानभंडार-यह भंडार सुगनजी के उपाश्रय में है। इसकी सूची हरिसागरसूरिजी ने बनाई थी। जिसे प्रतियों का भली-भांति निरीक्षण कर मैने संशोधन कर विशेष ज्ञातव्य नोट कर दिया है। हस्तलिखित प्रतियों की संख्या ७०० के लगभग है जिन में खरतर गच्छ गुर्वावली की प्रति अन्यत्र अप्राप्त एवं महत्त्वपूर्ण है। -बौहरों की सेरीके उपाश्रय का भण्डार - यह संग्रह भी रांगडीके निकटवर्ती बोहरों की सेरीमें है। क्षमाकल्याणजी की आज्ञानुवत्ती परम्परा की साध्धियां इस उपाश्रय में रहती हैं। ६-छत्तीबाईके उपाश्रय का भंडार-नाहटों की गुवाड़ में अवस्थित छत्तो बाई के उपा "Aho Shrut.Gyanam"
SR No.009684
Book TitleBikaner Jain Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year
Total Pages658
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size22 MB
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