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[ २ ] सं० २००२ में बीकानेर की दुकान उठाकर कलकत्ता आये और व्यापार प्रारम्भ किया। सं० २००४ से हमारे नाहटा ब्रदर्स फर्म के साथ व्यापार चालू किया जिससे पर्याप्त लाभ हुआ, आज भी हमारे सीरसाझे में व अपनी स्वतन्त्र दुकान चलाते हुए सुखमय व सन्तोषी जीवन बिता रहे हैं। यों आप निःसंतान है, एक लड़की हुई जो चल बसी पर 'उदार चरिताना तु वसुधैव कुटुम्बकम्' के अनुसार अपने कुटुम्बी जनोंके भरण पोषण का सर्वदा लक्ष्य रखा । भाणजा भाणजी और उनकी संतानादि के विवाह-सादी में आपने हजारों रुपये व्यय किये। आप भृण को बड़ा पाप समझते हैं और कभी ऋण लेकर काम करना पसन्द नहीं करते । अपना व अपने पूर्वजों का ऋण कानूनन अवधि बीत जानेपर भी अदा करके ही सन्तुष्ट हुए। आपमें संग्रह वृत्ति नहीं है, ज्यों पैदा होता जाय खर्च करते जाना, दलाल, गुमास्तों को बांट देना एवं सुकृत कार्योंमें लगाते रहना यही आपका मुख्य उद्देश्य है। अपने विश्वस्त भाणजा पीरदान पुगलिया को बाल्यकालसे काम काज में होशियार कर अपना साझीदार बना लिया व उसी पर सारा व्यापार निर्भर कर संतोषी जीवन यापन कर रहे हैं।
__आपको भृण देना भी पसन्द नहीं, यदि दिया तो सुकृत खाते समझ कर, यदि वापस आया तो जमा कर लिया, नहीं तो तकादा नहीं कर अपनी वर्षगांठपर उसे माफ कर दिया।
श्री मूलचन्दजी नित्त के उदार हैं, उन्हें भाइयों और स्वधर्मियों को उत्तमोत्तम भोजन कराने में आनन्द मिलता है । लोभवृत्तिसे दूर रहकर आयके अनुसार खर्च करते रहते हैं । बीकानेरस्थ नाहटों की बगीची व मन्दिर में ११००० व्यय किये, वहां पानी की प्रपा चालू है । सुकृत कार्यों में महीने में सौ दो सौ का तो व्यय करते ही रहते हैं । बीकानेरमें आदीश्वर मण्डल की स्थापना कर प्रथम २०१०) फिर प्रति वर्ष पांच सात सौ देते रहते हैं। कलकत्ता के जैन भवन को ५००) दिये थे। तीर्थयात्रादि का भी लाभ लेते रहते हैं। प्रस्तुत "बीकानेर जैन लेख संग्रह' के प्रकाशन का अर्थ व्यय बहन कर आपने जैन साहित्य की अपूर्व सेवा की है।
शासनदेव से प्रार्थना है कि आप दीर्घायु होकर चिरकाल तक ज्ञानोपासना एवं शासनोन्नति के नाना कार्यों में योगदान करते रहें।
"Aho Shrut Gyanam"